महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

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Re: पोतेबाबा--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

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पोतेबाबा


प्रस्तुत उपन्यास ‘पोतेबाबा' वहीं से शुरू करते हैं, जहां पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘जथूरा’ समाप्त हुआ था। ‘जथूरा’ में तब आखिरी दृश्य चल रहा था कि जगमोहन और सोहनलाल को, कालचक्र कमला रानी के माध्यम से कुएं में फिंकवा देता है और कालचक्र का वो कुआं जमीन में धंसता हुआ अंजानी दुनिया में जा पहुंचता है, वहां जब जगमोहन और सोहनलाल कुएं से बाहर निकलते हैं तो खुद को अजीब सुनसान जगह पर पाते हैं। तभी सामने से एक घुड़सवार, जिसने नीली वर्दी पहन रखी है, तेजी से आता है और उन्हें बताता है कि रानी साहिबा का काफिला आ रहा है, रास्ते से हट जाओ। ये कहकर वो आगे बढ़ जाता है और जगमोहन, सोहनलाल पास के एक बड़े से पहाड़ी पत्थर के पीछे छिप जाते हैं। कि उन्हें काफी दूर धूल का उठता गुब्बार दिखाई देता है।
जगमोहन और सोहनलाल की निगाह दूर धूल के उठते गुब्बार पर टिकी थी, जो कि पल-प्रतिपल बड़ा होता जा रहा था। देखते ही देखते धूल का गुब्बार अब स्पष्ट होने लगा। वो काफी सारे घुड़सवार थे, जो कि नीली वर्दी में थे। वो कतार में थे। उनके पीछे छत्र लगी बग्गी दिखीं और बग्गी के पीछे भी घुड़सवार थे।
ये रानी साहिबा का काफिला है।” जगमोहन बोला। लेकिन रानी साहिबा है कौन?” सोहनलाल ने गहरी सांस ली।
क्या पता। हमें कालचक्र ने अंजानी जमीन पर पहुंचा दिया है, हम...।” ।
“हम पूर्वजन्म में तो नहीं पहुंच गए?” सोहनलाल ने गर्दन घुमाकर जगमोहन को देखा।
जगमोहन की निगाह भी सोहनलाल पर गई।
कुछ पलों तक उनके बीच चुप्पी रही फिर जगमोहन गम्भीर स्वर में कह उठा।
ये जगह पूर्वजन्म का हिस्सा नहीं हो सकती।”
“क्यों?”
“जथूरा ने कालचक्र हमारे पीछे डाला था कि वो हमें पूर्वजन्म के सफर के लिए रोक सके। ऐसे में कालचक्र हमें पूर्वजन्म में क्यों पहुंचाएगा।” जगमोहन ने सोच भरे स्वर में कहा।।
सोहनलाल की निगाह काफिले की तरफ गई, जो कि अब पास आता जा रहा था।
“तुम उसे भूल गए, जो मुझे जथूरा के हादसों का पूर्वाभास करा रहा है, वो कुएं में अदृश्य रूप से हमें मिला और हमसे बात की थी। उसने कहा था कि हम लोग कालचक्र के भीतरी हिस्से में आ फंसे हैं।” जगमोहन ने कहा-“उसके मुताबिक कालचक्र हमें अपने भीतर निगल रहा है, जहां हमारे लिए ढेरों खतरे हैं। परंतु वो जो भी है, वक्त-वक्त पर हमारी सहायता करता रहेगा। लेकिन उसने ये भी कहा था कि अब हमारे सामने इतने खतरें आएंगे कि हम बच न सकेंगे।”
“जबकि हम पूर्वजन्म में प्रवेश करना चाहते हैं।” सोहनलाल ने कहा। । “मजबूरी में। वैसे पूर्वजन्म में प्रवेश करके ख़तरों का सामना करने की हमारी इच्छा नहीं है।” जगमोहन की निगाह काफिले की तरफ उटी–“जथूरा हमें पूर्वजन्म में प्रवेश करने पर रोकना चाहता है, यही वजह है कि हम जिद में पूर्वजन्म में प्रवेश करने की सोच रहे हैं कि देखें, आखिर जथूरा क्यों नहीं चाहता कि हम पूर्वजन्म में प्रवेश करें।”
“हम जथूरा के फेंके कालचक्र की भीतरी परतों में फंस चुके हैं। मेरे खयाल में तो यहां से बच जाना सम्भव नहीं लगता। हमारी जिंदगी यही खत्म हो जाएगी।” सोहनलाल बोला।
काफिला करीब आ चुका था। दोनों की निगाह उस तरफ जा टिकी थी।
उस बग्गी के आगे छः घुड़सवार थे। पीछे भी छ: घुड़सवार ही थे। सबकी कमर से बंधी तलवारें नजर आ रही थीं। बग्गी में दो घोड़े लगे थे। वहां एक युवती या औरत बैठी नजर आ रही थी। उसके अगल-बगल, कुछ पीछे की तरफ दो युवतियां थीं जिन्होंने बड़े से छाते की रॉड थाम रखी थी ताकि रानी साहिबा के ऊपर छाया रहे। दौड़ती बग्गी में इस तरह उस भारी छाते को सम्भाले रखना
आसान नहीं था। कोचवान बग्गी संभाले दौड़ा रहा था।
काफिला अब उस बड़े पत्थर के उस पार से गुजरने लगा था, जिसके पीछे वे छिपे थे।
परंतु तभी जगमोहन से गलती हो गई।
जब बग्गी पत्थर के पीछे से निकल रही थी तो उसने सिर आगे करके, बग्गी के भीतर बैठी रानी साहिबा को देख लेना चाहा और ये ही वो वक्त था कि रानी साहिबा नाम की औरत की निगाह यूं ही इस तरफ ही थी।
रोको।” रानी साहिबा एकाएक तेज स्वर में कह उठी–“बग्गी रोको ।”
फौरन ही कोचवान ने बग्गी रोक दी। पीछे आते घुड़सवार भी थम गए।
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Re: पोतेबाबा--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

