सांवली सलोनी

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SID4YOU
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सांवली सलोनी

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मेरा नाम राहुल श्रीवास्तव है. मैं लखनऊ से हूँ और मुंबई में रहता हूँ. देखने में स्वस्थ मर्द हूँ और लड़कियों के मामले में बहुत खुशकिस्मत हूँ.

कुछ दिन पहले मैं दिल्ली में था. मुझे निकलना था मगर रिजर्वेशन था नहीं. इसलिए मैं नई दिल्ली के टी.टी. ऑफिस में चल गया. मैं स्वतंत्रता सेनानी ट्रेन के टी.टी का इंतज़ार कर रहा था कि तभी एक 20 से 22 साल की काली लड़की भी आई, उसने पूछा कि भुवनेश्वर की ट्रेन का टी.टी आ गया क्या? फिर बातों ही बातों में पता चला कि उसको भी भुवनेश्वर जाना है कोई एग्जाम देने, दोस्तो बहुत काली थी वो, पर उसमें एक नशा था.
छोटी सी चूचियां 32 के साइज़ की होंगी शायद, कद 5’5″ का था. दुबली पतली सी थी. पता नही क्यों मुझे उसकी आँखों में उदासी और चहेरे पर परेशानी दिखी. शायद अकेली होने का भय, रिजर्वेशन न होना आदि के कारण परेशान लग रही थी. न जाने क्यों मुझे उसमें इंटरेस्ट आ गया.

खैर टी.टी ने बता दिया कि दोनों ही ट्रेन में सीट नहीं हैं, वो परेशान हो गई. अब मैं ठहरा चोदू इंसान. मौका ऐसे कैसे छोड़ देता. तभी ऐ.सी. का टी.टी बोला कि फर्स्ट ऐ.सी. में भुवनेश्वर तक 2 पैसेंजर वाला कूपा खाली है, आप बोलो तो आप दोनों को देता हूँ? वो हम दोनों को एक समझ रहा था.
मैंने झट से हाँ कह दी.

तब काली लड़की बोली- मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं.
मैंने बिना सोचे-समझे उसका हाथ पकड़ा और चल पड़ा ट्रेन की ओर, और वो बेचारी डरी-सहमी खिंचती चली आई. कूपे में समान एडजेस्ट किया. उसके बाद हम दोनों भी अपनी जगह पर बैठ गए.

दिल्ली से भुवनेश्वर करीब 30 घंटे की यात्रा थी और ट्रेन भी करीब 10 घंटे लेट थी. 12 बजे ट्रेन चल दी, अब वो भी संभल गई थी.
हमने बातें शुरू कीं तो वो बोली- सच में मेरे पास पैसे इतने नहीं हैं.
मैंने कहा- कोई बात नहीं, मैं तुमसे पैसे नहीं मांग रहा हूं, जब आपके पास होंगे तब दे देना या मत देना, हम दोनों को भुवनेश्वर पहुँचना है, इस समय इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है.

फिर उसने अपना नाम स्मिता बताया. वो छत्तीसगढ़ की थी पर मैं उसको सलोनी नाम से ही बुलाऊंगा. (सलोनी का मतलब सांवली होता है) मैंने खुद को राहुल बताकर मोबाइल में अपने आप को व्यस्त कर लिया.

सलोनी नॉर्मल सी लड़की थी. रंग काला पर आँखें भूरी, लंबी सी नाक, सुराही सी गर्दन, पतली कमर मगर कूल्हे थोड़े ज्यादा थे. चूची ज्यादा बड़ी नहीं थी पर उभार कुर्ते के ऊपर से साफ दिख रहे थे. एक से एक खूबसूरत गोरी गुलाबी लड़कियां मेरे जीवन में आईं और उनका भोग भी लगाया लेकिन काली सलोनी लड़की पहली बार मेरे से टकराई थी. उसकी पर्सनेलिटी में ना जाने क्या था जो मुझे उसकी ओर आकर्षित कर रहा था.

खैर दिखावे के लिए मैं मोबाइल में लगा हुआ था लेकिन दिमाग सोच रहा था कि शुरुआत कैसे करूँ?
तभी सलोनी बोली- आपका शुक्रिया, आप की वजह से मैं एग्जाम दे पाऊंगी.
मेरे को तो जैसे जीवन मिल गया क्योंकि बातचीत से सलोनी को मैं इम्प्रेस करके उसका भोग लगा सकता हूँ। मैं बोला- अरे ऐसी कोई बात नहीं, दोनों को जाना था मुझे लगा कि एक से भले दो, तो सफर अच्छा कट जाएगा.
यह सुनकर सलोनी पहली बार मुस्कराई.

कसम से क्या नशीली मुस्कान थी, गालों में डिम्पल उफ्फ्फ … सलोनी थोड़ा सहज महसूस करने लगी थी. लंबा सफर था.

