अँधेरा सिकुड़ कर कोनों में दुबक रहा था। रौशनी धीरे - धीरे बढ़ रही थी। घोंसलों में पक्षियों की हिलजुल और चीं -चीं उदय होती सुबह का स्वागत कर रही थी। सुबह की गाड़ी की लम्बी कूक और 'दगड -दगड ' ने सारे शेखगढ़ को झकझोर कर जगा दिया था। सूबेदार हरबख्श सिंह की नींद खुली तो सीरी आवाजें मारता गेट को 'थप -थप ' खड़का रहा था। उसने हड़बड़ाहट में टटोल कर चप्पल पहनी और गेट खोलने चल पड़ा। जब उसने गेट खोलने के लिए हाथ बढ़ाया, गेट अंदर से खुला हुआ था।
'' ओये भाई देविआ बाहर से ही अड़ा हुआ लगता है । ''
'' ओह हाँ। '' सीरी बाहर से कुण्डी खोल कर अंदर आ गया।
'' मैंने कहा देवे को चाय बना देती जरा। '' हरबख्श मीती की माँ के सिरहाने खड़ा होकर बोला। मीती की माँ आँखें मलती ' हे वाहेगुरु ' कहती हुई बिस्तर से उठ गई।
'' बाहर कौन गया है ?'' हरबख्श ने मीती की माँ से पूछा।
'' कोई भी नहीं। ''
'' कुण्डी तो बाहर से लगी थी , रात मैं खुद अंदर से लगाकर सोया था। मिन्दर कहाँ है ?''
'' वह तो कोठे पर सोया है। मीती अंदर होगी , रात कहती थी मैं पढ़ कर अंदर ही सो जाऊंगी । ''
हरबख्श ने कोठे पर चढ़कर देखा , मिन्दर सोया हुआ था। हरबंश ने उसे उठा दिया। जब हरबख्श और मिन्दर सीढ़ियां उतर रहे थे तो मीती की माँ घबराई सी भागी आई , '' मीती के बापू ! मीती अंदर नहीं है , उसके कपड़े -लत्ते भी बिखरे पड़े हैं . ''
'' अरे …होगी यहीं कहीं, जायेगी कहाँ ? ''
''ना जी आप अंदर जाकर तो देखो ! '' मीती की माँ आगे -आगे चल पड़ी। जब हरबख्श ने देखा कपड़े सचमुच बिखरे पड़े थे , अलमारी देखी अंदर से गुरमीत के कई सूट गायब थे . अंदर कमरे में देखा , हरबख्श की खुली हुई अलमारी होनी को ब्यान कर रही थी। सारा परिवार सकते में आ गया। मीती की माँ गश खाकर गिर पड़ी। मिन्दर ने भाग कर उसके मुंह में पानी डाला। वह बावरों की तरह 'हाय -हाय ' करने लगी। सभी की अजीब हालत देख कर सीरी भी चारा डालना छोड़ भागा चला आया , '' क्या हो गया जी ? ''
'' मीती घर में नहीं है। '' मिन्दर की बात से सीरी सब कुछ समझ गया।
'' अच्छा सुनो ! जो हो गया सो हो गया। अब बात को यहीं दबा दो , बात बाहर न निकलने पाये . अगर कोई पूछे तो कह देना रिश्तेदारों के घर गई है। तब तक हम सोचते हैं क्या करना है , मेरे भाई तुम भी बात अपने तक ही रखना। '' हरबंश ने सारे परिवार को समझाते हुए कहा।
सारे परिवार ने किसी के कान तक हवा न लगने दी। मिन्दर और हरबख्श सुबह ही गाड़ी लेकर खोज में निकल पड़ते और शाम तक थके -हारे घर लौटते। मीती की माँ पानी का गिलास पकड़ाते हुए पूछती , '' लगा कुछ पता ? '' पर हरबख्श का उदासी में झुका सर ' नहीं ' में हिल जाता। मीती की माँ कलेजा पकड़ कर बैठ जाती। दो तीन दिन जब कोई सुचना हाथ न लगी तो हरबख्श ने संगरूर जाकर अपने मित्र थानेदार से बात की। थानेदार ने उसे तस्सली भरा हुंकारा देकर रवाना कर दिया और खुद गुप्त रूप से छानबीन करनी शुरू कर दी।