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आगे के घुड़सवार बीस-तीस कदम अवश्य आगे निकल गए थे, परंतु वे पलटकर करीब आ गए।
तभी एक घुड़सवार फौरन बग्गी के पास आ पहुंचा। “हुक्म रानी साहिबा।” वो अदब से बोला।
रानी साहिबा 35 से 50 तक की, किसी भी उम्र की हो सकती थीं।
वो खूबसूरत थी। चोली-घारा और चुनरी में थी वो। कभी वो ज्यादा उम्र की झलकती तो कभी कम उम्र की लगती।
“उस पत्थर के पीछे कोई छिपा है।” रानी साहिबा ने कहा और उठ खड़ी हुई।
“मैं अभी देखता हूं।”
“नहीं, मैं देखेंगी।” कहने के साथ ही रानी साहिबा एक ही छलांग में बग्गी से नीचे आ गई। उसके पांव नगे थे।
“आप क्यों तकलीफ करती...” उस घुड़सवार ने कहना चाहा।
“मुझे लगता है, कालचक्र से मुझे मुक्ति मिलने वाली है।” रानी साहिबा ने गम्भीर स्वर में कहा“उस पुरानी किताब में ये ही लिखा था कि सफर के दौरान मैं एक पत्थर के पीछे छिपे युवक को देखेंगी, जो कि असल में दो होंगे। वे कालचक्र का हिस्सा नहीं होंगे। कालचक्र में फंसकर यहां पहुंचे होंगे। वो ही मेरी मुक्ति का साधन बनेंगे।”
आपने दो युवकों को देखा?” घुड़सवार ने पूछा।
नहीं, एक को। अगर वो दो हैं तो, किताब की बात सच हो सकती है। शायद ये वहीं हो। तुम यहीं ठहरो।” रानी साहिबा आगे बढ़ती कह उठी_“मैं वहां जाकर देखेंगी।”
*आपको वहां खतरा...।”
चुप रहो।”
रानी साहिबा तीस-चालीस कदम का फासला तय करके पत्थर के पीछे की तरफ पहुंची।
जगमोहन तो रानी साहिबा से नजर मिलते ही, दुबक गया था। परंतु उसी पल ही घोड़ों की खामोश होती दापों का उसे एहसास से गया था कि काफिला अचानक ही रुक गया है।
जगमोहन को लगा कि इस तरह झांककर उसने गलती कर दी है। सोहनलाल उस वक्त गोली वाली सिग्रेट सुलगा रहा था। हालांकि कुएं में सिग्रेट-माचिस गीली हो गई थी, परंतु सिग्रेट-माचिस को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था। उसने सिग्रेट सुलगाकर कुश लिया कि तभी सामने आ खड़ी, रानी साहिबा पर उसकी नजर पड़ी।
रानी साहिबा सोहनलाल को धुआं उड़ाते देख रही थी। सोहनलाल हड़बड़ाया-सा रानी साहिबा को देखने लगा।
“हम मुसीबत में पड़ गए हैं सोहनलाल।” जगमोहन ने धीमे स्वर में कहा।
क्यों?” “ये रानी साहिबा है और मुझे देखने के बाद ही इसने अपना काफिला रोका है।”
तभी रानी साहिबा उनके करीब आने लगीं। दोनों की निगाह उस पर जा टिकी थी।
स्वागत है धुआं उड़ाने वाले इंसान।” रानी साहिबा चार कदम पर ठिठककर मुस्कराकर बोली।
म...मैं?” सोहनलाल फौरन सीधा हुआ।
तुम ही। उस किताब में लिखा है कि एक इंसान धुआं उड़ा रहा होगा। वो ही मुझे मुक्ति दिलाएगा।”
“कौन-सी किताब?” ।
कालचक्र की किताब। जब मुझे कालचक्र के भीतरी हिस्से में स्थापित किया गया था, तभी वो किताब लिख दी गई थी कि धुओं उड़ाने वाले इंसान ही मुझे मुक्ति दिलाएगा, अगर मैं उसे खुश कर सकी तो...।”
खुश? मैं... मैं तो खुश ही हूं।” सोहनलाल के होंठों से निकला।
ये खुश नहीं, दूसरा खुश। वो खुश तुम्हें मैं करूंगी। अपनी बांहों में समेटकर। झूला झुलाकर ।”
सोहनलाल ने जगमोहन को देखा। जगमोहन मुस्कराया। “ये क्या कह रही है?” “तुम्हें कह रही है। मुझे नहीं।”
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Re: पोतेबाबा--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

