Adultery शीतल का समर्पण

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Re: Adultery शीतल का समर्पण

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वसीम शीतल के होठों को चूसने लगा और उसके नंगे बदन का सहलाने नाचने लगा। वसीम में अपना जिस्म मसलवते ही शीतल गरमा हो गई थी। इतने में ही वो गीली हो गई। खड़े-खड़े ही वो शीतल के बदन से मनचाहे तरीके से खेल रहा था। अब में हसीन बदन वसीम का मिल्कियत था। वसीम में शीतल की चूचियों को जोर से पकड़कर मसल दिया, और फिर उसकी गीली चूत में अपनी बीच बाली उंगली घुसड़ दिया। शीतल आहह.. कर दी
और वसीम मुश्कुरा दिया। उसे अदाजा था की शीतल की चूत अभी पूरी तरह गरम होगी।


वसीम ने अपने कपड़े उतार दिए। उसने शीतल का सिर पकड़कर नीचे बैठा दिया। शीतल घुटने के बल बैठकर वसीम का लण्ड चूसने लगी। वो जल्दी-जल्दी चूस रही थी और चाहती थी की वसीम का लण्ड ज्यादा से ज्यादा उसके मुह में आ जाए। शीतल अपने हाथ से भी उसके लण्ड को सहला रही थी और इसमें उसकी चूड़ियां छन छन बज रही थी।


वसीम का लण्ड टाइट होकर तना हुआ था। अचानक वसीम में शीतल के बाल को खींचा और अपना लण्ड बाहर निकाल लिया। शीतल चकित होकर वसीम को देखने लगी की अब जया गुनाह हो गया? वसीम ने शीतल को देखा और शैतानी हँसी हँसते हुए कहा- "मुझे पेशाब लगी है.."

शीतल थोड़ा पीछे हो गई की वसीम बाथरूम जाएगा।

तब वसीम गुस्से में होता हुआ बोला- "डी पीछे क्यों हो गई?"

शीतल घबरा रही थी, बोली- "आप ही ने कहा ना की आपको पेशाब करना है."

वसीम उसके सामने आता हुआ बोला- "तुझं क्या लगता है मैं बाहर जाऊँगा?"

शीतल कुछ समझ नहीं पाई।

वसीम में फिर उसे कहा- "मादरचोद कुतिया रंडी , मैं यहीं पेशाब करेगा और फर्श गंदा नहीं होना चाहिए.."

शीतल तो अभी भी नहीं समझ पाई। फिर उसे लगा की सही है, वसीम नंगे है तो बाहर कैसे जाएंगे। वो कोई बर्तन देखने लगी जिसमें वसीम पेशाब कर सकें। लेकिन शीतल को कोई ऐसा गंदा बर्तन नहीं मिला। तो वो सोची की पानी पीने वाला जग ही दे देती हैं, बाद में पेशाब फेंक कर अच्छे से साफ कर दूँगी। बो उत्तजित हो गई। वो पहली बार किसी बड़े आदमी को पेशाब करते देखने वाली थी। शीतल जग लेने के लिए उठने लगी तो वसीम ने उसे रोक दिया।

वसीम अब शीतल के और सामने आ गया और शीतल को कहा- "कहाँ जा रही हो मेरी 20 रूपये वाली रंडी। मझे तुम्हारे मुँह में मूतना है और तुम्हें उसे पूरा पी जाना है। ऐसा ना हो की फर्श गंदा हो जाए..."

शीतल- "क्या? मेरे मुह में करेंगे और मुझे पीना होगा?"

वसीम ने उसे पूरी तरह से गुस्से में घरा। अब ये शीतल के लिए मुश्किल हालत थी। उसे लगा था की वो प्यार से वसीम का लण्ड अपने हाथों में पकड़कर जग में पेशाब करवाएगी और अच्छे से देखेगी की मर्द कैसे पेशाब करते हैं। वो बच्चों को देखी थी लेकिन कभी किसी बड़े आदमी के लण्ड से पेशाब निकलते नहीं देखी थी। उसने बच्चों को पेशाब करते देखा था, जो अपने हाथों में लण्ड को पकड़कर पेशाब करते थे और इसलिए वो और उत्तेजित थी की वसीम के लण्ड को वो पकड़ लेंगी और वसीम शान में खड़ा होकर जग में पेशाब करेंगा। लेकिन यहाँ तो सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो रहा था।

लण्ड चूसना अलग बात है लेकिन पेशाब मुँह में लेना और उसे पीना तो बहुत गंदा है। शीतल वैसे भी बहुत सफाई पसंद औरत थी। ये वसीम के लण्ड का लालच था जिसकी वजह से वो लण्ड को पकड़कर जग में पेशाब करवाने वाली थी, और वसीम से किया हुआ वादा था जिसकी वजह से वो अपने हाथों से जग को उठाकर पेशाब को टायलेट में फेंक कर जग को साफ करने वाली थी। हालौकी इसके बाद वो अच्छे से नहाती।

