सारिका कंवल की जवानी के किस्से

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jay
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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से

Post by jay »

बारिश इतनी तेज़ हो चुकी थी कि 4 लोगों का एक छाता के नीचे बच पाना मुश्किल था, पर आस-पास कोई जगह नहीं थी कि हम छुप सकें इसलिए हम जल्दी-जल्दी चलने लगे।
हमने बच्चों को आगे कर दिया और हम पीछे हो गए, जिसके कारण उसका जिस्म मेरे जिस्म से चलते हुए रगड़ खाने लगा।
मुझे बहुत अजीब सा लग रहा था। उसके जिस्म की खुशबू मुझे दीवाना सा करने लगी। मैं थोड़ी शरमाई सी थी, पर मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था।
हम लोग लगभग पूरी तरह भीग ही चुके थे क्योंकि बारिश और तेज़ होती जा रही थी। बच्चे तो पूरे भीग ही चुके थे और दिसंबर का महीना था सो ठण्ड लगने लगी थी।
उसने कहा- जल्दी चलो कहीं छुपने की जगह देखो वरना बच्चे बीमार पड़ जायेंगे।
और हम तेज़ी से चलने लगे। ठण्ड की वजह से मैं काँपने लगी थी क्योंकि मैं पूरी भीग चुकी थी और सलवार-कमीज के ऊपर कुछ पहनी भी नहीं थी।
चलते समय उसका जिस्म मुझसे छुआ जा रहा था तो मुझे उसके जिस्म की गर्मी अच्छी लग रही थी।
शायद उसे भी अच्छा लग रहा था और वो जानबूझ कर शायद ऐसा कर रहा था।
अचानक तेज़ी में चलते हुए मेरा पैर फिसल सा गया तो उसने मुझे बचाने के लिए कमर से पकड़ लिया और अपनी तरफ खींचा, मैं खुद को उसके सहारे सँभालते हुए उसकी बाँहों में चली गई।
हम दोनों की नजरें दो पल के लिए मिलीं और मैंने शर्म से अपनी निगाहें नीची कर लीं। उसने मेरे जिस्म की खुशबू को सूंघते हुए एक लम्बी साँस ली और कहा- आराम से.. चलो उस दीवार के पास छिप जाते हैं कुछ देर…!
मैंने देखा कि वो जगह इतनी बड़ी तो नहीं थी कि छुपा जा सकें, पर बच्चों को छुपाया जा सकता था, तो हम जल्दी से चले गए।
वो जगह ऐसी थी कि सर से कमर तक बारिश से बचा जा सकता था।
मैंने खुद के कपड़े देखे, एक झलक में तो मुझे बहुत ही शर्मिंदगी महसूस हुई और मैं जल्द से जल्द बारिश बंद होने की प्रार्थना करने लगी। मेरे स्तनों के नीचे का पूरा हिस्सा बाईं तरफ से भीग चुका था और उसमें से मेरी ब्रा और पैन्टी साफ़ झलक रही थी। मुर्तुजा भी अपने दाईं तरफ से भीगा हुआ था।
हम जल्दी से उस आड़ के नीचे जाकर छिप गए और बच्चों को छाता थमा दिया ताकि वो बच सकें। बच्चे हमारे आगे थे और मैं और मुर्तुजा पीछे।
वहाँ इतनी तेज़ बारिश हो रही थी कि मैं न चाहते हुए भी उससे चिपकती चली जा रही थी। तभी मैंने गौर किया कि वो छुपी नजरों से मेरी जाँघों और स्तनों को देख रहा है।
मैंने उन्हें अपनी हाथों से छुपाने की कोशिश की, तो उसने अपनी नजरें घुमा लीं।
हम काफी देर तक वहीं बारिश बंद होने का इंतज़ार करते रहे। हम दोनों ही शर्म से एक-दूसरे से नजरें छिपा रहे थे और खामोशी से बारिश के थामने का इंतज़ार कर रहे थे।
उसने तभी मुझसे नजरें दूसरी तरफ कर धीरे से कहा- सारिका जी.. अपने कपड़े ठीक कर लीजिए!
मैंने तपाक से अपने कपड़ों की ओर देखा तो सब कुछ ठीक लगा, फिर भी मैंने उन्हें संवारने की कोशिश की।
तब उसने कहा- उधर नहीं पीछे!
मैंने तुरंत अपना हाथ पीछे किया तो मेरी कमीज ऊपर उठी हुई थी। शायद जब मैं गिरने वाली थी और उसने मुझे बचाया तब हो गया होगा।
मैंने उसे जल्दी से ठीक किया और दूसरी तरफ देखने लगी और सोचने लगी कि इसने तो मेरा सब कुछ देख लिया होगा पर मैं करती भी क्या..! मैं बस खामोशी से सोचने लगी कि कहाँ आकर फंस गई, कब ये बारिश रुकेगी..! तभी बारिश कुछ कम हुई और मुझे थोड़ी ख़ुशी हुई कि अब बारिश रुक जाएगी, पर अगले ही पल जोरों से हवा आई और फिर बारिश की और मोटी-मोटी बूँदें तेज़ी से बरसने लगीं।
मैं तुरंत पीछे हुई और मुर्तुजा से जा टकराई। बारिश तो ऐसे आ रही थी जैसे मुझे पूरा भीगा देना चाहती हो। मैं बारिश से बचने की कोशिश में थी, पर बचना तो दूर की बात मैं और बुरी तरह फंस गई।
मेरे पीछे मुर्तुजा था और मेरे आगे बारिश आगे होती तो बारिश से बच नहीं सकती थी। पीछे होती तो मुर्तुजा से बच नहीं सकती थी। ऊपर से ठण्ड इतनी लग रही थी कि रहा नहीं जा रहा था।
मैं मुर्तुजा से चिपक सी गई थी। उसके बदन की गर्मी मुझे महसूस होने लगी थी और जैसे-जैसे समय बीत रहा था, मुझे ठण्ड और ज्यादा लगने लगी। जिसके कारण मैं उससे और भी ज्यादा सटने लगी। मैं सोचने लगी कि भगवान् कैसी मुसीबत में फंस गई हूँ।
तभी मुझे कुछ महसूस हुआ, मुझे लगा जैसे मुर्तुजा मेरे बदन को सूंघ रहा है। उसका चेहरा मेरी गर्दन के पास झुका हुआ था और वो लम्बी-लम्बी साँसें ले रहा था।
