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क्यूंकी उन दिनों मोबाइल नहीं हुआ करता था तो, आम तौर पर सभी चिठ्ठियो द्वारा कम्यूनिकेट करते थे. इंटरनेट का नाम ओ निशान भी नहीं था. हन टेलिफोन था. टेलिविषन था, और टीवी सीरियल्स भी चलता था. मगर अभी के घर में टीवी था ही नहीं. पड़ोसी के घर टीवी देखने जाते थे अभी के घर वाले, अभी भी चला जाता था जिस दिन उसके पसंदीदा मूवी आता था टीवी पर.
ठीक जब अभी एक एंप्लायर बन गया उस कंपनी में और अब उसके साथ हेलपर्स और अपप्रेक्टिस काम करने लगे, अभी की सॅलरी तब 2,500 रुपये माहवार हो गया,
3 सॅलरी मिल पाया अभी को जबसे वो एंप्लायर बना. बहुत खुश हुआ, घर में पार्टी दिया, दोस्तों को बुलाया, मा बाप, भाई बहनों के लिए नये कपड़े खरीदे, खुद के लिए अच्छे कपड़े और जूते खरीदे, वॉकमॅन का ज़माना था, जिसमें केसेट लगा कर गाने सुनते थे तो अभी ने एक वॉकमॅन भी खरीदा और अपने पसंद की केसेटस खरीदता और सुनता रहता…. पहला तनख़्वा मिला तो करीबन 2,000 तो स्पेंड कर दिया वेसे ही. दूसरे महीने की सॅलरी मिली तो अपने पिता को 2,000 रुपये थमा दिया उसके छोटे छोटे करज़ो को अदा करने के लिए और घर चलाने की मदद के लिए. जो भाई बहन कॉलेज जाते थे उन सबको तगड़ा पॉकेट मनी दे दिया अभी ने.
और तीसरी सॅलरी मिलने के बाद कंपनी का दीवाला निकल गया और बंद होगया…… यह सब क्यूँ और कैसे हुआ अगले अपडेट में देखते हैं…..
और तीसरी सॅलरी मिलने के बाद कंपनी का दिवाला निकला गया और बंद होगया…… यह सब क्यूँ और कैसे हुआ अगले अपडेट में देखते हैं…..
अब आगे….
कंपनी बंद इस लिए हुआ के जिस कंपनी को आज की ओनर्स के बाप ने शुरू किया था अब 4 भाई चला रहे थे…. चारों में तू तू मैं मैं होता रहता था कंपनी के प्रॉफिट्स को लेकर इन् में से हर एक ज़्यादा पैसा चाहता था, कोई उड़ाता फिरता था पैसा, सभी की वाइफ थी और इन् में से कई के वाइफ ऐसे थी जो बेकार में खर्च करते, देश विदेश घूमने जाते, बेकार के समान खरीदते, बड़े बड़े 5 स्टार होटेलों में दिन गुज़रते, हाइ सोसाइटी वालों के बीच वक़्त गुज़ारते, और इतना एक्सपेन्स करते जितनी की हेयसियत थी ही नहीं…. लोन पर लोन लेते गये कंपनी के नाम पर और बॅंक को पे बॅक नहीं कर पाए इस लिए सब चौपट हो गया….. कंपनी के 300 करमचारी रास्ते पर आ गये… कुछ नहीं हो पाया, सील लग गई कारखाने में और सब अपने जॉब्स खो बैठे…. अभी भी बेकार हो गया….
इस एक महीने में अभी ने बहुत एंजाय किया लाइफ को. हर रोज़ पीना, घूमना, दोस्तों के साथ एश करना, अच्छे अच्छे जगह जाना, गोआ भी चला गया मौज मस्ती करने, लड़कियों को छेड़ना एट्सेटरा…
फिर तकरीबन एक महीने तक दर दर के ठोकरें खाने के बाद, अभी को एक दिन उसका मास्टर मिलने आया. मास्टर मतलब जिस से अभी ने कंपनी में काम सीखा था. उसका नाम था सयीद. सयीद कोई 55 साल का अधेड़ आदमी था और क्यूंकी अभी ने बहुत जल्दी काम सीखा था और बहुत अच्छा और सॉफ काम करता था सयीद अभी को पसंद करता था एज ए वर्कर.
