Thriller इंसाफ

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koushal
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Re: Thriller इंसाफ

Post by koushal »

मैं राजेन्द्र प्रसाद रोड पहुंचा ।
तब तक दस बज चुके थे ।
मेरे साथ शेफाली परमार थी जिसने मेरी दरख्वास्त पर मेरे साथ आना कबूल किया था । मैंने उसे बताया था कि मैं संगीता निगम से मिलना चाहता था लेकिन सांसद की सरकारी कोठी में उस तक पहुंचने में मुझे दिक्कत का सामना करना पड़ सकता था जबकि भांजी को मामी से मिलने से कोई न रोकता ।
और मैं पुछल्ला ।
सिक्योरिटी गार्ड शेफाली को पहचानता था इसलिये भीतर दाखिल होने में हमें कोई दिक्कत पेश न आयी ।
हमने यार्ड में कदम रखा ।
रास्ते में मैं शेफाली को सार्थक और संगीता के सीक्रेट लव अफेयर की बाबत बता चुका था । वो चमत्कृत थी कि उसके जीजा का उसकी मामी से अफेयर था ।
मैंने बंगले के मेनडोर पर पहुंचकर कालबैल बजाई तो दरवाजा मेड ने खोला । उसने शेफाली का अभिवादन किया, मैं क्योंकि मालकिन की भांजी के साथ था इसलिये मेरा भी अभिवादन किया ।
“साहब गये ?” - शेफाली ने पूछा ।
“जी हां ।” - जवाब मिला - “आज जल्दी चले गये थे ।”
“मेम साहब ?”
“वो अभी बाहर नहीं आयीं ।”
“बाहर नहीं आयीं ! कहां से बाहर नहीं आयीं ?”
“बैडरूम से ।”
“भई, दस बज रहे हैं । जा के जगाती उन्हें !”
“हुक्म नहीं है ।”
“क्या मतलब ?”
“मैडम का हुक्म है घंटी सुने बिना उनके पास नहीं जाना । किचन में घन्टी है । उनके पास उसका कार्डलैस बटन है । घंटी बजा कर बुलाती हैं तो जाती हूं ।”
“कोई मार्निंग टी वगैरह सर्व नहीं करती ?”
“करती हूं । लेकिन वो भी जब घन्टी बजे ।”
“हूं । जा ।”
मेड चली गयी ।
“तुम ठहरो ।” - शेफाली मेरे से बोली - “मैं देखती हूं ।”
वो पिछवाड़े को जाते गलियारे की तरफ बढ़ चली ।
पीछे मैं खामोश खड़ा प्रतीक्षा करता रहा ।
वो अंग्रेज के वक्त के बंगले थे जिनमें ऐश्वर्य की कमी थी लेकिन जिनमें रहना, रह पाना, शान की, अभिमान की बात थी ।
एक जोर की चीज वातावरण में गूंजी ।
जनाना चीज !
शेफाली के अलावा और किसकी होती !
मैं उधर झपटा जिधर शेफाली गयी थी ।
बंगले में पृष्ठभाग में एक विशाल बैडरूम था जिसका दरवाजा खुला था और शेफाली उसकी चौखट थामे पेंडुलम की तरह झूल रही थी । उसका चेहरा फक था और आंखों में गहन आतंक के भाव थे ।
“क्या हुआ ?” - मैं व्यग्र भाव से बोला ।
कोशिश करने पर भी उसके मुंह से बोल न फूटा, होंठ फड़फड़ा के रह गये, उसने अटैच्ड बाथरूम की तरफ उंगली उठा दी ।
मैंने चौखट से भीतर कदम डाला, ठिठका, मैंने सिर उठा कर नथुने फुलाये और जोर से सांस खींची ।
वातावरण में एक अजीब सी गन्ध व्याप्त थी ।
क्षीण लेकिन तीखी । जैसी किसी चीज के सुलगने से आती है ।
शायद वहां कोई स्प्रे इस्तेमाल किया गया था ।
मैंने बैडरूम क्रॉस किया और बाथरूम पर पहुंचा । दरवाजा खुला था । मेरी भीतर निगाह पड़ी तो मैं वहीं थमक कर खड़ा हो गया ।
बाथटब में वो मरी पड़ी थी । उसकी पथराई आंखें मुझे चौखट पर से ही दिखाई दे रही थीं । बाथटब पानी से भरा हुआ था और जिस पोजीशन में वो थी, उसमें पानी उसकी भवों तक आ रहा था ।
भारी कदमों से चलता मैं टब के करीब पहुंचा । मैंने झुक कर उसकी सूरत का मुआयना किया तो मुझे उसकी मेरी ओर की कनपटी पर एक गूमड़ दिखाई दिया जो इतना बड़ा था कि बालों से बाहर झांक रहा था ।
बाथ टब मार्बल का था ।
हादसा !
