लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस) complete
- Rohit Kapoor
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)
nice updates
Read my all stories
(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
- Kamini
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)
Mast update
शादी का मन्त्र viewtopic.php?t=11467
हादसा viewtopic.php?p=164372#p164372
शैतान से समझौता viewtopic.php?t=11462
शापित राजकुमारी viewtopic.php?t=11461
संक्रांति काल - पाषाण युगीन संघर्ष गाथा viewtopic.php?t=11464&start=10
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- Ankit
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- Ankit
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)
मेने चाची को नंगा कर के उनकी भरी हुई, मस्त जवानी का लुफ्त लेते हुए एक बार जमकर छोड़ा, और उन्हें उनके मन्मुताविक खुशी देकर अपने घर आ गया.
रात के खाने पर यही सब चर्चा होती रही, सभी लोग अपनी अपनी तरह से समझाते रहे मुझे,
कैसे रहना है, क्या खाना है, क्या नही खाना है… अपनी पढ़ाई पर ध्यान रखना है, इधर-उधर की बातों से बचना है.. यही सब बातें.
फिर सब सोने चले गये, मे भी अपने कमरे आकर बेड पर लेट गया, और भविश्य के बारे में सोचने लगा…
नींद तो आँखों से कोसों दूर थी…बस पड़ा था कमरे की छत को घूरते हुए…
लगभग 11 बजे भाभी मेरे कमरे में आईं, गेट लॉक कर के वो जैसे ही मेरी तरफ पलटी, मे उन्हें देखता ही रह गया…
मात्र एक मिनी गओन, जिसमें से उनका मादक दूधिया बदन छलक पड़ने को तत्पर दिखाई दे रहा था…
उनकी आँखों में अपने लाड़ले से बिछड़ने की उदासी साफ-साफ दिखाई दे रही थी..उन्हें देखते ही मे उठ कर बेड के सिरहाने से टेक लेकर बैठ गया…
हल्के कदमों से बढ़ती हुई वो मेरे बेड तक आईं, और बेड के साइड में खड़े होकर उन्होने अपना वो नाम मात्र का गाउन भी अपने बदन से सरका दिया…
भाभी की आँखें नम थी, जिन्हें देखकर मे भी बेड से नीचे उतरकर उनके सामने खड़ा हो गया….
मेने उनके हाथ को अपने हाथ में लेकर पूछा – भाभी आप यहाँ मेरे कमरे में और इस तरह… भैया को छोड़कर… वो क्या सोच रहे होंगे…?
वो अपनी रुलाई पर काबू करते हुए बोली – तुम्हें बस अपने भैया की फिकर है…मुझ पर क्या बीत रही है, इसका कोई अंदाज़ा नही है…
तुम उनकी फिकर छोड़ो, उन्हें मेने नींद की गोली देकर सुला दिया है, अब वो सुबह से पहले नही उठेंगे…
उनकी बात सुनकर मेने उनके चेहरे को अपने हाथों में लेकर उनके लरजते होंठों पर अपने होंठ रख दिए… और एक गमगीन सा किस लेकर कहा…
मुझे पता है भाभी की आप पर क्या बीत रही है…, मे खुद नही समझ पा रहा हूँ, कि आपके बिना इतने साल मे कैसे रह पवँगा..?
