अब बात तो सही थी बैद्य जी की लुगाई जैसे मेरे पुरे बदन का अवलोकन कर रही थी अब मुझे तो इलाज से मतलब ,मैंने अपनी पेन्ट खोली और कच्छा सरका दिया घुटनो पे ,और जैसे ही उसकी नजर मेरे सूज़े हुए झूलते हुए लण्ड पर पडी उसका मुंह खुल गया
एक पल वो जैसे स्तब्ध सी हो गयी और फिर बोली- यकीन नहीं होता, ये तो सच में ही सूज़ा हुआ है और नीला भी पड़ गया है ज़हर चढ़ गया इसके तो
उसकी बात सुनकर मैं घबरा गया ज़हर चढ़ना मतलब जान का खतरा
मैं- कही मैं मर तो न जाऊंगा
वो- क्या पता
बिना मेरी ओर देखे वो दरवाजे की तरफ गयी उसको अंदर से बंद किया और बोली- पेन्ट और कच्छे को उतार के कुर्सी पे बैठ जा
मैंने वैसे ही किया ,वो नीचे झुकी और मेरे लण्ड को अपने हाथ में लेके दबाते हुए बोली- मोटा तो खूब है
मैं- सूज़न से हुआ है
वो- हां हां, वार्ना कहा इतनी मोटाई मिलती है देखने को
वो कभी धीरे से दबाती तो कभी सख्त और पूछती- दर्द होता है
मैं- ऐसे नहीं होता
वो- तो कब होता है
अब उसको मैं क्या बताता उत्तेजना की बात
वो- बता न कब होता है दर्द, अब न बतायेगा तो सूज़न कैसे जायेगी
मैं- जब उत्तेजना आती है
वो- उत्तेजना शाबाश लड़के शाबाश
मैंने नजर नीचे कर ली
वो धीरे धीरे मेरे लण्ड को सहलाने लगी उसकी उंगलियो की गर्मी से मेरा लण्ड खड़ा होने लगा और कुछ ही पल में एक दम छत की तरफ खड़ा होकर तन गया
वो- हथियार तो चोखा है
मैं- क्या
वो- कुछ नहीं
उसने दोनों हाथों से मेरे लण्ड को पकड़ लिया और ऐसे करने लगीं जैसे मुठिया रही हो
मैं- ऐसा मत करो
वो- देखना तो पड़ेगा न
मैं- आपके स्पर्श से गुदगुदी होती है और जब ये तनता है तो फिर दर्द होता है
वो- तुझे अच्छा लगा मेरा स्पर्श
मैं- हां, पर दर्द
वो- नीला हुआ पड़ा है तो साफ़ है कोई डंक रह गया होगा मैं गर्म पानी लाती हु इसको साफ़ करुँगी फिर डंक देखूंगी
कुछ ही देर में वो एक कपडा और पानी ले आयी वो उस कपडे से लण्ड को भिगो के रगड़ने लगी मुझे दर्द के साथ उस गर्माहट मे मजा भी आने लगा मेरा लण्ड झटके खाने लगा
वो बार बार कपडे को पानी में भिगोती और मेरे लण्ड पर रगड़ती कुछ देर बाद उसने पाया की तीन डंक थे उसने निकाले और बोली- मधुमक्खियों को भी ये पसंद आ गया क्या जो इस पर टूट ही पड़ी
मैं चुप रहा
वो- एक आयुर्वेदिक तेल दूंगी सुबह शाम इस पर मलना और ऐसे ही गर्म पानी और कपडे से सेक करना कुछ दिन, आज तो मैं तेल लगा देती हूं तुम देखना और फिर करना
वो घुटनो के बल मेरे सामने बैठ गयी और अपने हाथों से मेरे लण्ड पर तेल मलने लगी तो मुझे मजा आने लगा बदन में कम्पन होने लगा ,साथ ही ब्लाउज़ से उसकी झुकी चूचिया देख कर लण्ड और तनाव में आ गया
वो भी ताड़ गयी की मैं उसकी चूचियो को घूर रहा हु तो बोली- अछि लगी
मैं- क्या
वो- जो तू देख रहा है
मैं कुछ न बोला
वो- बताना अब मुझसे क्या पर्दा
मैं- सही है
वो- बस सही है
मैं- मतलब सुंदर है
वो अब मालिश भूल के जोर जोर से मेरे लण्ड को मुठियाने लगी थी उसने अपनी छातियों को और झुका लिया ताकि गहरायी तक मैं देख सकू , वो लगभग पूरी तरह मेरे लण्ड पर झुक चुकी थी
अब लण्ड में दर्द की जगह रोमांच ने ले ली थी वो बस तेजी से उसको मुठिया रही थी हम दोनों की सांस भारी हो चली थी, उसका मुंह मेरे लण्ड के इतनी पास आ चुका था कि एक दो बार होंठो को स्पर्श भी कर चुका था और उसके तेजी से चलते हाथ, अब मामला कुछ और ही रंग पकड़ चूका था
अब लण्ड में दर्द की जगह रोमांच ने ले ली थी वो बस तेजी से उसको मुठिया रही थी हम दोनों की सांस भारी हो चली थी, उसका मुंह मेरे लण्ड के इतनी पास आ चुका था कि एक दो बार होंठो को स्पर्श भी कर चुका था और उसके तेजी से चलते हाथ, अब मामला कुछ और ही रंग पकड़ चूका था
