Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

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Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

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“अब इन्तजार किस बात का है? तूने मेरे निकट आने का दुस्साहस कर लिया हैं तो अब शुरू हो जा......" यह कहकर तबूत ने अपना हाथ उसके बिल्कुल करीब कर दिया ।सोनेता ने किसी मदमस्म की तरह उसकी खूबसूरत उंगली पर जोर से फन मारा....और उसकी उंगली में दो दांत गाड़ दिये ।बस, ये चन्द लम्हें ही उसे जैसे मिलन के मिले..... उसने जब पीछे हटकर तबूत के हाथ को दोबारा डसना चाहा तो वह ऐसा नहीं कर सका ।वो झूम-सा गया। उसका वार खाली गया। वह कुछेक क्षण ईटों के फर्श पर लोटता नजर आया और अपनी जान गंवा बैठा।तबूह ने उसे बड़ी नफरत व तिरस्कार से देखा..फिर बड़ी गरिमा पूर्ण अदा के साथ उठी। उसने अपनी उंगली, जहां सोनेता ने दांत मारे थे.....अपने मुंह में ले ली और फिर कमर लहराती, अदा के साथ चलती हुई कमरे से निकल गई ।तबूह के कमरे से निकलते ही वह चौथा दरवाजा भी बन्द हो गया ।
……………………………………
पीले लिबास वाली औरत उस बच्ची को गोद में उठाये, सीढ़ियां चढ़ती एक दरवाजे पर पहुंची। फिर उसने बच्ची को एक हाथ में सम्भालकर दरवाजे पर जोर से एक हाथ मारा |कुछ ही क्षणों में वह दरवाजा खुल गया। पीले लिबास वाली औरत कमरे में दाखिला हुई। यह एक छोटा कमरा था, मगर इस कमरे में भी चार दरवाजे थे। इस कमरे की दीवारे भी सफेद थीं.....और छत सुर्ख । फर्श लाल ईटों का था। कमरे में मध्य एक चौकी पड़ी हुई थी।जिस औरत ने दरवाजा खोला था, उसने भी पीले कपड़े पहन रखे थे, लेकिन यह औरत जरा प्रौढ़ावस्था की थी।"नैनी, आ गई तू......? लें आई बरहा को...?" उस प्रौढ़ा ने पूछा।

हां, ले आई हूं दरसी! सो रही हैं... नैनी ने बताया ।

"चौकी पर लिटा दें......।" प्रौढ़ा दरसी ने कहा ।

नैनी आगे बढ़ी। उसने बच्ची, जिसका नाम शायद 'बरहा' था.....को कमरे के मध्य में रखी चौकी पर लिटाया और फिर वापिस दरवाजे की तरफ पलट गई। प्रौढ़ा दरसी अभी दरवाजे पर ही खड़ी थी, उसे शायद नैनी के लौटने की इन्तजार थी नैनी ने उसके निकट पहुंचकर कहा-"अच्छा, चलती हूं। तुम दरवाजा अच्छी तरह बन्द कर लो...... ।

'"ठीक हैं..... ।'' प्रौढ़ा ने मुस्कुराकर कहा और नैनी के जाने के बाद व दरवजा अन्दर से बन्द करने के बाद बरहा के पास पहुंची। उसने बरहा के चेहरे से काली चादर हटाई। वह मासूम बच्ची बड़े मजे से सो रही थी। नींद में वह इतनी प्यारी इतनी सुन्दर लग रही थी कि दरसी ने उसे बेअख्तियार चूम लिया ।यूं तो इस प्रौढ़ा दरसी ने अब तक कई बच्चियों की परवरिश की थी और जाने वाली बच्चियां एक से बढ़कर एक होती थी। बरहा इतनी प्यारी थी कि उसके चेहरे पर नजर डालकर बन्दा उस मोहिनी सूरत के जाल में फंस जाता था। उस पर से नजर हटाना मुश्किल हो जाता था ।