तभी टी.टी आया, मैंने टिकट बनवाया और फिर दरवाज़ा लॉक कर लिया, बातों-बातों में पता चला कि वो छत्तीसगढ़ के जगदलपुर की रहने वाली है. स्नातक डिग्री किए हुए थी. दिल्ली में रह कर कम्पटीशन की कोचिंग ले रही थी. अकेले पेइंग गेस्ट में रहती थी. आगे बढ़ने की बहुत चाह थी उसके अंदर. सुन कर सच में अच्छा लगा कि देश की लड़कियां भी कुछ करने की इच्छा रखती हैं और वो माँ-बाप धन्य हैं जो अपनी लड़की को पढ़ा रहे हैं.

उसके 3 छोटे भाई-बहन और थे दिल्ली में. वो कुछ कोचिंग सेंटर में पार्ट टाइम पढ़ाया भी करती है जिससे अपना खर्चा खुद निकाल सके. उसको देख कर कहीं नहीं लगा कि सलोनी इतनी स्वाबलंबी और आत्मनिर्भर लड़की होगी.
खैर, ट्रेन धीमी रफ़्तार से बढ़ रही थी और सफर आराम से कट रहा था. मगर मेरी हिम्मत नहीं हुई कि उसके साथ कुछ गलत करुँ … पर दिल नहीं मान रहा था. फिर मैंने सोचा वक्त पर ही सब छोड़ देता हूं, अभी बहुत लंबा सफर है।

इस बीच कानपुर फ़ोन करके अपने एक जूनियर साथी से खाना लाने के लिए बोल दिया था.

मैंने कोशिश की कि बात का सिलसिला प्रेम संबंधों की तरफ मोडूं, मुझे थोड़ी सफलता भी मिली. कॉलेज में कोई बॉयफ्रेंड नहीं था, क्योंकि उसका रंग देख कर कोई पास नहीं आता था.
वो बोली- पता नहीं, कोई लड़का मेरे पास आया ही नहीं.
रंग को लेकर काफी दुखी सी महसूस हुई।


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SID4YOU
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Re: सांवली सलोनी

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वह बोली- शायद मैं सबसे काली लड़की थी अपने स्कूल कॉलेज की और हर लड़का गोरी, खूबसूरत लड़की को अपना साथी बनाना चाहता है.
मैंने कहा- नहीं, ऐसी बात नहीं, लड़के भी सीरत देखते हैं. काला रंग होना कोई गुनाह नहीं है, रंग काला होना इंसान के वश में नहीं है. आप रंग से भले सलोनी हो पर आपके चेहरे में एक कशिश है और आंखों में उदासी है जो शायद आपको अपने रंग से हीनता के कारण हो रही है. मगर आपका व्यक्तित्व बहुत आकर्षक है.

सलोनी बोली- आप पहले इंसान हैं जिसने मेरी तारीफ की है वरना कोई लड़का तो मेरे पास ही नहीं आना चाहता है.
इतना तो मुझे समझ में आ गया था मुझे कि सलोनी में भी आम लड़की की तरह इच्छाएं हैं, अरमान हैं, कुछ जज्बात हैं.

फिर मैं बोला- एक सच बोलूं?
कह कर कुछ सेकण्ड के लिये रुक कर उसका चेहरा देखा. सलोनी भी मेरी तरफ उत्सुकता से देख रही थी.
मैंने कहा- आप जब वहां आई थी तो आप मुझे अच्छी लगीं और जब पता लगा हम दोनों को एक ही जगह जाना है तो दिल से लगा कि काश आप और हम एक साथ सफर करते और देखिए न अब हम सच में साथ सफर कर रहे हैं.
सलोनी- रियली? ऐसा क्या देखा आप ने मेरे में जो किसी ने नहीं देखा? और आपने देख लिया? आप झूठ बोल रहे हैं.
मैं- आप में बहुत कुछ है. ज्यादा कुछ बोलूंगा तो आप बुरा मान जाएंगी और कहेंगी कि मैं अकेली लड़की देख कर फ़्लर्ट कर रहा हूँ.
सलोनी- नहीं, आप बोलिये, मैं बिल्कुल बुरा नहीं मानूंगी. बल्कि मैं खुद उत्सुक हूँ. आपने ऐसा क्या देखा जो किसी और लड़के ने नहीं देखा?

मैं- नहीं, आप बुरा मान जायेंगी और गुस्सा भी होंगी या फिर मेरी पिटाई या शिकायत भी कर देंगी.
सलोनी- जी नहीं, ऐसा कुछ नहीं होगा और हां अब यदि आपने अब न बताया तो शायद वैसा ही हो सकता है जो आपने कहा.

