वो शाम कुछ अजीब थी complete

Post Reply
User avatar
rangila
Super member
Posts: 5698
Joined: 17 Aug 2015 16:50

Re: वो शाम कुछ अजीब थी

Post by rangila »


आज मिनी सुनेल की उस माँ को गाली दे रही थी जिसने सुनेल को सच का रास्ता दिखाया, ना वो ये सब करती, ना आज ये होता ना इतने साल पहले सुनेल उससे दूर होता, सब अपनी अपनी जिंदगी जीते, लेकिन होनी कहाँ मिनी के हाथ में थी. मिनी सुनील और सुनेल की तुलना करने लगी , हर पल हर क्षण सुनील का पलड़ा भारी होता चला गया. दो जुड़वा भाई और इतना फरक, हां फरक था बिल्कुल था - परवरिश का फरक था.

मिनी अपनी किस्मत को कोसने लगी, उसे सुनील क्यूँ नही मिला, उसने क्या गुनाह किया था, क्या उसकी जिंदगी अब यूँ ही गुज़रेगी, क्या उसे सच्चे प्यार का कोई हक़ नही, बिस्तर पर मुक्के मारती मिनी बिलखती रही, उसे संभालने वाला कोई नही था, जो थे वो खुद बिलख रहे थे.

विजय, आरती राजेश, कविता, चारों उस वक़्त हॉल में थे जब ये तीन घर आए, और उनके चेहरे देख किसी की हिम्मत ना हुई कुछ पूछने की, चारों अपने अपने तरीके से सोच रहे थे कल्पना कर रहे थे क्या हुआ जो ये तीन इस तरहा....पर कोई जवाब किसी के पास ना था.

तीनो अलग कमरे में थी, जो इनको मिले थे, बच्चों को कविता ने कुछ देर पहले ही सुला दिया था, कविता से रहा ना गया वो सोनल के पास चली गयी और आरती को विजय ने सूमी के पास भेज दिया, मिनी के गम को हरने राजेश उसके पास चला गया.

सोनल एक घायल शेरनी की तरहा कमरे में इधर से उधर घूम रही थी, कभी खड़ी हो ज़ोर ज़ोर से रोने लगती थी, और कभी एक दम आँधी तूफान की तरहा कयामत सी बन जाती थी.

सूमी बिस्तर पे गिरी बस रोती जा रही थी सुनेल ऐसा निकलेगा उसने ख्वाब में भी नही सोचा था, उसकी ममता घायल हो गयी थी, एक औरत घायल हो गयी थी, एक बीवी तड़प रही थी अपने साथी के लिए, सिर्फ़ वही उसे आज संभाल सकता था, सिर्फ़ वही उसे आज जीने की राह दिखा सकता था, सिर्फ़ वही उसका सुनील.

आज फिर एक औरत अपने ही रूपों से लड़ रही थी.

एक भायनल खेल का आगाज़ हो चुका था, दर्द का खेल.
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
हाथ में पड़ा स्कॉच का ग्लास सुनील से कुछ कहने लगा, उसमें बची स्कॉच का रंग बदल गया था, ये संकेत था सुनील के लिए, आने वाले तुफ्फान से जूझने के लिए.

सुनील उठ के खड़ा हो गया, बाहर बाल्कनी में जा कर शुन्य में घूर्ने लगा. बादलों में उसे दो चेहरे नज़र आए , एक समर का जिसके मुखेटे पे कुटिल हँसी थी एक सागर का जो गमगीन था पश्चाताप में.

सुनील ने आँखें बंद कर ली और उसके सामने अगी की आकृति आ गयी. आसमान एक दम काला हो गया, सुनील के चारों तरफ गेह्न अंधेरा छा गया, जिसे बाल्कनी में जलती लाइट्स भी भेद नही पा रही थी.

तभी सुनील के जिस्म के चारों तरफ एक सफेद धुआँ फैल गया जो उस अंधेरे को मिटाने लगा, वो सफेद धुआँ रोशनी में बदलता चला गया और सुनील के जिस्म से एक तेज निकलने लगा, सब कुछ अचानक गायब हो गया, कोई नही कह सकता था कि कुछ देर पहले यहाँ कुछ हुआ था. सुनील में कुछ तब्दीलियाँ आ चुकी थी, लेकिन क्या? ये अभी सुनील खुद नही जानता था.