मुझे भी उसके जिस्म की गर्मी बहुत अच्छी लग रही थी सो मैं भी ख़ामोशी से खड़ी रही।
तभी मुझे अपनी कमर पर कुछ सख्त चीज़ महसूस हुई, मैं समझ गई कि उसका लिंग है।
पहले तो मुझे लगा कि उसको डांट दूँ, पर पता नहीं, मैंने ऐसा क्यों नहीं किया। मुझे उस वक़्त कुछ भी समझ नहीं आया। शायद ये मेरी गलती ही थी, जिसकी वजह से उसकी हिम्मत बढ़ गई और उसने मेरा हाथ थाम लिया।
उसने जैसे ही मेरा हाथ थामा मुझे करंट सा लगा और मैं और उसके करीब चली गई।
मेरे इस तरह के व्यवहार को देख कर उसने एक हाथ से मेरी जाँघों को छुआ। मुझे ऐसा लगा कि शायद इसी की जरुरत थी मुझे क्योंकि ऐसी ठण्ड में कहीं से कोई गर्माहट मिल जाए, यही तो इंसान चाहता है।
मेरा कोई विरोध न देख, उसकी हिम्मत और भी बढ़ गई और उसने अपना लिंग मेरी कमर पर रगड़ना शुरू कर दिया। मैं तो जैसे सुध-बुध खो चुकी थी और उसे खुली छूट दे दी।
वो अपनी कमर को झुका कर अपने लिंग को मेरे कूल्हों के बीच रगड़ने लगा, जैसे कि वो मेरी योनि को ढूँढ रहा हो।
उसका गर्म जिस्म मुझे बहाने लगा था और मैं भूल गई कि हम दोनों के आगे बच्चे हैं।
उसने अपना एक हाथ मेरे पेट पर रखा और मुझे अपनी ओर खींच लिया और लिंग को मेरे कूल्हों के बीच में घुसाने की कोशिश में रगड़ने लगा।
मुझे भी अच्छा लगने लगा और मेरी योनि भी गीली होने लगी थी। तभी उसने नीचे से अपना दूसरा हाथ मेरी कमीज के अन्दर डाल कर मेरे पजामे के ऊपर से मेरी योनि पर रख दिया।
मेरी हालत और भी बुरी हो गई।
उसने पजामे के ऊपर से ही मेरी योनि को सहलाते हुए पैंटी को खींच कर किनारे कर दिया। वो अपने लिंग को पूरी ताकत से मेरे कूल्हों के बीच दबाने लगा साथ ही मुझे जोरों से पकड़ अपनी और खींच रहा था और दूसरे हाथ से मेरी योनि को सहला रहा था।
उसने अपने मुँह से मेरे बालों को किनारे किया और गर्दन पर अपनी जीभ घुमाने लगा, जैसे कि मुझे चाट रहा हो।
तभी अचानक उसने मेरी योनि से हाथ हटाया और मेरे पजामे का नाड़ा खींच दिया।
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Post by jay »

मैंने तुरंत उसका हाथ पकड़ लिया, वो भी समझ गया कि मैं नहीं चाहती सो उसने मुझे छोड़ दिया। पर अब भी वो अपना लिंग रगड़ रहा था और थोड़ी देर में शांत हो गया।
मैं समझ गई कि वो झड़ गया है।
उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी, पर हम उसी अवस्था में खड़े रहे, न वो कुछ मुझे कह रहा था.. न मैंने उससे कुछ कहा।
करीब एक घंटे बाद बारिश रुकी तो हमने चलने की सोची।
उसने मेरी तरफ देखा मैंने उसकी तरफ देखा। उसे देख कर लगा जैसे वो मुझसे बहुत सी उम्मीदें कर रहा हो।
मैंने तुरंत अपनी नजरें नीची की और चुपके से अपने पजामे के नाड़े को बाँधा और वहाँ से चल दी। रास्ते भर मैं खुद को कोसती रही कि मैं यह आज क्या कर रही थी। सही समय पर खुद को न रोका होता तो पता नहीं क्या हो जाता।
पर आप कितना भी खुद को रोको जो होना होता है, वो होकर ही रहता है। चाहे वो आपकी ख़ुशी से हो या मज़बूरी बन जाए।
मैं दिन भर यही सोचती रही, मेरा मन पूरा दिन बैचैन रहा और मैंने ठान ली कि मैं उससे दुबारा नहीं मिलूँगी।
अगले दिन वो मेरे पास आया, पर मैंने उससे दूर रहने की सोची, सो मैं थोड़ा अलग व्यवहार किया। दो दिन बाद तो हमने बातें करना भी बंद कर दीं।
फिर इस बीच पति एक दिन आए और चूंकि मेरी सम्भोग की इच्छा उसी दिन से बहुत थी पर पति का साथ तो न मिलने के बराबर था। हमने सम्भोग किया, पर पति तो झड़ते ही सो गए और मैं रात भर तड़पती रही।
पति के जाने के बाद एक दिन मुर्तुजा ने मुझे फिर से टोका, मैंने भी ‘हाय-हैलो’ किया बस.. और घर चली आई।
मेरी बैचैनी बढ़ती जा रही थी, मुझसे अकेले रात कट नहीं रही थी। मुझे एक साथी की जरुरत महसूस होने लगी थी। बैचैनी में मुझे नींद नहीं आ रही थी सो मैंने सोचा कि मुर्तुजा से बात करूँ।
मैंने फोन करने की सोची तो देखा रात के दो बज रहे थे। सो मैंने अपना निर्णय बदल दिया और सोने का प्रयास करने लगी पर नींद तो जैसे अब मेरी दुश्मन बन गई थी, आने का नाम ही नहीं ले रही थी।
मैंने मुर्तुजा को एक ‘मिस कॉल’ दे दिया, मैंने सोचा कि इतनी रात को कोई फोन नहीं करता, सोने की कोशिश करने लगी।
करीब दस मिनट के बाद मेरा फोन बजा मैंने देखा तो मुर्तुजा का था।
सोचा कि फोन नहीं उठाऊँ, पर पता नहीं.. फिर क्या दिल में आया कि फोन उठा लिया।
उसने कहा- हैलो कैसी हो.. सोई नहीं अभी तक?
मैंने कहा- नहीं.. नींद नहीं आ रही थी, पर आप अभी तक क्यों नहीं सोये?
उसने जवाब दिया- मैं तो सोया था, पर आपका ‘मिस कॉल’ देख कर उठ गया। आप शायद मुझसे नाराज़ हैं उस दिन के लिए!
मैंने कहा- नहीं.. मैं नाराज़ नहीं हूँ!
