सारिका कंवल की जवानी के किस्से

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jay
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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से

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वासना एक ऐसी आग है जिसमें इंसान जल कर भी नहीं जलता और जितना बुझाना चाहो, उतनी ही भड़कती जाती है।

हम सोचते हैं कि सम्भोग कर लेने से हमारे जिस्मों में लगी आग को शान्ति मिलती है, पर मेरे ख्याल से सम्भोग मात्र आग को समय देने के लिए है, जो बाद में और भयानक रूप ले लेती है।

मैंने अपने अनुभवों से जाना कि मैंने जितनी कोशिश की, मेरी प्यास उतनी ही बढ़ती गई।

कोई भी इंसान सिर्फ एक इंसान के साथ वफादार रहना चाहता है। मैं भी चाहती थी, पर वासना की आग ने मुझे अपने जिस्म को दूसरों के सामने परोसने पर मजबूर कर दिया।

हम वासना में जल कर सिर्फ गलतियाँ करते हैं, पर हमें वासना से ऐसे सुख की अनुभूति मिलती है कि ये गलतियाँ भी हमें प्यारी लगने लगती हैं।

हम सब कुछ भूल जाते हैं, हम भूल जाते हैं कि इससे हमारे परिवार को नुकसान पहुँच रहा है, या दूसरे के परिवार को भी क्षति पहुँच रही है और खुद पर बुरा असर हो रहा है।

अंत में होता यह है कि हम इतने मजबूर हो जाते हैं कि हमें जीना मुश्किल लगने लगता है।

मेरी यह कहानी इसी पर आधारित है।

खैर कुछ लोगों ने मुझसे पूछा था कि मेरा बदन कैसा है, तो मैं बता दूँ फिलहाल मेरा जिस्म 36-32-34 का है।

यह बात तब की है जब अमर और मैं सम्भोग के क्रियायों में डूब कर मस्ती के गोते लगा रहे थे।

उन दिनों मैं और भी मोटी हो गई थी, मेरे स्तन तो तब भी इतने ही थे और कमर भी, बस मेरे कूल्हे जरा बड़े हो गए थे।

बच्चे को दूध पिलाने के क्रम में मुझे कुछ ज्यादा ही खाना-पीना पड़ता था।

इससे बाकी शरीर पर तो असर नहीं हुआ, पर जांघें और कूल्हे थोड़े बड़े हो गए, करीब 36 को हो गए थे।

मेरी नाभि के नीचे के हिस्से से लेकर योनि तक चर्बी ज्यादा हो गई थी, जिसके कारण मेरी योनि पावरोटी की तरह फूली दिखती थी।

योनि के दोनों तरफ की पंखुड़ियाँ काफी मोटी हो गई थीं।

अमर के साथ सम्भोग करके 7-8 दिनों में मेरी योनि के अन्दर की चमड़ी भी बाहर निकल गई थी जो किसी उडूल के फूल की तरह दिखने लगी थी।

मेरे स्तनों में पहले से ज्यादा दूध आने लगा था, साथ ही चूचुकों के चारों तरफ बड़ा सा दाग हो गया था जो हलके भूरे रंग का था और चूचुक भी काफी लम्बे और मोटे हो गए थे।

मैं कभी नहाने जाती तो अपने जिस्म को देखती फिर आईने के सामने खड़ी हो कर अपने अंगों को निहारती और सोचती ऐसा क्या है मुझमें जो अमर को दिखता है, पर मेरे पति को नहीं समझ आता।

मेरा चेहरा पहले से कहीं ज्यादा खिल गया था, गजब की चमक आ गई थी।

शायद यह सम्भोग की वजह से थी या फिर मैं खुश रहने लगी थी, इसीलिए ऐसा परिवर्तन हुआ है।

मैं कभी यह भी सोचती कि मेरे अंगों का क्या हाल हो गया है।

हमें मस्ती करने के लिए लगातार 16 दिन मिल गए थे। इस बीच तो हमने हद पार कर दी थी, मैंने कभी सोचा ही नहीं था कि मैं इतनी इतनी बार सम्भोग करुँगी।

क्योंकि आज तक मैंने जहाँ तक पढ़ा और सुना 3-4 बार में लोग थक कर चूर हो जाते हैं।

मुझे नहीं पता लोग इससे ज्यादा भी करते हैं या नहीं, पर मैंने किया है.. इसलिए मुझे थोड़ी हैरानी थी।

एक दिन ऐसा भी आया कि मैंने अपने शरीर की पूरी उर्जा को सिर्फ सम्भोग में लगा दिया।

बात एक दिन की है, मैं और अमर रोज सम्भोग करते थे। हम लोग कम से कम एक बार सम्भोग के लिए कहीं न कहीं समय निकाल ही लेते थे।

एक दिन मेरे बेटे को स्कूल की तरफ से गाने के लिए एक प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए पास के स्कूल ब्रह्मपुर जाना पड़ा।

उस दिन शनिवार था वो सोमवार को वापस आने वाला था।

मैंने उसकी सारी चीजें बाँध कर उसे छोड़ आई।

पति काम पर जाने को थे, सो खाना बना कर उन्हें भी विदा किया।

फिर दोपहर को अमर आए और उनके साथ मैंने सम्भोग किया।

रात को पति जब खाना खा रहे थे तो उन्होंने बताया के उनको सुबह बेलपहाड़ नाम की किसी जगह पर जाना है, कोई मीटिंग और ट्रेनिंग है, मैं उनका सामान बाँध दूँ।

सुबह 4 बजे उनकी ट्रेन थी, सो जल्दी उठ कर उनके लिए चाय बनाई और वो चले गए। मैं दुबारा आकर सो गई।

फिर 7 बजे उठ कर बच्चे को नहला-धुला कर खुद नहाई और एक नाइटी पहन कर तैयार हो गई।

आज मेरे पास अमर के साथ समय बिताने के लिए पूरा दिन था क्योंकि रविवार का दिन था और पति अगले दिन रात को आने वाले थे।

मैंने अमर को फोन किया और ये सब बता दिया।

सुनते ही वो आधे घंटे में मेरे घर आ गए। तब 9 बज रहे थे, मैंने उनको चाय-नाश्ता दिया।

उसने कहा- कहीं घूमने चलते हैं।

मैंने कहा- नहीं, किसी ने देख लिया तो दिक्कत हो जाएगी।

पर उसने कहा- यहाँ कौन हमें जानता है, और वैसे भी अमर और मेरे पति की दोस्ती है तो किसी ने देख भी लिया तो कह देंगे कुछ सामान खरीदना था तो मेरे साथ हो।

मैं मान गई और तैयार होने के लिए जाने लगी, पर अमर ने मुझे रोक लिया और अपनी बांहों में भर कर चूमने लगे।

मैंने कहा- अभी नहा कर निकली हूँ फिर से नहाना पड़ेगा.. सो जाने दो।

उसने कहा- तुम नहाओ या न नहाओ मुझे फर्क नहीं पड़ता, मुझे तुम हर हाल में अच्छी लगती हो।

फिर क्या था पल भर में मेरी नाइटी उतार मुझे नंगा कर दिया क्योंकि मैंने अन्दर कुछ नहीं पहना था।

