गर्ल'स स्कूल compleet

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rajaarkey
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Re: गर्ल'स स्कूल

Post by rajaarkey »

गर्ल्स स्कूल पार्ट --50

हेलो दोस्तो गर्ल्स स्कूल का पार्ट 50लेकर आपके लिए हाजिर हूँ

लंच में अंजलि ने आते ही लड़कियों से पूचछा," स्नेहा कहाँ गयी.. उसका मूड ठीक हुआ की नही..?"

"वो तो चली भी गयी मम्मी! मोहन आया था उसको लेने.." गौरी ने खड़ी होते हुए कहा.. सबको डर था.. अब टूर शायद मुश्किल है.. सभी के मुँह पिचके हुए थे.. खास तौर से प्रिया और रिया के.. उन्हे वहाँ से जाना पॅड गया तो..

"क्याअ??? ओह माइ गॉड! मुझे स्कूल नही जाना चाहिए था.. अब मैं क्या करूँ..?" बड़बड़ाते हुए अंजलि ने फोन निकाल लिया और शमशेर के पास फोन मिलाया

"हां.. अंजलि.. मैं शाम तक पहुँच जवँगा.. टूर की तैयारी कर ली है ना?" शमशेर ने फोन उठाते ही कहा...

"ववो.. स्नेहा चली गयी.. विकी के साथ.." अंजलि ने उसकी बात पर ध्यान ना देते हुए कहा..

"व्त??? उसको पता नही था क्या..? उसको बताया नही था क्या? ये क्या हो गया..?" शमशेर विचलित सा हो गया...

"मुझे नही पता.. मेरे ख़याल से पता चल गया था उसको.. सुबह से रो रही थी..."

शमशेर ने बिना एक पल भी गँवाए टफ के पास फोन लगाया," स्नेहा चली गयी.. विकी के साथ.. तुमने उसको बताया क्यूँ नही..?"

"क्या???" लगभग वैसा ही धक्का टफ को भी लगा," पर मैने तो उसको रेकॉर्डिंग तक सुना दी थी.. फिर वो गयी क्यूँ?"

" अब ये बात सोचने का वक़्त नही है.. हमें जल्दी ही कुच्छ करना पड़ेगा...!" शमशेर की तरफ से आवाज़ आई...

" पर चिंता करने की बात नही है भाई.. मुरारी ने अपने लोगों को उसके बाहर आने तक उसको कुच्छ नही करने को कहा है.. मैं संभाल लूँगा.. साला मुरारी तो अपने पास ही है ना.. मैं संभाल लूँगा... पर विकी ने ये ठीक नही किया भाई.. वो तो पागल हो गया है.. वैसे मुरारी ने जो लोकेशन डील के लिए तय की है.. मैं वहाँ पोलीस भेज देता हूँ.. खुद भी चला जाउन्गा.. रेकॉर्डिंग में मुरारी ने खोल कर बताया था.. मैं निकल रहा हूँ.." कहकर टफ ने फोन काटा और जल्दी से बाहर निकल गया.....

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लंच के बाद मायूस अंजलि जब ऑफीस लौटी तो वासू पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहा था..

"श्रीमती जी.. मैने आपकी सलाह पर विचार किया था.. बुरा नही है.. मैं साथ चलने को तैयार हूँ.. कहिए कब का कार्यक्रम रखें..?"

" नही वासू जी.. मैने भी आपकी बात पर गौर फरमाया था.. आप सही कह रहे थे.. इस वक़्त टूर पर जाना ठीक नही.. मैने प्रोग्राम कॅन्सल कर दिया है.." अंजलि ने कुर्सी पर बैठते ही अपना माथा पकड़ लिया....

"परंतु ये तो कोई बात नही हुई.. मैने लाख सोचने के बाद अपना मॅन बनाया.. और अब जबकि मैं जाने का इच्च्छुक हूँ तो आप मना कर रही हैं.. आपको चलना चाहिए.. और नही तो आप बच्चों से ही पूच्छ कर देख लो.. मैने भी एक आध लड़की से इस बारे में विचार किया था.. वो चलने को तैयार हैं.. आप कहें तो मैं बच्चों से पर्चियाँ डलवा लेता हूँ.. जैसा बहुमत कहे.. बोलिए?" बेचारे वासू पर तो गाज़ सी गिर पड़ी टूर कॅन्सल होने की बात सुनते ही... जाने कितने अरमान सॅंजो लिए थे उसने घंटे भर में ही....

"देखिए वासू जी.. टूर मुमकिन नही है.. आप समझने की कोशिश करें... और मेरे सिर में दर्द है.. आप कृपया मुझे अकेला छ्चोड़ दें..." अंजलि तुनक सी पड़ी थी...

वासू बिना कुच्छ बोले मुँह फुलाकर वहाँ से निकल गया.. उसने क्लास नही ली.. जाते हुए उसने छ्होटी क्लास की एक लड़की को बुलाया और उसको नीरू को मेथ की किताब लेकर स्टाफ्फरूम में भेज देने को बोल कर खुद वहीं चला गया...

"जी सर.. आपने बुलाया?" कहते हुए नीरू सीधी स्टॅफरुम में घुस गयी.. उसने अंदर आने की इजाज़त तक नही माँगी.. वो खिली हुई थी.. जाते ही उसने अपनी मेथ की किताब को टेबल पर पटका और वासू की और मुँह करके खड़ी हो गयी...," मैने पूच्छ लिया है सर.. घरवालों से.. मैं भी चलूंगी टूर पर... "

वासू बेचैनी से खड़ा होकर इधर उधर टहलने लगा," साली सारी दुनिया प्रेम की दुश्मन है..! लोग जोड़ियाँ बनते देख ही नही सकते.. सबको अपनी अपनी पड़ी है.. बताओ.. अगर चल पड़ते तो कौनसा पहाड़ टूट पड़ना था.... ?" वासू बड़बड़ा रहा था.. नीरू को बस एक ही बात ढंग से सुनाई दी.. ' सारी दुनिया प्रेम की दुश्मन है'

"क्या सर?" नीरू ने हिचकिचाते हुए पूचछा..

" अरे क्या क्या?" वासू ने नीरू के पास आकर उसको कंधों पर से पकड़ लिया.. उसका गुस्सा उसकी पकड़ की मजबूती में झलक रहा था.. नीरू अंदर तक हिल गयी.. नीचे तक.. वासू ने आवेश में बकना जारी रखा," वो क्या समझते हैं..? अगर हम घूमने नही गये तो क्या हम प्यार करना छ्चोड़ देंगे.. क्या हम यहाँ प्यार नही कर सकते.. नही नही.. ये तो विद्यालय है.." वासू ने अपने हाथ हटा लिए," क्या तुम मेरे पास घर नही आ सकती.. क्या मैं चोरी छिपे रात को दीवारें कूद कर तुम्हारे घर नही आ सकता.. क्या हमारा प्यार इतना कमजोर है कि...."

वासू जाने क्या क्या बक रहा था.. मानो भंग खा रखी हो.. नीरू हैरान थी.. अभी तक जो उस'से बात करते हुए हिचकिचा रहा था.. अब दीवारें कूदने की बात कर रहा है.. जाने कितने रंग थे उसके वासू के.. वो तो आज तक उसको समझ ही नही पाई थी...

पर वो मन ही मन खिल उठी थी.. जो वो बोल देना चाहती थी.. उसकी ज़रूरत ही ना पड़ी.. सब कुच्छ अकेले वासू ने ही बोल दिया

"तो क्या सर.. हम टूर पर नही जा रहे..?" नीरू ने लगातार अनाप शनाप बोल रहे वासू को खुद बोलकर चुप किया...

" नही.. पर तुम चिंता मत करो.. मैं तुम्हारे घर आउन्गा.. आज रात को.. आ जाउ ना?"

नीरू से कोई जवाब देते ही ना बना.. वह शर्मा गयी.. किताबें उठाई और बाहर भाग गयी.. पर जवाब तो वासू को मिल ही गया था.. उसकी मुस्कुराहट में!

विकी चुपचाप स्नेहा को लेकर अपनी मंज़िल की और चलता जा रहा था.. उसका मन उसको कचोट रहा था.. क्या वह सही कर रहा है? हां भी और नही भी.. उसके अंतर्मन में विरोधाभास गूँज रहा था.. विकी के पास सब कुच्छ था.. पर वो मंज़िल पर पहुँच कर सुसताने वालों में से नही था.. उसका लक्ष्या और आगे.. फिर और आगे बढ़ते जाना था.. जानकारों की राइ में मल्टिपलेक्स रुपायों की ख़ान था.. कहने को नेट इनकम सिर्फ़ 2 से 2.5 लाख रुपए महीना पर वास्तविकता इस-से काफ़ी अलग थी.. पहले जब कसीनो पर बॅन नही था तो उसका मालिक शहर का सबसे बड़ा अमीर था.. कारण अंडरग्राउंग फ्लोर पर कसीनो की आड़ में होने वाले हर तरह के धंधे.. करोड़ों रुपायों की पैदावार हर महीने उस 100क्ष100 की छ्होटी सी जगह से होती थी... पर पिच्छली सरकार ने सब कुच्छ बंद करवा दिया और मल्टिपलेक्स का मलिक भारी दबाव में आ गया.. पर अब.. अब अंदर की खबर ये थी की अगली सरकार आते ही उसको फिर से चालू करने जा रही है.. और यही कारण था की मुरारी और विकी में उसको लेकर तलवारें खींची हुई थी.. और चकाचौंध कर देने वाले रुपायों की खनक के सामने किसी के ज़ज्बात कुच्छ मायने नही रखते थे.. कुच्छ भी नही...

पर स्नेहा इसका शिकार क्यूँ बनी? काश वा शुरू में ही स्नेहा को सब सच बता देता.. कम से कम वो सपने तो ना पालती.. उसको आज खुद की ही नज़रों में यूँ जॅलील तो ना होना पड़ता.. जो सपने स्नेहा ने देखे हैं.. खुद उसको भी तो कभी ना कभी देखने हैं... इस'से ज़्यादा प्यार उसको करने वाली दूसरी कोई लड़की दुनिया में उसको मिल सकेगी.. सब कुच्छ पता चलने के बाद भी आ गयी..

" कमाल है.. प्यार करने वाले लोग कितने बेपरवाह होते हैं.. कितने पागल.." विकी ने एक लंबी साँस छ्चोड़ते हुए स्नेहा की और देखा.. उसके चेहरे पर कोई भाव नही था..

स्नेहा ने कोई जवाब नही दिया.. पर गर्व से अपना सिर उठा लिया.. मानो उसको अपने पागलपन पर गर्व हो.. प्यार को संजीदगी से समझने का घमंड!

" तुम किसी आख़िरी इच्च्छा की बात कर रही थी.. वही बता दो!" खिसियाए हुए से विकी ने फिर स्नेहा को टोका...

" तुम पूरी नही करोगे विकी..तुम प्यार को समझते ही नही हो.. जाने दो..!" स्नेहा ने सामने देखते हुए ही जवाब दिया...

"कहकर तो देखो! क्या पता कर भी दूँ?" विकी ने फिर पूच्छने की जुर्रत की..

"मैने राज और प्रिया दोनो से बात की थी.. दोनो एक दूसरे से बेहद प्यार करते हैं.. जैसे मैं तुम्हे कर बैठी थी.. बिना सोचे समझे.. बिना जाने.. पागल थी ना.. तुम्हारे लिए.. "

"ये प्रिया कौन है?" विकी ने उसको टोका..

" उनके सामने ही रहती है.. दोनो एक ही क्लास में पढ़ते हैं.. एक ही स्कूल में.. वो भी उसके साथ ही भाग कर लोहरू आ गयी है.. पता नही उनका क्या होगा? प्रिया ने मुझसे कहा था.." स्नेहा ने अपने आपको ज़ज्बात में बहने से रोकने की लाख कोशिश की पर अपने आपको सुबकने से ना रोक पाई.. पर वा बोलती रही.." प्रिया ने कहा था.. अपने मोहन से कहना हमारी मदद करे.. वो हमारा इंतज़ार करेंगे.. ताकि हम वापस जाकर उनकी मदद कर सकें.. मेरी तरह वो भी नादान हैं.. अगर उनके सामने कोई रुकावट आई.. तो मुझे डर है.. वो बिखर जाएँगे... मैं चाहती हूँ कि तुम उनकी मदद करो..!" स्नेहा ने अपनी बात पूरी की....

"ठीक है.. मैं कर दूँगा.. पर करना क्या है?" विकी ने बात आगे बढ़ाने की कोशिश की....

" उनको जगह देनी है.. जहाँ पर वो रह सकें.. उनको रास्ता दिखाना है.. नही रास्ता मत दिखाना.. वो 'प्यार' को तुमसे कहीं बेहतर समझते हैं.. एक बात और मानोगे...?" स्नेहा ने अपने आँसू पौच्छे...

" बोलो..."

" उन्हे कभी मत बताना की तुमने मुझे छ्चोड़ दिया.. मेरे प्यार की तौहीन होगी.. उनके सामने में हरपल तुम्हारी ही बात करती रही.. मोहन ऐसा है.. मोहन वैसा है..मोहन ने मेरे लिए ये किया.. वो किया.. वो तुम्हारी बहुत इज़्ज़त करते हैं.. तुम्हे आदर्श मान'ने लगे हैं अपना.. अगर उनको ये सब पता लग गया तो वो 'प्यार' को ही ग़लत समझने लगेंगे.. एक दूसरे पर से भी विस्वास उठ जाएगा उनका.. और मैं नही चाहती की दिल हमेशा हारे.. और दिमाग़ हमेशा जीते!...

अचानक विकी ने कच्चे रास्ते पर गाड़ी मोड़ दी.. वहाँ 3 गाड़ियाँ खड़ी थी.. जो उनके पिछे चल पड़ी..

" इनको सोन्प दोगे मुझे?" स्नेहा ने विचलित होते हुए कहा.. उसको लगा.. विकी से जुदा होने का टाइम आ गया है.. मायूसी और मजबूरी उसके हसीन चेहरे पर अचानक बिखर गयी...

" नही.. ये अपने आदमी हैं.. मेरी प्रोटेक्षन के लिए साथ आए हैं.. वो भी पूरी तैयारी के साथ आए होंगे.." विकी ने कहा...

" एक बात बताऊं विकी.. तुम्हे याद है जब हॉस्टिल से निकलने के बाद उन्न लोगों ने हमारी गाड़ी रुकवाई थी.. और मुझे ले जाने की कोशिश कर रहे थे.. तब मुझे तुमसे प्यार नही था.. मैं अपनी जान बचाने के लिए तुम्हारे सीने से जा चिपकी थी.. उस वक़्त मैं जीना चाहती थी.. अपने लिए... और जब तुमने एक हाथ से मुझे अपने अंदर समेत कर उस आदमी के मुँह पर घूँसा मारा था.. वो मेरी जिंदगी का सबसे हसीन पल था.. उसी एक पल में मुझे तुमसे प्यार हो गया.. उसी एक पल में मैं तुमको अपना मान बैठी.. उसी एक पल मैं मुझे अहसास हुआ था की प्यार क्या होता है.. दूसरे के लिए जीना क्या होता है.. और मैं तुम्हारे लिए जीने लगी थी... मुझे नही पता था वो सब नाटक था.." कहते ही स्नेहा विकी की छाती से चिपक गयी और बच्चों की तरह से रोना शुरू कर दिया.. विकी का हाथ अपने आप ही उठ कर स्नेहा की कमर पर चला गया.. और उसको सख्ती से अपनी छाती में दूबका लिया...

" मुझे वही मार देना विकी.. पैसे लेते ही.. उनको भी तो मुझे मारना ही है.. मैं तुम्हे याद करके तड़पना नही चाहती.. मैं जीना नही चाहती विकी.. प्लीज़.. मुझे मार देना जान.. मैं और जीकर क्या करूँगी.. अब हर पल मेरे लिए सज़ा के समान होगा.. मुझे क्यूँ तड़पने के लिए छ्चोड़ देना चाहते हो.. मार देना मुझे.." स्नेहा के हर शब्द में गुहार थी.. हर शब्द में अधूरी कसक थी.. उसके पूरा ना हो पाने की.. अर्धनीगीनी ना बन पाने की...

विकी से कुच्छ बोलते ना बना.. अब तो बस एक ही काम हो सकते था.. या तो स्नेहा को पूरी करना.. या अपने अरमान..

करीब 5 मिनिट और चलने के बाद वो एक टीले के पास आ गये.. वहाँ कुच्छ और गाड़ियाँ खड़ी थी... उनके ठीक सामने कुच्छ दूरी पर विकी ने गाड़ी रोक दी.. दूसरी गाड़ियाँ उसकी बराबर में आ खड़ी हुई...

विकी गाड़ी से नीचे उतर गया.. उसके उतरते ही उसकी गाड़ियों में से एक आदमी गाड़ी के बाहर स्नेहा की बगल में आ खड़ा हुआ.. पता नही क्यूँ?

कुच्छ और आदमी निकल कर गाड़ियों के पास खड़े हो गये.. लगभग सभी के हाथ में हथियार थे..

दूसरी तरफ भी कुच्छ ऐसा ही दृश्या था.. फ़र्क़ सिर्फ़ इतना ही था की इनके पास स्नेहा थी और उनके पास पैसा.. स्नेहा की कीमत!

विकी आगे गया तो उधर से बांके भी इस और चला आया.. पास आते ही बांके ने विकी की और हाथ बढ़ाया.. पर विकी के हाथ उसकी जेब से ना निकले.. या पता नही.. निकल ही नही पाए," पैसा?"

" पूरा है.. हमारे पास आकर देख सकते हो.. आओ!" बांके ने जवाब दिया...

विकी उसके साथ उनकी गाड़ियों के पास गया और दोनो सूटकेस चेक किए.. हज़ार हज़ार की गॅडडिया थी..

" चाहो तो गिन सकते हो?" बांके ने बत्तीसी दिखाते हुए कहा..

" एक नोट भी कम निकला तो तुझे पता है मैं क्या करूँगा...!" विकी ने रूखा सा जवाब दिया..

" कैसे करना है..?" बांके ने अदला बदली के बारे में पूचछा...

" तुम अपनी एक गाड़ी वहाँ भेज दो.. हम स्नेहा को उसमें बिठा देंगे.. " विकी ने एक गाड़ी को अपनी और आने का इशारा किया और उनकी गाड़ी उसकी तरफ चल पड़ी..," इधर हम अपनी गाड़ी में पैसे रखेंगे.. और उधर तुम्हारी गाड़ी में स्नेहा को बिठाएँगे.. उसके बाद हुमारी सभी गाड़ियाँ आगे निकल जाएँगी और तुम्हारी गाड़ियाँ उधर से सीधे... ठीक है?" विकी ने पूचछा...

"हां.. पर मैं पहले लड़की चेक करूँगा...!" बांके ने कहा...

" आ जाओ.." कहकर विकी स्नेहा की और चल पड़ा... बांके भी उसके पिछे पिछे आने लगा...

स्नेहा गाड़ी में सहमी हुई सी बैठी थी.. सब कुच्छ इतना आसान नही था जैसा उसने सोचा था.. दूसरे आदमी के साथ जाने की कल्पना करते हुए ही उसको डर लग रहा था.. वह तो कहीं से भी अपना नही था.. जब विकी ने ऐसा कर दिया तो.... वह रोने लगी....

बांके ने के पास आकर अंदर झाँका..," अगर मैं फोटो साथ नही लता तो कभी विस्वास नही होता की यह मुरारी जी की बेटी है.. देख ना.. कितनी गरम आइटम है.. ससूरी रोते हुए भी कितनी सेक्सी लग रही है... नही?" बांके ने फोटो निकाल कर स्नेहा का चेहरा मिलते हुए कहा...

" चुपचाप अपना काम करो.. ज़्यादा बकवास करने की ज़रूरत नही है.. वरना यहीं ठोक दूँगा.. समझा!" जाने क्यूँ विकी को बांके के मुँह से स्नेहा के शरीर की कामोत्तेजक प्रशंसा सुनकर जलन सी हुई.. उसका थोबड़ा चढ़ गया...

"हे हे हे.. इसको ज़रा नीचे उतारो.. मुरारी जी ने बोला था अच्छे से चेक करना.. आच्छे से..!" बांके स्नेहा को अपने साथ ले जाने को कुच्छ ज़्यादा ही लालायित था..

विकी ने खिड़की खोल दी," नीचे आओ स्नेहा...!"

" नही.. मैं इसके साथ नही जाउन्गि.. मुझे मत भेजो प्लीज़.. मुझे यहीं मार दो.. मैं नही जाउन्गि.." बांके का चेहरा ही कुच्छ ऐसा था.. स्नेहा अपनी सीट से चिपक गयी...

" नीचे आओ स्नेहा.. प्लीज़.. नाटक बंद करो.. मैने तुम्हे क्या कहा था.." विकी ने उसका हाथ पकड़ा तो उसने अपना हाथ च्छुडा लिया.. ," नही.. मैने कहा ना.. मैं नही जाउन्गि.. मुझे मार दो.. यहीं!" स्नेहा की कारून चीत्कार विकी के कलेजे में उतर गयी.. पर उसने अपने आपको संभाले रखा.. उसका कलेजा ही कुच्छ ऐसा था..