उसने फिर कहा- देखिए उस दिन के लिए माफ़ी चाहता हूँ.. मैं बहक गया था। आप प्लीज हमसे दोस्ती न तोड़िए। आप इस तरह से मुझे दरकिनार कर रही हैं.. मुझसे बात नहीं कर रही, मुझे अच्छा नहीं लगा।
मैंने कहा- मुझे शर्म आ रही थी इसलिए आपसे बात नहीं कर रही थी और इसमें आपका क्या दोष गलती मेरी है।
उसने कहा- जी.. मैं माफ़ी चाहता हूँ ऐसी गलती दुबारा कभी नहीं होगी, पर आप उस दिन इतनी खूबसूरत लग रही थीं कि खुद को रोक न सका।
मैं अपनी तारीफ़ सुन कर खुश हुई और फिर सोचा कि ठीक ही तो कह रहा है इसमें गलती उसकी क्या थी.. गलती तो मेरी थी, मैं उसे रोक लेती तो उसकी हिम्मत नहीं होती!
हम इसी तरह से बातें करने लगे और बात उस दिन की आई-गई हो गई। उसने मुझे बताया कि वो अपनी बीवी से खुश नहीं है और पता नहीं उसे कैसे यह आभास हो गया कि मैं भी अपने पति से से खुश नहीं हूँ।
करीब 5 बजे तक हम बातें करते रहे और उसने मुझे अगले दिन मिलने के लिए बुलाया पहले तो मैं ‘न’ करती रही फिर बाद में ‘हाँ’ कह दिया।
मेरे बच्चे का स्कूल 12 बजे खत्म होता था तो मैं 11.30 बजे घर से निकलती थी, पर आज मुर्तुजा के कहने पर मैं 9 बजे ही घर से निकल गई।
मैं उससे बाज़ार में मिली वह हमने एक जगह चाय पी फिर उसने कहा- स्कूल के पास लगभग एक किलोमीटर दूर एक पार्क है, वहाँ चल कर बातें करते हैं, फिर वहीं से बच्चों को वापस ले आयेंगे।
हमने एक रिक्शा लिया और चले गए। वहाँ पहुँच कर देखा तो वो पार्क कोई पार्क जैसा नहीं लग रहा था, खुला जंगल सा था पास में ब्रह्मिनी नदी बह रही थी।
एक पुराना मन्दिर था जिसकी देख-भाल करने वाला कोई नहीं था, मन्दिर की सीढ़ियाँ नदी में जाती थीं, जिस पर घास और पेड़-पौधे उग गए थे और चारों ओर पेड़ और जंगल सा लग रहा था, दूर-दूर तक कोई नहीं था।
मैंने पूछा- पार्क तो कही नजर नहीं आ रहा?
उसने जवाब दिया- पहले यह पार्क ही था, पर शहर से काफी दूर है इसलिए यहाँ कोई आता-जाता नहीं है और यह अब बंद हो चुका है, अब यहाँ कभी-कभार ही कुछ प्रेमी जोड़े आते हैं।
मैंने फिर पूछा- तो आप मुझे यहाँ क्यों लाए हैं?
उसने मुस्कुराते हुए कहा- देखिए मेरा कोई गलत मकसद नहीं है, हम दोनों शादीशुदा हैं और शहर में मिलना ठीक नहीं क्योंकि लोग फिर आपके बारे में गलत सोचेंगे, तो मैं आपको यहाँ ले आया ताकि हम बातें कर सकें और किसी को कुछ कहने का मौका न मिले। अगर आपको अच्छा नहीं लगा हो तो हम वापस चलते हैं।
मैंने उसकी ऐसी बातें सुन कर ठीक ही लगा और कहा- नहीं, ठीक है यहीं बातें करते हैं… एकांत है और नजारा भी अच्छा है।
हम थोड़ी देर इधर-उधर टहलते हुए बातें करते रहे फिर नीचे उतर कर नदी के किनारे एक पत्थर पर बैठ गए और फिर बातें करने लगे।
हम इधर-उधर की बातें करते रहे फिर अचानक उसने मुझसे पूछा- आप उस दिन के लिए मुझसे नाराज़ तो नहीं है न… मैं उस दिन बहक गया था।
मैं उससे नजरे छिपाती हुई बोली- अब जो हो गया सो भूल जाइए… गलती हर इंसान से होती है, मैं भी भूल चुकी हूँ।
तब उसने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और मेरी तारीफ़ करने लगा- आपके बाल कितने लम्बे और घने हैं, आप बहुत खूबसूरत हैं।
मैं भी अपनी तारीफ़ सुन कर खुश थी और धीरे-धीरे हम खुलते चले गए।
मैं उस दिन पीले रंग की साड़ी में थी। अचानक पेड़ से एक गिरगिट मेरे पैर के पास कूद कर भागा, मैं डर के मारे चिल्लाते हुए मुर्तुजा से जा लिपटी।
मुर्तुजा ने हँसते हुए मुझे देखा और कहा- कुछ नहीं.. गिरगिट था।
उसने मुझे अपनी बांहों में थामा हुआ था और फिर अचानक हमारी नजरें मिलीं।
कुछ देर तक हम एक-दूसरे को ऐसे ही देखते रह गए, फिर उसने मुझसे कहा- तुम्हारे बदन की खुश्बू कितनी मादक है… मुझे दीवाना कर रही है।
मैं उसकी बांहों में समाई, उसकी बातें सुन रही थी और हमारी नजरें एक-दूसरे को देख रही थीं। तभी उसने मेरे होंठों से अपने होंठों को लगा दिया और चूमने लगा।
उसके होंठ मेरे होंठों से लगते ही मेरी आँखें बंद हो गईं, मेरे हाथों ने उसे कस कर पकड़ लिया जैसे कोई डरा हुआ बच्चा अपनी माँ को पकड़ता है, फिर मैंने भी उसे चूमना शुरू कर दिया, मुझे मेरी काम-भावना ने मुझे विवश कर दिया था।
हम जैसे-जैसे एक-दूसरे को चूमते जाते वैसे-वैसे एक-दूसरे को अपनी बांहों की कैद में और कसते जा रहे थे।
जब वो मेरा ऊपर का होंठ चूसता तो मैं उसके नीचे के होंठ को चूसती और जब वो नीचे का चूसता तो मैं ऊपर का.. फिर कभी वो मेरी जीभ को चूसने लगता, तो कभी मैं उसके जीभ को… तो कभी हम एक-दूसरे की जुबान को जुबान से रगड़ते। हम दोनों को बहुत मजा आने लगा था और हम दोनो एक-दूसरे में खो गए थे।
अब उसके हाथ भी हरकत करने लगे। उसने एक हाथ से मुझे सहारा दिया था और दूसरे हाथ को मेरे बदन पर फिराने लगा था, उसने मेरे स्तनों को दबाना शुरू कर दिया। वो मुझे चूमता साथ ही मेरे स्तनों को दबाता… उन्हें सहलाता… मुझे मस्ती सी छाने लगी।
उसने अब अपना हाथ मेरी कमर के आस-पास फिराने में लगा दिया, फिर मेरी नाभि को एक उंगली से सहलाने लगा मैं तो जैसे पागल सी हुई जा रही थी और उसे और जोरों से पकड़ कर चूमने में लगी थी।
मेरी नाभि से खेलने के बाद उसने अब मेरी जांघों को साड़ी के ऊपर से ही छूना शुरू किया। फिर साड़ी को ऊपर उठाने लगा। साड़ी को मेरी जांघों तक उठा कर उसने मेरे पैरों और जांघों को सहलाना शुरू कर दिया।
मैं अपनी टाँगें सटा कर बैठी थी और मस्ती में अपनी योनि को जांघों के बीच दबाने लगी।
उसने अपना हाथ ऊपर किया और मेरे चूतड़ों को सहलाते हुए योनि को सहलाने लगा। उसने मेरा एक हाथ पकड़ा और अपने लिंग के ऊपर पैन्ट पर रख दिया। मैंने भी लिंग को ऊपर से दबाना शुरू कर दिया।
हम काफी देर तक इसी तरह दुनिया भूल कर एक-दूसरे की बाँहों में एक-दूसरे के अंगों को सहलाते और प्यार करते रहे। फिर अचानक उसके हाथ मेरी पैंटी को उसे उतारने के लिए खींचने लगे।
मैंने झट से उसका हाथ थाम लिया यह सोच कर कि यह जगह ठीक नहीं।
तभी उसने कहा- क्या हुआ मैं बैचैन हूँ मुझे और मत तड़पाओ।
मैंने कहा- यह ठीक नहीं!
