वापसी : गुलशन नंदा

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rajsharma
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Re: वापसी : गुलशन नंदा

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(3)

रशीद जब अंगड़ाई लेता हुए अपने कमरे में आया, तो सलमा उसकी प्रतीक्षा करते सो गई थी। इस सोये हुए सौंदर्य को देखकर उसका मन चाहा कि इन मधुमय होंठों को चूम के, परन्तु ये सोचकर कि उसकी नींद खुल जायेगी, वह अपनी इच्छा को मन ही मन दबाकर चुपचाप बिस्तर पर लेट गया।

बहुत प्रयत्न करने पर भी वह सो न सका। रणजीत की बातें अब तक उसके मनो-मस्तिष्क पर छाई हुई थीं। उसने कुरेद-कुरेद कर रणजीत को उसका पूरा अतीत का जीवन बयान करने पर मजबूर कर दिया था। रणजीत का बचपन कहाँ और कैसे बीता, उसने किस स्कूल में शिक्षा पाई…उसके ख़ास-ख़ास दोस्त कौन थे। उसकी पहली भेंट पूनम से कहें और कैसे हुई थी…दोनों ने एक-दूसरे को क्या वचन दिए? फौजी नौकरी के दौरान उसकी पोस्टिंग कहाँ-कहाँ हो चुकी थी? उसकी रेजिमेंट के अफसरों के क्या नाम थे? उसने कहाँ ट्रेनिंग प्राप्त की थी? उसकी माँ की आदतें क्या-क्या थीं और वह उसे किस नाम से पुकारती थी.. रणजीत के जीवन संबंधी ऐसी कोई बात नहीं थी, जिससे वह अनभिज्ञ रह गया हो। अपनी उस चतुराई पर वह मुस्कुरा उठा।


कुछ सोचकर उसने टेबल लैंप बुझाकर बेड स्विच ऑन कर दिया और उसके धुंधले प्रकाश में अपने आपको रणजीत के रूप में ढालने का प्रयास करने लगा। वह किस तरह मुस्कुराता है… बातें करते-करते कैसे अचानक माथे पर बल डाल देता है। लेटे लेटे वह चुपचाप रणजीत की हरकतों का अभ्यास करने लगा। कभी-कभी अपने आप ही वह रणजीत की भांति मुस्कुराने लगता। कभी माथे पर बल डाल देता, तो कभी सलमा की ओर देखकर झेंप जाता। उसने सोचा वह एक अच्छा एक्टर बन सकता है और यह एक्टिंग भारत में उसके बहुत काम आयेगी।

वह इन्हीं विचारों में खोया हुआ था कि अचानक सलमा ने करवट ली और अपना हाथ उसकी कमर में डाल दिया। उसके शरीर की गर्मी और सांसों के चलने से रशीद ने अनुभव किया कि वह अभी तक सोई नहीं है, जाग रही है।

“अरे…तुम अब तक जाग रही हो?” रशीद ने उसकी कमर में हाथ डालकर उसे अपनी ओर खींचते हुए कहा।

“और क्या करती..!” सलमा बड़े अंदाज़ से ठुनक्कर बोली, “इतने दिनों बाद आए और सारी रात दोस्त से बातें करते हुए गुजार दी…उह!”

“बातें ही इतनी दिलचस्प थीं कि उठने को जी ही नहीं चाह रहा था।”

“तो ज़रूर पूनम के बारे में बातें हुई होंगी।” सलमा ने मुस्कुराते हुए कहा और रशीद से और अधिक चिपक गई।

“तुमने कैसे जाना?”

“मर्द के लिए सबसे ज्यादा दिलचस्प इश्क़ का अफ़साना होता है…बताइए न, क्या कहा उसने?”

