वसीम- "फिर भी एक बार सोच लो शीतला कहीं ऐसा ना हो की बीच में या बाद में तुम्हें लगे की तुम गलत की
या तुम्हें अफसोस हो? क्योंकी फिर मैं खुद को माफ नहीं कर पाऊँगा। मेरे लिए जीना मुश्किल हो जाएगा.."
शीतल- "बहुत बार सोच ली वसीम चाचा। हर तरह से सोच ली। में अब पूरी तरह से आपको समर्पित हूँ। में अपने आपको आपजे हवाले करती हूँ और मैं विकास की कसम खाकर कहती हूँ की आप मेरे साथ जो भी करेंगे उसमें मेरी और मेरे पति की मंजूरी है, और मैं हर तरह से आपका साथ दूँगी.. शीतल वसीम से अलग होकर दो कदम पीछे और अपने पल्लू को जमीन में गिरा दी, और बोली- "अब आप मेरे साथ जो चाहें कर सकते हैं, में शीतल शर्मा आपका परा साथ देगी..."
वसीम ने आगे बढ़कर शीतल को गले लगा लिया और बोला- "शुक्रिया शीतल, बहत बहुत शुक्रिया.." कहकर वसीम बेड पे बैठ गया और शीतल उसकी गोद में बैठ गई।
शीतल वसीम के गले में छाती में चमनें लगी सहलाने लगी थी।
वसीम बोला- "हाँ... शीतल, अब तुम मेरी हो, पूरी तरह से मेरी, मैं तुम्हें अब पूरी तरह से पा सकता हैं बिना किसी डर के बिना किसी हिचकिचाहट के। लेकिन शीतल, मैं इस लम्हें को जीना चाहता हैं। महसूस करना चाहता हैं। मैं नहीं चाहता की इतना कीमती लम्हा मेरी जिदगी में आए और एक-दो घंटे में खतम हो जाए। मैं तुम्हें पाना चाहता हूँ लेकिन ऐसे नहीं। ऐसे की जैसे तुम मेरी दुल्हन हो और आज हमारी सुहागरात हो। मैं तुम्हें दुल्हन के लिबास में देखना चाहता हूँ और पूरी रात तुम्हारे आगोश में बिताना चाहता हूँ.."
शीतल एक पल के लिए सांची, क्योंकी रात में विकास आ जाएगा लेकिन अभी तुरंत वा बाली की पूरी तरह वसीम का साथ देगी तो वो उसे मना नहीं कर सकती है। वो मुश्कुराते हुए बोली- "जैसा आप कहें। रात में आपकी दुल्हन आपका इंतेजार करेंगी। आज आपको हमारी सुहागरात होगी.."
वसीम खुश होता हुआ शीतल के होठों को कस के चूम लिया और ब्लाउज़ के अंदर हाथ डालकर एक चूची को कस के मसल दिया।
शीतल अचानक हुए इस हमले से हड़बड़ा गई और दर्द से उसके मुह से "आह" निकल गई।
वसीम बोला- "आहह... शीतल में खुद को रोक नहीं पा रहा। मैं बहुत खुश हैं। आज मेरी जिंदगी का सबसे हसीन दिन है... और वो फिर से शीतल के होंठ चूमने लगा और चूची को मसल दिया।
शीतल दर्द बर्दाश्त की और मुश्कुरा दी। वसीम बोला- "उफफ्फ... शीतल अब तुम जाओ यहीं से, नहीं तो मैं पागल हो जाऊँगा। मैंने इतने साल इतने दिन खुद को रोका है तो एक दिन और मुझे खुद को रोकना ही होगा, ताकी मैं अपनी सुहागरात को पूरी तरह से मना पाऊँ...'
सही बात है। अब रोक पाना वाकई मुश्किल था। शीतल भी गोद से उठ खड़ी हुई और आँचल ठीक कर ली। उसकी चूचियों पे वसीम की उंगलियों के निशान छप चुके थे। आज शीतल के परे जिस्म वसीम का निशान लग जाजा था। शीतल की राह में भी वसीम का कब्ज़ा हो जाना था। शीतल चाय का कप उठाई और जाने लगी,
और बोली "शाम में शादी के जोड़े में आपकी दुल्हन आपका इंतजार करेंगी वसीम चाचा.."
वसीम बोला- "अब वसीम चाचा मत कहो । सिर्फ वसीम कहो, मेरे वसीम..."
शीतल खिलखिला कर हँस दी, और बोली- "ठीक है वसीम, शाम को आपकी दुल्हन आपका इंतजार करेंगी..."
शीतल नीचे आ गई। वा बहुत उत्तेजित थी। अच्छी बात तो है। मैं काई रडी थोड़े ही ना है की गई और चुदकर आ गई। इतनी मेहनत के बाद पहली बार वसीम चाचा... नहीं नहीं वसीम। मरे वसीम मुझे चोदने वाले हैं। इस लम्हें को तो यादगार बनाना ही चाहिए। मैं तो बहुत खुशनशिब हूँ की दुबारा सुहागरात मनाने वाली हूँ । मुझे वसीम चाचा उफफ्फ.. वसीम को खुश करना है। सौंप देना है उन्हें खुद को। उन्हें लगना चाहिए की यही उनकी सुहागरात है। लेकिन रात में तो विकास भी आ जाएंगे। अफफ्फ... उनके सामने ऐसे सुहागरात मना पाऊँगी में? मेरे लाख चाहने पे भी मैं वसीम को खुद को पूरी तरह नहीं साँप पाऊँगी।
शीतल वसीम को काल लगाई और बताई- "जैसा तुमने कहा था उसी तरह वसीम चाचा उस लम्हे को मेमोरेबल बनाना चाहते हैं। वो मेरे साथ सुहागरात मनाना चाहते हैं। मैं क्या करूँ? उन्हें ना भी नहीं बोल पाई..
विकास बोला- "ये तो अच्छी बात है। तब उन्हें हर बात याद रहेगी और वो संतुष्ट हो पाएंगे। तुम बस ये ख्याल रखना की कोई कमी ना रह जाए। ऐसा ना हो की तुम्हारी इतनी बड़ी कुर्बानी भी किसी छोटी बात की वजह से बेकार हो जाए। और देखो ना, यहाँ आकर पता चला की कल भी कुछ काम है तो मैं कल ही आ पाऊँगा.."
शीतल को भी लगा की विकास के रहने के बाद वो खुलकर वसीम का साथ नहीं दे पाती। थोड़ी और बातें करने के बाद विकास से गुइ-लक लेते हुए उसने काल काट दिया। वो अपने बार्डरोब से शादी की ड्रेस निकाली जिसे पहनकर वो शादी की थी। डिज़ाइनर लहंगा चोली था वो। लहंगा तो ठीक था, बो चोली को देखने लगी की सही फिटिंग आएगी या नहीं। शीतल अपने पल्लू को नीचे गिराई और ब्लाउज़ को उतारकर चोली पहनकर देखने लगी। उसकी चूची अब बड़ी हो गई थी। साइज 32 इंच से बढ़कर 32डी हो गया था। चोली पूरी तरह से सीने में दब गई थी। वो वापस ब्लाउज़ पहन ली।
शीतल कुछ लिस्ट बनाई और मार्कट आ गई। सबसे पहले वो कुछ-कुछ समान ली और फिर एक टेलर वाले के पास गई। टेलर को वो चोली का नाप सही करने बोली, और थोड़ी कांट छांट करने बाली जिसमें बैंक और नेक थोड़ा और डीप हो जाए।
टेलर ने उससे कहा की इसमें तो वक्त लग जाएगा और चोली खराब भी हो सकती है, आप नई चोली ही ले लीजिए। उसने शीतल को इसी चोली से मिलते जलते कलर की कई चोली दिखाई। एक चोली बिल्कुल मैंच कर रही थी और उसका डिज़ाइन भी बहुत अच्छा था। उसके साथ शीतल ने मैचिंग ट्रांसपेरेंट चुन्नी भी ले लिया। एक बहुत बड़ा कम खतम हो गया था उसका।
शीतल फिर अपने ब्यूटी पार्लर में गई। वहाँ वो हाथ में बाजू तक और पैर में जाँघ तक मेहन्दी लगवाई। मेहन्दी लगाने वाली लड़की ने उसकी कमर पें सामने की तरफ भी टैटू जैसा और पीठ में भी एक डिजाइन बना दिया। कमर पे बना डिजाइन सामने में पैटी लाइन में बना था और पीठ में बना डिजाइन उसकी गर्दन के नीचे और ब्रा के हक के ऊपर बना था। शीतल का गोरा जिस्म उस मेंहन्दी में दमक रहा था। पार्लर वाली को ही बोलकर उसने एक फूल वाले से बात कर लिया जो शाम में उसके बेड को सजा देने वाला था।
शीतल को यहाँ से फ्री होते-होते ही 4:00 बज गये थे। वो घर पहुंची और फूल वाले को काल कर दी। जितनी देर में शीतल खाना खाई की बैड सजाने वाले आ गये। शीतल उन्हें बेडरूम में ले आई और वो लोग सुहागरात की। सेज सजाने लगे। एक तो शीतल वैसे ही बहुत खूबसूरत थी, आज मेकप और मेहन्दी लगने के बाद तो वो चमक रही थी। दोनों बेड सजाते हुए आपस में बातें कर रहे थे। शीतल रूम में देखने जा रही थी की बैंड कैसा सज रहा है की उनकी बातों को सुनकर बो बाहर ही रुक गई और उनकी बातें सुनने लगी।
-
-
सेज सजाने वाला-"कितनी मस्त माल है यार, क्या फिगर है, क्या चिकना बदन है। छुओ तो हाथ फिसल जाए।
बदन इन फूलों के ऊपर मसला जाएगा। इसकी ता चूत में पूरी खुजली मची हुई होगी अभी। पूरी तैयारी करवा रही है अपनी चुदाई की। माल तो ये इतनी मस्त है की इसका नंगी करते ही कहीं झड़ ना जाए इसे चोदने वाला। बेचारी की इतनी मेहनत बेकार हो जाएगी। लेकिन सोच की उसे मजा कितना आएगा जब इसके नंगे बदन को फूलों की सेज में लिटाकर चोदेगा। मुझे तो एक मौका मिले तो सारी जिंदगी की प्यास मिट जाए."
शीतल वहाँ से हट गई और किचेन में खाना बनाने में लग गई। वसीम के आने से पहले उसे पूरी तरह फ्री हो जाना था। वो सोचने लगी- "सही तो कह रहे हैं दोनों। मेरी तो चूत में सच की आग लगी हुई है। अपनी ही चराई करवाने के लिए मैं कितनी बिजी हैं। किसी गैर-मर्द के साथ सुहागरात... ओफफ्फ.. नहीं नहीं अब मुझे ये सब नहीं सोचना चाहिए। वसीम का पूरा हक है मेरे जिश्म पें। आज मैं उनकी हैं, पूरी तरह वसीम की। आज विकास मेरे लिए गैर-मर्द हैं। ऊपर वाला भी तो यही चाहता है, तभी तो विकास आज जी टाउन से बाहर । आज मुझे विकास के बारे में नहीं सोचना है। सिर्फ वसीम ही मेरे हैं आज..."
दोनों लड़के शीतल और वसीम की सुहागरात की सेज सजाकर चले गये। शीतल रात के लिए खाना बना चुकी थी। उसने घड़ी पे नजर डाली तो 6:00 बज चुके थे। अब बस शीतल को तैयार होना था। लेकिन वो साची की "सुबह के बाद वसीम से कोई बात भी नहीं हो पाई है तो एक बार उनसे बात तो कर लें। पूछ ताल की वा कितने बजे आएंगे अपनी दल्हन के पास? पता चला की मैं तैयार ही नहीं हुई और वो आ गये या मैं तैयार होकर बैठी हैं और उन्हें लेट हो रही है। शीतल वसीम को काल लगाई- "हेलो.."
-
वसीम- "हाँ... हेलो..'
शीतल- "वसीम...
वसीम।- "हाँ... मेरी जान, तुम्हारा वसीम ही बोल रहा हूँ..
शीतल मुश्कुरा दी "कैसे हैं वसीम, कब आएंगे अपनी दुल्हन के पास.." बोलती हुई शीतल शर्मा गई और उसकी चूत में एक लहर सी दौड़ पड़ी।
वसीम- "मैं तो कब से बैठा हूँ अपनी दुल्हन को पानं के इंतजार में, तुम जब बोलोगी तब हाजिर हो जाऊँगा.."
-
शीतल खिलखिला कर हँस दी- " आ जाइए ना जल्दी से..."
वसीम- "बस आ रहा है थोड़ी देर में, 8:00 बजे तक आ जाऊँगा। विकास आ गया है क्या?"
शीतल- "नहीं, कल भी उन्हें कम है तो आज वो नहीं आ पाएंगे। आप आइए, 8:00 बजे आपकी दुल्हन आपका इंतजार कर रही होगी.. कहकर शीतल फोन काट दी।
वसीम झूम उठा की विकास नहीं रहेगा।
Adultery शीतल का समर्पण
- 007
- Platinum Member
- Posts: 5355
- