जंगल में लाश

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rajan
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Re: जंगल में लाश

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___ "बस, जी चाहता है कि इन्हें देखता ही रहूँ।" फ़रीदी ने गिलासों को तारीफ़-भरी नज़रों से देखते हुए कहा।

ठाकुर साहब गिलासों की तारीफ़ सुन कर और ज़्यादा ख़ुश होते जा रहे थे। सरोज जग में शर्बत ले कर आयी और उसने सबके गिलास भर दिये।

शर्बत पीने के दौरान इधर-उधर की बातें होती रहीं। ठाकुर साहब ने धर्मपुर के जंगल के केस के बारे में भी काफ़ी देर तक बातें कीं। उसके बाद फ़रीदी और हमीद वापस जाने के लिए तैयार हो गये। सरोज और ठाकुर उनके साथ फाटक तक आये। फ़रीदी ने कार स्टार्ट कर दी।

“भई हमीद, मुझे वे गिलास बेहद पसन्द आये हैं।” फ़रीदी ने थोड़ी दूर चल कर कार रोकते हुए कहा।

“तो गाड़ी क्यों रोक दी?” हमीद ने हैरत से कहा।

__“मैं इनमें से एक चुराना चाहता हूँ।” फ़रीदी ने कहा और दरवाज़ा खोल कर नीचे उतर गया।

"क्या मतलब!” हमीद ने आँखें फाड़ते हुए कहा।

“मैं अभी आया!” फ़रीदी ने कहा।

हमीद कार में बैठ कर उसका इन्तज़ार करने लगा। उसे हैरत थी कि आख़िर फ़रीदी को हो क्या गया है।

थोड़ी देर बाद फ़रीदी लौट आया। उसके हाथ में एक गिलास था।

“कोई ख़ास परेशानी नहीं हुई। वे लोग गिलास वहीं छोड़ गये थे।' फ़रीदी ने कार में बैठते हुए कहा।
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rajan
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गोद में साँप
दूसरे दिन सुबह फ़रीदी और हमीद कोतवाली गये। कोतवाली इंचार्ज इन्स्पेक्टर सुधीर उनका इन्तज़ार कर रहा था। उन्हें देखते ही हाथ बढ़ा कर उनकी तरफ़ बढ़ा।

“आइए, इन्स्पेक्टर साहब! मैं आप ही लोगों का इन्तज़ार कर रहा था।” सुधीर ने फ़रीदी से हाथ मिलाते हुए कहा। “कहिए, कोई ख़ास बात।"

“ख़ास बात सिर्फ इतनी है कि आप आठ-दस कॉन्स्टेबल ले कर मेरे साथ चलिए।" फ़रीदी ने कहा।

“खैरियत!'' सुधीर ने हैरत से कहा।

“जल्दी कीजिए!" आपका शिकार मेरे चूहेदान में फँस गया है।” फ़रीदी ने मुस्कुरा कर कहा।

“इसलिए हम लोग जल्दी में नाश्तेदान भी साथ ही लेते आये हैं।” हमीद फ़ौरन बोल उठा।

“तो यह क्यों नहीं कहते कि अभी तक आप लोगों ने नाश्ता नहीं किया।” सुधीर ने कहा। “कहिए, कुछ मॅगाऊँ।"

___ “नहीं शुक्रिया, इसकी ज़रूरत नहीं।” फ़रीदी ने कहा। “आप जल्दी से अपने आदमियों को तैयार कर लीजिए।”

“मगर जाना कहाँ है?" सुधीर ने कहा।

“जलालपुर!”

“जलालपुर!” सुधीर ने हैरत से कहा। "तो आपने क़ातिलों का पता लगा लिया।"

“क़रीब-क़रीब...!'' फ़रीदी ने कहा और सिगार सुलगाने लगा।

सुधीर ने एक दीवान को बुला कर कुछ कहा और ख़ुद आफ़िस के अन्दर चला गया।

थोड़ी देर के बाद असलहे से लैस आठ कॉन्स्टेबल आ गये।

पुलिस की गाड़ी, जिस पर सुधीर, हमीद, फ़रीदी और आठ कॉन्स्टेबल बैठे थे जलालपुर
की तरफ़ तेज़ी से भागी जा रही थी।

“ज़रा मुझे कुछ पहले से बता दीजिए ताकि मैं उसी के हिसाब से इन्तज़ाम कर सकूँ।” सुधीर ने कहा।

