रहस्य के बीच complete
- Rohit Kapoor
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Re: रहस्य के बीच
"चेले मियां, अगर जासूस होकर भूतों तथा जादू पर बिश्वास करोगे तो बन लिए जासूस I”
“मेरा बिश्वास जादू के प्रति अटूट है ।"
"एक बात का जवाब दोगे?”
“पूछो ?"
"जब पाकिस्तानियों ने तुम लोगों पर इतनी बर्बरताएं कीं, अत्याचार किए, उस समय तुम्हारा काला जादू कहां चला गया था-अपने काले जादू से ही पाक की सेना को उड़ा क्यों नहीं दिया था?"
"वह बात और थी, गुरू ।"
"तुम काले जादू का नाम लेकर अपनी कमजोरी क्रो दबाना चाहते हो I”
“बात यह नहीं, गुरु ।”
"अब तुम अपनी बोलती पर ढक्कन लगा लो ।" विजय ने कहा तथा यह कहकर कि वह कुछ देर में वापस आ रहा है, कमरे से बाहर निकल गया । रहमान अपने ढंग से इस कैस
के पहलुओं पर विचार कर रहा था ।
गैराज से कार निकालकर विजय सीधा गुप्त भवन तथा ब्लेक-ब्वाॅय के सामने कुर्सी पर बैठता हुआ बोला ।।
"सुनाओ प्यारे काले लडके ।"
"'सर, अभी रहमान क्रो भेजा तो नहीं?"
“नहीं-क्यों? ”
“सर, "बंगला सीकेट कौर' से संदेश भेजा गया है कि रहमान को भेज दिया जाए I”
"कह देना…अभी कुछ दिन और रहमान तुम्हारा मेहमान रहेगा ।"
“क्यों सर?”
"इसलिए कि हम श्मशानगढ़ जा रहे हैं I”
"श्मशानगढ़ ! "
"यस प्यारे!"
"लेकिन क्यो, सर?”
"सुना है आजकल वहां प्रेतात्माओं का बड़ा आतंक है I"
"उससे हमें क्या मतलब, सर?”
"कोई खास नहीं ।"
"तो फिर आप वहां क्यों जाना चाहते हैं?”
"सैर-सपाटा करने ।"
"लेकिन सर, क्या सैर-सपाटे को आपको श्मशानगढ ही नजर आया?”
"अपनी…अपनी पसंद है प्यारे काले लड़के I"
"नहीँ सर, मैं नहीं मान सकता, अवश्य वहां आप किसी विशेष काम से जा रहे हैं?"
"मियां चीफ़ दी ग्रेट !!"
"यस सर! ”
"आजकल तुम्हारी अकल के घोड़े हमारी बगल से होकर सरपट दोड़ रहे हैं ।”
"मैं मतलब नहीँ समझा, सर ।"
"मेरा मतलब हे, आजकल काफी होशियार होते जा रहे हो I"
"सर, आप ही की संगत का प्रभाव है सर ।"
"खैर 'प्रभाव' की साले की क्या मजाल जो न हो. . .वेसे असली माजरा यह है कि वहां से हमारे एक भूतपूर्व परम मित्र का पत्र आया है तथा उन मित्र महोदय ने हमसे प्रार्थना की है कि हम शीघातिशीघ्र श्मशानगढ़ में अपना मनहूस थोबड़ा ले जाएं तथा उन साली प्रेत आत्माओं का तीया-पांचा कर दे I"
"सर, क्या आप वास्तव में श्मशानगढ़ जाएंगे?"
"विचार तो कुछ ऐसा ही है चीफ़ मियां ।" विजय ने कहा तथा फिर सम्पूर्ण घटना विवरण सहित बता दी ।
सारी बातें सुनकर ब्लैक-ब्वाॅय बोला-“सर हो सकता है वहां वास्तव में प्रेत आत्माओं का चक्कर हो?"
"मियां चीफ़ दी बोगस, क्या तुम्हारा दिमाग मिट्टी के तेल में घुल गया है. . .अच्छे-खासे पढे-लिखे होकर प्रेत आत्माओं पर बिश्वास रखते हुए क्या तुम्हें जरा भी गैरत नहीं आई?"
“सर, आपको तो मालूम ही है कि आजकल के आधुनिक वैज्ञानिक भी प्रेत आत्माओं में कुछ सत्यता महसूस करने लगे हैं । वे अपने नए परीक्षणों में इस बात पर जोर दे रहे है कि मरने के बाद आखिर आत्मा का होता क्या है?. वह कहां जाती है. . . ये बात तो ठीक है कि अभी तक वैज्ञानिकों ने स्पष्ट रूप से यह स्वीकार नहीं किया है कि भूत-प्रेत कुछ होते भी हैं…लेकिन साथ ही यह बात भी है कि वे स्वीकार करते हैं कि वे आत्माएं जो अपने जीवन से तृप्त और संतुष्ट नहीं हो पाती वे अपने कार्य क्रो पूरा करने के लिए ब्रहांड मे भटकती रहती हैं ।"
"भाषण तो तुम किसी हद तक ठीक ही दे रहे हो प्यारे काले लडके ।"
"इसलिए सर, हो सकता है वहां कोई ऐसा ही चक्कर हो I”
“खैर प्यारे ये साली प्रेत आत्मा वाली बात हलक से नीचे उतरती तो है नहीं, लेकिन अगर ऐसा हुआ भी तो कोई चिंता नहीं है…हमारे साथ बंगाल के काले जादूगर "मेनड्रेक्र' रहमान की सूरत में जा रहे हैं-आत्माओँ का तीया-पांचा वह अपने तांत्रिक करिश्मे से कर देगा I”
"सर एक राय देना चाहता हूं I”
"दे डालो ।"
"क्यों ना आप अशरफ क्रो भी अपने साथ ले जाएं?"
