शीतल वसीम के सीने से लग गई थी, कहा- "मुझे कुछ नहीं समझना। और खबरदार जो अब आपने कुछ साचा तो। अब आपको दर्द सहने की कोई जरूरत नहीं है। आपने मुझे अपनी बीवी बनाया है तो मेरा हक है आपकी हर परेशानी दूर करना। अब अगर आपने ऐसी बात की तो मैं गुस्सा जो जाऊँगी.."
वसीम उसके पीठ को सहलाता हुआ हँसने लगा- "ठीक है नहीं करूँगा। लेकिन एक बात तय रही। मैं तुमसे बातें करूँगा, हँसी मजाक करूँगा लेकिन अब हम सेक्स नहीं करेंगे। और मेरे इस फैसले में तुम मेरा साथ दोगी। बोलो मंजूर है ना?"
शीतल अपना सिर उठाई और वसीम की तरफ देखते हय बोली- "कुछ मंजूर नहीं है। आपका शर्त रखने की क्या जरूरत है? बाँधने की क्या जरूरत है? आपको सेक्स नहीं करना होगा मत करिएगा। जरी तो नहीं है की राज करें ही या महीने में एक बार भी करें हो। आप कभी मत कीजिएगा लेकिन ये बंधन मत रखिएगा की मैं नहीं हो करगा। पं हुआ की आपको जब मन होगा तब करेंगे। इसमें कोई बंधन नहीं है। ठीक है?"
वसीम ने शीतल के माथे में किस किया और बोला- "ठीक है..."
शीतल फिर बोली- "और जब मेरा मन करेगा उस वक़्त जरब करेंगे..
वसीम शीतल की आँखों में देखकर मुश्कुराने लगा- "में तो फँसाने वाली बात कर रही हो तुम। शीतल तुम शादीशुदा हो, पत्नी हो विकास की। ये ठीक नहीं रहेगा। प्लीज समझो मेरी बात."
शीतल फिर से वसीम के सीने में लग गई, और कहा- "वो सब आप मुझमें छोड़ दीजिए। नहीं तो आप कभी नहीं सेक्स करेंगे और मैं प्यासी बह जाऊँगी..." शीतल बोलती-बोलती बोल तो दी लेकिन फिर बहुत ज्यादा शर्मा गई की ये क्या बोल गई? क्या वो वसीम से अपनी जिस्म की भूख मिटाने के लिए चुद रही है। छिः बन्या सोच रहे होंगे वसीम चाचा?
वसीम शीतल के माथे पे हाथ फेरता हुआ सोफे पे जा बैठा।
शीतल उससे पूछी- "मंजूर ना?"
वसीम हँस दिया, और बोला- "ठीक है बाबा मंजूर.."
शीतल खड़ी हो गई और बोली- "तो करिए.."
वसीम उसे आश्चर्यचकित होकर आँखें फाड़कर देखने लगा।
शीतल फिर से बोली- "हौं, करिए अभी। अभी मेरा मन कर रहा है। चोदिए मुझे अभी..' बोलती हई शीतल शर्मा गई लेकिन वो रुकी नहीं। वो झकी और अपनी नाइटी को नीचे से पकड़कर उठती गई।
वसीम बस उसे देखता गया। शीतल की नाइटी उसके घुटनों के ऊपर हई और फिर कैले के तनों की तरह चिकनी जांघों को दिखाती हई और ऊपर हो गई। अब वसीम की नजरों के सामने शीतल की चिकनी चूत, सपाट पेंट था। फिर शीतल की चूचियां भी बाहर आ गई और वसीम को उसकी रात की हैवानियत नजर आने लगी। चुचियों और निपल पे तो बहुत से निशान थे।
Adultery शीतल का समर्पण
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Re: Adultery शीतल का समर्पण
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Re: Adultery शीतल का समर्पण
शीतल नाइटी को कंधे से ऊपर ले आई और फिर सिर से निकालकर उसे नीचे गिरा दी। अजंता एलोरा की गुफाओं की संगमरमर की मूर्ति वसीम के सामने खड़ी थी। शीतल अपनी पलकों को झुकाए खड़ी थी। वो कई दफा वसीम के सामने नंगी हुई है, लेकिन हर बार वो शर्मा जाती है। आज तो वो खुद खुला निमंत्रण दे रही थी
और खुद को पेश कर रही थी तो वो ज्यादा ही शर्मा रही थी।
वसीम शीतल को एकटक निहारे जा रहा था- "बाइ... क्या माल फसाया है वसीम मियां तुनें। अप्सरा है ये तो।
और चूत में गर्मी कितनी है। मुझे तो लग रहा था की रात में तीन बार राक्षसों की तरह निचोड़कर चोदा है तो आज तो ये पास भी नहीं आएगी। लेकिन ये रांड़ तो अभी भी पहली बार की तरह ही प्यासी है। मजा आएगा रंडी तुझे चोदने में। तू सचमुच मेरी प्यास बुझा सकेंगी.."