बरहा को जब पहली बार उसकी गोद में डाला गया था, तो उसे मंत्र-मुग्ध-सी देखती रह गई थी। उसे बताया गया था कि यह 'परमान' का चुनाव हैं, इसका खास ख्याल रखा जाए। परमान' ही था.......जिसने अपनी रहस्यामय शक्तियों 'बरहा' का पता चलाया थाप और फिर उसी ने देवांग को बच्ची को हासिल करने के लिए रवाना किया था |चमकते सिर बाले देवांग ने रोशन राय को उसके बाग के रास्ते पर रोक लिया था। एक तो पौत्री की पैदाइश......वह भी एक ऐसी अशुभ व खतरनाक पौत्री की, जो पैदा होते ही हवेली को सुनसान कर दे......हवेली में हर तरफ सांपों की फुफकार सुनाई दे। एक सांप तो पहले से ही रोशन राय के पीछे पड़ा हुआ था.....अब अपनी इस पौत्री को हवेली में रखकर अपने आपको तबाह नहीं करना चाहता था रोशन राय को वैसे भी बेटियों-पौत्रियों से नफरत थी, फिर यहां तो उसे उसे अपने बेटे की विवाहिता नमीरा भी पसन्द नहीं थी।

नमीरा को उसने समीर की वजह से ही हवेली में पनाह दे रखी थी। नमीरा उसकी आंखों में खटकती रहती थी और वह नमीरा से छुटकारा पाने के मन्सूबे बनाता रहता था कि कुदरत ने अपना खेल खेला था ।देवांग की भविष्यवाणी ने उसे राह दिखाई थी और उसका सारा मसला ही हल कर दिया था। उसने पौत्री के साथ-साथ मनहूस बहू से भी निजात पा ली थी।इस नवजात बच्ची का नाम बाद में परमान ने ही बरहा रखा था, जिसे एक ऊंट पर डालकर रेगिस्तान में हांक दिया गया था। तब कुछ दूर तक तो रोशन राय का वह वफादार जो घोड़े पर सवार था.......उस ऊंट के पीछे-पीछे गया, फिर जब उसने देखा कि वह ऊंट अपनी दुम में बंधी घन्टी की आवाज पर नाक की सीध में दौड़ा चला जाता हैं तो उसने अपना घोड़ा वापसी के लिए मोड़ लिया था |ऊंट पर पालना बंधा था और बिलख कर रोई थी....पर फिर रोते-रोते उसे नींद आ गई थी।

ऊंट रेगिस्तान में सफर करता रहा। यहां तक कि सुबह हो गई। सूरज अभी नहीं निकला था...लेकिन उजाला अच्छा-खासा फैल गया था |ऊंट ने अब दौडन बन्द कर दिया था। उसकी दुम में बंधी घण्टी खुलकर कहीं गिर गई थी। ऊंट तेज-तेज चला जा रहा था कि अचानक एक घोड़े पर सवार हूरा प्रगट हुआ। इस काली चमड़ी वाले वहशी ने ऊंट की नकेल पकड़कर उसे रोका......पालने में से बरहा को निकाला और फिर घोड़े पर सवार होकर रेत उड़ाता हुआ, पश्चिम दिशा की तरफ रवाना हो गया ।अभी सूरज की पहली किरण ही फूटी थी कि हूरा के सामने एक घना जंगल नमुदार हुआ, वो उस जंगल में प्रवेश कर गया। फिर जंगल के घुमाबदार रास्तों पर घोड़ा दौड़ाता हुआ सुर्ख ईटों से बनी एक ऊंची मायावी इमारत के सामने पहुंच गया। इस किलेनुमा इमारत के भारी दरवाजे के सामने पहुंचकर वह घोड़े से उतरा और झूमता हुआ दरवाजे की तरफ बढ़ा । मैं हूं हूर..... ।”

दरवाजा एकदम खुल गया। इस किलेनुमा इमारत के अन्दर छोटे-बड़े सुर्ख मकान बने हुए थे। इन मकानों के तमाम दरवाजे सफेद थे।हूरा सबसे बड़े एक हवेलीनुमा मकान के सामने आकर रूका था। इस हवेली की दीवारें सफेद व दरवाजे सुर्ख थे।यह इस मायावी लोक के परमान का महल था।

"मैं हूं हूरा......।'' उस अफ्रीका के हब्शीनुमा काले देव ने दरवाजे पर खड़े दरबान को देखकर नारा लगाया।

"जानता हूं....जानता हूं....।" दरबान बेपरवाही से बोला-"काम बताओ.....।''

"जानता है तो फिर यहां खड़ा क्यों हैं? अन्दर जा और परमान को बता कि कौन आया हैं। जरा जल्दी कर, मेरे पास वक्त कम हैं..... ।" हूरा ने उसे डपटकर कहा ।
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Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

