रोंये वाली मखमली चूत
नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम संदीप है, दोस्तो कहानी उस समय की है जब मेरी उम्र बीस वर्ष थी और मैं बी.एस.सी. फाइनल का छात्र था। मुझे कॉलेज में सब चॉकलेटी ब्वॉय कहते थे, मेरा रंग गोरा और शरीर सामान्य है। मेरी ऊंचाई 6 फिट और वैभव की ऊंचाई मेरी ऊंचाई से थोड़ी कम है.. वो एक गोरा और सुंदर सा लड़का था।
मैं एक किराए के मकान में अपने दोस्त वैभव के साथ रहता था, जो मेरे ही क्लास में पढ़ता था।
एक साल पहले फर्स्ट इयर में एक खूबसूरत लड़की ने प्रवेश लिया। उस तीखे नैन-नक्श 5.3 इंच हाईट वाली सुंदर गोरी लड़की का नाम भावना था, उसका फिगर 32-24-32 था।
उस गदराए हुए शरीर की लड़की को देखते ही मैंने ठान लिया था कि इसकी चूत में अपना लंड घुसा कर ही रहूँगा।
कॉलेज की सभी लड़कियों की तरह वो भी मुझे देखती थी।
मैंने उसके करीब जाने की कोशिश की, मगर बात नहीं बनी.. बस एक-दो बार नोट्स को लेकर बातें हुईं। इसी बातचीत में मैंने उसका और उसने मेरे घर का पता पूछ लिया। वो मेरे रूममेट को भी पहचानने लगी थी।
ऐसे ही दिन बीत रहे थे.. लेकिन मुझे धीरे-धीरे लगने लगा कि मैं उससे प्यार करता हूँ। इसलिए मैं भावना को पाने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहता था।
हमारे कॉलेज में एक फंक्शन था.. जिसमें कुछ गेम्स भी होने थे। सीनियर होने की वजह से कॉलेज के सभी फंक्शन और गेम्स की तैयारी हमारा ग्रुप ही करता था।
एक गेम चिट निकालने वाला था और उस चिट में लिखे हुए टास्क को पूरा करना था।
उसमें भावना ने भी हिस्सा लिया था, मेरे दिमाग में शरारत सूझी, मैंने गेम से पहले ही भावना को पीला कार्ड उठाने कह दिया।
अब गेम के समय भावना ने पीला कार्ड उठा कर पढ़ा और पढ़ कर स्टेज पर ही रोने लगी।
सबने पूछा कि टास्क क्या है, पर वो कुछ नहीं बोली और स्टेज से उतर गई।
सब उसे चिढा़ने और हँसने लगे।
सफेद सलवार कुर्ती और प्रिंटेड लाल दुपट्टे में गुस्से और शर्म से लाल भावना हॉल से बाहर चली गई।
मुझे अपनी गलती का अहसास था.. क्योंकि मैंने ही उस पीले कार्ड में टास्क लिखा था कि अपने ऊपर का कपड़ा हटा कर वाक करो.. और वो इसी वजह से रोने लगी थी, उसने किसी को कुछ नहीं कहा।
अब मैं उसी की सोच में डूबा हुआ फंक्शन निपटा कर घर आया और थकावट मिटाने के लिए नहाने चला गया।
मैं बाथरूम से निकला ही था कि मुझे सामने भावना नजर आई.. उसे देखते ही मेरे होश उड़ गए।
इस वक्त मैंने तौलिया के अलावा कुछ नहीं पहना था। वो दरवाजे पर ही खड़ी थी।
मैंने कहा- अरे भावना तुम.. आओ अन्दर बैठो।
उसने वैभव की तरफ देखते हुए कहा- आप बाहर जाइए!
वैभव बिना कुछ बोले निकल गया।
वैभव के बाहर जाते ही उसने रूम में कदम रखा।
भावना ने कहा- तुम जानते हो संदीप मैं स्टेज पर क्यों रोई?
मैंने बिना कुछ बोले अपनी नजरें झुका लीं।
‘संदीप शायद तुम समझे ही नहीं? मैं तुमसे प्यार करने लगी थी.. लेकिन तुम मेरे जिस्म के भूखे निकले।’
इतना सुनकर मैं खुश भी था और लज्जित भी था।
मैंने कहा- नहीं भावना.. ऐसा कुछ भी नहीं है।
उसने कहा- सफाई देने की जरूरत नहीं है।
यह कह कर उसने मुड़ कर दरवाजा बंद कर दिया।
रूम में ट्यूब लाईट का भरपूर प्रकाश था और उसने मुझसे थोड़ी दूर खड़े होकर रोते हुए अपना दुपट्टा शरीर से अलग कर दिया। मैं मूर्ति बन गया था, मेरे कुछ बोलने से पहले ही उसने कहा- तुम्हें यही चाहिए था ना?
यह कहते हुए एक ही झटके में अपनी कुर्ती निकाल दी।
लाल रंग की ब्रा में कसे उसके सुडौल दूधिया झांकते बड़े-बड़े स्तनों को देखकर मेरा लंड अकड़ने लगा। तभी उसने सलवार का नाड़ा खींचा और सलवार जमीन पर आ गिरी।
अनायास ही मेरी नजर उसकी चिकनी टाँगों का मुआएना करने लगी।
मेरी नजर टाँगों से शुरू होकर उसकी सुडौल जाँघों से होकर चूत में चिपकी लाल कलर की पेंटी के अन्दर घुस जाने का प्रयास कर रही थी।
तभी उसने अपनी ब्रा भी निकाल फेंकी मैं उसके गुलाबी निप्पल देख ही रहा था कि उसकी आवाज आई ‘लो बुझा लो अपनी हवस की आग..’
यह कहने के साथ ही उसने अपनी पेंटी भी टाँगों से अलग कर दी।
मैंने एक झटके से अपना पहना हुआ तौलिया निकाला और उसकी तरफ बढ़ गया।
वो रोते हुए भी मेरे खड़े लंड को देख रही थी और मुझसे नजरें मिलते ही अपनी आँखें बंद कर लीं।
मैं उसके पास जाकर अपने घुटनों पर बैठ गया, जिससे कि उसकी भूरे रोंये वाली मखमली चूत मेरी आँखों के सामने आ गई।
मैंने उसकी चूत के ऊपर हल्का सा चुम्बन लिया और उसकी चूत से मदहोश कर देने वाली खुशबू को लंबी सांस के साथ अपने अन्दर भर लिया।
फिर उसकी कमर में अपना हाथ घुमा कर उसको तौलिया पहना दिया।
मेरा ऐसा करते ही उसका रोना बंद हो गया और मैंने खड़े होकर उसके गालों को थाम कर माथे को चूमते हुए कहा- भावना अगर मैं जिस्म पाना चाहूँ तो रोज एक नई लड़की मेरे बिस्तर पर होगी, पर सच्चाई तो ये है कि मैं भी तुमसे प्यार करता हूँ। लो पहन लो अपने कपड़े और मेरे मजाक के लिए मुझे माफ कर दो।
अब भावना फिर से रोते हुए मेरे सीने से चिपक गई और कहा- तुम सच कह रहे हो ना संदीप? तुम नहीं जानते कि मैं तुम्हें कितना चाहती हूँ।
मैंने कहा- तुम भी नहीं जानती कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूँ।
मैंने उसे गोद में उठा कर बिस्तर में बिठा दिया चूंकि मैंने अपना तौलिया भावना को पहना दिया था.. इसलिए अब मैं पूरी तरह नंगा था और भावना भी सिर्फ तौलिये में थी।
भावना मेरी गोद में बैठी थी, अब हम प्यार भरी बातें करने लगे।
मेरा हाथ भावना के उरोजों पर जा रहा था.. पर मैं पहल नहीं करना चाहता था।
भावना ने अपनी बांहों का हार मेरे गले में डाल रखा था। वो मेरे गालों को चूम रही थी। अब तो उसका एक हाथ मेरे सीने को भी सहला रहा था।
लड़की के नाजुक हाथ का स्पर्श पाकर मेरा लौड़ा अकड़ने लगा। शायद भावना को मेरा खड़ा लंड चुभा.. वो मुस्कुरा कर मेरी गोद से उतर कर मेरे सामने जमीन पर बैठ गई और मेरे लंड को गौर से देखने लगी।
मैं समझ गया कि इसके मन में कुछ प्रश्न हैं।
मैंने कहा- क्या सोच रही हो?
उसने कहा- ये कितना बड़ा और सुंदर लग रहा है, क्या सबका इतना ही बड़ा होता है?
मैंने हँसते हुए जवाब दिया- नहीं ज्यादातर लोगों का इससे छोटा होता है, पर कुछ लोगों का इससे भी बड़ा होता है।
हमारी बातों के वक्त भावना मेरे लंड को सहला रही थी। फिर मैंने उसे लंड को चूसने के लिए कहा, शायद वो भी इसी इंतजार में थी।
पहले उसने लंड की पप्पी ली, फिर धीरे से लंड चूसना शुरू किया।
उसने एक बार मेरे चेहरे की ओर देखा.. उत्तेजना में मेरी आँखें छोटी हो रही थीं।
दूसरे ही पल भावना ने लंड अपने गले तक डाल लिया और चूसने के साथ ही आगे-पीछे भी करने लगी।
मैंने उसका सर थाम लिया और उसके मुँह को ही चोदने लगा, वो गूं-गूं की आवाज करने लगी लेकिन मैंने अपना लंड जोरों से पेलना जारी रखा।
उसने मुझसे छूटने की कोशिश की.. पर मैं कहाँ छोड़ने वाला था, मैंने धक्के और तेज कर दिए।
मैंने अचानक ही लंड मुँह से बाहर खींच कर पूरा माल उसके उरोजों पर गिरा दिया। उसकी आंखों में आंसू आ गए थे।
उसने मेरे वीर्य को छूकर देखा और मुँह बनाते हुए बाथरूम में चली गई।
उसने बाथरूम से निकलते ही कहा- मार डालते क्या?
मैंने ‘सॉरी’ कहा।
‘कोई बात नहीं मैं तुम्हारे लिए मर भी सकती हूँ।’
यह कहते हुए उसने मुझे चूम लिया और कहा- तुम तो खुश हो ना?
इसके बाद हम दोनों लेटे रहे, उसने लंड को फिर से टटोलना शुरू किया। कुछ पल बाद उसने मेरे लंड को पकड़ कर कहा- वाह जनाब.. इतनी जल्दी सुस्त पड़ गए.. लेकिन मैं तुम्हें ऐसे ही नहीं छोड़ने वाली।
उसकी बातें सुनकर मुझे शक हुआ कि भावना चुदाई के बारे में इतना कैसे जानती है। वो पहली बार में भी इतनी खुलकर बात कैसे कर रही है।
मैंने पूछा- भावना क्या तुम्हारा कोई अतीत था, मैं क्या कहना चाह रहा हूँ तुम समझ रही हो ना?
भावना ने कहा- पहले तुम अपना अतीत बताओ।
मैंने खुलकर कह दिया- मैंने तीन बार सेक्स किया है.. दो बार रंडी को चोदा और एक बार दोस्त की गर्लफ्रेंड के साथ किया है।
बस इतना सुनते ही भावना बिस्तर से उतर गई।
मैंने कहा- क्या हुआ?
अब मैं असमंजस में था कि क्या होने वाला है।
‘क्या हुआ भावना तुमको मेरा सच बुरा लगा क्या?’
उसने कहा- कुछ नहीं.. मैं सोच रही हूँ कि मेरा सच जानने के बाद क्या होगा।
मेरा दिमाग घूमा.. मैंने कहा- तुम्हारा मतलब?
‘हाँ.. मैंने भी दो बार चुदाई की है पर वो सिर्फ मेरा अतीत था। क्या तुम मेरे लिए ये बातें भूल सकते हो?’
यह कह कर वो रोने लगी।
मैंने उसे चुप कराया और बिस्तर पे ले गया। अब यार, उसकी चुदाई से मुझे क्या फर्क पड़ना था.. तो मैं मुस्कुरा दिया और बात वहीं खत्म हो गई।
मैंने भावना से कहा- फिर लंड के बारे में अनजान क्यों बन रही थी?
उसने कहा- ताकि तुम्हें मुझ पर शक ना हो।
‘ओह ऐसा क्या..!’ ये कहते हुए मैंने अपनी उंगली उसकी पहले से गीली हो चुकी चूत में डाल दी।
भावना चिहुंक उठी और आँखें बंद करके आनन्द के सागर में डूब गई।
अब मैं उसके निप्पल को चूसने लगा। उसका एक हाथ मेरे लंड को सहला रहा था और दूसरे हाथ से वो अपने उरोजों को मसलने लगी।
भावना की आँखें हवस के मारे लाल हो रही थीं।
मेरा लंड भी बेहाल हो रहा था। अब मैंने तुरंत ही अपनी दिशा बदली और उसके पैरों को मोड़ कर उसकी चूत का दीदार किया। फिर उसकी मखमली चूत को छूते हुए उस नजारे को अपनी आंखों में कैद कर लेना चाहा।
हल्के भूरे रोंए.. गुलाबी फांकें और शबनम की चमकती बूंदों के साथ स्वत: ही सांस लेती उसकी मनमोहनी चूत ने मुझे पागल बना दिया।
मैं झुका और मैंने एक ही बार में अपनी जीभ उसकी चूत के नीचे से ऊपर तक फिराई। फिर आँखें बंद करके जीभ को मुँह के अन्दर करके चटखारा लिया.. जैसे बहुत स्वादिष्ट चीज खाई हो।
मैंने भावना को देखा वो अपने उरोजों को गूँथे जा रही थी। जैसे ही उससे मेरी नजरें मिलीं.. उसने मेरा लंड चूसने की मंशा इशारों में ही जाहिर कर दी।
मैंने 69 की पोजिशन सैट करके लौड़ा उसके मुँह में दे दिया और मैं पुनः चूत चाटने लगा। हम दोनों ही पागलों की तरह लंड और चूत का रसास्वादन कर रहे थे।
अब मैंने अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए चूत को चांटा मारा.. इससे भावना की चुदने की भूख और बढ़ गई, उसने मेरा लंड चूसना छोड़ दिया और चूत चोदने के लिए कहने लगी।
पर मैं तो उसका रस जीभ से ही निकालना चाहता था, इसलिए मैंने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। तो उसने खुद मुझे धकेल दिया और मैं बिस्तर में ही चित लेट गया। अब वो खुद मेरे ऊपर आ गई और लंड पकड़ कर अपनी चूत पर टिकवा लिया।
अगले ही उसने अपने शरीर का पूरा भार मेरे लंड पर धर दिया। एक ‘ऊओंह..’ की आवाज उसके मुँह से भी निकली और मेरे मुँह से भी निकल गई।
उसने लंड को अपनी चूत में जड़ तक घुसवा लिया और कुछ पल ऐसे ही आँखें मूँदें शांत बैठे रही। दूसरे ही पल उसने अपना स्तन हाथों से पकड़ा और झुक कर मेरे मुँह में दे दिया।
अब उसने कमर उचका कर चुदाई शुरू कर दी, मैंने भी ताल मिला कर नीचे से झटके देने शुरू कर दिए।
वो बदहवास होकर चुदे जा रही थी, ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ की आवाजें अब मादक सीत्कारों में बदल गई थीं। वो अपने होंठों को दांतों से काट रही थी और मैं भी उसके इस रूप को देख के पागल हुआ जा रहा था।
मैंने उसके उरोजों को चूसने काटने मसलने के अलावा उसे भड़काने के लिए चांटे भी मारे और हम दोनों ही बहुत तेज चुदाई का आनन्द लेने लगे।
अचानक ही उसने मेरे सीने के बालों को नोचते हुए चुदाई की गति बढ़ा दी। मैंने भी उसकी कमर पकड़ी और झटके तेज कर दिए। शायद ये शांति के पहले का तूफान था- ओहहह संदीप.. आई लव यू मेरे राजा.. मेरे सब कुछ.. आह्ह..
वो यह कहते हुए मुझ पर झुक गई।
मैंने उसके पीठ पर हाथ रखते हुए ‘ओहह.. मेरी रानी.. मेरी भावना..’ कहते हुए लंड का लावा उसकी चूत में ही निकाल दिया।
दोनों का स्खलन लगभग एक साथ हुआ था और दोनों ऐसे ही चिपक कर लंबे समय तक पड़े रहे।
कुछ समय बाद वैभव ने दरवाजा खटखटाया तो उसे दो मिनट रुकने को कह कर हम दोनों ने जल्दी से कपड़े पहने।
चूंकि रात के 9 बज रहे थे, मैंने भावना को छोड़ना चाहा.. पर भावना ने मना कर दिया और अपनी स्कूटी से चली गई।
उस दिन के बाद हमारे मिलन का सिलसिला शुरू हो गया। भावना मेरे दोस्तों को और मैं उसकी सहेलियों को जानने लगा। उनसे हमारी मेलजोल भी अच्छी हो गई थी।
रोंये वाली मखमली चूत
- rangila
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रोंये वाली मखमली चूत
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मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
( Marathi Sex Stories )...