बाथटब में उतरी, पांव फिसला, कनपटी टब की साइड से टकराई तो होश खो बैठी । फिर बेहोशी में ही टब के पानी में डूब के मर गयी ।
मैंने पानी को छुआ ।
वो अभी पर्याप्त गर्म था । यानी हादसा हुए ज्यादा देर नहीं हुई थी । ज्यादा देर हुई होती तो पानी ठण्डा हो चुका होता ।
मैं उठ कर सीधा हुआ, आदतन मैंने बारीक, खोजी निगाह हर तरफ दौड़ाई ।
सिंक के नीचे एक स्टील की, गोल, वेस्ट पेपर बास्केट पड़ी थी जिसे मैंने बाहर खींचा और भीतर झांका । उसमें सिर्फ तीन चार गुच्छा मुच्छा टिशूज थे और -
पोलीथीन की एक लम्बी, गोल, छपी हुई नलकी थी ।
मैंने उसको वहां से उठाया ।
सिगारेलो । मेड इन पुर्तगाल ।
वो वैसे चुरुट का रैपर था जैसा मैंने रॉक डिसिल्वा को पीते देखा था ।
अब वो क्षीण, गन्ध भी कोई राज न रही जो कि वातावरण में व्याप्त थी ।
वो खास पुर्तगाली चुरुट की ही तीखी गन्ध थी जो अपना महत्व खुद जता रही थी, बल्कि अपनी कहानी खुद कह रही थी ।
अभी जो मैं वाकये की बाबत फैसला करके हटा था, अब उस पर पुनर्विचार जरूरी था ।
क्या वाकेई वो हादसा था ?
मैंने रैपर को वापिस बास्केट में डाला, मोबाइल कैमरे से रैपर को फोकस करके बास्केट की तसवीर खींची, बास्केट पर से अपने फिंगरप्रिंट्स पोंछ कर मिटाये और फिर बास्केट को सिंक के नीचे यथास्थान सरका दिया ।
मैं बाथरूम से निकल कर वापिस शेफाली के पास पहुंचा । वो अभी भी चौखट पर खड़ी थी, अलबत्ता उसका झूलना बन्द हो गया था ।
उसके पास मेड खड़ी थी, शायद उसी ने आ कर शेफाली को सम्भाला था ।
शेफाली की चीख की आवाज जरूर बंगले के आयरन गेट तक नहीं पहुंची थी वर्ना सिक्योरिटी गार्ड भी वहां होता ।
“एमपी साहब को खबर करनी होगी !” - मैं शेफाली से सम्बोधित हुआ - “फोन करो उन्हें ।”
शेफाली ने मेड की तरफ देखा ।
“मैंने किया था ।” - मेड जल्दी से बोली - “साहब फोन नहीं ले रहे ।”
“ओह !”
“उनके आफिस में फोन लगाया था तो कोई बोला था कि वो वहां नहीं थे लेकिन वो परमार साहब के यहां हो सकते थे ।”
“वहां फोन किया ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“नम्बर नहीं मालूम ।”
“पुलिस को ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“मैडम ने बोला नहीं ।”
ट्रेंड मेड थी । हुक्म के मुताबिक ही काम करती थी ।
“तुम करो ।” - मैं शेफाली से बोला ।
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
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koushal
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Re: Thriller इंसाफ

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लोकल थाने से पुलिस वाले फौरन पहुंचे ।
मैंने युवा सब-इन्स्पेक्टर को अपना परिचय दिया और उस पर शक जाहिर किया कि वो कत्ल का केस हो सकता था ।
उसके नेत्र फैले । तत्काल वो अपने मोबाइल से उलझ गया ।
पन्द्रह मिनट में इन्स्पेक्टर यादव वहां पहुंच गया ।
उसने देख कर भी मेरे को नजरअन्दाज कर दिया और सब-इन्स्पेक्टर के साथ मौकायवारदात और वारदात की शिकार के मुआयने में जुट गया ।
आखिर वो अपने काम से फारिग हुआ ।
उसने मेरी बांह थामी और मुझे बैडरूम से बाहर ले आया ।
“यहां कैसे पहुंच गये ?” - उसके लहजे से उसकी व्यवसायसुलभ बेरुखी और सख्ती झलकी - “किससे वाकिफ थे ?”
