गर्ल'स स्कूल compleet

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Re: गर्ल'स स्कूल

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गर्ल्स स्कूल पार्ट --55

"आ.. ये क्या.. सबको पता चल जाएगा.." विकी ने सिसक'ते हुए झुक कर धीरे से कहा...

" अच्च्छा.. अब नही करूँगी.. पर बाद में तुम्हे छ्चोड़ूँगी नही.. देख लेना!" स्नेहा ने विकी की आँखों में झँकते हुए शरारत से अपनी आँखें मत्कायि.. और नीचे ही नीचे अपने हाथों से 'उस' को सहलाने लगी.. विकी पर प्यार करने की खुमारी चढ़ती जा रही थी...

आरज़ू बड़े गौर से पल पल बदलते विकी के चेहरे के भावों को देख रही थी.. उसको पूरा यकीन था की नीचे 'कुच्छ' ना 'कुच्छ' हो रहा है...

" सोना! तूने कुच्छ देखा क्या?" आरज़ू सोनिया के कान में फुसफुसाई..

" क्या?" सोने की तैयारी कर रही सोनिया ने आरज़ू के चेहरे की और देखते हुए कहा..

" मेरी तरफ क्या देख रही है? उधर देख.. सामने!" आरज़ू ने सोनिया को कोहनी मारी..

सोनिया ने बस में आगे की तरफ नज़रें दौड़ाई, पर उसकी नज़रें वो नही देख पाई जो आरज़ू देख रही थी.. या फिर देख कर भी समझ नही पाई," क्या देखूं?"

" अरे.. वो लड़की.. स्नेहा उसकी गोद में सिर रखे लेटी है... दिखता नही क्या तुझे?"

" एयेए हां.. पर मैं देखु क्या?" सोनिया अभी भी अंजान थी..

" तू तो बिल्कुल बुद्धू है.. कभी 'वैसी' मूवी नही देखी क्या?"

" सोनिया 'वैसी मूवी' का मतलब तुरंत समझ गयी," मैं.. मैं क्यूँ देखूँगी.. वैसी मूवी.. पर तू कहना क्या चाह रही है...?" सोनिया ने आरज़ू के कान में फुसफुसाया...

" ओहो.. तू तो जैसे बिल्कुल ही भोली है.. सुन.. इधर आ" आरज़ू ने कहा और सोनिया उसके चेहरे की और झुक गयी..," क्या?"

" मैने देखी है एक बार... उसमें एक अँग्रेजन किसी अंग्रेज का 'वो' मुँह में लेकर चूस रही थी.."

सोनिया ने आरज़ू को बीच में ही टोक दिया..," धात! ऐसी बातें क्यूँ कर रही है..?"

" अरे.. मैं ऐसी बात ऐसे ही नही बोल रही.. तू सुन तो सही.. जब वो ऐसा कर रही थी तो वो अंग्रेज भी ऐसे ही सिसक रहा था.. जैसे ये..."

"मतलब... स्नेहा.. हे भगवान.." और सोनिया ने आसचर्या और शरम में अपने हाथ से अपना मुँह ढक लिया..

"तू ध्यान से देख.. तुझे अपने आप समझ आ जाएगा..."

" पर.. वो ऐसा क्यूँ कर रही है..? शरम नही आती उसको.." सोनिया का चेहरा शरम से लाल हो गया था..

" मज़े भी तो आ रहे होंगे.." आरज़ू ने सोनिया के सामानया ज्ञान में इज़ाफा किया..

"मज़े?? इस काम में कैसे मज़े?" बेशक सोनिया ये सवाल कर रही थी.. पर अब तक उसकी मांसल जांघों के बीच उसको भी तरलता का अहसास होने लगा था... कुदरतन!

"अब मैं तुझे करके दिखाउ क्या? तू सच में नही समझती क्या ये सब.." सोनिया ने पीछे मुड़कर देखा.. अमित नींद के आगोश में पड़ा सो रहा था..

" नही.. कसम से.. मैने कभी नही किया ऐसा कुच्छ" सोनिया ने भोली बनते हुए कहा...

" एक बात बताऊं.. किसी को बोलेगी तो नही ना..? आरज़ू ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा..

" मैने तेरी कभी कोई बात किसी को बताई है क्या?" कहते हुए सोनिया मन ही मन वो नाम याद करने लगी थी जिस जिस को वो आरज़ू का 'राज' बता कर अपना पेट हूल्का कर सकेगी.. आख़िर लड़की थी भाई

" मैने है ना.. एक बार.. देख तुझे मेरी कसम है.. किसी को बोलना मत.." सोनिया कहते कहते रुक गयी..

" अरे बोल ना बाबा.. नही बताउन्गि.. प्रोमिस!"

" ठीक है.. एक बार मुझे एक 'गंदी' मूवी घर पर मिली थी.. मैं अकेली ही थी.. मैने मूवी चला ली... उसमें .. मैने अभी बताया था ना तुझे...?" आरज़ू ने अपना चेहरा सोनिया से दूर करते हुए उसके मनो भावों को पढ़ने की कोशिश की..

" हां.. हां.. तू बता ना.. जल्दी" सोनिया ने कामुकता से अपनी जांघों को कसकर भीच लिया.. अजीब सी गुदगुदी हो रही थी.. उसके बदन में...

" उसमें लड़की 'उसको' मुँह में लेकर चूस रही थी.. और वो 'बहुत' बड़ा हो गया था.." आरज़ू ने अपने अंगूठे और उंगलियों को एक दूसरे से दूर फैलाते हुए 'उसका' साइज़ समझाने की कोशिश की," और फिर बाद में 'वो' भी 'उसकी' चाट रहा था..."

सोनिया का हाथ स्वतः: ही उसकी गोद से नीचे चला गया था.. शायद चिपचिपी हो गयी पॅंटी को दुरुस्त करने के लिए.. या फिर 'उस' मीठे अहसास को हाथों से महसूस करने के लिए...," हाए राअं! फिर..?"

" फिर क्या? फिर वो प्यार करने लगे..." आरज़ू ने अपनी आँखों को फैलाते हुए कहा..

" प्यार? ये प्यार कैसे होता है अजजु!" सोनिया के बदन में आग सी लग गयी.. उसको 'ये' बातें सुनकर इतना मज़ा आ रहा था की उसने अपनी एक जाँघ को दूसरी के उपर चढ़ा लिया...

सोनिया का भी लगभग वैसा ही हाल था.. अब वो दोनो विकी और स्नेहा से अपना ध्यान हटाकर एक दूसरी का हाथ मसल्ने में लगी हुई थी.. और शायद उनमें से किसी को इसकी खबर भी ना हो.. सब कुच्छ अपने आप हो रहा था..," प्यार.. 'उसको' 'उसमें' डाल कर करते हैं.." सोनिया हर अंग के लिए 'उस' और 'वो' सर्वनाम का प्रयोग कर रही थी... चाहे वो पुरुष का हो या स्त्री का..

" ये उसको उसमें क्या लगा रखा है.. खुल के बोल ना.. मुझे समझ नही आ रहा" समझ तो सोनिया को सब आ रहा था.. पर वो भी क्या करती.. मरी जा रही थी.. 'उसको' 'उसमें' का नाम आरज़ू के मुँह से सुन'ने को....

" तुझे समझना है तो समझ ले.. मैं नाम नही लूँगी.. इतनी बेशर्म नही हूँ में..." आरज़ू किनारे पर रह कर ही 'काम-नदी' में तैरने का अहसास सोनिया को करना चाहती थी...

" अच्च्छा चल बोल.. मैं कुच्छ कुच्छ समझ रही हूँ.. पर उसमें मज़े क्या आते होंगे.. लड़की को दर्द नही हो रहा होगा.. इतना बड़ा... " सोनिया ने भी हाथ से 'उसकी' लंबाई मापते हुए कहा...

" वही तो मैं देखना चाहती थी.. घर पर मैं अकेली तो थी ही.. मैने सोचा.. देखूं तो सही.. क्या मज़ा आता है.. फिर मैने.. देख किसी को बताना मत!" आरज़ू पशोपेश में थी.. बताए कि नही...

सोनिया ने मौखिक जवाब नही दिया.. बस अपने हाथ से उसका हाथ कसकर दबा दिया..

"फिर मैने.. अपनी सलवार निकाल कर देखी.. 'मेरी वो' लाल हो गयी थी.. और उसमें से पानी टपक रहा था..."

"हाए.. फिर.." सोनिया ने एक बार उसका हाथ छ्चोड़ कर 'अपनी' की सलामती चेक की.. और फिर से उसका हाथ पकड़ लिया... और सहलाने लगी.. उसकी आँखें बंद होने लगी थी.. कामुकता से...

"फिर मैने 'उसको' हाथ लगा कर देखा.. बहुत गरम हो रखी थी.. हाथ लगाने में बड़ा मज़ा आया.. उस वक़्त.. पता नही क्यूँ.. ? उस वक़्त मेरी आँखों के सामने 'कविश' का चेहरा घूम रहा था.. हमारे पड़ोस में जो रहता है.. मुझ पर लाइन मारता है अभी तक.."

"फिर.. तूने उसको बुला लिया क्या?" सोनिया ने आसचर्या से अलग हट'ते हुए आरज़ू के चेहरे को देखा...

" नही यार.. तू सुन तो सही.. फिर पता नही मुझे क्या सूझी.. मैं उंगली से 'इसको' कुरेदने लगी.. और अचानक पूरी उंगली इसके अंदर घुस गयी..

" फिर..." सोनिया का चेहरा तमतमा उठा...

" फिर क्या? इतना दर्द हुआ की पूच्छ मत.. मेरी तो चीख ही निकलने को हो गयी थी.. 'वहाँ' से खून बहने लगा.. मैं रोने लगी..!"

"पर वो तो आता ही है.. पहली बार.. मैने सुना है..." सोनिया कामवेस में भूल ही गयी की वो नादान बन'ने का नाटक कर रही है...

" हां.. पर 'वो' मुझे तब नही पता था ना.. मैं छ्होटी थी.. पर मैने उसी दिन फ़ैसला कर लिया था.. ये काम में किसी के साथ नही करूँगी.. चाहे कविश हो या कोई और... ये लड़की किसी के हाथ नही आएगी.." ( )

" फिर क्या हुआ? बता ना.. पूरी बात बता..." सोनिया का हाथ आरज़ू की जाँघ पर लहराने लगा..

" और क्या बताऊं? हो तो गयी पूरी बात..." आरज़ू ने उसका हाथ परे झटकते हुए कहा.. बातों ही बातों में वो भी कब की बहकर 'होश' में आ चुकी थी..

" क्या तू सच में ही किसी को कभी भी हाथ नही लगाने देगी अजजु?"

" नही.. अब सोच रही हूँ.. लगाने दूँगी.. अब तो 'वो' भी बड़ी हो गयी होगी ना.." कहकर आरज़ू ने बत्तीसी निकाल दी..

रोहित सबसे अलग थलग चुप चाप आँखें बंद किए बैठा शालिनी के ख्यालों में खोया हुआ था. 3 साल से एक दूसरे की आँखों में बसे थे दोनो.. बे-इंतहा प्यार करते थे एक दूसरे से.. और दोनो को ही इस का अहसास था.. पर दोनो के बीच झिझक ज्यों की त्यों कायम थी.. सिर्फ़ एक मौका ऐसा आया था जब रोहित उसके रूप यौवन को देख कर बहक सा गया था.. बाली उमर थी दोनो की, शालिनी इकरार करने के बाद सातवी बार उस'से मिलने आई थी.. अकेली.. टिलैयर लेक पर.. और दोनो वहाँ पायदों की झुर्मुट में जा बैठे थे.. एकांत में माहौल ही ऐसा बन गया था की रोहित उसके ग्रे टॉप में छुपे मादक उभारों को देख अपनी सुध बुध खो बैठा..

" तुम मुझसे प्यार करती हो ना शालिनी...?" रोहित से रहा ना गया तो उसने उसको छूने की इजाज़त के रूप में ये सवाल पूच्छ ही लिया...

शालिनी कितनी ही देर से उसकी आँखों में झाँक रही थी.. पर वो नादान रोहित के लड़कपन में छिपि जवान लड़की के प्रति उसकी मर्दानी प्यास को ताक ना सकी थी.. रोहित के सवाल पूछ्ते ही उसने अपनी नज़रें हसीन अंदाज में झुकाई और उसकी काली ज़ुल्फो में से एक लट उसकी आँखों के सामने आ गिरी.. मानो वो कोई परदा हो.. हया का परदा.. कुच्छ देर यूँही चुप रहने के बाद उसने शरमाते हुए लंबी साँस लेते हुए कहा..," कितनी.. बार पूछोगे?"

" जब तक तुम्हारा जवाब 'हां' में मिलता रहेगा तब तक.. जब जब तुम मेरे सामने आओगी.. तब तब.. तुम्हे नही पता शालु.. तुम्हारे चेहरे पर ये हया की लाली तभी आती है , जब मैं तुमसे ये सवाल पूछ्ता हूँ.. और तुम्हारी इसी अदा पर में जान देता हूँ.." आज रोहित को वो कुच्छ ज़्यादा ही सेक्सी लग रही थी..

" हां.. करती हूँ.. आइन्दा मत पूच्छना वरना मैं मना कर दूँगी हां..." शालिनी के चेहरे पर वही मुस्कान उभर आई.. जिसने पहली नज़र में ही रोहित को उसका दीवाना बना दिया था....

" तुम इश्स दुनिया की सबसे हसीन खावहिश हो शालु.. तुमको पाकर तो में पागल ही हो जवँगा..."

"वो तो तुम अब भी हो.. पागल! हे हे.." और स्नेहा ने फिर से रोहित की आँखों में आँखे डाल ली...

" तुम्हारी आँखें कितनी प्यारी हैं शालु.. मन करता है.. इन्हे देखता ही रहूं.."

" और कोई काम नही है क्या?" शालिनी ने मुस्कुराते हुए उसको चिड़या....

"है ना.. तुम्हारे होंठ कितने प्यारे हैं.. मन करता है.. इनको चूम लूँ..."

"धात.. तुम तो सच में पागल हो.. " शालिनी ने अपने होंठो को उसकी नज़र से बचाने के लिए अपनी जीभ निकाल दी.. तब भी बात नही बनी तो असहज होकर नज़रें झुकाती हुई बोली..," ऐसे मत देखो प्लीज़!"

" क्यूँ ना देखूं.. सब कुच्छ मेरा ही तो है ये.. तुम सिर से पाँव तक सारी मेरी हो ना शालु.. मैं जो चाहे कह सकता हूँ.. जहाँ चाहे देख सकता हूँ.. जो चाहे छू सकता हूँ.. है ना?" रोहित अधीर हो उठा था...

शालिनी शर्मा कर दूसरी और घूम गयी.. रोहित के इन्न शब्दों ने उसकी पवित्रता को चुनौती सी दी थी.. उसके अरमानो को हवा सी दी थी..

रोहित ने अपना कांपता हुआ हाथ उसकी कमर पर रख दिया.. ये उसका भी पहला मौका था.. कुँवारी लड़की के तपते जिस्म को छूने का...

स्पर्श पाते ही शालिनी का पूरा जिस्म लरज सा गया.. उसकी कमर ने यूँ झटका खाया मानो किसी नाव की पतवार टूट गयी हो," नही प्लीज़...!"

" छूने दो ना मुझे.. छूकर देखने दो ना.. तुम.. अंदर से कैसी हो.." रोहित की साँसें उखाड़ने लगी थी..

" नही.. !" शालिनी अपनी कमर को झटका सा देते हुए उसकी और घूम गयी.. और उसका हाथ पकड़ लिया..," मैं मर जाउन्गि.. ऐसे मत बोलो प्लीज़.."

तभी अचानक दोनो ठगे से रह गये.. एक पोलीस वाला जाने कहाँ से निकल कर उनके सामने आ गया..," क्या हो रहा है?"

दोनो सकपका कर एकद्ूम उठ खड़े हुए.. ," कुच्छ नही.. बस.. बातें कर रहे थे..!" जवाब रोहित ने दिया था.. शालिनी उन्न दोनो से कुच्छ दूर जाकर मुँह फेर कर खड़ी हो गयी...

" हुम्म.. मुझे सब पता है.. यहाँ कैसी बातें होती हैं.. जानते नही क्या यहाँ रंडीपने पर रोक है...!" पोलीस वाले ने शालिनी को उपर से नीचे तक देखते हुए कहा..," चलो.. साहब के पास चलो..."

रोहित का खून खौल गया.. पर वा बात को बढ़ाना नही चाहता था..," मेरे पास ये 200 रुपए हैं...!"

पोलीस वाले ने बिना देर किए दोनो नोट लपक लिए..," आइन्दा कभी आओ तो पहले मुझसे मिल लेना.. समझे.. मैं वहाँ गेट के पास ही मिलता हूँ.. चलो ऐश करो!" कहते हुए पोलीस वाला वहाँ से गायब हो गया...

" आओ शालु.. बैठ जाओ.. अब कोई डर नही है.. कुत्ता हड्डी लेकर चला गया..!" रोहित शालिनी के पास आकर खड़ा हो गया...

" नही.. चलो यहाँ से.. मैं यहाँ नही रुक सकती.." शालिनी पलटी तो उसकी आँखों में आँसू थे.. पोलीस वाले ने बात ही ऐसी कही थी.. 'रंडीपना'

उसके बाद दोनो वहाँ से चल दिए.. रोहित ने उस'से बात करने की कोशिश की पर वह सामान्य नही हो सकी.. अंत में भी दोनो बिना बोले ही एक दूसरे से अलग हो गये...

'वो' दिन था और आज का दिन.. रोहित और शालिनी के प्यार को फिर कभी शारीरिक जज्बातों के पंख नही लग पाए.. वो आज भी ऐसे ही थे.. जैसे पहले दिन.. एक दूसरे से बे-इंतहा प्यार करते थे.. पर आँखों ही आँखों में.. कभी हाथ तक नही पकड़ा था.. दोनो ने एक दूसरे का...

रोहित ने आँखें खोल कर शालिनी को देखा... वह सोई हुई थी.. उस'से 2 सीट आगे

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गर्ल्स स्कूल पार्ट --56



मनु ने नज़रें घूमाकर पिछे बैठी वाणी को देखा, वह मनु की सीट के पिछे सिर रख कर सो चुकी थी.. मानसी भी सोई हुई थी.. 'अमित' के पास चला जाए' ऐसा सोचकर जैसे ही वह उठने को हुआ, उसको हूलका सा झटका लगा और वाणी एकदम से उठ गयी.. एक हाथ से आँखें मलते हुए मनु को घूरा.. वह वापस ही बैठ गया..

वाणी के दूसरे हाथ में अब भी मनु की शर्ट का कोना था जो उसने मजबूती से पकड़ा हुआ था.. आँखों को एक खास तेवर से मतकाते हुए उसने आँखों ही आँखों में पूचछा," कहाँ भाग रहे हो बच्चू!"

"कुच्छ नही.. पर मेरी शर्ट तो छ्चोड़ दो.. फट जाएगी..." मनु ने कुच्छ बात धीरे से बोलकर और कुच्छ बात इशारों में कही...

वाणी ने अपने दोनो हाथ उठाकर एक मादक सी अंगड़ाई ली.. सचमुच उसका कोई जवाब नही था.. मनु ने वाणी के अंगड़ाई लेते हुए हर पल का भरपूर आनंद लिया.. वाणी ने जमहाई सी लेते हुए अपने मुँह पर हाथ रखा और सोई सोई सी आवाज़ में बोली," कहाँ आ गये हम.. और कितनी दूर रह गया नैनीताल...

मनु के जवाब ना दे पाने पर वह उठी और सबसे आगे वाली सीट के पास पहुँच गयी.. दिशा शमशेर की छ्चाटी पर सिर टिकाए आराम से सोई हुई थी..

"जीजू!" वाणी ने शमशेर का कंधा पकड़ कर हिलाया.. शमशेर तुरंत उठ गया," हां वाणी? क्या हुआ?"

" और कितनी देर लगेगी? मुझे भूख लगी है..." वाणी ने पिछे बैठकर उसको टकटकी लगाकर देख रहे मनु की और देखते हुए कहा..

शमशेर ने शीशे पर अपने हाथ लगाकर उनके बीच अपनी आँखें जमा कर बाहर देखते हुए अंदाज़ा लगाने की कोशिश की ही थी कि ड्राइवर ने अचानक ब्रेक लगा दिए.. बस में बैठे सभी लोगों की झटके के साथ ही आँख खुल गयी.. अगर वाणी ने सीट को अच्छे से ना पकड़ा होता तो वह आगे की और गिर ही गयी थी बस!

"क्या हुआ?" शमशेर ने वाणी को संभाला और झल्लाते हुए ड्राइवर से पूचछा...

"अचानक कोई बस के आगे आ गया साहब.. परदेशी लगते हैं.. उनके साथ कोई में साब भी हैं...हाथ दे रहे हैं..." ड्राइवर के बोलते बोलते बस की खिड़की पर थपकियाँ लगनी शुरू हो गयी थी....

शमशेर, वासू और विकी ने एक दूसरे की और देखा और वासू सबसे पहले बोल पड़ा.." बिठा लेते हैं बेचारों को.. पिछे जगह तो है ही... वैसे भी अगर आदमी आदमी के काम नही आएगा तो फिर हम'मे और जानवरों में अंतर ही क्या रहेगा? हर धर्म यही......"

" खोल रहा हूँ प्रभु.. खोल रहा हूँ.." विकी में अब और प्रवचन सहन करने की ताक़त नही बची थी.. वह उठा और झट से बस की खिड़की खोल दी," हां.. क्या बात है..."

खिड़की के सामने खड़ा गोरा चिटा युवक कोई 22-23 साल का रहा होगा.. कद करीब करीब 5'9".. उसके पिछे सिर से पाँव तक परदा किए खड़ी युवती का कद उस्स'से इंच भर ही कम था..

युवक ने बात करने में समय जाया नही किया और उपर ही आ चढ़ा... युवती की फुर्ती भी देखते ही बन रही थी.. वह भी साथ साथ ही उपर आ चढ़ि और अपना घूँघट उतार फैंका," हा हा हा हा हा..."

" ऊई मुम्मय्ययी... मूँछहों वाली आंटी!" वाणी की आसचर्या से चीख निकल गयी....

"चुप कर.. लूटेरे हैं... " सहमी हुई दिशा ने वाणी का हाथ पकड़ कर पिछे खींच लिया... इस दौरान वासू ने अपनी मुत्ठियाँ कस ली थी.. उनको सबक सिखाने के लिए...

" नही जी बेहन जी.. हम क्या आपको लूटेरे लगते हैं... हम तो नैनीताल जा रहे थे. बाइक ट्रिप पर.. बाइक हमारी रास्ते में ही खराब हो गयी और .. पैसे हो गये ख़तम.... दोनो के.. कोई लिफ्ट दे ही नही रहा था.. माफ़ करना.. हमें ये रास्ता इकतियार करना पड़ा.. हे हे हे..." युवक ने बत्तीसी निकालते हुए शमशेर की और देखा.. जो अब तक हँसने लगा था...," अब इसकी साडी तो उतरवा दो.. बड़ा बेहूदा लग रहा है ये नौटंकी बाज..."

"हमें ले तो चलोगे ना.. भाई साहब! " सदी वाले लड़के ने शमशेर की और हाथ जोड़ते हुए कहा....

" चलो ड्राइवर... " शमशेर ने कहा और उनसे मुखातिब हुआ," वैसे कौनसी जगह है ये.. ?"

" गजरौला यहाँ से 5 काइलामीटर आगे है... ये जगह कौनसी है.. ये हमें नही पता.. हमारी सीट कौनसी है..? साडी को उतारकर बॅग में रखते हुए उसने कहा..

" हमारे सिर पर बैठ जाओ! पीछे सीट नही दिख रही क्या?" विकी ने झल्लाते हुए कहा.. कम्बख़्तों ने उसके और स्नेहा के रंग में भंग डाल दिया था...

बस रुकते ही सब एक एक करके उतरने लगे.. राज ने उठते हुए वीरू के कंधे पर हाथ रखा और कहा," तुम यहीं रहो.. मैं तुम्हारे लिए खाना यहीं ले आता हूँ..बेवजह तकलीफ़ होगी..."

"कोई ज़रूरत नही है भाई.. मुझे भूख नही है.. तुम जाकर खा लो.. मेरे लिए बस पानी ले आना.." वीरू ने काफ़ी देर से घुटने से मूडी हुई टाँग को सीधी करके बराबर वाली सीट पर फैला दिया...

"चल ठीक है.. मैं खाना पॅक करवा लाता हूँ.. बाद में दोनो इकट्ठे ही खा लेंगे.."

"अरे कहा ना.. मुझे भूख नही है... तुम खा लो यार.."

"चल ठीक है.. तुम आराम करो.." कहते हुए राज भी दूसरों के साथ बस से उतर गया...

नये मुसाफिर चुपचाप अपनी सीटो पर बैठे थे.. विकी उनके पास आया और बोला..," तुम्हे भूख नही है क्या?"

"भूख तो बहुत जोरों की लगी है.. बड़े भैया.. पर हमारे पास पैसे नही हैं.. पहले बता देना अच्च्छा होता है.. है ना?" साडी वाले छैला ने कहा...

" चलो उठो... खाना खा लो..." विकी ने कहा और नीचे उतर गया.. वो दोनो भी उसके पिछे पिछे हो लिए...

"अब बोल शमशेर भाई.. अब तो तेरा गजरौला भी आ गया..." विकी ने शमशेर को एक तरफ बुलाते हुए कहा...

" छ्चोड़ ना यार.. अब तो वासू जी से तेरा पिछा छ्छूट गया ना.. क्यूँ टेन्षन लेता है.. नैनीताल चलकर मैं भी तेरे साथ पीऊँगा... प्रोमिस!"

"और आपके पिच्छले प्रोमिस का क्या हुआ.. नही भाई.. मैं अब नही मान'ने वाला.. तूने यहाँ तक सब्र रखने के लिए बोला था.. मैने रख लिया.. अब और सहन नही होगा.. यहाँ से तो टंकी फुल करके ही चलूँगा.. तुम्हे साथ ना देना हो ना सही.. मैं अकेला ही गम हल्का कर लूँगा.." कहकर विकी बार की तरफ बढ़ने लगा...

"अच्च्छा रुक तो सही.. मैं वासू जी को बोल देता हूँ.. वो बच्चों को संभाल लेंगे... वासू जी!" शमशेर ने वासू को आवाज़ लगाई...

" आइए ना शमशेर जी.. कब से पेट में चूहे नाच रहे हैं.." वासू ने पास आते ही कहा..

" वो क्या है कि.. हम थोड़ी देर में हाज़िर होते हैं.. ज़रा बच्चों का ख़याल रखिएगा.." शमशेर ने वासू को कहा...

"पर क्यूँ.. आप कहाँ जा रहे हैं..?" वासू ने तुरंत सवाल किया...

" कहीं नही.. पहले बच्चे खा लें.. हम तब तक यहीं बैठ जाते हैं.. बार में.. इसी बहाने मूड भी फ्रेश हो जाएगा.. विकी भाई का.. क्यूँ विकी जी..?" शमशेर ने विकी की और देखते हुए कहा...

विकी ने काई बार अपनी गर्दन को 'हां' में हिलाया..

"छ्हि.. छि.. छि.. पढ़े लिखे होकर भी आप.. वो देखिए वहाँ विग्यपन के उपर कितने बड़े बड़े अक्षरों में लिखा है.. 'शराब स्वास्थया के लिए हानिकारक है.. और फिर..." वासू को इस बार विकी ने बीच में ही रोक दिया..

" शास्त्री जी, स्वास्थ की फिकर वो लोग करते हैं.. जिनके स्वास्थ में कोई प्राब्लम हो.. हमें अपने उपर कोई शक नही है.. पूरे हत्ते कत्ते मर्द हैं.. फिर क्यूँ ना जिंदगी का मज़ा लें.. क्यूँ ना खा पीकर जियें? ये टिप्पणी सिर्फ़ कमजोर और बीमार लोगों के लिए होती है.. उनको इस'से बचकर रहना चाहिए..!"