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- rangila
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Re: रोंये वाली मखमली चूत
एक दिन मैं कॉलेज के बाहर अकेले बैठा था, तभी भावना की सहेली काव्या आई और उसने मुझे एक चिट्ठी थमाई, चिट्ठी देते समय वह बहुत शरमा रही थी, उसने कहा- अकेले में पढ़ना।
कहते हुए वो चली गई।
काव्या बहुत गोरी 5’5″ हाईट की सुंदर लड़की थी.. पर भगवान ने उसे शरीर के नाम पर कंगाल रखा था अर्थात काव्या के उरोज और कूल्हे एकदम ना के बराबर थे।
मैं चिट्ठी खोलने ही वाला था कि भावना आ गई और मैंने चिट्ठी उसके देखने से पहले ही जेब में रख ली।
हम लोग मेरे रूम में आए.. हमेशा की तरह चुदाई की और भावना अपने घर चली गई।
भावना इसी शहर की लड़की थी.. जबकि काव्या बाहर से आई थी। इसलिए वो और उसकी एक सहेली हमारी तरह ही रूम लेकर रहती थीं।
भावना के जाने के बाद मैंने चिट्ठी खोली चिट्ठी जो आपके सामने पेश है।
‘हाय संदीप.. मैं भावना की पक्की सहेली हूँ, इसलिए भावना ने मुझे तुम्हारे बारे में सारी बातें बताई हैं कि तुमको लड़कियों की सोच और शारीरिक तकलीफों के बारे में भी अच्छी जानकारी है। मुझे लगता है तुम मेरी एक समस्या का हल कर सकते हो। सभी लड़कियों की तरह मुझे भी खूबसूरत सुडौल और आकर्षक दिखने का शौक है। पर तुम तो जानते ही हो की भगवान ने मुझे शक्ल तो अच्छी दी, पर सुडौल नहीं बनाया है। मुझे अपने उरोजों और कूल्हों को उभारने के लिए क्या करना चाहिए? अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो मुझे @@@@@ इस नम्बर पर कॉल करना।
तुम्हारी दोस्त- काव्या’
मैं चिट्ठी पढ़ कर चौंक गया और मेरे मन में लड्डू फूटा कि एक नई लड़की चोदने को मिलेगी, मैंने तुरंत ही काव्या को कॉल किया।
काव्या ने एक ही घंटी में फोन उठाया.. पर कोई आवाज नहीं आई।
मैं एक-दो बार ‘हैलो.. हैलो..’ बोलने के बाद समझ गया कि काव्या शरमा रही है।
मैंने कहा- देखो काव्या, जब तुमने हिम्मत करके मुझे ये चिट्ठी दी है, तो अब शरमा क्यों रही हो.. और ऐसे भी इसमें शरमाने वाली कोई बात नहीं है।
उतने में उधर से आवाज आई- दो मिनट रुको.. मैं काव्या को फोन दे रही हूँ।
मेरी खोपड़ी सटक गई- अरररे तेरी.. तो मैं बातें किस से कर रहा था? बेटा मन में दूसरा लड्डू फूटा.. एक और चोदने को मिलेगी।
तभी उधर से काव्या की आवाज आई- हैलो संदीप?
मैंने तुरंत कहा- यार अपना नम्बर किसी को क्यों उठाने देती हो?
उसने पूछा- तुमने उसे कुछ कह दिया क्या?
‘नहीं.. कहा तो कुछ नहीं.. पर वो है कौन?’
उसने बताया- वो मेरी रूम मेट निशा है और ये नम्बर उसी का है। मेरा फोन अभी बनने गया है। आपने मेरी चिट्ठी पढ़ी क्या.. मुझे आपको कहते हुए अच्छा नहीं लग रहा था.. पर मुझे कुछ और नहीं सूझा।
मैंने कहा- कोई बात नहीं.. मुझे खुशी है आपने मुझ पर भरोसा करके मुझे अपनी तकलीफ बताई।
मैंने उसे स्तन सुडौल करने वाली एक क्रीम बताई और उसे लगाने के उपाय बताए।
तभी वैभव चिल्लाने लगा और मैंने फोन रख दिया।
मैं इन दिनों खुश था, लेकिन मेरे रूम पार्टनर का व्यवहार अब अजीब रहने लगा था। हम सारे काम बांट कर किया करते थे.. पर अब वो हर बात में झगड़ने लगा।
एक दिन भावना मेरे घर आई तो वैभव ने बाहर जाने से मना कर दिया। फिर मैं और भावना अनमने मन से पार्क में जाकर बैठ गए और थोड़ी बहुत चूमा-चाटी करके घर आ गए।
मैंने घर आकर वैभव से रूम ना छोड़ने का कारण पूछा, वैभव ने साफ कहा- तू अकेले ही मजे लेता है.. अब अगर भावना इस घर में आई.. तो मैं भी चोदूँगा।
यह सुन कर मेरी गांड फट गई, मैंने उसे समझाने की कोशिश की।
मगर उसने साफ कह दिया- तू चाहे गांड मरा.. लेकिन मैं अपनी शर्त नहीं बदलूँगा।
अब मैंने भी कुछ नहीं कहा और भावना से अब पार्क में ही मिलने लगा।
मैं भावना को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता था.. इसलिए मैंने भावना को आधी बात बताई कि वैभव को हमारा रूम में मिलना पसंद नहीं है।
भावना ने मुस्कुरा कर मुझे गले लगा लिया और कहा- कोई बात नहीं संदीप.. मैं तुम्हारी बांहों में हूँ.. मेरे लिए यही बहुत है। पर कोई और जुगाड़ हो तो देखो ना.. तुमसे चुदवाए बिना रातों को नींद नहीं आती।
उसकी ये बातें मेरे कानों में गूँज रही थीं। अभी मैं कोई उपाय सोच ही रहा था कि मेरे दिमाग में काव्या का ख्याल आया, मैंने काव्या को फोन करके उसकी समस्या के बारे में बात की तो उसने बताया कि क्रीम का कोई असर नहीं हो रहा है।
तो मैंने उसे तरीका दुबारा बताया कि उसे निप्पल और पूरे उरोजों पर बहुत सारी क्रीम लगा कर लंबे समय तक मालिश करना चाहिए।
तो उसने कहा- मैं मालिश करती तो हूँ.. पर थक जाती हूँ और खुद से करते भी नहीं बनता।
मैंने तपाक से कह दिया- तो हमें बुला लिया करो।
उसने भी शरारत में जवाब दिया- आए..हाय.. ऐसी किस्मत हमारी कहाँ..
मैंने कहा- इशारा तो करो तुम्हारी भी किस्मत बना देंगे।
अब दोस्तो, मुझे लगने लगा कि काव्या भी चुदने के लिए मचल रही है।
मैंने कहा- इशारा तो करो तुम्हारी भी किस्मत बना देंगे।
उसने ‘मजाक बंद करो..’ कह कर फोन रख दिया।
पर उसकी बातों ने मेरे लंड में आग लगा दी थी, मैंने मुठ मार के पानी निकाला।
तभी मेरे दिमाग में एक तरकीब सूझी कि क्यों ना दोनों को एक साथ चोदा जाए।
जब मैं दूसरे दिन भावना से मिला तो कहा- क्यों ना हम काव्या से रूम के लिए बात करें?
तो उसकी आंखें खुशी से बड़ी हो गईं, उसने कहा- अभी तो उसकी पार्टनर भी एक हफ्ते के लिए घर गई है, अच्छा मौका है.. मैं उससे तुरंत बात करती हूँ।
पर मैंने उसे रोका और कहा- थोड़ा सुन तो लो.. फिर बात कर लेना। पहली बात तो ये कि वो मानेगी या नहीं.. और दूसरी बात ये कि वो मान भी गई तो कहीं एक-दो बार के बाद वैभव जैसे ही नौटंकी करने लगी, तो फिर हमारे पास और कोई ठिकाना नहीं रहेगा। इसलिए मैं चाहता हूँ कि काव्या को ऐसे पटाया जाए कि वो हमें कभी मना नहीं करे।
भावना ने कहा- फिर तुम्हीं बताओ कि कैसे पटाया जाए?
मैंने थोड़ा झिझकते हुए काव्या की चिट्ठी और उसके साथ हुई बातों को बताते हुए कहा- अगर तुम्हें एतराज ना हो तो हम थ्री-सम चुदाई कर सकते हैं। इससे काव्या हम लोगों को कभी रूम के लिए मना नहीं करेगी और उसकी समस्या भी हल हो जाएगी।
भावना मेरे मुँह से ये सब सुन कर नाराज हो गई।
फिर मैंने अपना दांव फेंका, मैंने उसे हाथ पकड़ कर खड़ा किया और उसके गालों को पकड़ कर उसकी आंखों में आंखें डालीं, मैंने कहा- जान मैं तुमसे बहुत ज्यादा प्यार करता हूँ। मैंने सारी बातें सिर्फ तुम्हारे साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने के लिए कही हैं। मुझे काव्या से कोई मतलब नहीं.. अगर तुम्हें कोई एतराज है तो मैं उसकी तरफ देखूँगा भी नहीं।
उसकी आँखों में आंसू आ गए और उसने कहा- मैं अपना प्यार नहीं बांट सकती।
मैंने कहा- हट पागल.. चुदाई करने से प्यार थोड़ी न होता है.. मैं तो तुम्हारा था और तुम्हारा ही रहूँगा।
इतना सुनते ही भावना ने कहा- सच जान..! ऐसी बात है तो मुझे भी कोई एतराज नहीं।
इतना सुनते ही मैं तो खुशी से पागल हो गया, अगर मैं चाहता तो काव्या को भावना को बिना बताए भी चोद सकता था। मगर मेरे मन में भावना के जान लेने का डर बना रहता और कभी ना कभी राज खुल ही जाता।
मैंने भावना को एक प्लान बताया और दो घंटे बाद पहुंच जाने की बोल कर मैं काव्या के घर चला गया।
मेरा प्लान यह था कि मैं काव्या को पटा कर चोदते रहूँ, उसी टाइम भावना पहुंचे और नाराज होने का नाटक करे, फिर मैं दोनों को एक साथ चोद सकूँ।
मैं भावना को प्लान बता कर और काव्या के घर चला गया। उसके घर पहुँचा तो उससे बात शुरू हुई- हाय काव्या कैसी हो?
मेरे अचानक पहुंचने से उसके चेहरे पर खुशी, आश्चर्य और डर के भाव एक साथ उभर आए।
‘अरे संदीप कैसे आना हुआ..?’ कहते हुए काव्या ने मुझे बिठाया।
मैंने कहा- बस ऐसे ही तुमसे मिलने और तुम्हारे हाथों की चाय पीने का मन किया।
‘ओह.. तो आप कैसी चाय पीते हैं.. बताइए.. मैं बनाती हूँ।’
उसने कहा और चाय बनाने लगी।
चूंकि उसका भी रूम किराए का था इसलिए एक ही रूम और अटैच लेटबाथ वाला ही था। रूम के एक किनारे बिस्तर और एक किनारे गैस आदि सामान रखा हुआ था। जिधर काव्या चाय बना रही थी।
काव्या ने लोवर और टॉप पहन रखा था.. जो लगभग शरीर से चिपका हुआ था।
चाय बनाते हुए वो मुझसे बात कर रही थी और मैं उसे पीछे से निहार रहा था। वो बहुत ही कामुक लग रही थी। उसके कूल्हे छोटे थे.. मगर घुटने मोड़ कर जमीन में बैठने से उनके आकार स्पष्ट हो रहे थे।
मेरे लौड़े में सुरसुराहट शुरू हो गई। मेरी नजरें उसके चिपके हुए कपड़ों के ऊपर से उसकी ब्रा-पेंटी का उभार महसूस कर पा रही थीं। चिपकी टी-शर्ट में उसकी नाजुक पतली कमर मुझे रिझा रही थी।
मैंने काव्या से कहा- मेरी दवाई ने असर किया या नहीं?
काव्या ने कहा- तुम्हें क्या लगता है तुम ही देख कर बताओ।
मैंने कहा- कपड़ों के ऊपर से पता नहीं चलता.. जरा कपड़े उतार कर दिखाओ.. तो बताऊँ।
‘अच्छा.. अकेली लड़की देख कर पटाने की कोशिश कर रहे हो?’ कहते हुए चाय लेकर मेरे सामने आ गई।
मैंने चाय लेते वक्त उसके हाथ को छुआ और कहा- तुम्हें पटाने की क्या जरूरत.. तुम तो पहले से पटी हुई हो।
वो मुस्कुरा कर मेरे सामने बैठ गई और चाय पीने लगी।
मैंने बड़ी बेशर्मी से उसके अंग-अंग को घूर कर देखा। मेरा ऐसा करने से जरूर उसकी चूत में भी पानी आ गया होगा।
मैंने कहा- लगता है.. दवाई असर कर रही है.. लेकिन मालिश और बढ़ाने की जरूरत है। बोलो तो आज मौका है अच्छे से मालिश कर दूँ?
उसने नजरें नीची कर लीं।
मैं इसे मौन स्वीकृत समझा और उठ कर दरवाजे को बंद कर आया।
असल में मैंने दरवाजे में कुण्डी नहीं लगाई थी.. क्योंकि मुझे पता था अभी भावना आने वाली है।
काव्या ने कहा- ये सब मुझे अच्छा नहीं लग रहा है।
मैंने उसे हक से कहा- क्रीम कहाँ है? वो बताओ, बाकी बातें मत सोचो।
उसने क्रीम उठा कर दी, मैंने जैसे ही उसकी टी-शर्ट को उठाने के लिए छुआ.. उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। उसकी सांसें तेज हो गई थीं।
उसने कहा- मैं खुद निकालती हूँ।
उसने ना-नुकुर करते हुए अपनी टी-शर्ट को शरीर से अलग कर दिया।
उसके दूध जैसे सफेद शरीर को देखते ही मेरा लौड़ा सलामी देने लगा।
उसकी पतली कमर.. सच में गजब ढा रही थी.. मगर ब्रा छोटे उरोजों की वजह से भरी हुई नहीं थी.. इसलिए अच्छी नहीं लग रही थी।
मुझे थोड़ी हँसी भी आई.. पर वो मैंने मन में ही रोक ली और उसे ब्रा भी उतारने और मालिश के लिए लेटने को कहा।
वो शरमाते हुए ब्रा उतार कर लेटी, लेकिन शर्म के मारे लाल हो चुके अपने चेहरे को अपने दोनों हाथों से ढक लिया। मैं उसके बहुत ही खूबसूरत छोटे गोरे उरोजों के बीच गुलाबी निप्पल देख कर अपने आपको छूने से नहीं रोक पाया, मैंने उनके उरोजों पर हाथ फिराते हुए कहा- काव्या तुम्हारे उरोज छोटे भले हैं.. पर बहुत ही आकर्षक और मदहोश करने वाले हैं।
मेरे शब्द सुनकर और मेरे हाथों का स्पर्श पाकर वो बेचैन सी होकर कसमसाने लगी।
जैसे ही मैंने क्रीम लगाना शुरू किया.. काव्या ने आँखें बंद कर लीं और अपने हाथों से बिस्तर को कसके पकड़ लिया।
मैंने भी अपने कपड़े गंदे होने का बहाना करके उतार दिए।
अब मैं सिर्फ चड्डी बनियान में था।
मैं काव्या के छोटे उरोजों को मालिश के बहाने गूँथे जा रहा था। मेरे लौड़े ने चड्डी को तंबू बना दिया था। काव्या को दर्द भी हो रहा होगा.. पर उसकी बेचैनी साफ झलक रही थी।
मैंने अपना हाथ काव्या के लोवर में घुसाना चाहा तो काव्या ने आँखें खोली और मेरा हाथ पकड़ कर कहा- सिर्फ दवाई लगाओ और कुछ करने की इजाजत नहीं है।
मैंने उसकी आँखों में आँखें डालकर कहा- क्या कुछ और नहीं?
उसने कहा- कुछ नहीं.. मतलब कुछ नहीं।
मैंने कहा- तुम्हारा मतलब चुदाई से है क्या?
तो वो शरमा गई और मुस्कुरा कर आँखें बंद कर लीं।
मैं फिर उसका लोवर उतारने लगा.. पर उसने मेरा हाथ फिर पकड़ लिया।
मैंने कहा- ठीक है बाबा.. मैं सिर्फ कूल्हों में दवाई लगा देता हूँ.. फिर कुछ नहीं करूँगा।
उसने कहा- पक्का ना?
मेरे ‘पक्का..’ कहते ही वह उलट गई और मैंने उसका लोवर उतार दिया।
अब तो मैं पागल हुए जा रहा था। उसके कूल्हों का बिल्कुल नर्म रुई सा अहसास और चिकनी चमकदार त्वचा थी। मैंने खुद पर काबू रख कर दवाई से मालिश शुरू की। उसके कूल्हों में हो रहे कंपन और खड़े रोंएं देखकर मैं यकीन से कह सकता हूँ कि वो चुदाई के लिए तैयार और बेचैन थी।
मैंने मालिश करते-करते अपने हाथ उसकी चूत की ओर बढ़ाए और वो कसमसा कर सिमट गई।
उसने एक बार मेरा हाथ हटाने की कोशिश की.. पर मैं अब खुद पागल हो चुका था और उसे भी पागल बना रहा था।
मैंने अब दिमाग लगाया और अपनी चड्डी निकाल कर काव्या के सर की ओर खड़ा हो गया और झुक कर उसके कूल्हों की मालिश करने लगा। मेरा ऐसा करने से काव्या के सर से मेरा लंड टकरा रहा था।
काव्या ने मुझे देखने अपना सर उठाया और उसने जैसे ही ‘ये क्या है..!’ बोलने के लिए अपना मुँह खोला.. मेरा लौड़ा उसके मुँह में घुस गया।
मैंने उसके सर को वैसे ही एक-दो मिनट पकड़े रखा। वो छटपटाने लगी तो मैंने लंड बाहर निकाल लिया। उसने मुझे गालियां दी और मुझे मारने लगी।
उसकी मार मुझे फूलों से सहलाने जैसी लगी। फिर वो रोने लगी और मुझसे चिपक गई।
मैंने उसे ‘सॉरी’ कहा और कपड़े उठाने लगा, उसने मेरा हाथ पकड़ कर रोक दिया और कहा- मैं खुद ये सब चाहती थी.. पर तुमने जबरदस्ती की.. इसलिए रोना आ गया।
‘मेरी सोना..’ कह कर मैंने उसे चूम लिया और बिस्तर में बैठ कर आंखों से इशारा किया कि आओ.. अब बिना जबरदस्ती के लौड़ा चूस लो।
उसने भी थोड़ा मुँह बनाया और हँस कर घुटनों पर बैठ गई, उसने पहले थोड़ा आहिस्ते से चूसा.. फिर लंड को खा जाने का प्रयास करने लगी।
वो आंखें बंद करके बेसुध लंड चूस रही थी कि तभी भावना ने दरवाजा खोला और वो अचानक ही अन्दर आ गई।
ये सब इतना जल्दी हुआ कि काव्या तो अभी अपने मुँह से लंड निकाल भी नहीं पाई थी।
सब मेरे प्लान के मुताबिक़ ही हो रहा था..