उसने कहा- देखो आप भी अपने पति से खुश नहीं हो.. मैं भी अपनी बीवी से.. इससे अच्छा मौका और क्या होगा?
मैंने कहा- नहीं… यह जगह ठीक नहीं है कोई देख लेगा!
उसने कहा- आज कोई छुट्टी का दिन नहीं है, कोई यहाँ नहीं आ सकता और ऐसी जगह में कोई देख भी नहीं सकता। यह तो पूरा जंगल है।
मैंने कहा- नहीं कहीं और चलो या फिर बाद में कभी मौका मिलेगा तब करेंगे!
उसने कहा- मुझसे अब और बर्दाश्त नहीं होता और अब समय भी नहीं है कि कहीं और चलें… प्लीज मुझे मत तड़पाओ!
वो मेरे सामने घुटनों के बल मुझसे विनती करने लगा। कभी मुझे चूमता तो कभी मेरे बालों को सहलाता और मनाने की कोशिश करने लगा।
काफी कहने और मनाने के बाद मेरा भी दिल पिंघल सा गया, यूँ कहिए कि मेरे अन्दर की वासना भी शायद मुझसे संभल नहीं रही थी,
मैंने कहा- समय बहुत हो गया है, सो जल्दी से करना होगा।
उसने कहा- ठीक है और अपने पैन्ट को खोल कर नीचे कर दिया और मुझसे कहा आप अपनी पैंटी निकाल दीजिए।
मैंने अपनी साड़ी को कमर तक ऊपर उठाया और पैंटी निकालने लगी, पर मैंने फिर उसे ऊपर चढ़ा दिया।
इस पर उसने कहा- क्या हुआ.. पैंटी क्यों पहन ली?
मैंने अपनी पैंटी को खींच कर एक तरफ कर दी और अपनी योनि उसे दिखाते हुए कहा- ऐसे कीजिए पैंटी निकालने और पहने की जरुरत नहीं पड़ेगी।
उसने कहा- आपकी पैंटी गीली हो जाएगी।
मैंने कहा- कोई बात नहीं, जल्दी-जल्दी में और क्या किया जा सकता है।
उसने मेरी बात सुन कर अपना अंडरवियर नीचे सरका दिया और शर्ट को ऊपर किया उसका लिंग तनतनाया हुआ मेरे सामने दिखा। पर उसके लिंग को देख कर मैं हैरान रह गई। लम्बा मोटा घने बालों में ढंका सा जो लिंग से होते हुए छाती तक थे।
मैंने पूछा- यह क्या है… ऐसा तो कभी नहीं देखा मैंने पहले किसी का?
उसने बताया कि उनके लंड का खतना कर दिया जाता है।
मैंने पूछा- वो क्या होता है?
उसने मुझे बताया- लंड के ऊपर के चमड़े को काट दिया जाता है और सुपाड़े को खुला छोड़ दिया जाता है!
मैंने उससे पूछा- ऐसा क्यों?
तो उसने कहा- बहुत लम्बी कहानी है बाद में कभी बताऊँगा फिलहाल चोदने दो..!
उसने अपने लंड को हाथ से हिलाया और कहा- अपनी टाँगें फैलाइए और मोड़ लीजिए।
मैंने अपनी टाँगें फैला लीं और घुटनों से मोड़ लिया। मुर्तुजा मेरी टांगों के बीच आया उसने अपने लिंग को मेरी योनि के पास रखा और हाथ से लिंग को पकड़ कर मेरी योनि के बीच ऊपर-नीचे रगड़ने के बाद सुपाड़े को योनि की छेद में टिका दिया।
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उसने मुझसे कहा- थोड़ा जोर लगाइएगा।
मैंने उसके कमर को पकड़ा और तैयार हो गई।
उसने जोर लगाया और मैंने भी, पर लिंग फिसल कर दूसरी तरफ चला गया। उसने फिर से एक हाथ से लिंग को पकड़ा और छेद पर टिकाया फिर जोर लगाया पर फिर से लिंग फिसल गया।
तब मैंने उसके लिंग को पकड़ कर योनि के छेद पर लगाया और कहा- अब घुसाइए…!
उसने जोर लगाया तो लिंग थोड़ा घुस गया। फिर मैंने अपना हाथ हटा कर उसकी कमर को पकड़ लिया।
उसने मुझसे कहा- आपकी बुर बहुत गीली हो गई है, इसलिए फिसला जा रहा है।
मैंने कहा- ठीक है अब जल्दी से चोदिए और जल्दी झड़ने की कोशिश करिएगा।
उसने कहा- ठीक है पर क्या आप झड़ना नहीं चाहती?
