स्वाँग

koushal
Pro Member
Posts: 2863
Joined: 13 Jun 2016 18:16

Re: स्वाँग

Post by koushal »

अध्याय चौदह

"तुम्हारे कहने का मतलब यह है कि वह सीरियल किलर तुम हो जो उन लोगों का बेरहमी से कत्ल करती थी..!"

किसी ने भी इस कुरूप लड़की की ऐसी किरदार की कल्पना नहीं की थी। जज साहब हैरान थें। पहली बार जब उन्होंने इस कुरूप लड़की को देखा था तभी से इसके प्रति उनके दिल में सहानुभति का भाव जगा था। वे कामना कर रहे थे इसकी बेगुनाह साबित होने की। अन्यथा अदालत में उसके खिलाफ समस्त सबूत मौजूद थें और निर्णय सुनाने में ज्यादा समय नहीं लगता। लेकिन इसका यह खतरनाक स्वरूप..!!!

अब वह कातिल तो थी। हत्यारान। लेकिन वह कह रही है कि उसने केवल उन दरिंदों को सजा दी है जो बलात्कारी थें। जिसने कई लड़कियों का जीवन तबाह कर दिया था। तब क्या वह दोषी थी या निर्दोष। शायद दोषी ही। क्योंकि अपराधियों को दंडित करने के लिए ही तो न्याय व्यवस्था निर्मित किया गया है। और अगर यह न्याय व्यवस्था उचित रूप से सुचारू रहती तो ऐसे किसी साधारण लड़की को न्याय हाथ में लेने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।।

"तो किसने किया था बलात्कार तुम्हारे साथ..?" वकील साहब ने जिज्ञासु भाव से प्रश्न किया। उसके इस चरित्र को जानने के बाद उन्हें पूरी तरह से यकीन हो गया था कि यह लड़की अपने उस बलात्कारी को ढूंढने में कामयाब हो गई है।

"जब मेरे हाथ खून से रंगे मेरा दिल पत्थर का बन गया। इससे पहले कि मैं उस तक पहुँचती उसे मेरी कहानी मालूम हो गई थी। वह भयभीत हो गया था कि कहीं मैं उस तक न पहुँच जाऊं और उसका भी वही हाल करूं जो इन बीस बलात्कारियों का किया।"

इससे पहले कि परी को अपने उस बलात्कारी तक पहुँचने का कोई सुराग मिलता उसने खुद की और खुद की पहचान की बचाब के लिए कई तरह के षड्यंत्र बुने।

परी अब उन वैश्यों की बस्ती में रहती थी। पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से।

उस रोज परी खाने के लिए अभी बैठी ही थी कि उसका मोबाइल कंपित हुआ। जब इसे ओपन की तो वॉट्सएप पर एक अनजान नंबर से मैसेज आया था। मैसेज में एक वीडियो क्लिप था। पहले तो कुछ देर तक सोचती रही फिर विडियो देखने का फैसला किया।

विडियो डाउनलोड होने में थोड़ा समय लगा। यह कुछ बड़ा फाइल साइज का था। डाउनलोड करने के बाद जब उसने विडियो प्ले किया तो बिल्कुल हैरान रह गई।

परदे के पीछे छिपे खलनायक ने बहुत बड़ी चाल चली थी।

विडियो में सुलेखा थी। एक अंधेरे कमरे में बंद। बुरी तरह से घायल। उसकी आँखों के चारों ओर बड़े बड़े काले धब्बे। शरीर पर बहुत गहरा निशान। उसे देख ऐसा लग रहा था जैसे कि कई महीनों से उसे इसी तरह जानवरों की तरह बाँध कर रखा गया है। उसका शोषण किया जाता रहा है।

शादी के बाद से ही उसकी कोई खबर नहीं थी लेकिन आज अचानक से उसका इस तरह से सामने आना। परी बेचैन हो गई। तुरंत से उस नंबर पर कॉल करने का प्रयास की। लेकिन वह एक सिस्टम जेनरेटेड नंबर था जिसपर कॉल नहीं किया जा सकता था।

दरअसल, परी और राघव को सुलेखा के बारे में झूठ कहा गया था कि वह ससुराल छोड़ कर भाग गई है। बल्कि सत्य कुछ और ही था।

‘पहले मुझे लगा था कि दूसरी बार मेरे जीवन में तबाही लाने वाला खलनायक कोई और है। मैं उसे ढूंढती फिरती। प्रतिशोध की आग में जलती हवसी बलात्कारियों का दमन करती। लेकिन उस रोज जब मुझे वो विडियो क्लिप भेजा गया जिसका मतलब था कि मेरा यह विलेन मुझे पहले से ही जानता है। फिर अब सबसे पहले मुझे सुलेखा दीदी को ढूंढना था। लेकिन कहाँ ढूंढती उसे? आप जानते हो दरअसल मेरी कहानी का असली खलनायक कौन था? वही शख़्स जिससे मैने प्यार किया था। गौरव।

