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Horror वो कौन थी?

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adeswal
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Re: Horror वो कौन थी?

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"तुम लोग जितनी भी कोशिश कर लो मेरा कुछ नही बिगाड़ पाओगे। " कहते हुए नयना की आत्मा हँसने


लगी ।





"ये तुम्हारी गलतफहमी हैं कि हम तेरा कुछ नही बिगाड़ सकते। बस थोड़ा इंतजार कर ।"





"ले आओ इसे अंदर " नयना के शरीर को कुछ लोग अंदर लेकर आते हैं।"एक बार आत्मा के शरीर को नष्ट हो जाने के बाद उसे मुक्त होना ही पड़ता हैं । इसके शरीर को अग्नि को समर्पित कर दो । " कुलगुरु नयना के शरीर को अग्नि को समर्पित करने को कहते हैं और वहाँ उपस्थ्ति उनके शिष्य अपने गुरु के आदेश का पालन करते हैं। नयना का शरीर नष्ट होने के बाद भी उसकी आत्मा मुक्त नही होती ये देखकर कुलगुरु और बाकी लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं और नयना की आत्मा जोर जोर से हँसने लगती हैं।





"तुझे क्या लगता हैं मेरे शरीर को नष्ट करके तू मुझे हरा देगा तो ये तेरी गतफहमी हैं। मैं भी कोई साधारण आत्मा नही हूँ , एक तंत्र मंत्र सिद्ध आत्मा हूँ । उस दिन मानसिंह ने मेरे मकसद में मुझे कामयाब होने से तो रोक दिया था लेकिन फिर भी मैने हिम्मत नही हारी। जब मैं बेटी के पास गई तो वो मर चुकी थी और मैं अंदर से टूट चुकी थी । अब मेरे पास खोने के लिए कुछ भी नही था इसलिए मैंने वो किया जो शायद इस तंत्र मंत्र की साधना में किसी ने पहली बार किया होगा। मैने अपनी सारी तंत्र सिद्धियों को एकत्र किया और अपनी आत्मा को दो भागों में विभाजित कर दिया और अपनी आत्मा का एक भाग अपनी बेटी परी में डाल दिया और उसके शरीर को तंत्रोषिद्ध लेप के द्वारा एक लंबे अंतराल तक के लिए के सुरक्षित रख सकती थी। जिस दिन मुझे अपनी बेटी के जन्म के दिन तारिख समय नक्षत्र वाली बच्ची मिलेगी मैं उसे पुनर्जीवित कर दूँगी और वो मेरी ही तरफ असीम शक्तियों की मालिक होगी।"





"और रही बात मुझसे छुटकारा पाने की तो वो तुम कभी नही कर सकते क्योंकि मेरी आत्मा ही दो भागों में बॅट गयी हैं । मुझसे छुटकारा पाने के लिए मेरी आत्मा के दोनों भागो का समीप होना जरुरी हैं और इसके लिए मेरी बेटी के शरीर को मेरे पास लाना होगा और ये तुम्हे कभी पता ही नही चलेगा कि


उसका शरीर कहाँ हैं ? और अगर पता भी चल गया तो वहाँ तक पहुँचना असंभव हैं इसलिए मुझे मारने का ख्याल अपने दिल से निकाल दो। " कहते हुए नयना की आत्मा जोर जोर हँसने लगी।





"अच्छा हुआ तुमने अपने मुँह से अपनी सच्चाई बता दी । भले ही हम तुम्हे मार नही सकते लेकिन कैद तो कर सकते हैं। कैद होने के बाद भी तो तुम जो चाहती हो वो कभी नही कर पाओगी। प्रकृति से खिलवाड़ करने की तेरी इच्छा कभी पूरी नही होगी। अपनी बेटी को जीवित करने का सपना तेरे लिए ही सपना ही बनकर रह जायेगा । तू इस कैद से कभी भी आजाद नही हो पाएगी। " कहते हुए कुलगुरु ने गंगाजल , हल्दी कुमकुम उस आत्मा ऊपर डालकर उसे कमजोर कर दिया और फिर उन्होंने उस आत्मा को तांबे से बने एक छोटे से संदूक में कैद कर दिया और उसमे ताला लगाकर उसके ऊपर अच्छे से कलेवा लपेट दिया । संदूक के ऊपर रोली और चंदन से स्वस्तिक का निशान बना कर फिर उसे जंगल में एक पुराने पेड़ के नीचे दफना दिया और उसके ऊपर महाकाल का त्रिशूल स्थापित कर दिया।