“मेरे ख़याल से कुछ ज़्यादा परेशानी न उठानी पड़ेगी।' फ़रीदी ने जवाब दिया।

“फिर भी!” सुधीर ने कहा।

“बस इतना समझ लीजिए कि क़ातिल का पता चलते ही आपको उसके हाथों में हथकड़ियाँ डाल देनी होंगी।"

“यह तो हो ही जायेगा। यह बताइए कि आख़िर क़ातिल है कौन?” सुधीर ने बेचैनी से कहा।

“घबराइए नहीं, अभी सब कुछ मालूम हो जायेगा।"

“ज़रा होशियारी से रहना।” सुधीर ने अपने सिपाहियों की तरफ़ देख कर कड़ी आवाज़ में कहा।

“हाँ भई...यही वक़्त होशियारी का है।" हमीद ने हँस कर कहा। "और ज़रा हम लोगों का ख़याल रखना।”

“हमीद साहब, किसी वक़्त तो हम ग़रीबों को माफ़ कर दिया कीजिए।” सुधीर ने कहा।

___ “अच्छा, मैं उसी वक़्त उस पर ग़ौर करूँगा।" हमीद ने कहा और ग़ौर से फ़रीदी की जेब की तरफ़ देखने लगा जो ख़ुद-बख़ुद फूल कर पिचक रही थी।

“अरे!" हमीद ने उछल कर कहा। "इन्स्पेक्टर साहब, आपकी जेब...!"

___ फ़रीदी ने हमीद का कन्धा दबा दिया। हमीद ख़ामोश हो गया। इन्स्पेक्टर सुधीर भी चौंक पड़ा।

फ़रीदी ने जल्दी से अपनी हैट इस तरह अपनी टाँग पर रख ली कि जेब छिप गयी।

“क्या बात है?” सुधीर ने हमीद से पूछा।

“कुछ नहीं...यूँ ही ज़रा...!"

“दिमाग़ का एक स्क्रू ढीला होने लगा था।" फ़रीदी ने जुमला पूरा कर दिया।

दिलबीर सिंह की कोठी के सामने पुलिस की लॉरी रुकी, सरोज और दिलबीर सिंह बरामदे ही में बैठे थे। फ़रीदी के साथ इतने बहुत से कॉन्स्टेबल देख कर सरोज ने धीरे से कुछ कहा। दिलबीर सिंह उठ कर खड़ा हो गया। इतने में ये लोग भी बरामदे में पहुँच गये।
rajan
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“कहिए फ़रीदी साहब...कोई ताज़ा मुसीबत...” ठाकुर दिलबीर सिंह ने कहा। __

“कोई ख़ास बात नहीं...इधर से गुज़र रहा था। सोचा, आपसे भी मिलता चलूँ।'

"खूब, खूब!” ठाकुर दिलबीर सिंह ने ख़ुश होते हुए कहा। “मेरी ख़ुशक़िस्मती है कि आप जैसा बड़ा आदमी मुझसे इतनी मुहब्बत रखता है। आप लोग तशरीफ़ रखिए।'' फिर अपने नौकरों को आवाज़ देते हुए कहा। “अरे, कोई है। ज़रा कुर्सियाँ लाना।"

___“गर्मी बहुत शदीद है।" दिलबीर सिंह ने कहा। “मेरे ख़याल में आप लोग कुछ शर्बत पी लीजिए।''

“जी नहीं, शुक्रिया।” फ़रीदी ने कहा।

“कहिए, क्या विमला वाले केस की तहक़ीक़ात के सिलसिले में कहीं जा रहे थे।"

दिलबीर सिंह ने पूछा।

“जी हाँ.कुछ कामयाबी हुई तो है।"

“क्या मैं कुछ मालूम कर सकता हूँ।" दिलबीर सिंह ने ख़ुशी का इज़हार करते हुए
कहा।

“क्यों नहीं!” फ़रीदी अपने अन्दाज़ में बोला। “एक तो यही ख़बर आपके लिए दिलचस्प होगी कि रणधीर, विमला और डॉक्टर सतीश का क़त्ल एक ही आदमी के इशारे पर हुआ है।"

“अच्छा!” दिलबीर सिंह ने हैरत से कहा। “वाक़ई यह ख़बर दिलचस्प और साथ-ही-साथ हैरतअंगेज़ भी है।"

“ठाकुर साहब।” फ़रीदी बोला। “क्या आप मुझे विमला का सही हुलिया बता सकते हैं। मुझे उसकी लाश देखने का मौक़ा भी न मिल सका था।"

“बहुत खूब!” ठाकुर साहब ने क़हक़हा लगा कर कहा। “अगर कोई अन्धा किसी का हुलिया बता सकता हो तो ज़रूर पूछिए।"

"तो क्या वाक़ई अब आपको आँखों से बिलकुल दिखायी नहीं देता।” फ़रीदी ने पूछा।

ठाकर दिलबीर सिंह के माथे पर लकीरें पड़ने लगीं। शायद उसे फ़रीदी का यह सवाल बुरा लगा था।

"फ़रीदी साहब, मेरा ख़याल है कि मैं आपसे उम्र में बहुत बड़ा हूँ।” दिलबीर सिंह ने कड़क लहजे में कहा।

"यक़ीनन!” फ़रीदी ने "हाँ" में सिर हिलाया।
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"तो फिर आपको मुझसे मज़ाक़ नहीं करना चाहिए।” दिलबीर सिंह ने अपने गुस्से को दबाने की कोशिश करते हुए कहा।

“मेरा ख़याल है कि मैंने कोई गुस्ताख़ी नहीं की।” फ़रीदी ने कहा। “लेकिन अगर आपको इससे तकलीफ़ पहुँची हो तो माफ़ी चाहता हूँ।"

“खैर... खैर!” दिलबीर सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा। “कोई बात नहीं।"

फिर थोड़ी देर के लिए ख़ामोशी छा गयी।

“फ़रीदी भाई! मुजरिमों की गिरफ़्तारी कब तक हो जाने की उम्मीद है।” सरोज ने कहा।

“बहुत जल्द!” फ़रीदी मुस्कुरा कर बोला।

“ख़ुदा करे ऐसा ही हो...ताकि हम लोगों की तरफ़ से आपका शक ख़त्म हो।” सरोज ने ग़मगीन लहजे में कहा।

“आप लोगों पर शक...अरे! आप भी कैसी बातें कर रही हैं। तौबा-तौबा!” फ़रीदी यह कह कर अपने एक स्टाइल में सीटी बजाने लगा। वह दिलबीर सिंह के सामने बैठा हुआ बाग़ की तरफ़ गर्दन मोड़े कुछ देख रहा था।

“अरे साँप...!” ठाकुर दिलबीर सिंह एकदम से उछल कर बोला।

फ़रीदी की जेब से एक काला साँप निकल कर उसकी गोद में रेंग रहा था। सब लोग हैरान हो गये।

“साँप दिखायी देते हैं, ठाकुर साहब।" फ़रीदी ने रिवॉल्वर निकाल कर ठाकुर दिलबीर सिंह की तरफ़ तानते हुए कहा।
“ख़बरदार अपनी जगह से हिलने की कोशिश न करना।"

ठाकुर दिलबीर सिंह के हाथ से उसकी छड़ी छूट गयी।

“तुमने उठने की कोशिश की और मैंने गोली चलायी।” फ़रीदी ने तेज़ लहजे में कहा। “सुधीर साहब, हथकड़ी।”

ठाकुर दिलबीर सिंह के हाथों में हथकड़ी लगा दी गयी।

“यह आपने क्या किया, फ़रीदी भैया।" सरोज चीख़ पड़ी।

“इनकी आँखों का इलाज बगैर ऑपरेशन...अब उन्हें अँधेरे में रहने की ज़रूरत है।" हमीद ने हँस कर कहा। "इन्स्पेक्टर साहब,
आप आँखों के डॉक्टर भी हैं।"

“अरे-अरे...यह क्या हो रहा है।' सरोज बेबसी से बोली।

“घबराओ नहीं...सरोज बहन, शुक्र करो कि तुम बच गयीं, वरना कुछ दिन बाद तुम भी विमला का साथ देती नज़र आतीं। अगर कुछ और ज़्यादा जानना चाहती हो तो कल शाम को मुझसे मिलना। मैं घर पर ही रहँगा।"

ठाकुर दिलबीर सिंह सिर झुकाये बैठा था। “उठिए सरकार!” सुधीर ने उसे ठोकर लगाते हुए कहा।

दिलबीर सिंह झल्ला कर खड़ा हो गया और हथकड़ी में जकड़े हुए हाथ उठा कर इस ज़ोर से सुधीर के सिर पर मारे कि सुधीर चकरा कर दीवार से टकरा गया। आठों सिपाही दिलबीर सिंह पर टूट पड़े।