अब होता यह था उस कंपनी में जितने भी बस ओनर्स थे वहाँ से बस खरीदने वाले, उन लोगों से सयीद की जान पहचान थी. वो एक बहुत पुराना मुलाज़िम था उस कंपनी का तो बस के मालिक लोग सयीद को पहचानते थे और कभी कोई बस का हिस्सा बिगड़ जाता था तो कंपनी में मरम्मत करने की बजाए वह लोग सयीद के घर जाकर उस से मिलते थे और बस की मरम्मत करने को कहते जो सयीद कर देता था. अब समझलो के उस मरम्मत को कंपनी में बस लेजाते तो 50,000 रुपये लगता, तो वोही काम सयीद बस ओनर के घर जाकर कर देता था और 10,000 में काम हो जाता था.
इस लिए एक दिन सयीद अभी से मिलने आया और कहा के उसके साथ काम पर चलना है. तो अभी गया सयीद के साथ और कोई 25 किमी की दूरी पर एक बस ओनर था जिसकी बस का आक्सिडेंट हुआ था और बस के फ्रंट साइड बिलकूल बिगड़ गया था, तो उसको वापस बनाना था. उस काम के लिए 20,000 माँगा सयीद ने और ओनर दाम पर राज़ी हुआ और काम शुरू हुआ. 20 दिनों में काम को पूरा किया सयीद और अभी ने.
और तीसरी सॅलरी मिलने के बाद कंपनी का दिवाला निकला गया और बंद होगया…… यह सब क्यूँ और कैसे हुआ अगले अपडेट में देखते हैं…..
अब आगे….
कंपनी बंद इस लिए हुआ के जिस कंपनी को आज की ओनर्स के बाप ने शुरू किया था अब 4 भाई चला रहे थे…. चारों में तू तू मैं मैं होता रहता था कंपनी के प्रॉफिट्स को लेकर इन् में से हर एक ज़्यादा पैसा चाहता था, कोई उड़ाता फिरता था पैसा, सभी की वाइफ थी और इन् में से कई के वाइफ ऐसे थी जो बेकार में खर्च करते, देश विदेश घूमने जाते, बेकार के समान खरीदते, बड़े बड़े 5 स्टार होटेलों में दिन गुज़रते, हाइ सोसाइटी वालों के बीच वक़्त गुज़ारते, और इतना एक्सपेन्स करते जितनी की हेयसियत थी ही नहीं…. लोन पर लोन लेते गये कंपनी के नाम पर और बॅंक को पे बॅक नहीं कर पाए इस लिए सब चौपट हो गया….. कंपनी के 300 करमचारी रास्ते पर आ गये… कुछ नहीं हो पाया, सील लग गई कारखाने में और सब अपने जॉब्स खो बैठे…. अभी भी बेकार हो गया….
इस एक महीने में अभी ने बहुत एंजाय किया लाइफ को. हर रोज़ पीना, घूमना, दोस्तों के साथ एश करना, अच्छे अच्छे जगह जाना, गोआ भी चला गया मौज मस्ती करने, लड़कियों को छेड़ना एट्सेटरा…
फिर तकरीबन एक महीने तक दर दर के ठोकरें खाने के बाद, अभी को एक दिन उसका मास्टर मिलने आया. मास्टर मतलब जिस से अभी ने कंपनी में काम सीखा था. उसका नाम था सयीद. सयीद कोई 55 साल का अधेड़ आदमी था और क्यूंकी अभी ने बहुत जल्दी काम सीखा था और बहुत अच्छा और सॉफ काम करता था सयीद अभी को पसंद करता था एज ए वर्कर.
अब होता यह था उस कंपनी में जितने भी बस ओनर्स थे वहाँ से बस खरीदने वाले, उन लोगों से सयीद की जान पहचान थी. वो एक बहुत पुराना मुलाज़िम था उस कंपनी का तो बस के मालिक लोग सयीद को पहचानते थे और कभी कोई बस का हिस्सा बिगड़ जाता था तो कंपनी में मरम्मत करने की बजाए वह लोग सयीद के घर जाकर उस से मिलते थे और बस की मरम्मत करने को कहते जो सयीद कर देता था. अब समझलो के उस मरम्मत को कंपनी में बस लेजाते तो 50,000 रुपये लगता, तो वोही काम सयीद बस ओनर के घर जाकर कर देता था और 10,000 में काम हो जाता था.