" इसको नीचे उतारो.. विकी ने अपने एक आदमी को इशारा किया और खुद अलग हट गया...

वो आदमी.. स्नेहा को खींच कर नीचे उतारने की कोशिश करने लगा.. पर जैसे स्नेहा को तो कोई और 'हाथ' अपने बदन पर अब गंवारा ही ना था," दूर हटो.. मैं उतर रही हूँ.." स्नेहा ने बिलखते हुए कहा.. उसकी आँखों के सामने अंधेरा सा छाया हुआ था.. जैसे मौत ही उसको पुकार रही हो.. उसको विकी की बगल में टगी माउज़र दिखाई दी.. और उसको लगा उसको रास्ता मिल गया है.. वह नीचे उतर कर विकी के साथ खड़ी हो गयी.. मौके के इंतज़ार में..

"देख लो जल्दी.. मेरे पास टाइम नही है..

" बांके गौर से स्नेहा को उपर से नीचे तक देखने लगा.. उसकी लार टपक पड़ी.. आँखों में खून वासना बनकर उतर आया.. स्नेहा का हर अंग इतना रसीला था की कपड़ों के उपर से ही किसी की भी पॅंट गीली हो सकती थी.. बांके भूल गया की वह विकी के पास खड़ा है.. ये भी की विकी ने उसको 2 मिनिट पहले ही चेतावनी दी थी..

बांके की नज़रों को इस तरह अपने बदन में चुभता हुआ देखना स्नेहा से सहन

ना हुआ.. वह लज्जित होकर विकी से जा लिपटी और अपने आपको उसमें च्छुपाने की कोशिश करने लगी.. ठीक उसी तरह जैसा पिच्छली बार नाटक के वक़्त हुआ था..

विकी को हर पल ये अहसास हो रहा था की वह दुनिया का सबसे गिरा हुआ इंसान है.. सबसे ज़्यादा लालची और धोखेबाज.. उसको ग्लानि सी होने लगी...

" वाह विकी बाबू.. जवाब नही तेरा भी.. मान गया.. एक बात तो बता.. इसका कुच्छ इस्तेमाल भी किया या मेरे लिए कुँवारी...!"

आगे बांके एक शब्द भी ना बोल पाया.. उसकी गर्दन घूम गयी.. विकी का एक जोरदार थप्पड़ उसके गालों पर पाँचों उंगलियों के निशान छ्चोड़ गया था.. गुस्से से तिलमिलाए हुए विकी का हाथ सीधा अपनी माउज़र पर गया.. और उसने माउज़र निकाल कर बांके के सीने पर तान दी.. विकी का चेहरा ज़िल्लत और गुस्से से लाल हो चुका था.. पहली बार जब उसने बांके को स्नेहा को घूरते देखा था तो उसके दिल में अजीब सी सिहरन पैदा हुई थी.. तब उसको पहली बार ये अहसास हुआ था की स्नेहा जाने अंजाने उसकी धड़कनो में समा चुकी है.. उनके सपने सांझे हो गये हैं.. स्नेहा उसको अपने लिए ज़रूरत सी लगने लगी थी.. अपनी इज़्ज़त सी लगने लगी थी.. 'अपनी' लगने लगी थी.. पर इस बार उसको यकीन हो गया.. वह स्नेहा को नही छ्चोड़ सकता.. वह उसके लिए कुच्छ भी छ्चोड़ सकता है...," उनको बोलो पैसा इधर लेकर आ जायें.. मैं 10 तक गिनूंगा बस!"

" नही.. विकी बाबू.. प्लीज़.. ववो.. मेरे आदमी नही हैं.. वो मुरारी के आदमी हैं.. सच में.. वो कभी स्नेहा को लिए बगैर पैसा नही देंगे.. भगवान की कसम.. आ.. एमेम..मैं तो मज़ाक कर रहा था.. ये तो मेरे लिए बेटी के जैसी है.. है ना?.. प्लीज़.... मुझे बखस दो..."

विकी गिनती गिनता जा रहा था और बांके की पतलून सच में ही गीली हो गयी.. बोलते बोलते... डर के मारे उसने पॅंट के अंदर ही 'कर' दी..

विकी 7 तक पहुँचा तो स्नेहा बोल पड़ी," नही.. ऐसा मत करो.. मैं चली जाती हूँ.. मैं जा रही हूँ.. " कहते हुए उसने खुद को विकी के सीने से अलग करने की कोशिश की पर तब तक विकी ने उसको अपना हाथ उसकी कमर में डाल कर मजबूती से अपने सीने से चिपका लिया था.. और इस बार वो नाटक नही था.. विकी जुड़ गया था.. स्नेहा के नाम के साथ हमेशा के लिए...

9 तक गिनते गिनते माउज़र नीचे झुक गया.. वह स्नेहा की नज़र में अब और बुरा नही बन'ना चाहता था.. उसको इंसान बनकर दिखना चाहता था.. प्यार करने वाला.. मौत बाँटने वाला नही...

"भाग जाओ यहाँ से.. इस'से पहले की मैं अपना विचार फिर से बनाउ.. मुझे यहाँ दिखाई मत देना.." विकी ने एक एक शब्द को चबाते हुए कहा...

उसके बाद तो बांके ने पिछे मुड़कर देखा ही नही... वो सब अपनी गाड़ियों में बैठे और गाड़ियाँ धूल उड़ाती हुई उनकी आँखों से औुझल हो गयी...

" चलो वापस!" विकी ने अपने साथियों से कहा.. उन्न सबकी आँखों में आँसू आ गये थे.. खुशी के.. विकी को पहली बार उन्होने इस अंदाज में देखा था.. अचानक सबने एक दूसरे की आँखों में देखा और एक साथ हवा में फाइयर कर दिया.. स्नेहा सहम कर विकी की छाती में जा दुब्कि..

" आज तू असली वाला लीडर बन गया रे विकी.. अपन तुझे सलाम करता है.." उस आदमी की आवाज़ से लगा उसका कोई करीबी ही होगा.. कोई और तो इस तरह आलिंगंबद्ध जोड़े के पास जाने की हिम्मत कर ही नही सकता था...

जब सब चले गये तो विकी ने स्नेहा को अपने बहुपाश से अलग करके उसकी आँखों में झाँका.. स्नेहा समझ नही पा रही थी की क्या बोले!

" मैं तुम्हारे लायक नही हूँ स्नेहा.. बुल्की तुम्हारे साथ खड़ा होने लायक भी नही हून.. पर मैं तुम्हारी 'वो' इच्च्छा ज़रूर पूरी कर के दिखाउन्गा.. मैं तुम्हे ग़लत साबित नही होने दूँगा.. राज और प्रिया को मिलने से कोई नही रोक सकता.. ..... अगर राज मेरे जैसा नही निकला तो... आओ तुम्हे उनके पास छ्चोड़ आउ!" विकी ने अब तक सहमी खड़ी स्नेहा को गाड़ी में बिठाया और फिर खुद गाड़ी में बैठ कर गाड़ी चला दी!

साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,

मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..

मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,

बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ

आपका दोस्त

राज शर्मा

(¨`·.·´¨) ऑल्वेज़

`·.¸(¨`·.·´¨) कीप लविंग &

(¨`·.·´¨)¸.·´ कीप स्माइलिंग !

`·.¸.·´ -- राज

girls school--50

hello dosto girls school ka paart 50 lekar aapke liye haajir hun

Lunch mein Anjali ne aate hi ladkiyon se poochha," Sneha kahan gayi.. uska mood theek huaa ki nahi..?"

"wo toh chali bhi gayi mummy! Mohan aaya tha usko lene.." Gouri ne khadi hote huye kaha.. Sabko darr tha.. ab tour shayad mushkil hai.. sabhi ke munh pichke huye the.. khas tour se Priya aur Riya ke.. unhe wahan se jana pad gaya toh..

"kyaaa??? oh my God! mujhe school nahi jana chahiye tha.. ab main kya karoon..?" badbadate huye anjali ne fone nikal liya aur Shamsher ke paas fone milaya

"haan.. Anjali.. main sham tak pahunch jaaunga.. tour ki taiyaari kar li hai na?" Shamsher ne fone uthate hi kaha...

"wwo.. Sneha chali gayi.. Vicky ke sath.." Anjali ne uski baat par dhyan na dete huye kaha..

"whhat??? usko pata nahi tha kya..? usko bataya nahi tha kya? ye kya ho gaya..?" shamsher vichlit sa ho gaya...

"mujhe nahi pata.. mere khayal se pata chal gaya tha usko.. subah se ro rahi thi..."

Shamsher ne bina ek pal bhi gunwaye Tough ke paas fone lagaya," Sneha chali gayi.. vicky ke sath.. tumne usko bataya kyun nahi..?"

"kya???" lagbhag waisa hi dhakka tough ko bhi laga," par maine toh usko recording tak suna di thi.. fir wo gayi kyun?"

" ab ye baat sochne ka waqt nahi hai.. hamein jaldi hi kuchh karna padega...!" Shamsher ki taraf se aawaj aayi...

" par chinta karne ki baat nahi hai bhai.. Murari ne apne logon ko uske bahar aane tak usko kuchh nahi karne ko kaha hai.. main sambhal loonga.. sala Murari toh apne paas hi hai na.. main sambhal loonga... par vicky ne ye theek nahi kiya bhai.. wo toh pagal ho gaya hai.. waise Murari ne jo location deal ke liye tay ki hai.. main wahan police bhej deta hoon.. khud bhi chala jaaunga.. Recording mein Murari ne khol kar bataya tha.. main nikal raha hoon.." kahkar tough ne fone kata aur jaldi se bahar nikal gaya.....

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Lunch ke baad mayus anjali jab office louti toh Vasu pahle se hi uska intzaar kar raha tha..

"Shrimati ji.. maine aapki salaah par vichar kiya tha.. bura nahi hai.. main sath chalne ko taiyaar hoon.. kahiye kab ka karyakram rakhein..?"

" Nahi Vasu ji.. maine bhi aapki baat par gour farmaya tha.. aap sahi kah rahe the.. iss waqt tour par jana theek nahi.. maine programme cancel kar diya hai.." Anjali ne kursi par baithte hi apna matha pakar liya....

"Parantu ye toh koyi baat nahi huyi.. maine lakh sochne ke baad apna mann banaya.. aur ab jabki main jane ka ichchhuk hoon toh aap mana kar rahi hain.. aapko chalna chahiye.. aur nahi toh aap bachchon se hi poochh kar dekh lo.. maine bhi ek aadh ladki se iss baare mein vichar kiya tha.. wo chalne ko taiyaar hain.. aap kahein toh main bachchon se parchiyan dalwa leta hoon.. jaisa bahumat kahe.. boliye?" bechare vasu par toh gaaz si gir padi tour cancel hone ki baat sunte hi... jaane kitne armaan sanjo liye the usne ghante bhar mein hi....

"Dekhiye vasu ji.. tour mumkin nahi hai.. aap samajhne ki koshish karein... aur mere sir mein dard hai.. aap kripaya mujhe akela chhod dein..." Anjali tunak si padi thi...

Vasu bina kuchh bole munh fulakar wahan se nikal gaya.. usne class nahi li.. jate huye usne chhoti class ki ek ladki ko bulaya aur usko Neeru ko math ki kitab lekar staffroom mein bhej dene ko bol kar khud wahin chala gaya...

"ji Sir.. Aapne bulaya?" kahte huye Neeru seedhi staffroom mein ghus gayi.. usne andar aane ki ijajat tak nahi maangi.. wo khili huyi thi.. jate hi usne apni math ki kitab ko table par patka aur vasu ki aur munh karke khadi ho gayi...," maine poochh liya hai Sir.. gharwalon se.. main bhi chaloongi tour par... "

Vasu bechaini se khada hokar idhar udhar tahlne laga," Saali sari duniya prem ki dushman hai..! Log jodiyan bante dekh hi nahi sakte.. sabko apni apni padi hai.. batao.. agar chal padte toh kounsa pahad toot padna tha.... ?" Vasu badbada raha tha.. Neeru ko bus ek hi baat dhang se sunayi di.. ' Sari duniya prem ki dushman hai'

"kya Sir?" Neeru ne hichkichate huye poochha..

" arey kya kya?" Vasu ne Neeru ke paas aakar usko kandhon par se pakad liya.. uska gussa uski pakad ki majbooti mein jhalak raha tha.. Neeru andar tak hil gayi.. neeche tak.. Vasu ne aawesh mein bakna jari rakha," wo kya samajhte hain..? agar hum ghoomne nahi gaye toh kya hum pyar karna chhod denge.. kya hum yahan pyar nahi kar sakte.. nahi nahi.. ye toh vidyalay hai.." Vasu ne apne hath hata liye," kya tum mere paas ghar nahi aa sakti.. kya main chori chhipe Raat ko deewarein kood kar tumhare ghar nahi aa sakta.. kya hamara pyar itna kamjor hai ki...."

Vasu jane kya kya bak raha tha.. mano bhang kha rakhi ho.. Neeru hairan thi.. abhi tak jo uss'se baat karte huye hichkicha raha tha.. ab deewarein koodne ki baat kar raha hai.. jane kitne rang the uske Vasu ke.. wo toh aaj tak usko samajh hi nahi payi thi...

Par wo man hi man khil uthi thi.. Jo wo bol dena chahti thi.. uski jarurat hi na padi.. sab kuchh akele vasu ne hi bol diya

"toh kya Sir.. hum tour par nahi ja rahe..?" Neeru ne lagataar anaap shanaap bol rahe vasu ko khud bolkar chup kiya...

" nahi.. par tum chinta mat karo.. main tumhare ghar aaunga.. aaj raat ko.. aa jaaun na?"

Neeru se koyi jawaab dete hi na bana.. wah sharma gayi.. kitaabein uthayi aur bahar bhag gayi.. par jawaab toh Vasu ko mil hi gaya tha.. uski muskurahat mein!

Vicky chupchap Sneha ko lekar apni manjil ki aur chalta ja raha tha.. uska man usko kachot raha tha.. kya wah sahi kar raha hai? haan bhi aur nahi bhi.. uske antarman mein virodhabhas goonj raha tha.. Vicky ke paas sab kuchh tha.. par wo manjil par pahunch kar sustaane walon mein se nahi tha.. uska lakshya aur aagey.. fir aur aagey badhte jana tha.. Jaankaron ki rai mein multiplex rupaiyon ki khan tha.. kahne ko net income sirf 2 se 2.5 lakh rupaiye mahina par vastavikta iss-se kafi alag thi.. pahle jab casino par ban nahi tha to uska malik shahar ka sabse bada ameer tha.. karan undergroung floor par casino ki aad mein hone wale har tarah ke dhandhe.. karodon rupaiyon ki paidawar har mahine uss 100x100 ki chhoti si jagah se hoti thi... par pichhli sarkar ne sab kuchh band karwa diya aur Multiplex ka malik bhari dabav mein aa gaya.. par ab.. ab andar ki khabar ye thi ki agli sarkaar aate hi usko fir se chalu karne ja rahi hai.. aur yahi karan tha ki Murari aur Vicky mein usko lekar talwaarein khinchi huyi thi.. aur chakachoundh kar dene wale rupaiyon ki khanak ke saamne kisi ke jajbaat kuchh mayne nahi rakhte the.. kuchh bhi nahi...

Par Sneha iska shikar kyun bani? kash wah shuru mein hi Sneha ko sab sach bata deta.. kum se kum wo sapne toh na paalti.. usko aaj khud ki hi najron mein yun jaleel toh na hona padta.. Jo sapne Sneha ne dekhe hain.. khud usko bhi toh kabhi na kabhi dekhne hain... iss'se jyada pyar usko karne wali dusri koyi ladki duniya mein usko mil sakegi.. sab kuchh pata chalne ke baad bhi aa gayi..

" Kamaal hai.. Pyar karne wale log kitne beparwah hote hain.. kitne pagal.." Vicky ne ek lumbi saans chhodte huye Sneha ki aur dekha.. uske chehre par koyi bhav nahi tha..

Sneha ne koyi jawaab nahi diya.. par garv se apna sir utha liya.. mano usko apne pagalpan par garv ho.. pyar ko sanjeedagi se samajhne ka ghamand!

" tum kisi aakhiri ichchha ki baat kar rahi thi.. wahi bata do!" khisiyaye huye se vicky ne fir Sneha ko toka...

" tum poori nahi karoge vicky..tum pyar ko samajhte hi nahi ho.. jane do..!" Sneha ne saamne dekhte huye hi jawaab diya...

"kahkar toh dekho! kya pata kar bhi doon?" Vicky ne fir poochhne ki jurrat ki..

"Maine Raj aur Priya dono se baat ki thi.. Dono ek dusre se behad pyar karte hain.. jaise main tumhe kar baithi thi.. bina soche samjhe.. bina jane.. pagal thi na.. tumhare liye.. "

"ye Priya koun hai?" Vicky ne usko toka..

" unke Saamne hi rahti hai.. dono ek hi class mein padhte hain.. ek hi School mein.. wo bhi uske sath hi bhag kar Loharu aa gayi hai.. pata nahi unka kya hoga? Priya ne mujhse kaha tha.." Sneha ne apne aapko jajbaat mein bahne se rokne ki lakh koshish ki par apne aapko subakne se na rok payi.. par wah bolti rahi.." Priya ne kaha tha.. apne Mohan se kahna hamari madad kare.. wo hamara intzaar karenge.. taki hum wapas jakar unki madad kar sakein.. meri tarah wo bhi nadan hain.. agar unke saamne koyi rukawat aayi.. toh mujhe darr hai.. wo bikhar jayenge... main chahti hoon ki tum unki madad karo..!" Sneha ne apni baat poori ki....

"theek hai.. main kar doonga.. par karna kya hai?" Vicky ne baat aage badhane ki koshish ki....

" unko jagah deni hai.. jahan par wo rah sakein.. unko raasta dikhana hai.. nahi Raasta mat dikhana.. wo 'pyar' ko tumse kahin behtar samajhte hain.. ek baat aur maanoge...?" Sneha ne apne aansoo pouchhe...

" Bolo..."

" Unhe kabhi mat batana ki tumne mujhe chhod diya.. mere pyar ki touheen hogi.. unke saamne mein harpal tumhari hi baat karti rahi.. Mohan aisa hai.. Mohan waisa hai..mohan ne mere liye ye kiya.. wo kiya.. wo tumhari bahut ijjat karte hain.. tumhe aadarsh maan'ne lagey hain apna.. agar unko ye sab pata lag gaya toh wo 'pyar' ko hi galat samajhne lagenge.. ek dusre par se bhi visvas uth jayega unka.. aur main nahi chahti ki dil hamesha haare.. aur Dimag hamesha jeete!...

achanak vicky ne kachche raaste par gadi mod di.. wahan 3 gaadiyan khadi thi.. jo unke pichhe chal padi..

" inko sonp dogey mujhe?" Sneha ne vichlit hote huye kaha.. usko laga.. vicky se juda hone ka time aa gaya hai.. mayusi aur majboori uske haseen chehre par achanak bikhar gayi...

" Nahi.. ye apne aadmi hain.. Meri protection ke liye sath aaye hain.. wo bhi poori taiyari ke sath aaye honge.." Vicky ne kaha...

" ek baat bataaoon vicky.. tumhe yaad hai jab hostel se nikalne ke baad unn logon ne hamari gadi rukwayi thi.. aur mujhe le jane ki koshish kar rahe the.. tab mujhe tumse pyar nahi tha.. main apni jaan bachane ke liye tumhare seene se ja chipki thi.. uss waqt main jeena chahti thi.. apne liye... aur jab tumne ek hath se mujhe apne andar samet kar uss aadmi ke munh par ghoonsa mara tha.. wo meri jindagi ka sabse haseen pal tha.. usi ek pal mein mujhe tumse pyar ho gaya.. usi ek pal mein main tumko apna maan baithi.. usi ek pal main mujhe ahsaas hua tha ki pyar kya hota hai.. dusre ke liye jeena kya hota hai.. aur main tumhare liye jeene lagi thi... mujhe nahi pata tha wo sab natak tha.." kahte hi Sneha Vicky ki chhati se chipak gayi aur bachchon ki tarah se rona shuru kar diya.. Vicky ka hath apne aap hi uth kar Sneha ki kamar par chala gaya.. aur usko sakhti se apni chhati mein dubka liya...

" Mujhe wahi maar dena Vicky.. paise lete hi.. unko bhi toh mujhe maarna hi hai.. main tumhe yaad karke tadapna nahi chahti.. main jeena nahi chahti vicky.. please.. mujhe maar dena jaan.. main aur jeekar kya karoongi.. ab har pal mere liye saja ke samaan hoga.. mujhe kyun tadapne ke liye chhod dena chahte ho.. maar dena mujhe.." Sneha ke har shabd mein guhaar thi.. har shabd mein adhuri kasak thi.. uske poora na ho pane ki.. ardhanigini na ban pane ki...

Vicky se kuchh bolte na bana.. ab toh bus ek hi kaam ho sakte tha.. ya toh Sneha ko poori karna.. ya apne armaan..

kareeb 5 minute aur chalne ke baad wo ek teeley ke paas aa gaye.. wahan kuchh aur gadiyan khadi thi... unke theek saamne kuchh doori par Vicky ne gadi rok di.. dusri gadiyan uski barabar mein aa khadi huyi...