“उनकी आवश्यकता नहीं है . . . । वहां कोई मैं बारात लेकर जाऊंगा? ”
"सर, मैं सिर्फ सुरक्षा के नाते कह रहा था ।”
"हमारा चेला और हम तो साली अपनी प्रेत आत्माओं का मी तीया-पांचा कर देगे ।"
"फिर भी सर, रहमान अभी कच्चा खिलाडी है I”
“मियां चीफ़ दी ग्रेट, वह साला बीस बरस का छोकरा किसी भी बात में कम नही हे । मानता हूं वह इस क्षेत्र का नया खिलाडी है लेकिन शायद तुम यह नहीं जानते कि चेला किसका है?. .जैसे ग्रेट जासूस का वह चेला हे वैसा ही ग्रेट वह स्वयं भी है । आज़ वह जासूसी के क्षेत्र में कच्चा अवश्य है लेकिन मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर वह मेरे साथ काम करता रहा तो एक दिन वह बड़े-बड़े जासूसों के नाक-कान अपनी जेब में रखकर घूमा करेगा ।"
"सर, अब आप अपने शागिर्द की जरूरत से ज्यादा तारीफ़ कर रहे हैं ।” ब्लैक…ब्बाय विजय पर व्यंग कसने वाले स्वर मेँ बोला I
"प्यारे काले लडके, हमारा चेला वक्त पर अपना परिचय स्वयं दे देगा ।"
"खैर सर, छोडो इन बातों को, मतलब यह कि आप सिर्फ रहमान के साथ श्मशानगढ़ जा रहे हैं?”
"निःसंदेह I”
“जैसी आपकी इच्छा I"
"और देखो मैं यह कहने आया था कि अगर बीच मेँ किसी कारणवश मुझसे सम्बंध स्थापित करने की आवश्यकता पड़े तो फ्लाई टू करना I"
"ओके सर ।" ब्लैक-ब्वाॅय ने कहा ।
"अच्छा प्यारे, चलते हैँ. . .प्रेत आत्माओं के बीच बैठकर हम कुछ झकझकियों का निर्माण करेगे और वापस आकर उन्हें तुम्हारी सेवा मे हाजिर करेंगे I" विजय ने कहा तथा हाथ मिलाकर गुप्त भवन से बाहर आ गया ।
ब्लैक व्बाॅय के होंठो पर एक अजीबोगरीब मुस्कान I
इधर विजय गुप्त भवन से बाहर आया तथा अपनी कार की ओर बढा । अभी वह कार की ड्राइविंग सीट पर बैठा ही था कि वह चौक पडा। उसकी निगाह स्टेयरिंग में फसे एक कागज पर स्थिर हो गई थी । पहले तो वह कुछ सोचता रहा…फिर हाथ बढाकर कागज निकाल लिया तथा कार में बैठे-बैठे उसने वहीँ खोल लिया तथा पढा । लिखा था… "प्यारे विजय मैं जानता हू कि तुम श्मशानगढ़ कै लिए रवाना हो रहे हो, लेकिन साबधान याद रखना यहां भयंकर 'प्रेत्त आत्माए' पनप रही हैं ! ध्यान रखना इस बारु तुम किती मानव अपराधी सै नहीं बल्कि भूतों से टकराने जा रहे हो । उन भूतों-प्रेतों सै जो सदियों से भटक रहे हैं । मैं श्मशागढ़ के विषय में काफी जानता हू । बैसे मैं यह थी जानता हू कि तुम मैरे इस पत्र से रुकने वाले नहीं ही लैकिन एक बार फिर सतर्क कर रहा हू कि वहां तुम्हें आत्माओं सै भी टकराना होगा । न जाने क्यों मैरा दिल कह रहा हैं कि श्मशानगढ़ कै राजा कै खानदान कै एक-एक व्यक्ति का कत्ल कर दिया जाएगा । याद रखना; जंगल में बनी एक दैत्याकार हवेली बहुत ही मनहूस है और वह तुम्हारी कब्र भी साबित हो सकती है ।
खैर मैं अब अधिक क्या लिखु तुम स्वय ही उन रहस्यों
में उलझने जा रहे हो जो सदियाँ से रहस्य बनै हुए हैं । बस यह ध्यान रखना कि इस कैस में तुम मौत की गहरी नींद भी सो सकते हो ।
तुम्हारा शुभचिंतक I”
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(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
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Re: रहस्य के बीच
सम्पूर्ण कागज पढकर विजय ने कुछ बिचित्र ढंग से मुंह बनाया था फिर गोल होंठ करके सीटी बजाने लगा और इस कागज के विषय मे सोचने लगा ।
उसने कार स्टार्ट करके आगे बढा दी तथा फिर विचारों के सागर मेँ गोते लगाने लगा ।
इस पत्र ने विजय क्रो वास्तव में उलझा दिया था । विजय को अब जंचने लगा था कि श्मशानगढ़ में कोई भयंकर साजिश रची जा रही है ।
वैसे वह यह भी समझ गया था कि केस वास्तव में खतरनाक भी हो सकता है ।
यह तो अनुमान वह लगा न सका कि यह पत्र किसका है लेकिन यह अवश्य वह जान गया कि उसका श्मशानगढ़ के प्रस्थान की बात गुप्त नहीं है ।
वह निश्चय कर चुका था कि इस केस को पूरी गम्भीरता के साथ हैंडल करेगा । यह केस साधारण आत्माओं का केस नजर नहीं आ रहा था ।
उसकी श्मशानगढ़ की यात्रा के विचार में परिवर्तन का तो खैर कोई प्रश्न ही नहीं था, लेकिन इस पत्र ने केस को उलझा अवश्य दिया था ।
वह जान गया कि श्मशानगढ़ में रहस्य की परते उसकी प्रतीक्षा कर रही हैं ।
@@@@@@@@@@@@@@@@
पटरियों पर रेंगती हुई ट्रेन स्थिर हो गई ।
यह श्मशानगढ़ का स्टेशन था ।
यहां गाडी सिर्फ दो मिनट के लिए रुकती थी ।
विजय और रहमान गाडी रुकते ही तुरंत प्लेटफार्म पर उतर आए ।
रहमान के हाथ में एक सूटकेस था ।
इस समय रात का एक बज रहा था ।
स्टेशन पर गजब की निस्तब्धता छाई हुई थी I
अभी वे दोनों अपने स्थान पर खड़े थे कि वे चौंके, सहसा गाडी ने एक तीव्र सीटी दी तथा फिर घीरे-धीरे रेंगती चली गई ।
उनके अतिरिक्त वहां कोई न उतरा था ।
"प्यारे मेहमान I” सहसा बिजय बोला ।
"हूं।" रहमान जान गया था कि बिजय उसे 'मेहमान' कहने से बाज नहीँ आएगा ।
""यार, क्या माजरा है?"