"अब आप सभी निश्चिन्त होकर घर जाइये । इस आत्मा का अध्याय यही समाप्त हुआ । अब आप सभी को इससे भयभीत होने की कोई जरुरत नही हैं । नयना की आत्मा इस बंधन से अपने आप कभी मुक्त नही हो पाएगी।"





"गुरुदेव अगर कभी किसी तरफ वो यहाँ से आजाद होने में कामयाब हो गयी तो "





"मानसिंह वो अपनेआप तो यहाँ से आजाद नही हो सकती लेकिन अगर कभी किसी ने उसकी मदद की और वो आजाद हो


गयी तो और भी शक्तिशाली हो जायेगी और फिर उसे रोकना लगभग असंभव ही होगा।"





"तो फिर कुछ हमें ऐसा करना चाहिये कि कोई भी इसकी मदद ना कर सके। मतलब इस जगह तक पहुचने के सारे रास्ते बंद कर देने चाहिए।"





"लेकिन कैसे ?"





"गुरुदेव , क्यों ना हम इस जगह छोटा सा मंदिर बना दे और इसके आसपास के भाग में लोगो के आवागमन पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाय।"





"ये अच्छा उपाय हैं । हमें पूरी तरफ से इससे आजाद होने के भय से छुटकारा मिल जायेगा।"





24 Asterisk





"और इस तरह से उस समय मानसिंह ने अपने कुलगुरु की सहायता से नयना की आत्मा को हमेशा के लिए कैद कर दिया । " कहते हुए राघव ने उस आत्मा की पूरी सच्चाई सबके सामने बताई।





"जब उस समय उसे हमेशा के लिए कैद कर लिया था तो फिर वो आजाद कैसे हुई ? " नितिन ने सवाल किया।





" सब कुछ जानने के बाद मुझे भी यही ख्याल आया तो मैंने आगे पता करने की कोशिश की । तबसे आज सब कुछ बहुत बदल गया । जिस जंगल में वो छोटा सा मंदिर बनाया गया था वहाँ अब जंगल नही रहा वो हाईवे के आसपास का एरिया बन


गया । कुछ साल पहले एक रोड एक्सीडेंट में एक परिवार के कई सदस्यों की वहाँ मौत हो गयी । उसमे एक औरत बची थी । उसकी भी एक छोटी सी बच्ची थी । जब उसने अपनी बच्ची को खून में लथपथ देखा तो वो उसके निर्जीव शरीर को हाथों में ले जोर जोर से रोने लगी । तभी उसकी नजर उस मंदिर पर गयी और अपनी बेटी को लेकर वहाँ लिटा दिया और भगवान ने उसकी जान की भीख मांगने लगी । उस पर जैसे पागलपन सवार हो गया और गुस्से में उसे पता नही क्या हुआ कि उसने वो पूरा मंदिर तोड़ डाला और सब कुछ तहस नहस कर दिया। शायद उसी समय नयना की आत्मा वहाँ से आजाद हो गयी और फिर वही आसपास वो किसी ऎसे शख्स का इंतजार करने लगी जिससे वो अपना मकसद पूरा कर सके।"





"लेकिन उसने मेरी बच्ची को ही क्यों अपना शिकार बनाया ?"





"नित्या ही वो बच्ची हैं जिसका जन्म , समय , तिथि , कुल ,नक्षत्र सब परी से मेल खाता हैं और वही उसकी बेटी की जगह ले सकती हैं। वो सिर्फ उस दिन और समय का इंतजार कर रही हैं जब वो नित्या के शरीर में अपनी बेटी को प्रतिस्थापित कर सके और आने वाली अमावस्या को ही वो ये काम करेगी और हमेशा के लिए अपनी बेटी को पुनर्जीवित कर देगी।"





"अमावस्या तो कल ही हैं , अब हम क्या करे गुरुमहाराज ?"





