औरत फ़रोश का हत्यारा ibne safi

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औरत फ़रोश का हत्यारा ibne safi

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औरत फ़रोश का हत्यारा

ख़ूनी नाच

आज शाम ही से सार्जेंट हमीद ने काफ़ी हड़बोंग मचा रखी थी, बात सिर्फ़ इतनी थी कि आज उसने नुमाइश जाने का प्रोग्राम बनाया था। कई बार उसने अलग-अलग रंगों के सूट निकाले और उन पर तरह-तरह की टाइयाँ रख कर देखता रहा। इन्स्पेक्टर फ़रीदी उसकी इन बचकानी हरकतों पर मन-ही-मन मुस्कुरा रहा था, लेकिन उसने हमीद को टोकना ठीक न समझा। आज वह भी नुमाइश जाने के लिए तैयार हो गया जिसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि आजकल वह बेकार था, वरना उस जैसे आदमी को खेल-तमाशों के लिए वक़्त कहाँ और वैसे भी उसे इन चीज़ों से दिलचस्पी न थी। ख़ाली वक़्त में वह ज़्यादातर अपने पालतू जानवरों से दिल बहलाया करता या फिर हमीद के चुटकलों का आनन्द उठाया करता था। दूसरे शब्दों में अगर यह कहा जाये तो ग़लत न होगा कि हमीद भी उसके अजायब-घर का एक जानवर था।

हमीद उसका मातहत ज़रूर था, लेकिन उन दोनों के बीच किसी तरह की कोई रस्मी ऊँच-नीच न थी और यही चीज़ उसके दूसरे मातहतों को बहुत बुरी लगती थी। अकसर वे दबी ज़बान से अपनी नाराज़गी का इज़हार भी कर दिया करते थे, लेकिन फ़रीदी हमेशा हँस कर टाल देता था। कई लोगों ने इस बात की कोशिश भी की कि सार्जेंट हमीद का किसी दूसरी जगह ट्रांसफ़र करा दिया जाये, लेकिन वे इसमें कामयाब न हो सके, क्योंकि बड़े अफ़सरों को कोई काम फ़रीदी की म़र्जी के ख़िलाफ़ करने में कुछ-न-कुछ परेशानी ज़रूर होती थी। यही वजह थी कि हमीद का तबादला किसी दूसरी जगह न हो सका, वरना सार्जेंटों के तबादले तो आये-दिन हुआ करते थे।

इन्स्पेक्टर फ़रीदी एक जौहरी की नज़र रखता था और उसने पहले ही दिन हमीद को परख लिया था, इसलिए उसने उसको अपने दो-तीन मामलों में साथ रखा था। धीरे-धीरे दोनों बहुत घुल-मिल गये और फिर एक दिन वह आया कि हमीद इन्स्पेक्टर फ़रीदी के साथ रहने लगा।

‘‘आप कौन-सा सूट पहन रहे हैं?’’ हमीद ने फ़रीदी से पूछा।

‘‘कोई-सा पहन लिया जायेगा... आख़िर आजकल तुम कपड़ों का इतना ध्यान क्यों रखने लगे हो?’’ फ़रीदी ने पूछा।

‘‘कोई ऐसी ख़ास बात तो नहीं।’’ हमीद हँस कर बोला।

‘‘नहीं! तुमने ज़रूर कोई नयी बेवकूफ़ी की है।’’ फ़रीदी ने कहा। ‘‘मैं मान नहीं सकता।’’


‘‘बात दरअसल यह है कि आज...’’ हमीद रुकते हुए बोला। ‘‘बात यह है कि घूमना तो एक बहाना है। क्या आपको नहीं मालूम कि आज ‘गुलिस्ताँ होटल’ में ख़ास प्रोग्राम है। सच कहता हूँ, बड़ा मज़ा आयेगा।’’


‘‘तो ऐसा कहिए।’’ फ़रीदी उसे घूरता हुआ बोला। ‘‘क्यों न आप ही तशरीफ़ ले जाइए। मेरे पास फ़ालतू कामों के लिए वक़्त नहीं है।’’

‘‘ख़ुदा की क़सम मज़ा आ जायेगा... आज आप भी नाचिएगा, शहनाज़ के साथ... उसकी एक सहेली भी होगी।’’

‘‘अच्छा...’’ फ़रीदी ने मज़ाक़ में सिर हिलाया और पूछा, ‘‘यह शहनाज़ क्या बला है?’’