शीतल शर्माती हुई नजरें किए हुए ही इठलाकर छम-छम करके चलती हुई वसीम के सामने आ गई और फिर उसकी जांघों में बैठ गई। शीतल का नंगा जिश्म वसीम की गोद में था। शीतल वसीम से सट गई और उसकी गर्दन पे किस करने लगी।
वसीम गर्दन इधर-उधर करता हुआ बोला- "अभी तो दुकान जाना है ना, बाद में करेंगे... उसकी आवाज मदहोश हो रही थी।
शीतल उसे अपनी बाहों में पकड़ती हुई मदहोश सी होकर बोली- "आज मत जाइए। दोपहर के बाद जाइएगा..."
वसीम कुछ नहीं बोला। वो भला बोलता भी क्या?
शीतल उसके गाल पे किस करते हए बोली- "कोई आदमी अपनी बीवी को इस तरह प्यासी छोड़कर जाता है क्या भला?"
वसीम- "प्यासे रहें तुम्हारे दुश्मन..." बोलता हुआ वसीम शीतल के सुलगते होठो पे अपने होठों को रख दिया और चूसने लगा। उसका एक हाथ शीतल की नंगी पीठ को सहला रहा था तो दूसरा हाथ शीतल की चूचियों को मसल रहा था।
शीतल आहह... उहह... करने लगी और वसीम के गर्दन पे हाथ रखती हई उसके सिर को पकड़ ली और वसीम के होठों को चूसने लगी। वो वसीम के सिर को अपने सिर पे दबा ली और फिर वीम की जीभ को मुँह में लेकर चसने लगी। वसीम भी पूरी तरह शीतल का साथ देता हुआ उसके चिकने बदन को सहला रहा था। शीतल वसीम के जिस्म में घुस जाना चाहती थी, समा जाना चाहती थी। एक पल के लिए वो अपना मुँह हटाई और फिर से चूसने लगी। बो वसीम का हाथ पकड़कर अपनी चूचियों पे रख ली और मसलने लगी। वसीम उसकी चूचियों को जोर-जोर से मसलने लगा।
शीतल वसीम के होठों को छोड़ दी और गाल, गर्दन, कान को चूमने लगी "आह्ह... वसीम क्या कर रहे हैं आप? चोदिए ना मुझे। क्या रोक रखा है आपने खुद का? उसी तरह करिए जैसे रात में कर रहे थे। बहसियों की तरह मेरे जिएम को नोचिए, खा जाइए मुझे आहह... वसीम प्लीज़ज़... मुझसे बदाश्त नहीं हो रहा.."
वसीम समझ गया की शीतल बहुत ज्यादा गर्मी में हैं। वो भी शीतल के बदन को चूमने लगा था और थोड़ा और जोर से चुचियों मसलने लगा था।
शीतल. "आह्ह... बसीम्म जोचिए मुझे, खसाटिए मुझं, खा जाइए अपनी रंडी को। चोदिए अपनी रंडी का वसीम। गालियां दीजिए मुझे। फाड़ डालिए मेरी चूत को आहह... वसीम्म... शीतल का हाथ वसीम के लण्ड को पायजामा के ऊपर से मसल रहा था।
वसीम शीतल की हालत देख रहा था और मन ही मन मुअकुरा रहा था। वसीम को कुछ खास हरकत नहीं करता देखकर शीतल फिर बोली- “आहह... वसीम्म ये क्या कर दिया है आपने मुझे। मैं जैसे जल रही हैं। आपके लण्ड ने जादू कर दिया है आपकी कृतिया पै। वसीम मत तड़पाइए मुझे प्लीज़..."
वसीम अब शीतल को गर्दन, कंधे पे किस करने लगा और उसे सोफे पे ही लिटा दिया और उसपे झुकता हुआ निपल को मुँह में लेकर चूसने लगा। शीतल का एक पैर जमीन में था और दसरा सोफे पी वसीम खुद नीचें हो गया और शीतल की चूचियों को मुँह में भरकर चूसता हुआ उसके पेट को सहलाने लगा और फिर चूत को।
और खुद को पेश कर रही थी तो वो ज्यादा ही शर्मा रही थी।
वसीम शीतल को एकटक निहारे जा रहा था- "बाइ... क्या माल फसाया है वसीम मियां तुनें। अप्सरा है ये तो।
और चूत में गर्मी कितनी है। मुझे तो लग रहा था की रात में तीन बार राक्षसों की तरह निचोड़कर चोदा है तो आज तो ये पास भी नहीं आएगी। लेकिन ये रांड़ तो अभी भी पहली बार की तरह ही प्यासी है। मजा आएगा रंडी तुझे चोदने में। तू सचमुच मेरी प्यास बुझा सकेंगी.."