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ये मुझे खुश करने को कह रही है, लेकिन मैं...दुखी ही कब था।” सोहनलाल के होंठ सिकुड़ चुके थे।

जगमोहन मुस्करा रहा था। सोहनलाल ने रानी साहिबा को देखा। रानी साहिबा हौले से हंस पड़ी, फिर कह उठी।

“तुम घबरा रहे हो धुआं उड़ाने वाले, जबकि मैं तुम्हारे इंतजार में 50 साल की होने पर भी कुंआरी हूं।”

“म...मेरे इंतजार में ।” सोहनलाल ने सकपकाकर जगमोहन को देखा।

जन्मों का साथ लगता है।” जगमोहन मुस्कराकर सोहनलाल से बोला।

ऐ धुआं उड़ाने वाले, तू मुझसे घबरा मत, मैं तेरे को फूलों की तरह रसुंगी ।” वो कह उठी।।

फूलों की तरह।” सोहनलाल ने रानी साहिबा को देखा।

“हां, मैं तेरे को हर पल खुश रखेंगी। क्योंकि तू ही मेरे को कालचक्र से मुक्ति दिलाएगा। तेरे इंतजार में मैं मरी जा रही थी कि तू कब मिलेगा मुझे। किताब में लिखा है कि 50 बरस की होने पर, मुझे धुआं उड़ाने वाला मिलेगा। सब कुछ सच लिखा है उसमें । मेरे को ये पहले ही पता था ।”

रानी साहिबा बराबर मुस्करा रही थी—“मेरी तलाश पूरी हुई। मेरी उदासी के दिन दूर हुए। अब हम दोनों बहुत अच्छा जीवन व्यतीत करेंगे।”

“ये मुझे पागल कर देगी।” सोहनलाल जगमोहन से कह उठा।

“हम किसी बड़ी मुसीबत में फंसने जा रहे हैं।” जगमोहन् गम्भीर हो गया था।

“तुम्हारा सेवक तुम्हें अम में डाल रहा है। मैं मुसीबत नहीं हूं। मैं तुम्हारा प्यार हूं धुआं उड़ाने वाले। कब से तुम्हारा ही इंतजार कर रही थीं। तुम्हारे लिए अभी तक मैं कुंआरी रही। वरना मेरे को पाने के लिए लोग लड़ाइयां लड़ते रहे, परंतु मैंने किसी के संग प्यार नहीं किया। क्योंकि उस किताब में लिखा है कि अगर मैं तुम्हारे मिलने तक कुंआरी रही तो तभी तुम्हारे द्वारा मैं मुक्ति पा सकेंगी।” कहकर वो आगे बढ़ी और हाथ आगे किया—“मेरा हाथ थामो।”