इस लिए एक दिन सयीद अभी से मिलने आया और कहा के उसके साथ काम पर चलना है. तो अभी गया सयीद के साथ और कोई 25 किमी की दूरी पर एक बस ओनर था जिसकी बस का आक्सिडेंट हुआ था और बस के फ्रंट साइड बिलकूल बिगड़ गया था, तो उसको वापस बनाना था. उस काम के लिए 20,000 माँगा सयीद ने और ओनर दाम पर राज़ी हुआ और काम शुरू हुआ. 20 दिनों में काम को पूरा किया सयीद और अभी ने.
सयीद ने उन 20 दिनों के लिए अभी को 5,000 दिए और अपने लिए 15,000 रखा. अभी के लिए 5,000 काफ़ी था 20 दिनों के काम के लिए और उसने सयीद से कहा के वेसे ही और काम ढूँढे तो कम से कम रोज़ी रोटी चलता रहेगा, तो सयीद ने कहा ढूंडना तो मुश्किल है मगर बस ओनर्स खुद उसके पास आएँगे तभी काम मिलेगा.
जब वो बस वापस काम करने लगा तो बाकी के बस ओनर्स जिनको पता था उस बस की आक्सिडेंट हुई थी और बस बिलकूल बिगड़ गया था सामने से, फिर 20 दिन बाद उस बस को वापस काम करते हुए देख कर बाकी के बस ओनर्स हैरान हुए और पूछा के किस ने बस की मरम्मत इतनी जल्दी कर दिए के लगता ही नहीं के कभी आक्सिडेंट हुआ था. इस तरह से सयीद का नाम मशहूर होने लगा बस ओनर्स के दरमियाँ. एक के मुँह से दूसरे के कान तक बात फैलती गयी और सयीद और अभी काफ़ी मशहूर हो गये तमाम बस ओनर्स के बीच. ठीक एक हफ्ते बाद एक पुराने बस ओनर ने अपने बस की मरम्मत करने को सोचा क्यूंकी उसका बस काफ़ी पुराना था 15 साल से कुछ नहीं किया था उस बस में और बहुत सारे अंदर के लोहे लगभग गल गये थे और जब बस चलती थी तो बहुत सारे शोर होते थे और आवाज़ें सुनाई देते थे, पॅसेंजर्स कंप्लेंट्स करते थे. तो उस ओनर ने सयीद से कॉंटॅक्ट किए और एक जनरल रिपेयर का काम शुरू हुआ उस बस में जो अभी और सयीद ने करना शुरू किया. काम बहुत ज़्यादा था बस में, चेसिस से लेकर उपर के तमाम वेल्डेड लोहे खराब हो गये थे, नये लोहे खरीदने थे और काफ़ी सारा एल्युमीनियम के टीन भी पुराने हो गये थे वो भी खरीदना था, तो उस में वेलडिंग का काम भी था और एल्युमीनियम के भी, सारे बस के सीट्स निकाले गये, फ्लोरिंग में दोबारा नये रिवेट्स लगाने थे, वापस सीट्स लगाने थे, पैंट भी करना था, बस के तमाम शीशे भी उतार कर नये रब्बर लगाना था तीन में जिस पर शीशे चिपकते हैं; इस लिए अभी के अलावा सयीद ने और दो मुलाज़िमों को ढूँढा साथ काम करने के लिए.
यह काम 2 महीनों तक चला. और दाम हुआ 60,000 रुपये जो ओनर ने खुशी खुशी दिया क्यूंकी उसको पता था यही काम अगर कंपनी की गॅरेज में करवाता तो करीबन 2 लाख रुपये लग सकते थे. उस में से अभी को 15,000 मिला. अभी बहुत खुश हुआ. उसको लाइफ में पहली बार इतना पैसा एक साथ मिला था उसको. इतना पैसा उसने कभी देखा ही नहीं था एक साथ. घर में बाप को उसने 10,000 थमा दिया. मा बाप दोनों बेहद खुश हुए, भाई बहाँ सब बहुत खुश हुए. बाप को अब समझ में आया के उसका बेटा अब कुछ बन गया है और घर को संभाल पाएगा उसके मरने के बाद.