शीतल शर्माती हुई नजरें किए हुए ही इठलाकर छम-छम करके चलती हुई वसीम के सामने आ गई और फिर उसकी जांघों में बैठ गई। शीतल का नंगा जिश्म वसीम की गोद में था। शीतल वसीम से सट गई और उसकी गर्दन पे किस करने लगी।
वसीम गर्दन इधर-उधर करता हुआ बोला- "अभी तो दुकान जाना है ना, बाद में करेंगे... उसकी आवाज मदहोश हो रही थी।
शीतल उसे अपनी बाहों में पकड़ती हुई मदहोश सी होकर बोली- "आज मत जाइए। दोपहर के बाद जाइएगा..."
वसीम कुछ नहीं बोला। वो भला बोलता भी क्या?
शीतल उसके गाल पे किस करते हए बोली- "कोई आदमी अपनी बीवी को इस तरह प्यासी छोड़कर जाता है क्या भला?"
वसीम- "प्यासे रहें तुम्हारे दुश्मन..." बोलता हुआ वसीम शीतल के सुलगते होठो पे अपने होठों को रख दिया और चूसने लगा। उसका एक हाथ शीतल की नंगी पीठ को सहला रहा था तो दूसरा हाथ शीतल की चूचियों को मसल रहा था।
शीतल आहह... उहह... करने लगी और वसीम के गर्दन पे हाथ रखती हई उसके सिर को पकड़ ली और वसीम के होठों को चूसने लगी। वो वसीम के सिर को अपने सिर पे दबा ली और फिर वीम की जीभ को मुँह में लेकर चसने लगी। वसीम भी पूरी तरह शीतल का साथ देता हुआ उसके चिकने बदन को सहला रहा था। शीतल वसीम के जिस्म में घुस जाना चाहती थी, समा जाना चाहती थी। एक पल के लिए वो अपना मुँह हटाई और फिर से चूसने लगी। बो वसीम का हाथ पकड़कर अपनी चूचियों पे रख ली और मसलने लगी। वसीम उसकी चूचियों को जोर-जोर से मसलने लगा।
शीतल वसीम के होठों को छोड़ दी और गाल, गर्दन, कान को चूमने लगी "आह्ह... वसीम क्या कर रहे हैं आप? चोदिए ना मुझे। क्या रोक रखा है आपने खुद का? उसी तरह करिए जैसे रात में कर रहे थे। बहसियों की तरह मेरे जिएम को नोचिए, खा जाइए मुझे आहह... वसीम प्लीज़ज़... मुझसे बदाश्त नहीं हो रहा.."
वसीम समझ गया की शीतल बहुत ज्यादा गर्मी में हैं। वो भी शीतल के बदन को चूमने लगा था और थोड़ा और जोर से चुचियों मसलने लगा था।
शीतल. "आह्ह... बसीम्म जोचिए मुझे, खसाटिए मुझं, खा जाइए अपनी रंडी को। चोदिए अपनी रंडी का वसीम। गालियां दीजिए मुझे। फाड़ डालिए मेरी चूत को आहह... वसीम्म... शीतल का हाथ वसीम के लण्ड को पायजामा के ऊपर से मसल रहा था।
वसीम शीतल की हालत देख रहा था और मन ही मन मुअकुरा रहा था। वसीम को कुछ खास हरकत नहीं करता देखकर शीतल फिर बोली- “आहह... वसीम्म ये क्या कर दिया है आपने मुझे। मैं जैसे जल रही हैं। आपके लण्ड ने जादू कर दिया है आपकी कृतिया पै। वसीम मत तड़पाइए मुझे प्लीज़..."
वसीम अब शीतल को गर्दन, कंधे पे किस करने लगा और उसे सोफे पे ही लिटा दिया और उसपे झुकता हुआ निपल को मुँह में लेकर चूसने लगा। शीतल का एक पैर जमीन में था और दसरा सोफे पी वसीम खुद नीचें हो गया और शीतल की चूचियों को मुँह में भरकर चूसता हुआ उसके पेट को सहलाने लगा और फिर चूत को।
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Re: Adultery शीतल का समर्पण
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Re: Adultery शीतल का समर्पण
वसीम अब शीतल को गर्दन, कंधे पे किस करने लगा और उसे सोफे पे ही लिटा दिया और उसपे झुकता हुआ निपल को मुँह में लेकर चूसने लगा। शीतल का एक पैर जमीन में था और दसरा सोफे पी वसीम खुद नीचें हो गया और शीतल की चूचियों को मुँह में भरकर चूसता हुआ उसके पेट को सहलाने लगा और फिर चूत को।
वसीम को चूत के पास हाथ ले जाते ही गर्मी का एहसास हुआ। उसने शीतल के पैर को सोफा से उठाकर सोफा की पुष्त पे रख दिया। अब शीतल का एक पैर जमीन पे था और दूसरा सोफा की पुष्त पें। शीतल की चूत फ्री खुल गई थी और फैल गई थी। वसीम चूचियों का चूसने लगा और चूत में उंगली करने लगा। शीतल आह्ह... उहह... करने लगी। उसे थोड़ा राहत तो मिल रही थी लेकिन मजा अभी भी नहीं आ रहा था।
शीतल- "आप गाली क्यों नहीं दे रहे मुझे, नाच खसोट क्यों नहीं रहे? खा जाइए मेरी चूचियों को वसीम्म आहह.. में रंडी हैं आपकी, कतिया हैं आपकी। मेरी चूत को आपके लण्ड में पागल बना दिया है। इसे चोदकर फाड़ दीजिए वसीम..."