"क्यों गुरु?”
"बात ये है कि अब यहां से जाएं कैसे? न कुछ पता. ..न सवारी? "
"बात तो सोचने वाली है गुरु l”
“तो फिर जल्दी से हो जाओ शुरू I"
"बोलो क्या करूं ?"
"प्लेटफार्म से बाहर का नजार देखते हैं I”
" चलो !"
रहमान ने कहा तथा फिर वे दोनों बाहर की तरफ बढ गए I बाहर भी उसी प्रकार का सन्नाटा छाया हुआ था I
सड़क दूर दूर तक वीरान पड्री हुई थी I
यह रात चांदनी थी अत: सड़क पर भी चांदनी फैली हुई थी । कुछ देर तक वे सन्नाटे में डूबी सड़क्र क्रो देखते रहे I
"चलो प्यारे I” विजय ने कहा तथा सडक की निस्तब्धता को भंग करते हुए वे आगे बढ़ गए । सड़क पर उनके जूतों की टक-टक की आवाज गूंजने लगी ।
"प्यारे चेले!"
"यस गुरु ।" बातें चलते-चलते ही हो रही थी ।
"झकझक्री सुनाने का मौसम बड़ा प्यारा है I"
"गुरू मैं बोर नहीं होना चाहता I"
"बस तो फिर एक झकझकी सुनो, सारी बोरियत दूर हो जाएगी ।"
"गुरु आप. . . I" और रहमान कुछ कहता-कहता स्क गया । विजय भी ध्यान से कुछ सुनने का प्रयास कर रहा था ।
उसने कार स्टार्ट करके आगे बढा दी तथा फिर विचारों के सागर मेँ गोते लगाने लगा ।
इस पत्र ने विजय क्रो वास्तव में उलझा दिया था । विजय को अब जंचने लगा था कि श्मशानगढ़ में कोई भयंकर साजिश रची जा रही है ।
वैसे वह यह भी समझ गया था कि केस वास्तव में खतरनाक भी हो सकता है ।
यह तो अनुमान वह लगा न सका कि यह पत्र किसका है लेकिन यह अवश्य वह जान गया कि उसका श्मशानगढ़ के प्रस्थान की बात गुप्त नहीं है ।
वह निश्चय कर चुका था कि इस केस को पूरी गम्भीरता के साथ हैंडल करेगा । यह केस साधारण आत्माओं का केस नजर नहीं आ रहा था ।
उसकी श्मशानगढ़ की यात्रा के विचार में परिवर्तन का तो खैर कोई प्रश्न ही नहीं था, लेकिन इस पत्र ने केस को उलझा अवश्य दिया था ।
वह जान गया कि श्मशानगढ़ में रहस्य की परते उसकी प्रतीक्षा कर रही हैं ।
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पटरियों पर रेंगती हुई ट्रेन स्थिर हो गई ।
यह श्मशानगढ़ का स्टेशन था ।
यहां गाडी सिर्फ दो मिनट के लिए रुकती थी ।
विजय और रहमान गाडी रुकते ही तुरंत प्लेटफार्म पर उतर आए ।
रहमान के हाथ में एक सूटकेस था ।
इस समय रात का एक बज रहा था ।
स्टेशन पर गजब की निस्तब्धता छाई हुई थी I
अभी वे दोनों अपने स्थान पर खड़े थे कि वे चौंके, सहसा गाडी ने एक तीव्र सीटी दी तथा फिर घीरे-धीरे रेंगती चली गई ।
उनके अतिरिक्त वहां कोई न उतरा था ।
"प्यारे मेहमान I” सहसा बिजय बोला ।
"हूं।" रहमान जान गया था कि बिजय उसे 'मेहमान' कहने से बाज नहीँ आएगा ।
""यार, क्या माजरा है?"
"क्यों गुरु?”
"बात ये है कि अब यहां से जाएं कैसे? न कुछ पता. ..न सवारी? "
"बात तो सोचने वाली है गुरु l”
“तो फिर जल्दी से हो जाओ शुरू I"
"बोलो क्या करूं ?"
"प्लेटफार्म से बाहर का नजार देखते हैं I”
" चलो !"