अभी अपने दोस्तों को नहीं भूला था, उसने काफ़ी सारे प्रोग्रामस बनाए दोस्तों के बीच, जिन दिनों वो मुश्किल में था, तंगी चल रही थी, उन दिनों जिन दोस्तों ने उसका हेल्प किया था फाइनॅन्षियली, अभी ने उन सभी दोस्तों के लिए पार्टी दिए, खूब मौज मस्ती किए, दारू पीना, पिक्निक जाना, गोआ जाना लड़कियों को ताड़ना, फ्लर्ट करना वाघहैरा वाघहैरा… वोही जो हर नौजवान करता है अभी भी बिलकूल वेसा ही था और सब कुछ एंजाय किया करता था….
दो हफ्ते तक कोई काम नहीं मिला था तो उन दो हफ्तों तक अभी हर रोज़ पीता, मस्ती करता, मूवीस देखने जाता, खूब घूमता, लोंग ड्राइव्स पर जाता एट्सेटरा…
फिर छोटे छोटे काम मिले सयीद को जो हफ्ते भर में पूरा हो जाता, छोटे मरम्मत, कभी फ्रंट विंड्षील्ड बदलना, कभी कहीं के सीट बनाना, कभी कुछ और करना…मगर हर काम करने के लिए सयीद अभी को साथ ज़रूर ले जाता था क्यूंकी अकेले उन कामों को करना नामुमकिन होते थे.
वेसे आहिस्ते आहिस्ते अभी कुछ ना कुछ कर लिया करता था जिस से जेब में पैसा बना रहता था. कभी इस शहर के बस ओनर से जान पहचान होता तो कभी दूर किसी शहर में, लगभग 10 से 15 शहरों तक घूम चुके थे सयीद और अभी बस के मरम्मत करते हुए. फिलहाल सब सही चलने लगा था…. मगर अभी के दिल में एक ख़ालीपन सा महसूस होता था…. वो अपने दिल की मालकिन की तलाश में भी लगा हुआ था…
पूरे दो साल बीत गये कंपनी को बंद हुए, और इन् दो सालों में तकरीबन 20 से 25 बस ओनर्स के यहाँ काम कर लिए थे सयीद और अभी ने. दोनों मशहूर हो गये थे आस बस कोच बिल्डर्स. और डोर डोर तक देश में इन् के नाम हो गये थे बस के मालिकों के बीच.
अभी रात को जब अपने डाइयरी में लिखता तो उदास हो जाता और लिखता के अभी तक उसकी ज़िंदगी में वो नहीं आई है जिसकी उसे तलाश है. लिखता के कहीं ना कहीं तो कोई बनी होगी उसके लिए और वो भी अभी का इंतेज़ार कर रही होगी किसी कोने में. अभी सोचता, सोच में खोते हुए कहता के…
“वो दिन कैसा होगा जब उसको पहली बार देखूँगा? वो मुझको देख कर कैसा फील करेगी? क्या मेरे नज़रों में वो पढ़ पाएगी के मैं उसके लिए बना हूँ? क्या मैं उसको पहचान लूँगा? और वो? क्या वो मुझको एक नज़र में ही पहचान लेगी? हाँ मैं तो उसको देखते ही समझ जाउन्गा के वो मेरे लिए बनी है…. क्या मुझको उस तक पहुँचने में मुश्किलें पेश आएँगे? या सब कुछ आसान से हो जाएगा? बिछड़ना तो नहीं पड़ेगा जैसे रूही से बिछड़ा हूँ?.”
अभी ऑलमोस्ट हर रात को यह सब सोचता, यही कुछ लिखता अपने डाइयरी में, और कभी उस कॉपी बुक को पढ़ता जिस में उसके और रूही के बीच का तमाम किस्सा लिखा है उसने, वो पढ़कर उसके आखें नम हो जाते और वो रूही को सोचने लगता और सोचता के इस वक़्त रूही कितनी बड़ी हो गयी होगी, वो कितनी खूबसूरत लग रही होगी. अगर आज वो यहाँ होती तो वो अभी के बाहों में होती…. अभी हर रात को कुछ एसा सोचते हुए नींद के आगोश में चला जाता….