23
जाट धरमशाला की ऊपर की छत से सारे कुरुक्षेत्र की लाइटें दिवाली में लगे दीयों की तरह चमक रही थीं। सारा आसमान तारों से भरा था। नीचे सड़क पर कारें , जीपों की लाइटें चींटियों की तरह इधर -उधर भागती नज़र आ रही थीं। सामने शांतिनगर से गुजरती रेल की पटरी पर ' दगड -दगड ' करती जाती रेल गाड़ी शांति नगर की शांति भंग करने में जुटी थी। नीचे धरमशाला में नए आते -जाते मुसाफिरों का शोर था। भगवान और गुरमीत धरमशाला की ऊपर की छत पर खड़े सुबह यहाँ से चले जाने की सलाह बना रहे थे। उनको यहाँ आये पांच दिन हो गए थे। पहले तो चार -पांच दिन कुछ सुझा ही नहीं था कि क्या किया जाये। फिर भगवान की सोच के आगे गुरदीप सरपंच आ खड़ा हुआ था। आज सुबह जब गुरदीप को फोन किया तो उसने सलाह दी कि वे कोर्ट मैरिज का मुकदमा संगरूर ही करें। गुरदीप सरपंच ने उन्हें कल शाम तक संगरूर पहुँचने की ताकीद भी की ताकि वह परसों सवेरे नौ बजे तक उनसे मिलकर आगे आने वाले हालातों के बारे सलाह मशवरा कर सके। उस वक़्त भगवान भी डर को पीछे छोड़ हौंसले में आ गया था , जब गुरदीप ने बता दिया था कि अब तो तुम्हारे घर वाले भी ज्यादा विरोध नहीं कर रहे। गुरदीप ने भगवान को यह भी हौसला दिया था कि अगर कोई जरुरत आन पड़ी तो वह खुद आगे होकर घर वालों को मना लेगा।
गुरदीप भगवान से फोन पर कितनी ही देर सलाह मशवरा करता रहा था। उसकी हौंसला देती बातें सुन भगवान हल्का हो गया था। उसने दिमाग में उठाया चिंताओं का भार एक ही झटके में उतार दिया। सरपंच से बातें करने के बाद उसके डोलते दिल को सहारा मिल गया था। अब उसे अपनी मंज़िल की ओर जाता रस्ता साफ़ दिखाई दे रहा था।
सुबह उठकर दोनों ने ख़ुशी -ख़ुशी अपने कपडे -लत्ते बैग में डाल लिए। पहले गुरुद्वारे जाकर मत्था टेका , देग करवाई और फिर यूनिवर्सिटी के गेट के आगे से कैथल की ओर जाने वाली बस में चढ़ गए। कैथल से सीधी संगरूर की बस मिल गई। तीन बजे तक संगरूर पहुँच गए। संगरूर बस अड्डे पर दोनों डरते -डरते उतरे , क्या पता कोई जान पहचान का न मिल जाये। लम्बे सफर ने दोनों को तोड़ दिया था। उसपर सारे दिन की भूख ने बुरा हाल कर दिया था। दोनों घबराये से बस अड्डे से बाहर आ गए।
'' गुरमीत। ''
'' हाँ। ''
'' पहले कुछ खा -पी लेते हैं , आगे की फिर देखेंगे। मैं तो मरने जैसा हुआ पड़ा हूँ। ''
'' चलो ठीक है , भूख तो मुझे भी बहुत लगी है। ''
दोनों बड़े बज़ार की ओर चल पड़े। छोटे चौक जाकर बाएं मुड़ गए।
'' यहीं ठीक है। '' भगवान ने खड़े होकर सामने के होटल की ओर इशारा किया। गुरमीत ने सर हिलाकर सहमति दे दी। दोनों होटल में जा बैठे।
'' आओ साहब '' बैरे ने पास के मेज की ओर इशारा कर दिया। गुरमीत और भगवान कुर्सियों पर बैठ गए। बैरे ने कंधे पर रखा गिला तौलिया सामने के मेज पर मार दिया और फिर उसी तौलिये से हाथ पोंछ कर दोबारा कंधे पर टिका लिया। पहले से पड़े गिलास और जग उठा लिए तथा दो गिलास और पानी का जग रख गया .