“पूनम से अपनी पहली मुलाक़ात का ज़िक्र कर रहा था।”

“कैसे हुई थी उनकी पहली मुलाक़ात?” सलमा की रुचि और भी बढ़ गई।

रशीद पत्नी की ओर देखकर मुस्कुराने लगा।

“बताइए ना..” उसे चुप देखकर सलमा ने आग्रह किया। रशीद तो पहले ही रणजीत के जीवन को मस्तिष्क में बैठने का प्रयास कर रहा था। सलमा के अनुरोध पर वह उसे रणजीत की प्रेम कहानी सुनाने लगा।

बरसात की एक तूफानी रात थी…रणजीत का यूनिट उन दिनों दिल्ली छावनी में था। वह दोपहर को कुछ दोस्तों के साथ यूनिफार्म में शहर चला गया था। उसने वहीं होटल में खाना खाया और रात को फिल्मी शो देखकर लौट रहा था कि अचानक हवाओं की गति तीव्र और भयानक हो गई। क्षण भर बाद ही बादलों कि गरज के साथ मोटी-मोटी बूंदे पड़ने लगी। अचानक लाइट फेल हो जाने से सड़क की बत्तियाँ भी बुझ गई। अंधेरा ऐसा छा गया कि अपना हाथ भी सुझाई नहीं से रहा था

रणजीत ने मोटर साइकिल रोक दी और किसी आश्रय की तलाश करने लगा। समीप में ही एक बिल्डिंग के टैरेस के नीचे वह खड़ा हो गया और घनघोर बारिश को देखने लगा। धीरे धीरे उसकी आँखें अंधेरे में देखने के काबिल हो गई।


उसी टैरेस के नीचे दूसरे सिरे पर एक नौजवान लड़की भी बारिश से बचने के लिए खड़ी थी। वह कुछ डरी-डरी सी रणजीत की ओर देख रही थी। रणजीत ने उसे सिर से पैर तक निहारा, तो वह कंपकंपाकर और भी दीवार से लगकर सिमट गई।

रणजीत जल्दी से बोल उठा, “क्षमा कीजिए, मुझे मालूम नहीं था कि आप यहाँ खड़ी हैं, वरना …” कहते-कहते उसकी दृष्टि लड़की के विकसित वक्ष पर ठहर गई और वह जैसे वाक्य पूरा करना ही भूल गया हो।

लड़की ने अपने सीने पर भीगी साड़ी का आंचल फैलाकर उसे छिपाने का व्यर्थ प्रयत्न किया, तो रणजीत ने उसकी घबराहट देखकर जल्दी से अपनी दृष्टि हटा ली और उसकी मनोदशा का अनुमान लगाते हुए दूसरी ओर मुँह करके खड़ा हो गया।

उसकी इस शिष्टता पर लड़की के होंठों पर अचानक मुस्कुराहट फैल गई और उसने मन ही मन उसकी शराफत को सराहते हुए कहा, “अच्छा हुआ आप आ गए।”

“क्यों?” रणजीत ने उसकी ओर पलटकर पूछा।

“अकेले मुझे डर लग रहा था।”

“लेकिन आप इतनी रात गए…?”

“बस स्टॉप पर खड़ी थी कि बारिश ने आ घेरा। उससे बचने के लिए यहाँ आ गई।”

“आपकी घबराहट देखकर मैंने सोचा आप मुझसे डर गई।”

“नहीं, फौजी आदमियों से मुझे डर नहीं लगता।”

“क्यों?”

“वे दुश्मनों के लिए जितने खतरनाक होते हैं, दोस्तों के लिए उतने ही मेहरबान।”

“ओह! लगता है, आपको फौजियों के बारे में काफ़ी अनुभव है।”

“मेरे डैडी, चाचा और दो भाई सभी फौज में थे।”

“और अब..?”

“चाचा रिटायर होकर विदेश चले गए…दोनों भाई मारे गए..” कहते-कहते वह थोड़ी रुकी, तो रणजीत झट बोल उठा – “और डैडी..?”

“ज़िंदा हैं भी और नहीं भी…बेटों के गम में पागल हो गए हैं।” कहते हुए पूनम की पलकें भीग गई।

“ओह क्षमा कीजिए, मैंने आपका दिल दुखाया।” रणजीत ने धीरे से कहा और फिर बात बदलते हुए पूछ बैठा, “आपका नाम जान सकता हूँ?”