दोस्तो, यह एक माइंड गेम था जो मैं सलोनी के साथ खेल रहा था. किसी लड़की की सबसे बड़ी कमजोरी को उसका सबसे अच्छा बता देना लड़की को भावनात्मक रूप से आपसे जोड़ देता है और हर लड़की अपनी तारीफ सुनना पसंद करती है. सलोनी भी एक सामान्य लडक़ी थी जिसकी तारीफ किसी भी लड़के ने नहीं की. उसकी बातों से उसके व्यवहार से लगा कि अपने रंग के कारण उसमें एक हीन भावना सी है, इस वजह से वो अपने व्यक्तित्व को अपने अंदर ही समेटे हुए थी.

मैंने कहा- आप वादा कीजिये कि आप बुरा नहीं मानेंगी?
कह कर उसका हाथ अपने हाथ में लेकर उसकी आँखों में सीधे देखने लगा.
एक और बात … हर लड़की में एक शक्ति होती है जो गॉड गिफ्ट होती है कि वो लड़के की आंखों में देख कर चेहरे के भाव से, बॉडी लैंग्वेज से कुछ पल में समझ लेती है कि लड़का उसके प्रति क्या सोच रहा है और सलोनी भी समझ गई कि मैं क्या सोच रहा हूँ.
उसकी आंखें शर्म से झुक गईं और धीरे से बोली- वादा करती हूँ.

यह तो वो भी समझ गई कि मैं क्या बोलना चाहता हूं पर क्या बोलूंगा वो मेरे मुंह से सुनना चाहती थी पर उसने एक बार भी हाथ छुड़ाने की चेष्टा नहीं की.
मैं- बहुत ख़ूबसूरत आँखे हैं आपकी, आपके मुस्कराने से गाल पर डिंपल पड़ते हैं, वो आपकी तरफ आकर्षित करते हैं.
कह कर मैं एक पल रुक गया उसकी मनोदशा समझने के लिए, सलोनी के काले गाल पर भी शर्म की लाली नज़र आई, आंखों में एक अपनापन दिखा, लोहा गरम था, मैंने उसको अपनी तरफ खींचा तो वो कटी पतंग की तरह मेरी तरफ खिंची चली आई, मेरे पहलू में बैठ गई.

एक दिलकश अंदाज़ में मेरी तरफ देखा और शर्म से नज़र झुका ली. मेरे हाथ कंधों से सरकते हुए उसकी पतली कमर पर जा रुके. दूसरे हाथ में अभी भी उसका हाथ था और उसके बदन और हाथों का कंपन बता रहा थी कि उसकी भी इच्छाएं जग गई हैं।

मैंने उसकी आँखों में भरपूर नज़रों से देखा. उसमें इतनी प्यास दिखी कि न जाने किस बात ने मुझे मजबूर कर दिया कि उसके लाल होते काले गालों में चुंबन ले लिया और धीरे से बोला- तुम में बहुत कशिश है, एक आकर्षण है जो मुझे तुम्हारे पास आने को मजबूर कर रहा है।
सलोनी सिहर सी गई, उसकी आँखें बंद सी हो गईं, उसके हाथ ने भी मुझे जोर से पकड़ लिया, उसकी खामोशी मुझे सता सी गई, मैंने भी उसको छोड़ दिया और बोला मुझे माफ़ कर दो. मैं बहक गया था तुम्हारी आँखों में.

काफी देर सन्नाटा सा रहा; फिर सलोनी बोली- राहुल जो तुम कह रहे हो वो सच है या सिर्फ मेरा दिल रखने को बोल रहे हो?”
मैं बोला- मैंने जो भी बोला वो बिल्कुल सत्य है. मैंने पहले भी बोला था कि तुम पहली नज़र में मुझे अच्छी लगीं, तभी जब पता लगा कि हम दोनों की मंजिल एक है तो … आगे तुम खुद जानती हो.
सलोनी- पर आज तक मेरे से किसी ने कहा क्यों नही? मेरा भी दिल करता था कि कोई मेरी तारीफ करे.
“हो सकता है कि तुम्हारा ध्यान भी न गया हो उस तरफ, या तुम खुद अपने रंग के दर्द के कारण अपने आस-पास ऐसा संसार बना लिया हो कि और किसी को उसमें तुमने आने की इ्ज़ाज़त ना दी हो?” मैंने गहराई से कहा
सलोनी- बात तो आप सही कह रहे हो. मैंने ही एक अलग दुनिया बना ली थी. किताबें मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गई थीं, घर पढाई और फिर घर, मैंने सोच लिया कि मैं एक बड़ी अफसर बनूंगी एक दिन, तो इसमें किसी और का क्या कसूर?
मैं- जी … हम लड़के भी अच्छे होते हैं. कई बार वो भी रंग और चहरे पर नहीं जा कर वो सिर्फ दिल को सुनते और देखते हैं. पर दिल को सुनने के लिए उनका आपके पास आना जरूरी है, आपकी सीरत को जानना जरूरी है, अब देखिये न आप के साथ बात करके ही पता चला न कि आप कितनी स्वाबलंबी हैं. आप जैसी लड़की न जाने कितनों की रोल मॉडल हो सकती है जो खुद अपने दम पर दुनिया में आगे बढ़ना चाहती है, आज मैं आपको अपने साथ न लाता तो मुझे आपको जानने का अवसर ही नहीं मिलता.

