आखिरी शिकार
टेलीफोन की घन्टी घनघना उठी।
राज ने हाथ बढाकर रिसीवर उठा लिया । "हैलो ।" - वह माउथपीस में बोला ।
“मिस्टर राज !" - लगभग फौरन उसे दूसरी ओर से एक सशंक ब्रिटिश स्वर सुनाई दिया । “
यस ?" - राज बोला।
"मैं लन्दन में आपका स्वागत करता हूं।" - दूसरी ओर से आवाज आई।
राज के कान खड़े हो गये । कनर्ल मुखर्जी ने भारत में उसे जिस संभावित वार्तालाप के विषय में बताया था, वह उस वार्तालाप का प्रथम वाक्य था।
"धन्यवाद ।" - राज भावहीन स्वर से बोला - "लेकिन लन्दन में मेरा स्वागत करने के अतिरिक्त
और क्या कर सकते हो?"
"मैं बहुत कुछ कर सकता हूं, सर ।" –उत्तर मिला - "जैसे मैं आपको लन्दन का वह चेहरा दिखा सकता हूं जो बहुत कम लोगों ने बहुत कम बार देखा है।"
वार्तालाप ठीक उसी ढंग से चल रहा था जैसा
कर्नल मुखर्जी ने उसे संकेत दिया था ।
"बदले में मुझे क्या करना होगा ?" - राज ने पूछा । उसका वह प्रश्न भी कोडवर्ड की तरह इस्तेमाल होने वाले उस वार्तालाप का एक अंश
था
।
"कुछ भी नहीं ।" - उत्तर मिला - "आप केवल आज की रात कुछ समय के लिये लन्दन में अपने आपको मेरे हवाले कर दीजिये । अगर आप जो सोच रहे हैं, वही न हुआ तो मैं समझंगा कि मुझ में एक अच्छा अभ्यागत बनने का गुण नहीं है और मैं आपका वक्त बरबाद करने के लिये आपसे माफी मांग लूंगा।"
"ठीक है | आ जाओ।"
"सॉरी, सर । आप आ जाइये ।"
"कहां?"
"आप अपने होटल से बाहर निकलिये और दायीं ओर फुटपाथ पर रवाना हो जाइये । सौ कदम आगे फुटपाथ पर एक टेलीफोन बूथ है । आप वहां मेरी प्रतीक्षा कीजिये, मैं कार लेकर हाजिर हो जाऊंगा।"
“मैं तुम्हें पहचानूंगा कैसे?"
"मेरी काले रंग की फोर्ड गाड़ी से और मेरे हैट के लाल रंग के रिबन से जिसमें एक पंख खुंसा होगा
"ओके । मैं आता हूं।"
“थैक्यू, सर ।"
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
राज ने रिसीवर क्रेडल पर रख दिया ।
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Re: आखिरी शिकार
उसने ओवरकोट पहना, सिर पर फैल्ट हैट जमाया और कमरे से बाहर निकल आया ।
वह डोवर स्ट्रीट पर स्थित होटल क्राउन में ठहरा हुआ था।
वह होटल से बाहर निकल आया और दायीं ओर फुटपाथ पर आगे बढा । लन्दन में कामनवैल्थ के प्रधानमन्त्रियों की कान्फ्रेंस जारी थी और राज उसी कान्फ्रेंस को कवर करने के लिये अपने अखबार ब्लास्ट द्वारा भेजा गया था । वह प्रेस के अन्य प्रतिनिधियों के समूह में प्रधानमंत्री के साथ ही लन्दन आया था । भारतीय न्यूज एजेन्सियों और अन्य अखबारों के लगभग सभी प्रतिनिधि होटल क्राउन में ही ठहरे हुये थे।
भारत से रवानगी से केवल एक घण्टा पहले राजनगर एयरपोर्ट पर राज की सी आई बी की ब्रांच स्पेशल इन्टेलीजेंस के डायरेक्टर कर्नल मखर्जी से भेंट हई थी । कर्नल मखर्जी ने उसे बताया था कि लन्दन में उसके प्रवास के दौरान शायद सी आई बी के कुछ ऐसे एजेन्ट उससे सम्पर्क स्थापित करें जो काफी अरसे से लापता थे और जिनके बारे में यह धारणा बनाई जा रही थी कि या तो वे शत्रुओं की कैद में थे और या मर चुके थे। लेकिन हाल ही में उन्हें ऐसा संकेत मिला था कि लापता एजेन्टों में से छ: लन्दन में मौजूद थे । राज के लिये सम्पर्क सूत्र वह वार्तालाप था जो वह कुछ क्षण पहले टेलीफोन पर एक अजनबी के साथ कर चुका था ।
वह सौ कदम आगे फुटपाथ पर बने टेलीफोन बूथ के सामने रुक गया । उसने एक सिगरेट सुलगा लिया और प्रतीक्षा करने लगा।
आधा सिगरेट समाप्त हो चुकने के बाद एकाएक एक फोर्ड उसके सामने आकर रुकी । फोर्ड का राज की ओर का दरवाजा खुला । भीतर डोम लाइट जल रही थी । उसके प्रकाश में राज को ड्राइविंग सीट पर एक युवक बैठा दिखाई दिया जो अपने सिर पर लाल रिबन वाली फैल्ट लगाये हुये था और जिसके रिबन में एक पंख खुंसा हुआ था।
राज कार में प्रविष्ट हो गया । उसने द्वार बन्द कर लिया।
“मिस्टर राज ?" - युवक ने प्रश्न किया ।
"यस ।"
"मैं आपका पासपोर्ट देख सकता हूं?"
