Adultery ऋतू दीदी

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Adultery ऋतू दीदी

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ऋतू दीदी


मेरे एक रीडर ने अपनी आपबीति मेरे साथ शेयर की और उसको मैंने एक कहानी में ढ़ाल दिया है। यह कहानी हैं एक लड़के प्रशांत की। आप उसी के नज़रिये से यह कहानी पढिये।

मेरा नाम प्रशांत हैं और मैं २३ साल का नौजवांन हूं। मेरे माँ बाप का इक्लौता लड़का हूँ और गर्ल फ्रेंड बनाने के चक्कर में कभी पड़ा नहीं क्युकी मैं बहुत शाय रहा हूँ और काम बोलता हूं। कॉलेज ख़त्म होते ही पास के बड़े शहर में मेरी जॉब लग गयी और मैं माँ बाप का घर छोड़ कर नए शहर में रहने लगा। मैं अपने करियर पर कंसन्ट्रेट कर रहा था और घर वालें मेरी शादी करवाना चाहते थे और मैं उनको हमेशा ताल देता।

एक बार जब मैं कुछ दिन की छुट्टियो में घर गया तो घर वालों ने मुझे बोला की उन्होंने एक लड़की देखि हैं और मैं एक बार उस लड़की को देख और मिल लु। शादी चाहे तो मैं बाद मैं कर लु। घर वालों का दिल रखने के लिए मैं तैयार हो गया और मैं अपने पेरेंट्स के साथ लड़की के घर गया। मन में यही था की वापिस घर आकर लड़की को रेजेक्ट कर दूंगा और पीछा छुड़ा लुंगा। लड़की को मेरे सामने लाय गया और मेरी सिट्टी पिट्टी घुम हो गयी। खूबसूरत सी लड़की थी और उसका फिगर एकदम पेरफ़ेक्ट। कभी सोचा नहीं था की ऐसी लड़की से शादी करने का मौका मिलेंगा। उसके साथ अलग से बात करने को भी मिला।

उसका नाम निरु था और मैं उसकी खुबसुरती में इतना खो गया की कुछ पुछा ही नहीं, यह सोच कर की कही वो नाराज न हो जाए। वो जरूर मेरे बारे में जानकार इम्प्रेस हुयी और इंटरेस्ट दिखाया। उसके घर वालों ने बताया की निरु की जॉब उसी शहर में लगी हैं जहा मैं अभी जॉब कर रहा हूं। वो लोग निरु को उस अनजान शहर में अकेले नहीं भेजना चाहते थे और उसी शहर में किसी से शादी करवाना चाहते थे। मुझसे पुछा गया की मैं शादी को तैयार हूँ या नहीं, मैं चाहु तो सोच कर जवाब दे सकता हूं। मैंने तुरंत हां बोल दिया और हम दोनों के घर वाले बहुत खुश हुये। मैं खुश था की मुझे इतनी खूबसूरत बिवी मिलेगी। निरु खुश थी की उसकी जॉब का सपना पूरा होगा और मुझे तो वो, वैसे ही पसंद कर चुकी थी।

अगले महीने ही हमारी शादी हो गयी। एक महीने पहले मैंने सोचा भी नहीं था की मैं शादी कर लूंगा और अब सब कुछ इतना जल्दी हो गया। मगर मुझे अपने डिसिशन पर कोई पछ्तावा नहीं था। मेरा किराए के घर को शेयर करने के लिए एक लाइफ पार्टनर आ चूका था। शादी से पहले के इस एक महीने में भी मेरी बात निरु से होती रही थी। एक चीज जो मुझे पता चली थी वो यह की वो बहुत चुलबुली सी लड़की है। मेरा बिहेवियर उसके बिहेवियर से एकदम उलटा था तो मुझे वो बहुत पसंद आयी। मैं चुपचाप कम बात करता और वो जल्दी ही किसी के साथ घुलमिल जाती और ज्यादा बात करने की बहुत आदत थी। मेरे शांत घर में हमेशा चहल पहल रहने लगी। जिन पड़ोसियो से मैंने कभी बात नहीं की थी, निरु की वजह से उनके नाम भी जानने लगा और वो हमारे घर भी कभी आते थे। मुझे लगा जैसे मेरी लाइफ कम्पलीट हो गयी है। मेरी ज़िन्दगी का अधुरापन दूर हो गया था। शादी के बाद भी वो चुलबुली, बब्बली सी लड़की अपनी शरारत और नटखटपन नहीं भूलि थी। हम दोनों ने करियर को देखते हुए डिसाइड किया था की हम अपना बच्चा अभी प्लान नहीं करेंगे। निरु को बच्चो से बहुत लगाव था। वो अपना बच्चा चाहती थी पर उसे हम दोनों के करियर की भी परवाह थी।

हमारी शादी को एक साल हो चूका था और हमारी ज़िन्दगी बहुत आराम से चल रही थी। पर फिर हमारी ज़िन्दगी में एक तूफ़ान आया। एक दिन निरु मेरे पास आयी और हमेशा की तरह मुझसे बातें करने लगी।

नीरु: "प्रशांत, हम लम्बे टूर पर कभी नहीं गए, क्या हम लोग किसी बीच वाली जगह घुमने जाए, ३-४ दिन के लिये। आगे लॉन्ग वीकेंड भी आने वाला हैं"

प्रशांत: "कोई जगह सोची हैं तुम्हे की कहाँ जाना हैं? मगर अभी टाइम बहुत कम बचा हैं, इतना जल्दी हम सारी बुकिंग करवा नहीं पाएंगे"

नीरु: "उसकी चिंता तुम मत करो। मैं सब सम्भाल लुंग। तुम तैयार हो या नहीं?"