भाभी मेरे सीने से लिपटकर फुट-फूटकर रोने लगी… मत जाओ लल्ला.. नही रह पाउन्गी मे तुम्हारे बिना…
मेने उनके नंगे बदन को सहलाते हुए कहा – मे भी नही चाहता भाभी…आप बाबूजी को समझाओ ना… यहीं पास के शहर में रहकर कुछ कर लूँगा…
कुछ देर सुबकने के बाद वो मुझसे अलग हुई… फिर अपने आँसू पोन्छ्कर बोली – अब कुछ नही हो सकता लल्ला, मे बाबूजी से क्या कहूँगी… नही..नही…तुम जाओ, रह लेंगे तुम्हारी यादों के सहारे…
मे नही चाहती की, मेरी वजह से तुम अपना भविश्य बरवाद करो…और तुम्हें भी अपना जी कड़ा करना होगा…
इसलिए मे तुम्हारे भैया को सुला कर तुम्हारे सामने इस अवस्था में खड़ी हूँ, कि आने वाले कुछ सालों के लिए इस रात को यादगार बना सकूँ,
आओ मुझमें समा जाओ मेरे प्रियतम… मेरे दिलवर…. मेरे लाड़ले देवर…
ये कहकर वो मुझसे किसी बेल की तरह लिपट गयीं, और मेरे चेहरे पर जगह जगह अनगिनत चुंबन ले डाले…
उन्हें बाहों में समेटे, मे पलग पर ले आया और फिर मेने उनके बदन पर उपरर से नीचे तक चुंबनों की बौछार करदी…
वो जलबिन मछली की तरह पलंग पर पड़ी तड़पने लगी…, अपनी आँखें मीचे छन-प्रतिछन वासना की तरफ बढ़ने लगी…
चूमते हुए मे उनकी टाँगों के बीच आ गया और उनकी चिकनी चमेली को हाथ से सहला कर उनकी चुचियो को चूस लिया…
आआहह…..सस्स्सिईईईईईईईईईई….लल्लाआ….मुझे खूब सराअ…प्यार चाहिए…आजज्ज….हहुऊन्न्ं…
जब मेने उनकी रस गागर के मुँह पर अपनी जीभ लगाई… भाभी की कमर बुरी तरह से थिरकने लगी… मे अपनी एक उंगली चूत के अंदर डालकर उनकी क्लिट को चूसने लगा…
आआययईीीई….म्म्मा आ….चूसूऊ…आअहह…खा…जाओ… उन्होने मेरे सर को अपनी चूत पर दबा दिया और अपनी गान्ड को हवा में लहराते हुए झड़ने लगी.
भाभी ने मेरे बालों को पकड़कर अपने ऊपर खींचा, और मेरे होंठों को चूस्ते हुए बोली – तुम सच में जादूगर हो लल्ला… अब पता नही ऐसा मज़ा कब मिलेगा मुझे….?
मेने उनके आमों को सहलाते हुए कहा – ये सब आपने ही तो सिखाया है भाभी...
सच कहूँ तो इतना सकुन मुझे और कहीं नही मिलता, जितना आपके आगोश में मिलता है… आप ही मेरे लिए सब कुछ हो,
मेरी गुरु, मेरी प्रेयशी, मेरी भाभी, मेरी माँ…सब कुछ… आप हैं, तो मे हूँ, वरना आपके बिना मेरा कोई वजूद नही…
भाभी ने मेरे नीचे लेते हुए, मेरे शेर को अपने हाथ में लेकर अपनी रसीली के मुँह पर रखा और अपनी टाँगों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेटकर कस लिया…
मेरा लंड सरसरकार उनकी गीली चूत में चला गया….
सस्स्स्सिईईईईईईई…..आअहह….इतना प्यार करते हो अपनी भाभी से… उउफफफ्फ़…. रजाअ.. मत करो इतना प्यार…की ये मोहिनी कहीं मर ही ना जाए तुम्हारी जुदाई में…
भाभी के शब्द उनके मुँह में ही जप्त रह गये, क्योंकि मेने अपने होंठ जो टिका दिए उनके होंठों से… और अपनी कमर को और ज़ोर से दबा दिया….
मेरा पूरा लंड उनकी बच्चेदानी के मुँह तक दस्तक देने लगा… भाभी अपार सुख की सीमा लाँघ गयी… और ज़ोर से उन्होने मुझे अपने बदन से कस लिया….
मेने जैसे ही अपने मूसल को सुपादे तक बाहर लेकर एक जोरदार धक्का मारा…
उन्होने अपने दाँत मेरे कंधे में गढ़ा दिए.. और जोरदार सिसकारी भरते हुए अपनी कमर और ऊपर कर के मेरे शेर को गहरे और गहरे तक अपनी मान्द में समा लिया…
आज भाभी के साथ सेक्स करने में कुछ अलग सी ही फीलिंग हो रही थी, वो मशीनी अंदाज में अपनी कमर को झटके दे देकर चुदाई के मज़े को दुगना-तिगुना करने की कोशिश में लगी थी…
रात के अंतिम पहर तक भाभी मेरे पास ही रहीं, उनका मन ही नही था अलग होने का… लेकिन सामाजिक बाँधों में जकड़े उदास मन.. एक दूसरे से जुदा होना ही पड़ा..
