Incest घर की मुर्गियाँ

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mastram
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Re: Incest घर की मुर्गियाँ

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समीर सुबह कंपनी जाने में लेट हो चुका था। आज दिव्या ने समीर के लिए पूरी हलवा बनाया था। समीर हलवा पैक कराकर कंपनी समीर चकित हो जाता है। क्या बात है आज सूरज कैसे पश्चिम से निकलने लगा।

समीर- हुमा ठीक से पकड़कर बैठो इस तरह बैठने से गिर सकती हो।

हुमा- “जी सर...” और हुमा थोड़ा आगे खिसक जाती है, और एक हाथ से समीर को पकड़ लेती है।

समीर- हाँ अब ठीक है। चलें?

हुमा- जी सर।

समीर बाइक दौड़ा देता है। इस बार हुमा समीर से सटकर बैठी थी। हुमा की छातियां अब समीर को महसूस हो रही थी। समीर हुमा की मस्त चूचियों का अहसास लेते हुए चला जा रहा था। तभी हुमा का स्कूल आ जाता है। हुमा उतारकर अपने बैग से लंच बाक्स निकालती है, और खीर वाला टिफिन समीर को पकड़ते हुए कहती है।

हुमा - सर, आज मैंने आपके लिए खीर बनाई थी।

समीर- “अरें... वाह... खीर तो मुझे बेहद पसंद है..” और समीर टिफिन लेकर कंपनी आ जाता है।

थोड़ी देर बाद हिना समीर के केबिन में आती है।

हिना- हेलो सर।

तभी समीर देखता है की हिना ग्रीन टाप पहने चेहरे पर प्यारी सी मश्कराहट लिए हाथ में टिफिन लिए खड़ी थी "हेलो हिना कैसी हो?"

हिना- ठीक हूँ सर। आपके लिए खीर लेकर आई हूँ।

समीर- वाउ क्या बात है? तुमने बनाई है।

हिना- जी सर।

समीर के चेहरे पर मुश्कान आ जाती है, और समीर हिना के सामने ही टिफिन से खीर खाने लगता है- “वाउ.. कितनी सवादिष्ट है। मजा आ गया..."

हिना मुश्कुराने लगती है।

समीर- हिना तुम मुश्कुराते हुए बड़ी प्यारी लगती हो। बस यूँ ही मुश्कुराती रहा करो।

हिना- “ओके सर.” और हिना मुश्कुराते हुए समीर के केबिन से बाहर चली जाती है।
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mastram
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समीर हुमा का टिफिन भी खोलकर देखता है, तो वही खीर उस टिफिन में भी थी। समीर के चेहरे पर मुश्कुराहट दौड़ जाती है। थोड़ी देर बाद समीर अपने काम में लग जाता है।

तभी संजना समीर के केबिन में आती है- “क्या हो रहा है समीर?"

समीर- वो मेम एक्सपोर्ट वाला आर्डर तो कंप्लीट हो चुका है।

संजना- “वेरी गुड.. समीर एक काम करो, खन्ना साहब का फोन आया था। उनके पास चाइना से कोई सैम्पल आया है। ये रहा उनका अड्रेस। तुम जाकर ले आना.."

समीर कार्ड देखता है। अड्रेस फिरोजबाद का था- “जी मेडम, कब जाना है?"

संजना- ऐसा करो सुबह मेरी गाड़ी लेकर चले जाना।

समीर- जी मेम।

उधर नेहा भी हास्पिटल से घर आ चुकी थी, और नेहा की सास ये खुशखबरी अंजली को फोन पर देती है। अंजली ये सुनकर बड़ी खुश होती है, और शाम को डिनर टेबल पर अंजली अजय से कहती है।

अंजली- सुनो जी आप नाना बनने वाले हो। आज नेहा की सास का फोन आया था। कल नेहा को हास्पिटल में ड्रिप भी लगी थी।

सबके चेहरा खुशी से खिल उठता है

अंजली- कल नेहा से मिल आते हैं।

अजय- हाँ हाँ क्यों नहीं?

तभी दिव्या अंजली से कहती है- "मम्मी जी मैं भी चलूं आपके साथ?"

