"तुम लोग जितनी भी कोशिश कर लो मेरा कुछ नही बिगाड़ पाओगे। " कहते हुए नयना की आत्मा हँसने
लगी ।
"ये तुम्हारी गलतफहमी हैं कि हम तेरा कुछ नही बिगाड़ सकते। बस थोड़ा इंतजार कर ।"
"ले आओ इसे अंदर " नयना के शरीर को कुछ लोग अंदर लेकर आते हैं।"एक बार आत्मा के शरीर को नष्ट हो जाने के बाद उसे मुक्त होना ही पड़ता हैं । इसके शरीर को अग्नि को समर्पित कर दो । " कुलगुरु नयना के शरीर को अग्नि को समर्पित करने को कहते हैं और वहाँ उपस्थ्ति उनके शिष्य अपने गुरु के आदेश का पालन करते हैं। नयना का शरीर नष्ट होने के बाद भी उसकी आत्मा मुक्त नही होती ये देखकर कुलगुरु और बाकी लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं और नयना की आत्मा जोर जोर से हँसने लगती हैं।
"तुझे क्या लगता हैं मेरे शरीर को नष्ट करके तू मुझे हरा देगा तो ये तेरी गतफहमी हैं। मैं भी कोई साधारण आत्मा नही हूँ , एक तंत्र मंत्र सिद्ध आत्मा हूँ । उस दिन मानसिंह ने मेरे मकसद में मुझे कामयाब होने से तो रोक दिया था लेकिन फिर भी मैने हिम्मत नही हारी। जब मैं बेटी के पास गई तो वो मर चुकी थी और मैं अंदर से टूट चुकी थी । अब मेरे पास खोने के लिए कुछ भी नही था इसलिए मैंने वो किया जो शायद इस तंत्र मंत्र की साधना में किसी ने पहली बार किया होगा। मैने अपनी सारी तंत्र सिद्धियों को एकत्र किया और अपनी आत्मा को दो भागों में विभाजित कर दिया और अपनी आत्मा का एक भाग अपनी बेटी परी में डाल दिया और उसके शरीर को तंत्रोषिद्ध लेप के द्वारा एक लंबे अंतराल तक के लिए के सुरक्षित रख सकती थी। जिस दिन मुझे अपनी बेटी के जन्म के दिन तारिख समय नक्षत्र वाली बच्ची मिलेगी मैं उसे पुनर्जीवित कर दूँगी और वो मेरी ही तरफ असीम शक्तियों की मालिक होगी।"
"और रही बात मुझसे छुटकारा पाने की तो वो तुम कभी नही कर सकते क्योंकि मेरी आत्मा ही दो भागों में बॅट गयी हैं । मुझसे छुटकारा पाने के लिए मेरी आत्मा के दोनों भागो का समीप होना जरुरी हैं और इसके लिए मेरी बेटी के शरीर को मेरे पास लाना होगा और ये तुम्हे कभी पता ही नही चलेगा कि
उसका शरीर कहाँ हैं ? और अगर पता भी चल गया तो वहाँ तक पहुँचना असंभव हैं इसलिए मुझे मारने का ख्याल अपने दिल से निकाल दो। " कहते हुए नयना की आत्मा जोर जोर हँसने लगी।
"अच्छा हुआ तुमने अपने मुँह से अपनी सच्चाई बता दी । भले ही हम तुम्हे मार नही सकते लेकिन कैद तो कर सकते हैं। कैद होने के बाद भी तो तुम जो चाहती हो वो कभी नही कर पाओगी। प्रकृति से खिलवाड़ करने की तेरी इच्छा कभी पूरी नही होगी। अपनी बेटी को जीवित करने का सपना तेरे लिए ही सपना ही बनकर रह जायेगा । तू इस कैद से कभी भी आजाद नही हो पाएगी। " कहते हुए कुलगुरु ने गंगाजल , हल्दी कुमकुम उस आत्मा ऊपर डालकर उसे कमजोर कर दिया और फिर उन्होंने उस आत्मा को तांबे से बने एक छोटे से संदूक में कैद कर दिया और उसमे ताला लगाकर उसके ऊपर अच्छे से कलेवा लपेट दिया । संदूक के ऊपर रोली और चंदन से स्वस्तिक का निशान बना कर फिर उसे जंगल में एक पुराने पेड़ के नीचे दफना दिया और उसके ऊपर महाकाल का त्रिशूल स्थापित कर दिया।
"अब आप सभी निश्चिन्त होकर घर जाइये । इस आत्मा का अध्याय यही समाप्त हुआ । अब आप सभी को इससे भयभीत होने की कोई जरुरत नही हैं । नयना की आत्मा इस बंधन से अपने आप कभी मुक्त नही हो पाएगी।"
"गुरुदेव अगर कभी किसी तरफ वो यहाँ से आजाद होने में कामयाब हो गयी तो "
"मानसिंह वो अपनेआप तो यहाँ से आजाद नही हो सकती लेकिन अगर कभी किसी ने उसकी मदद की और वो आजाद हो
गयी तो और भी शक्तिशाली हो जायेगी और फिर उसे रोकना लगभग असंभव ही होगा।"
"तो फिर कुछ हमें ऐसा करना चाहिये कि कोई भी इसकी मदद ना कर सके। मतलब इस जगह तक पहुचने के सारे रास्ते बंद कर देने चाहिए।"
"लेकिन कैसे ?"
