Thriller मिस्टर चैलेंज by वेद प्रकाश शर्मा

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Rakeshsingh1999
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Thriller मिस्टर चैलेंज by वेद प्रकाश शर्मा

Post by Rakeshsingh1999 »

ठहाकों के बाद आवाज गूंजी ---- " देखा इस्पक्टर ! देखा ? इसे कहते हैं चमत्कार ! अपने अगले शिकार की हत्या मैंने तेरे हाथों से करा दी । सबके सामने करा दी । और करना क्या पड़ा मुझे ? सिर्फ तेरे रिवाल्वर से छेड़छाड़ ! उसमें तेरे द्वारा डाली गयीं नकली गोलियां निकालकर असली गोलियां डालना कितना आसान था । मुझे पकड़ने के लिए साजिश रचने चला था । मुझे पकड़ने के लिए गुल्लू को मृत घोषित करके उसे मेरी खोज में लगाना चाहता था । चाल तो अच्छी सोची तूने ! आदमी खुद को जिन्दा लोगों की नजरों से छुपाने का प्रयत्न करता है , मरे हुए लोगों की नजरों से नहीं ! तेरी चाल कामयाब हो जाती तो मुमकिन है गुल्लू के हाथ मेरे नकाब तक पहुंच जाते । मगर देख ---- वो बेचारा तो खुद मरा पड़ा है । सचमुच मर गया वह।


इस उपन्यास के लिखे गए हर शब्द के पीछे मि . चैलेंज छुपा है , इसके बावजूद वेद प्रकाश शर्मा का दावा है कि मेरा कोई भी पाठक अंतिम पृष्ट पढ़ने से पूर्व मि . चैलेंज को नहीं पहचान सकता ! दावे में कितना दम है , इसे आप उपन्यास पढ़ना शुरू करके खुद जान सकते है ।
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Re: Thriller मिस्टर चैलेंज by वेद प्रकाश शर्मा

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जब मै लेखक नहीं था . आपकी तरह केवल एक पाठक था , तब मर्डर मिस्ट्री वाले उपन्यास बहुत पसंद करता था , परन्तु उन उपन्यासों का ' अंत ' पढ़कर अक्सर झुंझला उठता था । कारण था ---- अंत में लेखक द्वारा किसी भी ऐसे किरदार को अपराधी बता देना जिसका मुख्य कहानी से कुछ लेना - देना नहीं होता था । अन्त में एक नई ही कहानी पाठकों को पढ़ा दी जाती थी ! उस वक्त मैं सोचता --- यह तो लेखक द्वारा पाठकों को बेवकूफ बनाना हो गया । जब कहीं कोई ' क्लू ' ही नहीं छोड़ा गया । असली कहानी ही कुछ और थी तो पाठक अपराधी को पहचानता कैसे ? केवल चौंकाने की गर्ज से लेखक द्वारा किसी ऐसे किरदार को अपराधी खोल देना मुझमें हमेशा खीझ भर देता था जिसके खिलाफ उपन्यास में कहीं कोई इशारा तक न किया गया हो । मैं नहीं चाहता वह खीझ आपमें पैदा हो । भरपूर तौर पर कोशिश मेरी भी यही रहती है कि जब अपराधी खुले तो पाठक चौंके परन्तु खिंझे नहीं । अंत पढ़कर उन्हें लगे ---- ' हा . उपन्यास में जगह - जगह ऐसे पॉइंट छोड़े गए हैं जिन पर ध्यान देने पर अपराधी को पहचाना जा सकता था , नहीं पहचान पाये तो ये हमारी चूक है । जो पकड़ लेते है , उन्हें खुशी होती है कि हां , हमने उपन्यास ध्यान से पढ़ा है । तो मि ० चैलेंज को ध्यान से पढ़ें ! अपराधी की तरफ इशारे किए गए हैं , क्लू छोड़े गए हैं । अगर आप रहस्य खुलने से पहले रहस्य को पकड़ सके तो मुझे खुशी होगी । आप उसी प्यार , विश्वास और सहयोग का इच्छुक जो पैंतीस साल से लगातार मिल रहा है । वहीं मेरी असली ताकत है ।
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Re: Thriller मिस्टर चैलेंज by वेद प्रकाश शर्मा