शीतल अभी सोच ही रही थी की वसीम ने फिर से उसे डाँटते हुए कहा- "क्या हुआ रांड़, निकल गई वफादारी की हवा की जो जब जहाँ जैसे कहेंगे सब करूँगी । जा तुझसे नहीं होगा। उठ और भाग यहीं से मादरचोद। मुझे पता था की तुम जैसी रंडियां मेरे अरमान खाक पूरा करोगी, इसलिए मैं इन सबसे बच रहा था। तुझे लगा होगा की बस चुदवाकर अपनी चूत की प्यास बुझा लेनी है। मुझे क्या पता था की मेरे अरमान पूरे करने के बहाने से तू अपनी प्यास बुझा रही है। मुझे तो बा 20-30 रूपये वाली रडियां ही ठीक है की अगर उसे बोल दो की मैंह में मतना है और 100 रुपये और दंगा तो झट से मान जाती है। भाग यहाँ से कतिया की बच्ची.."
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: Adultery शीतल का समर्पण

Post by 007 »

शीतल को बहुत बुरा लगा की उसकी बफादारी पेशक किया जा रहा है। वसीम ने उसे अंदर तक नंगी कर दिया था और बात उसके ईगों को बर्दास्त नहीं हुई। सही बात है, वसीम ने तो मुझे पहले ही वार्निंग दे दी थी। मैं अब इन्हें मना नहीं कर सकती। इनके मन में ता सेक्स से जड़ा कोई भी ख्याल आ सकता है। तो क्या अब मुझे ये सब करना होगा। छोः मैं पेशाब पिगी अब? है भगवान... ये कैसी पूरीक्षा है? कोई बात नहीं शीतल, पूरीक्षा ही समझ लें और शुरू हो जा। कोई अच्छी चीज आसानी से थोड़ी मिलती है। वसीम से चुदवाने के लिए ये सब करना होगा। अब तू पीछे नहीं हट सकती। वसीम की मदद करना चाह रही है तो किसी भी कीमत पे करना होगा और तू इसलिए ये सब कर रही है नहीं तो त एक सीधी शरीफ और पतिक्ता औरत है।

शीतल अपने हाथ से वसीम का लण्ड पकड़कर अपने मुंह में डाल ली और बोली- "ठीक है, मुझे मालूम नहीं था की आप मेरे मुँह में पेशाब करना चाहते हैं। कीजिए पेशाब। मैं जो प्रामिस की हैं वो हर हाल में निभाऊँगी। पिलाइए मुझे अपना पैशाब..." और शीतल मुँह खोलकर वसीम के मतने का इंतजार करने लगी।

वसीम अंदर से तो खुश हो गया की तीर निशाने पे लगा, लेकिन वो बहुत टीठ था। उसने अपने लण्ड को बाहर निकाल लिया और बोला- "ना, तुझसे नहीं होगा, मेरी गलती थी और अब से नहीं होगी। तू जा और जितने की तेरे पैंटी ब्रा मैंने जलवाइ उन सबके पैसे ले ले..."

शीतल को और बुरा लगा। शीतल फिर से आगे बढ़ी और वसीम के लण्ड को हाथ से पकड़कर मैंह में सटा ली और बोली "नहीं वसीम, अब नहीं होगा, आप पेशाब करिए, चाहे जो करिए अब मैं कभी मना नहीं करूँगी । बस इस बार माफ कर दीजिए... और वो वसीम के लण्ड में हाथ आगे-पीछे करने लगी और मह में ले लो।

शीतल का मुँह पूरा खुला था और वो वसीम के द्वारा अपने मुँह में मते जाने का इंतजार करने लगी। शीतल आँखें बंद करके मुह पूरा खोलकर तैयार थी उस चीज को अपने गले से पेट में उतारने के लिए जो बहुत गंदी चीज था उसके लिए। वो इस तरह की औरत थी जो बचपन से बाथरूम जाने में पैर धोकर बाहर आती थी और उसे सफाई बहुत पसंद थी।

वसीम भी अब शीतल के मुह में मूतने के लिए तैयार हो गया। वो बहुत उत्तेजित और खुश था की एक पदी लिखी जवान हसीन औरत के मुंह में मतने वाला है। वसीम ने एक हाथ से शीतल के बाल को पकड़ा और दूसरे हाथ से अपने लण्ड को और शीतल के मुँह में सामने रखते हुए उसने पेशाब करना शुरू कर दिया।

पहली तेज धार सीधे शीतल के गले से टकराई और शीतल हड़बड़ा गई और जब तक वो खुद को सम्हालती वसीम का पेशाब सीधा उसके पेट में चला गया। जब तक शीतल उसे रोकती तब तक और पेशाब उसके मुंह में भर गया था। शीतल अब बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी और उसे उबकाई आने वाली थी।

वसीम ने अपने पेशाब का रोक लिया और उसकी नाक को बंद करता हुआ बोला- "पी जा हरामजादी रंडी...

शीतल नाक बंद करने से छटपटाने लगी और सांस लेने के लिए उसे पूरे पेशाब का गटकना पड़ा।

वसीम हँसते हए उसकी नाक को छोड़ दिया और बोला- "बोल बनेंगी मेरी रंडी? कैसा लगा मत पीकर रांड?"

शीतल खुद का चार-पाँच सेकंड में अइजस्ट की और वो कुछ बोलना चाह रही थी लेकिन वो मुँह से बोल नहीं पाई, वो हौंफने लगी थी। शीतल को खुशी थी की जैसे भी हो लेकिन वसीम के पेशाब को मैं पी ली। शीतल अब रुकना नहीं चाहती थी। वा बस ही में सिर हिलाई और अपना मुंह खोल दी।
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Re: Adultery शीतल का समर्पण

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