मुझे बिस्तर पर लिटा मुझे प्यार करने लगे, खुद भी नंगे हो गए, एक-दूसरे को हम चूमने-चूसने लगे और फिर अमर ने अपना लिंग मेरी योनि में घुसा कर दिन के पहले सम्भोग की प्रक्रिया का शुभारम्भ कर दिया।

उसका साथ मुझे इतना प्यारा लग रहा था कि मैं बस दुनिया भूल कर उसका साथ दे रही थी।

कोई हमारे चेहरों को देख कर आसानी से बता देता कि हम कितने खुश और संतुष्ट थे।

आधे घंटे की मशक्कत के बाद हम दोनों ही झड़ गए और हमारी काम की अग्नि कुछ शांत हुई, पर मुझे यह मालूम नहीं था कि यह अग्नि आज एक ज्वालामुखी का रूप ले लेगी।

खैर मैं उठकर बाथरूम चली गई फिर खुद को साफ़ करके वापस आई तो देखा अमर अभी भी बिस्तर पर नंगे लेटे हैं।

मैंने उनसे कहा- उठो और भी तैयार हो जाओ।

फिर वो भी तैयार होकर वापस आए। आते ही मुझे ऊपर से नीचे तक देखा, मैंने हरे रंग की साड़ी पहनी थी।

अमर ने पूछा- अन्दर क्या पहना है?

मैंने जवाब दिया- पैंटी और ब्रा..

वो मेरे पास आए और मेरी साड़ी उठा दी।

मैंने कहा- क्या कर रहे हो?

उहोने मेरी पैंटी निकाल दी और कहा- आज तुम बिना पैंटी के चलो।

मैंने कहा- नहीं।

पर वो जिद करने लगे और मुझे बिना पैंटी के ही बाहर जाना पड़ा।

रास्ते भर मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे कूल्हे हवा में झूल रहे हैं। हम पहले एक मार्किट में गए वह मैंने अपने श्रृंगार का सामान लिया फिर बच्चे के लिए खिलौने लिए, कुछ खाने का सामान भी लिया।

तभी अमर मेरे पास आए और एक काउंटर पर ले गए। वो लेडीज अंडरगारमेंट्स का स्टाल था, वहाँ एक 24-25 साल की लड़की ने आकर मुझसे पूछा- क्या चाहिए?

तभी अमर ने कहा- मेरी वाइफ को थोड़े मॉडर्न अंडरगारमेंट्स चाहिए।

तब उस लड़की ने मुझे तरह-तरह की ब्रा और पैंटी सेट्स दिखाने शुरू कर दिए जिनमें से 3 सेट्स अमर ने मेरे लिए खरीद लिए।

फिर हमने एक रेस्तरां में जाकर खाना खाया और वापस घर आ गए।

घर आते ही अमर ने मुझे बच्चे को दूध पिला कर सुलाने को कहा ताकि हम बेफिक्र हो कर प्यार करते रहें।

सो मैंने बच्चे को दूध पिला कर सुला दिया।

तब अमर ने मुझसे कहा- ब्रा और पैंटी पहन कर दिखाओ, तुम उनमें कैसी लगती हो?

मैंने बारी-बारी से पहन कर दिखाया, जिसमें से सफ़ेद रंग की ब्रा और पैंटी मुझे भी बहुत अच्छी लग रही थी।

अमर ने मुझे पास बुलाया और अपनी गोद में बिठा लिया फिर मुझे चूमने लगा। मैंने भी उसको चूमना शुरू कर दिया।

हमारे होंठ आपस में चिपक गए।
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(^^d^-1$s7)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


Read my fev stories
(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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उस लड़की ने मुझे तरह-तरह की ब्रा और पैंटी सेट्स दिखाने शुरू कर दिए जिनमें से 3 सेट्स अमर ने मेरे लिए खरीद लिए।

फिर हमने एक रेस्तरां में जाकर खाना खाया और वापस घर आ गए।

घर आते ही अमर ने मुझे बच्चे को दूध पिला कर सुलाने को कहा ताकि हम बेफिक्र हो कर प्यार करते रहें।

सो मैंने बच्चे को दूध पिला कर सुला दिया।

तब अमर ने मुझसे कहा- ब्रा और पैंटी पहन कर दिखाओ, तुम उनमें कैसी लगती हो?

मैंने बारी-बारी से पहन कर दिखाया, जिसमें से सफ़ेद रंग की ब्रा और पैंटी मुझे भी बहुत अच्छी लग रही थी।

अमर ने मुझे पास बुलाया और अपनी गोद में बिठा लिया फिर मुझे चूमने लगा। मैंने भी उसको चूमना शुरू कर दिया।

हमारे होंठ आपस में चिपक गए, कभी होंठों को चूसते तो कभी जुबान को चूसते।

अमर मेरी जीभ को अपने मुँह के अन्दर भर कर ऐसे चूसने लगा जैसे उसमें से कोई मीठा रस रिस रहा हो।

फिर उसने मेरी ब्रा का हुक खोल दिया और ब्रा निकाल दी।

उसने मुझे बिस्तर पर दीवार से लगा कर बिठा दिया और मेरे स्तनों से खेलने लगा, वो मेरे स्तनों को जोर से मसलता, फिर उन्हें मुँह से लगा कर चूमता और फिर चूचुकों को मुँह में भर कर चूसने लगता।

वो मेरा दूध पीने में मगन हो गया, बीच-बीच में दांतों से काट भी लेता, मैं दर्द से अपने बदन को सिकोड़ लेती।

मैं उत्तेजित होने लगी.. मेरे चूचुक कड़े हो गए थे।

मेरी योनि में भी पानी रिसने लगा था, मैंने भी एक-एक करके अमर के कपड़े उतार दिए और उसको नंगा करके उसके लिंग को मुट्ठी में भर कर जोर-जोर से दबाने लगी और हिलाने लगी।

अमर ने कुछ देर मेरे स्तनों को जी भर चूसने के बाद मेरे पूरे जिस्म को चूमा फिर मेरी पैंटी निकाल दी और मेरी टांगों को फैला कर मेरी योनि के बालों को सहलाते हुए योनि पर हाथ फिराने लगा।

उसने मेरी योनि को दो ऊँगलियों से फैलाया और चूम लिया।

फिर एक ऊँगली अन्दर डाल कर अन्दर-बाहर करने लगा, उसके बाद मुँह लगा कर चूसने लगा।

उसकी इस तरह के हरकतों से मेरे पूरे जिस्म में एक अजीब सी लहर दौड़ने लगी, मैं गर्म होती चली गई।

उसने अब अपनी जीभ मेरी योनि के छेद में घुसाने का प्रयास शुरू कर दिया। मुझे इतना मजा आ रहा था कि मैंने अपने दोनों हाथों से योनि को फैला दिया और अमर उसमें जीभ डाल कर चूसने लगा।

वो कभी मेरी योनि के छेद में जीभ घुसाता तो कभी योनि की दोनों पंखुड़ियों को बारी-बारी चूसता, तो कभी योनि के ऊपर के दाने को दांतों से पकड़ कर खींचता।