मुझे लगने लगा था की बस मैं झड़ने वाला हु मैं उसे रोकना चाहता था पर अब शायद समय बीत गया था तभी उसने बहुत जोर से मेरे लण्ड को हिलाया और मेरे सुपाड़े से गाढ़े सफ़ेद वीर्य की धार निकल कर सीधे उसके चेहरे पर गिरने लगी,
एक के बाद एक पिचकारियां उसके होंठो, गालो और माथे पर गिरने लगी उसका पूरा चेहरा गाढ़ेपन से सन गया ,पर वो बस मेरी मुट्ठी मारती गयी जबतक की वीर्य की अंतिम बूँद तक न निचोड ली उसने ,फिर उसने अपनी ऊँगली से गाल पर लगे वीर्य को लिया और ऊँगली अपने मुंह में डाल ली
मैं तो हैरान रह गया उसे तो गुस्सा करना चाहिए था पर वो तो मजे से अपने चेहरे से पूरे वीर्य को साफ़ करके चाटती गयी और दूसरे हाथ से लगातार मेरे लण्ड को सहलाती रही
वो- रस का स्वाद तो गजब है
मैं- क्या
वो- इतना भी भोला मत बन तू , मेरा मतलब तो समझ गया होगा ही तू
ये कहकर उसने मेरे अंडकोषों को मुट्ठी में भर लिया कुछ पल वो ऐसे ही खेलती रही फिर उसने मेरा हाथ पकड़ के कुर्सी से उठाया और अपने साथ उसके कमरे में ले आयी
मैं- यहाँ क्यों लायी हो
वो- बताती हु
वो आगे बढ़ी और उसने अपने मुंह में मेरे होंठो को भर लिया मैं तो हक्का बक्का रह गया उसकी जीभ मेरे होंठो को कुरेदने लगी और तभी मेरा मुह खुल गया,उसकी जीभ मेरी जीभ से रगड़ खाने लगी मेरे बदन में जैसे जलजला ही आ गया
ये पहली बार था जब मैं चुम्बन का अनुभव कर रहा था जैसे जैसे उसकी त्रीवता बढ़ती जा रही थी मेरे बाहे अपने आप उसकी पीठ पर कसती जा रही थी , कुछ मिनट बाद हाँफते हुए उसने अपने होंठ अलग किये कुछ पल हमारी आँखे एक दूसरे को देखती रही फिर उसने मेरा हाथ अपनी चूची पर रख दिया
बदलते मौसम
- Rohit Kapoor
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Re: बदलते मौसम
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(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
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Re: बदलते मौसम
मैं पहली बार किसी औरत के साथ इतनी करीब था उसने इशारा किया तो मैं दोनों हाथों से उसकी चूचियो को दबाने लगा
"आह,सीईई" उसके मुंह से आहे निकलने लगी और मेरे जेहन में वो तस्वीरे आने लगी वो लम्हे जब मैंने बिंदिया और ताऊजी को देखा था मेरे हाथ कब उसके ब्लाउज़ को खोलने में कामयाब हो गए पता न चला मध्यम आकार के उसके काली जालीदार ब्रा में कैद वक्ष देखकर मैं जैसे अपने होश खोने को ही था
उसने अपनी ब्रा को उतार दिया और मुझे झुकाते हुए मेरे लबो पर अपने एक चूचक को लगा दिया मेरा मुह अपने आप खुल गया और जैसे स्तन पान करते है मैं उसके चूचक को चूसने लगा ,मैंने उसके बदन में होते कम्पन को साफ़ साफ़ महसूस किया
बारी बारी वो अपने दोनों उभारो को चुसवा रही थी उसके चूचक किसी काले अंगूर जैसे हो गए थे उसकी साडी आधी खुलके बस अटकी हुई थी मैंने हलके से झटका दिया और बस एक पेटिकोट ही शेष रह गया
हमदोनो कुछ बोल नहीं रहे थे पर हो बहुत कुछ रहा था मेरा लण्ड एक बार फिर से तन चूका था ,उसने खुद अपना पेटिकोट उतार दिया और जीवन के मैंने साक्षात ऐसा हाहाकारी नजारा आज इतने करीब से देखा इतना सुंदर इतना मोहक
उसकी टांगो के बीच जो जोड़ था वो पूरी तरह से गहरे घुंघराले बालो से ढका हुआ था अपने कांपते हाथो से मैंने उस द्वार को छुआ जहा से सब जन्म लेते है आज ज़िन्दगी का एक जरुरी पाठ पढ़ने को मैं अग्रसर था मेरी उंगलिया उसकी योनि प्रदेश पर किसी सांप की भांति रेंगने लगी