“जिसकी जान गयी” - मैं सहज भाव से बोला - “उससे ।”
“कैसे ?”
“सांझे दोस्त ने मिलवाया ।”
“सांझा दोस्त कौन ?”
“शेफाली परमार । वो मकतूला से मिलने आ रही थी, मैं भी साथ चला आया ।”
“वो तुम्हें साथ लायी थी ?”
“हां ।”
“वो तो कहती है तुम उसे साथ लाये थे !”
“अच्छा, ऐसा कहती है वो ?”
“हां ।”
“कुछ कहने सुनने में फर्क आ गया होगा !”
उसने घूर कर मुझे देखा ।
मैंने लापरवाही से कन्धे उचकाये ।
“यहां आ के क्या किया ?”
“कुछ नहीं किया । कुछ करने की नौबत ही न आयी । पहले ही वो हुआ मिल गया जो... जो... तुम्हें मालूम ही है क्या !”
“लाश किसने बरामद की ?”
“शेफाली ने ।”
“तुम बाद में गये वहां ?”
“हां ।”
“क्यों ?”
“कनफर्म करने के लिये कि मैडम वाकेई मर चुकी थी ।”
“कैसे किया कनफर्म ? नब्ज देखी ? हार्ट बीट चैक की ? शाहरग टटोली ?”
“वो सब करने की जरूरत ही नहीं थी । दूर से ही पथराई आंखें दिखाई दे रही थीं । दूर से ही जान पड़ रहा था कि उनसे जीवन ज्योति बुझ चुकी थी । पंछी उड़ गया था पिंजरा छोड़ के...”
“शायरी मत करो ।”
मैंने होंठ भींचे ।
“ये क्या शोशा छोड़ा कि ये कत्ल का केस है ?”
“नहीं है ?”
“अरे, साफ तो जाहिर हो रहा है कि एक्सीडेंट हुआ ! ये भी साफ दिख रहा है कि कैसे एक्सीडेंट हुआ ! बाथ लेने के लिये तैयार बाथटब में पांव फिसला, कनपटी किनारे से टकराई, वो बेहोश हो गयी और बेहोशी में पानी में डूब मरी । कनपटी पर बना गूमड़ अपनी कहानी खुद कह रहा है ।”
“कौन जानता है कि गूमड़ बना या बनाया गया !”
उसने फिर मुझे घूरा ।
“कोई औरत बाथरूम का दरवाजा भीतर से लॉक किये बिना नहाती है ?”
“घर में मेड के सिवाय कोई नहीं था ।”
“फिर भी नहाने से पहले बाथरूम को लॉक करना स्वाभाविक क्रिया होती है ।”
“कई बार बेध्यानी में दरवाजा लॉक किये जाने से रह जाता है । खुद मेरे साथ कई बार ऐसा हुआ है ।”
“माहौल में एक अजीब सी मुश्क व्याप्त थी - तीखी नहीं थी लेकिन थी - बाथरूम में पड़ी वेस्ट पेपर बास्केट में एक पुर्तगाली सिगार का रैपर पड़ा था । ये दोनों बातें यहां किसी ऐसे स्मोकर की मौजूदगी की चुगली करती हैं जिसकी स्मोक की तलब प्रबल थी ।”
“यानी तुमने उस बास्केट को हैंडल किया था !”
“हाथ नहीं लगाया था !”
“सिंक के नीचे जिस पोजीशन में बास्केट पड़ी है, उसमें उसके अन्दर नहीं झांका जा सकता, फिर...”
“मैंने पांव से उसे अपनी तरफ सरकाया था, फिर वैसे ही यथास्थान धकेला था ।”
“किसी और चीज को छुआ था ?”
“नहीं ।”
“शावर का पर्दा सरकाया होगा ! दरवाजे को धक्का दिया होगा !”
“वो सब शेफाली ने किया था ।”
“हूं । तो तुम्हारे खयाल से ये कत्ल का केस है...”
“हो सकता है ।”
“...जो किसी ऐसे शख्स ने किया जो पुर्तगाली सिगार पीता है !”
