Thriller Kaun Jeeta Kaun Hara

Post Reply
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Thriller Kaun Jeeta Kaun Hara

Post by Masoom »

Kaun Jeeta Kaun Hara

“चीफ !” कमाण्डर करण सक्सेना पूरी संजीदगी के साथ बोला- “इस कहानी में कुछ बातें बिल्कुल आइने की तरह साफ हो चुकी हैं ।”
“कैसे ?”
“जैसे वह चारों मर्डर कन्फर्म तौर पर अविनाश लोहार ने ही किये हैं और खुद अपने हाथों से किये हैं । अब कम-से-कम इस बारे में बहस करना बिल्कुल बेकार है कि अविनाश लोहार ने हत्या करने के लिए किसी डुप्लीकेट का सहारा लिया था या फिर कुछ और प्रपंच रचा ।”
“सही बात है ।” गंगाधर महंत ने भी कहा- “अब तक के घटनाक्रम से तो यही साबित होता है कि यह चारों हत्यायें कन्फर्म तौर पर अविनाश लोहार ने अपने हाथों से ही की हैं ।”
“लेकिन फिर वही सनसनीखेज सवाल हमारे दिमाग पर हथौड़े की तरह पड़ता है चीफ !”
“कौन सा सवाल ?”
“यही कि अगर यह चारों हत्यायें अविनाश लोहार ने ही की हैं, अकेले ही की हैं, तो वह सिर्फ एक-एक घंटे के अंतराल से देश के अलग-अलग महानगरों में जाकर यह चारों हत्यायें कैसे कर पाया ? मैंने फ्लाइटों का टाइम-टेबल भी चेक किया है । उस टाइम पर एक महानगर से दूसरे महानगर तक जाने के लिए कोई फ्लाइट भी उपलब्ध नहीं थी । सिर्फ कलकत्ता से दिल्ली जाने के लिए सवा दो बजे के करीब एक फ्लाइट थी, लेकिन वो फ्लाइट भी घटना की रात बने कोहरे की वजह से कैंसिल हो गयी थी और अपने निश्चित समय से दो घंटे लेट उड़ी थी । इसके अलावा दूसरा यक्ष प्रश्न जो है चीफ, वो ये है कि अगर उस समय हत्या के टाइम को मैच करती हुई उड़ानें होती भीं, तब भी अविनाश लोहार उनके माध्यम से एक महानगर से दूसरे महानगर तक का सफर कैसे तय कर सकता था ? क्योंकि कोई भी फ्लाइट मुंबई से मद्रास जाने में ढाई घंटे का समय लेती है । इसी तरह मद्रास से कलकत्ता पहुंचने में दो घंटे दस मिनट का समय लगता है । और कलकत्ता से दिल्ली पहुंचने में भी तकरीबन इतना ही समय दरकार है । यानि किसी भी एक महानगर से दूसरे महानगर हवाई जहाज से जाने के लिए दो घंटे चाहिये, जबकि हत्यायें मात्र एक-एक घंटे के अंतराल से ही हो गई हैं । फिर ऐसी हालत में अविनाश लोहार ने एक महानगर से दूसरे महानगर तक का फासला किस प्रकार तय किया ? इसके अलावा एअरपोर्ट पर उतरने के बाद अपने शिकार तक पहुंचने में भी अविनाश लोहार को कुछ वक्त लगा होगा । हत्या करने में भी थोड़ा बहुत वक्त लगेगा और फिर अविनाश लोहार वापस उस जगह भी आया होगा, जहाँ से उसने अपनी फ्लाइट पकड़ी चीफ ! यह सारे काम हालांकि छोटे-छोटे नजर आते हैं, मगर ध्यान से देखा जाये, तो यह बहुत वक्त लगाने वाले काम हैं । बहुत टाइम की एक्युरेसी वाले काम हैं ।”
“और वह सारे काम भी उसी एक घंटे के वक्फे में हुए हैं ।”
“बिल्कुल ।”
गंगाधर महंत खामोश हो गये ।
“अगर देखा जाये तो यह हत्या की एक बेइंतहा पेचीदा केस है चीफ, हद से ज्यादा पेचीदा ।”
“सबसे बड़ी बात तो ये है करण !” गंगाधर महंत ‘हवाना’ सिगार का छोटा सा कश लगाते हुए बोले- “कि यह सारे काम हुए हैं और उसी एक घंटे के अंदर हुए हैं । मगर सवाल ये है, अविनाश लोहार ने आखिर यह सब किया, तो कैसे किया ?”
“सचमुच उसने जो भी योजना बनाई, वह हैरतअंगेज थी चीफ !”
“इसमें क्या शक है ?” गंगाधर महंत बोले- “और अब तुमने उसी योजना का पर्दाफाश करना है ।”
“हां ।”
“हकीकत की तह में उतरने के लिए तुम अपनी तरफ से सबसे पहला कदम क्या उठाओगे ?”
कमाण्डर करण सक्सेना सोचने लगा ।
दिमाग को इस हद तक झकझोर देने वाला ऐसा कोई केस उसकी जिंदगी में पहले कभी नहीं आया था ।
“चीफ !” कमाण्डर करण सक्सेना काफी सोचने विचारने के बाद बोला- “मैं अब इस केस के एक बिल्कुल नए पहलू की तरफ गौर कर रहा हूँ, जिसकी तरफ अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया ।”
“नए पहलू की तरफ ?”
गंगाधर महंत चौंके ।
वह ‘हवाना सिगार’ का कश लगाते-लगाते ठिठक गये ।
“हां ।”
“इस केस का वह नया पहलू क्या है ?”
गंगाधर महंत के दिमाग में आतिशबाजी-सी फूटती चली गई थी ।
☐☐☐
“आप एक बात पर थोड़ा ध्यान देकर सोचिए चीफ !” कमाण्डर करण सक्सेना थोड़ा आगे को झुक गया और बेहद सस्पेंसफुल लहजे में बोला ।
चीफ !
उसके चेहरे पर भी अब सस्पेंस का नाग अपना फन फटकारने लगा ।
“जरा सोचिए चीफ !” कमाण्डर करण सक्सेना ने बड़े रहस्यमयी अंदाज में कहा- “अविनाश लोहार को यह बातें एडवांस में ही मालूम थीं कि जिस रात वह उन चारों का मर्डर करने ऑल इंडिया मेडिकल हॉस्पिटल से बाहर निकलेगा, उस रात उसके चारों शिकार किस-किस जगह होंगे और क्या कर रहे होंगे । जैसे अविनाश लोहार को पहले से ही पता था कि फिल्म स्टार शशि मुखर्जी उस समय मुंबई शहर में ही होगा और फिल्मिस्तान स्टूडियो में नाइट शिफ्ट में शूटिंग कर रहा होगा । इसीलिए वह पूरे कॉन्फिडेंस के साथ सीधा फिल्मिस्तान स्टूडियो पहुंचा और वहाँ पहुंचकर उसने शशि मुखर्जी को शूट कर दिया । इसी तरह अविनाश लोहार को उद्योगपति अर्जुन मेहता के बारे में भी पता था कि उस रात ठीक एक बजे उसकी मद्रास के ‘होटल सनशाइन’ में किसी के साथ बिजनेस मीटिंग थी । वह क्रिकेटर विजय पटेल के बारे में भी पहले से जानता था कि उस रात वह कलकत्ता के ‘गोल्डन गेट फार्म हाउस’ में कोका-कोला की विज्ञापन फिल्म की शूटिंग कर रहा होगा । उसे यह भी पता था कि समाजवादी नेता नागेंद्र पाल उस रात कहाँ था ? वह क्या कर रहा था ? यह सारी बातें अविनाश लोहार को पहले से मालूम थीं । एडवांस में मालूम थीं, क्योंकि ऐसा नहीं था कि अविनाश लोहार ने मुंबई पहुंचने के बाद पहले शशि मुखर्जी को खोजा हो तथा फिर उसकी हत्या की हो या मद्रास पहुंचने के बाद उसने अर्जुन मेहता की खोजबीन की हो तथा फिर उसका मर्डर किया हो । अविनाश लोहार के पास इतना वक्त ही नहीं था, जो वह उसे खोजबीन जैसे काम में जाया करता । वह तो सीधे अपने उस लक्ष्य पर पहुंचा था, जहाँ उसका शिकार मौजूद था और बस वहाँ पहुंचकर उसने अपने शिकार को प्वाइंट ब्लैंक शूट कर दिया था ।”
“यानि तुम यह कहना चाहते हो ।” गंगाधर महंत आश्चर्यजनक मुद्रा में बोले- “कि उस रात अविनाश लोहार जब ऑल इंडिया मेडिकल हॉस्पिटल से हत्या करने के इरादे के साथ बाहर निकला, तो वह जानता था कि उसका कौन सा शिकार इस वक्त कहाँ-कहाँ मौजूद होगा ?”