"चिंता मत कीजिये , अब हमें उस आत्मा के बारे में सारी सच्चाई पता चल गई हैं इसलिए अब हम उसका मुकाबला करने के लिए तैयार हैं ? उसे परी के शरीर के साथ यहाँ आने को मजबूर कर देंगे और फिर साथ साथ ही उन्हें मुक्ति।








"कैसे महराज , हमें तो ये भी नही पता कि उसने परी का शरीर रखा कहाँ हैं? " अभी सब लोग बात ही कर रहे थे कि स्वाति का फ़ोन आता है और रोतें हुए बताती हैं कि नित्या का पूरा शरीर काला हो गया हैं और उसकी सांसे धीमी होती जा रही हैं जिसे सुनकर सभी घबरा जाते हैं। गुरुमहाराज नित्या को अपने पास लाने के लिए कहते हैं । नितिन नित्या के बेजान शरीर को लेकर गुरुमहाराज की गुफा में आ जाते हैं। गुरुमहाराज नित्या के शरीर को महाकाल के सामने लिटा देते हैं और कुछ मन्त्र पढ़कर उसके ऊपर फूंकते हैं । उनके चिंतित चेहरे को देखकर सभी घबरा जाते हैं और उसका कारण पूछते हैं।





" नयना की आत्मा हमसे एक कदम आगे निकली वो समझ गयी थी कि हम उसे यहाँ आने को मजबूर कर देंगे इसलिए वो नित्या की आत्मा को लेकर यहाँ से चली गयी हैं ?"





"कहाँ चली गयी और अब हम कैसे और क्या करेंगे ?"





"वो इसकी आत्मा लेकर अपनी दुनिया में चली गयी और मुझे पूरा यकीन हैं कि उसने परी के शरीर को भी वही पर सुरक्षित रखा होगा।"





"दूसरी दुनिया मतलब ".





"वो दुनिया जहाँ कोई भी इंसान जीवित अवस्था में प्रवेश नही कर सकता और नित्या की आत्मा को वहाँ से लाये बिना हम उसे बचा भी नही सकते। " गुरुमहाराज के कहने पर नितिन और स्वाति रोने लगे।





"गुरुमहाराज हमारे पास एक उपाय हैं , जिससे हम नित्या की आत्मा को उस दुनिया से ला सकते हैं और नयना को भी परी के


शरीर के साथ यहाँ आने पर मजबूर कर सकते हैं। " राघव के कहने पर सभी एक आशा भरी दृष्टि ने उसकी तरफ देखने लगे।























"गुरुमहाराज हमारे पास एक उपाय हैं , जिससे हम नित्या की आत्मा को उस दुनिया से ला सकते हैं और नयना को भी परी के शरीर के साथ यहाँ आने पर मजबूर कर सकते हैं। " राघव के कहने पर सभी एक आशा भरी दृष्टि ने उसकी तरफ देखने लगे।





"कैसा उपाय और कौन और कैसे ये सब कर सकता हैं।" नितिन ने आश्चर्य होकर राघव की देखते हुए पूछा ।





"गुरुमहाराज हमारे बीच एक ऐसा शख्स हैं जो ये काम कर सकता हैं।"





"कौन हैं वो ?"





"सृष्टि "





"सृष्टि "आश्चर्यचकित हो सब उसकी ओर देखने लगे। "हा गुरुमहाराज , आपको याद नही हैं क्या ? हमारी सृष्टि के ऊपर महाकाल का रक्षा कवच हैं और उसे तो उनकी वो अदभुत प्राप्त हैं जो कि किसी आम इंसान के बस की बात नही हैं।"





"राघव हम तुम्हारी बात समझे नही ।"





"गुरुमहाराज सृष्टि के पास शक्ति हैं कि वो अपनी आंतरिक शक्ति के द्वारा उस दूसरी दुनिया में जा सकती हैं और जब वो जा सकती हैं तो वहाँ से परी का शरीर या नित्या की आत्मा को बाहर सकती है।"