‘‘ही ही ही... बात यह है कि... वह मेरी दोस्त है... यानी कि बात यह है... ही ही ही।’’

‘‘जी हाँ, बात यह है कि आपने कोई नया इश्क़ फ़रमाया है।’’

‘‘जी हाँ... जी हाँ... आप तो समझते हैं, लेकिन मैं आपसे कहता हूँ कि इस बार सौ फ़ीसदी सच्चा इश्क़ हुआ है। बस, यह समझ लीजिए कि मैं उसके बग़ैर...’’

‘‘ज़िन्दा नहीं रह सकता।’’ फ़रीदी ने जुमला पूरा करते हुए कहा।

‘‘और अगर ज़िन्दा रह सकता हूँ तो इस घर में नहीं रह सकता और अगर इस घर में रह भी गया तो दिन-रात रोने के अलावा और कोई काम न होगा।’’
यह कह कर हमीद खिसियानी हँसी हँसने लगा।

‘‘आप चलिए तो...’’ उसने कहा। ‘‘अच्छा आप न नाचना।’’ उसने आगे जोड़ा।

‘‘ख़ैर, चला जाऊँगा, क्योंकि मैं भी थोड़ी-सी सैर करना चाहता हूँ, लेकिन मैं एक शर्त पर वहाँ जाऊँगा और वह यह कि तुम वहाँ मुझे किसी से मिलवाओगे नहीं।’’

‘‘चलिए म़ंजूर...’’ हमीद ने मुस्कुरा कर कहा। ‘‘अच्छा अब जल्दी से अपना सूट निकलवा लीजिए... पहले नुमाइश चलेंगे।’’

‘‘तो क्या तुम्हें नाचना आता है?’’ फ़रीदी ने कहा।

‘‘क्यों नहीं... मैं फ़ॉक्स ट्रॉट नाच सकता हूँ... वॉल्ज़ नाच सकता हूँ और...’’

‘‘बस-बस...’’ फ़रीदी ने हाथ उठा कर कहा। ‘‘अभी इम्तहान हुआ जाता है।’’

फ़रीदी ने रिकॉर्डों के डिब्बे में से एक रिकॉर्ड निकाल कर ग्रामोफोन पर चढ़ा दिया। एक अंग्रेज़ी गाना कमरे में गूँजने लगा।

‘‘अच्छा बताओ! क्या बज रहा है?’’ फ़रीदी ने हमीद की तरफ़ देख कर मुस्कुराते हुए पूछा।

हमीद बौखला गया। अपनी घबराहट को मुस्कुराहट में छिपाते हुए बोला। ‘‘मॉडर्न फ़ॉक्स... ट्रॉट...’’ फ़रीदी ने क़हक़हा लगाया।
‘‘इसी बलबूते पर नाचने चले थे जनाब।’’

‘‘अच्छा... तो फिर आप ही बताइए कि क्या है।’’ हमीद ने झेंप मिटाते हुए कहा।

‘‘वॉल्ज़...’’

‘‘मैं मान नहीं सकता।’’

‘‘अच्छा अगर फ़ॉक्स ट्रॉट है तो नाच कर दिखाओ।’’

‘‘किसके साथ नाचूँ?’’

‘‘मेरे साथ...’’