Vicky Gadi se neeche utar gaya.. uske utarte hi uski gaadiyon mein se ek aadmi gadi ke bahar Sneha ki bagal mein aa khada hua.. pata nahi kyun?

kuchh aur aadmi nikal kar gadiyon ke paas khade ho gaye.. lagbhag sabhi ke hath mein hathiyar the..

Dusri taraf bhi kuchh aisa hi drishya tha.. farq sirf itna hi tha ki inke paas Sneha thi aur unke paas paisa.. Sneha ki keemat!

Vicky aage gaya toh Udhar se Baanke bhi iss aur chala aaya.. Paas aate hi Baanke ne vicky ki aur hath badhaya.. par vicky ke hath uski jeb se na nikle.. ya pata nahi.. nikal hi nahi paye," paisa?"

" poora hai.. hamare paas aakar dekh sakte ho.. aao!" baanke ne jawaab diya...

Vicky uske sath unki gadiyon ke paas gaya aur dono suitcase check kiye.. hazar hazar ki gaddiyan thi..

" chaho toh gin sakte ho?" Baanke ne batteesi dikhate huye kaha..

" Ek note bhi kum nikla toh tujhe pata hai main kya karoonga...!" Vicky ne rookha sa jawaab diya..

" kaise karna hai..?" Baanke ne adla badli ke baare mein poochha...

" tum apni ek gadi wahan bhej do.. Hum Sneha ko usmein bitha denge.. " vicky ne ek gadi ko apni aur aane ka ishara kiya aur unki gadi uski taraf chal padi..," Idhar hum apni gadi mein Paise rakhenge.. aur udhar tumhari Gadi mein Sneha ko bithayenge.. uske baad humari sabhi gadiyan aage nikal jayengi aur tumhari gadiyan udhar se seedhe... theek hai?" Vicky ne poochha...

"haan.. par main pahle ladki check karoonga...!" Baanke ne kaha...

" aa jao.." Kahkar vicky Sneha ki aur chal pada... Baanke bhi uske pichhe pichhe aane laga...

Sneha gadi mein sahmi huyi si baithi thi.. sab kuchh itna aasan nahi tha jaisa usne socha tha.. dusre aadmi ke sath jane ki kalpana karte huye hi usko darr lag raha tha.. wah toh kahin se bhi apna nahi tha.. jab vicky ne aisa kar diya toh.... wah rone lagi....

Baanke ne ke paas aakar andar jhanaka..," agar main foto sath nahi lata toh kabhi visvas nahi hota ki yah Murari ji ki beti hai.. Dekh na.. kitni garam item hai.. Sasuri rote huye bhi kitni sexy lag rahi hai... nahi?" Baanke ne foto nikal kar Sneha ka chehra milate huye kaha...

" chupchap apna kaam karo.. jyada bakwas karne ki jarurat nahi hai.. warna yahin thok doonga.. samjha!" Jane kyun Vicky ko Baanke ke Munh se Sneha ke shareer ki kamottejak prashansa sunkar jalan si huyi.. uska tohbda chadh gaya...

"he he he.. isko jara neeche utaro.. Murari ji ne bola tha achchhe se check karna.. Achchhe se..!" Baanke Sneha ko apne sath le jane ko kuchh jyada hi lalayit tha..

Vicky ne khidki khol di," Neeche aao Sneha...!"

" nahi.. main iske sath nahi jaaungi.. mujhe mat bhejo pls.. mujhe yahin maar do.. main nahi jaaungi.." Baanke ka chehra hi kuchh aisa tha.. Sneha apni seat se chipak gayi...

" Neeche aao Sneha.. pls.. natak band karo.. maine tumhe kya kaha tha.." Vicky ne uska hath pakda toh usne apna hath chhuda liya.. ," nahi.. maine kaha na.. main nahi jaaungi.. mujhe maar do.. yahin!" Sneha ki karun chitkar Vicky ke kaleje mein utar gayi.. par usne apne aapko sambhale rakha.. uska kaleja hi kuchh aisa tha..

" isko neeche utaaro.. Vicky ne apne ek aadmi ko ishara kiya aur khud alag hat gaya...

wo aadmi.. Sneha ko kheench kar neeche utaarne ki koshish karne laga.. par jaise Sneha ko toh koyi aur 'hath' apne badan par ab ganwara hi na tha," Door hato.. main utar rahi hoon.." Sneha ne bilakhte huye kaha.. uski aankhon ke saamne andhera sa chhaya hua tha.. jaise mout hi usko pukar rahi ho.. usko vicky ki bagal mein tangi mouser dikhayi di.. aur usko laga usko raasta mil gaya hai.. Wah neeche utar kar vicky ke sath khadi ho gayi.. mouke ke intzaar mein..

"dekh lo jaldi.. mere paas time nahi hai..

" Baanke gour se Sneha ko upar se neeche tak dekhne laga.. uski laar tapak padi.. aankhon mein khoon wasna bankar utar aaya.. Sneha ka har ang itna rasila tha ki kapdon ke upar se hi kisi ki bhi pant geeli ho sakti thi.. Baanke bhool gaya ki wah vicky ke paas khada hai.. ye bhi ki vicky ne usko 2 minute pahle hi chetawani di thi..

Baanke ki najron ko iss tarah apne badan mein chubhta hua dekhna Sneha se sahan

na hua.. wah lajjit hokar vicky se ja lipti aur apne aapko usmein chhupane ki koshish karne lagi.. theek usi tarah jaisa pichhli baar natak ke waqt hua tha..

Vicky ko har pal ye ahsaas ho raha tha ki wah duniya ka sabse gira hua insaan hai.. sabse jyada lalachi aur dhokhebaaj.. usko glani si hone lagi...

" wah Vicky babu.. jawab nahi tera bhi.. maan gaya.. ek baat toh bata.. iska kuchh istemaal bhi kiya ya mere liye kunwari...!"

aagey Baanke ek shabd bhi na bol paya.. uski gardan ghoom gayi.. vicky ka ek jordaar thappad uske gaalon par paanchon ungaliyon ke nishan chhod gaya tha.. gusse se tilmilaye huye Vicky ka hath seedha apni mouser par gaya.. aur wah boukhla gaya.. ,"meri mouser kahan hai?"

Tabhi goli chale ki aawaj Vicky ko apne kano ke paas sunayi di.. uske chounk kar pichhe hat'te hi khoon se lathpath Sneha Jameen par aa giri.. wo aazad ho chuki thi.. hamesha ke liye...

Vicky ko har pal ye ahsaas ho raha tha ki wah duniya ka sabse gira hua insaan hai.. sabse jyada lalachi aur dhokhebaaj.. usko glani si hone lagi...

" wah Vicky babu.. jawab nahi tera bhi.. maan gaya.. ek baat toh bata.. iska kuchh istemaal bhi kiya ya mere liye kunwari...!"

aagey Baanke ek shabd bhi na bol paya.. uski gardan ghoom gayi.. vicky ka ek jordaar thappad uske gaalon par paanchon ungaliyon ke nishan chhod gaya tha.. gusse se tilmilaye huye Vicky ka hath seedha apni mouser par gaya.. aur usne mouser nikal kar Baanke ke seene par taan di.. Vicky ka chehra jillat aur gusse se laal ho chuka tha.. pahli baar jab usne Baanke ko Sneha ko ghoorte dekha tha toh uske dil mein ajeeb si siharan paida huyi thi.. tab usko pahli baar ye ahsaas huaa tha ki Sneha jaane anjaane uski dhadkano mein sama chuki hai.. unke sapne saanjhe ho gaye hain.. Sneha usko apne liye jarurat si lagne lagi thi.. apni ijjat si lagne lagi thi.. 'apni' lagne lagi thi.. par iss baar usko yakeen ho gaya.. wah Sneha ko nahi chhod sakta.. wah uske liye kuchh bhi chhod sakta hai...," unko bolo paisa idhar lekar aa jayein.. main 10 tak ginoonga bus!"

" Nahi.. vicky babu.. pls.. wwo.. mere aadmi nahi hain.. wo Murari ke aadmi hain.. sach mein.. wo kabhi Sneha ko liye bagair paisa nahi denge.. bhagwan ki kasam.. aa.. mm..man toh majak kar raha tha.. ye toh mere liye beti ke jaisi hai.. hai na?.. pls.... mujhe bakhs do..."

Vicky Ginati ginta ja raha tha aur Baanke ki patloon sach mein hi geeli ho gayi.. Bolte bolte... Darr ke marey usne pant ke andar hi 'kar' di..

Vicky 7 tak pahuncha toh Sneha bol padi," Nahi.. aisa mat karo.. main chali jati hoon.. main ja rahi hoon.. " Kahte huye usne khud ko Vicky ke seene se alag karne ki koshish ki par tab tak Vicky ne usko apna hath uski kamar mein daal kar majbooti se apne seene se chipka liya tha.. aur iss baar wo natak nahi tha.. Vicky jud gaya tha.. Sneha ke naam ke sath hamesha ke liye...

9 tak ginte ginte mouser neeche jhuk gaya.. wah Sneha ki najar mein ab aur bura nahi ban'na chahta tha.. usko insaan bankar dikhna chahta tha.. pyar karne wala.. mout baantne wala nahi...

"Bhag jao yahan se.. iss'se pahle ki main apna vichar fir se banaun.. mujhe yahan dikhayi mat dena.." Vicky ne ek ek shabd ko chabate huye kaha...

uske baad toh Baanke ne pichhe mudkar dekha hi nahi... wo sab apni gadiyon mein baithe aur gaadiyan dhool udaati huyi unki aankhon se aujhal ho gayi...

" Chalo wapas!" Vicky ne apne sathiyon se kaha.. unn sabki aankhon mein aansoo aa gaye the.. khushi ke.. Vicky ko pahli baar unhone iss andaj mein dekha tha.. achanak sabne ek dusre ki aankhon mein dekha aur ek sath hawa mein fire kar diya.. Sneha saham kar Vicky ki chhati mein ja dubki..

" aaj tu asli wala leader ban gaya re vicky.. apan tujhe salaam karta hai.." uss aadmi ki aawaj se laga uska koyi kareebi hi hoga.. koyi aur toh iss tarah aalinganbaddh jode ke paas jane ki himmat kar hi nahi sakta tha...

jab sab chale gaye toh Vicky ne Sneha ko apne bahupash se alag karke uski aankhon mein jhanka.. Sneha samajh nahi pa rahi thi ki kya bole!

" Main tumhare layak nahi hoon Sneha.. bulki tumhare sath khada hone layak bhi nahi hoon.. par main tumhari 'wo' ichchha jaroor poori kar ke dikhaunga.. main tumhe galat sabit nahi hone doonga.. Raj aur Priya ko milne se koyi nahi rok sakta.. ..... agar Raj mere jaisa nahi nikla toh... aao tumhe unke paas chhod aaun!" Vicky ne ab tak sahmi khadi Sneha ko Gadi mein bithaya aur fir khud gadi mein baith kar gadi chala di!

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Re: गर्ल'स स्कूल

Post by rajaarkey »

गर्ल्स स्कूल पार्ट --51

हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक बार फिर पार्ट-51 लेकर हाजिर हूँ

काफ़ी देर यूँही चुपचाप चलते रहने के बाद स्नेहा ने नज़रें घूमाकर विकी की और देखा.. विकी के हाव-भाव बिल्कुल बदले हुए थे.. चेहरे पर पासचताप नही गर्व था... ग्लानि नही सुकून था..

स्नेहा को समझ में ही ना आया और बात कहाँ से शुरू करे..." अब तुम्हे वो मल्टिपलेक्स कैसे मिलेगा....... विकी?"

विकी ने कोई जवाब नही दिया.. बस स्नेहा की और नज़र भर कर देखा और फिर सीधा हो गया.. कहना तो चाहता था वह.. बहुत कुच्छ.. कहना चाहता था कि मुझे अहसास हो गया है.. जिंदगी क्या होती है.. कहना चाहता था कि.. 'वो' उसके लिए दुनिया की सबसे कीमती चीज़ है.. उसके लिए वो सबकुच्छ छ्चोड़ सकता है.. अगर वो उसका हाथ फिर से पकड़ ले तो.. पर विकी को जब अपनी जिंदगी में स्नेहा की ज़रूरत का अहसास हुआ तो साथ ही साथ ये भी अहसास हो गया कि वो क्या करने जा रहा था.. उसके साथ.. और यही वजह थी कि लाख कोशिश करने के बाद भी उसके मुँह से एक शब्द तक ना निकला...

"हम कहाँ जा रहे हैं?" स्नेहा ने उसको फिर टोका...

"लोहरू! मुझे लगता है वहाँ तुम खुश रह सकती हो.. मैं शमशेर और टफ से बात करूँगा.. तुम्हारे लिए.. मुझे पता है.. स्नेहा.. मैने जो कुच्छ भी किया.. वो माफी के लायक नही.. पर प्लीज़ हो सके तो मुझे माफ़ कर देना.. हो सके तो!" विकी का गला भर आया... अपनी बात कहने के दौरान उसने काई बार स्नेहा के चेहरे की और देखा.. पर जब जब वा नज़रें मिलाने की कोशिश करती.. वह अपनी नज़रें हटा लेता.. उसमें अब स्नेहा की नज़रों का सामना करने की हिम्मत नही हो पा रही थी...

" कोई फ़र्क़ नही पड़ता... मुझे तुमसे कोई गिला नही है.. मेरी किस्मत ही ऐसी है!" स्नेहा के तन्हा दिल में अभी भी विकी के आगोश में समा जाने की तड़प थी.. पर विकी को भी उस'से प्यार हो...; तभी तो! वह तो ऐसा कुच्छ बोल ही नही रहा था.. जैसे बस उस पर दया करके ही उसको वापस ले आया हो...

दोनो असमन्झस में थे.. दोनो एक दूसरे के लिए तड़प रहे थे पर पहल करने से दोनो ही कतरा रहे थे.. इसी असमन्झस में वो यूँही आधी अधूरी बात करते हुए लोहरू पहुँच गये...

"अरे देखो.... शायद स्नेहा दीदी वापस आ गयी", खूबसूरत सी लड़की को गाड़ी से उतरते देख वाणी खुशी से उच्छलते हुए अंदर भागी और उसने सबको चौंका दिया," ब्लॅक कलर की गाड़ी में हैं.."

अंदर बैठे सभी के मुरझाए चेहरे उम्मीद की किरण के साथ ही अजीब ढंग से खिल उठे.. सभी भागते हुए बाहर की और भागे.. प्रिया ने खिड़की में से ही स्नेहा को गाड़ी के पास खड़ी होकर विकी की और देखते देख लिया.. वो खुशी से झूम उठी और भागती हुई जाकर स्नेहा को अपनी बाहों में भर लिया," मुझे विस्वास था; तुम ज़रूर आओगी.. थॅंक यू स्नेहा.. थॅंक यू!"

स्नेहा की आँखें छलक आई," शायद तुम्हारा विस्वास ही मुझे यहाँ तक ले आया प्रिया.. वरना.." गाड़ी के चलने की आवाज़ सुनते ही स्नेहा चौंक कर पलटी.. उसने चलते हुए विकी को कुच्छ बोलने का सोच रखा था.. पर.. वो अपने से दूर जा रही गाड़ी को तब तक विस्मित नेत्रों से ताक्ति रही जब तक की वो उसकी आँखों से औझल ना हो गयी..

"अब तो हम चलेंगे ना दीदी.. टूर पर.. अब तो स्नेहा दीदी भी आ गयी हैं.." वाणी प्रिया के हाथ से लिपट गयी.. वो थी ही ऐसी.. घंटा भर पहले ही वहाँ आई थी.. दिशा के साथ.. और वीरू से लेकर रिया तक.. सबके दिलो दिमाग़ पर छा चुकी थी.. सबको लग रहा था जैसे उसको वो वर्षों से जानते हैं.. वाणी अपना दिल खोल कर जो रख देती थी...

अब तक सभी स्नेहा के इर्द-गिर्द जमा हो चुके थे..

"ठहर जा.. नही तो कान के नीचे एक लगाउन्गा.. उसको अंदर तो आने दे पहले.." वीरेंदर ने वाणी का हाथ पकड़ कर एक और खींच लिया...

" आप इतने गुस्सैल क्यूँ हो.. ? सब आपसे डरते हैं.. ऐसे बोलॉगे तो मैं आपसे बात नही करूँगी हां.." वाणी ने अपनी कलाई सहलाते हुए बनावटी गुस्से से वीरू की और देखा और हंस पड़ी.. उसकी हँसी ही तो सबकी जान थी... वीरू बिना मुस्कुराए ना रह सका...

" अब भी तो आ गयी.. मैने कहा नही था? भाई के बिना दिल नही लगेगा तुम्हारा!" वीरू स्नेहा की और मुस्कुराते हुए बोला..

स्नेहा कुच्छ ना बोल सकी.. उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे उसका सब कुच्छ खो गया हो.. जैसे उसको विस्वास ही नही था.. विकी उसकी दुनिया में सतरंगी सपने सजाकर यूँ भाग जाएगा.. घर के अंदर आते हुए भी वह मूड कर बार बार पिछे देखती रही.....

वस्त्र भार बन, तन से निकल जाता है

निवस्त्र यौवन, कामेन्द्रियाँ विचलित कर जाता है

चुचियों का गहरा घेरा, अधरों को ललचाता है

हो व्याकुल प्रेमी, बच्चा बन जाता है

" हां! तो लिस्ट बना लो, यहाँ से कौन कौन टूर पर जा रहे हैं?" लिविंग रूम में सबको अपने चारों और लिए बैठी गौरी ने चिल्लाकर सबको चुप किया.. वीरू एक तरफ लेटा हुआ था और राज उसके पास बैठा हुआ लड़कियों की बातें सुन रहा था...

" कौन कौन क्या? सभी चलेंगे..!" वाणी ने अपनी नज़रें घूमाकर सभी के चेहरे पर झलक आई सहमति के भाव देखे...

"क्यूँ नही? पूरे गाँव को ही उठा ले चलते हैं... क्या ख़याल है?" गौरी ने वाणी की हँसी उड़ाते हुए कहा...

" मैं तो यहाँ बैठे सभी लोगों की बात कर रही थी.. गाँव की बात थोड़े ही कर रही हूँ.." वाणी ने मुँह बनाते हुए कहा...

"अरे पगली.. हम सब तो चलेंगे ही.. पर 5-7 बच्चों से टूर थोड़े ही चला जाएगा.. कुच्छ आइडिया दो.. गाँव की ओर कौन कौन लड़कियाँ चल सकती हैं... हमारे साथ.. अगले महीने एग्ज़ॅम हैं.. स्कूल से ज़्यादा चलने को तैयार नही होंगी.." गौरी ने समझाते हुए कहा..

" नेहा!" दिशा तपाक से बोली.. उसके जहाँ में सबसे पहला नाम यही आया..," वो ज़रूर चल पड़ेगी.. अगर मैं उसको कह दूँगी तो!"

"ठीक है.. लिख लिया.. और?" गौरी ने वहाँ बैठे सभी के नाम लिख कर अगली लाइन में 'नेहा' लिख दिया!

"दिव्या! वो तो पक्का चल पड़ेगी.. लिख लो!" ये वाणी की आवाज़ थी..

" ओके!"

" निशा!" गौरी ने याद करते हुए नाम लिया..

" ना! वो नही चल सकती.. उसकी तो शादी है.. अगले हफ्ते! " दिशा ने गौरी को नाम लिखने से रोक दिया...

"सच? किसके साथ?" गौरी ने चहकते हुए पूचछा.. निशा को संजय का ख़याल हो आया.. कितना बेवफा निकला वो?

"कोई बड़ा बिज़्नेसमॅन है.. हिसार से.. सुना है लव मॅरेज है.. लड़के वालों ने खुद हाथ माँगा है.."

" छ्चोड़ो ना.. और नाम याद करो!" वाणी ने दिशा के मुँह पर हाथ रखते हुए कहा..," सरिता!" वाणी को यूँही याद आ गया.. दिव्या से राकेश और उस'से सरिता!

" चल ना! किसका नाम ले रही है.. टूर का मज़ा खराब करवाएगी क्या? " दिशा ने बिगड़ते हुए कहा..

" मत ले चलो! मुझे क्या है? मैने तो नाम याद दिलाया था बस!" वाणी ने मुँह बनाया...

" लिख लेते हैं यार.. वैसे ही बच्चे कम पड़ रहे हैं.. अगर और लड़कियाँ जाने को तैयार हो गयी तो नाम काट देंगे.. इसमें क्या है!" गौरी ने समझाते हुए कहा...

"चलो.. लिख लो! वैसे मेरी कोई दुश्मन भी नही है वो.. बस.. नेचर की अच्छि नही है.." दिशा ने सफाई देते हुए कहा..

गौरी ने नाम लिख लिया..

" सीमा दीदी.. वो भी तो चल सकती हैं..?" वाणी ने एक और नाम याद दिलाया..

" नही.. वो नही चलेंगी.. वो तो प्रेग्नेंट हैं.." दिशा ने ये नाम भी नकार दिया..

" पूच्छ तो लो दीदी.. क्या पता चल पड़ें!" वाणी ने ज़ोर देकर कहा..

" मुझे पता है च्छुटकी.. वो नही चलेंगी.. तू खाम्खा.. बहस क्यूँ कर रही है..?"