आरती सूमी के कमरे में दाखिल हो गयी और सूमी को संभाल ने की कोशिश करने लगी.

'सुमन, क्या हुआ कुछ तो बताओ, तुम तीनो यूँ इस तरहा, सम्भालो खुद को.....' आरती का वाक़्य अभी ख़तम ही नही हुआ था कि कमरे में सफेद रोशनी छा गयी. आरती एक दम घबरा के बाहर भागी विजय को बुलाने और उसके निकलते ही दरवाजा एक दम बंद हो गया.

उस रोशनी से आवाज़ आने लगी, ' भूल गयी जो वादा मुझ से किया था'

सूमी के आँसू एक दम बंद, उसका बिलखना एक दम बंद. ये आवाज़ सुनील की थी.

सू सू सुनील ! घबरा सी गयी सूमी.

'मैं हूँ ना ! तुम लोग कल ही माल दीव आ जाओ, मिनी को साथ ले आना. बस अब एक आँसू नही.'

वो सफेद रोशनी गायब. और सूमी सोच में पड़ गयी. सुनील की आवाज़ यहाँ तक कैसे. फिर सर झटक वो कमरे से बाहर निकली तो सामने विजय और आरती खड़े थे . सूमी एक दम बदल गयी थी, उसके कॉन्फिडेन्स लॉट आया था, एक औरत जंग लड़ने को फिर तयार थी. सूमी सोनल के कमरे की तरफ बढ़ गयी, जहाँ कविता उसे संभालने की कोशिश कर रही थी. सूमी के अंदर कदम रखते ही सोनल एक दम शांत हो गयी.

सूमी : 'पॅकिंग करो.' बस इतना ही बोल वो मिनी के कमरे की तरफ बढ़ गयी उसे भी पॅकिंग करने का बोल अपने कमरे में आ गयी और अपना समान पॅक करने लगी.

विजय आरती ने जब पूछा तो बस इतना कहा. हम कल मालदीव जा रहे हैं. आप प्लीज़ कल की टिकेट्स करवा दो.

विजय उसी वक़्त वहाँ से अपने कमरे में चला गया, और कहीं फोन घुमाने लगा. कुछ देर में उसके पास इनकी बिज़्नेस क्लास की टिकेट्स थी.

सूमी कुछ ज़्यादा समान साथ नही लाई थी, बस कुछ कपड़े ही थे. जो कल होना था वो उसने अभी करने का फ़ैसला ले लिया था और अब वो नही चाहती थी कि सुनील अब कभी हिन्दुस्तान की धरती पे कदम रखे.

विजय जब टिकेट्स ले कर सूमी के पास आया तो सूमी ने उसे एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी सोन्प दी. हिन्दुस्तान में कभी ये फॅमिली रहती थी उसका पूरा वजूद मिटाने की.

ताकि कल अगर कोई खोज बीन करे तो उसे बस चन्द नामों के अलावा कुछ ना पता चले. विजय ने सूमी को अपना वचन दिया और लग गया वो इस काम में, सबसे पहले सूमी और सुनील की जितनी ज़्यादाद थी उसे बेचना था.

विजय ने अपने कुछ खांस भरोसे के कॉंटॅक्ट्स को इस काम में लगा दिया. ये रात बहुत कुछ करनेवाली थी.

समा सुहाना होता चला गया, सुनील के चेहरे पे एक आलोकिक लौ आ गयी थी, चित एक दम शांत हो गया था, वो वापस हॉल में आया अपने स्कॉच के ग्लास को देखा वो बिल्कुल सही सलामत था. सुनील ने बची स्कॉच फेंक दी और एक दूसरा पेग दूसरे ग्लास में तयार कर फिर बालकोनी में जा कर चुस्कियाँ लेने लगा, दूर समुद्र की सतह पे डॉल्फ्फिन्स कभी उपर आती कभी पानी में चली जाती, संगीत की लय की तरहा उनका एक न्रित्य सा चल रहा था, सुनील उसी में खो गया.


'ये समा ! समा है ये प्यार का ! किसी के इंतजार का !' रूबी को तयार करती हुई एक लड़की गुनगुनाई.

'धत्त!' रूबी शर्मा गयी

'हाई मेडम काश में लड़का होती तो कसम से आज....' रूबी के जिस्म की मालिश करते हुए उसने रूबी के उरोज़ को दबा डाला.

