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आज की रात रोशन राय पर बहुत भारी थी ।रात का अन्तिम प्रहर था और रोशन राय मुंह खोले बेसुध सो रहा था। वह आज नींद की गोलियां खाकर लेटा था। उसे रासत को नींद वैसे ही नहीं आती थी..नींद की गोलियों का आदी हो चुका था वह । आज की रात उसने हमेशा से ज्यादा ‘डोज' ले ली थी|सलाओं....रोशन राय के कमरे में आने से पहले ही उसके बैड के नीचे आकर छुप गया
था। जब कमरे में रोशन राय के खर्राटे गूंजने लगे तो वह सरसराता हुआ बाहर निकला। वह एक खौफनाक सांप था। उसकी जिव्हा बार-बार अन्दर-बाहर हो रही थी।रोशन राय ने काफी अरसे पहले उसकी नागिन को जंगल में गोली से उड़ा दिया था, तब से सलाओ अपनी नागिन की मौत का इन्तकाम लेने की घात में था, लेकिन परमान से इसकी इजाजत नहीं मिल रही थी। वो बस रोशन राय को खौफजदा करके वापिस चला जाता था। भला हो तबूह का कि आज उसने परमान से उसे इन्तकाम की इजाजत दिला दी थी और...... |वह अपना इन्तकाम लेने आ पहुंचा था। वह एक बेहर जहरीला सांप था...इतना कि उसके जहर की एक ही बूंद रोशन राय को जहन्नुम रसीद कर सकती थी, लेकिन सलाओ ने सोच लिया था कि वो, इस शैतान को एकदम खत्म नहीं करेगा। उससे ऐसा प्रतिशोध लेगा कि रोशन राय जब तक जीयेगा....उसे याद रखेगा..... ।” वह खौफनाक सांप सलाओ बैड पर चढ़कर रोशन राय के तकिये के निकट पहुंच चुका था और अब उसका चेहरा बड़े गौर से देख रहा था। फिर उसने एक रोषपूर्ण फुफकार मारी और इसके साथ ही जल्दी-जल्दी रोशन राय के चेहरे पर अपनी फन मारा गहरी नींद के बावजूद, रोशन राय पीड़ा से बिलबिला उठा। उसने एक भयानक चीख मारी और घबराकर उठ बैठा। सलाओं, बड़ी तेजी के साथ बैड से उतरा और खिड़की के रास्ते बाहर निकलकर अन्धेरों में गुम हो गया। उसने अपना इन्तकाम ले लिया था |
उसने रोशन राय की दुनिया अंधेरी कर दी थी।जब नफीसा बेगम को इस हादसे की इत्तला मिली तो वह भागकर रोशन राय के कमरे में पहुंची और उसने वहां जो मंजर दखा उसने उसके होश उड़ा दिये राशन राय की दो आंखों की जगह दो गड्ढे बने हुए थे और उनसे खून रिस रहा था। किसी ने उसकी दोनों आंखें उधेड़ दी थी रोशन राय को फौरन मुम्बई पहुंचाया गया। उसे एक बहुत बड़े हस्पताल में में पहुंचाया गया था। डॉक्टरों के लिए यह केस बिल्कुल अनोखा था। उनकी समझ में ही नहीं आया कि रोशन राय की आंखे किसी 'इन्सान' ने निकाली हैं या किसी गैर इन्सान' ने।
खैर फिलहाल तो रोशन राय के घावों का उपचार होना था....सो वह शुरू हो गया पैसा पानी की तरह बहाया गया.......लेकिन व्यर्थ रोशन राय की आंखों की रोशनी वापिस न लाई जा सकी। उसकी आंखे होती तो ही तो रोशनी वापिस लाने की कोशिश की जाती। वहां तो आंखे ही नहीं थी। विभिन्न प्रयोगों व टेस्टों के बाद डॉक्टर इस निष्कर्ष पर तो पहुंच गये कि वह किसी सांप की कार्यवाही हैं....लेकिन आज तक किसी सांप को आंखों पर हमला करते न देख गया था, न सुना गया था।लेकिन रोशन राय को तो अच्छी तरह यकीन आ गया था। वह जान गया था कि यह कार्यवाही उसी सांप की थी, जो उसे प्रायः अपने बैडरूप में दिखाई देता था ।वह सांप अंततः अपना इन्तकाम लेने में कामयाब हो गया ।हस्पताल वालों ने उसकी आंखों के घेरों में टांके लगाकर और हाथ में एक सफेद छड़ी देकर अंततः एक उसे रूख्सत कर दिया। रोशन राय को नकली आंखें लगाने के बारे में सोचा गया था, लेकिन आंखों के घेरे कुछ इस तरह जख्मी हुए थे कि नकली आंखें लगाने की गुंजाइश ही नहीं थी। तब मजबूरन आंखों के घेरों को ही सी दिया गया था ।इन सिली हुई आंखों ने उसका चेहरा इस कदर भयानक कर दिया था कि कोई नजर भरकर उसकों देख नहीं सकता था ।नफीसा बेगम ने कए काला चश्मा उसकी आंखों पर लगा दिया, ताकि उसकी भयानक आंखें काले शीशों में छिप जाएं।रोशन राय को अपनी आंखें चली जाने का बहुत अफसोस था। अब ही यह अहसास हो रहा था कि आदमी के चेहरे पर आंखें कितनी महत्त्वपूर्ण होती हैं। आंखों के बिना यह बिल्कुल मोहताज होकर रह गया था |नफीसा बेगम उसे बैडरूप से निकालकर हवेली के बाग में ले आती थी, तो वह चला आता था.....वरना अपने बैड पर बैठा अपने रोशन दिनों की याद रहता था और इन यादों के साथ अपनी बेबसी पर आंसू उसके दिल पर गिरते रहते थे।एक शाम वह ऐसे ही उदास, सोफे पर बैठा था कि मोबाइल फोन की घंटी बजी। रौनी ने फोन उठाकर उसका बटन दबाया और सुना-"कहिये......?"