" मानसी!.. हां.. मानसी.. लिख लो दीदी.. इनकी मत सुनो! ये तो 'बस' को भरने ही नही देंगी वो पक्का चलेगी.. मेरे कहते ही!" वाणी एक बार गौरी की और मुस्कुराइ और फिर दिशा की और घूरा.. कहीं वो मना ना कर दे.. दिशा मुस्कुराने लगी.. मानसी के साथ ही उसको मनु का ख़याल आ गया था...

" लिख लिया.. और बोलो.." गौरी ने नाम लिखते हुए कहा..

"कितने हो गये दीदी..?" वाणी ने कॉपी में झाँकते हुए पूचछा...

"देखो.. दिशा.. स्नेहा.. मैं.. प्रिया.. रिया.. वाणी.. राज.. वीरेंदर... नेहा.. दिव्या.. सरिता.. मानसी.. और मम्मी... जीजा जी.. वासू सर.. " गौरी ने आख़िरी तीनो नाम लिस्ट में जोड़ते हुए कहा..

" और सुनील सर?" वाणी ने याद दिलाया..

" नही.. मम्मी ने पूचछा था.. वो नही चल पाएँगे..!" गौरी ने बताया...

वाणी जाने कब से कुच्छ सोच रही थी..," लड़कियाँ 11 और लड़के सिर्फ़ 4!"

पर किसी ने बेचारी की बात पर ध्यान नही दिया.. उसने दिशा की और देखा," दीदी!"

" हूंम्म्म!" दिशा कुच्छ सोचती हुई बोली...

वाणी को कुच्छ कहते ना बना.. उसके दिल की बात तो दिशा को सोच लेनी चाहिए थी...

" बोल!" दिशा ने उसको टोका...

" कुच्छ नही!" वाणी ने मायूस होते हुए कहा...

"विकी नही चल रहा क्या?" प्रिया और रिया स्नेहा को देखते हुए अचानक एक साथ बोल पड़ी..

स्नेहा कुच्छ ना बोली.. वो ऐसे ही बैठी रही.. गुम्सुम सी...

" दीदी! एक मिनिट इधर आना...!" वाणी ने खड़ी होते हुए दिशा का हाथ खींचा..

दिशा उठकर उसके साथ बाहर आ गयी," क्या?" उसकी आँखों में शरारत सी थी.. शायद वो समझ रही थी कि वाणी क्या कहना चाहती है..

" अगर मानसी ने मना कर दिया तो..?" वाणी ने उसकी आँखों में देखते हुए पूचछा...

"पर तू ही तो कह रही थी.. वो चल पड़ेगी.. तू फोन कर ले उसको.." दिशा अंजान बनी रही..

" नही.. मतलब... आप समझती क्यूँ नही.. अगर उसने मना कर दिया तो..?" वाणी कुच्छ और भी कहना चाहती थी..

" तो क्या?"

" जैसे अगर उसके घर वालों ने अगर ये कह दिया की हम इसको अकेली नही भेजेंगे.. तो..?" वाणी ने हल्का सा इशारा दिया...

" तो क्या? हम ज़बरदस्ती थोड़े ही ले जा सकते हैं.. नही ले जाएँगे.. नाम काट देंगे.. और क्या?" अब दिशा को इसमें कोई शक नही था कि वाणी घुमाफिरा कर मनु को साथ ले चलने को कह रही है..

वाणी पैर पटकती हुई अंदर आ गयी..," मुझे नही चलना टूर पर.. मैं नही जा रही.. मेरा नाम काट दो" कहकर वाणी वीरू के बेड के पास डाले हुए सोफे पर आकर पसर गयी...

दिशा भी उसके पीछे पीछे हंसते हुए अंदर आ गयी..

" अब क्या प्राब्लम हो गयी छम्मक छलो!" वीरू ने हंसते हुए वाणी को छेड़ा...

" आप भी मत जाओ टूर पर.. मैं भी नही जा रही.. कोई मज़ा नही आएगा टूर पर.. सब बोर ही होने हैं.. मुझे पता है.." वाणी ने और भी लोगों को प्रोटेस्ट में शामिल करने की कोशिश की..

" ठीक है.. मैं भी नही जा रहा.. मुझे तो वैसे भी पैर में दर्द है.. मैं क्या करूँगा जाकर..? घूमा तो वैसे भी नही जाना है मुझसे!" वीरू ने उसके सुर में सुर मिलाया...

रिया ने पलट कर वाणी से हाथ मिला रहे वीरू को देखा.. सीने में अंजानी सी जलन हुई," तुम्हारे लिए स्ट्रेचएर ले चलेंगे.. मैं घुमाती रहूंगी.. इस टूटी हुई टाँग को.."

" पहले खुद तो ढंग से चलना सीख ले.. मुझे घुमाएगी..!" वीरू ने ईंट का जवाब पत्थर से दिया..

" हाआआअ.. मुझे चलना नही आता..! किसने बोला है..?" रिया ने वीरू को घूरते हुए पूचछा..

" मैने देखा है.. मर्दों की तरह से चलती है तू.. लड़कियों वाली तो तुझमें बात ही नही है.. " कहते हुए वीरू ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा...

रिया ने मुँह बनाया और उठकर अंदर चली गयी..

" क्या है ये.. हम प्लॅनिंग कर रहे हैं चलने की और तुम लोगों को लड़ाई सूझ रही है.. वाणी इधर आजा.. कुच्छ और नाम सोचते हैं..!" दिशा ने वाणी को प्यार से पुकारा..

" मैं नही चल रही.. मानसी के बगैर मैं नही जाउन्गि..." वाणी ने अपना चेहरा दूसरी और घुमा लिया...

" मतलब मानसी नही चल रही..? गौरी ने उसके नाम पर पेन रख दिया..

" चलेगी ना.. ये तो पागल है.. वाणी! मैं उसके घरवालों से बात कर लूँगी.. वो भेज देंगे उसको.. आजा तू.."

वाणी नही आई.. तभी अंजलि घर आ गयी," अरे स्नेहा.. ओह माइ गोद!" तुम आ गयी.. तुमने बताया क्यूँ नही..? मैने तो.."

" मम्मी.. हम टूर की प्लॅनिंग कर रहे हैं.. स्कूल से कितने नाम हुए?" गौरी ने अंजलि की बात पर गौर ना करते हुए पूचछा...

" पर टूर तो मैने कॅन्सल कर दिया.. 5-7 लड़कियों ने कहा था की वो घर पूच्छ कर जवाब देंगी.. पर मैने फिर उनको मना ही कर दिया.. अब तो कल ही पूच्छना पड़ेगा... मैं अजीत और शमशेर को फोन कर देती हूँ...!" अंजलि को याद आया.. वो लोग भी चिंता कर रहे होंगे...

" मैने कर दिया मा'म" स्नेहा ने अंजलि को बताया...

" ओह.. बहुत अच्च्छा किया.. पर मुझे भी बता देना चाहिए था ना.. मैं सारा दिन टेन्षन में रही..." अंजलि ने उसके पास आकर बैठते हुए प्यार से उसके गालों पर हाथ फेरा..," मेरे साथ अंदर आ एक बार..."

स्नेहा अंजलि के पिछे पिछे बेडरूम की और चल दी...

" ये क्या कर रही हो तुम?" अंजलि ज़ोर ज़ोर से हुँसने लगी.. रिया को देखकर स्नेहा भी अपनी हँसी को ना रोक पाई..

" अपनी चाल देख रही हूँ.. बाहर वो 'टूटी टाँग कह रहा है कि मुझे चलना नही आता.. मैं लड़कों की तरह चलती हूँ.. लड़कों की तरह चलती हूँ क्या मैं? और क्या अब मैं कॅट्वाक करूँ..?" रिया ने गुस्से से कहा.. वो ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी होकर अपने मादक कुल्हों को मॅटकाते हुए बार बार आगे पिछे हो रही थी...

" वो तो पागल है! कौन कह सकता है कि तुम्हे चलना नही आता.. उल्टा तुम्हारी चाल तो बहुत ही... अच्छि है.. उसने देखी ही कहाँ है.. लड़कियों की चाल आज तक.. कभी देखता भी है वो लड़कियों को.. दिया होगा तो तुम्हारी ही चाल पर दिया होगा ध्यान.. या तुम्हे जलाने के लिए कह रहा होगा.. हर लड़की तुम्हारी तरह कहाँ चल पाती है रिया!" स्नेहा ने सच में ही उसकी चाल की तारीफ की थी.. मोरनी जैसी चाल कहें तो अटिस्योक्ति ना होगी...

"पर मम्मी, टूर स्कूल की तरफ से ही जाना ज़रूरी है क्या? बेवजह भीड़ इकट्ठी करने से क्या फायडा.. अब तक कुल मिलकर 10 से ज़्यादा तो हम यहीं बैठे हो गये हैं.. जिसको चलना होगा चल पड़ेगा.. फॅमिली टूर की तरह से भी तो हो सकता है.." गौरी ने स्कूल की तरफ से टूर ले जाने में आ रही दिक्कतों का हाल अंजलि को सुझाया...

" वो तो ठीक है.. पर मैने वासू जी से डिसकस किया था.. मेरे समझने पर ही वो राज़ी हुए थे.. और जब उनका मूड बन गया तो मैने टूर कॅन्सल होने की बात कह दी.. अब अगर उनको नही ले गये तो वो बुरा नही मानेंगे क्या?" अंजलि ने जवाब दिया...

"पर हम ये थोड़े ही कह रहे हैं कि किसी को लेकर ही नही चलना.. अगर वो चलना चाहें तो हमें कोई प्राब्लम नही है.. टूर जाना चाहिए बस.. कल ही!" गौरी ने अपने कहने का मतलब खोल कर समझाया...

"फिर तो उनको अभी बोलना पड़ेगा.. कल सुबह के लिए..!"

" वो मैं बोल दूँगी मा'म! आप चिंता ना करें.. कहो तो मैं अभी जाकर बोल देती हूँ.." वाणी को छेड़'ते हुए उसको मनाने में लगी दिशा ने अंजलि से मुखातिब होते हुए कहा...

" नही! मुझे भी चलना पड़ेगा.. मैं ही उनको सम्झौन्गि.. ये वाणी को क्या हो गया है? ये क्यूँ रूठी हुई लेटी है?" अंजलि ने वाणी को बार बार दिशा का हाथ अपने शरीर से झटकते देख पूचछा...

" छ्होटी सी बात पर ज़िद लगाए पड़ी है.. कह रही है.. उम्म्मह" दिशा के मुँह पर तपाक से उठकर वाणी ने हाथ रख दिया...," कुच्छ नही है मा'म.. मैं तो बस ऐसे ही लेटी हुई हूँ..." कहते हुए वाणी दिशा का हाथ पकड़ कर बाहर खींच ले गयी...

"आप तो बहुत बुरी हैं दीदी.. क्या बताने वाली थी उनको?"

" यही की तुम अब बच्ची नही रही.. बड़ी बड़ी बातें सोचने लगी हो..!" दिशा ने हुंस्ते हुए उसको और अधिक चिड़ा दिया..

" इसमें बड़ी बात क्या है.. मैं यही तो बोल रही हूँ कि..."

" मुझे सब पता है तू क्या बोल रही है.. ला! मैं मानसी के पास फोन मिलाती हूँ.. उसका नंबर. दे.."

" क्या कहोगे आप?" वाणी ने नंबर. देकर उत्सुकता से उसकी और देखा...

" यही कि घर वाले अगर उसको अकेली हमारे पास टूर पर भेज दें तो उसको शमशेर आते हुए अपने साथ ले आएगा..." दिशा ने फोन लगा कर कान से सटा लिया...

" अगर वो मना करें तो मेरे पास एक आइडिया है दीदी..." वाणी मायूसी से उसकी और देखने लगी..

" चुप कर.. फोन लग गया.. हेलो! नमस्ते आंटी जी!" फोन मानसी की मम्मी ने उठाया था...

" नमस्ते बेटी.. कौन?" उधर से आवाज़ आई...

" जी मैं वाणी की बड़ी बेहन बोल रही हूँ.. दिशा!"

" ओहो! कहो बेटा.. तुम आए नही गाँव से.. यहाँ स्कूल की छुट्टियाँ बढ़ गयी हैं.. इसीलिए क्या?"

" क्या? छुट्टियाँ बढ़ गयी हैं.. मुझे तो पता ही नही था..." दिशा के चेहरे पर सुकून की लहर दौड़ गयी.. अब मानसी को चलने के लिए मनाना उसके लिए चुटकियों का खेल था....

" वो आज ही डिक्लेर हुई हैं ना.. गर्मी कितनी पड़ रही है.... खैर मानसी तो मनु के साथ बाजार गयी है.. मनु के नंबर. पर बात कर लो.. दूँ क्या?"

" नही आंटिजी.. नंबर. तो हमारे पास है.. पर आपसे ही बात कर लेती हूँ.."

"बोलो बेटी.. बोलो!"

" वो.. हम 5-7 दिन के टूर पर नैनीताल जा रहे हैं वाणी कह रही थी.. मानसी भी चलती तो बहुत मज़ा आता..! आप भेज दो ना उसको!"

" क्यूँ नही बेटी.. वो तो ये सुनकर बहुत ही खुश होगी.. अब छुट्टियाँ भी पड़ गयी हैं.. गर्मी से तो बची रहेगी.. कब जा रहे हो?"

" जी.. आज रात का ही विचार है.. चलने का.."

" ओहो! इतनी जल्दी.. खैर.. मुझे तो कोई प्राब्लम नही है.. तुम उनसे बात कर लो!"

" ठीक है आंटिजी.. वैसे मनु भी चलना चाहे तो? हमारे साथ लड़के भी जा रहे हैं...!"

" देख बेटा.. उसका मैं कुच्छ कह नही सकती.. वो तो यहाँ शहर में ही बाहर कम निकलता है.. जब देखो.. कंप्यूटर से चिपका रहता है.. जाने क्या मिल गया है उसको.. कहता रहता है.. मुझे एक स्टोरी को इंग्लीश में ट्रॅनस्लेट करने का कांट्रॅक्ट मिला हुआ है.. पता नही क्या स्टोरी है.. राम जाने? अँधा होकर रहेगा.. अगर मान जाए तो उसको भी साथ घसीट ले जाना.. मेरी तो सुनता नही है.."

"ठीक है आंटिजी.. मैं उसके पास ही फोन कर लेती हूँ.. नमस्ते आंटिजी.." दिशा ने फोन कटा तो वाणी वहाँ से रफूचक्कर हो गयी थी.. दिशा ने अंदर जाकर देखा तो वो शरमाई हुई सी तिर्छि आँखों से उसको ही देख रही थी.. यही तो चाहती थी वो.. मनु को साथ ले जाना.. और जब दिशा ने मनु का जिकर किया तो उस'से वहाँ खड़ी ना रहा गया.. जाने क्यूँ?

"इधर आ वाणी.. जल्दी आ!" दिशा ने दरवाजे पर आकर उसको पुकारा..

"क्या है?" वाणी की खुशी च्छुपाए ना च्छूप रही थी.. वो मुँह फेर कर हँसने लगी..

"आ तो.. जल्दी.. काम है..!" कहकर दिशा बाहर निकल गयी...

वाणी ने पिछे से आकर दिशा को अपनी बाहों में भर लिया.. दिशा ने च्छुदाने की कोशिश की पर वाणी ने ना छ्चोड़ा उसको..

" देख.. अब ज़्यादा मचल कर दिखाएगी तो मैं मनु को नही बुलौन्गि हां.." दिशा ने बंदर घुड़की दी...

"उसको बुलाने को कौन बोल रहा था.. मैने तो मानसी को बुलाया था बस.." वाणी अब भी दिशा को पकड़े हुए थी..

" तो मना कर दूं.. मनु को!"

" अब कह दिया है तो चलने दो.. या तो पहले ही नही बोलना चाहिए था..." वाणी ने उसको छ्चोड़ते हुए कहा..

"अभी कहाँ बोला है? अभी तो बोलना है.. बोलो क्या करूँ?"

" आप कितनी अच्छि हो दीदी..!" वाणी ने और कुच्छ नही बोला और अंदर भाग गयी..

" मुस्कुराती हुई दिशा ने मनु का नंबर. डाइयल किया...

वासू टूर चलने की बात सुनते ही व्याकुल हो उठा.. अब क्या करें.. वो लोग तो आज रात ही जाने वाले हैं.. वासू की मनोस्थिति अजीब सी हो गयी.. वह तो नीरू के लिए ही टूर पर जाना चाह रहा था.. वरना तो ये दुनिया उसकी देखी हुई थी.. अब नीरू को खबर करे भी तो कैसे करे.. वासू के दिल में पाप था.. इसीलिए वह चाहकर भी अंजलि को नीरू के चलने के बारे में कुच्छ बोल नही पाया.. अंतत: उसने खुद ही सारा जोखिम उठाने का फ़ैसला किया..

अंजलि के वहाँ से निकलते ही उसने एक प्रेम पाती में नैनीताल जाने देने के लिए घर वालों को मनाने का संदेश लिखा और उसको जेब में डाल कर बाहर निकल गया... जैसे तैसे वो पूछ्ता हुआ नीरू के घर के पास पहुँच गया.. वहाँ एक औरत नलके पर पानी भर रही थी.. वासू घर पूछ्ने के लिए उसके पास ही पहुँच गया," देवी जी, यहाँ आसपास एक लड़की का घर है.. नीरू का.. आप कृपा करके बता देंगी कौनसा है..?"

झुक कर पानी भर रही और तपाक से सीधी खड़ी हुई और वासू को उपर से नीचे तक घूरा," रे, कौन से तू? छ्होरी के बारे में क्यूँ पूच्छ रहा से?"

वासू उस औरत के बोलने का लहज़ा सुनकर घबरा गया," जी.. आप बात को अन्यथा ना लें.. मैं वासू हूँ.. वासू शास्त्री!"

" शास्त्री वस्त्री होगा अपने घर में.. पॅलिया ये बता काम के है तनने लड़की से? शरम नही आंदी इस तरह लड़की का घर पूछ्ति हां.." ( पहले ये बता काम क्या है लड़की से.. शरम नही आती इश्स तरह लड़की का घर पूचहते हुए ), औरत तमतमा गयी थी..

" जी.. मुझे कन्या से कोई काम नही.. कन्या की माता जी से काम है.. आप कृपा करके घर बता दें बस!" वासू विचलित होते हुए बोला...

" हाए.. मेरे ते के काम होगया तंन ओहो! मुझसे क्या काम हो गया आपको..तू है कौन भाई " औरत का मिज़ाज कुच्छ नरम पड़ा...

वासू को ना निगलते बना ना उगलते.. उसकी हालत खराब हो गयी.." त्त.. तो. क्या आप उनकी माता जी हैं..?"

" और नि तो के ? मा सू मैं नीरू की.. (और नही तो क्या? मा हूँ मैं उसकी) पर तू कौन से?" औरत ने जवाब दिया..," बता के काम था?"

" ज्जई नमस्ते.. माता जी.. मैं वासू.. उनका गणित का अद्धयापक हूँ.." आगे उसको सूझा ही नही.. जो ये बोलता कि काम क्या था..! औरत ने तो उसके मुँह पर ताला ही लगा दिया था...

" ओहो.. ते मास्टर जी.. पहलया बताना था ना.. ( ओहो.. तो मास्टर जी पहले बताना चाहिए था ना) मैं तुझे कुच्छ उल्टा सीधा तो ना कहती.. मैं जाने के के सोच गी थी.. बता बेटा.. के काम था..." औरत का लहज़ा एक्दुम बदल गया...

" ज्जई.. वो.. दूध.. नही.. मतलब दूध के बारे में पूच्छना था.. नीरू ने बताया था की आपकी भैंसे दूध देती हैं..."

" आ नीरू! बाहर आइए एक बार.." औरत ने आवाज़ लगाई...

पास के ही घर से नीरू बाहर निकली और वासू को वहाँ खड़े देखकर बुरी तरह सकपका गयी.. मन ही मन सोचा," इन्होने तो रात को आने को बोला था.. ये तो दिन में ही टपक पड़ा...," नमस्ते सर!" उसने अपने आप पर काबू में किया...

" नमस्ते की बच्ची.. तनने मास्टर को झूठ क्यूँ बोला.. कौनसी भैंस दूध देवे से आपनी.. मास्टर जी.. इसके मुँह से ग़लती ते लिकड़ (निकल) गया होगा.. म्हारे घर दूध नही होता..." औरत ने आख़िरी लाइन वासू की और से देखते हुए कही थी...

" चलो कोई बात नही.. मैं और किसी से पूच्छ लूँगा.. हां नीरू.. वो.. दिशा कह रही थी.. तुम्हे बता दूँ.. आज रात ही नैनीताल के लिए टूर जा रहा है.. तुम्हे जाना हो तो.." वासू ने जिंदगी में पहली बार इशारा करने के लिए अपनी एक आँख को मटकाया.. वो भी लड़की की तरफ..

नीरू समझ गयी.. और खुश भी हो गयी..," ठीक है सर.. मैं दिशा से मिलने जा रही हूँ.. अभी.. मम्मी.. मैं टूर पर चली जाउ ना?"

" मुझे ना पता ! ये बात अपने पापा से पूच्छ लिए..."