‘‘आप नाचना क्या जानें?’’
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‘‘हुज़ूर तशरीफ़ तो लायें।’’

फ़रीदी ने बायाँ हाथ हमीद की कमर में डाल दिया और हमीद का बायाँ हाथ अपने कन्धों पर रखने लगा।

‘‘तो आप मुझे औरत समझ रहे हैं। मैं कन्धों पर हाथ नहीं रखूँगा।’’ हमीद ने झेंप कर पीछे हटते हुए कहा।

‘‘गधे हो।’’ फ़रीदी ने उसे अपनी तरफ़ खींचते हुए कहा। ‘‘आओ, तुम्हें नाचना सिखा दूँ।’’

दोनों लिपट कर रिकॉर्ड के गाने पर नाचने लगे।

फ़रीदी बता रहा था।
‘‘पीछे हटो... दायाँ पाँव... बायाँ पाँव... पीछे... पीछे...आगे आओ... बायाँ... दायाँ। बरख़ुरदार यह वॉल्ज़ है... हाँ हाँ... बायाँ पाँव... फ़ॉक्स ट्रॉट नहीं है।’’


रिकॉर्ड ख़त्म हो जाने के बाद दूसरा रिकॉर्ड लगाया गया। दोनों फिर नाचने लगे। थोड़ी देर में हमीद पसीने में तर हो गया।

‘‘बस, मेरे शेर... इतने ही में टीं बोल गये।’’ फ़रीदी ने हँस कर कहा।

‘‘ख़ुदा की क़सम... आपका जवाब नहीं।’’ हमीद ने हाँफते हुए कहा। ‘‘मैं तो आपको बेकार आदमी समझता था... आपने यह सब कैसे सीख लिया?’’

‘‘एक जासूस को सब कुछ जानना चाहिए।’’

‘‘मैं आपका शुक्रगुज़ार हूँ, वरना आज बहुत शर्मिन्दगी उठानी पड़ती।’’ हमीद ने कहा।

‘‘शर्मिन्दगी किस बात की। पचहत्तर परसेण्ट लोग अमूमन ग़लत नाचते हैं। तुम तो फिर भी ठीक नाच रहे थे।’’

‘‘अच्छा, तो फिर आज आपको भी नाचना पड़ेगा।’’ हमीद ने कहा।

‘‘यह ग़लत बात है। मैं तुम्हारे साथ इसी शर्त पर चल सकता हूँ कि मुझे नाचने पर मजबूर न करना।’’

‘‘अजीब बात है... अच्छा ख़ैर... मैं आपको मजबूर न करूँगा।’’

थोड़ी देर बाद दोनों नुमाइश का चक्कर लगा रहे थे। जब-जब हमीद किसी ख़ूबसूरत औरत को क़रीब से गुज़रते देखता, वह फ़रीदी का हाथ दबा देता। हमीद की इस हरकत पर वह झुँझला जाता। कई बार समझाने के बाद भी हमीद अपनी हरकतों से बाज़ न आया। इस बार जैसे ही उसने फ़रीदी का हाथ दबाया, फ़रीदी ने चलते-चलते रुक कर उसे डाँटते हुए कहा। ‘‘हमीद, आख़िर तुम इतने गधे क्यों हो?’’

‘‘अक्सर मैं भी यही सोचा करता हूँ।’’ हमीद हँस कर बोला।

‘‘देखो, मैं तुम्हें फिर से समझाता हूँ कि अब तुम अपनी शादी कर डालो।’’

‘‘अगर कोई शादी-शुदा आदमी मुझे इस क़िस्म की नसीहत करता तो मैं ज़रूर मान लेता।’’ हमीद ने मुस्कुरा कर कहा।

‘‘अगर यह नहीं हो सकता तो फिर मेरी ही तरह औरतों के मामले में पत्थर हो जाओ।’’

‘‘आप तो बेकार ही में बात बढ़ा देते हैं।’’ हमीद ने बुरा मान कर कहा। ‘‘क्या किसी अच्छी चीज़ की तारीफ़ करना भी जुर्म है।’’