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“जानता हूं...जानता हूं....जरा छुरी तले दम तो ले.....।" दरबान ने बदस्तूर लापरवाही से कहा और आराम से चलता हुआ दरवाजे पर पहुंचा और दरवाजा खोलकर अन्दर चला गया ।दरबान के अन्दर जाने के बाद नन्ही बरहा कसमसाई, तब हूरा ने उसके चेहरे पर से कपड़ा हटा दिया। उसने एक उचटती-सी नजर बच्ची पर डाली...वह फिर उसे देखता ही रह गया । उस पर से अपनी नजर हटा नहीं सका। पत्थर दिल हूरा भी बच्ची के मासूम हुस्न से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका था ।बच्ची किसी फूल की तरह नजर आ रही थी। हूरा ने बेअख्तिायार ही अपनी काली और मोटी उंगली से बच्ची के गाल को छुआ।बच्ची एकदम चौंककर रोने लगी

तभी दरबान ने अन्दर से बाहर आकर आवाज लगाई-"जाओ.....हूरा....।"हूरा जल्दी से दरवाजे में दाखिल होकर सीढ़ियां उतरने लगा। ये सीढ़ियां जहां खत्म होती थी, वहां कुछ फासले पर एक कमरा बना हुआ था। इस कमरे का दरवाजा खुला था और जहां तक सूरज की रोशनी जा रही थी.....वहां तक सफेद संगमरमर का फर्श नजर आ रहा था। आगे अंधेरा था ।इस दरवाजे पर एक काला नाग कुण्डली मारे बैठा था। हूरा को निकट आते देखकर उस काले नाग ने अपना फन उठाया और वापिस पलटकर अन्धेरे कमरे में चला गया ।इस दरवाजे पर एक काल नाक कुण्डली मारे बैठा था। हुरा को निकट आते देखकर उस काले नाग ने अपना फन उठाया और वापिस पलटकर अन्धेरे कमरे में चला गया |कुछ क्षणों बाद ही अन्दर से तबूह नमुदार हुई। सांवली रंगत.....कमर पर नीचे तक लहराते बाल...आकर्षक.....नशीली चाल...वह दरवाजे पर आकर रूक गई। हूरा ने हसरत भरी गहरी नजरों से इस मदमति यौवन के ठाठे मारते समुद्र को देखा। तबूह ने इन नजरों को महसूस कर दिया, लेकिन अनजान बन गई। उसने एक आये-खास से अपने हाथ ऊपर उठाये....वह बोली कुछ नहीं हूरा ने बच्ची को उसके हाथों में दे दिया और बोला-"कैसी हो तबूह......?"

तबूह को उसकी यह बेतकल्लुफी बुरी लगी। उसने जलकर कहा-"तेरी आंखें खराब हो गई हैं क्या...?"

"नहीं तो.....।" हरा उसकी बात नहीं समझ सका। बड़ी मासूमियत से बोला।"फिर मैं क्या तुझे भली-चंगी नजर नहीं आ रही..."

तबूह ने उसे घूरा ।"आ तो रही हैं........क्यों नजर नहीं आ रही है.......।

''बस तो फिर जा...अब तेरा काम खत्म हुआ। परमान का यही हुक्म हैं तेरे लिए........।"