रहमान ने कहा तथा फिर वे दोनों बाहर की तरफ बढ गए I बाहर भी उसी प्रकार का सन्नाटा छाया हुआ था I
सड़क दूर दूर तक वीरान पड्री हुई थी I
यह रात चांदनी थी अत: सड़क पर भी चांदनी फैली हुई थी । कुछ देर तक वे सन्नाटे में डूबी सड़क्र क्रो देखते रहे I
"चलो प्यारे I” विजय ने कहा तथा सडक की निस्तब्धता को भंग करते हुए वे आगे बढ़ गए । सड़क पर उनके जूतों की टक-टक की आवाज गूंजने लगी ।
"प्यारे चेले!"
"यस गुरु ।" बातें चलते-चलते ही हो रही थी ।
"झकझक्री सुनाने का मौसम बड़ा प्यारा है I"
"गुरू मैं बोर नहीं होना चाहता I"
"बस तो फिर एक झकझकी सुनो, सारी बोरियत दूर हो जाएगी ।"
"गुरु आप. . . I" और रहमान कुछ कहता-कहता स्क गया । विजय भी ध्यान से कुछ सुनने का प्रयास कर रहा था ।
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Re: रहस्य के बीच
"चेले मियां, कुछ सुन रहे हो?”
"गुरु, लगता है कोई आत्मा खिलखिला रही है ।"
"अबे साले रहमान । "
"यस गुरु ।"
"तुम्हें हर आवाज आत्मा की ही नजर आती है ।"
"गुरु ध्यान से सुनो ।" रहमान ने कहा था फिर स्वय भी ध्यान से सुनने लगा ।
वास्तव में घीरे-घीरे रात की यह नीरवता-यह
सन्नाटा-यह निस्तब्धता भंग होती जा रही थी ।
ऐसा लगता था जैसे कोई खिलखिला रहा है, जोर'-जोर से खिलखिला रहा है । वास्तव में वह खिलखिलाहट बडी ही भयानक थ्री । लगता था कोई मुर्दा झुंझला रहा हैं । यह खिलखिलाहट सीधी दिल में उतरती चली जाती थी ।
उन दोनों के रोंगटे खडे हो गए ।
खिलखिलाहट क्षण प्रतिक्षण तीव्र होती जा रही थी ।
दोनों ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा ।
तभी बिजय फुर्ती के साथ एक तरफ को दौड पड़ा तथा साथ ही बोला-"मेरे पीछे आओ चेले मियां I"
खिलखिलाहट क्षण-प्रतिक्षण बढती जा रही थी । इस खिलखिलाहट के बीच मानो मनहूस कुत्ता रोने लगा । तभी जैसे कोई रो रहा हो, सिसक…सिसककर रो रहा हो। भयानक-भयानक आवाजें आने लगीं ।
भागते-भागते वे एक मैदान में पहुच गए I
मैदान मेँ भी चांदनी थी ।
और जो कुछ उन्होंने इस चांदनी मेँ देखा उसे देखकर आश्चर्यचकित रह गए! दूर चांद की चांदनी के बीच एक लड़की नजर आईं । उसके गदराए जिस्म पर दूध जैसी सफेद साडी थी जिसका आंचल हवा मेँ लहरा रहा था ।
वह सीधी चली जा रही थी, उसकी पीठ उन्ही लोगों की ओर थी ।
वातावरण में वही खिलखिलाहट गूंज रही थी ।
"प्यारे चेले ।" विजय धीरे-से फुसफुसाया ।
"यस गुरु I”
"वह कोन है I”
"शायद कोई आत्मा ।"
"बकवास मत करो ।" विजय बात-बात पर रहमान की इस 'आत्मा' वाली रट पर झुंझला गया था ।
“नहीं करता, गुरू ।।"
"ध्यान रहे, उसे मालूम न हो पाए कि हम उसके पीछे हैं ।"
"लेकिन यह खिलखिलाहट तथा भयानक आवाजें?”
"इनके विषय में बाद में सोचेगे, पहले अपनी अम्मा का पीछा करो ।"
"ओके गुरु ।" अभी रहमान ने इतना ही कहा था कि वे फिर चौंक पड़े ।
एकाएक उसके कानों में ऐसी आवाजें टकराने लगीं जैसे दो आदमी आपस में भिड़ गए हों । आवाजे मैदान के एक तरफ पड़े एक विशाल पत्थर के पीछे से आ रही थीं ।
घटनाएं कुछ इस तेजी के साथ घटित हो रही थी कि कुछ सोचने-समझने का अवसर नहीं मिल रहा था । वातावरण में चारों तरफ़ अजीबोगरीब आवाजें गूंज रही थी ।
"तुम अपनी अम्मा का पीछा करो बेटे रहमान-मैं उधर देखता हू ।"
विजय के शरीर में इस समय बिजली दौड गई थी । वह तेजी के साथ रहमान को आदेश देकर अपनी सम्पूर्ण रफ्तार के साथ उस पत्थर की तरफ दोड़ा ।
आंधी-तूफान की भांति वह दौडता हुआ पत्थर पर चढ गया ।
"गुरु, लगता है कोई आत्मा खिलखिला रही है ।"
"अबे साले रहमान । "
"यस गुरु ।"
"तुम्हें हर आवाज आत्मा की ही नजर आती है ।"
"गुरु ध्यान से सुनो ।" रहमान ने कहा था फिर स्वय भी ध्यान से सुनने लगा ।
वास्तव में घीरे-घीरे रात की यह नीरवता-यह
सन्नाटा-यह निस्तब्धता भंग होती जा रही थी ।
ऐसा लगता था जैसे कोई खिलखिला रहा है, जोर'-जोर से खिलखिला रहा है । वास्तव में वह खिलखिलाहट बडी ही भयानक थ्री । लगता था कोई मुर्दा झुंझला रहा हैं । यह खिलखिलाहट सीधी दिल में उतरती चली जाती थी ।
उन दोनों के रोंगटे खडे हो गए ।
