Adultery शीतल का समर्पण

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007
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Re: Adultery शीतल का समर्पण

Post by 007 »

(^%$^-1rs((7)
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naik
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Re: Adultery शीतल का समर्पण

Post by naik »

excellent update brother
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007
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Re: Adultery शीतल का समर्पण

Post by 007 »

वसीम ने उसके फैलते पैर और ऊपर उठती कमर को देख लिया। उसने मन ही मन सोचा. "अभी नहीं रंडी, अभी तुझं और तड़पना है मेरे लण्ड के लिए। अभी मेरे लण्ड और तेरी चूत के बीच तेरा पति खड़ा हैं। तुझं मुझसे चुदवाने के लिए गिड़गिड़ाना होगा रांड़, अपने पति से बगावत करना होगा..' साँचकर वसीम उठा और खड़ा होकर लण्ड पे हाथ आगे-पीछे चलाने लगा।

शीतल ये देखकर चकित हो गई- "आहह... नहीं वसीम चाचा आह्ह... ये क्या कर रहे हैं आप आअहह... नहीं ऐसा मत करिए प्लीज... ओहह... इसे मेरी चूत में डालिए आहह... नही..." शीतल हड़बड़ा कर उठी और वसीम का हाथ पकड़ने की कोशिश की। वो चुदने के लिए खुद को मेंटली तैयार कर चुकी थी और फिजिकली तो वो तैयार थी ही। लेकिन वसीम ने ऐसा करके जैसे उसे आसमान से जमीन में ला पटका हो।

वसीम का लण्ड झटके खाने लगा और गाढ़ा सफेद वीर्य हवा में उछलता हुआ इधर-उधर गिरने लगा।

शीतल को समझ में नहीं आया की क्या करें? वो वसीम के लण्ड को हाथ में पकड़ ली और वीर्य उसके सामने जमीन पे गिरने लगा। ताजा वीर्य सामने बह रहा था। शीतल तुरंत ही अपना मुह खोली और लण्ड को मुह में ले ली। वसीम का मोटा लण्ड अब शीतल के मुँह में झटके मार रहा था और गरमा गरम बीर्य शीतल की जीभ को अपना टेस्ट दे गया। लण्ड वीर्य उगले जा रहा था और शीतल उसे अपने मुँह में भरती हुई जीभ से होकर गले में उतारती जा रही थी। लण्ड थक गया और उसने वीर्य गिराना बंद कर दिया लेकिन इससे शीतल के प्यासे जिएम की प्यास और बढ़ गई थी। वो चूस-चसकर वीर्य को निकालने लगी और पीने लगी।

वसीम हॉफ्ता हा चैयर पे जा बैठा और शीतल अपने सिर को बेड पे टिकाए नीचे ही बैठी रही। शीतल खुद के लिए बहुत बुरा महसूस कर रही थी की आज भी इतना कुछ होने के बाद भी वो बिना चुदे रह गईं। वो उठी और वसीम की चेपर के सामने जा बैठी।

शीतल- "ऐसा क्यों किया आपने वसीम चाचा? मुझे चोदा बन्यों नहीं: लण्ड को मेरी चूत में क्यों नहीं डाला? वीर्य को मेरी चूत में बन्यों नहीं गिराए? ये क्या पागलपन है बोलिए?"

वसीम आँखें बंद किए हए ही बोला- "क्योंकी मेरे नशीब में यही लिखा है..."

शीतल- "प्लीज... वसीम चाचा ऐसा ऐसा मत बोलिए। आपके नशीब में मेरी चूत है। मैं नंगी बैठी हैं आपके सामने। आप क्यों ऐसा करके खुद को तकलीफ दे रहे और मुझे भी?"

वसीम- "तुम किसी और के नशीब में हो शीतल। तुम जितना मेरे लिए कर रही हो उतना कोई नहीं करेगा। इसके लिए तुम्हारा शुक्रिया। लेकिन मुझे इससे आगे के लिए मजबूर मत करो। किसी के चाहने में कुछ नहीं होता...'

