आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ complete
- rangila
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Re: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
रिंकी ने दरवाज़ा खोला और प्रिया अंदर आ गई...अंदर आते हुए प्रिया की नज़र
मेरे कमरे में पड़ी और उसने मेरी तरफ देखकर एक प्यारी सी मुस्कराहट
दिखाई...और मुझे हाथ ।हिलाकर हाय किया और ऊपर चली गई...
यह प्रिया और मेरा रोज का काम था, हम जब भी एक दूसरे को देखते थे तो प्रिय
मेरी तरफ हाथ दिखाकर हाय कहती थी। मैं उसकी इस आदत को बहुत साधारण तरीके से
लेता था लेकिन बाद में पता चला कि उसकी ये हाय...कुछ और ही इशारा किया
करती थी...
अब सब कुछ सामान्य हो चुका था और पप्पू भी अपने घर वापस चला गया था।
मैं अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था और थोड़ी देर पहले की घटना को याद करके अपने
हाथों से अपना लण्ड सहला रहा था। मैंने एक छोटी सी निक्कर पहन रखी थी और
मैंने उसके साइड से अपने लण्ड को बाहर निकाल लिया था।
मेरी आँखें बंद थीं और मैं रिंकी की हसीं चूचियों और चूत को याद करके मज़े
ले रहा था। मेरा लण्ड पूरी तरह खड़ा था और अपने विकराल रूप में आ चुका था।
मैंने कभी अपने लण्ड का आकार नहीं नापा था लेकिन हाँ नेट पर देखी हुई सारी
ब्लू फिल्मों के लण्ड और अपने लण्ड की तुलना करूँ तो इतना तो तय था कि मैं
किसी भी नारी कि काम पिपासा मिटने और उसे पूरी तरह मस्त कर देने में कहीं
भी पीछे नहीं था।
अपने लण्ड की तारीफ जब मैंने सिन्हा-परिवार की तीनों औरतों के मुँह से सुनी
तब मुझे और भी यकीन हो गया कि मैं सच में उन कुछ भाग्यशाली मर्दों में से
हूँ जिनके पास ऐसा लण्ड है कि किसी भी औरत को चाहे वो कमसिन, अक्षत-नवयौवना
हो या 40 साल की मस्त गदराई हुई औरत, पूर्ण रूप से संतुष्ट कर सकता है।
मैं अपने ख्यालों में डूबा अपने लण्ड की मालिश किए जा रहा था कि तभी...
"ओह माई गॉड !!!! "...यह क्या है??"
एक खनकती हुई आवाज़ मेरे कानों में आई और मैंने झट से अपनी आँखें खोल लीं...मेरी नज़र जब सामने खड़े शख्स पर गई तो मैं चौंक पड़ा...
"तुम...यहाँ क्या कर रही हो...?" मेरे मुँह से बस इतना ही निकला और मैं खड़ा हो गया...
मेरे सामने और कोई नहीं बल्कि प्रिया खड़ी थी जो अभी थोड़ी देर पहले ही घर
वापस लौटी थी, उसके हाथों में एक प्लेट थी जिसमें वो मेरे लिए कुछ खाने को
लेकर आई थी।
यह उसकी पुरानी आदत थी, जब भी वो कहीं बाहर से आती तो सबके लिए कुछ न कुछ खाने को लेकर आती थी।
खैर छोड़ो, मैं हड़बड़ा कर बिस्तर से उठ गया और उसके ठीक सामने खड़ा हो गया।
मुझे काटो तो खून नहीं, समझने की ताक़त ही नहीं रही, सारा बदन पसीने से भर
गया।
मैंने जब प्रिया की तरफ देखा तो पता चला कि उसकी आँखें मेरे लण्ड पर टिकी
हुई हैं और वो अपना मुँह और आँखें फाड़ फाड़ कर बिना पलके झपकाए देखे जा रही
थी। हम दोनों में से किसी की भी जुबान से कोई शब्द नहीं निकल रहे थे।
तभी मेरे तन्नाये हुए लण्ड ने एक ठुमका मारा और प्रिया की तन्द्रा टूटी।
उसने बिना देरी किये प्लेट सामने की मेज़ पर रखा और मेरी आँखों में एक बार