सलोनी- आप बातें बहुत अच्छी करते हो. किसी को कैसे खुश रखना है ये कोई आप से सीखे.
मैं- अब आप मुझे शर्मिंदा कर रही हैं.
सलोनी- जी नहीं, सच कह रह रही हूँ. शायद आप दिल के साफ हैं, इसी लिए आप की मुस्कराहट में एक कशिश है.
कहकर सलोनी कातिल मुस्कान के साथ फिर से मेरे दिल पर कटार चला गई.

कहानी अगले भाग में जारी रहेगी.
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SID4YOU
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Re: सांवली सलोनी

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पिछले भाग में आपने पढ़ा कि ट्रेन में मिली काली सलोनी लड़की की तरफ आकर्षित होकर मैंने उसके साथ प्रेम संबंधों की बात छेड़ दी. मैं अपने मकसद में कामयाब भी हो गया और वह आकर मेरे पहलू में बैठ गई. फिर मैंने उसके काले हुस्न की तारीफ की और इस वजह से मैं उसका भरोसा जीतने में कामयाब हो गया.
अब आगे:

सलोनी- सच कहूं तो आपकी मुस्कराहट पर पहली नज़र में ही आप मुझे भी अच्छे लगे थे, शायद इसीलिए बिना कुछ सोचे समझे मैं आपके साथ चली आई.
पहली बार सलोनी ने अपने दिल के राज़ खोले. जैसे पहली नज़र में वो मुझे अच्छी लगी वैसा ही उसको ही फील हुआ. सलोनी अभी भी मुझसे चिपक कर बैठी थी. मेरा हाथ अभी भी उसकी कमर में था, न सलोनी ने कोई ऐतराज़ किया और न मैंने हाथ हटाया. बात साफ थी, सलोनी को मैं पसंद था और ज्यादा विरोध की उम्मीद नहीं थी, मेरे हाथों का दबाव उसकी कमर पर बढ़ गया.

मैं धीरे-धीरे उसकी कमर को सहलाने लगा, सलोनी के जिस्म का कम्पन मुझे महसूस हो रहा था और हो भी क्यों न …
पहली बार वो किसी लड़के के सम्पर्क में आई थी.

धीरे-धीरे मेरे हाथ उसकी पीठ पर आ गए. पीठ को सहलाते वक़्त उसकी ब्रा की पट्टी को अच्छे से फील किया. सलोनी भी जान गई कि मैं किस रास्ते पर बढ़ रहा हूँ, पर वो कुछ बोल नहीं रही थी. बल्कि मेरी आँखों और मेरे चेहरे की तरफ देख रही थी एकटक.

फिर अचानक मैंने उसको छोड़ दिया और उठ कर थोड़ा दूर बैठ गया. सलोनी को कुछ समझ में नहीं आया. वो मेरी तरफ देखने लगी. शायद मेरा दूर जाना उसको अच्छा नहीं लगा. मगर मैं नहीं चाहता था कि वो मुझे गलत समझे. वह यह सोचे कि मैंने उसका फायदा उठाया.
सलोनी- क्या हुआ आपको?
मैं- कुछ नहीं, मुझे माफ़ कीजियेगा. मैं फिर बहक गया था, क्या करुं, आप में इतनी कशिश है कि मैं खुद को रोक ही नहीं पाता.
सलोनी- हम्म …

काफी देर हम दोनों के बीच चुप्पी सी रही. सलोनी के चेहरे को देख कर लग रहा था कि वो कुछ सोच रही है, कुछ कश्मकश में है, क्या करे और क्या न करे … फिर एक गहरी साँस ली और उठ कर बाथरूम चली गई, फिर वहां से आकर सलोनी ने ही बात शुरू की. वो मेरे बारे में पूछने लगी और इन सब बातों से हम दोनों के बीच एक अलग रिश्ता सा बन गया.

थोड़ी देर पहले जो झिझक थी वो भी ख़त्म सी हो गई, एक अच्छे दोस्त की तरह हम बात करने लगे. 5-6 घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला. इसी बीच कानपुर आ गया. मेरा खाना लेकर मेरा जूनियर भी आ गया. मैंने खाना लेकर उसको पैसे देकर उसको विदा किया.

फिर ट्रेन के चलने के बाद हम दोनों ने साथ में खाना खाया. कहीं से लग नहीं रहा था कि कुछ घंटे पहले हम दोनों एक दूसरे के लिए अजनबी थे.