तबूह ने तीखे लहजे में कहा।

"ठीक हैं.......चलता हूं मैं........।" हूरा ने कहा व पलट लिया ।उसके जाने के बाद तबूह ने बरहा पर नजर डाली और 'हाय' कहकर उसे अपने सीने से चिपटा लिया व फिर जैसे अपने आपसे बोली-“वाह परमान! तेरा चुनाव लाजवाब हैं............ ।'"वह बरहा को अन्दर ले गई । उसके जाने के बाद एक काला नाग प्रकट हुआ और दरवाजे पर कुण्डली मारकर बैठ गया और अपना फन उठाकर दायें-बायें देखने लगा, जैसे निगरानी कर रहा हो रहस्यमय शक्तियों के मालिक परमान को कुछेक लोगों के सिवाय किसी ने नहीं देखा था। वह अन्धेरों का वासी था। अन्धेरों में गुम रहता था। तबूह ने परमान के हजूर में नन्हीं बरहा को पेश किया.....वहां से हुक्म मिला कि 'बरहा'को दरसी के हवाले कर दो.....वही उसकी परवरिश करेगी और तुम उसे दूध पिलाओगी |इस हुक्म के साथ ही बच्ची का नाम बरहा रख दिया गया ।इस तरह प्रौढ़ा दरसी, बरहा की सरपरस्त बन गई और तबूह, दाई मां... नैनी के जाने के बाद दरसी ने बरहा के कपड़े बदले, उसे साफ-सुथरा करके दोबारा चौकी पर लिटा दिया। बारहा अब दरसी को पहचानने लगी थी। उसने अपनी अपनी चमकती आंखों से दरसी को देखा और हाथ-पांव चलाने लगी। दरसी चौकी पर बैठकर उसे प्यार भरी नजरों से देखने लगी।अचानक दक्षिण दरवाजे पर एक खटका-सा हुआ। दरसी ने फौरन दरवाजे की तरफ देखा। एक फुफकार सुनाई दी। इस फुफकार को सुनकर दरसी सहम गई। वह धीरे-धीरे चलती दरवाजे के करीब आई वे बड़े आदर के साथ बोली-"अभी नहीं, अभी तुम चले जाओ। परमान के हुक्म का इन्तजार करों...... ।"

दरवाजे पर एक हल्का-सा खटका हुआ....जैसे किसी सांप ने अपना फन दरवाजे में मारा हो। उसके बाद फुफकारने की आवाज आई और फिर कुछेक क्षणों बाद सन्नाटा छा गया ।प्रौढ़ा दरसी खतरा टल जाने के बाद दौड़ती हुई, नन्हीं बरहा के पास आई और उससे खेलने लगी।।
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समीर राय अभी हस्पताल ही में था ।उसे सुकूनबख्श दवाएं दी जा रही थीं। उससे उसे इतना फायदा हुआ कि वह अपनी दुनिया में लौट आया, लेकिन उसे अब बोलना छोड़ दिया था। वह बिल्कुल खामोश बैठा शून्य में घूरता रहता। कुछ दिन हस्पतला में रखकर डॉक्टरों ने उसे घर ले जाने का मशवरा दिया, ताकि वह घर में रहकर अपनी सामान्य जिन्दगी की तरफ लौट जाए ।रोशन राय और नफीसा बेगम अपने बेटे को हवेली में ले आए। उसे मुम्बई के बंगले में अकेला नहीं छोड़ा जा सकता था और नफीसा बेगम वहां रहने के लिए तैयार नहीं थी।हवेली में, समीर राय जेसे अपने कमरे में कैद होकर रह गया था। वह अपने कमरे से निकलता ही नहीं था। मां ही उसके कमरे के चक्कर लगाती रहती थी।

उसका खाना-पीना सब कमरे में ही था। समीर राय अपनी मां से भी सिर्फ 'सलाम' कहकर किसी कोने मे जा बैठता.....और अपनी मां को अजनबी व खाली-खाली नजरों से देखता रहता।उसने नमीरा की लाश पाकर भी अपनी मां से किसी प्रकार की शिकायत करने की कोशिश नहीं की थी। मां के साथ यह छूट भी रखी थी कि वह उन्हें 'सलाम' कह दिया करता था.....और उन्हें अपने कमरे में बर्दाश्त भी कर लेता था, लेकिन बाप के साथ उसकी बोल-चाल बन्द थी। शुरू-शुरू में रोशनी राय एक-दो बार उसके कमरे में आया था, तो समीर राय, मुंह फेरकर अपने कमरे से ही निकल गया था और तब तक वापिस नहीं आया था, जब तक कि उसे यकीन न हो गया कि रोशन उसके कमरे से जा चुका है |बेटे का रवैया देखकर रोशन राय ने खुद ही उसके कमरे में आना छोड़ दिया था ।नफीसा बेगम.....अनुरोध...विनय करके समीर को हवेली के बाग में ले जाती थी। वह भी मां की जिद्द पर चला ता जाता था, लेकिन लॉन चेयर पर बैठा नीले आकाश को ही देखता रहता था। ऐसे वक्त में नफीसा बेगम इस बात का ख्याल रखती थी कि रोशन राय बाग में न आ निकले ।रोशन राय को अपने धन्धों से ही फुर्सत न थी, फिर आजकल तो वह नमीरा को कत्ल का इन्तकाम लेने की फिराक में था। नमीरा की कालीन में लिपटी हुई लाश उसकी आन का सवाल बन गई थी।रोशन राय कुछ ऐसे ही मिलाज का व्यक्ति था। यह वही नमीरा थी, जिसे उसने इसलिये वीरान रेगिस्तान में छुडवा दिया था कि वह भूखी-प्यासी चल बसे और रेत के टीले उसकी कब्र बन जाये। उसने अपने हाथा नमीरा की मौत का इन्तजाम किया था, लेकिन वही नमीरा जब उसके लिए कालीन में लिपटी लाश की सूरत में भेजी गई तो उसका इन्तकाम का जज्बा एकाएक भड़क उठा नमीरा उसकी बहू थी और उसके दुश्मन न उसे कत्ल कर दिया था...सो उसके कत्ल का बदला तो उसके लिए बहुत जरूरी हो गया था। वह अब हर वक्त इन्तकाम की ही आग में जलता रहता था....और सोचता रहता था कि राजा सलीम से नमीरा के कत्ल का इन्तकाम किस तरह लिया जाए?सोचते-सोचते अंतत: वह इसी निष्कर्ष पर पहुंचा कि राजा सलीम के बेटे का उपहरण करवा लिया जाये। इससे पहले वह राजा सलीम के बेटे की बहू को डाकुओं से खरीद चुका था और उसे कत्ल करवा चुका था। अब उसने राजा सलीम के बेटे नसीम को किडनैप कराने का मन्सूबा बनाया |