वसीम की उंगली तेजी से अंदर-बाहर होने लगी थी।
... आहह... वसीम में क्या बना
शीतल- "आहह ... वसीम्म... मेरे वसीम्म और जोर से आहह... और अंदर उम्म्म्म दिया है आपने मुझे? आहह... ओहह... आआआ.. उम्म्म्म ..."
वसीम उसके निपल पे दाँत से काटता हुआ बोला- "ही.... मेरी रंडी छिनाल कुतिया मादर चोद। तेरी रंडी चूत को अब मेरा मूसल लण्ड चाहिए। तू रंडी बन गई है अब हरामजादी। अब तेरी चूत की खैर नहीं.."
##### ####*
शीतल की दूसरी सुहागरात के बाद उसके पति विकास की वापसी
शीतल का जिस्म ऐंठने लगा था। उसकी चूत पानी छोड़ने वाली थी। शीतल आहह... उहह... कर रही थी की तभी दरवाजा में नाक-नाक की आवाज हई। शीतल के चूत की सारी गर्मी एक झटके में उतर गई। अभी कौन हो सकता है? शीतल अपने घर में किसी गैर-मर्द के साथ नंगी थी और चुदवाने की प्रक्रिया में थी। वो घड़ी की तरफ देखी तो 11:00 बज रहे थे। वो सोफे से उठ खड़ी हुई। उसका मूड खराब हो गया। वो गुस्से में भी थी और डर भी रही थी। दरवाजा पे फिर से नाक हुआ।
शीतल अपनी नाइटी उठा ली और पहनती हुई पूछी- "कौन है?"
शीतल अपने बालों को अइजस्ट की और दरवाजा में लगे मैजिक आई से देखी, तो बाहर विकास खड़ा था। शीतल थोड़ा डर गई। उसके मन में चोर था की विकास तो दोपहर तक आएगा, तब तक एक बार और चुदवा लेती हैं वसीम से। उसे विकास के इतनी जल्दी आने की उम्मीद नहीं थी। उसके हिसाब से विकास दो तीन बजे तक आता और तब तक तो उसकी चूत एक बार और वसीम के मसल लण्ड का पानी पी चुकी होती। शीतल खुद को थोड़ा अइजस्ट की और दरवाजा खोली। वसीम तब तक खुद को सम्हाल चुका था। शीतल मुश्कुराती हुई दरवाजा खोली।
विकास गुस्म में तो था ही, शीतल के हाव-भाव से और देर से दरवाजा खोलने से वा और गुस्सा हो रहा था। वो अंदर आया तो कसीम को बैंठे देखकर उसका पड़ा और चढ़ गया, और कहा- "कैसे हैं वसीम चाचा?" उसने खुद के गुस्से पे काबू किया हुआ था।
वसीम- "ठीक हूँ विकास बाबू.."
शीतल विकास का बैग ले ली और रूम में रख आई।
शीतल सोची की ब्रा पहन लेती हैं लेकिन ये संभव नहीं था। ब्रा पहनने के लिए उसे नाइटी को होना पड़ता और तब वो ब्रा पहन पाती। अगर कहीं इस बीच विकास गम में आ जाता तो? शीत समझाने लगी की- "क्या हुआ बिना बा के हूँ तो? कोई छुपकर थोड़े ही चुदवा रही थी वसीम में? उससे पूछ कर सब कुछ की हैं और अगर उसने हल्ला किया तो वो समझंगा। शीतल सांची की पैंटी पहन लेती हैं। ये तो आसान काम था..."
शीतल किचन में विकास के लिए पानी लेने आई और पेंटी दँदी तो उसे ख्याल आया की वो तो पेंटी लेकर बाहर गई थी। उसकी जान अटक गई। पानी लेकर वो बाहर आई तो देखी की पैंटी सोफा में वसीम से कछ ही दूरी पें रखी हुई है। शीतल अपने मन में कई तरह की बातें, सवाल जवाब सोचने लगी।
विकास बगल वाले सोफा पे बैठ चुका था, पूछा- "कैसी रही आपकी सुहागरात वसीम चाचा?"
वसीम उसके ताने को समझ गया। वो थोड़ी देर चुप रहा। दो पल बाद उसने सिर को झकाते हए जवाब दिया "ठीक रही विकास बाबू। बहुत-बहुत मेहरबानी आप लोगों की। आप लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया की आपने मुझे समझा और मेरी जिंदगी को वापस पटरी पै लाने के लिये इतना कुछ किया..."
