Incest घर की मुर्गियाँ

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mastram
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Re: Incest घर की मुर्गियाँ

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थोड़ी ही देर में दोनों के कपड़े जिश्म से अलग हो जाते हैं, और नेहा अपने भाई के लण्ड को अपनी चूत के छेद पर टिका देती है। समीर के हल्के से दबाव से लण्ड चूत में आराम से सरकता चला जाता है।

समीर- नेहा तेरी चूत तो काफी ढीली हो गई है।

नेहा- भइया क्या करूं? एक रात में जब 3-3 बार सेक्स करेंगे तो ढीली तो होगी ही।

समीर- “वाह नेहा तू तो तो बड़े मजे ले रही है.." और दोनों भाई बहन चुदाई का खेल खेलने लगे।

इधर काजल को जब ये अहसास हो गया की पूरा घर सो चुका है, तो धीरे से अपने रूम से निकलकर नीचे हाल में अपने जीजू समीर के पास पहुँचती है। हाल की लाइट आफ थी। राहुल चादर ओढ़े लेटा था। काजल धीरे से बिस्तर में घुसकर समीर से लिपट जाती है।

राहुल की नींद खुल जाती है, और राहुल सोचता है नेहा आई है। राहुल भी काजल को अपनी बाँहो में भर लेता है, और काजल की चूचियों को पकड़कर- “क्या बात है नेहा, नींद नहीं आ रही?"

ये तो राहुल भइया की आवाज थी। काजल की सिट्टी-पिट्टी गुम। ये सब क्या हो गया? अब क्या करे काजल? मुँह से कुछ भी बोल नहीं सकती थी, और राहुल की गिरफ़्त भी चूचियों पर बढ़ती जा रही थी, और लण्ड काजल की गाण्ड की दरार में घुस रहा था।

काजल आज कहां फँस गई?

राहुल बार-बार नेहा से बोले जा रहा था। मगर काजल बिल्कुल चुपचाप लेटी थी। राहुल ने नेहा की सलवार का नाड़ा भी खोल दिया, और सलवार को खिसका कर नीचे कर दिया, और फिर अपना लवर भी उतार फेंका। लण्ड काजल को अब क्लियर टच हो रहा था। काजल सांसें रोके लेटी थी। जाने अब क्या होगा?

राहुल ने पीछे से लण्ड को चूत के छेद पर लगाया और धक्का मारने लगा। काजल की चूत नेहा के मुकाबले टाइट थी। लण्ड चूत में चिपकते हुए घुसने लगा।

काजल को बड़ा दर्द होने लगा। मगर काजल बर्दाश्त करती रही। जैसे ही लण्ड अदर घुसता काजल तड़प जाती। और जब लण्ड बाहर की तरफ खींचता काजल को थोड़ी राहत मिलती। राहल लण्ड को चूत में धकेलता जा रहा था।

राहुल- अरें.. नेहा आज तो बहुत टाइट जा रहा है, क्या बात है?

मगर काजल चुपचाप लेटी रही। बस हूँ हाँ करती रही। कहीं राहुल को पता चल गया की मैं नेहा नहीं काजल हूँ। राहल अब थोड़ा तेज-तेज लण्ड पर दबाव डालते हुए पूरा लण्ड घुसा देता है। काजल की तो जान पर बन आई थी। इतना दर्द हो रहा था की चीख ही निकाल जाये। मगर इतना दर्द होने पर भी बर्दाश्त किए लेटी रही। और राहुल अपने लण्ड को अंदर-बाहर करना शुरू कर देता है।

काजल को भी थोड़ी देर बाद अब अच्छा लगने लगा, और अब काजल भी राहल का साथ दे रही थी। करीब आधे घंटे तक राहुल को काजल चोदता रहा। अब काजल की चूत लण्ड को आराम से अंदर-बाहर ले रही थी। जब काजल झड़ने के करीब होती है तो बस अपने आप राहुल की कमर काजल के हाथों में आ जाती है, और काजल 5-7 धक्के नीचे से मारते हुए झड़ जाती है। और फिर राहुल भी अपना वीर्य काजल की चूत में छोड़ देता है।
और फिर बिना कुछ बोले धीरे से काजल उठकर अपने रूम में पहुँच जाती है।

काजल बेड पर लेटी सोच रही थी। ये आज मुझसे क्या हो गया? अगर भइया नीचे हाल में सो रहे हैं, तो फिर समीर जीजू कहां सो रहे हैं? तभी कुछ सोचकर काजल बेड से उठकर नेहा के रूम की तरफ चल दी। दरवाजा अंदर से बंद था। मगर नेहा की सिसकियां काजल के कानों में साफ-साफ सुनाई दे रही थी।

नेहा- “आअहह... भइया मजा आ रहा है... आह्ह... सस्सीई... ओहह... उम्म्म्म
... आहह... सस्स्सी ..."