"खूब कहा आपने.. इसका अर्थ तो ये हुआ कि अगर मैं शराब नही पीता तो मैं कमजोर आदमी हूँ.. मैं मर्द नही हूँ क्या?" और वासू ने कहते हुए अपनी आस्तीन उपर चढ़ा ली... "चलिए.. मैं भी चलता हूँ आपके साथ.. देखूं तो सही कौनसी मर्दानी दवा लेते हैं आप?"

शमशेर ने वासू को टालना चाहा पर विकी ने वासू को जैसे ललकार ही दिया," आप रहने ही दें तो अच्च्छा है.. अंदर गंध बड़ी तेज होती है.. आपका कोमल शरीर सहन नही कर पाएगा...."

"नही नही.. मैं भी साथ ही चलता हूँ.. देखते हैं किसका शरीर कोमल है.. किसको होता है नशा.. मैं ज़रा अंजलि जी को बोल आता हूँ.. बच्चों का ध्यान रखने के लिए..."कहकर वासू तेज़ी से अंजलि की और बढ़ गया.. होटेल के बाहर खड़े सभी उनका इंतजार कर रहे थे..

"क्या है विकी.. तुझे पीनी थी तो पी लेता चुपचाप.. तमाशा हो जाएगा.. पता है.. उसने कभी पी नही है..!" शमशेर ने विकी पर बिगड़ते हुए कहा..

" तभी तो मज़ा आएगा.. इसी ने तो मेरे आधे रास्ते की मा-बेहन की थी.. तू मत बोलना भाई.. सफ़र में थोडा बहुत तमाशा हो भी गया तो चलेगा.. तौर पर आख़िर आते किसलिए हैं.. मस्ती करने के लिए ही ना..." कहते हुए विकी ने बत्तीसी निकाल दी... "ओये.. तुम लोग क्या बातें सुन रहे हो... चलो खाना खाओ!" विकी ने अचानक पिछे पलट'ते हुए कहा.. वो दोनो वहीं खड़े थे.. विकी के पिछे पिछे आकर..

"भाई.. वो क्या है की.. पैसे तो हमारे पास नही हैं.. पर हम सोच रहे हैं कि लगे हाथ हम भी अपनी मर्दानगी चेक कर लें.. हे हे हे!" युवक धीरे धीरे उंगली पकड़ कर कलाई तक आ गया था...

विकी ने शमशेर को देखा.. उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया ना मिलने पर खुद ही बोल पड़ा," पहले पी तो रखी होगी ना.. कभी कभार..!"

" कभी कभार..? हां.. पी रखी है.. कभी कभार..!" दोनो एक साथ बोल पड़े..

"फिर ठीक है.. ठीक है ना शमशेर भाई.. अब तो ये भी हमसफर ही हैं.. ओये.. तुम लोग अपने अपने नाम तो बता दो..!"

"मैं हूँ मानव.. और ये है रोहन.. " साडी वाले ने इंट्रोडक्षन करवाई..

तब तक वासू भी आ गया था..," चलो.. देखते हैं.. मैं बोल आया मेडम को.."

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प्रिया, रिया, राज और स्नेहा एक ही टेबल पर बैठे थे..

" मैं वीरू को पानी दे आता हूँ.. " कहकर राज जैसे ही उठने लगा, रिया ने उसको रोक दिया," मुझे भी भूख नही है राज! लाओ.. मैं ले जाती हूँ.. पानी.."

रिया ने उसके हाथ से पानी ले लिया..

"पर उसने मुझको बोला था", राज को वीरू के व्यवहार का पता था...

" मेरे छ्छूने से क्या ये जहर हो जाएगा...?" रिया ने बनावटी गुस्से से उसको देखा...

"नही, मेरा ये मतलब नही था.. पर..." राज की बात बिना सुने ही रिया वहाँ से निकल गयी... रिया ने बस के बाहर खड़े होकर देखा.. बाहर रोशनी होने की वजह से बस के अंदर का कुच्छ दिखाई नही दे रहा था.. उसने 'लंबी' साँस लेकर हिम्मत जुटाई और बस में चढ़ गयी...

"ये लो पानी..!" रिया ने हाथ आगे बढ़कर वीरू से कहा...

" राज कहाँ मर गया है.. मैने उसको कहा था.. पानी लाने के लिए..!"

" तो क्या हुआ.. मुझे भी भूख नही थी.. मुझे आना था.. इसीलिए मैं ले आई.. वो खाना खा रहा है.." रिया ने हाथ आगे किए हुए ही कहा.. वीरू का प्यारा चेहरा देखकर उसका मॅन हो रहा था की एक चुम्मि तो ले ही ले..

वीरू ने अपना हाथ बढ़कर उस'से पानी ले लिया.. उसके बाद भी जब रिया वहीं खड़ी रही तो वीरू बौखला सा गया," अब यूँ टुकूर टुकूर क्या देख रही हो.. जाओ!"

"पर मुझे भूख नही है.. मैं जाकर क्या करूँगी वहाँ.." रिया ने कोमल आवाज़ में कहते हुए अपना हाथ वीरू के सामने वाली सीट पर रख लिया..

" तो मत जाओ.. मेरे सामने क्यूँ खड़ी हो.. जाकर अपनी सीट पर क्यूँ नही बैठती.."

"लो बैठ गयी!" कहते हुए रिया वीरू के सामने वाली सीट पर जा बैठी.. जिसपर पहले से ही वीरू का पैर रखा हुआ था.. जाने- अंजाने उसकी कमसिन जांघें उसकी जीन के उपर से वीरू का पैर छ्छू रही थी....

प्रिया, रिया, राज और स्नेहा एक ही टेबल पर बैठे थे..

" मैं वीरू को पानी दे आता हूँ.. " कहकर राज जैसे ही उठने लगा, रिया ने उसको रोक दिया," मुझे भी भूख नही है राज! लाओ.. मैं ले जाती हूँ.. पानी.."

रिया ने उसके हाथ से पानी ले लिया..

"पर उसने मुझको बोला था", राज को वीरू के व्यवहार का पता था...

" मेरे छ्छूने से क्या ये जहर हो जाएगा...?" रिया ने बनावटी गुस्से से उसको देखा...

"नही, मेरा ये मतलब नही था.. पर..." राज की बात बिना सुने ही रिया वहाँ से निकल गयी... रिया ने बस के बाहर खड़े होकर देखा.. बाहर रोशनी होने की वजह से बस के अंदर का कुच्छ दिखाई नही दे रहा था.. उसने 'लंबी' साँस लेकर हिम्मत जुटाई और बस में चढ़ गयी...

"ये लो पानी..!" रिया ने हाथ आगे बढ़कर वीरू से कहा...

" राज कहाँ मर गया है.. मैने उसको कहा था.. पानी लाने के लिए..!"

" तो क्या हुआ.. मुझे भी भूख नही थी.. मुझे आना था.. इसीलिए मैं ले आई.. वो खाना खा रहा है.." रिया ने हाथ आगे किए हुए ही कहा.. वीरू का प्यारा चेहरा देखकर उसका मॅन हो रहा था की एक चुम्मि तो ले ही ले..

वीरू ने अपना हाथ बढ़कर उस'से पानी ले लिया.. उसके बाद भी जब रिया वहीं खड़ी रही तो वीरू बौखला सा गया," अब यूँ टुकूर टुकूर क्या देख रही हो.. जाओ!"

"पर मुझे भूख नही है.. मैं जाकर क्या करूँगी वहाँ.." रिया ने कोमल आवाज़ में कहते हुए अपना हाथ वीरू के सामने वाली सीट पर रख लिया..

" तो मत जाओ.. मेरे सामने क्यूँ खड़ी हो.. जाकर अपनी सीट पर क्यूँ नही बैठती.."

"लो बैठ गयी!" कहते हुए रिया वीरू के सामने वाली सीट पर जा बैठी.. जिसपर पहले से ही वीरू का पैर रखा हुआ था.. जाने- अंजाने उसकी कमसिन जांघें उसकी जीन के उपर से वीरू का पैर छू रही थी....

वीरू ने एक नज़र रिया की और देखा और अपना पैर वापस खींच लिया.. अपनी टाँग को वापस सीट के नीचे से लंबा करते हुए वा सीधा होकर बैठ गया..

"एक बात पूच्छू?" रिया ने हुल्की आवाज़ में वीरू को टोका...

"क्यूँ?" वीरू ने अजीब तरीके से उसको घूरा.. जैसे उसको मालूम हो की वो क्या पूच्छने वाली है..

"रहने देती हूँ.. पर तुम बात बात पर ऐसे फदक क्यूँ जाते हो?.. तुम्हे तो मेरा पास बैठना भी नही सुहाता.. आराम से ही तो पूचछा था.." रिया ने अपना मुँह पिचकाते हुए कहा...

"तो क्या अब डॅन्स करने लग जाउ? तुम कोई रिया सेन हो जो तुम्हारे पास बैठने से ही मैं पागल हो जाउन्गा.. यहाँ बैठो, वहाँ बैठो.. मुझे क्या फरक पड़ता है.." वीरू ने बिगड़ते हुए कहा और बोतल खोल कर अपने होंठो से लगा ली..

"तुम्हे रिया सेन बहुत पसंद है क्या?" रिया ने उसकी बात आगे बढ़ने से उत्साहित होते हुए कहा..

"नही.. बहुत घटिया लगती है मुझे.. थर्ड क्लास.. मुझे तो इश्स नाम से ही नफ़रत है...तुम्हे कोई प्राब्लम है..?" वीरू ने जान बूझ कर उसको चिड़ाया..

"नही.. मुझे क्या प्राब्लम होगी भला" रिया सहम सी गयी..," मुझे पानी पीना है.."

"तो पी लो जाकर.. मुझसे पूच्छ कर करती हो क्या हर काम..."

"इसी मैं से थोड़ा दे दो ना.. मैं जाकर और ले आउन्गि.. बाद में.." रिया ने अपनी सुरहिदार गर्दन को खुजलाते हुए कहा..

"नही.. ये मैने झूठी कर दी.. तुम नीचे जाकर पी लो..!" वीरू टस से मस ना हुआ..

"मुझे कोई प्राब्लम नही है.. तुम्हारा झूठा पीने में.." रिया ने अपनी नज़रें वीरू की आँखों में गाड़ा दी...

" पर मुझे है.. मैं क्यूँ किसी को.." वीरू की बात अधूरी ही रह गयी.. रिया ने बोतल को धोखे से उसके हाथों से झटकने की कोशिश की.. दोनो के हाथ बोतल पर बँधे हुए थे अब..

"छ्चोड़ो इसे.. मैं पहले ही कह रहा हूँ.. छ्चोड़ो नही तो एक दूँगा कान के नीचे.." वीरू ने कहते हुए महसूस किया.. उसका विरोध रिया के कोमल हाथों के स्पर्श से पिघलता जा रहा है.. वीरू के हाथ रिया के हाथों के उपर थे.. कहते कहते उसकी पकड़ ढीली होती गयी.. और अंतत: बोतल उसके हाथों से छ्छूट कर रिया के हाथों में थी...

रिया उसकी और विजयी भाव लेकर शरारती ढंग से मुस्कुराइ और अपने गुलाबी होंठो को खोल कर गोल करके बोतल का मुँह उनमें फँसा लिया.. और मुँह उपर करके उसमें से पानी गटक'ने लगी..

वीरू हतप्रभ सा उसको देखता रह गया.. बोतल के मुँह पर ठीक उसी जगह उसके होंठ चिपके हुए थे.. उसको ऐसा महसूस हो रहा था जैसे रिया पानी नही बल्कि उसको पी रही है... अपने होंठो से.. अंजाने में ही वीरू के दिल से एक 'आह' सी निकली और उसके सारे शरीर में हुलचल सी मच गयी..

रिया इतनी हसीन थी की वीरू उसको अपलक निहारता रहा.. कभी उसकी आँखों में.. कभी उसके होंठो को.. और कभी गर्दन से नीचे.. पहली बार! पहली बार उसने रिया को इतने गौर से देखा..

"क्या देख रहे हो? ये लो.. अगर झूठा नही पीना तो बोल दो.. मैं और ले आती हूँ.." रिया ने बोतल उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा...

ठगे से अपनी सीट पर बैठे वीरू ने बिना कुच्छ बोले रिया के हाथों से बोतल ले ली.. और ले क्या ली.. उसको अपने होंठो से लगा कर सारा पानी गतगत पी गया.. रिया की साँसों की महक उसमें से अब भी आ रही थी शायद.. पानी ख़तम हो गया था.. पर बोतल अब भी उसके होंठो से ही लगी थी.. जाने कौन क्षण कामदेव ने उसको भी अपनी चपेट में लपेट लिया..

"हे हे हे.. पानी ख़तम हो गया.. और लेकर आऊँ?" रिया ने उसकी आँखों में आँखें डाल पूचछा..

वीरू ने बिना कुच्छ बोले ही बोतल उसकी और बढ़ा दी.. वह भी कुच्छ बोलना चाहता था.. पर उस मनहूस को मालूम नही था की कैसे बोले..

"पानी लाउ क्या? और.." रिया ने जैसे उसको बेहोशी से जगाया..

"उम्म.. हाँ.. ले आओ!" आख़िरकार वीरू बोला...

"मैं ही लेकर आऊँ या.. राज को भेजू?" रिया शायद वीरू के बहकने को पहचान गयी थी..

" उम्म.. तुम ही.. राज को भेज देना चाहे.. तुम्हारी मर्ज़ी है.."

रिया की आँखों में नयी चमक थी.. वीरू पर हुए असर का सुरूर उसकी आँखों में भी था.. उसकी चाल में भी.. वह लगभग मटक'ती हुई बस से नीचे उतर गयी.........

" और पी कर दिखाऊँ?" वासू ने बड़ी मुश्किल से अपना सिर टेबल से उपर उठाया और अपने गिलास को अपने सिर से भी उपर ले जाकर लहराने लगा... उसकी आँखें रह रह कर बंद हो जा रही थी...

"ये तो गया यार.. मैने पहले ही बोला था.." शमशेर अपना माथा पकड़े हुए था...

"कौन गया? कोई नही जाएगा इधार्ररर से.. कोई.. मरर्रर्ड नही जाएगा.. सिरररफ लॅडिस जाएँगी.." वासू उचक कर उठ बैठा और अपने दाँत निकाल कर फिर से ढेर हो गया.. टेबल पर...

"हा हा हा.. मर्द!" विकी ने दूसरी बोतल का ढक्कन खोल डाला...

"अब बस कर यार.. रहने दे और..." शमशेर ने उसके हाथों से बोतल लेने की कोशिश की..

"तुझे पता है ना भाई.. कुच्छ नही होगा मुझे.. तुझे पता है ना.. देख आज मुझे पी लेने दे.. क्या पता कल हो ना हो!" विकी ने शमशेर के हाथों से बोतल छ्चीन'ते हुए कहा और अपनी बत्तीसी निकाल दी...," तुम्हे और लेनी है क्या बच्चा लोग!"

"लेनी है भाई.. लेनी है.. हम आपको अकेला कैसे छ्चोड़ेंगे.. आख़िर तक साथ निभाएँगे आपका.." मानव ने गिलास खाली करके पनीर का टुकड़ा मुँह में डालते हुए कहा...

" तुम लोग भी मुझे पुर पियाक्कड़ लगते हो.. सालो.. आधी बोतल तो तुम दोनो ने अकेले ही खाली कर दी... मुझे क्या खाक नशा होगा..?" विकी ने उनके गिलास में शराब डालते हुए कहा," भाई, तुम भी लो ना.. ऐसे मज़ा नही आ रहा..!"

"सत्यानाश तो होना ही है अब.. चल बना दे मेरा भी.. देखा जाएगा.." शमशेर ने एक और गिलास सीधा कर दिया..

"भाई.. आपको दिशा से डर लगता है ना.. बोल दो लगता है.. मुझे तो वैसे भी पता है..?" विकी ने शरारती ढंग से मुस्कुराते हुए कहा..

"इसमें डर वाली कौनसी बात है..? हां.. पर अब मैं नही पीता.. उसी के कहने से.." शमशेर हँसने लगा...

"ये दिशा कौन है भाई..?" रोहन काफ़ी देर से चुपचाप बैठा था.. लड़की का नाम सुनते ही चौकन्ना हो गया...

"तुम्हारी भाभी है बे.. ऐसे आँखें क्यूँ फैला रहा है..." विकी ने जवाब दिया," वो भी साथ ही है.. बस में.. भाई साहब उसी के डर से नही पी रहे थे.. मुझे पता है.. वैसे एक और भी भाभी है तुम्हारी बस में... मेरे वाली..." विकी ने चमकते हुए कहा...

"इसमें बताने वाली बात क्या है भाई.. आपकी भाभी है तो हमारी भी भाभी ही हुई ना...!" मानव ने खीँसे निपोरी....

"आबे ढक्कन, तुम्हारी 2 भाभियाँ हैं और मेरी एक.. दूसरे वाली मेरी जान है.. मेरी होने वाली पत्नी.. स्नेहा!" विकी भाव-विहल हो उठा..

"हां.. तो इसमें बताने वाली बात क्या है.. आपकी जान है तो हमारी भी जा.." मानव की बात अधूरी ही रह गयी.. रोहन ने उसके सिर पर एक धौल जमाया," साले.. तेरे को इतनी भी अकल नही बची.. पीकर.. भाई की जान हमारी जान नही भाभी हुई.. समझा..!"

"चलो ठीक है.. पर जब सबकी जान हैं तो हमारी जान किधर हैं.. मुझे ये समझ नही आ रहा...!" मानव बहकी बहकी बातें कर रहा था..

"कितनी उमर है तेरी..?" विकी ने मानव से पूचछा... शमशेर चुपचाप उनकी बात सुन रहा था..

"22 साल भाई.. इसकी भी.."

"तो जल्दी से अपनी जान ढूँढ ले.. एक बार दुनियादारी के झमेले में फँस गया ना तो समझ ले गया काम से.. उसके बाद कुच्छ याद नही रहता.. सिवाय खाने कमाने के.. समझ गया ना तू...!" विकी ने दार्शनिक अंदाज में कहा...

"भाई.. बस में एक लड़की है.. बुरा ना मानो तो...!" रोहन ने हिचक कर दोनो की और देखा...

" आबे बोल बोल.. आज सब कुच्छ माफ़ है.. खुल कर बोल.. मुझे भाई बोला है ना.. जा किसी को हाथ लगा दे.. मैं बात कर दूँगा.. पर देख उमर भर के लिए.. ठीक कह रहा हूँ ना भाई.." विकी ने शमशेर की और देखा...

"यार! मैं बोर हो रहा हूँ.. तुम्हारी बाते सुनकर... कुच्छ और नही है क्या? बात करने के लिए...

"तू बोल.. कौनसी पसंद है तुझे.. बोल.. बता ना.." विकी ने शमशेर की बात को नज़र-अंदाज करते हुए रोहन से पूचछा...

"वो.. गौरी चित्ति सी.. जो इन सर के पास बैठी थी.. बहुत प्यारी है..." रोहन ने वासू को हाथ लगाते हुए कहा...

"ओइईई.. तेरी तो... वो तेरी भाभी है... " वासू चौंक कर उठ बैठा और रोहन का गला पकड़ लिया...

शमशेर और विकी ने चौंक कर एक दूसरे की आँखों में देखा.. बात कुच्छ कुच्छ उनकी समझ में आ गयी.. वो मुस्कुराने लगे...

" पर भाई.. मैने तो सुना था की गर्ल'स स्कूल से टूर जा रहा है.. यहाँ तो सारी बस में भाभियाँ ही भाभियाँ भरी पड़ी हैं.. कोई वेली नही है क्या?" रोहन ने मायूस होते हुए कहा...

"हा हा हा.. सभी सेट हैं बीरे.. इसीलिए तो कहता हूँ.. कल करे सो आज कर.. आज करे सो अब.. चलो.. जल्दी से ये ख़तम करो.. मूड फ्रेश हो गया है.." विकी ने सबके आख़िरी पैग बनाते हुए कहा...

पानी लेकर जब रिया दोबारा बस में चढ़ि तो वीरू सीट की एक तरफ बैठ गया था.. शायद इस इंतज़ार में की क्या पता रिया वहीं बैठ जाए.. उसके पास.. पर बदक़िस्मती से ऐसा नही हुआ

"ये लो, पानी..!" रिया ने पास आकर उसको पानी देते हुए कहा...

" हुम्म.. थॅंक्स... बैठ जाओ!" वीरू की आवाज़ अब निहायत ही शरीफ़ना थी..

रिया उसके साथ वाली दूसरी सीट पर बैठ गयी.. और चुपचाप उसको देखने लगी.. इतनी हिम्मत तो उसमें आ ही गयी थी.. वीरू की टोन बदल'ने पर...

"तुम मुझे जैसा समझती हो.. मैं वैसे नही हूँ रिया.. !" वीरू ने अपनी इमेज सुधारने के लिए भूमिका बाँधी...

"कैसा समझती हूँ मैं.. मैने तो कभी भी तुम्हे कुच्छ नही कहा.. उल्टा तुम ही मुझे धमका देते हो.. जब भी मैं तुमसे बात करने की कोशिश करती हूँ..."

"हुम्म.. वही.. मैं वही कह रहा हूँ.." वीरू ने 2 घूँट पानी पिया और बोलना जारी रखा," मुझे तुमसे कोई प्राब्लम नही है.. बट.. बेसिकली लड़कियों से मुझे चिड है.. जाने क्या समझती हैं अपने आपको.. बात करने की कोशिश करो तो समझती हैं कि... खैर.. 2 मीठी बात करते ही सिर पर चढ़ कर बैठ जाती हैं.. अपनी क्लास की लड़कियों को ही देख लो.. राज जब क्लास में आया तो कैसे उसका मज़ाक बना'ने की कोशिश कर रही थी.. हर नये लड़के के साथ वो ऐसा ही करती हैं.. भला ये कोई अच्च्ची बात है...?"

"पर मज़ाक करने में क्या बुराई है वीर..एंदर.. बाद में तो सब अच्च्चे दोस्त हो जाते हैं ना... ऐसे तो मैं भी हँसी थी.. जब मेडम ने मज़ाक किया था तुम दोनो के साथ..."

"वो मज़ाक था.. गे बोला था मेडम ने हमको.. समझती भी हो गे क्या होता है..?" वीरेंदर आवेश में आ गया..

रिया को मालूम था क्या होता है गे.. इसीलिए तो नज़र झुका कर बग्लें झाँकने लगी... वीरू ने स्थिति को भाँपा और बात सुधारते हुए बोला," गाली होती है ये.. चलो.. मेडम को तो हम कुच्छ नही कह सकते.. पर लड़कियों से चिड होगी कि नही.. ऐसे अनप शनाप बातों पर बत्तीसी निकाल कर हँसेंगी तो..."

"सॉरी वीरेंदर.. आगे से कम से कम मैं ऐसा नही करूँगी..."

"अरे नही नही.. मैने ऐसे तो नही बोला.. लो.. पानी पियो..!" वीरेंदर उसको अब और नाराज़ देखने के मूड में नही था...

"नही.. मुझे प्यास नही है.. क्या हम अच्छे दोस्त नही बन सकते वीरेंदर... क्या हम प्यार से नही रह सकते.. जैसे राज और प्रिया रहते हैं..." रिया ने भावुक होते हुए कहा...

"वो... तुम्हे पता है.. वो तो एक दूसरे से.. " बात को अधूरी छ्चोड़कर वीरू ने रिया की आँखों में झाँका.. उधर भी वैसी ही बेशबरी थी...," हम भी क्या..?" और वीरू ने बात को फिर अधूरा छ्चोड़ दिया...

"क्या?" रिया के गालों पर हया की लाली तेर गयी.. यही तो वो सुन'ना चाहती थी.. यही तो वो कहना चाहती थी.. जाने कब से?"

"तुम मुझे अच्च्ची लगने लगी हो रिया!" वीरू ने उसकी सीट के उपर रखा रिया का हाथ पकड़ लिया..

रिया को जैसे झटका सा लगा.. वीरू की स्वीकारोक्ति के बाद उसको उस स्पर्श में अजीब सी गर्माहट महसूस हुई.. ना चाहते हुए भी उसने अपना हाथ खींच लिया.. और नज़रें झुका कर अपनी उंगलियाँ मटकाने लगी...

"क्या हुआ? तुम्हे बुरा लगा..." वीरू ने भी अपना हाथ हिचकिचाकर वापस खींच लिया...

क्या कहती रिया आख़िर.. पिच्छले एक साल से उसके ही सपने देखकर नित यौवन में इज़ाफा करती आ रही रिया के लिए ये सब एक सपने जैसा ही था.. उसके सपने का साकार हो जाना.. पर उसको मालूम नही था.. अपने 'प्यार' को छ्छूने भर से जो असहनीया आनंद मिलता है.. यौवन के उस पड़ाव पर 'स्पर्श' को सिर्फ़ 'स्पर्श' तक कायम रखने की कोशिश में जान निकल जाती है.. आगे बढ़ कर चिपक जाने को मन करता है.. लिपट जाने को मन करता है.. चूम लेने को मन करता है.. उस प्यार को.. और जब ऐसा मुमकिन ना हो तो वापस हटना ही बहार होता है.. ठीक वैसा ही रिया ने किया था.. क्यूंकी 'यार' के आगोश की लत पड़'ने में वक़्त नही लगता.. पर जमाना लग जाता है, उस मीठे अहसास की टीस को दिल से निकालने में.. अगर वो स्पर्श 'स्पर्श' से आगे ना बढ़ पाए..

"सॉरी.. मुझे ऐसा नही करना चाहिए था.. पर मुझे लगा.. खैर.. बस एक आख़िर बात.. अगर किसी से ना कहो तो.." वीरू ने उसकी झुकी हुई आँखों में देखते हुए कहा..

रिया ने पलकें उठाकर वीरू से एक पल के लिए नज़रें मिलाई.. उसकी नज़रों में ही एक 'वादा' था.. किसी से कुच्छ भी ना कहने का..

"तुम मुझसे प्यार करती हो क्या?" वीरू ने बात कहने के बाद भी अपना मुँह खुला ही रखा.. मानो उसको जवाब होंठो से सुन'ना हो.. कानो से नही..

रिया हड़बड़ा गयी.. उसकी समझ में कुच्छ नही आया की क्या बोले.. क्या ना बोले.. अब ये भी कोई कहने की बात होती है.. समझ लेनी चाहिए थी वीरू को.. काफ़ी पहले ही.. रिया ने खंगार कर अपना गला सॉफ किया," मैं.. एक बार नीचे जा रही हूँ.. तुम्हारे लिए कुच्छ और लाना है क्या..?"

"नही.. !" वीरू ने सपाट सा जवाब दिया.. नाराज़गी भरा...

रिया सीट से खड़ी हो गयी.. जाने के लिए.. पर कदमों ने साथ नही दिया.. या शायद वो ही जाना नही चाह रही थी.. एक बार और 'वीरू' के मुँह से वही बात सुन'ना चाहती थी.. शायद इश्स बार 'हाँ' निकल सके..

"जाओ अब! यहाँ क्यूँ खड़ी हो..?" वीरू ने उसके चेहरे की और देखते हुए कहा..

"नही.. मुझे नही जाना.. तुम समझते क्या हो अपने आपको.. जब देखो सींग पीनाए तैयार रहते हो.. टक्कर मारने के लिए... चेहरा देखो तुम्हारा, कैसा हो गया है.." रिया ने अपने आपको वापस सीट पर पटक दिया...

"सॉरी बोला ना.. मैं तो बस ऐसे ही पूच्छ रहा था..." वीरू सहमा हुआ सा उसकी और देखने लगा..

"ऐसे ही पूच्छ रहा था.." रिया ने मुँह बनाकर उसकी नकल उतारी," मुझसे ही क्यूँ पूचछा.. किसी और से क्यूँ नही.."

"कोई और मुझे अच्छि ही नही लगी आज तक.. किसी और से पूछ्ता क्यूँ?" वीरू ने तपाक से जवाब दिया..

"हुम्म.. जैसे मैं तुम्हे सबसे प्यारी लगती हूँ..!" रिया अपने हल्क नीले कमीज़ के कोने को मुँह में लेकर चबाने लगी..

" हाँ.. लगती हो.. और कैसे कहूँ..." वीरू ने हाथ बढ़ा कर उसका हाथ पकड़ लिया..

और रिया जैसे बिना वजन की गुड़िया की तरह उसके आगोश में आ गिरी और सुबकने लगी..

