डांडेकर... ये एक ऐसा नाम था जिसे मुंबई अंडरवर्ल्ड में हर कोई जानता था। कुछ लोग डांडेकर के नाम से जानते थे तो कुछ दांडिया भाई।
सुबोध डांडेकर मुंबई में ही पला बढ़ा और सारी जिंदगी इसी शहर में गुजारी। इस शहर ने उसे वो सब कुछ दिया जिसकी एक गरीब घर में पैदा होने वाले इंसान को हो सकती है। उसके साथ के कई और भी थे जिन्होने जिंदगी में तरक्की की और देश के बाहर जाकर बस गये पर वो हमेशा यहीं रहा। क्योंकी इस शहर से उसको एक लगाव था। ये उसका अपना घर था, अपनी मुंबई, आमची मुंबई।।
20 साल पहले वो भी शहर में चलने वाले लाखों की भीड़ में एक मामूली सा आदमी था। नौकरी की तलाश, सर पर छत का ठिकाना नहीं, पैसे की दिक्कत और सुंदर लड़कियों की ख्वाहिश। ऐसा नहीं था की उसने सीधे रास्ते से चलने की कोशिश नहीं की। एक शरीफ आदमी की तरह उसने भी कई रोजगार अपनाए। कभी सिगरेट और पान की दुकान, कभी किसी फक्टरी में काम तो कभी कुछ। पर कहीं भी ना तो इतना पैसा मिला जितने की उसे ख्वाहिश थी और ना ही दिल को सुकून।
फिर एक दोस्त के साथ मिल कर उसने एक ट्रैवेल एजेन्सी शुरू कर ली और यहाँ पर जैसे उसकी लाटरी लग गई।
बिजनेस दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की करने लगा। पहले एक टैक्सी, फिर दो और धीरे-धीरे मुंबई की सड़कों पर उसकी 50 टैक्सी दौड़ने लगी।
और एक दिन जब उसके बिजनेस पार्टनर की लाश मुंबई के एक गटर से मिली तो उसे पता चला की उसकी टैक्सी असल में आम पब्लिक नहीं, बल्कि मुंबई अंडरवर्ड यूज करता था। और यहीं से शुरू किया उसने अपना सुबोध डांडेकर से दांडिया भाई बनने का सफर।
पूरा अंडरवर्ल्ड जैसे किसी परिवार की तरह बना हुआ था और उनका घर था मुंबई। घर में हर किसी की अपनी जगह और अपना काम था और घर का कोई आदमी किसी दूसरे के काम में दखल नहीं देता था। अगर ऐसा होता तो घर का मुखिया, यानी की बड़े भाई, बीच में आकर सुलह करते और अक्सर सुलह के बाद शहर के अलग अलग हिस्सो में कई लाशें मिला करती थी।
सुबोध का टैक्सी बिजनेस असल में एक चलता फिरता कोठा था। रात को टैक्सियों में लड़कियां बैठकर निकलती और शहर का चक्कर लगाती। कस्टमर ढूँढ़ती और फिर वहीं टैक्सी में अपने कपड़े उतारती। काम खतम होने के बाद कस्टमर को टैक्सी से उतार दिया जाता और अगले कस्टमर की तलाश में टैक्सी फिर आगे बढ़ जाती। ना किसी कमरे की जरूरत, ना होटल का झंझट और ना पोलीस छापे का इर।
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- rajaarkey
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Re: पाप
पहले मुंबई की मामूली लड़कियां और धीरे-धीरे हाइ प्राइस्ड काल गल्र्स, देसी और विदेशी दोनों। दांडिया भाई की टैक्सी में हर तरह का माल मिलता था।
धीरे-धीरे धंधा सिर्फ एक चकला चलाने से तरक्की करके एक एस्कार्ट सर्विस तक पहुँच गया। दांडिया भाई का नाम शहर के हर एयाश को पता था। पर हकीकत में दांडिया भाई की असलियत कोई नहीं जानता था। अपने पार्टनर की मौत के बाद वो हमेशा पर्दे में रहा। आम लोगों के लिए एक आम शहरी, एक शरीफ जिम्मेदार नागरिक।
पर 20 साल ये काम करके वो परेशान हो चुका था। ऐसा नहीं था की इस काम में पैसा नहीं था पर जितना उसको चाहिए था उतना नहीं था। फिर ऊपर से ये काम ऐसा था की उसपर दल्ला होने का टैग लग गया था जो उसको बिल्कुल पसंद नहीं था। उसको जिंदगी में आगे बढ़ना था, लड़कियों के धंधे से आगे निकलकर कोई दूसरा धंधा करना था जहाँ ज्यादा पैसा कमा सकता। और इसी के लिए आज उसने खंडाला के एक गेस्ट हाउस में बड़े भाई के लिए एक पार्टी का इंतेजाम किया था।
पार्टी का उसका मुख्य मकसद यही था की भाई से कहकर किसी दूसरे धंधे में हाथ डाले।
लड़कियों की उसके पास कमी नहीं थी पर जब उसी के एक लड़के ने उसको एक ऐसी लड़की के बारे में बताया
जो दिखने में पटाखा और बिस्तर पर आग थी तो उसने भाई के लिए उसी लड़की का इंतेजाम करने को कह दिया। और अब वो खंडाला में गेस्टहाउस के बाहर खड़ा अपने उस लड़के का इंतेजार कर रहा था जो लड़की को
लेकर आ रहा था।
हाँ... भाई...” उसने फोन उठाया- “बस हम पहुँचने ही वाले हैं। लड़की मेरे साथ है...” उसने फोन किया तो दूसरी तरफ से आवाज आई।
कोई एक घंटे बाद एक होंडा सिटी आकर रुकी और सोनू गाड़ी से बाहर निकला।
कितना टाइम लगा दिया साले..” दांडिया उसे देखकर बोला।
सारी भाई... साला मुंबई से बाहर निकलना जंग लड़ने जैसा है। इतना ट्रैफिक...”