इस तरह कभी-कभी मुझे लगता कि मैं झड़ जाऊँगी पर अमर को मेरी हर बात का मानो अहसास हो चुका था, उसने मुझे छोड़ दिया और अपना लिंग मेरे मुँह के पास कर दिया।

मैंने उसके लिंग को मुठ्ठी में भर कर पहले आगे-पीछे किया, फिर लिंग के चमड़े को पीछे की तरफ खींच कर सुपारे को खोल दिया।

पहले तो मैंने उसके सुपारे को चूमा फिर जुबान को पूरे सुपारे में फिराया और मुँह में भर कर चूसने लगी।

मैंने एक हाथ से उसके लिंग को पकड़ रखा था और आगे-पीछे कर रही थी और दूसरे हाथ से उसके दो गोल-गोल अन्डकोषों को प्यार से दबा-दबा कर चूस रही थी।

अमर का लिंग पूरी तरह सख्त हो गया था और इतना लाल था जैसे कि अभी फूट कर खून निकल जाएगा।

उसने मुझे कहा- मुझे और मत तड़पाओ जल्दी से अपने अन्दर ले लो।

मैंने भी कहा- मैं तो खुद तड़प रही हूँ.. अब जल्दी से मेरे अन्दर आ जाओ…

और मैंने अपनी टाँगें फैला कर उसके सामने लेट गई।

तब अमर ने कहा- ऐसे नहीं.. आज मुझे कुछ और तरीके से मजा लेने दो.. आज का दिन हमारा है।

यह कह कर उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे आईने के सामने खड़ा कर दिया और मेरी एक टांग को ड्रेसिंग टेबल पर चढ़ा दिया।

फिर वो सामने से मेरे एक नितम्ब को पकड़ कर अपने लिंग को मेरी योनि में रगड़ने लगा।

मुझसे रहा नहीं जा रहा था सो मैंने कहा- अब देर मत करो, कितना तड़फाते हो तुम!!

यह सुनते ही उसने लिंग को छेद पर टिका कर एक धक्का दिया… लिंग मेरी योनि के भीतर समा गया।

मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी मनोकामना पूरी हो गई, एक सुकून का अहसास हुआ, पर अभी पूरा सुकून मिलना बाकी था।

उसने मुझे धक्के लगाने शुरू कर दिए और मेरे अन्दर चिनगारियाँ आग का रूप लेने लगीं।

मैं बार-बार आइने में देख रही थी, कैसे उसका लिंग मेरी योनि के अंतिम छोर को छू कर वापस बाहर आ रहा है।

कुछ देर मैं इतनी ज्यादा गर्म हो गई कि मैं अमर को अपने हाथों और पैरों से दबोच लेना चाहती थी। मेरी योनि पहले से कही ज्यादा गीली हो गई थी जिसकी वजह से उसका लिंग ‘चिपचिप’ करने लगा था।

मैंने अमर से कहा- मुझसे अब ऐसे और नहीं खड़ा रहा जाता.. मुझे बिस्तर पर ले चलो।

उसने अपना लिंग बाहर निकाला और बिस्तर पर लेट गया और मुझे अपने ऊपर आने को कहा।

मैंने अपने दोनों टाँगें अमर के दोनों तरफ फैला कर अमर के लिंग के ऊपर योनि को रख दिया और अमर के ऊपर लेट गई।

अमर ने अपनी कमर को हिला कर लिंग से मेरी योनि को टटोलना शुरू किया। योनि की छेद को पाते ही अमर ने अपनी कमर उठाई,

तो लिंग योनि में घुस गया और मैंने भी अपनी कमर पर जोर दिया तो लिंग मेरी योनि के अंतिम छोर तक घुसता चला गया।

मैंने अब अपनी कमर को ऊपर-नीचे करना शुरू कर दिया और अमर मेरे कूल्हों को पकड़ कर मुझे मदद करने लगा।

मैंने अपने होंठ अमर के होंठों से लगा दिए और अमर ने चूमना और चूसना शुरू कर दिया। थोड़ी देर बाद मैंने अपने स्तनों को बारी-बारी से उसके मुँह से लगा कर अपने दूध चुसवाने लगी।

मैं अपनी पूरी ताकत से धक्के लगा रही थी और अमर भी नीचे से अपनी कमर को नचाने लगा था।

अमर को बहुत मजा आ रहा था और यह सोच कर मैं भी खुश थी कि अमर को मैं पूरी तरह से खुश कर रही हूँ।

मैं बुरी तरह से पसीने में भीग गई थी और मैं हाँफने लगी थी।

तब उसने मुझे पेट के बल लिटा दिया और मेरे पीछे आ गया और मेरे कूल्हों को ऊपर करने को कहा।

उसने लिंग मेरी योनि में घुसा कर धक्के देना शुरू कर दिया, साथ ही मेरे स्तनों से खेलने लगा।

कुछ देर बाद मुझे उसने सीधा लिटा दिया और कमर के नीचे तकिया रख मेरी टाँगें फैला कर लिंग अन्दर घुसा कर.. मेरे ऊपर लेट गया और धक्के देने लगा।

हमें सम्भोग करते हुए करीब आधा घंटा हो चुका था और अब हम चरम सीमा से दूर नहीं थे।

मैं भी अब चाहती थी कि मैं अमर के साथ ही झड़ू, क्योंकि उस वक़्त जो मजा आता है वो सबसे अलग और सबसे ज्यादा होता है।

मैंने अमर के गले में हाथ डाल कर उसको पकड़ लिया और टांगों को ज्यादा से ज्यादा उठा कर उसके कूल्हों पर चढ़ा दिया ताकि उसे अपना लिंग मेरी योनि में घुसाने को ज्यादा से ज्यादा जगह मिल सके।

उसने भी मुझे कन्धों से पकड़ा और एक जोर का धक्का देकर सुपारे को मेरी बच्चेदानी में रगड़ने लगा।

मैं मस्ती में सिसकने लगी और मैंने अपनी पकड़ और कड़ा कर दिया।

अमर मेरी हालत देख समझ गया कि मैं झड़ने वाली हूँ, उसने पूरी ताकत के साथ मुझे पकड़ा और मेरी आँखों में देखा।

मैंने भी उससे अपनी नजरें मिलाईं।

अब वो पूरी ताकत लगा कर तेज़ी से धक्के लगाने लगा।

उसके चेहरे से लग रहा था जैसे वो मुझे संतुष्ट करने के लिए कोई जंग लड़ रहा है।

मैंने भी उसे पूरा मजा देने के लिए अपनी योनि को सिकोड़ लिया और उसके लिंग को योनि से कस लिया।

हम दोनों तेज़ी से सांस लेने लगे, तेज धक्कों के साथ मेरी ‘आहें’ तेज़ होती चली गईं।

मेरा पूरा बदन अकड़ने लगा और मैं झड़ गई…

मैं पूरी मस्ती में कमर उछालने लगी और अमर भी इसी बीच जोर-जोर के धक्कों के साथ झड़ गया।

हम दोनों ने एक-दूसरे को कस कर पकड़ लिया और हाँफने लगे।

अमर का सुपारा मेरी बच्चेदानी से चिपक गया और उसका वीर्य मेरी बच्चेदानी को नहलाने लगा।

कुछ देर तक हम ऐसे ही एक-दूसरे से चिपक कर सुस्ताते रहे।

जैसे-जैसे अमर का लिंग का आकार कम होता गया, मेरी योनि से अमर का रस रिस-रिस कर बहने लगा और बिस्तर के चादर पर फ़ैल गया।

कुछ देर में अमर मेरे ऊपर से हट कर मेरे बगल में लेट गया और कहा- तुम्हें मजा आया?