" उन्होने तो हां कर दी थी मम्मी.. "

" तो फेर चली जाइए... मेरे ते क्यूँ पूच्छ री से....

" आजा मास्टर जी.. घर आजा.. दूध तो नही है.. पर चाय तो पीला ही देवेंगे...

" जी.. बहुत बहुत धन्यवाद.. अभी ज़रा जल्दी में हूँ.. फिर कभी.." कहकर वासू, दिशा के घर चल दी नीरू के पिछे निकल लिया.....

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Re: गर्ल'स स्कूल

Post by rajaarkey »

गर्ल्स स्कूल पार्ट --52

गली में कुच्छ आगे निकल जाने के बाद नीरू ने पिछे मुड़कर देखा.. वासू उसके पिछे पिछे जैसे उसको सून्घ्ता हुआ आ रहा था.. उसने अपनी चल धीमी कर दी और लगभग वासू के साथ साथ चलने लगी," सर! आपको ऐसे नही आना चाहिए था.. मा को शक हो जाता तो?" नीरू ने दायें बायें देखते हुए वासू से कहा...

" तो क्या करता? आज रात वो टूर पर निकल जाते और हम यहीं रह जाते.." वासू ने भी बिना उसको देखे; चलते चलते जवाब दिया..

"हम क्यूँ? आप तो चले ही जाते.." नीरू ने इठलाते हुए अपने बालों को कानो से पिछे किया और वासू की और हौले से मुस्कुराइ...

"तुम्हारे बिना मैं क्या करता वहाँ?" वासू ने जवाब दिया...

नीरू पर पूरी मस्ती च्छाई हुई थी.. वासू को इस तरह अपने लिए मचलते देख वो इतरा गयी," और.. मेरे साथ क्या करेंगे वहाँ?"

"कककुच्छ नही.. मैं क्या करूँगा? म्म्मैने कभी कुच्छ किया है क्या?" वासू चलते हुए नीरू के मादक नितंबों की उठापटक में खोया हुआ था की नीरू के इस द्वियार्थी सवाल ने उसको हड़बड़ाहट में डाल दिया..

नीरू अपनी हँसी नही रोक पाई.. वासू का ये भोलापन ही तो नीरू को ले डूबा था.. वरना तो वो कब की 'जवान' हो चुकी होती..

" एक बात कहूँ..?" वासू ने मौका देखकर कहा...

" जी.. कहिए.." नीरू ने चलते हुए सरक गयी चुननी को ठीक करते हुए कहा..

" नही.. कुच्छ नही.. तुम चलोगि ना?"

" हाँ.. मैं तो पक्का चलून्गि.. पर और कौन कौन जा रहे हैं..?" नीरू ने सवाल किया...

" मुझे तो बस इतना पता है कि तुम जा रही हो.. और मैं जा रहा हूँ.. बाकी तुम उन्ही से पूछ लेना.. अच्च्छा.. चलने का समय अच्छी तरह याद रखना और टाइम से पहले पहुँच जाना.. भूल मत जाना..!" वासू बेचैनी से बोला, घर आ गया था...

" जी.." नीरू ने एक बार सरसरी निगाह वासू के प्यारे चेहरे पर डाली और उसने अपनी चल तेज कर दी..

-----------------------------

शाम के करीब 7 बाज चुके थे... सब अपने अपने समान की पॅकिंग में लगे थे..

" जीजू कब आ रहे हैं दीदी.." वाणी से सब्र नही हो पा रहा था.. उसका मनु जो उसके साथ आने वाला था..

" आने ही वाले होंगे.. कह रहे थे 10 मिनिट का रास्ता और..." दिशा को वाणी ने बात भी पूरी ना करने दी..

" आ गये... कहते हुए वा दरवाजे की और भागी.. पर अचानक ही दरवाजे से कुछ पहले ठिठक कर रुक गयी.. वापस भाग कर आईने के सामने गयी और खुद को उपर से नीचे तक देखा... प्यार ऐसा ही होता है.. वरना वाणी की तारफ़ कोई आईना क्या करता.. वह तो खुद दर्पण थी.. सौंदर्या का.. सन्तुस्त होने पर वह बाहर की और भागी और दरवाजे पर जाकर मायूसी से खड़ी हो गयी," ववो.. कहाँ है?"

शमशेर ने उसके पास आते हुए प्यार से उसके गालों पर थपकी दी," वो कौन वाणी?"

" वववो.. वो.. मानसी!" वाणी अपनी ज़ुबान फिसलने से मुस्किल से रोक पाई..

" इसने तो यही बताया था कि यही मानसी है.. ये मानसी नही है क्या?" शमशेर ने हंसते हुए वाणी के सामने ही खड़ी मानसी की और इशारा करते हुए कहा...

" ओह.. हाँ.. म्मुझे दिखाई नही दी थी..!" वाणी ने झेन्पते हुए मानसी को बुझे मन से गले लगाया और अंदर आ गयी.. अचानक ही उसका सारा जोश ठंडा पड़ गया..

" इनके बारे में नही पूछोगि? ये शालिनी है..! हमारे साथ टूर पर चलेगी..!" शमशेर ने वाणी का हाथ पकड़ते हुए कहा...

" मुझे नही चलना टूर पर.. मेरा सिर दर्द कर रहा है.. जाओ.. सब चले जाओ.. मुझे अकेली छ्चोड़कर..." वाणी को तो बस यही आता था.. रूठ कर अपनी आँखों से ही रूठने का मतलब समझाना और ज़िद पूरी होने तक हड़ताल पर बैठे रहना...

तभी दिशा अंदर से पानी लेकर आ गयी.. शमशेर के साथ नज़रें मिली.. दोनो ने आँखों ही आँखों में जुदाई की तड़प से एक दूसरे को अवगत कराया और हौले से मुस्कुरकर दिशा अंदर चली गयी...

" क्या हुआ वाणी? अभी तो तू फोन पर मुझे चहक चहक कर गाना गाकर सुना रही थी.. अभी अचानक क्या हो गया तुझे.." मानसी ने वाणी के सिर पर हाथ लगाकर देखा," सिर तो ठंडा है तेरा.. फिर सिरदर्द?"

" मुझे किसी से बात नही करनी.. सब टूर पर जाओ.. मज़े करो.. मैं अकेली यहाँ पड़ी रहूंगी..." वाणी ने मुँह फुलाते हुए मानसी का हाथ अपने सिर से हटा दिया..

उस'से कुच्छ दूर बैठी शालिनी उठकर उसके पास आई..," कितनी प्यारी हो तुम.. किस बात पर गुस्सा हो यार..!"

वाणी ने अपना नीचे वाला होंठ बाहर निकाल कर एक बार उसको घूरा और फिर ये सोचकर की इस बेचारी का क्या कुसूर; वह अपना दर्द उसके साथ बाँटने को राज़ी हो गयी," सभी ऐसा ही कहते रहते हैं दीदी.. पर सब मुझे सताने में लगे रहते हैं.. सब सोचते रहते हैं की कैसे वाणी को गुस्सा दिलाया जाए.. सब मुझे तंग करते हैं दीदी.. कोई मुझसे प्यार नही करता..." कहते हुए वाणी ने उसका हाथ पकड़ कर अपने साथ बैठा लिया...

उसकी मासूम शिकायत सुनकर शालिनी भी बिना मुस्कुराए ना रह सकी..," बात क्या है? बताओ तो सही?"

वाणी कुच्छ नही बोली .. यूँही अचानक वाणी की नज़र उसकी उंगलियों पर पड़ी.. और वो एक पल को सब कुच्छ भूल गयी," हाए दीदी.. कितनी प्यारी रिंग है.. कहाँ से ली?"

" पता नही.. गिफ्टेड है!" शालिनी ने जवाब दिया...

"किसने... अच्च्छा समझ गयी.." फिर शालिनी के कान के पास मुँह लाकर हौले से कहा," क्या नाम है?"

शालिनी ने भी उसके अंदाज में ही उत्तर दिया.. उसके कान में बोला," रोहित!"

" अच्च्छा! शालिनी का सीक्रेट जानकार वाणी बहुत खुश हुई.. पर अगले ही पल उसको 'अपना' सीक्रेट याद आ गया और फिर से उसका पारा चढ़ गया..," जब आप दोनो में लड़ाई होती है तो आप क्या करती हैं?" वाणी ऐसा ही कुच्छ करने का सोच रही थी..

शालिनी खिलखिलाकर हंस पड़ी और फिर उसके कान में कहा," ग़ाली देती हूँ.. और क्या?"

"क्या गाली देती हो?" कानो ही कानो में गुफ्तगू जारी थी..

" उम्म्म्ममम" शालिनी ने यूँही कोई गाली सोची और फिर उसके कान में कह दिया..," साला!"

" हूंम्म्ममम!" वाणी ने गाली रट ली... तभी मानसी के द्वारा कही गयी बात ने उसका खोया नूवर फिर से वापस ला दिया," बाहर वाले घर चलें वाणी.. मुझे भैया से कुच्छ काम है...!"

" क्याअ? कहाँ.. मनु भी आया है क्या?" वाणी खिल उठी...

" तुम तो ऐसे पूच्छ रही हो जैसे वो बिना बुलाए ही आ गया हो.. बुलाया नही था क्या?" मानसी ने मुस्कुराते हुए कहा...

" मैने नही बुलाया किसी को.. दीदी ने बुलाया होगा... चलो चलते हैं..!" सब कुच्छ भूलकर वाणी उसको बाहर खींच कर ले गयी....

"स्नेहा! देखो कौन आया है? अंजलि ने खोई खोई सी स्नेहा को एक अग्यात रोमांच से भर दिया. 'कहीं वही तो नही' सोच कर उसका दिल झूम उठा और वह अपने आप को तेज़ी के साथ पिछे मुड़ने से रोक ना सकी.. विकी अंजलि के पिछे खड़ा प्यासी निगाहों से उसको ताक रहा था.. निगाहों में तन की भूखी वासना की प्यास नही थी, बुल्की स्नेहा की आँखों में उसके लिए फिर से वही प्यार, वही ज़ज्बात देखने की प्यास थी

" मोहन!!!! सॉरी... विकी आप? आप कैसे आ गये?" भाग कर उसके गले से जा चिपकने को स्नेहा का पूरा बदन बेचैन हो उठा.. पर बीच में अंजलि खड़ी थी.. वह अवाक नेत्रों से उसको देखती रह गयी..

"तुम बातें करो! मैं आती हूँ.." स्नेहा के तन-मन में उठे उफान को भाँप कर अंजलि वहाँ से खिसक ली...

"स्नेहा!.." विकी की आँखें भर आई.. वह अब भी उसको यूँ ही एकटक देख रहा था.. बिना पलकें झपकाए..

"हूंम्म.." 2 कदम आयेज बढ़ कर स्नेहा फिर ठिठक गयी.. वा विकी को बाहें फैलाकर उसको पुकारते हुए देखना चाहती थी..

" तुम मेरे बिना रह लॉगी!" विकी ने वहीं खड़े खड़े उल्टे बाँस बरेली की तर्ज़ पर सवाल किया..

" पर तुम.." स्नेहा के मुँह से इतना ही निकला..

" मैं तुम्हारे बिना नही रह सकता सानू.. इतनी ही देर में मैने जान लिया... अब तुम्हारे बिना मन नही लगता.. लगता है जैसे सब कुच्छ खो दूँगा.... अगर तुम्हे खो दिया तो.. मुझे माफ़ कर दो ना.. मुझे तुम्हारी ज़रूरत है.. तुम मेरे पास क्यूँ नही आ जाती..." विकी बोलता चला जा रहा था.. स्नेहा के लिए अब और सहन करना मुश्किल था.. वह तो पहले ही तड़प रही थी.. जाकर विकी के शरीर से जा लिपटी.. और बच्चों की तरह बिलखने लगी," तुमने बुलाया ही कब था.. मैं तो प्यार किया था मोहन... अब तुम्ही विकी हो गये तो मैं क्या करती.. बताओ!" स्नेहा उसके सीने पर सिर रखे उसमें सिमट-ती जा रही थी...

" मुझे आज अहसास हो गया सानू! मुझमें भी ज़ज्बात हैं.. मैं अपने या अपनो के अरमानो का गला नही घोट सकता.. मुझे जीना है.. जीकर देखना है.. तुम्हारे साथ.. मैने फ़ैसला किया है.. अगर तुम मेरा साथ दोगि तो...." विकी के रुक रुक कर बोलते होंठों पर जैसे ताला लग गया.. स्नेहा ने अपने लारजते होंतों से उसकी बोलती बंद कर दी.. दोनों सब कुच्छ भूल कर एक दूसरे में खो गये.. स्नेहा ने जनम जनम उसका साथ देने का एलान कर दिया..

अचानक दरवाजे पर 'खांसने' की आवाज़ के साथ दोनो एकद्ूम छितक कर एक दूसरे से दूर हो गये.. बेडरूम के दरवाजे पर खड़ी नीरू बाहर देखते हुए मुस्कुरा रही थी..

"सॉरी! मुझे पता नही था कि...." नीरू के चेहरे पर शरारती मुस्कान थी..," मैं आ गयी.. कब चलना है?" उन्न दोनो को इतनी आत्मीयता से एक दूसरे में खोए देखकर नीरू के पूरे बदन में साँप सा रेंग गया...

" वो.. हमें क्या पता.. म्मै तो इनकी आँख से कुच्छ निकाल रही थी.. बाहर किसी को पता होगा.." स्नेहा ने हड़बड़ते हुए कहा...

"अंधेरे में ही?" हंसकर नीरू बाहर निकल गयी.. दोनो ने एक दूसरे की आँखों में देखा.. हंस पड़े और फिर एक दूसरे से चिपक गये...

--------------------------

वाणी ने दनदनाते हुए गौरी के घर प्रवेश किया.. मासूम सा गुस्सा झल्काती उसकी आँखें कुच्छ ढूँढ रही थी.. और जब वो उसको दिख गया तो पल भर के लिए उस'से नज़रें चार की और अपनी गर्दन मॅटकाते हुए वापस बाहर जाकर खड़ी हो गयी...

मनु उसके चेहरे पर इतने गरम तेवर देखकर सकपका गया.. साथ बैठे अमित को 'एक मिनिट' बोल कर वा उसके पिछे बाहर निकल गया.. वहाँ वाणी और मानसी.. दोनो खड़ी थी..

" हाई वाणी!" मनु ने झिझकते हुए बोला..

वाणी अपने कंधे उचका कर थोडा सा और घूम गयी.. उस'से दूसरी ओर...," क्या है?"

"कुच्छ नही.. बस 'ही' बोल रहा हूँ.. तुम कुच्छ गुस्से में लग रही हो.. क्या बात है.. मुझे आना नही चाहिए था क्या?" मनु ने अपनी मानसी की और देखते हुए बत्तीसी निकाली.. ताकि मानसी को कोई शक ना हो.. कि मामला गंभीर है...

" नही .. तुम्हे बिल्कुल नही आना चाहिए था.. क्यूँ आ गये तुम.. हम पर तो बहुत बड़ा अहसान कर दिया ना!" वाणी ने व्यंगया बानो की बौछर कर दी.. दूसरी और देखते हुए ही..

मनु ने मानसी की और देख कर अपनी बत्तीसी निकाल दी.. ताकि मानसी को शक़ ना हो.. की मामला गड़बड़ है..

पर इशक़ और मुश्क़ भी कभी छिपने से छिपे हैं क्या.. चाहे कोई कितना ही बड़ा तुर्रमखाँ क्यूँ ना हो.. और यहाँ तो दोनो अनाड़ी थे.. मानसी हतप्रभ सी बार बार दोनो की आँखों में देखती रही.. विस्मित सी.. कि क्या.. जो वो सोच रही है.. सच है? हां.. सच ही तो है... दोनो की ही आँखों में उसको प्रेम के डोरे तैरते दिखाई दिए.. वाणी के गुस्से में भी असीम प्यार था तो मनु की 'बत्तीसी' दिखाने का अंदाज भी बिल्कुल नया था.. जैसे पकड़े जाने के डर से खिसिया गया हो..

" मैं आती हूँ.. " कहकर मानसी ने अंदर जाते हुए मनु की तरफ शरारत से आँखें मटकाई और दोनो को फ़ुर्सत के चंद लम्हे देते हुए वहाँ से अलग हो गयी....

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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,

मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..

मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,

बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ

आपका दोस्त

राज शर्मा

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`·.¸.·´ -- raj

girls school--52

Gali mein kuchh aage nikal jane ke baad Neeru ne pichhe mudkar dekha.. Vasu uske pichhe pichhe jaise usko soonghta hua aa raha tha.. usne apni chal dheemi kar di aur lagbhag Vasu ke sath sath chalne lagi," Sir! aapko aise nahi aana chahiye tha.. Maa ko shak ho jata toh?" Neeru ne dayein bayein dekhte huye Vasu se kaha...

" Toh kya karta? aaj Rat wo tour par nikal jate aur hum yahin rah jate.." Vasu ne bhi bina usko dekhe; chalte chalte jawab diya..

"hum kyun? aap toh chale hi jate.." Neeru ne ithlate huye apne balon ko kaano se pichhe kiya aur Vasu ki aur houle se Muskurayi...

"Tumhare bina main kya karta wahan?" Vasu ne jawab diya...

Neeru par poori masti chhayi huyi thi.. Vasu ko iss tarah apne liye machalte dekh wo itra gayi," aur.. mere Sath kya karenge wahan?"

"kkkuchh nahi.. main kya karoonga? mmmaine kabhi kuchh kiya hai kya?" Vasu chalte huye Neeru ke madak nitambon ki uthapatak mein khoya hua tha ki Neeru ke iss dwiarthi sawaal ne usko hadbadahat mein daal diya..

Neeru apni hansi nahi rok payi.. Vasu ka ye bholapan hi toh Neeru ko le dooba tha.. warna toh wo kab ki 'jawan' ho chuki hoti..

" ek baat kahoon..?" Vasu ne mouka dekhkar kaha...

" Ji.. kahiye.." Neeru ne chalte huye sarak gayi chunni ko theek karte huye kaha..

" nahi.. kuchh nahi.. tum chalogi na?"

" Haan.. main toh pakka chaloongi.. par aur koun koun ja rahe hain..?" Neeru ne sawal kiya...

" Mujhe toh bus itna pata hai ki tum ja rahi ho.. aur main ja raha hoon.. baki tum unhi se poochh lena.. achchha.. chalne ka samay achchi tarah yaad rakhna aur time se pahle pahunch jana.. bhool mat jana..!" Vasu bechaini se bola, ghar aa gaya tha...

" Ji.." Neeru ne ek baar sarsari nigah Vasu ke pyare chehre par dali aur usne apni chal tej kar di..

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Sham ke kareeb 7 baj chuke the... sab apne apne saman ki packing mein lage the..

" Jiju kab aa rahe hain didi.." Vani se sabra nahi ho pa raha tha.. uska Manu jo uske sath aane wala tha..

" aane hi wale honge.. kah rahe the 10 minute ka rasta aur..." Disha ko Vani ne baat bhi poori na karne di..

" aa gaye... kahte huye wah darwaje ki aur bhagi.. par achanak hi darwaje se kuchh pahle thithak kar ruk gayi.. wapas bhag kar aaine ke saamne gayi aur khud ko upar se neeche tak dekha... pyar aisa hi hota hai.. warna Vani ki taaraf koyi aaina kya karta.. wah toh khud darpan thi.. soundarya ka.. santust hone par wah bahar ki aur bhagi aur darwaje par jakar mayusi se khadi ho gayi," wwo.. kahan hai?"

Shamsher ne uske paas aate huye pyar se uske Gaalon par thapki di," Wo Koun Vani?"

" Wwwo.. wo.. Manasi!" Vani apni juban fisalne se muskil se rok payi..

" Isne toh yahi bataya tha ki yahi Manasi hai.. Ye Manasi nahi hai kya?" Shamsher ne hanste huye Vani ke Samne hi khadi Manasi ki aur ishara karte huye kaha...

" oh.. haan.. mmujhe dikhayi nahi di thi..!" Vani ne jhenpte huye Manasi ko bujhe man se gale lagaya aur andar aa gayi.. achanak hi uska sara josh thanda pad gaya..

" Inke baare mein nahi poochhogi? ye Shalini hai..! hamare sath tour par chalegi..!" Shamsher ne Vani ka hath pakadte huye kaha...

" Mujhe nahi chalna tour par.. mera sir dard kar raha hai.. jao.. sab chale jao.. mujhe akeli chhodkar..." Vani ko toh bus yahi aata tha.. rooth kar apni aankhon se hi roothne ka matlab samjhana aur jid poori hone tak hadtaal par baithe rahna...

Tabhi Disha andar se pani lekar aa gayi.. Shamsher ke sath najarein mili.. dono ne aankhon hi aankhon mein judayi ki tadap se ek dusre ko awagat karaya aur houle se muskurakar Disha andar chali gayi...

" Kya hua Vani? abhi toh tu fone par mujhe chahak chahak kar gana gakar suna rahi thi.. abhi achanak kya ho gaya tujhe.." Manasi ne Vani ke sir par hath lagakar dekha," Sir toh thanda hai tera.. fir Sirdard?"