“पूनम।”

“माँ-बाप ने आपकी सुंदरता देखकर ही यह नाम रखा होगा।” रणजीत ने मुस्कुराकर कहा।

पूनम अपने सौंदर्य की खुली प्रशंसा पर थोड़ी झेंपी, फिर झट बात बदलकर बोली, “तूफान शांत हो चुका है, और बिजली भी आ गई है..।”
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


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Re: वापसी : गुलशन नंदा

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रणजीत वहाँ सुंदर लड़की के सामीप्य में एक अनोखा आनंद अनुभव कर रहा था, इसलिए उसे कुछ देर तक और रोकने के विचार से बोला, “अभी बूंदे पूरी तौर से रुकी नहीं है…थोड़ी देर ठहर जाइए, वरना घर पहुँचते-पहुँचते भीग जायेंगी…कहाँ रहती हैं आप?”

“गोल मार्केट..!”

“इतनी रात को कहाँ गई थीं…? क्या फिल्म देखने?”

“जी नहीं…!” पूनम ने साड़ी का आँचल निचोड़ते हुए कहा, “मुझे फिल्में देखने का अधिक चाव नहीं।”

“तो फिर?”

“मैं टीवी में काम करती हूँ….ड्यूटी पूरी करके लौट रही थी कि अचानक बारिश ने आ घेरा।”

“अब बारिश थम गई है।” रणजीत ने आसमान की ओर देखते हुए कहा, “चलिए आपको घर तक छोड़ दूं।”

“जी नहीं…मैं चली जाऊंगी।”

उसके इस रूखे उत्तर से रणजीत का चेहरा उतर गया। पूनम ने अनुभव किय कि रणजीत बुरा मान गया शायद। उसे अपने रूखे व्यवहार पर कुछ आत्मग्लानि सी महसूस हुई। शिष्टता जताने के लिए वह कोई उचित शब्द सोच ही रही थी कि रणजीत ने गुड नाइट कहा और लपक कर मोटर साइकिल स्टार्ट कर दी। तेजी से सड़क कि और बढ़ा ही था कि पूनम ने उसे पुकार लिया, “सुनिए।”

रणजीत ने एकाएक ब्रेक लगाया और गीली सड़क पर मोटर साइकिल फिसल गई।

पूनम के मुँह से चीख निकाल पड़ी। उसने लपककर कीचड़ में लथपथ रणजीत को उठाना चाहा, लेकिन उसके वहाँ पहुँचने के पहले ही रणजीत घुटने सहलाता हुआ उठ खड़ा हुआ और बोला, “घबराइए नहीं..अधिक चोट नहीं आई है।”

“आई एम सॉरी…मैं भी कितनी मूर्ख हूँ….आपको अचानक पुकार बैठी। मैं इस तरह न पुकारती तो आप गिरते नहीं।”

पूनम ने कुछ संताप से कहा।

“कोई बात नहीं…” रंजीत मुस्कुराया, “ज़िन्दगी में गिरना उठाना तो लगा ही रहता है। कहिए, क्यों पुकारा आपने?”

“अब क्या कहूं?”

“नहीं नहीं, कहिए ना।”

“मुझे मेरे घर तक पहुँचा ही दें… जाने बस कब मिले।” पूनम में कुछ झेंपते हुए कहा।

“चलिए… मैंने कब इंकार किया है।” वह मुस्कुरा दिया।

पूनम जल्दी से चलकर उसके पीछे बैठ गई…लेकिन बैठते ही उसके मुँह से निकला, ‘हाय राम!”

“क्यों क्या हुआ?”

पूनम ने उसके घुटनों से फटी पतलून से रिसते हुए लोगों की ओर संकेत करके कहा, “आपके घुटने तो बुरी तरह छिल रहे हैं…खून बह रहा है।”

“ओह…कोई बात नहीं।” रणजीत ने लापरवाही से सिर झटकते हुए कहा और मोटरसाइकिल स्टार्ट कर दी।

थोड़ी देर में मोटरसाइकिल हवा से बातें करती हुई गोल मार्केट पहुँच गई। पुणे में अपने घर के सामने मोटरसाइकिल रुकवा वली और उछलकर नीचे उतर गई… फिर मकान की ओर बढ़ती हुई बोली, “अंदर आ जाइए…आपके जख्म पर मलहम लगाकर बैंडेज बांध दूंगी।”

“अरे रहने दीजिए… अभी छावनी पहुँच जाऊंगा…अर्दली फ्री दवा लगा देगा।”