मैंने जवाब दिया- क्या कभी ऐसा हुआ कि मुझे मजा नहीं आया हो… तुम्हारे साथ?

उसने मेरे गालों पर हाथ फेरते हुआ कहा- तुम में अजीब सी कशिश है.. जितना तुम्हें प्यार करना चाहता6 हूँ उतना ही कम लगता है।

यह कहते हुए उसने मुझे अपनी बांहों में भर कर दुबारा चूमना शुरू कर दिया।

अभी हमारे बदन का पसीना सूखा भी नहीं था और मेरी योनि अमर के वीर्य से गीली होकर चिपचिपी हो गई थी।

उसके चूमने और बदन को सहलाने से मेरे अन्दर वासना की आग फिर से भड़क उठी और मैं गर्म हो कर जोश में आने लगी।

मैंने उसके लिंग को हाथों में भर कर जोर से मसलना शुरू कर दिया।

कुछ ही देर में वो दुबारा सख्त होने लगा।

वो मेरे स्तनों से खेलने में मगन हो गया और मैं उसके लिंग को दुबारा सम्भोग के लिए तैयार करने लगी।

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मैंने उसके लिंग को हाथों में भर कर जोर से मसलना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में वो दुबारा सख्त होने लगा।

वो मेरे स्तनों से खेलने में मगन हो गया और मैं उसके लिंग को दुबारा सम्भोग के लिए तैयार करने लगी।

मैंने उसके लिंग को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया। कुछ ही पलों में वो एकदम कड़क हो गया।

अमर ने मेरी योनि में ऊँगली डाल कर अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया और कुछ ही पलों में मैं सम्भोग के लिए फिर से तड़पने लगी।

उसने मुझे खींच कर अपने ऊपर चढ़ा लिया, मैंने भी अपनी टाँगें फैला कर उसके लिंग के ऊपर अपनी योनि को सामने कर दिया और उसके ऊपर लेट गई।

अमर ने हाथ से अपने लिंग को पकड़ कर मेरी योनि में रगड़ना शुरू कर दिया। मैं तड़प उठी क्योंकि मैं जल्द से जल्द उसे अपने अन्दर चाहती थी।

मैंने अब उसे इशारा किया तो उसने अपने लिंग के सुपाड़े को योनि की छेद में टिका दिया और अपनी कमर उठा दी, उसका लिंग मेरी योनि में सुपाड़े तक घुस गया, फिर मैंने भी जोर लगाया तो लिंग पूरी गहराई में उतर गया।

मैंने मजबूती से अमर को पकड़ा और अमर ने मुझे और मैंने धक्कों की प्रक्रिया को बढ़ाने लगी। कुछ पलों में अमर भी मेरे साथ नीचे से धक्के लगाने लगे।

करीब 10 मिनट में मैं झड़ गई, पर खुद पर जल्दी से काबू करते हुए मैंने अमर का साथ फिर से देना शुरू कर दिया।

हम पूरे जोश में एक-दूसरे को प्यार करते चूमते-चूसते हुए सम्भोग का मजा लेने लगे।

हम दोनों इस कदर सम्भोग में खो गए जैसे हम दोनों के बीच एक-दूसरे को तृप्त करने की होड़ लगी हो।

मैं अब झड़ रही थी मैंने अपनी पूरी ताकत से अमर को अपने पैरों और टांगों से कस लिया और कमर उठा दी।

मेरी मांसपेसियाँ अकड़ने लगीं और मेरी योनि सिकुड़ने लगी, जैसे अमर के लिंग को निचोड़ देगी और मैं झटके लेते हुए शांत हो गई।

उधर अमर भी मेरी योनि में लिंग को ऐसे घुसा रहा था, जैसे मेरी बच्चेदानी को फाड़ देना चाहता हो।

उसका हर धक्का मेरी बच्चेदानी में जोर से लगता और मैं सहम सी जाती।

उसने झड़ने के दौरान जो धक्के मेरी योनि में लगाए उसे बर्दास्त करना मुश्किल हो रहा था।

करीब 10-12 धक्कों में वो अपनी पिचकारी सी तेज़ धार का रस मेरी योनि में छोड़ते हुए शांत हो गया और तब जा कर मुझे थोड़ी राहत मिली।

अमर झड़ने के बाद भी अपने लिंग को पूरी ताकत से मेरी योनि में कुछ देर तक दबाता रहा। फिर धीरे-धीरे सुस्त हो गया और मेरे ऊपर लेट गया।

कुछ पलों के बाद मैंने उसे अपने ऊपर से हटाया और वो मेरे बगल में सो गया। मैं बाथरूम चली गई और जब वापस आई तो उसने मुझे फिर दबोच लिया और हम फिर से शुरू हो गए।

हमने फिर से सम्भोग किया और मैं बुरी तरह से थक कर चूर हो चुकी थी।

मैं झड़ने के बाद कब सो गई, पता ही नहीं चला।

मुझे जब बच्चे की रोने की आवाज आई तो मेरी आँख खुली, मैंने देखा कि शाम के 5 बज रहे थे।

मेरा मन बिस्तर से उठने को नहीं कर रहा था, पर बच्चे को रोता देख उठी और बच्चे को दूध पिलाते हुए फिर से लेट गई।

बच्चे का पेट भरने के बाद मैंने उसे दुबारा झूले में लिटा कर बाथरूम गई, खुद को साफ़ किया और वापस आकर चाय बनाई।

मैंने अमर को उठाया और उसे चाय दी। अमर चाय पीने के बाद बाथरूम जाकर खुद को साफ़ करने के बाद मेरे साथ बैठ कर बातें करने लगे।

उसने कहा- आज का दिन कितना बढ़िया है.. हमारे बीच कोई नहीं.. हम खुल कर प्यार कर रहे हैं और किसी का डर भी नहीं है।

मैंने कहा- पर आज कुछ ज्यादा ही हो रहा है… मेरी हालत ख़राब होने को है।

अमर ने कहा- अभी कहाँ.. अभी तो पूरी रात बाकी है और ऐसा मौका कब मिले कौन जानता है।

यह कहते हुए उसने मुझे फिर से अपनी बांहों में भर लिया और चूमने लगा।

पास में ही बच्चा झूले में बैठा खेल रहा था, मुझे यह ठीक नहीं लग रहा था तो मैंने अमर से कहा- यहाँ बच्चे के सामने ठीक नहीं है.. रात में उसके सोने के बाद जो मर्ज़ी सो करना।

पर अमर मेरी कहाँ सुनने वाला था, उसने कहा- ये तो सिर्फ 5 महीने का है.. इसे क्या पता हम क्या कर रहे हैं… फिर भी अगर तुम्हें परेशानी है तो इसे सुला दो।

