वक्त का तमाशा

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jay
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Re: वक्त का तमाशा

Post by jay »




"हाए भैया, काश यह मेरी नल्लि ननद ना होती मेरे पास, अभी आपको बुला के आपके लंड का सेवन करती मेरी इस निगोडी को..." स्नेहा ने जान बुझ के यह शीना की तरफ देखते हुए कहा..




"नल्लि ही है ना भैया, जवानी के मज़े ले नहीं रही, बस अपने ऐसे बदन को धकति फिरती है...इसे क्या पता, जब मैं इसकी उमर की थी, तब आपका लंड ही मेरी जवानी का खिलोना था.. हाए क्या दिन थे वो भी, भाई आपके लंड पे पूरा दिन सवारी करती, और रात में आप मेरे उपर अपने उस साँप को नचाते रहते.." स्नेहा ने अपने सब कपड़े उतार कर शीना के साइड फेंक दिए, वो फुल मूड में थी शीना को अपना नंगा नाच दिखाने के लिए.. शीना को यकीन नहीं हो रहा था कि स्नेहा अपने भाई से ऐसी बातें तो कर रही है लेकिन वो उसके साथ ही बिस्तर पे...शीना को समझ नहीं आ रहा था, कि वो सुनती रहे या नींद तोड़ के वहाँ से कैसे भी करके निकल जाए.. असमंजस में वो जब फ़ैसला नहीं कर पा रही थी, तब स्नेहा की हिम्मत और बढ़ गयी




"उम्म्म हां भाई.. अहहाहा, आपके लंड को ही महसूस कर रही हूँ अंदर मेरे... उफ़फ्फ़ अहहाहा... मेरे मूह में भी कुछ चाहिए भाई.. अहहहहा....हां चोदिये ने अपनी रंडी बहेन को भाई... अहहहहा.. यस भाई अहहहहा..." कहके स्नेहा सिसकारियाँ भरने लगी और शीना के एक दम करीब आ गयी... शीना को इस एसी में भी पसीना आने लगा, उसे समझ नहीं आ रहा था वो क्या करे, उपर से उसकी चूत में भी जैसे चीटियाँ रेंगने लगी थी, जिसका उसे खुद यकीन नहीं हो रहा था.. स्नेहा और उसके भाई की ऐसी बातें ग़लत थी वो जानती थी, लेकिन खुद भी अपने भाई से प्यार करती थी उस बात से वो गरम हो रही थी...




स्नेहा ने धीरे धीरे अपनी चूत मसलना शुरू किया और फिर तेज़ी से अपनी उंगलियाँ डाल के ज़ोर ज़ोर से मज़े लेने लगी



"अहहाहा आहान भाई अहँन्न हां फक मी अहहाहहा.. यस भाई अहहहाहा... चोदो ना अपनी रंडी बहेन को अहहाहा.. यह लंड मुझे दो भाई अहाहाहाहा... मूह में दो ना अहहहा, स्लूरप्प्प अहहहाहा.. उम्म्म्म अहहहहहाआ..." स्नेहा की चीखें शीना को अंदर से और तपाने लगी थी... शीना बुत बनके लेटी रही और अपने बदन पे आ रहे पसीने को महसूस करने लगी जिसकी हर एक बूँद के साथ उसकी चूत की खुजली बढ़ती रहती.. आलम यह था अब स्नेहा से ज़्यादा शीना गरम हो रही थी लेकिन वो उठ नहीं सकती थी, शायद उसकी जिग्यासा उसे रोके हुई थी..