शीतल- "सारी चाहत भले किसी की पूरी ना हो पाई हो। लेकिन समय और हालत के मुताबिक इंसान को जो मिलता है उसी में टलकर खुश होने की कोशिश करता है। मैं मनती हैं की तन्हाई आपकी तकदीर में थी। लेकिन जब मैं यहाँ आई तो आपकी तन्हाई कुछ हद तक तो दूर कर हो सकती थी। लेकिन आपने इसे भी एक मर्ज़ बना लिया..."

वसीम- "शीतल तुम किसी और की अमानत हो। बस यही मेरी मर्ज़ का कारण है। तुम भले ही मुझे अपना जिश्म दे देना चाहती हो, लेकिन वो किसी और की अमानत है। तुम्हारे पति की है। तुम्हारे चूत में उसका वीर्य गिरेगा, तुम उसके वीर्य में माँ बनोगी, तो मैं कैसे अपने वीर्य को तुम्हारे चूत में गिरा द" ।


शीतल इस बात का ता मानती ही थी की उसके बदन पर केवल उसके पति का हक है। लेकिन वा अजीब पेशोपेश में फंसी है। वो वसीम से दूर रहती है तो लगता है की वसीम से चुदवाएगी नहीं, लेकिन वसीम के बारे में सोचती है तो उसका जिस्म वसीम के लिए पेश कर देती है। उसे विकास की बात याद आ गई की सब कुछ ऊपर वाले के हाथ में छोड़ दो और निशचित होकर रहो।

शीतल भला वसीम को अपनी हालत क्या बताती की वो खुद किस मजधार में है? वो उठी और अपने कपड़े देंटने लगी। उसकी नाइटी पे भी वसीम का वीर्य गिर गया था। शीतल ने सिर्फ नाइटी पहन ली और पैंटी ब्रा को हाथ में लेकर नीचे चल दी।

शीतल- "आपको जो समझ में आता है वो करिए, मुझे जो समझ में आता है में कर रही हैं। आपसे बस इतना ही कहूँगी की परेशान मत रहा करिए, और सब ऊपर वाले पे छोड़ दीजिए.. बोलती हुई शीतल नीचे चल दी और वसीम उस हसीन अप्सरा को गाण्ड हिलाकर जाते देखता रहा।

शीतल नीचे आकर सोफे पे लेट गई। उसे अपनी जीभ में अभी भी वसीम के वीर्य का टेस्ट महसूस हो रहा था। बो मदहोश होने लगी। सोचने लगी की- "ठीक ही है, शायद यही सही हैं। वो मुझे चोदना नहीं चाहते और मैं भी उनसे चुदवाना नहीं चाहती। लेकिन बाकी चीज करने में मुझे काई दिक्कत नहीं है, और अब उन्हें भी नहीं होगी।

और अगर कभी ऐसा हुआ की उन्होंने मुझे बोला तो मैं चुदवा लेंगी। विकास बोल हो चुका है और तब मुझे भी कोई ऐतराज नहीं.."

शीतल आज खुद को संतुष्ट महसूस कर रही थी की बिना चुद भी वो वसीम की मदद कर पा रही है। उसकी पतिव्रता धर्म भी निभ रही थी और वसीम की मदद भी हो रही थी। शाम होते-हाते वो परेशान हो गई की आज की बात वो विकास को बताए या नहीं? विकास ने मुझे चुदवाने की पमिशन भी दे दी और जब में मना की की में वसीम चाचा से नहीं चुदवाऊँगी तो उन्होंने मुझे समझाया भी। लेकिन फिर वो कहेंगे की कभी बोलती हो की नहीं चुदवाऊँगी तो कभी चुदवाने पहुँच जाती हो?