" Mujhe kisi se baat nahi karni.. sab tour par jao.. maje karo.. main akeli yahan padi rahungi..." Vani ne munh fulate huye Manasi ka hath apne sir se hata diya..

uss'se kuchh door baithi shalini uthkar uske paas aayi..," kitni pyari ho tum.. kis baat par gussa ho yaar..!"

Vani ne apna neeche wala hont bahar nikal kar ek baar usko ghoora aur fir ye sochkar ki iss bechari ka kya kusoor; wah apna dard uske sath baantne ko razi ho gayi," Sabhi aisa hi kahte rahte hain didi.. par sab mujhe sataane mein lage rahte hain.. sab sochte rahte hain ki kaise Vani ko gussa dilaya jaye.. sab mujhe tang karte hain didi.. koyi mujhse pyar nahi karta..." Kahte huye vani ne uska hath pakad kar apne sath baitha liya...

Uski masoom shikayat sunkar Shalini bhi bina muskuraye na rah saki..," Baat kya hai? batao toh sahi?"

Vani kuchh nahi boli .. yunhi achanak Vani ki najar uski ungaliyon par padi.. aur wo ek pal ko sab kuchh bhool gayi," Haye Didi.. kitni pyari ring hai.. kahan se li?"

" pata nahi.. Gifted hai!" Shalini ne jawab diya...

"Kisne... achchha samajh gayi.." fir Shalini ke kaan ke paas munh lakar houle se kaha," Kya Naam hai?"

Shalini ne bhi uske andaj mein hi uttar diya.. uske kaan mein bola," Rohit!"

" Achchha! Shalini ka secret jaankar Vani bahut khush huyi.. par agle hi pal usko 'apna' secret yaad aa gaya aur fir se uska para chadh gaya..," jab aap dono mein ladayi hoti hai toh aap kya karti hain?" Vani aisa hi kuchh karne ka soch rahi thi..

Shalini khilkhilakar hans padi aur fir uske kaan mein kaha," Gali deti hoon.. aur kya?"

"Kya gali deti ho?" kano hi kano mein guftgoo jari thi..

" Ummmmmm" Shalini ne yunhi koyi gali sochi aur fir uske kaan mein kah diya..," Sala!"

" Hummmmmm!" Vani ne Gali rat li... tabhi Manasi ke dwara kahi gayi baat ne uska khoya noor fir se wapas la diya," bahar wale ghar chalein Vani.. Mujhe bhaiya se kuchh kaam hai...!"

" kyaaa? kahan.. Manu bhi aaya hai kya?" Vani khil uthi...

" tum toh aise poochh rahi ho jaise wo bina bulaye hi aa gaya ho.. bulaya nahi tha kya?" Manasi ne muskurate huye kaha...

" maine nahi bulaya kisi ko.. didi ne bulaya hoga... chalo chalte hain..!" Sab kuchh bhulakar Vani usko bahar kheench kar le gayi....

"Sneha! dekho koun aaya hai? Anjali ne khoyi khoyi si Sneha ko ek agyaat romanch se bhar diya. 'kahin wahi toh nahi' soch kar uska dil jhoom utha aur wah apne aap ko teji ke sath pichhe mudne se rok na saki.. Vicky Anjali ke pichhe khada pyasi nigahon se usko taak raha tha.. Nigahon mein Tan ki bhookhi Wasna ki pyas nahi thi, bulki Sneha ki aankhon mein uske liye fir se wahi pyar, wahi jajbat dekhne ki pyas thi

" Mohan!!!! sorry... Vicky aap? Aap kaise aa gaye?" Bhag kar uske gale se ja chipakne ko Sneha ka poora badan bechain ho utha.. par beech mein Anjali khadi thi.. wah awak netron se usko dekhti rah gayi..

"Tum baatein karo! main aati hoon.." Sneha ke tan-man mein uthe ufaan ko bhanp kar Anjali wahan se khisak li...

"Sneha!.." Vicky ki aankhein bhar aayi.. Wah ab bhi usko yun hi ektak dekh raha tha.. bina palkein jhapkaye..

"Hummm.." 2 kadam aage badh kar Sneha fir thithak gayi.. wah Vicky ko baahein failakar usko pukarte huye dekhna chahti thi..

" Tum mere bina rah logi!" Vicky ne wahin khade khade ulte baans bareli ki tarz par sawaal kiya..

" Par tum.." Sneha ke munh se itna hi nikla..

" Main tumhare bina nahi rah sakta Sanu.. itni hi der mein maine jaan liya... ab tumhare bina man nahi lagta.. lagta hai jaise sab kuchh kho doonga.... agar tumhe kho diya toh.. mujhe maaf kar do na.. mujhe tumhari jarurat hai.. tum mere paas kyun nahi aa jati..." Vicky bolta chala ja raha tha.. Sneha ke liye ab aur sahan karna mushkil tha.. wah toh pahle hi tadap rahi thi.. jakar Vicky ke shareer se ja lipti.. aur bachchon ki tarah bilakhne lagi," tumne bulaya hi kab tha.. Main toh pyar kiya tha Mohan... ab tumhi Vicky ho gaye toh main kya karti.. batao!" Sneha uske seene par sir rakhe usmein simat-ti ja rahi thi...

" Mujhe aaj ahsaas ho gaya Sanu! Mujhmein bhi jajbat hain.. main apne ya apno ke armaano ka gala nahi ghot sakta.. mujhe jeena hai.. jikar dekhna hai.. tumhare sath.. Maine faisla kiya hai.. agar tum mera sath dogi toh...." Vicky ke ruk ruk kar bolte honton par jaise tala lag gaya.. Sneha ne apne larjate honton se uski bolti band kar di.. donon sab kuchh bhool kar ek dusre mein kho gaye.. Sneha ne janam janam uska sath dene ka elaan kar diya..

Achanak darwaje par 'khansne' ki aawaj ke sath dono ekdum chhitak kar ek dusre se door ho gaye.. Bedroom ke darwaje par khadi Neeru bahar dekhte huye muskura rahi thi..

"sorry! Mujhe pata nahi tha ki...." Neeru ke chehre par shararati Muskaan thi..," Main aa gayi.. kab chalna hai?" unn dono ko itni aatmiyata se ek dusre mein khoye dekhkar Neeru ke poore badan mein saanp sa reng gaya...

" wo.. hamein kya pata.. mmain toh inki aankh se kuchh nikal rahi thi.. bahar kisi ko pata hoga.." Sneha ne hadbadate huye kaha...

"Andhere mein hi?" Hanskar Neeru bahar nikal gayi.. dono ne ek dusre ki aankhon mein dekha.. hans pade aur fir ek dusre se chipak gaye...

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Vani ne dandanate huye Gouri ke ghar pravesh kiya.. Masoom sa gussa jhalkati uski aankhein kuchh dhoondh rahi thi.. aur jab wo usko dikh gaya toh pal bhar ke liye uss'se najarein char ki aur apni gardan matkate huye wapas bahar jakar khadi ho gayi...

Manu uske chehre par itne garam tewar dekhkar sakpaka gaya.. Sath baithe Amit ko 'ek minute' bol kar wah uske pichhe bahar nikal gaya.. wahan Vani aur Manasi.. dono khadi thi..

" Hi Vani!" Manu ne jhijhakte huye bola..

Vani apne kandhe uchaka kar thoda sa aur ghoom gayi.. uss'se dusri aur...," kya hai?"

"kuchh nahi.. bus 'hi' bol raha hoon.. tum kuchh gusse mein lag rahi ho.. kya baat hai.. Mujhe aana nahi chahiye tha kya?" Manu ne apni Mansi ki aur dekhte huye batteesi nikali.. taki Manasi ko koyi shak na ho.. ki maamla gambheer hai...

" nahi .. tumhe bilkul nahi aana chahiye tha.. kyun aa gaye tum.. hum par toh bahut bada ahsaan kar diya na!" Vani ne vyangya bano ki bouchhar kar di.. dusri aur dekhte huye hi..

Manu ne Manasi ki aur dekh kar apni batteesi nikal di.. taki Manasi ko shaq na ho.. ki maamla gadbad hai..

par ishaq aur mushq bhi kabhi chhipane se chhipe hain kya.. chahe koyi kitna hi bada turramkhan kyun na ho.. aur yahan toh dono anadi the.. Mansi hatprabh si baar baar dono ki aankhon mein dekhti rahi.. vismit si.. ki kya.. jo wo soch rahi hai.. sach hai? haan.. sach hi toh hai... dono ki hi aankhon mein usko prem ke dore tairte dikhayi diye.. Vani ke gusse mein bhi aseem pyar tha toh Manu ki 'batteesi' dikhane ka andaj bhi bilkul naya tha.. jaise pakde jaane ke dar se khisiya gaya ho..

" Main aati hoon.. " kahkar Manasi ne andar jate huye Manu ki taraf shararat se aankhein matkayi aur dono ko fursat ke chand lamhe dete huye wahan se alag ho gayi....

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Re: गर्ल'स स्कूल

Post by rajaarkey »

गर्ल्स स्कूल पार्ट --53

वो.. मैं तुम्हारी खातिर ही तो आया हूँ.. तुम मुँह फुलाए क्यूँ खड़ी हो..?" मानसी के जाते ही मनु वाणी के आगे नतमस्तक होता हुआ सा बोला...

" मेरे लिए क्यूँ आए हो? तुम तो गौरी के लिए आए हो.. तभी तो यहीं पर रुक गये.. सीधे घर नही आ सकते थे क्या?" वाणी ने अपने दर्द को सीने से बाहर निकाला..

"क्या? मैं.. और गौरी के लिए.. मुझे उस'से क्या मतलब है.. मैं तो सीधा वहीं आना चाहता था.. पर जब वो.. विकी जी यहाँ उतरे तो अमित ने मुझे भी यहीं उतार लिया... मुझे जाने ही नही दिया.. फिर मैं क्या कहता.. नही.. मुझे तो वाणी के पास जाना है.. ये?"

" अमित भी आया है क्या? पर उसको किसने बुलाया?" वाणी हैरान होकर मनु की और मूडी..

" किसी ने नही.. जब मैने उसको ये बताया की मैं टूर पर जा रहा हूँ तो पूच्छने लगा की कौन कौन जा रहे हैं... फिर गौरी का नाम लेते ही ज़िद पकड़ गया.. मुझे भी चलना है.. मैने दिशा से पूछा और उन्होने हाँ कर दी.."

" चलो अच्च्छा हुआ.. अब तुम और गौरी आपस में बात नही करोगे..."

" मैं कब करता हूँ उस'से बात.. तुम तो यूँही..." मनु मन ही मन मुस्कुरा रहा था.. लड़की के प्यार की पहचान उसकी जलन से ही तो होती है...

" बात नही की तो क्या? तुम उस दिन उसकी तरफ देख रहे थे.. केयी बार देखा था.. मुझे पता है.. अब की बार देखा तो मैं तुमसे बात नही करूँगी हाँ!"

"ओफ्फो.. पता नही किन किन बातों को लेकर बैठ जाती हो.. चलो.. अब अंदर चलें.. खम्खा लोग जाने क्या क्या सोचेंगे...?" मनु ने उसको अंदर चलने का इशारा किया...

वाणी ने 2 पल उसकी आँखों में आँखें डाली और मुस्कुरा पड़ी.. मनु तो आँख बंद करके विस्वास करने लायक था.. वो तो बस यूँही....

वाणी उसके पिछे पिछे चल पड़ी...

" तुम भी आ गये अमित! पहले कहाँ थे.." वाणी ने जाते ही अमित से सवाल किया..

" हाँ आ तो गया हूँ.. पर शायद किसी को दिखाई ही नही दे रहा.." अमित ने पास से गुजर रही गौरी को देख कर कॉमेंट किया.. पता नही क्या वजह थी.. पर गौरी उस'से जानबूझ कर नज़रे चुरा रही थी.. या फिर तरसा रही थी.. भगवान जाने.. पर जब से अमित वहाँ बैठा हुआ था.. गौरी रह रह कर इठलाती हुई उसके सामने से गुजर रही थी.. पर उस पर ध्यान ना देने का नाटक कर रही थी...

तभी वहाँ पर वासू जी का आगमन हुआ.. गौरी, दिशा, वाणी आदि ने जब उनको प्रणाम किया तो सब लड़कों ने भी खड़े होकर हाथ जोड़ लिए...

" नमस्कार जी सबको मेरा नमस्कार.. हो गयी तैयारियाँ या अभी कुच्छ बाकी है..." वासू की नज़रें अंदर आते ही नीरू को ढूँढने लगी...

" हां.. सर.. सभी आ गये हैं.. बस अब चलते ही होंगे.. लीजिए आप पानी लीजिए.." गौरी ने वासू की तरफ ट्रे बढ़ाते हुए कहा...

वासू का माथा ठनका..," क्या? सब आ गये? नीरू.. ववो.. मतलब नीर का सेवेन तो मैं ठहर कर करूँगा.. सब आ गये हैं ना...!" वासू ने खुद को संभाला..

" हां.. लगभग सभी आ गये हैं सर.. बस गाँव से कुच्छ लड़कियाँ रहती हैं.. वो भी आती ही होंगी.." वासू के 'नीरू' कहने से गौरी को याद आया.. नीरू, नेहा, सरिता, दिव्या, रेणु, आरज़ू और सोनिया अभी आई नही हैं....

गौरी ने मुश्किल से अपनी बात पूरी की ही थी की उन्न सभी लड़कियों ने अपने अपने बॅग लिए घर में कदम रखा...

" अर्रे.. यहाँ तो बड़ी रौनक लगी हुई है... मैने तो सोचा था कि 5-7 लड़कियाँ ही जा रही हैं बस.. यहाँ तो.." सरिता ने आते ही एक एक करके सभी लड़कों की और कामुक नज़रों से देखते हुए कहा.. उसकी तो ऐश हो गयी.. वहाँ का माहौल देखते ही...

उसकी इस अदा पर लड़कियाँ तो लड़कियाँ लड़के भी बग्लें झाँकने लगे... उसकी आँखों के साथ उसके हाव भाव से सॉफ पता चल सकता था कि वो 'खेली खाई' लड़की है..

वासू की आँखें नीरू को देखते ही चमक उठी," अब चला जाए.. यहाँ बैठे बैठे क्या करेंगे.. बहुत लंबा रास्ता है...

" जी अभी मैं उनको फोन करती हूँ.. बस आई क्यूँ नही... अभी तक!" दिशा ने शमशेर का नंबर. डाइयल किया और अंदर कमरे में निकल गयी...

कमरे में हर तरफ जोश और उमंग की लहरें उठती दिखाई दे रही थी.. सिर्फ़ कमरे में खड़ी आरज़ू, सोनिया और रेणु को छ्चोड़ कर.. आरज़ू और सोनिया को नेहा ज़बरदस्ती ले आई थी और रेणु सरिता के कहने से वहाँ आई थी.. इन सबका इस तरह घर से बाहर निकलने का पहला मौका था.. लड़कों को देखकर ही इनकी जान सी निकली जा रही थी.. कहीं घर वालों को पता लग गया की उनके साथ टूर पर लड़के भी गये थे तो उनकी खैर नही.....

" कितना टाइम लगेगा जीजू, नैनीताल तक जाने में...?" वाणी ने बस के आते ही खुश होकर शमशेर से पूचछा...

" 8-10 घंटे तो लग ही जाएँगे.. क्यूँ?" शमशेर ने उसका बॅग पकड़ते हुए कहा...

" नही कुच्छ नही.. यूँही पूच्छ रही थी.. आ जाओ.. सब चढ़ जाओ बस में.." वाणी ने चिल्लाकर सबको आवाज़ दी...

" लाओ.. तुम्हारा बॅग मैं पकड़ लेती हूँ.." रिया लपक कर वीरू के बॅग के पास पहुँची...

" क्यूँ? राज मर गया है क्या? राज! ये ले.." वीरू ने एक नज़र रिया को घूरा और राज को पुकार कर अपने बॅग की ओर इशारा किया...

" ले चलने दो यार.. बेचारी को.. कितने प्यार से तो कह रही है.." राज ने रिया के अचानक मायूस हो गये चेहरे की और देखते हुए कहा...

" हुन्ह.. बेचारी! तुम्हे बेचारी लगती है ये.. दोपहर से मुझे 'टूटी टाँग' कह कर बुला रही है.. अगर दूसरों क घर ना होता तो इसको बताता की टूटी टाँग कहते किसे हैं.." वीरू बनावटी गुस्से से बोला..

" तो.. तुम भी तो मुझको कह रहे थे की मैं लड़कों की तरह से चलती हूँ.. मैं कुच्छ भी ना बोलूं...?" रिया गुस्से से चिल्ला सी पड़ी...

" चलो चलो.. अपना रास्ता नापो.. मैं राज नही हूँ समझी!" वीरू ने उसको चिडाने में कोई कसर नही छोडी थी..

"मुझे बीच में क्यूँ घसीट रहे हो भाई.. लाओ बॅग इधर दो.." कहते हुए राज ने बॅग उठाया और बाहर निकलने लगा..

"टूटी टाँग.. टूटी टाँग.. टूटी टाँग.." रिया ने कहा और ज़ोर ज़ोर से हंसते हुए बाहर की और भागी...

वीरू जाने क्यूँ दरवाजे की और कुच्छ पल एकटक देखता रहा.. रिया के उसकी आँखों से औझल हो जाने के बाद भी.. और फिर अपने आप ही हँसने लगा," पागल है!"

" कौन पागल है भैया!" स्नेहा ने तैयार होकर बेडरूम से निकलते हुए कहा...

" आअ.. हां.. कुच्छ नही.. वो ऐसे ही.. अब तो बड़ी खुश लग रही हो.. क्या बात है?" वीरू ने बात पलट दी..

स्नेहा और भी खिल उठी.. विकी के उसकी जिंदगी में वापस आते ही उसके चेहरे पर सदा कायम रहने वाला नूर वापस आ गया था," चलो भी अब!"

" हां हां.. जा रहा हूँ.." वीरू ने कहा और बाहर निकल गया...

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सरिता, नेहा और दिव्या जो पिच्छली बार के टूर का कामुक अनुभव याद करके एक बार फिर उसी तरह का आनंद उठाने को तत्पर थी, उनके अरमानो पर पानी सा फिर गया.. वासू जो किसी के बिना कहे ही टूर का प्रायोजक और मार्गदर्शक बन बैठा था, सबसे पहले बस में सवार होकर हर-एक को उसकी सीट बताने लगा था.. नीरू बस में चढ़ने लगी तो उसने उसको रोक दिया," तुम रूको अभी!"

और नीरू शर्मिंदा सी होकर बाहर ही खड़ी रह गयी.. वह तो सबसे पहले चढ़ कर वासू के साथ वाली सीट कब्जा लेना चाहती थी..

बस में चढ़ने वाले लड़कों को उसने पिछे का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया.. आगे वाली सीटो में से एक शमशेर और दिशा के लिए रख छोडी और दूसरी अंजलि मेडम और गौरी के लिए.. दूसरे नंबर. की सीटो में से एक तरफ वाली उसने अपने और विकी के लिए रख छ्चोड़ी थी.. और उसके बराबर वाली पता नही किसके लिए.. पर उसस्पर उसने किसी को बैठने ना दिया..

बाकी आने वाली लड़कियों को उसने तीसरी पंक्ति से बिठाना शुरू कर दिया...

" श्रीमान जी.. आप यहाँ आइए!" विकी के बस में चढ़ते ही वासू ने विकी के लिए रिज़र्व रख छ्चोड़ी सीट की और इशारा किया..

"ओह! थॅंक्स शास्त्री जी.." विकी खुश होकर उस पर बैठ गया.. उसने सोचा साथ वाली सीट उसकी स्नेहा के लिए होगी..

उसके बाद बस में चढ़े शमशेर और दिशा को भी उसने उनके लिए निर्धारित सीट बता दी..

" आप क्यूँ कास्ट उठा रहे हैं, वासू जी..? अपने आप ही बैठ जाएँगे सब.. कोई बच्चे थोड़े ही ना हैं.." शमशेर ने मुस्कुराते हुए कहा...

" अजी, इसमें कास्ट की क्या बात है.. इस कार्यक्रम का सारा उत्तर्दयित्तव अंजलि जी ने मुझ पर ही तो डाला हुआ है.. आप दोनो साथ साथ बैठिए.." वासू ने शमशेर की मुश्कूराहट का जवाब दोगुने जोश के साथ दिया..

अंजलि बिना कहे ही शमशेर की बराबर वाली सीट पर आ जमी... और उसके बाद गौरी..

स्नेहा, जो सबसे बाद में आने वालों में से थी, ने उपर चढ़ते ही विकी की और देखा..

" ये मेरे लिए है देवी! आप यहाँ बैठ जाइए.. " बराबर वाली सीट की और इशारा करते हुए वासू ने कहा..

स्नेहा ने मायूस होकर विकी की तरफ देखा तो विकी ने अपना माथा पकड़ लिया.. जाने क्यूँ वासू उनके बीच दीवार बना हुआ था..

कुच्छ जवाब ना पाकर स्नेहा ने वही सीट पकड़ ली जो वासू ने उसको दिखाई थी... विकी के बराबर वाली...

" ओहो.. तुम रह ही गयी थी.. आओ.. उपर आ जाओ!" वासू ने नीचे खड़ी होकर उसके इशारे का इंतज़ार कर रही नीरू को देख कर इश्स प्रकार का नाटक किया जैसे उसको पता ही ना हो की वो नीचे खड़ी है..."