"अहाहहाः भाई, हां मैं आ रही हूँ अहहहः, आपका पानी पिलाओ मुझे भी अहहहहा... उम्म्म अहहः यस अहहहहह.. उफफफ्फ़ ओह्ह्ह्ह अहहाहा..." कहते कहते स्नेहा अपनी चूत को ज़ोर ज़ोर से रगड़ने लगी और अपने चरण पे पहुँच गयी... शीना को जब लगा के स्नेहा ख़तम हुई है और उसने धीरे से एक आँख खोली तो देखा स्नेहा अपनी उंगलियों को खूब चूस रही है और फोन अभी भी जारी है




"उम्म अहहा भाई, मज़ा आ गया अहाहहा... आपका नमकीन पानी ही मेरी ज़िंदगी में मिठास लाता है भाई अहहाहा.... अभी भी आपकी जीभ महसूस हो रही है देखिए ना इस चूत को.... चलो कुछ करती हूँ कल, कल जमके सवारी करनी है आपके लंड की..." कहके स्नेहा ने फोने कट किया और सोने की आक्टिंग करने लगी.. स्नेहा की इस हरकत से शीना अंदर तक सहम उठी थी, वो नहीं समझ पा रही थी कि स्नेहा क्या कर रही है और क्यूँ कर रही है.. वजह जो भी हो, उसकी इस हरकत से शीना को एक अजीब सी गर्मी महसूस हो रही थी, पर वो कुछ कर भी नहीं पा रही थी.. सोच सोच में 15 मिनट बीत चुके और शीना की चूत ठंडी होने का नाम नहीं ले रही थी.. जब उसे आश्वासन हुआ कि स्नेहा सो गयी है , शीना धीरे से उठके बाथरूम की तरफ बढ़ी और तेज़ी से दरवाज़े को पटक दिया. बाथरूम में घुसते ही शीना ने अपने कपड़े उतार फेंके और जाके शवर के नीचे खड़ी हो गयी इस उम्मीद से शायद पानी उसकी चूत को ठंडा कर सके.. लेकिन उसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ, शवर बंद करके शीना कोने में बने एक स्लॅब पे बैठ गयी और अपनी चूत में उंगली करने लगी




"अहहहहाहा.. भाई फक मी अहहहः..... उम्म्म अहहाहा यस रिकी भाई उफफफ्फ़ अहहहाहा, लव मी भाई लव मी अहहहहा उम्म्म्मम.... फास्टर रिकी भाई, फास्टर अहहहहा" शीना होश खोते खोते चिल्लाने लगी और अपनी उंगली तेज़ी से चूत में अंदर बाहर करने लगी





स्नेहा ने जब देखा के शीना अंदर गयी है, तब वो भी अपने बिस्तर से उठी और बाथरूम के बाहर पहुँची, दरवाज़ा खुला देख उसे खुशी हुई और वो अंदर झाँकने लगी.. अंदर का नज़ारा देख उसे उसकी कामयाबी दिखाई दी.. शीना रिकी के नाम से अपनी चूत मसल रही थी और उसकी आँखें आनंद में बंद थी.. स्नेहा वहीं खड़ी रही और अपनी चूत को हल्के से मसल्ने लगी...




"अहहहाहा भाई यस अहहहाआइ एम कुमिंग अहाहहाअ उफफफफ्फ़......" कहके शीना झड़ने लगी और उसका आनंद उसके चेहरे पे सॉफ दिख रहा था, पसीने और पानी से उसका भीगा हुआ बदन स्नेहा को उत्तेजित कर रहा था.. स्नेहा शीना के बदन पे आँखें गढ़ाए अपनी चूत को धीरे धीरे सहला ही रही थी के शीना ने जैसे ही आँखें खोली सामने स्नेहा को देख उसका दिमाग़ काम करना बंद हो गया.. भाभी और ननद एक दूसरे के सामने एक दम नंगी, दोनो अपने अपने भाइयों के नाम से चूत मसल्ति हुई.. शीना को यकीन था कि स्नेहा ने ज़रूर उसकी हरकत देख ली है, स्नेहा ने जब देखा के शीना की आँखें खुल गयी है तब स्नेहा ने हल्की सी एक हरामी वाली स्माइल शीना को पास की, जैसे के उसे कहना चाहती हो, मैने सब देख लिया है मेरी ननद रानी... खैर, स्नेहा वहाँ से मूड के वापस अपनी जगह पे सोने चली गयी