“खैर... लड़की कहाँ है...”
गाड़ी में है भाई...”
सेफ है... चेक करवाया... पोलीसवाले या किसी और गैंग के साथ तो नहीं है...”
नहीं भाई। कालेज में पढ़ती है। ऐयाशी के लिए बाप का दिया पैसा कम पड़ता है तो ये धंधा करती है। कोई पोलीसवालों का चक्कर नहीं है..” सोनू बोला और गाड़ी के पास जाकर लड़की को बाहर निकलने का इशारा किया।
लड़की गाड़ी से बाहर निकली। सुबोध और नीलम की नजर मिली और दोनों के पैर जैसे वहीं जम गये। चेहरा ऐसे सफेद पड़ गया जैसे खून निचोड़ लिया गया हो। आँखें फैली हुई और मुँह खुले हुए रह गये हों। दोनों के चेहरे पर एक जैसे भाव थे, जैसे आईने में वो अपनी ही शकल देख रहे हों।
पापा...” नीलम के मुँह से निकला।
***** समाप्त *****
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धीरे-धीरे धंधा सिर्फ एक चकला चलाने से तरक्की करके एक एस्कार्ट सर्विस तक पहुँच गया। दांडिया भाई का नाम शहर के हर एयाश को पता था। पर हकीकत में दांडिया भाई की असलियत कोई नहीं जानता था। अपने पार्टनर की मौत के बाद वो हमेशा पर्दे में रहा। आम लोगों के लिए एक आम शहरी, एक शरीफ जिम्मेदार नागरिक।
पर 20 साल ये काम करके वो परेशान हो चुका था। ऐसा नहीं था की इस काम में पैसा नहीं था पर जितना उसको चाहिए था उतना नहीं था। फिर ऊपर से ये काम ऐसा था की उसपर दल्ला होने का टैग लग गया था जो उसको बिल्कुल पसंद नहीं था। उसको जिंदगी में आगे बढ़ना था, लड़कियों के धंधे से आगे निकलकर कोई दूसरा धंधा करना था जहाँ ज्यादा पैसा कमा सकता। और इसी के लिए आज उसने खंडाला के एक गेस्ट हाउस में बड़े भाई के लिए एक पार्टी का इंतेजाम किया था।
पार्टी का उसका मुख्य मकसद यही था की भाई से कहकर किसी दूसरे धंधे में हाथ डाले।
लड़कियों की उसके पास कमी नहीं थी पर जब उसी के एक लड़के ने उसको एक ऐसी लड़की के बारे में बताया
जो दिखने में पटाखा और बिस्तर पर आग थी तो उसने भाई के लिए उसी लड़की का इंतेजाम करने को कह दिया। और अब वो खंडाला में गेस्टहाउस के बाहर खड़ा अपने उस लड़के का इंतेजार कर रहा था जो लड़की को
लेकर आ रहा था।
हाँ... भाई...” उसने फोन उठाया- “बस हम पहुँचने ही वाले हैं। लड़की मेरे साथ है...” उसने फोन किया तो दूसरी तरफ से आवाज आई।
कोई एक घंटे बाद एक होंडा सिटी आकर रुकी और सोनू गाड़ी से बाहर निकला।
कितना टाइम लगा दिया साले..” दांडिया उसे देखकर बोला।
सारी भाई... साला मुंबई से बाहर निकलना जंग लड़ने जैसा है। इतना ट्रैफिक...”
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लड़की गाड़ी से बाहर निकली। सुबोध और नीलम की नजर मिली और दोनों के पैर जैसे वहीं जम गये। चेहरा ऐसे सफेद पड़ गया जैसे खून निचोड़ लिया गया हो। आँखें फैली हुई और मुँह खुले हुए रह गये हों। दोनों के चेहरे पर एक जैसे भाव थे, जैसे आईने में वो अपनी ही शकल देख रहे हों।
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Re: पाप
Zabardast
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मेरा क्या है जो भी लिया है नेट से लिया है और नेट पर ही दिया है- (इधर का माल उधर)
शरीफ़ या कमीना.... Incest बदलते रिश्ते...DEV THE HIDDEN POWER...Adventure of karma ( dragon king )
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