'ऊऔच' रूबी एक दम चीख सी पड़ी ' अह्ह्ह्ह क्या करती है'

'जब वो इनको मसलेगा ना....'

'चुप बेशर्म'

'सच दीदी, बड़ी किस्मत वाले हैं आपके मिया , एक दम मिर्ची हो आप तीखी...सीईईईईईईईईई'

'चुप कर और जल्दी काम ख़तम कर अपना'

'हां हां बड़ी बेचैन हो रही हो अपनी सुहाग रात के लिए, बस थोड़ा टाइम और, कुछ हमे भी तो मज़ा आ जाए, फिर ये मौका कहाँ मिलेगा'

वहाँ उथल पुथल मची हुई थी यहाँ सुनील एक दम ऐसे शांत हो गया था जैसे कुछ हुआ ही ना हो, क्यूंकी वो सूमी के ज़ख्मी दिल को राहत दे कर आ गया था, और जानता था कि सोनल भी शांत हो जाएगी जैसे ही सूमी उससे मिलेगी.

कुदरत के अपने क़ानून होते हैं और किसी को उनमें दखल देने नही दिया जाता. अगी ने सुनील को कुछ शक्तियाँ दे कर उस क़ानून को तोड़ दिया था. लेकिन अगी था ही ऐसा, उसे किसी बात की परवाह नही थी, माया जाल से वो परे था, कुछ भी सज़ा मिले वो वही करता था जो उसे ठीक लगता था.

इन सबके बीच एक आत्मा घायल घूम रही थी, वो थी प्रोफ़ेसर की. जिसे अचानक हुई मृत्यु की वजह से मोक्ष प्राप्त नही हुआ था, जिस्म को त्यागने के बाद उसने सुनील और सुनेल की मदद करी थी, जब सुनील भी सुनेल का जिस्म छोड़ उसकी मदद के लिए चला गया था तब प्रोफ़ेसर ही सुनेल के जिस्म में समा गया था और उसके दिल की धड़कन को बंद होने नही दिया था.

सवी को बचाते हुए सुनेल अपने मकसद से भटक गया था यही वो समय था जब वो कमजोर हुआ और समर ने मुक्त होने से पहले उसकी आत्मा को कलुषित कर दिया था, समर जाते जाते भी अपने ख्वाब सुनेल के अंदर डाल गया था, क्यूंकी सुनेल भी समर का अंश था वो इस प्रभाव में आ गया था, उसका मक़सद रह गया था बस सूमी को पाना, चाहे कुछ भी हो. और यही बात उसके मुँह से हॉस्पिटल में निकल गयी थी. जो सुनील को मिला वो उसे भी चाहिए, जो हक़ सुनील का है वही हक़ उसका भी है. यहीं सूमी को गहरा आघात लगा था.

क्या सुनेल अपने मक़सद में कामयाब होगा, ये तो वक़्त ही बताएगा हम चलते हैं वापस अभी सुनील और रूबी के पास, क्या उनकी सुहाग रात पूरी होगी या फिर ????

रूबी के साथ छेड़ खानी करते हुए दोनो लड़कियों ने उसे तयार कर दिया और विदा ले ली.

User avatar
rangila
Super member
Posts: 5698
Joined: 17 Aug 2015 16:50

Re: वो शाम कुछ अजीब थी

Post by rangila »

सब बातों से बेख़बर रूबी बेचैनी से सुनील के आने का इंतजार करने लगी, दिल में उमंगों के तूफान उमड़ पड़े, आज जिंदगी को एक ठिकाना मिलने वाला था, उसे एक सच्चा साथी मिलने वाला था, सवी उसके दिमाग़ से निकल चुकी थी और सूमी की इज़्ज़त और भी दिल में बढ़ गयी थी. सूमी जो अपना हर रोल बखूबी निभा रही थी, कभी एक माँ, कभी एक बीवी, कभी एक सौतेन, और कभी माँ जैसी मासी.

सुनील बाल्कनी में खड़ा कुदरत के मज़े लेता हुआ स्कॉच की चुस्कियाँ लेता रहा और तीन चार पेग पी गया. इतने में उसे सरूर नही चढ़ता था पर उसका मन कुछ मस्त हो गया था, उसका खिलन्दडपन जो बहुत समय से खामोश था वो जाग गया था, वो फुल मस्ती के मूड में आ चुका था और ग्लास का आखरी घूँट भर उसने वो ग्लास समुद्र के हवाले कर दिया, एक नज़र सोती हुई सवी पे डाल वो रूबी के कमरे की तरफ बढ़ गया.