मैंने कहा- अभी समय नहीं है इसके बारे में फिर कभी सोचेंगे, फिलहाल बच्चों को लेने जाना भी है।
उसने कहा- ठीक है आप मुझे जोर से पकड़ लीजिए, मैं जोर से धक्का मारूँगा, आप बर्दाश्त कर लेंगी न?
मैंने कहा- ठीक है.. अब बातों में समय जाया मत करिए… चोदिए भी!
उसने कहा- ठीक है.. आप अपनी बुर को थोड़ा ढीला करिए, लंड पूरा घुसा लूँ तो फिर जरा गीला हो जाएगा।
मैंने कहा- जोर से झटका नहीं देना.. धीरे-धीरे करके घुसाना…!
उसने धीरे-धीरे जोर लगाया और मैंने भी शुरू में हल्की तकलीफ महसूस की। ऐसा लगा जैसे कोई मेरी योनि को दोनों तरफ से खींच रहा हो, पर जब पूरा घुस गया तो अच्छा लगने लगा। मुझे उसका लिंग अपनी योनि में किसी गर्म लोहे की तरह लग रहा था।
हम दोनों इतने गर्म थे, पर बातें ऐसे कर रहे थे जैसे कितनी समझदारी की हो!
उसने मुझसे कहा- आपकी बुर बहुत गर्म है और कितनी मुलायम है!
मैंने अपना सर उठा कर नीचे देखा तो ऐसा लग रहा था जैसे सिर्फ बाल ही है लिंग कहीं गायब हो गया है क्योंकि मेरी योनि में भी बाल थे।
मैंने अपनी कमर को ऊपर उठाते हुए कहा- अब प्लीज बातें बंद कीजिए और फटाफट चोदिए वरना देर हो जाएगी।
उसने कहा- ठीक है!
और वो धक्के लगाने लगा। थोड़ी देर में मुझे याद आया कि उसने कन्डोम नहीं लगाया, सो मैं छटपटाते हुए उससे कहने लगी- लंड बाहर निकालो… जल्दी निकालो!
उसने मेरी ऐसी हरकत पर लिंग बाहर निकाल लिया और पूछा- क्या हुआ?
मैंने कहा- आपने कन्डोम नहीं लगाया है!
उसने कहा- अब कोई प्लान तो था नहीं कि ऐसा करेंगे, सो अब कन्डोम कहाँ से लाएं?
मैंने कहा- नहीं बिना कन्डोम के ठीक नहीं क्योंकि मैं भी अभी दवा भी नहीं ले रही हूँ।
उसने अब फिर से विनती करनी शुरू कर दी, पर मेरा दिल नहीं मान रहा था। पर मेरे जिस्म की आग के आगे मैं हार गई और उसे इज़ाज़त दे दी।
उसने अपने लिंग पर थूक लगा कर फिर से मेरी योनि में घुसा दिया और कहा- अब प्लीज कुछ मत कहना मुझे चोदने दो… मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकता!
उसने धक्के लगाने शुरू कर दिए। मैं भी उसके धक्कों के आगे सब भूलती चली गई। हम दोनों को ऐसा लग रहा था जैसे कोई खजाने की तलाश में है।
वो धक्के लगाते हुए कभी मुझे चूमता तो कभी जीभ से मेरे गले और स्तनों के बीच गहराइयों को चाट लेता।
मैं भी उसके हरकतों से पागल सी हुई जा रही थी और हर धक्के पर अपनी टाँगें और फैला देती।
मेरी योनि से पानी रिसने लगा था और योनि के चारों तरफ फ़ैल कर चिपचिपा सा लगने लगा था।
मेरी पैंटी पूरी तरह से भीग गई थी। उसका लिंग जब अन्दर जाता मुझे ऐसा लगता जैसे एक करंट मेरी योनि से होता हुआ मेरी नाभि में फ़ैलता जा रहा है।
अब खुद को रोकना मुश्किल हो रहा था सो मैंने उसे पूरी ताकत से पकड़ लिया और अपनी टाँगें सटा लीं।
तब उसने कहा- अपनी टांगों को फैलाओ मुझे चोदने में परेशानी हो रही है, ऐसे में पूरा नहीं घुस रहा..!
मैंने अपने होंठों को होंठों से मसलते हुए धीमी आवाज में कहा- अब और नहीं होगा मुझसे… मैं झड़ने वाली हूँ!
और यह कहते ही मेरी योनि की मांसपेशियाँ सिकुड़ने लगीं, जैसे उसके लिंग को चबा जाना चाहती हों और मैं अपनी कमर को उछालने लगी।
उसने कहा- अपनी बुर को ढीला करिए.. लंड में दर्द हो रहा है.. प्लीज ठीक से चोदने दीजिए!
मैं अपने बदन को ऐंठते हुए उसे आदेशात्मक स्वर से कहने लगी- रुको मत… चोदते रहो!
वो समझ गया एक इस वक़्त कुछ नहीं मैं सुनने वाली, सो उसने उसी तरह धक्का देना शुरू कर दिया।
मैंने कहा- थोड़ा तेज़ी से चोदिए!
उसने कहा- हाँ चोद रहा हूँ!
और उसकी रफ़्तार तेज़ हो गई। मैंने भी अपनी कमर को उछालना शुरू कर दिया और उसके दस-बारह धक्कों में मैं झड़ते हुए शांत हो गई।
पर वो धक्के अभी भी लगा रहा था। मेरी पकड़ ढीली होने लगी और वो धक्के पूरे जोर से लगाने लगा।
वो कोशिश कर रहा था कि लिंग पूरा घुसा दे, उसने धक्के लगाते हुए कहा- आप झड़ गईं?
मैंने कहा- हाँ… अब आप भी जल्दी कीजिए!
उसने कहा- कोशिश तो कर रहा हूँ…आपको मजा आया या नहीं!
मैंने कहा- आया.. पर ऐसा मजा भी कोई मजा है… जल्दीबाजी में?
उसने कहा- हाँ.. ये तो है!
फिर उसने कहा- आपको चोदने में बहुत मजा आ रहा है। मैंने पहले ऐसे कहीं नहीं चोदा किसी को। मेरी बीवी तो कुछ बोलती ही नहीं है बस चुदवाती है और सो जाती है।
मैंने उससे कहा- प्लीज बातें बंद करके जल्दी से चोदिए!
उसने मेरी बातें सुनते ही तेज़ी से धक्के लगाने शुरू कर दिए। वो जोर-जोर से झटके देने लगा।
उसके हर धक्के पर मैं ‘हम्म्म्म… हम्म्म हम्म्म्म’ की आवाज निकालने लगी, फिर कुछ और जोरदार झटकों के बाद वो शांत हो गया।
मेरी योनि के अन्दर गर्म तेल सा महसूस हुआ और उसने अपना वीर्य मेरे अन्दर छोड़ दिया।
मैंने उससे कहा- अपना लंड तुरंत बाहर निकालिए जल्दी!