देखा। उसके चेहरे पर एक अजीब सा भाव था मानो उसने कोई भूत देख लिया हो।
वो सीधा सीढ़ियों की तरफ दौड़ पड़ी लेकिन वहीं जाकर रुक गई। मेरी तो हालत ही
ख़राब थी, मैं उसी हालत में अपने कमरे से यह देखने के लिए बाहर निकला कि वो
रुक क्यूँ गई। पता नहीं मुझे क्या हो गया था, वो उत्सुकता थी या पकड़े जाने
का डर... पर जो भी था मैं अपन खड़ा लण्ड लेकर बाहर की तरफ आ गया और मैंने
प्रिया को सीढ़ियों के पास दीवार से टेक लगाकर खड़ा पाया।
उसकी आँखें बंद थी और साँसें धौंकनी की तरह चल रही थीं। उसका चेहरा सुर्ख
लाल हो गया था और माथे पर हल्की हल्की पसीने की बूँदें उभर आई थीं। उसका
सीना तेज़ चलती साँसों की वजह से ऊपर नीचे हो रहा था और ज़ाहिर है कि सीने के
उभार भी उसी तरह थिरक रहे थे।
पर मुझे उसकी चूचियों का ख्याल कम और यह डर ज्यादा था कि कहीं वो यह बात सब को बता न दे। सच बताऊँ तो मेरी फटी पड़ी थी।
मैंने थोड़ी सी हिम्मत जुटाई और उसके तरफ यह बोलने के लिए बढ़ा कि वो यह बात किसी से न कहे।
मैंने डरते डरते उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे थोड़ा सा हिलाया- प्रिया...प्रिया...!
"हाँ..!"
उसने फिर से हड़बड़ा कर अपनी आँखें खोली और हम दोनों की आँखें फिर से एक
दूसरे में अटक गईं। उसकी आँखों में एक अजीब सा सवाल था मानो वो मुझसे पूछना
चाह रही हो कि यह सब क्या था...
"प्रिया...तुमने जो अभी देखा वो प्लीज किसी से मत बताना, वरना मेरी बदनामी
हो जाएगी और मुझे सजा मिलेगी..." मैंने एक सांस में डरते डरते अपनी बात
प्रिया से कह दी।
प्रिया ने एक मौन स्वीकृति दी और शरमा कर अपनी नज़र नीचे कर ली...
"हे भगवन...!!"
प्रिया के मुँह से फिर से एक चौंकाने वाली आवाज़ आई और वो मुड़कर सीढ़ियों से ऊपर की तरफ भाग गई।
मुझे कुछ समझ में नहीं आया और मैंने जब नीचे की तरफ देखा तो मुझे होश आया।
मेरा पप्पू अपने पूरे जोश में सर उठाये सलामी दे रहा था। रिंकी की चूत की
कशिश ऐसी थी कि लण्ड शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
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मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
( Marathi Sex Stories )...
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- rangila
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Re: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
मैं भाग कर अपने कमरे में घुस गया और दरवाज़ा बंद कर लिया। मैं उसी हालत में
अपने बिस्तर पर लेट गया और छत को निहारने लगा। मेरे मन में अजीब सी
उथल-पुथल चल रही थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि ऐसी स्थिति में क्या करना
चाहिए। आज जो हुआ उसका परिणाम पता नहीं क्या होगा। कहीं प्रिया इस बात को
सबसे कह देगी या फिर मेरी बात मानकर चुप रहेगी...
यह सोचते सोचते मैंने अपनी आँखें बंद कर ली... तभी मेरी आँखों के सामने
प्रिया की ऊपर नीचे होती चूचियाँ आ गईं...और मेरा हाथ अपने आप मेरे खड़े
लण्ड पर चला गया।
और यह क्या, मेरा पप्पू तो पहले से ज्यादा अकड़ गया था। मेरे होठों पर एक
मुस्कान आ गई और मैं अपने आप को एक गाली दी," साले चोदू...तू नहीं सुधरेगा
!"