मैं खाना खाकर विंडो सीट पर बैठा था कि तभी सलोनी फ्रेश होकर अंदर आई. फिर एक चादर उठा कर मेरे पैरों पर सर रख कर लेट गई. पर मैं कुछ नहीं बोला. उसने मेरा एक हाथ अपने हाथ में लिया और दूसरे को अपने सर पर रख दिया. ये बोल्ड मूव था सलोनी का, बात साफ थी. थोड़ी देर पहले जिस कश्मकश में सलोनी थी, अब वो उससे वो बाहर आ चुकी थी और किसी निर्णय पर पहुंच चुकी थी.
यह बात भी साफ थी कि सलोनी इन पलों को जी लेना चाहती थी. मेरी झिझक को वो दूर करना चाहती थी. मेरे हाथों को वो सहलाने लगी. उसकी आंखें बंद थीं पर चेहरे पर मासूमियत भरी मुस्कान थी.

वो एक अक्षत यौवना थी. उसके काले रंग के बावजूद उस चेहरे में निश्छलता और मासूमियत थी, उसके काले रंग पर लाल-लाल होंठ उफ्फ्फ … क्या कहूं आपको, मैं अभी भी झिझक रहा था और सलोनी भी इस बात को समझ रही थी.
काफी देर तक हम दोनों उसी अवस्था में ट्रेन के शोर को सुनते रहे. न वो कुछ बोली न मैं. बस बीच-बीच में आंख खोल कर मेरी तरफ जी भर के देख लेती थी. पता नहीं क्यों मेरे जैसा इंसान आज झिझक रहा था, वो जिसके जीवन में कई लड़कियां आ चुकी थीं.

ये बात सलोनी समझ गई तो उसने अपने हाथ से मेरा सर पकड़ के झुकाया और मेरे होंठों को अपने होंठों से जोड़ दिया. अब मेरी बारी थी पीछे न हटने की. उसके पवित्र रस से भरे होंठों को अपनी गिरफ्त में ले लिया मैंने और जी भर के रस पीने लगा. कभी निचला होंठ तो कभी ऊपर वाला तो कभी दोनों होंठ … उफ्फ्फ्फ़ कितना सॉफ्ट … कितना निश्छल … मेरा दिल ही नहीं कर रहा था कि उन पर से हट जाऊं … साँसों की गर्मी से हम दोनों ही बेहाल थे. मगर दोनों एक दूसरे के होंठों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे. सलोनी और मेरी आंखें बंद थीं. सिर्फ एक दूसरे की सांसों की आवाज़ सुन रहे थे. गर्म सांसों को महसूस कर रहे थे. सलोनी की जीभ को जी भर कर चूस रहा था. एक दूसरे के स्लाइवा को पी रहे थे हम दोनों. होंठ तो ऐसे जुड़े थे कि कभी जुदा ही न होंगे.
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Re: सांवली सलोनी

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काफी देर के बाद जब हम अलग हुए तो सांसें पूरी तरह उफान में थीं, उसका सीना तेज़ी से ऊपर नीचे हो रहा था. मैं धीरे से उठा और सबसे पहले केबिन की सारी विंडोज बंद कर दीं. सलोनी अभी भी वैसे ही आंखें बंद करके लेटी थी, मैं उसके बगल में लेट गया और वो भी मेरी बाँहों में सिमट आई. मेरी फैली बाँहों पर सिर रख दिया और मेरे पेट पर हाथ रख कर लिपट सी गई. मैंने भी उसे अपने जिस्म से लिपटा लिया.

उफ्फ्फ … कितना सॉफ्ट और मुलायम सा बदन था सलोनी का. कपड़ों के बावजूद उसके बदन की कोमलता को मैं महसूस कर सकता था. इस समय हम दोनों में सिर्फ एक बिना रिश्तों का प्यार था और सलोनी भी इन पलों को भरपूर जी लेना चाहती थी.
मैं बाँहों में भरे-भरे उसको गौर से देख रहा था. काला रंग, लम्बाई करीब 5’5″, कामुक सा जिस्म, शायद 32-24-32 होगा. उसने जीन्स और शॉर्ट कुर्ता पहन रखा था. ब्रा की लकीर कुर्ते से साफ नज़र आ रही थी.

मैंने उसको अपने बदन से कस कर लिपटा लिया. उसकी सांसें भारी होने लगी थी, उसकी कमर को अच्छे से मैंने दबाया. धीरे से हाथ उसके चूतड़ों में ले जाकर उनको सहलाने लगा. बीच-बीच में पूरे चूतड़ हथेली में लेकर दबाने लगा.
सलोनी की भारी सांसों के बीच में उसको होंठों को चूमने लगा. मैं सलोनी के ऊपर आ गया. सलोनी मेरे भार के नीचे दबी हुई मेरी हर हरकत का आनंद लेने लगी, उसकी धीमी आवाज़ … आअह आह्ह उफ्फ्फ्फ़ …

मैंने अपना हाथ नीचे किया और उसका कुर्ता पकड़ कर ऊपर कर दिया. इतना ऊपर कि उसकी ब्रा उसके सामने उजागर हो गयी. उस ब्रा में क़ैद उन कबूतरों को देखकर मेरे मुँह से एक लार टपक कर उसके पेट पर आ गिरी. सलोनी का बदन बुरी तरह से जल रहा था इसलिए उस लार को भाप बनकर उड़ने में पल भी नहीं लगा.