‘‘जुर्म तो नहीं, लेकिन हमारे पेशे के एतबार से यह रुझान ख़तरनाक ज़रूर है।’’

हमीद ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। उसके अन्दाज़ से ऐसा मालूम हो रहा था जैसे वह इस वक़्त इस क़िस्म की नसीहतें सुनने के लिए तैयार नहीं है।
लगभग एक घण्टे तक नुमाइश का चक्कर लगाने के बाद वे लोग ‘गुलिस्ताँ होटल’ की तरफ़ रवाना हो गये। ‘गुलिस्ताँ होटल’ का शुमार बड़े होटलों में होता था... यहाँ का सारा कारोबार अंग्रेज़ी त़र्ज पर चलता था। यहाँ नाच भी होता था जिसमें शहर के ऊँचे तबक़े के लोग हिस्सा लिया करते थे।
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दोनों ने ‘गुलिस्ताँ होटल’ पहूँच कर टिकट ख़रीदे और हॉल में दाख़िल हो गये। सारा हॉल क़ुमक़ुमों से जगमगा रहा था और संगीत की लहरें फ़िज़ा में फैल रही थीं।

पहला राउण्ड शुरू हो गया था। बहुत सारे नौजवान जोड़े बग़ल में हाथ डाले, हॉल के फ़र्श पर नाच रहे थे।

हमीद और फ़रीदी पहला राउण्ड ख़त्म होने का इन्तज़ार करने लगे। हमीद की बेचैन निगाहें उस भीड़ में शहनाज़ को तलाश रही थीं।

‘‘अरे, यह शहनाज़ किसके साथ नाच रही है।’’ हमीद ने एक जोड़े की तरफ़ इशारा करके कहा। फ़रीदी उधर देखने लगा। एक ख़ूबसूरत लड़की रेशमी शलवार-कमीज़ पहने नौजवान आदमी के साथ नाच रही थी, फ़रीदी उसे ग़ौर से देख रहा था। जब वे दोनों उनके क़रीब हो कर गुज़रे तो शहनाज़ ने मुस्कुरा कर हमीद को कुछ इशारा किया। हमीद ने मुँह फेर लिया। फ़रीदी मुस्कुराने लगा।

‘‘आख़िर हो न हिन्दुस्तानी।’’ फ़रीदी ने तंज़िया लहजे में कहा। ‘‘बरख़ुरदार, अगर ऐसे बेकार के शौक़ हैं तो यह सब भी बर्दाश्त करना पड़ेगा। वह तुम्हारी बीवी तो नहीं कि तुम उस पर झुँझला रहे हो और फिर यह तो वेस्टर्न तहज़ीब का एक हिस्सा है कोई भी औरत किसी मर्द के साथ नाच सकती है।’’

हमीद अपना निचला होंट चबा रहा था।

‘‘नाराज़गी की कोई बात नहीं। अगले राउण्ड में तुम भी नाच लेना।’’ फ़रीदी ने कहा।

‘‘नहीं, मैं अब नहीं नाचूँगा।’’

‘‘क्यों...?’’

‘‘बस, यूँ ही... दिल नहीं चाहता। आइए, वापस चलें।’’ हमीद ने बेदिली से कहा।

‘‘फिर आये क्यों थे... अजीब आदमी हो।’’

‘‘यहाँ ठहरने को दिल नहीं चाहता।’’

‘‘भई, मैं तो अभी नहीं जा सकता।’’ फ़रीदी ने कहा और सिगार सुलगा कर लम्बे-लम्बे कश लेने लगा।

‘‘ख़ैर, फिर तो मजबूरी है...’’ हमीद धीरे से बोला।

‘‘घबराओ नहीं...’’ फ़रीदी मुस्कुरा कर बोला। ‘‘मुझे तुम्हारी महबूबा से कोई दिलचस्पी नहीं। मैं तो उस आदमी में दिलचस्पी ले रहा हूँ जो, क्या नाम है उसका... हाँ, शहनाज़ के साथ नाच रहा है।’’

हमीद, फ़रीदी को हैरत से देखने लगा।

‘‘क्या तुमने उसे पहले कभी देखा है?’’ फ़रीदी ने हमीद से पूछा।

इस पर हमीद का जवाब था – ‘‘नहीं?’’