प्रशांत: "अगर सब अच्छे से मैनेज हो जायेगा तो मैं रेडी हूँ, पर तुम अकेले कैसे मैनेज करेगी? पूरा प्लान तो बताओ"

नीरु: "बंदोबश्त हो चूका है। जिजाजी और दीदी यहाँ आ रहे है। फिर हम चारो घुमने जाएंगे। जीजाजी ने ट्रैन के टिकट बुक कर दिए हैं और होटल भी बुक हो गयी हैं"

नीरु चहक रही थी और बहुत एक्ससिटेड लग रही थी और मैं दंग था की उसने सारी तयारी पहले ही कर ली पर मुझसे अब पुछ रही थी।

प्रशांत: "सारा प्लान तो तुमने और नीरज जीजाजी ने बना ही लिया हैं। कब से प्लान चल रहा था? मुझे पहले क्यों नहीं बताया?"

नीरु: "मुझे पता था तुम मना नहीं करोगे। मुझे भी कल जीजाजी ने फ़ोन करके बताया की यह प्लान हैं और हम दोनों को उनके साथ जाना ही पड़ेगा"

नीरु के घर में उसकी पेरेंट्स के अलावा सिर्फ उसकी एक बड़ी बहन ऋतु दीदी है। ऋतु दीदी निरु से ७ साल बड़ी हैं और उनकी शादी करीब ६-७ साल पहले नीरज जी से हुयी थी। जो अब रिश्ते में मेरा साढु भाई हो गए थे। नीरु की दीदी को मैं भी दीदी कह कर ही बुलाता हूँ और वो दोनों मुझे प्रशांत नाम से बुलाते हैं क्यों की मैं उनसे उमरा में ४-५ साल छोटा हूँ।
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Re: ऋतू दीदी

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अगले वीक नीरज जीजा और ऋतू दीदी हमारे घर आने वाले थे और हम सब हमारे शहर से ट्रैन से निकलने वाले थे। पूरे सप्ताह निरु घर में इधर से उधर दौड रही थी और तयारी में लगी थी। शाम को ऑफिस से आने के बाद वो फ़ोन पर लग जाती और अपनी दीदी और जिजा के साथ बात कर क्या लेना और क्या नहीं लेना की तयारी करती। मुझे निरु का एक्ससिटेमेंट देखकर बहुत अच्छा लग रहा था और मेरे चेहरे पर भी उसको देख स्माइल आ जाती। कुछ महिनो पहले जब मैं निरु के साथ उसके घर गया था तो वहाँ नीरज जीजाजी से भी मिला। इन दोनों जीजा साली का रिश्ता एकदम मस्ती वाला था। दोनो एक दूसरे से हँसी मजाक करते रहते और एक दूजे की टाँग खीचने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। वो दोनों जब साथ होते तो एंटरटेनमेंट बारबार होता रहता था। ऋतू दीदी से सुना था की निरु शुरू से ही अपने जीजाजी के मुह लग गयी थी और बिना शरमाये उनसे सब शेयर करती थी और खुल कर बातें करती थी। ऋतू दीदी का स्वभाव निरु से उलटा था। बहुत ही शान्त और गम्भीर मगर समजाहदार थी। वो हाउसवाइफ थी और आगे पीछे का सारा नॉलेज रखती थी और मौका पड़ने पर मुझे और निरु को भी समझती रहती थी। नीरु खूबसूरत थी तो ऋतु दीदी भी काम नहीं थी। दीदी का वजन निरु से थोड़ा ज्यादा था पर दोनों की शकले काफी मिलती थी और खुबसुरती लाजवाब थी।

मै अपनी आदत के हिसाब से ऋतु दीदी से शरमाता था और ज्यादा बात नहीं करता था। ऋतू दीदी ही आगे बढ़कर मुझसे बात करती और मुझे नार्मल करने की कोहिश करती थी। क्यों की निरु जब बोलना शुरू करती तो मुझे सब भूल ही जाते है। अब बात करते हैं नीरज जीजा की। नीरज जीजा और ऋतू दीदी भी मेरी और नीरू की तरह अपोजिट थे। ऋतू दीदी शांत और समझदार थी तो नीरज बहुत बातूनी और हमेशा मजाक के मूड में रहते थे। शायद यह भी एक कारण था की निरु की नीरज जीजा से बहुत अच्छी बनती थी। निरु चाहे कपडे खरीदती तो भी नीरज जीजा के पसंद का कलर या डिज़ाइन लेती। वो नए कपडे पहन कर मुझे दिखाती और पूछती कैसी लग रही हूं। निरु तो मुझे हर तरह के कपड़ो में खूबसूरत ही लगती थी तो मैं शान्ति से बोल देता की अच्छी लग रही हो। येह सुनकर वो मुझे सुना देती की कैसी फिकी तारीफ़ की है। जीजा जी होते तो उसकी बहुत तारीफ़ करत। मुझे जिजा से तारीफ़ करना सीखना चहिये। सिर्फ कपड़ो की बात नहीं थी, दूसरे मौको पर भी मेरा कम्पैरिजन हमेशा नीरज जीजा से करती की अगर जीजा जी होते तो यह करते या वो करते। एक समझदार आदमी की तरह मैं उसकी बात हमेशा हँसी में टाल देता और कभी मंद नहीं किया और ना ही मुझे बुरा लगता था क्यों की मैं जानता था की निरु की आदत उसके जिजा से बहुत मिलती हैं और मैं एकदम उलटा हूं।