''हाँ साहब ?'' बैरा खाने के लिए पूछ रहा था।
'' दो पूरियों की प्लेटें। '' भगवान ने हुक्म दिया।
'' चाय ? '' बैरे ने पूछा।
'' बाद में। ''
'' अच्छा जी। '' कहकर बैरा चला गया।
पूरियों की प्लेटें आ गई। दोनों ने अभी एक - एक पूरी ही खाई थी . जब गुरमीत ने दूसरी पूरी का कौर तोड़ते हुए सामने देखा तो उसकी आँखें वहीँ पत्थर बन गई। दिल सहम गया। माथे से पसीना चूने लगा। होंठों पर सिसकी आ गई। दिल धक् -धक् बजने लगा। सामने दो सिपाही और एक थानेदार होटल वाले से बातें कर रहे थे। होटल वाला हुक्म सुन मिठाई तौलने लगा।
'' भागू ! '' सहमी हुई गुरमीत के गले से बमुश्किल बोल निकला।
'' हाँ , क्या हुआ ?'' गुरमीत की ऐसी हालत देख भागू के भी होश उड़ गए।
'' वह सामने जो थानेदार खड़ा है , '' भगवान ने गर्दन घुमा कर पीछे की ओर देखा और फिर सवालिया नज़रें गुरमीत के चेहरे पर गड़ा दी , '' वह मेरे डैडी का दोस्त है , हमारे घर भी आया है कई बार। ''
'' फिर क्या हो गया। '' भगवान ने बेपरवाह सा होकर कहा।
'' वह मुझे जानता है अच्छी तरह से । हमारी बात डैडी ने इसे भी लाज़मी बताई होगी। '' भगवान ने तो इस बात का अंदाज़ा ही नहीं लगाया था। जब यह बात उसकी समझ में आई तो उसका अंतर हिल गया। दोनों डर से सिकुड़े , नज़रें नीची किये बैठे थानेदार के चले जाने का इन्तजार करने लगे पर थानेदार मिठाई पैक करवा कर होटल वाले को कोई नया हुक्म दे कर कुर्सियों की ओर बढ़ गए ।
'' वे तो इधर ही आ रहे हैं। '' गुरमीत और सिकुड़ गई , जैसे कोई छोटा बच्चा अनजाने जानवर ' माऊं ' के नाम से डर जाता है।
'' अब क्या करें ? '' भगवान ने डरी आवाज़ में पूछा।
'' देखी जायेगी। '' गुरमीत को कोई रस्ता न दिखा।
कुर्सियों पर बैठते समय थानेदार की निगाह सहमें बैठे लड़के -लड़की के ऊपर जा पड़ी। वह बैठता -बैठता वहीँ रुक गया , '' हैं ! गुरमीत ? '' उसकी कुंडलीदार मूछें हैरानी से फड़की। वह घेरने जैसी जल्दी से दोनों के सर ऊपर आ खड़ा हुआ , पीछे दोनों सिपाही।
'' कुड़िये तूने अच्छी इज़ज़त बनाई है अपने डैडी की , हैं ? जरा सा अपने माता -पिता की इज्जत का भी ख्याल कर लेती ?'' थानेदार गुरमीत पर बादलों की तरह गरजा।
'' तुन ओये ! किधर के बड़े आशिक बने फिरते हो ? चल थाने , तेरी निकालें आशिकी। '' थानेदार ने भगवान को बांह से पकड़ कर खड़ा कर लिया।
'' अंकल मैं इसके साथ अपनी मर्जी से आई हूँ। इसका क्या कसूर है। '' गुरमीत भगवान के बराबर खड़ी हो गई।
'' कल तू अपनी मर्जी से कुछ और करेगी , जिन्होंने तुझे जन्मा , पाला , पढ़ाया , उनकी कोई मर्जी नहीं ? '' थानेदार थानेदारी की रौब झाड़ता बरस पड़ा .