खिलखिलाहट क्षण प्रतिक्षण तीव्र होती जा रही थी ।
दोनों ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा ।
तभी बिजय फुर्ती के साथ एक तरफ को दौड पड़ा तथा साथ ही बोला-"मेरे पीछे आओ चेले मियां I"
खिलखिलाहट क्षण-प्रतिक्षण बढती जा रही थी । इस खिलखिलाहट के बीच मानो मनहूस कुत्ता रोने लगा । तभी जैसे कोई रो रहा हो, सिसक…सिसककर रो रहा हो। भयानक-भयानक आवाजें आने लगीं ।
भागते-भागते वे एक मैदान में पहुच गए I
मैदान मेँ भी चांदनी थी ।
और जो कुछ उन्होंने इस चांदनी मेँ देखा उसे देखकर आश्चर्यचकित रह गए! दूर चांद की चांदनी के बीच एक लड़की नजर आईं । उसके गदराए जिस्म पर दूध जैसी सफेद साडी थी जिसका आंचल हवा मेँ लहरा रहा था ।
वह सीधी चली जा रही थी, उसकी पीठ उन्ही लोगों की ओर थी ।
वातावरण में वही खिलखिलाहट गूंज रही थी ।
"प्यारे चेले ।" विजय धीरे-से फुसफुसाया ।
"यस गुरु I”
"वह कोन है I”
"शायद कोई आत्मा ।"
"बकवास मत करो ।" विजय बात-बात पर रहमान की इस 'आत्मा' वाली रट पर झुंझला गया था ।
“नहीं करता, गुरू ।।"
"ध्यान रहे, उसे मालूम न हो पाए कि हम उसके पीछे हैं ।"
"लेकिन यह खिलखिलाहट तथा भयानक आवाजें?”
"इनके विषय में बाद में सोचेगे, पहले अपनी अम्मा का पीछा करो ।"
"ओके गुरु ।" अभी रहमान ने इतना ही कहा था कि वे फिर चौंक पड़े ।
एकाएक उसके कानों में ऐसी आवाजें टकराने लगीं जैसे दो आदमी आपस में भिड़ गए हों । आवाजे मैदान के एक तरफ पड़े एक विशाल पत्थर के पीछे से आ रही थीं ।
घटनाएं कुछ इस तेजी के साथ घटित हो रही थी कि कुछ सोचने-समझने का अवसर नहीं मिल रहा था । वातावरण में चारों तरफ़ अजीबोगरीब आवाजें गूंज रही थी ।
"तुम अपनी अम्मा का पीछा करो बेटे रहमान-मैं उधर देखता हू ।"
विजय के शरीर में इस समय बिजली दौड गई थी । वह तेजी के साथ रहमान को आदेश देकर अपनी सम्पूर्ण रफ्तार के साथ उस पत्थर की तरफ दोड़ा ।
आंधी-तूफान की भांति वह दौडता हुआ पत्थर पर चढ गया ।
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Re: रहस्य के बीच
जब उसने पत्थर के पीछे का दृश्य देखा तो हैरत में पड गया ।
चांद की चांदनी में दो इंसानी साए खूनी भेडिए की भाँति भिड़े हुए थे ।
उनमें से एक के जिस्म पर स्याह लिबास था तया दूसरे कै जिस्म पर दूध जैसा सफेद घुटनों तक चोगा था । सफेद चोगे वाला यह व्यक्ति आवश्यकता से कुछ अधिक ही लम्बा था तथा खडा हुआ सिर्फ हड्रिडयों का ढांचा प्रतीत होता था ।।
विजय खडा होकर उनकी हरकत नोट करने की चेष्टा कर रहा था ।
दोनों में से कोई भी कुछ नही बोल रहा था लेकिन एक-दूसरे पर खूनी भेडिए की भांति टूट रहे थे ।
बिचित्र-बिचित्र-सी किलकारियां उनके मुख से निकल रही थीं ।
स्याह लिबास वाला व्यक्ति आवश्यकता से कुछ अधिक फुर्तीला जान पडता था । वह चोगे वाले व्यक्ति पर भारी पड़ रहा था ।
पहले वह अच्छी तरह स्थिति का अध्यन करना चाहता था तभी नाटक में पाठ ले सकता था । अभी तो वह स्वयं यह समझने में असमर्थ था कि यह सब क्या हो रहा है? आखिर वह लडकी क्या बला है? ये यहां क्यों लड रहे हैं? अन्य अनेकों प्रश्न उसके दिमाग में कुलबुला रहे थे । अत: वह शांति के साथ उन दोनों को देखता रहा ।
कुछ समय की खतरनाक भिडंत के पश्चात-स्याह लिबास वाले ने सफेद चोगे वाले को सिर से ऊपर उठाकर पटक दिया ।
चोगे वाले के मुख से डरावनी-सी चीख निकली ।
स्याह व्यक्ति ने फुर्ती दिखाई ।
उसने उसे ऊपर उठाकर पांच…छ: बार पटका । इन पटकियों के अंतर्गत सफेद चोगे वाला लहूलुहान हो गया तथा मृत अथवा बेहोश स्थिति में निश्चल पड़ गया ।
स्याह चोगे वाला तेजी फे साथ झपटा तथा अगले ही पल वह फुर्ती के साथ सफेद चोगे वाले की जेबें टटोल रहा था l
दूसरे ही पल स्याह चोगे वाले ने कोई वस्तु सफेद चोगे वाले की जेब से निकालकर अपनी जेब के हवाले की तथा उसके बाद वह एक पल भी वहां नहीं ठहरा, तेजी के साथ एक तरफ़ को भागा ।
बिजय की समझ में कुछ नहीं आया, अभी तक तो वह केवल पहेलियों मेँ ही उलझा हुआ था । वह यह भी न देख सका कि वह क्या वस्तु थी जो स्याह लिबास वाले व्यक्ति ने सफेद चोगे वाले की जेब से निकालकर अपनी जेब के हवाले की थी?