उफ्फ्फ्फ़ … कितना सॉफ्ट जैसे रुई … मैंने उसकी कमर को सहलाना जारी रखा, सलोनी मेरे दो तरफ़ा आक्रमण को सह नहीं पाई और मुझे कस के बाँहों में जकड़ लिया, पागलों सी मेरे होंठों को चूमने लगी, मेरे शर्ट के बटन खोल कर मेरी बालों से भरी छाती पर हाथ फेरने लगी. लण्ड मेरा बहुत बेचैन हो गया था, मैंने शर्ट को उतार फेंका और उसका कुर्ता भी उतार दिया. आह्ह … मैरून कलर की लेस वाली ब्रा … मैंने ब्रा के ऊपर से ही उसकी चूची को मुँह में भर लिया.
सलोनी- ओह्ह्ह … आअह्ह्ह्ह … उफ्फ्फ
सलोनी के हाथ स्वतः मेरे सिर पर चले गए और मेरे सिर को चूची पर दबाने लगी.

मेरे दूसरे हाथ ने जींस के बटन को खोल दिया और अपना हाथ धीरे से सरका दिया. जैसे ही उसकी चूत को टच किया. सलोनी ने झट से मेरा हाथ पकड़ लिया. पर तब तक देर हो चुकी थी, अब मैं चाह कर भी रुक नहीं सकता था. हम दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा, नारी सुलभ लज़्ज़ा उसके चेहरे पर नज़र आई, मैंने उसके हाथ को धीरे से हटाया और चूत की लकीर पर पूरी उंगली फिराई.
सलोनी- रा … हु … ल … आह्ह्हह … नो, मत करो … प्लीज.
चूत पूरी तरह से गीली थी उसकी.

मैंने पैंटी से उंगली निकाली तो सलोनी की आंख अपने आप खुल गयी और उसने मेरी तरफ देखा. मैंने भी उंगली को अपने मुँह में डाल कर चटकारा लेते हुए चूस लिया. सलोनी ने शर्मा कर मेरी तरफ देखा और हल्के से मुस्कराई. जैसे पूछ रही हो “ये क्या कर रहे हो?”
मैं भी चटकारते हुए बोला- यम्मी!

बस फिर क्या था, सलोनी ने मेरी तरफ देखते हुए अपने मुलायम हाथों की मुट्ठी से मेरे नंगे सीने में मुक्के मारना शुरू कर दिया. मैंने उसके कोमल हाथों को पकड़ कर हटाया और उस पर लेट गया, उसके रस से भरे होंठों को चूसने लगा, सलोनी ने भी तुरंत रेस्पॉन्स किया और वो भी मेरे नीचे को होंठों को चूसने लगी. आग लग चुकी थी. हवन की तैयारी थी.

दोनों ही एक दूसरे के होंठों को छोड़ने को नहीं तैयार थे. हम दोनों ही कामरस में डूबे थे. कामदेव हम दोनों पर मेहरबान थे. बस … मैंने धीरे से हाथ नीचे की तरफ सरका दिया … पैंटी में हाथ डाल कर उसकी चूत को सहलाने लगा.
“उफ्फ्फ़ … आह्ह्ह्ह … अह्ह्ह्ह … आअह्ह्ह … ओह्ह्ह्ह … उफ्फ्फ … नो-नो-नो … प्लीज … डोंट टच (छूओ मत) … अह्ह्ह्ह आआह्ह …” सलोनी की सिसकारी निकल गई.

मैं भी और ज्यादा उग्र सा हो गया. उसकी जींस धीरे से नीचे कर दी. इस काम में अब सलोनी ने भी अपनी अपने गुदाज़ चूतड़ उठा कर सहयोग किया. सलोनी सिर्फ मैरून कलर की ब्रा और पैंटी में थी जबकि मैं नीचे अभी भी कपड़ा पहने था. लण्ड मेरा अकड़ सा गया था, दर्द सा भी हो रहा था पर मैं चाहता था कि सलोनी खुद पहल करके मेरा लण्ड पकड़े, मेरे कपड़े खुद उतारे … इसलिए थोड़ा उसकी कामुकता को और जगाना था कि वो खुद काम वासना में वशीभूत हो कर खुद ही पहल कर दे.

मेरे हाथ अब तक उसका पूरा भूगोल नाप चुके थे. सलोनी भी मुझे रोक नहीं रही थी. सिर्फ सिमटी सी जा रही थी, ब्रा और पैंटी में उसका काला बदन सोने सा चमक रहा था. मेरा मुँह ने उसके पेट के पास जाकर उसकी गहरी नाभि को चूम लिया.
सलोनी- उफ्फ …आह्ह!