दरअसल, जब पिता जी मुझे लेकर दिल्ली भाग आए थे तब कविता के पिता और भाई सुलेखा के ससुराल वालों पर इस बात की लिए दबाव डालना शुरू कर दिया कि वे अपनी बेटी कविता की मौत का बदला सुलेखा से लेंगे। सुलेखा के ससुरालवालें लालची किस्म के लोग थे। जब सभी उसे हत्यारे की बेटी कह कर उलाहना देते थे तब एक बार वह कुएं में कूद पड़ी थी। उसके बाद गाँव के लोगों ने उसे बचा लिया था। कविता के भाइयों को अक्सर ही डर रहता कि कहीं मैं और पिता जी गाँव वापस जाकर उनकी गुनाहों की पोटली न खोल दें। इसलिए वे अक्सर कुछ न कुछ चाल चलते रहते थे।’

दस्तावेजों के अनुसार परी और राघव की तो मृत्यु हो चुकी थी। लेकिन परी दिनों दिन फेमस होती जा रही थी। जिस बात की निश्चिंतता से कविता के पिता और भाई चैन से थे, वह झूठा था।

कविता के एक भाई अभी दिल्ली में ही था। लेकिन इस बात से बिल्कुल ही अनजान था कि परी और राघव भी इसी शहर में है। एक रोज टिक टॉक पर जब वह विडियो देख रहा था, स्वाइप करते हुए उसे परी का एक वीडियो दिख पड़ा।

इस विडियो को देखते ही उसकी हालत खराब हो गई। पसीने से तरबतर हो गया। उसे इस बात का भय सताने लगा कि परी और राघव अब उसकी सच्चाई को दुनिया के सामने रख देंगे। और अपने परिजनों के हत्या का बदला भी लेंगें। उसका गला सूखने लगा था।

उसने तुरंत गाँव फोन लगाया। इस बात की खबर अपने पिता को दी। उसके पिता थोड़े मुस्कुराएं और बोलें— मुझे तो लगा था कि इस कहानी का अंत हो गया है। खैर, अब होगा।

उस घटना के बाद से कविता के पिता का रुतबा बढ़ गया था। लोगों की सहानुभूति मिली थी और इस वजह से वे पंचायत के मुखिया चुनाव जीत गए थे। अब इनके पास राजनीतिक शक्ति थी। कई राजनीतिक और प्रशासनिक लोगों के साथ परिचय हो गया था। परी के इस कहानी का खलनायक अब बहुत ही शक्तिशाली हो चुका था।

बस कुछ ही महीनों के अंतराल में कई चीजें बदल गई थी। इनका घर— अब कविता के भाई ठेकेदार बन गए थे। बड़े बड़े टेंडर मिलने लगे थे।

"तो फिर सुलेखा का क्या हुआ था?" वकील साहब ने प्रश्न किया।

"एक रोज सुलेखा के ससुरलवालों ने उसे मार डालने का प्लान बनाया। क्योंकि एक हत्यारे की बेटी का बहु होना उन्हें बदनामी का विषय लगता था। उन्हें लगता था कि इस लड़की की वजह से परिवार का कोई भी सदस्य घर के बाहर सर उठाकर नहीं चल सकता। और दूसरी बात उन्हें दहेज़ के रूप में तय रकम भी पूरा नहीं मिला था। पिता जी तो किसान थें। मजदूर थें। लड़के वालों की माँग को उन्होंने स्वीकार तो कर लिया था और इस बात के लिए राजी भी कर लिया था कि शादी के बाद धीरे धीरे वे बाकि का रकम भी दे देंगे। लेकिन अब वह बाकि का रकम उन्हें मिलने वाला तो था नहीं।" आगे की कहानी बताते हुए उस लड़की के आँखों से आंसू बहने लगे। जैसे कि सुलेखा के साथ ससुराल में हर एक पीड़ा से वह भलीभांति परिचित थी।

सुलेखा के ससुराल वालों ने उसके ऊपर बहुत ही जुल्म किया था। दिन में बस एक वक्त खाना देना। जानवरों से भी बदतर व्यवहार करना। मारना–पिटना। गाली देना। एक रोज सुलेखा के पति ने ही उसे बेवजह मरना शुरू कर दिया था। मारते मारते उसका दाहिना हाथ तोड़ दिया। वह दर्द से चीखती और चिल्लाती रही। उसकी चीख सुन सभी आनंदित होते रहें। किसी ने उसका उपचार तक नहीं कराया। बल्कि उस हालत में भी उससे मशीन की तरह काम कराते थे वे लोग।