कहते हुए वो चली गई।
काव्या बहुत गोरी 5’5″ हाईट की सुंदर लड़की थी.. पर भगवान ने उसे शरीर के नाम पर कंगाल रखा था अर्थात काव्या के उरोज और कूल्हे एकदम ना के बराबर थे।
मैं चिट्ठी खोलने ही वाला था कि भावना आ गई और मैंने चिट्ठी उसके देखने से पहले ही जेब में रख ली।
हम लोग मेरे रूम में आए.. हमेशा की तरह चुदाई की और भावना अपने घर चली गई।
भावना इसी शहर की लड़की थी.. जबकि काव्या बाहर से आई थी। इसलिए वो और उसकी एक सहेली हमारी तरह ही रूम लेकर रहती थीं।
भावना के जाने के बाद मैंने चिट्ठी खोली चिट्ठी जो आपके सामने पेश है।
‘हाय संदीप.. मैं भावना की पक्की सहेली हूँ, इसलिए भावना ने मुझे तुम्हारे बारे में सारी बातें बताई हैं कि तुमको लड़कियों की सोच और शारीरिक तकलीफों के बारे में भी अच्छी जानकारी है। मुझे लगता है तुम मेरी एक समस्या का हल कर सकते हो। सभी लड़कियों की तरह मुझे भी खूबसूरत सुडौल और आकर्षक दिखने का शौक है। पर तुम तो जानते ही हो की भगवान ने मुझे शक्ल तो अच्छी दी, पर सुडौल नहीं बनाया है। मुझे अपने उरोजों और कूल्हों को उभारने के लिए क्या करना चाहिए? अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो मुझे @@@@@ इस नम्बर पर कॉल करना।
तुम्हारी दोस्त- काव्या’
मैं चिट्ठी पढ़ कर चौंक गया और मेरे मन में लड्डू फूटा कि एक नई लड़की चोदने को मिलेगी, मैंने तुरंत ही काव्या को कॉल किया।
काव्या ने एक ही घंटी में फोन उठाया.. पर कोई आवाज नहीं आई।
मैं एक-दो बार ‘हैलो.. हैलो..’ बोलने के बाद समझ गया कि काव्या शरमा रही है।
मैंने कहा- देखो काव्या, जब तुमने हिम्मत करके मुझे ये चिट्ठी दी है, तो अब शरमा क्यों रही हो.. और ऐसे भी इसमें शरमाने वाली कोई बात नहीं है।
उतने में उधर से आवाज आई- दो मिनट रुको.. मैं काव्या को फोन दे रही हूँ।
मेरी खोपड़ी सटक गई- अरररे तेरी.. तो मैं बातें किस से कर रहा था? बेटा मन में दूसरा लड्डू फूटा.. एक और चोदने को मिलेगी।
तभी उधर से काव्या की आवाज आई- हैलो संदीप?
मैंने तुरंत कहा- यार अपना नम्बर किसी को क्यों उठाने देती हो?
उसने पूछा- तुमने उसे कुछ कह दिया क्या?
‘नहीं.. कहा तो कुछ नहीं.. पर वो है कौन?’
उसने बताया- वो मेरी रूम मेट निशा है और ये नम्बर उसी का है। मेरा फोन अभी बनने गया है। आपने मेरी चिट्ठी पढ़ी क्या.. मुझे आपको कहते हुए अच्छा नहीं लग रहा था.. पर मुझे कुछ और नहीं सूझा।
मैंने कहा- कोई बात नहीं.. मुझे खुशी है आपने मुझ पर भरोसा करके मुझे अपनी तकलीफ बताई।
मैंने उसे स्तन सुडौल करने वाली एक क्रीम बताई और उसे लगाने के उपाय बताए।
तभी वैभव चिल्लाने लगा और मैंने फोन रख दिया।
मैं इन दिनों खुश था, लेकिन मेरे रूम पार्टनर का व्यवहार अब अजीब रहने लगा था। हम सारे काम बांट कर किया करते थे.. पर अब वो हर बात में झगड़ने लगा।
एक दिन भावना मेरे घर आई तो वैभव ने बाहर जाने से मना कर दिया। फिर मैं और भावना अनमने मन से पार्क में जाकर बैठ गए और थोड़ी बहुत चूमा-चाटी करके घर आ गए।
मैंने घर आकर वैभव से रूम ना छोड़ने का कारण पूछा, वैभव ने साफ कहा- तू अकेले ही मजे लेता है.. अब अगर भावना इस घर में आई.. तो मैं भी चोदूँगा।
यह सुन कर मेरी गांड फट गई, मैंने उसे समझाने की कोशिश की।
मगर उसने साफ कह दिया- तू चाहे गांड मरा.. लेकिन मैं अपनी शर्त नहीं बदलूँगा।
अब मैंने भी कुछ नहीं कहा और भावना से अब पार्क में ही मिलने लगा।
मैं भावना को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता था.. इसलिए मैंने भावना को आधी बात बताई कि वैभव को हमारा रूम में मिलना पसंद नहीं है।
भावना ने मुस्कुरा कर मुझे गले लगा लिया और कहा- कोई बात नहीं संदीप.. मैं तुम्हारी बांहों में हूँ.. मेरे लिए यही बहुत है। पर कोई और जुगाड़ हो तो देखो ना.. तुमसे चुदवाए बिना रातों को नींद नहीं आती।
उसकी ये बातें मेरे कानों में गूँज रही थीं। अभी मैं कोई उपाय सोच ही रहा था कि मेरे दिमाग में काव्या का ख्याल आया, मैंने काव्या को फोन करके उसकी समस्या के बारे में बात की तो उसने बताया कि क्रीम का कोई असर नहीं हो रहा है।
तो मैंने उसे तरीका दुबारा बताया कि उसे निप्पल और पूरे उरोजों पर बहुत सारी क्रीम लगा कर लंबे समय तक मालिश करना चाहिए।
तो उसने कहा- मैं मालिश करती तो हूँ.. पर थक जाती हूँ और खुद से करते भी नहीं बनता।
मैंने तपाक से कह दिया- तो हमें बुला लिया करो।
उसने भी शरारत में जवाब दिया- आए..हाय.. ऐसी किस्मत हमारी कहाँ..
मैंने कहा- इशारा तो करो तुम्हारी भी किस्मत बना देंगे।
अब दोस्तो, मुझे लगने लगा कि काव्या भी चुदने के लिए मचल रही है।
मैंने कहा- इशारा तो करो तुम्हारी भी किस्मत बना देंगे।
उसने ‘मजाक बंद करो..’ कह कर फोन रख दिया।
पर उसकी बातों ने मेरे लंड में आग लगा दी थी, मैंने मुठ मार के पानी निकाला।
तभी मेरे दिमाग में एक तरकीब सूझी कि क्यों ना दोनों को एक साथ चोदा जाए।
जब मैं दूसरे दिन भावना से मिला तो कहा- क्यों ना हम काव्या से रूम के लिए बात करें?
तो उसकी आंखें खुशी से बड़ी हो गईं, उसने कहा- अभी तो उसकी पार्टनर भी एक हफ्ते के लिए घर गई है, अच्छा मौका है.. मैं उससे तुरंत बात करती हूँ।
पर मैंने उसे रोका और कहा- थोड़ा सुन तो लो.. फिर बात कर लेना। पहली बात तो ये कि वो मानेगी या नहीं.. और दूसरी बात ये कि वो मान भी गई तो कहीं एक-दो बार के बाद वैभव जैसे ही नौटंकी करने लगी, तो फिर हमारे पास और कोई ठिकाना नहीं रहेगा। इसलिए मैं चाहता हूँ कि काव्या को ऐसे पटाया जाए कि वो हमें कभी मना नहीं करे।
भावना ने कहा- फिर तुम्हीं बताओ कि कैसे पटाया जाए?
मैंने थोड़ा झिझकते हुए काव्या की चिट्ठी और उसके साथ हुई बातों को बताते हुए कहा- अगर तुम्हें एतराज ना हो तो हम थ्री-सम चुदाई कर सकते हैं। इससे काव्या हम लोगों को कभी रूम के लिए मना नहीं करेगी और उसकी समस्या भी हल हो जाएगी।
भावना मेरे मुँह से ये सब सुन कर नाराज हो गई।
फिर मैंने अपना दांव फेंका, मैंने उसे हाथ पकड़ कर खड़ा किया और उसके गालों को पकड़ कर उसकी आंखों में आंखें डालीं, मैंने कहा- जान मैं तुमसे बहुत ज्यादा प्यार करता हूँ। मैंने सारी बातें सिर्फ तुम्हारे साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने के लिए कही हैं। मुझे काव्या से कोई मतलब नहीं.. अगर तुम्हें कोई एतराज है तो मैं उसकी तरफ देखूँगा भी नहीं।
उसकी आँखों में आंसू आ गए और उसने कहा- मैं अपना प्यार नहीं बांट सकती।
मैंने कहा- हट पागल.. चुदाई करने से प्यार थोड़ी न होता है.. मैं तो तुम्हारा था और तुम्हारा ही रहूँगा।
इतना सुनते ही भावना ने कहा- सच जान..! ऐसी बात है तो मुझे भी कोई एतराज नहीं।
इतना सुनते ही मैं तो खुशी से पागल हो गया, अगर मैं चाहता तो काव्या को भावना को बिना बताए भी चोद सकता था। मगर मेरे मन में भावना के जान लेने का डर बना रहता और कभी ना कभी राज खुल ही जाता।
मैंने भावना को एक प्लान बताया और दो घंटे बाद पहुंच जाने की बोल कर मैं काव्या के घर चला गया।
मेरा प्लान यह था कि मैं काव्या को पटा कर चोदते रहूँ, उसी टाइम भावना पहुंचे और नाराज होने का नाटक करे, फिर मैं दोनों को एक साथ चोद सकूँ।
मैं भावना को प्लान बता कर और काव्या के घर चला गया। उसके घर पहुँचा तो उससे बात शुरू हुई- हाय काव्या कैसी हो?
मेरे अचानक पहुंचने से उसके चेहरे पर खुशी, आश्चर्य और डर के भाव एक साथ उभर आए।
‘अरे संदीप कैसे आना हुआ..?’ कहते हुए काव्या ने मुझे बिठाया।
मैंने कहा- बस ऐसे ही तुमसे मिलने और तुम्हारे हाथों की चाय पीने का मन किया।
‘ओह.. तो आप कैसी चाय पीते हैं.. बताइए.. मैं बनाती हूँ।’
उसने कहा और चाय बनाने लगी।
चूंकि उसका भी रूम किराए का था इसलिए एक ही रूम और अटैच लेटबाथ वाला ही था। रूम के एक किनारे बिस्तर और एक किनारे गैस आदि सामान रखा हुआ था। जिधर काव्या चाय बना रही थी।
काव्या ने लोवर और टॉप पहन रखा था.. जो लगभग शरीर से चिपका हुआ था।
चाय बनाते हुए वो मुझसे बात कर रही थी और मैं उसे पीछे से निहार रहा था। वो बहुत ही कामुक लग रही थी। उसके कूल्हे छोटे थे.. मगर घुटने मोड़ कर जमीन में बैठने से उनके आकार स्पष्ट हो रहे थे।
मेरे लौड़े में सुरसुराहट शुरू हो गई। मेरी नजरें उसके चिपके हुए कपड़ों के ऊपर से उसकी ब्रा-पेंटी का उभार महसूस कर पा रही थीं। चिपकी टी-शर्ट में उसकी नाजुक पतली कमर मुझे रिझा रही थी।
मैंने काव्या से कहा- मेरी दवाई ने असर किया या नहीं?
काव्या ने कहा- तुम्हें क्या लगता है तुम ही देख कर बताओ।
मैंने कहा- कपड़ों के ऊपर से पता नहीं चलता.. जरा कपड़े उतार कर दिखाओ.. तो बताऊँ।
‘अच्छा.. अकेली लड़की देख कर पटाने की कोशिश कर रहे हो?’ कहते हुए चाय लेकर मेरे सामने आ गई।
मैंने चाय लेते वक्त उसके हाथ को छुआ और कहा- तुम्हें पटाने की क्या जरूरत.. तुम तो पहले से पटी हुई हो।
वो मुस्कुरा कर मेरे सामने बैठ गई और चाय पीने लगी।
मैंने बड़ी बेशर्मी से उसके अंग-अंग को घूर कर देखा। मेरा ऐसा करने से जरूर उसकी चूत में भी पानी आ गया होगा।
मैंने कहा- लगता है.. दवाई असर कर रही है.. लेकिन मालिश और बढ़ाने की जरूरत है। बोलो तो आज मौका है अच्छे से मालिश कर दूँ?
उसने नजरें नीची कर लीं।
मैं इसे मौन स्वीकृत समझा और उठ कर दरवाजे को बंद कर आया।
असल में मैंने दरवाजे में कुण्डी नहीं लगाई थी.. क्योंकि मुझे पता था अभी भावना आने वाली है।
काव्या ने कहा- ये सब मुझे अच्छा नहीं लग रहा है।
मैंने उसे हक से कहा- क्रीम कहाँ है? वो बताओ, बाकी बातें मत सोचो।
उसने क्रीम उठा कर दी, मैंने जैसे ही उसकी टी-शर्ट को उठाने के लिए छुआ.. उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। उसकी सांसें तेज हो गई थीं।
उसने कहा- मैं खुद निकालती हूँ।
उसने ना-नुकुर करते हुए अपनी टी-शर्ट को शरीर से अलग कर दिया।
उसके दूध जैसे सफेद शरीर को देखते ही मेरा लौड़ा सलामी देने लगा।
उसकी पतली कमर.. सच में गजब ढा रही थी.. मगर ब्रा छोटे उरोजों की वजह से भरी हुई नहीं थी.. इसलिए अच्छी नहीं लग रही थी।
मुझे थोड़ी हँसी भी आई.. पर वो मैंने मन में ही रोक ली और उसे ब्रा भी उतारने और मालिश के लिए लेटने को कहा।
वो शरमाते हुए ब्रा उतार कर लेटी, लेकिन शर्म के मारे लाल हो चुके अपने चेहरे को अपने दोनों हाथों से ढक लिया। मैं उसके बहुत ही खूबसूरत छोटे गोरे उरोजों के बीच गुलाबी निप्पल देख कर अपने आपको छूने से नहीं रोक पाया, मैंने उनके उरोजों पर हाथ फिराते हुए कहा- काव्या तुम्हारे उरोज छोटे भले हैं.. पर बहुत ही आकर्षक और मदहोश करने वाले हैं।
मेरे शब्द सुनकर और मेरे हाथों का स्पर्श पाकर वो बेचैन सी होकर कसमसाने लगी।
जैसे ही मैंने क्रीम लगाना शुरू किया.. काव्या ने आँखें बंद कर लीं और अपने हाथों से बिस्तर को कसके पकड़ लिया।
मैंने भी अपने कपड़े गंदे होने का बहाना करके उतार दिए।
अब मैं सिर्फ चड्डी बनियान में था।
मैं काव्या के छोटे उरोजों को मालिश के बहाने गूँथे जा रहा था। मेरे लौड़े ने चड्डी को तंबू बना दिया था। काव्या को दर्द भी हो रहा होगा.. पर उसकी बेचैनी साफ झलक रही थी।
मैंने अपना हाथ काव्या के लोवर में घुसाना चाहा तो काव्या ने आँखें खोली और मेरा हाथ पकड़ कर कहा- सिर्फ दवाई लगाओ और कुछ करने की इजाजत नहीं है।
मैंने उसकी आँखों में आँखें डालकर कहा- क्या कुछ और नहीं?
उसने कहा- कुछ नहीं.. मतलब कुछ नहीं।
मैंने कहा- तुम्हारा मतलब चुदाई से है क्या?
तो वो शरमा गई और मुस्कुरा कर आँखें बंद कर लीं।
मैं फिर उसका लोवर उतारने लगा.. पर उसने मेरा हाथ फिर पकड़ लिया।
मैंने कहा- ठीक है बाबा.. मैं सिर्फ कूल्हों में दवाई लगा देता हूँ.. फिर कुछ नहीं करूँगा।
उसने कहा- पक्का ना?
मेरे ‘पक्का..’ कहते ही वह उलट गई और मैंने उसका लोवर उतार दिया।
अब तो मैं पागल हुए जा रहा था। उसके कूल्हों का बिल्कुल नर्म रुई सा अहसास और चिकनी चमकदार त्वचा थी। मैंने खुद पर काबू रख कर दवाई से मालिश शुरू की। उसके कूल्हों में हो रहे कंपन और खड़े रोंएं देखकर मैं यकीन से कह सकता हूँ कि वो चुदाई के लिए तैयार और बेचैन थी।
मैंने मालिश करते-करते अपने हाथ उसकी चूत की ओर बढ़ाए और वो कसमसा कर सिमट गई।
उसने एक बार मेरा हाथ हटाने की कोशिश की.. पर मैं अब खुद पागल हो चुका था और उसे भी पागल बना रहा था।
मैंने अब दिमाग लगाया और अपनी चड्डी निकाल कर काव्या के सर की ओर खड़ा हो गया और झुक कर उसके कूल्हों की मालिश करने लगा। मेरा ऐसा करने से काव्या के सर से मेरा लंड टकरा रहा था।
काव्या ने मुझे देखने अपना सर उठाया और उसने जैसे ही ‘ये क्या है..!’ बोलने के लिए अपना मुँह खोला.. मेरा लौड़ा उसके मुँह में घुस गया।
मैंने उसके सर को वैसे ही एक-दो मिनट पकड़े रखा। वो छटपटाने लगी तो मैंने लंड बाहर निकाल लिया। उसने मुझे गालियां दी और मुझे मारने लगी।
उसकी मार मुझे फूलों से सहलाने जैसी लगी। फिर वो रोने लगी और मुझसे चिपक गई।
मैंने उसे ‘सॉरी’ कहा और कपड़े उठाने लगा, उसने मेरा हाथ पकड़ कर रोक दिया और कहा- मैं खुद ये सब चाहती थी.. पर तुमने जबरदस्ती की.. इसलिए रोना आ गया।
‘मेरी सोना..’ कह कर मैंने उसे चूम लिया और बिस्तर में बैठ कर आंखों से इशारा किया कि आओ.. अब बिना जबरदस्ती के लौड़ा चूस लो।
उसने भी थोड़ा मुँह बनाया और हँस कर घुटनों पर बैठ गई, उसने पहले थोड़ा आहिस्ते से चूसा.. फिर लंड को खा जाने का प्रयास करने लगी।
वो आंखें बंद करके बेसुध लंड चूस रही थी कि तभी भावना ने दरवाजा खोला और वो अचानक ही अन्दर आ गई।
ये सब इतना जल्दी हुआ कि काव्या तो अभी अपने मुँह से लंड निकाल भी नहीं पाई थी।
सब मेरे प्लान के मुताबिक़ ही हो रहा था..
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मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
( Marathi Sex Stories )...