उस रात मेरी माँ, मेरी अबतक की हमसफर, मेरी जान, मेरी सब कुछ, मोहिनी भाभी ने उस रात दिल्खोल कर अपने लाड़ले देवर को प्यार दिया…
मे उनके प्यार से सराबोर होकर, अपने परिवार की यादों को अपने साथ समेटे हुए, दूसरे दिन देल्ही लॉ की पढ़ाई करने के लिए निकल पड़ा….!
रात के खाने पर यही सब चर्चा होती रही, सभी लोग अपनी अपनी तरह से समझाते रहे मुझे,
कैसे रहना है, क्या खाना है, क्या नही खाना है… अपनी पढ़ाई पर ध्यान रखना है, इधर-उधर की बातों से बचना है.. यही सब बातें.
फिर सब सोने चले गये, मे भी अपने कमरे आकर बेड पर लेट गया, और भविश्य के बारे में सोचने लगा…
नींद तो आँखों से कोसों दूर थी…बस पड़ा था कमरे की छत को घूरते हुए…
लगभग 11 बजे भाभी मेरे कमरे में आईं, गेट लॉक कर के वो जैसे ही मेरी तरफ पलटी, मे उन्हें देखता ही रह गया…
मात्र एक मिनी गओन, जिसमें से उनका मादक दूधिया बदन छलक पड़ने को तत्पर दिखाई दे रहा था…
उनकी आँखों में अपने लाड़ले से बिछड़ने की उदासी साफ-साफ दिखाई दे रही थी..उन्हें देखते ही मे उठ कर बेड के सिरहाने से टेक लेकर बैठ गया…
हल्के कदमों से बढ़ती हुई वो मेरे बेड तक आईं, और बेड के साइड में खड़े होकर उन्होने अपना वो नाम मात्र का गाउन भी अपने बदन से सरका दिया…
भाभी की आँखें नम थी, जिन्हें देखकर मे भी बेड से नीचे उतरकर उनके सामने खड़ा हो गया….
मेने उनके हाथ को अपने हाथ में लेकर पूछा – भाभी आप यहाँ मेरे कमरे में और इस तरह… भैया को छोड़कर… वो क्या सोच रहे होंगे…?
वो अपनी रुलाई पर काबू करते हुए बोली – तुम्हें बस अपने भैया की फिकर है…मुझ पर क्या बीत रही है, इसका कोई अंदाज़ा नही है…
तुम उनकी फिकर छोड़ो, उन्हें मेने नींद की गोली देकर सुला दिया है, अब वो सुबह से पहले नही उठेंगे…
उनकी बात सुनकर मेने उनके चेहरे को अपने हाथों में लेकर उनके लरजते होंठों पर अपने होंठ रख दिए… और एक गमगीन सा किस लेकर कहा…
मुझे पता है भाभी की आप पर क्या बीत रही है…, मे खुद नही समझ पा रहा हूँ, कि आपके बिना इतने साल मे कैसे रह पवँगा..?