उसने लिंग बाहर निकाल लिया। मैंने तुरंत उससे रुमाल माँगा और योनि के अन्दर डाल कर वीर्य को साफ़ किया। उसका वीर्य इतना गाढ़ा और चिपचिपा था कि योनि से बाहर नहीं आ रहा था।
मैंने फिर अपनी पैंटी को ठीक किया कपड़े ठीक किए और चलने को तैयार हो गई।
हमने एक-दूसरे को संतुष्टि भरी निगाहों से देखा और मुस्कुराते हुए चलने का तय किया। हम कुछ दूर पैदल चले क्योंकि आस-पास कोई रिक्शा नहीं था।
इस बीच उसने मुझसे पूछा- आपको संतुष्टि तो हुई न?
मैंने कहा- हाँ.. कुछ तो राहत मिली, आपको हुई या नहीं?
उसने जवाब दिया- हाँ.. पर जो मजा फुरसत में है, इस जल्दबाजी में कहाँ…क्या कभी हम फुर्सत में मिल नहीं सकते?
मैंने कुछ सोचा कि क्या यह सही होगा? या नहीं? फिर मैंने कहा- मैं तो फिलहाल अकेली रहती हूँ बच्चों के साथ.. मगर रात में ही मिल सकती हूँ!
उसने तुरंत कहा- आज रात को मिलें फिर?
मैंने कहा- नहीं… आज नहीं… फिर कभी!
उसने कहा- कब?
मैंने कहा- कल!
उसने कहा- ठीक है।
मैं अपने बच्चे को लेकर घर चली आई और दिन में बड़ी प्यारी नींद आई। मैं बहुत दिनों के बाद सुकून से सोई थी। रात में भी मुर्तुजा से देर रात बात हुई।
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से

Post by jay »

उसने मुझसे अगली रात मिलने के बारे में बताया कि वो घर में अपनी बीवी से झूठ बोल कर रात भर के लिए मेरे साथ रुकना चाहता है।
मैं भी बेक़रार हो गई। पता नहीं उसमें क्या बात थी कि मैं उसके आगे झुकती चली गई। शायद उसकी बातें करने का तरीका, या उसका आकर्षक बदन।
अगले दिन मैं उससे फिर स्कूल के बाहर मिली, हम साथ घर आए, पर इस बीच हमने कोई सम्भोग से सम्बंधित बातें नहीं की, बस इधर-उधर की बातचीत होती रही।
शायद उसके मन में बातें चल रही थीं, पर उसने कुछ नहीं कहा और न ही मैंने।
मैं लगभग भूल चुकी थी कि वो मुझसे मिलने को आने वाला है।
अचानक रात 9 बजे उसका फोन आया और उसने कहा- तैयार रहना, मैं करीब 11 बजे आऊँगा, सबके सोने के बाद।
मुझे भी उसकी योजना ठीक लगी।
उसकी बातों से मेरा दिल खुश हो गया और बच्चों को जल्दी-जल्दी सुला कर खुद तो तैयार करने लगी। पता नहीं मुझे क्या हो गया था मैं उसके सामने और भी आकर्षक दिखना चाहती थी। ठण्ड बहुत थी पर फिर भी मैंने एक नाईटी पहनने की सोची, जो छोटी सी फ्रॉकनुमा थी और मेरे घुटनों तक आती थी।
फिर मैंने नई पैंटी और ब्रा का सैट निकाला जो बहुत ही पतला और जालीदार था। मैंने बालों को खोल दिया और बदन पर परफ्यूम छिड़क लिया।
मैं तैयार हो कर बस उसके इंतज़ार में बैठ गई। मेरी ननद ने मुझे बहुत पहले एक सोने की चैन दी थी, कमर में बाँधने के लिए। मैं उसे कभी पहनती नहीं थी, पर आज मैंने उसे लुभाने के लिए उसे बाँध लिया था।
लगभग ग्यारह बजने वाले थे तभी मुर्तुजा का फोन आया और उसने मुझसे पूछा- क्या मैं आ सकता हूँ?
मैं कहा- हाँ आ जाओ..!
उसने फोन रखते ही दरवाजा खटखटाया मैंने एक शाल ओढ़ी और दरवाजा खोला तो सामने मुर्तुजा मुस्कुराते हुए खड़ा था।
मैंने उसे अन्दर आने को कहा और दरवाजा बंद कर लिया।
हम अन्दर आकर सोफे पर बैठ गए और फिर बातें करने लगे।
उसने मुझे कहा- सोने की तैयारी हो गई पूरी?
मैंने कहा- हाँ.. बच्चों को अन्दर सुला दिया है।
उसने मुझसे पूछा- हम कहाँ सोयेंगे?
मैंने कहा- यहीं जमीन पर बिस्तर बिछा लेते हैं, अन्दर बच्चे हैं।
हमने एक चटाई बिछाई, उसके ऊपर एक गद्दा बिछाया और फिर ओढ़ने के लिए एक कम्बल ले लिया। ठण्ड बहुत थी सो मैं जल्दी से अपना शाल उतार कर कम्बल के अन्दर घुस गई।
तभी उसने कहा- आप नाईटी में बहुत खूबसूरत लग रही हो, थोड़ी देर मुझे आपको देखने तो दो!
मैंने कहा- ठण्ड बहुत है।
पर उसने जिद कर दी और कहा- मेरी किस्मत में ये सब नहीं है प्लीज.. बस कुछ देर के लिए कम्बल से बाहर आओ।
मैं कम्बल हटा कर उसके सामने आ गई। उसने वासना भरी ललचाई नजरों से मुझे देखा और मेरा हाथ पकड़ मुझे अपनी तरफ खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया। मेरे बालों को मेरे चेहरे से हटाते हुए मेरी आँखों में देखा और मेरे होंठों को चूम लिया।
इसके बाद तो बिना देर किए हमने एक-दूसरे को अपनी बाँहों में जकड़ कर चूमने में लीन हो गए।
मैंने उससे कहा- मुझे ठण्ड लग रही है कम्बल के अन्दर चलो, फिर जो मर्ज़ी कर लेना!
तब उसने मुझसे कहा- कपड़े तो निकाल दो।
मैंने अपनी नाईटी निकाल दी, उसने मेरी ब्रा और पैंटी को गौर से देखा और कहा- आप बहुत फैंसी कपड़े पहनती हो… काश कि मेरी बीवी भी ऐसी ही होती।
फिर मैं कम्बल के अन्दर चली गई। मुर्तुजा ने भी अपने कपड़े निकल दिए और अंडरवियर में आ गया। उसका बदन देखने लायक था, मजबूत बाजू, गोरा जिस्म, लम्बा-चौड़ा और सीने से लेकर पाँव तक बाल, चौड़े सीना और कंधे ऐसे जैसे उसमें कोई भी झूल जाना चाहे।
उसके बदन को देख कर तो मैं दीवानी हो गई उसकी, पर सोचा कि उसकी बीवी कैसी होगी जिसको ये नहीं भाता… एक पल ऐसा भी लगा कहीं मुर्तुजा मुझे पाने के लिए मुझसे झूठ तो नहीं कह रहा। फिर सोचा अब जो भी हो मुझे मेरी वासना की आग से मतलब था।
मुर्तुजा ने कम्बल हटाया और फिर मेरे ऊपर झुक कर मेरी कमर पर चूम लिया और कहा- आपका जिस्म एकदम मखमल की तरह कोमल है, जी चाहता है खा जाऊँ।
मैंने भी छेड़खानी के अंदाज में कहा- तो रोका किसने है!
फिर क्या था, मेरे कहते ही उसने कम्बल को पूरा हटा दिया और मेरे जिस्म को सर से पाँव तक चूमने लगा। ठण्ड इतनी थी कि मैं काँपने लगी, पर उसके गर्म जिस्म के छूने से थोड़ी गर्माहट मिल रही थी जो बहुत मजेदार थी।
वो मेरे जिस्म में अपनी जीभ घुमा-घुमा कर मुझे चाटने लगा और कहने लगा- आपका जिस्म कितना नमकीन है।
उसने मुझे पेट के बल लिटा दिया और मेरी गर्दन पर चुम्बनों की बारिश सी शुरू कर दी। कभी मुझे मेरे गालों पर चूमता तो गले को अपनी जीभ से चाटने लगता। फिर धीरे-धीरे वो ऐसे ही चूमते और चाटते हुए मेरे पीठ तक पहुँच गया और मेरी ब्रा का हुक खोल दिया।
मैं उसकी ऐसी हरकतों से पागल हुई जा रही थी मेरी योनि की मांसपेशियां कभी सिकुड़ जाती तो कभी ढीली हो जाती, यही हाल मेरे पैरों का था।
अब उसने मेरे कमर को चूमना शुरू किया फिर मेरी पैंटी के ऊपर से मेरे बड़े और चर्बीदार कूल्हों को दबाने और प्यार करने के बाद उसने मेरी पैंटी सरका कर जाँघों तक कर दी।
उसने मेरे कूल्हों को दबाया और फिर अपनी जीभ मेरे चूतड़ों पर फिराने लगा और उन्हें चूमते हुए मेरे चूतड़ के बीच में घुमाने लगा। जब वो ऐसे करता मेरी कमर खुद बा खुद ऊपर की और उठ जाती।
उसने अब मेरी टांगों को थोड़ा फैलाया और मेरी योनि को अपनी जीभ से ढूंढने लगा।
मुझे इतना मजा आ रहा था कि मैंने अपने हाथ पीछे की तरफ ले जाकर खुद से दोनों कूल्हों को पकड़ कर उन्हें फैलाने लगी और कूल्हों को ऊपर उठा दिया।
उसे तो जैसे कोई खजाना मिल गया मेरी योनि को अपने मुँह में पाते ही उसने अपना मुँह फाड़ कर मेरी योनि को उसमें भर लिया और अपनी जीभ मेरी योनि की दरारों में रगड़ने लगा।
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Post by jay »

मैं इतनी जोश में आ गई कि मुझे लगा कि मैं अब तब छूट जाऊँगी, मेरा पानी निकलने लगा। वो कभी जीभ घुमाता तो कभी जीभ घुसाने की कोशिश करता।
उसने अब मेरी योनि के दोनों तरफ की पंखुड़ियों को दांतों में दबा कर काटने लगा मैं कसमसाने लगी और उसके सर के बालों को नोचने लगी, पर उसे तो किसी चीज़ की परवाह नहीं थी।
मैंने उसे धक्का दिया और वो पीठ के बल बिस्तर पर गिर गया मैंने अपनी ब्रा को निकाल दी और उसके ऊपर अपने दोनों पैर फैला कर चढ़ गई।
मैं उसके ऊपर लेट गई और उसके सर के बालों को जोरों से पकड़ कर उसके चेहरे को चूमने लगी, फिर उसके होंठों को होंठों से लगा कर चूसने लगी।
इसी बीच मैं अपनी योनि को उसके लिंग के ऊपर दबाती और अंडरवियर के ऊपर से ही अपनी कमर को घुमा-घुमा कर योनि को लिंग के ऊपर रगड़ती जा रही थी।
उसने मेरे मांसल चूतड़ों को अपनी हथेलियों से पकड़ कर दबाने के साथ मुझे अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया, मैं उसके पूरे चेहरे, गले और सीने को प्यासी गाय की तरह चूमने और चूसने लगी।
मैंने उसकी घुंडियों को बारी-बारी से चूसना शुरु कर दिया और वो उत्तेजना में मुझे अपनी बाँहों में पूरी ताकत से भींचने लगा, ऐसे मानो जैसे मुझे निचोड़ कर रख देगा आज।
मैं कभी उसके घुंडियों को और होंठों को अपनी दांतों से काट लेती तो वो सिसकी भरते हुये ‘आह-आह’ करने लगता और अपनी कमर को ऊपर उठाता, साथ ही मुझे अपनी ओर ऐसे खींचता, जैसे अंडरवियर के अन्दर से ही मेरी योनि में लिंग घुसा देना चाहता हो।
अब उसने मुझे करवट लेकर अपनी बगल में लिटाया और होंठों से होंठ लगा कर चूमने लगा और एक हाथ से मेरे स्तनों को दबाने लगा।
उसके हाथ स्तनों पर पड़ते ही मैं कराहने लगी, वो बेरहमी से उन्हें मसलने लगा।
मैं ‘उफ्फ्फ उफ्फ्फ हाय हाय..’ करती रही।
उसने मेरे चूचुक को चुटकी में भर कर मसल दिया तो दूध की एक तेज़ धार निकली जो उसके सीने पे लगी।
इसके बाद वो अपना मुँह मेरे स्तनों में लगा मेरे चूचक को मुँह में भर चूसने लगा ऐसा लग रहा था जैसे मेरा दूध पी रहा हो।
मुझे ठण्ड लग रही थी सो मैंने एक हाथ से कम्बल को खींचा और दोनों को ढक लिया, पर अगले ही पल उसने उसे हटा मेरी कमर तक सरका दिया।
मैंने भी उसके सर को एक हाथ से सहारा दिया और दूसरे हाथ से उसके अंडरवियर में डाल उसके लिंग को हाथ से पकड़ लिया। वो मेरे स्तनों का दूध पीने में मग्न था और मैं उधर उसके लिंग से खेलने में।
उसका मोटे लिंग को पकड़ कर कभी मैं हिलाती, तो कभी सुपाड़े के ऊपर ऊँगलियां फिराती तो कभी उसके अंडकोष को दबाती। उसके अंडकोष को जब मैं दबाती तो वो दर्द से सहम सा जाता।
अब उसके लिंग के मूत्रद्वार से चिकना तथा लसलसा सा पानी भी बूंद-बूंद कर निकलने लगा था।
उसने अब आगे बढ़ने की सोची और मुझे चित लिटा दिया और पहले वाले स्तन को छोड़ दूसरे को पकड़ उसमें से दूध पीने लगा और पहले वाले को हाथ से मसलता जा रहा था।
उसने दोनों हाथों से मेरी दोनों स्तनों को पकड़ के स्तनपान करने लगा और और मैंने अपनी दोनों टांगों से उसके अंडरवियर को खोले की कोशिश शुरू कर दी उसके घुटनों तक सरका दिया।
वो पूरी मस्ती में मेरे स्तनों को बेरहमी से दबाने और चूसने लगा साथ ही उन्हें कभी-कभी काट लेता।
मुझे भी अब इतनी खुमारी चढ़ गई कि मैं बड़बड़ाने लगी- हाय क्या करते हो… आराम से चूसो जानू… तुम्हारे ही हैं… प्यार से प्लीज ह्ह्हम्म्म्म हम्म्म्म हम्म्म्म…!