राज ने प्रश्नसूचक नेत्रों से युवक की ओर देखा
"मैं आपको पहचानता नहीं, सर ।" - युवक जल्दी से बोला –"मैंने जिन्दगी में कभी आपकी सूरत नहीं देखी । मुझे यह विश्वास तो होना चाहिए कि मैं इस समय सही आदमी से बात कर रहा हूं।"
राज ने बिना बोले अपनी जेब से अपना पासपोर्ट और प्रेस कार्ड निकाला और उसे युवक की ओर बढा दिया।
युवक की दक्ष उंगलियों ने पासपोर्ट को वहां से खोला जहां पासपोर्ट होल्डर की तस्वीर लगी होती है । वह कुछ क्षण गौर से पासपोर्ट पर लगी तस्वीर को देखता रहा, फिर उसने राज की सूरत पर दृष्टिपात किया । उसके चेहरे पर सन्तुष्टि के भाव झलकने लगे ।
उसने प्रेस कार्ड खोलकर उस पर भी राज की तस्वीर देखी और उसका नाम पढा ।
"थैक्यू, सर ।" - वह राज का पासपोर्ट और प्रेस कार्ड लौटाता हुआ सन्तुष्ट स्वर में बोला ।
राज ने चुपचाप दोनों चीजें वापिस अपनी जेब में रख लीं।
युवक ने डोम लाइट बुझा दी। कार के भीतर अन्धेरा हो गया।
उसने इग्नीशन ऑन किया और कार को गियर में डाल दिया ।
कार कर के साथ आगे बढ गई।
कार लन्दन के कृत्रिम प्रकाश से आलोकित रास्तों से गुजरने लगी।
राज ने एक नया सिगरेट सुलगा लिया ।
रास्ता कटता रहा।
"हमारा पीछा किया जा रहा है ।" - एकाएक युवक बोला।
वह डोवर स्ट्रीट पर स्थित होटल क्राउन में ठहरा हुआ था।
वह होटल से बाहर निकल आया और दायीं ओर फुटपाथ पर आगे बढा । लन्दन में कामनवैल्थ के प्रधानमन्त्रियों की कान्फ्रेंस जारी थी और राज उसी कान्फ्रेंस को कवर करने के लिये अपने अखबार ब्लास्ट द्वारा भेजा गया था । वह प्रेस के अन्य प्रतिनिधियों के समूह में प्रधानमंत्री के साथ ही लन्दन आया था । भारतीय न्यूज एजेन्सियों और अन्य अखबारों के लगभग सभी प्रतिनिधि होटल क्राउन में ही ठहरे हुये थे।
भारत से रवानगी से केवल एक घण्टा पहले राजनगर एयरपोर्ट पर राज की सी आई बी की ब्रांच स्पेशल इन्टेलीजेंस के डायरेक्टर कर्नल मखर्जी से भेंट हई थी । कर्नल मखर्जी ने उसे बताया था कि लन्दन में उसके प्रवास के दौरान शायद सी आई बी के कुछ ऐसे एजेन्ट उससे सम्पर्क स्थापित करें जो काफी अरसे से लापता थे और जिनके बारे में यह धारणा बनाई जा रही थी कि या तो वे शत्रुओं की कैद में थे और या मर चुके थे। लेकिन हाल ही में उन्हें ऐसा संकेत मिला था कि लापता एजेन्टों में से छ: लन्दन में मौजूद थे । राज के लिये सम्पर्क सूत्र वह वार्तालाप था जो वह कुछ क्षण पहले टेलीफोन पर एक अजनबी के साथ कर चुका था ।
वह सौ कदम आगे फुटपाथ पर बने टेलीफोन बूथ के सामने रुक गया । उसने एक सिगरेट सुलगा लिया और प्रतीक्षा करने लगा।
आधा सिगरेट समाप्त हो चुकने के बाद एकाएक एक फोर्ड उसके सामने आकर रुकी । फोर्ड का राज की ओर का दरवाजा खुला । भीतर डोम लाइट जल रही थी । उसके प्रकाश में राज को ड्राइविंग सीट पर एक युवक बैठा दिखाई दिया जो अपने सिर पर लाल रिबन वाली फैल्ट लगाये हुये था और जिसके रिबन में एक पंख खुंसा हुआ था।
राज कार में प्रविष्ट हो गया । उसने द्वार बन्द कर लिया।
“मिस्टर राज ?" - युवक ने प्रश्न किया ।
"यस ।"
"मैं आपका पासपोर्ट देख सकता हूं?"