"गुरुदेव , क्यों ना हम इस जगह छोटा सा मंदिर बना दे और इसके आसपास के भाग में लोगो के आवागमन पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाय।"
"ये अच्छा उपाय हैं । हमें पूरी तरफ से इससे आजाद होने के भय से छुटकारा मिल जायेगा।"
24 Asterisk
"और इस तरह से उस समय मानसिंह ने अपने कुलगुरु की सहायता से नयना की आत्मा को हमेशा के लिए कैद कर दिया । " कहते हुए राघव ने उस आत्मा की पूरी सच्चाई सबके सामने बताई।
"जब उस समय उसे हमेशा के लिए कैद कर लिया था तो फिर वो आजाद कैसे हुई ? " नितिन ने सवाल किया।
" सब कुछ जानने के बाद मुझे भी यही ख्याल आया तो मैंने आगे पता करने की कोशिश की । तबसे आज सब कुछ बहुत बदल गया । जिस जंगल में वो छोटा सा मंदिर बनाया गया था वहाँ अब जंगल नही रहा वो हाईवे के आसपास का एरिया बन
गया । कुछ साल पहले एक रोड एक्सीडेंट में एक परिवार के कई सदस्यों की वहाँ मौत हो गयी । उसमे एक औरत बची थी । उसकी भी एक छोटी सी बच्ची थी । जब उसने अपनी बच्ची को खून में लथपथ देखा तो वो उसके निर्जीव शरीर को हाथों में ले जोर जोर से रोने लगी । तभी उसकी नजर उस मंदिर पर गयी और अपनी बेटी को लेकर वहाँ लिटा दिया और भगवान ने उसकी जान की भीख मांगने लगी । उस पर जैसे पागलपन सवार हो गया और गुस्से में उसे पता नही क्या हुआ कि उसने वो पूरा मंदिर तोड़ डाला और सब कुछ तहस नहस कर दिया। शायद उसी समय नयना की आत्मा वहाँ से आजाद हो गयी और फिर वही आसपास वो किसी ऎसे शख्स का इंतजार करने लगी जिससे वो अपना मकसद पूरा कर सके।"
"लेकिन उसने मेरी बच्ची को ही क्यों अपना शिकार बनाया ?"
"नित्या ही वो बच्ची हैं जिसका जन्म , समय , तिथि , कुल ,नक्षत्र सब परी से मेल खाता हैं और वही उसकी बेटी की जगह ले सकती हैं। वो सिर्फ उस दिन और समय का इंतजार कर रही हैं जब वो नित्या के शरीर में अपनी बेटी को प्रतिस्थापित कर सके और आने वाली अमावस्या को ही वो ये काम करेगी और हमेशा के लिए अपनी बेटी को पुनर्जीवित कर देगी।"
"अमावस्या तो कल ही हैं , अब हम क्या करे गुरुमहाराज ?"
"चिंता मत कीजिये , अब हमें उस आत्मा के बारे में सारी सच्चाई पता चल गई हैं इसलिए अब हम उसका मुकाबला करने के लिए तैयार हैं ? उसे परी के शरीर के साथ यहाँ आने को मजबूर कर देंगे और फिर साथ साथ ही उन्हें मुक्ति।
"कैसे महराज , हमें तो ये भी नही पता कि उसने परी का शरीर रखा कहाँ हैं? " अभी सब लोग बात ही कर रहे थे कि स्वाति का फ़ोन आता है और रोतें हुए बताती हैं कि नित्या का पूरा शरीर काला हो गया हैं और उसकी सांसे धीमी होती जा रही हैं जिसे सुनकर सभी घबरा जाते हैं। गुरुमहाराज नित्या को अपने पास लाने के लिए कहते हैं । नितिन नित्या के बेजान शरीर को लेकर गुरुमहाराज की गुफा में आ जाते हैं। गुरुमहाराज नित्या के शरीर को महाकाल के सामने लिटा देते हैं और कुछ मन्त्र पढ़कर उसके ऊपर फूंकते हैं । उनके चिंतित चेहरे को देखकर सभी घबरा जाते हैं और उसका कारण पूछते हैं।
" नयना की आत्मा हमसे एक कदम आगे निकली वो समझ गयी थी कि हम उसे यहाँ आने को मजबूर कर देंगे इसलिए वो नित्या की आत्मा को लेकर यहाँ से चली गयी हैं ?"