फिर भी फुर्ती के साथ इसी स्याह व्यक्ति के पीछे झपटा ।
स्याह लिबास वाले व्यक्ति की रफ्तार काफी तीव्र थी और उसी रफ्तार से बिजय भी उसका पीछा कर रहा था । वातावरण में शोर ज्यों-का-त्यों था ।
अभी विजय की समझ में कोई विशेष बात तो आई नहीं थी लेकिन इतना वह समझ गया था कि स्याह व्यक्ति ने जो वस्तु सफेद चोगे वाले की जेब से निकाली हे, वह निश्चित ही कोई महत्त्वपूर्ण वस्तु रही होगी ।
लेकिन फिर भी विजय बिना कुछ सोचे-समझे भिड़ने की मूर्खता करना नहीँ चाहता था । अत: शांति और सतर्कता के साथ उसका पीछा करता जा रहा था ।
चांदनी रात में यह पीछा बडा ही रहस्यमय प्रतीत हो रहा था ।
लगभग दस मिनट के पश्चात ।
काला साया एक पथरीली-सी गुफा में प्रविष्ट हो गया ।
गुफा के द्वार पर बिजय एक क्षण के लिए ठिठका ।
गहन अंधकार का साम्राज्य था ।
लेकिन अंधकार में काले साए के चलने की आवाज़ गूंज रही थी जो निरंत्तर दूर होती जा रही थी ।
विजय एक क्षण के लिए घूम गया, किसी का शक्तिशाली घूंसा उसकी नाक पर पडा था ।
लाल-पीले तारे उसकी आंखों के सामने नाच गए और वह लड़खड़ाकर पथरीले फर्श पर गिरा ।
"सही बात तो ये है कि तुम पर पीछा करने का तरीका तक नहीं आता ।” सहसा बिजय के कानों से खतरनाक लहजा टकराया ।
विजय सम्भलकर खड़ा हो गया ।
वे इस समय गुफा के द्वार पर ही थे अत: चांद की चांदनी में वे एक-दूसरे को साए के रूप में देख सकत्ते थे ।
विजय ने सामने देखा I
वही काले लिबास वाला व्यक्ति अपने दोनों कूल्हो पर हाथ रखे उसे घूर रहा था । मद्धिम प्रकाश के कारण विजय उसके होंठों पर नृत्य करने वाली कुटिल मुस्कान न देख सका ।
चांद की चांदनी में दो इंसानी साए खूनी भेडिए की भाँति भिड़े हुए थे ।
उनमें से एक के जिस्म पर स्याह लिबास था तया दूसरे कै जिस्म पर दूध जैसा सफेद घुटनों तक चोगा था । सफेद चोगे वाला यह व्यक्ति आवश्यकता से कुछ अधिक ही लम्बा था तथा खडा हुआ सिर्फ हड्रिडयों का ढांचा प्रतीत होता था ।।
विजय खडा होकर उनकी हरकत नोट करने की चेष्टा कर रहा था ।
दोनों में से कोई भी कुछ नही बोल रहा था लेकिन एक-दूसरे पर खूनी भेडिए की भांति टूट रहे थे ।
बिचित्र-बिचित्र-सी किलकारियां उनके मुख से निकल रही थीं ।
स्याह लिबास वाला व्यक्ति आवश्यकता से कुछ अधिक फुर्तीला जान पडता था । वह चोगे वाले व्यक्ति पर भारी पड़ रहा था ।
पहले वह अच्छी तरह स्थिति का अध्यन करना चाहता था तभी नाटक में पाठ ले सकता था । अभी तो वह स्वयं यह समझने में असमर्थ था कि यह सब क्या हो रहा है? आखिर वह लडकी क्या बला है? ये यहां क्यों लड रहे हैं? अन्य अनेकों प्रश्न उसके दिमाग में कुलबुला रहे थे । अत: वह शांति के साथ उन दोनों को देखता रहा ।
कुछ समय की खतरनाक भिडंत के पश्चात-स्याह लिबास वाले ने सफेद चोगे वाले को सिर से ऊपर उठाकर पटक दिया ।
चोगे वाले के मुख से डरावनी-सी चीख निकली ।
स्याह व्यक्ति ने फुर्ती दिखाई ।
उसने उसे ऊपर उठाकर पांच…छ: बार पटका । इन पटकियों के अंतर्गत सफेद चोगे वाला लहूलुहान हो गया तथा मृत अथवा बेहोश स्थिति में निश्चल पड़ गया ।
स्याह चोगे वाला तेजी फे साथ झपटा तथा अगले ही पल वह फुर्ती के साथ सफेद चोगे वाले की जेबें टटोल रहा था l
दूसरे ही पल स्याह चोगे वाले ने कोई वस्तु सफेद चोगे वाले की जेब से निकालकर अपनी जेब के हवाले की तथा उसके बाद वह एक पल भी वहां नहीं ठहरा, तेजी के साथ एक तरफ़ को भागा ।
बिजय की समझ में कुछ नहीं आया, अभी तक तो वह केवल पहेलियों मेँ ही उलझा हुआ था । वह यह भी न देख सका कि वह क्या वस्तु थी जो स्याह लिबास वाले व्यक्ति ने सफेद चोगे वाले की जेब से निकालकर अपनी जेब के हवाले की थी?