सरोज चीख़ने लगी।

ठाकुर दिलबीर सिंह लॉरी में बेसुध पड़ा हुआ था। उसके कपड़े जगह-जगह से फट गये थे

और लॉरी शहर की तरफ़ भागी जा रही थी।

उसी दिन शाम को पुलिस ने दिलबीर सिंह के मकान पर छापा मारा। काफ़ी तलाश के बाद आख़िरकार फ़रीदी उस तहख़ाने का पता लगाने में कामयाब हो ही गया था, जिसमें दिलबीर सिंह ने कोकीन बनाने का कारखाना क़ायम कर रखा था वहाँ से काफ़ी कोकीन बरामद हुई।

- इसके बाद वह और हमीद ड्रॉइंग-रूम में आ बैठे। सरोज पहले ही से उसका इन्तज़ार कर रही थी।

“तुम बहुत ज़्यादा परेशान नज़र आ रही हो।" फ़रीदी ने सरोज से कहा। “हालाँकि तुम्हें खुश होना चाहिए कि तुम इस जाल में फँसने से बच गयीं।" अगर दिलबीर सिंह को कभी तुम पर ज़रा-सा शक भी हो जाता कि तुम उसका राज़ जान गयी हो तो तुम्हारा भी वही अंजाम होता जो विमला का हुआ।"

“लेकिन आपको इन सब बातों का पता कैसे चला?' सरोज बोली।

“जब मुजरिम मेरी गिरफ्त में आ जाता है तो जिस तरह चाहता हूँ, आसानी से सब उगलवा लेता हूँ। सिर्फ़ दिलबीर सिंह ही इस कैद में नहीं, बल्कि उसके बारह साथी भी उसका साथ दे रहे हैं। ये सब शहर के छटे हुए शरीफ़ क़िस्म के बदमाश हैं।"

“आख़िर विमला इन लोगों के जाल में कैसे फँस गयी।” सरोज ने कहा।

“इसी वक़्त सनोगी।'' फ़रीदी ने सिगार सुलगाते हुए कहा। “खैर, सुनो! एक दिन जब तुम घर पर नहीं थीं, विमला ने दिलबीर सिंह को कुछ लिखते देख लिया। उसे हैरत हुई होगी और हैरत की बात भी है कि अन्धे लिखा नहीं करते। दिलबीर सिंह को इसका एहसास हो गया। उस वक़्त उसकी समझ में यही आया कि विमला को ले जा कर तहख़ाने में कैद कर दे। दिलबीर, विमला की तहरीर ले कर उसे तहख़ाने में बन्द करके चला आया। यह फ़ौरी काम उसने इसलिए किया था कि अपने दूसरे साथियों से राय लेने के बाद कोई दूसरी कार्रवाई कर सके। तुम्हारे आने पर उसने विमला का ख़त तुम्हें दे दिया था और तुम मुतमईन हो गयी थीं। क्यों, है ना यही बात। दिलबीर सिंह ने अपने साथियों से राय-मशवरा किया, जिनमें डॉक्टर सतीश भी शामिल था। डॉक्टर सतीश ने जो राय दी, उस पर सब राज़ी हो गये। इसलिए वहीं तहख़ाने में तेज़ रोशनी का इन्तज़ाम करके विमला और सतीश की एक तस्वीर खींची गयी। वह तस्वीर भी मुझे मिल गयी, लेकिन वह ऐसी नहीं कि तुम्हें दिखला सकूँ। बहरहाल विमला से कहा गया कि उसने दिलबीर का राज़ किसी को जाहिर किया तो वह तस्वीर उसके घर वालों और उसके मँगेतर के पास भेज दी जायेगी। इतना कुछ कर लेने के बाद भी उन लोगों को इत्मीनान नहीं हुआ। उसी दौरान उनके हाथ विमला के मँगेतर का एक ख़त लग गया, जिससे ज़ाहिर हुआ कि शायद इन दोनों के माँ-बाप में कुछ झगड़ा हो गया है और वे लोग शादी करने पर रज़ामन्द नहीं। इस ख़त को देखते ही दिलबीर सिंह ने एक स्कीम बनायी।