भाभी मेरे सीने से लिपटकर फुट-फूटकर रोने लगी… मत जाओ लल्ला.. नही रह पाउन्गी मे तुम्हारे बिना…
मेने उनके नंगे बदन को सहलाते हुए कहा – मे भी नही चाहता भाभी…आप बाबूजी को समझाओ ना… यहीं पास के शहर में रहकर कुछ कर लूँगा…
कुछ देर सुबकने के बाद वो मुझसे अलग हुई… फिर अपने आँसू पोन्छ्कर बोली – अब कुछ नही हो सकता लल्ला, मे बाबूजी से क्या कहूँगी… नही..नही…तुम जाओ, रह लेंगे तुम्हारी यादों के सहारे…
मे नही चाहती की, मेरी वजह से तुम अपना भविश्य बरवाद करो…और तुम्हें भी अपना जी कड़ा करना होगा…
इसलिए मे तुम्हारे भैया को सुला कर तुम्हारे सामने इस अवस्था में खड़ी हूँ, कि आने वाले कुछ सालों के लिए इस रात को यादगार बना सकूँ,
आओ मुझमें समा जाओ मेरे प्रियतम… मेरे दिलवर…. मेरे लाड़ले देवर…
ये कहकर वो मुझसे किसी बेल की तरह लिपट गयीं, और मेरे चेहरे पर जगह जगह अनगिनत चुंबन ले डाले…
उन्हें बाहों में समेटे, मे पलग पर ले आया और फिर मेने उनके बदन पर उपरर से नीचे तक चुंबनों की बौछार करदी…
वो जलबिन मछली की तरह पलंग पर पड़ी तड़पने लगी…, अपनी आँखें मीचे छन-प्रतिछन वासना की तरफ बढ़ने लगी…
चूमते हुए मे उनकी टाँगों के बीच आ गया और उनकी चिकनी चमेली को हाथ से सहला कर उनकी चुचियो को चूस लिया…
आआहह…..सस्स्सिईईईईईईईईईई….लल्लाआ….मुझे खूब सराअ…प्यार चाहिए…आजज्ज….हहुऊन्न्ं…
जब मेने उनकी रस गागर के मुँह पर अपनी जीभ लगाई… भाभी की कमर बुरी तरह से थिरकने लगी… मे अपनी एक उंगली चूत के अंदर डालकर उनकी क्लिट को चूसने लगा…
आआययईीीई….म्म्मा आ….चूसूऊ…आअहह…खा…जाओ… उन्होने मेरे सर को अपनी चूत पर दबा दिया और अपनी गान्ड को हवा में लहराते हुए झड़ने लगी.
भाभी ने मेरे बालों को पकड़कर अपने ऊपर खींचा, और मेरे होंठों को चूस्ते हुए बोली – तुम सच में जादूगर हो लल्ला… अब पता नही ऐसा मज़ा कब मिलेगा मुझे….?
मेने उनके आमों को सहलाते हुए कहा – ये सब आपने ही तो सिखाया है भाभी...
सच कहूँ तो इतना सकुन मुझे और कहीं नही मिलता, जितना आपके आगोश में मिलता है… आप ही मेरे लिए सब कुछ हो,
मेरी गुरु, मेरी प्रेयशी, मेरी भाभी, मेरी माँ…सब कुछ… आप हैं, तो मे हूँ, वरना आपके बिना मेरा कोई वजूद नही…
भाभी ने मेरे नीचे लेते हुए, मेरे शेर को अपने हाथ में लेकर अपनी रसीली के मुँह पर रखा और अपनी टाँगों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेटकर कस लिया…
मेरा लंड सरसरकार उनकी गीली चूत में चला गया….
सस्स्स्सिईईईईईईई…..आअहह….इतना प्यार करते हो अपनी भाभी से… उउफफफ्फ़…. रजाअ.. मत करो इतना प्यार…की ये मोहिनी कहीं मर ही ना जाए तुम्हारी जुदाई में…
भाभी के शब्द उनके मुँह में ही जप्त रह गये, क्योंकि मेने अपने होंठ जो टिका दिए उनके होंठों से… और अपनी कमर को और ज़ोर से दबा दिया….
मेरा पूरा लंड उनकी बच्चेदानी के मुँह तक दस्तक देने लगा… भाभी अपार सुख की सीमा लाँघ गयी… और ज़ोर से उन्होने मुझे अपने बदन से कस लिया….