विकास शीतल के आने की आवाज सुना तो उसे देखा। शीतल को देखकर उसे अंदाजा हो गया की शीतल अंदर कुछ नहीं पहनी है। उसके चेहरे में कुटिल मुश्कान आ गई और वो शीतल के हाथ में पानी का उल्लास ले लिया और पानी पीने लगा। विकास सोचने लगा की रात में तो दमदार रही ही होगी इनकी सुहागरात, बची-खुची कसर अभी निकल रही थी। उसे शीतल और वसीम में और गुस्सा आ गया।
विकास- "कैसी है मेरी बीवी? मस्त है ना?"
फिर विकास शीतल को देखकर बोला- "शीतल, तुमने वसीम चाचा को कोई कमी तो नहीं होने दी ना?"
फिर विकास वसीम से मुखातिब होकर बोला- "यें पूरा साथ दी ना आपका? मजा आया ना आपको?"
वसीम फिर कुछ नहीं बोला। फिर उसने कुछ देर रुककर जवाब दिया- "आप लोग तो फरिश्ता हैं मेरे लिए विकास बाबू। ये तो आप लोग हैं, जिन्होंने मेरे दर्द को, मेरी मेरे हालत को समझा नहीं तो लोग तो पता नहीं क्या-क्या सोचते मेरे बारे में? आप लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया.."
विकास उसी टोने में बोला- "में कहाँ फरिश्ता हैं वसीम चाचा? वा तो मेरी बीवी है जो आपके दर्द को समझी और आपकी मदद करने के लिए अपना जिस्म आपको देने को राजी हो गई। मैं तो बस अपनी बीबी का साथ दे रहा था." उसकी नजर सोफे में पड़े पैंटी में पड़ चुकी थी।
वसीम को चूत के पास हाथ ले जाते ही गर्मी का एहसास हुआ। उसने शीतल के पैर को सोफा से उठाकर सोफा की पुष्त पे रख दिया। अब शीतल का एक पैर जमीन पे था और दूसरा सोफा की पुष्त पें। शीतल की चूत फ्री खुल गई थी और फैल गई थी। वसीम चूचियों का चूसने लगा और चूत में उंगली करने लगा। शीतल आह्ह... उहह... करने लगी। उसे थोड़ा राहत तो मिल रही थी लेकिन मजा अभी भी नहीं आ रहा था।
शीतल- "आप गाली क्यों नहीं दे रहे मुझे, नाच खसोट क्यों नहीं रहे? खा जाइए मेरी चूचियों को वसीम्म आहह.. में रंडी हैं आपकी, कतिया हैं आपकी। मेरी चूत को आपके लण्ड में पागल बना दिया है। इसे चोदकर फाड़ दीजिए वसीम..."
वसीम की उंगली तेजी से अंदर-बाहर होने लगी थी।
... आहह... वसीम में क्या बना
शीतल- "आहह ... वसीम्म... मेरे वसीम्म और जोर से आहह... और अंदर उम्म्म्म दिया है आपने मुझे? आहह... ओहह... आआआ.. उम्म्म्म ..."
वसीम उसके निपल पे दाँत से काटता हुआ बोला- "ही.... मेरी रंडी छिनाल कुतिया मादर चोद। तेरी रंडी चूत को अब मेरा मूसल लण्ड चाहिए। तू रंडी बन गई है अब हरामजादी। अब तेरी चूत की खैर नहीं.."
##### ####*
शीतल की दूसरी सुहागरात के बाद उसके पति विकास की वापसी
शीतल का जिस्म ऐंठने लगा था। उसकी चूत पानी छोड़ने वाली थी। शीतल आहह... उहह... कर रही थी की तभी दरवाजा में नाक-नाक की आवाज हई। शीतल के चूत की सारी गर्मी एक झटके में उतर गई। अभी कौन हो सकता है? शीतल अपने घर में किसी गैर-मर्द के साथ नंगी थी और चुदवाने की प्रक्रिया में थी। वो घड़ी की तरफ देखी तो 11:00 बज रहे थे। वो सोफे से उठ खड़ी हुई। उसका मूड खराब हो गया। वो गुस्से में भी थी और डर भी रही थी। दरवाजा पे फिर से नाक हुआ।
शीतल अपनी नाइटी उठा ली और पहनती हुई पूछी- "कौन है?"
शीतल अपने बालों को अइजस्ट की और दरवाजा में लगे मैजिक आई से देखी, तो बाहर विकास खड़ा था। शीतल थोड़ा डर गई। उसके मन में चोर था की विकास तो दोपहर तक आएगा, तब तक एक बार और चुदवा लेती हैं वसीम से। उसे विकास के इतनी जल्दी आने की उम्मीद नहीं थी। उसके हिसाब से विकास दो तीन बजे तक आता और तब तक तो उसकी चूत एक बार और वसीम के मसल लण्ड का पानी पी चुकी होती। शीतल खुद को थोड़ा अइजस्ट की और दरवाजा खोली। वसीम तब तक खुद को सम्हाल चुका था। शीतल मुश्कुराती हुई दरवाजा खोली।
विकास गुस्म में तो था ही, शीतल के हाव-भाव से और देर से दरवाजा खोलने से वा और गुस्सा हो रहा था। वो अंदर आया तो कसीम को बैंठे देखकर उसका पड़ा और चढ़ गया, और कहा- "कैसे हैं वसीम चाचा?" उसने खुद के गुस्से पे काबू किया हुआ था।
वसीम- "ठीक हूँ विकास बाबू.."
