मजबूरी का फैसला complete

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abpunjabi
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by abpunjabi »

लाहौर में अपने बच्चों और उनकी फैमिलीज़ के साथ वकास का अच्छा टाइम पास हो रहा था | ज़ाकिया भी अपनी फैमिली में वापिस आकर अपने आप को थोडा रिलैक्स महसूस कर रही थी | मगर इस के बावजूद वो अपने भाई से थोडा अलग थलग ही रहती |

ज़ाकिया और वकास को लाहौर में आए हुए दो तीन दिन ही गुज़रे थी कि रेहाना बाज़ी का देवर उस्मान और नन्द शाजिया जिनकी फोटो वकास की माँ ने मरने से पेहले रिश्ते के लिए उनको न्यू यॉर्क पोस्ट की थी , वो भी अपने गाँव से उनके घर शिफ्ट हो गए |

ज़ाकिया ने उन दोनों के आते ही उनकी हरकतों से अंदाज़ा लगा लिया था कि उस्मान तो काफी सीधा और शर्मीली तबीअत का नौजवान है जो उससे मिलते हुए ऐसे झिझक रहा था कि जैसे वो लड़की हो और ज़ाकिया लड़का |

जबकि उसके विपरीत जाकिया को उस्मान की बहन शैज़ा एक निहाइत चालू चीज़ नज़र आई |

शैज़ा ने वकास से मिलते ही वकास को घेरने के लिए उस पर डोरे डालने शुरू कर दिए |

जाकिया ने नोट किया कि शैज़ा हर वक़्त वकास के इर्द गिर्द मंडराती रहती है और उसको अपनी अदाओं के जाल में फसाने की कोशिश कर रही है |

शैज़ा के लाहौर आने के तीसरे दिन जब वकास शोपींग के लिए अनारकली बाज़ार गया हुआ था तो ज़ाकिया ने शैज़ा को चुपके से वकास के कमरे में घुसते देखा |

जाकिया को ताजूब हुआ कि जाकर देखा कि शैज़ा वकास के कमरे में क्या करने गई है |

जब ज़ाकिया शैज़ा के पीछे पीछे वकास के कमरे में दाखिल हुई तो उसने शैज़ा को वकास के बिस्तर के सिरहाने के निचे एक रुका रखते हुए पकड लिया |
शैज़ा पहले तो अपनी चोरी पकडे जाने पर थोड़ी घबराई मगर फिर फ़ौरन ही संभल गई |

ज़ाकिया ने तकिये के निचे से शैज़ा का रखा हुआ रुका उठा कर फाड़ा तो पता चला कि शैज़ा ने वकास के नाम एक लव लैटर लिखा है |

उस लव लैटर का आगाज़ शैज़ा ने एक शेयर से किया था कि

“डब्बे में डब्बा और डब्बे में केक
मेरा वकास तो है लाखों में एक”

“यह क्या बकवास है शैज़ा” , ज़ाकिया ने बहुत गुस्से से शैज़ा के सामने ख़त को लहराते हुए पूछा |

“यह बकवास नहीं बल्कि वकास से मेरे प्यार का इज़हार है बाज़ी” शैज़ा ने जवाब दिया |

“तुम्हे शर्म नहीं आती, गैर मर्दों पर डोरे डालते हुए और ऐसे वाहियात किसम के ख़त लिखते हुए” , ज़ाकिया ने शैज़ा को गुस्से में डांटते हुए कहा |

शैज़ा ज़ाकिया का यह रविया देखकर बहुत हैरान हुई और बोली , “ख़त तो मैंने वकास को लिखा है मगर पता नहीं आपकी “झांटें” क्यों सुलगने लगी है बाज़ी” |

जाकिया गुस्से में बोली: अपनी जुबां को लगाम दो चुड़ैल |

“बाज़ी आप तो मुझसे यूं लड़ रही हैं जैसे आप वकास की बहन नहीं बल्कि बीवी हैं और मैं आप की होने वाली सोकन” , शैज़ा ने जब ज़ाकिया को गुस्से में आते देखा तो उसने भी ज़ाकिया को तार्कि बा तार्कि जवाब दिया और गुस्से से अपने पैर पटकती कमरे से बहार निकल गई |

शैज़ा के चले जाने के बाद ज़किया को खुद भी शैज़ा से किये गये अपने बर्ताव पर हैरत हुई |

ज़ाकिया जोकि इससे पहले अपने भाई से शायद नफ़रत करने लगी थी मगर आज ना जाने क्यों शैज़ा के इस ख़त को पडते और उसे अपने भाई से प्यार की पींगे बढाते देखकर ज़ाकिया को अच्छा ना लगा |

इस का सबब शायद यह था कि शैज़ा की कही हुई बातों ने ज़ाकिया की अन्दर पोशीदा औरत को आज जैसे जगा दिया |

ज़ाकिया एक बहन के साथ-साथ थी तो एक औरत और यह औरत की फितरत है कि वो कभी भी अपने प्यार में किसी और औरत को हिस्सेदार बनता नहीं देख सकती |

बेशक आज से पहले तक ज़ाकिया वकास को एक भाई के रिश्ते में ही देखता और सोचा था मगर कभी शैज़ा का यूं वकास से खुला इज़हारे मोहब्बत करना ज़ाकिया को एक आँख ना भाया और शैज़ा से ना चाहते हुए भी एक अजीब सी जलन महसूस करने लगी ,

“इस प्यार को मैं क्या नाम दूं
रब्बा मेरे रब्बा , रब्बा मेरे रब्ब्बा”

इस गाने की तरह जाकिया को भी इस बात की समझ नहीं थी कि वो अपने अन्दर पैदा होने वाली इस जलन को क्या नाम दे |

उस दिन के बाद शैज़ा और जाकिया के दरमियाँ एक तनाव सा आ गया जिस को घर में किसी और ने तो ना सही लेकिन वकास ने जरूर महसूस कर लिया मगर उसने उन दोनों में से किसी एक से भी इसकी वजह मालूम करने की कोशिश नहीं की |
abpunjabi
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by abpunjabi »

mastram wrote: 21 Aug 2017 20:42 mitr mast update hai

par update ka size badhao thoda sa
सॉरी दोस्त , कुछ समय से ओवर बिजी रहता हूँ , यह आप सबके प्यार का ही नतीजा है जो इतना बिजी होने के बावजूद इस कहानी को आगे बढ़ा पा रहा हूँ ............
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