शीना को अंदर ही अंदर काफ़ी डर लग रहा था, अगर स्नेहा ने उसको छूट रगड़ते हुए देखा होता तो बात अलग थी, लेकिन रिकी के नाम से.. "ऊफ्फ, यह मैने क्या कर लिया यार.." शीना ने खुद से कहा और काफ़ी देर तक अंदर बैठी रही और सोचती रही के वो बाहर कैसे जाए... करीब आधा घंटा हुआ था शीना को अंदर लेकिन वो अब तक बाहर आने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी.. धीरे से उसने कपड़े पहने और एक एक कदम लेके वो बाहर आ रही थी, हर एक कदम के साथ उसके दिल की धड़कन तेज़ होती जाती.. आख़िर कर जब वो बाथरूम के दरवाज़े पे पहुँची, तो सामने स्नेहा को ऐसे देख उसके दिमाग़ की धज्जियाँ सी उड़ गयी





जब स्नेहा को महसूस हुआ के सामने कोई खड़ा है, स्नेहा ने अपनी आँखें खोली और अपनी चूत रगड़ते हुए ही बोली




"आओ ना ननद जी अहहहहा.... आ जाओ मेरे पास..."
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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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jay
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Re: वक्त का तमाशा

Post by jay »

sunita123 wrote:wow ab to aur maja aayega nanad aur bhabhi dono aaps me sex karegi aur dono fir ek hi mard se chudegi wow its hot


Thanks Sunita


bilkul aap sath deti rahe,
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Re: वक्त का तमाशा

Post by jay »

"यह विक्रम कहाँ चला गया है, कल रात को भी नहीं दिखा, अभी भी कहीं नहीं दिख रहा.." सुहासनी ने अमर से पूछा जब वो दोनो घर के बॅकयार्ड में बैठे सुबह कीठंडी धूप का आनंद ले रहे थे.. अभी अमर कुछ कहता उससे पहले विक्रम का कॉल ही आ गया उसको




"अरे बेटे कहाँ हो, इधर माँ पूछ रही है और बिन बताए यूँ अचानक" अमर ने फोन उठाते कहा




"बीसीसीआइ के बाप का फोन आया था पापा, इसलिए अचानक जाना पड़ा मुझे पापा.. एलेक्षन्स के चलते इस साल के कुछ मॅच अबू धाबी में होंगे, अब अगर यहाँ से ऑपरेट करना है तो

यहाँ के बुक्कीस से भी सेट्टिंग करना पड़ेगा.. इसलिए कुछ ज़्यादा वक़्त लगेगा इधर, मेरे साथ हमारे नेटवर्क के कुछ आदमी आए हैं ताकि बात चीत करने में आसानी हो, और बीसीसीआइ के सेक्रेटरी भी हैं.." विक्रम ने जवाब में कहा




"ठीक है बेटे, कुछ दिक्कत हो तो कॉल करके बताना... चलो बाइ.." कहके अमर ने कॉल रखा और जैसे ही सुहासनी को कुछ बताता, तभी पीछे से किसी की मधुर आवाज़ उसके कानो में पड़ी




"गुड मॉर्निंग ताऊ जी....."




आवाज़ सुनते ही जैसे अमर के रग रग में एक लहर से दौड़ गयी.... पीछे मूड के उसने कहा





"ज्योति बेटे...कैसी है मेरी गुड़िया".. कहके उसने अपने बाहें फेलाइ और ज्योति आके उसके गले लग गयी..