शीतल विकास का बैग ले ली और रूम में रख आई।
शीतल सोची की ब्रा पहन लेती हैं लेकिन ये संभव नहीं था। ब्रा पहनने के लिए उसे नाइटी को होना पड़ता और तब वो ब्रा पहन पाती। अगर कहीं इस बीच विकास गम में आ जाता तो? शीत समझाने लगी की- "क्या हुआ बिना बा के हूँ तो? कोई छुपकर थोड़े ही चुदवा रही थी वसीम में? उससे पूछ कर सब कुछ की हैं और अगर उसने हल्ला किया तो वो समझंगा। शीतल सांची की पैंटी पहन लेती हैं। ये तो आसान काम था..."
शीतल किचन में विकास के लिए पानी लेने आई और पेंटी दँदी तो उसे ख्याल आया की वो तो पेंटी लेकर बाहर गई थी। उसकी जान अटक गई। पानी लेकर वो बाहर आई तो देखी की पैंटी सोफा में वसीम से कछ ही दूरी पें रखी हुई है। शीतल अपने मन में कई तरह की बातें, सवाल जवाब सोचने लगी।
विकास बगल वाले सोफा पे बैठ चुका था, पूछा- "कैसी रही आपकी सुहागरात वसीम चाचा?"
वसीम उसके ताने को समझ गया। वो थोड़ी देर चुप रहा। दो पल बाद उसने सिर को झकाते हए जवाब दिया "ठीक रही विकास बाबू। बहुत-बहुत मेहरबानी आप लोगों की। आप लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया की आपने मुझे समझा और मेरी जिंदगी को वापस पटरी पै लाने के लिये इतना कुछ किया..."
विकास शीतल के आने की आवाज सुना तो उसे देखा। शीतल को देखकर उसे अंदाजा हो गया की शीतल अंदर कुछ नहीं पहनी है। उसके चेहरे में कुटिल मुश्कान आ गई और वो शीतल के हाथ में पानी का उल्लास ले लिया और पानी पीने लगा। विकास सोचने लगा की रात में तो दमदार रही ही होगी इनकी सुहागरात, बची-खुची कसर अभी निकल रही थी। उसे शीतल और वसीम में और गुस्सा आ गया।
विकास- "कैसी है मेरी बीवी? मस्त है ना?"
फिर विकास शीतल को देखकर बोला- "शीतल, तुमने वसीम चाचा को कोई कमी तो नहीं होने दी ना?"
फिर विकास वसीम से मुखातिब होकर बोला- "यें पूरा साथ दी ना आपका? मजा आया ना आपको?"
वसीम फिर कुछ नहीं बोला। फिर उसने कुछ देर रुककर जवाब दिया- "आप लोग तो फरिश्ता हैं मेरे लिए विकास बाबू। ये तो आप लोग हैं, जिन्होंने मेरे दर्द को, मेरी मेरे हालत को समझा नहीं तो लोग तो पता नहीं क्या-क्या सोचते मेरे बारे में? आप लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया.."
विकास उसी टोने में बोला- "में कहाँ फरिश्ता हैं वसीम चाचा? वा तो मेरी बीवी है जो आपके दर्द को समझी और आपकी मदद करने के लिए अपना जिस्म आपको देने को राजी हो गई। मैं तो बस अपनी बीबी का साथ दे रहा था." उसकी नजर सोफे में पड़े पैंटी में पड़ चुकी थी।
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Re: Adultery शीतल का समर्पण
वसीम बोला- "मेरी नजर में तो दोनों फरिस्त हैं। ये आपकी महानता है की आपने अपनी बीवी का साथ दिया। एक अंजान इंसान की मदद के लिए इतना बड़ा फैसला लिया आपने। आप महान है विकास बाब.."
विकास धीरे से बोला- "महान नहीं चूतिया हूँ मैं.." जिसे कोई सुन नहीं सका लेकिन सबको उसका मूड समझ में आ रहा था।
वसीम के बगल में रखी शीतल की पेंटी को देखकर उसका गुस्सा और बढ़ गया था। उसे यकीन हो गया था की दोनों अभी भी सेक्स कर रहे थे। या तो सुबह का एक पाउंड हो चुका था या हो रहा था।
विकास- "तो सुहागरात हो गई या कुछ बाकी है? अगर बाकी है तो आप लोग कर सकते हैं अभी, में रूम में चला जाता है." बोलता हुआ विकास सोफा से उठ खड़ा हुआ, और उसकी आवाज में तल्खी आ गई थी।
वसीम तुरंत बोला- "ये कैसी बातें कर रहे हैं आप विकास बाबू?'