फिर भी फुर्ती के साथ इसी स्याह व्यक्ति के पीछे झपटा ।
स्याह लिबास वाले व्यक्ति की रफ्तार काफी तीव्र थी और उसी रफ्तार से बिजय भी उसका पीछा कर रहा था । वातावरण में शोर ज्यों-का-त्यों था ।
अभी विजय की समझ में कोई विशेष बात तो आई नहीं थी लेकिन इतना वह समझ गया था कि स्याह व्यक्ति ने जो वस्तु सफेद चोगे वाले की जेब से निकाली हे, वह निश्चित ही कोई महत्त्वपूर्ण वस्तु रही होगी ।
लेकिन फिर भी विजय बिना कुछ सोचे-समझे भिड़ने की मूर्खता करना नहीँ चाहता था । अत: शांति और सतर्कता के साथ उसका पीछा करता जा रहा था ।
चांदनी रात में यह पीछा बडा ही रहस्यमय प्रतीत हो रहा था ।
लगभग दस मिनट के पश्चात ।
काला साया एक पथरीली-सी गुफा में प्रविष्ट हो गया ।
गुफा के द्वार पर बिजय एक क्षण के लिए ठिठका ।
गहन अंधकार का साम्राज्य था ।
लेकिन अंधकार में काले साए के चलने की आवाज़ गूंज रही थी जो निरंत्तर दूर होती जा रही थी ।
विजय एक क्षण के लिए घूम गया, किसी का शक्तिशाली घूंसा उसकी नाक पर पडा था ।
लाल-पीले तारे उसकी आंखों के सामने नाच गए और वह लड़खड़ाकर पथरीले फर्श पर गिरा ।
"सही बात तो ये है कि तुम पर पीछा करने का तरीका तक नहीं आता ।” सहसा बिजय के कानों से खतरनाक लहजा टकराया ।
विजय सम्भलकर खड़ा हो गया ।
वे इस समय गुफा के द्वार पर ही थे अत: चांद की चांदनी में वे एक-दूसरे को साए के रूप में देख सकत्ते थे ।
विजय ने सामने देखा I
वही काले लिबास वाला व्यक्ति अपने दोनों कूल्हो पर हाथ रखे उसे घूर रहा था । मद्धिम प्रकाश के कारण विजय उसके होंठों पर नृत्य करने वाली कुटिल मुस्कान न देख सका ।
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(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
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- Rohit Kapoor
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Re: रहस्य के बीच
दोनों प्रतिद्वंद्वी आमने-सामने खड़े एक…दूसरे को घूर रहे थे ।
"कहो बेटे कालिए, क्या इरादे हैं?" विजय सम्भला कर सतर्क होकर बोला ।
"मुझें लगता है तुम्हारा ये अभियान 'मौत' का अभियान होगा I"
"ये तो बाद की बात है प्यारे । पहले अपने इरादे तो बताओ I”
“मेरे इरादे काफी नेक हैं I"
"नेक से मतलब?"
"मतलब ये कि तुम्हें इस संसार से विदाई परमिट दिलाने का अभी मेरा कोई इरादा नही है I"
"लेकिन प्यारे मैँ सोचता हू, फिलहाल उस परमिट को तुम ही ले लौ ।" बिजय ने कहा तथा फुर्ती के साथ उस पर झपटा l
लेकिन स्याह साया पूर्णतया सतर्क जान पड़ता था । उसने भी गजब की फुर्ती का परिचय दिया और अपने स्थान से हट गया ।
झोंक में विजय पथरीले फ़र्श पर गिरां ।
लेकिन तुरंत ही सम्भल भी गया ।
अगले ही क्षण वे दोनों फिर आमने-सामने खड़े थे ।
सहसा स्याह व्यक्ति ने गजब की फुर्ती दिखाई I
एक बार तो स्वयं विजय कांप गया ।
वह जान गया कि स्याह व्यक्ति कोई खतरनाक लडाका ।
अगर विजय एक पल को भी चूक जाता तो निश्चित रूप से उसकी एक-आघ हड्डी टूट जाती ।
गजब की फुर्ती के साथ इस व्यक्ति ने 'जूडो' मारा था ।
"जूडो'…फ्री-स्टाइल का एक ऐसा खतरनाक दांव जिसकी चपेट में आया व्यक्ति किसी भी तरह सुरक्षित नहीं रह सकता ।
लेकिन स्याह व्यक्ति का भयंकर इरादा वह पहले ही भांप गया, और उससे अधिक फुर्ती का प्रदर्शन करता हुआ वह अपने मुख्य स्थान से हट गया ।
झोंक में स्याह व्यक्ति लड़खड़ाया I
लढ़खड़ाते व्यक्ति के पीछे से विजय ने एक किक जमा दी, वह मुंह के बल फर्श पर गिरा ।
तभी विजय झपटा और उस पर चढ़ बैठा तथा बोला…“हम भी खलीफा हैं, बेटे कालिए l”
लेकिन विजय ठीक से अपना वाक्य पूरा न कर पाया था कि स्याह व्यक्ति ने उसे जांघों पर रखकर उछाल दिया । वह हवा मेँ लहराया तथा धड़ाम से फर्श पर गिरा ।