“बिल्कुल जानता था और यही हैरानी का विषय है चीफ !”
गंगाधर महंत के नेत्र सिकुड़ गये ।
उन्होंने ‘हवाना सिगार’ का एक छोटा सा कश और लगाया ।
“क्यों ? यह हैरानी का विषय क्यों है ?”
“क्योंकि उससे पहले अविनाश लोहार हॉस्पिटल के इंटेंसिव केअर यूनिट में था और बहुत सख्त पहरे के बीच था । इतने सख्त पहरे के बीच कि उसके पास कोई परिंदा भी पर न मार सके । वह बाहर की दुनिया से लगभग पूरी तरह कटा हुआ था । कोई अखबार, कोई मैगजीन उस तक नहीं पहुंचती थी । यहाँ तक कि बाहर की दुनिया का कोई परिचित आदमी भी उस तक नहीं पहुंचने दिया जाता था । फिर सवाल ये है चीफ, अविनाश लोहार को उसके कैदखाने में रहते हुए वह तमाम जानकारियां किस तरह प्राप्त हुईं ? जिस वाहन के द्वारा वह एक शहर से दूसरे शहर गया, उस वाहन का इतने आनन-फानन तरीके से इंतजाम कैसे किया गया ?”
“तुम कहना क्या चाहते हो, बिल्कुल साफ-साफ कहो करण !”
गंगाधर महंत की कौतूहलता एकाएक बहुत बढ़ चुकी थी ।
“मैं साफ-साफ ही कह रहा हूँ । दरअसल अविनाश लोहार को ऑल इंडिया मेडिकल हॉस्पिटल के अंदर ही ‘इनसाइड हेल्प’ हासिल थी चीफ !” कमाण्डर करण सक्सेना एकाएक प्रचंड धमाका-सा करता हुआ बोला- “कोई उस हॉस्पिटल में ऐसा शख्स मौजूद था, जो अविनाश लोहार की मदद कर रहा था । उसका रहनुमा बना हुआ था ।”
बम फट पड़ा वहाँ ।
टाइम बम ।
“य...यह तुम क्या कह रहे हो ?”
“मैं इस समय एक-एक बात बहुत सोच-समझकर बोल रहा हूँ । बिना ‘इनसाइड हेल्प’ अविनाश लोहार को यह तमाम जानकारियां प्राप्त नहीं हो सकती थीं । बिना ‘इनसाइड हेल्प’ के वह कुछ नहीं कर सकता था ।”
“लेकिन ऑल इंडिया मेडिकल हॉस्पिटल में इतने सख्त पहरे के बीच उसका कौन मददगार हो सकता था ?”
“शायद ब्लैक कैट कमांडोज !”
कमाण्डर करण सक्सेना ने एक विस्फोट और कर दिया ।
पहले से भी ज्यादा जबरदस्त विस्फोट !
“ब… ब्लैक कैट कमांडोज !” गंगाधर महंत हकबकाए ।
“यस चीफ !”
“ल... लेकिन.. ।”
“मैं जानता हूँ कि आप क्या सोच रहे हैं । ब्लैक कैट कमांडोज बहुत विश्वसनीय होते हैं । उनकी बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग की गई होती है । लेकिन इस दुनिया में पैसे के लिए कब कौन बिक जाये, कुछ नहीं कहा जा सकता चीफ ! और अब इस केस की इन्वेस्टिगेशन वहीं से शुरू होगी ।”
☐☐☐
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Thriller Kaun Jeeta Kaun Hara

Post by Masoom »

कमाण्डर करण सक्सेना ।
जिससे आप सब लोग परिचित ही हैं ।
हर बार मौत के पंजे से पंजा लड़ाना और खतरों से खेलना कमाण्डर करण सक्सेना का शौक बन चुका है ।
रॉ का वह जाबांज जासूस, जिसके नाम-मात्र से ही दुनिया के बड़े-बड़े अपराधी और दुश्मन देश के जासूस थर्रा उठते हैं ।
छःफुट से भी लंबा कद ।
खूबसूरत व्यक्तित्व !
इसके अलावा हमेशा काला लंबा ओवरकोट और काला गोल क्लेंसी हैट पहनने का शौकीन ।
पॉइंट 38 कैलिबर की एक कोल्ट रिवॉल्वर वह सदा अपने क्लेंसी हैट की ग्लिप में छिपाकर रखता है । एमरजेंसी के समय वह हैट की ग्लिप में छिपी रिवॉल्वर, कमाण्डर करण सक्सेना के काफी काम आती है । वह अपने दिमाग की मांसपेशियों को जरा भी हरकत देता है, तो ग्लिप में फंसी रिवॉल्वर खुद-ब-खुद हैट में से निकलकर उसके हाथ में पहुंच जाती है । इसके अलावा वह दूसरी रिवॉल्वर अपनी ओवरकोट की जेब में रखता है ।
रिवॉल्वर हाथ में आते ही उसकी उंगलियों की गिर्द फिरकनी की तरह घूमती है, वह जगलरी करता है ।
कमाण्डर करण सक्सेना ।
एक बेहद जांबाज़ अंतर्राष्ट्रीय स्तर का जासूस । जो एक बार फिर अपनी जिंदगी के बेहद हंगामाई मिशन पर काम कर रहा था ।
☐☐☐
कमाण्डर करण सक्सेना दिल्ली पहुंचा ।
वहाँ पहुंचकर वह सीधा ब्लैक कैट कमांडोज के मुख्यालय गया और कमांडोज चीफ से मिला ।
कमांडोज चीफ का नाम अशोक गंगवाल था । अशोक गंगवाल एक लंबे चौड़े कद-काठ वाला आदमी था । उसकी मूंछें गुबरैली थीं और आंखों में ऐसी सख्ती के निशान थे, जो किसी कर्तव्यपरायण आदमी की आंखों में ही पाये जाते हैं ।
कमाण्डर के मुख्यालय में पहुंचते ही वहाँ हड़कंप-सा मच गया ।
आखिर कमाण्डर करण सक्सेना की किसी भी जगह उपस्थिति हंगामे से कम नहीं होती । हर जगह उसके प्रशंसक मौजूद होते हैं, जो बस उसे एक बार देखना चाहते हैं ।
उसे छूना चाहते हैं ।
“कमाण्डर !” कमांडोज चीफ अशोक गंगवाल भी हड़बड़ाकर अपनी कुर्सी से उठा- “आपने क्यों तकलीफ की ? आप मुझे सूचना भेज देते, मैं खुद मुंबई आ जाता ।”
“यह कमाण्डर का उसूल नहीं है ।” कमाण्डर करण सक्सेना बोला- “आदमी छोटा हो या बड़ा, अगर काम कमाण्डर का होता है तो कमाण्डर खुद उसके पास जाता है । बैठो । ”
अशोक गंगवाल आदेश होते ही वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गया ।
कमाण्डर करण सक्सेना उसके सामने बैठा ।
“मिस्टर गंगवाल, ऑल इंडिया मेडिकल हॉस्पिटल में अविनाश लोहार की सिक्योरिटी की तमाम जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर थी ।”
“करैक्ट ।”
“वहाँ कुल कितने कमांडोज अविनाश लोहार की सिक्योरिटी के लिए तैनात किए गये थे ?”
“डेढ़ सौ ।”
“डेढ़ सौ ?”
“यस कमाण्डर !” अशोक गंगवाल तत्पर लहजे में बोला- “दरअसल ब्लैक कैट कमांडोज की ड्यूटी तीन अलग-अलग शिफ्ट में लगाई जाती थी ।”
“और प्रत्येक शिफ्ट में पचास कमांडोज की ड्यूटी आठ-आठ घंटे की होती थी ।”
“हां ! लेकिन आप यह सारे सवाल क्यों कर रहे हैं कमाण्डर ? अविनाश लोहार को ऑल इंडिया मेडिकल हॉस्पिटल से तिहाड़ जेल शिफ्ट किया जा चुका है और हॉस्पिटल से वह सारी सिक्योरिटी उठा ली गई है । अब तो वह चैप्टर ही बंद हो चुका है ।”
“चैप्टर जरूर बंद हो चुका है, लेकिन अविनाश लोहार ने वहाँ जितने दिन गुजारे और उसके बाद चार अलग-अलग महानगरों में जाकर जो सनसनीखेज मर्डर किए, उनसे एक बात जरूर डंके की चोट पर साबित हो चुकी है कि किसी ने अविनाश लोहार की इनसाइड हेल्प की थी ।”
“इनसाइड हेल्प ?”