"ये बात तो मैं भूल गया था लेकिन वहाँ जाकर सब कुछ करना आसान नही हैं। ये काम बहुत मुश्किल हैं। वहाँ कदम कदम पर बड़े खतरो का सामना करना पड़ सकता हैं और तो और जान का भी खतरा हो सकता हैं। सृष्टि क्या तुम ये काम कर पाओगी।"





"जी गुरुमहाराज , चाहे कितनी भी बड़ी मुश्किलें आये मैं इस काम से कभी पीछे नही हटूंगी। मुझे जिस दिन अपने बारे में पता चला था मैंने खुद को दूसरी की मदद के लिए समर्पित कर दिया था और पिता को वचन दिया था कि हर हाल में लोगो की सेवा करुँगी और फिर उस नयना ने मुझसे भी मेरे पिता को छीना हैं , मुझे भी तो अपनी पिता की मौत का बदला उसे हराकर लेना हैं।"





"ठीक हैं । हमारे पास वक्त बहुत कम हैं और काम बहुत ज्यादा। तुम उस दुनिया में जा तो सकती हो लेकिन अगर ये रात बीत गयी तो तुम वहाँ हमेशा के लिए कैद होकर रह जाओगी । दूसरी बात वहाँ नयना की काली शक्तियां बहुत प्रभावी रहेंगी । उनका सामना करना बहुत मुश्किल होगा। तीसरी बात उसने नित्या की


आत्मा को कहाँ और किस जगह रखा होगा ये ढूँढना बहुत मुश्किल हैं । चौथी बात परी का शरीर ढूँढना और फिर यहाँ लाना इतना आसान नही है। वो नयना तुम्हारे रास्ते में तरह तरह की रुकावटें उत्पन्न करने की कोशिश करेगी।"





"गुरुदेव हमें कुछ नही पता कि वहाँ क्या होगा और मैं उन सब का कैसे मुकाबला करुँगी। मुझे तो बस अपने महाकाल और उनकी शक्ति पर ही भरोसा है और कुछ नही पता। वही हमारी मदद करेंगे।"





"ठीक हैं फिर मैं तुम्हारे जाने की व्यवस्था करता हूँ और बाहर रहकर पूजा करता हूँ जिससे तुम्हे वहाँ उन काली शक्तियों से मुकाबला करने की शक्ति मिलेगी । " कहते हुए गुरुमहाराज ने एक बड़ा सा अग्नि कुंड तैयार किया और जरुरत की सभी सामग्री एकत्र कर पास में रख ली। अग्नि कुंड के एक तरफ जमीन पर एक चौक का निर्माण कर उस पर नित्या के शरीर को रख दिया और दूसरी तरफ चौक का निर्माण कर सृष्टि को बैठने को कहा। सृष्टि के बैठने के बाद गुरुमहाराज ने अग्नि कुंड में अग्नि प्रज्वलित की ।





"सृष्टि क्या तुम जाने के लिए तैयार हो ?"





"जी गुरुमहाराज " कहते हुए सृष्टि ने हाथ जोड़कर अपनी आंखें बंद करने लगी ।





"एक मिनट रुको उस दुनिया में नित्या की आत्मा तक पहुँचना और उसे पहचानना आसान नही होगा । इसलिए तुम नित्या के हाथ का ये कंगन अपने पास रख लो और ये वहाँ तुम्हें नित्या की आत्मा तक पहुँचने में तुम्हारी सहायता करेगा । " नित्या के हाथ से कंगन को निकालकर देते हुए गुरुमहाराज ने


सृष्टि से कहा।





गुरुमहाराज ने अग्नि कुंड में अग्नि प्रज्वलित की और पूरे विधि विधान ने पूजा करने लगे । दूसरी तरफ सृष्टि ने आँखे बंद किया और अपने दोनों हाथ जोड़कर महाकाल का जाप करने लगी । सन्नाटे को चीरती हुए कुछ आवाजो को सुनकर सृष्टि ने जैसे ही आँखे खोली अपने को एक सुनसान से जंगल में पाया। उसे समझ आ गया था कि जहाँ उसे आना था वो आ चुकी थी । आश्चर्यचकित हो वो इधर से उधर हैरानी से देखने लगी वहाँ दूर दूर तक कोई भी नही था सिर्फ पसरा हुआ सन्नाटा था । अब उसे सबसे पहले नित्या की आत्मा को ढूँढना था और इसके लिए गुरुमहाराज का दिया नित्या का जो कंगन था वही वहाँ उसकी मदद कर सकता था। सृष्टि ने उस कंगन को हाथ में लेकर मन ही मन कुछ मंत्रो का उच्चारण किया । उस कंगन से एक रौशनी सी निकलने लगी जो किसी ओर जाने का इशारा कर रही थी। सृष्टि उस कंगन से निकलती हुई रोशनी का पीछा करते हुए आगे की तरफ बढ़ने लगी और बढ़ते बढ़ते वो एक गुफा के सामने पहुँच गयी । वहाँ पहुँचते ही कंगन से चमकती हुई रौशनी बंद हो गयी जो कि इस बात का संकेत था कि इस गुफा के अंदर ही नित्या की आत्मा कैद हैं । सृष्टि ने गुफा के अंदर जाने का निश्चय किया और जैसे ही अपना एक कदम बढ़ाया एकदम से तेज हवा के झोंके आने लगे। तेज आंधी जैसी हवा में सृष्टि का एक कदम भी आगे बढ़ाना मुश्किल हो रहा था। वो समझ गयी थी ये हो ना हो नयना ही कर रही हैं , वो नही चाहती कि कोई भी नित्या की आत्मा को लेकर यहाँ से बाहर जाय।





सृष्टि ने आँखे बंद की और शिव नाम का जाप करने लगी और देखते ही देखते आंधी शांत हो गयी। सृष्टि ने गुफा के अंदर प्रवेश किया और वो देखकर हैरान हो गयी कि वहाँ बहुत से ऊँचे ऊँचे


पत्थर पड़े थे और हर पत्थर पर एक कांच की बोतल रखी थी और उसके कदम रखते ही सभी बोतलों में हलचल सी होने लगी और चीखने की आवाजें आने लगी। चीखने की आवाजों से सृष्टि के जैसे कान के परदे फाड़ दिए हो और उसने अपने दोनों हाथों से कानों को बंद कर लिया। चीखने की आवाजें शांत हुई तो एक काले रंग की आकर्ति उसके सामने उभर आई और तेज स्वरों में हँसने लगी ।
adeswal
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Re: Horror वो कौन थी?

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"मानना पड़ेगा तुझे , जहाँ कोई नही आ सकता वहाँ तू आ गयी लेकिन तुझे क्या लगता हैं जो तू यहाँ लेने आयी है ले जा सकती हैं ?"





"हा लेकर भी जाउंगी और नित्या की जिंदगी भी बचाऊंगी।"





"भूल जा और लौट जा , वर्ना अपनी जान से हाथ धो बैठेगी।"





"तूने मेरे पिता को मारा और ना जाने कितनों के साथ गलत किया लेकिन अब तू और गलत नही कर सकती। आज मैं तेरी सारी दहशत को हमेशा के लिए ख़त्म कर दूँगी।"





"अच्छा लेकिन कैसे करेगी। तुझे ये तो पता है कि मुझे ख़त्म करने के लिए मेरी आत्मा का और मेरी बेटी का शरीर एक साथ एक जगह पर होना चाहिए लेकिन मेरी बेटी का शरीर कहाँ हैं वो तुझे कभी पता नही चलेगा।"





"वो तो मैं पता लगा ही लुंगी। जब यहाँ आ सकती हूँ तो पता भी लगा लुंगी।"





"तुझे मेरी शक्ति का अंदाजा नही हैं , मैं काली शक्तियों की रानी हूँ । तू मेरी शक्ति के आगे एक तिनके की तरफ उड़ जायेगी।"