रोशन राय के हाथ बहुत लम्बे थे। उसके हाथ मुम्बई तक फैले हुए थे। मुम्बई के अण्डरवर्ल्ड और गैंगस्टरों तक पहुच थी उसकी। रौली और होली हालांकि बड़े काम के आदमी थे.....लेकिन रोशन राय सिर्फ उन्ही पर ही निर्भर नहीं रहता था। उसने इस बार रौली और होली को हवा भी न लगने दी और अपने मुम्बई के भाड़े के जरायमपेशा लोगों ने नसीम का अपहरण करा लिया ।यह अपहरण किसी फिरौती के लिये नहीं था, बल्कि इन्तकाम की खातिर था |जैसे को तैसा कर दिखाते हुए रोशन राय ने अपहरण के दो दिन बाद ही उसी कालीन में सलीम की लाश लिपटा कर उसकी हवेली के बड़े दरवाजे रखवा दी और मोबाइल पर वैसा ही जहरीला कहकहा राजा सलीम को सुना दिया जैसा उसने नमीरा की लाश भेजकर सुनाया था |रोशन राय के दिल में जैसे ठण्ड पड़ गई थी।वह आज बहुत खुश था। इसी खुशी में झूमता हुआ वह समीर राय के कमरे में चला गया था। नफीसा बेगम उस वक्त कमरे में मौजूद थी। वह अपने पति को बेटे के कमरे में पाकर हैरान रह गई। समीर राय की नजरे भी जैसे अपने बाप पर पड़ी, वह खाना छोड़कर उठ गया....और दरवाजे की तरफ बढ़ा रोशन राय एकदम उसके सामने आ गया और कहकहा लगाकर बोली-"बस बेटा, एक मिनट...... एक खुशी की खबर सुनते जाओ......।"

समीर राय फिर भी न रूका तो रोशन राय ने उसके दोनों हाथ पकड़ लिया जल्दी से बोला-“मैंने नमीरा का इन्तकाम ले लिया हैं। मैंने नमीरा के कातिल के बेटे को कत्ल करवा कर उसी कालीन में उसकी लाश भिजवा दी है। बेटा, अब तो तुम खुश हो ना....... । इस खबर का समीर पर कोई असर न हुआ। रोशन राय ने सोचा था कि शायद वह खुश हो जाएगा और यह सुनकर उससे कम से कम बोलना तो शुरू कर ही देगा। पर यह खबर सुनकर समीर राय ने एक झटके से अपने हाथ छुड़ाये और कमरे से बाहर निकल गया ।हैरान परेशान सा राशन राय नफीसा बेगम की तरफ देखने लगा नफीसा बेगम ने भी उसके इस 'कारनामे' पर कोई तवज्जों नहीं दी। वह भी खामोशी के कमरे से निकल गई ।रोशन राय कमरे में अकेला खड़ा रह गया।

वही हॉलनुमा कमरा ।जिसकी दीवारों में बेशुमार ताख बने हुए थे और इन ताखों में ब्रेशुमार छोटे-छोटे बुत सजे हुए थे। कमरे के ठीक मध्य में काली चादर पर नन्हीं बरहा बैठी थी। उसके कुछ फासले पर दो-चार छोटे-बड़े सांप इधर-उधर लहरा रहे थे ।...... लेकिन उनमें से कोई बच्ची के निकट आने की हिम्मत नहीं कर रहा था नन्ही बरहा बैठी रो रही थी। वह भूखी थी शायद और फिर जब वह रो-रो कर हलकान होने लगी तो उस बड़े कमरे के चारो दरवाजे एकदम खुले और उन दरबाजों से पहले की तरह अचानक तेज हवा अन्दर आई इस हवा में एक महक-सी रची थी....एक खास महक नन्ही बरहा रोते-रोते एकदम चुप हो गई।

फिर हवा एकदम रूक गई। बरहा फिर रोने लगी, तब एकाएक तीन दरवाजे धाड़-धाड़ बन्द हुई और चौथे दरवाजे से तबूह ने अन्दर प्रवेश किया। उसके हाथ में एक छोटी-सी काली ट्रे थी। ट्रे में एक सफेद प्याजा, एक प्लेट से ढका हुआ रखा था ।तबूह अपनी विशिष्ट मदमाती चाल से चलती हुई नन्ही बरहा के पास पहुंची। ट्रे काली चादर पर रखी। तबूह को देखकर बच्ची एकदम चुप हो गई और खुशी से अपने हाथ हिलाने लगी। बरहा की आंखे ट्रे पर जमी हुई थी। उसका बस नहीं चल रहा था कि किस तरह वह इस प्याले पर टूटे पड़े।"सब्र-बरहा-सब.....।' तबूह ने मुस्कुराते हुए उसे अपनी गोद में ले लिया वह सफेद प्याला ट्रे से उठाकर उसके मुंह से लगा दिया |प्याले में कोई शर्बत जैसी चीज थी। बरहा वह शर्बत जल्दी-जल्दी बड़ी बेकरारी से पी गई। इस शर्बत को पीते ही उसे पर नशा-सा छा गया और वह तबूह की गोद में बैठे-बैठे ही सो गई ।बरहा के सोते ही नैनी कमरे में दाखिला हुई। उसने बरहा को तबूत की गोद से उठाया और कन्धे से लगाकर एक बन्द दरवाजे की तरफ बढ़ी। जब वह दरवाजे के करीब पहुंची तो वह दरवाजा खुद-ब-खुद खुल गया और नेनी कमरे से निकल गइ नैनी के कमरे से निकलते ही दरवाजा खटाक से दोबारा बन्द हो गया।
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आज की रात रोशन राय पर बहुत भारी थी।उसका दिल शाम ही से उचाट था। इसलिए अपने दोस्तों में बैठकर ताश खेलता रहा था। पीने-पिलाने का चक्कर भी लचाया था। रात को 'मुजरे' की महफिल भी जताई थी, लेकिन दिल था कि किसी तौर पर बहलता ही नहीं था।दिल पर एक बोझ-सा था। यह नामालूम बोझ उसे एकदम उदास कर देता था ।एक तरफ तो उसके दिल पर उदासी छाई थी..... दूसरी तरफ वह एक दूसरी उलझन का शिकार था। बैठे-बैठे अचानक ही उसे अपनी टांग पर कोई रस्सी-सी लिपटती और रेंगती महसूस होती थी। उसे फौरन सांप का ख्याल आता। वह घबराकर अपनी टांग उठा लेता और उसके दोस्त उसकी इस हरकत पर हैरान होकर उसे देखने लगते ।“क्या हुआ......कोई पूछता।"ओह......कुछ नहीं साई! टांग पर कोई चीज चलती हुई महसूस हुई...'"रोशन राय जवाब देता |बात आई-गई हो जाती, लेकिन रोशन राय अच्छी तहर जानता था कि आज कोई गड़बड़ जरूर है। उसका दिल हौल खाने लगता था । जाने क्या होने वाला था |आज की रात उस पर बहुत भारी थी।