अशोक गंगवाल चौंका ।
उस शब्द को सुनकर उसे भी जबरदस्त करण्ट लगा ।
“हां, इनसाइड हेल्प !”
“य...यानि ।” अशोक गंगवाल बड़बड़ाता हुआ बोला- “यानि आप यह कहना चाहते हैं कमाण्डर, ब्लैक कैट कमांडोज में से कोई गद्दार था ? क...कोई उनमें से अविनाश लोहार के साथ मिला हुआ था ?”
“बिल्कुल, मैं यही कहना चाहता हूँ ।”
“इम्पॉसिबल !” अशोक गंगवाल बोला- “यह किसी हालत में नहीं हो सकता कमाण्डर ! मुझे अपने मुख्यालय के एक-एक कमांडो पर नाज है, फख्र करता हूँ मैं उनके ऊपर । हर कमांडो मेरे हाथों के नीचे से निकला हुआ है और जबरदस्त ट्रेनिंगयाफ्ता है । सच तो यह है, जो कमांडो गद्दार हो, वह कमांडो ही नहीं होता । जबकि ब्लैक कैट कमांडोज तो कमांडोज की सुपर पोस्ट है । ब्लैक कैट कमांडोज बनने के लिए आदमी ने कई तरह की अग्नि परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है । वैसे भी यह सारी बातें मुझे आपको बताने की जरूरत नहीं है कमाण्डर, आप तो खुद इन बातों के अच्छे-खासे जानकार हैं । हां, एक बात मैं आपको जरूर बताना चाहूँगा ।”
“क्या ?”
“जो डेढ़ सौ कमांडो अविनाश लोहार की सिक्योरिटी में नियुक्त किए गये थे, वह ब्लैक कैट कमांडोज उच्च श्रेणी के कमांडोज थे, जो ‘जेड’ प्लस सिक्योरिटी में इस्तेमाल किए जाते हैं, यानि जिन्हें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे राष्ट्र के पुरोधाओं की सिक्योरिटी में लगाया जाता है । मैंने अविनाश लोहार की सिक्योरिटी में जरा भी रिस्क नहीं लिया था । पूरी सिक्योरिटी परफेक्ट थी । मुझे अपने सभी डेढ़ सौ ब्लैक कैट कमांडोज पर पूरा भरोसा था और अभी भी दावे के साथ कह सकता हूँ, उनमें से कोई भी गद्दार नहीं हो सकता ।”
“फिर भी किसी न किसी ने तो अविनाश लोहार की मदद की है ।” कमाण्डर करण सक्सेना डनहिल सुलगाता हुआ बोला- “ऐसा नहीं हो सकता कि अविनाश लोहार इंटेंसिव केअर यूनिट के बंद कमरे में पड़ा-पड़ा अकेले ही चार हत्याओं की ऐसी हंगामाखेज प्लानिंग रच डाले, वो भी इतनी परफेक्ट टाइमिंग के साथ । ऐसी प्लानिंग ऐसे हालात में कभी किसी की मदद के बिना नहीं रची जा सकती या फिर मैं कुछ गलत कह रहा हूँ ?”
अशोक गंगवाल के चेहरे पर अब कुछ हिचकिचाहट के भाव उभरे ।
वह बोला कुछ नहीं ।
“जवाब दो मिस्टर गंगवाल !”
“बात तो आपकी बिल्कुल बराबर है कमाण्डर ! लेकिन.. ।”
“लेकिन क्या ?”
“अगर किसी ने अविनाश लोहार की इनसाइड हेल्प की भी है, तो वह ब्लैक कैट कमांडोज में से कोई नहीं हो सकता ।”
“आर यू श्योर ?”
कमाण्डर ने सीधे उसकी आंखों में झांका ।
“श्योर !”
अशोक गंगवाल की आवाज में पूरा आत्मविश्वास झलक रहा था ।
“ठीक है, मैं तुम्हारी बात मानता हूँ ।” कमाण्डर करण सक्सेना ने ‘डनहिल’ का कश लगाया और पहलू बदला- “मैं भी कबूल करता हूँ कि सभी डेढ़ सौ ब्लैक कैट कमांडोज पूरी तरह ईमानदार थे । अपने कार्य के प्रति निष्ठावान थे । तो फिर सवाल ये है कि गद्दारी किसने की ? वह और कौन-कौन लोग थे, जिनकी अविनाश लोहार तक पहुंच थी ?”
“ब्लैक कैट कमांडोज के अलावा तो बस हॉस्पिटल का स्टाफ ही था ।” अशोक गंगवाल बोला- “जिसकी अविनाश लोहार तक पहुंच थी और हॉस्पिटल स्टाफ में भी सिर्फ वह चंद लोग थे, जिन्हें अविनाश लोहार से मिलने दिया जाता था ।”
“कौन-कौन ?”
“दो डॉक्टर और दो नर्सिंग स्टाफ के मेंबर ।”
“क्या उनमें से कोई गद्दार हो सकता था ?”
अशोक गंगवाल सोच में डूब गया ।
एक-एक करके उन चारों के चेहरे उसकी आंखों के सामने घूमने लगे ।
☐☐☐
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Thriller Kaun Jeeta Kaun Hara

Post by Masoom »

उसी क्षण एक कमांडो कॉफ़ी के दो मग और नाश्ते का सामान ले आया ।
परन्तु कमाण्डर को उस समय कॉफ़ी में कोई दिलचस्पी न थी ।
अशोक गंगवाल काफी देर तक उन चारों के बारे में सोचता रहा ।
“नहीं ।” फिर वो पहले की तरह इंकार में गर्दन हिलाता हुआ बोला- “उनमें से भी कोई भी गद्दार नहीं हो सकता । किसी ने अविनाश लोहार की इनसाइड हेल्प नहीं की हो सकती ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि उन चारों को भी अच्छी तरह जांच-पड़ताल करने के बाद ही ड्यूटी पर लगाया जाता था और वह सब ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टिट्यूट के पुराने आदमी थे ।”
“ठीक है ।” कमाण्डर करण सक्सेना बोला- “मैं मानता हूँ, वह चारों भी निर्दोष थे । उन्होंने भी अविनाश लोहार की इनसाइड हेल्प नहीं की हो सकती तो फिर वह कौन था, जिसने अविनाश लोहार की इनसाइड हेल्प की ?”
“यह तो बड़ा कठिन प्रश्न है ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि किसी और की तो अविनाश लोहार तक पहुंच ही नहीं थी । सिर्फ ब्लैक कैट कमांडोज उससे मिल सकते थे या फिर डॉक्टर्स के उस दल की उस तक पहुंच थी ।”
“क्या कभी कोई अविनाश लोहार से मिलने के लिए भी उसके पास नहीं आया ?”
“नहीं, कोई नहीं आया । अविनाश लोहार का कोई रिश्तेदार तो था नहीं, जो उसका हालचाल पूछने आता । आखिर वह अनाथ था । अविनाश लोहार की सिर्फ मित्र-मंडली थी और वह सब के सब आतंकवादी थे, इसलिए उनके उसका हालचाल पूछने आने का मतलब ही नहीं था । उनमें से अगर कोई उसका हालचाल पूछने वहाँ आता तो वह खुद भी फंसता, खुद भी मरता ।”
कमाण्डर समझ गया । अशोक गंगवाल ठीक कह रहा था ।
बिल्कुल ठीक ।
“तुम्हारी बात अपनी जगह एकदम सही है ।” कमाण्डर करण सक्सेना बोला- “मैं भी मानता हूँ, लेकिन फिर भी कोई एक ऐसा आदमी तो जरूर था मिस्टर गंगवाल, जिसकी अविनाश लोहार तक पहुंच थी और जो अविनाश लोहार का हितैषी भी था ।”
“नहीं, ऐसा कोई आदमी नहीं था ।”
“मिस्टर गंगवाल, तुम जवाब देने में बहुत जल्दबाजी कर रहे हो ।” कमाण्डर ने ‘डनहिल’ का एक छोटा सा कश और लगाया- “मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, ऐसा कम-से-कम कोई एक अदद आदमी तो जरूर रहा होगा । तुम अविनाश लोहार की पूरी दिनचर्या पर गौर करो । गुजरे हुए एक-एक लम्हें को याद करो । मैं समझता हूँ, अगर पूरे ध्यान से सोचोगे तो ऐसा कम-से-कम एक आदमी तुम्हें जरूर याद आ जायेगा ।”
कमांडोज चीफ अशोक गंगवाल ने अपनी आंखें बंद कर ली और वह सोचने लगा ।
इस समय उसकी मुद्रा ऐसी थी, जैसे सचमुच उसने अतीत की तरफ छलांग लगा दी हो । एक-एक घटना उसके मानस पटल पर किसी चलचित्र की भांति घूमने लगी ।
☐☐☐
अशोक गंगवाल काफी देर तक अपनी आंखें बंद किए बैठा रहा और कोई दस मिनट बाद उसने अपनी आंखें खोलीं ।
उस क्षण उसकी आंखों में नफरत के चिन्ह परिलक्षित हो रहे थे ।
“जरूर यह उसी नामुराद आदमी का काम हो सकता है ।” अशोक गंगवाल आंखें खोलते ही एकाएक गुर्राया- “उसी का ।”
“किसका ?”