"रोशन राय साहब से बात कराएं.....।"
"आप कौन साहब बोल रहे हैं...?" रौली ने अदब से पूछा ।मैं
अरबाब खान बोल रहा हूं.......।" भारी आवाज में जवाब मिला ।
“जी! एक मिनट.....।" यह कहकर रौली ने फोन रोशन राय के हाथ में देते हुए बोला-"मालिक, अरबाब खान साहब हैं....आपसे बात करेंगे....।
"हैल्लो...सुनाओ अरबाब खान कैसे हो?" रोशन राय ने अपने लहजे में शाखी लाते हुए पूछा।"
हो....हा....हा....।" जवाब में जहरीजा कहकहा सुनाई दिया ।इस कहकहे को सुनकर रोशन राय की रूह में सन्नाटा उतरने लगा।
"कौन हो तुम.?" उसने तेजी से पूछा।
"रोशन राय.....मैं अरबाब खान नहीं हूं...मैं हूं राजा सलीम.....पहचाना मुझे....?"
"हां, पहचाना....... | क्यों नहीं..?" रोशन राय धीमे लहजे में बोला।
"रोशन राय तूने मेरा बेटा मारा है। वो मेरी आंखें थी....तूने मेरी आंखे छीनी हैं.....ऊपर वाले ने तुम्हारी आंखें छीन ली, लेकिन अभी मेरा इन्तकाम पूरा नहीं हुआ। वह दिन अब ज्यादा दूर नहीं, जब समीर राय की लाश तुम्हारे कदमों में होगी......।" यह कहकर राजा सलीम ने फिर जहरीजा कहकहा उगला और सम्बन्ध-विच्छेद कर लिये।
"नही! रोशन राय तड़पकर रह गया था।
0 mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm
Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )
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Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )
बुरा वक्त भी क्या चीज हैं....जब किसी पर आता हैं तो तबाही पर तबाही फैलाता चला जाता है। दूसरों को इन्तकाम को निशान बनाने वाला अब खुद निशाने पर आ गया था ।सलाओं अब अपना इन्काम ले चुका था।और अब एक और 'नाग' उसके सामने फन उठाये आ गया था। राजा सलीम की यह धमकी उसका दिल चीर गई थी। वह जानताथा कि यह महज एक धमकी नहीं हैं। राजा सलीम ने जो कहा हैं वह उस पर अमल कर गुजरेगा।और समीर राय में तो रोशन राय की जान थी। वह उसका इकलौता बैटा था। समीर की मौत ने उसे जीते-जी मार देना था। पर यह बात उसकी समझ में तब नहीं आई थी, जब उसने राजा सलीम की बहू और बाद में उसके बेटे नसीमा को मरवाया था ।मोबाइल उसके साथ में था और उसका हाथ कांप रहा था। उसे यूं महसूस हो रहा था जैसे उसका हाथ धीरे-धीरे सुन्न होता जा रहा है। हाथ की गिरफ्त ढीली पड़ने लगी तो रोशन राय ने अनुमान से ही मोबाइल वाला हाथ आगे बढ़ाया ।
रौली रोशन राय की बदली हुई रंगत देख रहा था....उसने फौरन फोन अपने हाथ में ले लिया और घबराकर बोला-“क्या हुआ.....? मालिक, खैर तो है...