उसके पैर थरथराने लगे और जैसे ही मेरी उंगलियो ने योनि की दरार पर उन लाल लालिमा लिए फांको को छुआ, उंगलिया योनि के रस से भीगने लगी, कुछ नजाकत कुछ वक़्त का तकाजा एक बार फिर हमारे होंठ आपस में जुड़ गए
बस फर्क इतना था कि इस बार पहल मैंने की थी मेरी एक ऊँगली पूरी तरह उसकी चूत में जा चुकी थी शहद सा मुह में घुलने लगा था बदन की गर्मी धीरे धीरे बढ़ रही थी मैंने उसे धक्का दिया और पलँग पर गिरा दिया उसने लगभग बेशर्मी से अपनी टांगो को चौड़ा करते हुए मुझे अपना खजाना दिखाया
मैं भी पलँग पर चढ़ गया और उसे चूमने लगा वो मेरे लण्ड को अपनी चूत के छेद पर रगड़ने लगी उसकी सिसकिया पल पल ये एहसास करवा रही थी की अब देर करना उचित नहीं, मैं भी इस फल को अब चखना चाहता था
मैंने धीरे धीरे अपने लण्ड को चूत में घुसना किया और बस ठीक तभी , तभी
मैं भी पलँग पर चढ़ गया और उसे चूमने लगा वो मेरे लण्ड को अपनी चूत के छेद पर रगड़ने लगी उसकी सिसकिया पल पल ये एहसास करवा रही थी की अब देर करना उचित नहीं, मैं भी इस फल को अब चखना चाहता था
मैंने धीरे धीरे अपने लण्ड को चूत में घुसना किया और बस ठीक तभी , तभी बाहर से किवाड़ पीटने की आवाजें आने लगी "बेला, बेला कहा मर गयी बेला "
और वैद्य जी की लुगाई की सारी आग एक पल में शांत पड़ गयी उसने मुझे धकेला और चिल्लाई "आयी मांजी"
बेला- पिछले दरवाजे से निकल जाओ मेरी सास आ गयी है , इस को भी अभी आना था
जैसे तैसे उसने अपनी साड़ी लपेटी और मुझे पिछले दरवाजे से निकाला,
बेला- कल दोपहर में आना
सब कुछ एक झटके में हो गया कई देर मैं पिछली गली में खड़ा रहा पर आने वाले कल की उम्मीद में मैं घर वापिस आ गया
ताईजी- देव , कहा गायब हो सुबह से
मैं- कुछ काम से गया था
ताईजी- तेरी नानी का फ़ोन आया था तुझे बुलाया है कुछ दिन
मैं- क्यों
ताई- वो लोग कही बाहर जा रहे है तो घर पे कोई नहीं रहेगा इसलिए
मैं- हां, मैं तो हु ही चौकीदारी के लिए
ताई- ऐसा कड़वा मत बोला कर बेटे
मैं- और नहीं तो क्या, वैसे तो कभी दोहते की याद न आती पर जब खुद की गरज हो तो बुलाते है
ताई- देव, ऐसी बात नहीं है सबकी अपने अपने फ़साने होते है रिश्तेदारी का मान तो रखना ही पड़ता है न और फिर तू अकेला नहीं रहेगा तेरी छोटी नानी कृष्णा को भी बुलाया है
कृष्णा मेरी नानी की सबसे छोटी बहन थी, मेरी नानी 5 बहने थी जिसमे कृष्णा के प्रति नानी का विशेष स्नेह था क्योंकि उसका पति कुछ काम धाम करता नहीं था और मार पिटाई भी करता था,नानी अक्सर किसी न किसी बहाने से उसकी मदद करती रहती थी और मेरी भी अच्छी पटती थी उससे
मैं- कब जाना है
ताई- रात को फिर से फोन करेंगी वो तो तू बात कर लेना
मैं- ठीक है
मैं अपने कमरे में आ गया और बस वैद्य जी की लुगाई बेला के बारे में सोचने लगा , अगर आज उसकी सास न आती तो उसकी चूत मार चूका होता पर तक़दीर के खेल निराले
पर उसने ये भी तो कहा था कि कल दोपहर में आना, अब कल तो कल ही आये । बार बार मेरी आँखों के सामने बेला का गदराया शारीर ही आ रहा था, बेला वैद्य जी की साली थी उनकी पत्नी के आकस्मिक देहांत के बाद बेला को उनके पल्ले लगा दिया गया था
"आह,सीईई" उसके मुंह से आहे निकलने लगी और मेरे जेहन में वो तस्वीरे आने लगी वो लम्हे जब मैंने बिंदिया और ताऊजी को देखा था मेरे हाथ कब उसके ब्लाउज़ को खोलने में कामयाब हो गए पता न चला मध्यम आकार के उसके काली जालीदार ब्रा में कैद वक्ष देखकर मैं जैसे अपने होश खोने को ही था
उसने अपनी ब्रा को उतार दिया और मुझे झुकाते हुए मेरे लबो पर अपने एक चूचक को लगा दिया मेरा मुह अपने आप खुल गया और जैसे स्तन पान करते है मैं उसके चूचक को चूसने लगा ,मैंने उसके बदन में होते कम्पन को साफ़ साफ़ महसूस किया