और मैंने अपना अधूरा काम पूरा करने में ही भलाई समझी क्यूंकि इस खड़े लण्ड
को चुप करना जरूरी था। मैंने अपने लण्ड को प्यार से सहलाया और मुठ मारने
लगा। मज़े की बात यह थी कि अब मेरी आँखों में दो दो दृश्य आ रहे थे, एक
रिंकी की हसीन झांटों भरी चूत और दूसरा प्रिया की चूचियाँ...मेरा जोश
दोगुना हो गया और मेरे लण्ड ने एक जोरदार पिचकारी मार कर अपना लावा बाहर
निकाल दिया।
मैं बिल्कुल थक सा गया था मानो कोई लम्बी सी रेस दौड़ कर आया हूँ। और यूँ ही मेरी आँख लग गई।
"सोनू...सोनू... दरवाज़ा खोलो, कब तक सोते रहोगे??" अचानक किसी की आवाज़ मेरे कानो में पड़ी और मेरी नींद टूट गई।
घड़ी पर नज़र गई तो पाया कि 7 बज चुके थे, मतलब कि मैं 2 घंटे सोता रहा।
मैंने जल्दी से उठकर दरवाज़ा खोलना चाहा तभी मेरी नज़र अपने पैंट पर गई और
मैंने अपने पप्पू को मुरझाये हुए बाहर लटकते हुए पाया। मैंने जल्दी से उसे
अन्दर किया और दरवाज़ा खोला।
बाहर मेरी दीदी हाथों में ढेर सारे बैग लिए खड़ी थी। उसे देखकर मुझे याद आया
कि वो सिन्हा आंटी के साथ बाज़ार गई थी। मैंने मुस्कुरा कर उनके हाथों से
सामान लिया और उनसे कहा," वो, मेरी तबियत ठीक नहीं थी न इसलिए बिस्तर पर
पड़े पड़े नींद आ गई। आप लोगों की शॉपिंग कैसी हुई?"
"बस पूछो मत, सिन्हा आंटी ने पूरे साल भर का सामान खरीदवा दिया है।" दीदी ने अन्दर आते हुए कहा।
"चलो अच्छा है, अब कुछ दिनों तक आपको बाज़ार जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी।" मैंने हंसते हुए कहा।
"ज्यादा खुश मत हो, हमें कल भी बाज़ार जाना है, कुछ चीज़ें आज मिली नहीं
इसलिए मैं और आंटी कल फिर से सुबह सुबह बाज़ार चले जायेंगे और शायद आने में
लेट भी हो जाएँ। आंटी की तो शॉपिंग ही ख़त्म नहीं होने वाली !" दीदी ने
कुर्सी पर बैठते हुए कहा और हम दोनों भाई बहन उसकी बात पर हंसने लगे।
शाम हो चली थी और हमारे यानि मेरे और पप्पू के घूमने का वक़्त हो गया था। मैंने अपने कपड़े बदले और बाहर जाने लगा।
"अरे, तुम्हारी तो तबीयत ठीक नहीं थी न? फिर कहाँ जा रहे हो?" यह सिन्हा आंटी की आवाज़ थी जो सीढ़ियों से नीचे आ रही थी।
मैंने पीछे मुड़ कर देखा और एक हल्की सी स्माइल दी,"कहीं नहीं आंटी, बस घर
में बैठे बैठे बोर हो गया हूँ इसलिए बाहर टहलने जा रहा हूँ।"
आंटी तब तक मेरे पास आ चुकी थी। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर बुखार देखने की तरह किया और मेरी आँखों में देखा।
"बुखार तो नहीं है, लेकिन प्रिया बता रही थी कि तुम अच्छा महसूस नहीं कर
रहे थे थोड़ी देर पहले। इसीलिए मैं तुमसे तुम्हारा हाल चाल पूछने आ गई।"
आंटी ने चिंता भरी आवाज़ में कहा।
पर दोस्तो, मैंने जैसे ही प्रिया का नाम सुना तो कसम से मेरी गांड फटने
लगी। मुझे लगा जैसे प्रिया ने वो सब कुछ अपनी माँ को बता दिया होगा। मेरा
सर शर्म और डर की वजह से झुक गया और मैं कुछ बोल ही नहीं पाया। आंटी ने
मेरा सर एक बार फिर से अपनी हथेली से छुआ किया और एक गहरी सांस ली।