नीरू उपर आ गयी और वासू की और देखने लगी...

"उम्म्म्म.. आप यहाँ बैठ जाइए.. ये सीट खाली ही है.." वासू ने स्नेहा के बराबर वाली सीट की और इशारा करते हुए कहा.. या दूसरे शब्दों में.. अपने बराबर वाली सीट...

" नीरू जब अपने चेहरे पर मुस्कुराहट आने से रोक ना सकी तो उसने अपने मुँह पर हाथ रख लिया..

' तो ये सारा अरेंज्मेंट मेरे लिए ही था..' नीरू ने मन ही मन सोचा और खिल उठी.. उसके मन की मुराद पूरी हो गयी थी... वासू धम्म से अपनी सीट पर जाकर बैठ गया...," चलो चालक महाशय!"

"आ सोना.. ये लड़के कौन हैं यार...?" आरज़ू ने सोनिया के कान के पास अपने होंठ लाते हुए पूचछा... वो दोनो लड़कियों में सबसे पीछे बैठी थी...

" क्या ख्याल है राज़ो? कोई पसंद आ गया क्या?" सोनिया ने हंसते हुए धीरे से उसके कान में ही सवाल का जवाब सवाल से दिया...

"हुन्ह.. मुझे क्यूँ पसंद आएगा.. मैं ऐसी लड़की नही हूँ.. मुझसे ऐसी बकवास तू ना ही कर...!" आरज़ू एक दम भभक उठी....

" यार, इसमें बुरा मान'ने वाली क्या बात है.. मैं तो बस मज़ाक कर रही थी.. तुझे बुरा लगा तो सॉरी... वैसे...!" कहकर सोनिया चुप हो गयी...

कुच्छ देर तक उसके आगे बोलने का इंतज़ार करती रहने के बाद आरज़ू से रहा ना गया," वैसे क्या?"

" कुच्छ नही.. तू खम्खा बुरा मान जाएगी..." सोनिया ने धीरे से कहकर अपना सिर सीधा कर लिया.. उसको पता था.. ना तो वो आगे बोलने से रुक सकती है.. और ना ही आरज़ू उसकी आधी छोडी गयी बात को पूरा सुने बिना मान'ने वाली है... लड़कियाँ होती ही ऐसी हैं... फिर भी वह चुप बैठी रही..

" बता ना.. क्या कह रही थी तू.. मुझे तेरी ये आदत बिल्कुल अच्छि नही लगती.. शुरू की है तो पूरी बात कह.. मुझे बुरा लगे या अच्च्छा.. चल बोल..." आरज़ू से रहा ना गया...

" कुच्छ नही.. मैं कह रही थी.. खिड़कियाँ भी नही खुलती इस बस की तो.. तुम्हे गर्मी नही लग रही..." सोनिया ने बात को जान बूझ कर खा लिया...

" झूठी.. तू लड़कों के बारे में कुच्छ बोल रही थी.. मुझे पता है.. और वैसे भी एसी बस में गर्मी लग ही नही सकती.. वो भी रात के टाइम... जल्दी बता क्या बोल रही थी.. मेरा दिमाग़ गरम ना कर..." आरज़ू ने सोनिया को प्यार से झिड़का.. शायद ये तरकीब काम कर जाए...

" अरे यार.. तू ये नही कह रही थी की मुझे तो लड़के वैसे भी अच्छे नही लगते.. बस इसी बात पर... मैं कहने वाली थी की हम जैसी जवान लड़कियों को लड़के पसंद नही आएँगे तो क्या पसंद आएगा.. बस मज़ाक में.. अपने उपर मत ले जाना बात को....

" तू भी ना... धात!" कहकर आरज़ू शर्मा गयी...

" इसमें ग़लत बात क्या है? सही तो कह रही है ये..." अमित आगे वाली सीट पर सिर टिकाए ध्यान से उन्न दोनो की बात ध्यान से सुन रहा था... अचानक बीच में टपाक पड़ा..

अमित की बात सुनकर दोनो सीट से उच्छल सी पड़ी.. तुरंत ही आरज़ू ने संभालते हुए अमित पर ही मोर्चा खोल दिया.. पर हौले हौले," ये ईडियट हमारी बात सुन रहा है..!"

"मैं तो जनम जात ईडियट हूँ जी... सीखा दो ना 'कुच्छ' मुझे भी..." कहकर अमित खिलखिला उठा... दोनो लड़कियाँ झेंप गयी...

" तू भी यार.. जहाँ देखो शुरू हो जाता है.. आराम से नही बैठ सकता क्या..?" मनु ने उसको डांटा.. वो उसके साथ ही बैठा अपनी वाणी को देख रहा था.. वो भी रह रह कर सबसे नज़रें बचाकर उसकी और देख लेती... और अपनी हसीन स्माइल पास कर देती.. मनु की और...

" मैने क्या कहा है.. अब ये मुझे ईडियट कह रही है तो इसको ज़रूर 'कुच्छ कुच्छ' आता होगा.. मैने तो यही बोला है की...." अमित भी एक नंबर. का बेशर्म था...

" चुप कर यार.. तू सारे टूर का मज़ा खराब करेगा..." मनु ने उसको बीच में ही टोक दिया...

" तुझे मज़े लेने आते भी हैं... उल्लू की तरह देखते रहना बस उसकी और.... मुझे तो डर है की.. वो कहीं तुझे 'वो' ना समझ ले.." अमित ने जान बूझ कर ये बात मनु के साथ साथ उन्न दोनो को भी सुना दी.. और फिर से हँसने लगा...

" चुप हो जा यार.. तेरे हाथ जोड़ता हूँ.. !" मनु ने आख़िरकार हार मान ही ली...

" देख ये भी तो लड़का है... कितनी शराफ़त से बात कर रहा है.. मुझे तो ऐसे ही लड़के पसंद हैं...." आरज़ू ने कनखियों से मनु की और देखा...

" इसकी शराफ़त का तो तब पता लगेगा.. जब तुम्हारे गाँव में बारात आएगी इसकी... 'शराफ़त से बात कर रहा है..'" अमित ने आरज़ू की नकल उतारते हुए कहा...," और हां.. मैं भी आऊंगा.. बारात में.. चेहरा देख लो.. अच्छि तरह...!"

" देख लिया.. बंदर जैसा है.." आरज़ू ने हौले से पिछे बात सुनाई और सोनिया और वो दोनो खिलखिला कर हंस पड़ी...

" हां.. बंदर से याद आया.. एक बार एक बंदर ने कुतिया से प्यार कर लिया.. पता है क्या पैदा हुआ?" अमित ने कहा तो मनु ने अपने दोनो हाथों से अपना मुँह जाकड़ लिया.. नही जकड़ता तो ऐसा ठहाका गूँजता की सारी बस में तमाशा बन जाता.. और फिर जवाब देना भी मुश्किल हो जाता की हंसा तो हंसा किस बात पर...

" बदतमीज़!" आरज़ू ने अपने चेहरे से निकालने वाली हँसी को जैसे तैसे अपने आप पर काबू करके गाली की शकल दे दी.. पर सोनिया अपने आप को हँसने से ना रोक सकी.. उसने पिछे मुड़कर अपने मुँह को हाथों में दबोचे मनु की और देखा.. उसको उसकी बड़ी दया आई..

मनु और सोनिया की नज़रें मिलनी थी और वाणी का पिछे देखना हो गया.. दोनो की आँखों में.. बुल्की चारों की आँखों में हँसी की झलक पाते ही वाणी तिलमिला उठी....

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Re: गर्ल'स स्कूल

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गर्ल्स स्कूल पार्ट --54

बस ने मोहन नगर टी-जंक्षन से दायें मुड़कर गाज़ियाबाद ट्रॅफिक लाइट की और हाइवे नंबर. 24 की और बायें टर्न लिया....

" मानसी.. तू मनु को अपने पास बुला ले ना.. मैं पिछे चली जाती हूँ..!" जल भुन कर रख हो गयी वाणी ने अपने साथ बैठी मानसी से कहा...

" क्यूँ क्या हुआ..?" मानसी को वाणी की बात अटपटी सी लगी.. उसने पीछे मुड़कर मनु को देखा.. वाणी की नज़रों की भाषा समझ कर मनु की हालत ऐसी हो गयी थी जैसे बिना जहर वाले साँप को किसी ने बिल में घुसते देख उसकी पूंच्छ से पकड़ लिया हो.. शकल तो उसकी शरीफ पहले ही थी..

" क्यूँ कह रही है तू ऐसा.. क्या हुआ.. बताओ ना..?" मानसी ने फिर से वाणी पर नज़रें जमाकर कहा...

" कुच्छ नही.. बस तू उसको यहाँ बुला ले.. अगर मेरी बात माननी है तो.." कहकर वाणी उठकर पिच्छली सीट पर चली गयी.. वहाँ दिव्या अकेली बैठी हुई थी...

कुच्छ देर सोचने के बाद मानसी ने मनु को आवाज़ दी," भैया.. इधर आना.."

" ले मैं कह रहा था ना सा.. तू मेरी बॅंड बजवाएगा.. बाजवा दी ना.." बड़बड़ाता हुआ मनु वहाँ से उठकर अँगारे बरसाती हुई वाणी से महज एक सेकेंड के लिए नज़रे मिलाता हुआ मानसी के पास जा बैठा..," क्या हुआ मानी?"

" कुच्छ नही.. आप यहीं बैठे रहो.. बस!" मानसी ने धीरे से मनु से कहा..

" आख़िर कुच्छ हुआ भी होगा? मैं वहाँ ठीक तो बैठा था.. आराम से.. मैं तो कुच्छ बोल भी नही रहा था किसी से..!" मनु ने ये सफाई मानसी को नही बुल्की उसके पिछे बैठकर उसकी शर्ट खींच रही वाणी को देनी ज़रूरी समझी...

"वाणी खाँसी तो मनु ने पिछे मुड़कर देखा.. वाणी उसकी और आँखें निकाले हुए दाँत पीस रही थी.. बेचारा मनु मन मार कर रह गया.. ये टाइम उस'से ज़्यादा खुलकर सफाई देने का था भी तो नही...

" मैं वापस जाउ?" मनु की एक आँख मानसी पर और दूसरी वाणी पर थी..

मानसी ने पिछे मुड़कर वाणी को देखा.....

" मेरी तरफ क्यूँ देख रही हो.. मेरी तरफ से तो चाहे कोई भाड़ में जाए.. मुझे क्या..?" वाणी अब भी उसकी शर्ट को पकड़ कर खींचे हुए थी...

"ठीक है.. मैं यहीं बैठ जाता हूँ.. वैसे भी पीछे नही बैठना चाह रहा मैं..." और बेचारा मनु.....

-------------------------------------------

विकी काफ़ी देर से शमशेर को कुच्छ कहने का सोच रहा था.. पर वासू के पास 3 घंटे से ज़्यादा बैठने के बाद उसको ऐसा लग रहा था जैसे किसी आश्रम में बैठा हो... उसके प्रवचन सुन सुन कर उसके कान पक गये थे... आख़िरकार उस'से रहा ना गया..," शमशेर भाई.. एक मिनिट पिछे आओगे..!"

" हां.. बता ना.. क्या बात है? यहीं बोल दे...!" शमशेर ने पिछे घूमते हुए कहा...

" नही यार.. एक बार पिछे आ जा...!"

"चल!" शमशेर खड़ा हो गया और दोनो जाकर बस की पिच्छली सीटो पर बैठ गये..," क्या बात है..?"

" बात क्या है यार.. तुमने सुना नही क्या?" ये कैसे कैसे अध्यापक.. ओह माइ गॉड! मैं भी उसकी भाषा बोलने लग गया.. ये कैसे टीचर को साथ ले आया तू भी.. लगता है जैसे मौज मस्ती के लिए नही.. तीर्थ यात्रा पर जा रहे हों... सारे.. तीर्थ.. सारे श्लोक.. सारे मन्त्र.. मुझे सुना दिए इसने.. कुच्छ कुच्छ तो मुझे याद हो भी गया.. सुनाऊं.. ओम विश्वाणी देव: सवीतूर, दुरीतानी परा शुव: यद भद्रम आसुव:...."

" यार ये क्या पागलपन है.. मुझे क्यूँ सुना रहा है ये सब.. बात क्या है.. वो बता ना..." शमशेर ने हंसते हुए कहा..

" देख ले.. तुझसे एक छन भी नही सुना गया.. तू सोच.. मैने पूरे हवन के मन्त्र कैसे झेले होंगे यार.. कैसे झेला होगा इस.. इसको 3 घंटे से ज़्यादा..." विकी ने बेचारा सा मुँह बनाते हुए कहा," अच्च्छा भला.. स्नेहा के पास बैठ रहा था.. वहाँ से भी मना कर दिया.." विकी रो तो नही रहा था.. पर हालत उस'से भी कहीं ज़्यादा गयी गुज़री थी.....

" तो क्या करना है.. स्नेहा के साथ बैठना है अभी...!" शमशेर ने मतलब की बात पर आते हुए कहा...

" नही भाई... अब.. स्नेहा के पास बैठने से भी क्या होगा.. इस कम्बख़त ने तो बातों ही बातों में मेरी इज़्ज़त सी लूट ली है.. मुझे कुच्छ भी याद नही.. सिवाय उसके प्रवचनो के..!" विकी का बुरा हाल था...

" हा हा हा हा.. नही यार.. वो मस्त आदमी है.. बस बातें कुच्छ ज़्यादा करता है.. तू बता.. क्या चाहिए तुझे अब..?" शमशेर हँसना तो और भी चाहता था.. पर विकी की रोनी सूरत देख कर उसको रहम आ गया...

" दारू! दारू चाहिए भाई.. अभी के अभी.. वरना मैं पागल हो जाउन्गा..!"

" यहाँ तो ठीक नही है विकी.. समझा कर...!" शमशेर ने उसको समझाने की कोशिश की..

" तो ऐसा करो.. मुझे यहीं उतार दो.. मैं वापस चला जवँगा.. ये उपकार तो कर ही सकते हो.. मेरे भाई.." विकी की शकल सच में ही देखने लायक थी...

" चल.. मैं देखता हूँ.. थोड़ा आगे चलकर खाना खाएँगे.. तब देखते हैं.. ओके?"

"कितनी दूर और चलना पड़ेगा...?" विकी के चेहरे पर हल्की सी रौनक लौट आई..

" यहाँ से बाबुगारह करीब 15 काइलामीटर और है.. वहाँ से 50 काइलामीटर है गजरौला.. वहाँ पर खाएँगे......" शमशेर ने उसको थपकी देते हुए कहा...

"ठीक है भाई.. पर मैं वापस उसके पास नही जाउन्गा.. यहीं बैठा रहूँगा तब तक...." विकी ने मुरझाए हुए चेहरे से कहा..

" तू चल ना यार.. आ.. मैं स्नेहा को तेरे साथ बैठवाने का जुगाड़ करता हूँ.. दिशा से कहकर.... आजा!"

"आ रिया! देख ना, राज स्लीवलेशस टी-शर्ट में कितना क्यूट लग रहा है!" प्रिया ने नज़रें घूमाकर एक बार फिर से राज पर निगाह डाली...

" और वीरू? वो जाग रहा है क्या?" रिया ने पिछे नही देखा.. बस उसी से पूच्छ लिया..

"हूंम्म.. मुझसे क्यूँ पूच्छ रही है.. तुझे आँखें नही दी क्या भगवान ने?" प्रिया ने चटखारे लेते हुए कहा...

" मुझे नही देखना उसको! मचकर्चॅड!" रिया ने कहते हुए अपनी आँखें बंद कर ली.. कहीं आँखों से उसके दिल की बात ना पता चल जाए..

" उम्म? क्या बोला तूने? मचकर्चॅड? हा हा हा!" प्रिया पिछे मुड़कर वीरू के चेहरे पर उग्ग रही हुल्की मूँछहों पर गौर करते हुए हंस पड़ी.. वीरू ने एक पल को उस'से नज़रें मिलाई और फिर अपना चेहरा दूसरी और कर लिया..

" और क्या? जब ये मुझसे बात नही करता तो दिल करता है अपने नाखूनओ से इसकी मून्छे उखाड़ डालूं.. पता नही क्या समझता है अपने आपको.. तूने भी तो प्रोमिस किया था ना.. मेरे लिए बात करेगी.. अब तो भूल गयी होगी तू.. तेरा काम तो बन ही गया है..." रिया ने मुँह फुलाते हुए कहा..

" नही यार.. ऐसी बात नही है... तेरी तरह मुझे भी उस'से बात करते हुए डर लगता है.. पर मैं राज को बोलकर देखूँगी.. मौका मिलने दे..!" प्रिया ने रिया को शंतवना दी..

" देख ले.. तेरी मर्ज़ी है.. वरना मैने तो ऐसा प्लान सोच रखा है कि बस.. बाद में मुझे मत कहना ये क्या कर दिया...!" रिया ने भी उसको अलटिमेटम दे डाला..

" क्या? ऐसा क्या करेगी तू?" प्रिया ने संभावित आसचर्या में पहले ही अपना मुँह खोल लिया...

" वो तो बस तभी पता चलेगा.. अगर तूने उसके मुझसे ढंग से बात करने के लिए राज़ी नही किया तो.. अब तू देख ले..." रिया ने राज को राज ही रखा..

" देख रिया.. कुच्छ उल्टा सीधा करने की मत सोचना.. मैं कह रही हूँ ना.. मैं बात करूँगी..... आ.. वो देख.. स्नेहा विकी वाली सीट पर चली गयी.. हाए.. काश! मैं भी राज के साथ बैठ सकती..." प्रिया ने बोलते बोलते अचानक रिया का ध्यान आगे की और खींचा..

" और देख.. वो 'सर' उस लड़की के साथ बैठ गये.. उनका भी कुच्छ चक्कर है क्या?" रिया ने वासू की और इशारा किया...

" धात! पागल.. अब स्नेहा उसकी सीट पर जाएगी तो वो क्या वहीं बैठे रहेंगे.. इसीलिए नीरू के पास जाकर बैठ गये होंगे.. 'वो' तो 'सर' हैं उसके!" प्रिया ने रिया के मन का 'मैल' निकालने की कोशिश की...

" बेशक सर हों.. पर तू चाहे शर्त लगा ले.. कुच्छ ना कुच्छ बात ज़रूर है.. अभी देखा नही तूने.. दोनो एक दूसरे से नज़रें मिलकर कैसे खिल उठे थे.. हां.. कुच्छ ना कुच्छ चक्कर ज़रूर मिलगे इनका भी!" रिया अपनी बात पर अड़ गयी..

"चल ना.. तू तो पागल है.. अब चुप कर ये बातें.. कोई सुन लेगा!" कहते हुए प्रिया ने एक बार और राज को और वीरू की 'मूँछहों' को देखा और सीधी बैठ गयी...

--------------------------------

"तुम ठीक तो हो ना.. नीरू! उल्टियाँ वग़ैरह तो नही आने वाली हैं ना...!" अपने वासू ने क्या टॉपिक ढूँढा था.. बात शुरू करने के लिए.. वा!

नीरू ने गर्दन नीचे करके अपना सिर 'ना' में हिला दिया.. वासू की जांघें उसकी जांघों के साथ सटा'ते ही उसके बदन में वासनात्मक सुगबुगाहट सी शुरू हो गयी थी... इस 'मस्ती' को और बढ़ाने के लिए उसने अपनी जांघें थोड़ी सी खोल कर वासू से और ज़्यादा चिपका दी...

" श.. क्षमा करना! मैने जान-बूझ कर ऐसा नही किया.." कहते हुए वासू ने सरकते हुए अपने को नीरू से थोड़ा अलग कर लिया.. उस लल्लू को ये लगा की नीरू का भरी बस में उसके साथ साथ कर बैठना अच्च्छा नही लगा होगा...

बेचारी नीरू क्या बोलती! खून का घूँट पीकर रह गयी.. अब ऐसे 'दिलजले' से यारी की है तो भुगतना तो पड़ेगा ही..

-----------------------------------------

"थॅंक्स विकी!" स्नेहा ने चुपके से विकी के कान में कहते हुए अपना सिर उसके कंधे पर टीका दिया...

विकी ने अपना हाथ स्नेहा की गर्दन के पिछे से ले जाते हुए दूसरी तरफ उसके कंधे पर रख लिया..

" तुम मुझसे अभी भी प्यार करती हो ना.. सानू!" विकी ने हौले से ये बात स्नेहा के कान में कहकर उसको अंदर तक गुदगुदा दिया..

" पता नही.." कहकर स्नेहा ने उसको कोहनी मारी..

" बता ना.. मैं सीरियस्ली पूच्छ रहा हूँ.." विकी ने फिर से उसके कान में कहा..

" सीरियस्ली?" स्नेहा ने सवाल किया..

" हां.. यार सीरियस्ली.."

स्नेहा ने अपना चेहरा थोड़ा सा उपर उठाया और उसके कान के पास अपने होंठ ले गयी..," मेरा 'प्यार' करने का बहुत दिल कर रहा है.. मैं मरी जा रही हूँ.. तुम्हारी बाहों में आने के लिए.. कब पहुँचेंगे नैनीताल?"