मैंने उसे बताया- यह दिन भर सोया है और अभी कुछ देर पहले ही उठा है.. अभी नहीं सोएगा.. हम बाद में प्यार करेंगे.. रात भर.. मैं तो साथ में ही रहूँगी।

अमर मेरी बात को कहाँ मानने वाले थे, वो तो बस मेरे जिस्म से खेलने के लिए तड़प रहे थे।

उसने मेरे ही बच्चे के सामने मुझे तुरंत नंगा कर दिया और मेरे पूरे जिस्म को चूमने लगे।

मैं बैठी थी और अमर मेरे स्तनों को चूसने लगा। वो बारी-बारी से दोनों स्तनों से दूध पीने लगे और सामने मेरा बच्चा खेलते हुए कभी हमें देखता तो कभी खुद खिलौने से खेलने लगता।

कभी वो बड़े प्यार से मेरी तरफ देखा और मुस्कुराता, पर अमर पर इन सब चीजों का कोई असर नहीं हो रहा था… वो बस मेरे स्तनों को चूसने में लगा हुआ था।

मैंने अमर से विनती की कि मुझे छोड़ दे.. पर वो नहीं सुन रहा था। उसने थोड़ी देर में मेरी योनि को चूसना शुरू कर दिया और मैं भी गर्म होकर सब भूल गई।

मैंने भी उसका लिंग हाथ से सहलाना और हिलाना शुरू कर दिया। फिर अमर ने मुझे लिंग को चूसने को कहा, मैंने उसे चूस कर और सख्त कर दिया।

उसने मुझे आगे की तरफ झुका दिया और मैं अपने घुटनों तथा हाथों के बल पर कुतिया की तरह झुक गई, अमर मेरे पीछे आकर मेरी योनि में लिंग घुसाने लगा।

अमर ने लिंग को अच्छी तरह मेरी योनि में घुसा कर मेरे स्तनों को हाथों से पकड़ा और फिर धक्के लगाने लगा।

मैंने भी उसका साथ देना शुरू कर दिया और आधे घंटे तक सम्भोग करने के बाद हम झड़ गए।

अमर को अभी भी शान्ति नहीं मिली थी, उसने दुबारा सम्भोग किया।

मेरी हालत बहुत ख़राब हो चुकी थी और मेरे बदन में दर्द होने लगा था।

मैंने अमर से कहा- रात का खाना कहीं बाहर से ले आओ.. क्योंकि मैं अब खाना नहीं बना सकती… बहुत थक चुकी हूँ।

अमर बाहर चले गए और मैं फिर से सो गई, मैं बहुत थक चुकी थी।

हमने अब तक 6 बार सम्भोग किया था, पर अभी तो पूरी रात बाकी थी।

कहते हैं कि हर आने वाला तूफ़ान आने से पहले कुछ इशारा करता है। शायद यह भी एक इशारा ही था कि हम दिन दुनिया भूल कर बस एक-दूसरे के जिस्मों को बेरहमी से कुचलने में लगे थे।

लगभग 9 बजे के आस-पास अमर वापस आए फिर हमने बिस्तर पर ही खाना खाया और टीवी देखने लगे।

मैंने अपने बच्चे को दूध पिलाया और सुला दिया।

रात के करीब 11 बजे मैंने अमर से कहा- मैं सोने जा रही हूँ।

अमर ने कहा- ठीक है.. मैं थोड़ी देर टीवी देख कर सोऊँगा।

मैं अभी हल्की नींद में ही थी, तब मेरे बदन पर कुछ रेंगने सा मैंने महसूस किया।

मैंने आँख खोल कर देखा तो अमर का हाथ मेरे बदन पर रेंग रहा था।

मैंने कहा- अब बस करो.. कितना करोगे.. मार डालोगे क्या?

अमर ने कहा- अगर प्यार करने से कोई मर जाता, तो पता नहीं कितने लोग अब तक मर गए होते, एक अकेले हम दोनों ही नहीं हैं इस दुनिया में.. जो प्यार करते हैं।

फिर उसने मेरे बदन से खेलना शुरू कर दिया, हम वापस एक-दूसरे से लिपट गए।

हम दोनों ऐसे एक-दूसरे को चूमने-चूसने लगे जैसे कि एक-दूसरे में कोई खजाना ढूँढ रहे हों।

काफी देर एक-दूसरे को चूमने-चूसने और अंगों से खेलने के बाद अमर ने मेरी योनि में लिंग घुसा दिया।

अमर जब लिंग घुसा रहे थे तो मुझे दर्द हो रहा था, पर मैं बर्दास्त करने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी।

काफी देर सम्भोग के बाद अमर शांत हुए, पर तब मैंने दो बार पानी छोड़ दिया था। बिस्तर जहाँ-तहाँ गीला हो चुका था और अजीब सी गंध आनी शुरू हो गई थी।

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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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हम दोनों ऐसे एक-दूसरे को चूमने-चूसने लगे जैसे कि एक-दूसरे में कोई खजाना ढूँढ रहे हों।

काफी देर एक-दूसरे को चूमने-चूसने और अंगों से खेलने के बाद अमर ने मेरी योनि में लिंग घुसा दिया।

अमर जब लिंग घुसा रहे थे तो मुझे दर्द हो रहा था, पर मैं बर्दास्त करने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी।

काफी देर सम्भोग के बाद अमर शांत हुए, पर तब मैंने दो बार पानी छोड़ दिया था। बिस्तर जहाँ-तहाँ गीला हो चुका था और अजीब सी गंध आनी शुरू हो गई थी।

इसी तरह सुबह होने को थी, करीब 4 बजने को थे। हम 10 वीं बार सम्भोग कर रहे थे। मेरे बदन में इतनी ताकत नहीं बची थी कि मैं अमर का साथ दे सकूँ, पर ऐसा लग रहा था जैसे मेरे अन्दर की प्यास अब तक नहीं बुझी थी।

जब अमर मुझे अलग होता, तो मुझे लगता अब बस और नहीं हो सकता.. पर जैसे ही अमर मेरे साथ अटखेलियाँ करते.. मैं फिर से गर्म हो जाती।

जब हम सम्भोग कर रहे थे.. मैं बस झड़ने ही वाली थी कि मेरा बच्चा जग गया और रोने लगा।

मैंने सोचा कि अगर मैं उठ गई तो दुबारा बहुत समय लग सकता है इसलिए अमर को उकसाने के लिए कहा- तेज़ी से करते रहो.. मुझे बहुत मजा आ रहा है.. रुको मत।

यह सुनते ही अमर जोर-जोर से धक्के मारने लगे।

मैंने फिर सोचा ये क्या कह दिया मैंने, पर अमर को इस बात से कोई लेना-देना नहीं था.. वो बस अपनी मस्ती में मेरी योनि के अन्दर अपने लिंग को बेरहमी से घुसाए जा रहे थे।

मैंने अमर को पूरी ताकत से पकड़ लिया, पर मेरा दिमाग दो तरफ बंट गया।

एक तरफ मैं झड़ने को थी और अमर थे दूसरी तरफ मेरे बच्चे की रोने की आवाज थी।

मैंने हार मान कर अमर से कहा- मुझे छोड़ दो, मेरा बच्चा रो रहा है।

पर अमर ने मुझे और ताकत से पकड़ लिया और धक्के मारते हुए कहा- बस 2 मिनट रुको.. मैं झड़ने को हूँ।

अब मैं झड़ चुकी थी और अमर अभी भी झड़ने के लिए प्रयास कर रहा था।

उधर मेरे बच्चे के रोना और तेज़ हो रहा था। अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैंने जोर लगा कर अमर को खुद से अलग करने की कोशिश करने लगी, साथ ही उससे विनती करने लगी कि मुझे छोड़ दे।

मैं बार-बार विनती करने लगी- प्लीज अमर… छोड़ दो बच्चा रो रहा है.. उसे सुला कर दोबारा आ जाऊँगी।

पर अमर लगातार धक्के लगाते हुए कह रहा था- बस हो गया.. थोड़ा सा और..