'"बाबा...खैर नहीं...राजा सलीम ने समीर राय को मारने की धमकी दी है.....।" रोशन राय असहाय-सा बोला ।
“मालिक आप परेशान न हो...... । हम हैं ना। हम छोटे मालिक की हिफाजत करेंगे। उन पर जान निसार कर देंगे....।" रौली सच्चे दिल से बोला।
"हां, रौली। अब तुम को ही मेरे बेटे की हिफाजत करनी हैं...... ।यह कहते कहते उसकी जुबान लड़खड़ाने लगी और बायां बाजू बेजान होकर एक तरफ गिर गया ।यह पक्षपात का हमला था ।रोशन राय को फौरन ही करीबी हस्पताल में ले जाया गया। वहां डॉक्टरों ने उसका निरीक्षण करने के बाद उसे फौरन मुम्बई ले जाने का मशविरा दिया। उसे मुम्बई ले जाने के इन्तजाम किये गये। पर जब तक रोशन राय मुम्बई के एक हॉस्पिटल में एडमिट हुआ....उस वक्त वत लकवे का असर उसके पूरे शरीर पर हो चुका था।और फिर बेहतरीन उपचार के बावजूद उसकी हालत सम्भलने में नही आई। आंखें पहले ही छिन चुकी थीं और बोलने की ताकत भी गई। हाथ-पांव भी जवाब दें चुके थे, लेकिन उसके सुनने की शक्ति पर कोई असर नहीं पड़ा था। वो शख्स, जिसने लोगों को हमेशा तिरछी नजरों से देखा था...वो शख्स, जिसने जिन्दगी भर लोगों को सताया था। उस शख्स से उसकी तिरछी नजरें छीन ली गइ .....उसकी कड़ती जुबान बन्द कर दी गई थी। अब वो न देख सकता था....ना बोल सकता था.....बस, सुन सकता था। अब वो सुनने के लिए ही रह गया था। यह कैसा श्राप था.....जिसने उसे कहीं का नहीं रखा था?हॉस्पिटल वाले इस जिन्दा लाश को हॉस्पिटल में कब तक रखते। एक दिन उसे वहां से डिस्चार्ज कर दिया गया ।रोशन राय अपनी हवेली में आ गया। उस हवेली में, जो उसके कदमों की धमक से गूंजती थी। अब इसी हवेली की दीवारें उसे हसरत से तकती थीं। पैसे की कमी न थी, सो एक नर्स को उसकी देखभाल के लिए स्थाई रूप से रख लिया गया। डॉक्टर भी अपनी फीस बनाने के लिए उसे देख जाते थे और नफीसा बेगम को तसल्ली दे जाते थे। हालांकि वे अच्छी तरह जानते थे कि रोशन राय एक ऐसी गिरती दीवार हैं.....जिसे अब कोई भी सहारा गिरने से नहीं रोक सकता ।रोशन राय बहुत सख्त जान था या फिर ऊपर वाले ने ही उसकी मौत का दिन तय कर रखा था...वह इस अवस्था में भी छ: माह जीया ।और फिर एक रात बगैर किसी को कुछ बताये....परलोक सिधार गया। सुबह नर्स ने जब उसे उठाकर देखा तो वह जिन्दा लाश अब सचमुच की लाश बन चुकी थी।मौत के बाद रोशन राय की शक्ल ऐसी भयानक हो चुकी थी कि नफीसा बेगम भी उसकी सूरत कुछेक क्षणों से ज्यादा नहीं देख सकी। उसने खौफजदा होकर अपना मुंह फेर लिया था |रोशन राय की लाश से सड़ांध उठने लगी थी। उसे जल्द-अज-जल्द दफना दिया गया। समीर राय ने। आखिरी बार उसे कन्धा दिया। उसे अपने हाथों कब्र में उतारा ....... लेकिन आखिरी बार उसकी सूरत ने देखी ।धरती पर अकड़कर चलाने वाला अंततः धरती के अन्दर चला गया। नाम का रोशन राय, अंधेरा बनकर कब्र के अन्धेरे में गुम हो गया।
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रौली रोशन राय की बदली हुई रंगत देख रहा था....उसने फौरन फोन अपने हाथ में ले लिया और घबराकर बोला-“क्या हुआ.....? मालिक, खैर तो है...