उसने जी भर कर चूसने के बाद मेरे पेट को हर जगह चूमा फिर मेरी नाभि में जीभ डाल कर प्यार किया मेरी हालत और भी बुरी होती जा रही। पर मैंने शायद ठान ली थी जैसे कि आज पूरा मजा लूँगी, सो उसे वो हर चीज़ करने दिया जो उसका मन कर रहा था।
थोड़ी देर नाभि से खेलने के बाद वो अपनी जीभ को रगड़ते हुए मेरी योनि के ऊपर ले आया और मेरी योनि के बालों वाले हिस्से को चूमने लगा।
फिर मेरी पैंटी जो अभी जाँघों तक थी, उसे पूरा निकाल दिया और मुझे पूरी तरह नंगी करके मेरी टांगों को फैला कर चौड़ी कर दिया।
उसने मेरी योनि को बड़े प्यार से देखा और बालों को योनि के ऊपर से हटाते हुए कहा- कितनी प्यारी बेबी(योनि) है आपकी, किसी पावरोटी की तरह फूली और एक खिले हुए फूल की तरह सुंदर…!
फिर उसने उसे चूम लिया और फिर एक उंगली डाल उसे टटोलने लगा मैं बिल्कुल एक भूखी नागिन की तरह हो गई और सिसकारने और कराहने लगी।
और मैंने अपनी दोनों टाँगें उसके कंधों पर चढ़ा कर उसको गले से अपनी जाँघों में दबा दिया। उसने अपनी उंगली बाहर निकाली और अपनी जीभ को मेरी योनि की दरार में ऊपर से नीचे फिराया और चाटने लगा।
वो मेरी योनि के छेद में जीभ को घुसाने की कोशिश करता और फिर दोनों पंखुड़ियों को दांतों से दबा कर खींचता और होंठों से चूसता जैसे कोई खाने को चूसता हो।
मैं तो इतनी गर्म हो चुकी थी इस ठण्ड में भी कि मेरा बदन बाहर से तो कांप रहा था, पर अन्दर आग ऐसी कि किसी को जला कर राख कर दे।
मैंने बहुत देर तक उसे बर्दाश्त किया, फिर उसे अपनी टांगों से धक्का दिया तो वो अलग हो गया और मैं लपक के उठ कर उसके लिंग को दबोच लिया और चूसने लगी।
मैं पूरे जोश में उसके सुपाड़े को दांतों से काटने लगी तो मुझसे विनती करने लगा- आह नहीं.. आह नहीं.. बस करो…!
उसकी ऐसी हालत देख मैंने उसके अंडकोष को मुठी में भर कर जोर-जोर से दबाने लगी, इससे तो और वो और भी तड़पने लगा और कहने लगा- आह नहीं… आह नहीं.. बस करो.. मर जाऊँगा.. जान..!
उसने जोर लगा कर मुझे हटाया और मुझे बिस्तर पर पटक कर मेरे ऊपर आ गया।
उसने मेरी दोनों हाथों को पकड़ा और कहा- आज तुमने मुझे बहुत तड़पाया है अब बदला लूँगा…!
मैं भी तो जैसे यही चाह रही थी, सो मैंने अपनी टाँगें फैला कर उसके बीच उसे जकड़ लिया। वो मेरे ऊपर आ गया और मेरे होंठों को होंठों से लगा जोरों से चूसने लगा।
मैंने कम्बल को खींच दोनों को ढक लिया। अब वो अपना पूरा वजन मेरे ऊपर लाद कर लेट गया, उसका मुँह मेरे मुँह से चूमने में लगा था, उसके हाथ मेरे बालों और कंधे को थामे थे, उसका सीना मेरे स्तनों के ऊपर था, पेट पर पेट नाभि पर नाभि और योनि पर लिंग था।
मैंने एक हाथ से उसके पीठ को जोर लगा कर पकड़ी थी, दूसरे हाथ से उसके कूल्हों को पकड़ कर खींच रही थी और टांगों को उसके जाँघों पर चढ़ा दी थी।
उसका रोम-रोम मुझे अन्तरंग सुख दे रहा था, उसके बाल मेरे बदन में गुदगुदी सी पैदा कर रहे थे, दोनों की कमर ऐसे नाच रही थी, जैसे योनि लिंग को खा जाना चाहती हो और लिंग योनि में कहीं छिप जाने को तड़प रहा हो।
हम दोनों ही एक-दूसरे से साँपों की तरह लिपटे एक-दूसरे को प्यार करने और अंगों को सहलाने लगे।
मुझे अब सहन नहीं हो रहा था और मैंने उससे कह दिया- अब देर किस बात की है, जल्दी से लंड मेरी बुर में घुसा दो..!
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