राज ने प्रश्नसूचक नेत्रों से युवक की ओर देखा
"मैं आपको पहचानता नहीं, सर ।" - युवक जल्दी से बोला –"मैंने जिन्दगी में कभी आपकी सूरत नहीं देखी । मुझे यह विश्वास तो होना चाहिए कि मैं इस समय सही आदमी से बात कर रहा हूं।"
राज ने बिना बोले अपनी जेब से अपना पासपोर्ट और प्रेस कार्ड निकाला और उसे युवक की ओर बढा दिया।
युवक की दक्ष उंगलियों ने पासपोर्ट को वहां से खोला जहां पासपोर्ट होल्डर की तस्वीर लगी होती है । वह कुछ क्षण गौर से पासपोर्ट पर लगी तस्वीर को देखता रहा, फिर उसने राज की सूरत पर दृष्टिपात किया । उसके चेहरे पर सन्तुष्टि के भाव झलकने लगे ।
उसने प्रेस कार्ड खोलकर उस पर भी राज की तस्वीर देखी और उसका नाम पढा ।
"थैक्यू, सर ।" - वह राज का पासपोर्ट और प्रेस कार्ड लौटाता हुआ सन्तुष्ट स्वर में बोला ।
राज ने चुपचाप दोनों चीजें वापिस अपनी जेब में रख लीं।
युवक ने डोम लाइट बुझा दी। कार के भीतर अन्धेरा हो गया।
उसने इग्नीशन ऑन किया और कार को गियर में डाल दिया ।
कार कर के साथ आगे बढ गई।
कार लन्दन के कृत्रिम प्रकाश से आलोकित रास्तों से गुजरने लगी।
राज ने एक नया सिगरेट सुलगा लिया ।
रास्ता कटता रहा।
"हमारा पीछा किया जा रहा है ।" - एकाएक युवक बोला।
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Re: आखिरी शिकार
राज चौंका लेकिन उसने घूम कर पीछे देखने की गलती नहीं की । उसने सिगरेट को डैश बोर्ड में लगी ऐश ट्रे में झोंक दिया और युवक के चेहरे पर दृष्टिपात किया। युवक के जबड़े कसे हुये थे लेकिन चिन्तित दिखाई नहीं दे रहा था ।
एकाएक उसने बिना सिग्नल दिये, बिना रफ्तार कम किये कार को दाई ओर एक पतली-सी सड़क पर मोड़ दिया । कार गोली की तरह एक अन्य कार की बगल से गुजरी, एक ट्रक से सीधी टकराते-टकराते बची और पतली सड़क पर प्रविष्ट हो गई । लगभग सौ गज आगे उसने कार को फिर दाई ओर मोड़ा।
फिर एकाएक उसने अपना पांव पूरी शक्ति से ब्रेक के पैडल पर दबा दिया । ब्रेकों की चरचराहट से और टायरों के सड़क पर रपटने की आवाज से वातावरण गूंज उठा ।
"आउट ।" - युवक फुर्ती से अपनी ओर का दरवाजा खोलता हुआ बोला - “क्विक ।"
राज फौरन कार से बाहर निकल आया और युवक के पीछे लपका जो गली में घुसा जा रहा था ।
युवक एक दरवाजे के भीतर प्रविष्ट हो गया ।
राज उसके पीछे था ।
उसने देखा, वह एक रेस्टोरेंट का पिछला द्वार था रेस्टोरेंट को तय करके वे फ्रन्ट में पहुंचे और फिर एक भीड़ भरी चौड़ी सड़क पर आ गये । दोनों फुटपथ की भीड़ में मिल गये । वे अपने ओवरकोटों की जेबों में हाथ डाले लापरवाही से भीड़ में चलते रहे ।
"तुम्हारी कार का क्या होगा?" - राज ने धीरे से पूछा।
"कौन-सी कार? कैसी कार ! मेरे पास कभी कोई कार नहीं थी।" - युवक बिना उसकी ओर देखे भावहीन स्वर में बोला ।
राज को और अधिक बताने की जरूरत नहीं थी । वह समझ गया कि कार चोरी की थी।
"टैक्सी !" - एकाएक युवक बोला ।
टैक्सी फुटपाथ के साथ आ रुकी।
दोनों टैक्सी में प्रविष्ट हो गये ।
युवक ने टैक्सी ड्राइवर को धीरे से कुछ कहा जो कि राज की समझ में नहीं आया।