आखीर वो दिन भी आया जब निरु के जीजा और दीदी हमारे घर आने वाले थे। वो लोग दोपहर बाद शाम होते होते आने वाले थे और देर रात को हमें ट्रेन पकड़नी थी। नीरु सुबह से ही एक्ससिटेड थी। इतने दिन के लिए पहली बार घुमने जा रहे थे और उसको बीच पर जाना बहुत पसंद भी था। उस से भी बड़ी ख़ुशी थी की साथ में जीजा जी होंग। वार्ना मेरे साथ कही घुमने जाने पर तो वो बोर हो जाती थी। मेरे लिए भी अच्चा त। जब भी कही घुमने जाते तो वो मुझे घुमा घुमा कर परेशान कर देती। अब वो सारी परेशानिया जीजा जी को झेलनी थी।

नीरु घर में वैसे तो साड़ी नहीं पहनती पर क्यों की जीजा जी आने वाले थे तो उसने ख़ास तौर से जिजा जी की दी हुयी साड़ी पहनी थी उनको खुश करने के लिये। साड़ी पहन वो मेरे पास आयी और ख़ुशी के मारे मुझे थैंक यू थैंक यू बोलते हुए मेरे गले लग उछल रही थी। उसके मम्मो का साइज काफी अच्चा खासा था और उसके उछलने के साथ ही उसके मम्मी मेरे सीने से दब कर मुझे चोट मारते हुए गुदगुदी के साथ मेरा मूड भी बना रहे थे। साड़ी में तो वैसे ही वह दूसरे कपड़ो के मुकाबले कुछ ज्यादा ही सेक्सी लगती हैं और गजब धाती हैं तो मैंने भी उसको अपने से चिपका लिया और एक क्विक सेक्स की डिमांड रख दि। मागर निरु ने ना बोल दिया। निरु ने बोलै की जिजा जी के आने के बाद वो कोई काम नहीं करेगी, इसलिए वो अभी से खाना बना कर रख डेगी। मुझे अपने अरमानो का गला घोंटना पद। नीरु किचन में काम पर लग गयी थी और दरवाजा बजते ही मैंने दरवाजा खोला। नीरज जीजाजी ने दरवाजा खुलते ही जोर से "निरु" की आवाज लगाई पर मुझे देख हलका सा मुस्कुराये और आगे बढ़ गए और निरु निरु के नाम की झाडी लगा दि। नीरु किचन से दौड़ती हुयी आयी। उसने एप्रन पहन रखा था और आते ही उछल कर जीजाजी के गले लग उछलने लगी। मुझे दोपहर की घटना याद आ गयी। जब वो ऐसे ही मेरे गले लग उछली थी और मेरा मूड बन गया था। मै सोचने लगा अभी नीरज जीजा की क्या हालत होगी। मुझे थोड़ा ऑक्वर्ड भी लग रहा था पर निरु की एक्साइमेंट देख कर मुझे हँसी भी आ रही थी।

मै उन दोनों को देख रहा था की पीछे से ऋतु दीदी की आवाज आयी और मुझसे मेरा हाल चाल पुछा। मैं जब भी अपने ससुराल जाता हूँ तो निरु मुझे भूल जाती हैं पर ऋतू दीदी मेरा बराबर ध्यान रखती है। मैने ऋतु दीदी को अंदर लिया और उनसे भी हाल चाल पुछा। निरु और जीजा जी अब तक अलग हो कर नार्मल हो चुके थे। तभी निरु को अपने किचन का ख़याल आया और "मेरी रोटी जल गयी" बोलते हुए भाग कर फिर किचन में गयी। जीजा जी भी उसके पीछे किचन में चले गए यह कहते हुए की "निरु ने जीजा जी के लिए क्या पकाया हैं"

मैने दीदी को बैठने के लिए बोला।

ऋतु: "यह निरु एकदम पगली है। तुमको परेशान तो नहीं करती न?"

प्रशांत: "नहीं दीदि, मुझे अच्छा लगता हैं उसको इस तरह खुश देख कर।"

अंदर किचन से निरु और जिजा दोनों के चीख़ने की आवाज आ रही थी और मेरा ध्यान बार बार उधर जा रहा था।

ऋतु: "तुम परेशान मत हो, इन दोनों का शुरू से ऐसा ही है। पूरा घर सर पर उठे लेते हैं"

थोड़ि देर बाद जिजाजी और निरु दोनों किचन से बाहर आए, एक दूसरे के हाथों में हाथ डाले और चहकते हुये। निरु अपनी दीदी के पास जाकर बैठ गयी और जीजा जी मेरे पास पड़े सोफे सीट पर आकर बैठ गए। उन दोनों की बातें चालु हो गयी और ऋतू दीदी बीच बीच में थोड़ा बोल देती पर मैं पुरे टाइम चुप ही रहा। उन लोगो के बीच बातें होती देख मैंने भी बात आगे बढ़ाने और मेरी प्रजेंस दिखाने के लिए बात की।

प्रशांत: "ट्रैन कितने बजे की है, ए.सी. ट्रेन बुक की हैं?"