“अर्दली और मुझ में कोई अंतर नहीं लगता आपको?” पूनम के मुँह से अनायास ही यह वाक्य निकल गया और फिर फौरन ही अपनी बात पर शर्मा गई। उसको देखते-देखते रंजीत मुस्कुरा पड़ा और मोटरसाइकिल उसके घर की ओर खींचता हुआ बोला, “चलिए अब आप से घाव पर मरहम लगवाकर ही जाऊंगा।”

पूनम ने बाहर वाले दरवाजे में चाबी घुमाई और किवाड़ खोलकर अंदर प्रविष्ट हो गई। रणजीत अभी उसके संकेतों की प्रतीक्षा ही कर रहा था कि वह बरामदे कि बत्ती जलाती हुई बोली, “घर छोटा है ज़रा…”

“लेकिन कितना संवरा हुआ है।” रणजीत ने कहा और अंदर दाखिल होता हुआ बोला, “मेरा मेस का कमरा तो इससे भी छोटा है।”

पूनम उसे बैठाकर अंदर गई और शीघ्रता से मरहम की ट्यूब तथा रूई ले आई। उसने धीरे-धीरे बड़ी कोमलता से घाव को पहले साफ किया, फिर ट्यूब से मरहम लगाकर पट्टी बांध दी।

रणजीत धन्यवाद कहकर जाने के लिए उठा ही था कि वह झट से बोली, “ज़रा रुकिए, मैं अभी आती हूँ।” यह कहकर वह तेजी से अंदर चली गई।

रणजीत ने सोचा, शायद वह अपनी भीगी साड़ी बदलने गई है। उसके जाने के बाद रणजीत ने ध्यानपूर्वक चारों ओर दृष्टि घुमाकर कमरे को देखा। साधारण फर्नीचर था…परन्तु कमरा सुंदर ढंग से सजा हुआ था।

रणजीत कुर्सी से उठा और कार्निस की ओर बढ़ा, जहन एक सुंदर फ्रेम में जड़ी एक तस्वीर रखी थी। फौजी वर्दी में एक जवान! सुडौल बदन, भरा हुआ चेहरा, बड़ी-बड़ी चमकदार आँखें…राजपूती स्टाइल की छल्ले दार मूंछें और सीने पर सजी जंगी तमगों की पंक्ति। उसने सोचा यह पूनम के डैडी की तस्वीर हो सकती है।

तभी अपने पीछे आहट सुनकर वह पलटा। पूनम लौट आईं थी। वह साड़ी बदलने नहीं गई थी, बल्कि गरम-गरम कॉफ़ी के दो प्याले उसके हाथ में थे। एक प्याला रणजीत की ओर बढ़ाते हुए बोली, “लीजिए…कॉफ़ी पीजिये।”

“अरे, आपने यह कष्ट क्यों किया?’

“कष्ट कैसा? बारिश में भीगने के बाद तो कॉफ़ी पीना जरूरी हो जाता है।”

रणजीत ने कॉफ़ी का प्याला थाम लिया और पलटकर फिर कार्निस पर रखी तस्वीर को देखने लगा।

“यह मेरे डैडी हैं।” पूनम ने उसके पास आते हुए कहा।

“तो मेरा अनुमान ठीक ही था…क्या पर्सनैलिटी है।”

“है नहीं, थी…अब देखिएगा तो आप पहचान भी नहीं सकेंगे उन्हें।”

“मैं समझता हूँ…औलाद का दु:ख इंसान कि ज़िंदा ही मार डालता है।”

पूनम कॉफ़ी का घूंट भरती हुई एक अलमारी की ओर बढ़ी और वह एलबम उठा लाई, जिसमें उसके दो नौजवान भाइयों कि तस्वीरें थीं। उन सुंदर नौजवानों की असमय मृत्यु का विचार करके रणजीत के मुँह से अनायास ही ‘आह’ निकल पड़ी। उसने पलटकर देखा, पूनम की आँखों में भी आँसू छलछला आए थे, जिन्हें वह अपनी भीगी साड़ी के पल्लू से पोंछ रही थी।
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Re: वापसी : गुलशन नंदा

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इससे पहले कि वह सांत्वना के दो शब्द बोलता, एक गुर्राती हुई आवाज़ सुनकर वह चौंक पड़ा। कॉफ़ी का प्याला उसके हाथ में कांप गया। मुड़कर उसने दरवाजे की तरफ़ देखा, तो सामने ही एक दुर्बल सा बूढ़ा आदमी नाइट सूट पहने खड़ा था। उसकी आँखें अंदर को धंसी हुई थीं, और गाल पिचके हुए थे। रणजीत ने पूनम के डैडी को पहचान लिया, जो कुछ देर तक रणजीत की घूरता रहा और फिर उससे पूछा, “कौन हो तुम?”

