अंतिका
इस घटना के पश्चात सदा के लिए मराठों के इतिहास मंे यह बताया जाता है कि मस्तानी ने बाजी राव के वियोग में ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली थी। कुछ इतिहासकार मस्तानी द्वारा बाजी राव के साथ चिता में जलकर सति होना भी बताते हैं, जो कि गलत है। मृत्यु के समय मस्तानी की आयु 25-30 वर्ष थी। पाबल मंे बाद में बनाई गई मस्तानी की समाधि आज भी मौजूद है। मस्तानी समाधि की देखभाल, मस्तानी के वंशज, एन.एस. इनामदार द्वारा की जाती है। 1734 ई. में कोबरूड़ में मस्तानी के लिए बनाया गया निवास स्थान अब भी जर्जर स्थिति में मौजूद है। पाबल में मस्तानी को बाजी राव द्वारा दिए मस्तानी महल को अब केलकर अजायब घर में परिवर्तित कर दिया गया है। मस्तानी के छह वर्षीय पुत्र शमशेर बहादुर को पेशवा के परिवार द्वारा पाला गया था और बड़ा होने पर बुंदेलखंड से बाजी राव को मिली जागीर उसे दी गई थी। अहमद शाह अब्दाली की फौजों के साथ पानीपत की तीसरी लड़ाई में 14-1-1761 ई. को चिमाजी अप्पा के बेटे सदाशिव राव भाऊ और नाना साहिब के बेटे विश्वास राव भाऊ सहित लड़ते हुए शमशेर बहादुर 27 वर्ष की युवा अवस्था में वीरगति को प्राप्त हो गया था। शमशेर बहादुर की औलाद को मराठों के विरोध के कारण आज भी बाजी राव का वंशज नहीं बल्कि मस्तानी का वंशज कहा जाता है। शमशेर बहादुर का बेटा अली बहादुर, बुंदेलखंड वाली बाजी राव की जागीर पर राज करता रहा था और बांदा, उत्तर प्रदेश रियासत की उसने नींव रखी थी। बाजी राव की मौत से एक वर्ष बाद चिमाजी अप्पा भी युद्ध में मारा गया था और मराठों का उत्थान, पतन की ओर मुड़ गया था।
पेशवा बालाजी बलाल बाजी राव उर्फ़ नाना साहिब, तीसरी ऐंगलो-मराठा जंग (1817-1818) के मध्य ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ खड़की की जंग में अंग्रेजों से हार गया था और मराठा साम्राज्य ब्रितानवी शासन में मिला लिया गया था। बालाजी बाजी राव ने अपनी राजगद्दी सर जाॅन मैलकम, ईस्ट इंडिया कंपनी के सुपुर्द करके शेष जीवन कानपुर (उत्तर प्रदेश) के करीब बिठूर में जलावतनी में बिताया और अंग्रेज सरकार से उसको गुज़ारे के लिए पेंशन मिलती रही थी।
बाद में पेशवाओं ने शनिवार वाड़े को और अधिक सुंदर बनाया। नाना साहिब के बेटे पेशवा स्वाई माधव राव द्वारा बनाया कलम के फलनुमा सोलह पत्तीयों वाला हज़ार करंजी फुव्वारा इस वाड़े की शान है। इस फुव्वारे में से पानी की हज़ार धारें एक समय में निकलती हैं। उस समय सैकड़ों नर्तकियाँ एक समय में उसके आसपास नृत्य किया करती हंै। 1758 ई. तक हज़ार से अधिक लोग शनिवार वाड़े मंें निवास करते थे। 27 फरवरी 1828 ई. को अचानक लगी भयानक आग से इस वाड़े की कई ऐतिहासिक वस्तुएँ नष्ट हो गई थीं।
उल्लेखनीय है कि मराठांे ने बाजी राव और मस्तानी की प्रेम गाथा लिखने नहीं दी थी। इसलिए यह अब तक किसी भी भारतीय भाषा में उपलब्ध नहीं है। अंग्रेजों ने इस बारे में थोड़ा-बहुत लिखा है। उनका खंडन करने के लिए मराठी में प्रताप गंगवाने द्वारा लिखित ‘श्रीमंत बाजी राव मस्तानी’ धारावाहिक बनाया गया था। लेकिन उसमें भी सही और सम्पूर्ण रूप में इस कहानी को प्रस्तुत नहीं किया गया था। मराठा इतिहास में बाजी राव के शौर्यगीत तो बहुत गाये जाते हंै, पर मस्तानी के बारे मंे कोई विशेष उल्लेख नहीं मिलता है। यहाँ तक कि कट्टर मराठों द्वारा मस्तानी के स्मृति स्थल और समाधि को अनेक बार नष्ट करने के प्रयत्न भी हुए हैं। मस्तानी की सम्पूर्ण जीवन गाथा को बयान करती किसी भी भारतीय भाषा में लिखी गई यह प्रथम कथा रचना है।
मस्तानी -एक ऐतिहासिक उपन्यास
- Ankit
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- naik
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Re: मस्तानी -एक ऐतिहासिक उपन्यास
shaandaar jaandaar kahani