नीरज: "निरु को ए.सी. स्लीपर में सोने में प्रॉब्लम होती हैं इसलिए मैंने उसके लिए नॉन-ए.सी. फर्स्ट क्लास क्प्म्पार्टमेन्ट बुक किया हैं"

मेरी बिवी के बारे में जो जानकारी मुझे नहीं थी वो जीजा को ज्यादा पता थी। मैं अपना बजट जोड़ने लगा। फर्स्ट क्लास के मुकाबले ए.सी. ३टिएर ज्यादा सस्ता पड़ता और ए.सी. भी मिलता। वो लोग फिर से प्लान करने लगे की बीच पर जाकर वो क्या मस्ती करेंगे और मैं फिर से लेफ्ट आउट फील करने लगा। मैंने सोचा मुझे अब टॉपिक बदलना चेहये।

प्रशांत: "आपकी शादी को इतने साल हो गए, आप लोग खुश खबरी कब सुना रहे हो?"

मै खुश हुआ की मैंने अच्चा टॉपिक ढून्ढ कर उनकी बातचीत में शामिल हो पाउँगा पर एक बार फिर मैंने मुह की खायी। इतनी देर से जीजा और निरु की चहचहाने की आवाज एकदम बंद हो गयी और ख़ामोशी पसर गयी। निरु अब एकदम गम्भीर हो गयी और बोली।

नीरु: "मैंने तुम्हे कभी बताया नहीं, दीदी को मेडिकल प्रॉब्लम हैं और वो कन्सीव नहीं कर सकती हैं"

ऋतू दीदी ने निराशा में अपना मुह झुका लिया और निरु ने उनके कंधे पर हाथ रख उनको सान्त्वना दी। यह सवाल पुछ मैंने बेवकूफ़ी कर दी थी और मैंने तुरंत उन सब से माफ़ी मांगी।

दीदी ने मुझको गिल्टी फील ना करने के लिए बोली, की इसमें मेरा कोई दोष नहीं, क्यों की मुझे पता ही नहीं था इस बारे मे। तभी जीजाजी ने माहौल को लाइट बनया।

नीरज: "अरे तो क्या हो गया! निरु को जो बच्चा होगा वो मेरा ही तो होगा"

नीरु: "ओह्ह्ह्ह! आई लव यू जीजाजी, यु आर द बेस्ट"

यह कहते हुए निरु अपनी सीट से उठी और जाकर जीजा जी की गोद में बैठ गयी और उनको गले लगा दिया और जिजाजी ने भी उसकी नंगी कमर को पकडे उसको जकड़ लिया।
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Re: ऋतू दीदी

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मै एक बार तो खुश हुआ की मेरी वजह से खराब हुआ माहौल फिर ठीक हुआ पर फिर जीजा जी के शब्दो पर ध्यान दिया। क्या उनके कहने का मतलब यह था की वो निरु को माँ बनायेंगे। उन्होंने कहा था की "निरु को जो बच्चा होगा वो मेरा ही तो होगा"

मैने इन शब्दो पर ध्यान दिया पर बाकी किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया। निरु तो उलटा खुश होकर अपने जीजा की गोद में ही बैठ गयी थी। दीदी भी अपनी चिंता छोड़कर हलकी मुस्करायी। मै भी सोचने लगा शायद मैंने ही गलत सुना या फिर गलत मतलब निकला होगा। फिलहाल मेरी बिवी अपने जीजा के गले पड़ी थी। हलांकि यह पहला मौका नहीं था जब वो अपने जीजा से इतने करीब थी पर मैं थोड़ा असहज महसूस कर रहा था पर बाकी तीनो को यह सामान्य लग रहा था तो मैंने भी इसको लाइटली लिया। नीरु फिर अपनी जगह आकर बैठी और जीजा साली में टाँग खिचाई और मजाक शुरू हो गया और मैं सिर्फ दर्शक ही बना रहा। ऋतू दीदी बीच में अपने एक्सपर्ट कमेंट कर देती और निरु को डांट कर समझा भी देती।

हम सब लोगो ने डिनर कर लिया था और फिर साथ बैठे थे। थोड़ देर प्लानिंग के बाद दीदी ने बोला की उनका सामान तो पैक हैं मगर हम लोगो ने पैकिंग की हैं या नहीं। उन्होंने सजेस्ट किया की हमें पहले अपने बैग पैक कर लेने चहिये। मेरी लास्ट मिनट पैकिंग ही बाकी थी तो मैं उठ गया। निरु भी उठ गयी।

नीरु: "जीजा जी मैंने अपनी तरफ से कपडे फाइनल कर लिए हैं पर आप मेरी मदद करो की क्या लेना है। आप मेरे साथ चलो"

दीदी: "तुम लोग पैकिंग फाइनल करो तब तक मैं किचन का काम ख़त्म कर देती हूँ फिर तैयार होंगे"