अंजली- बेटा, समीर से पूछ लो। हो सकता है हमें रात को रुकना पड़े।

समीर- अरें... मम्मी चली जायेगी एक दिन की तो बात है। आपके साथ ही आ जायेगी। खाना तो होटल से खा
लूँगा....
O ……………………………………….
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mastram
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फिर दिव्या का भी साथ जाने का प्रोग्राम बन जाता है। दिव्या बड़ी खुश होती है। समीर ने एकदम जाने की इजाजत दे दी। दिव्या को समीर पर बड़ा प्यार सा आ जाता है। रात के करीब 10:00 बज चके थे। अजय और अंजली अपने रूम में सो चुके थे।

दिव्या किचेन का काम निपटाकर, सीधा बाथरूम में नहाने पहुँच गई, और नहाकर एक पारदर्शी नाइटी पहनकर बेडरूम में पहुँचती है। समीर बेड पर लेटा मोबाइल में गेम खेल रहा था। दिव्या की नाइटी से आधी चूचियां चमक रही थी, और जैसे ही समीर की नजर नीचे पहँचती है। उफफ्फ... समीर के लण्ड में 440 वोल्ट का करेंट दौड़ जाता है। नीचे दिव्या ने कुछ नहीं पहना था। चूत एकदम क्लीन समीर के नजरों के सामने थी।

दिव्या यूँ ही समीर के ऊपर चढ़ जाती है, और झक कर अपने रसीले होंठ समीर के होंठों पर रख देती है। समीर भी अपने होंठों को खोल देता है, और दोनों के होंठों की चुसाई शुरू हो जाती है। थोड़ी देर तक दोनों यूँ ही होंठों को चूसते रहते हैं।

दिव्या- आई लव यू मेरी जान।

समीर- “आई लव यू टू डार्लिंग.." और समीर दिव्या का इतना हाट रूप देख मस्त हो जाता है। फिर समीर का हाथ दिव्या की गोलाई तक पहुँच गया, और दिव्या की चूचियों को मसलने लगा।

दिव्या- “आऽऽ जीजीजी... आअहह... इसस्स्स..."

समीर का जोश पूरे शबाब पर चढ़ चुका था। दिव्या की हल्की सी नाइटी भी समीर ने उतार फेंकी, और समीर के होंठ अब दिव्या की चूचियों के निप्पल को पकड़े हुए थे। दिव्या भी कहां पीछे रहने वाली थी। वो समीर के कपड़े निकालने में लग गई। शर्ट के बटन खोलकर शर्ट उतार फेंकी, और अब जीन्स की बेल्ट खोलकर समीर के लण्ड को बाहर निकालने लगी। उफफ्फ... लण्ड पूरे खतरनाक मूड में लग रहा था।

दिव्या- आज तो कुछ ज्यादा बड़ा लग रहा है जी।

समीर- तुम्हारा ये रूप देखकर खुशी में फूल गया।

दिव्या- "अच्छा ये बात है? फिर तो मैं अपने राजा के लिए रोज इस रूप में आ जाऊँगी..." और दिव्या लण्ड को
अपने हाथ से पकड़कर मुँह में भर लेती है।

समीर- अहह... अहह... उम्म्म्म... इस्स्स..'
-

दिव्या लण्ड को बड़ी ही मस्ती में चूसने लगी। समीर के लण्ड को पूरा हद तक अंदर लेति और थोड़ा सा बाहर निकालती। समीर को ऐसा मजा आ रहा था की बस समीर की बड़ी मस्त सिसकियां निकाल रही थी।

समीर- "ऊहह... आआआ ओहह... उम्म्म्म ..."

तभी दिव्या लण्ड को बाहर निकाल देती है। लण्ड एकदम खंबे जैसा खड़ा हो जाता है। दिव्या उठकर एक हाथ से लण्ड पकड़कर अपनी चूत के छेद पर सेट करके बैठती चली गई। उफफ्फ... इस पोज में दिव्या को हल्का-हल्का दर्द भी हो रहा था। मगर समीर का मजा कई गुना बढ़ गया था। दिव्या की उठक बैठक शुरू हो गई, और मुँह से सिसकियां भी- “आअहह... आअहह... उहह... उम्म्म्म ... सस्स्स्सी ... आss आअहह..."