टैक्सी ड्राईवर ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया और टैक्सी आगे बढायी ।
टैक्सी आधुनिक लन्दन में से निकल कर एक गन्दे से इलाके में पहुंच गई ।
एक पतली सी पथरीली गली में टैक्सी रुकी । युवक ने राज को संकेत किया और टैक्सी से बाहर निकल आया । उसने टैक्सी ड्राइवर को किराया अदा कर दिया । टैक्सी बैक होती हुई गली से बाहर निकल गई ।
युवक तब तक वहां से नहीं हिला जब तक टैक्सी दृष्टि से ओझल नहीं हो गई । फिर उसने राज को संकेत किया और आगे बढा ।
राज उसके साथ हो लिया ।
एक पुरानी-सी इमारत के सामने आकर युवक रुक गया । इमारत का मुख्य द्वार बन्द था । द्वार की बगल में काल बैल लगी हुई थी।
युवक ने काल बैल का पुश तीन बार दबाया, एक क्षण रुका, फिर पुश को एक बार फिर दबाया, एक क्षण रुका, पुश को दुबारा तीन बार दबाया एक क्षण रुका और फिर पुश को काफी देर दबाये रहने के बाद उसने उस पर से उंगली हटा ली।
थोड़ी देर बाद द्वार खुला।
द्वार पर एक लम्बा-तडंगा आदमी प्रकट हुआ।
अन्धकार में राज को उसकी सूरत दिखाई नहीं दी । वह द्वार खोल कर एक ओर हट गया ।
"कम इन सर ।" - युवक बोला ।
राज युवक के साथ भीतर प्रविष्ट हो गया ।
एकाएक उसने बिना सिग्नल दिये, बिना रफ्तार कम किये कार को दाई ओर एक पतली-सी सड़क पर मोड़ दिया । कार गोली की तरह एक अन्य कार की बगल से गुजरी, एक ट्रक से सीधी टकराते-टकराते बची और पतली सड़क पर प्रविष्ट हो गई । लगभग सौ गज आगे उसने कार को फिर दाई ओर मोड़ा।
फिर एकाएक उसने अपना पांव पूरी शक्ति से ब्रेक के पैडल पर दबा दिया । ब्रेकों की चरचराहट से और टायरों के सड़क पर रपटने की आवाज से वातावरण गूंज उठा ।
"आउट ।" - युवक फुर्ती से अपनी ओर का दरवाजा खोलता हुआ बोला - “क्विक ।"
राज फौरन कार से बाहर निकल आया और युवक के पीछे लपका जो गली में घुसा जा रहा था ।
युवक एक दरवाजे के भीतर प्रविष्ट हो गया ।
राज उसके पीछे था ।
उसने देखा, वह एक रेस्टोरेंट का पिछला द्वार था रेस्टोरेंट को तय करके वे फ्रन्ट में पहुंचे और फिर एक भीड़ भरी चौड़ी सड़क पर आ गये । दोनों फुटपथ की भीड़ में मिल गये । वे अपने ओवरकोटों की जेबों में हाथ डाले लापरवाही से भीड़ में चलते रहे ।
"तुम्हारी कार का क्या होगा?" - राज ने धीरे से पूछा।
"कौन-सी कार? कैसी कार ! मेरे पास कभी कोई कार नहीं थी।" - युवक बिना उसकी ओर देखे भावहीन स्वर में बोला ।
राज को और अधिक बताने की जरूरत नहीं थी । वह समझ गया कि कार चोरी की थी।
"टैक्सी !" - एकाएक युवक बोला ।
टैक्सी फुटपाथ के साथ आ रुकी।
दोनों टैक्सी में प्रविष्ट हो गये ।
युवक ने टैक्सी ड्राइवर को धीरे से कुछ कहा जो कि राज की समझ में नहीं आया।
टैक्सी ड्राईवर ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया और टैक्सी आगे बढायी ।
टैक्सी आधुनिक लन्दन में से निकल कर एक गन्दे से इलाके में पहुंच गई ।
एक पतली सी पथरीली गली में टैक्सी रुकी । युवक ने राज को संकेत किया और टैक्सी से बाहर निकल आया । उसने टैक्सी ड्राइवर को किराया अदा कर दिया । टैक्सी बैक होती हुई गली से बाहर निकल गई ।
