Incest घर की मुर्गियाँ

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mastram
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Re: Incest घर की मुर्गियाँ

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बड़ी धूम धाम से दोनों की शादी निपट गई। रात के दो बज चुके थे। नेहा की विदाई के वक्त सभी की आँखों से झर-झर आँसू बह रहे थे। राहुल की गाड़ी में नेहा बैठ गई, और राहुल जयपुर के लिए निकल गया। आज रात राहुल तो सुहागरात बना नहीं पायेगा।

मगर समीर की तो आज सुहागरात है। दिव्या सजी-धजी दुल्हन बनी सुहाग-सेज पर बैठी समीर का इंतजार कर रही थी। थोड़ी देर बाद दरवाजे पर समीर के आने की आहट होती है। दिव्या की धड़कन बढ़ जाती है। दिव्या बेड पर बैठी अपनी सांसों पर काबू पाने की कोशिश करती है। मगर आज सांसें फुल स्पीड पर चल रही थीं।

समीर रूम में एंटर होता है और दरवाजा बंद करके दिव्या की तरफ बढ़ता है। दिव्या नजरें झुकाये बेड पर बैठी थी। समीर बेड पर ठीक दिव्या के सामने बैठ गया।

समीर- वाउ... आज तो एकदम परी लग रही हो। जरा अपना चेहरा तो दिखाइए।

मगर दिव्या शर्माई सी बिना कुछ कहे बैठी रहती है।

समीर- “क्या हआ दिव्या, अपना चेहरा तो दिखाओ..." और समीर अपने हाथों से दिव्या का घूघट हटाता है। उफफ्फ... आज तो दिव्या एकदम दूध सी सफेद दुल्हन बनी कोई राजकुमारी लग रही थी, और हाथों पर मेहन्दी का क्या खूब रंग चढ़ा था। समीर तो एकटक देखता रह गया।

समीर बार-बार अपनी किश्मत पर फरव्र कर रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई खवाब देख रहा हो। समीर ऐसे ही दिव्या को देखे जा रहा था। काफी देर यूँ ही देखने के बाद दिव्या ही बोलती है।

दिव्या- ऐसे क्या देख रहे हो? मुझे शर्म आती है।

समीर- मुझे तो यकीन नहीं हो रहा की तुम मेरी दुल्हन बन गई हो।

दिव्या- अच्छा जी आपको यकीन नहीं हो रहा?

थोड़ी देर बाद दोनों अपने-अपने घरवालों के बारे में बातें करते हैं। फिर समीर दिव्या को मुँह दिखाई गिफ्ट हीरों का सेट पहनाता है।

समीर- ये मेरी तरफ से मुँह दिखाई का छोटा सा गिफ्ट।

दिव्या- बड़ा प्यारा गिफ्ट है। थॅंक यू।

समीर सिरहाने से दूध का ग्लास उठता है, और कहता है- “दूध पी लीजिए.."

दिव्या- ये आपके लिए है।

समीर- नहीं जी ये आप पीजिए।

दिव्या दो यूंट पीकर समीर को ग्लास पकड़ा देती है।

समीर- बस इतना सा और पी लीजिए।

दिव्या- ये बाकी आप।

समीर बाकी दूध पी जाता है। अब समीर दिव्या की अंदर की खूबसूरती देखना चाहता था, इसलिये समीर दिव्या की ज्यूयेलरी उतारने लगता है।

दिव्या- “रुकिये, मैं उतारती हूँ.." और दिव्या सारी ज्यूयेलरी उतार देती है।

समीर दिव्या को बाँहो में भर लेता है- “तुम कितनी प्यारी हो दिव्या.. जी करता है बस बाहों में लिए रहो.."

दिव्या- ऐसा मुझमें क्या है, जो आपको इतना प्यार आ रहा है?

समीर- “ये आपका चाँद सा चेहरा, बड़ी-बड़ी काली-काली आँखें, गुलाबी-गुलाबी गाल और दो गुलाब की पंखुड़ी से होंठ... जी करता है इन्हें चूम लूँ... और भी कुछ है, जो अभी देखना बाकी है..."