अब समीर का जोश इतना बढ़ चुका था की लण्ड शाट मारना चाहता था, और थोड़ी देर बाद समीर दिव्या को अपने नीचे कर लेता है, और ताबड़तोड़ धक्के लगा देता है।

समीर का एकदम से फौवारा दिव्या की चूत में भर जाता है। दिव्या की चूत भी अपना पानी छोड़ देती है, और समीर निढाल दिव्या के ऊपर गिर जाता है। दोनों तृप्त हो चुके थे, और फिर नींद की आगोश में चले गये।
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सुबह 7:00 बजे अजय अंजली और दिव्या टैक्सी से जयपुर के लिए निकाल चुके थे।

समीर को भी फिरोजबाद जाना था। समीर सोचता है अकेला जाऊँगा, इससे तो अच्छा हिना को साथ ले जाऊँ। मगर फिर सोचता है अगर हिना को ले गया तो संजना में को मालूम पड़ जायेगा। जाने क्या सोचेंगी? अगर हुमा को साथ लूँ तो कैसा रहेगा? मगर हो सकता है रात को देर हो जाय। कुछ सोचकर समीर हुमा को काल करता है।

समीर- हाय हुमा, कहां पर हो?

हुमा- सर बस स्टाप पर हूँ। आप कहां पर हैं?

समीर- बस तुम वहीं रुको, मैं 5 मिनट में पहुँचता हूँ।

हुमा- ओके सर।

समीर फटाफट बाइक से बस स्टाप पहुँचता है। हुमा समीर की बाइक पर बैठ जाती है।

समीर- हुमा मेरे साथ चलोगी?

हुमा - कहां पर?

समीर- फिरोजबाद।

हुमा- सर, मम्मी से पूछना पड़ेगा।

समीर- क्या कहोगी मम्मी से?

हुमा- आप बताइए सर, कैसे कहूँ?
समीर- एक काम करते हैं। पहले तुमको स्कूल लेकर चलता हूँ। वहां पहुँचकर तुम मम्मी को काल करना की स्कूल से आगरा टूर जा रहा है, और मैं भी जा रही हूँ।

हुमा- गुड आईडिया सर।

समीर- मैं भी अपने दोस्त से बोल दूँगा कोई बात हो तो संभाल लेगा।

समीर हुमा को स्कूल छोड़कर संजना की कार लेने चला जाता है, और थोड़ी देर बाद कार लेकर हुमा के स्कूल वापस आ जाता है। हुमा बाहर ही खड़ी थी।

समीर- क्या हुआ मम्मी से बात हो गई?

हुमा - जी सर, इजाजत भी मिल गई। और मम्मी बोल रही थी अपना ध्यान रखना।

समीर हुमा को लेकर फिरोजबाद के लिए निकाल पड़ा। हुमा फ्रंट सीट पर समीर के बराबर में बैठी थी। समीर बार-बार गाड़ी चलाते हुए हुमा के चेहरे को देख रहा था। जब भी समीर की आँखें हुमा को देखते हुए पाती। हुमा के चेहरे पर प्यारी सी मुश्कुराहट आ जाती।

हुमा - सर, ऐसे क्या देख रहे हैं?

समीर- तुम्हारी आँखें बहुत प्यारी हैं। जी करता है बस इन्हें देखता रहूँ?

हुमा- अच्छा जी... तो आप हमें इसलिए लेकर आये हैं?

समीर- यूँ ही समझ लो।

हुमा का चेहरा खुशी से खिल उठता है।

समीर- हुमा एक बात पूछू?

हुमा- पूछिए सर।

समीर- तुम्हारा कोई बायफ्रेंड है?

हुमा- नहीं तो।

समीर के चेहरे पर मुश्कान आ जाती है। थोड़ी देर दोनों खामोश हो जाते हैं।

हुमा - सर क्या बात है? आपने ये किसलिए पूछा?

समीर- “क्योंकी हम आपको अपनी गर्लफ्रेंड बनाना चाहते हैं। क्या तुम हमसे दोस्ती करोगी?” कहकर समीर एक हाथ हुमा की तरफ बढ़ाता है।


हुमा समीर का हाथ थाम लेती है। समीर के चेहरा खुशी से खिल जाता है। यूँ ही समीर हुमा से मस्ती भरी बातें करता हुआ गाड़ी चला रहा था। थोड़ी देर बाद समीर गाड़ी रोकता है।


हुमा- क्या हुआ सर?

समीर- “थोड़ा रेस्ट करते हैं, और कुछ खाते पीते हैं..." और समीर गाड़ी से उतरकर हुमा का हाथ थाम लेता है। हुमा भी समीर से चिपकती हुई पिज़्ज़ा रेस्टोरेंट में पहुँचती है।
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