“जिसे चुरुट कहता है ।”
वो सकपकाया, उसने सन्दिग्ध भाव से मुझे घूरा ।
“लगता है” - फिर बोला - “ऐसे किसी शख्स को जानते हो ।”
मैंने सहमति में सिर हिलाया ।
“कौन है, नाम लो ।”
मैंने रॉक डिसिल्वा का नाम लिया । साथ में उसका परिचय भी जोड़ा ।
“तुम उसे इस बिना पर कातिल ठहराना चाहते हो कि इत्तफाक से वो वही पुर्तगाली सिगार पीता है जिसका रैपर बेस्ट पेपर बास्केट में पड़ा मिला ?”
“मैंने महज एक सम्भावना जाहिर की है ।”
“क्या पता के रैपर बास्केट में कब से पड़ा है !”
“मैंने मेड से पता किया है उस बास्केट को रोज सुबह खाली किया जाता है । आज भी किया गया था । फिर कब से पड़ा कैसे होगा ?”
“हूं ।”
“फिर माहौल में बसी मुश्क भी तो कुछ कहती है इस बाबत !”
“कहती है लेकिन वो अकेला ही तो नहीं होगा दिल्ली शहर में सिगार पीने वाला !”
“खास सिगार पीने वाला । जो चुरुट कहलाता है । जो पुर्तगाल से आता है ।”
“चलो, ऐसा ही सही, पर ऐसा भी वो अकेला ही तो नहीं होगा !”
“हजारों की तादाद में र्भो नहीं होंगे ! फिर वो कोई ऐसा शख्स होना भी तो जरूरी है जिसका यहां आना जाना हो !”
“इस... रॉक डिसिल्वा का यहां आना जाना है ?”
“हां । कल रात ही यहां था ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“मालूम किसी तरह से । एमपी साहब से पूछना कि रात वो यहां था या नहीं था !”
“मुझे रात का नहीं पता लेकिन गेट पर खड़ा सिक्योरिटी गार्ड कहता था कि सिवाय तुम्हारे आज यहां किसी मेल विजिटर के कदम नहीं पड़े थे ।”
“वो रात को उसके यहां आये होने की तसदीक करता है ?”
“रात की ड्यूटी पर कोई दूसरा गार्ड होता है ?”
“सवाल करना उससे । तसदीक होगी कि वो यहां आया था । फिर गार्ड से ये भी पता करना कि जैसे उसने उसे यहां पहुंचते देखा था, क्या वैसे ही रुखसत होते भी देखा था ?”
“रुखसत होते भी देखा था ! क्या मतलब है, भई, तुम्हारा ?”
“सोचो ! समझो !”
“तुम्हारा जिस बात की तरफ इशारा है वो सिवाय इसके और कुछ स्थापित नहीं करती कि तुम्हारा दिमाग चल गया है । तुम इतने बड़े नेता को कत्ल की साजिश में शामिल जताने की जुर्रत कर रहे हो ।”
मैं खामोश रहा ।
“शर्मा, मेरे सामने जो कहा सो कहा, किसी और के सामने ऐसा बोला तो तुम्हारा अंजाम गम्भीर होगा । किसी डिसिल्वा की बाबत कुछ कहना जुदा बात है लेकिन रूलिंग पार्टी के एक रसूख वाले नेता और सिटिंग एमपी की बाबत - जो सुना है कि मन्त्री बनने वाला है - मुंह फाड़ोगे तो खैर नहीं तुम्हारी । छ: बेटियों के बाद बेटे का बाप बनने की मुझे बड़ी खुशी है जिसे मैंने तुम्हारे साथ सांझा किया है इसलिये इस बार, सिर्फ इस बार, मैं तुम्हारी वाही तबाही को अभी भूल जाने को तैयार हूं । फिर मुंह फाड़ोगे तो पछताओगे ।”
मैंने प्रतिवाद न किया ।
“वो रात भर छुप कर यहां रहा होता और दिन में यहां से निकल कर गया होता तो मेड ने न सही, बाहर आयरन गेट पर खड़े गार्ड ने तो उसे देख होता ! इस बारे में क्या कहते हो ?”