'' ब्याह करवा कर इनके साथ रहना है मैंने। चाहे मैं दुःख में रहूँ या सुख में , उन्हें क्या ? अगर उन्होंने मेरे घर नहीं आना तो मत आयें। मैंने तो इन्हीं से विवाह करना है। '' गुरमीत थानेदार की बात का जवाब तल्खी से दे गई।
'' चलो तुम लोगों का कराते हैं विवाह। '' थानेदार और दोनों सिपाही दोनों को पकड़ कर थाने ले गए। थाने ले जाकर पहले तो दोनों को डराते धमकाते रहे। जब दोनों अपनी -अपनी बात पर अड़े रहे तो थानेदार भगवान को थाने में छोड़कर , गुरमीत को अपने साथ घर ले गया। उसने गुरमीत के डैडी को फोन करके घर बुला लिया। गुरमीत की माँ , बाप , भाई और मौसी उसे जबरन कार में डाल कर पिंड की ओर ले चले। कार गुरमीत को लेकर छिपते सूरज की तरह बाज़ार की भीड़ में गुम हो गई।
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गुरदीप सरपंच , गुरनैब , राजा और भगवान के ताऊ का लड़का जग्गा , भगवान का संगरूर बस स्टैंड पर नौ बजे से इन्तजार कर रहे थे पर भगवान कहीं दिखाई न दिया। नौ से साढ़े नौ हो गए , फिर पौने दस और फिर दस बज गए। सबकी परेशानी बढ़ गई . बुरे ख्यालों ने सबके दिमाग जकड़ लिए। आखिर क्या बात हो गई ? समय तो नौ बजे बस अड्डे का ही दिया था।
'' सरपंच , अभी तक भगवान आया क्यों नहीं ? क्या बात हुई होगी ?'' गुरनैब ने सरपंच के पास जाकर पूछा।
'' मुझे तो उसने नौ बजे ही कहा था , कहता था पक्का आ जाऊँगा। '' सरपंच को भी कुछ समझ नहीं आ रही थी .
'' हो सकता है आया ही न हो। '' राजा बोला।
'' परसों तो उसने फोन में कहा था कि मैं यहाँ से कल सुबह ही चल पडूंगा। यदि वहाँ से कल सुबह ही चल पड़ा होगा तो कल दोपहर तक यहाँ पहुँच गया होगा। '' सरपंच के दिमाग में भगवान के साथ हुई सारी बातचीत घूम गई ।
'' कहीं पुलिस के हत्थे न चढ़ गए हों ? '' गुरनैब ने अपनी सोच के मुताबिक शक जाहिर किया।
'' हो सकता है। '' गुरनैब का शक सबको सोचने के लिए मज़बूर कर गया , '' और फिर हम इतनी दूर कैसे पता करेंगे ?' गुरनैब के सामने एक और उलझन आ खड़ी हुई।
'' पहले यहीं पता करते हैं , क्या पता यहीं कोई हादसा हो गया हो।'' सरपंच की बात सबको जंच गई . सरपंच आगे -आगे चल पड़ा बाकि सभी उसके पीछे। बाज़ार से होते हुए वे सभी बड़े चौक पहुँच गए। जब वे थाने के दरवाजे के सामने से गुजरने लगे तो दरवाजे की दाहिनी तरफ बनी हवालात में भगवान बैठा दिखाई दिया। सरपंच को देख कर उसका हौंसला बढ़ आया। वह ख़ुशी और शर्म से होंठों में मुस्कुरा पड़ा। सरपंच उसकी ओर हौंसले से भरा हाथ खड़ा करके सीधे थानेदार के पास जा पहुँचा । गुरदीप सरपंच ने अपनी पहचान बताई और दोनों ने आपस में जोश से हाथ मिलाया। जब उन्होंने भगवान को छोड़ने की बात कही तो थानेदार 'पैरों पर पानी न पड़ने' दे . पहले तो सरपंच मिन्नतें करता रहा जब घी सीधी ऊँगली से निकलता नज़र न आया तो सरपंच थानेदार पर सीधा बरस पड़ा , ''थानेदार साहब ! लड़का -लड़की अपनी मर्जी से विवाह करना चाहते हैं , और फिर ये नाबालिग भी नहीं , दोनों ने बी ए की है। इनको आप किस कानून के तहत रोक रहे हो ? हमारे लड़के का कसूर बताओ क्या है ? कोई पर्चा दर्ज है इसके नाम पर ? आप ने उसे बिना किसी कारण के बंद कर रखा है ! हम मीडिआ को बुलाएंगे। और फिर आप पर नजायज तशदद का केस करेंगे। चलो साथियो !'' सरपंच गुस्से से लाल हुआ कुर्सी से भट्टी के दाने की तरह तिड़कता उठ खड़ा हुआ।