वीरू ने उसका चेहरा अपने हाथों में लेकर उपर उठाया," रो क्यूँ रही हो?"

"पहले क्यूँ नही बोला..." कहकर रिया ने अपनी जवानियाँ उसके सीने में गाड़ा दी.. उसकी आँखों से भले ही आँसू टपक रहे थे.. पर उसके चेहरे पर खास चमक उभर आई थी.. आँखों में भी.. बिना कुच्छ कहे ही उसने सब कुच्छ बोल दिया.. वीरू ने अपना हाथ उसकी कमर से चिपकाया और हौले से उसके कान में गुदगुदी सी कर दी," आइ लव यू, रिया!"

रिया ने जैसे तैसे खुद को संभाला और अपने आँसू पुंचछते हुए बोली," मैं खाना लेकर आ रही हूँ.. खाओगे ना.. मेरे साथ!"

वीरू ने सहमति में सिर हिलाया और मुस्कुराने लगा," मेरा बात का जवाब तो तुमने दिया ही नही..."

"कौनसी बात का?" रिया ने उसकी आँखों में देखा और मुस्कुराने लगी..

"तुम मुझसे प्यार करती हो या नही.." वीरू भी मुस्कुराया..

"नही.. बिल्कुल नही.. क्यूंकी तुम एकदम गधे हो.." कहकर रिया एक बार फिर उस'से लिपट गयी...

बस में बैठे सभी बेशबरी से शमशेर, विकी, वासू, मानव और रोहन के आने का इंतज़ार कर रहे थे.. तभी रिया और प्रिया बस में चढ़ि. रिया के हाथ में खाना था जिसे वो पॅक करवा कर लाई थी.. राज जाकर वीरू के पास बैठने लगा तो रिया ने उसको टोक दिया," तुम मेरी जगह बैठ जाओ राज... हम यहाँ खाना खा लेंगे..!"

राज का मुँह खुला का खुला रह गया," वीरू तुम्हारे साथ खाना खाएगा?" राज कभी रिया के मुस्कुराते चेहरे को देखता और कभी वीरू के शरमाये हुए चेहरे को..

"हां.. बोला ना! अब उठो भी यहाँ से.. तुम प्रिया के पास बैठ जाओ!" रिया ने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा...

"उठ जाउ भाई?" राज को अब भी विस्वास नही हो रहा था की ये भी हो सकता है...

"अब खाना खाने देना हो तो उठ जा.. नही तो तेरी मर्ज़ी!" वीरू ने भरसक कोशिश की की कहते हुए वो नॉर्मल रह सके, पर मुस्कुराहट उसके चेहरे पर एक बार फिर आए बिना ना रह सकी...

"नही.. उठ रहा हूँ.. पर तू सच में.. मतलब खाना खाएगा ना!" राज की आँखें विस्मय से फैली हुई थी.. वीरू ने कोई जवाब नही दिया और प्रिया के साथ जा बैठा.. रिया ने अपना कमीज़ संभाला और अपने और वीरू के बीच में न्यूसपेपर पर खाना रखकर बैठ गयी...

"ये... ये कब हुआ.. मतलब.." राज का प्रिया से भी यही सवाल था...

"क्यूँ.. तुम्हे अच्च्छा नही लग रहा क्या?" प्रिया ने उसको मुस्कुरकर देखा...

"नही.. मतलब लग रहा है.. बहुत अच्च्छा.. पर ये तो कमाल हो गया.. सच में.. मुझे पता भी नही चला.. तुमने मुझे बताया भी नही.. ना ही इसने कुच्छ.. साला!" राज को हजम ही नही हो रहा था की वीरू इस तरह भी किसी लड़की से पेश आ सकता है..

"जो कुच्छ हुआ है.. अभी हुआ है.. जब ये बस में पानी देने आई थी.. मुझे भी अभी पता चला जब हम खाना पॅक करवा रहे थे... पर तुम बार बार उधर क्या देख रहे हो.. मेरे पास बैठना अच्च्छा नही लग रहा क्या?" प्रिया ने हौले से कहा...

" कमाल हो गया यार.. सच में.. ये तो कमाल हो गया.. ये गुरु घंताल भी लपेटे में आ ही गया.." कहते हुए अंजाने में ही राज ने ज़ोर से प्रिया की जाँघ पर थपकी लगा दी..

"ऊई.. ये क्या कर रहे हो.. ? तुम पागल हो गये हो क्या?" प्रिया ने उच्छलते हुए कहा..

"ओह सॉरी.. मैने वीरू की जाँघ समझ कर थपकी लगा दी.." कहकर राज भौचक्का सा उसकी जाँघ सहलाने लगा.. जहाँ उसने थोड़ी देर पहले ज़ोर की थपकी लगाई थी..

"ऱाआअज.. सब देख रहे हैं..." प्रिया ने राज की तरफ आँखें निकाली... और अपना चेहरा शरम से झुका लिया...

"अब साथ बैठकर बस में ऐसे खाना खाएँगे तो सब तो देखेंगे ही.. पर जब इन्हे कोई परवाह नही है तो हमें क्या?" राज ने हौले से कहा.. उसका हाथ अब भी प्रिया की जाँघ पर रंगे रहा था...

"अपना हाथ हताआओ.." कहकर प्रिया ने राज का हाथ परे झटक दिया... हालाँकि कोई उनकी बातों पर ध्यान नही दे रहा था.. पर प्रिया को जाने क्यूँ लग रहा था की सब उन्हे ही देख रहे हैं...

" ओह्ह्ह.. ये.. एम्म.. म्‍म्माइन.." राज को अब जाकर अहसास हुआ की वो कर क्या रहा था.. प्रिया के हाथ झटके जाने पर ही जैसे वो होश में आया..

"चुप रहो.. और सामने देखो.. मेरी और यूँ मत देखो बार बार..." कहकर प्रिया सीधी होकर बैठ गयी...

बेशक वो सब अंजाने में हुआ था.. पर अब, राज के प्रिया की मुलायम जांघों का चिकनापन अपने हाथ पर महसूस हो रहा था.. कितनी गड्राई हुई है प्रिया.. कितनी मांसल है.. कितनी मस्त! वो वाक़या उसके जहाँ में कौंध गया जब उसने प्रिया को जबरन अपनी बाहों में दबोच लिया था और प्रिया उसकी बाहों से छ्छूटने के लिए च्चटपटा रही थी.. उसके पॅंट में हुलचल होने लगी.. और दिमाग़ में भी...

वीरू और रिया दुनियादारी से बेख़बर होकर खाना खाने में लगे हुए थे.. आज खाने में कुच्छ खास बात थी.. एक खास मिठास.. खाना खाते हुए रह रह कर वो एक दूसरे की आँखों में झाँकते और खिल उठते...

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वासू आंड पार्टी के बस में चढ़ते ही बस का नज़ारा ही बदल गया.. उनमें वासू सबसे आगे था.. नशा कुच्छ हूल्का ज़रूर हुआ था पर सुरूर पूरा कायम था.. बस में चढ़ते ही वह बीच रास्ते में ही खड़ा होकर आगे बैठी नीरू को निहारने लगा.. नीरू समेत सभी को वासू का लहराता बदन देखते ही समझने में देर नही लगी की आख़िर माजरा क्या है? नीरू एक दम से कुच्छ कहने को हुई पर सबके सामने उसकी हिम्मत ना हुई.. उसने अपना मुँह बनाते हुए चेहरा एक और कर लिया...

"सॉरी.. सॉरी नीरू! वो.. विकी कह रहा था कि मर्द ही दारू पी .... सकते हैं.. मैने भी दिखा दिया.. मैं भी मर्द हूँ.. मैं भी पी सकता हूँ.. सॉरी!"

"तो.. मैं क्या कह रही हूँ...... सर!" नीरू की आँखें दबदबा गयी.. जिस तरीके से वासू उस'से मुखातिब हो रहा था.. बस तो तो भंडा फुट ही गया लगता था...

"नहिी नही.. मुझे... पता है.. तुम कह रही हो... मुझे पता है.. पर तुम अंदर ही अंदर कह रही हो.. बोल नही रही तो क्या हुआ.. अब नही कह रही तो बाद में कहोगी.. मुझे पता है.. पर मैने सबको बोल दिया.. तुम सबकी भाभी हो.. डरो मत.. अरे मर्द भी कभी किसी बात से डरते हैं भला.. जो कुच्छ करते हैं.. सीना ठोंक के करते हैं.. श.. सॉरी.. पर तुम तो मर्द हो ही नही.. तुम्हे तो डर लगेगा ही.. नही.. तुम भी मत डरो.. क्यूंकी.. प्यार करने वाले कभी डरते नही.. जो डरते हैं वो.. प्यार करते नही.." वासू आख़िर आते आते गायक बन गया...

नीरू की आँखों से अश्रुधारा बह चली.. उसको समझ नही आ रहा था कि क्या बोले.. और कैसे बोले.. पर जो कुच्छ भी वासू ने बोला.. वक़्त की नज़ाकत को देखते हुए बहुत ग़लत बोला था...

" अब बैठो भी वासू भाई.. हमें भी चढ़ना है उपर..!" पीछे से विकी की आवाज़ आई.. वासू ने रास्ता रोका हुआ था...

"ओह सॉरी.. आ जाओ.. आ जाओ.. कहकर वासू उपर आकर जैसे ही नीरू के पास बैठने लगा.. नीरू वहाँ से खड़ी हुई और पिछे चली गयी.. वासू की समझ में नही आया कुच्छ भी.. वो तो नीरू की आँखों का नीर भी नही देख पाया था... एक पल के लिए वासू वही ठिठक गया और फिर नीरू के पिछे पिछे चला गया.. सबसे पिछे...

बस चल पड़ी...

"आप भी पीकर आए हो? कम से कम उनको तो ना पिलाते.. आप ऐसे कब से हो गये?" दिशा बैठते ही शमशेर पर झल्लाई..

"अब मैने क्या किया है यार.. मैं तो शुरू से ही सबको मना कर रहा था.. कोई मना ही नही.. कहने लगे टूर है.. मस्ती तो करेंगे ही.. आख़िर में मुझे भी एक पैग पीला दिया.. ज़बरदस्ती..." शमशेर ने सफाई दी...

"नही.. जो कुच्छ भी हुआ ग़लत हुआ.. पर ये वासू और नीरू का क्या है? मेरी तो कुच्छ समझ में नही आया.." दिशा ने वहाँ बात को बढ़ाना सही नही समझा..

"हुम्म.. समझ में तो मेरी भी नही आया.. पर कुच्छ ना कुच्छ तो है ही..!" कहते हुए शमशेर ने पिछे मुड़कर देखा.. वासू नीरू के पास बैठा उसको देख रहा था.. और नीरू अपने माथे को हाथों में पकड़े सिर झुकाए बैठी थी....

"तुम भी..." स्नेहा ने विकी को पास बैठते ही घूरा," तुम कभी नही सुधर सकते!" कहकर वो मुस्कुराने लगी...

"अरे आज सुधरने के लिए ही पी है सानू.. सच में, मैं तो ये देख रहा था की प्यार का नशा ज़्यादा होता है या दारू का.." कहते हुए विकी ने बत्तीसी निकाली...

"फिर क्या पाया?" स्नेहा ने उत्सुक होते हुए पूचछा...

"तुम कमाल हो.. ये प्यार कमाल है सानू.. एक ही पल में जिंदगी बदल देता है.. रास्ते बदल देता है.. मंज़िलें बदल देता है.. आज मेरी समझ में आ गया की लोग प्यार पर कुर्बान क्यूँ हो जाते हैं.. भँवरा फूल से बच निकालने की अपेक्षा उसमें दम तोड़ना क्यूँ बेहतर समझता है.. पत्नगा क्यूँ आग में स्वाहा हो जाने को मचल जाता है.. सब प्यार ही है.. प्यार जन्नत है जान.. प्यार से बढ़कर इश्स दुनिया में कुच्छ भी नही.. तुम ही मेरा सब कुच्छ हो सानू.. आइ लव यू!" विकी कहते हुए भावुक हो उठा था.. स्नेहा उसके मुँह से ऐसी बातें सुनकर खुद्पर काबू ना रख सकी और भरी बस में उस'से लिपट गयी..

पिच्छली साथ वाली सीट पर मनु और उसके पिछे बैठी वाणी सब कुच्छ गौर से सुन रहे थे.. विकी की तुलना में वो बच्चे थे.. पर प्यार की इस गहराई को विकी से काफ़ी पहले समझ चुके थे.. महसूस कर चुके थे.. अचानक ही मनु के लिए वाणी का प्यार उमड़ पड़ा.. अगर मान'सी साथ ना होती तो शायद वो अभी जाकर उसके पास बैठ जाती.. या उसके अपने पास बुला लेती... मुश्किल से 2 फीट की दूरी अचानक उसको मील भर की लगने लगी.. वह भी उस भंवरे को खुद पर कुर्बान करने को लालायित हो उठी.. पर कोई चारा नही था...

या शायद था.....

भगवान जाने.. शायद मा'नस ने उनके दिल की बात समझ ली," मुझे लेटना है मनु.. तुम पिच्छली सीट पर चले जाओ ना...."

नेकी और पूच्छ पूच्छ.. मनु ने मुस्कुरकर पिछे की और देखा, वाणी भी मुस्कुरा उठी.. और एक पल भी बिना गँवाए एक तरफ हो ली.....

"तुम.. रो क्यूँ रही हो? किसी ने कुच्छ बोल दिया क्या?" नीरू को सुबक्ते देख ही वासू का नशा काफूर हो गया..

"कोई और क्या बोलेगा? आपने ही इतना कुच्छ बोल दिया है.." नीरू ने अपना चेहरा उपर ना उठाया...

"पर मैने तो वही बोला है जो सच है.. हां! मैं तुमसे प्यार करता हूँ.. क्या तुम नही करती?"

नीरू चाह कर भी कुच्छ ना बोली.. उसका मॅन बहुत उदास हो गया था.. उसको तनिक भी उम्मीद नही थी की वासू इस तरह से सारे-आम पीकर ऐसा ड्रामा करेगा!

"बोलो ना.. क्या तुम मुझसे प्यार नही करती?" वासू उसकी तरफ से कोई जवाब ना पाकर अधीर हो उठा..

"आप मुझे अकेला छ्चोड़ दो प्लीज़.. मैं कुच्छ नही बोलना चाहती..!" नीरू ने सिर झुकाए हुए ही जवाब दिया...

"क्यूँ नही बोलना चाहती.. क्या ये सच नही है कि.. तुमने ही मुझे प्यार सिखाया है.. दर असल तुमसे मिलने के बाद ही मैने जीना सीखा है.. हँसना आया है.. अगर तुम मेरी जिंदगी में नही आती तो शायद मैं तो यूँही रह जाता.. तुम्हारे कहने पर तो मैने गुड वाली चाय भी छ्चोड़ दी.. सच पूच्छो तो आज तुम्हारी खातिर ही मैने दारू पी है.. विकी का तो बहाना भर था.. मैं तुम्हे बताना चाहता था कि मैं भी मस्त इंसान बन सकता हूँ.. मैं भी औरों की तरह जिंदगी का आनंद ले सकता हूँ.. अगर आज ना पीता तो शायद कभी सबके सामने तुम्हे ये बात कह ही ना पाता.. और ये हिचक एक दिन तुम्हे मुझसे दूर ले ही जाती.. आज मैने एलान कर दिया है.. कि तुम मेरी हो.. अब सिर्फ़ तुम्हारा इशारा बाकी है.. गाँव में या घर पर जो कुच्छ होगा, मैं देख लूँगा.. सिर्फ़ तुम एक बार कह दो की तुम मुझसे प्यार करती हो...!" वासू ने उसके दोनो हाथ पकड़ कर उसको अपनी और देखने को मजबूर कर दिया...

नीरू की सूख चली आँखें एक बार फिर छलक उठी..," आप घर वालों को संभाल लोगे ना.. मुझे बहुत डर लग रहा है!"

"पहले बोलो, मुझसे प्यार करती हो या नही.. ?" वासू अब भी उसके हाथ ऐसे ही पकड़े हुए था...

"आपको सब मालूम है!" कहते हुए नीरू मुस्कुरा पड़ी और अपना हाथ च्छुडा कर आँसू पौंच्छने लगी...

"मुझे तो यही लगता है कि पहले तुमने ही मुझसे प्यार किया.. और फिर अपने जाल में फँसा लिया!" वासू मुस्कुराने लगा...

"आप कोई मछली हो जो मैं जाल में फँसा लूँगी... आपने ही मुझे च्छेदा था उस दिन... पहले!" नीरू सामान्य होकर धीरे धीरे बोलने लगी थी...

"किस दिन..?" वासू को याद नही आया...

"वो.. जब मैं योगा सीखने गयी थी.. आपके पास.. और मेरे पेट में दर्द हो गया था.. तब" नीरू शरमाते हुए बोली..

"फिर.. मैं तो इलाज ही कर रहा था.. च्छेदा कब था?" वासू ने सफाई दी... पर दोनो ही जान बूझ कर बात को 'उस' और लेकर जा रहे थे, जहाँ कामनायें जाग जाती हैं.. और खुद पर काबू रखना मुश्किल हो जाता है.. पल भर का भी इंतज़ार नही होता फिर...

"हुम्म.. इलाज कर रहे थे.. मुझे सब पता है.. मैं सब समझ गयी थी.." नीरू ने अपनी मोटी कजरारी आँखें वासू से चार की और तुरंत ही हटा ली...

"क्या पता है.. क्या समझ गयी थी तुम?" वासू ने आगे की और देखा, किसी का ध्यान पीछे नही था...," एक मिनिट.." कहकर वासू उठकर ड्राइवर के कॅबिन में गया और पिछे बस में जल रही धीमी सी लाइट भी बंद करवा दी.. वापस आते ही उसने फिर से वही सवाल किया.." हां! अब बोलो...क्या पता है.. क्या समझ गयी थी तुम?"

" ये लाइट आपने ही बंद करवाई है क्या?" नीरू ने वासू से उल्टा सवाल किया.. अंधेरे में वासू का हाथ उसके हाथ को अलग ही अनुभूति दे रहा था.. गर्माहट भरी...

"हुम्म!" वासू ने जवाब दिया...

"क्यूँ?" नीरू का दिल धक धक करने लगा.. किसी अंजानी मगर मनचाही उम्मीद से..

"ताकि कोई पिछे देखे तो हम उनको दिखाई ना दें.. खुल कर बात कर सकें.. इसीलिए.. तुम बोलो ना.. क्या कह रही थी तुम.. मैने तुम्हे पहले कब छेड़ा था...?" वासू ने उसके हाथों को सख्ती से पकड़ते हुए कहा..

नीरू ने अपने दोनो हाथ वासू के हाथों में अब ढीले छ्चोड़ दिए थे," मुझे शरम आ रही है.. बताते हुए..."

"अब इसमें शरमाने वाली क्या बात है? हम एक दूसरे से प्यार करते हैं.. शरमाने से कब तक काम चलेगा.. आगे चलकर बच्चे भी पैदा करने हैं.." वासू की बेबाकी में शराब का पूरा हाथ था..

ये बात सुनकर नीरू एकद्ूम लाल हो गयी.. उसके बदन में एक झुरजुरी सी उठी.. पर अंधेरा होने की वजह से वासू उसके मन के भाव भाँप ना पाया...

"बोलो ना नीरू.. कुच्छ तो बोलो..!"

"वो.. जब आपने.. आप खुद ही क्यूँ नही समझ जाते.. मुझसे मत कहलवाइए.. मुझे शरम आ रही है... प्लीज़!" नीरू बोलते बोलते रुक गयी..

"बोलो ना.. अब बोल भी दो.." वासू का एंजिन भी गरम होता जा रहा था...

"वो.. जब आपने मेरे यहाँ पर हाथ लगाया था तो बड़ा अजीब सा लगा था.. पता नही क्या हो गया था मुझे.. उस रात और उस'से अगली रात मैं सो भी ना सकी.. उसके बाद आपके पास आने की हिम्मत भी ना हुई.. पर ऐसा लगने लगा था जैसे मेरा कुच्छ खो गया है.. और वो आपके पास ही है... फिर..." कहते कहते नीरू फिर रुक गयी...

"बोलो ना.. फिर क्या?" वासू अधीर हो उठा था.. इश्स बात के बाद उसको और कुच्छ भी पूच्छना था..

"फिर मुझे लगा.. मुझे आपसे प्यार हो गया है.." कहते ही नीरू ने अपने हाथ वासू के हाथों से खींच लिया और अंधेरे में भी शर्मकार अपने चेहरे पर हाथ रखकर उसको छिपा लिया...

"फिर क्या हुआ नीरू.. !" वासू ने इस बार उसके हाथों को पकड़ने की कोशिश की तो वो पूरी ही खींची आई.. और अपना चेहरा वासू की छाती पर टीका दिया...

"फिर मैं पागल सी हो गयी.. किसी काम में मेरा मन ही नही लगता था.. घर में किसी से सीधे मुँह ना बोलती.. हमेशा आप ही आप मेरे दिमाग़ में छाये रहते.. छुट्टियाँ ख़तम होने का में बेशबरी से इंतज़ार कर रही थी.. उस दिन मेरी खुशी का कोई ठिकाना नही था जब छुट्टियों के बाद पहले दिन स्कूल लगा.. मैं स्कूल टाइम से आधा घंटा पहले स्कूल आ गयी थी.. पर जब उस दिन आपने मुझसे बात नही की तो में इतना रोई थी.... आपने मुझसे बात क्यूँ नही की...?"

"वो.. मेरी भी हिम्मत नही हो रही थी नीरू.. मुझे लगा तुम मुझसे नाराज़ हो.. पर बाद में तो मैं बोला था ना..." वासू ने सपस्त किया...

"कहाँ बोले थे आप? मैं ही आपके पास आई थी.. सवाल समझने का बहाना करके.. आप तो कभी भी नही बोलते मुझसे.. मुझे लगता है!" नीरू ने वासू के सीने पर सिर टिकाए हुए उसके दूसरी और कंधे पर हाथ रख लिया.. नीरू की ठोस छातियों में से एक वासू की बाँह से सटी हुई थी.. और वह वासू के दिलो-दिमाग़ में तहलका मचा रही थी...

"मैं समझ गया था.. इसीलिए ही तो मैने तुम्हे स्टाफ रूम में बुलाया था..." वासू ने वो हाथ निकाल कर उसकी कमर पर रख लिया जो कुच्छ देर पहले नीरू की छातियों के संपर्क में था.. अब नीरू का वो स्तन वासू की पसलियों को छू रहा था...

"आपने जब वहाँ मेरे कंधे पकड़े.. तब भी मुझे करेंट सा लगा था.. ऐसा क्यूँ होता है?" नीरू की आवाज़ में लगातार तब्दीली आ रही थी.. पहले नाराज़गी का स्थान मायूसी ने.. मायूसी का मुस्कुराहट ने और अब मुस्कुराहट का स्थान उसकी गरम साँसों से निकल रही मादकता ने ले लिया था.. वासू हर पल हो रहे इश्स परिवर्तन को महसूस कर भी रहा था...

"अब ऐसा कुच्छ नही हो रहा क्या?" वासू ने उसको छेड़ ने के अंदाज में पूचछा...

नीरू कुच्छ ना बोली.. अपनी साँसों को रोक कर खुद पर नियंत्रण करने की कोशिश करने लगी.. पर ये आग बिना 'पानी' बुझती है कभी.. और भड़कट्ी है.. सो भड़क रही थी....

"मैं तुम्हे छ्छू लूं, नीरू? मैं बेताब हूँ, तुम्हे महसूस करने को.." वासू ने उसके कान में गरम साँस छ्चोड़ते हुए कहा...

नीरू का जवाब वासू के कंधे पर बढ़ गयी उसके हाथ की जकड़न के रूप में सामने आया.. अपने आप को ढीला छ्चोड़कर वो वासू के आगोश में जाने को मचल उठी...

"बोलो ना.. प्लीज़.. कह दो हाँ!" वासू उसकी भी स्थिति समझ रहा था और खुद की भी.. पर बिना आग्या वह आगे कैसे बढ़ता...

नीरू अपना चेहरा उठाकर वासू की गर्दन के पास ले गयी.. इस स्थिति में दोनो की छातियाँ एक दूसरे से टकरा उठी.. प्यार की अग्नि में वासना की लपटें पल पल ऊँची होती जा रही थी.. वासू की गर्दन पर अपने पतले कोमल होन्ट सटकर नीरू ने साँसों ही साँसों में जवाब दिया," कोई देख लेगा..?"

"अंधेरे में कौन देखेगा.. सब सो गये होंगे.. कोई जाग भी रहा होगा तो किसी को कुच्छ दिखाई......" कहते हुए जैसे ही वासू ने अपना चेहरा नीचे किया, धधक रही नीरू ने अपने सुलगते हुए होंठ वासू के होंठो पर टीका दिए.. फिर कौन बोलता.. बोलने के लिए जगह ही कहाँ बची थी....

वासू का हाथ अपने आप ही फिसल कर नीरू की छातियों पर फिसलने लगा.. कुँवारी चूचियों पर बने छ्होटे छ्होटे दाने पहले से ही चौकन्ने होकर तन गये थे.. जैसे ही वासू का हाथ वहाँ मंडराया, नीरू कसमसा उठी और उसने वासू के होंठो को अपने दाँतों में दबाकर काट खाया.. वासू इस मीठे दर्द से तड़प उठा और उसके पंजे ने मुट्ठी बनकर नीरू के 'सेब' जैसे उभारों को कस लिया.. कमीज़ और समीज़ के उपर से ही नीरू इस अविस्मरणीया अहसास को पाकर अधमरी सी हो गयी.. और सरक कर वासू से बुरी तरह चिपक गयी...

वासू ने नीरू के होंठो को चूमते हुए ही अपना हाथ नीचे खिसका दिया, कमसिन नाभि को छूता हुआ उसका हाथ नीरू की जांघों के बीच पहुँच गया.. और ना चाहते हुए भी नीरू ने छॅट्पाटा कर अपने होंठो को आज़ाद किया और इतनी लंबी साँस ली मानो काफ़ी देर से साँस उसके अंदर से निकली ही ना हो.. एक मादक लंबी सिसकी..

"क्या हुआ?" वासू ने चौंक कर अपना हाथ उसके 'वहाँ' से हटा लिया...

"कुच्छ नही.." नीरू ने सिर्फ़ इतना ही बोला और फिर से होंठो को होंठो की क़ैद में देते हुए वासू का हाथ खींच कर फिर से अपने 'वहाँ' लगा दिया... वो अब सब कुच्छ भूल चुकी थी...

वासू एक बार फिर 'उस' दिन वाली स्थिति का सामना नही करना चाहता था.. इसीलिए थोड़ी जल्दबाज़ी दिखाते हुए उसने अपनी पॅंट की जिप खोली और नीरू का हाथ पकड़ कर नीचे ले जाकर अपनी जांघों के बीच का रास्ता दिखा दिया.. नीरू तो मदहोश ही हो चुकी थी.. बिना सोचे समझे, वासू ने उसको जो भी पकड़ाया, झट से अपनी मुठ्ठी का दायरा बना कर 'उसको' सख्ती से पकड़ लिया... कुच्छ ही देर में उसके अचेत मस्तिस्क को हाथ में पकड़े 'हथियार' की लंबाई और मोटाई का अहसास हुआ तो उसने चौंक कर अचानक अपना हाथ खींच लिया और दूर होकर फिर से एक लंबी साँस लेते हुए बोली," ययए.. क्या है?"

वासू उसके भोलेपन पर मुस्कुराए बिना ना रह सका," तुम्हे नही मालूम क्या?"

नीरू ने झिझकते हुए बोल ही दिया," हां,.. पर इतना लंबा?"

" ये तो इतना ही होता है.. तुम क्या समझती हो?" वासू ने उसके गालों का चुंबन लेते हुए पूचछा...

"नही.. ये तो उंगली जैसा होता है.. मैं देखा है!" नीरू अपनी उंगली को लंबा करते हुए बोली...

"तुम भी ना.. तुमने छ्होटे बच्चों का देखा है.. आओ ना.. अब क्यूँ तड़पा रही हो.. कहते हुए वासू ने उसको फिर से अपनी और खींच लिया.. उसके हाथ में फिर से वही 'हथियार' पकड़ा कर...