सुलेखा घर से भागने का भी प्रयास की थी लेकिन उसे कैद करके रखा गया था।

मिट्टी की दीवारों से बने एक झोपड़े में लालटेन की बिल्कुल ही हल्की रौशनी थी। सुलेखा को एक कुर्सी पर रस्सियों से बाँध दिया गया था। अभी कुछ देर पहले ही उसके पति का भाई ने पहले उसका शोषण करना चाहा था। जब सुलेखा ने प्रतिरोध किया तब उसने उसे खूब पीटा। इतना पीटा की सुलेखा अर्धमुर्छा अवस्था में चली गई थी। इस अवस्था में अगर कोई उसके जिस्म के टुकड़े भी कर डालता तो वह बिल्कुल नहीं चीखती।

अपनी हवस की आग बुझाने के बाद उसने उसे उस कुर्सी से बाँध दिया था। वह अभी बिल्कुल वैसी ही लग रही थी जैसे विडियो में दिखी थी।

उसके बाद वह कुछ कदम पीछे आया। मोबाइल निकाला और सुलेखा का विडियो बनाया।

सुलेखा बेजान सी पड़ी थी। उसे जीवित कहने के लिए सिर्फ इतना ही कहा जा सकता था कि उसकी सांसे चल रही थी। लेकिन शरीर का हर एक अंग दर्द से तड़प रहा था।

कमरे को बाहर से बंद करके वह दरिंदा बाहर गया। मोबाइल में रिकॉर्ड किया विडियो परिवार के लोगों और दोस्तों को देखा ठिठोली करने लगा। जिसकी हंसी सुलेखा की कानों तक पहुँच तो रही थी लेकिन शायद ही वह सुन पा रही थी।

रात के करीब 10 बजे किसी ने फिर से इस कमरे का दरवाजा खोला। कोई देखने आया था कि क्या सुलेखा अब भी दर्द से तड़प रही है या नहीं। कई घंटों से वह ऐसे ही बंधी थी। न भोजन मिला था न पानी।

उसने मोबाइल टॉर्च ऑन किया। छोटे से इस कमरे में रौशनी भर गई।

सुलेखा बेजान सी दिखी। न कोई हलचल न सांसे चलने की गतिविधि। टॉर्च लेकर देखने आया वह शख़्स घबरा गया। उसने सभी सदस्य को बुला लिया। सुलेखा के पति ने नब्ज़ टटोल कर देखा। फिर नाक के पास उंगली रह स्वश्न गतिविधि को आंका। फिर पुष्टि किया कि यह मर गई है। थोड़ी देर तक अपने उस भाई को घूर कर देखते रहा।

"चलो बला टली।" सुलेखा के सास ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा।

जैसे कि सुलेखा की मृत्यु का ही उन्हें इंतजार था। अब मृत शव के साथ क्या करना है, इस बात पर कुछ देर सभी के बीच बातचीत का सिलसिला जारी रहा। निस्कर्ष, वही तरीका दफनाने का।

आधी रात बीत जाने के बाद सुलेखा की लाश को उठाकर वीरान क्षेत्र में ले जाया गया। वहाँ उसके पति का भाई पहले से मौजूद था। कब्र खोद चुका था। अपनी पत्नी की मृत्यु पर उसका पति जरा सा भी उदास नहीं था। जितनी जल्दी हो सके सुलेखा को दफनाने की जल्दी थी।

जब परी को सुलेखा का विडियो मिला उसे यकीन हो गया था कि उसकी बड़ी बहन जीवित है। यह विचार भी आया कि उसके ससुराल वालों ने सुलेखा के बारे में झूठ कहा हो। उन्होंने ही उसे इस तरह से कैद कर रखा हो। उस रोज वह घर के बाहर से ही उन लोगों की बातों का यकीन कर लौट आई थी।

तुरंत ही परी बिहार को भागी।

बिहार, उस गाँव में पहुँच परी अपनी बहन को ढूंढने लगी। लेकिन पिछली बार की तरह वह लोगों के नज़रों में आने से बचने का प्रयास कर रही थी। पिछली बार की तरह कोई देखे न। छुपते छिपाते वह उस घर के करीब गई।

रात्रि का समय होने के कारण और ग्रामीण माहौल होने की वजह से लोग घरों में कैद थें। परी को वो मिट्टी वाला घर दिखा। वह निश्चित तो नहीं था लेकिन उसे लगा कि यही वो कमरा था जिसमे सुलेखा को बाँध कर रखा गया था।