'' सरपंच साहब आप लड़के को ले जाना , इतनी भी क्या जल्दी है, बैठ जाओ दो मिनट। '' थानेदार सरपंच की क़ानूनी बातें सुन कर पानी की झाग की तरह बैठ गया। उसके पैरों के नीचे से जमीन निकल गई। उसने बकरी के बच्चे की तरह से मिन- मिन करके सरपंच को ठंडा कर लिया और आखिर भगवान को उनके साथ जाने दिया।
थाने से वे सीधा कचहरी की ओर चल पड़े। सरपंच की आँखों में अभी भी गुस्सा अंगारों की तरह तप रहा था। यह गुस्सा भगवान के पक्ष में भुगत गया । उसने अच्छे से अच्छा वकील देख कर भगवान और गुरमीत का केस जबर्दस्त तैयार करवाया। शाम छह बजे वे आँखों में उम्मीद लिए कचहरी से बाहर आये।
24
चाहे शेख़गढ़ियों के सारे परिवार ने गुरमीत की बात का पूरी तरह छिपाव रखा था पर अंदर दबी आग का धुँआ कोठे पर चढ़कर चारों ओर फ़ैल गया था। गुरमीत के भाग जाने की खबर मीते की घरवाली के मुंह से होती हुई सारे पिंड में जंगल की आग की तरह फ़ैल गई थी। बाहर ढोल बज गए थे पर अंदर भ्रम था कि बात कोठी की ऊंची दीवारें फलांग नहीं सकी। सारा परिवार शाम को सौ -सौ सलाहें करता था पर कोई बात किसी किनारे नहीं लगी थी।
जिस दिन थानेदार का फोन आया सारे परिवार ने सुख की सांस ली , ' चलो इज्जत मिटटी होने से बच गई। ' वे तुरंत गाडी से गुरमीत को ले आये। घर आते ही अंदर से कुण्डी लगाकर मिन्दर और हरबख्श ने गुरमीत को ' ताबड़ -तोड़ ' पीट डाला। मीती की माँ हाथ जोड़ती , मिन्नतें करती रही पर उसकी किसी ने न सुनी। गुरमीत लाश बनी चुपचाप मार खाती रही। जब पीट -पीट कर दोनों थक गए तो वे गालियां देते बाहर चले गए। गुरमीत की माँ ने नीचे गिरी गुरमीत को उठाकर छाती से लगा लिया और उसका पसीने से तर हुआ चेहरा अपने दुपट्टे से साफ़ करने लगी . गुरमीत का रुका दर्द छाती फाड़कर बाहर आ गया। वह माँ के सीने से लगकर जोर -जोर से रो पड़ी। उसकी माँ अपने आँसू पोंछती कितनी ही देर उसे चुप कराने की कोशिश करती रही।
दो तीन दिनों तक सारे परिवार ने बात को आई -गई कर दिया। चलो लोगों को पता लगने से पहले इज्जत घर आ गई। अगर बात आगे बढ़ाते तो अपना ही पेट नंगा होना था। अभी भी रब्ब का शुक्र है पर जब अदालती केस का उन्हें पता चला तो सारे परिवार के सूख रहे ज़ख्म दोबारा हरे हो गए। इस बात पर तो किसी ने सोचा तक नहीं था कि शांतपुर वाले यहाँ तक पहुँच जायेंगे। हरबख्श फिर थानेदार के पास भागा। पर अब कोई रास्ता न था। आखिर गुरमीत की सहेलियों और रिश्तेदारों को बुलाकर गुरमीत पर जोर डाला जाने लगा कि वह भगवान के विरुद्ध ब्यान दे दे। हरबख्श ने अपनी पहुँच से पेशी भी आगे करवा ली। आखिर गुरमीत ने सबकी बात मान ली।