कुच्छ देर तक नीरू उस पर यूँही अचरज से हाथ फिरा फिरा कर देखती रही.. फिर जब सामान्य हो गयी तो उसने भी अपनी जांघें खोल कर वासू के हाथ को मस्ती करने की इजाज़त दे डाली.. मनचाहे ढंग से...

आख़िरकार पहली बार वासू को नारी के हाथों स्खलन सुख प्राप्त हुआ.. यूँही हिलते हिलाते करीब 15 मिनिट बाद वासू ने नीरू के हाथ से 'उसको' छ्चीना और थोडा आगे झुक कर बस में पिचकारी छ्चोड़ दी.. नीरू तो पहले ही 2 बार 'गीली' हो चुकी थी.. कुच्छ पल के लिए दोनो को अजीब सी शांति मिली.. पर इस शांति से ज़्यादा कुच्छ होना नही था.. अब तो तूफान आकर ही रहना था.. बस मौके का इंतजार था...

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Re: गर्ल'स स्कूल

Post by rajaarkey »

गर्ल्स स्कूल पार्ट --57

हेल्लो दोस्तों मैं यानिआप्का दोस्त राज शर्मा पार्ट 57 लेकर हाजिर हूँ अब आप कहानी का मजा लीजिये

"क्या है?" वाणी की कोहनी अपने पेट में लगते ही मनु उच्छल पड़ा.. करीब 15 मिनिट से वो दोनो साथ साथ ही बैठे थे, पर चुपचाप!

"क्या है क्या? मैने क्या बोला है?" वाणी ने मनु को घूरते हुए कहा.. तभी वासू उनके पास से गुजरा और दोनो शांत हो गये.. कुच्छ ही पल बाद बस की लाइट्स ऑफ हो गयी. वो दोनो तब तक चुपचाप ही बैठे रहे जब तक वासू वापस पिछे नही चला गया!

उसके जाने के बाद मनु बोला," कोहनी क्यूँ मारी मुझे?"

"अच्च्छा! एक तो बैठने के लिए सीट दे दी.. उपर से नखरे दिखा रहे हो.. मेरी तो आदत है.. नींद में हाथ पैर चलाने की..." वाणी ने धीरे से कहा..

"ठीक है.. मैं पिछे चला जाता हूँ.. अमित के पास" कह कर मनु जैसे ही उठने लगा, वाणी ने उसकी शर्ट पकड़ कर वापस खींच लिया.. ज़रा सा भी प्रतिरोध ना करते हुए मनु वापस सीट पर जम गया, मानो वो भी नाटक ही कर रहा हो.. उठने का!

"अब क्या है?" मनु ने वापस बैठते ही मंद मंद मुस्कुराते हुए वाणी से सवाल किया..

"चुपचाप यहीं बैठे रहो.. समझे ना! मुझे पता है तुम्हे वहाँ जाने की क्यूँ लगी है..?" शायद वाणी सच में ही गुस्सा थी, अब की बार..

"तुम तो पागल हो..!" मनु वाणी की और देखकर मुस्कुराने लगा.. हालाँकि अंधेरे में चेहरे सॉफ नज़र नही आ रहे थे.. पर चेहरे के भाव तो पढ़े ही जा सकते थे..

"तुम्हे हँसी आ रही है? म्मै.. तुम्हारा सिर फोड़ दूँगी.. चलो एक बार.. तुम्हे तो में अच्छि तरह देख लूँगी..." वाणी ने भूंभूनाते हुए मनु की तरफ घूरा...

"पर तुम नाराज़ क्यूँ हो? बताओ तो सही.. मैने किया क्या है ऐसा...?" मनु ने फिर से मुस्कुराते हुए वाणी की भावनाओ की खिल्ली उड़ाई...

" मुझे नही करनी तुमसे बात.. जाओ जहाँ जाना है, मुझे पता है तुम किसके साथ बैठना चाहते हो!" अपने मीठे गुस्से का असर मनु पर ना होता देख वाणी बिदक कर रुन्वसि सी हो गयी...

मनु ने अपना हाथ वाणी की तरफ लेजाकार उसके कंधे के पास उसकी बाजू पर रख दिया.. वाणी को मानो असीम सुख की अनुभूति हुई.. इश्स बेबाक स्पर्श से.. उसने अपनी आँखें बंद करते हुए अपनी गर्दन पिछे सीट पर टीका ली.. लेशमात्र भी प्रतिरोध ना करते हुए.. पर अभी भी वह चुपचाप थी!

"समझा करो यार प्ल्स!" मनु ने हौले से बुदबुडाया," आगे मानी लेटी है..."

"मैं तो नासमझ हूँ.. उसी को समझाओ जाकर.. छोटी वाली को, तुम्हे तो वहीं बैठना अच्च्छा लगता है ना!" वाणी ने बिगड़ते हुए मनु का हाथ अपने कंधे से झटक दिया..

"उस्स'से मुझे क्या मतलब है? और तुम ऐसी छ्होटी छ्होटी बातों को दिल पर क्यूँ लेती हो..? अब शांत भी हो जाओ, मानी सुन लेगी.. हम चल कर बात कर लेंगे ना!" मनु ने फिर से अपना हाथ वाणी के कंधे के पास उसकी कोमल गुदाज बाजू पर रख दिया..

"तब तो तुम्हे मानी नही दिखी जब पिछे बैठकर दाँत निकाल रहे थे.." वाणी ने मासूम सा अपना चेहरा मनु की और घुमा दिया...

"वो.. वो तो मैं अमित की बात पर हंस रहा था.. मैं तो किसी और को जानता भी नही..." मनु ने सफाई दी..

"तो जान'ना चाहते हो ना.. जान लेना.. मैं करवा दूँगी जान-पहचान; अब तो खुश हो?" वाणी के हर बोल के साथ उसका नया रंग झलक रहा था..

"तुम कहना क्या चाहती हो!" मनु खिन्न हो चला था...

" यही की जहाँ तुम खुश रह सको, वहीं रहो! मुझे कोई प्राब्लम नही है..पर तुमने मेरा हाथ क्यूँ पकड़ा था?" पता नही वाणी अपना बे-इंतहा प्यार मनु पर जताने के लिए कैसे कैसे तरीके आजमा रही थी..

"और अगर मैं कहूँ की मुझे तुम्हारे सिवाय कोई और हाथ पकड़'ना ही नही है तो?" कहते हुए मनु का हाथ वाणी की बाजू से फिसल कर उसकी कलाई के पास आकर ठहर गया.. वाणी के दिल पर बात सुनकर क्या बीती होगी, इसका अंदाज़ा उसके प्रत्युत्तर से लगाया जा सकता है..

" और अगर तुमने मुझे छ्चोड़ दिया तो? मैं तो मर ही जाउन्गि मनु!" कहते हुए वाणी ने अपने दूसरे हाथ से मनु का 'वो' हाथ कसकर पकड़ लिया...

"धात पगली.. तुम सोच भी नही सकती तुम कितनी प्यारी लगती हो मुझे.. मुझे क्या.. तुम तो सबको इतनी ही प्यारी लगती हो.. इसीलिए जब भी तुम मुझ पर गुस्सा हो जाती हो.. तो मैं डर जाता हूँ.. कहीं...?" मनु ने उसको अपनी वफ़ा पर विस्वास दिलाने की कोशिश की...

वाणी की आँखें अंधेरे में भी चमक उठी.. उसके चेहरे पर फिर से शरारती भाव आने में एक पल भी नही लगा...," पता है.. मैं कभी भी सच्ची में गुस्सा नही होती... तुम्हारे सामने जानबूझ कर नाटक करती हूँ.. गुस्सा होने का!" वाणी ने अपनी आँखें तरेरते हुए कहा...

"क्यूँ?" मनु ने शरारत और आस्चर्य की मिली जुली प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उसके गालों पर चुटकी काट ली..

"उउउन्ह.. क्यूंकी मुझे मज़ा आता है हे हे.. जब भी मैं तुम पर गुस्सा होती हूँ.. तुम्हारी मोटी मोटी आँखें और फैल जाती हैं.. चेहरा बंदर जैसा हो जाता है.. और.. तब तुम मुझे बड़े प्यारे लगते हो.. हे हे हे!"

"अच्च्छा.. तुम्हे मैं बंदर दिखता हूँ.. चलो एक बार नैनीताल.. दिखता हूँ तुम्हे.."

"दिखा देना.. देख लूँगी.." वाणी ने बात अनायास ही कही थी.. पर देखने दिखाने की ये बात मनु को अनायास ही उसे बाथरूम में ले गयी.. जहाँ सौभाग्य से उसको 'वाणी' को देखने का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ था.. मनु के जज्बातों ने अंगड़ाई ली और वह शरारत पर उतर आया

"वाणी.. तुम्हे याद है वो बात.. मुझे तो ज्यों की त्यों याद है.. जैसे अभी भी तुम वैसे ही मेरे सामने खड़ी हो...

"कौनसी बात?" वाणी ने याद करने की कोशिश करते हुए पूछा...

"वही.. याद करो.... बात.." बोलते मनु की बात समझ में आते ही वाणी ने उसके मुँह पर अपना हाथ रखकर बीच में ही उसको रोक दिया," हूंम्म्म.. मेरा मज़ाक मत बनाओ!" और कहते ही वाणी ने शर्मकार दूसरी और मुँह कर लिया...

"अब बोलो, कौन है बंदर?" मनु ने शरारत से कहते हुए वाणी की कमर की बराबर में हाथ से हल्का सा स्पर्श किया.. और हाथ को वहीं पर जमा दिया.. उसकी चिकनी मखमली जांघों से थोड़ा सा उपर..

वाणी को झुरजुरी सी आ गयी.. मुँह दूसरी तरफ किए हुए ही उसने अपने हाथ से मनु का हाथ वहाँ से हटाने की कोशिश की.. पर मनु की पकड़ इतनी भी सख़्त नही थी की वाणी अगर दिल से कोशिश करती तो उसको वहाँ से हटा ना पाती.. हाथ नही हटा.. जाहिर सी बात है, वाणी की कोशिश कोशिश नही, महज झिझक थी...

कुछ देर तक अपनी उंगलियों से मनु के हाथ को सरकाने का बनावटी प्रयास करने के बाद वाणी ने अपनी उंगलियाँ वहीं पर मनु की उंगलियों में फँसा दी.. और दोनो की उंगलियों की पकड़ एक दूसरे पर कसने लगी....

मनु वाणी की सहमति जान कर थोड़ा उस तरफ सरक गया.. अब मनु की छाती का दायां हिस्सा वाणी की पीठ के बायें हिस्से से सटा हुआ था.. दोनो को ही एक दूसरे का शरीर तप्ता हुआ महसूस हो रहा था.. ये जवानी की गर्मी थी.. हाथ अब भी दोनो के एक दूसरे की उंगलियों में गुथे हुए थे...

"वाणी!" मनु ने सहसा उसके कान के पास उसको पुकारा...

"चुप!"

"क्या हुआ? फिर गुस्सा?" मनु ने फिर से उसके कानो में अपनी साँसों से गुदगुदी सी की...

"बोला ना चुप हो जाओ!" कहते हुए वाणी ने अपना भार मनु की छाती पर डाल दिया...

जाने कितनी ही देर वो यूँही बैठे रहे.. एक दूसरे से सटे हुए.. मनु से रहा ना गया.. उसकी मर्दानगी उसको ललकार्ने सी लगी.. अकड़ कर खड़ी हो गयी

"क्या सोच रही हो?" बात कहने के बहाने मनु ने वाणी के कानो से नीचे उसकी गर्दन से अपने होंठ छुआ दिए..

वाणी ने प्रत्युत्तर में अपनी सारे आवेगो को एक गहरी साँस के रूप में बाहर निकाल दिया.. उसको अपने शरीर में अकड़न सी महसूस होने लगी.. यहाँ तक की उसकी छातियो में भी कामुकता की बयार सी बहने लगी.. जो अब तेज़ी से उठने बैठने लगी थी..

"बोलो ना.. कुच्छ तो बोलो.." और इश्स बार मनु ने अपने होंठ, वहीं टीके रहने दिए.. वाणी की गर्दन पर..

असर कहाँ तक गया होगा.. आप समझ सकते हैं.. लेकिन इतना पक्का था कि वाणी ने अपनी जाँघ के उपर जाँघ चढ़ा ली..

"मनु!" एक लुंबी साँस छ्चोड़ते हुए वाणी बुदबुदाई..

"हां..?" मनु ने और कुच्छ ना कहा..

"तुम्हे.... तब कैसे लगा था..?" वाणी ने हिचकिचाते हुए पूचछा...

"कब?"

"चलो.. छ्चोड़ो.. अब कैसा लग रहा है?" वाणी बात को वर्तमान में ले आई...

"अजीब सा.. पर बहुत प्यारा.. मस्त!" कहते हुए मनु अपना हाथ सरका कर उसके पेट तक ले गया और वाणी को अपनी और खींच लिया.. उनके बीच बचा खुचा फासला भी ख़तम हो गया..

"मुझे भी.. आ!" मनु के अपनी और खींचे जाते हुए वाणी दोहरी सी होकर सिमट गयी..," मुझे गुदगुदी सी हो रही है..!"

वाणी ने बात कहने के लिए अपनी गर्दन घुमाई तो उसके गुलाबी पतले होन्ट अनायास ही मनु के होंठो से टकरा गये.. कुंवारे बदन थे.. दोनो सिहर उठे.. मनु के हाथ की सख्ती वाणी के पेट पर बढ़ती जा रही थी.. लगातार.. वाणी ने गुदज नितंब मनु की जांघों पर चढ़ बैठने को बेताब से लग रहे थे.. मनु नितंबों के बीच के खाईनुमा ख़ालीपन को अपनी जाँघ पर अब पूरी तरह से महसूस कर रहा था.. और नितंबों के मादक भराव को भी.. दोनो की साँसे उखाड़ने लगी थी...

"और क्या हो रहा है..? मनु ने कहते हुए अपना चेहरा वाणी के होंठो की तरफ उठा दिया.. ताकि इश्स बार वाणी जवाब दे तो उसके होंठो की मिठास को और भी गहराई

तक महसूस कर सके.. साथ ही उसने अपना हाथ भी थोड़ा उपर सरका दिया.. वाणी की कलात्मक गोलाइयाँ अब मनु के स्पर्श को तड़प रही थी.. बस कुच्छ इंच का ही फासला था...

"अया.. बोलो मत प्ल्स!" जैसे ही इश्स बार वाणी ने अपनी गर्दन घुमाई, मनु ने उसको और बोलने का मौका दिया ही नही.. उसके होंठ अब की बार तत्पर थे, वाणी के लबों का रसास्वादन करने को.. वाणी ने भी अब की बार अपने आप को वापस नही खींचा.. कुच्छ देर होंठ बाहर से ही एक दूसरे से सटे रहे.. फिर वाणी ने अपने होंठो को खोल मनु को रास्ता दे दिया.. मनु का नीचे वाला होंठ वाणी के होंठो के बीच फँस गया.. अजीब मिठास थी.. अजीब कशिश.. और अजीब नादानी... क्या जोड़ी थी..

वाणी ने मनु के होंठ को अपने होंठो के बीच यथासंभव कोमलता और सख्ती से लपेट लिया.. मनु का हाथ अपने आप ही वहाँ पहुँच गया, जहाँ वाणी के मादक उरोज कब से उसके द्वारा सहलाए जाने को बेताब थे... दोनो ही थरथरा उठे..

अब पिछे हटना ना-मुमकिन था...

अगर साथ वाली सीट पर बैठी प्रिया की हँसी ना छ्छूट गयी होती...

चौंक कर एकद्ूम दोनो एक दूसरे से अलग हो गये.. नवयौवन की बसंत पर असमय ही 'उस' नमकूल हँसी के पतझड़ का तुशारापट हो गया.. वाणी ने तो पलटकर देखा तक नही.. लज्जावाश दूसरी तरफ ही मुँह किए अपनी सीट के साथ कमर सटा कर बैठ गयी.. कुच्छ देर पहले ही हुए प्रेम-अनुभव की मिठास अब भी उसके रसीले होंटो पर मीठी मुस्कान के रूप में तेर रही थी... अंतहीन लज्जा को उनमें समेटे हुए....

मनु ने पलट कर देखा तो प्रिया ने शर्मकार अपना चेहरा दूसरी दिशा में घुमा लिया.. जिस ओर राज बैठा था!

"आबे, ये क्या था?" रोहन अचानक ही आसपास की घनी झाड़ियों से अपनी और कूद आए गिलहरी नुमा जानवर को देखकर उच्छल पड़ा.. जानवर के उच्छलने के अंदाज से यही प्रतीत हुआ की उसने उन्न पर हमला करने का प्रयास किया था... करीब 10 - 10 फीट की लंबी छलन्ग लगाता हुआ वो सड़क के दूसरी तरफ की झाड़ियों में खो गया....

दोनो 2 पल वहीं खड़े होकर उस अजीबोगरीब जानवर को आँखों से औझल होते देखते रहे.. और फिर से अपनी अंजान मंज़िल की और बढ़ चले...

"अफ.. कितना सन्नाटा है यहाँ? कहाँ ले आया यार...? यहाँ पर तो आदमी की जात भी नज़र नही आती... कितना डरावना सा लग रहा है सब कुच्छ.... यहाँ तुझे तेरी नीरू कहाँ से मिलेगी? ... देख मुझे तो लगता है कि सब तेरा वहाँ है.. क्यूँ बेवजह अपनी रात बर्बाद कर रहा है... और मेरी भी.." नितिन ने बोलते हुए रिवॉल्वेर निकाल कर अपने हाथ में ले ली..

"वहाँ नही है यार.. वो यहीं रहती है.. आसपास, देखना! कोशिश करेंगे तो सफलता ज़रूर मिलेगी.. वो अगर नही मिली तो मैं पागल हो जवँगा यार!" रोहन ने आगे चलते चलते ही बात कही...

नितिन बहुत अधिक चौकन्ना होकर चल रहा था.. चौकन्ना होना लाजिमी भी था.. जहाँ इश्स समय वो थे, उस जगह के आसपास कोई शहर या गाँव नही था.. दूर दूर तक कृत्रिम रोशनी का नामोनिशान तक नही था.. बस आधे चाँद और टिमटिमाते हुए तारों की हल्की फुल्की रोशनी ही थी जो उनको रास्ता दिखा रही थी.. रास्ता भी ऐसा जो ना होने के बराबर था.. कहीं उँचा, कहीं नीचा.. बीच बीच में गहरे गहरे गड्ढे.. इतने गहरे की ध्यान से ना चला जाए तो अचानक पूरा आदमी ही गायब हो जाए.. दोनो और करीब 4 - 4 फीट ऊँची झाड़ियाँ थी...

"अब रास्ता सॉफ होता तो गाड़ी या बाइक ही ले आते.. तुझे क्या लगता है.. यहाँ पर कोई इंसान रहता होगा.. और वो भी लड़की.. सच बताना, तुझे डर नही लग रहा, यहाँ का माहौल देख कर..." नितिन ने चलते चलते रोहन से सवाल किया...

"डर लग रहा है तभी तो तुम्हे लेकर आया हूँ.. नही तो मैं अकेले ही ना आ जाता.." रोहन ने जवाब दिया..और अचानक ही उच्छल पड़ा," नितिन देख.. आगे पक्की सड़क दिखाई दे रही है.. मैं ना कहता था.. हम ज़रूर कामयाब होंगे... आगे ज़रूर कोई बस्ती मिलेगी... देख लेना!"

"आबे बस्ती के बच्चे.. उस'से कोई ढंग का रास्ता भी तो पूच्छ सकता था तू.. यहाँ से क्यूँ लाया?" नितिन की आँखें भी आगे पिच्छले रास्ते के मुक़ाबले बेहतर सड़क देख कर चमक उठी....

"यार, क्या करूँ, जब यही एक रास्ता बताया उसने..." रोहन ने तेज़ी से चलना शुरू कर चुके नितिन के कदमों से कदम मिलते हुए कहा

"अजीब प्रेमिका है तेरी.. एक तो रात में मिलने की ज़िद करी और उपर से रास्ता ऐसा बताया.. चल देख.. लगता है हम पहुँचने ही वाले हैं.. उधर लाइट दिखाई दे रही है..." नितिन ने अपनी बाई तरफ इशारा करते हुए कहा....

दोनो बाई तरफ मुड़े ही थे की अचानक ठिठक गये..," यहाँ तो तालाब है..!" रोहन ने अपने कदम वापस खींचते हुए कहा....

"चल.. आगे से रास्ता होगा ज़रूर... !" नितिन ने रोहन से कहा और दोनो फिर से सीधे रास्ते पर चल पड़े....

आगे जाकर उनको एक पगडंडी सी बाई और जाती दिखाई दी.. दोनो ने आँखों ही आँखों में रास्ते पर सहमति जताई और उस और बढ़ चले...

"ओह तेरी मा की आँख.. यहाँ तो कीचड़ है..! देख कपड़ों का क्या हो गया... चल वापस चल.. ये रास्ता नही है.." मन ही मन नितिन उस लड़की को कोस रहा था जिसके प्यार में पागल रोहन अपने साथ साथ उसकी भी दुर्गति कर रहा था...

"यार, आधे रास्ते तो आ ही चुके हैं.. आगे चलकर तालाब में धो लेंगे पैर.. अब वो लाइट भी नज़दीक ही दिखाई दे रही है..." रोहन ने बेचारगी से नितिन को देखते हुए कहा...

"चल साले.. अगर लड़की नही मिली तो देख लेना फिर..." बड़बड़ाता हुआ नितिन फिर से रोहन के आगे आगे चलने लगा...

उसके बाद ज़्यादा देर उनको चलना नही पड़ा.. कुच्छ दूर और चलने पर वो एक सॉफ सुथरे रास्ते पर पहुँच गये.. पानी का 'वो' तालाब यहाँ तक भी फैला हुआ था.. दोनो ने वहाँ पानी में अपने पैर धोए और फिर से आगे बढ़ गये...

"यार, यहाँ गलियाँ तो दिखाई दे रही हैं.. पर घर कहाँ हैं.. ? क्या इश्स गाँव में वो एक ही घर है जहाँ लाइट जल रही है...?" नितिन ने हैरानी से रोहन की और देखा...

"मैने पूचछा नही यार.. क्या पता एक ही हो.. चल.. तू चलता रह!" रोहन ने खिसियाई हुई बिल्ली की तरह से बेतुका सा तर्क दिया और प्यार को पाने की उम्मीद में आगे बढ़ता रहा.. नितिन के साथ साथ..

बड़े ही विस्मयकारी अनुभव का सामना वो दोनो कर रहे थे.. काफ़ी देर तक चलने के बाद भी वो 'रोशनी' उनसे अभी भी उतना ही दूर लग रही थी.. उन्होने गलियाँ भी बदली, पर कुच्छ दूर चलते ही फिर से वो रोशनी ठीक उनके सामने आ जाती.. और फिर से उनको उसी रास्ते पर चलते रहने का अहसास होता...

"देख.. रोहन.. मुझे तो सब कुच्छ गड़बड़ लग रही है.. भला ऐसी जगह पर भी आजकल कोई घर बनता है.. 'कोई' लड़की सच में है ना...?" नितिन तक हार कर खड़ा हो गया...

"है ना भाई.. तू मेरा.. अरे.. देख बच्चा!" रोहन एक दम उच्छल पड़ा..

प्रिया की हँसी सुनकर राज भी जाग गया," क्या हुआ?"

"कुच्छ नही..." प्रिया झेंपटि हुई सी बोली...

"फिर भी.. हँसी क्यूँ? कुच्छ याद आ गया था क्या?" राज बैठकर सीधा हो गया और खिड़की के बाहर देखने की कोशिश करता हुआ बोला..

"हां.. वीरू और रिया खाना खाते हुए कैसे एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे.. जब भी रिया वीरू की आँखों में देखती तो वो नज़रें झुका लेता था.. यही याद करके हँसी आ गयी थी.. कितना शर्मा रहा था.." प्रिया ने बात को घुमा दिया.. वो ये कैसे कहती की एक उसने वाणी और मनु को अंतरंग हालत में पकड़ लिया था..

"हुम्म.. शरमाती तो तुम भी बहुत हो.. नही?" राज ने उसको बातों ही बातों में च्छेदा..

"ष्ह.. चुप हो जाओ.." प्रिया ने तिरछि नज़र से बराबर वाली सीट की और डरते हुए झाँका..

"क्यूँ.. कोई जाग रहा है क्या..?"

"मुझे क्या पता.. पर तुम चुप करो प्ल्स..." प्रिया को डर था कहीं अब वाणी उनको ऐसी बातें करते देख कुच्छ और ना समझ ले..

"ठीक है.. हो जाउन्गा चुप.. एक शर्त है.." राज मौके का फयडा उठाकर उसको च्छेदने लगा..

"क्या है? कह तो रही हूँ.. चुप हो जाओ.. कोई सुन लेगा तो.."

"मैं भी तो कह रहा हूँ.. हो जाउन्गा चुप.. मुझे किस कर दो.. यहाँ पर.." राज ने अपनेहोंठो पर उंगली रखते हुए कहा..

प्रिया का चेहरा ये बात सुनकर लाल हो गया.. झेंप मिटाने के लिए वा अपनी कोहनी को चेहरे के आगे लगाकर आगे की और झुंक गयी.. ,"धात.. तुम्हे शर्म नही आती.."

"अच्च्छा.. वीरू को शर्म आती है तो वो शर्मिला.. और मैने दिल की बात कह दी तो मैं बेशर्म हो गया.. तुम लड़कियाँ भी ना.. तुम्हे समझना कितना मुश्किल है.. एक तरफ कहती हो की मुझसे प्यार है.. दूसरी तरफ मेरी इतनी छ्होटी सी बात भी मान नही सकती.." राज अब पूरी तरह नींद से जाग कर मस्ती के मूड में आ गया था..

"मुझे तुमसे बात नही करनी.. सो जाओ.. सो जाओ ना..!" प्रिया को उसकी बातों में आनंद आ रहा था.. पर इस मुई शरम को कहाँ छ्चोड़ कर आती...

"ओहो.. कितने प्यार से मुझे मेरे अरमानो का कतल करने को कह रही हो.. खुद मुझे नींद से जगाया और अब सोने को बोल रही हो.. उस दिन भी तुमने यही किया था.. मैं तुम्हे छ्चोड़ने वाला नही हूँ.. समझ लो.." राज ने प्रिया की जांघों पर रखा उसका बयान हाथ दबोच लिया.. वहीं.. जांघों पर राज की उंगलियों के जादू से उसके सारे शरीर में अजीब सी थिरकन शुरू हो गयी.. उसके मन में आया की राज का हाथ वहाँ से हटा दे.. पर अपने बेकाबू हो रहे दिल का क्या करती... सो उसने बाहर कोई हुलचल नही होने दी.. पर अंदर से वो मचल उठी..

"किस दिन..!" प्रिया ने राज की और चेहरा घुमा लिया.. वह अपने शरीर में हो रही गुदगुदी को मुस्कुराहट में तब्दील होने से रोकने की कोशिश कर रही थी.. पर रोक ना सकी..

"उसी दिन जब तुमने पत्थर फैंककर खुद मुझे घर बुलाया और हाथ लगाने पर नखरे करने लगी.. झूठ बोल कर भाग गयी कि मैं रिया हूँ.. अगर पहचान लेता तो उस दिन तुम्हे छ्चोड़ता नही मैं..." राज ने उसके हाथ को हल्का सा और दबा दिया...

"वो.. मैं डर गयी थी.. कहीं कोई आ ना जाए.." प्रिया ने सकुचते हुए अपना हाथ अंदर की तरफ खींचा.. पर राज का हाथ उसके साथ ही चला गया.. और गजब हो गया..

राज का हाथ अब दोनो जांघों के उपर रखा था.. बीचों बीच.. प्रिया को झुरजुरी सी आ गयी, जब उसकी 'चिड़िया' को अपने 'राज' के हाथ के इतना करीब रखा होने का अहसास हुआ..

राज उसके मन की उथल पुथल को महसूस करने लगा था.. उसके काँपते हुए हाथ की वजह से.. थोड़ी झिझक हुई.. पर अभी नही तो कभी नही के अंदाज में उसने उसका हाथ वहीं मजबूती से दबोच लिया..," पर अब किस बात का डर है.. अब तो मुझे मनमानी करने दो.."