उस बड़े हॉलनुमा कमरे के चारों दरवाजे एक साथ खुले ।हवा के तेज झक्कड़ अन्दर दाखिल हुए। इस तेज हवा में एक महक रची-बसी थी। एक अजीव महक और इस बड़े कमरे में इस वक्त कोई भी नहीं था। हवा के बन्द होने के बाद एक दरवाजे से एक शख्स बड़े ही शहाना अन्दाज मे चलता हुआ अन्दर आया। उसने एक सुनहरी सांप कुण्डली मारे बैठा था। इस सांप की आंखों में हीरों जैसी चमक थी और वह उसके सिर पर कुछ इस अंदाज से लिपटा हुआ था कि वह सिर का ताज मालूम होता था ।इस सुनहरी सांप के अलावा....एक काले रंग का चमकदार सांप उसके गले में थी पड़ा हुआ था, उसके नंगे पांव छोटे व खूबसूत थे ।इस सुनहरी सांप के अलावा....एक काले रंग का चमकदार सांप उसके गले में भी पड़ा हुआ था, उसके नंगे पांव छोटे व खूबसूरत थे ।इस अनूठे शख्स के अन्दर अपने के बाद उसी दरवाजे से उसके पीछे चलती एक खूबसूरत रूपसी अन्दर दाखिल हुई। यह रूपसी भी तड़क-भड़क लिबास में थी। इन दोनों के भीतर आते ही कमरे के तीन दरवाजे एक के बाद एक बन्द हो गये। बस एक दरवाजा ही खुला रह गया था।

वो शख्स बड़ी गरिमा के साथ चलता हुआ......दीवारों में बने ताखों की तरफ बढ़ा । वह इन ताखों में रखी मूर्तियों को बड़ी दिलचस्पी से देखता हुआ आगे बढ़ रहा था।फिर वह एक ताख के सामने रूक गया ।उस शख्स ने ताख में रखी मूर्ति को उठाया। वह किसी नौजवान का बुत था। उसने इस बुत को दो-चार कदम आगे बढ़कर एक दूसरे ताख में रख दिया। इस ताख में पहले ही एक नंदयवुती का बुत मौजूद था।और अब पूरे कमरे में यह इकलौता ताख था, जिसमें अब दो मूर्तियां थी। परमान....! यह तूने बहुत अच्छा किया... तेरे इस फैसले से बहुत खुश हूं...।'' उस रूपसी ने प्रसन्नता दर्शाई।लेकिन रहस्यमयी ताकतों का मालिक, इस मायावी लोक के राजा परमान ने उस रूपसी की बात को अनसुना कर दिया। उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई थी। वह अपने काम में मगन रहा। उसने आगे बढ़कर इसी तरह एक दो मूर्तियों के आले बदल डाले। अभी वह इस काम में व्यस्त था कि अचानक तबूह इस कमरे में दाखिल हुई।

"क्या हैं..." तबूह को देखकर परमान के साथ वाली रूपसी के माथे पर एकदम बल पड़ गये। उसे तबूत का आना बहुत नागवार गुजरा। उसने उसे देखते ही अपनी अप्रसन्नता जाहिर कर दी ।परमान, जो इस वक्त एक ताख से बूत उठा रहा था, एकदम रूक गया। उसने गर्दन घुमाकर पहले अपने साथ आने वाली रूपसी को देखा और फिर तबूत पर नजर डाली ।

"रानी मलायका.... ।” परमान के अन्दाल में सांप की-सा फुफकार थी---तबूह को आने दोऋऋऋ'आ तो गई हैं, और कैसी आएगी....।”

रानी मलायका ने शुष्क स्वर में जवा दिया। हां, तबूह.....

इस वक्त तुम्हें यहां क्या चीज ने आई? तुम जानती हो कि यह वक्त फैसले का हैं......

''जानती हूं, परमान.....क्षमाप्राथी हूं...'तबूह बड़े आदर से बोली।“

जाओ, माफ किया..... ।” राजा परमान ने उसे गहरी नजरो से देखा।

एक 'फैसला' करवाना हैं परमान...।" तबूह की हिम्मत बढ़ी।

अब तेरा इतना हौसला हो गया कि तू अपनी मर्जी के फैसले करवाने के लिए अन्दर आने लगी...... ।' रानी मलायका गुस्से से बाली।

"रानी मलायका.....।" रहस्यमयी ताकतों के मालिक परमान न उसे कठोर नजरों से देखा-" तुम खामोश रहो......।