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गाड़ी ने आसमान छूती बिल्डिंग के पास आकर ब्रेक मारे। बीच से भगवान , उसका बाप , मुखत्यार सरपंच , गुरदीप सरपंच , राजा , गुरनैब सिंह और साथ आये एक - दो और लोग उतर कर सामने नीम के नीचे बनी सीमेंट की चौकड़ियों की ओर चल पड़े। मुखत्यार और गुरदीप सरपंच समय के बदलने के साथ-साथ बदल गए थे। गली का किस्सा खत्म होने के बाद वे अब एक ही बर्तन में खाने लगे थे और दोनों ने इकट्ठे होकर पिंड के कई काम भी संवारे थे। पिंड में लोगों के पढ़ने के लिए एक पुस्तकालय भी खोल दिया था। इन सब में भगवान के सयानेपन ने विशेष भूमिका निभाई थी। अभी पेशी में पौना घंटा बाकी था। फैसला तो शायद इससे पहली तारीख को ही हो जाना था पर शेखगढ़ वालों ने जोर डाल कर पेशी आगे बढ़ा दी थी। शायद उन्हें यकीन था कि वे समझा -बुझा कर गुरमीत को भगवान के विरुद्ध कर देंगे।
'' शेरा कितना काम बढ़ाया , तुझे बहुओं की कमी थी क्या , मुझे बताता तुझे दूसरे दिन ही रिश्ता ला देता। '' गुरदियाल ने चौकड़ी पर बैठते हुए कहा।
'' ताऊ रिश्तों की क्या कमी है इसके लिए , रोज चार -चार आते थे पर यह तो दिल मिलने की बात है। '' गुरनैब ने अपनी दलील दी।
'' दिल तो विवाह के बाद भी मिल जाते हैं पुत्तरा , मैंने तेरी ताई का मुँह सुहागरात वाले दिन ही देखा था। अब देख ले हमारा कितना प्यार है। '' गुरदयाल ने गुरनैब की दलील को घेर लिया।
'' ताऊ तूने रिश्ता बिना देखे ही कर लिया ?'' राजे ने गुरदयाल की बात पर हैरानी से मुंह खोल लिया।
'' लो .... पहले कौन देख -दिखाई करता था। पहले तो लाटरी निकलती थी। सुहाग रात वाले दिन ही घूँघट उठाने से पता चलता था , कि कानी है , लूली है या गोरी चिट्टी। पहले तो अगर दोनों घरों की राय बन जाती तो छोटे- छोटों को ही उठाकर फेरों पर बैठा देते। जब बड़े हो जाते तो लड़का आकर मुकलावा ले जाता। वे भले दिन कहाँ रह गए शेरा।'' गुरदयाल ने नए -पुराने रीति -रिवाजों को आपस में तौल कर उदासी में डूबी लम्बी साँस ली। उसकी मिचमिचाती आँखों में पुराना जमाना झलक रहा था।
'' लगता है शेखगढ़ वाले भी आ गए हैं। '' राजे के शब्दों ने सबका ध्यान सामने आते शेखगढियों की ओर कर दिया। पांच -छह पुरुषों और तीन -चार औरतें से घिरी गुरमीत भगवान ने दूर से पहचान ली। पहले से आधी हो गई गुरमीत के दमकते चेहरे की लाली ने अब पीलापन ओढ़ लिया था। शरबती आँखें अंदर की ओर धँस गई थीं पर होंठों पर पहले जैसी ही ख़ुशी थी। शेखगड़ियों ने पास से गुजरते हुए भगवान की ओर गहरी और विरोधी नज़रों से देखा। गुरमीत बिना देखे ही सामने से पार हो गई। भगवान का दिल डर से काँप गया। हौंसला पस्त हो गया।
'' इतने दिनों बाद एक -दूसरे को देखने का मौका मिला था। आँखें तरस गई थीं देखने के लिए पर ये बिना देखे ही पार हो गई। '' भगवान सोच के गहरे समंदर में गोते लगाने लगा। उसे राजे की बुआ के लड़के की कही बातें सच लगने लगी। उसने बताया था कि गुरमीत को तुम्हारे विरद्ध ब्यान देने के लिए रिश्तेदारों द्वारा दबाव डाला जा रहा है। उसने तो यह भी कहा था कि गुरमीत तुम्हारे विरुद्ध बयान देने के लिए भी मान गई है। उस वक़्त ये सारी बातें भगवान को मज़ाक लगी थीं। पर गुरमीत के अब के व्यवहार ने इनपर सच होने की मोहर लगा दी थी।