मेने जैसे ही अपने मूसल को सुपादे तक बाहर लेकर एक जोरदार धक्का मारा…
उन्होने अपने दाँत मेरे कंधे में गढ़ा दिए.. और जोरदार सिसकारी भरते हुए अपनी कमर और ऊपर कर के मेरे शेर को गहरे और गहरे तक अपनी मान्द में समा लिया…
आज भाभी के साथ सेक्स करने में कुछ अलग सी ही फीलिंग हो रही थी, वो मशीनी अंदाज में अपनी कमर को झटके दे देकर चुदाई के मज़े को दुगना-तिगुना करने की कोशिश में लगी थी…
रात के अंतिम पहर तक भाभी मेरे पास ही रहीं, उनका मन ही नही था अलग होने का… लेकिन सामाजिक बाँधों में जकड़े उदास मन.. एक दूसरे से जुदा होना ही पड़ा..
उस रात मेरी माँ, मेरी अबतक की हमसफर, मेरी जान, मेरी सब कुछ, मोहिनी भाभी ने उस रात दिल्खोल कर अपने लाड़ले देवर को प्यार दिया…
मे उनके प्यार से सराबोर होकर, अपने परिवार की यादों को अपने साथ समेटे हुए, दूसरे दिन देल्ही लॉ की पढ़ाई करने के लिए निकल पड़ा….!
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)
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चार साल बाद ....................
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आज मेरे लिए बहुत बड़ी खुशी का दिन था… क्योंकि पूरे 4 साल के बाद मे अपने घर वापस जा रहा था,
बीते 4 सालों से मे देल्ही में रहकर एलएलबी की पढ़ाई करता रहा था…, इस बीच रामा दीदी के यहाँ भी जाता रहा, लेकिन धीरे-2 वो भी बंद सा हो गया…
पिच्छले एक साल से एक जाने माने लॉयर के अंडर में मेने प्रॅक्टीस की, जिनसे मेने लॉ की बारीकियों को अच्छे से जाना था…
आज अपने गुरु प्रोफ़ेसर. राम नारायण जो उसी लॉ कॉलेज में प्रोफेसर भी हैं, उनसे पर्मिशन लेकर मे अपने घर जा रहा था…
ट्रेन में बैठा मे अपने बीते हुए दिनो को याद कर रहा था… साथ ही अपनी भाभी और प्यारी भतीजी रूचि से मिलने की एग्ज़ाइट्मेंट, …
बाबूजी और भैया का स्नेह और आशीर्वाद मिलने वाला था मुझे आज.
बीते कुछ दिनों में निशा से भी कोई बात नही हो पाई थी.., मेने कितनी ही बार उसके घर फोन किया, लेकिन लगा ही नही,
ना जाने वो क्या कर रही होगी आजकल, … फिर अचानक एक अंजानी सी आसंका ने मुझे घेर लिया…
कहीं उसके घरवालों ने उसकी शादी ना करदी हो…ये सोचकर ही मेरे शरीर में एक अंजाने डर की लहर दौड़ गयी… और मे बैचैन हो उठा…
इधर कुछ दिनो से मेरे घरवालों ने भी एक तरह से मुझसे संबंध सा ही ख़तम कर लिया था…
बस महीने के महीने मुझे खर्चा मिल जाया करता था, वो भी मनी ऑर्डर के ज़रिए….
मे जब भी फोन करता, लाइन मिलती, और मेरी आवाज़ सुनते ही कट कर दिया जाता...
जब पिछले कई महीनों से कोई खैर खबर नही मिली, तो मे बैचैन रहने लगा, जिसे प्रोफ़ेसर साब ने भाँप लिया और पुच्छ बैठे…
जब मेने सारी बात उन्हें बताई, तो उन्होने ही मुझे घर जाकर पता करने की बात कही…
फिर मेरी सोचों पर भाभी ने कब्जा कर लिया, उनके साथ बिताए वो स्वर्णिम दिन याद आने लगे, भाभी ने मेरी खुशी को कैसे अपनी जिंदगी ही बना लिया था…,
प्यार और स्नेह के साथ साथ उन्होने मुझे दुनियादारी भी सिखाई थी…, एक तरह से उन्होने ही मुझे इस काबिल बनाया था, मे उनके त्याग और ममता का ऋण कैसे उतार पाउन्गा…?