"तू अगर काली शक्तियों की रानी हैं तो मैं भी शक्ति की पूज्य महाकाल की भक्त हूँ । अगर तेरी शक्ति नाश कर सकती हैं तो मेरे महाकाल तेरा ही सर्वनाश कर सकते हैं इसलिये उनसे डर और अभी भी सब कुछ सही कर के उनकी शरण में चली जाय । वो भोले भंडारी हैं तुझे माफ़ कर देंगे।"





" बहुत तुझे अपने महाकाल पर भरोसा हैं तो ठीक हैं पहले नित्या की आत्मा को यहाँ से ढूढ के तो दिखा। यहाँ जितनी भी बोतल हैं उन्ही में से किसी एक में उसकी आत्मा कैद हैं । अगर तूने सही ढूंढ लिया तो मैं उसकी आत्मा को हमेशा के लिए आजाद कर दूँगी लेकिन अगर तुमने गलत बोतल उठायी तो मैं नित्या की आत्मा के साथ यहाँ से चली जाउंगी और हा एक बात याद रखना तुम्हारे पास ज्यादा समय नही हैं क्योंकि उसके बाद मुझे अपनी बेटी को जीवित करना हैं ।" कहते हुए नयना की आत्मा जोर जोर से हँसने लगी।





सृष्टि के पास बहुत कम समय था ।आधी रात होने को थी और अभी तो नित्या की आत्मा तक ही नही पहुँच पायी थी। वो सभी बोतलों के पास बारी बारी से जाकर देखने लगी लेकिन यहाँ पर इतनी बोतले रखी थी कि पूरी रात भी बीत जायेगी तो इस तरह बो सही बोतल तक नही पहुँच पायेगी। उसने मन ही मन ईश्वर को याद किया और कुछ विचार किया। उसने नित्या के कंगन को हाथ में लिया और कुछ मन्त्र पढ़ते हुए उसे ऊपर की तरफ उछाल दिया। वो कंगन पूरी गुफा के अंदर इधर से उधर नाचते हुए एकदम बीच में बड़े से पत्थर के ऊपर रखी बोतल के पास गिर गया। सृष्टि खुश होकर उस बोतल की तरफ भागी लेकिन नयना ने जादू से उसके चारों ओर आग जला दी ।





"तूने कहा था अगर मैने सही बोतल पता लगा ली तो तू मुझे


उसे लेने देगी।"





"तो मैंने कब रोका हैं , जाओ और ले लो। जब तेरे भगवन तेरे साथ हैं तो ये आग क्या चीज हैं । जाओ और ले लो।" कहते हुए हँसने लगी। सृष्टि जैसे जैसे आगे बढ़ने की कोशिश करती नयना उस आग को और भी भड़का देती और सृष्टि को कदम पीछे करने पर मजबूर कर देती। कोई रास्ता ना देख सृष्टि ने आँखे बंद कर शिव को याद किया और शिव चालीसा का पाठ करने लगी । पाठ करते करते वो उस अग्नि में प्रवेश कर गयी और वो भीषण अग्नि उसका कुछ भी नही बिगाड़ पायी।





"देखा मेरे महाकाल की शक्ति तू कुछ भी कर ले मुझे नही रोक पायेगी।" कहते हुए सृष्टि नित्या की आत्मा वाली बोतल को लेने के लिए जैसे ही हाथ बढाती हैं नयना उस बोतल को लेकर ऊपर की तरफ उड़ जाती हैं।





"तू ये गलत कर रही हैं , अपनी बात से मुकर रही हैं। दे दे मुझे।"





"मैं कब मुकरी अपनी बात से , मैने कहा था अगर तुमने सही बोतल चुन ली तो उसे आजाद कर दूँगी लेकिन ये नही कहा था कि बोतल से या फिर दुनिया से हाहाहाहा ।"





"किसी ने सच ही कहा हैं तेरी जैसी डायन पर कभी भरोसा नही करना चाहिए।"





"बिलकुल सही और अब मैं चली । वक्त आ गया हैं कि मैं अपनी बेटी को पुनर्जीवित करूँ। " कहते हुए नयना की आत्मा वो बोतल लेकर वहाँ से गायब हो गयी।








31 Asterisk





सुनसान एक जंगल में एक बड़े से पुराने पेड़ के नीचे एक अग्निकुंड बना हुआ था और उसके आसपास तरफ तरफ सामग्री रखी हुई थी। नयना ने वहाँ पहुँचते ही तंत्र साधना प्रारंभ कर दी । एक तरफ उसने अपनी बेटी के शरीर को जो कि इतने सालों से संभाल कर रखा था उसे एक पत्थर पर रख दिया और उसी के पास में नित्या की आत्मा वाली बोतल रख दी। तंत्र साधना के इस अंतिम चरण में उसे जिस प्रक्रिया को अंजाम देना था उसके लिए उसकी आत्मा का एक होना जरुरी थी इसलिए अपने आत्मा के जिस अंश के द्वारा उसने परी को शरीर को इतने सालों तक जीवित रखा था उसे वापस अपने में मिला लिया और पहले जितनी ही ताकतवर हो गयी। अब समय तक नित्या की आत्मा को परी के शरीर में भेज कर उसे नया जीवन देना और इसके लिए उसे अपनी पूरी तंत्र शक्ति को एकत्र करना और विधि को सफल करना था। पूरे विधिविधान से नयना अपनी साधना में लग गयी । साधना का एक भाग पूरा होते ही जैसे ही बोतल के ढक्कन को खोलने के लिए नयना ने हाथ बढ़ाया एक चीख के साथ वो पीछे की तरफ गिर गयी । वो कुछ संभलती इससे पहले ही सृष्टि ने उस बोतल को उठाकर उन दोनों को एक अदृश्य कवच में जकड दिया।





"तुम और यहाँ कैसे , मुझे वो बोतल वापस करो। " चिल्लाते हुए नयना सृष्टि की तरफ बढ़ी लेकिन उस अदृश्य दीवार ने उसे रोक लिया । उसने अपने तंत्र का प्रयोग किया लेकिन उसका कोई भी जादू उस दीवार को पार नही कर पाया।
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Re: Horror वो कौन थी?

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"तू अपने को बहुत होशियार समझती है और तुझे लगा कि मैं यहाँ तक पहुँच नही पाऊँगी और तू अपने मकसद में कामयाब हो जायेगी। मुझे पता था मुझे परी के शरीर तक तुम ही पहुँचा


सकती हो और इसलिए मैने तुम्हे इतनी आसानी से तुम्हें वहाँ से जाने दिया। मैं चाहती तो तुम्हे वहाँ रोक सकती थी और नित्या की आत्मा के लेकर आ सकती थी लेकिन तू फिर कोई ना कोई चाल चलती और लोगो को नुकसान पहुँचाती इसलिए तुम्हारा किस्सा हमेशा के लिए ख़त्म करना जरुरी था और इस लिए मैंने वहाँ से तुम्हे जाने दिया और मुझे पता था तुम मुझे यहाँ लेकर आओगी और वही हुआ भी । अब देखो तुम दोनों मेरी कैद में हो । अब मेरा कुछ नही बिगाड़ सकती । पहले मैं नित्या की आत्मा को मुक्त कर दूँ फिर तुझसे निपटती हूँ ।" कहते हुए सृष्टि उस बोतल से नित्या की आत्मा को आजाद करने के लिए ढक्कन खोलती हैं और नयना उसे ऐसा ना करने के लिए जोर जोर से चिल्लाती हैं। नयना अपनी शक्ति को एकत्र करती है और पूरी ताकत से उस अदृश्य दीवार पर वार करती हैं । उसके वार से वो दीवार टूट जाती हैं और नयना आजाद हो जाती हैं । वो सृष्टि से वो बोतल छीनने का प्रयास करती है लेकिन वो उस तक पहुँचे इससे पहले ही सृष्टि बोतल का ढक्कन खोल कर नित्या की आत्मा को उस कैद से आजाद कर देती है। नित्या की आत्मा धुएं की तरह वहाँ मंडराने लगती हैं । नयना उसे फिर से पकड़ने की कोशिश करती हैं लेकिन सृष्टि उसे मंत्रो द्वारा जकड लेती हैं और तब तक जकड़े रखती हैं जब तक नित्या की आत्मा वहाँ से गायब नही हो जाती।