पेशी का समय हो गया। सारा हाल लोगों से भर गया। किसी के लिए यहाँ ज़िन्दगी मौत का सवाल था , किसी के लिए मनोरंजन और कोई उनमें से एक -दो स्वाद की बातों का आनंद लेने के लिए आ बैठा था। जज के बैठते सार ही दोनों वकीलों की आपसी बहस शुरू हो गई। शेख़गढ़ियों के वकील ने दोष लगाया , '' भगवान लड़की को बरगला कर ले गया था। इसका लड़की से कोई सम्बन्ध नहीं जो कि लड़की खुद मानती है। ''
सुनकर भगवान पैरों से लेकर सर तक काँप गया , '' हैं ! इतना बड़ा धोखा ? मेरे साथ जीने -मरने की कसम खाने वाली गुरमीत इतना बड़ा धोखा कैसे दे सकती है ? इसने तो घर के लोगों के आगे मुझे मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। सारा पिंड मुझ पर थू -थू करेगा । मैं लोगों को क्या जवाब दूंगा ? रब्बा ! मुझे उठा ले , मुझसे यह धोखा सहा नहीं जायेगा।' भगवान की आँखों से आंसू ढलक कर गालों पर आ गए।
'' नहीं जज साहब !यह दोनों भगवान सिंह पुत्र चन्नन सिंह और गुरमीत कौर पुत्री हरबख्श सिंह आपस में प्यार करते हैं और आपसी सहमति से विवाह करना चाहते हैं। दोनों बालिग़ हैं। ये मानयोग अदालत से अपना हक़ चाहते हैं। जज साहब इन्हें इन्साफ दिया जाय। ''
भगवान के वकील ने जज के आगे भगवान के हक़ के लिए फ़रियाद की। आखिर मुकदमा लड़की के बयानों पर आ रुका। गुरमीत कटघरे में आ गई। जज ने बड़ी नरमी से पूछा , '' आप बताओं बीबा क्या कहना चाहती हो ? क्या जो बातें भगवान द्वारा आपको बरगलाने की आपके वकील साहब कह रहे हैं वे सच हैं ? ''
सब की नज़रें गुरमीत पर आ टिकीं। गुरमीत ने एक नज़र भरकर सबकी और देखा फिर करड़े जिगर से बोली , '' जज साहब वकील बिलकुल झूठ कह रहा है। मैं भगवान को प्यार करती हूँ और इसी से विवाह करना चाहती हूँ . मैं बालिग हूँ। मुझे अपना साथी खुद चुनने का क़ानूनी अधिकार है। मैं अपनी मर्जी से भगवान के साथ आई थी। ''
'' पर घर में तो …। ''
वकील की बात पूरी होने से पहले ही गुरमीत बिजली की तरह गरजी , '' जज साहब ! मुझे घर पर भगवान के विरुद्ध बयान देने के लिए मज़बूरीवश मानना पड़ा। अगर मैं न मानती तो इन्होंने मेरे साथ मार -पीट करनी थी , मुझे तसीहे देने थे। मेरे माँ -बाप से मुझे खतरा है, मैं भगवान के साथ जाना चाहती हूँ। ''
गुरमीत की लाठी के प्रहार जैसी बातें सुनकर शांतपुरियों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। मुरझाये चेहरे खिल उठे। भगवान की आँखों में ख़ुशी के आंसू छलक पड़े। जज ने लड़की की दलील सुनकर फैसला भगवान के हक़ में सुना दिया। गुरमीत सरसों के फूल की तरह खिली भगवान के बराबर आ खड़ी हुई। शेख़गढ़िये दांत किचकिचाते , झुकी नज़रों से अदालत से बाहर आ गए।