सिसकारियों की गूंज ट्रेन के शोर में दब सी गई पर मैं सुन सकता था. एक ऐसा शोर जो मेरे अंदर की काम ज्वाला को भड़का रहा था. मुझे झुलसा सी रही थी ये ज्वाला.
सलोनी ब्रा और पेंटी में खूबसूरत लग रही थी. उसकी खूबसूरती में उसका रंग कहीं भी आड़े आ नहीं रहा था. सच कहूं तो रंग किसी भी लड़की के खूबसूरती में आड़े नहीं आता है, ये बात सलोनी पर भी लागू हो रही थी.

मखमल सा सिल्की बदन, कोका कोला की बोतल जैसा उसका जिस्म, पतली कमर, चौड़े कूल्हे, उसके सीने पर विकसित दो कमलपुष्प जैसे दो अमृत से भरे हुए अमृतकलश … उफ़्फ … दीवाना बना दिया उसने! झील सी गहरी आंखें, सुराहीदार गर्दन. मैं एक पल के लिए ये सोचने लग गया कि इतनी कामनीय काया की स्वामिनी सलोनी पर किसी ने डोरे क्यों नहीं डाले?

सलोनी मेरे सामने सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी. मैंने उसके पैरों को पकड़ा और उसकी पैरों की उँगलियों को एक एक करके चूसना शुरू किया. जैसे जैसे मैं चूमता जा रहा था वैसे वैसे उसके जिस्म की थरथराहट बढ़ती जा रही थी. उसके मुँह से निकलती सिसकारी बता रही थी उसको कितना आनंद आ रहा है- प्लीज़ … हट जाओ, छोड़ दो प्लीज़ … सीईई … मत करो, आह्ह … उफ्फ!
उंगली को चूमते चूमते मैं उसकी भरी हुई जांघों को सहला रहा था. कुछ ऊपर आ कर उसकी पिंडलियों को चाटना शुरू कर दिया.

सलोनी- आअह्ह आह … आह … आह … उफ्फ्फ्फ़ … सी … आह्ह … मत करो ना!
मैं अभी भी अपनी जींस में था. लण्ड को आशा थी कि सलोनी उसको कैद से मुक्त कराएगी.
मैं एक एक करके उसकी पैरों की दसों उंगलियां चूसता चला गया और सलोनी बेचैन सी तड़प कर सिसकारी भरने लगी- उफ्फ … आअह्ह्ह अह्ह्ह … उम्म्ह… अहह… हय… याह… ऊह्ह … उफ्फ्फ … उफ्फ आह आह आह!

सलोनी की कामनीय कंचन काया सिर्फ ब्रा और पेंटी में मेरे सामने थी और मैं अभी भी जींस में था. थरथराता जिस्म … जिसके एक-एक अंग को मैं धीरता के साथ चूमता जा रहा था.
मेरे लंड का बुरा हाल हो चुका था और वह अब बाहर आने के लिए मुझसे मिन्नतें करता हुआ दर्द करने लगा था.
मगर मैंने अपने लंड पर तरस नहीं खाया और सलोनी के जिस्म को चूमकर उसके पवित्र जिस्म की खुशबू में डूबता चला गया.

कहानी अगले भाग में जारी है.
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Re: सांवली सलोनी

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अब तक की कहानी में आपने पढ़ा कि मैंने सलोनी का विश्वास जीत कर उसके जिस्म के साथ खेलना शुरू कर दिया. जैसे-जैसे उसके जिस्म से कपड़ों की परत उतर रही थी मेरे लंड का तनाव हर पल और ज्यादा बढ़ता जा रहा था. ऐसा काला हुस्न मैंने आज तक नहीं देखा था और मैं हैरान था कि किसी लड़के ने आज तक उसको भोगने की कोशिश क्यों नहीं की.
अब आगे:

सलोनी की कमनीय कंचन काया सिर्फ ब्रा और पेंटी में मेरे सामने थी और मैं अभी भी जींस में था. मैं उसके थरथराते जिस्म के एक-एक अंग को चूम रहा था. पैरों की उँगलियाँ चूमते हुए ऊपर आ रहा था. पिंडलियाँ चूमकर उसकी जांघों के पास आया और उसके पैरों को उठाकर उसकी अंदरूनी जांघ को चूमने लगा तो सलोनी मचल सी गई- उफ्फ्फ्फ़ … राहुल ल रुक जाओ. आह्हः अह्ह्ह नहीं करो … ना ना उफ्फफ्फ्फ़ ओ … ह … ह्ह … ह्ह!