‘‘उसका नाम राम सिंह है और यह ख़तरनाक आदमी है।’’ फ़रीदी ने बताना शुरू किया। ख़ुद को किसी रियासत का शहज़ादा मशहूर किये हुए है, लेकिन है ख़तरनाक मुजरिम।’’ फ़रीदी ने सिगार का कश ले कर कहा।

‘‘यह सब आप कैसे जानते हैं?’’ हमीद ने पूछा।

‘‘अजीब बेवकूफ़ी का सवाल है। अरे मैं इन हज़रत को न जानूँगा तो फिर कौन जानेगा! मैं काफ़ी समय से इसी ताक में हूँ। मुझे शक है कि आजकल यह लड़कियों का कारोबार कर रहा है। ज़रा यह तो बताओ कि शहनाज़ कौन है, क्या करती है और उसका ताल्लुक़ किस ख़ानदान से है?’’

‘‘यह तो मुझे पता नहीं कि किस ख़ानदान से ताल्लुक़ रखती है, लेकिन इतना ज़रूर जानता हूँ कि यह मॉडर्न गर्ल्स कालेज की लेक्चरार है।’’


‘‘तुम्हारी मुलाक़ात उससे किस तरह हुई?’’

‘‘दो महीने पहले जब मैं दस दिन की छुट्टियाँ बिता कर घर से वापस आ रहा था तो वह मुझे ट्रेन पर मिली थी। हम दोनों कम्पार्टमेंट में अकेले थे, इसलिए एक-दूसरे से जान-पहचान हो गयी। उसके बाद से अकसर हम दोनों एक-दूसरे से यहाँ मिलते रहते हैंं।’’

‘‘क्या वह यह जानती है कि तुम्हारा ताल्लुक़ डिपार्टमेंट ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन से है?’’
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‘‘नहीं, मेरे बहुत कम जानने वाले इससे वाक़िफ़ हैं।’’

‘‘यह अच्छी आदत है।’’

फिर दोनों ख़ामोश हो गये। शहनाज़ और राम सिंह एक-दूसरे से बातें करते हुए नाच रहे थे। शहनाज़ हँस-हँस कर उससे कुछ कह रही थी। वह तरह-तरह के जोकरों जैसे मुँह बना कर सुन रहा था।

पहला राउण्ड ख़त्म हो गया। कुछ लोग बग़ल रखी कुर्सियों पर बैठ कर सुस्ताने लगे और कुछ बाहर की तरफ़ चले गये। राम सिंह और शहनाज़ भी एक तरफ़ बैठ कर सुस्ता रहे थे। शहनाज़ बार-बार मुड़ कर हमीद की तरफ़ देख रही थी। शायद उसका खय़ाल था कि हमीद उसके पास आयेगा, लेकिन जब उसने देखा कि हमीद अपनी जगह से हिला भी नहीं तो वह ख़ुद उठ कर उनकी तरफ़ बढ़ी।

‘‘हैलो हमीद साहब... आप यहाँ क्यों खड़े हैं। आइए, चल कर बैठें। चलिए, मैं आपको कुँवर साहब से मिलाऊँ। उनसे अभी इसी वक़्त मुलाक़ात हुई है। बहुत दिलचस्प आदमी हैं।’’ शहनाज़ ने कहा।

‘‘वे शायद हम लोगों से मिलना पसन्द न करें।’’ फ़रीदी ने कहा।

‘‘वाह! यह कैसे हो सकता है...?’’ शहनाज़ ने हमीद को मुख़ातिब करके फ़रीदी की तरफ़ देखते हुए कहा। ‘‘आपकी तारीफ़...’’