गुलाब की महक से कमरा भरा हुआ था, बिस्तर के चार तरफ कॅंडल लाइट जल रही थी, और बीच में घूँघट काढ़े रूबी बैठी अपनी हथेलियाँ घबराहट में आपस में मसल रही थी, पैरों के अंगूठे आपस में लड़ रहे थे, साँसे तेज चल रही थी, दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था के कमरे में उसकी धड़कन सुनाई दे रही थी.
सुनील के कदम दरवाजे पे ही जम गये.

अपने रुख़ पर निगाह करने दो
खूबसूरत गुनाह करने दो
रुख़ से परदा हटाओ जान-ए-हया
आज दिल को तबाह करने दो


सुनील होंठों से निकले लफ्ज़ रूबी के दिल की धड़कन को और बढ़ा गये. बिस्तर के सामने शीशे में रूबी का अक्स नज़र आ रहा था, जहाँ से उसका घूँघट थोड़ा हटा हुआ था और चेहरा जलवाए फ़रोश हो रहा था.

हुस्न-ओ-जमाल आपका, शीशे में देख कर
मदहोश हो चुका हूँ मैं, जलवों की राह पर
गर हो सके तो होश में ला दो, मेरे हुज़ूर


सुनील दरवाजा बंद करना भूल, रूबी की तरफ बढ़ता चला गया, इस वक़्त उसके जहाँ कुछ नही था बस रूबी बस चुकी थी.

वो मरमरी से हाथ वो महका हुआ बदन
टकराया मेरे दिल से, मोहब्बत का एक चमन
मेरे भी दिल का फूल खिला दो, मेरे हुज़ूर

कह ता हुआ सुनील रूबी की गोद में सर रख लेट गया और घूँघट में छुपे उसके चेहरे को निहारने लगा.

रूबी की पलकें बंद हो गयी, जिस्म में कंपन बढ़ गया. एक लड़की की क्या हालत होती है सुहागरात में ये रूबी को आज समझ में आ रहा था, दिल दिमाग़, जिस्म तीनो पे से काबू हट जाता है, तीनो ही अपनी दुनियाँ बसाने लगते हैं एक युद्ध सा छिड़ जाता है, और लड़की को समझ नही आता कि क्या करे क्या ना करे बस उमंगों के ज्वारभाटे में फसि अपने ही दिल के तेज धड़कनो को सुनती हुई अपने तेज होती साँसों को सामान्य करने का प्रयास करती रहती है, पर साँसे और तेज होती चली जाती हैं, जिस्म में कंपन बढ़ जाता है, चेहरा गुलाबी गुलाबी होता हुआ पूरा गुलाल बन जाता है.

अधर काँपने लग गये जैसे प्यासे हों, होंठ पे लगी लाली बुलाने लगी आओ, सोख लो, इस लाली को, तुम्हारे लिए ही तो लगाई है, माथे पे हल्की हल्की पसीने की बूँदें, जोबन का उतार चढ़ाव चुंबक की तरहा अपनी ओर खींच रहा था, और सुनील उस सुंदरता में खो सा गया था.

'छू लेने दो नाज़ुक होंठों को, कुछ और नही हैं जाम हैं ये' ये चन्द अल्फ़ाज़ सुनील के दिल की गहराई से निकले थे और रूबी इन में खो गयी, सुनील के हाथ उपर उठे और रूबी के चेहरे को थाम लिया.

अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह एक अनसुनी सिसकी रूबी के होंठों से निकली और सुनील के हाथों के साथ उसका चेहरा झुकता चला गया धीरे धीरे और दोनो के होंठ जा मिले. बिजली सी कोंध गयी रूबी के जिस्म में और सुनील पे तो जैसे नशा सा चढ़ गया.

लपलपाति हुई सुनील की ज़ुबान बाहर निकली और रूबी के होंठों पे फिरने लगी, ऐसा अनुभव रूबी के लिए अंजना था, उसका जिस्म हिलोरे लेने लगा और दोनो मुठियों में चद्दर भींचती चली गयी, वो अपने होंठ दूर करना चाहती थी पर सुनील के होंठ तो जैसे चुंबक बन गये थे रूबी चाह के भी अपने होंठ दूर ना कर पाई उसके घूँघट ने सुनील के चेहरे को भी ढक लिया कहीं दूर से झँकते चाँद की नज़र ना लग जाए.

मिलन के इस रंग में दोनो खोते चले गये, होंठ होंठों से रगड़ खाने लगे जिस्मों में चिंगारियाँ उत्पन्न होने लगी, कोई इस वक़्त दोनो को छू ले तो तेज बिजली का झटका खा जाए.

इतने इंतजार और इतनी तड़प के बाद मिलन के इस अहसास ने उसे सोनल की तड़प से पहचान करवा दी, आज वाकई में वो दिल और आत्मा दोनो ही हार गयी थी, जो संशय कभी कभी उसके दिमाग़ में उठते थे उनका वजूद ख़तम हो गया, रूबी अपनी खुद की पहचान खो बैठी, उसे अब कुछ नही चाहिए था, उसका वजूद सुनील में घुलता चला जा रहा था, प्यार क्या होता है ये उसकी आत्मा समझ गयी थी, अपने अतीत के पन्नों को उसने अपने दिमाग़ से खुरूच डाला और एक खाली स्लेट बना डाला, जिसपे सुनील अपने प्यार की मोहर छापता चला जा रहा था.

चुंबन क्या होता है, उसका अस्तित्व कैसा होता है, इसका अनुभब रूबी को अब हो रहा था और वो इस अनुभव के समुन्द्र में डूब चुकी थी, इतना के झुके झुके गर्दन में दर्द शुरू हो गया, पर इस दर्द का उसे अहसास तक ना हुआ.

तभी सुनील को जैसे कुछ याद आ गया और उसने धीरे से रूबी को छोड़ दिया. रूबी को एक झटका भी लगा पर सीधी हो गर्दन को राहत भी मिली.

सुनील उठ के बैठ गया, कुछ पल सोचा फिर उठ के अलमारी के पास गया और खोल के उसमे से एक जेवेर का डिब्बा निकाला, सुनील ने ये डिब्बा कब इस अलमारी में रखा था, ये रूबी को पता ही ना चला.

उस डिब्बे को ले सुनील रूबी के पास बैठ गया. ' गुस्ताख़ी माफ़ हज़ूर, आपको मुँह दिखाई तो दी ही नही, लीजिए इस नाचीज़ की तरफ से ये छोटा सा तोहफा'

सुनील ने डिब्बा रूबी की गोद में रख दिया. रूबी डिब्बे को साइड में रखने लगी तो ' अरे खोल के तो देखो'

'आपने दिल से जो भी दिया वो दुनिया की सबसे नायाब चीज़ है'

'खोलो तो सही'

रूबी ने डिब्बा खोला तो उसमें एक चमकता हुआ हीरे का हार था, सूमी को उसकी माँ ने शादी में दो हार दिए थे, एक उनमें से सोनल के पास चला गया था और ये दूसरा था जो आज रूबी को दिया जा रहा था. हार की चमक देख रूबी की आँखें चोंधिया गयी. 'इतना मेंहगा....'

सुनील ने बीच में टोक दिया ' ये सूमी ने अपनी बहू के लिए दिया है, मेरी तरफ से तो बस ये छोटा सा तोहफा है' अपने जेब में हाथ डाल सुनील ने हीरे की अंगूठी निकली और रूबी को पहना दी.

रूबी ने हार को माथे से लगाया और उस अंगूठी को चूम लिया.

रूबी के लिए सूमी सौतेन नही रही, माँ का दर्जा इख्तियार कर बैठी. सुनील और सूमी का चाहे जो भी रिश्ता हो, रूबी के लिए सूमी अब सिर्फ़ एक माँ थी, सिर्फ़ एक माँ. दिल भर आया रूबी का, आँखों से आँसू टपक पड़े.

सुनील ने धीरे से रूबी का घूँघट हटाया तो उसे एक झटका लगा उसकी आँखों से टपकते मोती देख.

'यह क्या ?'

'कुछ नही, आज बहुत ज़्यादा खुशी मिली तो बर्दाश्त नही हुई' रूबी से आगे ना बोला गया और वो सुनील से लिपट गयी.