बड़ी ही सावधानी से, दबे पांव, वह उस घर के भीतर झांकी। उसे वह कुर्सी दिखा। कुछ मैले कपड़े दिखे। लेकिन यहाँ सुलेखा नहीं थी। भले ही वह यहाँ नहीं थी लेकिन उसके पास ही में होने का एहसास होने लगा था परी को।

तभी कुछ लोगों की आने की आहट सुनी। वे बातें करते हुए इसी ओर आ रहें थे। यह दलान था। यहाँ पर अक्सर जानवरों को रखा जाता है। सुलेखा के ससुराल वालें उसे दफना कर अभी वापस आ ही रहें थे। उनके हाथों में कुदाल देख परी डर गई।

सुलेखा को कहीं इन्होंने मार तो नहीं डाला। कहीं ये लोग उसे दफन तो नहीं कर आए।

यह ख्याल सच में डरावना था। इससे पहले कि वे लोग यहाँ आतें वह भागी। खेतों की ओर। दूर दूर तक कुछ नहीं था। न घर न इंसान। सिर्फ खेत। फसल की कटाई के बाद का परित खेत। इन खेतों में आवारा कुत्तों का झुंड। इन्हीं खेतों में पागलों की तरह अपनी बहन की लाश को ढूंढती परी।

भागते–भागते हाँफने लगी थी। लेकिन उन दरिंदों ने उसकी बहन को कहाँ दफनाया था, पता नहीं चला था अभी तक। अचानक से उसे कुछ दिखा।

ऊबड़ खाबड़ जमीन। झाड़ और जंगली घास से भरा। बहुत दूर तक फैला। लगभग आठ बीघे जितने जमीन में। क्या किसी को मारकर दफनाने के लिए यह स्थान उचित हो सकता था?

इतना विचार करने का समय नहीं था उसके पास। और अब ज्यादा भागने की ताकत भी शेष नहीं थी उसमें। फिर भी वह भागी।

आखिर वह उस स्थान पर पहुँच गई जहाँ पर सुलेखा को दफनाया गया था। अभी कुछ ही देर पहले वे लोग गए थे इसे दफना कर। अगर वह जीवित भी होती तो अब तक मर गई होगी। एक इंसान ज्यादा से ज्यादा कितनी देर बिना सांस लिए जीवित रह सकता है। वो भी तब जब वह अधमरा पहले से ही हो।

लेकिन एक विश्वास था कि इतना बुरा होने के बाद अब उसके साथ कुछ तो अच्छा होगा। सबकुछ छीन लेने के बाद ईश्वर कुछ तो उसके पास रहने देगा। इसी उम्मीद से वह कब्र खोदती रही।

वह अभी कब्र खोद ही रही थी कि किसी ने जोरदार प्रहार किया उसके सिर पर और वह बेहोश हो गई।
koushal
Pro Member
Posts: 2863
Joined: 13 Jun 2016 18:16

Re: स्वाँग

Post by koushal »

अध्याय पंद्रह

"इससे पहले कि मैं दीदी को कब्र से बाहर निकाल लेती किसी ने डंडे से मेरे सिर पर प्रहार किया। गहरी चोट की वजह से मैं बेहोश हो गई थी। जब मुझे होश में आया तब मैं एक नैनों गाड़ी में थी। ड्राइविंग सीट पर बैठी। सीट बेल्ट के कारण सीट से चिपकी।"

एक नैनों कार में परी ड्राइविंग सीट पर बेहोशी की हालत में थी। जब उसे होश आया वह हल्की हल्की ठंडी हवा को महसूस कर रही थी। उसके उड़ते बाल। और आधी रात का समय।

गाड़ी सुनसान सड़क पर बहुत ही रफ़्तार में दौड़ रहा था। परी हड़वड़ा गई। बिन बुलाए मुसीबत तो ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। जब पूरी तरह होश में आई तो देखी कि गाड़ी अपने आप खुली सड़क पर भागी जा रही है। इसे चलाने वाला कोई नहीं था।

परी को ड्राइविंग नहीं आती थी। उसे तो ये तक पता नहीं था कि ब्रेक और स्लेटर कहाँ होता है। लेकिन परिस्थिति को संभालने के लिए उसने स्टेयरिंग को पकड़ लिया।

सड़क की चौड़ाई ज्यादा नहीं थी। लगभग 15 फीट चौड़ी। और दोनों ओर खाई जितनी गहराई। घने जंगल की तरह उन्हें बड़े पेड़ और इनकी मोटी शाखाएं। रात के समय यह सड़क सुनसान ही रहता था। इससे पहले कि परी गाड़ी को रोकने का प्रयास करती गाड़ी सड़क से कूद पड़ी। किनारे के एक मोटे तने वाले महुए के पेड़ से जा टकराई।