“कैप्टन रणजीत…मुझे छोड़ने आए हैं डैडी।” पूनम बीच में ही बोल पड़ी।

“ओह! आई सी…। “पूनम के डैडी ने एड़ियाँ बजाकर चटकी से फौजी सैल्यूट किया और बोला, “तुम फ्रंट पर जाना चाहते हो कैप्टन?”

“यस सर..।” रणजीत ने सादर उत्तर दिया।

“तो ठहरो..मेरा बनाया हुआ एटम बम का फार्मूला लेते जाओ, जो दुश्मन के छक्के छुड़ा देगा।”

यह यह कहकर वह मुड़कर अपने कमरे में चले गए, तो पूनम ने रणजीत से कहा, “आप जल्दी से चले जाइए….कहीं डैडी आ गए, तो अपना फ़ॉर्मूला समझाते-समझाते आपकी रात खराब कर देंगे।”

“लेकिन वो बुरा तो नहीं मानेंगे?”

“मैं उन्हें संभाल लूंगी।”

रणजीत शायद अभी कुछ देर तक रुकना चाहता था, लेकिन पूनम की बात सुनकर उसने वहाँ रुकना उचित नहीं समझा और झट बाहर आकर मोटरसाइकिल लेकर हवा हो गया।

रंजीत पूनम की पहली मुलाकात का वर्णन करके रशीद जैसे ही रुका, सलमा उसकी बातों में इस तरह खो गई थी, मानो चित्रपट पर कोई दिलचस्पी फिल्म देख रही हो। उसकी चुप होते ही पूछ बैठी।

“कितनी हसीन थी यह मुलाकात।” सलमा ने जैसे सपनों की दुनिया से जागते हुए कहा।

“लाख हसीन थी उनकी मुलाकात…लेकिन हमारी पहली मुलाकात की बराबरी नहीं कर सकती।

“वो कैसे?”

“पानी फिर पानी है और आग फिर आग!”

यह कहकर रशीद ने ठहाका लगाया और बेड स्विच ऑफ करके उसे आलिंगन में खींच लिया।
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Re: वापसी : गुलशन नंदा

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(^%$^-1rs((7)
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Re: वापसी : गुलशन नंदा

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(4)
चूचू की मधुर ध्वनि से सलमा की बालकनी में झुका हुआ जामुन का वृक्ष जैसे जाग उठता। नन्ही-नन्ही चिड़िया की ये चहचहाट उसे बहुत प्रिय लगती। एक बार उन झुकी हुई शाखाओं द्वारा चोरों ने उसके घर में घुसने का प्रयत्न किया था, तो मेजर रशीद ने उसे कटवा देना चाहा था, परंतु सलमा ने उन शाखाओं काटने नहीं दिया था। बड़े भोलेपन से उसने पति से कहा था, “चोरों के डर से हम इन गरीब चिड़ियाओं का बसेरा क्यों उजाड़ें।सोचिए, कितनी बद्दुआयें देंगी। अब्बा जान कहते हैं, सुबह सिर्फ इंसान ही ख़ुदा को याद नहीं करते, बल्कि ये चरिंदे-परिंदे भी उसकी मदद करते हैं। यह चिड़िया भी अल्लाह का नाम लेती है और इससे घर में बरक़त होती है। इंशा अल्लाह हमारे घर में चोर कभी चोरी करने में कामयाब नहीं सकते।”

यही चिड़िया हर रोज चहककर उसे जगाती है। बस सवेरे उठते ही सबसे पहले मुट्ठी भर चावल लेकर बालकनी में डाल देती। चिड़िया जामुन की टहनियों से खुद आकर बालकनी में आती और दाना चुगने लगती है।