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- rangila
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Re: रोंये वाली मखमली चूत
मैं काव्या के मुँह में अपना लंड डाल कर लंड चुसाई का मजा ले ही रहा था कि तभी दरवाजा खोलते ही भावना कमरे में अन्दर आ गई।
भावना ने पहले दरवाजा अच्छे से बंद किया और सामने आकर खड़ी हो गई। तब तक काव्या ने लंड छोड़ कर अपने दोनों हाथों से खुद को ढकने की नाकाम कोशिश की।
भावना कुछ कहती.. उससे पहले ही काव्या के मुख से निकला- वो.. ओह.. वो.. भावना संदीप दवाई लगा रहे थे।
भावना ने कहा- ओह दवाई..? भला मैं भी तो देखूं कौन सी दवाई है जो लंड को मुँह में लेकर लगवाई जाती है?
उसने मेरे लंड को पकड़ कर अपने मुँह में डाल लिया, मेरे लंड को एक-दो बार आगे-पीछे किया।
कुछ देर तक काव्या को खरी-खोटी सुनाने के बाद भावना ने मेरे प्लान के अनुसार अपनी बात पेश कर दी, काव्या से कहा- ठीक है.. अगर तुम दवाई लगवाना चाहती हो.. तो मेरी एक शर्त है।
काव्या ने जल्दी से कहा- क्या शर्त?
भावना ने कहा- मैं जब चाहूँ यहाँ आके संदीप से चुद सकती हूँ।
काव्या ने थोड़ा सोचा और कहा- ठीक है पर जब निशा ना हो तो तुम ऐसा कर सकती हो।
फिर भावना ने काव्या को ‘ओह.. मेरी प्यारी..’ सहेली बोल कर गले लगा लिया।
अब भावना ने मुझे पास बुला कर मेरा लंड अपने हाथों से काव्या के मुँह में डाल दिया और खुद अपने कपड़े उतारने लगी। काव्या के ऊपर भी वासना हावी होने लगी थी, मेरा लंड भी आग उगलने को बेचैन था।
भावना ने नंगे शरीर के पास आकर मेरी बनियान निकाल दी और मुझसे सट कर मुझे बेतहाशा चूमने लगी। वो अपने उरोजों को मेरे शरीर से रगड़ने लगी।
अचानक ही मेरे हाथों की पकड़ काव्या के सर पर मजबूत हो गई और तीन-चार जबरदस्त धक्कों के साथ ही मैं काव्या के मुँह में ही स्खलित हो गया।
काव्या ने मेरा वीर्य थूक दिया तो भावना ने वीर्य को हाथों से उठाया और काव्या के शरीर में मल दिया।
अब मुझे इन दोनों शेरनियों की प्यास बुझानी थी इसलिए मैं पलंग पर लेट गया और सब कुछ उन्हें ही करने दिया, दोनों सहेलियां एक दूसररी को चूमने लगीं।
फिर दोनों एक साथ मेरा लंड चाटने और चूसने लगीं।
काव्या काफी देर से मेरे लंड के साथ खेल रही थी.. इसलिए वो बहुत उत्तेजित होकर अपनी चूत को मारने लगी। वो मेरे लंड को खींचने और चूसने लगी।
मैं समझ गया कि अब इसे लंड चाहिए, मैंने भावना को इशारा किया और उसने काव्या को लेटा कर उसके चेहरे के दोनों ओर अपनी टांगें रख कर अपनी चूत चटवाने लगी।
काव्या ‘ऊंह.. उन्ह..गूं गूं.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… हिस्स्स…’ करने लगी। मैंने काव्या की टांगें फैलाईं और ना चाहकर भी मैं चूत को चाटने झुक गया। उसकी कोमल मखमली चूत देखकर किसी का भी मन चाटने को करता। मैंने पहले ऊपर के दाने को जीभ से सहलाया और फिर चूत के अन्दर तक जीभ घुसाने की चेष्टा की।
काव्या की हड़बड़ाहट उसकी चुदाई की इच्छा बयान कर रही थी, उसकी सील नहीं टूटी थी.. इसलिए चूत का मुँह बंद नजर आ रहा था। उसकी दोनों फांकों के बीच महज एक दरार नजर आ रही थी।
मैंने अपनी उंगलियों से एक बार दोनों फांकों को फैला कर देखा और अपने हाथों में थूक लेकर उसकी गीली चूत को और ज्यादा चिपचिपा कर दिया, फिर उसकी नाजुक सी मुलायम गोरी चूत में अपना लम्बा लंड एक झटके में डाल दिया।
‘उउईईई.. माँ.. मैं मर गईईई.. कोई बचाओ.. कोई तो बचाओ रे..आह्ह.. फट गई..’ वो चीखने लगी।
जबकि काव्या की चूत में अभी मेरा पूरा लौड़ा नहीं गया था।
मैंने भावना को उसे चुप कराने को कहा, उसने अपनी पेंटी को काव्या के मुँह में ठूंस दिया और पलंग से उतर कर काव्या के सर की तरफ खड़े होकर उसके हाथों को कसके पकड़ लिया।
काव्या की आंखें दर्द के मारे बड़ी हो गई थीं, आंखों से आंसू निरंतर गालों से होकर बह रहे थे।
मैंने एक जोर का धक्का दिया और अपना हब्शी लौड़ा उसकी चूत में जड़ तक घुसा दिया।
काव्या तो अब चिल्ला भी नहीं सकती थी उसका शरीर ढीला पड़ गया, उसने आंखें बंद करके चेहरे को एक ओर झुका लिया।
मैं डर गया.. पर भावना ने कहा- निकालना नहीं.. वरना ये जिंदगी में कभी चुदवा नहीं पाएगी।
भावना ने काव्या के गालों में थपकी देकर उसे पुकारा तो काव्या ने आंखें खोल दीं।
उसने मरी सी आवाज में ‘हाँ’ करके एक बार जवाब दिया, तब मेरी जान में जान आई।
अब मैं बिना कुछ किए काव्या के सामान्य होने का इंतजार करने लगा। भावना ने अपनी पेंटी उसके मुँह से निकाल दी और मुँह में दो-चार छींटे पानी के डालते हुए उसे चूमने लगी, उसके शरीर को सहलाते हुए उसे बहलाने लगी।
काव्या का रोना धीरे-धीरे बंद हो गया। मैंने भी मौके की नजाकत समझते हुए लंड को थोड़ा आगे-पीछे करना शुरू कर दिया। काव्या को अब भी तकलीफ थी.. पर अब शायद मजा भी आने लगा था।
काव्या भावना को चूमने लगी और थोड़ी ही देर बाद चुदाई में भी साथ देने लगी ‘आह चोद मेरे राजा.. फाड़ डाल साली चूत को.. बहुत परेशान करती है ये.. उउउह.. हहह.. इइई.. ईईई.. इआइ आहहहह..’
वो आवाज करने लगी।
मैंने उसके छोटे उरोजों को मसलते हुए अपनी गति तेज कर दी। भावना हम लोगों को देख कर अपनी चूत में उंगली डाल कर अन्दर बाहर करने लगी।
अब काव्या मदहोशी में बड़बड़ाने लगी ‘उउउहह ऊऊ ईईईई.. आहहह.. संदीप..प..प औररर.. जोररर से.. औररर.. जोरर से..’
इसी के साथ ही वो अकड़ने लगी और मेरी जांघों को जोर से पकड़ कर अपनी चूत में लौड़ा अन्दर तक ले जाकर रुक गई, उसका स्खलन हो गया था।
अब उसका शरीर एकदम ढीला पड़ गया था लेकिन मेरा पानी एक बार काव्या के मुँह में निकल चुका था और दूसरी बार की चुदाई में मेरा जल्दी नहीं निकलता सो मैंने काव्या की चूत से लंड निकाल लिया।
अब तक भावना मंजे हुए खिलाड़ी की तरह पहले ही जमीन पर आकर घोड़ी बन गई थी, भावना ने भी बहुत दिनों से चुदाई नहीं की थी.. इसलिए वो भी बहुत ज्यादा गर्म हो चुकी थी। मैंने एक ही झटके में लौड़ा उसकी चूत की जड़ में बिठा दिया। भावना ने मजे से ‘ऊह..उन्ह..’ की आवाज निकाली और चूत को टाइट करते हुए लंड को अन्दर खींच लिया।
काव्या अब पलंग से उठ कर हमारे पास आ गई और हम दोनों को सहलाने लगी। हमारी चुदाई सीधे पहले गेयर से छठे गेयर में चली गई थी, भावना ‘ऊऊहहह.. आआहह.. मजा आ गया जान.. और तेज उउहह ईईईईउउ हिस्स्स्.. और तेज..’ की आवाज निकालने लगी।
मैंने भावना की कमर को थाम कर चुदाई की गति बढ़ा दी।
मेरे धक्कों से भावना थकने लगी। भावना का सर झुकते-झुकते जमीन तक झुक गया, जिससे उसकी चूत और ऊपर आ गई, अब मैं लौड़ा पूरा बाहर खींचता और फिर एक ही साथ जड़ तक पेल देता था।
कुछ धक्कों के बाद भावना की आवाज में थकान सी आ गई। मैं समझ गया कि अब इसका काम भी होने वाला है.. और ऐसा ही हुआ। भावना एकदम से अकड़ गई और जमीन पर लुढ़क गई।
पर मेरा अभी भी निकलना बाकी था, मैं अपना लंड खड़े होकर हाथ से हिला रहा था, वे दोनों लड़कियां मेरे सामने बैठकर मेरे लंड के अमृत की बूंद का इंतजार करने लगीं।
जल्द ही मेरी आंखें बंद हो गईं.. हाथ कांपने लगे.. मांशपेसियां अकड़ने लगीं और मैंने दोनों ही लड़कियों के चेहरों पर फुहार छोड़ दी।
जितना माल उनके मुँह में आया.. वे चाट गईं और जो शरीर में गिरा था.. उसे शरीर में ही मल लिया।
उस दिन हमने कुल तीन राउंड चुदाई की और निशा के आते तक रोज चुदाई चलती रही। कभी थ्री-सम चुदाई होती.. तो कभी सिर्फ काव्या के साथ मेरी चुदाई चलती रहती, और हाँ.. अब तो काव्या के उरोज और कूल्हे भी मेरी मालिश की वजह से निकल आए हैं।
इस तरह हम तीनों की चुदाई खूब मस्ती से चलने लगी।
एक दिन काव्या के घर से फोन आया कि उसकी नानी मर गई हैं और उसे जाना है। काव्या लगभग एक महीने के लिए अपने घर चली गई और अभी हम लोग काव्या की रूम मेट निशा को पटा नहीं पाए थे इसलिए अब हमारे पास फिर से चुदाई के लिए कोई जगह नहीं थी।
हम लोगों ने कुछ दिन तो ऐसे ही पार्क में बैठ कर बिता लिए.. पर अब चुदाई का कीड़ा कुलबुलाने लगा था।
एक दिन भावना ने कहा- संदीप तुम्हारे पास और कोई उपाय नहीं है कि हम चुदाई कर सकें।
मैंने तुरंत कहा- हाँ है ना.. और उपाय भी ऐसा कि तुमको चुदाई का पहले से ज्यादा मजा आएगा।
उसने कहा- तो फिर देर किस बात की है?
मैंने उससे वैभव की कही हुई बात बात बताई कि अब जब भी भावना रूम में आएगी मैं भी चोदूँगा।
भावना ने ‘छी:..’ कहते हुए तुरंत मना कर दिया।
फिर मैंने समझाते हुए कहा- इसमें हर्ज ही क्या है? और फिर मैं भी तुम्हारे सामने काव्या को चोदता हूँ।
उसने कहा- वैभव मुझे क्या समझेगा यार? और तुम बर्दाश्त कैसे करोगे?
मैंने फिर पहले वाला दांव फेंका- मैं तुमसे प्यार करता हूँ और तुम्हारे साथ चुदाई के लिए कुछ भी कर सकता हूँ।
लेकिन उसने कहा- मैं इतनी बेशर्म नहीं हूँ कि जाकर उसके लौड़े पर बैठ जाऊँ।
मैंने कहा- तुम्हें कौन ऐसा करने को कह रहा है? मेरे पास एक तरीका है.. सुनो जब वो घर पर नहीं रहेगा.. तब हम चुदाई कर लेंगे..
अगर वो हमारी चुदाई करते तक नहीं आया.. तो तुम्हें उससे चुदाई नहीं करानी पड़ेगी। पर अगर वो आ गया और जबरदस्ती की.. तो करवा लेना। ऐसे में वो तुम्हें गलत भी नहीं समझेगा और खुद को दोषी समझेगा।
भावना की आँखों में आंसू थे। उसने मुझसे कहा- ठीक है.. पर सिर्फ तुम्हारी खातिर मैं ये सब कर रही हूँ।
प्लान के मुताबिक जब वैभव घर पर नहीं था.. तब मैंने भावना को बुलाया।
भावना के आते ही हम एक-दूसरे पर टूट पड़े, बहुत कम समय में हमारे शरीर से कपड़े अलग हो गए थे। भावना मजे लेकर लौड़े को चूस रही थी। मैं उसके उरोजों को दबा रहा था।
तभी दरवाजे से आवाज आई, भावना ने अपने आपको अपने हाथों से ढकने की नाकाम कोशिश की पर वैभव की आँखें फटी की फटी रह गईं।
मैंने कहा- अबे, दरवाजा तो बंद कर!
तो उसने जल्दी से दरवाजा बंद किया।
वैभव के हाथ में सामान था, उसने सामान रखा और भावना के पास आकर सीधे भावना के उरोज को दबाते हुए बोला- मतलब तुम मुझसे चुदवाने के लिए राजी हो ना?
भावना ने अनजान बनते हुए कहा- ये क्या बोल रहे हो..? चलो हटो मुझे जाने दो।
वैभव थोड़ा चौंका.. लेकिन उसने भावना को जकड़ लिया और चूमते हुए कहा- एक बार चुदवा कर तो देख मेरी जान.. तेरी चूत मेरे लंड की दीवानी हो जाएगी।
भावना मुझे देख रही थी, मैंने आंख मारी और इशारे से ही मजे लेने को कहा, फिर भी भावना ने नौटंकी चालू रखी।
वैभव ने कहा- इतना क्यों भाव खा रही है.. तुझे क्या लगता है मेरे लौड़े में कांटे लगे हैं?
यह कहते हुए अपना लौड़ा निकाल लिया।
भावना उसके लम्बे और तने हुए लौड़े को देखती रह गई। वैभव का लंड सुंदर.. गोरा चिकना सा लौड़ा साइज में भी मेरे लंड के जैसा ही मस्त था.. पर उसका लंड मुझसे मोटा कुछ ज्यादा लगा।
भावना ने कहा तो कुछ नहीं.. पर मैं उसकी खुशी उसके चेहरे में पढ़ सकता था।
‘चल आ कुतिया.. चूस मेरा लौड़ा..’ यह कहते हुए वैभव ने लौड़ा हाथ में पकड़ कर भावना के मुँह के सामने लहराया।
भावना ने भी किसी गुलाम की तरह जाकर उसके पैरों के नीचे बैठ कर उसके लंड मुँह में भर लिया।
वैभव का लंड कुछ मोटा था.. इसलिए भावना सिर्फ ऊपर-ऊपर से चाट पा रही थी, पर वैभव तो बेचैन था ‘साली कब से तुझे चोदने के सपने देख रहा हूँ.. ले अन्दर ले कर चूस ना..’
यह कहते हुए अपना लंड उसने भावना के गले तक ठेल दिया।
भावना ‘गूं गूं.. ऊऊं..’ करने लगी।
मेरा लंड भी अकड़ रहा था, मैंने पास जाकर अपना लौड़ा भावना के हाथ में पकड़ा दिया। भावना मेरे लंड को आगे-पीछे कर रही थी और वैभव भावना के मुँह को ही चोदे जा रहा था।
वासना में डूबी भावना दो-दो लंड के मजे एक साथ ले रही थी।
तभी वैभव ने भावना का सिर पकड़ा और लौड़ा जोर-जोर से ठेलने लगा। भावना को सांस लेने में भी तकलीफ होने लगी। लौड़ा मुँह में पूरा घुस जाने की वजह से भावना की आँखें जीभ सब बाहर आ गए थे। वो तो अच्छा हुआ कि वैभव का इसी समय स्खलन हो गया.. नहीं तो शायद भावना लस्त ही हो जाती।
वैभव ने स्खलन के बाद भी भावना का सर नहीं छोड़ा.. वो उसके गले तक लौड़ा ठेल कर आराम से आँखें बंद करके झड़ता रहा।
जब झड़ने के बाद लौड़ा सिकुड़ने लगा.. तब जाकर वैभव ने उसे छोड़ा। लेकिन इधर मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने भावना को इशारों में ही उसकी हालत पूछी.. उसने आंसू पोंछते हुए सिर हिला कर ठीक होने के संकेत दिए।
फिर मैंने उसे एक प्यार भरा चुम्बन दिया और बिस्तर पर लेटा दिया।
अबकी बार मैंने उसके मुँह में अपना लौड़ा दे दिया। भावना मेरे लंड की आदी थी.. इसलिए उसने बड़े मजे से मेरा लंड चूस लिया।
उधर वैभव भावना की टाँगों के बीच बैठ गया और बड़े प्यार से भावना के गीली हो चुकी मखमली चूत को सहलाते हुए तारीफें करने लगा।
‘कसम से यार.. क्या चूत है तुम्हारी.. इतनी इतनी कोमल, चिकनी गद्देदार और कितनी सुन्दर गुलाबी फांकें हैं। आज तो तुम्हें जी भरके चोदूँगा रानी।’
ये कहते हुए वैभव चूत पर जीभ फिराने लगा। वैभव को चूत चाटने की आदत नहीं थी.. इसलिए वो झिझकते हुए धीरे-धीरे चूत चाट रहा था।
जिन लड़कियों ने अपनी चूत चटवाई है.. उन्हें पता होगा कि धीरे चटवाने से उत्तेजना और बढ़ जाती है।
ऐसा ही हुआ, भावना और उत्तेजित होकर मेरा लंड चूसने लगी।
हम सबकी आवाज और आँखों में वासना हावी हो चुकी थी।
भावना ने पहले दरवाजा अच्छे से बंद किया और सामने आकर खड़ी हो गई। तब तक काव्या ने लंड छोड़ कर अपने दोनों हाथों से खुद को ढकने की नाकाम कोशिश की।
भावना कुछ कहती.. उससे पहले ही काव्या के मुख से निकला- वो.. ओह.. वो.. भावना संदीप दवाई लगा रहे थे।
भावना ने कहा- ओह दवाई..? भला मैं भी तो देखूं कौन सी दवाई है जो लंड को मुँह में लेकर लगवाई जाती है?