काफी हाथ-पाँव जोड़ने के बाद अमर ने मुझे छोड़ दिया और जल्दी वापस आने को कहा।

मैंने अपने बच्चे को गोद में उठाया और उसे दूध पिलाने लगी। मैं बिस्तर पर एक तरफ होकर दूध पिला रही थी और अमर मेरे पीछे मुझसे चिपक कर मेरे कूल्हों को तो कभी जाँघों को सहला रहा था।

मैंने अमर से कहा- थोड़ा सब्र करो.. बच्चे को सुला लूँ।

अमर ने कहा- ये अच्छे समय पर उठ गया.. अब जल्दी करो।

मैं भी यही अब चाहती थी कि बच्चा सो जाए ताकि अमर भी अपनी आग शांत कर सो जाए और मुझे राहत मिले।

अमर अपने लिंग को मेरे कूल्हों के बीच रख रगड़ने में लगा था, साथ ही मेरी जाँघों को सहला रहा था।

कुछ देर बाद मेरा बच्चा सो गया और मैंने उसे झूले में सुला कर वापस अमर के पास आ गई।

अमर ने मुझे अपने ऊपर सुला लिया और फिर धीरे-धीरे लिंग को योनि में रगड़ने लगा।

मैंने उससे कहा- अब सो जाओ.. कितना करोगे.. मेरी योनि में दर्द होने लगा है।

उसने कहा- हां बस.. एक बार मैं झड़ जाऊँ.. फिर हम सो जायेंगे।

मैंने उससे कहा- आराम से घुसाओ और धीरे-धीरे करना।

उसने मुझे कहा- तुम धक्के लगाओ।

पर मैंने कहा- मेरी जाँघों में दम नहीं रहा।

तो उसने मुझे सीधा लिटा दिया और टाँगें चौड़ी कर लिंग मेरी योनि में घुसा दिया.. मैं कराहने लगी।

उसने जैसे ही धक्के लगाने शुरू किए… मेरा कराहना और तेज़ हो गया।

तब उसने पूछा- क्या हुआ?

मैंने कहा- बस अब छोड़ दो.. दर्द बर्दाश्त नहीं हो रहा है।

तब उसने लिंग को बाहर निकाल लिया मुझे लगा शायद वो मान गया, पर अगले ही क्षण उसने ढेर सारा थूक लिंग के ऊपर मला और दुबारा मेरी योनि में घुसा दिया।

मैं अब बस उससे विनती ही कर रही थी, पर उसने मुझे पूरी ताकत से पकड़ा और प्यार से मेरे होंठों को चूमते हुए कहा- बस कुछ देर और मेरे लिए बर्दाश्त नहीं कर सकती?

मैं भी अब समझ चुकी थी कि कुछ भी हो अमर बिना झड़े शांत नहीं होने वाला.. सो मैंने भी मन बना लिया और दर्द सहती रही।

अमर का हर धक्का मुझे कराहने पर मजबूर कर देता और अमर भी थक कर हाँफ रहा था।

ऐसा लग रहा था जैसे अमर में अब और धक्के लगाने को दम नहीं बचा, पर अमर हार मानने को तैयार नहीं था।

उसका लिंग जब अन्दर जाता, मुझे ऐसा लगता जैसे मेरी योनि की दीवारें छिल जायेंगी।

करीब 10 मिनट जैसे-तैसे जोर लगाने के बाद मुझे अहसास हुआ कि अमर अब झड़ने को है.. सो मैंने भी अपने जिस्म को सख्त कर लिया.. योनि को सिकोड़ लिया.. ताकि अमर का लिंग कस जाए और उसे अधिक से अधिक मजा आए।

मेरे दिमाग में यह भी चल रहा था कि झड़ने के दौरान जो धक्के अमर लगायेंगे वो मेरे लिए असहनीय होंगे.. फिर भी अपने आपको खुद ही हिम्मत देती हुई अमर का साथ देने लगी।

अमर ने मेरे होंठों से होंठ लगाए और जीभ को चूसने लगा साथ ही मुझे पूरी ताकत से पकड़ा और धक्कों की रफ़्तार तेज़ कर दी।

उसका लिंग मेरी योनि की तह तक जाने लगा, 7-8 धक्कों में उसने वीर्य की पिचकारी सी मेरे बच्चेदानी पर छोड़ दी और हाँफता हुआ मेरे ऊपर ढेर हो गया।

उसके शांत होते ही मुझे बहुत राहत मिली, मैंने उसे अपने ऊपर से हटाया और हम दोनों सो गए।

एक बात मैंने ये जाना कि मर्द जोश में सब कुछ भूल जाते हैं और उनके झड़ने के क्रम में जो धक्के होते हैं वो बर्दाश्त के बाहर होते हैं।

मेरे अंग-अंग में ऐसा दर्द हो रहा था जैसे मैंने न जाने कितना काम किया हो

अमर ने मुझे 7 बजे फिर उठाया और मुझे प्यार करने लगा।

मैंने उससे कहा- तुम्हें काम पर जाना है तो अब तुम जाओ.. तुम्हें इधर कोई देख लेगा तो मुसीबत हो जाएगी।

अमर ने कहा- तुमसे दूर जाने को जी नहीं कर रहा।

उसने मुझे उठाते हुए अपनी गोद में बिठा लिया और बांहों में भर कर मुझे चूमने लगा।

मैंने कहा- अभी भी मन नहीं भरा क्या?