प्रिया की साँसें उपर नीचे होने लगी.. उसको अपनी छातियो का वजन और बढ़ता हुआ महसूस हुआ और मन हल्का होने को बेचैन हो गया...," अयाया.. छ्चोड़ दो ना प्ल्स.. मेरा हाथ छ्चोड़ दो..!" प्रिया ने आनमने ढंग से बात कही...

" ना ना.. आज नही छ्ोड़ूँगा.. अपनी शर्त मनवाए बिना.." राज प्रिया के हाथ को वहीं दबोचे हुए था...

"क्कैसी शर्त..." प्रिया के होंठ इस बार खुलते ही काँपने लगे.. उसको नीचे लगातार तापमान बढ़ते हुए होने का अहसास हो रहा था.. जांघों के बीच गर्मी बढ़ती जा रही थी.. उसको अहसास हो रहा था जैसे उसका पेशाब निकालने वाला हो.. दूसरी तरह का..

"वही.. मुझे यहाँ किस करो और अपना हाथ च्छुड़वा लो.." राज ने फिर से अपने होंठो पर उंगली रख दी..

"नआई.. उहह.. मुंम्मय्ययी मर गयी" इश्स बार प्रिया को 440 वॉल्ट का करेंट लगा हो जैसे.. उसने अपना हाथ झटके के साथ च्छुदाने की कोशिश की थी.. कोशिश में तो वो कामयाब हो गयी.. पर प्रत्युत्तर में राज ने जैसे ही अपना दबाव डाला.. उसका हाथ प्रिया की जांघों के बीच घुस गया.. और प्रिया आनंद से दोहरी होकर छट-पटाने सी लगी.. पर बहुत धीरे..

"क्या हुआ?" राज ने घबराकर पूचछा..

"हाथ..!" प्रिया अधमरी सी फुसफुसाई..

"क्या हुआ.. कोहनी लग गयी क्या? राज अब भी समझ ना पाया..

"अपना हाथ.." कहकर प्रिया ने राज का हाथ खींच कर बाहर निकाला..," ये.."

"श.. सॉरी.. मैं समझा की..." कहकर राज झेंप गया.. इतनी आगे बढ़ने की तो वा सपने में भी नही सोच सकता था.. कम से कम अभी तो नही...

पर प्रिया को पहली बार आज महसूस हुआ था कि लड़की का वो अंग इश्स तरह के स्पर्श के प्रति कितना स्वेन्डनशील होता है.. राज की उंगलियों के वहाँ से जुदा होते ही 'वहाँ' अजीब सी छट-पटाहट सी शुरू हो गयी.. प्रिया को अंजाने में ही अपने आप पर बहुत गुस्सा आया.. और उसने इश्स इंतजार में अपना हाथ वापस अपनी जाँघ पर रख लिया कि राज उस हरकत को दोहराए.. पर पासा पलट गया था.. अब राज शर्मा रहा था की प्रिया उसके बारे में क्या सोचेगी..

"आ.. गुस्सा हो गये क्या?" मचलती हुई प्रिया ने खुद ही राज को टोक दिया..

"नही तो.. सॉरी.. मैने वो जानबूझ कर नही किया.." राज ने उस'से नज़रें मिलाते हुए कहा..

"चल ठीक है.. मैं तुम्हारी शर्त पूरी कर दूँगी.. पर मेरी भी एक शर्त है.." प्रिया को अब कुच्छ तो करना था.. अंदर के उस आधे अधूरे अहसास को पूरी तरह महसूस करने के लिए...

राज मन ही मन बाग बाग हो गया.. पर उपर से उसने ज़्यादा उत्साह नही दिखाया,"क्या?"

"मैं तुम्हे वहाँ किस कर दूँगी अगर मैं तुमसे 5 मिनिट तक अपना हाथ फिर से ना छुड़ा पायी तो.." प्रिया ने शरारत से आँखें मतकते हुए कहा और मुस्कुराने लगी..

उसके चेहरे की हँसी देख कर फिर से राज पुराने मूड में वापस आ गया.. ठीक है.. चाहे 10 मिनिट की शर्त लगा लो.."

"देख लो.. अगर हार गये तो फिर कभी भूल कर भी ऐसी शर्त मत लगाना.." प्रिया ने खुलेआम चलेंज कर दिया...

"ओके!" कहते हुए राज ने बिना देर किए उसका हाथ फिर से पकड़ लिया.. वहीं.. जाँघ के उपर ही.. प्रिया एक बार फिर उस 'आनंद' को पाने के लिए मचल उठी...

प्रिया ने एक दो बार सीधा उपर उठाकर हाथ च्छुदाने का नाटक किया.. पर भला राज कहाँ छ्चोड़ने वाला था.. धीरे धीरे प्रिया का हाथ उसकी दूसरी जाँघ की और बढ़ने लगा.. राज चाहता तो उसका हाथ वापस खींच सकता था.. पर उसने भी ऐसा किया नही.. बहती गंगा में हाथ कौन नही धो लेना चाहेगा..

हाथ फिर से जांघों के बीचों बीच आ गया.. प्रिया धीरे धीरे जांघों को खोलने लगी ताकि राज के हाथ को वो मंज़िल तक पहुँचा सके..

अपना हाथ नीचे जाता देख राज सकपका गया.. "कहीं फिर से" और उसकी पकड़ धीरे धीरे ढीली होने लगी...

"देख लो.. अगर छूट गया तो कभी मुझसे इश्स बारे में बात मत करना.." प्रिया ने उसकी आँखों में आँखें डालते हुए कहा.. फिर क्या था.. राज को तो खुला निमंत्रण मिल गया..

जॉर्जाबरदस्ती के इश्स प्यार भरे खेल में दोनो के चेहरे आमने सामने थे.. आँखें भी आमने सामने और होन्ट भी.. दोनो की साँसे तेज होती जा रही थी और दोनो एक दूसरे की साँसों में वासनात्मक गर्मी को महसूस कर सकते थे... राज को अहसास हुआ की प्रिया उस'से हाथ छुड़ाने की बजे उसका हाथ खींचने पर आमादा है.. अंधे को और चाहिए क्या? राज ने भी हाथ को उपर खींचना छ्चोड़कर उसके हवाले कर दिया.. पकड़े हुए..

जैसे ही प्रिया को राज का स्पर्श अपनी तितली के लाल दाने पर महसूस हुआ वो पागला सी गयी.. शर्त को अब दोनो भूल चुके थे.. दोनो जीत गये थे.. और दोनो ही हार गये थे.. सिसकती हुई प्रिया ने 2 इंच चेहरा आगे किया और तितली के होंठो के साथ ही चेहरे के होंठो को भी अद्भुत रास्पान हेतु खोल दिया..

राज को उसका निमंत्रण समझने में देर ना लगी.. प्रिया की आँखें बंद थी और वा अपनी कामुक हो चली आवाज़ पर काबू पाने की कोशिश में अंदर ही अंदर सिसक रही थी... राज ने अपने होंठो को आगे करके प्रिया की सिसकियाँ बंद कर दी.. और दोनो पहली बार यौवन के रस-सागर में गोते लगाने लगे...

राज का दूसरा हाथ.. बिना किसी से पूच्छे, बिना किसी को बताए प्रिया के उरजों तक पहुँच गया.. प्रिया के पास ऐतराज जताने का वक़्त ही कहाँ था.. वा तो पागल सी होकर राज के हाथ को रास्ता दिखाने में जुटी थी.. और अब उसकी एक उंगली से अपनी चिड़िया के साथ 'उपर-नीचे, उपर नीचे' खेल रही थी...

राज को लग रहा था की उसकी पॅंट का कल्याण होने वाला है.. पर जो होगा देखा जाएगा के अंदाज में वा उसके उरजों, उसके होंठो और उसकी नाज़ुक और अब तक बिल्कुल 'नादान' तितली को मसालने में लगा रहा.. उपर से ही.. अब वह 'अपने' को बाहर कैसे निकालता.. इतना करते हुए तो उसको भी शरम ही आ रही थी.. ये काम तो खुद प्रिया को करना चाहुए था, जिसको दरअसल पता भी नही था की 'इस' काम का सही हक़दार असल में वही है.. और ओरिजिनल भी...

आख़िर आते आते तो प्रिया भूल ही गयी थी की वो है कहाँ.. जब स्खलन शुरू हुआ तो वह सब कुच्छ भूल कर राज की छाती से चिपक गयी.. और लंबी लंबी साँसे लेने लगी.....

हम सच में पहुँच गये क्या?" आँखें मसालती हुई वाणी बस से उतरते हुए बोली.. राज और प्रिया की गुटरगूं चुपके चुपके देखने के बाद वाणी घंटे भर सो नही पाई थी... हालाँकि मनु और उसमें फिर से 'वैसा' कुच्छ करने की हिम्मत नही हुई.. पकड़े जाने के डर से.. बाकी का सफ़र एक दूसरे के हाथों में हाथ डाले हुए ही बीता.. जब तक वाणी नींद के आगोश में आकर मनु के पहलू में लुढ़क नही गयी.....

नीचे उतरने के बाद अंजलि बड़ी हसरातों से शमशेर की और देख रही थी.. पर शमशेर ने उस'पर ध्यान ही नही दिया...

"यही ठीक रहेगा.. नही..?" शमशेर ने विकी से मशविरा किया.... वासू भी उनके साथ ही खड़ा था...

अलका होटेल के बाहर लगे पीले रंग के बोर्ड पर सरसरी नज़र डाल विकी ने चारों और का मुआयना किया..," हां भाई.. यहाँ से लेक व्यू भी मस्त है.. चलो.. बात करते हैं..."

"हूंम्म.. चलो.. हम अभी आते हैं.." शमशेर ने कहा और वो दोनो होटेल के अंदर चले गये...

रिसेप्षन पर करीब 50-55 साल का बुड्ढ़ा बैठा अख़बार की खाक छान रहा था.. जैसे ही विकी और शमशेर काउंटर पर पहुँचे अपने चेहरे को नीचे किए हुए ही उसने चस्में के उपर से उन्हे घूरा.. पर बोला कुच्छ नही...

"रूम्स हैं क्या?" शमशेर काउंटर पर कोहनी टीका कर खड़ा हो गया...

"और मेरे पास है ही क्या?" बुड्ढे ने बेरूख़ा सा जवाब दिया..

"क्यूँ? बाकी सब कुच्छ बिक गया क्या?" विकी ने मसखरी की....

" जाओ.. रूम भी बेच दिए मैने.. मेरे पास कुच्छ नही है.. बड़े आए.." खिसियया हुआ बुड्ढ़ा बिफर पड़ा...

"नाराज़ क्यूँ होता हो अंकल.. इसने सिर्फ़ मज़ाक किया था.." शमशेर ने हाथ नीचे करके विकी को कोहनी मारी... "हम करीब 22 -22 लोग हैं..."

"कितने कमरे चाहियें..?" बुड्ढे ने ड्रॉयर से रिजिस्टर निकाल कर उनके सामने पटक दिया.. रेजिस्टर के पटक'ने से उठने वाली धूल होटेल की पॉप्युलॅरिटी का माजेरा कर रही थी...

शमशेर ने हिसाब लगाना शुरू किया.. वो खुद और दिशा; तू और स्नेहा; अंजलि और गौरी; वासू; वीरू और राज; रोहन और मानव; रोहित ; मनु और अमित; रिया और प्रिया; आरज़ू और सोनिया; शालिनी; सरिता; वाणी और मानसी; ड्राइवर... बस यही हैं ना?" शमशेर ने विकी से पूचछा....

"हाँ.. यही होंगे.. पर अड्जस्टमेंट कैसे करनी है?" विकी ने याद सा करने के बाद कहा...

"बाकी तो हो गयी.. वासू के लिए भी अलग कमरा ले लेंगे.. पर रोहित, शालिनी, सरिता, और ड्राइवर... इनका कैसे करें...?" शमशेर ने पूचछा...

"रोहित और शालिनी की पुरानी सेट्टिंग है.. टफ भाई ने जिकर किया था की इनका टूर पर ध्यान रखना... इनको अलग करके क्यूँ मार रहे हो शर्दि में.. बाकी उनसे पूच्छ लो. ... सरिता तो कहीं भी फिट होने वाली गोटी है.. ड्राइवर के पास ही छ्चोड़ दो..." विकी ने धीरे से कहा.. और हँसने लगा...

"पागल है क्या..? हमें उनको भी अलग अलग रूम देना पड़ेगा... कम से कम ड्राइवर को तो किसी के साथ रख ही नही सकते... सरिता को किन्ही दो लड़कियों के साथ अड्जस्ट करना पड़ेगा... अरे हां.. नेहा भी तो है..." शमशेर को अचानक याद आया..," और दिव्या भी है यार.. इन तीनो को इकट्ठा कर देते हैं.. एक रूम में.."

विकी ने कोई जवाब नही दिया तो शमशेर मॅनेजर से मुखातिब हुआ..," 13 कमरे खाली होंगे क्या?"

"मेरे पास 14 कमरे हैं.. मेरे वाले कमरे समेत.. पर उनमें से एक कमरा छ्होटा है.. उसमें सिर्फ़ एक ही रह सकता है.. कहो तो दिखाऊ?"... बुड्ढे मॅनेजर ने तपाक से कहा और फिर अख़बार पढ़ने में लग गया...

"तो क्या पूरा होटेल खाली पड़ा है?" विकी ने आसचर्या से कहा...

"तुम्हे कमरे चाहियें या हौसेफुल्ल का बोर्ड देखने आए हो..." बुड्ढे का यही व्यवहार शायद उस होटेल पर पहले कभी हाउस फुल का बोर्ड लगवा नही पाया था..

विकी के एक बार कुच्छ मन में आया पर उसकी उमर को देखकर वो चुप ही रह गया..

शमशेर ने तुरंत अड्वान्स निकल कर उसको पकड़ा दिया... ठीक है.. 13 के 13 कमरे हमें दे दो..."

फॉरमॅलिटीस पूरी करने के बाद वो दोनो बाहर निकल आए..

"भाई, रूम देख तो लेते एक बार...?" विकी ने कहा...

"रूम देखे हुए हैं मेरे.. अच्छे हैं.. और फिर इस सीज़न में बगैर अड्वान्स बुकिंग के इतने कमरे और कहीं नही मिलेंगे.. हमें पहले सोचना चाहिए था..." कहते हुए शमशेर विकी के साथ बस के पास पहुँच गया...

"हो गया?" अंजलि ने आगे बढ़कर शमशेर से पूचछा... विकी सीधा स्नेहा के पास चला गया...

"हां.. तुम्हे गौरी के साथ एक कमरे में दिक्कत तो नही होगी ना...?"

अंजलि ने शमशेर की आँखों में आँखें डालते हुए कहा," काश.. मैं तुम्हारे साथ रूम शे-अर कर पाती.. सिर्फ़ एक रात!"

शमशेर ने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया और रोहित को अपने पास बुलाया..

"जी.. भाई साहब!" रोहित ने आते ही उसको बुलाने का कारण पूचछा....

शमशेर ने उसके गले में हाथ डाला और एक तरफ ले गया," तुम्हारी शालिनी.. मतलब तुम दोनो आपस में प्यार करते हो क्या?"

रोहित के चेहरे पर सवाल सुनते ही आने वाली चमक ने शमशेर को उसके बोलने से पहले ही जवाब दे दिया," हां!"

"तो तुम दोनो कमरा शेर कर सकते हो.. है ना?" शमशेर ने आगे बढ़ते हुए पूचछा...

रोहित से कुच्छ कहते ना बना गया.. उसकी धड़कने ये सब सोचकर ही तेज होने लगी.. फिर कुच्छ देर बाद उसने बोला," ज्जई.. आप उन्ही से पूच्छ लीजिए..."

"क्यूँ? उसको भरोसा नही है क्या? शमशेर ने उसके चेहरे को गौर से देखते हुए पूचछा...

रोहित कुच्छ बोला नही.. बस पुरानी यादों की हल्की सी महक उसके सीने में दौड़ गयी...

"दिशा!" शमशेर ने वहीं खड़े खड़े दिशा को आवाज़ दी... और फिर रोहित से कहा," ठीक है भाई.. मैं दिशा से कहकर उसकी राई जान लेता हूँ... फिर देखते हैं.. " कहकर उसने रोहित को वापस भेज दिया...

"हां! क्या है?" दिशा ने शमशेर के पास आते ही उसकी जॅकेट का उपर वाला बटन बंद किया," ठंड लग जाएगी आपको.. इसको बंद रखा करो..."

बहुत दीनो से उन्होने साथ पल गुज़रे नही थे.. इसीलिए दिशा के हाथ लगने मात्रा से ही शमशेर के बदन में सिहरन सी दौड़ गयी.. पर अब इंतजार ज़्यादा नही था..

"वो.. वो लड़की है ना शालिनी.. उस'से पूच्छो ना अगर रोहित के साथ रूम शेर कर सके...?"

दिशा ने जैसे उसकी बात पर ध्यान ही नही दिया," अभी अंदर तो चलो.. वहाँ चलकर भी पूच्छ सकते हैं.. मुझे बड़ी थकान हो रही है..."

"चलो.." शमशेर ने कहा और उसके कंधे पर हाथ डाल कर अपने शरीर से ज़बरदस्ती चिपककर बच्चों की और बढ़ गया.. ज़बरदस्ती इसीलिए की दिशा शरम के कारण उस'से दूर हटने की कोशिश कर रही थी.. उसके साथ पढ़ने वाली स्कूल की लड़कियाँ और अंजलि मेडम तक उन्हे घूर घूर कर देख रही थी.. पर शमशेर पर उसका कोई असर नही पड़ा....

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Re: गर्ल'स स्कूल

Post by rajaarkey »

गर्ल्स स्कूल पार्ट --58

हेल्लो दोस्तों मैं यानिआप्का दोस्त राज शर्मा पार्ट 58 लेकर हाजिर हूँ अब आप कहानी का मजा लीजिये

सभी अपना अपना समान कारों में डाल कर 4-5 के ग्रूप्स में कमरों में बैठे थे.. दिशा शालिनी को लेकर बाहर चली गयी..

"एक बात पूचु शालिनी दी.. बुरा मत मान'ना.." दिशा ने हिचकते हुए कहा..

"कमाल करती हो.. पूच्छो ना!" शालिनी ने खुश होकर उसकी ओर देखा...

"आप... रोहित से प्यार करती हैं क्या?" दिशा ने उसकी आँखों में आँखें डाल कर पूचछा...

"तुमसे किसने कहा..?" शालिनी उसकी बात पर अवाक रह गयी..

"वो.. सीमा ने बताया था.. बताइए ना.. सच है क्या?" दिशा ने टटोलने की कोशिश की...

"हुम्म" शालिनी ने कहते हुए शर्मकार नज़रें चुरा ली...

"आप दोनो एक ही रूम में रह लोगे ना... वो... शमशेर पूच्छ रहे थे...."

"उनको भी पता है क्या?" शालिनी के चेहरे पर हवैइयाँ सी उड़ने लगी...

"तो क्या हुआ.. तुम चिंता मत करो.. बस बोलो आप रह लोगे ना?" दिशा ने मुस्कुरकर उसका हाथ पकड़ लिया...

"नही.. ये नही हो सकता.. मैं उसके साथ नही रहूंगी..." कुच्छ देर सोचने के बाद शालिनी ने स्पस्ट सा कह दिया...

"वैसे कोई प्राब्लम नही थी दीदी.. पर चलो.. मैं बता दूँगी उनको.. आओ!" कहकर दिशा शमशेर के पास जाने के लिए मूड गयी.... शालिनी वहीं खड़ी होकेर कुच्छ सोचते हुए उसको जाते देखती रही.. फिर अचानक बोली," दिशा! एक मिनिट!"

"हां दीदी!" दिशा उसके पास वापस आकर बोली....

"वो.. मैं कह रही थी की.. क्या रोहित से पूचछा था उन्होने?" शालिनी ने हिचकते हुए पूचछा...

"हां.. उसने ही तुमसे पूच्छने के लिए बोला था... इसीलिए पूच्छ रही थी...

"हुम्म.. पर ये कैसे हो सकता है.. कितना अजीब सा लगेगा हमें.. " चलते हुए शालिनी अचानक खड़ी हो गयी.. दिशा के कदम भी वहीं रुक गये...

"ठीक है दिशा.. अगर रूम्स की प्राब्लम है तो मैं रह लूँगी..." और कहते ही शालिनी वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गयी... उसने एक पल के लिए भी वहाँ रुकना ना चाहा.. उसने मुड़कर भी नही देखा...

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"मैं.. अकेला?" वासू ने रूम्स शे-अर करने वालों की लिस्ट देखी और उसके अरमानो पर जैसे पानी फिर गया.. पर रात वाली बात अब नही थी.. नशा अभी भी होता तो शायद वो बग़ावत कर देता, इस फरमान के खिलाफ...

शमशेर और विकी भी रात वाली बात भूल चुके थे.. और उन्हे अब भी वासू के इकरार-ए-इश्क़ का इल्म नही हो पाया," क्या करें वासू जी.. मैं शादी शुदा हूँ और विकी भी शादी करने ही वाला है स्नेहा से.. आपको सिंगल रूम देना हमारी मजबूरी है.. लड़कों के साथ रहना आपको शोभा नही देगा..."

"हूंम्म.. चलो.. अकेला ही सही.. घूमने तो साथ ही चलोगे ना.. या वहाँ भी अकेला ही भेजोगे मुझे..." खिसियाए वासू ने परोक्ष व्यंग्य किया...

"कमाल करते हैं वासू जी आप भी.. सबको इकट्ठा होने को बोलो.. चलने की तैयारी करते हैं बस! आज थोड़ा बहुत घूम कर ही आएँगे.... फिर थकान उतारेंगे सफ़र की..." विकी ने मुस्कुराते हुए उसकी और हाथ बढ़ा दिया...

वासू के दिल पर क्या बीत रही थी.. ये तो वही जाने.. पर वा उठा और बिना कुच्छ बोले बाहर निकल गया......

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"वाणी को अपने साथ ही रख लें...?" स्नान करने के बाद यूँही बाहर आकर ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी होकर अपना बदन पौंच्छने लगी दिशा ने बेड पर लेते शमशेर से पूचछा...

शमशेर इस कातिल बदन की मल्लिका को अपने सामने यूँ बिना कपड़ों के देखते ही सिसक उठा.. बिना देर किए वह अगले ही पल दिशा को पिछे से अपने आगोश में भरे हुए था," क्यूँ? यही कह दो ना की यहाँ से मुझे जिंदा वापस नही जाना.." शमशेर ने अपने हाथों में दिशा के उन्नत उरजों को समेट-ते हुए उसको अपने और करीब खींच किया... दिशा को शमशेर की बेकरारी अपने नितंबों के बीच बड़े ही ठोस अंदाज में महसूस हो रही थी, खिलखिलती हुई वह बोली," ऐसा क्या कह दिया मैने?"

"जैसे तुम्हे तो कुच्छ पता ही नही..." कहते हुए शमशेर ने दिशा को अपनी और घुमा लिया और होंठो से सुधारस का पान करने लगा.. कुच्छ पल के लिए तो दिशा भी कमतूर होकर उसमें सामने की कोशिश की करने लगी.. पर जल्द ही संभालते हुए उसने शमशेर को अपने तन-सुख से वंचित सा कर दिया..," आप भी ना.. कभी तो समय देख लिया करो.. हटो भी.. तैयार होने दो.. मैं तो यूँही मज़ाक कर रही थी.. वो तो मानसी के पास रहेगी ना..." दिशा अपने गीले बालों को झटक कर उनमें कंघी करने लगी....

"ओह तेरी.. हम नीरू को गिन'ना तो भूल ही गये.. अब उसको कहाँ अड्जस्ट करेंगे..." शमशेर ने अचानक याद करते हुए अपने माथे पर हाथ मारा...

"कुच्छ नही होता.. तकरीबन सभी सहेलियाँ हैं आपस में.. अदल बदल कर रह लेंगी.. वैसे भी तो सोने के लिए ही तो अलग होना है बस.. वरना तो सबको साथ ही रहना है... तीन लड़कियाँ इन बेड्स पर आराम से सो सकती हैं.. अब मुझे तंग करना बंद करो और बच्चों को समझा दो.. साथ ही रहना है बाहर जाकर.." दिशा पहन'ने के लिए बॅग में से अपनी ड्रेस निकलती हुई बोली...

"कब तक बचोगी मेरे कहर से..."रात को देखूँगा तुम्हे.. " और मुस्कुराता हुआ शमशेर उसके गालों का चुंबन लेकर बाहर निकल गया....

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"मैं यहीं रहूँगा सिर.. वीरेंदर के पास ही.. वैसे भी मुझे नींद आ रही है.." सब इकट्ठे हुए तो राज ने अपने चलने में असमर्थता जाता दी...

"कोई बात नही.. आज वैसे भी आसपास तक ही घूम कर आएँगे.. अगर किसी और को भी आराम करना हो तो वा यहाँ रह सकता है..." शमशेर ने बच्चों से कहा...

हाथ उपर करने वालों में सबसे पहला नंबर. प्रिया का था.. राज के बिना वो भी क्या करती बाहर जाकर... धीरे धीरे रिया ने भी अपना हाथ उठा दिया... वाणी और मनु की नज़रें मिली और गजब हो गया...

"हम भी नही जा रहे!" दोनो ने एकसाथ बोला.. सभी ने उनकी और चौंक कर देखा.. एक साथ बोलना तो समझ में आता था.. पर 'हम'.. सबको ऐसा ही लगा जैसे उन्होने पहले ही प्लॅनिंग कर ली हो...

शमशेर ने नज़र भरकर दोनो की और गौर से देखा और फिर अपना ध्यान उनपर से हटने का दिखावा करने लगा....," ठीक है.. जिसको नही चलना वो अपने कमरों में जाओ.. मैं बाकी से बात कर लूँ...."

प्रिया, रिया और राज अपने अपने कमरों में चले गये...

"आ चल ना.. क्या करेगी यहाँ.. घूम कर आते हैं.. थोड़ी देर की ही तो बात है..." कुच्छ कुच्छ रात को ही समझ चुकी मान'सी अब तो सब कुच्छ ही जान गयी थी...

"नही.. मुझे नींद आ रही है.. आज तो जी भरकर सो-उंगी.. ठंडी में कितनी मीठी नींद आएगी.. तू जा..." वाणी ने झेन्प्ते हुए कहा और गर्दन नीची करके अपने कमरे की और निकल गयी...

बेचारे मनु ने भी खिसक लेने में ही अपनी भलाई समझी.. अमित ने भी एक पल रुकने की सोची.. पर वो गौरी के रुकने का एलान करने का इंतजार ही करता रह गया..

होटेल में अब 6 बच्चे ही रह गये थे.. वीरू, राज, मनु, रिया प्रिया और वाणी.. वाणी और मनु अपने अपने कमरों में अकेले लेते थे जबकि प्रिया, रिया के साथ और राज वीरू के साथ था... रात की खुमारी अब तक प्रिया के बदन से उतरी नही थी.. और कुच्छ मस्ती करने के लिए नही मिला तो प्रिया ने रिया को ही छेड़ना शुरू कर दिया," रिया.. रात भर वीरू के साथ बैठ कर आई हो.. तुम्हे छेड़ा तो नही ना उसने?"

"चल हट.. तू बड़ी बेशरम हो गयी है आजकल.. राज को समझना पड़ेगा.. उसी का असर लगता है ये..." रिया ने शरारत भारी आवाज़ में कहा...

"इसमें बेशर्म होने की क्या बात है? तुझसे ही तो पूच्छ रही हूँ.. वैसे खाना खाते हुए तुम दोनो बड़े प्यारे लग रहे थे.. सच में..." प्रिया ने उसको उकसाते हुए बोला...

"हुंग.. बेकार में खाना खिलाया मोटू को.. खाना खाते ही सो गया.. बात तक नही की..." कहते हुए रिया अपने चेहरे पर प्यार भरा गुस्सा ले आई...

"क्यूँ? ऐसी क्या बात करनी थी तुझको..?" प्रिया ने प्यार से उसके गाल पकड़ कर खींच दिए..," एक ही दिन में सब कुच्छ थोड़े ही हो जाता है... पहले तो छेड़ छाड़ ही होती है..."

"कुच्छ होने की बात मैं कब कर रही हूँ.... आ.. आज तो तू बड़ी वैसी बातें कर रही है...तू भी तो रात भर राज के साथ ही थी.. तुम्हारा कुच्छ हो गया क्या?" रिया ने उल्टा उसको ही निशाने पर ले लिया....