उसने मेरे लंड को पकड़ कर अपने मुँह में डाल लिया, मेरे लंड को एक-दो बार आगे-पीछे किया।
कुछ देर तक काव्या को खरी-खोटी सुनाने के बाद भावना ने मेरे प्लान के अनुसार अपनी बात पेश कर दी, काव्या से कहा- ठीक है.. अगर तुम दवाई लगवाना चाहती हो.. तो मेरी एक शर्त है।
काव्या ने जल्दी से कहा- क्या शर्त?
भावना ने कहा- मैं जब चाहूँ यहाँ आके संदीप से चुद सकती हूँ।
काव्या ने थोड़ा सोचा और कहा- ठीक है पर जब निशा ना हो तो तुम ऐसा कर सकती हो।
फिर भावना ने काव्या को ‘ओह.. मेरी प्यारी..’ सहेली बोल कर गले लगा लिया।
अब भावना ने मुझे पास बुला कर मेरा लंड अपने हाथों से काव्या के मुँह में डाल दिया और खुद अपने कपड़े उतारने लगी। काव्या के ऊपर भी वासना हावी होने लगी थी, मेरा लंड भी आग उगलने को बेचैन था।
भावना ने नंगे शरीर के पास आकर मेरी बनियान निकाल दी और मुझसे सट कर मुझे बेतहाशा चूमने लगी। वो अपने उरोजों को मेरे शरीर से रगड़ने लगी।
अचानक ही मेरे हाथों की पकड़ काव्या के सर पर मजबूत हो गई और तीन-चार जबरदस्त धक्कों के साथ ही मैं काव्या के मुँह में ही स्खलित हो गया।
काव्या ने मेरा वीर्य थूक दिया तो भावना ने वीर्य को हाथों से उठाया और काव्या के शरीर में मल दिया।
अब मुझे इन दोनों शेरनियों की प्यास बुझानी थी इसलिए मैं पलंग पर लेट गया और सब कुछ उन्हें ही करने दिया, दोनों सहेलियां एक दूसररी को चूमने लगीं।
फिर दोनों एक साथ मेरा लंड चाटने और चूसने लगीं।
काव्या काफी देर से मेरे लंड के साथ खेल रही थी.. इसलिए वो बहुत उत्तेजित होकर अपनी चूत को मारने लगी। वो मेरे लंड को खींचने और चूसने लगी।
मैं समझ गया कि अब इसे लंड चाहिए, मैंने भावना को इशारा किया और उसने काव्या को लेटा कर उसके चेहरे के दोनों ओर अपनी टांगें रख कर अपनी चूत चटवाने लगी।
काव्या ‘ऊंह.. उन्ह..गूं गूं.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… हिस्स्स…’ करने लगी। मैंने काव्या की टांगें फैलाईं और ना चाहकर भी मैं चूत को चाटने झुक गया। उसकी कोमल मखमली चूत देखकर किसी का भी मन चाटने को करता। मैंने पहले ऊपर के दाने को जीभ से सहलाया और फिर चूत के अन्दर तक जीभ घुसाने की चेष्टा की।
काव्या की हड़बड़ाहट उसकी चुदाई की इच्छा बयान कर रही थी, उसकी सील नहीं टूटी थी.. इसलिए चूत का मुँह बंद नजर आ रहा था। उसकी दोनों फांकों के बीच महज एक दरार नजर आ रही थी।
मैंने अपनी उंगलियों से एक बार दोनों फांकों को फैला कर देखा और अपने हाथों में थूक लेकर उसकी गीली चूत को और ज्यादा चिपचिपा कर दिया, फिर उसकी नाजुक सी मुलायम गोरी चूत में अपना लम्बा लंड एक झटके में डाल दिया।
‘उउईईई.. माँ.. मैं मर गईईई.. कोई बचाओ.. कोई तो बचाओ रे..आह्ह.. फट गई..’ वो चीखने लगी।
जबकि काव्या की चूत में अभी मेरा पूरा लौड़ा नहीं गया था।
मैंने भावना को उसे चुप कराने को कहा, उसने अपनी पेंटी को काव्या के मुँह में ठूंस दिया और पलंग से उतर कर काव्या के सर की तरफ खड़े होकर उसके हाथों को कसके पकड़ लिया।
काव्या की आंखें दर्द के मारे बड़ी हो गई थीं, आंखों से आंसू निरंतर गालों से होकर बह रहे थे।
मैंने एक जोर का धक्का दिया और अपना हब्शी लौड़ा उसकी चूत में जड़ तक घुसा दिया।
काव्या तो अब चिल्ला भी नहीं सकती थी उसका शरीर ढीला पड़ गया, उसने आंखें बंद करके चेहरे को एक ओर झुका लिया।
मैं डर गया.. पर भावना ने कहा- निकालना नहीं.. वरना ये जिंदगी में कभी चुदवा नहीं पाएगी।
भावना ने काव्या के गालों में थपकी देकर उसे पुकारा तो काव्या ने आंखें खोल दीं।
उसने मरी सी आवाज में ‘हाँ’ करके एक बार जवाब दिया, तब मेरी जान में जान आई।
अब मैं बिना कुछ किए काव्या के सामान्य होने का इंतजार करने लगा। भावना ने अपनी पेंटी उसके मुँह से निकाल दी और मुँह में दो-चार छींटे पानी के डालते हुए उसे चूमने लगी, उसके शरीर को सहलाते हुए उसे बहलाने लगी।
काव्या का रोना धीरे-धीरे बंद हो गया। मैंने भी मौके की नजाकत समझते हुए लंड को थोड़ा आगे-पीछे करना शुरू कर दिया। काव्या को अब भी तकलीफ थी.. पर अब शायद मजा भी आने लगा था।
काव्या भावना को चूमने लगी और थोड़ी ही देर बाद चुदाई में भी साथ देने लगी ‘आह चोद मेरे राजा.. फाड़ डाल साली चूत को.. बहुत परेशान करती है ये.. उउउह.. हहह.. इइई.. ईईई.. इआइ आहहहह..’
वो आवाज करने लगी।
मैंने उसके छोटे उरोजों को मसलते हुए अपनी गति तेज कर दी। भावना हम लोगों को देख कर अपनी चूत में उंगली डाल कर अन्दर बाहर करने लगी।
अब काव्या मदहोशी में बड़बड़ाने लगी ‘उउउहह ऊऊ ईईईई.. आहहह.. संदीप..प..प औररर.. जोररर से.. औररर.. जोरर से..’
इसी के साथ ही वो अकड़ने लगी और मेरी जांघों को जोर से पकड़ कर अपनी चूत में लौड़ा अन्दर तक ले जाकर रुक गई, उसका स्खलन हो गया था।
अब उसका शरीर एकदम ढीला पड़ गया था लेकिन मेरा पानी एक बार काव्या के मुँह में निकल चुका था और दूसरी बार की चुदाई में मेरा जल्दी नहीं निकलता सो मैंने काव्या की चूत से लंड निकाल लिया।
अब तक भावना मंजे हुए खिलाड़ी की तरह पहले ही जमीन पर आकर घोड़ी बन गई थी, भावना ने भी बहुत दिनों से चुदाई नहीं की थी.. इसलिए वो भी बहुत ज्यादा गर्म हो चुकी थी। मैंने एक ही झटके में लौड़ा उसकी चूत की जड़ में बिठा दिया। भावना ने मजे से ‘ऊह..उन्ह..’ की आवाज निकाली और चूत को टाइट करते हुए लंड को अन्दर खींच लिया।
काव्या अब पलंग से उठ कर हमारे पास आ गई और हम दोनों को सहलाने लगी। हमारी चुदाई सीधे पहले गेयर से छठे गेयर में चली गई थी, भावना ‘ऊऊहहह.. आआहह.. मजा आ गया जान.. और तेज उउहह ईईईईउउ हिस्स्स्.. और तेज..’ की आवाज निकालने लगी।
मैंने भावना की कमर को थाम कर चुदाई की गति बढ़ा दी।
मेरे धक्कों से भावना थकने लगी। भावना का सर झुकते-झुकते जमीन तक झुक गया, जिससे उसकी चूत और ऊपर आ गई, अब मैं लौड़ा पूरा बाहर खींचता और फिर एक ही साथ जड़ तक पेल देता था।
कुछ धक्कों के बाद भावना की आवाज में थकान सी आ गई। मैं समझ गया कि अब इसका काम भी होने वाला है.. और ऐसा ही हुआ। भावना एकदम से अकड़ गई और जमीन पर लुढ़क गई।
पर मेरा अभी भी निकलना बाकी था, मैं अपना लंड खड़े होकर हाथ से हिला रहा था, वे दोनों लड़कियां मेरे सामने बैठकर मेरे लंड के अमृत की बूंद का इंतजार करने लगीं।
जल्द ही मेरी आंखें बंद हो गईं.. हाथ कांपने लगे.. मांशपेसियां अकड़ने लगीं और मैंने दोनों ही लड़कियों के चेहरों पर फुहार छोड़ दी।
जितना माल उनके मुँह में आया.. वे चाट गईं और जो शरीर में गिरा था.. उसे शरीर में ही मल लिया।
उस दिन हमने कुल तीन राउंड चुदाई की और निशा के आते तक रोज चुदाई चलती रही। कभी थ्री-सम चुदाई होती.. तो कभी सिर्फ काव्या के साथ मेरी चुदाई चलती रहती, और हाँ.. अब तो काव्या के उरोज और कूल्हे भी मेरी मालिश की वजह से निकल आए हैं।
इस तरह हम तीनों की चुदाई खूब मस्ती से चलने लगी।
एक दिन काव्या के घर से फोन आया कि उसकी नानी मर गई हैं और उसे जाना है। काव्या लगभग एक महीने के लिए अपने घर चली गई और अभी हम लोग काव्या की रूम मेट निशा को पटा नहीं पाए थे इसलिए अब हमारे पास फिर से चुदाई के लिए कोई जगह नहीं थी।
हम लोगों ने कुछ दिन तो ऐसे ही पार्क में बैठ कर बिता लिए.. पर अब चुदाई का कीड़ा कुलबुलाने लगा था।
एक दिन भावना ने कहा- संदीप तुम्हारे पास और कोई उपाय नहीं है कि हम चुदाई कर सकें।
मैंने तुरंत कहा- हाँ है ना.. और उपाय भी ऐसा कि तुमको चुदाई का पहले से ज्यादा मजा आएगा।
उसने कहा- तो फिर देर किस बात की है?
मैंने उससे वैभव की कही हुई बात बात बताई कि अब जब भी भावना रूम में आएगी मैं भी चोदूँगा।
भावना ने ‘छी:..’ कहते हुए तुरंत मना कर दिया।
फिर मैंने समझाते हुए कहा- इसमें हर्ज ही क्या है? और फिर मैं भी तुम्हारे सामने काव्या को चोदता हूँ।
उसने कहा- वैभव मुझे क्या समझेगा यार? और तुम बर्दाश्त कैसे करोगे?
मैंने फिर पहले वाला दांव फेंका- मैं तुमसे प्यार करता हूँ और तुम्हारे साथ चुदाई के लिए कुछ भी कर सकता हूँ।
लेकिन उसने कहा- मैं इतनी बेशर्म नहीं हूँ कि जाकर उसके लौड़े पर बैठ जाऊँ।
मैंने कहा- तुम्हें कौन ऐसा करने को कह रहा है? मेरे पास एक तरीका है.. सुनो जब वो घर पर नहीं रहेगा.. तब हम चुदाई कर लेंगे..
अगर वो हमारी चुदाई करते तक नहीं आया.. तो तुम्हें उससे चुदाई नहीं करानी पड़ेगी। पर अगर वो आ गया और जबरदस्ती की.. तो करवा लेना। ऐसे में वो तुम्हें गलत भी नहीं समझेगा और खुद को दोषी समझेगा।
भावना की आँखों में आंसू थे। उसने मुझसे कहा- ठीक है.. पर सिर्फ तुम्हारी खातिर मैं ये सब कर रही हूँ।
प्लान के मुताबिक जब वैभव घर पर नहीं था.. तब मैंने भावना को बुलाया।
भावना के आते ही हम एक-दूसरे पर टूट पड़े, बहुत कम समय में हमारे शरीर से कपड़े अलग हो गए थे। भावना मजे लेकर लौड़े को चूस रही थी। मैं उसके उरोजों को दबा रहा था।
तभी दरवाजे से आवाज आई, भावना ने अपने आपको अपने हाथों से ढकने की नाकाम कोशिश की पर वैभव की आँखें फटी की फटी रह गईं।
मैंने कहा- अबे, दरवाजा तो बंद कर!
तो उसने जल्दी से दरवाजा बंद किया।
वैभव के हाथ में सामान था, उसने सामान रखा और भावना के पास आकर सीधे भावना के उरोज को दबाते हुए बोला- मतलब तुम मुझसे चुदवाने के लिए राजी हो ना?
भावना ने अनजान बनते हुए कहा- ये क्या बोल रहे हो..? चलो हटो मुझे जाने दो।
वैभव थोड़ा चौंका.. लेकिन उसने भावना को जकड़ लिया और चूमते हुए कहा- एक बार चुदवा कर तो देख मेरी जान.. तेरी चूत मेरे लंड की दीवानी हो जाएगी।
भावना मुझे देख रही थी, मैंने आंख मारी और इशारे से ही मजे लेने को कहा, फिर भी भावना ने नौटंकी चालू रखी।
वैभव ने कहा- इतना क्यों भाव खा रही है.. तुझे क्या लगता है मेरे लौड़े में कांटे लगे हैं?
यह कहते हुए अपना लौड़ा निकाल लिया।
भावना उसके लम्बे और तने हुए लौड़े को देखती रह गई। वैभव का लंड सुंदर.. गोरा चिकना सा लौड़ा साइज में भी मेरे लंड के जैसा ही मस्त था.. पर उसका लंड मुझसे मोटा कुछ ज्यादा लगा।
भावना ने कहा तो कुछ नहीं.. पर मैं उसकी खुशी उसके चेहरे में पढ़ सकता था।
‘चल आ कुतिया.. चूस मेरा लौड़ा..’ यह कहते हुए वैभव ने लौड़ा हाथ में पकड़ कर भावना के मुँह के सामने लहराया।
भावना ने भी किसी गुलाम की तरह जाकर उसके पैरों के नीचे बैठ कर उसके लंड मुँह में भर लिया।
वैभव का लंड कुछ मोटा था.. इसलिए भावना सिर्फ ऊपर-ऊपर से चाट पा रही थी, पर वैभव तो बेचैन था ‘साली कब से तुझे चोदने के सपने देख रहा हूँ.. ले अन्दर ले कर चूस ना..’
यह कहते हुए अपना लंड उसने भावना के गले तक ठेल दिया।
भावना ‘गूं गूं.. ऊऊं..’ करने लगी।
मेरा लंड भी अकड़ रहा था, मैंने पास जाकर अपना लौड़ा भावना के हाथ में पकड़ा दिया। भावना मेरे लंड को आगे-पीछे कर रही थी और वैभव भावना के मुँह को ही चोदे जा रहा था।
वासना में डूबी भावना दो-दो लंड के मजे एक साथ ले रही थी।
तभी वैभव ने भावना का सिर पकड़ा और लौड़ा जोर-जोर से ठेलने लगा। भावना को सांस लेने में भी तकलीफ होने लगी। लौड़ा मुँह में पूरा घुस जाने की वजह से भावना की आँखें जीभ सब बाहर आ गए थे। वो तो अच्छा हुआ कि वैभव का इसी समय स्खलन हो गया.. नहीं तो शायद भावना लस्त ही हो जाती।
वैभव ने स्खलन के बाद भी भावना का सर नहीं छोड़ा.. वो उसके गले तक लौड़ा ठेल कर आराम से आँखें बंद करके झड़ता रहा।
जब झड़ने के बाद लौड़ा सिकुड़ने लगा.. तब जाकर वैभव ने उसे छोड़ा। लेकिन इधर मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने भावना को इशारों में ही उसकी हालत पूछी.. उसने आंसू पोंछते हुए सिर हिला कर ठीक होने के संकेत दिए।
फिर मैंने उसे एक प्यार भरा चुम्बन दिया और बिस्तर पर लेटा दिया।
अबकी बार मैंने उसके मुँह में अपना लौड़ा दे दिया। भावना मेरे लंड की आदी थी.. इसलिए उसने बड़े मजे से मेरा लंड चूस लिया।
उधर वैभव भावना की टाँगों के बीच बैठ गया और बड़े प्यार से भावना के गीली हो चुकी मखमली चूत को सहलाते हुए तारीफें करने लगा।
‘कसम से यार.. क्या चूत है तुम्हारी.. इतनी इतनी कोमल, चिकनी गद्देदार और कितनी सुन्दर गुलाबी फांकें हैं। आज तो तुम्हें जी भरके चोदूँगा रानी।’
ये कहते हुए वैभव चूत पर जीभ फिराने लगा। वैभव को चूत चाटने की आदत नहीं थी.. इसलिए वो झिझकते हुए धीरे-धीरे चूत चाट रहा था।
जिन लड़कियों ने अपनी चूत चटवाई है.. उन्हें पता होगा कि धीरे चटवाने से उत्तेजना और बढ़ जाती है।
ऐसा ही हुआ, भावना और उत्तेजित होकर मेरा लंड चूसने लगी।
हम सबकी आवाज और आँखों में वासना हावी हो चुकी थी।
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मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
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- rangila
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Re: रोंये वाली मखमली चूत
अब मेरा समंदर भी छलक ही गया। मैंने भी भावना के मुँह में माल छोड़ दिया। मैंने भावना से माल मुँह में छोड़ने के लिए माफी मांगी तो उसने कहा- कोई बात नहीं.. वैभव ने तो वीर्य पिलाने की शुरूआत कर ही दी है.. अब शायद मुझे भी आदत डाल लेनी चाहिए।
तभी भावना की आवाज भी लड़खड़ाने लगी, वैभव के चूत चाटने और उंगली घुसाने से भावना ‘हिस्स्सकस.. आहहह.. ईईईई.. मजा आ गया..’ कहती हुई झड़ गई।
मैं और भावना तो अभी-अभी झड़े थे.. पर वैभव को झड़े बहुत समय हो गया था। भावना की चूत चाटते-चाटते उसका लौड़ा फिर से खड़ा हो गया था।
पर अभी भावना तैयार नहीं थी, फिर भी वैभव ने चूत को पीटते हुए अपना लंड सही जगह रख कर धक्का दे दिया।
उसका लंड मोटा था.. इसलिए भावना कराह उठी.. पर चुदाई का बहुत अनुभव होने के कारण तुरंत संभल गई और पूरा लौड़ा गटक गई।
मैं भावना के बड़े-बड़े गोरे उरोजों को दबा रहा था, भावना भी जल्द ही वैभव का साथ देने लगी।
मैंने अपना सोया लंड भावना के मुँह में दे दिया, उसके चूसने से मेरे लंड में फिर से जान आने लगी।
कुछ देर ऐसे ही चोदने के बाद वैभव लेट गया और भावना को अपने ऊपर चढ़ा कर चोदने लगा। भावना ‘ऊऊह.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… आआहह..’ कर रही थी और चुदाई से ‘फच्च.. फच्च.. पकपक..’ की मादक आवाज आ रही थी।
अब मैंने खड़े होकर अपना लंड भावना के मुँह में दे दिया। भावना तो गरम हो ही चुकी थी। वो अब अपने हाथों से ही अपने उरोजों को मसलने लगी और चिल्ला-चिल्ला कर उछलने लगी- ओहहह ईईई ऊऊऊऊ.. चोदो मुझे.. ये साली चूत बहुत तंग करती है.. फाड़ डालो इसे.. ओहह चोद दे राजा.. चोद और जोर से चोद.. उउहस आहहह..