नीति की तरह आज भी, जब सुबह के अंधेरे में चिड़ियों की चहचहाहट उसके कानों में गूंजी, तो उसने आँखें बंद किए ही करवट ली और आदत के अनुसार पति की और अपना दांया हाथ बढ़ाया। लेकिन उसका पति वहाँ कहाँ था? सलमा ने चौंककर आँखें खोल दी और आश्चर्य से खाली बिस्तर को देखने लगी। फिर हड़बड़ा कर उठ बैठी और चारों ओर दृष्टि घुमाकर देखने लगी। मेजर रशीद कहीं सामने दिखाई नहीं दिया, उसने सोचा, इतना सवेरे तो वे स्वयं कभी बिस्तर नहीं छोड़ते, वही उन्हें उठाती थी और वह उठते ही चाय पीते थे…फिर अचानक यह सोचकर वह मुस्कुरा दी कि शायद वह रणजीत भाई के पास चले गए हों। यह विचार आते ही वह झट उठी और बिखरे बालों को हाथों से संवारती हुई, दोनों के लिए चाय बनाने रसोई घर में चली गई।

सलमा जब चाय की ट्रे लिए गेस्ट रूम में आई, तो उसने देखा कि कैप्टन रणजीत तो आइने के सामने बैठा दाढ़ी बना रहा था, किन्तु मेजर रशीद वहाँ नहीं थे। उसने गुड मॉर्निंग भाईजान कहते हुए ट्रे मेज पर जमा दी और कुछ विचलित स्वर में पूछा, “वह कहाँ गए?”

“अभी-अभी तो यहीं थे…शायद बाथरूम में होंगे।” रणजीत ने बिना उसकी ओर देखे हुए उत्तर दिया।

“आज आदत के खिलाफ़ वे बहुत सवेरे उठ गए…शायद आपकी वजह से।” सलमा ने कहा और प्याले में चाय उड़ेलने के लिए चायदानी से टोकोजी हटाते हुए बोली, “आप चाय पीजिए…ठंडी हो जायेगी।”

“नहीं नहीं। जल्दी क्या है…उन्हें उठ जाने दीजिए।” रणजीत ने दोबारा दाढ़ी पर साबुन लगते हुए कहा।

“वे बाथरूम में बहुत देर लगाते हैं।” सलमा ने टिकोजी एक ओर रख दी और कुछ रुककर बोली, “उनके लिए दोबारा बन जायेगी।”

“ओ. के. बना दीजिये।” रणजीत ने कहा।

“शहद के साथ लेंगे या शक्कर डालूं?” सलमा ने चम्मच उंगलियों में घुमाते हुए पूछा।

“शहद के साथ, बगैर दूध की।”

सलमा ने आश्चर्य से उसे देखा और प्याले में शहद डालते हुए बोली, “कुछ भी तो फर्क नहीं, आपमें और उनमें। आदतें भी दोनों की एक सी है।”

“हमशक्ल जो ठहरे…कौन-कौन सी आदतें मिलती हैं हमारी?”

“वह भी तो शहद के साथ बगैर दूध की चाय पीते हैं, आपकी तरफ ही मुस्कुराते है… बात करने का लहज़ा भी वही है।”

“और..?”

“कितनी ही बातें गिनाऊं…उन्हें भी फौजी ज़िन्दगी पसंद है…वह भी इतने ही कट्टर पाकिस्तानी हैं, जितने कट्टर हिन्दुस्तानी आप है…वतन की खातिर जान कुर्बान करना वे भी फ़क्र समझते हैं और आप भी..! उन्हें भी मार-धाड़ और लड़ाई पसंद है और आपको भी…हालांकि शक्ल-सूरत से आप दोनों कोमल दिल के, भोले-भाले फ़रिश्ते जैसे ही दिखाई देते हैं।”

सलमा ने चाय तैयार कर प्याला रणजीत की ओर बढ़ा दिया। रणजीत ने तौलिये से चेहरा साफ किया और उसके हाथ से प्याला लेते हुए बोला, “आपको क्या जंग पसंद नहीं है?”