जोरदार टक्कर। गाड़ी का आगे का नक्शा चूर हो गया था। सीट बेल्ट से बंधी होने के वजह से वह घायल हुई। पेड़ की एक डाली परी के पैर में बहुत ही गहरा घाव कर गया था। चाकू की तरह जैसे इसे उसके पैर में घोंप दिया गया हो।

वह दर्द से जोर से चीखी। इस सन्नाटे में उसकी चीख गूंज उठी।

तभी तीन स्कॉर्पियो एक के बाद एक आ कर रुकी। कविता के पिता और दोनों भाई, सुलेखा के पति और उसका भाई और अन्य दो तीन लोग गाड़ी से उतरे।

कविता के पिता के चेहरे पर जंग जीत जाने का आरोप था। वह सबसे आगे थे। परी के पास गए। गाड़ी का दरवाजा खोला। लहूलुहान परी की नज़र उसपर पड़ी।

"तुम और राघव तो एक्सीडेंट में मारे गए थे न?" कविता के पिता ने कहा।

एक अपराध को छुपाने के लिए न जाने कितने अपराध किए जा रहा था ये आदमी।

"सुलेखा दीदी कहाँ है?" वह अपनी बहन को ले चिंतित अभी तक थी।

ये लोग इसे मार कर अब कहानी समाप्त करने को तैयार थें।

"तुम्हारे इस प्रश्न को मैं क्या समझूं? आखिरी ख्वाइश?" बोलते हुए वे हंसें। दानवों की तरह ही। फिर एक के बाद वहाँ खड़े सभी के होंठों पर हंसी थी। वही दानवी हंसी।

पैर में घुसे उस लकड़ी की डाल को परी खींच चुकी थी। बहता लहू और दर्द। इन लोगों ने उसकी बहन पर बहुत अत्याचार किया और अब उसकी हत्या करके दफन भी कर दिए है, वह इस बात को जानती थी। लेकिन उनके मुंह से यह सुनना चाहती थी कि ये कह दे कि सुलेखा अभी जीवित है। वह जानती थी कि ये लोग यज्ञ उसे मारने आएं है और वह ये भी जानती थी कि इस बार कहानी का अंत भी वही लिखेगी।

"तुम्हारी बहन को मार डाला है मैने। यही सुनना चाहती हो न?" उत्तर मिला।

यह उत्तर सुनते ही खुद को दिलाया उसका झूठा उम्मीद भी टूट गया। बिना किसी कसूर के इन लोगों ने परी के पूरे परिवार को मार डाला था। सुलेखा की मृत्यु की बात सुनते ही वह चीख पड़ी।

"दीदी..!!!" अब वह कभी भी उससे मिल नहीं सकती थी।

परी अब पहले वाली लड़की नहीं थी जिसका दमन ये लोग आसानी से कर लेते। सीट बेल्ट को झटके से तोड़ते हुए घायल शेरनी की तरह दहाड़ी और कविता के पिता पर झपटी। इतने में गोलियों की बारिश होने लगी। गोलियों से बचती बचाती उसने एक सभी को घायल कर दिया।

क्रोधित काली की तरह प्रचंड रूप धारण कर किसी की गर्दन तोड़ डाली तो किसी का सीना चीर डाली। आज उसके सामने उसके जीवन को तबाह करने वाले दुश्मन मृत पड़ें थे। लेकिन इतना संघर्ष करने के बाद भी उसके पास अब कुछ भी नहीं बचा था।

"पहले मुझे लगा था कि उस विडियो को भेजने वाला ही मेरा बलात्कारी है। लेकिन ऐसा नहीं था। यह कविता के पिता द्वारा बुना गया एक षड्यंत्र था। जिसके चंगुल में मैं फंस तो गई थी लेकिन... लेकिन जीत मेरी हुई। मेरी प्रतिशोध की हुई।" अपने दोनों हाथों को ऊपर करके, दोनों पंजों को देखते हुए, मुस्कुराते हुए बोली। "इन्हीं हाथों से फिर मैने उन दरिंदों का सीना चीरा। उनका दमन किया।"

इस बार उसकी आँख में आत्मसंतुष्टि के भाव थें। जीत का जश्न भी था। और सुलेखा की मृत्यु का अफसोस भी।

अपने परिवारवालों के हत्यारों को मारकर परी थोड़ी खुश थी लेकिन उससे कहीं ज्यादा उदास भी थी। वह सुलेखा को बचा सकती थी लेकिन देर कर दी। इस बात के लिए वह खुद को दोषी ठहरा रही थी।