यह थी कि अगर रणधीर और विमला इस दौरान ग़ायब कर दिये जायें तो उनके माँ-बाप यही समझेंगे के शायद रणधीर, विमला को कहीं भगा ले गया। इस स्कीम को शुरू करने के लिए डॉक्टर सतीश, विमला का हमदर्द बन गया। उसने वह तस्वीर उसी के सामने जला दी और उससे कहा कि तुम रणधीर को एक ख़त लिखो कि वह तुम्हें यहाँ से आ कर निकाल ले जाये। डॉक्टर सतीश ने विमला को अच्छी तरह इत्मीनान दिलाया कि वह उसकी पूरी-पूरी मदद करेगा। रणधीर का जवाब आने पर उन्हें मालूम हो गया कि वह कब आ रहा है। जहाँ तक दोनों को क़त्ल कर देने की स्कीम का सवाल है, इन लोगों ने बड़ी चालाकी से काम लिया, लेकिन और ज़्यादा होशियार बनने के चक्कर में पुलिस को भी उसमें उलझा लेने की स्कीम बना कर धोखा खा गये। हालाँकि उनकी स्कीम थी बड़ी शानदार। उनका ख़याल था कि विमला और रणधीर के इस तरह गायब हो जाने से विमला के माँ-बाप इन दोनों का हुलिया जारी करायेंगे और जब पुलिस को मालूम होगा कि धर्मपुर के जंगल में लाश देखने वाला रणधीर सिंह ही था तो पुलिस और ज़्यादा सरगर्मी से उसकी तलाश शुरू कर देगी और शायद ऐसा होता भी। अगर ठीक वक़्त पर जंगली गीदड़ हमारी मदद न कर बैठते।

मैंने तुम्हें गीदड़ की लाश के बारे में बताया था। वह भी दिलबीर सिंह की हरकत थी। डॉक्टर सतीश कानपुर जा रहा था, रणधीर के घर की तलाशी लेने, ताकि विमला का ख़त ढंढ कर उसे जला सके। रास्ते में मुझसे मुठभेड़ हो गयी। वह गिरफ़्तार हो गया। उसके साथ और आदमी भी थे, जो उसके गिरफ़्तार होने के बाद रास्ते ही से पलट आये। उन्होंने इसकी ख़बर दिलबीर सिंह को दी। दिलबीर सिंह ने सोचा कि अब उसे भी ठिकाने लगा देना चाहिए, वरना हो सकता है कि पुलिस उससे उगलवा ले। फिर दिलबीर सिंह ने मुझ पर और हमीद पर भी हमला किया था, लेकिन तुम अभी तक नहीं जानतीं कि मुझे यह कैसे मालूम हुआ कि दिलबीर सिंह ही मुजरिम है। जिन लोगों ने मुझ पर हमला किया था, उनमें से एक की टॉर्च मेरे हाथ लग गयी। उसकी उँगलियों के निशान इस टॉर्च पर बाक़ी रहे जिन्हें मैंने काग़ज़ पर उतरवा लिया। मुझे दिलबीर सिंह पर शरू ही से शक था। हालाँकि वह एक अन्धे का पार्ट बड़ी सफाई से अंजाम दे रहा था। लेकिन...हाँ, तो जब मैं तुम्हें यहाँ छोड़ने आया था तो तुम्हें याद होगा कि तुमने हम लोगों को शर्बत पिलाया था। मैंने वह गिलास चुरा लिया जिसमें दिलबीर सिंह ने शर्बत पिया था उस पर दिलबीर सिंह की उँगलियों के निशान थे। उस गिलास के निशान और टॉर्च के निशान में कोई फ़र्क न निकला और फिर आपके ठाकुर साहब आख़िरकार धर लिये गये।"

“अच्छा, यह बताइए कि मेरा क्या हश्र होगा?'' सरोज ने परेशान हो कर पूछा।

“कुछ भी नहीं। तुम्हें सिर्फ सरकारी गवाह बनना पड़ेगा। मैं तुमसे पहले ही वादा कर चुका हूँ कि तुम्हें कोई नुक़सान न पहुँचेगा। अब तुम इतनी बड़ी जायदाद की अकेली मालिकन हो। दिलबीर सिंह तो फाँसी से बच नहीं सकता।"

“मैं आपका शक्रिया किस ज़बान से अदा करूँ। अगर मेरा कोई सगा भाई भी होता मेरे लिए इतना न कर सकता।”

“अच्छा तो मुझे सगा भाई नहीं समझतीं।" फ़रीदी ने रूठ जाने वाले अन्दाज़ में कहा।

“मेरा भैया।” सरोज ने कहा और उसकी आँखों में मुहब्बत के आँसू उमड़ आये।

इन भाई-बहन की मुहब्बत देख हमीद भी अपने आँसू रोके बिना न रह सका।

---समाप्त ---
chusu
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Re: जंगल में लाश

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sahi.................
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