“जंग..!” इस शब्द को दोहराते हुए सलमा ने एक झुरझुरी सी महसूस की। उफ्फ, जंग का नाम ही कितना भयानक है…कितनी सुहागिनें बेवा हो जाती हैं…कितनी माओं की कोख उजड़ जाती हैं, कितने मासूम बच्चे यतीम हो जाते हैं…कहते-कहते वह भावुक हो गई और फिर रणजीत से नज़रें मिलाते हुए बोली, “मगर आप तो जब किसी पाकिस्तानी सिपाही को मारते होंगे, तो बड़े ख़ुश होते होंगे। यह नहीं सोचते होंगे कि वह भी किसी माँ का लाल होगा, किसी बहन का भाई होगा और किसी सलमा का शौहर, जो तन्हा अपने घर में उसके इंतज़ार में आँखें बिछाये बैठी होगी।”

उसने ये सब बातें इतने करुण स्वर में कही थी कि रणजीत का भी जी भर गया , लेकिन उसने सलमा को चुप कराने के लिए कहा, “तो आप क्या आप समझती हैं कि आपके शौहर जब किसी हिंदुस्तानी सिपाही को मारते होंगे, तो उन्हें इसी तरह की ख़ुशी नहीं होती होगी।”

“यह मैंने कब कहा?” सलमा ने अपनी बात की व्याख्या करते हुए जल्दी से कहा, “फौजी चाहे पाकिस्तानी हो या हिंदुस्तानी…मैं दोनों को एक जैसा ही समझती हूँ। मेरे शौहर ने भी ना जाने कितनी माँओ कि कोख उजाड़ी होगी…कितनी सती सावित्री औरतों की मांग का सिंदूर पोंछा होगा।”


“तब तो रशीद भाई से आपका अक्सर झगड़ा हो जाता होगा।” रणजीत ने मुस्कुराकर पूछा।

“ना बाबा…यह तो आपके सामने अपने दिल की भड़ास निकाल दी। वह होते तो अब तक जंग और अमन तथा वतनपरस्ती व कौमी खिदमत पर एक लंबा चौड़ा लेक्चर झाड़ दिए होते। ‘अपने वतन के लिए हमें मरना चाहिए। भारत लाहौर को फतह करने के ख्वाब देखते हैं, तो हम दिल्ली के लाल किले पर अपना झंडा फहरायेंगे।’ जब कौम और वतन पर वे बोलते हैं, तो जोश से उनका चेहरा लाल भूबुका हो जाता है और मैं डर के मारे उनके सामने से भाग जाती हूँ। एक बार तो ऐसी भागी कि गलियारे के पायंचे में उलझकर गिर पड़ी और वह जोर से हँस पड़े।”

कैप्टन रणजीत अनायास ठहाका मारकर हँसने लगा और हँसते-हँसते दोहरा हो गया…फिर अचानक उसके पास आता हुआ प्यार से बोला, “कितनी प्यारी हो तुम सलमा!”

सलमा को अचानक बिजली का सा झटका लगा। उसने उसकी आँखों को पढ़ने का प्रयत्न किया और क्रोध भरी निगाहों से रणजीत को देखने लगी।

“क्या बात है सलमा?” कहता हुआ रणजीत फिर उसकी ओर बढ़ा।

“वहीं रुक जाइए रणजीत भाई।” सलमा ने गरज कर कहा।

“बार-बार भाई मत कहो मुझे वरना निकाह टूट जायेगा।” रणजीत ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “मैं तुम्हारा भाई नहीं शौहर हूँ मेजर रशीद!”

सलमा फूटी-फूटी आँखों से उसे देखने लगी। असीम आश्चर्य से अवाक वह एकटक उसे ताकती रह गई। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि वह व्यक्ति जिसे अब तक वह रणजीत समझकर बातें कर रही थी, असल में उसका पति मेजर रशीद है।

“यकीन नहीं आ रहा है?” मेजर रशीद ने मुस्कुराते हुए पूछा।”

“लेकिन आपकी मूँछे?” असमंजस में वह बड़बड़ाई।

“यह मेरे मूछों का जनाज़ा…!” मेजर रशीद ने मेज पर से अपने मूँछों के बालों का गुच्छा उठाकर पत्नी को दिखाया और मुस्कुराते हुए बोला, “अब तो यकीन आया तुम्हें?”

“हाय अल्लाह! तो आपने मुझे बेवकूफ बनाने के लिए मूँछे साफ कर दी।” सलमा ने झेंपते हुए कहा।


“तुम्हें नहीं…हिंदुस्तान को। अब मुझे पूरा यकीन हो गया है कि जब मेरी बीवी मुझे नहीं पहचान सकी, तो हिंदुस्तान में भला मुझे कौन पहचानेगा।” मेजर रशीद ने अपनी सफ़लता पर गर्व से छाती फुलाते हुए कहा।

“मैं समझी नहीं, रणजीत भाई कहाँ है?”