'"बाबा...खैर नहीं...राजा सलीम ने समीर राय को मारने की धमकी दी है.....।" रोशन राय असहाय-सा बोला ।
“मालिक आप परेशान न हो...... । हम हैं ना। हम छोटे मालिक की हिफाजत करेंगे। उन पर जान निसार कर देंगे....।" रौली सच्चे दिल से बोला।
"हां, रौली। अब तुम को ही मेरे बेटे की हिफाजत करनी हैं...... ।यह कहते कहते उसकी जुबान लड़खड़ाने लगी और बायां बाजू बेजान होकर एक तरफ गिर गया ।यह पक्षपात का हमला था ।रोशन राय को फौरन ही करीबी हस्पताल में ले जाया गया। वहां डॉक्टरों ने उसका निरीक्षण करने के बाद उसे फौरन मुम्बई ले जाने का मशविरा दिया। उसे मुम्बई ले जाने के इन्तजाम किये गये। पर जब तक रोशन राय मुम्बई के एक हॉस्पिटल में एडमिट हुआ....उस वक्त वत लकवे का असर उसके पूरे शरीर पर हो चुका था।और फिर बेहतरीन उपचार के बावजूद उसकी हालत सम्भलने में नही आई। आंखें पहले ही छिन चुकी थीं और बोलने की ताकत भी गई। हाथ-पांव भी जवाब दें चुके थे, लेकिन उसके सुनने की शक्ति पर कोई असर नहीं पड़ा था। वो शख्स, जिसने लोगों को हमेशा तिरछी नजरों से देखा था...वो शख्स, जिसने जिन्दगी भर लोगों को सताया था। उस शख्स से उसकी तिरछी नजरें छीन ली गइ .....उसकी कड़ती जुबान बन्द कर दी गई थी। अब वो न देख सकता था....ना बोल सकता था.....बस, सुन सकता था। अब वो सुनने के लिए ही रह गया था। यह कैसा श्राप था.....जिसने उसे कहीं का नहीं रखा था?हॉस्पिटल वाले इस जिन्दा लाश को हॉस्पिटल में कब तक रखते। एक दिन उसे वहां से डिस्चार्ज कर दिया गया ।रोशन राय अपनी हवेली में आ गया। उस हवेली में, जो उसके कदमों की धमक से गूंजती थी। अब इसी हवेली की दीवारें उसे हसरत से तकती थीं। पैसे की कमी न थी, सो एक नर्स को उसकी देखभाल के लिए स्थाई रूप से रख लिया गया। डॉक्टर भी अपनी फीस बनाने के लिए उसे देख जाते थे और नफीसा बेगम को तसल्ली दे जाते थे। हालांकि वे अच्छी तरह जानते थे कि रोशन राय एक ऐसी गिरती दीवार हैं.....जिसे अब कोई भी सहारा गिरने से नहीं रोक सकता ।रोशन राय बहुत सख्त जान था या फिर ऊपर वाले ने ही उसकी मौत का दिन तय कर रखा था...वह इस अवस्था में भी छ: माह जीया ।और फिर एक रात बगैर किसी को कुछ बताये....परलोक सिधार गया। सुबह नर्स ने जब उसे उठाकर देखा तो वह जिन्दा लाश अब सचमुच की लाश बन चुकी थी।मौत के बाद रोशन राय की शक्ल ऐसी भयानक हो चुकी थी कि नफीसा बेगम भी उसकी सूरत कुछेक क्षणों से ज्यादा नहीं देख सकी। उसने खौफजदा होकर अपना मुंह फेर लिया था |रोशन राय की लाश से सड़ांध उठने लगी थी। उसे जल्द-अज-जल्द दफना दिया गया। समीर राय ने। आखिरी बार उसे कन्धा दिया। उसे अपने हाथों कब्र में उतारा ....... लेकिन आखिरी बार उसकी सूरत ने देखी ।धरती पर अकड़कर चलाने वाला अंततः धरती के अन्दर चला गया। नाम का रोशन राय, अंधेरा बनकर कब्र के अन्धेरे में गुम हो गया।
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Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )
रोशन राय ने जो बीज रखे थे......उनका फल चखने के लिए समीर राय अकेला रह गया था। राजा सलीम अब उसकी जान का दुश्मन बन गया था।उस पर अब तक दो हमले हो चुके थे, लेकिन वह इन दोनो जानलेवा हमलों पर बाल-बाल बच गया था। एक हमले में महज गोली उसके बाजू को मामूली-सी जख्मी करके गुजर गई थी ।नफीसा बेगम परेशान थी |जब पहला हमला हुआ था तो रोशन राय जीवित था। नफीसा बेगम ने रोशन राय को कुछ नहीं बताया। इसलिये भी कि वह भला करता भी क्या, उसने बेटे को चेतावनी दे दी कि वह अकेला हवेली से बाहर ने निकले, लेकिन यह बात समीर राय को मंजूर नहीं थी। आखिर कब तक हवेली में कैद होकर बैठता, बाहर निकलने की सूरत में मां की ख्वाहिश थी कि वह रोली और होली को साथ लेकर निकले लेकिन समीर राय ने उन दोनों को अपने साथ रखने से इंकार कर दिया।
उसने मां से दो-टूक शब्दों में कहा-"मां, मैं इन हराम-सूरतों को अपने साथ नहीं रख सकता। वैसे भी मैं मौत और जिन्दगी को अल्लाह की देन समझता हूं और इस बात पर यकीन रखता हूं कि अगर मेरी मौत आनी हुई तो दुनिया का कोई भी मुहाफिज मुझे नही बचा सकेगा। अम्मी, आप फिक्र न करें.....मैं एहतिहात रखूगा...... । फिर रोशन राय की मौत के बाद उस पर दूसरा हमला हुआ।और इस हमले में उसका बाजू मामली जख्मी हुआ ।इन्तकाम की आग में सुलगते राजा सलीम को जब मालूम हुआ कि समीर राय इस हमले में भी बच निकला हैं, तो वह तिलमिलाकर रह गया। उसे बाबे 'करन्ट' पर सख्त गुस्सा था। उसने बाबू ‘करन्ट' को कब्रिस्तान में बुलवा लिया। बाबू 'करन्ट' जब कब्रों के बीच से गुजरता हुआ उस पेड़ के नीचे पहुंचा जिसके नीचे राजा सलीम उसका प्रतीक्षक था...तो उसने उसके तेवर देखकर अंदाजा लगा लिया कि अगले कुछ क्षणों में उसके साथ क्या होने वाला हैं। क्षणभर को तो उसने सोचा कि वह यहां से भाग निकले...लेकिन वह जानता था कि राजा सलीम के दायें-बायें खड़े राइफलधारी उसे चन्द कदम भी न भागने देंगे।उसने फरार होने का इरादा त्याग दिया...और उसके सामने हाथ बांधकर खड़ा हो गया।“जी मालिक.... | आपने मुझे बुलाया.........