एक जाना माना बस ओनर था महबूब नाम का. उसके 4 बस रन्निंग ऑलरेडी थे रोड्स पर. मगर उसकी नज़र एक पुराने सड़े हुए बस पर पड़ी कहीं एक जंगल में जो किसी बस ओनर ने डंप कर दिया था. उस पर घांस फूस, पावडे भी उग उठे थे. महबूब ने उस बस का मोआएना किया तो पाया के उसकी चेसी बिलकुल मज़बूत ओर अच्छा है, मगर एंजिन था ही नहीं बस में सिर्फ़ चेसिस समेत सड़ा हुआ कोच था उस पर. महबूब ने सोचा के 50,000 में एक सेकेंड हॅंड एंजिन तो मिल ही जाएगा, चेसिस सही है तो सिर्फ़ कोच वेलडिंग करना पड़ेगा और बस वापस रोड पर चलाया जा सकता है. चेसिस का नंबर नोट किया उसने और लीगल मॅटर के लिए रोड ट्रॅफिक ब्रांच वालों के कॉंटॅक्ट से पता कर लिया के सब लीगली बनाया जा सकता है अगर वो बस को वापस रोड पर लाना चाहे तो.
तो उसको अब सयीद से मिलना बाकी था जो उसने किया. सयीद को लेकर वो बस दिखाने लेगया. उस बस में काम वोही करना था जो बिलकुल एक नये बस में किया जाता है शुरू से अंत तक. मतलब चेसिस से शुरू करना होगा और एंड तक कोच वेलडिंग करनी होगी. ऐसे काम के लिए गॅरेज में 20 लाख रुपये लग जाता है. और अगर नये बस पर कोच वेलडिंग करना होता है तब 40 से 50 लाख लगता है. यह सब महबूब को भी पता था और सयीद को भी. महबूब ने सयीद से पूछा के कितने की मेटीरियल तकरीबन खरीदने पड़ेंगे? और बस को पूरा बनाने में कितना टाइम लगेगा?
सयीद के दिमाग में कई बातें चल रहे थी उस वक़्त. वो सोच रहा था गॅरेज के हिसाब से कितना पैसा लगता महबूब को और अब सयीद गॅरेज वाला काम पूरा करने वाला था तो कितना पैसा लेना चाहिए उसको महबूब से एक पूरा बस की कोच बनाने के लिए. सयीद ने सोचा के अभी से मिलकर डिसीजन लेना पड़ेगा उसको, तो उसने महबूब से कहा,
“मुझे अपने वर्कर्स से बात करना होगा पहले, यह उन के हाथ में हैं के कितने दिनों में काम पूरा हो सकता है और मेटीरियल्स के लिए एक कोटेशन बनवा कर दूँगा आप को, बहुत सारे शीट्स ऑफ अल्लुमीनिूम खरीदने होंगे, बहुत मेटल्स खरीदने होंगे पूरा फ्रेम के लिए और बस के तमाम सीट्स के लिए अलग से मेटल्स लेने होंगे और सारे सीट्स भी बनाना हैं, तमाम शीशे बस के खरीदने हैं….सब कुछ फ्रॉम ज़ीरो स्टार्ट करना है….. उपर से सारे रिवेट्स, फ्लोरिंग, सीलिंग्स के पन्नेल्स, साइड्स के फ्रेम्स, सब कुछ शुरू से स्टार्ट करना है बिलकुल जैसे एक नया बस बनता है वेसे करना है….”
महबूब ने कहा के वो सब करने को तय्यार है उसको वो बस वापस रोड पर चाहिए ही चाहिए!
सयीद जाकर अभी से मिला और उसको लेकर उस जंगल में बस दिखाने लेगया और दोनों मिलकर डिसकस करने लगे के कितना कॉस्ट होगा सारे मेटेरियल्स का और कितना पैसा लेना पड़ेगा महबूब से बस को रोड पर लाने के लिए और कितने दिनों में काम पूरा हो सकता है.
सयीद और अभी फिर उसके घर पर मिले और काग़ज़ कलाम लेकर बैठे दोनों सब कुछ लिखने के लिए.
सारे मेटीरियल्स को सोच सोच कर लिखा गया एक एक करके, सब याद करते हुए के बस की कोच बनाने के लिए क्या क्या इस्तेमाल होता है, एक किल से लेकर एल्युमीनियम शीट्स तक सब कुछ लिखा गया और दाम एक कोने में नोट किया गया.
एक पूरा कोटेशन तयार किया अभी ने. क्यूंकी वो पढ़ा लिखा था तो इस लिए सयीद ने अभी पर काउंट किया वो सब तय्यार करने के लिए. सब कुछ कलाम और काग़ज़ पर किया गया कंप्यूटर तो था नहीं तब.