"व्हाट आ प्लेज़ेंट सर्प्राइज़.. कैसी हो बेटी.." अमर ने उसका माथा चूम के कहा और उसे अपने साथ वाली चेअर पे बिठा दिया





"मैं ठीक हूँ ताऊ जी, लेकिन आप सुबह सुबह ताई जी के साथ चाइ के मज़े.. हाउ रोमॅंटिक हाँ" ज्योति ने सुहासनी को चिढ़ाने के लिए कहा





"उफ्फ यह लड़की, छोड़ो यह सब, बताओ कैसी हो.. और पढ़ाई कैसी चल रही है.." सुहासनी को ज्योति और शीना एक समान थी, लेकिन अमर के दिल में ज्योति और शीना की तुलना होती थी, ज्योति थोड़ी ज़्यादा प्यारी थी उसे, शायद वो उससे दूर रहती थी तभी...






ज्योति राइचंद... अमर के छोटे भाई की एक लौति बेटी, ज्योति अभी मास्टर्स कर रही थी, दिमाग़ से बिल्कुल रिकी जैसी, लेकिन स्वाभाव बिल्कुल रिकी से अलग.. जहाँ रिकी एक ठहरे हुए पानी जैसा था, ज्योति एक बहते झरने सी थी.. पूरा दिन दोस्तों के साथ घूमना फिरना, बातें करते रहना, मोबाइल इंटरनेट और ना जाने क्या क्या... कोई भी टॉपिक, कोई भी डिबेट या आर्ग्युमेंट, ज्योति हमेशा डिसकस करने में लग जाती, अपने कॉलेज ग्रूप की लीडर जो थी.. शायद दिमाग़ और पैसा, दोनो का इस्तेमाल करना जानती थी, तभी तो अपने शहेर के एसीपी के लौन्डे को अपनी उंगलियों पे नचाती थी.. दिखने में शीना से कहीं ज़्यादा सुंदर, तीखे नें नक्श, हल्की भूरी आँखें, लंबे काले बाल.. ज्योति ने अपना ध्यान काफ़ी रखा हुआ था, शहेर में रहके जहाँ शीना को शहेर की हवा लगी हुई थी, वहीं ज्योति छोटे से शहेर में रहके बिल्कुल एक नॅचुरल ब्यूटी थी.. ज्योति की बस एक कमज़ोरी थी, जो हमें आगे देखने को मिल जाएगी













"पढ़ाई ठीक चल रही है ताई जी, नेक्स्ट मंत प्रॉजेक्ट सबमिशन और फिर फाइनल एग्ज़ॅम्स..." ज्योति ने जवाब में कहा





"तुम्हारा बाप कहाँ है, बाहर से तो नहीं चला गया डर के..हाहहः" अमर ने ठहाका लगा के कहा





"हम यहाँ है भैया.... ज़रा इधर भी देखिए.." अमर के भाई राजवीर ने पीछे से जवाब दिया






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Re: वक्त का तमाशा

Post by jay »





राजवीर राइचंद, राजस्थान में रह रह के आधा रजवाड़ा स्टाइल अपना लिया था, तभी तो अपनी आलीशान कोठी को महल कहना उसे ज़्यादा पसंद था, विंटेज गाड़ियाँ हो या घर के नौकर.. हर चीज़ में लोकल तौर तरीके अपना दिए थे, राजवीर किसी राजा से पीछे नहीं था लाइफस्टाइल में, वहाँ के रहीस दोस्तों से मिलके घूमना फिरना और अयाशी करना, उसे सब कुछ भाता था.. काम के नाम पे वो भी अमर जैसा ही था, मुंबई में बुक्की चलाने वाला अमर, तो जयपुर के नेटवर्क को बनाया राजवीर ने.... अमर ने वक़्त रहते सब कुछ अपनी मुट्ठी में कर लिया था, अगर वो नहीं करता तो आज बीसीसीआइ के साथ डीलिंग्स राजवीर कर रहा होता.. इसके अलावा अपने शहेर में कोई भी दिक्कत होती तो राजवीर के पास लोग सबसे पहले आते मदद के लिए.. दिमाग़ से गरम राजवीर, ज्योति से बहुत प्यार करता, हमेशा उसे महारानी की तरह ट्रीट करता.. राजवीर के शहर में एक किस्सा बड़ा फेमस है कि ज्योति ने एक मूवी में कोई गाड़ी देख ली और राजवीर से ज़िद्द करने लगी कि वो उसी गाड़ी में स्कूल जाएगी.. बिना वक़्त गवाए राजवीर ने वो गाड़ी मँगवाई और ज्योति को उसमे स्कूल भेजा..