लेकिन अब प्रश्न उठता है कि उसका बलात्कारी कौन था? कहानी के पहले खलनायकों का दमन उसने कर दिया था लेकिन वो दूसरा अभी तक अज्ञात था।

"अब बात करती हूं उस बलात्कारी के बारे में। वह बलात्कारी कहानी में कोई नया किरदार नहीं था। यह वही गाँव का मास्टर था जो सुलेखा दीदी के साथ दुष्कर्म करने का प्रयास किया था। और जिसका सिर दीदी ने मेरे कहने पर फोड़ा था। उस हादसे के बाद से वह अंदर ही अंदर खौल रहा था। हम दोनों बहनों का वो कांड उसे सोने तक नहीं देता। फिर उसने अपना ट्रांसफर करा लिया था। दरअसल, उसने मास्टर की नौकरी ही छोड़ दिया था। उसका एक दोस्त एक राजनीतिक पार्टी का उच्च पद का कार्यकर्ता था। उसने उसे अपने पास बुला लिया था। लेकिन किसी भी तरह से वह हम दो बहनों से बदला लेना चाहता था। इसलिए उस रोज उसने षड्यंत्र रचा।

राजनीति के क्षेत्र में होने की वजह से उसके पास पैसों की कोई कमी नहीं थी। एक रोज गौरव को उसने उठा लिया था। उसे एक ऑफ़र और धमकी दोनों दिया। गौरव ने उसका ऑफ़र चुना। पूरे 50 लाख। अपने प्यार को बेचने के बदले में उसे पूरे पचास लाख मिला।

उस रोज उसी मास्टर ने कॉल किया गया था। दरअसल, सबकुछ पहले से प्लान किया हुआ था। उसका मुझे डेट पर ले जाना। ऑफिस का अर्जेंट कॉल आना। फिर मैने जो ड्रिंक ऑर्डर लिया उसमे एक ड्रग मिलाया गया था। जिससे मैं अर्धमुछा अवस्था में चली गई थी। इसमें होटल के मैनेजर और वेटर भी शामिल थें। फिर उसने मेरा बलात्कार किया। विडियो बनाया। और इसे इंटरनेट पर डाल मेरी जिंदगी पूरी तरह से बर्बाद कर डाली।"

सबकुछ पता चलने के बाद परी गौरव से मिलने गई थी। उससे बोली कि अब सच्चाई वह जान गई है। उसने उससे प्यार किया था लेकिन वह पैसों की लालच में आकर उसकी जिंदगी बर्बाद कर दी। लेकिन वह उसे नहीं मारेगी। वह उसे माफ करती है। वह उसकी नज़र से दूर चली जाए।

"मेरा वह दुश्मन अबतक बहुत शक्तिशाली बन चुका था। हाल ही में हुए चुनाव में वह एमएलए बन गया। गौरव ने उसे यह बात भी बता दी थी कि मैं उसके बारे में सबकुछ जान गई हूं और तड़प रही हूं उसके मारने के लिए। लेकिन इससे पहले कि मैं उसका अंत करती उसने मेरा ये रूप बना दिया।"

परी की आँखों में एक स्त्री के जलने की तस्वीर।

परी गौरव से मिलने के बाद लौट ही रही थी कि अचानक से पाँच बाईक सवार लोगों ने उसे घेर लिया। कुछ समझ पाने से पहले ही उसपर पेट्रोल से भरे गुब्बारों की बौछार करने लगी। अब परी पेट्रोल से पूरी तरह से भींग चुकी थी। दिन का समय था। चौराहे पर अच्छी भीड़ थी लेकिन किसी ने भी उसकी मदद करने की कोशिश नहीं की।

मोबाइल में इस तमाशे को कैद करते लोग खुद एक तमाशा थें।

एक बाईक सवार ने पॉकेट से लाइटर निकाला। इसे जलाया और परी के ऊपर फेंक दिया। दिनदहाड़े, सारे आम, एक लड़की को जिंदा जलाया जा रहा था।

परी जल रही थी। लोग बस तमाशा देख रहें थे। और तब तक देखते रहें जबतक कि सभी बाईक सवार चले नहीं गए। इससे पहले कि परी की मृत्यु जलने की वजह से हो जाती एक वैश्या जो उसके साथ ही रहती थी, उसकी मदद करने दौड़ी। किसी तरह से उसे बचा ली।