बारी बारी वो अपने दोनों उभारो को चुसवा रही थी उसके चूचक किसी काले अंगूर जैसे हो गए थे उसकी साडी आधी खुलके बस अटकी हुई थी मैंने हलके से झटका दिया और बस एक पेटिकोट ही शेष रह गया
हमदोनो कुछ बोल नहीं रहे थे पर हो बहुत कुछ रहा था मेरा लण्ड एक बार फिर से तन चूका था ,उसने खुद अपना पेटिकोट उतार दिया और जीवन के मैंने साक्षात ऐसा हाहाकारी नजारा आज इतने करीब से देखा इतना सुंदर इतना मोहक
उसकी टांगो के बीच जो जोड़ था वो पूरी तरह से गहरे घुंघराले बालो से ढका हुआ था अपने कांपते हाथो से मैंने उस द्वार को छुआ जहा से सब जन्म लेते है आज ज़िन्दगी का एक जरुरी पाठ पढ़ने को मैं अग्रसर था मेरी उंगलिया उसकी योनि प्रदेश पर किसी सांप की भांति रेंगने लगी
उसके पैर थरथराने लगे और जैसे ही मेरी उंगलियो ने योनि की दरार पर उन लाल लालिमा लिए फांको को छुआ, उंगलिया योनि के रस से भीगने लगी, कुछ नजाकत कुछ वक़्त का तकाजा एक बार फिर हमारे होंठ आपस में जुड़ गए
बस फर्क इतना था कि इस बार पहल मैंने की थी मेरी एक ऊँगली पूरी तरह उसकी चूत में जा चुकी थी शहद सा मुह में घुलने लगा था बदन की गर्मी धीरे धीरे बढ़ रही थी मैंने उसे धक्का दिया और पलँग पर गिरा दिया उसने लगभग बेशर्मी से अपनी टांगो को चौड़ा करते हुए मुझे अपना खजाना दिखाया
मैं भी पलँग पर चढ़ गया और उसे चूमने लगा वो मेरे लण्ड को अपनी चूत के छेद पर रगड़ने लगी उसकी सिसकिया पल पल ये एहसास करवा रही थी की अब देर करना उचित नहीं, मैं भी इस फल को अब चखना चाहता था
मैंने धीरे धीरे अपने लण्ड को चूत में घुसना किया और बस ठीक तभी , तभी
मैं भी पलँग पर चढ़ गया और उसे चूमने लगा वो मेरे लण्ड को अपनी चूत के छेद पर रगड़ने लगी उसकी सिसकिया पल पल ये एहसास करवा रही थी की अब देर करना उचित नहीं, मैं भी इस फल को अब चखना चाहता था
मैंने धीरे धीरे अपने लण्ड को चूत में घुसना किया और बस ठीक तभी , तभी बाहर से किवाड़ पीटने की आवाजें आने लगी "बेला, बेला कहा मर गयी बेला "
और वैद्य जी की लुगाई की सारी आग एक पल में शांत पड़ गयी उसने मुझे धकेला और चिल्लाई "आयी मांजी"
बेला- पिछले दरवाजे से निकल जाओ मेरी सास आ गयी है , इस को भी अभी आना था
जैसे तैसे उसने अपनी साड़ी लपेटी और मुझे पिछले दरवाजे से निकाला,
बेला- कल दोपहर में आना
सब कुछ एक झटके में हो गया कई देर मैं पिछली गली में खड़ा रहा पर आने वाले कल की उम्मीद में मैं घर वापिस आ गया
ताईजी- देव , कहा गायब हो सुबह से
मैं- कुछ काम से गया था
ताईजी- तेरी नानी का फ़ोन आया था तुझे बुलाया है कुछ दिन
मैं- क्यों
ताई- वो लोग कही बाहर जा रहे है तो घर पे कोई नहीं रहेगा इसलिए
मैं- हां, मैं तो हु ही चौकीदारी के लिए
ताई- ऐसा कड़वा मत बोला कर बेटे
मैं- और नहीं तो क्या, वैसे तो कभी दोहते की याद न आती पर जब खुद की गरज हो तो बुलाते है
ताई- देव, ऐसी बात नहीं है सबकी अपने अपने फ़साने होते है रिश्तेदारी का मान तो रखना ही पड़ता है न और फिर तू अकेला नहीं रहेगा तेरी छोटी नानी कृष्णा को भी बुलाया है
कृष्णा मेरी नानी की सबसे छोटी बहन थी, मेरी नानी 5 बहने थी जिसमे कृष्णा के प्रति नानी का विशेष स्नेह था क्योंकि उसका पति कुछ काम धाम करता नहीं था और मार पिटाई भी करता था,नानी अक्सर किसी न किसी बहाने से उसकी मदद करती रहती थी और मेरी भी अच्छी पटती थी उससे
मैं- कब जाना है
ताई- रात को फिर से फोन करेंगी वो तो तू बात कर लेना
मैं- ठीक है