मै अब अपने बैडरूम में आए और पीछे पीछे निरु अपने जीजा को लेकर अंदर आयी। मैं अपनी पैकिंग से ज्यादा उन दोनों को आब्जर्वर कर रहा था।

नीरु ने अपना सूटकेस खोल कर जीजाजी को दिखाया। उसमे उसके कपडे पड़े थे। उसने एक एक कर सब बाहर निकाले और जीजाजी को दिखाने लगी की क्या रखा हैं और क्या नहीं। कपडे निकलने के साथ ही सूटकेस में नीचे पड़े निरु के ब्रा और पेंटी भी दिखने लगे। मुझे थोड़ी शर्म महसूस हुयी की इस तरह अपने अंदर पहनने के कपडे उसके जीजा जी बैग में देख पा रहे थे पर उन दोनों पर कोई फर्क नहीं था। वो दोनों कपड़ो को फाइनल करने में लगे थे और मेरी पैकिंग हो गयी तो मैं उनको देखता रहा। पैकिंग होते ही हम सब बाहर आ गए। दीदी भी किचन का काम ख़त्म कर बाहर आ गयी थी। टी.वी. चल रहा था पर सिर्फ मैं देख रहा था। बाकी तीनो अपने कल के प्लान बना रहे थे। आधे घंटे बाद दीदी ने आगे के काम ख़त्म करने को कहा। दीदी ने बोला की अब हम तैयार हो जाते है। ख़ास तौर से निरु को तैयार होने में ज्यादा टाइम लगेगा तो उसको जाने को बोला।

नीरु: "जीजा जी आप मेरे साथ चलो और बताओ की मैं क्या पहनू"

नीरु अब अपने जीजा को लेकर मेरे बैडरूम में चली गयी और दरवाजा बंद हो गया। अन्दर से सिर्फ निरु के चहकने और खिलखिलाने की आवाज आ रही थी और बीच बीच में जीजा जी के हंसी की। इधर दीदी मेरे साथ बात कर रही थी।

दीदी: "निरु घर में सबसे छोटी हैं तो सबकी लाड़ली रही है। उसकी बचपने की आदत तुम्हे अजीब तो नहीं लगती न?"

प्रशांत: "बिलकुल नहीं दीदी। घर चहकता हैं तो अच्छा लगता है। जब वो घर पर नहीं होती हैं तो घर सुना और अजीब लगता हैं"

दीदी: "मेरा पीहर हो या मेरा ससुराल, जब तक निरु रहती हैं तो किसी बच्चे की कमी नहीं खलती। उसके जाते ही सन्नाटा छा जाता हैं और सब उसको मिस करते हैं"

प्रशांत: "अच्छा हैं उसको सब मिस करते है। मेरे जैसे का तो होना न होना सब एक हैं"

दीदी: "नहीं, ऐसी बात नहीं है। मम्मी पापा तुम्हारी बहुत तारीफ़ करते है। नीरज से भी ज्यादा वो तुम्हे पसंद करते हैं"

दीदी से बात करके थोड़ी शान्ति मिल रही थी पर बेडरूम से लगातार आती आवाजो से मैं थोड़ा अनकम्फर्टेबल हो रहा था। मैंने दीदी को भी तैयार होने को बोल दिया। दीदी अब उठ खड़ी हुयी और नीरज को आवाज लगा कर बुलाया ताकि निरु तैयार हो सके ताकि देर न हो। दीदी अब गेस्ट रूम में चेंज करने गयी।

मै अपने बैडरूम के दरवाजे तक पंहुचा और अंदर से आती जीजा साली की मस्तियो की आवाज में मेरी अंदर जाने की हिम्मत नहीं थी। क्या पता क्या देखने को मिले? मन में कही न कही एक डर घर कर गया था। मैं वही सोफे से लेकर बैडरूम के दरवाजे तक चक्कर लगता रहा। कुछ मिनट्स के बाद ही जीजाजी मेरे बैडरूम से बाहर आए। मै चुपके से जीजाजी को ऊपर से नीचे देखते हुए निरिक्षण करने लगा की वो क्या करके आये होंगे। उनके बाल बिखरे हुए थे और टीशर्ट पर खींचने की वजह से सिलवटे थी। मै अपने बैडरूम की तरफ बढा ताकि अंदर जाकर निरु की खोज खबर ले सकू। पर जीजाजी ने बीच में ही रोक दिया। जीजाजी ने बोला की लड़कियो को तैयार होने में टाइम लगता है, हम मर्दो को नहीं। हम थोड़ी देर बाद जायेंगे तैयार होंने। उन्होंने मुझे बातों में उलझाये २-३ मिनट रोके रखा। फिर मैंने ही उन्हें कहा की मुझे कपडे थोड़े आयरन भी करने हैं तो मैं अंदर जाता हूं। जीजाजी वहीं सोफे पर बैठ अपना फ़ोन चेक करने लगे और मैं बैडरूम में गया। नीरु अल्मारी के सामने ही खड़ी थी और सिर्फ अपनी ब्रा और पेंटी में थी। मुझे देखते ही उसने दरवाजा बंद करने को कहा। मैंने दरवाजा बंद किया और टाइमिंग गिनने लगा। जीजजी के बैडरूम से जाने के बाद से लेकर अब तक २-३ मिनट्स हुए होंगे। क्या निरु इतना जल्दी अपने कपडे खोल कर सिर्फ ब्रा और पेंटी में आ सकती हैं की नहीं। उसने साड़ी, पेटीकोट और ब्लाउज जीजाजी के जाने के बाद इतना जल्दी खोल लिए होंगे या जीजाजी के रहते हुए ही उसने कपडे खोल दिए थे? या फिर हो सकता हैं की निरु के कपडे खुद जीजाजी ने ही खोले होंगे तभी तो अंदर से इतनी मस्ती की अवाजे आ रही थी। मैने अपने आप को डांट दिया की मैं भी क्या सोच रहा हूं। मेरे बाहर बैठे रहते जीजाजी की इतनी हिम्मत नहीं हो सकती है। उन दोनों के अंदर रहते तो मैंने दरवाजा खोलने की कोशिश भी नहीं की थी। हो सकता हैं उस वक़्त दरवाजा अंदर से लॉक्ड था। अब यह सब चीजे पता करने के लिए तो बहुत देर हो चुकी थी। निरु ने अपना ब्रा निकाल दिया था ताकि दूसरा मैचिंग का ब्रा पहन पाए।
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Re: ऋतू दीदी