“उसे दोबारा कह दिया कि कैंप में पहुँचा दिया गया है।”

बात सलमा की समझ में आ गई, तो आश्चर्य से उसकी आँखें फट गई। उसने कुछ अप्रसन्न दृष्टि से पति को देखा और गंभीर होकर बोली, “अब समझी आपके इरादे। तो आप इसलिए उसे भाई बना कर लाये थे। आप उसकी आड़ में जासूसी करने हिंदुस्तान जायेंगे।”

“दैट इज़ करेक्ट…” मेजर रशीद ने मुस्कुरा कर कहा, “फौजी अफसर की बीवी को इतना तो इंटेलिजेंट होना ही चाहिए।”

“लेकिन यह तो धोखा हुआ।” सलमा ने मुँह बना कर कहा।

“मोहब्बत और जंग में सब कुछ जायज़ है।”

“लेकिन जंग तो खत्म हो चुकी है?”

“नहीं जंग खत्म नहीं हुई, रुक गई है। दुनिया की कोई जंग खत्म नहीं होती, रुक जाया करती है। दम लेने के लिए..दोबारा जंगी की तैयारियाँ करने के लिए…और जब तक की तैयारियाँ होती रहती है, गर्म जंग की तरह सर्द जंग होती रहती है। अभी हिंदुस्तान से हमारी सर्द जंग शुरू होगी…और जब तैयारियाँ पूरी हो जायेगी तो फिर गर्म जंग शुरू हो जायेगी।”

“और फिर खून की होली खेली जायेगी।” सलमा मैं दुखी और गंभीर मन से कहा, “हरे भरे खेतों में आग लगाई जायेगी…इंसान शैतान बन जाएयेगा।”

“मैंने कहा ना, मोहब्बत और जंग में सब कुछ जायज़ है।” मेजर रशीद ने त्यौरी चढ़ाकर कहा, फिर ऊँची आवाज में बोला, “दुनिया में जलजले आते हैं, तो सैकड़ों इंसान मर जाते हैं…तूफान आते हैं तो सैकड़ों जहाज डूब जाते हैं….महामारी फैलती है तो अनगिनत आदमी मौत के मुँह में चले जाते हैं….तो फिर अगर मुल्क की हिफाज़त और कौम कि सरबुलंदी की खातिर लाख दो लाख जवान काम आ जायें, तो कौन सी बड़ी बात है। ऐसे मौकों पर अगर वतन के जवान हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे और तुम्हारी तरह अमन के राग अलापते रहे, तो सारी दुनिया बुजदिल और नामर्द कह-कहकर उनके मुँह पर थूकेगी।” यह कहते हुए आवेश थे मेजर रशीद का चेहरा लाल हो गया। सलमा ने पति की भावना का विचार करते पर विवाद करना उचित नहीं समझा और चुपचाप पलट कर अपने कमरे में जाने लगी।

मेजर रशीद ने झपट कर उसे रोका और बोला, “देखो सलमा! इस बात का इल्म हम दोनों के सिवाय किसी और को नहीं होना चाहिए…मुझे परसो सुबह कैदियों के इस जत्थे के साथ जाना होगा। मैं अभी नाश्ता करके कैंप में लौट जाऊंगा और फिर वापस आने पर ही तुम्हें मिलूंगा।”

सलमा चुपचाप उसे देखती रही. उसके जाने की खबर सुनकर उदास हो गई थी. उसकी आँखों की कोरों में आँसू झिलमिलाने लगे थे।

“अरे रोने लगी… तुम्हें तो हँसते हुए मुझे विदा कहना चाहिए।” मेजर रशीद ने सलनस को आलिंगन में ले लिया।

“मैं अकेली कैसे रहूंगी?” सलमा ने बुझे हुए मन से कहा।

“इसकी तो फ़िक्र ना करो…मैं तुम्हारे अब्बा जान को खत लिख दिया है…वह करांची से आकर तुम्हें साथ ले जायेंगे। जब तक मैं वापस न लौटू, तुम मायके ही में रहना।”
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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