वो मजा लेते हुए सीत्कारने लगी।
उधर वैभव ‘ऊंह.. आहहह.. ऊंह ऊंह..’ करके धक्के तेज मारने लगा और फिर अकड़ने लगा- ओह रानी.. मैं तो गया..
यह कहते हुए वो झड़ गया।
भावना बेचैन हो उठी- नहीं.. अभी मेरी प्यास बाकी है.. साले ऐसे अधूरा मत छोड़ो साले.. कमीनों.. दो-दो लोग मिलकर मेरी प्यास नहीं बुझा सकते क्या?’
उसके मुँह से ऐसा सुनते ही मैं ताव में आ गया और मैंने भावना को नीचे खड़े करके उसकी एक टांग अपने कंधों पर टांग ले ली। ऐसा करने से उसकी चूत पूरी खुल गई और उसकी चूत में मैंने खड़े-खड़े ही अपना पूरा लंड डाल दिया।
फिर उसके मुँह को दबाते हुए मैंने बेरहमी से अपने हाथ का अंगूठा उसके मुँह में चूसने के लिए डाल दिया ‘और ले मादरचोद रंडी.. अब झेल मेरा लौड़ा..’ कहते हुए मैंने भावना की चूत की ताबड़तोड़ चुदाई शुरू कर दी।
वो ‘गूं गूं गूं.. ऊऊ ऊऊ..’ करके चुदवा रही थी। मैंने अपना अंगूठा जैसे ही उसके मुँह से निकाला.. वो भी बकने लगी ‘हाँ रे मादरचोद.. ऐसे ही चोद.. तूने ही तो मुझे रंडी बनाया है ना भोसड़ी के.. तो देख अब तेरी रंडी कैसे चुदती है.. आह्ह.. पेल..’
हम दोनों की घमासान चुदाई चल रही थी।
तभी वैभव ने कहा- वाह क्या चुदाई है यार.. काश हम ग्रुप में और ज्यादा लोगों के साथ चुदाई करते।
भावना ने कहा- साले एक चूत तो पहले बजा लो.. फिर किसी और की सोचना।
इतने में मैंने कहा- आज तो सच में तुझे ऐसे चोदेंगे कि तू चल भी नहीं पाएगी कुतिया.. ले.. खा मेरा लंड.. ऊन्ह..’
चुदाई के चलते-चलते ही मैंने वैभव से पूछा- कोई सामूहिक चुदाई की कोई तरकीब भी है या ऐसे ही बोल रहा है?
वैभव ने कहा- अगर भावना चाहे तो हम काव्या और निशा को भी साथ मिला सकते हैं।
भावना वासना में डूबी थी ‘वाह रे स्वार्थी लड़कों.. तुम लोगों के लिए तीन चूत.. और हमारे लिए दो ही लौड़े..’
तो मैंने चूत में लंड जोर से पेलते हुए कहा- तुम्हारे लिए भी बहुत से लंड ला देंगे रानी..
तभी ‘ओओहहह.. मेरे राजा.. लंडों की बात सुनकर मेरी चूत बह गई रेरर..’ कहते हुए भावना झड़ने लगी।
पर अभी मेरा तो हुआ नहीं था.. तो मैंने धक्के और तेज कर दिए।
चूंकि भावना झड़ गई थी इसलिए अब उसे दर्द होने लगा ‘बस संदीप.. मेरी चूत फट जाएगी यार..’
मेरी आवाज भी कांप रही थी- ललेए ना.. मादरचोदीईई.. अब औररर चुदवाओ ना.. भोसड़ी वाली.. ले.. उउहहह ओहहहह ईईईई हिस्स्..’
यह कहते हुए मैंने भावना को और रगड़ कर चोदा। भावना की हालत खराब हो गई थी।
तभी मैंने भावना को बैठने कहा और कांपते हुए उसके मुँह में अपना लावा उगल दिया.. उसने सारी मलाई चाट ली।
तभी वैभव ने भावना को उठा कर बिस्तर पर पटक दिया और अपने फिर खड़े हो चुके लंड से बहुत देर तक भावना को चोदा। भावना अब ज्यादा कुछ बोल भी नहीं पा रही थी।
इस तरह की चुदाई से भावना कई बार झड़ी और उसका शरीर भी दुखने लगा था। बड़ी मुश्किल से वैभव का पानी निकला और हम थक कर ऐसे ही नंगे लेट हुए बात करने लगे।
‘क्यों भावना कैसा लगा?’
भावना ने शरमा कर ‘अच्छा लगा..’ कहा और मेरे सीने में मुँह छुपा लिया।
मैंने कहा- वैसे वैभव ने सामूहिक चुदाई की बात अच्छी कही.. सच में खुल कर चुदाई करने का मजा ही अलग होता है। तुम तो राजी हो ना?
मैंने भावना की ठोड़ी पकड़ कर उसका चेहरा देखा तो भावना ने पलकें झुका लीं।
मैंने वैभव से कहा- क्यों यार.. ये सब कैसे होगा और कहाँ होगा?
भावना ने कहा- मैं कुछ कहूँ?
मैंने और वैभव ने एक साथ ‘हाँ’ कहा।
भावना ने बताया- अगले महीने मैं घर में तीन दिनों के लिए अकेली रहूँगी.. उसी समय हम प्लानिंग कर सकते हैं। हम लोग काव्या और निशा को सामूहिक चुदाई के लिए राजी कर ही सकते हैं।
वैभव ने तुरंत पूछा- तो क्या संदीप ने काव्या और निशा को भी पहले चोदा है?
मैंने जवाब दिया- निशा को नहीं कमीने.. सिर्फ काव्या को चोदा है और मैं भी यही सोच रहा हूँ कि निशा कैसे मानेगी?
तो भावना ने कहा- उसके लिए पहले उसके ब्वायफ्रेंड को पटाना होगा। निशा का एक लड़के के साथ अफेयर पिछले एक साल से है.. पर दोनों चाह कर भी चुदाई नहीं कर पाए हैं। दोनों आगे बढ़ने की हिम्मत ही नहीं कर पा रहे हैं। क्यों ना हम उन दोनों को राजी कर लें। उनका काम भी हो जाएगा और हमारा भी काम बन जाएगा।
मैंने कहा- आइडिया तो अच्छा है.. एक काम करते हैं.. तुम और काव्या मिल कर निशा को मनाओ और इधर मैं और वैभव मिल कर उसके ब्वायफ्रेंड को मना लेंगे। क्यों वैभव ठीक कहा ना मैंने?’
वैभव- हाँ.. हाँ.. बिल्कुल.. उस कमीने को तीन चूतें एक साथ चोदने को मिलेंगी.. तो मना थोड़ी न करेगा भोसड़ी का।
अब हमने उसका नाम पता पूछा, उसका नाम सनत था और वो दूसरे कॉलेज में पढ़ता था।
‘पर एक प्राब्लम है..’ भावना ने कहा।
प्रॉब्लम की सुन कर हम सब ठंडे पड़ गए।
‘क्या हुआ जान?’
भावना ने बताया- मेरे घर पर एक चौकीदार तैनात रहता है.. उसके रहते ये सब नहीं हो पाएगा।
यह सुनते ही मुझे झटका लगा.. पर वैभव जोर से हँसने लगा और बोला- अभी कुछ देर पहले तुम ही कह रही थी ना कि बस दो लौड़े.. अब देखो कैसे चार लौड़े हो गए।
भावना ने कहा- क्या मतलब?
तो वैभव ने कहा- मैं, संदीप और सनत करके तीन और अब उस चौकीदार को भी शामिल कर लेंगे.. हो गए ना चार!
भावना ने कहा- साले, मैं अपने चौकीदार से चुदूँगी? मैं इतना नहीं गिर सकती।
वैभव ने कहा- तुम मत चुदना.. उसके लिए तो दो और चूतें हैं ना.. तुम क्यों चिंता करती हो रानी और उसे पटाने की जिम्मेदारी भी हमारी.. ओके!
हम सब हँसने लगे।
अब हम तीनों अपने सपने को सच करने के लिए काम में जुट गए। वैभव ने सनत से दोस्ती कर ली और उसे कामुक वीडियो दिखाने लगा और सामूहिक चुदाई की कहानी भी पढ़ा कर सामूहिक चुदाई के लिए उकसाने लगा।
मैं भी किसी-किसी बहाने भावना के घर जाने लगा और जब भी जाता चौकीदार से बातचीत करके ही आता। अब उसके साथ खुल्ला हँसी-मजाक भी होने लगा था। चौकीदार का नाम चरण था मैं उसे प्यार से कालीचरण पुकारने लगा।
काली चरण काले रंग का तंदरुस्त शादीशुदा अधेड़ उम्र का आदमी था.. पर उसका परिवार गांव में रहता था। वो बेचारा शहर में अकेले ही झक मार रहा था। उसकी उम्र 38 की रही होगी.. पर अभी भी कड़ियल जवान मर्द ही दिखता था।
उसका चेहरा इतना बुरा भी नहीं था। वो कभी-कभी अपनी अंतरंग बातें भी मुझे बताने लगा। वो समझ चुका था कि मेरा और भावना का चक्कर चल रहा है। कुल मिला कर कहा जाए कि काली चरण मेरे पाले में आ चुका था।
अब निशा को पटाने की देर थी। हमारी प्लानिंग वाली तारीख में अब दो ही दिन बाकी थे।
मैंने भावना से पूछा- क्या हुआ निशा मानी कि नहीं?
भावना ने कहा- अभी मैं उसके ही घर जा रही हूँ.. आज बात करके ही आऊँगी.. वैसे मैंने काव्या को बता दिया है और वह राजी भी है। वो भी निशा को पटाने में मेरी मदद करेगी।
मैंने कहा- चलो अच्छी बात है.. पर आज बात कर ही लो।
भावना चली गई और रात को मुझे उसने फोन किया- यार बहुत मेहनत लगी.. पर हमने उसे राजी कर ही लिया।
मैं खुशी से झूम उठा और कहा- थकी हुई तो लग रही हो.. हमें भी तो बताओ क्या मेहनत करनी पड़ी?
उसने कहा- चुदाई का बिल्कुल अनुभव नहीं था और बिना कुछ जाने वो राजी कैसे होती.. इसलिए सबसे पहले हमने उसको चुदाई करना सिखाया.. चुदाई के बारे में बताया। जब उसकी उत्सुकता बढ़ाई.. तब जाकर वो मानी।
मैंने फिर दोहराया- चुदाई करना कैसे सिखाया?
भावना थोड़ा शरमा कर बोली- संदीप तुम भी ना सब कुछ मत पूछा करो.. सिर्फ इतना जान लो कि हमारी प्लानिंग को सफल बनाने के लिए मैंने और काव्या ने उसके सामने लेस्बियन सेक्स करना शुरू किया और उसे भी उसमें जबरदस्ती शामिल किया। फिर हम लोगों ने उसे बताया कि सनत भी तैयार है और जब उसने चुदाई का ऐसा स्वाद चखा.. तब उसने झिझकते हुए ‘हाँ’ कह दिया है।
मैंने कहा- यार पूरी घटना अच्छे से बताओ ना.. तुम्हारी अधूरी बात सुन कर ही मेरा लंड खड़ा हो गया है।
उसने कहा- नहीं.. मैं नहीं बताऊँगी.. पर कुतिया को रगड़ कर चोदना.. कमीनी को जिन्दगी भर याद रहना चाहिए.. साली बहुत भाव खा रही थी।
मैंने कहा- हाँ जानेमन..
फिर कुछ देर भावना से फोन सेक्स करके अपना पानी झाड़ा तब खड़े लंड को चैन पड़ा।
तभी भावना की आवाज भी लड़खड़ाने लगी, वैभव के चूत चाटने और उंगली घुसाने से भावना ‘हिस्स्सकस.. आहहह.. ईईईई.. मजा आ गया..’ कहती हुई झड़ गई।
मैं और भावना तो अभी-अभी झड़े थे.. पर वैभव को झड़े बहुत समय हो गया था। भावना की चूत चाटते-चाटते उसका लौड़ा फिर से खड़ा हो गया था।
पर अभी भावना तैयार नहीं थी, फिर भी वैभव ने चूत को पीटते हुए अपना लंड सही जगह रख कर धक्का दे दिया।
उसका लंड मोटा था.. इसलिए भावना कराह उठी.. पर चुदाई का बहुत अनुभव होने के कारण तुरंत संभल गई और पूरा लौड़ा गटक गई।
मैं भावना के बड़े-बड़े गोरे उरोजों को दबा रहा था, भावना भी जल्द ही वैभव का साथ देने लगी।
मैंने अपना सोया लंड भावना के मुँह में दे दिया, उसके चूसने से मेरे लंड में फिर से जान आने लगी।
कुछ देर ऐसे ही चोदने के बाद वैभव लेट गया और भावना को अपने ऊपर चढ़ा कर चोदने लगा। भावना ‘ऊऊह.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… आआहह..’ कर रही थी और चुदाई से ‘फच्च.. फच्च.. पकपक..’ की मादक आवाज आ रही थी।
अब मैंने खड़े होकर अपना लंड भावना के मुँह में दे दिया। भावना तो गरम हो ही चुकी थी। वो अब अपने हाथों से ही अपने उरोजों को मसलने लगी और चिल्ला-चिल्ला कर उछलने लगी- ओहहह ईईई ऊऊऊऊ.. चोदो मुझे.. ये साली चूत बहुत तंग करती है.. फाड़ डालो इसे.. ओहह चोद दे राजा.. चोद और जोर से चोद.. उउहस आहहह..
वो मजा लेते हुए सीत्कारने लगी।
उधर वैभव ‘ऊंह.. आहहह.. ऊंह ऊंह..’ करके धक्के तेज मारने लगा और फिर अकड़ने लगा- ओह रानी.. मैं तो गया..
यह कहते हुए वो झड़ गया।
भावना बेचैन हो उठी- नहीं.. अभी मेरी प्यास बाकी है.. साले ऐसे अधूरा मत छोड़ो साले.. कमीनों.. दो-दो लोग मिलकर मेरी प्यास नहीं बुझा सकते क्या?’
उसके मुँह से ऐसा सुनते ही मैं ताव में आ गया और मैंने भावना को नीचे खड़े करके उसकी एक टांग अपने कंधों पर टांग ले ली। ऐसा करने से उसकी चूत पूरी खुल गई और उसकी चूत में मैंने खड़े-खड़े ही अपना पूरा लंड डाल दिया।
फिर उसके मुँह को दबाते हुए मैंने बेरहमी से अपने हाथ का अंगूठा उसके मुँह में चूसने के लिए डाल दिया ‘और ले मादरचोद रंडी.. अब झेल मेरा लौड़ा..’ कहते हुए मैंने भावना की चूत की ताबड़तोड़ चुदाई शुरू कर दी।
वो ‘गूं गूं गूं.. ऊऊ ऊऊ..’ करके चुदवा रही थी। मैंने अपना अंगूठा जैसे ही उसके मुँह से निकाला.. वो भी बकने लगी ‘हाँ रे मादरचोद.. ऐसे ही चोद.. तूने ही तो मुझे रंडी बनाया है ना भोसड़ी के.. तो देख अब तेरी रंडी कैसे चुदती है.. आह्ह.. पेल..’
हम दोनों की घमासान चुदाई चल रही थी।
तभी वैभव ने कहा- वाह क्या चुदाई है यार.. काश हम ग्रुप में और ज्यादा लोगों के साथ चुदाई करते।
भावना ने कहा- साले एक चूत तो पहले बजा लो.. फिर किसी और की सोचना।
इतने में मैंने कहा- आज तो सच में तुझे ऐसे चोदेंगे कि तू चल भी नहीं पाएगी कुतिया.. ले.. खा मेरा लंड.. ऊन्ह..’
चुदाई के चलते-चलते ही मैंने वैभव से पूछा- कोई सामूहिक चुदाई की कोई तरकीब भी है या ऐसे ही बोल रहा है?
वैभव ने कहा- अगर भावना चाहे तो हम काव्या और निशा को भी साथ मिला सकते हैं।
भावना वासना में डूबी थी ‘वाह रे स्वार्थी लड़कों.. तुम लोगों के लिए तीन चूत.. और हमारे लिए दो ही लौड़े..’
तो मैंने चूत में लंड जोर से पेलते हुए कहा- तुम्हारे लिए भी बहुत से लंड ला देंगे रानी..
तभी ‘ओओहहह.. मेरे राजा.. लंडों की बात सुनकर मेरी चूत बह गई रेरर..’ कहते हुए भावना झड़ने लगी।
पर अभी मेरा तो हुआ नहीं था.. तो मैंने धक्के और तेज कर दिए।
चूंकि भावना झड़ गई थी इसलिए अब उसे दर्द होने लगा ‘बस संदीप.. मेरी चूत फट जाएगी यार..’
मेरी आवाज भी कांप रही थी- ललेए ना.. मादरचोदीईई.. अब औररर चुदवाओ ना.. भोसड़ी वाली.. ले.. उउहहह ओहहहह ईईईई हिस्स्..’