"हां, बुलाया! यह पूछने को बुलाया बाबू 'करन्ट' कि तू जो उड़ते तीतर को मार गिराने का दावा करता हैं.....तुझसे एक छ: फुट का आदमी नहीं गिरा। क्यों, साई तुझे क्या हो गया हैं, लगता हैं, तेरी सारी बैटरियां फेल हो गई है। तेरे में अब कोई करन्ट बाकी नहीं रहा था। हमें मालूम नहीं था कि तेरा निशाना इतना बिगड़ गया हैं....वरना हम तुझे उस काम पर न लगातें...... सच, तूने तो हमें बड़ा मायूस किया.... ।" यह कहकर उसने अपना हाथ बढ़ाया ।और उसके निकट खड़े बन्दे ने फौरन उसके हाथ में रिवाल्वर थमा दिया और राजा सलीम ने फौरन बाबू -करन्ट' के दिल का निशान लिया और घोडा दवा दिया-"किसी बन्दे को मारने के लिए.एक गोली काफी होती हैं.....तूने दर्जनों गोलियां बेकार कर दी...फिर भी समीर राय जिन्दा का जिन्दा..... ।''
उसने बाबू –करन्ट' की लाश को ठोकर लगाई और अपने आदमियों को हुक्म दिया-"इसे जमीन में गाड़ दो....खूब ऐश कर ली इसने हमारी दौलत पर..... । वह अपनी जीप की तरफ बढ़ गया। उसके जीप में बैठते ही जीप फौरन हवेली की तरफ रवाना हो गई।
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उसने मां से दो-टूक शब्दों में कहा-"मां, मैं इन हराम-सूरतों को अपने साथ नहीं रख सकता। वैसे भी मैं मौत और जिन्दगी को अल्लाह की देन समझता हूं और इस बात पर यकीन रखता हूं कि अगर मेरी मौत आनी हुई तो दुनिया का कोई भी मुहाफिज मुझे नही बचा सकेगा। अम्मी, आप फिक्र न करें.....मैं एहतिहात रखूगा...... । फिर रोशन राय की मौत के बाद उस पर दूसरा हमला हुआ।और इस हमले में उसका बाजू मामली जख्मी हुआ ।इन्तकाम की आग में सुलगते राजा सलीम को जब मालूम हुआ कि समीर राय इस हमले में भी बच निकला हैं, तो वह तिलमिलाकर रह गया। उसे बाबे 'करन्ट' पर सख्त गुस्सा था। उसने बाबू ‘करन्ट' को कब्रिस्तान में बुलवा लिया। बाबू 'करन्ट' जब कब्रों के बीच से गुजरता हुआ उस पेड़ के नीचे पहुंचा जिसके नीचे राजा सलीम उसका प्रतीक्षक था...तो उसने उसके तेवर देखकर अंदाजा लगा लिया कि अगले कुछ क्षणों में उसके साथ क्या होने वाला हैं। क्षणभर को तो उसने सोचा कि वह यहां से भाग निकले...लेकिन वह जानता था कि राजा सलीम के दायें-बायें खड़े राइफलधारी उसे चन्द कदम भी न भागने देंगे।उसने फरार होने का इरादा त्याग दिया...और उसके सामने हाथ बांधकर खड़ा हो गया।“जी मालिक.... | आपने मुझे बुलाया.........