दिव्या कुछ समझ नहीं पाई।
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mastram
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समीर दिव्या के होंठों पर उंगली फेरने लगता है। दिव्या एकदम सिहर गई। आज पहली बार किसी ने दिव्या को ऐसे छुआ था। समीर कोई जल्दबाजी के मूड में नहीं था, बस धीरे-धीरे अपनी उंगली दिव्या के होंठों पर फेरता रहा।

समीर- दिव्या तुमको कैसा लग रहा है शादी के बाद?

दिव्या- अच्छा लग रहा है।

समीर अपने होंठों को दिव्या के करीब ले आता है। इतना करीब की दिव्या कीसांसें समीर में समाने लगी, और किसी चुंबक की तरह समीर के होंठ दिव्या से चिपक गये। आह्ह... कितने साफ्ट मुलायम होंठ हैं दिव्या के।

समीर तो बस मस्ती में चूसता रहा। दिव्या को अजीब सा मजा आने लगा। समीर के हाथ धीरे-धीरे दिव्या की कमर सहलाने लगे। अब समीर दिव्या के अंदर की देखना चाहता था, और समीर दिव्या का लहँगा उतारने लगता है।

दिव्या ना-नुकर करने लगी।

समीर- "इन्हें कब तक पहनोगी?" और समीर लहँगा उतारने लगता है। समीर दिव्या को सिर्फ ब्रा पैंटी में छोड़ता
है।

दिव्या का शर्म से बुरा हाल हो चुका था। दिव्या बेड पर रखी चादर उठा लेती है, और अपने ऊपर डालने लगी।

समीर- तुम्हारी शर्म तब तक नहीं उतरेगी जब तक मेरे भी कपड़े नहीं उतरते, और समीर अपनी पैंट शर्ट उतारकर सिर्फ अंडरवेर में रह गया।

दिव्या समीर पर एक नजर डालती है और अपने चेहरे को दोनों हाथों से छपाने लगती है।

स समीर - “क्या यार, आज के दौर में कोई इतना भी शर्माता है?" और समीर दिव्या के ऊपर से चादर पकड़कर खींच लेता है।

दिव्या- ये आप क्या कर रहे हो?

समीर- प्यार।

दिव्या- ऐसे होता है प्यार?

समीर- और नहीं तो क्या? तुम्हें प्यार नहीं आता।

दिव्या- नहीं तो।

समीर- चलो आज तुम्हें प्यार करना सिखाता हूँ।

दिव्या- जी।

समीर- जैसा मैं कहूँ तुम वैसा करना, और करने से बिल्कुल नहीं डरना। ओके?

दिव्या- ओके।

समीर- अपनी आँखें बंद करो और जब तक मैं ना कहूँ खोलनी नहीं है।

दिव्या- ऐसा क्या करना है आँखें बंद करा कर?

समीर- मुझ पर भरोसा है?

दिव्या- अपने से भी ज्यादा।

समीर- बस तो फिर जैसा मैं कहता हूँ वेसा करो।।
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mastram
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दिव्या आँखें बंद कर लेती है। समीर पीछे जाकर ब्रा की स्ट्रैप खोल देता है। उफफ्फ... गोल-गोल गुब्बारे समान
चूचियां पर किशमिस के दाने जैसे दो निप्पल देखकर समीर की राल टपकने लगी। समीर से रुकना अब असंभव था और वो आगे बढ़कर एक निप्पल अपने होंठों से लगा लेता है।

दिव्या आँखें बंद किए बोलती है- “ये कैसे प्यार कर रहे हो जी?" और हल्की-हल्की सिसकियां निकलनी शुरू हो
गई।

समीर बिन कुछ कहे धीरे-धीरे निप्पल चूसता रहा।

दिव्या आँखें बंद किये सिसकियां ले रही थी- “इसस्स्स आईई.."