युवक तब तक वहां से नहीं हिला जब तक टैक्सी दृष्टि से ओझल नहीं हो गई । फिर उसने राज को संकेत किया और आगे बढा ।
राज उसके साथ हो लिया ।
एक पुरानी-सी इमारत के सामने आकर युवक रुक गया । इमारत का मुख्य द्वार बन्द था । द्वार की बगल में काल बैल लगी हुई थी।
युवक ने काल बैल का पुश तीन बार दबाया, एक क्षण रुका, फिर पुश को एक बार फिर दबाया, एक क्षण रुका, पुश को दुबारा तीन बार दबाया एक क्षण रुका और फिर पुश को काफी देर दबाये रहने के बाद उसने उस पर से उंगली हटा ली।
थोड़ी देर बाद द्वार खुला।
द्वार पर एक लम्बा-तडंगा आदमी प्रकट हुआ।
अन्धकार में राज को उसकी सूरत दिखाई नहीं दी । वह द्वार खोल कर एक ओर हट गया ।
"कम इन सर ।" - युवक बोला ।
राज युवक के साथ भीतर प्रविष्ट हो गया ।
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Re: आखिरी शिकार
द्वार खोलने वाले ने द्वार को मजबूती से बन्द कर दिया और उनके पीछे चलने लगा।
एक लम्बा गलियारा पार करके वे एक बड़े से कमरे में पहुंचे | कमरा ट्यूब लाइट से प्रकाशित था ।
भीतर दो कुर्सियों पर एक लगभग चालीस साल का आदमी और एक तीस साल की युवती बठी थी।
युवती भारतीय थी लेकिन योरोपियन परिधान पहने हुये थी । उसके बाल कटे हुये थे । आदमी रंग रुप से योरोपियन लगता था । उसकी दाई बांह कन्धे से गायब थी और दाई आंख पर सिर के गिर्द बन्धी एक डोरी की सहायता से । तिकोना ढक्कन लगा हुआ था । वह आदमी दाई बाहं की तरह दाई आंख से भी वंचित था ।
प्रकाश में राज ने उस तीसरे आदमी की सूरत देखी जिसने द्वार खोला था । वह सूरत से भारतीय लगता था।
"मिस्टर राज ।" - युवक बोला ।
कोई कुछ नहीं बोला।
"अनिल साहनी ।" - युवक ने उस लम्बे तड़गे
आदमी की ओर संकेत किया जिसने द्वार खोला था ।
"रोशनी ।" - युवक ने युवती की ओर संकेत किया।
"जान फ्रेडरिक ।" - युवक ने एक बांह और एक आंख वाले आदमी की ओर संकेत किया ।
"प्लीज बी सीटिड, मिस्टर राज ।" - जान फ्रेडरिक भावहीन स्वर में बोला ।
राज एक कुर्सी पर बैठा गया ।
युवक कमरे से बाहर निकल गया । जाती बार वह बाहर से दरवाजे को सावधानी से बन्द कर गया।
अनिल साहनी रोशनी के समीप एक कुर्सी पर जा बैठा।
अब राज उन तीनों से अलग उनके सामने बैठा हुआ था । राज गौर से उनकी सूरतें देखने लगा उनके चेहरे इतने भावहीन थे कि वे पत्थर से तराशे मालूम होते थे । तीनों की आंखों में एक गहरी उदासी की छायी थी । उनके होंठ भिंचे हुये थे और निगाहें शून्य में कहीं टिकी हुई थीं । राज कई क्षण उनमें से किसी के बोलने की प्रतीक्षा करता रहा लेकिन जब उनमें से किसी को जुबान खोलते न पाया तो वह बोला - "क्या मुझे यह बताने की जरूरत है कि मैं कौन हूं?" तीनों एक-दूसरे का मुंह देखने लगे । फिर जान फ्रेडरिक ने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया।
"जो युवक मुझे यहां लाया था वह कौन है ?" - राज ने पूछा।
"उसका नाम मिलर है ।" - जान फ्रेडरिक बोला - "वह हमारा मददगार है ।"
“साथी नहीं।"
"नहीं।"
"तो फिर आपके बाकी साथी कहां है ?"