"हां, बुलाया! यह पूछने को बुलाया बाबू 'करन्ट' कि तू जो उड़ते तीतर को मार गिराने का दावा करता हैं.....तुझसे एक छ: फुट का आदमी नहीं गिरा। क्यों, साई तुझे क्या हो गया हैं, लगता हैं, तेरी सारी बैटरियां फेल हो गई है। तेरे में अब कोई करन्ट बाकी नहीं रहा था। हमें मालूम नहीं था कि तेरा निशाना इतना बिगड़ गया हैं....वरना हम तुझे उस काम पर न लगातें...... सच, तूने तो हमें बड़ा मायूस किया.... ।" यह कहकर उसने अपना हाथ बढ़ाया ।और उसके निकट खड़े बन्दे ने फौरन उसके हाथ में रिवाल्वर थमा दिया और राजा सलीम ने फौरन बाबू -करन्ट' के दिल का निशान लिया और घोडा दवा दिया-"किसी बन्दे को मारने के लिए.एक गोली काफी होती हैं.....तूने दर्जनों गोलियां बेकार कर दी...फिर भी समीर राय जिन्दा का जिन्दा..... ।''
उसने बाबू –करन्ट' की लाश को ठोकर लगाई और अपने आदमियों को हुक्म दिया-"इसे जमीन में गाड़ दो....खूब ऐश कर ली इसने हमारी दौलत पर..... । वह अपनी जीप की तरफ बढ़ गया। उसके जीप में बैठते ही जीप फौरन हवेली की तरफ रवाना हो गई।
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Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )
उसे बड़े हॉलनुमा कमरे में, जिसकी 'ताखों में बुत सजे हुए थे, तबूह एक चमड़े की गद्दी पर बैठी थी ।कमरे के तीन दरवाजे बन्द थे...एक खूला हुआ था। नन्हीं बरहा, उस कमरे में इधर-से-उधर दौड़ती फिर रही थी। कमरे के फर्श पर जगह-जगह छोटे-बड़ें सांप घूम रहे थे। बरहा, इन्हीं सांपों से खेल रही थी। एक छोटा-सा सांप उसने अपने गले में डाला हुआ था। वह पूर कमरे में दौड़ती फिर रही थी।तबूह एक तरफ खामोश बैठी उसे बड़ी दिलचस्पी से देख रही थी ।बरहा दौड़ते-दौड़त एक जगह रूकी । एक सांप बड़ी तेजी से फर्श पर दौड़ रहा था। बरहा ने उसे दुम से पकड़कर उठा दिया और फिर रस्सी की तरह घुमाकर फेंक दिया ।सांप पट् से ईटों के फर्श पर गिरा! उसे चोट लगी। उसे बरहा की यह हरकत अच्छी न लगी। वो अपना मुंह खोलकर बरहा की तरफ बढ़ा। बरहा ने अब एक दूसरा सांप अपने हाथ में पकड़ लिया था। वह उस मुंह खोले अपनी तरफ बढ़ते सांप से बेखबर थी।वह सांप उसे काट भी सकता था, लेकिन वहां तबूह मौजूद थी......और वह इसीलिये यहां मौजूद थी। इससे पहले कि वो सांप गुस्से में बरहा को कोई क्षति पहुंचाता, तबूह ने उस सांप को डांटते हुए कहा-"खबरदार....होश में नहीं हैं क्या तू....मेरे हाथों क्यों अपने दांत तुडवाना चाहता हैं। तू जानता नहीं कि बरहा, कौन हैं? नहीं जानता तो अब जान ले। यह परमान की पसन्द और उसका चुनाव है। इसे जरा-सा भी नुकसान पहुंचा तो वचह तेरी सात पीढ़ियों को तबाह करके रख देगा। अगर तेरे दात नये-नये आये हैं तो मेरी तरफ आ जा....अपने दांत मुझ पर आजमा। बरहा पर क्या गुस्सा उतारना चाहता हैं..... | वह खेल रही हैं और तू सिर्फ एक खिलौना हैं। बस, एक खिलौना ही रह...... ।'
तबूह की डांट सुनकर उस सांप की सिट्टी गुम हो गई। वह फौरन ही कुण्डली मारकर और सिर झुकाकर एक तरफ बैठ गया ।बरहा इस बात से बेखबर उन छोटे-बड़े सांपों से खेलती रही.....भागती-दौड़ती रही। फिर उन तीन दरवाजों में से एक दरवाजा खुला और नैनी भीतर आई, उसने बरहा की उंगली पकड़ी और उसे अपने साथ लेकर उसी दरवाजे से बाहर निकल गई। दरवाजा खुद-ब-खुद बन्द हो गया ।बरहा इस मायावी लोक में परवान चढ़ रही थी ।बरहा के जाने के बाद तबूह अपनी जगह से उठी। उसने अपने खुले बालों को जूड़ा-सा बनाया और अपने विशिष्ट अदा। भरे अन्दाज से चलती हुई एक ताख के सामने आ रूकी, इस ताख में एक दवकाय मर्द का बुत रखा था।यह बुत काले-भुजंग हूरा का था तबूह उसे गौर से देखने लगी....फिर उसके हीठों पर बरहस ही मुस्कुराहट आ गई। वह धीरे से बोली