‘‘आप हैं मेरे दोस्त अहमद कमाल और आप हैं मिस शहनाज़।’’ हमीद ने पहचान कराया।

‘‘आपसे मिल कर ख़ुशी हुई।’’ फ़रीदी ने शहनाज़ से हाथ मिलाते हुए मुसकरा कर कहा।

‘‘मुझे भी...’’ शहनाज़ ने अपने ख़ूबसूरत दाँतों की नुमाइश की।

इतने में दूसरा राउण्ड शुरू हो गया।

‘‘क्या मैं आपके साथ डांस कर सकता हूँ।’’ फ़रीदी ने शहनाज़ से कहा।

‘‘ओह, बड़ी ख़ुशी से।’’ शहनाज़ ने दाहिना हाथ फैलाते हुए कहा।

फ़रीदी ने दाहिना हाथ पकड़ कर बायाँ हाथ उसकी कमर में डाल दिया और हल्के-हल्के हिल्कोरे लेता हुआ नाचने वालों की भीड़ में आ गया।
हमीद की आँखें हैरत से फटी-की-फटी रह गयीं। राम सिंह अब किसी और लड़की के साथ नाच रहा था। फ़रीदी नाचने के साथ-साथ शहनाज़ को धीरे-धीरे कुछ बताता भी जा रहा था।

हमीद का चेहरा ग़ुस्से से लाल हो रहा था, वह कई बार उठा और बैठा... फिर बाहर की तरफ़ चला गया। एक बोतल लेमन पी और रूमाल से मुँह पोंछता हुआ वापस आ गया। फ़रीदी और शहनाज़ नाचते हुए उसके पास से गुज़र रहे थे, फ़रीदी ने शहनाज़ की नज़रें बचा कर मुस्कुराते हुए हमीद को आँख मारी और हमीद को ऐसा मालूम हुआ जैसे उसके जिस्म पर सैंकड़ों चींटियाँ रेंगने लगी हों। उसने होंट सिकोड़ कर दूसरी तरफ़ मुँह फेर लिया। फ़रीदी ने झुक कर शहनाज़ के कान में कुछ कहा और वह हमीद की तरफ़ देख कर हँसने लगी। हमीद का ग़ुस्सा और त़ेज हो गया। उसने इधर-उधर देखा। क़रीब ही मेज़ पर एक बूढ़ी और बदशक्ल ऐंग्लो इण्डियन बैठी थी। वह उसके क़रीब गया और उससे नाचने को कहा, पहले तो वह यह समझ कर बुरा मान गयी कि शायद हमीद उसका मज़ाक़ उड़ा रहा है लेकिन फिर थोड़ा हिचकिचाती हुई खड़ी हो गयी। हमीद उसकी कमर में हाथ डाल कर नाचने लगा। हॉल में बेशुमार क़हक़हे गूँजने लगे।

फ़रीदी और शहनाज़ इस बुरी तरह हँस रहे थे कि उनसे अपने क़दम सँभालना मुश्किल हो गया था। हमीद इतनी संजीदगी से नाच रहा था जैसे कोई बात ही न हुई हो। अलबत्ता बुढ़िया बुरी तरह शर्मा रही थी। कुछ मिनट गुज़रने के बाद दोनों इस तरह घुल-मिल कर बातें कर रहे थे जैसे बरसों के साथी हों।

दूसरा राउण्ड ख़त्म हो गया।

फ़रीदी, हमीद, शहनाज़ और ऐंग्लो इण्डियन बुढ़िया एक मेज़ के पास आ बैठे।

‘‘कमाल साहब... वाक़ई आपने कमाल कर दिया।’’ शहनाज़ बोली। ‘‘हमीद साहब, मैं आपकी शुक्रग़ुजार हूँ कि आपने मुझे एक बहुत अच्छे आदमी से मिला दिया। मुझे इनसे नाच सीखने में मदद मिलेगी।’’