कितना मुलायम-सा, मखमल-सा बदन, उसकी जांघों के बीच का त्रिभुज जिस पर मैरून पेंटी थी, उस अनमोल ख़ज़ाने को छुपा कर रख रही थी, जहाँ एक गीला सा स्पॉट ये बता रहा था कि सलोनी की चूत पानी छोड़ रही है. (जब नवयुवती प्रथम बार एक युवक के संपर्क में आती है तो सबसे ज्यादा पानी उसकी बुर से निकलता है, यह प्रथम कामोत्तेजना का प्रतीक है,) वो पल दूर नहीं था जब सलोनी एक सम्पूर्णता को प्राप्त कर लेगी.

मैं बार-बार पेंटी के आस-पास चूम रहा था लेकिन चूत को बिल्कुल नहीं छू रहा था. बार-बार सलोनी अपनी कमर को उछाल कर अपनी चूत को मेरे होंठों के पास लाती और फिर से नीचे ले जाती. मैं तो रुकने वाला नहीं था. उँगलियों को चूस कर धीरे-धीरे उसके पैरों को चाटना शुरू कर दिया. नीचे से ऊपर की तरफ बढ़ रहा था. पूरी जीभ से से चाटता हुआ उसकी जांघों तक पहुंच चुका था. उसकी भरी हुई जाँघें … वाह … जैसे ही उसको चाटा और चूमा, सलोनी ने जोर से सिसकारी भरी- आआआ … ह्ह्ह ह्ह्ह्ह … उफ्फ … बस राहुल बस, उफ्फ …

सलोनी पागलों की तरह अपनी कमर को उचका रही थी. चूत को मेरे चेहरे से रगड़ने की एक तरह से नाकाम कोशिश कर रही थी. फिर मैंने थोड़ा और ऊपर जाकर उसके पेट को चटाना शुरू किया. अब उसकी गर्म चूत मेरे जिस्म से चिपक सी गई थी. मेरा लण्ड उसकी पहुंच में था.

मचलते हुए जिस्म में उसका हाथ मेरे लण्ड पर आ गया. उत्तेजना में उसने मेरे लण्ड को पकड़ लिया और जोर से दबा दिया. मेरे मुँह से तेज़ आनंद से भरी सिसकारी निकल गई.

फिर जैसे उसने समझा कि उसके हाथ कहाँ हैं उसने तुरंत हाथ हटा कर अपनी आँखों को हाथों से बंद कर लिया. मैंने धीरे से उसके हाथों को हटा कर उसकी आँखों में झांकते हुए उसको देखा. फिर उसका हाथ पकड़ कर अपने लण्ड के ऊपर रख दिया और उसकी आँखों में देखता रहा. वो भी समझ रही थी कि मैं क्या चाहता हूँ. इस बार हाथ उसने नहीं हटाया, मैंने झुक कर उसके लिप्स पर एक किस किया और करता ही चला गया.

सलोनी मेरा पूरा साथ दे रही थी. मगर प्रथम संसर्ग की हिचकिचाहट अभी भी थी, मैं चाहता था कि वो खुद से पहल करे. तो मैंने फिर से उसके बदन को चूमना शुरू किया. कान के लौ को मुँह में चूमने लगा. सलोनी एक बार फिर से तड़प सी गई. आनन्द से कभी गर्दन पर तो कभी कान के लौ को चूमता-चूसता हुआ मैं सलोनी को और ज्यादा गर्म करने लगा.

सलोनी के बदन के कम्पन और उतेज़ना के चलते वह अजीब-अजीब सी आवाज़ें निकाल रही थी, कुछ बोल रही ही थी जो मुझे समझ में नहीं आया (बाद में मेरे पूछने पर शरमाते हुए उसने बताया कि वो अपनी आदिवासी छतीसगढ़िया लैंग्वेज में कह रही थी- लव मी … फ़क मी …)

अचानक से मुझे लगा कि सलोनी के हाथ मचल रहे हैं. मेरे लण्ड को पैंट के ऊपर से ही वो सहला रही है. उफ्फफ्फ … अब वो पल दूर नहीं जिसका मैं बहुत देर से इंतज़ार कर रहा था. सलोनी के कोमल हाथों का स्पर्श मेरे लण्ड पर था. अब वो धीरे-धीरे उस पर दबाव बढ़ा रही थी. कभी तो सहला भी देती थी.

मैंने सलोनी की पीठ पर हाथ से सहलाना शुरू किया. ब्रा की स्ट्रिप बार-बार मेरे रास्ते में आ रही थी. जब भी मैं ब्रा स्ट्रिप के आस-पास होता तो वो थोड़ा उठ जाती. मुझे भी समझ में आया कि वो अब अपने अमृत कलश को खुला रखना चाहती है. मैंने भी ब्रा का हुक खोल के ब्रा को निकाल दिया.
उफ्फ्फ … क्या चूचियां थीं … गोल … गहरे मैरून रंग के निप्पल और वैसा ही बड़ा सा ऐरोला निप्पल के चारों तरफ … चूचियों के मुकाबले उसके निप्पल काफी बड़े थे.


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कामूकता की इंतेहा (running)



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