काजल- “उफफ्फ... कैसे भाई बहन हैह की यहां भी नहीं छोड़ा। काजल भी कछ सोचती है, और काजल के चेहरे पर एक मुश्कान आ जाती है। काजल के माइंड में एक प्लान आ गया था। और थोड़ी देर बाद काजल अपने बिस्तर पर जाकर सो गई।

सुबह समीर नाश्ता करके नेहा के घर से दिव्या के घर गया दिव्या भी अपना सामान पैक कर रही थी। समीर और दिव्या 11:00 बजे तक नोयेडा के लिए निकाल गये।
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mastram
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उधर काजल प्लान के मुताबिक नेहा भाभी से बात करती है। जब नेहा अपना रूम साफ कर रही थी। काजल रूम में पहुँचती है, और कहा- “और भाभी क्या कर रही हो? मैं कुछ हेल्प करूं आपकी?"

नेहा- अरे... नहीं काजल, मैं कर लूँगी।

काजल- एक बात पूर्वी भाभी? आप समीर को बहुत प्यार करती हो?

नेहा- हाँ तो... हर बहन अपने भाई को प्यार करती है।

अब काजल नेहा पर एक बाम्ब सा फोड़टी है- "इतना प्यार करती हो की भाई के साथ लिपटकर सो भी जाती हो?"

नेहा की ये सुनकर तो जैसे पैरों तले जमीन निकल गई- “क्या कह रही हो काजल?"

काजल- "भाभी रात को मैंने आपको और समीर को वो सब करते देख लिया है..."

नेहा काजल के पैरों में पड़ गई, और गिड़गिड़ाने लगी- "प्लीज्ज... काजल मुझे माफ कर दे, मझसे गलती हो गई। ये बात किसी से मत कहना..." और नेहा की आँखों में आँसू निकल आए थे।

काजल- “अरे... भाभी क्या कर रही हैं आप। उठो मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगी...” और काजल नेहा की आँखें साफ करती है- "भाभी ये बात मैं किसी से नहीं कहंगी- प्रामिस। बस भाभी आगे से ध्यान रखना। घर की इज्जत पर दाग ना लगे..."

नेहा का सिर शर्म से झुक जाता है।
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समीर दिव्या को लेकर नोयेडा पहुँच चुका था। रात को समीर और दिव्या की जमकर चुदाई होती है। और यूँ ही वक्त गुजरता है।

सोमवार की सुबह। समीर आज थोड़ा जल्दी उठकर फ्रेश होता है। और जल्दी-जल्दी नाश्ता करके कंपनी के लिए निकाल जाता है, और फिर समीर बस स्टाप पर पहुँचता है। समीर को ब्लू कलर का शूट पहने हुमा नजर आ जाती है। और समीर अपनी बाइक हुमा के सामने रोक देता है।

हुमा तो समीर को देखकर एकदम खिल्ल जाती है। जैसे कोई बरसों का बिछड़ा मिला हो, और झट से बिना कुछ कहे बाइक पर बैठ जाती है। समीर बाइक स्कूल की तरफ दौड़ा देता है। तभी हुमा समीर से बोलती है।

हुमा - सर, क्या आप हमसे नाराज हैं?
समीर- नहीं तो, तुम्हें ऐसा क्यों लगा?

हुमा - वो हमने आपको पार्टी देने को मना कर दिया था।

समीर- कोई बात नहीं जब आपको ये सब पसंद नहीं तो भला मैं क्यों आपको फोर्स करूं?

हुमा - सारी सर। मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था। एक छोटी सी पार्टी ही तो माँगी थी आपने। बताइए कब लेंगे हमसे पार्टी?

समीर चकित हो जाता है। क्या बात है आज सूरज कैसे पश्चिम से निकलने लगा- " जब भी आपका दिल करे बोल देना, बंदा हाजिर है..."