"कहाँ चली गयी और अब हम कैसे और क्या करेंगे ?"
"वो इसकी आत्मा लेकर अपनी दुनिया में चली गयी और मुझे पूरा यकीन हैं कि उसने परी के शरीर को भी वही पर सुरक्षित रखा होगा।"
"दूसरी दुनिया मतलब ".
"वो दुनिया जहाँ कोई भी इंसान जीवित अवस्था में प्रवेश नही कर सकता और नित्या की आत्मा को वहाँ से लाये बिना हम उसे बचा भी नही सकते। " गुरुमहाराज के कहने पर नितिन और स्वाति रोने लगे।
"गुरुमहाराज हमारे पास एक उपाय हैं , जिससे हम नित्या की आत्मा को उस दुनिया से ला सकते हैं और नयना को भी परी के
शरीर के साथ यहाँ आने पर मजबूर कर सकते हैं। " राघव के कहने पर सभी एक आशा भरी दृष्टि ने उसकी तरफ देखने लगे।
"गुरुमहाराज हमारे पास एक उपाय हैं , जिससे हम नित्या की आत्मा को उस दुनिया से ला सकते हैं और नयना को भी परी के शरीर के साथ यहाँ आने पर मजबूर कर सकते हैं। " राघव के कहने पर सभी एक आशा भरी दृष्टि ने उसकी तरफ देखने लगे।
"कैसा उपाय और कौन और कैसे ये सब कर सकता हैं।" नितिन ने आश्चर्य होकर राघव की देखते हुए पूछा ।
"गुरुमहाराज हमारे बीच एक ऐसा शख्स हैं जो ये काम कर सकता हैं।"
"कौन हैं वो ?"
"सृष्टि "
"सृष्टि "आश्चर्यचकित हो सब उसकी ओर देखने लगे। "हा गुरुमहाराज , आपको याद नही हैं क्या ? हमारी सृष्टि के ऊपर महाकाल का रक्षा कवच हैं और उसे तो उनकी वो अदभुत प्राप्त हैं जो कि किसी आम इंसान के बस की बात नही हैं।"
"राघव हम तुम्हारी बात समझे नही ।"
"गुरुमहाराज सृष्टि के पास शक्ति हैं कि वो अपनी आंतरिक शक्ति के द्वारा उस दूसरी दुनिया में जा सकती हैं और जब वो जा सकती हैं तो वहाँ से परी का शरीर या नित्या की आत्मा को बाहर सकती है।"
"ये बात तो मैं भूल गया था लेकिन वहाँ जाकर सब कुछ करना आसान नही हैं। ये काम बहुत मुश्किल हैं। वहाँ कदम कदम पर बड़े खतरो का सामना करना पड़ सकता हैं और तो और जान का भी खतरा हो सकता हैं। सृष्टि क्या तुम ये काम कर पाओगी।"
"जी गुरुमहाराज , चाहे कितनी भी बड़ी मुश्किलें आये मैं इस काम से कभी पीछे नही हटूंगी। मुझे जिस दिन अपने बारे में पता चला था मैंने खुद को दूसरी की मदद के लिए समर्पित कर दिया था और पिता को वचन दिया था कि हर हाल में लोगो की सेवा करुँगी और फिर उस नयना ने मुझसे भी मेरे पिता को छीना हैं , मुझे भी तो अपनी पिता की मौत का बदला उसे हराकर लेना हैं।"
"ठीक हैं । हमारे पास वक्त बहुत कम हैं और काम बहुत ज्यादा। तुम उस दुनिया में जा तो सकती हो लेकिन अगर ये रात बीत गयी तो तुम वहाँ हमेशा के लिए कैद होकर रह जाओगी । दूसरी बात वहाँ नयना की काली शक्तियां बहुत प्रभावी रहेंगी । उनका सामना करना बहुत मुश्किल होगा। तीसरी बात उसने नित्या की
आत्मा को कहाँ और किस जगह रखा होगा ये ढूँढना बहुत मुश्किल हैं । चौथी बात परी का शरीर ढूँढना और फिर यहाँ लाना इतना आसान नही है। वो नयना तुम्हारे रास्ते में तरह तरह की रुकावटें उत्पन्न करने की कोशिश करेगी।"
"गुरुदेव हमें कुछ नही पता कि वहाँ क्या होगा और मैं उन सब का कैसे मुकाबला करुँगी। मुझे तो बस अपने महाकाल और उनकी शक्ति पर ही भरोसा है और कुछ नही पता। वही हमारी मदद करेंगे।"
"ठीक हैं फिर मैं तुम्हारे जाने की व्यवस्था करता हूँ और बाहर रहकर पूजा करता हूँ जिससे तुम्हे वहाँ उन काली शक्तियों से मुकाबला करने की शक्ति मिलेगी । " कहते हुए गुरुमहाराज ने एक बड़ा सा अग्नि कुंड तैयार किया और जरुरत की सभी सामग्री एकत्र कर पास में रख ली। अग्नि कुंड के एक तरफ जमीन पर एक चौक का निर्माण कर उस पर नित्या के शरीर को रख दिया और दूसरी तरफ चौक का निर्माण कर सृष्टि को बैठने को कहा। सृष्टि के बैठने के बाद गुरुमहाराज ने अग्नि कुंड में अग्नि प्रज्वलित की ।
"सृष्टि क्या तुम जाने के लिए तैयार हो ?"