जान फ्रेडरिक ने अनिल साहनी और रोशनी पर दृष्टिपात किया । तीनों तनिक बेचैन दिखाई देने लगे थे।
एक लम्बा गलियारा पार करके वे एक बड़े से कमरे में पहुंचे | कमरा ट्यूब लाइट से प्रकाशित था ।
भीतर दो कुर्सियों पर एक लगभग चालीस साल का आदमी और एक तीस साल की युवती बठी थी।
युवती भारतीय थी लेकिन योरोपियन परिधान पहने हुये थी । उसके बाल कटे हुये थे । आदमी रंग रुप से योरोपियन लगता था । उसकी दाई बांह कन्धे से गायब थी और दाई आंख पर सिर के गिर्द बन्धी एक डोरी की सहायता से । तिकोना ढक्कन लगा हुआ था । वह आदमी दाई बाहं की तरह दाई आंख से भी वंचित था ।
प्रकाश में राज ने उस तीसरे आदमी की सूरत देखी जिसने द्वार खोला था । वह सूरत से भारतीय लगता था।
"मिस्टर राज ।" - युवक बोला ।
कोई कुछ नहीं बोला।
"अनिल साहनी ।" - युवक ने उस लम्बे तड़गे
आदमी की ओर संकेत किया जिसने द्वार खोला था ।
"रोशनी ।" - युवक ने युवती की ओर संकेत किया।
"जान फ्रेडरिक ।" - युवक ने एक बांह और एक आंख वाले आदमी की ओर संकेत किया ।
"प्लीज बी सीटिड, मिस्टर राज ।" - जान फ्रेडरिक भावहीन स्वर में बोला ।
राज एक कुर्सी पर बैठा गया ।
युवक कमरे से बाहर निकल गया । जाती बार वह बाहर से दरवाजे को सावधानी से बन्द कर गया।
अनिल साहनी रोशनी के समीप एक कुर्सी पर जा बैठा।
अब राज उन तीनों से अलग उनके सामने बैठा हुआ था । राज गौर से उनकी सूरतें देखने लगा उनके चेहरे इतने भावहीन थे कि वे पत्थर से तराशे मालूम होते थे । तीनों की आंखों में एक गहरी उदासी की छायी थी । उनके होंठ भिंचे हुये थे और निगाहें शून्य में कहीं टिकी हुई थीं । राज कई क्षण उनमें से किसी के बोलने की प्रतीक्षा करता रहा लेकिन जब उनमें से किसी को जुबान खोलते न पाया तो वह बोला - "क्या मुझे यह बताने की जरूरत है कि मैं कौन हूं?" तीनों एक-दूसरे का मुंह देखने लगे । फिर जान फ्रेडरिक ने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया।
"जो युवक मुझे यहां लाया था वह कौन है ?" - राज ने पूछा।
"उसका नाम मिलर है ।" - जान फ्रेडरिक बोला - "वह हमारा मददगार है ।"
“साथी नहीं।"
"नहीं।"
"तो फिर आपके बाकी साथी कहां है ?"
जान फ्रेडरिक ने अनिल साहनी और रोशनी पर दृष्टिपात किया । तीनों तनिक बेचैन दिखाई देने लगे थे।
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Re: आखिरी शिकार
"मुझे बताया गया था कि मेरी मुलाकात छ: सज्जनों से होने वाली है । आपके बाकी तीन साथी कहां हैं?"
"दूसरी दुनिया में पहुंच गये ।" - अनिल साहनी धीरे से बोला।
"कब?"
"हाल ही में |"
"कैसे?"