अपनी सोचों में गुम मुझे पता भी नही चला, कब मेरा स्टेशन आ गया…जब गाड़ी खड़ी हुई, तब जाकर मेरी सोचों पर भी ब्रेक लगे…
मेने लोगों से स्टेशन के बारे में पूछा.., हड़बड़ा कर मेने अपना बॅग लिया और डिब्बे से बाहर आया…
यहाँ से मुझे अपने घर तक बस से ही जाना था… जो करीब 1 घंटे बाद निकलने वाली थी…
मे जब अपने घर की चौपाल पर पहुँचा … जहाँ किसी समय बाबूजी की मौजूदगी में लोगों की जमात लगी होती थी वहीं आज सन्नाटा सा पसरा हुआ था..
बैठक का दरवाजा तो खुला था… इसका मतलव बाबूजी बैठक में हैं… लेकिन इतनी शांति क्यों है…
मे धड़कते दिल से बैठक के गेट पर पहुँचा… अंदर बाबूजी अकेले अपनी ही सोच में डूबे हुए आराम कुर्सी पर बैठे झूल रहे थे…,
वो आज मुझे कुछ थके-थके से दिखाई दिए.
मुझे सामने देखकर वो झटके से खड़े हो गये, मेने जाकर उनके पैर छुये, उन्होने मेरे सर पर हाथ फेर्कर आशीर्वाद दिया…
बाबूजी ने मुझे अपने गले से लगा लिया…, ना जाने क्यों उनकी आँखों से दो बूँद टपक कर मेरे कंधे पर गिरी…
मेने उनकी तरफ देखा… तो वो रुँधे गले से बोले… जा बेटा घर जाकर फ्रेश होले.. हारा थका आया है… थोड़ा आराम करले.. फिर बैठेंगे साथ में…
मे उनके पास से उठ कर अपना बॅग उठाए घर के अंदर पहुँचा…मेरी बिटिया रानी मेरी भतीजी… रूचि जो अब काफ़ी बड़ी हो गयी थी.. आँगन में खेल रही थी..
मुझे देखते ही दौड़कर मेरे पैरों से लिपट गयी… और चिल्लाते हुए बोली –
चाचू आ गये…. मम्मी… मौसी… देखो चाचू आ गये…
उसकी आवाज़ सुनकर भाभी और निशा दौड़ कर बाहर आई… मुझे देखते ही भाभी ने मुझे अपने कलेजे से लगा लिया… लाख कोशिशों के बाद भी उनकी रुलाई फुट पड़ी.. और उनकी आँखें बरसने लगी…
उनके पीछे खड़ी निशा भी रो रही थी…
चार साल बाद ....................
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आज मेरे लिए बहुत बड़ी खुशी का दिन था… क्योंकि पूरे 4 साल के बाद मे अपने घर वापस जा रहा था,
बीते 4 सालों से मे देल्ही में रहकर एलएलबी की पढ़ाई करता रहा था…, इस बीच रामा दीदी के यहाँ भी जाता रहा, लेकिन धीरे-2 वो भी बंद सा हो गया…
पिच्छले एक साल से एक जाने माने लॉयर के अंडर में मेने प्रॅक्टीस की, जिनसे मेने लॉ की बारीकियों को अच्छे से जाना था…
आज अपने गुरु प्रोफ़ेसर. राम नारायण जो उसी लॉ कॉलेज में प्रोफेसर भी हैं, उनसे पर्मिशन लेकर मे अपने घर जा रहा था…
ट्रेन में बैठा मे अपने बीते हुए दिनो को याद कर रहा था… साथ ही अपनी भाभी और प्यारी भतीजी रूचि से मिलने की एग्ज़ाइट्मेंट, …
बाबूजी और भैया का स्नेह और आशीर्वाद मिलने वाला था मुझे आज.