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नफीसा बेगम अपने पति की मौत पर दो आंसू भी नही बहा सकी थी।वह रोने बैठती तो रोशन राय का कोई-न-कोइ जुल्म उसके सामने आ जाता और उसकी संगदिली व निर्ममता उसका दिल चीर जाती । उसने अपने ही बेटे समीर राय की बीवी और बच्ची के साथ जो सलूम किया था, वह एक माफ न किये जाने वाला अपराध था।आंखें चली जाने के बाद रोशन राय ने नफीसा को नमीरा और उसकी बच्ची के बारे में एक-एक बात सच बता दी थी, लेकिन उसे अपनी इस करतूत पर कोई शर्मिन्दगी नहीं थी कि वह यह सब हवेली की सलामती के लिए करने को मजबूर था। जुल्म की यह दास्ताना सुनकर नफीसा वेगम के दिल में अपने शौहर के प्रति नफरत और भी गहरी हो गई थी ।नफीसा बेगम ने राज की ये बाते बेटे के कान में डाल दी थीं। यह सब सुनकर समीर राय के दिल में आग लग गई थी। यही दिल चाहा था कि अभी जाकर इस दरिन्दे शख्स के टुकड़े कर दे, लेकिन वह उसका बाप था......समीर राय ऐसा नहीं कर सकता था। वह अपने बाप जैसा नहीं बनना चाहता था। वैसे भी खुदाई इंसाफ शुरू हो चुका था। कुदरत ने हिसाब-किताब शुरू कर दिया था। उसकी दुनिया अंधेरी कर दी गई थी। अब समीर राय को गुनाह करने की क्या जरूरत थी। कुदरत खुद ही रोशन राय की दरिन्दगियों का इन्तकाल लेने पर उतर आई थी।अपनी खोजबीन पूरी करने के बाद एक दिन समीर राय ने इस विषय पर अपनी मां से बात की-"अपनी खोजबीन पूरी करने के बाद एक दिन समीर राय ने इस विषय पर अपनी मां से बात की-"अम्मी जान्! मैं इस हवेली को जरायमपेशा लोगों से पाक करना चाहता हूं......"
"हवेली में जरायमपेशा लोग? मैं समझी नहीं....।" नफीसा बेगम ने सवाल किया।
हां, हवेली में पन्द्रह-बीस ऐसे मुलाजिम हैं जो किसी-न-किसी तरह अब्बू के जुमों में शरीक रहे है।
"बेटा....तुम जैसा चाहों करो-बस इतना याद रखना.....किसी पर जुल्म न हों। अपने अब्बू का हश्र तुमने देखा ही हैं...... ।" खुदा के खौफ से डरी नफीसा बेगम ने हिदायत दी।
"अम्मी..मैं इन लोगों को इसीलिये यहां से निकाल देना चाहता हूं कि अब किसी पर जुल्म ने हो। ये लोग यहां रहेंगे तो मजलूमों और मासूमों को तकलीफ पहुंचाने और मेरी खुशामद के अलावा कुछ न करेंगे.......।" समीर राय ने कहा।"तुम ठीक कहते हो। मेरी तरफ से पूरी इजाजत हैं....जो चाहे करो.......।" नफीसा बेगम ने उसे छूट दे दी ।मां से इजाजत मिलने के बाद अगर समीर राय चाहता तो अन संदिग्ध नौकर-चाकरों को खड़ें-खड़े कान पकड़कर बाहर कर देता, लेकिन उसने जालिमों पर भी जुल्म करना मुनासिब न समझा। उसने उन मुलाजिमों को इतना कुद दे दिया कि वे साल भर तक आराम से घर में बैठकर खा सकें ।हवेली से रूख्सत करते हुई उसने इन मुलाजिमों से बस इतना कहा-"आइन्दा मैं इस इलाके में तुम्हारी शक्ल ने देखू। अगर ऐसा हुआ तो फिर मुझसे बुरा कोई न होगा..... ।"रौली और होली, जो सबसे आगे खड़े थे उन्होंने कुछ कहना चाहा तो समीर राय ने हाथ उठाकर उन्हें रोक दिया-"बस, अब मैं कुछ सुनना नहीं चाहता। तुम लोग जाओ..... ।''
तबूह की डांट सुनकर उस सांप की सिट्टी गुम हो गई। वह फौरन ही कुण्डली मारकर और सिर झुकाकर एक तरफ बैठ गया ।बरहा इस बात से बेखबर उन छोटे-बड़े सांपों से खेलती रही.....भागती-दौड़ती रही। फिर उन तीन दरवाजों में से एक दरवाजा खुला और नैनी भीतर आई, उसने बरहा की उंगली पकड़ी और उसे अपने साथ लेकर उसी दरवाजे से बाहर निकल गई। दरवाजा खुद-ब-खुद बन्द हो गया ।बरहा इस मायावी लोक में परवान चढ़ रही थी ।बरहा के जाने के बाद तबूह अपनी जगह से उठी। उसने अपने खुले बालों को जूड़ा-सा बनाया और अपने विशिष्ट अदा। भरे अन्दाज से चलती हुई एक ताख के सामने आ रूकी, इस ताख में एक दवकाय मर्द का बुत रखा था।यह बुत काले-भुजंग हूरा का था तबूह उसे गौर से देखने लगी....फिर उसके हीठों पर बरहस ही मुस्कुराहट आ गई। वह धीरे से बोली
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नफीसा बेगम अपने पति की मौत पर दो आंसू भी नही बहा सकी थी।वह रोने बैठती तो रोशन राय का कोई-न-कोइ जुल्म उसके सामने आ जाता और उसकी संगदिली व निर्ममता उसका दिल चीर जाती । उसने अपने ही बेटे समीर राय की बीवी और बच्ची के साथ जो सलूम किया था, वह एक माफ न किये जाने वाला अपराध था।आंखें चली जाने के बाद रोशन राय ने नफीसा को नमीरा और उसकी बच्ची के बारे में एक-एक बात सच बता दी थी, लेकिन उसे अपनी इस करतूत पर कोई शर्मिन्दगी नहीं थी कि वह यह सब हवेली की सलामती के लिए करने को मजबूर था। जुल्म की यह दास्ताना सुनकर नफीसा वेगम के दिल में अपने शौहर के प्रति नफरत और भी गहरी हो गई थी ।नफीसा बेगम ने राज की ये बाते बेटे के कान में डाल दी थीं। यह सब सुनकर समीर राय के दिल में आग लग गई थी। यही दिल चाहा था कि अभी जाकर इस दरिन्दे शख्स के टुकड़े कर दे, लेकिन वह उसका बाप था......समीर राय ऐसा नहीं कर सकता था। वह अपने बाप जैसा नहीं बनना चाहता था। वैसे भी खुदाई इंसाफ शुरू हो चुका था। कुदरत ने हिसाब-किताब शुरू कर दिया था। उसकी दुनिया अंधेरी कर दी गई थी। अब समीर राय को गुनाह करने की क्या जरूरत थी। कुदरत खुद ही रोशन राय की दरिन्दगियों का इन्तकाल लेने पर उतर आई थी।अपनी खोजबीन पूरी करने के बाद एक दिन समीर राय ने इस विषय पर अपनी मां से बात की-"अपनी खोजबीन पूरी करने के बाद एक दिन समीर राय ने इस विषय पर अपनी मां से बात की-"अम्मी जान्! मैं इस हवेली को जरायमपेशा लोगों से पाक करना चाहता हूं......"
"हवेली में जरायमपेशा लोग? मैं समझी नहीं....।" नफीसा बेगम ने सवाल किया।
हां, हवेली में पन्द्रह-बीस ऐसे मुलाजिम हैं जो किसी-न-किसी तरह अब्बू के जुमों में शरीक रहे है।
"बेटा....तुम जैसा चाहों करो-बस इतना याद रखना.....किसी पर जुल्म न हों। अपने अब्बू का हश्र तुमने देखा ही हैं...... ।" खुदा के खौफ से डरी नफीसा बेगम ने हिदायत दी।
"अम्मी..मैं इन लोगों को इसीलिये यहां से निकाल देना चाहता हूं कि अब किसी पर जुल्म ने हो। ये लोग यहां रहेंगे तो मजलूमों और मासूमों को तकलीफ पहुंचाने और मेरी खुशामद के अलावा कुछ न करेंगे.......।" समीर राय ने कहा।"तुम ठीक कहते हो। मेरी तरफ से पूरी इजाजत हैं....जो चाहे करो.......।" नफीसा बेगम ने उसे छूट दे दी ।मां से इजाजत मिलने के बाद अगर समीर राय चाहता तो अन संदिग्ध नौकर-चाकरों को खड़ें-खड़े कान पकड़कर बाहर कर देता, लेकिन उसने जालिमों पर भी जुल्म करना मुनासिब न समझा। उसने उन मुलाजिमों को इतना कुद दे दिया कि वे साल भर तक आराम से घर में बैठकर खा सकें ।हवेली से रूख्सत करते हुई उसने इन मुलाजिमों से बस इतना कहा-"आइन्दा मैं इस इलाके में तुम्हारी शक्ल ने देखू। अगर ऐसा हुआ तो फिर मुझसे बुरा कोई न होगा..... ।"रौली और होली, जो सबसे आगे खड़े थे उन्होंने कुछ कहना चाहा तो समीर राय ने हाथ उठाकर उन्हें रोक दिया-"बस, अब मैं कुछ सुनना नहीं चाहता। तुम लोग जाओ..... ।''