“क्यों?” सोहनलाल के होंठों से निकला।

मैं तुम्हें अपने महल में ले चलूंगी। वहां हम प्रेम से रहेंगे।” सोहनलाल ने व्याकुल से अंदाज में जगमोहन को देखा।

जगमोहन उलझन भरी नजरों से रानी साहिबा को देख रहा था।

“तुम मुझसे बात करते-करते अपने सेवक को क्यों देखने लगते हो। क्या उससे डरते हो?” ।

रानी साहिबा का हाथ अभी भी सोहनलाल की तरफ बढ़ा हुआ था।

थाम लो मेरा हाथ।”—वो बोली।

नहीं।” सोहनलाल कह उठा।

मैं तुम्हें अच्छी नहीं लगती? क्या मैं सुंदर नहीं जो तुम...।”

“मैं तुम्हें नहीं जानता।”

मेरे साथ चलोगे तो जान जाओगे।”

मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगा।”

रानी साहिबा ने हाथ पीछे कर लिया और नाराजगी भरी नजरों से सोहनलाल को देखा।

“मेरा नाम नानिया है। लोग मुझे रानी साहिबा कहते हैं।” वो कह उठी।

सोहनलाल खामोश रहा। तुम्हें मेरे साथ चलना ही होगा।”

“नहीं ।”

मेरे पहरेदार तुम्हें जबर्दस्ती साथ ले जा सकते हैं।” नानिया बोली-“लेकिन मैं नहीं चाहती कि तुम्हारे साथ जबर्दस्ती हो। क्योंकि तुम्हारे इंतजार में मैं कब से बैठी थी।” ।

“तुम जानती हो, ये कालचक्र है?” जगमोहन ने कहा।

“अवश्य सेवक। कालचक्र की भीतरी परतों में मुझे डाला गया है।” नानिया कह उठी।

किसने किया ऐसा?”

सोबरा ने। परंतु अब कालचक्र पर जथूरा का कब्जा हो चुका है। जथूरा के इशारे पर ही इस वक्त कालचक्र काम कर रहा है।”

हमें कालचक्र ने फंसाकर यहां फेंका है।”

जानती हूं। तभी तो तुम दोनों यहां तक आ गए। परंतु तुम्हें आना ही था। वो किताब में लिखा है ऐसा।”

कहां है किताब?” ।

मेरे पास मेरे महल में।” कुछ पल वहां चुप्पी रही।

“ऐ सेवक। क्या तुम अपने मालिक को मेरे साथ चलने पर तैयार कर सकते हों?”

क्यों हम तुम्हारे साथ चलें?”

मुझे मुक्ति चाहिए कालचक्र से और किताब में लिखा है कि धुआं उड़ाने वाला ही मुझे मुक्ति दिलाएगा।”
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तुम धोखा भी हो सकती हो, हमारे लिए...।”

“क्या मैं तुम्हें ऐसी लगती हूं?”

कालचक्र में कुछ भी हो सकता है।” नानिया ने गहरी सांस ली और बोली।

तो मुझे धुआं उड़ाने वाले के साथ जबर्दस्ती करनी ही पड़ेगी।” तभी सोहनलाल कह उठा।

मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूं।” ।

नानिया का चेहरा खिल उठा। “तुम सच में मुझे प्यार करते हो धुआं उड़ाने वाले...”