बीते कुछ दिनों में निशा से भी कोई बात नही हो पाई थी.., मेने कितनी ही बार उसके घर फोन किया, लेकिन लगा ही नही,
ना जाने वो क्या कर रही होगी आजकल, … फिर अचानक एक अंजानी सी आसंका ने मुझे घेर लिया…
कहीं उसके घरवालों ने उसकी शादी ना करदी हो…ये सोचकर ही मेरे शरीर में एक अंजाने डर की लहर दौड़ गयी… और मे बैचैन हो उठा…
इधर कुछ दिनो से मेरे घरवालों ने भी एक तरह से मुझसे संबंध सा ही ख़तम कर लिया था…
बस महीने के महीने मुझे खर्चा मिल जाया करता था, वो भी मनी ऑर्डर के ज़रिए….
मे जब भी फोन करता, लाइन मिलती, और मेरी आवाज़ सुनते ही कट कर दिया जाता...
जब पिछले कई महीनों से कोई खैर खबर नही मिली, तो मे बैचैन रहने लगा, जिसे प्रोफ़ेसर साब ने भाँप लिया और पुच्छ बैठे…
जब मेने सारी बात उन्हें बताई, तो उन्होने ही मुझे घर जाकर पता करने की बात कही…
फिर मेरी सोचों पर भाभी ने कब्जा कर लिया, उनके साथ बिताए वो स्वर्णिम दिन याद आने लगे, भाभी ने मेरी खुशी को कैसे अपनी जिंदगी ही बना लिया था…,
प्यार और स्नेह के साथ साथ उन्होने मुझे दुनियादारी भी सिखाई थी…, एक तरह से उन्होने ही मुझे इस काबिल बनाया था, मे उनके त्याग और ममता का ऋण कैसे उतार पाउन्गा…?
अपनी सोचों में गुम मुझे पता भी नही चला, कब मेरा स्टेशन आ गया…जब गाड़ी खड़ी हुई, तब जाकर मेरी सोचों पर भी ब्रेक लगे…
मेने लोगों से स्टेशन के बारे में पूछा.., हड़बड़ा कर मेने अपना बॅग लिया और डिब्बे से बाहर आया…
यहाँ से मुझे अपने घर तक बस से ही जाना था… जो करीब 1 घंटे बाद निकलने वाली थी…
मे जब अपने घर की चौपाल पर पहुँचा … जहाँ किसी समय बाबूजी की मौजूदगी में लोगों की जमात लगी होती थी वहीं आज सन्नाटा सा पसरा हुआ था..
बैठक का दरवाजा तो खुला था… इसका मतलव बाबूजी बैठक में हैं… लेकिन इतनी शांति क्यों है…
मे धड़कते दिल से बैठक के गेट पर पहुँचा… अंदर बाबूजी अकेले अपनी ही सोच में डूबे हुए आराम कुर्सी पर बैठे झूल रहे थे…,
वो आज मुझे कुछ थके-थके से दिखाई दिए.
मुझे सामने देखकर वो झटके से खड़े हो गये, मेने जाकर उनके पैर छुये, उन्होने मेरे सर पर हाथ फेर्कर आशीर्वाद दिया…
बाबूजी ने मुझे अपने गले से लगा लिया…, ना जाने क्यों उनकी आँखों से दो बूँद टपक कर मेरे कंधे पर गिरी…
मेने उनकी तरफ देखा… तो वो रुँधे गले से बोले… जा बेटा घर जाकर फ्रेश होले.. हारा थका आया है… थोड़ा आराम करले.. फिर बैठेंगे साथ में…
मे उनके पास से उठ कर अपना बॅग उठाए घर के अंदर पहुँचा…मेरी बिटिया रानी मेरी भतीजी… रूचि जो अब काफ़ी बड़ी हो गयी थी.. आँगन में खेल रही थी..
मुझे देखते ही दौड़कर मेरे पैरों से लिपट गयी… और चिल्लाते हुए बोली –
चाचू आ गये…. मम्मी… मौसी… देखो चाचू आ गये…
उसकी आवाज़ सुनकर भाभी और निशा दौड़ कर बाहर आई… मुझे देखते ही भाभी ने मुझे अपने कलेजे से लगा लिया… लाख कोशिशों के बाद भी उनकी रुलाई फुट पड़ी.. और उनकी आँखें बरसने लगी…
उनके पीछे खड़ी निशा भी रो रही थी…