हुमा - ठीक है तो आज हाफ-डे के बाद चलेंगे। आप आ जाना।

समीर खुशी के मारे बाइक की रफ्तार बढ़ा देता है, तो हुमा को झटका सा लगता है। हुमा एकदम से समीर की पीठ से टकराती है। हुमा की नोकदार चूचियां समीर को महसूस होती हैं। उफफ्फ... एक पल के लिए क्या मस्त अहसास मिला समीर को। हमा थोड़ा अपने को संभालकर बैठ जाती है। समीर का दिल फिर से इस अहसास को पाने को करने लगता है।

मगर हुमा अब संभलकर बैठ चुकी थी। थोड़ी देर में हुमा का स्कूल आ जाता है, और हमा समीर को बाइ करते हुए अंदर चली जाती है। समीर का दिल घायल हो चुका था। हुमा की चूचियों की प्यारी सी चुभन अब भी समीर को महसूस हो रही थी।

समीर खड़े-खड़े सोच रहा था- “कितनी फुर्सत से बनाया होगा बनाने वाले ने। कितनी प्यारी मासूम सी लड़की है ये, जी करता है बस देखता रहूँ..”

फिर समीर कंपनी पहुँच जाता है। वहां उसकी नजर हिना पर पड़ती है।


समीर- हिना आर्डर फाइल लेकर मेरे केबिन में आओ।

हिना- “जी सर, अभी आई.." और हिना आर्डर फाइल लेकर समीर के केबिन में पहुँचती है।

समीर- एक्सपोर्ट माल की डेलिवरी में सिर्फ 10 दिन बाकी है। कितना माल पैक हो चुका है?

हिना- सर फ्राइडे तक सारी पैकिंग कंप्लीट हो जायेगी।

समीर- गुड जाब हिना।


हिना- “थॅंक यू सर.." चेयर से उठते हुए।


समीर- अरे... बैठो हिना। एक बात बताओ, तुम इतना खामोश क्यों रहती हो?


हिना- नहीं तो सर, ऐसी कोई बात नहीं है।

समीर को लगता है हिना कुछ बताना नहीं चाहती- “ओके जाओ तुम.."

हिना समीर के केबिन से बाहर चली जाती है।

समीर- "शायद हिना की खामोशी की वजह हुमा को मालूम हो सकती है.."

समीर लगभग 12:00 बजे कंपनी से हुमा के स्कूल की तरफ बाइक दौड़ा देता है। 15 मिनट में समीर हुमा के स्कूल के दरवाजे पर खड़ा था। 5 मिनट इंतेजार करते ही स्कूल का लंच टाइम का घंटा बज उठा। और थोड़ी देर में नीला शूट पहने हुमा समीर को नजर आ जाती है। उफफ्फ... चलती हुई कितनी प्यारी लग रही थी। शायद ही किसी परी से कम हो।

समीर एकटक हुमा की सुंदरता निहार रहा था, और हुमा चलते हुए समीर के पास तक आ जाती है।

हुमा - चलिए सर।

समीर- “आहह... हाँ चलो..." और समीर बाइक स्टार्ट करके हुमा को लेकर पी.वी.आर. माल पहुँचता है। समीर कहता है- “क्या लोगी, वेग या नोन-वेग?"

हुमा- सर, आप बताएं। हमें तो कुछ भी चलेगा।


समीर- फिर तो आज हम भी नोनवेग ही लेंगे और चिकन टंगड़ी

दोनों सी.एफ.सी. रेस्टोरेंट में पहँचते है और एक कार्नर की टेबल पर बैठ जाते है, कोल्ड-ड्रिंक का आर्डर कर देते हैं।

समीर- एक बात कहूँ?

हुमा- कहिए सर।

समीर- तुम बहुत खूबसूरत हो।

हुमा- अरे.. कहां सर, ऐसा तो कुछ नहीं।

समीर- रियली.. मेरा मतलब सच कह रहा हूँ। मैंने आज तक तुम जैसी खूबसूरत लड़की नहीं देखी। क्या मुझसे दोस्ती करोगी?

हुमा- अरे... सर हम इस काबिल कहां हैं?

समीर- तुम तो लाखों में एक हो।

हुमा- ऐसा आपको मुझमें क्या नजर आ गया?

समीर- कहां से बताऊँ? तुम तो ऊपर से लेकर नीचे तक किसी संगमरमर की तराशी हुई मूरत हो।

हुमा को समीर का यूँ तारीफ करना अब अच्छा लगने लगा। और समीर भी हमा की तारीफों के पुल बाँधे जा रहा था। समीर की आँखें अब हमा की आँखों को ऐसे देखे जा रही थीं, जैसे कोई गहरे समुंदर को देखता है।
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mastram
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हुमा - ऐसे क्या देख रहे हो सर?