“सिवाय इसके क्या कह सकता हूं कि चुरुट पुर्तगाली ही नहीं, करामाती भी है, कश लगाने वाला शख्स थोड़े अरसे के लिये अदृश्य मानव बन जाना है ।”
तभी लोकल थाने वाला सब-इन्स्पेक्टर वहां पहुंचा ।
“सर” - वो बोला - “एमपी साहब से डायरेक्ट बात तो नहीं हो सकी लेकिन कनफर्म हुआ है कि वो अपने जीजा अमरनाथ परमार के यहां थे । परमार साहब ने आश्वासन दिया है कि वो जल्द-अज-जल्द एमपी साहब को ले कर यहां पहुंचेंगे ।”
“गुड ।”
सब-इन्स्पेक्टर वापिस चला गया ।
“मैं सिग्रेट पी सकता हूं ?” - पीछे मैं बोला ।
“सिग्रेट !” - उसकी भवें उठी - “धूम्रपान की तुम्हारी भी तलब वैसी ही है जैसी तुमने कातिल की बयान की ?”
“नहीं । मैं सब्र कर सकता हूं ।”
“अहसान न करो मेरे पर ।”
“अरे, नहीं, यादव साहब, मैं तो...”
“बाहर चलो ।”
“बाहर ।”
“लान में । वहां पीना सिग्रेट ।”
“ओह !”
हम दोनों सामने के लान में पहुंचे और उसके एक तरफ के तनहा कोने में जा कर खड़े हुए ।
“अब ?” - वो बोला ।
उसका धन्यवाद करते मैंने एक सिग्रेट सुलगा लिया ।
“मैं तुम्हें यहां तुम्हारी सिग्रेटनोशी के लिये नहीं लाया ।” - वो गम्भीरता से बोला ।
मैं सकपकाया ।
“अब बयान करो तमाम किस्सा । मुझे क्या मालूम है, वो तुम्हें मालूम है । अब शराफत से वो बातें बोली, जो मुझे नहीं मालूम ।”
हाकिम का मिजाज अभी कम्पैटिबल लैवल पर था लेकिन आगे बिगड़ सकता था इसलिये उसको तड़काने भड़काने का कोई फायदा नहीं था । लिहाजा मैंने उसके हुक्म की तालीम की । शुरुआत मैंने सार्थक के अफेयर से की और ये विस्फोटक बात बयान की कि जिससे अफेयर था वो एमपी साहब की बीवी और अब मकतूला संगीता निगम थी ।
उसके चेहरे पर स्पष्ट अविश्वास के भाव आये ।
“हैरान होने वाली कोई बात नहीं, यादव साहब” - मैं बोला - “हाई सोसायटी में इन्सेस्ट (INCEST) अब कोई बड़ा वाकया नहीं रहा ।”
“आगे ?”
“कल संगीता निगम ने आधी रात को मुझे फोन किया था और मुझे सोते से जगाया था । वो बहुत डिस्टर्ब्ड थी, बहुत डरी हुई जान पड़ती थी, उसी ने मुझे बताया था कि रॉक डिसिल्वा एमपी साहब से मिलने आया था और दोनों काफी देर एक गुप्त मन्त्रणा में मशगूल रहे थे जिसके कुछ अंश उसने छुप कर सुने थे और महसूस किया था कि उनके बीच गुफ्तगू का मेन मुद्दा सार्थक था । जो उसने सुना था, उससे उसने ये नतीजा निकाला था कि आइन्दा वक्त में यकीनी तौर पर सार्थक के साथ कोई बुरी बीतने वाली थी और खुद उसके साथ बीत सकती थी ।”
“दोनों की जान को खतरा था ?”
“ऐसा स्पष्ट नहीं कहा था, दो टूक नहीं कहा था लेकिन जो कहा था, मर्म उसका यही था ।”
“क्या ? ये कि एमपी साहब उस आदमी को अपनी बीवी का कत्ल करने के लिये तैयार कर रहे थे ?”
“हां ।”
“नानसेंस !”
“मैंने वो बोला है जो उनकी बीवी - मकतूला संगीता - कहती थी कि उसको लगा था ।”
“जो उसको लगा था और जो तुमने अब डिटेक्ट किया, उसकी बिना पर तुम ये कहना चाहते हो कि एमपी साहब ने अपनी बीवी के कत्ल के लिये रॉक डिसिल्वा को ऐगेज किया, वो रात को छुप कर यहीं रहा, सुबह उसने बीवी का कत्ल यूं किया कि वो एक्सीडेंट जान पड़ता और फिर यूं यहां से खिसक गया कि न उसे मेड ने जाते देखा और न सिक्योरिटी गार्ड ने ?”