विकी को जवाब मिल गया.. वा और उसका दिल, दोनो झूम उठे..," थॅंक्स सानू! मैं भी तुम्हारे लिए अब उतना ही तड़प रहा हून.." कहते हुए विकी ने स्नेहा के कंधे को दबाकर अपने से सटा लिया..

" मैं.. तुम्हारी गोद में सिर रख लूँ..?" स्नेहा ने अपनी गरम साँसें विकी के कानो के पास छ्चोड़ी तो विकी का 'सब कुच्छ' अकड़ गया..

" यहाँ? अभी? सबके सामने? सबको अजीब नही लगेगा क्या?"

" लगने दो.. यहाँ मुझे कौन जानता है.. और जो जानते हैं.. उनका पता ही है कि मैं तुम्हारी ही हूँ.. क्या फ़र्क़ पड़ता है..?" स्नेहा उसके थोड़ा और करीब आकर बोली..

" ठीक है.. आ जाओ.. मुझे भी कोई प्राब्लम नही है..?" विकी ने उस'से थोड़ा दूर हटकर स्नेहा के उसकी गोद में सिर रखने का रास्ता सॉफ कर दिया..

स्नेहा ने एक पल को झिझकते हुए अपने बायें देखा और फिर आँखें बंद करके विकी की गोद में सिर टीका दिया...

पर उनको देखने की फ़ुर्सत किसके पास थी.. सब या तो 'अपने अपनों' पर नज़र रखे हुए थे या फिर सो चुके थे... सिवाय आरज़ू को छ्चोड़कर.. उसका कोई ऐसा 'अपना' तो बस में था नही.. और नींद उसकी उड़ा ही दी थी.. अमित ने.. 'बंदर और कुतिया' वाली बात कहकर.. जाने अंजाने.. काफ़ी देर तक उसका ध्यान इसी बात पर टीका रहा.. और जब उस बात से ध्यान हटा तो 'विकी' पर आकर टिक गया...

विकी और स्नेहा की चुहलबाज़ियाँ उसके तन-मन में गुदगुदी सी पैदा कर रही थी.. और जैसे ही स्नेहा झुक कर विकी की गोद में लेटी.. 'कल्पना शक्ति' की डोर उसको विकी की जांघों के बीच ले गयी..और अनायास ही उसकी जांघें कसकर एक दूसरी से सॅट गयी.. जाने कैसा अहसास था.. पर जो भी था.. आरज़ू के चेहरे पर बड़े ही कामुक भाव उजागर हो गये.. 'इस्स्श्ह्ह'

" ये क्या है? तुम तो अभी से तैयार हो?" स्नेहा ने जैसे ही विकी की गोद में सिर रखा.. एक 'जानी-पहचानी 'चीज़' उसके गालों से आकर सॅट गयी.. वो कहते हुए शरारत से मुस्कुरा पड़ी..

विकी कुच्छ नही बोला.. बस मुस्कुराया और उसके चेहरे पर प्यार से हाथ फेरने लगा...

" मुझे नही पता.. मुझे सिर रखने में दिक्कत हो रही है.. इसको ठीक करो पहले.." स्नेहा ने शरारती तरीके से अपने गाल और उस 'चीज़' के बीच अपना हाथ रखते हुए धीरे से कहा.. हाथ का स्पर्श जीन के उपर से पाते ही 'वो' और भी अकड़ गया.. और भी सीधा हो गया.. और भी लंबा..

" देखो.. मैं पहले ही बोल रही हूँ... वरना...!" स्नेहा ने जैसे कुच्छ ठान ही लिया था..

"मैं क्या करूँ.. अयाया" बोलते बोलते विकी की सिसकी निकल गयी.. स्नेहा ने अपने दाँतों से जीन का वो उभरा हुआ भाग काट खाया था..

विकी की सिसकी सुनकर स्नेहा की हँसी छ्छूट गयी.. वो कहते हैं ना.. 'चोरी चोरी प्यार में है जो मज़ा!'

गर्ल'स स्कूल--55

बस ने मोहन नगर टी-जंक्षन से दायें मुड़कर गाज़ियाबाद ट्रॅफिक लाइट की और हाइवे नंबर. 24 की और बायें टर्न लिया....

" मानसी.. तू मनु को अपने पास बुला ले ना.. मैं पिछे चली जाती हूँ..!" जल भुन कर रख हो गयी वाणी ने अपने साथ बैठी मानसी से कहा...

" क्यूँ क्या हुआ..?" मानसी को वाणी की बात अटपटी सी लगी.. उसने पीछे मुड़कर मनु को देखा.. वाणी की नज़रों की भाषा समझ कर मनु की हालत ऐसी हो गयी थी जैसे बिना जहर वाले साँप को किसी ने बिल में घुसते देख उसकी पूंच्छ से पकड़ लिया हो.. शकल तो उसकी शरीफ पहले ही थी..

" क्यूँ कह रही है तू ऐसा.. क्या हुआ.. बताओ ना..?" मानसी ने फिर से वाणी पर नज़रें जमाकर कहा...

" कुच्छ नही.. बस तू उसको यहाँ बुला ले.. अगर मेरी बात माननी है तो.." कहकर वाणी उठकर पिच्छली सीट पर चली गयी.. वहाँ दिव्या अकेली बैठी हुई थी...

कुच्छ देर सोचने के बाद मानसी ने मनु को आवाज़ दी," भैया.. इधर आना.."

" ले मैं कह रहा था ना सा.. तू मेरी बॅंड बजवाएगा.. बाजवा दी ना.." बड़बड़ाता हुआ मनु वहाँ से उठकर अँगारे बरसाती हुई वाणी से महज एक सेकेंड के लिए नज़रे मिलाता हुआ मानसी के पास जा बैठा..," क्या हुआ मानी?"

" कुच्छ नही.. आप यहीं बैठे रहो.. बस!" मानसी ने धीरे से मनु से कहा..

" आख़िर कुच्छ हुआ भी होगा? मैं वहाँ ठीक तो बैठा था.. आराम से.. मैं तो कुच्छ बोल भी नही रहा था किसी से..!" मनु ने ये सफाई मानसी को नही बुल्की उसके पिछे बैठकर उसकी शर्ट खींच रही वाणी को देनी ज़रूरी समझी...

"वाणी खाँसी तो मनु ने पिछे मुड़कर देखा.. वाणी उसकी और आँखें निकाले हुए दाँत पीस रही थी.. बेचारा मनु मन मार कर रह गया.. ये टाइम उस'से ज़्यादा खुलकर सफाई देने का था भी तो नही...

" मैं वापस जाउ?" मनु की एक आँख मानसी पर और दूसरी वाणी पर थी..

मानसी ने पिछे मुड़कर वाणी को देखा.....

" मेरी तरफ क्यूँ देख रही हो.. मेरी तरफ से तो चाहे कोई भाड़ में जाए.. मुझे क्या..?" वाणी अब भी उसकी शर्ट को पकड़ कर खींचे हुए थी...

"ठीक है.. मैं यहीं बैठ जाता हूँ.. वैसे भी पीछे नही बैठना चाह रहा मैं..." और बेचारा मनु.....

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विकी काफ़ी देर से शमशेर को कुच्छ कहने का सोच रहा था.. पर वासू के पास 3 घंटे से ज़्यादा बैठने के बाद उसको ऐसा लग रहा था जैसे किसी आश्रम में बैठा हो... उसके प्रवचन सुन सुन कर उसके कान पक गये थे... आख़िरकार उस'से रहा ना गया..," शमशेर भाई.. एक मिनिट पिछे आओगे..!"

" हां.. बता ना.. क्या बात है? यहीं बोल दे...!" शमशेर ने पिछे घूमते हुए कहा...

" नही यार.. एक बार पिछे आ जा...!"

"चल!" शमशेर खड़ा हो गया और दोनो जाकर बस की पिच्छली सीटो पर बैठ गये..," क्या बात है..?"

" बात क्या है यार.. तुमने सुना नही क्या?" ये कैसे कैसे अध्यापक.. ओह माइ गॉड! मैं भी उसकी भाषा बोलने लग गया.. ये कैसे टीचर को साथ ले आया तू भी.. लगता है जैसे मौज मस्ती के लिए नही.. तीर्थ यात्रा पर जा रहे हों... सारे.. तीर्थ.. सारे श्लोक.. सारे मन्त्र.. मुझे सुना दिए इसने.. कुच्छ कुच्छ तो मुझे याद हो भी गया.. सुनाऊं.. ओम विश्वाणी देव: सवीतूर, दुरीतानी परा शुव: यद भद्रम आसुव:...."

" यार ये क्या पागलपन है.. मुझे क्यूँ सुना रहा है ये सब.. बात क्या है.. वो बता ना..." शमशेर ने हंसते हुए कहा..

" देख ले.. तुझसे एक छन भी नही सुना गया.. तू सोच.. मैने पूरे हवन के मन्त्र कैसे झेले होंगे यार.. कैसे झेला होगा इस.. इसको 3 घंटे से ज़्यादा..." विकी ने बेचारा सा मुँह बनाते हुए कहा," अच्च्छा भला.. स्नेहा के पास बैठ रहा था.. वहाँ से भी मना कर दिया.." विकी रो तो नही रहा था.. पर हालत उस'से भी कहीं ज़्यादा गयी गुज़री थी.....

" तो क्या करना है.. स्नेहा के साथ बैठना है अभी...!" शमशेर ने मतलब की बात पर आते हुए कहा...

" नही भाई... अब.. स्नेहा के पास बैठने से भी क्या होगा.. इस कम्बख़त ने तो बातों ही बातों में मेरी इज़्ज़त सी लूट ली है.. मुझे कुच्छ भी याद नही.. सिवाय उसके प्रवचनो के..!" विकी का बुरा हाल था...

" हा हा हा हा.. नही यार.. वो मस्त आदमी है.. बस बातें कुच्छ ज़्यादा करता है.. तू बता.. क्या चाहिए तुझे अब..?" शमशेर हँसना तो और भी चाहता था.. पर विकी की रोनी सूरत देख कर उसको रहम आ गया...

" दारू! दारू चाहिए भाई.. अभी के अभी.. वरना मैं पागल हो जाउन्गा..!"

" यहाँ तो ठीक नही है विकी.. समझा कर...!" शमशेर ने उसको समझाने की कोशिश की..

" तो ऐसा करो.. मुझे यहीं उतार दो.. मैं वापस चला जवँगा.. ये उपकार तो कर ही सकते हो.. मेरे भाई.." विकी की शकल सच में ही देखने लायक थी...

" चल.. मैं देखता हूँ.. थोड़ा आगे चलकर खाना खाएँगे.. तब देखते हैं.. ओके?"

"कितनी दूर और चलना पड़ेगा...?" विकी के चेहरे पर हल्की सी रौनक लौट आई..

" यहाँ से बाबुगारह करीब 15 काइलामीटर और है.. वहाँ से 50 काइलामीटर है गजरौला.. वहाँ पर खाएँगे......" शमशेर ने उसको थपकी देते हुए कहा...

"ठीक है भाई.. पर मैं वापस उसके पास नही जाउन्गा.. यहीं बैठा रहूँगा तब तक...." विकी ने मुरझाए हुए चेहरे से कहा..

" तू चल ना यार.. आ.. मैं स्नेहा को तेरे साथ बैठवाने का जुगाड़ करता हूँ.. दिशा से कहकर.... आजा!"

"आ रिया! देख ना, राज स्लीवलेशस टी-शर्ट में कितना क्यूट लग रहा है!" प्रिया ने नज़रें घूमाकर एक बार फिर से राज पर निगाह डाली...

" और वीरू? वो जाग रहा है क्या?" रिया ने पिछे नही देखा.. बस उसी से पूच्छ लिया..

"हूंम्म.. मुझसे क्यूँ पूच्छ रही है.. तुझे आँखें नही दी क्या भगवान ने?" प्रिया ने चटखारे लेते हुए कहा...

" मुझे नही देखना उसको! मचकर्चॅड!" रिया ने कहते हुए अपनी आँखें बंद कर ली.. कहीं आँखों से उसके दिल की बात ना पता चल जाए..

" उम्म? क्या बोला तूने? मचकर्चॅड? हा हा हा!" प्रिया पिछे मुड़कर वीरू के चेहरे पर उग्ग रही हुल्की मूँछहों पर गौर करते हुए हंस पड़ी.. वीरू ने एक पल को उस'से नज़रें मिलाई और फिर अपना चेहरा दूसरी और कर लिया..

" और क्या? जब ये मुझसे बात नही करता तो दिल करता है अपने नाखूनओ से इसकी मून्छे उखाड़ डालूं.. पता नही क्या समझता है अपने आपको.. तूने भी तो प्रोमिस किया था ना.. मेरे लिए बात करेगी.. अब तो भूल गयी होगी तू.. तेरा काम तो बन ही गया है..." रिया ने मुँह फुलाते हुए कहा..

" नही यार.. ऐसी बात नही है... तेरी तरह मुझे भी उस'से बात करते हुए डर लगता है.. पर मैं राज को बोलकर देखूँगी.. मौका मिलने दे..!" प्रिया ने रिया को शंतवना दी..

" देख ले.. तेरी मर्ज़ी है.. वरना मैने तो ऐसा प्लान सोच रखा है कि बस.. बाद में मुझे मत कहना ये क्या कर दिया...!" रिया ने भी उसको अलटिमेटम दे डाला..

" क्या? ऐसा क्या करेगी तू?" प्रिया ने संभावित आसचर्या में पहले ही अपना मुँह खोल लिया...

" वो तो बस तभी पता चलेगा.. अगर तूने उसके मुझसे ढंग से बात करने के लिए राज़ी नही किया तो.. अब तू देख ले..." रिया ने राज को राज ही रखा..

" देख रिया.. कुच्छ उल्टा सीधा करने की मत सोचना.. मैं कह रही हूँ ना.. मैं बात करूँगी..... आ.. वो देख.. स्नेहा विकी वाली सीट पर चली गयी.. हाए.. काश! मैं भी राज के साथ बैठ सकती..." प्रिया ने बोलते बोलते अचानक रिया का ध्यान आगे की और खींचा..

" और देख.. वो 'सर' उस लड़की के साथ बैठ गये.. उनका भी कुच्छ चक्कर है क्या?" रिया ने वासू की और इशारा किया...

" धात! पागल.. अब स्नेहा उसकी सीट पर जाएगी तो वो क्या वहीं बैठे रहेंगे.. इसीलिए नीरू के पास जाकर बैठ गये होंगे.. 'वो' तो 'सर' हैं उसके!" प्रिया ने रिया के मन का 'मैल' निकालने की कोशिश की...

" बेशक सर हों.. पर तू चाहे शर्त लगा ले.. कुच्छ ना कुच्छ बात ज़रूर है.. अभी देखा नही तूने.. दोनो एक दूसरे से नज़रें मिलकर कैसे खिल उठे थे.. हां.. कुच्छ ना कुच्छ चक्कर ज़रूर मिलगे इनका भी!" रिया अपनी बात पर अड़ गयी..

"चल ना.. तू तो पागल है.. अब चुप कर ये बातें.. कोई सुन लेगा!" कहते हुए प्रिया ने एक बार और राज को और वीरू की 'मूँछहों' को देखा और सीधी बैठ गयी...

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"तुम ठीक तो हो ना.. नीरू! उल्टियाँ वग़ैरह तो नही आने वाली हैं ना...!" अपने वासू ने क्या टॉपिक ढूँढा था.. बात शुरू करने के लिए.. वा!

नीरू ने गर्दन नीचे करके अपना सिर 'ना' में हिला दिया.. वासू की जांघें उसकी जांघों के साथ सटा'ते ही उसके बदन में वासनात्मक सुगबुगाहट सी शुरू हो गयी थी... इस 'मस्ती' को और बढ़ाने के लिए उसने अपनी जांघें थोड़ी सी खोल कर वासू से और ज़्यादा चिपका दी...

" श.. क्षमा करना! मैने जान-बूझ कर ऐसा नही किया.." कहते हुए वासू ने सरकते हुए अपने को नीरू से थोड़ा अलग कर लिया.. उस लल्लू को ये लगा की नीरू का भरी बस में उसके साथ साथ कर बैठना अच्च्छा नही लगा होगा...

बेचारी नीरू क्या बोलती! खून का घूँट पीकर रह गयी.. अब ऐसे 'दिलजले' से यारी की है तो भुगतना तो पड़ेगा ही..

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"थॅंक्स विकी!" स्नेहा ने चुपके से विकी के कान में कहते हुए अपना सिर उसके कंधे पर टीका दिया...

विकी ने अपना हाथ स्नेहा की गर्दन के पिछे से ले जाते हुए दूसरी तरफ उसके कंधे पर रख लिया..

" तुम मुझसे अभी भी प्यार करती हो ना.. सानू!" विकी ने हौले से ये बात स्नेहा के कान में कहकर उसको अंदर तक गुदगुदा दिया..

" पता नही.." कहकर स्नेहा ने उसको कोहनी मारी..

" बता ना.. मैं सीरियस्ली पूच्छ रहा हूँ.." विकी ने फिर से उसके कान में कहा..

" सीरियस्ली?" स्नेहा ने सवाल किया..

" हां.. यार सीरियस्ली.."

स्नेहा ने अपना चेहरा थोड़ा सा उपर उठाया और उसके कान के पास अपने होंठ ले गयी..," मेरा 'प्यार' करने का बहुत दिल कर रहा है.. मैं मरी जा रही हूँ.. तुम्हारी बाहों में आने के लिए.. कब पहुँचेंगे नैनीताल?"

विकी को जवाब मिल गया.. वा और उसका दिल, दोनो झूम उठे..," थॅंक्स सानू! मैं भी तुम्हारे लिए अब उतना ही तड़प रहा हून.." कहते हुए विकी ने स्नेहा के कंधे को दबाकर अपने से सटा लिया..

" मैं.. तुम्हारी गोद में सिर रख लूँ..?" स्नेहा ने अपनी गरम साँसें विकी के कानो के पास छ्चोड़ी तो विकी का 'सब कुच्छ' अकड़ गया..

" यहाँ? अभी? सबके सामने? सबको अजीब नही लगेगा क्या?"

" लगने दो.. यहाँ मुझे कौन जानता है.. और जो जानते हैं.. उनका पता ही है कि मैं तुम्हारी ही हूँ.. क्या फ़र्क़ पड़ता है..?" स्नेहा उसके थोड़ा और करीब आकर बोली..

" ठीक है.. आ जाओ.. मुझे भी कोई प्राब्लम नही है..?" विकी ने उस'से थोड़ा दूर हटकर स्नेहा के उसकी गोद में सिर रखने का रास्ता सॉफ कर दिया..

स्नेहा ने एक पल को झिझकते हुए अपने बायें देखा और फिर आँखें बंद करके विकी की गोद में सिर टीका दिया...

पर उनको देखने की फ़ुर्सत किसके पास थी.. सब या तो 'अपने अपनों' पर नज़र रखे हुए थे या फिर सो चुके थे... सिवाय आरज़ू को छ्चोड़कर.. उसका कोई ऐसा 'अपना' तो बस में था नही.. और नींद उसकी उड़ा ही दी थी.. अमित ने.. 'बंदर और कुतिया' वाली बात कहकर.. जाने अंजाने.. काफ़ी देर तक उसका ध्यान इसी बात पर टीका रहा.. और जब उस बात से ध्यान हटा तो 'विकी' पर आकर टिक गया...

विकी और स्नेहा की चुहलबाज़ियाँ उसके तन-मन में गुदगुदी सी पैदा कर रही थी.. और जैसे ही स्नेहा झुक कर विकी की गोद में लेटी.. 'कल्पना शक्ति' की डोर उसको विकी की जांघों के बीच ले गयी..और अनायास ही उसकी जांघें कसकर एक दूसरी से सॅट गयी.. जाने कैसा अहसास था.. पर जो भी था.. आरज़ू के चेहरे पर बड़े ही कामुक भाव उजागर हो गये.. 'इस्स्श्ह्ह'

" ये क्या है? तुम तो अभी से तैयार हो?" स्नेहा ने जैसे ही विकी की गोद में सिर रखा.. एक 'जानी-पहचानी 'चीज़' उसके गालों से आकर सॅट गयी.. वो कहते हुए शरारत से मुस्कुरा पड़ी..

विकी कुच्छ नही बोला.. बस मुस्कुराया और उसके चेहरे पर प्यार से हाथ फेरने लगा...

" मुझे नही पता.. मुझे सिर रखने में दिक्कत हो रही है.. इसको ठीक करो पहले.." स्नेहा ने शरारती तरीके से अपने गाल और उस 'चीज़' के बीच अपना हाथ रखते हुए धीरे से कहा.. हाथ का स्पर्श जीन के उपर से पाते ही 'वो' और भी अकड़ गया.. और भी सीधा हो गया.. और भी लंबा..

" देखो.. मैं पहले ही बोल रही हूँ... वरना...!" स्नेहा ने जैसे कुच्छ ठान ही लिया था..

"मैं क्या करूँ.. अयाया" बोलते बोलते विकी की सिसकी निकल गयी.. स्नेहा ने अपने दाँतों से जीन का वो उभरा हुआ भाग काट खाया था..

विकी की सिसकी सुनकर स्नेहा की हँसी छ्छूट गयी.. वो कहते हैं ना.. 'चोरी चोरी प्यार में है जो मज़ा!'

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