"नही... और हुआ होगा भी तो मैं तुझे क्यूँ बताउ?" प्रिया की इश्स बात ने रिया के कान खड़े कर दिए...

"मुझे नही बताएगी तो किसको बताएगी.. चल.. बता ना... कुच्छ हुआ क्या?" रिया उत्सुकता से उसके सामने बैठ गयी...

"तू किसी को बोलेगी तो नही ना.." प्रिया ने चहकते हुए उसको कहा...

कुच्छ ना कुच्छ होने का इशारा मिलते ही रिया की आँखें चमक उठी..," मैं पागल हूँ क्या? मैं क्यूँ बताउन्गि किसी को.. एक मिनिट रुक.. मैं दरवाजा बंद कर दूं.." रिया झटके के साथ उठी और लपक कर दरवाजे की चितखनी लगा दी... और वापस आकर गोद में तकिया रख कर प्रिया के सामने बैठ गयी," चल बता!"

"ऐसा कुच्छ खास नही है पागल... तू तो ऐसे ही उच्छल रही है.." प्रिया ने अपनी ज़ुबान पर काबू करने की कोशिश की...

"तुम्हे मेरी कसम प्रिया.. जो कुच्छ भी हुआ है.. सब सच्ची साची बताना...... बोल भी दे अब.. भाव क्यूँ खा रही है?" रिया पूरी बात जान'ने के लिए मचल उठी..

"देख ले.. तुझ पर भरोसा है.. इसीलिए बता रही हूँ.." प्रिया को बताने में हिचक हो रही थी....

"बोल ना.. अब इधर उधर क्यूँ घुमा रही है बात को..?" रिया सुन'ने के लिए अधीर होती जा रही थी....

"वो.. राज ने मुझे किस करने के लिए बोला था.." प्रिया ने शर्मा कर नज़रें झुका ली..

"ये ले.. इतनी छ्होटी सी बात के लिए इतने नखरे दिखा रही थी.." रिया को खोदा पहाड़ और निकली चुहियाँ वाली बात लगी...

"वहाँ पर.." प्रिया ने उसी अंदाज में अपने होंठो पर उंगली रख ली.. जिस अंदाज में राज ने अपने होंठो पर रखी थी....

"हाए राम! होंठो पर.." रिया उच्छल पड़ी..," फिर? तूने की..?"

"क्या?"

"लिपकिसस!" और क्या?" रिया ने तकिया उठाकर अपनी छतियो से चिपका लिया..

"तू सुन तो ले अब.. मैं मना करती रही.. और वो ज़िद पर अदा रहा.. जाने क्या क्या उलाहने देने लगा.. फिर अचानक उसने मेरा हाथ पकड़ लिया.. हाथ यहाँ रखा था.." प्रिया ने अपनी जाँघ पर हाथ रख कर उसको दिखाया...

"फिर?" रिया की ललक बढ़ती जा रही थी.. पूरी बात जान'ने की..

"फिर क्या? मैने अपना हाथ खींचा तो बेशर्म साथ ही अपना हाथ भी खिसका लाया.. यहाँ.. मेरी तो जान ही निकल गयी होती..." प्रिया ने उस पल को याद किया और मचल सी उठी...

"फिर क्या हुआ.. बताती रह ना.. चुप क्यूँ हो गयी...?"

"फिर उसने मेरे हाथ को यहीं दबा लिया.. मेरी साँसे रुकने को हो गयी.. जैसे ही मैने अपना हाथ छुड़ाया.. उसका हाथ मेरी जांघों के बीच घुस गया.."

"हाए राम.. तुझे तो बड़ी शरम आई होगी.. फिर क्या हुआ?" रिया ने उसको बीच में ही रोक कर अपनी प्रतिक्रिया दी...

"शरम की तो पूच्छ मत... पर उसने तभी हाथ निकल लिया.. सॉरी बोलकर...!" प्रिया की हालत बात कहने के हिसाब से बनती बिगड़ती जा रही थी...

"रिया को लगा किसी ने उसके 'वहाँ' से हाथ निकल लिया हो.. प्रिया की हर बात का असर वो अपने शरीर पर होता महसूस कर रही थी.. राज के हाथ निकालने की बात सुनते ही उसने छातियो पर दबा रखा तकिया अपनी गोद में रखा और अपना हाथ 'वहीं फँसा कर प्रिया को आए मज़े को महसूस करने की कोशिश करने लगी...," फिर कुच्छ नही हुआ?"

"हुआ ना!" यहाँ से प्रिया ने कहानी थोड़ी बदल दी.. अब वा रिया को यह कैसे बताती की वह खुद ही राज का हाथ अपनी चिड़िया तक ले जाने को मचल उठी थी...," राज थोड़ी देर बाद फिर से लिपकिसस की ज़िद करने लगा.. मैने सोचा, कर देती हून.. नही तो ये पीचछा छ्चोड़ने वाला नही है..."

"फिर.. कर दी तूने...?" रिया का चेहरा भी लाल होता जा रहा था...

"तू सुनती रह.. बीच में मत बोल... मैने अपने होन्ट बंद करके उसके होंठो को बस एक बार टच करने के लिए ही गयी थी की उसने मुझे वहीं दबोच लिया.. ज़बरदस्ती मेरे उपर वाले होन्ट को अपने होंठो में दबा लिया.. और अपने आप ही उसका नीचे वाला होन्ट.. मेरे होंठो में आ गया.. मैं पागल सी हो गयी.. बता नही सकती की कैसा लग रहा था.."

"अच्च्छा तो लग रहा होगा ना..?" रिया अपनी चिड़िया को उंगली से कुरेदने लगी थी...

"बता तो रही हूँ मैं पागल सी हो गयी थी.. इतना मज़ा आया था की मैं बता ही नही सकती... अचानक वो अपने हाथ को धीरे धीरे मेरी जांघों के उपर से सहलाते हुए फिर से अंदर ले गया.. जाने क्या जादू था.. उसके हाथ में.. मैं उसको रोक ही नही पाई... मेरा तो दिल, दिमाग़, आँखें सब कुच्छ काम करना छ्चोड़ गया था... उसकी उंगलियाँ उपर से ही 'उसके' उपर चलने लगी... मैं उसको एक बार भी रोक नही पाई... अचानक मैं अंदर तक काँप गयी और पूरे शरीर में झुरजुरी सी आ गयी... मुझे लगा की अगर उसकी छाती से नही लिपटी तो मैं मर जाउन्गि.. और फिर मैने उसको और उसने मुझको कसकर भींच लिया... अब भी याद करती हूँ तो मेरा रोम रोम सिसक उठता है..." प्रिया ने अपना राज 'रिया' के सामने खोल कर अपनी बात को विराम दिया...

रिया काफ़ी देर तक चुपचाप बैठी हुई पता नही किन ख़यालों में खोई रही.. फिर अचानक बोली," मज़ा तो उसको भी आया होगा.. नही?"

"और नही तो क्या? शुरुआत तो उसी ने की थी..." प्रिया ने कहा...

"नही.. मेरा मतलब है की अगर कोई लड़की किसी के साथ ऐसा करने लग जाए तो उसको गुस्सा तो नही आएगा ना... मज़ा तो सभी को आता होगा..." रिया के दिमाग़ में कुच्छ चल रहा था...

" हां.. मज़ा तो सबको ही आता होगा.. भगवान ने सभी को एक जैसा बनाया होगा..."

"प्रिया..!"

"हूंम्म.." प्रिया बात पूरी करके आँखें बंद करके बिस्तेर पर लेट गयी थी...

"अगर तू चाहे तो राज को बेशक यहाँ बुला ले.. मैं बाहर चली जाउन्गि...!" रिया ने प्रिया के सामने एक प्रपोज़ल रखा...

"मैं क्या करूँगी.. उसको बुलाकर...!" हालाँकि उस वक़्त आँखें बंद किए प्रिया यही दुआ कर रही थी की एक बार और उनका आमना सामना हो जाए.. अकेले में..! पर बेहन के सामने कैसे स्वीकरती...

"कुच्छ भी करना.. तुम बालिग हो.. एक दूसरे से प्यार भी करते हो.. बातें करना या कबड्डी खेलना.. कौन रोक रहा है..?" रिया हँसने लगी.. पर हँसी में मैलापन था.. वासना का... जो उसस्के सिर चढ़कर बोल रही थी...

"धात.. बेशर्म.. हां.. बातें करने को तो दिल कर रहा है.. पर उसको बुलाउ कैसे? वीरू अकेला रह जाएगा... है ना?" दोनो के मॅन तेज़ी से इस योजना को मूर्त रूप देने में जुट गये थे...

"एक काम हो सकता है..!" प्रिया ने अचानक कहा...

"क्या?"

"देख ले.. तुझे थोड़ी हिम्मत दिखानी पड़ेगी..."

"बोल ना.. क्या करूँ..?" रिया ने उत्सुकतावश पूछा...

"तू उनके कमरे में जाकर राज को कह दे.. की तुझे बाहर बुला रहे हैं.. मेरा नाम मत लेना..."

"फिर?"

"फिर क्या? बाहर में उसको अपने आप संभाल लूँगी... तू थोड़ी देर वीरू के पास बैठ जाना...!"

"ठीक है.. मैं जाती हूँ.." रिया और अब तक कहना ही क्या चाह रही थी.. बस शरम के मारे बात उसके मुँह से निकल ही नही रही थी... वह बिना देर किए उठी और राज और वीरू के कमरे की और चली गयी...

दरवाजा राज ने ही खोला.. रिया को देखते ही वो खिल उठा," प्रिया कहाँ है रिया?"

रिया ने दरवाजे से अंदर झाँकते हुए कहा..," ये मोटू क्या कर रहा है..?"

"सो रहा है.. क्यूँ?"

"बस ऐसे ही.. वो.. तुम्हे प्रिया बुला रही थी.. कुच्छ काम होगा.." रिया ने अंजान बनते हुए कहा...

"ठीक है.. मैं आता हूँ.. चलो!" राज ने कहा...

"वो.. तुमसे एक बात करनी थी..." रिया ने इधर उधर आँखों को नचाते हुए कहा...

"बोलो.. !"

"मुझे वीरू से कुच्छ बात करनी है.. मैं यहीं रह जाउ तब तक..."

"हां.. हां.. मुझे क्या दिक्कत है... पर जगाने से पहले सोच लेना इसको.. लेने के देने भी पड़ सकते हैं..." राज हंसते हुए बोला...

"वो मैं देख लूँगी.. तुम जाओ.. मैं यहीं रुकती हूं..." रिया अभी तक बाहर ही खड़ी थी...

"राज की भी बान्छे खिल गयी....," ठीक है.. मैं जा रहा हूँ.. पर क्या काम है उसको..?" राज अंजान बनते हुए बोला...

"मुझसे क्यूँ पूच्छ रहे हो.. जाते ही अपने आप ही ना बता देगी..." रिया शरारत से मुस्कुराने लगी तो राज झेंप गया...

"नही.. मुझे लगा हो सकता है तुम्हे भी पता हो.." राज ने कहा और बाहर निकल गया...

राज के जाते ही रिया अंदर घुसी और दरवाजे को लॉक कर दिया... वीरू गरम कंबल में दूबका सो रहा था....

रिया करीब 15 मिनिट तक वीरू को जगाने की सोचती रही... उसके मॅन में खलबली मची हुई थी.. बस एक बार राज और प्रिया जैसा कुच्छ उनमें भी हो जाए.. उसके बाद तो वो उसको अपने आप काबू में कर लेगी.. पर शुरुआत कैसे करे.. यही बड़ा सवाल था...

कुर्सी पर बैठी हुई रिया काफ़ी देर तक वीरू को जगाने का बहाना सोचती रही.. अचानक उसके दिमाग़ में ख़याल आया.. जगाने की ज़रूरत ही क्या है.. जागेगा तो अपने आप जाग जाएगा.. आख़िर ठंड तो उसको भी लग रही है ना.....

सोचते हुए रिया ने खुद को हिम्मत सी दी और अपनी गरम जॅकेट निकाल कर अलमारी में च्छूपा दी..

वीरू बेड के बीचों बीच लेटा सो रहा था... रिया बिस्तेर पर चढ़ि और वीरू के पास बैठकर कंबल में पैर घुसा दिए... इतना भर करते ही उसकी धड़कने बढ़ गयी थी.. पर मंज़िल तो अभी बहुत दूर थी...

"वीरू!" रिया ने हुल्के से आवाज़ लगाई...

पर वीरू शायद गहरी नींद में था.. उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नही हुई...

"वीरू!" रिया ने इश्स बार थोड़ा तेज कहा तो वीरू ने नींद में ही अपनी करवट बदल ली... अब वीरू का चेहरा रिया की तरफ था.. वीरू ने घुटना मोड़ कर आगे रखा तो रिया का घुटना वीरू की जांघों के नीचे आ गया...

और रिया ने अपने आपको मुश्किल से उच्छलने से रोका.. उसके बदन में अचानक सरसराहट दौड़ गयी... वीरू की जांघें रिया के घुटनो को सीधा स्पर्श कर रही थी.. मतलब सॉफ था.. वीरू सिर्फ़ अंडरवेर में था...

इतना आभास होते ही रिया की हालत खराब हो गयी.. कुच्छ ही देर में उसको ये भी समझ आ गया की उसके घुटनो के पास महसूस हो रही जाँघ के अलावा 'दूसरी चीज़ क्या है.. और रिया पागल सी हो गयी.. वह इतनी हड़बड़ा गयी की यही निस्चय नही कर पा रही थी की अपनी टाँगों को वहाँ से निकले या नही... बड़ी मुश्किल से वह सामान्य हुई थी कि वीरू ने नींद में ही एक और गजब ढा दिया...

हुल्की सी हुंकार भरते हुए वीरू ने अपने हाथ को आगे लाते हुए रिया की जांघों से होता हुआ आगे रख दिया... नारी की जांघें तो नारी की ही होती है ना.. वीरू का अचेत मस्टिस्क भी उनका स्पर्श पाते ही झटका सा खा गया और उसने अपने मुँह से कंबल हटा कर देखा.. रिया को ऐसा लगा मानो चोरी करती पकड़ी गयी हो.. साँस उपेर की उपेर और नीचे की नीचे रह गयी उसकी.. आँखें फ़ाडे वीरू के चेहरे की और देखती रही.. वीरू भी लगभग उसको ऐसे ही देख रहा था.. उसने झट से अपना हाथ और अपनी जाँघ उस'से दूर की और पूचछा," तुम? तुम यहाँ कैसे? राज कहाँ है?"

कुच्छ पल तो रिया को कुच्छ सूझा ही नही.. फिर संभालते हुई सी बोली," ववो.. बाहर गया है.. किसी ने बुलाया था उसको..."

"पर तुम यहाँ क्या कर रही हो..?" हालाँकि वीरू का अंदाज अत्यंत नरम और सिर्फ़ हैरानी भरा था.. फिर भी रिया जवाब देते हुए अटक रही थी...," ववो.. मुझे सर्दी लग रही थी.. इसीलिए... पर मैने सिर्फ़ पैर अंदर किए थे... और कुच्छ नही किया.."

वीरू उसके अंदाज पर मुश्कुराए बिना ना रह सका.. दूसरी और रिया की जांघों की अद्भुत गर्माहट अब तक उसके हाथ को महसूस हो रही थी," अरे में ये नही पूच्छ रहा.. तुम कब आई.. मुझे जगा लेती..!"

वीरू की बात सुनकर रिया के कलेजे को अजीब सी ठंडक मिली...," मैने आवाज़ लगाई तो थी.. पर तुम जागे ही नही.. मैने सोचा.. सोने दूँ.. फिर यहाँ इसीलिए रह गयी की तुम्हे किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो उठना ना पड़े..."

"श.. थॅंक्स.. तुम बहुत अच्छि हो रिया.. सच में.." कहते हुए वीरू ने उसकी नाक पकड़ कर खींच ली...

"ऊओई.. और मैं तुम्हे छेड़ूँगी तो...?" रिया ने मचलते हुए कहा.. वीरू द्वारा उसको इस तरह तंग किया जाना एक मीठा सा अहसास दे गया....

"थोड़ा सा सो लूँ.. जोरों की नींद आ रही है.. फिर जी भर कर छेड़ लेना.." मुस्कुराते हुए वीरू ने कहा और फिर से कंबल में गोता खा गया... पर अब की बार रिया के लिए काफ़ी जगह छ्चोड़ता हुआ...

अब रिया से सब्र कहाँ होता...? रिया ने एक तरफ होते हुए वीरू के उपर से कंबल खींच लिया.. सारा का सारा.. वीरू सहम सा गया.. रिया के सामने उसको खाली अंडरवेर में पड़े होने पर शरम आ गयी और वो खिज सा उठा..," ये क्या कर रही हो.. कंबल दो मुझे.."

"नही देती.. नंगे!" वीरू के स्वाभाव में अभी भी नर्मी बनी रहने के कारण ही उसमें वीरू को नंगा कहने का साहस आ सका था...

"अच्च्छा.. मैं नंगा हूँ.. ! ठीक है.. रहने दो.. मेरा कंबल दो और भागो यहाँ से.." वीरू शर्मा सा गया था....हिचकिचाहट में उसने रिया के इर्द गिर्द लिपटा हुआ कंबल पकड़ कर ज़ोर से खींच लिया.. और कंबल में लिपटी रिया उसके साथ ही वीरू की छाती पर आ गिरी.. रिया की छातिया दबने से उसकी सिसकी निकल गयी.. एक पल के लिए तो वीरू का भी बुरा हाल हो गया.. पर उसने खुद को संभाल लिया," सॉरी रिया.. मैने जानबूझ कर ऐसा नही किया.. बस ऐसे ही.. सॉरी.."

वीरू सॉरी पर सॉरी बोलता जा रहा था और यहाँ रिया के मॅन में कुच्छ अलग ही तरह का पुलाव पक रहा था," पहले राज ने भी प्रिया को 'सॉरी' ही बोला था...

"क्या मतलब" वीरू ने पालती मारकर कंबल जांघों पर डाल लिया और बाकी रिया के पास ही रहने दिया...

"कुच्छ नही.. !" रिया के तन बदन में उथल पुथल मची हुई थी.. ," मुझे बुरा नही लगा.. बहुत अच्च्छा लगा.. तुम्हारी छाती से लिपट कर..." प्रिया के पास से पहले ही गरम होकर आई रिया ने बेबाक तरीके से ये बात कहकर वीरू को अचरज में डाल दिया," एक बार और लग जाने दो ना.. अपने सीने से!" रिया की आवाज़ में अजीब सी प्यास थी...

वीरू एकटक उसकी आँखों में देखता रहा.. वा भी निरंतर उसकी आँखों में देख रही थी.. जहाँ एक बरस से वो इस दिन के सपने देखती आ रही थी.. आज मिले मौके को शर्मकार गँवाना नही चाहती थी.. वैसे भी उसको यकीन था.. वीरू शायद ही कभी पहल करेगा....

"ऐसा क्या?" वीरू ने अपनी बात भी पूरी नही की और रिया को पकड़ कर अपनी बाहों में खींच लिया... कल रात से ही शायद वो भी तड़प ही रहा था..

वीरू के आगोश में इश्स तरह अचानक आ जाने पर रिया का पूरा बदन खिल सा गया.. या यूँ कहें की खुल सा गया.. वीरू के सीने से चिपकी उसकी छातियो में कसाव अचानक बढ़ने लगा.. नितंबों में और उनके आसपास अजीब सी थिरकन होने लगी.. पेट में गुदगुदी सी महसूस करती हुई रिया ने वीरू के कानो के पास होन्ट ले जाते हुए फुसफुसाया," आइ लव यू वीरू!"

इन्न शब्दों ने मानो वीरू के बढ़ते हॉंसलों को और पंख लगा दिए.. झट से वीरू ने उसका चेहरा अपने हाथों में दबोचा और उसके होंठो को इतने प्यारे शब्दो के उच्चारण के लिए धन्यवाद के रूप में अपने होंठो का तोहफा दे दिया.. वीरू तो वीरू, खुद रिया को आज पहली बार अहसास हुआ की वो कितनी गरम है.. उत्तेजना के आकाश में विचरण कर रही कामना की डोरे से बँधी रिया का वो रूप देखते ही बनता था.. झट से उसने अपनी टाँगों को वीरू की कमर के आसपास बाँधा और उसकी गोद में बैठ गयी... दोनो साँप के जोड़े की तरह एक दूसरे से लिपटे हुए एक दूसरे को चूस रहे थे.. वीरू का लिंग उत्तेजना में फंफनता हुआ सलवार के उपर से ही रिया को एक दम सही जगह पर चुभने लगा.. कसमसाती हुई रिया ने मदहोशी में ही उसके लिंग को अंडरवेर के उपर से ही दबोचा और उसकी दिशा बदल दी.. शायद चुभन उस'से सहन नही हो रही थी...

वीरू ने अपने दोनो हाथ रिया की कमर पर जमा दिए और होंठो से रास्पान करते हुए ही उसको अपने अंदर समाहित करने की कोशिश करने लगा... अचानक वही हुआ जो पहली बार लड़की को अक्सर बहुत जल्दी हो जाता है.. सिर्फ़ होंठो ने ही उसके सारे बदन की प्यास और तड़प ख़तम कर दी और योनि में से रस उगलते समय उसने वीरू को जितना हो सकता था.. सख्ती से पकड़ लिया...

कुच्छ देर तक अजीब ढंग से लंबी लंबी साँसे लेने के बाद जब वो सामान्य हुई तो वीरू की छाती को कसकर अपने सीने पर रगड़ती हुई बोली," मज़ा आया?"

"घंटा!" उत्तेजना की आग में झुलस चुके वीरू के मुँह से उस समय यही निकला..," अब रुकने के लिए मत बोलना.. वरना मुझसे सहन नही होगा...

"क्या?.. क्या करोगे अब..?" रिया ने तृप्त हो चुकी आँखों से वीरू को प्यार से देखते हुए पूचछा..

"बताता हूँ.. दरवाजा लॉक कर दो...!"

"वो तो मैने पहले ही कर दिया था..." रिया ने मुस्कुराते हुए कहा...

"अच्च्छा.. इसका मतलब प्लान बना कर आई थी..." वीरू ने कहते हुए उसकी बाहें पकड़ी और बिस्तेर पर नीचे सीधा गिरा लिया... वीरू की दीवानगी के वो पल देखकर रिया को खुद पर नाज़ होने लगा और वो खिल खिलाकर हँसने लगी...

पर इस समय वीरू का ध्यान सिर्फ़ उसके मादक मांसल बदन पर था.. एक ही झटके में उसने रिया का कमीज़ और समीज़ दोनो उपर उठा दिया.. संतरों के आकर की दूधियाँ रंग की रिया की छातियाँ पलक झपकते ही अनावृत हो गयी.. रिया को शरम आ रही थी, पर बड़ी मिन्नतों से मिले यार को उसने आज खुली छ्छूट दे दी थी.. खुलकर खेलने के लिए... जैसे ही वीरू ने रिया के गुलाबी किशमिश के आकर के दानों को अपने मुँह में लेकर दाँतों से हल्का सा काटा.. रिया भी अपने दाँत भीच कर सिसक उठी.. उसकी अधखुली आँखों के सामने वीरू रिया के यौवन को इश्स तरह पी रहा था मानो बरसों से इनका प्यासा हो.. और आज मिला ये मौका पहली और आख़िरी बार हो.. वीरू ने उसके अंग अंग को चूमते चाट'ते हुए कब सलवार घुटनो से नीचे सरका कर निकाल दी.. रिया को अहसास तक नही हो पाया... अहसास तब हुआ जब वीरू का अत्यंत ठोस और मोटा लिंग उसके योनिद्वार से टकराकर फुफ्कारा..

"नही.. ये मत करो प्ल्स...!" रिया गिड़गिडाई..," बहुत दर्द होगा..." कहकर रिया अपने नितंबों को इधर उधर हिलाने लगी....

"मैने पहले ही कहा था.. अब भगवान के लिए 2 मिनिट चुप हो जाओ.." मिन्नत सी करते हुए वीरू ने अचानक उसकी टाँगों को उपर उठाया और संभालने का मौका मिलने से पहले ही अपने लिंग का सूपड़ा उसकी चिकनी योनि मे 'फ़च्च्चाक' की आवाज़ के साथ उतार दिया..

रिया को एक पल तो ऐसा लगा कि आज वो गयी.. दर्द इतना ज़्यादा हुआ था की उसकी साँस उसके हलक में ही अटक गयी.. पर वीरू को रोकना अब नामुमकिन था.. रिया की गर्दन और छातियो को चूमते चाट'ते उसने जल्द ही रिया की तड़प को हुल्‍के हुल्‍के तेज होती जा रही सिसकियों में बदल दिया... इसके साथ ही वीरू ने धीरे धीरे करके अपने शरीर का सारा दबाव अपने लिंग पर डालना शुरू कर दिया और लिंग अब तक अपना मुँह थोड़ा और खोल चुकी उसकी 2 बार चिकनी हो चुकी योनि में उतरता चला गया.. आनंद की अनुभूति मिलते ही रिया ने वीरू को अपने सीने से चिपका कर अपने नितंब उपर उठाकर हिलाने शुरू कर दिए... अब तक रिया की सिसकियाँ सुन सुन कर वीरू का हौंसला बुलंदियों तक जा पहुँचा था.. और उसने धक्कों की गति बहुत तेज कर दी... अब रिया उसका पूरा सहयोग कर रही थी .. अचानक वीरेंदर को लगा की अब रुकना मुश्किल है तो उसने रिया की कमर में हाथ डाल कर और तेज़ी से धक्के लगाने शुरू कर दिए... करीब 10 मिनिट ही हुए होंगे की वीरू को अपने लिंग से रस तेज़ झटकों के साथ निकलते हुए रिया के गर्भस्या को सींचता हुआ महसूस हुआ... वीरया की फुहार से धन्य सी हो गयी योनि ने भी प्रत्युत्तर में ढेर सारा रस उगल दिया... दोनो हाँफने लगे थे.. प्यार के इश्स खेल में मशगूल वीरू को अब जाकर अपने दर्द का अहसास हुआ और अपनी टाँग को सीधा करते हुए वो एक तरफ लुढ़क गया.... पर रिया को शायद अब एक पल की भी दूरी मंजूर नही थी.. वह तुरंत पलट कर उसकी छाती पर अपनी छातिया टीका कर लेट गयी.. और आँखें बंद कर ली.... वीरू प्यार से रिया के बालों में हाथ फिराने लगा....

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गर्ल्स स्कूल पार्ट --59



उधर राज जैसे ही कमरे से निकल कर बाहर आया, उसने प्रिया को अपने इंतजार में बाहर खड़ी पाया.. राज मंद मंद मुस्कुराते हुए सीधा उसके पास जा पहुँचा..

"हां.. प्रिया.. बोलो!"

"मैं.. नही.. मैने तो नही बुलाया.. किसने बोला?" प्रिया राज की शरारत भारी नज़र देख सकपका गयी...

"चलो.. रिया ने यूँ ही बोल दिया होगा.. कुच्छ देर तुम्हारे पास बैठ सकता हूँ क्या?" राज उसके दिल की हालत समझ रहा था...

प्रिया को समझ ही नही आया की क्या बोले," हां.. नही... मतलब.. वो.. मैं..!"

"थॅंक्स!" राज हंसा और कमरे के अंदर आ गया... इस तरह अकेलेपन में उसके साथ खुद को पाकर हड़बड़ाई हुई प्रिया बहुत प्यारी लग रही थी... और सबसे प्यारी लग रही थी उसकी आँखें.. जो उपर उठने का नाम ही नही ले रही थी...

"क्या बात है..? तुम नही आओगी क्या अंदर..? मैं क्या तुम्हे खा जाउन्गा.." राज अंदर जाते ही बिस्तेर पर पसर गया...

प्रिया सिर झुकाए हुए अंदर आ गयी.. धीरे धीरे चलते हुए उसका पूरा बदन लरज रहा था.. अंदर आकर प्रिया बेड के दूसरी तरफ जा कर खड़ी हो गयी.. हुल्के से नज़रें उठाकर उसने राज की तरफ देखा पर अपनी और ही देखता पाकर तुरंत गर्दन घुमा ली....