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मुझे शक हुआ की रोज के मुकाबले निरु के मम्मे कुछ ज्यादा ही फुले हुए है। क्या यह सब मेरा भ्रम था या निरु का जीजा के साथ मस्ती करने से यह हाल हुआ था। या यह भी हो सकता हैं की उनके बीच एक क्विक सेक्स हुआ हो। दिल नहीं मान रहा था पर मन में शक का एक बीज उग गया था। मैं अब कैसे कन्फर्म कर सकता था। मैंने सोचा मैं निरु की पेंटी में हाथ डालकर उसकी चूत को छू कर देखुंगा। अगर वह गीला हुआ तो मतलब कुछ गड़बड़ है। मै निरु को देख रहा था जो टॉपलेस होकर सिर्फ एक पेंटी पहने अल्मारी में कपडे देख रही थी। मैं पीछे गया और उस से चिपक गया और उसके मम्मे अपने हाथों से दबाने लगा। नीरु ने मुझको झटका देकर अपने से दूर किया और कहा की अभी ज्यादा रोमांटिक होने की जरुरत नहीं हैं और अभी कुछ नहीं हो सकता हैं क्यों की टाइम नहीं हैं। मैंने भी सोच लिया था की मैं पता करके रहूँगा और मैंने उसको फिर पीछे से दबोच लिया और वो खुद को मुझसे छुड़ाने लगी। मैंने उसको पीछे से पकड़ कर हवा में उठा दिया और वो अपने पाँव साइकिल की तरह चलाते हुए फडफडाने लगी। मैं उसको लेकर बिस्तर पर गिर गया और जबरदस्ती उसकी पेंटी में हाथ डालने की कोशिश करने लगा। वो लगातार मेरा हाथ पकड़ मुझे रोकती रही जैसे उसकी चोरी पकडे जाने वाली हो। मैने आज तक कभी निरु पर जबरदस्ती नहीं की थी। हालाँकि उसने कई बार जबरदस्ती मेरा मूड न होते हुए भी मेरे साथ चुदाई की थी। मैने अपना हाथ उसकी पेंटी में हाथ डालही दिया और उसकी छूट तक ले गया। उसकी चूत के छोटे छोटे बालो पर ऊँगली छु गयी और थोड़ी गीली हुयी। निरु ने मेरा हाथ तुरंत बाहर निकाल दिया और उठ खड़ी हुयी।

मैं अपनी गीली ऊँगली के किनारे को देखता रह गया और दिल को धक्का सा लगा। मैं निरु के चेहरे को पढ़ने लगा की कही चोर तो नहीं छुपा है। मगर वो तो हंस रही थी और चहकते हुए शरमाते बोली।

नीरु: "बड़ी मस्ती चढ़ रही हैं आज! अभी जाना है, कल रात होटल रूम में देखती हूँ की तुम क्या करते हो"

मेरा दिल नहीं मान रहा था और मुझे यह सब गलत फ़हमी ही लगी। हो सकता हैं उसके साथ जो मैं जबरदस्ती कर रहा था उस वजह से उसकी चूत गीली हुयी हो। या फिर ज्यादा से ज्यादा थोड़ी देर पहले जीजाजी उसके साथ जो हँसी मजाक कर रहे थे उस वजह से उसकी चूत गीली हो गयी हो, पर वो जीजाजी के साथ यह गन्दा काम नहीं कर सकती। वो तो सिर्फ मुझे प्यार करती है। फिलहाल उसने दूसरा ब्रा पहन लिया और अपनी घुटनो तक की ड्रेस पहनने को निकाल दि। मैंने उसको कुरता और लेगिंग पहनने को बोला।

नीरु: "जीजाजी ने बोला हैं सफर पर आरामदायक खुले खुले कपडे होने चाहिए इसलिए मैं यही ड्रेस पहनूँगी"