“हां ।”
“रॉक डिसिल्वा सुपारी किलर है ? बार चलाने के साथ साथ, केटरिंग के कॉन्ट्रैक्ट लेने के साथ साथ उसका काम कत्ल की सुपारी उठाना है ?”
“नहीं । लेकिन ऐसी वन टाइम जॉब के लिये रसूख वाला आदमी ऐसे किसी शख्स को तैयार कर सकता है जो उसके प्रभाव में हो ।”
“कत्ल के वक्त सिगार पीने की - तुम्हारे कहे मुताबिक चुरुट पीने की - क्या सूझी उसे ?”
“तलब ने सुझाया । ये स्थापित है कि वो हैवी स्मोकर है । दूसरे, वक्त की ही जरूरत ने समझाया ।”
“जरूरत ?”
“हौसला कायम रखने के लिये । जैसे लोग दिलेर बनने के लिये शराब का घूंट लगाते है, ड्रग्स का सहारा लेते हैं ।”
“सिक्योरिटी गार्ड ने उसे क्यों न देखा ?”
“उस सिलसिले में नेताजी ने उसकी कोई मदद की होगी !”
“कैसे ?”
“गार्ड को किसी काम से थोड़ी देर के लिये कहीं भेज दिया होगा या...”
“या क्या ?”
“उसे अपनी कार की डिकी में छुपा कर यहां से निकाला होगा ।”
“एमपी साहब की कार ड्राइवर चलाता है ।”
“आज ड्राइवर नहीं आया होगा ! या ड्राइवर भी एमपी साहब के कंफीडेंस में होगा ?”
“या डिसिल्वा जब चाहे मिस्टर इंडिया बन जाता होगा ! जैसे कि पहले भी बोला अदृश्य मानव के हवाले से । या चिड़िया कबूतर बन जाता होगा और आसमान में उड़ जाता होगा ! या काकरोच छिपकली बन जाता होगा, रेंग के निकल जाता होगा ।
“तुम मेरा मजाक उड़ा रहे हो !”
“तुम खुद अपना मजाक उड़ा रहे हो । सुबह सबेरे पी लेने वाले तो मैं जानता हूं कि तुम नहीं हो, क्या रात में इतनी चढ़ा ली कि अब तक नशा बाकी है ?”
तभी एक सफेद इनोवा गेट पर पहुंची ।
“एमपी साहब की सरकारी गाड़ी है ।” - यादव बोला - “ड्राईवर चला रहा है । अब क्या कहते हो ?”
मैं खामोश हो गया ।
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Re: Thriller इंसाफ

Post by Fuck_re »

Boss update deke khatam karo story
koushal
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Re: Thriller इंसाफ

Post by koushal »

मैं तिलक मार्ग थाने पहुंचा । ।
पुलिस के महकमे में मुकन्द लाल नाम का एक हवलदार मेरा वाकिफ था जो उन दिनों उस थाने में तैनात था ।
वो एक कट्टर पुलिसिया था जो इसी वजह से एक लम्बा अरसा सस्पेंड रहा था । सस्पेंशन के दौरान उसे आधी तनखाह मिलती थी जिससे उसका गुजारा चलना मुहाल था । उन दिनों उसकी अतिरिक्त आय का साधन मैं बना था जिसकी एवज में मैं उससे अपना कोई छोटा मोटा फुट वर्क करा लेता था या महकमे से रिकार्ड से ताल्लुक रखती कोई जानकारी निकलवानी हो तो निकलवा लेता था । बाद में खुशकिस्मती से वो नौकरी पर बहाल हो गया था तो वो सिलसिला बन्द हो गया था, अलबत्ता मेरी कोई छोटी मोटी बात वो अभी भी सुन लेता था ।
यादव की मेहरबानी थी कि उसने मुझे आर.पी. रोड से रुखसत पाने की इजाजत दे दी थी - हमेशा की तरह ये पुछल्ला जोड़ कर कि मैं उपलब्ध रहूं । शेफाली पीछे वहीं रुक गयी थी क्योंकि एक तो उसने लाश बरामद की थी इसलिये यादव ही ऐसा चाहता था, दूसरे, आखिर उसकी सगी मामी मरी थी, कैसे वो वहां से चली आती !