"रानी मलायका के सामने तबूह की भला औकात ही क्या थी। वह महज एक राज-नर्तकी थी। सो, परमान की चेतावनी ने रानी के दिल में आग लगा दी । वह चुप हो गई कि परमान के सामने कुछ और बोलना, उसे किसी मुसीबत में भी डाल सकता था.........लेकिन उसने दिल-ही दिल में फैसला कर लिया कि वह इस 'नाचने वाली को अपने इस अपमान का मजा जरूर चखा कर रहेगी।

हां, तबूह बोलो...... ।” परमान उसने सम्बोधित हुआ।

“परमान...सलाओं ने मुझे परेशान कर रखा है। उसके आंसू अब मुझसे नहीं देख जाते, परमान तू उसे इजाजत क्यों नही दे देता.....।" तबूह ने अपनी समस्या सामने रखी।

"इज्जत देना या न देना परमान के अधिकार में हैं....तू हद से न बढ़......।' परमान का सुर बदल गया।

"मैं क्षमा चाहती हूं परमान! मेरा मतलब यह न था.... ।''

"तेरा जो मतलब भी होगा......बात संक्षेप में कर. मेरे पास वक्त कम है।"परमान बदस्तू शुष्क स्वर में बोला ।

“सलाओ के साथ एक 'इन्सान' ने बहुत जुल्म किया है |काफी समय पहले 'उसने' उसकी जोड़ी को मार दिया था। सलाओ अपना प्रतिशोध चाहता हैं। वह रो-रोकर हलकान हो चुका है। उसे इत्नकाम की इजाजत दी जाये.....।" तबूह ने बड़ी नम्रता के साथ अपनी बात पूरी की ।

"अच्छा.....।" यह कहकर परमान तेजी से चलता हुआ एक 'ताख' के पास पहुंचा। यहां अधेड़ उम्र की मूर्ति थी। उसने इस मूर्ति को अपने हाथ में उठाकर देखा और फिर उससे सम्बोधित होते हुए बोला-"सलाओ, तुझे इजाजत हैं.....तू जिस तरह चाहे उससे' इन्तकाल ले। अब तक हमने तुझे रोका हुआ था, तो उसके पीछे एक नीतिगत रहस्य था और वस बादशाह ही जानता है। जा, अब तू आजाद हैं.....।"उसने ‘सलाओं का बुत ताख में रखा और तबूत की तरफ रूख करके बोला –"तबूह अब तुम खुश हो.....

''बेहद खुश.....।" तबूह वाकई बहुत खुश हो गई थी और खुशी उसके चेहरे से झलक रही थी। जो फिर.सलाओ को खुशखबरी सुना और मुझे मेरा काम करने दे....

"तबूह फौरन आगे बढ़ी, उसने परमान के दोनों हाथ पकड़कर अपनी आंखों से लगाये और पलटकर दरवाजे की तरफ चली गई।रानी मलायका उसे ईर्ष्याभरी नजरों से देखने लगी।

"क्या हुआ....," परमान ने उसकी आंखों में देखा ।

"मैं देख रही हूं परमान कि राजमहल में नाचने वाली यह राजनर्तकी...तेरे दिल पर कुछ ज्यादा ही छाती जा रही है।

"रानी मलायका....क्या तू नहीं जानती कि वह महज राजनर्तकी ही नहीं, बल्कि किस कद काम की औरत हैं...... ।'"

हां, मैं अच्छी तरह जानती हूं कि वह राजा परमान के कौन-कौन से काम करती हैं...।" रानी का लहजा बड़ा अर्थपूर्ण था।

"रानी मलायका....वह हमारी एक मामूली सेविका हैं....और तुम हमारी रानी हो। तुम्हारा और उसका भला क्या मुकाबला....।" परमान ने उसके दिल पर महरम रखते हुए कहा।

"राजा परमान.....वह सेविका ही रहेगी.....? रानी ने उसे तिरछी नजरों से देखा ।

बेशक...वो सेविका ही रहेगी....।" परमान ने जैसे दृढ़ लहजे में आश्वासन दिया।

"वायदा....'

"वायदा......।" परमान संजीदा था लेकिन यह वो वायदा था जो प्रायः मर्द अपनी बीवियों से बेधड़क कर लिया करते हैं और बीवियां भी अच्छी तरह जानती है। कि यह वायदा कैसा होता है।

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