कमाण्डर संभलकर बैठा ।
“वही ठाकुर दौलतानी, सिंधी वकील, जो अविनाश लोहार का पैरोकार बना हुआ था । पूरे जोर-शोर के साथ उसका केस लड़ रहा था कमाण्डर, एक वही आदमी था, जिसे ब्लैक कैट कमांडोज और डॉक्टर्स की टीम के अलावा अविनाश लोहार से अकेले में मिलने की सहूलियत हासिल थी ।”
कमाण्डर करण सक्सेना चौंका ।
ठाकुर दौलतानी ।
वह उस केस में एक नया नाम उजागर हो रहा था ।
“क्या अविनाश लोहार ने अपने लिए कोई वकील भी किया हुआ था ?”
“नहीं !” कमांडोज चीफ अशोक गंगवाल ने एक और जबरदस्त रहस्योद्घाटन किया- “अविनाश लोहार ने अपने लिए कोई वकील नहीं किया हुआ था ।”
“फिर ?”
“दरअसल ठाकुर दौलतानी, अविनाश लोहार का मुरीद था, उसका भक्त था, इसलिए ठाकुर दौलतानी ने अपनी मर्जी से उसे अपनी सेवाएं फ्री में दी थीं । वह अविनाश लोहार को निर्दोष मानता था । उसने जज के सामने उसका केस लड़ने की एप्लीकेशन दी । जज को कोई ऐतराज नहीं हुआ । अविनाश लोहार को भी नहीं हुआ ।”
“क्या ठाकुर दौलतानी उससे हॉस्पिटल में मिलने आता था ?”
“नहीं, हॉस्पिटल में तो वह कभी नहीं आया । अगर वो हॉस्पिटल में आता भी तो उसे मिलने नहीं दिया जाता ।”
“फिर वो कहाँ मिलता था ?”
कमाण्डर करण सक्सेना का आश्चर्य और बढ़ा ।
“बस जब कभी-कभार अविनाश लोहार हाईकोर्ट में पेशी पर ले जाया जाता था ।” अशोक गंगवाल ने बताया- “तो वहीं थोड़ी-बहुत देर के लिए केस पर डिस्कशन करने के वास्ते उसकी अविनाश लोहार से अकेले में मुलाकात कराई जाती थी ।”
“अकेले ?”
“हां ।”
“किस जगह ?”
“हाईकोर्ट में ही कॉन्फ्रेंस हॉल बना हुआ है, वहीं वो दोनों मिलते थे ।”
कमांडो चीफ अशोक गंगवाल से बड़ी नई-नई जानकारियां प्राप्त हो रही थीं ।
ऐसी जानकारियां, जो उस केस में आगे चलकर बड़ी मददगार साबित होनी थीं ।
कमाण्डर करण सक्सेना का दिमाग भी एकाएक काफी तेज स्पीड के साथ दौड़ने लगा ।
उसने ‘डनहिल’ का एक छोटा-सा कश और लगाया- “एक बात बताओ ।”
“पूछिए कमाण्डर !”
“जिस समय वकील ठाकुर दौलतानी उससे कॉन्फ्रेंस हॉल में मिलने के लिए आता था, तो क्या उसके साथ कोई और शख्स भी होता था ?”
“और शख्स ?”
“हां !”
“और शख्स कौन ?”
“जैसे ठाकुर दौलतानी का कोई असिस्टेंट, कोई टाइपिस्ट, कोई जूनियर वकील या फिर कोई और ?”
“नहीं ।” अशोक गंगवाल बोला- “ठाकुर दौलतानी के साथ उस वक्त और कोई नहीं होता था ।”
“कंफर्म ?”
“एकदम कंफर्म । किसी और शख्स को हम अविनाश लोहार से मुलाकात करने की परमिशन ही नहीं दे सकते थे कमाण्डर ! वह दोनों उस समय कांफ्रेंस हॉल में बिल्कुल अकेले होते थे और कॉन्फ्रेंस हॉल के बाहर कमांडोज का सख्त पहरा होता था । आप माने या न माने, मगर अब मैं एक बात पूरे दावे के साथ कह सकता हूँ ।”
“क्या ?”
“अगर इस पूरे प्रकरण में अविनाश लोहार की मदद कोई शख्स कर सकता है, तो सिर्फ ठाकुर दौलतानी ही कर सकता है । ठाकुर दौलतानी को ही वह सारी सहूलियतें हासिल थीं, जो ऐसे किसी इनसाइड हेल्पर को चाहिये होती हैं । वह अविनाश लोहार से अकेले मिल सकता था । बुद्धिमान था, इसलिए दिमाग को घुमा देने वाली ऐसी सनसनीखेज योजना में कोई माकूल राय भी तजवीज कर सकता था । और सबसे बड़ी बात ये है कमाण्डर, ठाकुर दौलतानी के दिल में उसके लिए वैसे भी सॉफ्ट कार्नर था, वह उसे निर्दोष समझता था । उसकी निगाह में तो वह आदमी आतंकवादी था ही नहीं । वह तो अविनाश लोहार को कोई पीर या पैगम्बर समझता था, जो समाज की हाई सोसायटी का, ऊँचे तबके का सताया हुआ था और अब कूड़ा-करकट साफ़ करने जैसा बड़ा अहमतरीन काम अंजाम दे रहा था । कमाण्डर, एक इनसाइड हेल्पर को जांचने-परखने के लिए जितनी डिग्रियां चाहिये होती हैं, वह सारी की सारी डिग्रियां ठाकुर दौलतानी के ऊपर फिट हैं । अब इस बात में शक-सुबहे की कोई गुंजायश नहीं बची कि अगर गड़बड़ हुई है, तो वहीं हुई है ।”
“हूँ !”
कमाण्डर करण सक्सेना ने गहरी सांस ली और फिर डनहिल का आखिरी कश लगाकर टोटा एश ट्रे में रगड़ दिया ।
खुद कमाण्डर को भी अब यही लग रहा था कि वकील ठाकुर दौलतानी ही उनमें सबसे ज्यादा संदेहजनक व्यक्ति था ।
“ठाकुर दौलतानी इस समय कहाँ होगा ?”
“हाईकोर्ट में ही होगा ।”
“थैंक यू, थैंक यू वेरी मच ! मैं अब चलता हूँ, तुम्हारी इस मदद के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ।”
“धन्यवाद की क्या बात है कमाण्डर !” अशोक गंगवाल भी उसके साथ कुर्सी छोड़कर उठा- “बल्कि यह तो मेरे लिए गर्व की बात है कि मैं आप जैसे अंतर्राष्ट्रीय जासूस के किसी काम आया । मेरे योग्य कैसी भी कोई और मदद हो, तो बेहिचक बोलना ।”
“क्यों नहीं ?”
उन दोनों की कॉफी तब तक ठंडी हो चुकी थी ।
☐☐☐
आइए अब चंद पलों के लिए रुकें ।
जैसाकि आप सभी जानते हैं, ‘कौन जीता कौन हारा’ नामक जिस उपन्यास को आप इस समय पढ़ रहे हैं, यह उपन्यास मेरे ‘आतंकवादी’ नामक उपन्यास का दूसरा और आखिरी हिस्सा है ।
आशा है आपने ‘आतंकवादी’ पढ़ लिया होगा । अगर आतंकवादी नहीं पढ़ा तो इस उपन्यास को यहीं बंद करके रख दीजिए और पहले ‘आतंकवादी’ पढ़ें ।
मेरी आपसे विनती भी है और अपनी रचनाओं से गहरा लगाव होने के कारण सख्त हिदायत भी है कि ‘आतंकवादी’ पढ़ने से पहले आप इस उपन्यास को किसी भी हालत में न पढ़ें, क्योंकि तब आप इस महागाथा का संपूर्ण आनंद नहीं उठा पाएंगे । उस अवस्था में अगर आपका भरपूर मनोरंजन नहीं हो पाता, तो मुझे दोष न दें ।
आतंकवादी, यह अविनाश लोहार नामक आतंकवादी की कहानी है ।
अविनाश लोहार, जो अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी था । जिसने लीबिया, भूटान, इजराइल, हंगरी, स्वीडन जैसे कई देशों में बड़ी-बड़ी आतंकवादी कार्रवाइयां अंजाम दी थीं ।
जिसकी इंटरपोल पुलिस को भी बड़ी सरगर्मी के साथ तलाश थी ।
परन्तु !