‘ज़रूर... ज़रूर...’’ हमीद ने हँसते हुए कहा। ‘‘अभी आपने देखा ही क्या है, ये वाक़ई बड़े कमाल के आदमी हैं।’’

फ़रीदी ने मेज़ के नीचे हमीद का पाँव अपने पाँव से दबा दिया।


‘‘आपका नाम जानना माँगता?’’ बूढ़ी ऐंग्लो इण्डियन ने हमीद से पूछा।

‘‘हमारा नाम...’’ हमीद मुस्कुरा कर बोला। ‘‘हमारा नाम उल्लू का पट्ठा है।’’

‘‘ठीक-ठीक बताओ।’’ बुढ़िया हँसते हुए बोली।

‘‘अच्छा गधे का पट्ठा सही।’’ हमीद ने कहा।

‘‘नहीं... ठीक बोलो।’’

‘‘हमीद ने झुक कर धीरे से उसके कान में कुछ कहा।

‘‘तुम पागल है।’’ वह खिसियानी हँसी हँसते हुए बोली और शर्मा कर सिर झुका लिया।

‘‘मालूम होता है, कुँवर साहब चले गये।’’ शहनाज़ ने गर्दन ऊँची करके इधर उधर देखते हुए कहा।

‘‘ये कुँवर साहब कहाँ रहते हैं?’’ फ़रीदी ने पूछा।

‘‘पता नहीं... मुझसे तो यहीं इसी वक़्त मुलाक़ात हुई थी; वैसे हैं दिलचस्प आदमी।’’

‘‘सूरत से तो मुर्दा जान पड़ता है।’’ हमीद ने मुँह बना कर कहा।

‘‘नहीं वाक़ई बहुत ज़िन्दादिल आदमी है।’’ शहनाज़ बोली।
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शहनाज़ का दुपट्टा बार-बार कन्धों से ढलक रहा था। हमीद सबसे आँखें चुरा उसके उभारों पर नज़र डाल लेता था। उसकी फ़िगर बहुत अच्छी थी, साथ ही वह क़बूलसूरत लड़की थी। उम्र बाईस-तेईस साल से ज़्यादा न रही होगी। उसके चेहरे में सबसे ज़्यादा हसीन चीज़ उसके होंट थे, ऊपर वाला होंट नीचे वाले के हिसाब से काफ़ी पतला था। हँसते वक़्त उसके गालों में हल्के-हल्के गड्ढे पड़ जाते थे।

हमीद उस वक़्त उसे अजीब नज़रों से घूर रहा था। ऐसी नज़रें जिनमें शिकायत, ग़ुस्सा और नापसन्दी की झलकियाँ दिखाई दे रही थीं।

‘‘हमीद साहब, आप इतने ख़ामोश क्यों हैं?’’

‘‘मैं इसलिए ख़ामोश हूँ।’’ हमीद ने मुस्कुरा कर कहा। ‘‘कि ख़ामोश रहने से खाना जल्द हज़म हो जाता है।’’

‘‘आप उन्हें खाना हज़म करने दीजिए।’’ फ़रीदी ने शहनाज़ का हाथ पकड़ते हुए कहा। ‘‘आइए, एक राउण्ड और हो जाये।’’

तीसरे राउण्ड के लिए संगीत शुरू हो गया था।

फ़रीदी और शहनाज़ नाचने वालों की भीड़ में आ गये। हमीद ने फिर उसी बुढ़िया के साथ नाचना शुरू कर दिया।

‘‘आप वाक़ई बहुत अच्छा नाचते हैं।’’ शहनाज़ ने धीरे से कहा।

‘‘और आप... आप किससे कम हैं।’’ फ़रीदी ने कहा।

‘‘आप करते क्या हैं?’’

‘‘बहुत कुछ करता हूँ... और कुछ भी नहीं करता।’’

‘‘यानी...!’’