"राजवीर, आओ आओ..." कहके अमर ने अपने छोटे भाई को गले लगाया और दोनो आपस में बातें करने लगे.. जहाँ बातें रोज़ मरहा की ज़िंदगी से शुरू हुई, वहीं क्रिकेट की बात आते ही सुहासनी और ज्योति वहाँ से उठ के अंदर चले गये





"ताई जी, मैं शीना और रिकी भैया से भी मिल लेती हूँ.." कहके ज्योति शीना के कमरे में पहुँच गयी, लेकिन उसे वहाँ ना पाकर ज्योति फिर रिकी के कमरे में चली गयी





"आहें आहेम... " ज्योति ने रिकी को सामने देख उसे अपनी मौजूदगी का आभास दिया जो अपने लॅपटॉप में कुछ ग्रॅफिक डेसिंग्स कर रहा था





"अरे वाह, व्हाट आ प्लेज़ेंट सर्प्राइज़.." कहके रिकी अपनी जगह से उठा और ज्योति से गले लगा





"कैसी हो ज्योति, और यूँ अचानक.."





"क्या भैया, ऐसे ही नहीं आ सकती क्या.." ज्योति ने बनावटी गुस्सा दिखा के कहा





"अरे बिल्कुल यार, और सूनाओ, क्या चल रहा है... वैसे आइ हॅव सम्तिंग फॉर यू" कहके रिकी ने अपने ड्रॉयर से एक पॅकेट निकाल के ज्योति के हाथ में रखा






उधर स्नेहा के कमरे से शीना निकल ही रही थी कि उसने पीछे मूड के स्नेहा से फिर कहा.. "भाभी, आइ होप कल रात वाली बात हमारे बीच ही रहेगी, गुड बाइ"




शीना अपने कमरे में घुसने ही वाली थी कि तभी रिकी के कमरे से उसे कुछ आवाज़ें सुनाई दी और उपर से लड़की की आवाज़, उसने जल्दी से अपने कपड़े बदले और रिकी के कमरे की तरफ अपने कदम बढ़ाने लगी, जैसे ही उसने रिकी के कमरे का दरवाज़ा खोला, सामने ज्योति को देख के उसकी जान में जान आई


"ज्योत्ीईईई.." खुशी से चिल्ला के शीना उसके पास आई और दोनो बहने गले मिली




"और यह क्या छुपा रही है, " कहके जैसे ही उसने ज्योति के हाथ में देखा उसकी हँसी छूट गयी




"सिगरेट के पॅकेट को भला क्यूँ छुपा रही है, रिकी भाई ने दी ना.." शीना ने सिगरेट का पॅकेट लेके रिकी को देखा





"भाई, बस बहनों को बिगाड़ने के काम कर रहे हो आप... हिहिहीः.." कहके तीनो लोग हँसने लगे

.............................



"प्रेम, आज कैसे भी मिलना पड़ेगा... नहीं, आज ही, शीना ने कल रात को जो बातें मुझसे कही, उससे हमारा सारा खेल बिगड़ सकता है , जल्दी मिलो मुझे" कहके स्नेहा ने फोन कट किया और प्रेम से मिलने के लिए तैयार होने लगी
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sunita123 wrote:kahani me naye naye character add ho rahe ahi matlab kahani kafi hot hogi yakinan
you are right Sunita


thanks for comment
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