अविनाश लोहार हाथ किसी के नहीं आता था ।
वह छलावा बना हुआ था । जो आतंकवादी कार्रवाई अंजाम देता और भगा खड़ा होता ।
लेकिन अविनाश लोहार फंसा । वह भारत में किसी कार्रवाई को अंजाम देने आया हुआ था, तभी भारतीय पुलिस के शिकंजे में जा फंसा ।
अविनाश लोहार वहाँ से जान बचाकर भागा ।
पुलिस भी उसके पीछे-पीछे भागी ।
फिर पुलिस ने एक जगह अविनाश लोहार को चारों तरफ से घेरकर उस पर धुंआधार गोलियां चलाईं ।
छ: गोलियां अविनाश लोहार को लगीं ।
सबसे बड़ी बात ये थी, वह सभी छ: की छ: गोलियां उसके सीने के इर्द-गिर्द लगीं ।
अविनाश लोहार को खून से लथपथ हालत में आल इंडिया मेडिकल हॉस्पिटल के ‘इंटेंसिव केअर यूनिट’ में रखा गया । उसे जबरदस्त सिक्योरिटी प्रदान की गयी । उस ‘इंटेंसिव केअर यूनिट’ को चारों तरफ से ब्लैक कैट कमांडोज ने घेर लिया ।
तब कोई नहीं जानता था, अविनाश लोहार बचेगा या मर जायेगा ।
वह जबरदस्त सस्पेंस के क्षण थे ।
अलबत्ता ब्लैक कैट कमांडोज ने अविनाश लोहार के इर्द-गिर्द सिक्योरिटी जाल इतना जबरदस्त बिछा दिया था कि उसके नजदीक परिंदा भी पर न मार सके ।
लेकिन अविनाश लोहार की किस्मत में अभी और जिन्दा रहना लिखा था, वह बुरी तरह घायल होने के बावजूद बच गया ।
और !
यहीं से एक ऐसी हंगामाखेज कहानी ने जन्म लिया, जिसने कमाण्डर करण सक्सेना जैसे धुरंधर जासूस को भी झंझोड़ डाला ।
‘आतंकवादी’ उपन्यास शुरू हुआ था- चार बेहद सनसनीखेज हत्याओं के साथ ।
कमाण्डर करण सक्सेना और चीफ गंगाधर महंत को रात के समय एक-के-बाद एक चार हत्याओं की सूचना मिलती है ।
चारों देश के बहुत प्रसिद्ध व्यक्ति थे, जिन्हें मार डाला गया था ।
ठीक बारह बजे मुम्बई शहर में सबसे पहले शशि मुखर्जी का मर्डर हुआ । शशि मुखर्जी एक बहुत प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता था और जिस समय वो ‘फिल्मिस्तान स्टूडियो’ के अंदर नाइट शिफ्ट में शूटिंग कर रहा था, तभी किसी ने उसे शूट कर दिया ।
ठीक एक बजे दूसरा मर्डर मद्रास के होटल सनशाइन में अर्जुन मेहता का हुआ । अर्जुन मेहता, वह मद्रास का एक बड़ा उद्योगपति था और वहाँ के कारपोरेट फील्ड में उस आदमी की धाक थी ।
तीसरा मर्डर रात के दो बजे क्रिकेट खिलाड़ी विजय पटेल का कलकत्ता में हुआ । वह फ़ास्ट बॉलर था और उस समय एक फॉर्म हाउस में ‘कोका-कोला’ की विज्ञापन फिल्म की शूटिंग कर रहा था ।
चौथा और अंतिम मर्डर दिल्ली शहर में समाजवादी नेता नागेंद्र पाल का हुआ तथा ठीक एक घंटे बाद रात के तीन बजे हुआ । नागेंद्र पाल उस समय जनपथ स्थित अपनी कोठी पर था ।
एक-एक घंटे के अंतराल से देश के अलग-अलग महानगरों में वह चार मर्डर हुए ।
सबसे बड़ी बात ये थी, उन चारों मर्डर के बाद अविनाश लोहार घटनास्थल पर देखा गया था ।
वह चारों मर्डर आतंकवादी अविनाश लोहार ने अपने हाथों से किये ।
पूरे देश में तहलका मच गया ।
कमाण्डर करण सक्सेना और चीफ गंगाधर महंत भी बुरी तरह चौंके ।
भला एक ही आदमी देश के अलग-अलग महानगरों में जाकर सिर्फ एक-एक घंटे के अंतराल से चार मर्डर कैसे कर सकता था ?
असम्भव !
नामुमकिन !
एक महानगर से दूसरे महानगर तक पहुँचने के लिए ही कम-से-कम दो घंटे का समय चाहिये होता है ।
मामला सस्पेंसफुल था ।
जबरदस्त सस्पेंसफुल ।
जिसने भी उन चारों हत्याओं के बारे में सुना, उसी की खोपड़ी घूमकर रह गयी ।
आनन-फानन गंगाधर महंत ने यह पता लगाया कि आतंकवादी अविनाश लोहार क्या आल इंडिया मेडिकल हॉस्पिटल के आई.सी.यू. (इंटेसिव केअर यूनिट) से भाग निकला था ?
और !
वहाँ से उन्हें जो समाचार प्राप्त हुआ, उसने और भी बुरी तरह चौंकाकर रख दिया ।
आतंकवादी अविनाश लोहार आल इंडिया मेडिकल हॉस्पिटल में ही मौजूद था और पहले की तरह सख्त पहरे में था ।
फिर हत्यायें किसने कीं ?
घटनास्थलों पर जो देखा गया, वह कौन था ?
मामला हर पल पेचीदा बनता जा रहा था ।
कमाण्डर को वह केस सौंपा गया ।
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Thriller Kaun Jeeta Kaun Hara

Post by Masoom »

कमाण्डर करण सक्सेना सबसे पहले अविनाश लोहार से हॉस्पिटल में जाकर मिला और उससे पूछा- “वह सारा मामला क्या था ?”
“देखो कमाण्डर ! हत्यायें तो हुई हैं ।” अविनाश लोहार मुस्कुराकर बोला- “और सबसे बड़ी बात ये है कि वह चारों हत्यायें मैंने ही की हैं । कहीं कोई डुप्लीकेट मौजूद नहीं है । कहीं किसी फेस-मास्क का सहारा नहीं लिया गया है । हण्ड्रेड परसेंट कल रात चारों जगह मैं ही मौजूद था और यह बात मैं सिर्फ जबानी ही नहीं कह रहा हूँ बल्कि मैं इस बात को साबित भी कर सकता हूँ ।”
“कैसे साबित करोगे ?” कमाण्डर करण सक्सेना के चेहरे पर हैरानी का समुद्र उमड़ पड़ा ।
फिर आतंवादी अविनाश लोहार ने उस बात को साबित भी करके दिखाया ।
उसने सबसे पहले रंजीत नामक एक ब्लैक कैट कमांडो को वहाँ बुलाया, जिसकी ड्यूटी सारी रात आई.सी.यू. के बाहर ही रही थी और वह शीशे में से अविनाश लोहार को देखता रहा था ।
उस ब्लैक कैट कमांडों ने बताया कि सारी रात उसकी अविनाश लोहार के ऊपर निगाह रही थी और अविनाश लोहार वहाँ से एक क्षण के लिए भी नहीं हिला था । वह बिस्तर पर चादर से मुंह ढककर लेटा था ।
चादर से मुंह ढककर ।
अविनाश लोहार उसकी बात सुनकर मुस्कुराया ।
तब अविनाश लोहार ने एक और रहस्योद्घाटन किया कि दरअसल उस समय वह बिस्तर पर था ही नहीं । चादर के नीचे तकिये थे, सिर्फ तकिये ।
वैसे अविनाश लोहार को मुंह खोलकर सोने की आदत थी, परन्तु चूंकि उसने उस रात वहाँ से फरार होना था, इसलिए वो पिछले पंद्रह दिन से चादर में मुंह ढककर सोने की आदत डाल रहा था, ताकि पिछली रात जब वह बिस्तर से गायब रहे तो किसी को भी शक न हो कि वह गायब है । हर कोई यही समझे कि वो मुंह ढककर सो रहा है ।
ओह !