मेरे खयाल में ये गलत होगा।” जगमोहन ने सोहनलाल से कहा।

यहां हमारे लिए सब कुछ अनजाना और नया है। कहीं तो हमें कदम आगे बढ़ाने ही हैं।”

परंतु इसके साथ जाने से हम किसी बड़ी मुसीबत में..." ।

इसके साथ नहीं गए तो क्या गारंटी है कि हम मुसीबत में नहीं फंसेंगे।” सोहनलाल ने कहा।

जगमोहन के होंठ भिंच गए।

हम कालचक्र में हैं। यहां हमारे लिए सिर्फ खतरे हैं। जो तुम्हें जथूरा के हादसों का पूर्वाभास करा रहा था, उसने भी कुएं में हमें यहीं कहा कि कालचक्र की गहरी परतों में हमारे सामने खतरे आएंगे, जिनसे बचना कठिन है। अगर बच गए तो उस स्थिति में ही हम पूर्वजन्म में प्रवेश कर सकेंगे।”

जगमोहन ने गहरी सांस ली। नानिया को देखा। नानिया मुस्कराकर सोहनलाल से बोली।

मैंने तुम दोनों की बातें सुनीं। तुम दोनों आशंका में फंसे हो। परंतु मेरे से तुम्हें कोई नुकसान नहीं होगा।” ।

“नुकसान क्यों नहीं होगा।” सोहनलाल बोला—“तुम भी तो कालचक्र का ही हिस्सा हो।”

तुम्हारा शक जायज है, परंतु मैं तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाऊंगी, एक बार मेरे साथ चल के तो देखो।”

एक बार साथ चलने पर ही हमारा काम हो गया तो..."

धुआं उड़ाने वाले, तुम तो बहुत डरपोक हो। ऐसे में मुझे क्या मुक्ति दिलाओगे?”

मैंने कब कहा कि मैं तुम्हारे लिए कुछ करूंगा।” ।

“तो उस किताब में ऐसा क्यों लिखा है?” नानिया ने सोच-भरे स्वर में कहा।

और क्या-क्या लिखा है उस किताब में?”

बहुत कुछ, परंतु वो मुझे समझ नहीं आता। अपने मतलब की बात ही समझ पाती हूं।”

“किसने लिखी वो किताब?” ।

सोबरा ने। जब उसने कालचक्र की भीतरी परतों में मुझे बिठाया तो वो किताब भी मुझे दे दी थी, कहा कि ये किताब मुझे कालचक्र से आजाद कराएगी।”

“हैरानी है। सोबरा ने कालचक्र का निर्माण किया और वो तुम्हें कालचक्र से मुक्ति का रास्ता भी बता रहा है।”

“शायद तब सोबरा को आशंका रही होगी कि कालचक्र पर उसका भाई जथूरा, अपना कब्जा जमा सकता है।”

नानिया बोली-“इस बात पर मैंने भी बहुत बार सोचा, परंतु किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी। अब तुम चलों मेरे साथ। देर क्यों कर रहे हो। यहां गर्मी भी बहुत है। महल में पहुंचकर तुम मेरे साथ गुलाब जल में नहाना।”

सोहनलाल ने जगमोहन को देखा।

अब मैं क्या करूं?”

“जैसा तुम चाहो ।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।

“तुम बात-बात पर अपने सेवक से इजाजत क्यों लेते हो?” नानिया तीखे स्वर में बोली।

इजाजत नहीं सलाह ले रहा हूं। ये मुझे सलाह देने की सेवा करता है।

ओह समझी।” नानिया ने सिर हिलाया-“तो क्या सलाह दी इसने?”

“इसे तुम पर भरोसा नहीं। फिर भी ये कहता है कि एक बार तुम्हें आजमाकर देख लें।” ।
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“सलाह तो समझदारी वाली है परंतु देखने में ये इतना समझदार नहीं लगता।”

जगमोहन ने दूसरी तरफ मुंह फेर लिया। नानिया ने सोहनलाल की तरफ हाथ बढ़ाया।

सोहनलाल ने गहरी सांस ली और उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया।

“ओह, कितना अच्छा लग रहा है, तुम्हारा हाथ अपने हाथों में पाकर। आओ, मेरे साथ आओ।”

सोहनलाल उसके साथ चल पड़ा। जगमोहन होंठ सिकोड़े चार कदम पीछे था।

वे चट्टानों के पीछे से निकले तो सामने बग्गी और घुड़सवार दिखने लगे।

“तुम्हारा नाम क्या है धुआं उड़ाने वाले?”