"बात क्या है प्रिया? मुझसे कोई नाराज़गी है क्या? अगर है तो बिना वजह पूच्छे ही मैं माफी माँग लेता हूँ.. पर तुम ऐसे गम्सम बिल्कुल अच्छि नही लगती.. तुम्हारी मुस्कान ही तो मेरी जान है.. एक बार हंस दो ना..." राज उठकर बैठ गया..

ये बात सुनकर प्रिया मुस्कुराए बिना ना रह सकी.. और अपनी प्रशंसा सुनकर अधरों पर आ गयी हँसी को च्छुपाने के लिए घूम कर उसने राज की तरफ पीठ कर ली...

राज तो कब से उसके बेपनाह हुश्न का दीवाना था.. और आज उसको लग रहा था कि बड़े दिनों से दिल में दबी हुई हसरतें आज पूरी हो सकती हैं... रात में हुई जिस बात को प्रिया आनंद का चरम मानकर अब तक उस खुमारी से नही निकल पाई थी.. राज ने उसको उनके संबंधों की प्रगाढ़ता की नीव मान रखा था.. उसको तो पता ही था.. मंज़िलें अभी और भी हैं...

राज उठा और दरवाजे को बंद करके चितखनी लगाने लगा.. प्रिया के रोम रोम में झुरजुरी सी उठ गयी," ययए.. ये क्या कर रहे हो...?"

"तुमसे कुच्छ खास बात कहनी है प्रिया!" राज मुस्कुराता हुआ उसकी और बढ़ा..

प्रिया के बदन में कल वाले कामुक आनंद की खुमारी अभी तक कायम थी.. अचानक उसका सारा बदन अंगड़ाई सी लेने लगा.. पर उसकी ज़ुबान कुच्छ और ही भाषा बोल रही थी..," नही प्ल्स.. दरवाजा खोल दो.. मेरे पास मत आओ प्ल्स.. मुझे.." कहते हुए पिछे हट'ते हट'ते प्रिया कमरे की दीवार से जा लगी..," नही प्ल्स... मान जाओ ना..!" उसके लब थिरकने लगे थे..

राज पर उसकी बातों का कोई असर नही हुआ.. वह धीरे धीरे मुस्कुराता हुआ जाकर उसके पास खड़ा हो गया.. करीब एक फुट की ही दूरी अब उन्न दोनो के दरमियाँ थी..," क्यूँ? आज किसका डर है? और देख लो.. आज भी तुमने ही बुलाया है.. फिर मेरा क्या कुसूर..?"

प्रिया ने राज को उसके और करीब आने से रोकने के लिए अपने हाथ उठाकर राज की छाती पर रख दिए.. अपने दायें हाथ के नीचे राज के दिल की धड़कनो को महसूस कर रही थी,"क्या करोगे?" प्रिया ने उसकी आँखों में आख़िर आँखें डाल ही ली..

"जो तुमने किया है?" राज अपने होंठो पर जीभ फेरता हुआ शरारत से मुस्कुराने लगा...

"क्या?" धीरे धीरे प्रिया की हिचक टूट रही थी.. और वो भी बात कहते हुए कभी कभी शर्मकार मुस्कुराने लगी...

"तुम्ही देख लो तुम क्या कर रही हो.. वही मुझे भी करना है!" राज ने अपनी छाती पर रखे उसके हाथों की और उंगली से इशारा करते हुए कहा...

प्रिया तुरंत समझ गयी.. अगले ही पल उसने वहाँ से हाथ हटाकर अपनी अनमोल कुँवारी छातियो को उनकी मदद से छुपा लिया.. राज मुस्कुराया तो प्रिया का दिल धौंकनी की तरह धड़कने लगा," नही.. मैं नही..." कहते हुए प्रिया घूमकर दीवार की तरफ मुँह करके खड़ी हो गयी...

राज उसकी तरफ थोड़ा और बढ़ गया और आगे झुक कर उसके गालों के पास अपने होन्ट ले जाते हुए बोला," छ्छूने दो ना प्ल्स.. जाने कब से इनका प्यासा हूँ.. कितनी प्यारी हो तुम.. सिर्फ़ एक बार महसूस कर लेने दो.." राज ने प्रिया के कंधों पर अपने हाथ जमा दिए....

प्रिया की साँसें अचानक डाँवडोल होने लगी... राज की जांघों का अग्रभाग प्रिया के नितंबों से जा टकराया था.. इस अनोखे स्पर्श की मिठास के आगे उसको दुनिया की सारी खुशियाँ फीकी लगी.. पर शर्म की चादर उसके दिमाग़ पर से उतरने को तैयार ही नही थी..," आह.. राज.. प्ल्स.. मत करो ना ऐसे.."

"मैने अभी तक किया ही क्या है?" राज ने अंजान बन पूचछा.. उस कामुक मीठास में वैसा ही सुख राज को भी मिला था.. प्रिया के मादक और गदराए नितंबों की थिरकन अपनी जांघों पर महसूस करके.. बोलते हुए उसने हल्का सा दबाव और बढ़ा दिया...

प्रिया सिसक उठी.. राज को पीछे धकेलने के लिए जैसे ही वो अपने हाथों को नीचे लेकर आई.. राज ने भी तुरंत हाथ नीचे लाकर उसके कलाईयों को पकड़ लिया .. इस धक्का मुक्की में प्रिया झुक कर थोड़ी और पिछे सरक गयी और उसके मुँह से 'अयाया' निकल गयी.. उसने राज को अपने नितंबों से बिल्कुल चिपका हुआ महसूस किया...

मैं... मैं मार जाउन्गि राज... प्लीज़.. छ्चोड़ दो मुझे.." साँसें तेज हो जाने की वजह से प्रिया की ज़ुबान लड़खड़ाने लगी थी...

"सच में छ्चोड़ डून क्या?" कहते हुए राज ने उसके हाथों को उपर उठाकर उन्हे कंधों की सीध में दीवार पर चिपका लिया.. और उसके गर्दन पर प्यार से चुंबन अंकित कर दिया.. ये राज को भी अहसास था की प्रिया की ज़ुबान कुच्छ और ही कह रही है और दिल कुच्छ और ही...

"क्या... करोगे तुम?" प्रिया ने कामुकता भारी लंबी साँस लेते हुए कहा... अब तक वा भी अपना बदन ढीला छ्चोड़ चुकी थी और राज की साँसों समेत उसके हर अंग को अपने में उतरता हुआ महसूस कर रही थी...

"सब कुच्छ.. जो करते हैं.. प्यार में.." राज उसकी घूम चुकी गर्दन के कारण नज़दीक आ गये होंतों को अपने होंटो से छ्छूता हुआ सा बोला...

"सब कुच्छ क्या? क्या क्या करते हैं प्यार में?" प्रिया ने कहा और अचानक झटके से अपने हाथ छुड़ाकर घूमी और उसकी छाती से लिपट गयी.. बहुत सहन कर लिया था उसने.. अब बर्दास्त के बाहर की बात थी, सीने को सीने से दूर रख तड़पने देना..

राज ने प्रिया को अपनी बाहों में कसते हुए जाकड़ सा लिया.. और प्रिया अपना चेहरा अपने आप ही उसके सामने लाकर उसके होंटो को जी भर कर चूमने का निमंत्रण देने लगी...

"तुम्हारे होन्ट भगवान का मुझे दिया गया सबसे अनमोल तोहफा हैं प्रिया.. मैं इन्हे देखते ही मचल जाता हूँ.. इनका सारा रस चूम लेने के लिए.."राज ने उसको भावुक सा कर दिया.. बिना कुच्छ बोले ही प्रिया ने अपनी आँखें बंद की और अपने रसीले गुलाबी अधरों को राज के होंटो पर टीका दिया.. राज ने भी अपनी आँखें बंद की और अपने होन्ट खोल कर मस्ती से उनका रास्पान करने लगा...

प्रिया की संतरी ठोस छातियो में घुटन सी होने लगी.. राज के सीने से चिपक कर दब गयी छातियो में अजीब सी कुलबुलाहट होने लगी थी.. प्रिया और राज एक दूसरे के होंतों को चूमने चूसने में लगे थे की अचानक राज ने अपनी जीभ निकल कर उसके होंटो में फँसा दी...

प्रिया को अचानक जाने क्या ख़याल आया की वो अपने होंटो को राज से मुक्त करके ज़ोर से हंस पड़ी...

राज भोंचक्का सा रह गया..," क्या हुआ? अच्च्छा.. जीभ नही डालूँगा.. होन्ट तो दे दो.."

"पर वजह कुच्छ और ही थी.. प्रिया तुरंत एक बार फिर उसके होंटो से लिपट गयी और इस बार उसने अपनी जीभ निकाल कर राज के मुँह में डाल दी.. दोनो पागल से हो चुके थे.. मानो चूमा चाति के इस खेल में एक दूसरे को हराकर ही दम लेंगे.. काफ़ी देर से वो वहीं खड़े थे.. राज ने उसको धीरे धीरे सरका कर बिस्तेर की तरफ ले जाना शुरू किया.. बिस्तेर के पास जाते ही प्रिया किसी हुल्‍के खिलौने की भाँति अपने आप ही बिस्तेर पर ढेर हो गयी.. और राज को प्यार से निहारने लगी...

"क्या हो गया था? तुम हँसी क्यूँ?" अगला कदम बढ़ाने से पहले राज अपनी उत्सुकता ख़तम कर लेना चाहता था..

"कुच्छ नही.." और प्रिया एक बार फिर हँसने लगी....

"ऐसे हँसोगी तो मैं तुम्हे छ्चोड़ूँगा नही.. देख लो.." राज ने बनावटी गुस्से से कहा और खुद भी हँसने लगा...

"मत छ्चोड़ो.. मैं कब कह रही हूँ.. छ्चोड़ने के लिए..!" प्रिया अब भी हंस रही थी..

राज ने उसकी बराबर में लेट कर फिर से चूमा चाती शुरू कर दी और उसके पेट पर जॅकेट के उपर से ही हाथ फिराने लगा..," इसको निकाल दो ना...?"

प्रिया तो जैसे उसके निमंत्रण का ही इंतजार कर रही थी... झट से उठी और जॅकेट उतार कर एक तरफ रख दी," बस.. खुश?" और बैठी रही...

"अच्च्छा.. यही बात है तो फिर ये टॉप भी निकाल दो ना.. अच्च्छा नही लग रहा.." राज शरारत से कहकर मुस्कुराया...

"मैं.. मैं तुम्हे छ्चोड़ूँगी नही.. टॉप निकाल दूं? अच्च्छा.. तुम तो पूरी बेशर्मी पर उतर आए.." कहते हुए प्रिया ने उस पर धावा बोल दिया.. उसके उपर जा गिरी और राज की गर्दन पर अपने दाँत चुभा दिए..

राज को हुए इस हल्के से दर्द में भी अजीब सा नशा था.. उसने अफ तक ना की और प्रिया को अपने उपर खींच लिया.. अब प्रिया की छातिया आधी राज के सीने में पायबस्त थी और आधी उसके चेहरे के बिल्कुल सामने..

पता नही जान बूझ कर या अंजाने में पर प्रिया ने अचानक ऐसी कामुक हरकत की की राज तड़प उठा.. प्रिया ने अपनी एक टाँग उठाकर राज की जांघों के उपर डाल दी.. और राज का पहले ही तननाया हुआ लिंग एक दम सिसक उठा.. प्रिया की जांघों के नीचे फुफ्कार उठा उसका लिंग प्रिया की कुँवारी चिड़िया की भनक अपने आसपास पाते ही दहाड़ उठा.. उसकी छट-पटाहट प्रिया को अपनी जांघों के बीच महसूस हुई तो उसने एकद्ूम अपनी टाँग वापस खेंच ली और फिर से हँसने लगी...

"तुम्हे आख़िर हो क्या गया है.. बार बार हंस क्यूँ रही हो..?" राज ने उसके होंटो से अलग होते हुए कहा...

इस बार प्रिया ने राज के सामने अपने हँसने का राज खोल ही दिया.. उसके उपर झुकते हुए वो अपने होंटो को राज के कान के पास ले गयी और बोली," तुम्हारा कुच्छ मुझे बार बार चुभ रहा है... और मुझे गुदगुदी सी हो जाती है.."

"मैं समझा नही..." राज सचमुच नही समझ पाया था...

"ये.." प्रिया ने तेज़ी से अपना हाथ नीचे ले जाकर राज के लिंग को च्छुआ और उतनी ही तेज़ी से उसको वापस खींच लाई...

राज प्रिया की बात सुनकर मस्ती से झूम उठा..," यही तो असली चीज़ है..." कहते हुए राज अपना हाथ प्रिया के सीने पर ले गया.. प्रिया को उनमें चीटियाँ सी रेंगती हुई महसूस हुई....

"हां.. हां.. मुझे सब पता है.. मुझे समझने की कोशिश मत करो..." प्रिया ने कहा और राज के होंटो को चूम लिया.. अब वह इंतजार कर रही थी की कब राज अपना हाथ उसकी जांघों के बीच लेजाकार उसको कल रात वाला मजेदार अहसास फिर से कराएगा....

"क्या पता है तुम्हे..?" राज मुस्कुराते हुए बोला...

"यही की इसी से बच्चे पैदा होते हैं.. शादी के बाद.." प्रिया ने भोलेपन से कहा...

"अच्च्छा.. और कैसे पैदा होते हैं भला..?" राज ने उसको छेड़ते हुए कहा..

"ज़्यादा बकवास मत करो.. मैं अब उठती हूँ.. कोई आ जाएगा..." प्रिया ने ऐसा जानबूझ कर कहा था.. क्यूंकी जांघों के बीच की बेचैनी उस'से सहन नही हो रही थी... वह चाह रही थी की अब जल्दी से जल्दी राज का हाथ वहाँ पहुँच जाए...

"अब तुम्हे उठने कौन देगा.." कहते हुए राज अपने दोनो हाथ नीचे ले जाकर उसकी जीन्स का हुक खोलने लगा.. प्रिया अब शुरू होने वाले खेल को जान कर एक दम बेदम सी गयी और राज के सीने पर सिर टीका अपने नितंबों को उपर उठा जीन खोलने में उसका सहयोग करने लगी..

हुक खोलते ही राज ने जीन की चैन भी नीचे सरका दी.. अब प्रिया राज को देखने की हिम्मत नही कर पा रही थी.. इसीलिए झुक कर उसकी गर्दन से लिपट गयी...

जैसे ही राज ने जीन को नीचे खींचा.. वह चिंहूक उठी..," ये.. ये क्यूँ निकाल रहे हो.. " गरम साँसें राज के कानो में छ्चोड़ती हुई वो धीरे से सिसकी..

राज ने उसकी बात पर कोई प्रतिक्रिया नही दी और अपने काम में लगा रहा.. कुच्छ ही देर बाद प्रिया की जीन राज के हाथों में थी...

जैसे ही राज बैठने की कोशिश करने लगा.. हड़बड़ाई हुई प्रिया ने उसको वहीं दबोचने की कोशिश की..," उठो मत प्ल्स.. मुझे शरम आ रही है!" प्रिया का गाल एकद्ूम लाल हो गये...

"आज मत रोको प्रिया.. आआज मत रोको.. मुझे मंन की कर लेने दो प्ल्स.." कहते ही राज ने पलटा खाया और अगले ही पल सिसकती हुई प्रिया उसके नीचे थी.. शरम के मारे अब प्रिया अपनी आँखें नही खोल पा रही थी.. पर मन उसका भी बहकने लगा था.. वो भी मचल उठी थी.. अपने आपको राज की बाहों में पूरी तरह सौंप देने के लिए... राज ने जैसे ही नीचे देखा, उसने अपनी जांघों को एक दूसरे के उपर चढ़ा कर चिपका लिया...

एक दम मुलायम गोरी जांघों पर नायाब खजाने को छिपाये प्रिया की गुलाबी पॅंटी गजब ढा रही थी... योनि उसकी जांघों के बीच दुबकी हुई थी.. पर टॉप के उपर खिसक जाने की वजह से नाभि से नीचे का मादक कटाव ही राज के होश उड़ाने के लिए काफ़ी था... नाभि के आसपास लहराता हुआ राज का हाथ प्रिया की अपेक्षा के विपरीत उपर की और बढ़ने लगा तो वह कसमसा उठी और सिसकियाँ लेते हुए राज का ध्यान वहीं खींचने के लिए अपनी जांघों को सीधा करके ढीला छ्चोड़ दिया...

पर राज शायद स्टेप बाइ स्टेप आगे बढ़ने के मूड में था.. उसको प्रिया की बैचानी का अहसास तक नही हुआ.. और टॉप और समीज़ के अंदर धीरे धीरे उपर आता हुआ हाथ उसकी मादक छातियो की जड़ में आकर ठहर गया..

आँखें बंद किए सिसक रही प्रिया के होंटो का चुंबन लेते हुए राज ने आग्रह किया," इसको भी निकालने दो प्ल्स...!"

प्रिया तो जैसे वहाँ थी ही नही.. आनंद के सातवे आसमान में झूल रही प्रिया तो जैसे मदहोशी में पागल सी हुई जा रही थी.. उसने राज की बात पर कोई प्रतिक्रिया नही दी.. हां अपनी कमर को थोड़ा सा उपर उठा कर राज को टॉप निकालने का इशारा ज़रूर कर दिया...

राज ने प्रिया को उपर से एक दम नंगी करने में कुच्छ पल ही लगाए.. और कपड़ों से छुट-कारा पाते ही एक लंबी सी साँस के साथ ही प्रिया के उरजों में कंपन का संचार हो गया.. गुलाबी रंग के उन्न गोलाइयों पर कसे हुए दाने अकड़ कर सीधे हो चुके थे.. राज ने ऐसे हसीन दृश्या की कल्पना तक नही की थी.. प्यार से एक उरोज को सहलाते हुए उसने अपनी तरफ वाले दाने को अपने दाँतों के बीच ले लिया.. इस हरकत पर प्रिया सिसक कर दोहरी सी हो गयी.. योवन फलों पर मानो बहार सी आ गयी.. प्रिया से रहा ना गया.. अपने हाथों से ही नीचे की खुजली मिटाने की फिराक़ में जैसे ही वो अपना हाथ नीचे ले जाने लगी.. राज ने उसको बीच में ही पकड़ कर अपना पहले ही बाहर निकल चुका हथ्यार उसके हाथों में पकड़ा दिया..

जाने क्यूँ प्रिया को इस बार ज़रा सी भी हँसी नही आई.. बड़ी ही सिद्दत और प्यार से अपने हाथों में समेटे हुए राज के लिंग को वो उपर से नीचे सहलाने लगी.. ये सब उसको इतना आनंदित कर रहा था कि पॅंटी के अंदर अब तक छिपि बैठी उसकी नाज़ुक सी योनि पानी पानी हो गयी.. पर बेचैनी इस'से कम नही हुई.. बुल्की और बढ़ गयी.. प्रिया के पूर्ण स्खलन को अभी भी राज की उंगलियों का इंतजार था.. जब उस'से नीचे की तड़प सहन नही हुई तो उसके मुँह से निकल ही गया..," राआज.. नईएचए..!"

राज इशारा समझ गया.. वह धीरे धीरे उसके बदन को चूमता हुआ नीचे की और जाने लगा तो प्रिया आनंद की प्रकस्था की कल्पना करके पागल सी हो गयी और तेज तेज सिसकियाँ लेने लगी...

राज नीचे जाकर उसकी मखमली मांसल जांघों को सहलाता हुआ गौर से हुषन के इस नायाब तोहफे को देखने लगा.. पॅंटी के अंदर ही हाथ डाल कर राज ने पहले उसके नितंबों की बढ़ चुकी गर्मी को महसूस किया.. और फिर पॅंटी के उपर से ही उसकी तितली के होंटो का अनुमान लगा वहाँ अपने होन्ट रख दिए.. प्रिया उच्छल पड़ी.. हाथों से कहीं ज़्यादा जादू होंटो में था.. गरम साँसे पॅंटी में से छन छन कर उसकी योनि की गर्माहट को और हवा दे रही थी... राज ने जैसे ही उसकी पॅंटी निकाल कर उसको पूरी तरह अनावर्त किया.. उसके साँसों में तेज़ी और सिसकियों में पागलपन सा छाने लगा.. प्यार और हवस के भंवर में बुरी तरह फँस चुकी प्रिया ने राज के होंटो के दोबारा उसकी योनि के करीब आते ही अपनी जांघों को पूरी तरह खोल दिया.. और गोरी चिकनी योनि की छ्होटी फांकों के बीच उसका गुलबीपन राज को मदहोशी से भर गया..

अब इंतजार किस बात का.. और कर भी कौन रहा था.. राज ने हल्क बालों वाली योनि पर अपनी जीभ घुमाई और पूरी तरह उसको अपने होंटो में क़ैद कर लिया.. प्रिया की सिसकियाँ पागलपन की हद को पार कर गयी.. उसको अहसास ही नही था कि वो ज़मीन पर है या आसमान में.. वो उच्छलती रही.. सिसकती रही और अपनी छातियो को अपने आप ही मसल्ति रही.. अचानक प्रिया को अपने बदन में कंपकपि सी महसूस हुई और उसकी योनि रस से सराबोर हो गयी.. राज कच्चा खिलाड़ी था.. इसीलिए तो अपना चेहरा हटा लिया.. वरना इतनी प्यारी महक वाले रस का कतरा भी कोई बिस्तेर पर नही गिरने देता...

अब बारी राज की थी इतनी मेहनत का प्रतिफल लेने की थी... आँखें बंद किए उस आनंद को अब तक भी अपने मॅन में ही समेटे रखने की कोशिश में प्रिया के चेहरे पर मंद मंद मुस्कान च्छाई हुई थी.. जैसे ही उसने अपनी टाँगों को हवा में उठता हुआ महसूस हुआ.. उसने झट से चौंक कर अपनी आँखें खोल दी," नही.. ये नही राज.. प्ल्स..!"

"ये क्यूँ नही कह देती कि ख़ुदकुशी कर लो.. अब अगर तुमने मुझे रोका तो वैसे भी मुझे मर ही जाना है.. राज ने कहा और लंबी लंबी साँसे सी लेता हुआ अपने औजार को प्रिया की कुँवारी योनि में डालने की तैयारी करने लगा..

प्रिया उसके बाद कुच्छ नही बोली पर उसको डर लग रहा था.. कयि तरह का.. और जैसे ही राज ने हल्का सा उसकी योनि में डाला.. उसका डर सच साबित हो गया..,"ऊहह.. मर गयी राज.. बहुत दर्द हो रहा है... फट जाएगी..."

"कुच्छ नही होगा प्रिया.. बस एक पल की बात और है.." राज ने कहते हुए उसकी बात को अनसुना सा कर दिया और फिर से अभियान में जुट गया..

राज जब भी ज़ोर लगाता.. प्रिया की चीख सी निकल जाती.. पर हर कोशिश में लिंग इंच आध इंच सरक ही जाता.. अंत में चैन की साँस लेते हुए राज प्रिया की और देख कर मुस्कुराया," हो गया...हे हे हे!" मानो उसने आवरेस्ट फ़तह करी हो अभी अभी...

प्रिया की आँखों में अब पीड़ा नही थी.. पर बेचैनी ज़रूर थी...," हो गया तो निकाल लो अब!.. मुझे मार कर ही हटोगे क्या..?"

"वो थोड़े ही हुआ है मेरी जान.. अंदर गया है अभी तो.. बस एक दो मिनिट में ही दर्द ख़तम हो जाएगा और बहुत मज़े आएँगे.. मेरा विस्वास करो.." कहते हुए राज ने योनि को देखते हुए धीरे धीरे लिंग बाहर निकलना शुरू किया.. लिंग के साथ ही योनि के पतले पतले होन्ट बाहर निकल आए.. राज का लिंग योनि में बुरी तरह फँसा हुआ था... जैसे योनि की दीवारें उसको हिलने ही नही देना चाहती हों... इस बार राज ने जैसे ही अपना लिंग वापस अंदर धकेला.. प्रिया चिंहूक उठी.. राज ने एकद्ूम से अंदर धकेल दिया था उसको..

"अया.. आराम से करो ना प्ल्स..." प्रिया ने सिसकते हुए कहा...

"मज़ा तो आने लगा है ना.." राज ने बाहर निकाल कर धीरे धीरे एक बार फिर अंदर करते हुए पूचछा...

प्रिया ने शर्मकार तकिया अपने चेहरे पर रख लिया और अपना जवाब अपनी टाँगों को राज की कमर पर लपेट कर दिया...

राज तो धन्य सा हो गया.. कुच्छ देर धीरे धीरे अंदर करते रहने के बाद जब प्रिया ने लिंग को अंदर लेते हुए अपने नितंबों को हल्का हल्का उपर उठना शुरू किया तो राज की खुशी का ठिकाना ना रहा..," तेज तेज कर लूँ क्या?"

"हूंम्म.. मुझसे मत पूच्छो.. जैसे मर्ज़ी कर लो.." तकिये के नीचे से आनंद से सराबोर आवाज़ आई...

और फिर असली खेल शुरू हुआ.. राज ने उसकी टाँगों को मोदकर उसके नीचे अपनी हथेलिया बेड पर टीका ली और दनादन धक्के लगाने लगा... प्रिया और राज दोनो ही आपे में नही थे... या शायद धरती पर थे ही नही.. कामुक और युवा सिसकियों से पूरे कमरे में संगीतमय माहौल बन गया.. वासना रूपी संगीत के सातों सुर अपनी पूरी ले में थे.. दोनो ही अनाड़ी थे.. दोनो ही अंजान.. करीब पाँच मिनिट तक चला ये खेल अचानक बंद हो गया और चिंघाड़ता हुआ सा राज प्रिया के उपर गिर पड़ा... प्रिया को अपनी योनि में तेज़ी से कोई द्रव प्रविष्ट होता महसूस हुआ और इस गरमागरम रस के स्वागत में प्रिया ने भी अपने रस कपाट पूरी तरह खोल दिए.. दोनो के अंग एक दूसरे के प्रेम रस से नहा से उठे और बाग बाग हो गये... प्रिया ने राज की कमर में हाथ डाल उसको सख्ती से अपने से चीका लिया.. और पागलों की तरह उसके होंटो को चूमने लगी...

राज को रंग में वापस आते देर ना लगी.. अंदर पड़ा पड़ा उसका लिंग फिर से उभरने लगा और कुच्छ ही मिनिट में फिर से योनि में फँस कर खड़ा हो गया.. मान अभी तक दोनो में से किसी का नही भरा था.. इसीलिए फिर से दोनो इस खेल में मशगूल हो गये... इश्स बार दोनो ने ही करीब 15 मिनिट तक जी भर कर धक्के लगाए और वासना के सागर में तैरते हुए फिर से मंज़िल को पा लिया...

बड़ा ही मनोहारी द्रिश्य था.. शरीर छक चुके थे पर अभी भी एक दूसरे के प्यासे थे.. जाने कितनी ही देर वो एक दूसरे से चिपके रहते अगर उनका दरवाजा किसी ने ना खटखटाया होता...

दोनो की जान सी निकल गयी.. हड़बड़ाहट में प्रिया अपने कपड़े उठा बाथरूम की और भागी.. राज ने पॅंट पहन कर अपने आपको संभाला और हिच-किचाते हुए दरवाजा खोल दिया....

"क्या है.. कितनी बार आकर दरवाजा खटखटा चुकी हूँ.. सो गये थे क्या?" अंदर आते ही रिया ने सवाल किया...

"हां.. नही.. मतलब मैं सो गया था और प्रिया शायद नहा रही है.." राज ने एकद्ूम से कहा और तपाक से बाहर निकल गया... वह एक बार भी रिया से नज़रें चार नही कर पाया...

पागल को ये नही पता था की रिया खुद ही उस'से नज़रें चुरा रही है.. रिया ने भी उसकी और एक बार भी नही देखा था.. वो भी तो अभी अभी ही प्रेमरस में नहा कर आई थी..

राज रूम से बाहर निकल कर गया था की दरवाजे पर फिर से दस्तक हुई.. वापस मुड़ते हुए रिया ने दरवाजा खोल कर देखा.. बाहर वाणी खड़ी थी..," दीदी.. प्रिया दी कहाँ हैं?"

"वो बाथरूम में है.. तुम अकेली क्या कर रही थी रूम में.. हमारे पास आ जाती.." रिया ने औपचारिकता निभाई...