वह फिर फुर्ती के साथ खडा हो गया ।
उसने स्याह व्यक्ति की ओर देखा l
सहसा स्याह व्यक्ति ने फुर्ती के साथ गुफा के गहन अंधकार मे जम्प लगा दी और तभी गुफा के अंधेरे के बीच से आवाज आई-"अभी मैं जरा जल्दी में हूं बेटे, फिर मुलाकात होगी ।"
"अबे ओं...कालू...भाई..अबे...यार...सूनो...तो !" बिजय ने भी उसके पीछे झपटने की कोशिश की लेकिन बिजय अंधेरी गुफा के पथरीले फ़र्श पर गिरा ।
सहसा गुफा मेँ निस्तब्धता छा गई ।
न कहीं कोई ध्वनि, न कोई आहट थी ।
कुछ देर तक विजय भी आराम से फर्श पर पड़ा रहा तथा फिर बड़बड़ाया-“डरकर भाग गया साला ठाकुर के पूत से ।”
फिर वह वहां से उठा तथा टार्च के सहारे उसने स्याह व्यक्ति को खोजने की चेष्टा भी की लेकिन असफलता का भंडार लेकर रह गया ।
यह सिर्फ एक साधारण गुफा थी ।
तभी उसे रहमान का ध्यान आया । वह उस सफेदपोश लडकी के पीछे गया हुआ था ।
यह विचार दिमाग मेँ आते ही वह वापस चल दिया ।
उसकी चाल पहले से तीव्र थी ।
और तब…
"कहो बेटे कालिए, क्या इरादे हैं?" विजय सम्भला कर सतर्क होकर बोला ।
"मुझें लगता है तुम्हारा ये अभियान 'मौत' का अभियान होगा I"
"ये तो बाद की बात है प्यारे । पहले अपने इरादे तो बताओ I”
“मेरे इरादे काफी नेक हैं I"
"नेक से मतलब?"
"मतलब ये कि तुम्हें इस संसार से विदाई परमिट दिलाने का अभी मेरा कोई इरादा नही है I"
"लेकिन प्यारे मैँ सोचता हू, फिलहाल उस परमिट को तुम ही ले लौ ।" बिजय ने कहा तथा फुर्ती के साथ उस पर झपटा l
लेकिन स्याह साया पूर्णतया सतर्क जान पड़ता था । उसने भी गजब की फुर्ती का परिचय दिया और अपने स्थान से हट गया ।
झोंक में विजय पथरीले फ़र्श पर गिरां ।
लेकिन तुरंत ही सम्भल भी गया ।
अगले ही क्षण वे दोनों फिर आमने-सामने खड़े थे ।
सहसा स्याह व्यक्ति ने गजब की फुर्ती दिखाई I
एक बार तो स्वयं विजय कांप गया ।
वह जान गया कि स्याह व्यक्ति कोई खतरनाक लडाका ।
अगर विजय एक पल को भी चूक जाता तो निश्चित रूप से उसकी एक-आघ हड्डी टूट जाती ।
गजब की फुर्ती के साथ इस व्यक्ति ने 'जूडो' मारा था ।
"जूडो'…फ्री-स्टाइल का एक ऐसा खतरनाक दांव जिसकी चपेट में आया व्यक्ति किसी भी तरह सुरक्षित नहीं रह सकता ।
लेकिन स्याह व्यक्ति का भयंकर इरादा वह पहले ही भांप गया, और उससे अधिक फुर्ती का प्रदर्शन करता हुआ वह अपने मुख्य स्थान से हट गया ।
झोंक में स्याह व्यक्ति लड़खड़ाया I
लढ़खड़ाते व्यक्ति के पीछे से विजय ने एक किक जमा दी, वह मुंह के बल फर्श पर गिरा ।
तभी विजय झपटा और उस पर चढ़ बैठा तथा बोला…“हम भी खलीफा हैं, बेटे कालिए l”
लेकिन विजय ठीक से अपना वाक्य पूरा न कर पाया था कि स्याह व्यक्ति ने उसे जांघों पर रखकर उछाल दिया । वह हवा मेँ लहराया तथा धड़ाम से फर्श पर गिरा ।
वह फिर फुर्ती के साथ खडा हो गया ।
उसने स्याह व्यक्ति की ओर देखा l
सहसा स्याह व्यक्ति ने फुर्ती के साथ गुफा के गहन अंधकार मे जम्प लगा दी और तभी गुफा के अंधेरे के बीच से आवाज आई-"अभी मैं जरा जल्दी में हूं बेटे, फिर मुलाकात होगी ।"
"अबे ओं...कालू...भाई..अबे...यार...सूनो...तो !" बिजय ने भी उसके पीछे झपटने की कोशिश की लेकिन बिजय अंधेरी गुफा के पथरीले फ़र्श पर गिरा ।
सहसा गुफा मेँ निस्तब्धता छा गई ।
न कहीं कोई ध्वनि, न कोई आहट थी ।
कुछ देर तक विजय भी आराम से फर्श पर पड़ा रहा तथा फिर बड़बड़ाया-“डरकर भाग गया साला ठाकुर के पूत से ।”
फिर वह वहां से उठा तथा टार्च के सहारे उसने स्याह व्यक्ति को खोजने की चेष्टा भी की लेकिन असफलता का भंडार लेकर रह गया ।
यह सिर्फ एक साधारण गुफा थी ।
तभी उसे रहमान का ध्यान आया । वह उस सफेदपोश लडकी के पीछे गया हुआ था ।
यह विचार दिमाग मेँ आते ही वह वापस चल दिया ।
उसकी चाल पहले से तीव्र थी ।
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