उसके बाद अब दोनों ने डिसकस किए के कितना पैसा लेना होगा महबूब से उस काम के लिए. सयीद और अभी ने मिलकर डिसकस किया के कंपनी की गॅरेज में तो उस काम के लिए कम से कम दो या टीन लाख लिए जाते और 3 महीनों में काम पूरा किया जाता…. तो बात यह हुई के गॅरेज में और भी काई मुलाज़िम काम करते तब 3 महीनों में काम पूरा होता, यहाँ तो 4 मुलाज़िम हैं तो ज़्यादा दिन तो लगेंगे ही…… 6 महीने सोचा दोनों ने… फिर सोचा के महबूब को 6 महीने बहुत ज़्यादा लगेंगे, तो 4 से 5 महीने कहने को सोचा दोनों ने. तब बात आई पैसे की, लेबर की, मतलान मज़दूरी की….. सयीद ने कहा के 75,000 माँगेगा. और कहा के वो 50,000 लेगा और अभी को 25,000 देगा.
अभी ने कहा,
“75,000? आप पागल हो क्या सयीद जी? 3 लाख का काम आप 75 हज़ार रुपये में करोगे? और दो वर्कर्स के भी पेमेंट करने होंगे तो केसे मुझको 25 और आप 50 लोगे उन में से? मैं कहता हूँ दो लाख माँगना है महबूब जी से इस काम के लिए.”
अभी डोर का सोचता था. सयीद जी के लिए 75 हज़ार बहुत बड़ा रकम था इस लिए उसको ज़्यादा माँगना अजीब लग रहा था, मगर अभी को पता था के महबूब जी अगर गॅरेज को 3 लाख की पेमेंट कर सकते हैं तो 2 लाख तो दे पाएगा इस काम के लिए. तो सयीद जी ने कहा,
“देखो अभी, मुझ में हिम्मत नहीं है महबूब जी से इतना बड़ा रकम माँगने की, एक काम करते हैं, तुम मेरे साथ चलो, मैं तुमको अपने असिस्टेंट कहकर मिलवौनगा उस से और तुम प्राइस डिसकस करना उन्ँके साथ देखते हैं क्या होता है.”
अभी मान गया. और दोनों मिले महबूब जी के घर पर. अभी ने कोटेशन दे दिया महबूब जी को. दर्र लाख की मेटीरियल्स खरीदने थे महबूब जी को. तब उसने सयीद जी से पूछा के कितना लेंगे इस काम के लिए और कितने दिनों में काम पूरा होगा. तो सयीद ने महबूब से कहा,
“उसी से पूछिए ना जनाब, यह अभी है ना वोही सब अकाउंटिंग करता है. वो सही फिगर्स देगा आप को.”
महबूब के यहाँ आने से पहले तो बात 2 लाख की हुई थी मगर यहाँ अभी ने महबूब से 3 लाख की फरमाइश किए! सयीद जी को झटका लगा 3 लाख सुनकर! मगर महबूब जी ने अभी से पूछा,
“3 लाख कुछ ज़्यादा नहीं है बर्खुरदार? गॅरेज में भी तो उतना ही लगता ना?”
अभी ने कहा,
“क्या आप के यहाँ गॅरेज है जनाब? या आप के यहाँ हम खुले हवा में काम करेंगे, धूप में तपते हुए सारे काम करने होंगे, इन्न सब को ख़याल में रखते हुए ही ना हुँने सब कुछ सोचा है? और फिर दो और मुलाज़िम होंगे हमारे साथ, उन्ँके भी तो पेमेंट्स करने होंगे, त्रवेल्लिंग्स का भी सोचा है हुँने सारे मुलाज़िम के ट्रॅवेलिंग का ख़याल भी तो करना पड़ता है ना?”
महबूब जी ने मुस्कुराते हुए वापस सयीद जी को देखा और कहा,
“अरे सयीद भाई आप तो अपने फाइनान्स मॅनेजर को लेकर साथ आए हो या यह आप का ह्र है?!” और वो हंसस पड़े.
महबूब जी ने 3 लाख को मंज़ूर किया जिस से सयीद जी को ज़बरदस्त झटका लगा, उसने तो सपने में भी नहीं सोचा था के लाइफ में कभी किसी से 3 लाख माँगेगा काम करने के लिए.
सयीद चुप चाप बैठा रहा और अभी को सब डील पूरा करने दिया.