उसने जवाब दिया- पता नहीं.. मेरे पूरे जिस्म में दर्द है, मैं ठीक से सोया नहीं, पर फिर भी ऐसा लग रहा है.. जैसे अभी भी बहुत कुछ करने को बाकी है।

मैंने उसे जाने के लिए जोर दिया और कहा- अब बस भी करो.. वरना तुम्हें देर हो जाएगी।

पर उस पर मेरी बातों का कोई असर नहीं हो रहा था, वो मुझे बस चूमता जा रहा था और मेरे स्तनों को दबाता और उनसे खेलता ही जा रहा था।

मेरे पूरे शरीर में पहले से ही काफी दर्द था और स्तनों को तो उसने जैसा मसला था, पूरे दिन उसकी बेदर्दी की गवाही दे रहे थे.. हर जगह दांतों के लाल निशान हो गए थे।

यही हाल मेरी जाँघों का था, उनमें भी अकड़न थी और कूल्हों में भी जबरदस्त दर्द था। मेरी योनि बुरी तरह से फूल गई थी और मुँह पूरा खुल गया था जैसे कोई खिला हुआ फूल हो।

अमर ने मुझे चूमते हुए मेरी योनि को हाथ लगा सहलाने की कोशिश की.. तो मैं दर्द से कसमसा गई और कराहते हुए कहा- प्लीज मत करो.. अब बहुत दर्द हो रहा है।

तब उसने भी कहा- हां.. मेरे लिंग में भी दर्द हो रहा है, क्या करें दिल मानता ही नहीं।

मैं उससे अलग हो कर बिस्तर पर लेट गई, तब अमर भी मेरे बगल में लेट गया और मेरे बदन पे हाथ फिराते हुए मुझसे बातें करने लगा।

उसने मुझसे कहा- मैंने अपने जीवन में इतना सम्भोग कभी नहीं किया और जितना मजा आज आया, पहले कभी नहीं आया।

फिर उसने मुझसे पूछा तो मैंने कहा- मजा तो बहुत आया.. पर मेरे जिस्म की हालत ऐसी है कि मैं ठीक से खड़ी भी नहीं हो सकती।

तभी मेरी योनि और नाभि के बीच के हिस्से में उसका लिंग चुभता हुआ महसूस हुआ.. मैंने देखा तो उसका लिंग फिर से कड़ा हो रहा था।

उसके लिंग के ऊपर की चमड़ी पूरी तरह से ऊपर चढ़ गई थी और सुपाड़ा खुल कर किसी सेब की तरह दिख रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे सूज गया हो।

अमर ने मुझे अपनी बांहों में कसते हुए फिर से चूमना शुरू कर दिया, पर मैंने कहा- प्लीज अब और नहीं हो पाएगा मुझसे.. तुम जाओ।

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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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मैंने कहा- मजा तो बहुत आया.. पर मेरे जिस्म की हालत ऐसी है कि मैं ठीक से खड़ी भी नहीं हो सकती।

तभी मेरी योनि और नाभि के बीच के हिस्से में उसका लिंग चुभता हुआ महसूस हुआ.. मैंने देखा तो उसका लिंग फिर से कड़ा हो रहा था।

उसके लिंग के ऊपर की चमड़ी पूरी तरह से ऊपर चढ़ गई थी और सुपाड़ा खुल कर किसी सेब की तरह दिख रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे सूज गया हो।

अमर ने मुझे अपनी बांहों में कसते हुए फिर से चूमना शुरू कर दिया, पर मैंने कहा- प्लीज अब और नहीं हो पाएगा मुझसे.. तुम जाओ।

तब उसने कहा- थोड़ी देर मुझे खुद से अलग मत करो.. मुझे अच्छा लग रहा है।

इस तरह वो मुझे अपनी बांहों में और कसता गया और चूमता गया।

फिर उसने मेरी एक टांग जाँघों से पकड़ कर अपने ऊपर चढ़ा दिया और अपने लिंग को मेरी योनि में रगड़ने की कोशिश करने लगा।

मैं अपनी कमर को उससे दूर करने की कोशिश करने लगी, पर उसने मेरे गले में एक हाथ डाल कर मुझे अपनी और खींच कर होंठों को चूसना शुरू कर दिया और दूसरे हाथ से मेरे कूल्हों को पकड़ अपनी और खींचा।

इससे मेरी योनि उसके लिंग से रगड़ खाने लगी और अमर अपने कमर को नचा कर लिंग को मेरी योनि में रगड़ने लगा।

मेरी योनि में जैसे ही उसका मोटा सुपाड़ा लगा, मैं कराह उठी और झट से उसके लिंग को पकड़ कर दूर करने की कोशिश की, तब अमर ने कहा- आराम से… दुखता है।

मैंने कहा- जब इतना दर्द है.. तो बस भी करो और जाओ काम पर।

तब उसने कहा- बस एक बार और.. अभी तक मेरा दिल नहीं भरा।

मैंने कहा- नहीं.. मुझसे अब और नहीं होगा, मैं मर जाऊँगी।

देखते ही देखते अमर का लिंग और कड़ा हो गया और वो मेरे ऊपर चढ़ गया और मुझे पागलों की तरह चूमने लगा।

मुझमे इतनी ताकत नहीं थी कि मैं उसका साथ दे सकूँ और न ही मेरे जिस्म में हिम्मत थी कि उसका विरोध कर सकूँ।

मेरे साथ न देने को देखते हुए वो मुझसे अलग हो मेरे पैरों की तरफ घुटनों के बल खड़ा हो कर खुद ही अपने हाथ से अपने लिंग को हिलाने लगा और उसे तैयार करने लगा।

मैं बस उसे देखते हुए उससे बार-बार यही कह रही थी- अब बस भी करो..

मैंने अपनी जांघें आपस में सटा लीं पर मेरा ऐसा करना उसके मन को बदल न सका।

उसने मुझसे कहा- बस ये अंतिम बार है और अब मैं चला जाऊँगा।

वो मेरी टांगों को अलग करने की कोशिश करने लगा।

मैं अपनी बची-खुची सारी ताकत को उसे रोकने में लगा रही थी और विनती कर रही थी ‘छोड़ दे..’ पर ये सब व्यर्थ गया।

मैं उसके सामने कमजोर पड़ गई और उसने मेरी टांगों को फैलाया और फिर बीच में आकर मेरे ऊपर झुक गया।

मुझे ऐसा लगने लगा कि आज मेरी जान निकल जाएगी, मुझे खुद पर गुस्सा भी आने लगा कि आखिर मैंने इसे क्यों पहले नहीं रोका।

पहले दिन ही रोक लिया होता तो आज यह नौबत नहीं आती।

मेरी हालत रोने जैसी हो गई थी क्योंकि मुझे अंदाजा था कि क्या होने वाला है, सो अपनी ताकत से उसे धकेल रही थी, पर वो मुझसे ज्यादा ताकतवर था।

उसने एक हाथ में थूक लिया और मेरी योनि की छेद पर मल दिया और उसी हाथ से लिंग को पकड़ कर योनि की छेद पर रगड़ने लगा।

उसके छुअन से ही मुझे एहसास होने लगा कि मेरी अब क्या हालत होने वाली है।

तभी उसने लिंग को छेद में दबाया और सुपाड़ा मेरी योनि में चला गया।

मैं दर्द से कसमसाते हुए कराहने लगी और उसे धकेलने का प्रयास करने लगी, पर अमर ने मुझे कन्धों से पकड़ लिया और धीरे-धीरे अपनी कमर को मेरी योनि में दबाता चला गया।

इस तरह उसका लिंग मेरी योनि में घुसता चला गया.. मैं बस कराहती और तड़पती रही।

मैं विनती करने लगी- प्लीज मुझे छोड़ दो.. मैं मर जाऊँगी.. बहुत दर्द हो रहा है।

पर अमर ने मुझे चूमते हुए कहा- बस थोड़ी देर.. क्या मेरे लिए तुम इतना सा दर्द बर्दास्त नहीं कर सकती?