प्यार का असली रूप रूबी ने आज देखा था. अपनी खुशी में सवी एक माँ का फ़र्ज़ भूल गयी, बेटी को बस सौतेन समझने लगी, पर सूमी का व्यक्तित्व कुछ और ही था, वो अपना फ़र्ज़ नही भूली थी, कहने को रूबी उसकी सौतेन थी, पर सूमी के अंदर की माँ, जानती थी उसे कब क्या करना है.

रिश्ते चाहे बदल जाएँ, पर उनकी मर्यादा नही बदलती, जो इस मर्यादा का मान करता रहता है, वोही प्यार के असली माइने समझ पाता है.

सुनील अपनी 4 बीवियों के साथ आने वाली जिंदगी कैसे बितानी है सोच चुका था, रूबी और सवी के बीच हुए तनाव ने उसे बहुत सीखा दिया था, और ये फ़ैसला वो खुद लेना चाहता था बिना कोई मशवरा किए, जानता था कि सूमी की सलाह भी वही होगी, पर वो सूमी के उपर कोई ज़ोर नही डालना चाहता था. जिंदगी के हर बीतते पल के साथ उसे सूमी पर नाज़ होता चला जा रहा था, आज भी कभी कभी वो यही सोचता था, काश सूमी ने वो कसम ना ली होती, तो आज उसकी जिंदगी में शायद 4 बीवियाँ नही होती, पर होनी को कॉन टाल सकता था. कल सब आ जाएँगे और वो अपना फ़ैसला सब को सुना देगा, जाने क्यूँ आज रूबी के साथ ये ख़यालात उसके मन में आ गये. रूबी जो इस वक़्त उसके गले लगी हुई थी, वो और भी कस के उसके साथ चिपक गयी और सुनील अपने ख़याल से वापस आ गया और अब इस वक़्त वो और कुछ नही सोचना चाहता था, इस वक़्त वो रूबी को वो प्यार देना चाहता था, जिसकी हर लड़की कामना करती है, काश रमण ने उसका दिल ना तोड़ा होता, काश, काश ये काश ही तो ज़िंदगियाँ बदल देता है, काश सागर की . उस वक़्त ना होती, तो सूमी और सुनील की शादी...नामुमकिन. अपने सर को उसने झटका और रूबी को अपनी बाँहों में भींच लिया.

आह रूबी की हड्डियाँ तक चटक गयी सुनील ने इतनी ज़ोर से उसे भींचा , रूबी के जिस्म से निकलती मनमोहक सुगंध सुनील के अंदर समाती चली जा रही थी. उसी में खोता हुआ सुनील अपने होंठ रूबी की गर्दन पे रगड़ने लगा. और रूबी के होंठों से धीमी धीमी सिसकियाँ निकलने लगी.

'ओह सुनील ! सुनील ! काश तुम मेरी जिंदगी में पहले आ गये होते, आइ लव यू! लव यू!'

'ये काश को अब छोड़ो अब तो तुम्हारा हूँ, बस आज को सोचो कल किसने देखा और कल जो बीत गया उसे भूल जाओ'

'वो तुम्हारी बाँहों में आते ही भूल गयी, अब इस रूबी पे जो लिखना चाहो लिख डालो, एक दम कोरी स्लेट की तरहा'

'तो सवी के रवीय्यए को भी भूल जाओ, वक़्त दो उसे, इस नये रिश्ते में ढलने का'

'जो हुकुम!'

'उम ह्म, हुकुम नही इल्तीज़ा'

रूबी चुप कर गयी, ज़्यादा बात नही बढ़ाई और सुनील उसकी गर्दन को चूमते हुए उसके पेट को सहलाने लगा, फिर धीरे धीरे वो उसके जेवर उतार के साइड पे रखने लगा, जेवरों की आड़ में छुपा उसका गोरा बदन झलकने लगा और हर छुअन के साथ रूबी की सिसकी निकलती चली गयी जो सुनील के कानो में संगीत की तरहा गूँजती हुई उसे और भी मदहोश करती जा रही थी.
mini

Re: वो शाम कुछ अजीब थी

Post by mini »

meri koi dushmni h kya aapse
mini

Re: वो शाम कुछ अजीब थी

Post by mini »

kahni ko 7 star
mini

Re: वो शाम कुछ अजीब थी

Post by mini »

na kabhi padhi na suni na socha.......do maa dono ki beti ,kiski bibi wah kya plot bnaya h.....great
Post Reply