महबूब जी ने पूछा के कितने दिनों में काम पूरा होगा. अभी ने कहा 5 से 6 महीने तो लग जाएगा, और महबूब जी को मेकॅनिक्स वाले काम अलग से करवाने होंगे एंजिन को लेकर और पेंटिंग्स भी अलग से वो करवाएगा अपने तरफ से. महबूब जी राज़ी हुए और पूछा के पेमेंट कैसे करेगा सब एक साथ काम पूरा होने के बाद या अड्वान्स पेमेंट चाहिए?
बिना सयीद को देखे या पूछे अभी ने कहा,
“अगर आप 1 लाख दे देते हमें काम शुरू होने से पहले तो हमारे लिए आसान होता बाकी के मुलाज़िमों की पेमेंट करने के लिए क्यूंकी उन लोगों को वीक्ली पेमेंट करते हैं हम.”
सयीद जी को एक और झटका लगा अभी की बात को सुनकर. उसने तो लाइफ में कभी 1 लाख रुपये ना लिया था ना देखा था. और 22 साल की उमर का अभी 1 लाख रुपये माँग रहा था एक बस ओनर से, वो भी अड्वान्स और 2 लाख काम पूरा होने के बाद मिलने वाला था….. सयीद सोच रहा था के साला उसने तो 75 हज़ार पूरा काम के लिए माँगने वाला था! और यहाँ अभी अड्वान्स 1 लाख माँग रहा है और महबूब देने को तय्यार था!
महबूब जी ने एक चेक काटा 1 लाख रुपये की और अभी को थमा दिया सयीद को देखते हुए. फिर पूछा के काम शुरू कब होगा. तो अभी ने कहा काम कल से ही शुरू होगा, बस को टो किया जाएगा उनके आँगन में आज ही.
वहाँ से निकले तो सयीद ने अभी से कहा,
“कमाल करते हो तुम अभी? 2 लाख की बात हुई थी और तुमने 3 लाख माँग लिया?”
अभी ने ज़ोर से हँसते हुए कहा,
“यह एक लाख मेरा अपना कमाई है सयीद जी. इस में से मैं आप को कुछ नहीं देने वाला” और ज़ोरों से हँस ता गया. सयीद जी खामोश रहे.
कुछ देर बाद अभी ने पूछा,
“यह चेक आप अपने अकाउंट में डेबिट करोगे या मैं अपने अकाउंट में डाल दूं?”
सयीद ने कहा,
“अरे बेटा मेरा तो आज तक कोई बॅंक अकाउंट है ही नहीं! तो तुम्ही डालो अपने अकाउंट में ना!”
उस दिन लाइफ में पहली बार अभी की बॅंक अकाउंट में 1 लाख रुपये डेपॉज़िट किया गया! जिस बंदे को 10 रुपये के लिए तरसना पड़ता था, एक सिगरेट पीने के लिए दोस्तों से माँगना पड़ता था आज 1 लाख रुपये डेपॉज़िट किया गया उसके अकाउंट में उसको खुद यकीन नहीं हो रहा था!
शाम को बस टो किया गया और महबूब जी के आँगन में एक बड़े से शेड के नीचे रखा गया. सयीद और अभी वहीं मौजूद थे. बस को देख कर लोग हंस रहे थे. पड़ोस के लोग आकर बस को देखने लगे जिस पर घास फूस उगे हुए थे, इतना मैला था, गंदा था, गंदे हरे रंग के पानी कई जगा जमा हुआ था बस में, जो एक दो शीशे बचे हुए थे सब डार्क ग्रीन गंदे इस कदर दिख रहे थे के घिन आ रहा था… कुछ लोग महबूब जी को पागल कह रहे थे के एक सड़े हुए बस को जंगल से उठाकर अपने आँगन में ला रखा था….
अभी सुन रहा था सभी के कॉमेंट्स को और अपने दिल में कहा,
“सालो, तीन महीने बाद तुम्ही लोग तारीफ़ करने आओगे इस बस की….”
और यहाँ पर शुरू होती है अभी की रोमॅंटिक कहानी… अभी ने अचानक किसी महिला की आवाज़ को कुछ यूँ फुकारते हुए सुना;
“अरी ओ रूही क्या कर रही है आ देख तेरे महबूब चाचा ने क्या लाया है आँगन में!”