अब अगर जीजा जी ने वो ड्रेस फाइनल की थी तो मेरा बोलने का कोई फायदा नहीं था। निरु ने वो स्लीवलेस घुटनो तक की ड्रेस पहन ली। हालाँकि वो उस ड्रेस में बहुत खूबसूरत लग रही थी, पर हमेशा की तरह मैंने फ़ीका रिस्पांस दिया। मैं भी टी-शर्ट और लोअर पहन कर तैयार था सफर के लिये। रात का सफर था पर फिर भी निरु हमेशा की तरह मेकअप करने लगी। मैं अब बाहर हॉल में आ गया।

जीजाजी वहाँ नहीं थे, शायद वो भी चेंज करने गए थे। कुछ मिनट्स में ही जीजाजी और ऋतू दीदी अपने कमरे से बाहर आए। ऋतू दीदी ने लूज पजामा और ऊपर एक बटन डाउन शर्ट पहना था। जीजाजी ने अपनी बिवी को तो निरु की तरह छोटे कपडे नहीं पहनाये थे। जीजाजी ने आते ही निरु के बारे में पुछा। मैंने बोल दिया की वो मेकअप कर रही है।

नीरज: "अभी रात को मेकअप की क्या जरुरत हैं? रुको मैं निरु को बाहर लेकर आता हूं। ऋतू तुम तब तक प्रशांत की हेल्प से अपने बैग बाहर ले आओ।"

जीजजी अब मेरे बैडरूम की तरफ बढे और अंदर जाकर दरवाजा जोर से बंद हुआ। उस दरवाजे के बंद होने की आवाज से मेरे दिल को जैसे धक्का लगा। जैसे किसी ने मेरे दिल पर एक मुक्का मार दिया हो। अन्दर से निरु के चिल्लाने की आवाज आने लगी "नहीं

जीजाजी, नहीं जीजा जी"। मुझे बहुत गुस्सा आया।

दीदी: "यह दोनों फिर शुरू हो गए, अब अगले कुछ दिन इनकी यही मस्ती मजाक चलता रहेगा और सारा काम हम दोनों को ही करना पड़ेगा प्रशांत। चलो हम बैग ले आते हैं"

मैने सोच लिया मैं अंदर जाकर जीजा को रंगे हाथों पकड़ लूंगा पर ऋतू दीदी के बैग्स लाने का क्या होगा? मुझे पता था की ऋतू दीदी मुझसे कोई काम नहीं करवाती है। दीदी अपने रूम की तरफ बढ़ गए थे। मैंने दूर से ही उनको आवाज दि।

प्रशांत: "ट्राली वाले बैग तो आप आराम से खिंच कर ला सकते है, मेरी जरुरत हैं क्या आपको?"

ऋतू: "नहीं, मैं ले आउंगी। कोई बात नहीं"
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Re: ऋतू दीदी

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इन सब के बीच लगातार अंदर से निरु के चीख़ने और जीजा जी के जोर से खिलखिला कर हंसने की आवाज आती रही और साथ ही निरु भी बीच बीच में हंस रही थी। दीदी अपने रूम में बढ़ी और मैं दौड कर अपने बैडरूम के दरवाजे तक बढा और सांस रोक कर तेजी से दरवाजा खोल कर अंदर के नज़ारे को देखने के लिए तैयार था। तभी दरवाजा खुला और सामने जीजा ही खड़े थे एक चौड़ी स्माइल के साथ, जैसे मुझे चिढा रहे हो की मैं उनको नहीं पकड़ पाया और वो पहले ही मेरी बिवी के मजे ले चुके है। जीजाजी दरवाजे के बाहर निकले और मैं अंदर गया और वो दरवाजा बंद कर चले गए। मैंने देखा निरु बिस्तर पर पेट के बल उलटी लेटी हुयी है। उसने अपनी घुटनो तक की ड्रेस पहनी हुयी थी। उसके चेहरे पर खुले बाल बिखरे थे और टाँगे घुटनो से मुड़कर ऊपर छत की तरफ खड़ी थी। मैं आगे बढा और जाकर एक हाथ उसकी गांड पर रख दिया। वो एकदम पलट कर बोली "जीजाजी" और मुझे देख जैसे उसको सदमा लगा। वो अपने जीजाजी को एक्सपेक्ट कर रही थी और मैं आउट ऑफ सिलेबस आ गया था।


प्रशांत: "क्या हुआ? तुम तो मेकअप कर रही थी फिर यहाँ क्यों लेटी हो?"

नीरु अब उठ कर बैठ गयी थी और अपने कपडे एडजस्ट करने लगी।

नीरु: "मैं तो मेकअप ही कर रही थी पर जीजाजी करने ही नहीं दे रहे थे और जबरदस्ती खिंच कर ड्रेसिंग टेबल से बिस्तर पर ले आए। सफर पर जाने से पहले भी तो मेकअप कर ही सकते है, मैं तो करुँगी"

यह कहते हुए वो फिर उठी और ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठ कर अपना मेकअप दुरुस्त करने लगी और मैं बैग पकड़ कर बाहर खिंच लाया।

दीदी और जिजाजी सोफे पर बैठे थे और बैग पास में ही पड़े थे।

नीरज: "क्या हुआ? निरु फिर मेकअप करने लगी? मैं जाऊं वापिस"

ऋतू: "रहने दो उसको, उसकी इच्छा हैं तो करने दो मेकअप, क्यों परेशान करते हो"