‘‘मटरगश्ती।’’ फ़रीदी ने कहा और फिर अचानक चौंक कर बोला, ‘‘यह क्या...?’’

‘‘क्या बात है।’’ शहनाज़ ने अपनी बोझिल पलकें उठा कर उसकी तरफ़ देखा। उसकी आँखें बन्द होती जा रही थीं और उनमें लाल डोरे नज़र आने लगे थे।

‘‘ऐसा मालूम हो रहा है जैसे गोली चली हो।’’ फ़रीदी ने एक तरफ़ देखते हुए कहा।

‘‘गोली... यहाँ गोली का क्या काम... मैंने तो नहीं सुनी।’’

‘‘साज़ बहुत ऊँचे सुरों में बज रहे हैं।’’

शहनाज़ ने अपना सारा बोझ फ़रीदी के कन्धों पर डाल दिया। वह एक नशे में डूबी हुई नागिन की तरह लहरें ले रही थी। तीसरा राउण्ड ख़त्म होने में अभी काफ़ी देर थी, लेकिन अचानक ऑर्केस्ट्रा रुक गया। नाचने वाले हैरत से एक-दूसरे का मुँह देखने लगे।

होटल का मैनेजर ऊपर गैलरी में खड़ा चीख़-चीख़ कर कह रहा था।

‘‘भाइयो और बहनो... मुझे अफ़सोस है कि आज प्रोग्राम इससे आगे न बढ़ सकेगा।’’

‘‘क्यों? किसलिए?’’ बहुत-सी ग़ुस्सैल आवाज़ें एक साथ सुनाई दीं।

‘‘यहाँ एक आदमी ने अभी-अभी ख़ुदकुशी कर ली है।’’

हॉल में सन्नाटा छा गया। फिर एक साथ बहुत सारी आवाज़ों के मिलने से अजीब क़िस्म की भनभनाहट-सी गूँजने लगी। लोग एक-एक करके जाने लगे। थोड़ी देर बाद पूरे हॉल में सिर्फ़ आठ-दस आदमी रह गये, उनमें हमीद, फ़रीदी और शहनाज़ के अलावा होटल के नौकर भी शामिल थे।

‘‘तो हम लोग किसलिए रुके हुए हैं।’’ शहनाज़ ने कहा।

‘‘बदतमीज़ी ज़रूर है...’’ फ़रीदी बोला। ‘‘लेकिन शायद आपको अकेला वापस जाना पड़े। मुझे मैनेजर से कुछ ज़रूरी काम है। इसलिए मुझे उसका इन्तज़ार करना पड़ेगा।’’

‘‘कोई बात नहीं।’’ शहनाज़ बोली। ‘‘भला इसमें बदतमीज़ी की क्या बात है? अच्छा, फिर कब मिल रहे हैं आप... यह रहा मेरा कार्ड...’’

फ़रीदी ने उसका कार्ड ले लिया जिस पर पता लिखा हुआ था।

शहनाज़ के जाने के बाद हमीद शिकायत करते हुए बोला ‘‘वाह उस्ताद... आपने तो कमाल ही कर दिया। अगर इसी तरह अपना इरादा बदलना था तो किसी और पर नज़र डाल ली होती।’’

‘‘इश्क़ पर ज़ोर नहीं, है ये वो आतिश ग़ालिब।’’ फ़रीदी ने गुनगुना कर कहा।

‘‘ख़ुदा ख़ैर करे।’’

‘‘छोड़ो जी, आओ देखें, क्या मामला है।’’ फ़रीदी ने दरवाज़े की तरफ़ बढ़ते हुए कहा।

बरामदे में काफ़ी भीड़ थी। कमरा नम्बर तीन के दरवाज़े पर दो कॉन्स्टेबल खड़े हुए थे। फ़रीदी और हमीद को देख कर दोनों सलाम करते हुए एक तरफ़ हट गये।
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