"यह एक लम्बी कहानी है।"
"मेरे पास बहुत वक्त है।"
तीनों फिर एक-दुसरे का मुंह देखने लगे जैसे मन्त्रणा कर रहे हों कि राज को सारी दास्तान सुनाई जानी चाहिये थी या नहीं ।
“आल राइट ।" - अन्त में जान फ्रेडरिक बोला "आई विल टैल यू।"
"मैं सुन रहा हूं।"
"हम दस आदमी थे" - जान फ्रेडरिक बोला - "जो भारत के लिये चीन में एक लम्बे अरसे से जासूसी कर रहे थे । हम दस आदमियों में तीन हिन्दोस्तानी थे, दो चीनी थे, दो अरब थे, दो अंग्रेजी थे और एक थाईलैंडवासी था। हिन्दोस्तानियों में से अनिल साहनी और रोशनी तुम्हारे सामने बैठे हैं । ज्योति विश्वास को मरे एक साल हो गया है। दो चीनी थे ली ता नान और तांग पेई । दोनों मर चुके हैं - ली ता नान को मरे एक साल हो गया है और तांग पेई कुछ दिन पहले मरा है। दो अरब थे - लैला नाम की एक युवती और तौफीक इस्माइल नाम का एक युवक | लैला तौफीक इस्माइल की प्रेमिका थी । लैला को मरे एक साल हो गया है और तौफीक इस्माइल कुछ ही दिन पहले मरा है । दो अंग्रेजों में से एक मैं तुम्हारे सामने बैठा हूं और दूसरा था जार्ज टेलर जो कि लापता है । थाईलैंडवासी का नाम जे सिंहाकुल था । वह भी कुछ दिन पहले दूसरी दुनिया में पहुंच गया है ।"
"आपके कहने के ढंग से ऐसा लगता है जैसे ज्योति, विश्वास, लैला और ली ता नान एक साल पहले इकट्ठे मरे हों और तौफीक इस्माइल, जे सिंहाकुल और तांग पेई हाल में ही इकट्ठे मरे हों
"तुम्हारी बात लगभग ठीक है । फर्क इतना है कि तौफीक इस्माइल, जे सिंहाकुल और तांग पेई बारी-बारी कत्ल कर दिये गये थे । वे तीनों कुछ दिन पहले तक हमारे साथ थे।"
"उन्हें कत्ल किसने किया ?" - राज ने सतर्क स्वर में पूछा।
"जार्ज टेलर ने ।"
"यानी कि... यानी कि आप लोगों के ही साथी ने ?"
"करैक्ट । लेकिन अब वह हमारा साथी नहीं, हमारा दुश्मन है।"
"किस्सा क्या है?"
"वही बताने जा रहा हूं।" - जान फ्रेडरिक धैर्यपूर्ण स्वर से बोला - "जैसा कि मैं पहले कह चुका हूं कि हम दस आदमियों की टीम चीन में भारत के लिये जासूसी कर रही थी । हमारा लीडर ज्योति विश्वास था और हम सब उसके निर्देशानुसार काम करते थे । फिर न जाने कैसे चीनी सीक्रेट सर्विस को हमारे गैंग की खबर लग गई और एक दिन मैं, रोशनी और जार्ज टेलर गिरफ्तार हो गये । पीकिंग की पुलिस ने हमें गिरफ्तार करके चीनी सीक्रेट सर्विस को सौंप दिया । उन्हें यह भी मालूम था कि हमारे सात साथी और थे और ज्योति विश्वास हमारा लीडर था लेकिन उन्हें हमारे बाकी साथियों को गिरफ्तार करने का अवसर नहीं मिला । चीनी एजेन्ट हमसे उनका पता जानना चाहते थे । विशेष रूप से ज्योति विश्वास को हर हालत में गिरफ्तार करना चाहते थे ।"
"क्योंकि वह आपके गैंग का सरगना था ?" - राज बोला।
"जाहिर है ।"
"वे कामयाब हुए ?"
"उन्होंने अपनी ओर से कोई कोशिश उठा नहीं रखी । सबसे पहले उन्होंने मुझ पर हाथ डाला | मुझे रोशनी और जार्ज टेलर की मौजूदगी में बुरी तरह से टार्चर किया गया । मिस्टर राज, मैं उतना मजबूत आदमी सिद्ध नहीं हुआ जितना कि मैं अपने आपको समझता था । चीनियों द्वारा दी गई अथाह यातनाओं की वजह से कई बार मैं दर्द से चिल्ला-चिल्ला उठा लेकिन...लेकिन मैंने अपनी जुबान नहीं खोली ।"
"दूसरी दुनिया में पहुंच गये ।" - अनिल साहनी धीरे से बोला।
"कब?"
"हाल ही में |"
"कैसे?"