यह कहते हुए मैंने भावना को और रगड़ कर चोदा। भावना की हालत खराब हो गई थी।
तभी मैंने भावना को बैठने कहा और कांपते हुए उसके मुँह में अपना लावा उगल दिया.. उसने सारी मलाई चाट ली।
तभी वैभव ने भावना को उठा कर बिस्तर पर पटक दिया और अपने फिर खड़े हो चुके लंड से बहुत देर तक भावना को चोदा। भावना अब ज्यादा कुछ बोल भी नहीं पा रही थी।
इस तरह की चुदाई से भावना कई बार झड़ी और उसका शरीर भी दुखने लगा था। बड़ी मुश्किल से वैभव का पानी निकला और हम थक कर ऐसे ही नंगे लेट हुए बात करने लगे।
‘क्यों भावना कैसा लगा?’
भावना ने शरमा कर ‘अच्छा लगा..’ कहा और मेरे सीने में मुँह छुपा लिया।
मैंने कहा- वैसे वैभव ने सामूहिक चुदाई की बात अच्छी कही.. सच में खुल कर चुदाई करने का मजा ही अलग होता है। तुम तो राजी हो ना?
मैंने भावना की ठोड़ी पकड़ कर उसका चेहरा देखा तो भावना ने पलकें झुका लीं।
मैंने वैभव से कहा- क्यों यार.. ये सब कैसे होगा और कहाँ होगा?
भावना ने कहा- मैं कुछ कहूँ?
मैंने और वैभव ने एक साथ ‘हाँ’ कहा।
भावना ने बताया- अगले महीने मैं घर में तीन दिनों के लिए अकेली रहूँगी.. उसी समय हम प्लानिंग कर सकते हैं। हम लोग काव्या और निशा को सामूहिक चुदाई के लिए राजी कर ही सकते हैं।
वैभव ने तुरंत पूछा- तो क्या संदीप ने काव्या और निशा को भी पहले चोदा है?
मैंने जवाब दिया- निशा को नहीं कमीने.. सिर्फ काव्या को चोदा है और मैं भी यही सोच रहा हूँ कि निशा कैसे मानेगी?
तो भावना ने कहा- उसके लिए पहले उसके ब्वायफ्रेंड को पटाना होगा। निशा का एक लड़के के साथ अफेयर पिछले एक साल से है.. पर दोनों चाह कर भी चुदाई नहीं कर पाए हैं। दोनों आगे बढ़ने की हिम्मत ही नहीं कर पा रहे हैं। क्यों ना हम उन दोनों को राजी कर लें। उनका काम भी हो जाएगा और हमारा भी काम बन जाएगा।
मैंने कहा- आइडिया तो अच्छा है.. एक काम करते हैं.. तुम और काव्या मिल कर निशा को मनाओ और इधर मैं और वैभव मिल कर उसके ब्वायफ्रेंड को मना लेंगे। क्यों वैभव ठीक कहा ना मैंने?’
वैभव- हाँ.. हाँ.. बिल्कुल.. उस कमीने को तीन चूतें एक साथ चोदने को मिलेंगी.. तो मना थोड़ी न करेगा भोसड़ी का।
अब हमने उसका नाम पता पूछा, उसका नाम सनत था और वो दूसरे कॉलेज में पढ़ता था।
‘पर एक प्राब्लम है..’ भावना ने कहा।
प्रॉब्लम की सुन कर हम सब ठंडे पड़ गए।
‘क्या हुआ जान?’
भावना ने बताया- मेरे घर पर एक चौकीदार तैनात रहता है.. उसके रहते ये सब नहीं हो पाएगा।
यह सुनते ही मुझे झटका लगा.. पर वैभव जोर से हँसने लगा और बोला- अभी कुछ देर पहले तुम ही कह रही थी ना कि बस दो लौड़े.. अब देखो कैसे चार लौड़े हो गए।
भावना ने कहा- क्या मतलब?
तो वैभव ने कहा- मैं, संदीप और सनत करके तीन और अब उस चौकीदार को भी शामिल कर लेंगे.. हो गए ना चार!
भावना ने कहा- साले, मैं अपने चौकीदार से चुदूँगी? मैं इतना नहीं गिर सकती।
वैभव ने कहा- तुम मत चुदना.. उसके लिए तो दो और चूतें हैं ना.. तुम क्यों चिंता करती हो रानी और उसे पटाने की जिम्मेदारी भी हमारी.. ओके!
हम सब हँसने लगे।
अब हम तीनों अपने सपने को सच करने के लिए काम में जुट गए। वैभव ने सनत से दोस्ती कर ली और उसे कामुक वीडियो दिखाने लगा और सामूहिक चुदाई की कहानी भी पढ़ा कर सामूहिक चुदाई के लिए उकसाने लगा।
मैं भी किसी-किसी बहाने भावना के घर जाने लगा और जब भी जाता चौकीदार से बातचीत करके ही आता। अब उसके साथ खुल्ला हँसी-मजाक भी होने लगा था। चौकीदार का नाम चरण था मैं उसे प्यार से कालीचरण पुकारने लगा।
काली चरण काले रंग का तंदरुस्त शादीशुदा अधेड़ उम्र का आदमी था.. पर उसका परिवार गांव में रहता था। वो बेचारा शहर में अकेले ही झक मार रहा था। उसकी उम्र 38 की रही होगी.. पर अभी भी कड़ियल जवान मर्द ही दिखता था।
उसका चेहरा इतना बुरा भी नहीं था। वो कभी-कभी अपनी अंतरंग बातें भी मुझे बताने लगा। वो समझ चुका था कि मेरा और भावना का चक्कर चल रहा है। कुल मिला कर कहा जाए कि काली चरण मेरे पाले में आ चुका था।
अब निशा को पटाने की देर थी। हमारी प्लानिंग वाली तारीख में अब दो ही दिन बाकी थे।
मैंने भावना से पूछा- क्या हुआ निशा मानी कि नहीं?
भावना ने कहा- अभी मैं उसके ही घर जा रही हूँ.. आज बात करके ही आऊँगी.. वैसे मैंने काव्या को बता दिया है और वह राजी भी है। वो भी निशा को पटाने में मेरी मदद करेगी।
मैंने कहा- चलो अच्छी बात है.. पर आज बात कर ही लो।
भावना चली गई और रात को मुझे उसने फोन किया- यार बहुत मेहनत लगी.. पर हमने उसे राजी कर ही लिया।
मैं खुशी से झूम उठा और कहा- थकी हुई तो लग रही हो.. हमें भी तो बताओ क्या मेहनत करनी पड़ी?
उसने कहा- चुदाई का बिल्कुल अनुभव नहीं था और बिना कुछ जाने वो राजी कैसे होती.. इसलिए सबसे पहले हमने उसको चुदाई करना सिखाया.. चुदाई के बारे में बताया। जब उसकी उत्सुकता बढ़ाई.. तब जाकर वो मानी।
मैंने फिर दोहराया- चुदाई करना कैसे सिखाया?
भावना थोड़ा शरमा कर बोली- संदीप तुम भी ना सब कुछ मत पूछा करो.. सिर्फ इतना जान लो कि हमारी प्लानिंग को सफल बनाने के लिए मैंने और काव्या ने उसके सामने लेस्बियन सेक्स करना शुरू किया और उसे भी उसमें जबरदस्ती शामिल किया। फिर हम लोगों ने उसे बताया कि सनत भी तैयार है और जब उसने चुदाई का ऐसा स्वाद चखा.. तब उसने झिझकते हुए ‘हाँ’ कह दिया है।
मैंने कहा- यार पूरी घटना अच्छे से बताओ ना.. तुम्हारी अधूरी बात सुन कर ही मेरा लंड खड़ा हो गया है।
उसने कहा- नहीं.. मैं नहीं बताऊँगी.. पर कुतिया को रगड़ कर चोदना.. कमीनी को जिन्दगी भर याद रहना चाहिए.. साली बहुत भाव खा रही थी।
मैंने कहा- हाँ जानेमन..
फिर कुछ देर भावना से फोन सेक्स करके अपना पानी झाड़ा तब खड़े लंड को चैन पड़ा।
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मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
( Marathi Sex Stories )...
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- rangila
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- Joined: 17 Aug 2015 16:50
Re: रोंये वाली मखमली चूत
अगले दिन मैंने काली चरण और वैभव ने सनत से लंबी बातें करते हुए सामूहिक चुदाई की खुलकर बातें की.. और उसे मना भी लिया।
इस तरह अब चार लौड़े और तीन चूत एक साथ चुदाई करने के लिए तैयार हो गए थे।
हम सबने चुदाई वाले दिन अलग-अलग समय में भावना के घर जाना तय किया था। हमने छोटी सी पार्टी की तैयारी भी की थी।
मैंने कहा था कि सबसे पहले मैं जाऊँगा फिर जब मैं फोन करूँ तब सब आते जाना।
आखिर वो शाम भी आ गई और मैं सबसे पहले भावना के घर पहुंचा।
गेट पर ही मैंने आंख मारते हुए काली चरण से कहा- क्यों काली चरण लौड़ा तैयार तो है ना?
तो उसने मुझे गुस्से से देखा और कहा- अब ये सब मैं नहीं होने दूँगा।
मैंने कहा- तुम्हारा दिमाग खराब है सारी तैयारियों के बाद तू कैसे मुकर सकता है। तुम्हें भी तो ऐसा मौका फिर नहीं मिलने वाला और अचानक ऐसा क्या हो गया कि तू ऐसी बातें कर रहा है?
उसने कहा- जब आज हम सामूहिक चुदाई करने ही वाले हैं.. तो मैं पहले ही एक बार भावना को चोद लेता तो क्या बिगड़ जाता?
मैंने कहा- मैं समझा नहीं.. मुझे पूरा समझाओ।
तो उसने बताया- मालिक मालकिन के जाने के बाद मैं भावना के पास गया और कहा कि भावना मैंने आज तक तुम्हें इस नजर से नहीं देखा था.. पर जबसे सामूहिक चुदाई की बातें हुई हैं, मेरा लौड़ा काबू में नहीं है। ऐसे भी मैं अपनी बीवी से दूर रहता हूँ.. तो मुझे अभी एक बार चोदने दो ना.. और जैसे ही उसे छूने लगा.. उसने ‘अपनी औकात में रहो..’ कहके मुझ पर हाथ उठा दिया। अब तुम ही बताओ कि मैं अब ये सब कैसे होने दे सकता हूँ?
मैंने मामले को समझ कर गहरी सांस ली और कहा- देख भाई कालीचरण.. लौड़ा तो हमारा भी बहुत तड़प रहा है.. पर हम लोग सही समय आने का इंतजार कर रहे हैं। और रही बात औकात की.. तो तुम आज भावना को कुतिया बना कर चोदना और उसे उसकी औकात दिखा देना। तब तक के लिए गुस्सा थूक दो।
उसने कुछ कहना चाहा, पर मैंने बीच में टोक कर कहा- अब तुम कुछ मत सोचो.. बस अपने लौड़े को तैयार रखो दो और दो पटाखा चूतें और भी तो आ रही हैं तुम्हारे लौड़े पर नाचने के लिए।
इस बात पर हम दोनों हँस पड़े।
मैंने कहा- जब सब आ जाएं.. फिर आखिर में तुम भी दरवाजा अच्छे से बंद करके आ जाना।
मैं अन्दर आ गया।
अन्दर भावना भी गुस्से में थी। वो कुछ कहने ही वाली थी कि उससे पहले मैंने उसे बांहों में भर लिया और लंबे चुम्बन के बाद कहा- मुझे कालीचरण ने सब बता दिया है और मैंने उसे मना भी लिया है। तुम चिंता मत करो वो तुमसे गलत व्यवहार नहीं करेगा।
उसने ‘ओके..’ कहा और फिर कहा- अब क्या करना है जल्दी बताओ?
मैंने कहा- तुम कुछ मत करो.. सिर्फ पानी की बहुत सारी बोतलें और गिलास निकाल लो.. और फ्रीज से बर्फ कोल्डड्रिंक वगैरह निकाल लो और बस और चुदने के लिए तैयार हो जाओ।
भावना ने ‘जो आज्ञा मेरे राजा जी..’ कहा और मुस्कुरा कर काम करने लगी।
मैं सभी को बारी-बारी फोन लगाने लगा। पर मेरी नजर भावना पर थी। भावना का ये रूप मैंने कभी नहीं देखा था। आज उसने एक पतली सी हल्के हरे रंग की नाईटी पहनी थी.. जो जाँघों तक खुली हुई थी। उसके बाल खुले हुए थे। होंठों पर गुलाबी लिपिस्टिक.. ब्रा-पेंटी का रंग काला था.. जिसमें भावना के बड़े-बड़े कोमल मनमोहक चूची कैद थीं। उसकी चूचियां नाईटी के ऊपर से ही दिख रही थीं। उम्म्ह… अहह… हय… याह… मेरा लौड़ा तो खड़ा ही हो चुका था।
मैंने फोन पर ही सबको अलग-अलग काम बता दिया था। काव्या और निशा को अपने घर से सब्जी रोटी और चावल बना कर लाने को कहा था, वैभव और सनत को मिक्चर पापड़ सलाद और आईसक्रीम ले कर आने को कहा था।
मैंने सबको पहले ही बता दिया था कि जिस किसी की नशे की आदत हो वो बाहर से ही नशा करके आए।
काव्या और निशा आठ बजे तक पहुंचे। फिर साढ़े आठ तक वैभव सनत को लेकर पहुंच गया।
हम सब भावना के घर के ऊपर वाले हॉल में बैठे थे। चूंकि इतने लोगों की चुदाई एक साथ किसी भी कमरे में नहीं हो सकती थी.. इसलिए मैंने हॉल में ही चुदाई का कार्यक्रम तय किया था।
उधर काली चरण भी दरवाजा अच्छे से बंद करके हमारे पास आ गया.. पर वो और भावना एक-दूसरे से नजरें नहीं मिला रहे थे।
मैं तो आज के सामूहिक चुदाई के बारे में सब जानता था। पर सभी के मन में एक ही सवाल था कि शुरूआत कैसे होगी?
सबकी परेशानी दूर करने के लिए मैंने कहा- सबसे पहले हमें अपना-अपना परिचय देना चाहिए ताकि जान-पहचान हो सके.. तभी चुदाई में मजा आएगा।
‘चुदाई..’ शब्द सुनते ही सब इधर-उधर देखने लगे, सनत और निशा एक-दूसरे को घूर रहे थे। वैसे सभी एक-दूसरे को चोर निगाहों से देख रहे थे।
सबने अपना-अपना परिचय दिया।
फिर भी माहौल शांत ही था.. तो मैंने भावना से कहा- एक तकिया ले आओ.. आज हम लोग एक खेल खेलेंगे।
भावना ने तकिया लाकर दिया और पूछने लगी- कौन सा खेल?
मैंने कहा- हम ये तकिया एक गाने के साथ दूसरे को देने वाला खेल खेलेंगे.. जब गाना रुकेगा तो ये तकिया जिसके पास भी रहेगा.. हम उससे जो बोलेंगे वो उसे करना पड़ेगा।
अब पहली बार सनत ने कहा- जो बोलेंगे वो नहीं.. उसको सीधे-सीधे अपने शरीर का एक कपड़ा हटाना पड़ेगा।
वैभव ने कहा- एक कपड़ा ही क्यों.. पूरा नंगा होना पड़ेगा.. पूरी रात इसी खेल में निकालेंगे.. तो चुदाई का खेल कब खेलेंगे?
इतना सुनते ही भावना ने अपनी नाइटी को एक झटके में उतार दिया और बोली- लो मैंने तो बिना खेल के ही उतार दिया।
अब सब चुप हो गए। सब कामुक नजरों से दूध सी गोरी भावना का संगमरमरी शरीर काले रंग की ब्रा-पेंटी में देखते ही एकदम गरमा गए।
भावना ने काव्या से कहा- चल उठ कुतिया.. तू अपनी चूत चुदाने के लिए मरी जा रही थी न और नौटंकी ऐसे कर रही है मानो सती सावित्री हो।
यह कहते हुए भावना ने उसके नीले दुपट्टे को अपने हाथों से खींच दिया। अब काव्या ने भी हिम्मत दिखाते हुए अपनी कसी हुई पीले रंग की कुर्ती ऊपर उठाई।
तभी भावना ने उसके पीले ही रंग की ढीली पजामी का नाड़ा खींच दिया। एक ही झटके में काव्या पूरे कपड़ों से ब्रा-पेंटी में आ गई।
काव्या ने गुलाबी रंग की सैट वाली ब्रा-पेंटी पहन रखी थी। अब काव्या का शरीर भरा हुआ लग रहा था। दूधिया रंग का चिकना शरीर सबके लौड़ों को सलामी देने पर मजबूर कर रहा था।
काव्या की पेंटी चूत से चिपक गई थी और सबकी नजर उसकी चिकनी खूबसूरत टाँगों से होते हुए चूत तक जा ही रही थी क्योंकि पेंटी में से उसकी कयामत भरी चूत स्पष्ट उभरी हुई झलक रही थी।
वैभव ने तुरंत कहा- मैं काव्या को ही चोदूँगा।
तभी सनत बोल बैठा- और मैं भावना को चोदूंगा।
इतना सुनते ही निशा उठी और रोते हुए बोली- मैं तुम्हारे लिए आई थी सनत.. अब मैं यहाँ क्यों रुकूँ.. मैं जा रही हूँ।
वो जाने लगी.. मैंने तुरंत उसे जाने से रोका और कहा- यहाँ हम सामूहिक चुदाई करने ही तो आए हैं.. चोदने दो उसे जिसे चोदना है.. तुम भी उसके सामने दूसरे से चुदवा कर उसे जला सकती हो।
उसने कहा- तुम ठीक कहते हो।
जब मैंने निशा को रोकने के लिए पकड़ा तो मुझे अहसास हुआ कि निशा ब्रा नहीं पहने है।
निशा यहाँ जीन्स टी-शर्ट में आई थी। निशा दोनों लड़कियों से कम गोरी थी.. पर उसका शरीर गठीला था। उसे छूते ही मैं समझ गया कि सबसे अच्छी चोदने लायक माल यही है।
निशा वापस अपनी जगह पर आई तो सनत ने माफी मांगनी चाही पर निशा ने कहा- जाओ अपनी भावना के पास.. अब देखना मैं कैसे चुदवाती हूँ।
अब सबके सामने निशा का नया रूप आया.. वो एकदम से बेबाक और बेशर्म हो गई थी। उसने अपनी टी-शर्ट उतार कर सनत के मुँह पर दे मारी।
अरे तेरी.. सच में निशा ब्रा नहीं पहनी थी।
वो अपने भरे हुए कसे उरोजों को अपने ही हाथों मसलने लगी और दांतों से होंठ काटते हुए बोली- पहले मुझे सब अपना लंड दिखाओ.. जिसका बड़ा होगा मैं उसी से अपनी सील तुड़वाऊँगी।
इतना सुनते ही हम लड़कों ने एक झटके में अपने कपड़े फेंक दिए। सबका लौड़ा तना हुआ था.. पर निशा सनत के पास गई और बोली- सनत, जाओ अपनी लुल्ली अपनी गांड में डाल लो.. मुझे नहीं चुदना तेरे इस पिंचू से लंड से..