उसने धीरे-धीरे लिंग को अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया।

मेरे लिए यह पल बहुत ही असहनीय था, पर मेरे किसी भी तरह के शब्द काम नहीं आ रहे थे।

मैं समझ चुकी थी कि अमर अब नहीं रुकेगा पर फिर भी मैं बार-बार उससे कह रही थी- मुझे छोड़ दो.. मैं मर जाऊँगी।

अमर मेरी बातों से जैसे अनजान सा हो गया था और वो धक्के लगाते जा रहे थे और कुछ देर में उनके धक्के तेज़ होने लगे.. जो मेरे लिए किसी श्राप की तरह लगने लगे।

मेरा कराहना और तेज़ हो गया और अब मेरे मुँह से निकलने लगा- धीरे करो.. आराम से करो।

करीब 30 मिनट हो गए, पर अमर अभी तक धक्के लगा रहा था। मुझे लगा कि जल्दी से झड़ जाए तो मुझे राहत मिले।

मैंने कहा- क्या हुआ… जल्दी करो।

उसने कहा- कर रहा हूँ.. पर निकल नहीं रहा।

मैंने उससे कहा- जब नहीं हो रहा.. तो मैं हाथ से निकाल देती हूँ।

उसने कहा- नहीं, बस थोड़ी देर और..

मैंने कहा- तुम मेरी जान ले लोगे क्या.. मैं दर्द से मरी जा रही हूँ, प्लीज छोड़ दो…. मेरी फट जाएगी ऐसा लग रहा है।

मैंने उसे फिर से धकेलना शुरू कर दिया। यह देखते हुए उसे मेरे हाथों को अपने हाथों से पकड़ कर बिस्तर पर दोनों तरफ फैला कर दबा दिया और धक्के लगाने लगा।

उसके धक्के इतने तेज़ हो चुके थे कि मुझे लगा अब मैं नहीं बचूंगी और मेरे आँखों से आंसू आने लगे, पर अमर पर कोई असर नहीं हो रहा था।

उसके दिमाग में सिर्फ चरम-सुख था।

मुझे सच में लगने लगा कि मेरी योनि फट जाएगी, योनि की दीवारों से लिंग ज्यों-ज्यों रगड़ता मुझे ऐसा लगता जैसे छिल जाएगी और बच्चेदानी को तो ऐसा लग रहा था.. वो फट ही चुकी है।

मैं अपने पैरों को बिस्तर पर पटकने लगी, कभी घुटनों से मोड़ लेती तो कभी सीधे कर लेती।

इतनी बार अमर सम्भोग कर चुका था कि मैं जानती थी कि वो इतनी जल्दी वो नहीं झड़ सकता इसलिए मैं कोशिश कर रही थी कि वो मुझे छोड़ दे।

अमर भी धक्के लगाते हुए थक चुका था.. वो हाँफ रहा था, उसके माथे और सीने से पसीना टपक रहा था.. पर वो धक्के लगाने से पीछे नहीं हट रहा था क्योंकि वो भी जानता था कि मैं सहयोग नहीं करुँगी।

करीब 20 मिनट के बाद मुझे महसूस हुआ कि अब वो झड़ने को है.. मैंने खुद को तैयार कर लिया।

क्योंकि अब तक जो दर्द मैं सह रही थी वो कुछ भी नहीं था.. दर्द तो अब होने वाला था।

क्योंकि मर्द झड़ने के समय जो धक्के लगाते हैं वो पूरी ताकत से लगाते हैं।

तो मैंने एक टांग को मोड़ कर अमर की जाँघों के बीच घुसा दिया ताकि उसके झटके मुझे थोड़े कम लगें।

अमर पूरी तरह से मेरे ऊपर लेट गया और मेरे हाथों को छोड़ दिया मैंने अमर की कमर को पकड़ लिया ताकि उसके झटकों को रोक सकूं।

फिर उसने दोनों हाथ को नीचे ले जाकर मेरे चूतड़ों को कस कर पकड़ा और अपनी और खींचते हुए जोरों से धक्के देने लगा।

करीब 8-10 धक्कों में वो शांत हो गया।

मैं उसके धक्कों पर कराहती रही और मेरे आँसू निकल आए।

वो मेरे ऊपर कुछ देर यूँ ही पड़ा रहा फिर मेरे बगल में लेट सुस्ताने लगा।

उसके झड़ने से मुझे बहुत राहत मिली, पर मेरी हालत ऐसी हो गई थी कि मैं वैसे ही मुर्दों की तरह पड़ी रही।

मेरे हाथ-पाँव जहाँ के तहाँ ही थे और मैं दोबारा सो गई।

जब आँख खुली तो खुद को उसी अवस्था में पाया जैसे अमर ने मुझे छोड़ा था, मेरा एक हाथ मेरे पेट पर था दूसरा हाथ सर के बगल में, एक टांग सीधी और दूसरी वैसे ही मुड़ी थी जैसे मैंने उसके झटकों को रोकने के लिए रखा था।

मुझे ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे मेरे बदन में जान ही नहीं बची.. मैं दर्द से कराहती हुई उठी तो अपनी योनि को हाथ लगा कर देखा, उसमें से वीर्य में सना खून मुझे दिखाई दिया।

मैं डर गई और एक तरफ हो कर देखा तो बिस्तर पर भी खून का दाग लगा था, वैसे तो पूरा बिस्तर गन्दा हो गया था, जहाँ-तहाँ वीर्य.. मेरी योनि का पानी और पसीने के दाग दिखाई दे रहे थे।

मैं झट से उसे धोने के लिए डाल देना चाहती थी, पर जैसे ही बिस्तर से उठी तो लड़खड़ाते हुए जमीन पर गिर गई। मेरी टांगों में इतनी ताकत नहीं बची थी कि मैं खड़ी हो सकूं।

मैंने अमर को फोन कर सब कुछ बताया तो वो छुट्टी ले कर आया और मुझे मदद की खुद को साफ़ करने में.. फिर मैंने चादर को धोने के लिए डाल दिया।

उस दिन मैं दिन भर सोई रही.. शाम को मेरा बेटा घर आया तब तक मेरी स्थिति कुछ सामान्य हुई।

फिर शाम को मैं अमर से फोन पर बात की।

मैंने उसे साफ़-साफ़ कड़े शब्दों में कह दिया- तुमने मेरी क्या हालत कर दी.. मेरी योनि फाड़ दी.. अब हम कभी दुबारा सम्भोग नहीं करेंगे।

उसने कहा- नहीं.. ऐसा नहीं है.. मुझे नहीं पता था कि खून निकल रहा है, मुझे भी दर्द हो रहा है और मैं चड्डी तक नहीं पहन पा रहा हूँ।

मैं उससे शाम को सिर्फ झगड़ती ही रही।

अगले कुछ दिनों तक मेरी योनि में दर्द रहा, साथ ही योनि के ऊपर और नाभि के नीचे का हिस्सा भी सूजा हुआ रहा, योनि 2 दिन तक खुली हुई दिखाई देती रही।

मैं अगले 2 हफ्ते तक सम्भोग के नाम से ही डरती रही।
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