गाड़ी की ओर जाते वक़्त गुरनैब ने भगवान को कोहनी मार नीम के नीचे बनी सीमेंट की उन चौकड़ियों की ओर इशारा किया जहां फैसला होने से पहले भगवान लोगों ने चाय पी थी। चौकड़ियों की ओर देखते ही भगवान की आँखे हैरानी से फटी रह गई , '' हैं ! किरना ? यहाँ ? '' हैरानी से भरे उसके मन में हजारों सवाल उग आये। गुरनैब ने गुरदीप सरपंच लोगों को भी बता दिया। सारे कार में बैठने की बजाये नीम की ओर चल पड़े। किरना सूखकर तिनका हुई पड़ी थी। पहले वाला रंग रूप कहीं पंख लगा उड़ गया था , बस किरना के नैन -नख्शों के खंडहर मौजूद थे जैसे बिना हाड- मांस का कोई साबूत पिंजर हो। सर पर ली मैली चुन्नी और टूटी जूती आर्थिक मंदहाली का मुँह बोलता सबूत था। आस -पास से बेखबर , किसी गहरी उदासी में समाई वह ज़िन्दगी की ठोकरों से नष्ट -भष्ट लग रही थी। रुलदू और गेजो बेटी के दुःख में कच्ची मिटटी के ढेले की तरह ढह गए थे। किरना के सास -ससुर तथा और दो -चार बंदे -बूढ़ियाँ पास की चौकियों पर बैठे थे। ये सारे धरमे के कत्ल केस में , किरना के पति जगतार की हिमायत में आये थे। आज आखिरी पेशी थी। जब गुरदयाल लोगों ने जाकर सोच में डूबी किरना के खुश्क सर पर हाथ फेरा तो उसने हड़बड़ाकर डरी आखों से ऊपर देखा और फिर फटे होंठों से खुश्क सा मुस्कुराते हुए सबको फीकी सी 'सत श्री अकाल ' बुला दी। सरपंच लोग रुलदू के साथ बातों में मशगूल हो गये। भगवान के साथ परियों जैसी गुरमीत को देख कर किरना ने ठंडी आह भरी , और फिर पता नहीं किन ख्यालों में गुम हो गई ।
सबने रुलदू उनलोगों का फैसला सुनकर जाने का मशवरा किया। भगवान भाग कर खोखे से सबके लिए चाय ले आया। चाय पीते हुए सभी जगतार के फैसले के बारे बातें करने रहे। जब उनका नाम पुकारा गया तो सभी उठकर अदालत पहुँच गए। जगतार को हथकड़ियां लगाये कटघरे में लाया गया। धरमे के वकील की छूरी जैसी तीखी दलीलों के सामने जगतार का सस्ता वकील टिक न सका। गवाह आते रहे , जगतार के विरुद्ध गवाही देकर जाते रहे। फिर उस पड़ोसी बुढ़िया की बारी आई , जिनके घर जगतार क़त्ल के बाद बुखार से तप्त जा गिरा था। उसने सारी घटना एक ही सांस में ब्यान कर दी। अंत में जज के भारी बोलों से किरना की दर्द भरी , आसमान चीरती चीख ने सबको चौकन्ने कर दिया। जगतार को बीस साल की सजा हो गई थी। किरना के सास -ससुर, रुलदू और गेजो की चीखें निकल गईं। साथ आये लोग सबको कंधा देकर बाहर लाये। मुखत्यार और गुरदीप ने किरना , रुलदू और गेजो को अपने साथ पिंड जाने का आग्रह किया पर उन्होंने गंडुआ जाने की जिद की। सरपंच लोग रुलदू उनलोगों को हौसला देकर गाड़ी में बैठ गए। भगवान गुरमीत के साथ सट कर बैठा। आज वह ज़िन्दगी की बाजी मार ले गया था। उसने अपना प्यार जीत लिया था पर किरना अपना सबकुछ हार बैठी थी। जिंदगी ने उसे जवानी की मोड़ पर लाकर धक्का दे दिया था। पुरानी यादें किरना के दिमाग बिलोने से घूमने लगी । वह दहाड़ें मार -मार कर रो पड़ी। अपनी की गलतियों पर पछताती वह मन -मन के पैर घसीटती रुलदू उनलोगों के साथ बस अड्डे की और चल पड़ी। भगवान की दूर जाती गाड़ी की पिछली बत्तियां किरना को मुंह चिढ़ा रही थी।
-------------------------समाप्त ---------------------------------
भागू (उपन्यास )
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Re: भागू (उपन्यास )
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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