सोहनलाल ।”

कितना अच्छा नाम है, तुम तो...।”

आगे के शब्द नानिया के होंठों में ही रह गए। दूर धूल का गुब्बार उड़ता दिखा।

“ओह।” नानिया के होंठों से निकला–“इस दिशा से तो बोगस के आदमी आते हैं।”

“बोगस कौन?” सोहनलाल ने कहा। तभी एक घुड़सवार घोड़े को दौड़ाता पास आया।

रानी साहिबा, ये बोगस के आदमी हैं। यहां से निकल चलिए। उनकी संख्या ज्यादा लगती है।”

आओ।” नानिया चीखीं। फिर वे सब बग्गी की तरफ दौड़े।

नानिया ने सोहनलाल का हाथ थाम रखा था।

आनन-फानन वे तीनों बग्गी में बैठे। चलो।” वो घुड़सवार चीखा। इसके साथ ही काफिला पुनः दौड़ पड़ा।

सोहनलाल नानिया के साथ ही बग्गी पर बैठ गया था जबकि जगमोहन को बैठने के लिए जगह नहीं मिली तो वो नीचे बग्गी के फर्श पर बैठ गया था। दौड़ती बग्गी में खड़ा रह पाना आसान नहीं था। दोनों सेविकाओं ने बड़ा-सा छाता अभी भी संभाल रखा था। परंतु बग्गी की रफ्तार छाते को डगमगा रही थी।

रफ्तार तेज करो।” एक घुड़सवार चीखा। काफिला बहुत तेजी से दौड़ रहा था। धूल उड़ रही थीं। घोड़ों की टापों की आवाज वातावरण में गूंज रही थी।

नानिया ने गर्दन घुमाकर उधर देखा, जिधर से बोगस वाले घुड़सवार आ रहे थे। | वो अब स्पष्ट नजर आने लगे थे। उनकी रफ्तार भी कम नहीं थीं। वे दस से ज्यादा लग रहे थे।

तभी सामने जंगल नजर आने लगा।

नानिया विचलित-सी हो उठी।

“हम भागकर निकल नहीं सकेंगे। आगे जंगल आ गया है। हमारी रफ्तार कम हो जाएगी।” वो बड़बड़ाई।

तो उनकी रफ्तार भी तो कम हो जाएगी।” सोहनलाल ने कहा।

“उनकी और हमारी स्थिति में फर्क है। वो झगड़ना चाहते हैं और हम झगड़े से बचना चाहते हैं।”

तो तुम उससे डर रही हो?”

“मुझे तुम्हारी चिंता है सोहनलाल।”

मेरी चिंता?” सोहनलाल के होंठों से निकला।

हो। तुम्हारे दम पर मैं कालचक्र से मुक्ति पा लेना चाहती हूं, जैसा कि किताब में लिखा है। तुम मुझे इस कालचक्र से आजाद करा दोगे। इस झगड़े में अगर तुम्हें कुछ हो गया तो कालचक्र से मुझे मुक्ति कभी नहीं मिलेगी।”

सोहनलाल मुस्करा पड़ा। तभी नीचे बैठा जगमोहन बोला।

बोगस है कौन–क्यों तुम लोगों से झगड़ा करना चाहता है?”

“वो मुझे पाना चाहता है। बरसों से इसी चेष्टा में लगा है।”

फिर तो तुम्हें डरना नहीं चाहिए।” सोहनलाल बोला।

“क्यों?" ।

“ज्यादा से ज्यादा यहीं होगा कि वो तुम्हें पा लेगा।” नानिया के चेहरे पर कड़वे भाव उभरे।

फ्तार तेज करो।” एक घुड़सवार के चीखने की आवाज आई।

सोहनलाल, मैंने तुम्हें बताया था कि मैं 50 साल की उम्र तक भी कुंआरी क्यों रही।”

याद है।”

“तो मुझे तुम्हारे अलावा किसी और ने पा लिया तो मैं कालचक्र से मुक्ति नहीं पा सकेंगी। कालचक्र से बाहर निकलने तक मुझे तुम्हारी बनकर ही रहना होगा। तुम्हें खुश रखना होगा। तुम नहीं जानते कि बोगस बहुत बुरा आदमी है। उसने मुझे पकड़ लिया तो नौकरानी बनाकर रखेगा मुझे। जब चाहेगा ऊपर चढ़ जाएगा, जब चाहेगा नीचे उतर जाएगा। मेरे आदमी उसे हर बार हरा देते हैं, जब भी उसने मुझे पाने की चेष्टा की।” ।

* “तुम्हारे आदमियों ने उसे मारा क्यों नहीं?” नीचे बैठा जगमोहन बोला।।
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