समीर- कितनी गहराई है तुम्हारी आँखों में? बस यही देख रहा हूँ।

हुमा - सर, आप मेरी इतनी तारीफ क्यों कर रहे हैं?

समीर- आप हैं ही इस काबिल की तारीफ किए बिना दिल मानता ही नहीं। एक बात पूर्वी तमसे?

हुमा- जी पूछिए।

समीर- "आपकी बहन हिना कंपनी में मेरे साथ काम करती है। कभी उसके चेहरे पर मुश्कान नहीं दिखती क्या बात है?"

हुमा- “सर, आपने हमें इतना अपना समझा। आपसे कुछ नहीं छिपाऊँगी। जब पापा का आक्सिडेंट हुआ था, पापा के हार्ट की नस फट गई थी। बहुत खून निकल चुका था। डाक्टर ने फौरन आपरेशन के लिए बोल दिया। 3 लाख रुपये जमा करने को बोला। अब इतने पैसे कहां से लाते। मम्मी ने घर गिरवी रखकर पैसे उठा लिए। इतना सब कुछ करने के बाद भी पापा हमें छोड़कर चले गये.." समीर को बताते-बताते हुमा की आँखों से आँसू निकाल आया।

समीर अपनी जेब से रुमाल निकालकर हुमा के आँसू पोंछता है, और कहता है- "हुमा हिम्मत से काम लो। अब होनी को कौन टाल सकता है?"

हुमा - जी सर। मैं तो यही कोशिश करती हूँ की एक दिन सब ठीक हो जायेगा। मगर क्या करें, आज लोन का इंटेरेस्ट बढ़ते-बढ़ते करीब 4 लाखक हो चुका है। और अब लगता है की हमारा घर नीलाम हो जायेगा।

समीर- ओहह... ये तो बहुत बड़ी टेन्शन की बात है। तुम जानती हो किसके पास गिरवी रखा है मकान?

हुमा - "जी पापा के ही एक दोस्त थे..."

समीर- चलो मेरे साथ।

हुमा- कहां?

समीर- आओ तो।


हुमा - मगर सर, आपकी पार्टी?

समीर- “वो भी ले लेंगे..." फिर समीर हुमा को लेकर अपने घर के पास बाइक रोकता है, कहा- “तुम दो मिनट रुको मैं आता हूँ..” और समीर घर से चेकबुक लेकर दो मिनट में हुमा के पास आ जाता है।

समीर- चलो मुझे उस आदमी के पास लेकर चलो, जिसके पास तुम्हारा घर गिरवी रखा है।

हुमा- लेकिन सर, आप किसलिए?

समीर- मुझे अपना दोस्त मानती हो?

हुमा - जी सर।

समीर- सर नहीं, सिर्फ समीर।


हुमा - सर, मुझसे नाम नहीं लिया जायेगा आपका।

समीर- "अच्छा जी तो चलें फिर?"
फिर समीर हुमा को लेकर साहूकार के पास पहुँचता है। समीर साहूकार से पैसों का पूरा हिसाब निकलवाता है इंटेरेस्ट लगाकर। 3.75 लाख रुपये बनते हैं। समीर फौरन जेब से चेक बुक निकालता है और 3.75 लाख का चेक बनाकर साहूकार के हाथ में पकड़ा देता है, और घर के कागज ले लेता है।


हमा समीर को ऐसे देखने लगी, जैसे समीर कोई फरिश्ता बनकर आया हो, और जाने क्यों आँखों में आँसू आ जाते हैं।

समीर आगे बढ़कर जैसे ही हुमा के आँसू पोछता है, हुमा किसी टूटे पत्ते की तरह समीर के गले लग जाती है। समीर हुमा को संभलता है। दो पल यूँ ही गुजर जाते हैं। हुमा को जैसे ही ये अहसास होता है, एकदम से अपनी नजरें झुकाकर थोड़े फासला से खड़ी हो जाती है। हुमा को अपने आप पर बड़ी शर्म सी महसूस हो रही थी। समीर हुमा का हाथ पकड़कर वहां से निकल जाता है।

समीर- चलिये हम आपको घर तक छोड़ दें।

हुमा हाँ में गर्दन हिला देती है। और समीर बाइक स्टार्ट करके हुमा को उसके घर लेकर पहुंचता है।

समीर- अच्छा हुमा मैं चलता हूँ।

हुमा - अरे.. सर ऐसे कैसे जा सकते हैं? आइए अंदर..." और हमा डोरबेल बजाती है।

हुमा की मम्मी रुखसार दरवाजा खोलती है।
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