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विकास बोला- “नहीं अगर सुहागरात का कोटा पूरा नहीं हुआ है, या अभी और करना है तो आप लोग कर लीजिए, मैं गम में सो जाता हैं..."
फिर विकास शीतल से बोला- "शीतल, जाओ वसीम चाचा के साथ सुहागरात पूरी करो। उन्हें कोई कमी ना रह जाए...' बोलता हुआ वो शीतल की बौंह पकड़ा और वसीम की तरफ जाने को पुश किया।
शीतल हड़बड़ा गई- "ये क्या कर रहे हो विकास? ये क्या हो गया तुम्हें आते ही..."
वसीम भी बोला- "विकास बाबू ये कैसे कर रहे हैं आप?"
विकास बोला- “सही कह रहा हूँ। अगर आपको कुछ और करना है तो कर लीजिए। पूरा कर लीजिए अपनी सुहागरात। और अगर हो चुकी है तो अब आप जा सकते हैं यहाँ से। हम इससे ज्यादा आपकी मदद नहीं कर सकते..." विकास दोनों हाथ जोड़कर वसीम के सामने खड़ा था।
विकास फिर बोला "जितनी महानता मुझे दिखानी थी, दिखा चुका है। अब और नहीं..."
वसीम चकित सा होने की आक्टिंग कर रहा था। ये तो जैसा उसने सोचा था उससे भी अच्छा हो रहा था उसके प्लान के लिए। उसे यकीन नहीं था की विकास इस तरह गुस्से में आ जाएगा। उसने शीतल पे जो जान चलाया था, अब उसके असर होने का इंतजार कर रहा था वो।
शीतल अब चीख पड़ी- "विकास, ये क्या हो गया तुम्हें आते हो। तुम्हें नहीं पसंद था ता मना कर देते। तुमसे पूछूकर ना वसीम चाचा को ही बोली थी मैं। यहां तक की तुम्हारे हाँ बोलने के तीन दिन बाद इन्हें ही कहा मैंने।
और इन तीन दिनों में तुम्ही मुझे समझा रहे थे की मुझे करना चाहिए वसीम चाचा के साथ। अब अचानक क्या हो गया तुम्हें?"
विकास भी चीख पड़ा- "तो हो गया ना? चुदवा ली ना? मना ली ना सुहागरात? मैं उसके लिए तो कुछ नहीं बोल रहा। और अगर कुछ करना है तो कर ला अभी। मैं तो यही कह रहा है। लेकिन जिंदगी भर तो सुहागरात नहीं मनेगी ना?"
वसीम कुछ बोलने की सोच रहा था। लेकिन शीतल फिर बोल पड़ी- "तो कौन मना रहा है सहागरात? में तो जा ही रहे थे की में इन्हें नाश्ता करने के लिए रोक ली। तम पता नहीं क्यों आते ही शुरू हो गय?"
विकास बोला- "हाँ... नंगी होकर रोक ली थी ना... बो पैटी तुम खुद उतारी या यं उतारे? शीतल सुनो, मैं झगड़ा नहीं करना चाहता। जो होना था हो चुका, लेकिन अब ये और नहीं होगा। मेरी इजाजत से हुआ, मैं चूतिया था जो ये पागलपन कर बैठा। लेकिन अब और कुछ नहीं होगा..."
फिर विकास वसीम को बोला- "प्लीज वसीम चाचा, इससे ज्यादा मदद में आपकी नहीं कर सकता। आप जाइए..."
शीतल पेंटी और नाइटी की बात सुनकर सकते में आ गई की विकास कह तो सही हो रहा है। लेकिन उसे लगा की अगर वो अभी नहीं बोल पाई तो बाद में भले वो विकास को मना भी ले, लेकिन फिर भी वसीम उसे फिर कभी नहीं चोदेगा। नहीं नहीं, वसीम को तो मुझे चोदना ही होगा।
शीतल तुरंत बोल पड़ी- "विकास तुम समझ क्यों नहीं रहे? ये क्या पागलों के जैसी बातें किए जा रहे हो? जब तुम्हें नहीं पसंद था तो मुझे मना करना चाहिए था, रोकना था। लेकिन तब तो बहुत महान बन रहे थे और उल्टा मुझे ही समझा रहे थे। में तीन दिन तक यही सोचकर रुकी रही की मेरे जिश्म में मेरे पति का हक है, वो किसी और को क्यों दूं? लेकिन जब तुमने मुझे समझाया तब फिर मैं सोची की मुझे अब कर ही लेना चाहिए."
विकास धीरे से बोला- "महान नहीं चूतिया हूँ मैं.." जिसे कोई सुन नहीं सका लेकिन सबको उसका मूड समझ में आ रहा था।
वसीम के बगल में रखी शीतल की पेंटी को देखकर उसका गुस्सा और बढ़ गया था। उसे यकीन हो गया था की दोनों अभी भी सेक्स कर रहे थे। या तो सुबह का एक पाउंड हो चुका था या हो रहा था।
विकास- "तो सुहागरात हो गई या कुछ बाकी है? अगर बाकी है तो आप लोग कर सकते हैं अभी, में रूम में चला जाता है." बोलता हुआ विकास सोफा से उठ खड़ा हुआ, और उसकी आवाज में तल्खी आ गई थी।
वसीम तुरंत बोला- "ये कैसी बातें कर रहे हैं आप विकास बाबू?'
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विकास बोला- “नहीं अगर सुहागरात का कोटा पूरा नहीं हुआ है, या अभी और करना है तो आप लोग कर लीजिए, मैं गम में सो जाता हैं..."
फिर विकास शीतल से बोला- "शीतल, जाओ वसीम चाचा के साथ सुहागरात पूरी करो। उन्हें कोई कमी ना रह जाए...' बोलता हुआ वो शीतल की बौंह पकड़ा और वसीम की तरफ जाने को पुश किया।
शीतल हड़बड़ा गई- "ये क्या कर रहे हो विकास? ये क्या हो गया तुम्हें आते ही..."
वसीम भी बोला- "विकास बाबू ये कैसे कर रहे हैं आप?"
विकास बोला- “सही कह रहा हूँ। अगर आपको कुछ और करना है तो कर लीजिए। पूरा कर लीजिए अपनी सुहागरात। और अगर हो चुकी है तो अब आप जा सकते हैं यहाँ से। हम इससे ज्यादा आपकी मदद नहीं कर सकते..." विकास दोनों हाथ जोड़कर वसीम के सामने खड़ा था।
विकास फिर बोला "जितनी महानता मुझे दिखानी थी, दिखा चुका है। अब और नहीं..."
वसीम चकित सा होने की आक्टिंग कर रहा था। ये तो जैसा उसने सोचा था उससे भी अच्छा हो रहा था उसके प्लान के लिए। उसे यकीन नहीं था की विकास इस तरह गुस्से में आ जाएगा। उसने शीतल पे जो जान चलाया था, अब उसके असर होने का इंतजार कर रहा था वो।
शीतल अब चीख पड़ी- "विकास, ये क्या हो गया तुम्हें आते हो। तुम्हें नहीं पसंद था ता मना कर देते। तुमसे पूछूकर ना वसीम चाचा को ही बोली थी मैं। यहां तक की तुम्हारे हाँ बोलने के तीन दिन बाद इन्हें ही कहा मैंने।
और इन तीन दिनों में तुम्ही मुझे समझा रहे थे की मुझे करना चाहिए वसीम चाचा के साथ। अब अचानक क्या हो गया तुम्हें?"
विकास भी चीख पड़ा- "तो हो गया ना? चुदवा ली ना? मना ली ना सुहागरात? मैं उसके लिए तो कुछ नहीं बोल रहा। और अगर कुछ करना है तो कर ला अभी। मैं तो यही कह रहा है। लेकिन जिंदगी भर तो सुहागरात नहीं मनेगी ना?"
वसीम कुछ बोलने की सोच रहा था। लेकिन शीतल फिर बोल पड़ी- "तो कौन मना रहा है सहागरात? में तो जा ही रहे थे की में इन्हें नाश्ता करने के लिए रोक ली। तम पता नहीं क्यों आते ही शुरू हो गय?"
विकास बोला- "हाँ... नंगी होकर रोक ली थी ना... बो पैटी तुम खुद उतारी या यं उतारे? शीतल सुनो, मैं झगड़ा नहीं करना चाहता। जो होना था हो चुका, लेकिन अब ये और नहीं होगा। मेरी इजाजत से हुआ, मैं चूतिया था जो ये पागलपन कर बैठा। लेकिन अब और कुछ नहीं होगा..."
फिर विकास वसीम को बोला- "प्लीज वसीम चाचा, इससे ज्यादा मदद में आपकी नहीं कर सकता। आप जाइए..."
शीतल पेंटी और नाइटी की बात सुनकर सकते में आ गई की विकास कह तो सही हो रहा है। लेकिन उसे लगा की अगर वो अभी नहीं बोल पाई तो बाद में भले वो विकास को मना भी ले, लेकिन फिर भी वसीम उसे फिर कभी नहीं चोदेगा। नहीं नहीं, वसीम को तो मुझे चोदना ही होगा।
शीतल तुरंत बोल पड़ी- "विकास तुम समझ क्यों नहीं रहे? ये क्या पागलों के जैसी बातें किए जा रहे हो? जब तुम्हें नहीं पसंद था तो मुझे मना करना चाहिए था, रोकना था। लेकिन तब तो बहुत महान बन रहे थे और उल्टा मुझे ही समझा रहे थे। में तीन दिन तक यही सोचकर रुकी रही की मेरे जिश्म में मेरे पति का हक है, वो किसी और को क्यों दूं? लेकिन जब तुमने मुझे समझाया तब फिर मैं सोची की मुझे अब कर ही लेना चाहिए."
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- 007
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