मुकन्दलाल मुझे थाने से बाहर आ कर मिला ।
मैंने उसे बताया कि मैं क्या जानकारी चाहता था और उसकी मुट्ठी में एक पांच सौ का नोट सरकाया । काम करने को तो वो राजी हो गया लेकिन नोट के भाई की मांग खड़ी कर दी ।
“बहुत महंगाई है, शर्मा ।” - वो बोला ।
“जिसका” - मैं भुनभुनाया - “तू अकेली मेरी कंट्रीब्यूशन से मुकाबला कर लेगा !”
“बून्द बून्द से ही घड़ा भरता है ।”
मैंने उसे पांच सौ का एक नोट और सौंपा और चेताया - “अब मेरा काम वार फुटिंग पर होना चाहिये ।”
“ऐसे ही होगा ।”
“पांच बजे मैं यहां पहुंच जाऊंगा ।”
“बेकार जहमत करेगा । क्या पता तेरा काम पहले ही हो जाये !”
“तो ?”
“मैं फोन करूंगा । या खुद तेरे पास आऊंगा । भगवान दास रोड यहां से है ही कितनी दूर !”
“मैं आजकल वहां नहीं हूं ।”
“आज हो ले । आखिर फ्लैट तो तेरा ही है !”
वो ठीक कहता था ।
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चार बजे ही मुझे वांछित जानकारी प्राप्त हो गयी ।
जो कि इस प्रकार थी :
‘रॉक्स’ दो दिन इसलिये बन्द रहा था क्योंकि वहां एक्साइज की रेड पड़ी थी । महकमे को शिकायत मिली थी कि वहां ड्यूटी अनपेड या समगल्ड लिकर सर्व होता था । रेड में ऐसा कुछ बरामद नहीं हुआ था इसलिये वो बार अब खुला था ।
वस्तुत: - मुकन्दलाल का कथन था - महकमे में से ही किसी ने वक्त रहते रॉक डिसिल्वा को रेड की बाबत खबरदार कर दिया था, नतीजतन उसने ऑब्जेक्शनेबल लिकर स्टॉक आनन फानन वहां से हटवा दिया था ।
पुलिस को एडवोकेट महाजन के जूनियर की ये प्ली कबूल नहीं हुई थी कि जमानती सार्थक बराल एकाएक बीमार पड़ गया था जिसकी वजह से वो उस रोज थाने की हाजिरी भरने आने में असमर्थ था । तत्काल उसे भगोड़ा घोषित कर दिया गया था और उसकी तलाश में आनन फानन तीन जगह दबिश की गयी थी जहां कि वो नहीं मिला था । बकौल मुकन्दलाल वैसी दबिश अभी और होने वाली थी ।
जिन तीन जगह दबिश हुई थी, वो थीं :
- ‘रॉक्स’ : ‘रॉक्स’ इसलिये क्योंकि एक तो उसमें बेसमेंट थी; दूसरे, उसके ऊपर ही एक फ्लैट था जो कि रिहायश के लिये बारमैन विशु मीरानी के हवाले था ।
- सैनिक फार्म्स में ही स्थित रॉक डिसिल्वा का आवास, क्योंकि वो ‘रॉक्स’ का मालिक था और सार्थक से अच्छी तरह से वाकिफ था ।
- मदनगीर में स्थित माधव धीमरे का आवास । वहां से सार्थक पुलिस के काबू में न आया लेकिन चरस के ढेरों सिग्रेट बरामद हुए अब माधव धीमरे के लिये भारी दुश्वारी का बायस बनने वाले थे ।
सार्थक के लिये और किन जगहों पर पुलिस की रेड पड़ने वाली थी, इस बाबत मुकन्दलाल को कोई खबर नहीं थी । टाइम का तोड़ा था इसलिये उस बाबत वो कोई पूछताछ नहीं कर सका था अलबत्ता अगले रोज कर सकता था अगर मैं उसे हजार रुपये का और नजराना पेश करता ।
मैंने ऐसा न किया ।
फिलहाल मैं इतने से ही संतुष्ट था कि पुलिस का ‘फाइन्ड सार्थक’ अभियान शुरू था जिसके तहत अभी उन्हें कोई कामयाबी हासिल हुई थी लेकिन वो अभी और जोर पकड़ने वाला था ।
अमूमन दिल्ली पुलिस को सुस्त रफ्तार बताया जाता था लेकिन सार्थक के केस में उन्होंने कमाल की फुर्ती और मुस्तैदी दिखाई थी ।
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