"अगर तुम्हारा दिल कर रहा है तो जाओ जाकर टहल आओ, लेकिन जल्दी से वापस आ जाना।" आंटी ने अपनी वही कातिल मुस्कान के साथ मुझसे कहा।
मैं बिना कुछ बोले बाहर निकल गया और अपने अड्डे पर पहुँच गया। मेरा यार
पप्पू वहाँ पहले से ही खड़ा था। मुझे देखकर वो दौड़ कर मेरे पास आया।
"भोसड़ी के, कहाँ था अभी तक? मैं कब से तेरा इंतज़ार कर रहा हूँ।" पप्पू ने थोड़ी नाराज़गी के साथ मुझसे पूछा।
उसका नाराज़ होना जायज था, हम हमेशा 6 बजे तक अपने चौराहे पर मिलते थे और
फिर घूमने जाया करते थे। पर उसे क्या पता था कि उसके जाने के बाद मेरे साथ
क्या हुआ और मैं किस स्थिति से गुजरा था।
"कुछ नहीं यार, बस थोड़ी आँख लग गई थी इसलिए देर हो गई।" मैंने मुस्कुरा कर
उसकी तरफ देखा और फिर हम दोनों पप्पू की बाइक पर बैठ कर निकल पड़े।
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- rangila
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Re: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
आज पप्पू की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। इतना खुश मैंने उसे पहले कभी नहीं
देखा था। हो भी क्यूँ ना, इतनी मस्त माल जो हाथ लगी थी उसे। हम दोनों
बिष्टुपुर (जमशेदपुर का एक मशहूर बाज़ार) पहुँचे और अपने पसंद की दूकान पर
जाकर चाय और सिगरेट का मज़ा लेने लगे। पप्पू बार बार मुझे थैंक्स कह रहा था
और मेरी खातिरदारी में लगा हुआ था। उसकी आँखों में एक अजीब सी विनती थी
मानो वो कह रहा हो कि आगे का कार्यक्रम भी तय करवा दो।
मैंने उसकी आँखों में वो सब पढ़ लिया था, आखिर दोस्त हूँ उसका और उसके बोले बिना भी उसके दिल की बात जान सकता हूँ।
हम काफी देर तक वहीं घूमते रहे और फिर वापस अपने अपने घर की तरफ चल पड़े।
रास्ते में मैंने पप्पू को यह खुशखबरी दी कि कल फिर से घर पर कोई नहीं होगा
और वो अपन अधूरा काम पूरा कर सकता है।
पप्पू ने जब यह सुना तो जोर से ब्रेक मार दी और बाइक खड़ी करके मुझसे लिपट
गया,"सोनू मेरे भाई, मैं तेरा एहसान ज़िन्दगी भर नहीं भूलूँगा। तू मेरा
सच्चा यार है।"
पप्पू मानो बावला हो गया था।
"रहने दे साले, चूत मिल रही है तो दोस्त बहुत प्यारा लग रहा है न !" मैंने मस्ती के मूड में पप्पू से कहा।
हम दोनों जोर जोर से हंस पड़े और बाइक स्टार्ट करके फिर से चल पड़े और अपने
अपने घर पहुँच गए। अपने कमरे में पहुँचा और कपड़े बदलकर एक हल्की सी टीशर्ट
और शॉर्ट्स पहन लिया। घड़ी पर नज़र गई तो देखा 9 बज रहे थे। दीदी कहीं दिखाई
नहीं दे रही थी। तभी किसी के चलने की आहट सुनाई दी। मैंने पीछे मुड़ कर देखा
तो रोज़ की तरह प्रिया मुझे खाने के लिए बुलाने आई थी।
"चलो भैया, खाना तैयार है। सब आपका इंतज़ार कर रहे हैं।" प्रिया ने मेरी तरफ देख कर कहा।
मैं उससे नज़रें मिलाना नहीं चाहता था लेकिन जब उसकी तरफ देखा तो मेरी नज़र अटक गई।
अपने कमरे में पहुँचा और कपड़े
बदलकर एक हल्की सी टीशर्ट और शॉर्ट्स पहन लिया। घड़ी पर नज़र गई तो देखा 9 बज
रहे थे। दीदी कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। तभी किसी के चलने की आहट सुनाई