"जी गुरुमहाराज " कहते हुए सृष्टि ने हाथ जोड़कर अपनी आंखें बंद करने लगी ।
"एक मिनट रुको उस दुनिया में नित्या की आत्मा तक पहुँचना और उसे पहचानना आसान नही होगा । इसलिए तुम नित्या के हाथ का ये कंगन अपने पास रख लो और ये वहाँ तुम्हें नित्या की आत्मा तक पहुँचने में तुम्हारी सहायता करेगा । " नित्या के हाथ से कंगन को निकालकर देते हुए गुरुमहाराज ने
सृष्टि से कहा।
गुरुमहाराज ने अग्नि कुंड में अग्नि प्रज्वलित की और पूरे विधि विधान ने पूजा करने लगे । दूसरी तरफ सृष्टि ने आँखे बंद किया और अपने दोनों हाथ जोड़कर महाकाल का जाप करने लगी । सन्नाटे को चीरती हुए कुछ आवाजो को सुनकर सृष्टि ने जैसे ही आँखे खोली अपने को एक सुनसान से जंगल में पाया। उसे समझ आ गया था कि जहाँ उसे आना था वो आ चुकी थी । आश्चर्यचकित हो वो इधर से उधर हैरानी से देखने लगी वहाँ दूर दूर तक कोई भी नही था सिर्फ पसरा हुआ सन्नाटा था । अब उसे सबसे पहले नित्या की आत्मा को ढूँढना था और इसके लिए गुरुमहाराज का दिया नित्या का जो कंगन था वही वहाँ उसकी मदद कर सकता था। सृष्टि ने उस कंगन को हाथ में लेकर मन ही मन कुछ मंत्रो का उच्चारण किया । उस कंगन से एक रौशनी सी निकलने लगी जो किसी ओर जाने का इशारा कर रही थी। सृष्टि उस कंगन से निकलती हुई रोशनी का पीछा करते हुए आगे की तरफ बढ़ने लगी और बढ़ते बढ़ते वो एक गुफा के सामने पहुँच गयी । वहाँ पहुँचते ही कंगन से चमकती हुई रौशनी बंद हो गयी जो कि इस बात का संकेत था कि इस गुफा के अंदर ही नित्या की आत्मा कैद हैं । सृष्टि ने गुफा के अंदर जाने का निश्चय किया और जैसे ही अपना एक कदम बढ़ाया एकदम से तेज हवा के झोंके आने लगे। तेज आंधी जैसी हवा में सृष्टि का एक कदम भी आगे बढ़ाना मुश्किल हो रहा था। वो समझ गयी थी ये हो ना हो नयना ही कर रही हैं , वो नही चाहती कि कोई भी नित्या की आत्मा को लेकर यहाँ से बाहर जाय।
सृष्टि ने आँखे बंद की और शिव नाम का जाप करने लगी और देखते ही देखते आंधी शांत हो गयी। सृष्टि ने गुफा के अंदर प्रवेश किया और वो देखकर हैरान हो गयी कि वहाँ बहुत से ऊँचे ऊँचे
पत्थर पड़े थे और हर पत्थर पर एक कांच की बोतल रखी थी और उसके कदम रखते ही सभी बोतलों में हलचल सी होने लगी और चीखने की आवाजें आने लगी। चीखने की आवाजों से सृष्टि के जैसे कान के परदे फाड़ दिए हो और उसने अपने दोनों हाथों से कानों को बंद कर लिया। चीखने की आवाजें शांत हुई तो एक काले रंग की आकर्ति उसके सामने उभर आई और तेज स्वरों में हँसने लगी ।