५-१० मिनट्स के बाद निरु बाहर आ गयी और जीजा उसको देख उसकी तारीफो के पूल बाँधने लगे। निरु ख़ुशी से फूली नहीं समां रही थी। मुझे देख आँखें दिखा रही थी की जीजाजी से सीखो कैसे तारीफ़ करते है। मैने टैक्सी मंगवायी और हम लोग स्टेशन पहुचे। पहली बार मैं फर्स्ट क्लास से सफर कर रहा था। आज तक ३टिएर ए.सी. या नॉन ए.सी. स्लीपर में ही सफर किया था। हम अपने कम्पार्टमेंट में पहुचे। हमारे केबिन में आमने सामने, ऊपर नीचे चार ही बर्थ थे सोने के लिये। मैंने पुछा हम लोगो को नॉन-ए.सी. से ही जाना था तो नॉन ए.सी. स्लीपर से जा सकते थे।

नीरज: "स्लीपर में एक ही कोच में ७०-८० लोग होते है, वहाँ फर्स्ट क्लास वाली प्राइवेसी कहाँ होती है। यहाँ देखो हम चारो ही है। कुछ भी कर सकते हैं"

मै उनके "कुछ भी करने" का मतलब नहीं समझा था, उनके इरादे नेक नहीं लग रहे थे। मैं और नीरज जीजाजी एक बर्थ पर बैठे थे और सामने दोनों बहने बैठी थी। बातें करने में सहुलीयत हो इसके लिए निरु और उसके जीजाजी आमने सामने ही बैठे थे। इसलिये मेरे सामने ऋतू दीदी बैठी थी। मैं और ऋतू दीदी सिर्फ उन दोनों की बातें सुन रहे थे जो मस्ती मजाक में एक दूसरे की टाँग खिंच रहे थे। दोनो एक दूसरे को धमकी दे रहे थे की कल बीच पर देखना मैं क्या करता या करती हूं। उन्होंने अब तक जो किया था उसी से मैं सदमें में था तो आगे क्या होने वाला था यह सोच चिन्तित भी था। इन सब के बीच ऋतू दीदी एकदम शांत थी। क्या उनको भी मेरी तरह शक नहीं होता होगा अपने पति और बहन के रिश्ते पर? या फिर वो जान बुझ कर उनको करने देती होगी क्यों की वो मेरी तरह भोलि थी। मैने देखा था की ऋतू दीदी कभी कभार निरु को डाँट देती थी। शायद उनके बचपन की आदत होगी निरु के इस शरारती रूप को देखने की और उसे डाँटने की। यही कारण होगा की वो निरु की जिजाजी से सब मस्तियो को हंस कर टाल देती होगी। ऋतू दीदी अपनी शाल निकालने के लिए अपनी सीट के नीचे पड़े बैग को निकालने के लिए आगे झुकी। मेरा ध्यान ऋतू दीदी पर गया और झुकने के साथ ही उनके शर्ट के ऊपर के हिस्से से उनके बूब्स के उभार की थोड़ी झलक मिली। मै घबरा कर दूसरी तरफ देखने लगा जहाँ निरु और जीजाजी बातों में मशगुल थे। मेरे मन में चोर था। मैंने मौका देखते हुए फिर ऋतू दीदी को देखा। ऋतू दीदी को कभी इन गन्दी नज़रो से नहीं देखा था पर कुछ घंटो से जीजाजी और निरु की हरकतें देख मेरा दिमाग भी करप्ट हो गया था। ऋतू दीदी बैग की चेन खोले शाल निकालने के लिए हिली और उनके बूब्स का उभार भी उनके हिलने के साथ जेली की तरह हिलता हुआ बड़ा मादक दिखाई दिया। मेरे मन में घंटियां बजने लगी। मै फिर एक सेकंड दूसरी तरफ देखने लगा की कही कोई मुझे ऋतू दीदी के बूब्स घुरते तो नहीं देख रहा। और फिर मैं ऋतू दीदी के बूब्स की थोड़ी सी दिखती झलक को घुरने लगा।

ऋतू दीदी ने शाल निकाल लिया था और बैग की चेन वापसी बंद करने लगी। मैं थोड़ी देर और उस नज़ारे के मजे लेना चाहता था पर मैं अब दूसरी तरफ देखने लगा, ताकि ऋतू दीदी मुझे उन्हें घुरते हुए ना देख ले। ऋतू दीदी बैग अंदर रख सीधा हो चुकी थी। मैं फिर उनकी तरफ देख थोड़ी स्माइल करने लगा। दीदी ने जीजा साली की बातो में ध्यान लगाने उनकी तरफ देखा तो मैं उनकी छाती को घुरने लगा। कुछ दीख तो नहीं रहा था पर शर्ट के अंदर से ही उनके उभारों को देखने लगा। फिर अपने आप पर गुस्सा भी आया की मैं यह क्या कर रहा हूँ? थोड़ी देर बाद ऋतू दीदी ने बोला की उनको नींद आ रही हैं तो सब सो जाते है। मैं उनकी बात का सम्मान करते हुए तुरंत उठ खड़ा हुआ। पर जीजा साली की बातें अभी ख़त्म नहीं हुयी थी और उन्होंने हम दोनों को ऊपर की दोनों बर्थ पर सोने का बोल दिया।
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