"उसी ने मेरा ये रूप रचा है।" परी बोली।

"क्या नाम है उसका?" वकील साहब ने प्रश्न किया।।

"एमएलए यशपाल आर्य" परी ने उसका नाम बताया।

यह नाम सामान्य नहीं था। राजनीतिक क्षेत्र में यह नाम बहुत प्रसिद्ध था। एमएलए यशपाल आर्य का नाम सुनते ही खलबली मचने लगी। क्योंकि इस नाम में लोगों ने गांधी की दूसरी छवि देखी थी। गांधीवादी। अहिंसक। सज्जन। ऐसा इंसान किसी को एक चांटा भी मार सकता है, यह तक अकल्पनीय था। इस कुरूप लड़की ने तो उसपर आरोपों की झड़ी लगा दी थी।।

अपने क्षेत्र में यह नेता बहुत बेहतर काम कर रहा था। निष्पक्ष था। लोभ और स्वार्थ से हट कर पूरी सिद्द्दत से कार्य करता। इसलिए लोग अब उसे मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते थे।

"मेरे ऊपर बहुत सारे आरोप लगाए गए। झूठा भी और सच्चा भी। जिस इंफुलेंसर परी की हत्या की खबर सुन ये महिलाएं क्रांति पर उतर आई है, वह मैं हीं हूं। उसने मेरे खिलाफ कई सबूत बनाए। उसे विश्वास था कि मुझे फांसी की सजा होगी। इस बात का भी ख्याल रखा कि उसका नाम उजागर न हो। मैने भी बहुत सारे अपराध किया है। अब मैं अपने सभी अपराधों को स्वीकार कर चुकी हूं।" परी बोली।

अगली सुबह एक सनसनी खबर आग लगाते हुए शहर में फैल गई। एमएलए यशपाल आर्य, जिसपर कुरूप लड़की ने कई सारे आरोप लगाए थे, अपने घर में मृत पाए गए हैं।

उनके घर के आगे पुलिस का बड़ा पहरा था। बेडरूम में यशपाल की लाश थी। कातिल ने उसे बड़ी बेरहमी से मारा था। रस्सियों से पहले उसे बाँधा गया था। फिर धारदार चाकू से उसके त्वचा को आलू की छिलके की तरह छिला गया था। उसके मुंह में बहुत सारा कपड़ा ठूंसा गया था। उसके पैरों को और हाथों को मसालें की तरह कूटा गया था। उसकी अतड़ीयां बेड पर फैली थी। और सिर की दिशा वाले दीवार पर उसी के खून से लिखा गया था।

"मैं बलात्कारी हूं और यही डिजर्व करता हूं।"





एक पहाड़ी क्षेत्र में वही कुरूप लड़की खड़ी है जो अदालत में अब तक स्वयं को परी नाम से संबोधित करते आई है। ठंडी हवा का स्पर्श, उसके चेहरे पर अलग ही तरह का रौनक प्रकट है। भावशून्य चेहरे पर आज जंग जीत जाने की खुशी झलक रही है।

कुछ देर तक यूं ही लगातार ऊँचे पहाड़ियों को निहारते रहने के बाद वह पास में बनी एक फूस के झोपड़ी में गई। यह क्षेत्र इंसानी बस्ती से बहुत दूर था।

भीतर कुछ बर्तन और राशन की चीजें पड़ी थी। एक छोटा सा खटिया और पत्थर के बड़े टुकड़े को टेबल की तरह उपयोग किया गया था। शाम का समय था। लेकिन सूर्यास्त अभी नहीं हुआ था।

उस टेबल रूपी पत्थर पर कुछ चीजें रखी थी। एक फ़ोटो गैलरी, फ्रेम की गई एक तस्वीर जिसमें परी, सुलेखा, नीलिमा और राघव, सब थें। एक मोबाइल फोन और एक टेबल घड़ी। और एक डायरी।

वह खटिए पर बैठ गई। उसकी नजर फ्रेम की गई उस तस्वीर पर पड़ी। उसने उस तस्वीर को उठा लिया। अब तक की सारी कहानी किसी फिल्म की तरह उसके जहन में दौड़ पड़ी।

"परी, मेरी बहादुर बहन..!!!" परी की तस्वीर देखते ही फिर से आंसू से आंखें गीली हो गई थी।

यह कुरूप लड़की वास्तव में परी नहीं बल्कि सुलेखा थी।

ससुराल वालों के अत्याचार का अब अंत हो चुका था। आत्माहत्या का प्रयास भी उसका निष्फल हो गया था। अगर उस दौरान उसकी छोटी बहन परी साथ होती तब वह बहादुरी से इन परिस्थिति का सामना करती लेकिन वह तो मर चुकी थी।