कमाण्डर करण सक्सेना का आश्चर्य और बढ़ा ।
यानि ब्लैक कैट कमांडोज को धोखा देने के लिए वह पिछले पन्द्रह दिन से तैयारी कर रहा था ।
अविनाश लोहार ने बताया, चादर के नीचे तकिये रखकर वो सीधा टॉयलेट में पहुंचा था । टॉयलेट, जहाँ खिड़की लगी हुई है और जो बाहर की तरफ खुलती है ।
उस खिड़की के सहारे-सहारे ही एक वाटर पाइप था, जो नीचे तक चला गया था ।
अविनाश लोहार खिड़की खोलकर और उसी पाइप के सहारे उतरकर वहाँ से फरार हुआ तथा उसने वह चारों हत्यायें अंजाम दीं ।
वह चारों हत्यायें कंफर्म उसी ने की हैं, यह साबित करने के लिए अविनाश लोहार ने कमाण्डर करण सक्सेना को कुछेक ऐसी बातें भी बताईं, जो सिर्फ हत्यारा ही बता सकता था ।
उसने जानबूझकर हर जगह अपने खिलाफ सबूत छोड़े थे ।
जैसे अविनाश लोहार ने बताया, फिल्म स्टार शशि मुखर्जी का जब पोस्टमार्टम होगा तो उसके पेट में से ‘सिम कार्ड’ निकलेगा । दरअसल जिस समय वह फिल्म स्टार शशि मुखर्जी की हत्या करने के लिए उसके मेकअप रूम में दाखिल हुआ था, तो शशि मुखर्जी तब किसी से सेल्युलर फोन पर बात कर रहा था । लेकिन अविनाश लोहार को देखते ही उसने चीखने के लिए हलक फाड़ा । अविनाश लोहार ने फौरन उसके गले में रिवॉल्वर की नाल घुसा दी । उसके बाद उसने शशि मुखर्जी के सेल्युलर फोन में से सिम कार्ड बाहर निकाला, उसे उसके हलक में डाला तथा फिर उसकी खोपड़ी में गोली मार दी ।
शशि मुखर्जी मर गया, परंतु उसके पेट में से सिम कार्ड बरामद होगा, यह बात पोस्टमार्टम से पहले सिर्फ हत्यारे को ही मालूम हो सकती थी ।
उसके बाद अविनाश लोहार ने मद्रास में उद्योगपति अर्जुन मेहता का जो मर्डर किया, वहाँ भी उसने अपने हत्यारे होने का बड़ा पुख्ता सबूत छोड़ा । उसने बहुत पैने चाकू की नोक से अर्जुन मेहता की पीठ पर अपने हस्ताक्षर किए ।
इसी तरह कलकत्ता में क्रिकेट खिलाड़ी विजय पटेल की हत्या करने के बाद उसने वहाँ जानबूझकर शराब के गिलास पर अपने फिंगरप्रिंट तथा होठों के निशान छोड़े ।
समाजवादी नेता नागेंद्र पाल की हत्या उसने की है, इसका भी अविनाश लोहार ने वहाँ बड़ा पुख्ता सबूत छोड़ा । हत्या करने से पहले नागेंद्र पाल और उसके बीच जो वार्ता हुई थी, वह एक टेप में रिकॉर्ड हो गई थी । अविनाश लोहार उस ऑडियो कैसिट को वहीं एक ब्रीफकेस में डाल आया ।
वह वो तमाम सबूत थे, जिसने डंके की चोट पर यह साबित होता था कि वह चारों हत्यायें अविनाश लोहार ने की है ।
वहीं हत्यारा है ।
और सबसे बड़ी बात ये थी कि अविनाश लोहार खुद कमाण्डर करण सक्सेना के सामने कबूल कर रहा था कि वो हत्यायें उसी ने की हैं ।
“लेकिन फिर भी यह केस आपके लिए कुछ आसान नहीं होगा कमाण्डर !” अविनाश लोहार बोला- “यह केस अपने आपमें बड़ा अद्भुत है । अद्भुत भी और आश्चर्य पैदा करने वाला भी । आज तक आपको ऐसे केस बहुत मिले होंगे, जिनमें आपने अपराधी को तलाश कर उसे सजा करायी होगी । यहाँ हत्यारा खुद अपने खिलाफ सबूत भी बाकायदा चांदी की तश्तरी में सजाकर पेश कर रहा है । कुछ हंसी-खेल नहीं है ।”
“क्यों ? हंसी-खेल क्यों नहीं है ?” कमाण्डर करण सक्सेना ने पूछा ।
“क्योंकि सिर्फ सबूत ही मेरे खिलाफ हैं ।” अविनाश लोहार बोला- “चश्मदीद गवाह भी मौजूद हैं, जिन्होंने खून करने के बाद मुझे जाते हुए देखा । लेकिन फिर भी आप यह साबित कैसे करेंगे कि एक ही आदमी ने अलग-अलग महानगरों में जाकर चार खून कैसे किये ? कमाण्डर कम-से-कम यह एक बात साबित करना कुछ आसान नहीं है और जब तक यह बात साबित नहीं हो जाती, तब तक मेरे खिलाफ जितने भी सबूत है, वह सब बेकार है । मुझे हत्यारा सिद्ध करने के लिए आपने सबसे पहले यह साबित करना पड़ेगा कि मैं चारों जगह एक-एक घंटे के अंतराल में पहुंचा, तो कैसे पहुंचा ?”
कमाण्डर करण सक्सेना समझ गया, अविनाश लोहार बिल्कुल ठीक कह रहा है ।
उसकी बात में दम था ।
वाकई वो एक सनसनीखेज मिशन था ।
अविनाश लोहार की तरफ से एक चुनौती थी, कमाण्डर करण सक्सेना के लिए, जिसमें उसने साबित करके दिखाना था कि अविनाश लोहार एक-एक घंटे के अंतराल से चारों महानगरों में पहुंचा तो कैसे पहुंचा ?
सबसे बड़ी बात ये थी, अविनाश लोहार को आतंकवादी गतिविधियों के ऐवज में 25 मार्च को फांसी की सजा मिलने वाली थी ।
यानि कमाण्डर करण सक्सेना ने 25 मार्च से पहले-पहले उस केस को सॉल्व करके दिखाना था ।
उधर देश की जनता में भी उस केस के प्रति और कौतूहलता बढ़ती जा रही थी ।
हर कोई यह जानने को व्याकुल था, इस बार कौन जीतेगा ?
कमाण्डर करण सक्सेना या फिर अविनाश लोहार ?
इस बार ज़बरदस्त मुकाबला था ।
दोनों बुद्धिमान थे ।
समाचार पत्रों में उस केस से संबंधित खबरें खूब बड़े-बड़े अक्षरों में छापी जा रही थीं ।
टी.वी. चैनलों पर अविनाश लोहार से संबंधित बड़े-बड़े प्रोग्राम दिखाये जा रहे थे ।
अविनाश लोहार से मिलने के बाद कमाण्डर उन चारों घटनास्थलों पर घूमा, जहाँ-जहाँ हत्यायें हुई थीं ।
घटनास्थलों पर घूमने और पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद वह सारे सबूत भी कमाण्डर करण सक्सेना को मिल गये, जिनकी बाबत अविनाश लोहार ने बताया था और जिनसे यह साबित होता था कि अविनाश लोहार ही हत्यारा है ।
कमाण्डर ने वह सारे सबूत टेस्ट कराये ।
हर सबूत अपने आपमें फुलप्रुफ था ।
बेहद मजबूत ।
फिर कमाण्डर करण सक्सेना और गंगाधर महंत के बीच एक मीटिंग हुई । उस मीटिंग में गंगाधर महंत ने एक ऐसी बात रखी, जिसने उस पूरे केस को एक नई दिशा में मोड़ दिया ।
“करण, अविनाश लोहार का पिछला इतिहास गवाह है ।” गंगाधर महंत एक-एक शब्द पर जोर देते हुए बोले- “कि उसने कभी भी खामखाह कोई काम नहीं किया । उसके द्वारा किए गये हर मामूली-से-मामूली काम के पीछे भी कोई मकसद होता है । कोई उद्देश्य होता है । करण ! तुम अभी सिर्फ यह सोच रहे हो कि अविनाश लोहार ने एक-एक घंटे के अंतराल में यह चारों हत्यायें की हैं, तो कैसे की हैं । जबकि मैं इससे आगे की बात सोच रहा हूँ ।”
“क्या ?”