वाणी बेड पर जाकर बैठ गयी," आ तो रही थी दीदी.. पर वो.. राज को रूम में आता देख वापस चली गयी..."

वाणी के कहते कहते ही प्रिया भी कपड़े पहनकर बाहर आ गयी थी.. उसकी बात सुनकर दोनो सकपका गयी.. रिया ने बात संभालने की कोशिश करते हुए कहा," हां.. वो आया था.. कुच्छ काम से.. हमें उस'से कुच्छ ज़रूरी बातें करनी थी..."

"पर दीदी.. आप तो वीरू के पास थी ना.. अब तक..?" वाणी की इस बात से तो रिया के होश ही फाक़ता हो गये..

"क्या बोल रही है तू पागल? मैं तो यहीं थी... कोई सपना आया था क्या?" रिया को समझ नही आ रहा था की कमरों की अदला बदली के लिए कैसे सफाई दे..

"झूठ मत बोलो दीदी.. मुझे सब पता है.. मैं तब से अपने कमरे के दरवाजे पर ही तो खड़ी हूँ.." वाणी ने मुस्कुराते हुए कहा...

"प्ल्स वाणी.. किसी और को मत बोलना.. पता नही कैसी कैसी बातें शुरू हो जाएँगी हमारे बारे में.. तू समझ रही है ना.." रिया बचाव की मुद्रा में आ गयी..

इस'से पहले की वाणी कुच्छ बोलती.. प्रिया ने आकर उसके दोनो गाल प्यार से खींच लिए..," इस'से डरने की ज़रूरत नही है.. इसका भी एक राज मेरे पास है.. क्यूँ वाणी?"

वाणी उठकर प्रिया की तरफ लपकी और हल्की सी शरम चेहरे पर लिए रुनवासी सी होकर बोली..,"दिदीईइ.. प्ल्स!"

"अच्च्छा.. अपनी बारी आ गयी तो प्ल्स.. और हमको ऐसे बोल रही है जैसे तूने पता नही क्या देख लिया हो.. क्या कर रही थी रात को? ... बस में.." प्रिया ने बेड पर बैठकर उसके दोनो हाथ पकड़ते हुए अपने पास खड़ी कर लिया...

वाणी ने अपने हाथ च्छुड़ाए और शर्मकार बेड पर औंधी होकर लेट गयी," मुझे कुच्छ मत बोलो...!"

ये सब देख रिया की जान में जान आई.. बेड पर लेटी वाणी को ज़बरदस्ती सीधा करते हुए बोली," आ.. बोल ना.. बता ना क्या बात है? किसी से प्यार करती है क्या?"

वाणी कुच्छ नही बोली.. बस आँखें बंद करके मुस्कुराने लगी.. प्रिया ने उसका राज रिया के सामने खोल दिया..," हां.. वो एक लड़का नही है.. क्या नाम है उसका वाणी?.. हां.. मोनू.. उसके साथ है कुच्छ इसका लेफ्डा है..."

"मोनू नही दीदी.. मनु" वाणी ने आँखे बंद किए हुए ही कहा और फिर से उल्टी होकर चदडार में मुँह छिपा लिया...

"वो तो बहुत ही शरीफ लड़का लगता है.. स्मार्ट भी बहुत है.. इनकी जोड़ी कितनी अच्छि जमेगी... वो भी प्यार करता है क्या तुमसे?" रिया ने वाणी को कुरेदना शुरू किया...

वाणी गुस्सा हो गयी.. तपाक से उठ बैठी," कुच्छ नही करता वो.. उसके बस का कुच्छ है ही नही.. उसी की वजह से मैं आज घूमने भी नही गयी और तब से दरवाजे पर खड़ी रही.. एक बार भी कमरे से बाहर नही निकला... इस'से अच्च्छा तो बाहर घूम आती..."

वाणी के मासूम से चेहरे पर गुस्से की लाली देख दोनो मुस्कुरा उठी," तो तू चली जाती वाणी.. अगर दिल नही लग रहा था उसके बिना..."

वाणी के चेहरे से पल भर में ही गुस्से का स्थान हुल्की नाराज़गी और उत्सुकता ने ले लिया.. यही उसकी सबसे शानदार बात थी.. गुस्सा तो जैसे पल भर का ही मेहमान होता था.. और वो भी बनावटी," पर आना तो उसको ही चाहिए था ना दीदी.. आना चाहिए था ना.. मेरे पास.. अगर वो भी मुझसे प्यार करता है तो..?"

"हां.. आना चाहिए था.. उसकी ग़लती है.. पर क्या पता उसको पता ही ना हो की तू उसका इंतजार कर रही है.. तू जाकर उस'से लड़ाई तो कर सकती है ना.. तेरे पास नही आने के लिए..." प्रिया ने प्यार से उसका माथा चूम लिया.. सच में.. कितनी प्यारी थी वो...

"हूंम्म.. लड़ाई तो कर सकती हूँ.. अभी जाउ दीदी!" वाणी एक दम उठ खड़ी हुई...

दोनो ज़ोर ज़ोर से उसकी बात सुनकर हँसने लगी..," हाँ.. जा कर ले.. लड़ाई.. और 2-4 हमारी तरफ से भी सुना देना.. ठीक है ना.." प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा..

"ठीक है दीदी.. मैं अभी उसको सबक सीखा कर आती हूँ.." कहते हुए वाणी वहाँ से उड़ान छ्छू हो गयी....

"ये लड़की कितनी प्यारी है ना रिया.. एक दम बच्चों की तरह बात करती है.. पर है बहुत समझदार.. कभी इस'से सीरीयस होकर बात करके देखना..." प्रिया के होंटो पर अब भी वाणी की बात याद करके मुस्कान तेर रही थी...

"हूंम्म.. और सुंदर भी तो कितनी है.. मुझे तो एकद्ूम परी के जैसे लगती है ये.." रिया ने प्रिया की बात को सत्यापित करते हुए कहा....

वाणी ने जैसे ही मनु के कमरे के बाहर जाकर खटखटने के लिए हाथ लगाया, दरवाजा अपने आप ही खुल गया.. दरवाजे को थोड़ा और खोलकर उसने झाँका तो मनु को चैन से कंबल में लिपटे हुए सोते पाया... वाणी ये देख आपे में ना रही.. तुनक्ति हुई बिस्तेर के पास गयी और झटके के साथ कंबल खींच दिया.. मनु हड़बड़कर उठ बैठा," वाणी.. तुम?"

"वाणी तुम?" वाणी ने मुँह बनाकर उसकी नकल की और गुस्से में भूंभूनती हुई बोली," किसी और का इंतजार कर रहे थे क्या?" मधुर आवाज़ में चीखती हुई भी वो उतनी ही मासूम लग रही थी जितनी वो रूठने पर लगती थी...

"नही.. वो.. मैं तो सो रहा था.. तुम कब आई.." मनु उठकर बाथरूम में मुँह धोने चला गया...

"मुझे और गुस्सा मत दिलवओ.. पहले बता रही हूँ.. पता है मैं 2 घंटे से अपने दरवाजे पर खड़ी हूँ.. इस इंतजार में की तुम बाहर निकलो और मैं तुम्हारी ये.. ये बदसूरत शकल देख सकूँ..." वाणी मनु के कंबल में अच्छि तरह लिपट कर आलथी पालती मार कर बैठ गयी....

मनु उसकी बात सुनकर मुस्कुराता हुआ बाहर आया," अच्च्छा.. मैं बदसूरत हूँ..?"

"जब तुम मुझे दिखाई ही नही दोगे तो मुझे क्या फरक पड़ता है.. चाहे बदसूरत हो या खूबसूरत..." मनु के बिस्तेर पर बैठते ही वाणी उस'से नाराज़ होकर मुँह फेर कर बैठ गयी.....

"वाणी... तुम जो ये बात बात पर नाराज़ हो जाती हो.. मुझे बिल्कुल अच्च्छा नही लगता.. प्ल्स.. मान जाओ.. इधर मुँह कर लो और मुस्कुरा दो.." मनु तकिये का सिरहाना लगाकर लेट गया...

आधी बात वाणी ने मान ली... वह तुरंत घूमकर उसकी और मुँह करके बैठ गयी.. आख़िर वह भी तो नही रह सकती थी ना.. उसका चेहरा देखे बगैर," क्यूँ मुस्कुरा दूं? तुम तो आराम से यहाँ सो गये.. और वहाँ खड़े खड़े मेरे पैर दुखने लगे..."

"अच्च्छा.. सॉरी.. पर तुम यहाँ भी तो आ सकती थी ना..."

"क्यूँ? तुम नही आ सकते तो मैं क्यूँ आऊँ..?" वाणी ने तपाक से कहा..

"अब भी तो आई हो ना.. बोलो!" मनु हँसने लगा...

"अब तो मैं.. वो.. अब तो मैं लड़ाई करने आई हूँ..." वाणी ने जवाब दिया...

"हा हा हा हा.. लड़ाई करने आई हो.. लो कर लो लड़ाई.. गुलाम हाज़िर है.." मनु उठकर बैठ गया...

"कर तो ली..." वाणी ने नाराज़ होते हुए कहा और अगले ही पल मनु को देख मुस्कुराने लगी...," इतनी ही करनी थी बस.."

मनु को उस पर इतना प्यार आ रहा था की जैसे उसको बाहों में उठाकर घूमता रहे.. चूमता रहे.. पर उसको मालूम था की होटेल में और भी बच्चे हैं.. इसीलिए संयम से काम ले रहा था.. इसीलिए वाणी के पास नही गया था," अच्च्छा.. चलो.. लड़ाई तो ख़तम हुई.. अब क्या इरादा है...?"

"मुझे प्यार करना है?" वाणी ने बिना अटके इस तरह कह दिया मानो यह कोई मामूली बात थी...

मनु सुनकर उच्छल पड़ा..," क्या? ... कैसा प्यार..?"

"वही जो प्यार करने वाले अकेले में करते हैं.. च्छुपकर.." वाणी के चेहरे पर कतयि उत्तेजना के भाव नही थे.. पर फिर भी वह प्यार करना चाहती थी.. मनु के साथ.. ताकि हमेशा हमेशा के लिए दोनो पर एक दूसरे की मोहर लग जाए.. ताकि फिर से वाणी को त्याग ना करना पड़े... ताकि वो कह सके," मनु सिर्फ़ मेरा है.. और किसी का नही...

"तुम पागल हो गयी हो क्या? तुम्हे कैसे पता...?" मनु वाणी के सिक्सर से बौखला गया...

"और क्या तुमने मुझे उल्लू समझ रखा है.. मुझे सब कुच्छ पता है.. मैं कोई बच्ची थोड़े ही हूँ अब.. मुझे ये भी पता है कि प्यार कैसे करते हैं.. तुम्हे ना भी पता हो तो मैं सीखा दूँगी.. चिंता मत करो..." वाणी सॉफ और सीधी बात कर रही थी....

"हे भगवान.. वाणी.. तुम समझ नही रही तुम क्या कह रही हो...? समझने की कोशिश करो.. मैं चाहता तो पता नही कब का ये सब हो चुका होता.. पर मैं अभी हदों को पार करना नही चाहता.. समझती क्यूँ नही मेरी जान... तुम कितनी भोली हो.. कितनी नादान.." मनु दरवाजा बंद करके आया और कंबल में लिपटी हुई वाणी के पास बैठकर अपनी बाहों में भरा और अपने सीने से दूबका लिया...

"ये क्यूँ नही कहते की तुम मुझसे प्यार ही नही करते.. उल्लू क्यूँ बना रहे हो मेरा.. जो प्यार करते हैं.. वो तो ये प्यार करते ही हैं.." वाणी ने सिर से कंबल हटा अपने गाल मनु की छाती से सटा लिए....

" हां करते हैं.. मैं कब मना कर रहा हूँ.. पर अभी हम दोनो की पढ़ाई करने की उमर है.. हम दोनो का ध्यान पढ़ाई से हट जाएगा.. हम अलग अलग नही रह पाएँगे फिर.. समझ रही हो ना जान!" मनु ने वाणी का चेहरा उपर उठा उसके गालों पर हल्का सा चुंबन अंकित कर दिया.. वो भावुक हो गया था.. वाणी के दिल में अपने लिए प्यार के अतः सागर को महसूस करके...

"पर मैं तुमसे अलग रहना ही नही चाहती मनु.. बहुत इंतजार हो गया.. अब और सहन नही होता.. तुम्हारी कसम.. मैं हर पल तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ.. यूँही.. तुम्हारी बाहों में.. मेरी पढ़ाई पर असर नही पड़ेगा.. तुम्हारी कसम.. प्यार कर लो ना.. कर लो ना प्ल्स.. " बोलते बोलते मनु ने उसके तिरकते हुए गुलाब की नन्ही पंखुड़ियों जैसे गुलाबी अधरों पर अपने होन्ट रख दिए.. और वाणी की सिसकी के साथ उसकी बोलती बंद हो गयी.....

जाने कितनी ही देर वो अद्भुत जोड़ा एक दूसरे के होंटो को अपने होंटो से तर करता रहा.. एक दूसरे को अपने अंदर ज़्यादा से ज़्यादा समेट लेने की कोशिश में कंबल की दीवार उन्न दोनो के बीच से अलग होकर कब फर्श पर जा धूल फांकने लगी किसी को अहसास तक नही हुआ.. वाणी की एक जाँघ मनु की जाँघ के नीचे से दूसरी और निकली हुई थी और मनु की दूसरी जाँघ वाणी की दूसरी जाँघ के नीचे से दूसरी और.. जांघों से लेकर उनके होंटो तक, सिर्फ़ गर्दन को छ्चोड़ कर उनके शरीर का कोई भी हिस्सा ऐसा नही था जहाँ रत्ती भर भी जगह खाली हो.. बुरी तरह चिपके हुए दोनो अपनी साँसों से एक दूसरे के अंतर्मन को महकाते हुए सब कुच्छ भूल कर सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने अपने प्यार की गहराई साबित करने में लगे थे.. दोनो की आँखें बंद थी.. धड़कने स्वाभाविक रूप से बढ़ गयी थी और साँसें उखड़ कर एक दूसरे के अंदर दम तोड़ने लगी थी... कयि बार तो दोनो साँस लेना ही भूल जाते और जब याद आता तो अलग हटकर प्यार से एक दूसरे की आँखों में देखते और फिर से आँखें बंद करके इश्स अनोखे मेल को पूर्ण करने में जुट जाते.. वाणी को इस दौरान दो बार अपने ही रस से गीली होने का अहसास हुआ पर उसने परवाह ना की... हर बार के बाद वा और ज़्यादा जोश से जुट जाती.. उसकी तड़प ही इतनी थी.. मनु के लिए.. पर जब वाणी की जांघों के बीचों बीच 'खड़े' मनु की पिचकारियाँ छूटी तो फिर मनु मैदान में खड़ा नही रह पाया.. अचकचा कर उठा और 'एक मिनिट' कहकर लंबी साँसे लेते हुए बाथरूम में घुस गया....

जैसे ही मनु वापस आया, उसके इंतजार में बेड पर खड़ी हो चुकी वाणी उसके गले में बाहें डालकर उस'से लटक गयी.. अपनी जांघें उसने मनु की कमर में बाँध सी ली थी..," क्या हो गया था मनु?" होंटो पर एक प्यार भारी 'पुच्चि' लेते हुए वाणी ने पूचछा...

"तुम्हे तो सब कुच्छ पता है ना.. तुम्हे पूच्छने की क्या ज़रूरत है" मुस्कुराते हुए मनु ने उसको ज्यों का त्यों बिस्तेर पर गिरा लिया और उसके उपर लेता हुआ वाणी की गर्दन और गालों को चूमने चाटने लगा... वाणी ने अपने हाथों को पिछे गिरा लिया और मस्ती से आँखें बंद करके अपने शरीर को ढीला छ्चोड़ दिया...

वाणी के गदराए हुए अद्वित्या मखमली बदन से चिपके हुए मनु को टाइम ही कितना लगता, दौबारा उठ 'खड़ा' होने में.. जल्द ही वाणी को उसकी चुभन पहनी हुई अपनी लाइट ब्लू जीन के उपर से ही होने लगी और उसकी साँसों ने एक बार फिर गति प्राप्त करनी आरंभ कर दी.. उसको पता था की 'वो' जब खड़ा होता है तो क्यूँ होता है.. वाणी आज कुच्छ भी कर लेने को तैयार होकर आई थी.. सब कुच्छ कर लेने को बेकरार होकर आई थी...

वाणी के कंधों को दबोचे उसके चेहरे पर चुंबनो की बौछार सी लगा रहे मनु के हाथों का सफ़र जैसे ही वाणी के सीने की मस्त गोलाइयों पर पहुँचा, वाणी को झटका सा लगा.. वक्ष सौंदर्या का अप्रतिम नमूना उसकी गोल मटोल लेटने पर भी उपर को उठी छातिया झनझणा उठी.. इस झांझट को मनु ने अपने हाथों से स्थानांतरित होकर अपने दिल की गहराइयों तक और कल्पना की ऊँचाइयों तक महसूस हुआ.. उन्हे छूने भर से ही वह उनको बेपर्दा करके छ्छूकर महसूस करने और देखने को मचल उठा.. एक बार फिर वह झुक कर उसके कानो तक अपने होन्ट ले गया और सीने पर दबाव बढ़ाते हुए वाणी के कानो में अपनी जीभ से गुदगुदी करता हुआ बोला," मुझे इनको देखना है जान.. मुझे इनको छ्छूना है.."

"अया.." वाणी सिसक उठी.. प्यार करते समय जीभ कान में वही असर करती है जो लिंग योनि में... वाणी ने सिसकते हुए उत्तेजना में मनु की थोड़ी को काट खाया और मस्ती से मुस्कुराते हुए मनु को आगे बढ़ने की इजाज़त दे डाली...

मनु ने आहिस्ता से वाणी के सफेद टॉप को नीचे से पकड़ कर उपर उठना शुरू किया.. उसकी आँखें वाणी के नाभि क्षेत्र की कमणीयता और वहाँ से शुरू होकर नीचे की तरफ जांघों को एक दूसरी से अलग करने वाले अकल्प्नीय मादक नशीले कटाव को देख कर वहीं जम गयी.. वाणी के शरीर का रोम रोम अद्भुत था.. अंग अंग नशीला था.. मनु के हाथों की च्छुअन से उसकी नाभि के आस पास के हिस्से में अजीब सी लहरें उठ रही थी... वाणी की कामुक सिसकियों ने तो माहौल को और भी तरंगित कर दिया था...

मनु वही झुक गया और अपने होंटो से वाणी के बदन के उस हिस्से का रसास्वादन करने लगा..

"उफ़फ्फ़.. बस!" वाणी अपने हाथों को अपनी नाभि और मनु के होंटो के बीच ले आई.. इतना आनंद की सहा ही नही गया.. इतना रोमांच जो वाणी को 'बस' कहने पर विवश कर गया.. पर रास्ता अभी बहुत लंबा था.. मंज़िल अभी कोसों दूर थी....

मनु ने उसकी छ्ट-पटाहट को भाँपते हुए अपना चेहरा उपर उठाया और एक हाथ वहीं रखकर दूसरे हाथ से बचे हुए अधूरे काम को पूरा करने लगा.. टॉप उपर उठता गया और वाणी का मचलना बढ़ता गया.. गोलाइयों के पास आकर कपड़ा वहीं अटक गया.. टॉप स्किन टाइट था और वाणी की छातियो की उँचाई उसकी कमर से कहीं ज़्यादा थी.. इसीलिए..

ये रुकावट मनु से बर्दास्त नही हुई और उसने टॉप को उपर चढ़ना छ्चोड़ अपना हाथ ही उपर चढ़ा दिया.. टॉप के अंदर... वाणी तो वाणी उनको सिर्फ़ हाथों से महसूस कर रहे मनु की भी सिसकी निकल गयी.. मनु को महसूस हुआ जैसे उसके हाथ दो ऐसे अमर्फल लग गये हैं.. जो हिलते हैं.. मचलते हैं.. थिरकते हैं.. और जिनमें जीवन रस भरा हुआ है.. अभी से.. मनु की तीन उंगलियाँ उन्न मादक फलों के बीच की तंग घाटी में थी और अंगूठा और तर्जनी उंगली उन्न गोलाइयों पर मस्ती से पसरे हुए अपने आखरी पर्वों पर अद्भुत, छ्छूने में ही कमाल के, नटखट दानो का लुत्फ़ उठा रहे थे....

पर इस आनंद ने वाणी को बुरी तरह पिघला कर रख दिया.. हाथों की छुअन से मिल रहे इस अधूरे पर अनोखे आनंद से वो तड़प कर इस आनंद को नयी उँचाई तक ले जाने को तड़प उठी और अपना हाथ खुद ही नीचे लाकर बेदर्दी से अपनी छातियो को रौन्द्ते हुए अपना टॉप उपर खींच दिया.. और मनु तो मानो जड़ सा होकर पागलों की तरह उन्हे निहारने लगा...

, चूचियाँ, गोलाइयाँ, कबूतर, सेब, अनार, संतरे, टेन्निस बॉल्स और ना जाने क्या क्या.. आदमी ने अपनी वासनात्मक सन्तुस्ति के लिए जाने कितने ही नाम नारी के इन्न अद्भुत और बेमिशल दुग्ध पत्रों को दिए हैं.. खुद हमने भी 'अपनी' स्टोरी में इन्ही उपनामों का प्रयोग हर जगह किया है.. पर वाणी के इन्न अंगों की उपमा इनमें से किसी के साथ भी करना उनका अपमान ही कहलाएगा.. क्या अंग होंगे जिन्होने मनु के सामने इतरा रहे इठला रहे होने पर भी उसको सम्मोहन में इस कदर जाकड़ लिया की वा उनको छ्छूना ही भूल गया....बस देखता ही रहा; अपलक! निहारता ही रहा.. जब तक खुद वाणी ने ही अधूरी च्छुअन की उस प्यास को तृप्ति तक पहुँचने के लिए खुद ही मनु का हाथ पकड़ कर उन्तक नही खींच लिया और एक मीठी सी 'सीटी' जैसी सिसकी लेकर उसको अहसास नही करा दिया कि वो क्या चाहती है...

मनु के भाव अब भी हतप्रभ कर देने वाले थे.. उसकी समझ में नही आ रहा था की कौनसा पकड़े और कौनसा छ्चोड़े... कौन्से के साथ क्या करे और कौन्से के साथ क्या.. उसकी हालत ठीक उस बच्चे की तरह थी जिसके दोनो और एक निसचीत दूरी पर दो खिलौने रख दिए जाते हैं और बीच में बैठकर दोनो में से कोई एक छांट लेने को बोल दिया जाता है.. पर बच्चा निर्णय ही नही कर पाता और दोनो के बीच बैठकर रोता रहता है...

काश कोई तीसरा वहाँ होता जो मनु के कान के नीचे बजाकर चिल्लाता.. 'आबे भूत्नि के, दूसरा हाथ किसलिए है?'

मनु के कंपकपाते हाथ का स्पर्श 'वहाँ' पाकर वाणी का सारा बदन अंगड़ाई लेने ले उठा.. अंगों की थिरकन से वशीभूत सा हो उठा मनु वाणी की जादुई आवाज़ सुनकर जैसे जागा..," मॅन्यूवूयूयुयूवयू... हाआआ... आआआअहह.. उश्ह्ह्ह्ह्ह्ह"

मनु ने वाणी के चेहरे को देखा.. वह बड़े ही कामुक अंदाज में आँखें आधी झपकाए हुए सिसकियाँ लेती हुई बिस्तेर पर किसी घायल नागिन की तरह थिरक रही थी.. नीचे कब से शुरू हो चुकी असहनीया गुदगुदी उसको उसके घुटनो को मॉड्कर इधर उधर पटाकने पर विवस कर रही थी... अचानक मनु को अपनी कसम्कस दूर करने का रास्ता मिल ही गया... वाणी के साथ सटकार लेट'ते हुए उसने 'एक' को चखना और 'दूसरे' को प्यार से मसलना चालू कर दिया... वाणी की च्चटपटाहत अब और बढ़ गयी.. दरअसल 'प्यार' करने की वाणी की ललक उसके सीने में छिपे दिल से चू चू कर नीचे टपकती हुई उसकी जांघों के बीच पहुँच गयी थी.. और आग अब वहीं लगी थी.. जब जांघों के बीच की तितली को ठंडक चाहिए तो वो तो वहीं पर दी जा सकती है.. उपर से तो वासना की ये अग्नि पल पल के साथ और भड़कती ही जानी थी...

जब अपने कामुक इशारों से वाणी ये बात मनु को समझा नही पाई तो अचानक उसके मन में जाना क्या आया की उल्टी होकर उसने अपने उपर वाले हिस्से को हाथों में छिपा बिस्तेर में गाड़ लिया.. मनु को इस'से कोई फ़र्क नही पड़ा.. उसकी तो आँखें बंद कर रखी थी.. देखने वाली भी.. और दिमाग़ वाली भी.. घूम गयी तो क्या हुआ.. फ़र्क सिर्फ़ इतना पड़ा की अब सीने की जगह कमर आ गयी.. वह वाणी को यूँ ही सहलाता रहा.. यूँही चूस्ता रहा.. वाणी के तो रोम रोम में मिठास थी.. उसका तो अंग अंग छलक रहा था.. यौवन रस से...

सब्र करने की इंतहा के बाद भी जब वाणी को इस बेताबी की दवा नही मिली तो अचानक गुस्से से उठ बैठी," मनु!" उसने अचानक और एकद्ूम कहा...

मनु ने हड़बड़कर आँखें खोली और खुद को बिस्तेर पर ही पाया.. नही तो वा तो किसी और ही लोक में विचरण कर रहा था शायद," हां.. वाणी! क्या हुआ?"

"अपनी शर्ट निकालो.. अपनी बनियान निकालो.. अपना सब कुच्छ निकाल दो.. एक मिनिट में.."

वाणी का चेहरा तमतमाया हुआ था.. गुस्से से नही.. वासना की अग्नि के जाने कितनी ही बार भड़क भक कर अपने आप ही बुझाने से.. उसको जो चाहिए था.. वा तो मिला ही नही अभी तक...

"निकालता हूँ ना जान.. पहले तुम्हारे तो पूरे कपड़े निकाल दूं...!" मनु ने जाने कहाँ से ये नियम सीखा था..

"जल्दीई करूओ ना मनुउऊउउ... प्लस्ससस्स" और वाणी च्चटपटती सी हुई अपना टॉप निकाल कर फैंकने के बाद वापस सीधी हो कर लेट गयी.. और अपनी जीन का बटन जल्दी से जल्दी खोलने की कोशिश में उसको जीन से अलग ही कर दिया...," निकाल दो जल्दी.. हइई..."

मनु ने उसके बाद कुच्छ पल ही लगाए.. जीन की चैन खोल कर वाणी के नितंबों के नीचे हाथ फँसाए और खींच खींच कर उसको पूरी तरह निकाल कर ही दम लिया... यहाँ का नज़ारा तो था ही पारलौकिक.. केले के मोटे ताने जैसी चीनी और गोल वाणी की जांघें दूधिया रंग में नहाई हुई थी... पॅंटी गीली हो हो कर रिसने लग गयी थी और उसके रस की भीनी भीनी मादक खुश्बू ने मनु के नथुनो तक को भी लपेटे में ले लिया था... चिकनी जांघों से फिसल फिसल कर उपर की और जा रही मनु की नज़रें कमसिन जांघों के नीली पॅंटी के पीछे छिपे मिलन बिंदु पर जाकर ठहर गयी.. मनु प्यार से वाणी की जांघों पर अपने हाथों की थिरकन का आनंद लेते और देता हुआ सिसक कर बोला," वाणीिइ.."

"मनुउउउउउ" वाणी की आवाज़ में उस'से भी कहीं अधिक तड़प थी.. वह बेकाबू हो चुकी थी...

"इसस्स.. इसको भी निकल दूं क्या?" मनु अब भी इजाज़त ले रहा था

वाणी ने मंन ही मंन मनु को कितनी गालियाँ दी होंगी, इसका तो पता नही.. पर एक ही झटके के साथ टाँगें उपर उठा पॅंटी को निकाल कर ज़ोर से एक कोने में फैंक अपने गुस्से का इज़हार तो कर ही दिया....

(¨`·.·´¨) Always
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(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- Raj sharma
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