दी। मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो रोज़ की तरह प्रिया मुझे खाने के लिए बुलाने
आई थी।
"चलो भैया, खाना तैयार है। सब आपका इंतज़ार कर रहे हैं।" प्रिया ने मेरी तरफ देख कर कहा।
मैं उससे नज़रें मिलाना नहीं चाहता था लेकिन जब उसकी तरफ देखा तो मेरी नज़र अटक गई।
प्रिया ने आज एक बड़े गले का टॉप और एक छोटी सी स्कर्ट पहन रखी थी। उसकी
चिकनी जांघें कमरे की रोशनी में चमक रही थी। मेरा मन डोल गया। उसके सीने की
तरफ मेरी नज़र गई तो मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा। बड़े से गले वाले टॉप में
उसकी चूचियों की घाटी का हल्का सा नज़ारा दिख रहा था। सच कहूँ तो ऐसा महसूस
हो रहा था जैसे उसकी चूचियाँ अचानक से दो इन्च और बड़ी हो गई हों।मेरी तो
आँखें ही अटक गई थीं उन पर। मैंने सोचा था कि जब प्रिया मेरे सामने आएगी तो
मैं उससे पूछूँगा कि उसने कहीं दोपहर वाली बात अपनी माँ से तो नहीं बता
दी। लेकिन मैं तो किसी और ही दुनिया में था।
"क्या हुआ, खाना नहीं खाना है क्या? तबीयत तो ठीक है ना?"
प्रिया की खनकती आवाज़ ने मेरा ध्यान तोड़ा और मैंने उसे अन्दर आने को कहा।
प्रिया ने मेरी तरफ प्रश्नवाचक नज़रों से देखा, शायद उसे मेरा अन्दर बुलाना
अजीब सा लगा हो या फिर हो सकता है उसे दोपहर वाली घटना याद आ गई हो।
वो दरवाज़े ही खड़ी रही। मैंने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ा और उसे अन्दर खींचा। उसका हाथ बिल्कुल ठंडा था, शायद डर की वजह से।
उसने डरते डरते पूछा, "क.. क.. क्या बात है सोनू भैया??"
"एक बात बताओ, जब मैंने तुम्हें मना किया था तो फिर भी तुमने आंटी को सब कुछ बता क्यूँ दिया?" मैंने रोनी सी सूरत बनाकर पूछा।
"आपको ऐसा लगता है कि मैंने माँ से कुछ कहा होगा?" प्रिया ने एक चिढ़ाने
वाली हंसी के साथ मेरी आँखों में देखते हुए मुझसे ही सवाल कर दिया।
"मुझे नहीं पता, लेकिन जिस तरह से आंटी ने मुझसे मेरी तबीयत के बारे में
पूछा तो मुझे लगा जैसे तुमने सब बता दिया है।"...मैंने असमंजस की स्थिति
व्यक्त करते हुए कहा।
"ये सब बातें सबसे नहीं की जातीं मेरे बुद्धू भैया...और हाँ, आगे से जब
तुम्हें ऐसा कुछ करना हो तो कम से कम दरवाज़ा बंद कर लिया करो।"
प्रिया की बात सुनकर मेरे कान खड़े हो गए और आश्चर्य से मेरी आँखें बड़ी हो
गई। यह क्या कह रही है...इसका मतलब इसे सब पता है इन सबके बारे में...हे
भगवन !!
मैं एकटक उसकी तरफ देखता रह गया...
"अब उठो और चलो, वरना खाना ठंडा
हो जायेगा। खाना गर्म हो तो ही खाने का मज़ा है।" प्रिया ने मेरा हाथ पकड़कर
मुझे उठाने की कोशिश की और मेरी आँखों में देख कर आँख मार दी।
मैं आश्चर्यचकित हो गया था उसकी बातें सुनकर। मैंने सोचा भी नहीं था कि जिसे मैं छोटी बच्ची समझता था वो तो पूरी गुरु है।
"वैसे आपका राज छुपाने के लिए आपको मुझे थोड़ी रिश्वत देनी पड़ेगी।" प्रिया ने चहकते हुए धीरे से मुझसे कहा।
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