मैं अपने कमरे में आ गया और बस वैद्य जी की लुगाई बेला के बारे में सोचने लगा , अगर आज उसकी सास न आती तो उसकी चूत मार चूका होता पर तक़दीर के खेल निराले
पर उसने ये भी तो कहा था कि कल दोपहर में आना, अब कल तो कल ही आये । बार बार मेरी आँखों के सामने बेला का गदराया शारीर ही आ रहा था, बेला वैद्य जी की साली थी उनकी पत्नी के आकस्मिक देहांत के बाद बेला को उनके पल्ले लगा दिया गया था
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Re: बदलते मौसम
दोनों की उम्र में भी काफी अंतर था वैद्य जी जहाँ पचास पर थे बेला तो तीस की भी न होगी ,पर मुझे क्या मतलब इनसब से मुझे तो बेला खुद आगे चल कर अपनी जवानी का मजा चखाना चाह रही थी तो मैं पीछे क्यों रहता
पर मेरी समस्या ज्यो की त्यों थी , मेरे लण्ड की सूजन ,इसका ठीक होना जरुरी था पर बेला ने कहा ही था कि ठीक हो जायेगा , दोपहर बाद मैं खेतो पर गया तरबूज़ो की बाड़ी में अब कुछ ही बचे थे इस बार हमे अच्छा मुनाफा हुआ था
बस एक खेप और बाजार में भेजने के बाद इस खेत को खाली छोड़ देना था कुछ समय के लिए तभी दीनू आया
दीनू- देव, गाँव में बाज़ीगर आये है रात को देखने चलोगे
मैं- चलते है किस तरफ डाला है डेरा उन्होंने
दीनू- सरकारी स्कूल के पास
मैं- बढ़िया, आज मजा आएगा
दीनू- एक बात और, कुछ पैसे मिल जाते तो
मैं- हां क्यों नहीं, शाम को देता हूं
बाकि समय खेत पर ही बिताया ताऊजी भी आ गए थे मैं समझ गया कि उनका ही विचार होगा की दीनू को रफा दफा करके बिंदिया को चोदने का ,
फिर मैं कुछ देर इधर उधर घूमता रहा चौपाल पे बैठा इधर उधर की सुनी कुछ अपनी कही जब रोटियों का समय हुआ तो मैं घर आ गया ताईजी आँगन में ही चूल्हे पर खाना पका रही थी
वो मेरी तरफ देख के मुस्कुराई मैं पास ही बैठ गया चोरी छिपे मैं ताई को निहारने लगा चूल्हे की तपत में ताई का चेहरा सुनहरा लग रहा था, एक बार फिर ताई के लिए मेरे अरमान सुलगने लगे
पर तभी फ़ोन की घंटी ने ध्यान खींचा मैंने फ़ोन उठाया नानी का ही था वो लोग गंगोत्री और आस पास घूमने जा रहे तो नानी ने कहा कि करीब दस बारह दिन तो लगेंगे , मैंने कहा कि मैं अगले हफ्ते आ जाऊंगा उन्होंने हां कह दी
खा पीकर मैं स्कूल के पास के मैदान में पहुच गया और देर रात तक मैंने खेल तमाशा देखा पर एक बात और थी की दीनू नहीं आया था यहाँ, रास्त को करीब दो बजे जब तमाशा ख़त्म हुआ ,घर जाने के बजाय मैंने खेतो पर जाने का सोचा पता नहीं क्यों पर मैं फिर से ताउजी और बिंदिया को देखना चाहता था
मैं बाहर बाहर ही चल पड़ा रस्ते में कभी कभी कोई कुत्ता देख पर भौंक देता था बाकी हर तरफ अँधेरा ही था हवा के जोर से आस पास के पेड़ एकदम से हिल पड़ते थे कई बार अँधेरे में कुछ भ्रम सा उत्पन्न हो जाता पर हम तो किसान थे टेम बेटेम खेतो में आना जाना लगा रहता था
मैं जेब में हाथ डाले कुछ गुनगुनाते हुए चले जा रहा था तभी मुझे ऐसे लगा की कोई मेरे आगे से गुजर गया हो यहाँ तक की मैंने पैरो की आवाज भी सुनी ,पर घने अँधेरे में कुछ दिखा नहीं
मैं- कौन है ,कोई है क्या
पर कोई जवाब नहीं आया शायद हवा का झोंका होगा मैंने ऐसा सोचा पर दिल मानने को तैयार नहीं था मैंने अपने आस पास देखा , ये एक कच्चा चौराहा था चार दिशाओ में जाते चार रस्ते और दो तरफ दो खूब विशाल पेड़
हवा चलनी अचानक से बंद हो गयी थी पर मैं यही रुक गया अपने आस पास मैंने चारो तरफ देख लिया अगर कोई होता तो ज्यादा दूर नहीं जा सकता था ,खैर मुझे जल्दी थी तो फिर मैं अपने रास्ते पर बढ़ गया इस उम्मीद में की बिंदिया और ताऊजी की रास लीला देखने को मिलेगी पर बस कुछ कदम ही चला था कि ।।।।