उस रोज जब परी और राघव उसे ढूंढने आए थे वह भीतर ही थी। जब उसे पता चला कि दोनों आए थी फिर से जीने की उम्मीद लौट आई। अब किसी तरह से यहां से भाग जाना था। लेकिन यहां से भाग जाने का हर प्रयास निष्फल हो जाता।

उस रोज जब उसके परिवार वालों ने उसे दफनाया था वह जीवित थी। मौत से लड़ वह कब्र से बाहर निकलने में कामयाब हो गई थी। बुरी तरह से घायल होने के बाबजूद भी वह भागती रही।

दस्तावेजों में परी और राघव की मृत्यु की ख़बर थी। उसे लगा था अब वह कभी भी अपने परिवार वालों से मिल नहीं सकेगी। लेकिन किस्मत से उन्हें उन पुलिसवालों के माध्यम से उन दोनों का पता चला। उन्होंने उसका एड्रेस भी दिया। अब उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।

अब बस दिल्ली जाने की देर थी।

वह ट्रेन पर बैठी थी। अब तक उसकी बहन बहुत ही प्रसिद्ध हो चुकी थी। ट्रेन पर बैठा उसके बगल का यात्री अपने मोबाइल पर उसकी की विडियो देख रहा था।

अपने बहन की छवि देख वह अत्यंत खुश हुई। अब वह उस नर्क से आजाद हो नई दुनियां में जा रही थी। जहां उसकी बहन और पिता थे। उसका अपना परिवार थे। और अब तो उसकी बहन भी फेमस हो चुकी थी।

दिल्ली पहुंचते ही वह उस एड्रेस पर गई। बदकिस्मती से वे दोनों वहां नहीं मिले। परी का बलात्कार हुआ था। उसपर वैश्या होने का आरोप मड़ा गया था। उन्हें घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था।

सुलेखा दोनों को ढूंढने लगी थी। लेकिन दिल्ली उसके गांव की तरह छोटा नहीं था।

अगले दिन उसे परी दिखाई पड़ी। राघव और परी दोनों साथ में कहीं जा रहें थे। उसने परी को पुकारा। लेकिन इसकी आवाज़ न राघव सुन सके न परी।

सुलेखा दोनों के पीछे भागी।

भीड़ और ट्रैफिक की वजह से दोनों आगे निकल गए थे। सुलेखा ने उन्हें रेलवे ट्रैक की ओर जाते देखा था। जब वह उधर गई तो देखी कि दोनों एक ट्रैक पर खड़े है। पूरी रफ़्तार में भागती एक गाड़ी इन्हीं की ओर आ रही है।

सुलेखा चीखी।

"परी... पापा..."

इस बार दोनों ने ही इसकी आवाज़ सुनी। दोनों सुलेखा की ओर मुड़े। सुलेखा को देखने के बाद, इससे पहले कि दोनों कुछ कर पाते, रफ़्तार में भागता गाड़ी उनके चीथड़े चीथड़े कर गया।

सुलेखा के सामने उसकी बहन और पिता के शव के चीथड़े पड़ें थें।

इस घटना के बाद उसने फ़ैसला कर लिया उन लोगों को दंडित करने का जिसकी वजह से दोनों ने आत्महत्या किया।

छानबीन करने के दौरान उसे परी की एक डायरी मिली।

सुलेखा अंदर ही अंदर सुलग रही थी। उसकी बहन इतनी दुर्बल नहीं थी जो आत्महत्या करे। लेकिन सत्य उसकी नजरों के सामने था।

उसने इस कहानी की शुरुआत गौरव की हत्या से शुरू की। गौरव ने ही उसे उसके बलात्कारी के बारे में बताया। परी और राघव के मौत की खबर कविता के पिता को मालूम नहीं था। उन्होंने भी षड्यंत्र रचा था।

परी के मोबाइल पर सुलेखा का विडियो भेजा लेकिन यह मिला सुलेखा को था। परी की डायरी में पूरी कहानी कैद थी। प्रतिशोध की आग में सुलगती सुलेखा ने एक एक करके कविता के पिता और उसके भाइयों को मार डाली। ससुराल के उन दरिंदों को भी नहीं छोड़ी जिन्होंने उसे सिर्फ यातना ही यातना दिया। जिन्होंने उसे जिंदा ही कब्र में दफ़न कर दिया। जिन्होंने उसका शोषण किया।

लेकिन उसका वह दुश्मन इन लोगों की तरह साधारण भी रहा था जिसकी वजह से परी ने आत्महत्या की थी। अब वह एक एमएलए था। बहुत शक्तिशाली बन चुका था।

बदला लेने के लिए ही सुलेखा ने स्वाँग रचा।




the end

samapt
Post Reply