समीर दिव्या के जिश्म को अपने होंठों से तरसाने लग गया। निप्पल से नीचे जाकर नाभि पर होंठ टिका देता है,
और एक हाथ से बाकी बची पैंटी भी खिसका दी। दिव्या में भी अंजा सा शुरूर भर चुका था। ये प्यार का खेल दिव्या को मस्त किए जा रहा था। सिसकियां हर पल के साथ बढ़ती जा रही थी। समीर भी एक-एक कदम बढ़ता
जा रहा था। अब तक समीर की उंगली ने भी मंजिल पा ली थी।


बड़े ही प्यार से उंगली ने दिव्या के दरवाजे पर दस्तक दी। दिव्या ने भी उंगली का स्वागत गीली हो चुकी चूत में बड़े ही प्यार से किया। समीर की उंगली अपना कमाल दिखाने लगी। दोनों हाथों की उंगली चूत के होंठ पकड़कर फैलाती है। समीर की नजरें चूत की झिल्ली तक पहुँच जाती हैं।

दिव्या एकदम कच्ची कली थी। समीर को आज बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। दिल में बड़ी खुशी भी थी दिव्या की कली देखकर। आज दिव्या कली से फूल बनने जा रही थी। समीर चूत की फांकों में उंगली धीरे-धीरे मसाज करने लगी। दिव्या की सिसकियां अब आss आss में बदल चुकी थीं।

दिव्या- “आहह... हाँ आआआ आहह... अहह... क्या कर रहे हो... अहह... सस्सीई... उईई..”

अब समीर ने दिव्या को लिटा दिया और नीचे सरकता हुआ अपने होंठ, चूत पर टच करा दिए। दिव्या में जैसे जलजला सा आ गया, ऐसे काँपने लगी। समीर को दिव्या पर बड़ा ही प्यार आ रहा था, अपने होंठों से दिव्या की चूत के होंठ पकड़ लेता है। दिव्या के हाथ अपने आप समीर के बालों को सहलाने लगते हैं। समीर चूत की फांकों को चाटने लगा, और दिव्या समीर के सिर को अपनी चूत पर दबाने लगी।

दिव्या को अजीब सा नशा चढ़ रहा था। बेड पर लेटी मछली की तरह फड़फड़ा रही थी। समीर अपनी जीभ थोड़ा
अंदर डालने लगा।

दिव्या- “आहह... आऽऽ आऽs उईईई... आहह... उम्म्म..." और दिव्या में अकड़हाड़ सी होने लगी- "हाईई मुझे क्या हो रहा है?"

दिव्या का जिश्म अकड़ने लगा। अपनी चूत को समीर के मुँह की तरफ किए जाने लगी और एक हाथ से बेड की चादर पकड़ ली। ऐसा लग रहा था जैसे कोई ज्वालामुखी फूटने वाला है, और वो पल भी आ गया जब दिव्या का झरना बह गया। दिव्या को जैसे बड़ा सकन मिला हो, और एकदम निढाल सी बेड पर लढ़क गई।

समीर- कैसा लगा मेरा प्यार?

दिव्या- ऐसे होता है प्यार?

समीर- हाँ जी ऐसे ही होता है... और भी तरह से किया जाता है। अभी आपको
सीखना बाकी है।

दिव्या- आप सिखा दीजिए।

समीर- “अब तुमको भी वही करना होगा जो मैंने किया.." और समीर अपना अंडरवेर भी उतार देता है। लण्ड एक स्टील की रोड की तरह दिव्या के सामने लहरा गया।

दिव्या आँखें फाड़े लण्ड को देखती रह गई।

समीर- ऐसे क्या देख रही हो?

दिव्या- हाय दैय्या ये क्या है?