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दिन निकलते ही मैं लेखन - कक्ष में बंद हो जाता । सूरज ढलने पर बाहर निकलता तो चेहरा लटका हुआ होता , दिमाग पर सवार होती थी ---- अजीब सी झुंझलाहट । कारण ? पिछले तीन दिन से मैं मि ० चैलेंज लिखने की कोशिश कर रहा था , परन्तु शुरू नहीं कर पा रहा था । ऐसा नहीं कि दिमाग में कोई प्लाट ' न था । प्लॉट एक नहीं कई थे । और शायद मेरी असली समस्या भी यही थी । निश्चय नहीं कर पा रहा था उन कई प्लाटस में से किस पर मि ० चैलेंज के कथानक की इमारत खड़ी करू । कक्ष का दरवाजा खुला । आहट बहुत हल्की थी , इसके बावजूद मेरी तंद्रा भंग कर गयी । पलकें उठाकर देखा । दरवाजे पर मधु खड़ी थी ! मेरी पत्नी । होठों पर मुस्कान , हाथों में शाम का अखबार । उसकी मुस्कान के जवाब में मुस्करा नहीं सका मैं । दिमाग पर चिड़चिड़ाहट सवार थी परन्तु जानता था , वह बगैर ' एमरजेंसी " के मुझे डिस्टर्ब नहीं कर सकती थी । अतः स्वयं को नियंत्रित रखकर पूछा ---- " क्या बात है ? " "

अखबार लाई हूँ । " उसके होठों पर शरारत नाच रही थी । मेरे दिमाग का मानो फ्यूज उड़ गया । लगभग ' गुर्रा ' उठा मैं--- " मधु , क्या तुम नहीं जानती जब मै लिख रहा होता हूँ तो अखबार नहीं पड़ता । " "
देखू तो सही , क्या लिख रहे है जनाब ? " कहती हुई वह अपने करेक्टर के विपरीत आगे बढ़ी और मेज से कोरा कागज उठाकर मेरी आंखों के सामने नचाती बोली --.- " तो ये है चार दिन की सिरखपाई का फल ? " "

ओफो मधु , तुम्हें कैसे समझाऊं कि ... " समझने की जरूरत मुझे नहीं , आपको है पतिदेव । " " मतलब ? " मैंने उसे घुरा । " अच्छा लिखने के लिए अखबार पढ़ते रहना जरूरी है । " " मधु ,क्या पहेलियां बुझा रही हो तुम ? मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा।
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Re: Thriller मिस्टर चैलेंज by वेद प्रकाश शर्मा

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करेक्ट ! " वह उचककर मेरे सामने टेबल पर बैठ गई ---- " पहेली ही पूछने आई हूं ! अगर एक लड़की का मर्डर हो और मरने से पहले वह चैलेंज ' शब्द लिख जाये तो क्या मतलब हुआ उसके इस अंतिम हरकत का ? " " क्या तुम मुझे मि ० चैलेंज की कहानी बताने आई हो ? " " बात अगर जंची , तो इस उपन्यास की रायल्टी मेरी । " रायलटी तो मैं सभी उपन्यासों की तुम्हें सौंपता आया हू देवी जी मगर , बेसिर - पैर की बकवास पर उपन्यास नहीं लिखा जा सकता ।


साइक्लोजी कहती है मर्डर हुए व्यक्ति को यदि मरने से पूर्व कुछ लिखने का मौका मिल जाये तो सबसे पहले हत्यारे का नाम लिखेगा । नाम नहीं जानता होगा तो हत्या की वजह लिखेगा । ' चैलेंज ' जैसा , निरर्थक शब्द ' मरने वाला ' कभी नहीं लिख सकता । " आपकी सभी दलीलों की हवा निकालने के लिए पेश है ये अखबार । " कहने के साथ मधु ने अखबार खोलकर मेरी आंखों के सामने लहरा दिया । नजर हैडिंग पर चिपकी रह गई ---- आई.ए.एस. कालिज में हत्या मरने वाली ने CHALLENGE लिखा । मैंने मधु के हाथ से इस तरह अखबार झपटा जैसे भूखे ने रोटी झपटी हो । जल्दी - जल्दी खबर पढ़नी शुरू की ।
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Re: Thriller मिस्टर चैलेंज by वेद प्रकाश शर्मा

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लिखा था ---- मेरठ , 10 नवम्बर । आज दिन - दहाड़े हजारों आंखों के सामने आई.ए.एस. कॉलिज की लोकप्रिय प्रोफेसर कुमारी सत्या श्रीवास्तव की हत्या कर दी गयी मगर , एक भी आंख हत्यारे को नहीं देख सकी । घटना सुबह नौ बजे की है । सत्या श्रीवास्तव आई.ए.एस. कालिज में इंग्लिश की प्रोफेसर थीं । कहते हैं कालिज में स्टूडेन्ट्स के दो ग्रुप है । इनमें से एक ग्रुप को प्रिंसिपल महोदय का वरदहस्त प्राप्त है । यह ग्रुप छोटा परन्तु आवारा किस्म के स्टुडेन्ट्स का है । इस ग्रुप का लीडर का नाम चन्द्रमोहन बताया जाता है । कहते है कालिज के ज्यादातर स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर प्रिंसिपल से चन्द्रमोहन का ' रैस्टीकेशन ' करने की मांग कर रहे थे । परन्तु प्रिसिपल महोदय ने ध्यान नहीं दिया । इस मांग का नेतृत्व सत्या श्रीवास्तव कर रही थीं । आज सुबह साढ़े आठ बजे कालिज प्रांगण में एक मीटिंग होने वाली थी । उसमें विचार किया जाना था कि प्रिंसिपल महोदय चन्द्रमोहन को कालिज से नहीं निकालते हैं तो क्या किया जाये ? सबा आठ बजे से स्टूडेन्टर और प्रोफेसर्स इकट्ठा होना शुरू हो गये । साढ़े आठ बजे तक लगभग सभी लोग कैम्पस में पहुंच चुके थे । मगर सत्या आठ पैतीस तक भी उन लोगों के बीच नहीं पहुंची । स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स में बेचैनी फैलने लगी । कुछ स्टूडेन्ट्स सत्या को देखने हॉस्टल में स्थित उसके कमरे में गये । सत्या वहां भी नहीं थी ।

बेचैनी सवालिया निशानों में तब्दील होने लगी । सत्या को सारे कॉलिज में तलाश किया जाने लगा । उस वक्त हर दिमाग में केवल यही एक सवाल था --- खुद मिटिंग कॉल करके सत्या आखिर चली कहां गयी ? अचानक कैम्पस में मौजूद हजारों कानों ने एक जोरदार चीख की आवाज - सुनी । बदहवास आखें ऊपर की तरफ उठी । कालिज के टैरेस पर सत्या नजर आई । वह लहुलुहान थी । चीख रही थी । अगले पल उसका जिस्म रेस पर लगा रेलिंग तोड़कर हवा में लहरा उठा । एक लम्बी चीख के साथ यह कैम्पस की तरफ आई । वहां मौजूद भीड चीखो के साथ पलक झपकते ही ' काई की तरह फट गयी ! सत्या ' धम्म ' से प्रांगण की कच्ची जमीन पर गिरी । सभी दहशतजदा और हकबकाये हुए थे । एक बार गिरने के बाद सत्या ने उठने की कोशिश की , परन्तु लड़खड़ाकर पुनः गिर गई । स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स की भीड़ कर्तव्यविमूढ़ अवस्था में उसे देख रही थी और फिर अपनी अंगुली की नोंक से सत्या ने प्रांगण की जमीन पर कुछ लिखा । लिखने के बाद दम तोड़ दिया । भीड़ की तंग्रा भंग हुई । कुछ स्टूडेन्ट्स लाश की तरफ लपके । कुछ टैरेस की तरफ ! हत्यारा किसी को नजर नहीं आया । सत्या ने प्रांगण की जमीन पर लिखा है ---- CHALLENGE
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