वो मेरे पास आकर मुझे चूमने लगी।
निशा को चूमते हुए मेरी नजर कालीचरण के लौड़े पर गई तो मैंने निशा के कान में धीरे से कहा- निशा तुमने कहा है तुम सबसे बड़े लौड़े से अपना सील तुड़वाओगी और यहाँ तो सबसे बड़ा लौड़ा कालीचरण का है.. शायद किसी गधे के लंड के नाप का होगा अगर इससे सील तुड़वाओगी तो तुम तो मर ही जाओगी।
निशा ने कहा- हाँ संदीप मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि किसी का लौड़ा इतना बड़ा भी होता होगा। अब मैं क्या करूँ?
मैंने कहा- तुम फिक्र मत करो मैं कुछ करता हूँ।
फिर मैंने सबसे कहा- हम लोग यहाँ चार लौड़े और तीन चूत हैं। वैभव और सनत ने अपनी पसंद भी जाहिर कर दी है। इसलिए अब निशा को मैं और कालीचरण मिल कर चोदेंगे और पहले राउंड के बाद कोई भी जोड़ी बदल कर या एक साथ मिलकर चुदाई कर सकता है।
सबने ‘हाँ’ कहा।
फिर मैंने कहा- अभी लड़कियों के शरीर में कपड़े बाकी है.. पर उन्हें हम नहीं निकालेंगे। वे अपने कपड़े स्वंय निकालेंगी.. पर थोड़े अलग सेक्सी से अंदाज से।
सबने मेरी ओर देखा तो मैंने कहा- रूको अभी बताता हूँ।
फिर मैंने पास रखे लकड़ी की एक टेबल को खींचा और कहा- सभी लड़कियां एक-एक करके इस पर चढ़ कर अपने जिस्म की नुमाइश करते हुए शरीर से कपड़ा निकालेंगी.. बाकी सब नीचे से देख कर ताली बजाएंगे।
सबसे पहले भावना ने काव्या को जाने कहा.. काव्या टेबल पर चढ़ गई।
जैसा कि मैंने पहले बताया था कि काव्या की हाईट अच्छी है और अब दवाई की मालिश से कूल्हे और उरोज भी सुडौल और आकर्षक हो गए थे। उसकी सुन्दरता भी अप्सराओं जैसी है।
कुल मिला कर हम नीचे खड़े होकर एक परी का नंगी होने का इंतजार कर रहे थे।
काव्या टेबल की चारों दिशाओं में अलग-अलग अंदाज से घूमी। अपने दोनों हाथों को उठाकर बाल को और बिखराया बिल्कुल वैसे ही जैसे मॉडल्स करती हैं। उसकी बगलों में बिल्कुल भी बाल नहीं थे.. शायद वो तैयारी करके आई थी।
अब वो हमारी ओर मुड़कर झुकी और हम सबको ब्रा के भीतर से ही अपने भरे हुए सुंदर कोमल चूचों के दर्शन कराए।
फिर वैसे ही झुकी रह कर अपने हाथ पीछे की ओर ले जाकर उसने अपनी पेंटी नीचे सरका दी और अपने बिखरे बालों से चेहरे को ढक कर खड़ी हो गई।
मैंने तुरंत पास खड़ी निशा को नीचे बैठाया और लौड़ा उसके मुँह में डाल दिया.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… क्योंकि काव्या का ये अंदाज देख कर अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था।
काव्या ने अब हमारी ओर पीठ की तब तक काली चरण ने निशा के हाथ में लौड़ा पकड़ा दिया।
उधर वैभव और सनत भावना से लौड़ा चूसवाने लगे।
इस तरह अब चार लौड़े और तीन चूत एक साथ चुदाई करने के लिए तैयार हो गए थे।
हम सबने चुदाई वाले दिन अलग-अलग समय में भावना के घर जाना तय किया था। हमने छोटी सी पार्टी की तैयारी भी की थी।
मैंने कहा था कि सबसे पहले मैं जाऊँगा फिर जब मैं फोन करूँ तब सब आते जाना।
आखिर वो शाम भी आ गई और मैं सबसे पहले भावना के घर पहुंचा।
गेट पर ही मैंने आंख मारते हुए काली चरण से कहा- क्यों काली चरण लौड़ा तैयार तो है ना?
तो उसने मुझे गुस्से से देखा और कहा- अब ये सब मैं नहीं होने दूँगा।
मैंने कहा- तुम्हारा दिमाग खराब है सारी तैयारियों के बाद तू कैसे मुकर सकता है। तुम्हें भी तो ऐसा मौका फिर नहीं मिलने वाला और अचानक ऐसा क्या हो गया कि तू ऐसी बातें कर रहा है?
उसने कहा- जब आज हम सामूहिक चुदाई करने ही वाले हैं.. तो मैं पहले ही एक बार भावना को चोद लेता तो क्या बिगड़ जाता?
मैंने कहा- मैं समझा नहीं.. मुझे पूरा समझाओ।
तो उसने बताया- मालिक मालकिन के जाने के बाद मैं भावना के पास गया और कहा कि भावना मैंने आज तक तुम्हें इस नजर से नहीं देखा था.. पर जबसे सामूहिक चुदाई की बातें हुई हैं, मेरा लौड़ा काबू में नहीं है। ऐसे भी मैं अपनी बीवी से दूर रहता हूँ.. तो मुझे अभी एक बार चोदने दो ना.. और जैसे ही उसे छूने लगा.. उसने ‘अपनी औकात में रहो..’ कहके मुझ पर हाथ उठा दिया। अब तुम ही बताओ कि मैं अब ये सब कैसे होने दे सकता हूँ?
मैंने मामले को समझ कर गहरी सांस ली और कहा- देख भाई कालीचरण.. लौड़ा तो हमारा भी बहुत तड़प रहा है.. पर हम लोग सही समय आने का इंतजार कर रहे हैं। और रही बात औकात की.. तो तुम आज भावना को कुतिया बना कर चोदना और उसे उसकी औकात दिखा देना। तब तक के लिए गुस्सा थूक दो।
उसने कुछ कहना चाहा, पर मैंने बीच में टोक कर कहा- अब तुम कुछ मत सोचो.. बस अपने लौड़े को तैयार रखो दो और दो पटाखा चूतें और भी तो आ रही हैं तुम्हारे लौड़े पर नाचने के लिए।
इस बात पर हम दोनों हँस पड़े।
मैंने कहा- जब सब आ जाएं.. फिर आखिर में तुम भी दरवाजा अच्छे से बंद करके आ जाना।
मैं अन्दर आ गया।
अन्दर भावना भी गुस्से में थी। वो कुछ कहने ही वाली थी कि उससे पहले मैंने उसे बांहों में भर लिया और लंबे चुम्बन के बाद कहा- मुझे कालीचरण ने सब बता दिया है और मैंने उसे मना भी लिया है। तुम चिंता मत करो वो तुमसे गलत व्यवहार नहीं करेगा।
उसने ‘ओके..’ कहा और फिर कहा- अब क्या करना है जल्दी बताओ?
मैंने कहा- तुम कुछ मत करो.. सिर्फ पानी की बहुत सारी बोतलें और गिलास निकाल लो.. और फ्रीज से बर्फ कोल्डड्रिंक वगैरह निकाल लो और बस और चुदने के लिए तैयार हो जाओ।
भावना ने ‘जो आज्ञा मेरे राजा जी..’ कहा और मुस्कुरा कर काम करने लगी।
मैं सभी को बारी-बारी फोन लगाने लगा। पर मेरी नजर भावना पर थी। भावना का ये रूप मैंने कभी नहीं देखा था। आज उसने एक पतली सी हल्के हरे रंग की नाईटी पहनी थी.. जो जाँघों तक खुली हुई थी। उसके बाल खुले हुए थे। होंठों पर गुलाबी लिपिस्टिक.. ब्रा-पेंटी का रंग काला था.. जिसमें भावना के बड़े-बड़े कोमल मनमोहक चूची कैद थीं। उसकी चूचियां नाईटी के ऊपर से ही दिख रही थीं। उम्म्ह… अहह… हय… याह… मेरा लौड़ा तो खड़ा ही हो चुका था।
मैंने फोन पर ही सबको अलग-अलग काम बता दिया था। काव्या और निशा को अपने घर से सब्जी रोटी और चावल बना कर लाने को कहा था, वैभव और सनत को मिक्चर पापड़ सलाद और आईसक्रीम ले कर आने को कहा था।
मैंने सबको पहले ही बता दिया था कि जिस किसी की नशे की आदत हो वो बाहर से ही नशा करके आए।
काव्या और निशा आठ बजे तक पहुंचे। फिर साढ़े आठ तक वैभव सनत को लेकर पहुंच गया।
हम सब भावना के घर के ऊपर वाले हॉल में बैठे थे। चूंकि इतने लोगों की चुदाई एक साथ किसी भी कमरे में नहीं हो सकती थी.. इसलिए मैंने हॉल में ही चुदाई का कार्यक्रम तय किया था।
उधर काली चरण भी दरवाजा अच्छे से बंद करके हमारे पास आ गया.. पर वो और भावना एक-दूसरे से नजरें नहीं मिला रहे थे।
मैं तो आज के सामूहिक चुदाई के बारे में सब जानता था। पर सभी के मन में एक ही सवाल था कि शुरूआत कैसे होगी?
सबकी परेशानी दूर करने के लिए मैंने कहा- सबसे पहले हमें अपना-अपना परिचय देना चाहिए ताकि जान-पहचान हो सके.. तभी चुदाई में मजा आएगा।
‘चुदाई..’ शब्द सुनते ही सब इधर-उधर देखने लगे, सनत और निशा एक-दूसरे को घूर रहे थे। वैसे सभी एक-दूसरे को चोर निगाहों से देख रहे थे।
सबने अपना-अपना परिचय दिया।
फिर भी माहौल शांत ही था.. तो मैंने भावना से कहा- एक तकिया ले आओ.. आज हम लोग एक खेल खेलेंगे।
भावना ने तकिया लाकर दिया और पूछने लगी- कौन सा खेल?
मैंने कहा- हम ये तकिया एक गाने के साथ दूसरे को देने वाला खेल खेलेंगे.. जब गाना रुकेगा तो ये तकिया जिसके पास भी रहेगा.. हम उससे जो बोलेंगे वो उसे करना पड़ेगा।
अब पहली बार सनत ने कहा- जो बोलेंगे वो नहीं.. उसको सीधे-सीधे अपने शरीर का एक कपड़ा हटाना पड़ेगा।
वैभव ने कहा- एक कपड़ा ही क्यों.. पूरा नंगा होना पड़ेगा.. पूरी रात इसी खेल में निकालेंगे.. तो चुदाई का खेल कब खेलेंगे?
इतना सुनते ही भावना ने अपनी नाइटी को एक झटके में उतार दिया और बोली- लो मैंने तो बिना खेल के ही उतार दिया।
अब सब चुप हो गए। सब कामुक नजरों से दूध सी गोरी भावना का संगमरमरी शरीर काले रंग की ब्रा-पेंटी में देखते ही एकदम गरमा गए।
भावना ने काव्या से कहा- चल उठ कुतिया.. तू अपनी चूत चुदाने के लिए मरी जा रही थी न और नौटंकी ऐसे कर रही है मानो सती सावित्री हो।
यह कहते हुए भावना ने उसके नीले दुपट्टे को अपने हाथों से खींच दिया। अब काव्या ने भी हिम्मत दिखाते हुए अपनी कसी हुई पीले रंग की कुर्ती ऊपर उठाई।
तभी भावना ने उसके पीले ही रंग की ढीली पजामी का नाड़ा खींच दिया। एक ही झटके में काव्या पूरे कपड़ों से ब्रा-पेंटी में आ गई।
काव्या ने गुलाबी रंग की सैट वाली ब्रा-पेंटी पहन रखी थी। अब काव्या का शरीर भरा हुआ लग रहा था। दूधिया रंग का चिकना शरीर सबके लौड़ों को सलामी देने पर मजबूर कर रहा था।
काव्या की पेंटी चूत से चिपक गई थी और सबकी नजर उसकी चिकनी खूबसूरत टाँगों से होते हुए चूत तक जा ही रही थी क्योंकि पेंटी में से उसकी कयामत भरी चूत स्पष्ट उभरी हुई झलक रही थी।
वैभव ने तुरंत कहा- मैं काव्या को ही चोदूँगा।
तभी सनत बोल बैठा- और मैं भावना को चोदूंगा।
इतना सुनते ही निशा उठी और रोते हुए बोली- मैं तुम्हारे लिए आई थी सनत.. अब मैं यहाँ क्यों रुकूँ.. मैं जा रही हूँ।
वो जाने लगी.. मैंने तुरंत उसे जाने से रोका और कहा- यहाँ हम सामूहिक चुदाई करने ही तो आए हैं.. चोदने दो उसे जिसे चोदना है.. तुम भी उसके सामने दूसरे से चुदवा कर उसे जला सकती हो।
उसने कहा- तुम ठीक कहते हो।
जब मैंने निशा को रोकने के लिए पकड़ा तो मुझे अहसास हुआ कि निशा ब्रा नहीं पहने है।
निशा यहाँ जीन्स टी-शर्ट में आई थी। निशा दोनों लड़कियों से कम गोरी थी.. पर उसका शरीर गठीला था। उसे छूते ही मैं समझ गया कि सबसे अच्छी चोदने लायक माल यही है।
निशा वापस अपनी जगह पर आई तो सनत ने माफी मांगनी चाही पर निशा ने कहा- जाओ अपनी भावना के पास.. अब देखना मैं कैसे चुदवाती हूँ।
अब सबके सामने निशा का नया रूप आया.. वो एकदम से बेबाक और बेशर्म हो गई थी। उसने अपनी टी-शर्ट उतार कर सनत के मुँह पर दे मारी।
अरे तेरी.. सच में निशा ब्रा नहीं पहनी थी।
वो अपने भरे हुए कसे उरोजों को अपने ही हाथों मसलने लगी और दांतों से होंठ काटते हुए बोली- पहले मुझे सब अपना लंड दिखाओ.. जिसका बड़ा होगा मैं उसी से अपनी सील तुड़वाऊँगी।
इतना सुनते ही हम लड़कों ने एक झटके में अपने कपड़े फेंक दिए। सबका लौड़ा तना हुआ था.. पर निशा सनत के पास गई और बोली- सनत, जाओ अपनी लुल्ली अपनी गांड में डाल लो.. मुझे नहीं चुदना तेरे इस पिंचू से लंड से..
वो मेरे पास आकर मुझे चूमने लगी।
निशा को चूमते हुए मेरी नजर कालीचरण के लौड़े पर गई तो मैंने निशा के कान में धीरे से कहा- निशा तुमने कहा है तुम सबसे बड़े लौड़े से अपना सील तुड़वाओगी और यहाँ तो सबसे बड़ा लौड़ा कालीचरण का है.. शायद किसी गधे के लंड के नाप का होगा अगर इससे सील तुड़वाओगी तो तुम तो मर ही जाओगी।
निशा ने कहा- हाँ संदीप मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि किसी का लौड़ा इतना बड़ा भी होता होगा। अब मैं क्या करूँ?
मैंने कहा- तुम फिक्र मत करो मैं कुछ करता हूँ।
फिर मैंने सबसे कहा- हम लोग यहाँ चार लौड़े और तीन चूत हैं। वैभव और सनत ने अपनी पसंद भी जाहिर कर दी है। इसलिए अब निशा को मैं और कालीचरण मिल कर चोदेंगे और पहले राउंड के बाद कोई भी जोड़ी बदल कर या एक साथ मिलकर चुदाई कर सकता है।
सबने ‘हाँ’ कहा।
फिर मैंने कहा- अभी लड़कियों के शरीर में कपड़े बाकी है.. पर उन्हें हम नहीं निकालेंगे। वे अपने कपड़े स्वंय निकालेंगी.. पर थोड़े अलग सेक्सी से अंदाज से।
सबने मेरी ओर देखा तो मैंने कहा- रूको अभी बताता हूँ।
फिर मैंने पास रखे लकड़ी की एक टेबल को खींचा और कहा- सभी लड़कियां एक-एक करके इस पर चढ़ कर अपने जिस्म की नुमाइश करते हुए शरीर से कपड़ा निकालेंगी.. बाकी सब नीचे से देख कर ताली बजाएंगे।
सबसे पहले भावना ने काव्या को जाने कहा.. काव्या टेबल पर चढ़ गई।
जैसा कि मैंने पहले बताया था कि काव्या की हाईट अच्छी है और अब दवाई की मालिश से कूल्हे और उरोज भी सुडौल और आकर्षक हो गए थे। उसकी सुन्दरता भी अप्सराओं जैसी है।
कुल मिला कर हम नीचे खड़े होकर एक परी का नंगी होने का इंतजार कर रहे थे।
काव्या टेबल की चारों दिशाओं में अलग-अलग अंदाज से घूमी। अपने दोनों हाथों को उठाकर बाल को और बिखराया बिल्कुल वैसे ही जैसे मॉडल्स करती हैं। उसकी बगलों में बिल्कुल भी बाल नहीं थे.. शायद वो तैयारी करके आई थी।
अब वो हमारी ओर मुड़कर झुकी और हम सबको ब्रा के भीतर से ही अपने भरे हुए सुंदर कोमल चूचों के दर्शन कराए।
फिर वैसे ही झुकी रह कर अपने हाथ पीछे की ओर ले जाकर उसने अपनी पेंटी नीचे सरका दी और अपने बिखरे बालों से चेहरे को ढक कर खड़ी हो गई।
मैंने तुरंत पास खड़ी निशा को नीचे बैठाया और लौड़ा उसके मुँह में डाल दिया.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… क्योंकि काव्या का ये अंदाज देख कर अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था।
काव्या ने अब हमारी ओर पीठ की तब तक काली चरण ने निशा के हाथ में लौड़ा पकड़ा दिया।
उधर वैभव और सनत भावना से लौड़ा चूसवाने लगे।
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मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
( Marathi Sex Stories )...
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