बहुत सोचने के बाद शीतल इस नतीजे पे पहुँची की जब वसीम उसे चोदने के लिए तैयार हो जाएंगे तब बता दंगी। लेकिन अगर ऐसा हआ की वसीम चाचा दिन में चोद दिए तो, क्या मैं उन्हें उस वक़्त मना करुंगी। नहीं नहीं, मैं उन्हें मना नहीं कर सकती। चुदवा तो लेंगी ही उस वक्त और शाम में बोल दूँगी की मुझे वसीम चाचा से चुदबाना है और फिर अगले दिन बोल दूँगी की चुदवा ली। शीतल के दिमाग में ये सारा हिसाब किताब चल रहा था।
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Re: Adultery शीतल का समर्पण

Post by 007 »

विकास उसे देखकर मश्करा रहा था। उसे दिन में क्या हुआ ये पता तो था नहीं। उसे लग रहा था की शीतल अभी तक अपनी बात पे कायम है और वसीम से दर रही है। वो शीतल के पास आया और यसए पीछे से पकड़कर कंधे में किस लेता हा बोला- "मेरी जान, इतना मत सोचो। मैंने कहा ना की सब ऊपर वाले में छोड़ दो। वसीम चाचा से ज्यादा तकलीफ में तो तुम हो। मैं अपने आफिस में मकसूद को और बाकी लोगों को दूसरे घर के लिए बोल दंगा कल। तभी तम खुश रह पाओगी और वसीम चाचा भी रिलैक्स हो पाएंगे..."

अब भला शीतल क्या बोलती की घर चेंज मत कीजिए, मैं बिना चर्दै वसीम को सर्विस दे रही है? वो सिर्फ हाँ में सिर हिलाई।

शीतल भी सोचने लगी की- "ये भी ठीक है। ना बो चोदना चाहते हैं ना मैं चुदवाना चाहती हैं। तो जब तक यहाँ हैं तब तक आज की तरह ही चलने देती हैं। फिर जाने के बाद मैं भी रिलैक्स महंगी और बो भी। पता नहीं वसीम चाचा रिलॅक्स हो पाएंगे या नहीं? जाने से पहले तो एक बार उनसे चुदवा ही लेंगी। जब मैं जिद करके बीर्य गिरवा सकती हैं तो चुद भी सकती हैं। यहाँ से जाने से पहले अगर वसीम चाचा ने मुझे चोद लिया तो फिर वो रिलैक्स रह पाएंगे।

अगले दिन शीतल नहाने में थोड़ा ज्यादा टाइम लगाई। उसने अपनी चूत में उग आए हल्के बालों को भी साफ कर लिया और अपनी पैटी ब्रा को गम में ही सूखने दी। विकास को लगा की शीतल अपनी बात में कायम है लेकिन शीतल को अब इसकी जरूरत ही नहीं थी। क्योंकी वसीम का वीर्य अब उसके पैटी बा में नहीं सीधा उसके मह में गिरजा था- उम्म्म्म ... क्या यम्मी टेस्ट था उसका आहह..."


शीतल एक बजने का इंतजार कर रही थी। आज वो शार्टस और टाप पहन हई थी। शीतल पेंटी और ब्रा उत्तार दी थी। वो जानती थी की उसे नहीं जाना है और नंगी हो जाना है तो पैटी ब्रा की क्या जरूरत थी? और कौन सा उसे रोड में जाना है। बीच में कोई उसे देंखेंगा नहीं और जो देखेंगा उसके सामने तो नंगी ही होना है। वसीम के साथ पल बिताने की चाहत में उसके निपल टाइट हो गये थे और टाप के ऊपर से झौंक रहे थे। उसकी चूत तो वसीम के बारे में सोचते ही गीली हो जाती थी।

वसीम के आने की आहट हुई और शीतल का मन हआ की दौड़कर बाहर चली जाए। लेकिन फिर उसे लगा की पहले उन्हें ऊपर जाकर फ्रेश ता हाने देती हैं। बड़ी मुश्किल से शीतल ने 5-7 मिनट गुजारे और फिर ऊपर चल दी। वसीम के घर का दरवाजा बंद देखकर उसे बुरा भी लगा। वो दरवाजा पे नाक की।

वसीम सोचने लगा- "आ गई रंडी.. उसने दरवाजा खोला और शीतल अंदर आ गई और बैंड के पास खड़ी हो गई। वसीम कुछ नहीं बोला और यूँ ही खड़ा रहा। शीतल को लगा था की वसीम उसे इस तरह देखकर खुश होगा
और बाहों में भर लेगा, लेकिन वो तो ऐसे खड़ा था जैसे वो यहाँ क्यों आ गई?

शीतल आगे बढ़ी और वसीम के गलें लग गई और उसे लिप-किस करने लगी।

वसीम में किस में शीतल का साथ नहीं दिया और छूटते ही बोला- "तुम क्यों आ गई यहाँ?"
-
शीतल तुरंत बोली- "आपका वीर्य गिरवानें। आप रोज पहा करते थे ना। आप मुझे सोच करके वीर्य गिराते थे तो अब मेरे साथ करते हुए गिराए.."

वसीम - "प्लीज शीतल, तुम समझो मेरी बात। ये ठीक नहीं है। ये गुनाह है, पाप है...' बोलता हा वसीम चयर पे
जा बैठा।

शीतल झट से उसकी गोद में जा बैठी- "क्या पाप है? ना तो आप मुझे चोद रहे हैं और ना मैं चुदवा रही हैं। मेरे जिएम में मेरे पति का ही हक है और वो तो आप लें नहीं रहे हैं। तो फिर इतना करके तो मैं आपकी मदद कर हो सकती हैं। आप भी बिना मुझे चोदे रिलैंक्स रहेंगे और मैं भी."

वसीम मन ही मन सोचने लगा की. "अगर इतने ही से मन भरना होता तो इतना इंतजार नहीं करता। ना खुद इतना तरसता तरै जिस्म के लिए, ना तुझे तड़पने देता अपने लण्ड के लिए? अब तक तो कई दफा तेरी चूत को अपने वीर्य से भर चुका होता। मुझे तुझे पालतू कुतिया बनाना है। अकेले में नहीं, तेरे पति के सामने। ताकी जब मैं तुझे चोदं तो मेरे या तेरे मन में कोई डर नहीं रहे। मुझे कंडोम पहनने के लिए या चूत में वीर्य ना भरने के लिए ना बोल पाए त..."


वसीम बोला- "अगर तुम इस तरह मेरे साथ करोगी तो फिर मैं खुद को नहीं रोक पाऊँगा शीतल..."

शीतल तुरंत जवाब दी "तो आप रोकतें क्यों हैं? मुझे तो यही समझ में नहीं आता। मैं तो बो की मत राकिए। तभी ना ऐसे आपके पास आती हैं। आप पता नहीं मुझे किस टाइप की औरत समझने लगे होंगे?" शीतल वसीम की छाती को सहलाती हुई उसके जाँघों को सहलाने लगी थी।

वसीम- "क्योंकी तुम किसी और की हो, मेरी नहीं। नाजायज रिस्ते नहीं बनाना चाहता में.."

शीतल वसीम का हाथ पकड़कर टाप के ऊपर से अपने चूची पे रख ली। वसीम ने उसे कस के मसल दिया।
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Re: Adultery शीतल का समर्पण

Post by 007 »

शीतल- "आह्ह... वसीम चाचा, ये नजायज रिस्ता कैसे है? जब मैं खुद आपसे चोदने को कह रही है। विकास को मैं बता चुकी हूँ आपके बारे में और उन्होंने मुझे कह दिया है की मैं आपसे चुदवा सकती हूँ.'

वसीम- "नहीं, मुझे यकीन नहीं हो रहा की वो तुम्हें मुझसे चुदवाने बोल दिया है..."

शीतल वसीम के लण्ड को बाहर कर चुकी थी और हाथ में लेकर सहलाती हां बोली- "मैं सच कह रही हैं। लेकिन आप मुझे चोदना ही नहीं चाहतं और मैं भी सोची की मेरे जिश्म पे मेरे पति का हक है तो वो आपको क्यों दूर लेकिन आप जब भी मुझे चोदना चाहूँ मेरा जिस्म आपका है। मैं आपके लिए हमेशा तैयार हैं..."

वसीम- "तुम झूठ बोल रही हो ना, सिर्फ मेरा दिल रखने के लिए। ताकी मैं तुममें भरोसा करके तुम्हें चोद दूं और तब तुम्हारे हिसाब से मुझे सुकून मिलंगा। लेकिन इस तरह तुम मुझे और तकलीफ दोगी शीतल." कहकर वसीम शीतल को अपनी गोद से उतारते हुए खड़ा हो गया था, और वो थोड़ा गुस्से में भी था।

शीतल- "मैं झठ क्यों बोलेंगी वसीम चाचा? उन्होंने तो मझे उसी दिन सटई को ही बोल दिया था। लेकिन मैं ही फिर बदल गई थी की में अपना जिश्म आपको नहीं दे सकती। अगर मैं उस दिन तैयार र ही आप मुझे चोद चुके होते उनके पमिशन से। विकास बहुत अच्छे हैं, और उन्हें मेरी फीलिंग और मेरे फैसले की कदर है। उसके बाद भी आप मुझे चोद नहीं रहे थे तो मैं सांची की इसी तरह चलने देती हैं। आपको भी राहत मिलेगी और मेरा जिस्म भी मेरे पति के लिए बचा रहेगा... :

वसीम- “उफफ्फ... शीतल, इस तरह मुझे राहत नहीं मिलती। बल्कि मैं और जलता रहता हैं। अगर तुम और तुम्हारा पति मेरी मदद करने के लिए इतनी बड़ी कुर्बानी देने को तैयार हो तो फिर मुझे बन्या पाब्लम है? अगर तुम्हारी और तुम्हारे पति की पमिशन है तो फिर मैं कोई गुनाह नहीं करूँगा तुम्हें चोदकर."

शीतल विकास के सीने से चिपक गई। उसकी चूची वसीम के सीने में दब रही थी।

शीतल- "तो अब आप मुझे चोद सकते हैं ना, तो चाद लीजिए। परे कर लीजिए अपने अपमान। पूरी कर लीजिए अपनी तमन्नाओं का जिन्हें सोचते हए आप मेरे पैटी बा पे वीर्य गिराते हैं। गिरा लीजिए मेरी चूत में वीर्य। अब मत रोकिए खुद को और पूरी तरह मुझे हासिल कर लीजिए.

वसीम में शीतल को कस के पकड़ लिया और उसके होठों को पागलों की तरह चूमने लगा। वो पीछे से शीतल की टाप को ऊपर करता हुआ उसकी नंगी पीठ को सहलाने लगा। वसीम का हाथ पीठ सहलाता हुआ सामनें आया और टाप को सामने से भी उठाकर उसकी चूचियों को बेरहमी से मसलने लगा।

शीतल को बहुत दर्द हो रहा था और वो दर्द से आह ... उह्ह... भी कर रही थी। लेकिन वसीम जैसे पागल हो गया था। शीतल भी उसे गोकी या मना नहीं की। वो नहीं चाहती थी की वसीम रूके या किसी भी तरह उसे कोई कमी लगे। शीतल वसीम की खुशी के लिए अब सारा दर्द सह सकती थी।

वसीम भले ही शीतल के साथ ये सब पागलों की तरह कर रहा था, लेकिन उसका दिमाग उसी तरह शांति से अपने प्लानिंग में लगा था। उसे लगा की चुदबाने के लिए अगर ये गांड झठ बोल रही होगी और उसने अपने पति को मनाया नहीं होगा तो जो वो 5 दिन से बिना चोदे रह रहा है वो तो बेकार हो जाएगा। क्योंकी अगर ये ऐसे चुद जाएगी तो फिर मेगा प्लान 15-20 दिन के लिए टल जाएगा। अभी तो राड़ की चूत पूरी गरम है लेकिन एक बार चुदवाने के बाद फिर से ये पतिवता धर्म और पति की अमानत में सब सोचने लगेगी। नहीं मुझे कन्फर्म करना होगा की विकास का स्टैंड क्या है अभी तक?
अचानक वसीम रुक गया और शीतल से अलग हो गया।
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