हवा चलनी अचानक से बंद हो गयी थी पर मैं यही रुक गया अपने आस पास मैंने चारो तरफ देख लिया अगर कोई होता तो ज्यादा दूर नहीं जा सकता था
,खैर मुझे जल्दी थी तो फिर मैं अपने रास्ते पर बढ़ गया इस उम्मीद में की बिंदिया और ताऊजी की रास लीला देखने को मिलेगी
जल्दी जल्दी मैं खेतो पर पहुंचा और देखा की दीनू के कमरे के बाहर जो खाली जगह थी वही पर पलँग बिछा हुआ था लट्टू की रौशनी में दूर से ही देखा जा सकता था, तो मेरी उम्मीद के अनुसार उसी पलँग पर ताऊजी लेटे हुए थे
और बिंदिया उन पर झुकी हुई थी । मैं समझा की आज भी ताऊ ने दीनू का पत्ता काट दिया है पर शायद मेरा वहम था , हकीकत से तो अभी गुलज़ार होना बाकी था। बिंदिया शायद झुक कर ताऊ का लण्ड चूस रही थी पर तभी,
दीनू नंगा अंदर से अपने हाथ में एक कटोरी लेके आया और बिंदिया के चूतड़ पर कटोरी से कुछ लगाने लगा शायद तेल था, मैं ये देख कर हैरान था की दीनू भी शामिल था, साला खुद अपनी औरत चुदवा रहा था बल्कि साथ मजा कर रहा था
मुझे बुरा लग रहा था कैसे कोई खुद अपनी औरत को किसी और के साथ साँझा कर सकता था पर धीरे धीरे नारजगी पर मजा हावी होने लगा , बिंदिया ताऊ की जांघो पर झुके हुए लण्ड चूस रही थी और इस बीच दीनू में तेल से सनी ऊँगली उसकी गांड में सरका दी थी
ऊपर से नीचे तक बिंदिया का पूरा बदन हिचकौले खा रहा था , मैं ऐसा नजारा देख कर मस्त हो गया और थोड़ा और आगे आके छुप गया ताकि अच्छे से ये रासलीला देख सकू
अब बिंदिया ताऊ की जांघो पर आ गयी और लण्ड को अपनी चूत पे टिका के उसपे बैठने लगी जैसे जैसे उसके चूतड़ नीचे आ रहे थे लण्ड चूत में गायब हो रहा था, और फिर दीनू ने भी अपने लण्ड पर तेल चुपड़ा और उसे बिंदिया की गाँड़ पे सटा दिया
और अगले पल जब दीनू का लण्ड बिंदिया की गाँड़ में घुसा तो बिंदिया की आहे उस ख़ामोशी में गूंज उठी, जैसे डबल रोटी के दो टुकड़ों के बीच ढेर सारा मक्खन उसी तरह वो लग रही थी दो मर्दो के बीच
नीचे से ताऊ और ऊपर से दीनू बिंदिया को पेल रहे थे
मैं आँखे फाड़े बस उनकी चुदाई देखता रहा मेरा भी मन करने लगा पर अपना कहा जोर था मैंने उनकी पूरी लीला देखि और फिर पंप हाउस पे आके सो गया
सुबह बिंदिया को देखकर एक पल भी ऐसा नहीं लगा की दो दो लण्ड एक साथ खाएं है जिसने रात को
,अपनी उसी मस्ती में वो काम कर रही थी पर मुझे जल्दी से दोपहर होने का इंतज़ार था ताकि मैं बेला के पास जा सकू और खुद भी सम्भोग का प्रथम स्वाद चख सकू
समय काटे नहीं कट रहा था खैर दोपहर हुई और मैं पिछली गली में पहुच गया दरवाजा खुला ही था मैं चुपके से अंदर गया और बेला को देखने लगा ,वो तभी आंगन में आयी उसने कमरे की तरफ इशारा किया तो मैं उसके कमरे में घुस गया
कुछ देर बाद वो आयी और बोली- सास को मैंने नींद की गोली दे दी है कुछ देर में सो जायेगी फिर बस तुम और मैं
मैंने उसकी कमर में हाथ डाला और खींच लिया उसे ,चूमने लगा
बेला- थोड़ी देर का सब्र करो फिर तुम्हे अच्छे से खुश करुँगी एक बार मेरी सास सो जाये फिर बस हम दोनों ही होंगे
ये कहकर बेला बाहर चली गयी मैं बैठ गया कुछ देर का इंतज़ार और फिर मजा तो था ही दस पंद्रह मिनट बाद वो आयी और कमरे की अंदर से कुण्डी लगा ली सीधा आ लिपटी मुझसे और हमारी चूमा चाटी शुरू हो गयी
मैं कुछ कहना चाहता था पर उसने फुसफुसाते हुए आवाज करने से मना किया, धीरे धीरे कपडे उतरते गए मैंने बेला की चूचिया दबानी शुरू की ऐसा लगा की जैसे हवा भरे गुब्बारे से खेल रहा हु ,एक आग सी थी बेला के जिस्म में
वो धीरे धीरे मेरे लण्ड को हिलाने लगी थी मैं बारी बारी उसकी चूचियो को पी रहा था बेला अपनी आहो को रोकने की कोशिश में नाकामयाब पड़ने लगी तो उसने मुझे बिस्तर पर धकेल दिया
बेला- मैं तो पागल हो गयी हु जबसे तेरा ये सूजा हुआ लण्ड देखा है कितना मजा आएगा जब ये मेरी चूत में जायेगा मैं बेकरार हु इसे अपने अंदर लेने के लिए
पर मेरी समस्या ज्यो की त्यों थी , मेरे लण्ड की सूजन ,इसका ठीक होना जरुरी था पर बेला ने कहा ही था कि ठीक हो जायेगा , दोपहर बाद मैं खेतो पर गया तरबूज़ो की बाड़ी में अब कुछ ही बचे थे इस बार हमे अच्छा मुनाफा हुआ था
बस एक खेप और बाजार में भेजने के बाद इस खेत को खाली छोड़ देना था कुछ समय के लिए तभी दीनू आया
दीनू- देव, गाँव में बाज़ीगर आये है रात को देखने चलोगे
मैं- चलते है किस तरफ डाला है डेरा उन्होंने
दीनू- सरकारी स्कूल के पास
मैं- बढ़िया, आज मजा आएगा
दीनू- एक बात और, कुछ पैसे मिल जाते तो
मैं- हां क्यों नहीं, शाम को देता हूं
बाकि समय खेत पर ही बिताया ताऊजी भी आ गए थे मैं समझ गया कि उनका ही विचार होगा की दीनू को रफा दफा करके बिंदिया को चोदने का ,
फिर मैं कुछ देर इधर उधर घूमता रहा चौपाल पे बैठा इधर उधर की सुनी कुछ अपनी कही जब रोटियों का समय हुआ तो मैं घर आ गया ताईजी आँगन में ही चूल्हे पर खाना पका रही थी
वो मेरी तरफ देख के मुस्कुराई मैं पास ही बैठ गया चोरी छिपे मैं ताई को निहारने लगा चूल्हे की तपत में ताई का चेहरा सुनहरा लग रहा था, एक बार फिर ताई के लिए मेरे अरमान सुलगने लगे
पर तभी फ़ोन की घंटी ने ध्यान खींचा मैंने फ़ोन उठाया नानी का ही था वो लोग गंगोत्री और आस पास घूमने जा रहे तो नानी ने कहा कि करीब दस बारह दिन तो लगेंगे , मैंने कहा कि मैं अगले हफ्ते आ जाऊंगा उन्होंने हां कह दी
खा पीकर मैं स्कूल के पास के मैदान में पहुच गया और देर रात तक मैंने खेल तमाशा देखा पर एक बात और थी की दीनू नहीं आया था यहाँ, रास्त को करीब दो बजे जब तमाशा ख़त्म हुआ ,घर जाने के बजाय मैंने खेतो पर जाने का सोचा पता नहीं क्यों पर मैं फिर से ताउजी और बिंदिया को देखना चाहता था
मैं बाहर बाहर ही चल पड़ा रस्ते में कभी कभी कोई कुत्ता देख पर भौंक देता था बाकी हर तरफ अँधेरा ही था हवा के जोर से आस पास के पेड़ एकदम से हिल पड़ते थे कई बार अँधेरे में कुछ भ्रम सा उत्पन्न हो जाता पर हम तो किसान थे टेम बेटेम खेतो में आना जाना लगा रहता था
मैं जेब में हाथ डाले कुछ गुनगुनाते हुए चले जा रहा था तभी मुझे ऐसे लगा की कोई मेरे आगे से गुजर गया हो यहाँ तक की मैंने पैरो की आवाज भी सुनी ,पर घने अँधेरे में कुछ दिखा नहीं
मैं- कौन है ,कोई है क्या
पर कोई जवाब नहीं आया शायद हवा का झोंका होगा मैंने ऐसा सोचा पर दिल मानने को तैयार नहीं था मैंने अपने आस पास देखा , ये एक कच्चा चौराहा था चार दिशाओ में जाते चार रस्ते और दो तरफ दो खूब विशाल पेड़
हवा चलनी अचानक से बंद हो गयी थी पर मैं यही रुक गया अपने आस पास मैंने चारो तरफ देख लिया अगर कोई होता तो ज्यादा दूर नहीं जा सकता था ,खैर मुझे जल्दी थी तो फिर मैं अपने रास्ते पर बढ़ गया इस उम्मीद में की बिंदिया और ताऊजी की रास लीला देखने को मिलेगी पर बस कुछ कदम ही चला था कि ।।।।
हवा चलनी अचानक से बंद हो गयी थी पर मैं यही रुक गया अपने आस पास मैंने चारो तरफ देख लिया अगर कोई होता तो ज्यादा दूर नहीं जा सकता था
,खैर मुझे जल्दी थी तो फिर मैं अपने रास्ते पर बढ़ गया इस उम्मीद में की बिंदिया और ताऊजी की रास लीला देखने को मिलेगी
जल्दी जल्दी मैं खेतो पर पहुंचा और देखा की दीनू के कमरे के बाहर जो खाली जगह थी वही पर पलँग बिछा हुआ था लट्टू की रौशनी में दूर से ही देखा जा सकता था, तो मेरी उम्मीद के अनुसार उसी पलँग पर ताऊजी लेटे हुए थे