"तूने एक बार फिर से मुझे मेरे मकसद से दूर कर दिया ।मेरी बेटी को जीवित नही करने में मैं फिर विफल हो गयी । अब तू यहाँ से बचकर नही जा सकती । " कहते हुए नयना ने सृष्टि पर वार किया और उसे जमीन में गिरा दिया। उस पर तरह तरह से अत्याचार करने लगी। सृष्टि का पूरा शशरीर छिलनी होने लगा था और वो दर्द से तड़पने लगी थी । उसकी हालत इतनी भी नही थी कि वो उठाकर खड़ी हो सके।








दूसरी तरफ नित्या की आत्मा ने नित्या के शरीर में प्रवेश करने लगी जिसे गुरुमहाराज ने वहाँ संभाला। जैसे जैसे वो आत्मा नित्या के शरीर में प्रवेश करती जा रही थी उसके शरीर का कालापन भी ख़त्म होता जा रहा था । सभी के चेहरे पर खुशी की चमक दिखने लगी थी नित्या को होश आने लगा था और गुरुमहाराज के कहने पर उसके माथे पे एक औषिधि का लेप लगा दिया गया। नित्या के लिए तो सभी ख़ुश थे लेकिन अभी तक सृष्टि उस दुनिया से वापस नही आ पाई थी । सुबह होने को थी और अगर सूरज की पहली किरण निकलने से पहले वो नही आयी तो वो वहाँ हमेशा के लिए कैद होकर रह जायेगी। समय के बीतने के साथ ही साथ सभी के चेहरे पर चिंता की लकीरे साफ साफ नजर आ रही थी।





"गुरुमहाराज मुझे लगता हैं सृष्टि किसी मुसीबत में फॅस गयी हैं या फिर उसे नयना ने कैद कर लिया होगा। अब हमें ही कुछ करना होगा।"





"तुम ठीक कह रहे हो राघव। अब जो कर सकते हैं वो महाकाल ही कर सकते हैं । ऐसा करो तुम तुरंत महाकाल की महाआरती की व्यवस्था करो। " गुरुमहाराज के कहने पर राघव और उनके कई शिष्यों ने महा आरती की व्यवस्था की और सभी उस महाआरती में शामिल हो गए। पुरे विधिविधान से महाकाल की महाआरती की जाने लगी और जब गुरुमहाराज ने देखा कि अब बस कुछ क्षण शेष हैं तो उन्होंने शिव से सृष्टि की रक्षा की प्रार्थना की और उस अग्निकुंड में अपने रक्त की कुछ बूंदे समर्पित की । हाथ जोड़ सभी सृष्टि की सहायता की प्रार्थना करने लगे।





दूसरी तरफ नयना अपनी पूरी सकती से सृष्टि पर प्रहार करने में जुटी थी । उसका पूरा शरीर लहूलुहान हो चूका था और ऐसा


लग रहा था कि बस उसके पास अंतिम साँसे ही बची है कि तभी अचानक से वहाँ तेजी से बादल गड़गड़ाने लगे और उससे एक बिजली चमकती हुई एक साथ नयना और परी के शरीर पर गिर गयी और तेजी से तड़पते हुए नयना जलने लगी। परी का शरीर पूरी तरह खाक हो चूका था । उसी आसमानी बिजली से एक रौशनी जैसी निकली और वो सृष्टि में समा गई और वो बेहोश हो गयी। उसे जब होश आया तो उसने अपने आपको अस्पताल में पाया। सभी उसे होश में आता देख ख़ुशी से नाच उठे। थोड़ा ठीक होने पर सृष्टि ने वहाँ पर क्या क्या और कैसे हुआ सब विस्तार से बताया और यकीन दिलाया कि नयना की आत्मा से अब हमेशा के लिए छुटकारा मिल गया। अब उसकी दहशत की कहानी का अंत हमेशा के लिए हो गया। उसके किये की सजा स्वयं महाकाल ने उसे दी। मन ही मन सभी महाकाल की स्तुति करने लगे।





समाप्त
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