समीर- तुम्हारा प्यारा खिलोना है, हाथ में लेकर खेलो इससे।

दिव्या- नहीं जी, डर लगता है मुझे।

समीर- "भला क्यों? एक बार छूकर तो देखो.." और समीर दिव्या का हाथ पकड़कर लण्ड पर रख देता है।
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दिव्या के हाथ में झनझनाहट सी दौड़ गई, बड़ा ही हार्ड था। दिव्या यूँ ही हाथ में पकड़े रही। समीर ने दिव्या के हाथों में लण्ड को आगे पीछे करना शुरू कर दिया। अब दिव्या को भी अच्छा लगाने लगा। और थोड़ी देर बाद समीर दिव्या के सिर को लण्ड की तरफ दबाने लगा।
दिव्या भी समझ चुकी थी समीर क्या चाहता है?
समीर- किस माई काक
दिव्या समीर की बात नहीं टाल सकी और दिव्या के होंठ समीर की टोपी को छने लगे। समीर की आहह... निकाल गई। समीर इससे भी ज्यादा चाहता था, और अपने लण्ड का दब पर डलने लगा, जिससे दिव्या का मुँह खुलता चला गया। अब तक आधा लण्ड दिव्या के मुँह में समा चुका था। पहली बार दिव्या ये सब कर रही थी। मगर अब दिव्या को भी ये सब में मजा आने लगा। प्यार का खेल बड़े ही मजे से खेलने लगी। लण्ड को मुँह में अंदर-बाहर करके चूसने से समीर अपनी सिसकियां नहीं रोक पाता

समीर- “अहह... इसस्स्स... उहह... हाई दिव्या मजा आ रहा है..."

दिव्या बड़े ही मजे से लण्ड चूसने लगी। समीर दिव्या को पाकर धन्य हो गया। क्या गजब का ब्लो-जोब करती है। समीर से अब कंट्रोल करना मुश्किल था, और जल्दी से अपना लण्ड दिव्या के मुँह से बाहर खींच लेता है,
और दिव्या को बेड पर लिटाकर दोनों पैर फैला देता है। दिव्या को अभी ये मालूम नहीं था की समीर क्या कर रहा है? और जब समीर ने अपना लण्ड चूत से टच किया तो दिव्या सहम गई।

दिव्या- ये आप क्या कर रहे हो?

समीर- मेरी जान... यही तो प्यार की मंजिल है।

दिव्या- क्या आप इसे अंदर करोगे?

समीर- और नहीं तो क्या?

दिव्या- नहीं जी, ये तो बहुत बड़ा है। भला ये यहां कैसे जा सकता है?

समीर- मेरी जान, बस थोड़ा सा मुश्किल है, मगर एक बार चला गया तो फिर बड़ा मजा आता है।

दिव्या- मुझे तो डर लग रहा है।

समीर- "मुझे पर भरोसा रखो कुछ नहीं होगा...” कहकर समीर नारियल तेल की शीशी उठा लेता है, और ढेर सारा तेल अपने लण्ड और दिव्या की चूत के छेद पर लगाता है। दिव्या अंजानी अनहोनी से आँखें बंद कर लेती है,
और समीर अपने लण्ड की टोपी चूत के अंदर सरकाने लगता है।

दिव्या दर्द से बिलबिला गई, और उसकी एक दर्द भरी चीख निकल गई। समीर ने जल्दी से दिव्या के होंठों पर अपने होंठ रख दिए। जिससे दिव्या की आवाज समीर की गले में दब गई। दिव्या का दर्द से बुरा हाल हो चुका था। बेचारी समीर की कैद से छूटना चाहती थी।

समीर यही पर रुक कर दिव्या की चूचियां मसलने लगता है, और धीरे से अपने होंठ दिव्या के होंठों से आजाद किए। दिव्या की आँखों से आँसू बह रहे थे।

दिव्या- "प्लीज़्ज़... बाहर निकाल लो आअहह... मर गई मैं..."

समीर- "बस हो गया अब और दर्द नहीं होगा..." और समीर दिव्या के निप्पल चूसने लगता है।

जिससे थोड़ी देर में दिव्या को राहत सी मिलती है।

समीर- कैसा लग रहा है दिव्या?

दिव्या- हाँ, अब ठीक है।

समीर- थोड़ा-थोड़ा अंदर-बाहर करूँगा बर्दाश्त करना।

दिव्या- मुझसे नहीं होगा।


समीर- "बस और अंदर नहीं करूँगा इतना ही अंदर-बाहर करूँगा। बस थोड़ा सा दर्द होगा..." और समीर लण्ड को हल्का सा बाहर खींचता है।
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