"यह एक लम्बी कहानी है।"
"मेरे पास बहुत वक्त है।"
तीनों फिर एक-दुसरे का मुंह देखने लगे जैसे मन्त्रणा कर रहे हों कि राज को सारी दास्तान सुनाई जानी चाहिये थी या नहीं ।
“आल राइट ।" - अन्त में जान फ्रेडरिक बोला "आई विल टैल यू।"
"मैं सुन रहा हूं।"
"हम दस आदमी थे" - जान फ्रेडरिक बोला - "जो भारत के लिये चीन में एक लम्बे अरसे से जासूसी कर रहे थे । हम दस आदमियों में तीन हिन्दोस्तानी थे, दो चीनी थे, दो अरब थे, दो अंग्रेजी थे और एक थाईलैंडवासी था। हिन्दोस्तानियों में से अनिल साहनी और रोशनी तुम्हारे सामने बैठे हैं । ज्योति विश्वास को मरे एक साल हो गया है। दो चीनी थे ली ता नान और तांग पेई । दोनों मर चुके हैं - ली ता नान को मरे एक साल हो गया है और तांग पेई कुछ दिन पहले मरा है। दो अरब थे - लैला नाम की एक युवती और तौफीक इस्माइल नाम का एक युवक | लैला तौफीक इस्माइल की प्रेमिका थी । लैला को मरे एक साल हो गया है और तौफीक इस्माइल कुछ ही दिन पहले मरा है । दो अंग्रेजों में से एक मैं तुम्हारे सामने बैठा हूं और दूसरा था जार्ज टेलर जो कि लापता है । थाईलैंडवासी का नाम जे सिंहाकुल था । वह भी कुछ दिन पहले दूसरी दुनिया में पहुंच गया है ।"
"आपके कहने के ढंग से ऐसा लगता है जैसे ज्योति, विश्वास, लैला और ली ता नान एक साल पहले इकट्ठे मरे हों और तौफीक इस्माइल, जे सिंहाकुल और तांग पेई हाल में ही इकट्ठे मरे हों
"तुम्हारी बात लगभग ठीक है । फर्क इतना है कि तौफीक इस्माइल, जे सिंहाकुल और तांग पेई बारी-बारी कत्ल कर दिये गये थे । वे तीनों कुछ दिन पहले तक हमारे साथ थे।"
"उन्हें कत्ल किसने किया ?" - राज ने सतर्क स्वर में पूछा।
"जार्ज टेलर ने ।"
"यानी कि... यानी कि आप लोगों के ही साथी ने ?"
"करैक्ट । लेकिन अब वह हमारा साथी नहीं, हमारा दुश्मन है।"
"किस्सा क्या है?"
"वही बताने जा रहा हूं।" - जान फ्रेडरिक धैर्यपूर्ण स्वर से बोला - "जैसा कि मैं पहले कह चुका हूं कि हम दस आदमियों की टीम चीन में भारत के लिये जासूसी कर रही थी । हमारा लीडर ज्योति विश्वास था और हम सब उसके निर्देशानुसार काम करते थे । फिर न जाने कैसे चीनी सीक्रेट सर्विस को हमारे गैंग की खबर लग गई और एक दिन मैं, रोशनी और जार्ज टेलर गिरफ्तार हो गये । पीकिंग की पुलिस ने हमें गिरफ्तार करके चीनी सीक्रेट सर्विस को सौंप दिया । उन्हें यह भी मालूम था कि हमारे सात साथी और थे और ज्योति विश्वास हमारा लीडर था लेकिन उन्हें हमारे बाकी साथियों को गिरफ्तार करने का अवसर नहीं मिला । चीनी एजेन्ट हमसे उनका पता जानना चाहते थे । विशेष रूप से ज्योति विश्वास को हर हालत में गिरफ्तार करना चाहते थे ।"
"क्योंकि वह आपके गैंग का सरगना था ?" - राज बोला।
"जाहिर है ।"
"वे कामयाब हुए ?"
"उन्होंने अपनी ओर से कोई कोशिश उठा नहीं रखी । सबसे पहले उन्होंने मुझ पर हाथ डाला | मुझे रोशनी और जार्ज टेलर की मौजूदगी में बुरी तरह से टार्चर किया गया । मिस्टर राज, मैं उतना मजबूत आदमी सिद्ध नहीं हुआ जितना कि मैं अपने आपको समझता था । चीनियों द्वारा दी गई अथाह यातनाओं की वजह से कई बार मैं दर्द से चिल्ला-चिल्ला उठा लेकिन...लेकिन मैंने अपनी जुबान नहीं खोली ।"
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