और बिंदिया उन पर झुकी हुई थी । मैं समझा की आज भी ताऊ ने दीनू का पत्ता काट दिया है पर शायद मेरा वहम था , हकीकत से तो अभी गुलज़ार होना बाकी था। बिंदिया शायद झुक कर ताऊ का लण्ड चूस रही थी पर तभी,
दीनू नंगा अंदर से अपने हाथ में एक कटोरी लेके आया और बिंदिया के चूतड़ पर कटोरी से कुछ लगाने लगा शायद तेल था, मैं ये देख कर हैरान था की दीनू भी शामिल था, साला खुद अपनी औरत चुदवा रहा था बल्कि साथ मजा कर रहा था
मुझे बुरा लग रहा था कैसे कोई खुद अपनी औरत को किसी और के साथ साँझा कर सकता था पर धीरे धीरे नारजगी पर मजा हावी होने लगा , बिंदिया ताऊ की जांघो पर झुके हुए लण्ड चूस रही थी और इस बीच दीनू में तेल से सनी ऊँगली उसकी गांड में सरका दी थी
ऊपर से नीचे तक बिंदिया का पूरा बदन हिचकौले खा रहा था , मैं ऐसा नजारा देख कर मस्त हो गया और थोड़ा और आगे आके छुप गया ताकि अच्छे से ये रासलीला देख सकू
अब बिंदिया ताऊ की जांघो पर आ गयी और लण्ड को अपनी चूत पे टिका के उसपे बैठने लगी जैसे जैसे उसके चूतड़ नीचे आ रहे थे लण्ड चूत में गायब हो रहा था, और फिर दीनू ने भी अपने लण्ड पर तेल चुपड़ा और उसे बिंदिया की गाँड़ पे सटा दिया
और अगले पल जब दीनू का लण्ड बिंदिया की गाँड़ में घुसा तो बिंदिया की आहे उस ख़ामोशी में गूंज उठी, जैसे डबल रोटी के दो टुकड़ों के बीच ढेर सारा मक्खन उसी तरह वो लग रही थी दो मर्दो के बीच
नीचे से ताऊ और ऊपर से दीनू बिंदिया को पेल रहे थे
मैं आँखे फाड़े बस उनकी चुदाई देखता रहा मेरा भी मन करने लगा पर अपना कहा जोर था मैंने उनकी पूरी लीला देखि और फिर पंप हाउस पे आके सो गया
सुबह बिंदिया को देखकर एक पल भी ऐसा नहीं लगा की दो दो लण्ड एक साथ खाएं है जिसने रात को
,अपनी उसी मस्ती में वो काम कर रही थी पर मुझे जल्दी से दोपहर होने का इंतज़ार था ताकि मैं बेला के पास जा सकू और खुद भी सम्भोग का प्रथम स्वाद चख सकू
समय काटे नहीं कट रहा था खैर दोपहर हुई और मैं पिछली गली में पहुच गया दरवाजा खुला ही था मैं चुपके से अंदर गया और बेला को देखने लगा ,वो तभी आंगन में आयी उसने कमरे की तरफ इशारा किया तो मैं उसके कमरे में घुस गया
कुछ देर बाद वो आयी और बोली- सास को मैंने नींद की गोली दे दी है कुछ देर में सो जायेगी फिर बस तुम और मैं
मैंने उसकी कमर में हाथ डाला और खींच लिया उसे ,चूमने लगा
बेला- थोड़ी देर का सब्र करो फिर तुम्हे अच्छे से खुश करुँगी एक बार मेरी सास सो जाये फिर बस हम दोनों ही होंगे
ये कहकर बेला बाहर चली गयी मैं बैठ गया कुछ देर का इंतज़ार और फिर मजा तो था ही दस पंद्रह मिनट बाद वो आयी और कमरे की अंदर से कुण्डी लगा ली सीधा आ लिपटी मुझसे और हमारी चूमा चाटी शुरू हो गयी
मैं कुछ कहना चाहता था पर उसने फुसफुसाते हुए आवाज करने से मना किया, धीरे धीरे कपडे उतरते गए मैंने बेला की चूचिया दबानी शुरू की ऐसा लगा की जैसे हवा भरे गुब्बारे से खेल रहा हु ,एक आग सी थी बेला के जिस्म में
वो धीरे धीरे मेरे लण्ड को हिलाने लगी थी मैं बारी बारी उसकी चूचियो को पी रहा था बेला अपनी आहो को रोकने की कोशिश में नाकामयाब पड़ने लगी तो उसने मुझे बिस्तर पर धकेल दिया
बेला- मैं तो पागल हो गयी हु जबसे तेरा ये सूजा हुआ लण्ड देखा है कितना मजा आएगा जब ये मेरी चूत में जायेगा मैं बेकरार हु इसे अपने अंदर लेने के लिए
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- Rohit Kapoor
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Re: बदलते मौसम
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