“मैं सोच रहा हूँ, अविनाश लोहार ने जब यह चारों हत्यायें की हैं, तो क्यों की हैं ? नागेंद्र पाल, विजय पटेल, अर्जुन मेहता और शशि मुखर्जी से उसकी क्या दुश्मनी हो सकती है ? उसने उन्हें क्यों मारा ? इसके अलावा अगर उसे इन चारों की हत्यायें करनी ही थीं, तो इतने नाटकीय अंदाज में करने की क्या जरूरत थी ? ये वो तमाम सवाल हैं, जो पेंच पैदा कर रहे हैं । मैं समझता हूँ, यह सारा प्रपंच रचने के पीछे भी अविनाश लोहार का कोई-न-कोई उद्देश्य जरूर होगा । उसने यह चारों हत्यायें जरूर किसी-न-किसी मकसद के तहत की होंगी और अगर हमने यह सुलझाना है, तो हमें पहले उस मकसद के बारे में पता लगाना होगा ।”
कमाण्डर करण सक्सेना, गंगाधर महंत की बात सुनकर चौंक पड़ा ।
वाकई गंगाधर महंत ठीक कह रहे थे । इस बात को कमाण्डर भी खूब समझता था कि किसी भी हत्याकांड के ऊपर से तब तक पर्दा उठाना असंभव होता है, जब तक हत्या का उद्देश्य सामने न आ जाये ।
और !
अब सबसे पहले हत्या का उद्देश्य सामने आना जरूरी था ।
यह पता लगाना जरूरी था कि अविनाश लोहार ने उन चारों की हत्यायें क्यों की थीं ।
खासतौर पर एक-एक घंटे के अंतराल से उसे यह हत्यायें करने की क्या जरूरत थी ?
इन रहस्यों के ऊपर से पर्दा उठाने के लिए कमाण्डर एक बार फिर अविनाश लोहार से जाकर मिला । अविनाश लोहार को अब ऑल इंडिया मेडिकल हॉस्पिटल से दिल्ली की तिहाड़ जेल में शिफ्ट किया जा चुका था ।
कमाण्डर करण सक्सेना की इस बार अविनाश लोहार से तिहाड़ जेल में ही मुलाकात हुई ।
वहाँ अविनाश लोहार ने अपनी पिछली जिंदगी से जुड़ी ऐसी हंगामाखेज कहानी कमाण्डर करण सक्सेना को सुनाई, जिसने कमाण्डर को बुरी तरह चौंकाकर रख दिया ।
वो कहानी थी, एक बेहद साधारण और मामूली इंसान से दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी बनने की कहानी ।
एक ऐसी कहानी, जिसके कारण आतंकवादी अविनाश लोहार ने देश के इतने प्रसिद्ध चार आदमियों के खून किए और इतने नाटकीय अंदाज में किये ।
कहानी, जो पांच दोस्तों से शुरू हुई ।
वह पांच दोस्त थे ।
अर्जुन मेहता ।
विजय पटेल ।
नागेंद्र पाल ।
शशि मुखर्जी ।
और श्रीकांत चौधरी ।
श्रीकांत चौधरी उन पांचों में सबसे बड़ा था ।
कोई दस साल बड़ा ।
इसके अलावा वो उन सभी में सबसे ज्यादा बुद्धिमान भी था । उन पाँचों की दोस्ती बेमिसाल थी ।
श्रीकांत बचपन से ही उनके अंदर कुछ करने का जोश भरता रहता था ।
वह कहता- ‘हम पांचों ने इस दुनिया में कुछ खास काम करने के लिए जन्म लिया है । हमारे पास अपनी-अपनी प्रतिभा है, जोश है । हम सबने अपने-अपने क्षेत्र की बड़ी हस्तियाँ बनना है । हमने इस जोश को कम नहीं होने देना ।’
और !
उन पाँचों की मेहनत, उनकी प्रतिभा रंग लायी ।
वह सब अपने-अपने क्षेत्र की बड़ी हस्तियाँ बने ।
नागेंद्र पाल जहाँ राष्ट्रीय स्तर का लीडर बना, वहीं शशि मुखर्जी एक कामयाब फिल्म स्टार बना, विजय पटेल एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति वाला क्रिकेटर बना और अर्जुन मेहता उद्योगपति बना ।
जबकि श्रीकांत चौधरी, वह श्रीकांत चौधरी, जो उनमें सबसे ज्यादा बुद्धिमान था और उन सबके सपनों का रचयिता था, वह उन सभी में सबसे ज्यादा कामयाब आदमी निकला ।
श्रीकांत चौधरी ने ऑस्ट्रेलिया में कंप्यूटर सॉफ्टवेयर की बड़ी कंपनी लगाई और देखते-ही-देखते उसके सॉफ्टवेयर आइटम ने पूरी दुनिया में अपनी धूम मचा डाली ।
उसने बेपनाह दौलत कमायी ।
हालांकि वह चारों भी अपने-अपने क्षेत्र के बेहद कामयाब आदमी थे, परन्तु वह श्रीकांत चौधरी के सामने कहीं नहीं ठहरते थे ।
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Thriller Kaun Jeeta Kaun Hara

Post by Masoom »

जहाँ वह पांचों बड़े आदमी बने, वहीं वो अब काफी व्यस्त भी हो गये थे । और एक-दूसरे से मिलने का समय भी नहीं निकाल पाते थे ।
श्रीकांत चौधरी ने अटलांटिक महासागर में एक छोटा सा आईलैंड खरीदा और उसे खरीदने की खुशी में अपने दोस्तों को वहाँ आमंत्रित किया ।
वह पांचों दोस्त एक बार फिर सिर-से-सिर जोड़कर बैठे । इस मर्तबा श्रीकांत चौधरी ने उन सबके सामने एक बड़ा अनूठा प्रपोजल भी रखा । उसने कहा- ‘मैं एक नई कंप्यूटर सॉफ्टवेयर कंपनी लगाने जा रहा हूँ, हम पाँचों क्यों न उस सॉफ्टवेर कंपनी में पार्टनर बन जाएँ । कम-से-कम कंपनी के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स की मीटिंग के बहाने ही हमारी एक-दूसरे से मुलाकातें होती रहेंगी ।’
प्रस्ताव बेहतरीन था ।
वैसे भी श्रीकांत चौधरी की कभी किसी बात को उन्होंने नहीं टाला था ।
वह पांचों, उस सॉफ्टवेयर कंपनी में पार्टनर बन गये । उस कंपनी में साठ प्रतिशत धनराशि खुद श्रीकांत चौधरी ने लगाई, जबकि बाकी चारों दस-दस परसेंट के भागीदार बने ।
इस तरह वह पांचों, जो अभी तक सिर्फ दोस्त थे, अब व्यापार में भी हिस्सेदार बन गये ।
आतंकवादी अविनाश लोहार, जो कमाण्डर करण सक्सेना को उन पांचों दोस्तों की कहानी सुना रहा था, उसने कहानी सुनाते-सुनाते कमाण्डर करण सक्सेना का दो किरदारों से परिचय और कराया ।
पहला किरदार- प्रिया !
दूसरा किरदार- बबलू !
प्रिया, श्रीकांत चौधरी की जवान बेटी का नाम था ।
जबकि बबलू, बबलू उस पूरे कथानक का सबसे अहम किरदार था ।
अविनाश लोहार, हां अविनाश लोहार ही बबलू था । दरअसल बबलू का नाम अविनाश लोहार तो बहुत बाद में चलकर पड़ा । बहुत आगे चलकर पड़ा ।
बबलू अनाथ था ।
मां-बाप कोई नहीं थे ।
उसका सारा पालन-पोषण अनाथाश्रम में ही हुआ था ।
लेकिन कंप्यूटर बबलू का शौक था ।
बाइस-तेइस साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते बबलू कंप्यूटर का मास्टर बन चुका था । तभी बबलू के ऊपर श्रीकांत चौधरी की निगाह पड़ गई । उसने बबलू को हिंदुस्तान की अपनी एक यूनिट का मैनेजर बना दिया ।
श्रीकांत चौधरी, बबलू के टैलेंट से बहुत प्रभावित था ।
और ।
प्रिया भी प्रभावित थी ।
दोनों एक-दूसरे से बेइंतहा प्यार करने लगे ।
तभी एक घटना घटी, श्रीकांत चौधरी की मौत हो गई ।
श्रीकांत चौधरी की मौत ने उन सबको हिला डाला ।
उधर श्रीकांत चौधरी की मौत के थोड़े समय बाद ही प्रिया ने भी अर्जुन मेहता, विजय पटेल, नागेंद्र पाल और शशि मुखर्जी के सामने यह घोषणा कर दी कि वह बबलू के साथ शादी करने जा रही है ।
उसकी उस घोषणा ने उन चारों को और भी बुरी तरह झकझोरा । वह चारों जानते थे, अगर प्रिया ने बबलू से शादी कर ली, तो साठ परसेंट शेयर का मालिक होने के कारण बबलू उनकी सॉफ्टवेयर कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर बन जायेगा, उनका बॉस बन जायेगा । जबकि वह कंपनी अब इस कदर कमाई का जरिया बन चुकी थी कि उन्हें अपने-अपने काम बुरे लगने लगे थे ।
यह उन चारों में से किसी को भी बर्दाश्त न था कि एक अनाथ लड़का यूं एकाएक उनका बॉस बन जाये ।
उन चारों ने प्रिया को बहुत समझाने की कोशिश की, कि वह बबलू को भूल जाये, उससे शादी न करें ।
परंतु प्रिया के दिल-दिमाग पर पूरी तरह बबलू सवार था ।
वह सिर्फ उसी से शादी करना चाहती थी ।
वह चारों समझ गये, प्रिया बबलू से शादी किए बिना बाज नहीं आयेगी । फिर उन्होंने एक फैसला किया, बहुत खतरनाक फैसला !
उन्होंने योजना बनायी कि वह चारों मिलकर क्यों न प्रिया की हत्या कर डालें और उसके हत्या के इल्जाम में बबलू को फंसा दें ।
इस प्रकार एक ही तीर से दोनों का सफाया हो जायेगा ।
प्रिया की हत्या होने से उन्हें एक सबसे बड़ा फायदा ये था कि श्रीकांत चौधरी की दौलत भी उनके कब्जे में आ जाती ।
फिर उन्होंने वैसा ही किया । श्रीकांत चौधरी के महरौली स्थित फार्म हाउस पर प्रिया को बुलाकर उसकी हत्या कर डाली और प्रिया की हत्या के इल्जाम में बबलू को फंसा दिया ।
बबलू ने अदालत में खूब चीख-चीख कर कहा, वह निर्दोष है । उसने प्रिया को नहीं मारा ।
परंतु सारे सबूत बबलू के खिलाफ थे । उन चारों ने उसे इतनी बुरी तरह जकड़ा था कि हर सबूत बारम्बार एक ही बात कह रहा था- वह हत्यारा है !
वह प्रिया का कातिल है ।
अदालत ने बबलू को फांसी की सजा सुनाई ।
कहानी अब एक नए अध्याय की तरफ बढ़ रही थी । उस अध्याय की तरफ, जहाँ से एक मासूम बबलू के पहले अविनाश लोहार तथा फिर विश्व का एक बेहद दुर्दांत आतंकवादी बनने का सफर शुरू हुआ ।
जेल की काल-कोठरी में मासूम बबलू की मुलाकात एक खतरनाक कातिल सुलेमान लोहार से हुई ।
सुलेमान लोहार !
उसकी भी अपनी ही अलग एक कहानी थी ।
सुलेमान लोहार ने अपनी जिंदगी में कुल कितने खून किए थे, उनकी सही-सही गिनती खुद उसे भी मालूम न थी । सबसे बड़े आश्चर्य की बात ये थी कि जिस हत्या के इल्जाम में सुलेमान लोहार को फांसी की सजा होने जा रही थी, बस वही खून उसने नहीं किया था ।
सुलेमान लोहार ने जब बबलू की दास्तान उसकी जबान से सुनी, तो वह चौंके बिना न रह सका ।
“सचमुच हमारे देश का कानून बड़ा अद्भुत है ।” सुलेमान लोहार बोला- “कभी-कभी तो दिल चाहता है कि भारतीय कानून व्यवस्था का बहुत जोर से खिलखिलाकर मजाक उड़ाऊं । यह कानून निर्दोषों को फांसी पर चढ़ा देता है और जो दोषी हैं, जो मुजरिम हैं, वह समाज में खुले घूमते हैं । सड़कों पर खुले घूमते हैं । कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता, कभी कुछ नहीं । सच तो ये है, कानून आज की तारीख में सिर्फ-और-सिर्फ उन लोगों की बपौती बनकर रह गया है, जो या तो बेहद दौलतमंद हैं, या फिर कानून की कमजोरियों से अच्छी तरह वाकिफ हैं तथा धाराओं को तोड़-मरोड़ कर उन्हें अपने हक में इस्तेमाल करना जानते हैं ।”
बबलू ने चौंककर सुलेमान लोहार की तरफ देखा ।
कम-से-कम उस जैसे शातिर मुजरिम के मुंह से उसे ऐसी बातें सुनने की उम्मीद न थी ।
अगले दिन सुलेमान लोहार ने बबलू के सामने एक और बड़ा जबरदस्त धमाका किया ।
वह बोला- ‘मैंने कभी कोई अच्छा काम नहीं किया बेटा ! मेरी इच्छा है कि मैं अपने पाक परवरदिगार के दरबार में जाने से पहले कम-से-कम एक अच्छा काम जरूर करूं ।’
‘कैसा अच्छा काम ?’
‘मैं तुम्हें फांसी पर चढ़ने से बचाना चाहता हूँ बेटा ! मैंने आज तक जिंदगियां ली हैं, यह पहला मौका होगा, जब मैं किसी को जिंदगी दूंगा ।’
फिर सुलेमान लोहार ने अपने उस फैसले को कार्यान्वित भी करके दिखाया ।
उसने जेल से फरार होने की एक अद्भुत योजना तैयार की ।
योजना वाकई जबरदस्त थी ।
इसके अलावा उसने बबलू का नामकरण भी किया ।
अविनाश !
हाँ ! उसने बबलू का यही नाम रखा । उसने कहा- ‘मैंने तुम्हारा यह नाम बहुत सोच समझ कर रखा है बेटा ! मैं जानता हूँ, तुम्हारी अब आइन्दा जिन्दगी पर उन चारों की बहुत गहरी छाप होगी । इसलिए तुम्हारा अविनाश नाम भी मैंने उन चारों के नाम के प्रथम अक्षर को मिला कर रखा ।’
सचमुच, अविनाश नाम उन चारों के नाम के प्रथम अक्षर को मिलाकर ही रखा गया था ।
अर्जुन मेहता ।
विजय पटेल ।
नागेंद्र पाल ।
शशि मुखर्जी ।
अपने ‘अविनाश’ नाम के आगे लोहार बबलू ने खुद लगा लिया । लोहार, यह सुलेमान लोहार का सरनेम था और वह सुलेमान लोहार को ‘बाबा’ कहता था । फिर सुलेमान लोहार ने उसका नामकरण कर एक पिता के दायित्व का भी निर्वहन किया था, इसलिए अविनाश का भी यह फर्ज बन जाता था कि वह उसे पिता जैसा सम्मान दे ।
इस तरह वो अविनाश से ‘अविनाश लोहार’ बन गया ।
फिर आयी वह रात, जिस रात वह दोनों अपनी हंगामाखेज योजना की बदौलत जेल से फरार हुए ।
जेल से भागते समय पूरी तरह जेल में हंगामा मच गया ।
गार्डों ने उन दोनों पर धुआंधार गोलियां चलाईं । अविनाश लोहार को बचाने की कोशिश में काफी सारी गोलियां सुलेमान लोहार को लग गयीं ।
परन्तु फिर भी वह जेल से भाग निकले ।
बीच रास्ते में ही सुलेमान ने अविनाश की गोद में दम तोड़ दिया ।
“बाबा !” अविनाश लोहार, सुलेमान को बुरी तरह झंझोड़ता हुआ बोला- “तुमने आज सचमुच मेरी जिंदगी बचाई है । मैं तुम्हारा यह अहसान आखिर किस तरह चुकाऊंगा ? किस तरह ?”
दम तोड़ते हुए हंसा सुलेमान लोहार ।
उसकी हंसी में दर्द था, पीड़ा थी ।
“पगले ! ब....बाबा भी कहता है मुझे और...और अहसान की बात भी करता है ।”
अविनाश लोहार रो पड़ा ।
“ज...जानता है, ब...बाबा किसे कहते हैं ? बाबा ज...जन्म देने वाले को कहते हैं रे ! क...क्या मुझे बाबा कहकर त....तूने मेरे ऊपर क...कुछ कम बड़ा अहसान किया है ? फ...फिर भी मेरे लिए अ....अगर कुछ करना चाहता है बेटा, त...तो एक काम करना ।”
“बोलो बाबा, तुम जो कहोगे, उसे यह अविनाश करेगा । अपने बाबा का हुक्म मानकर करेगा ।”
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Post Reply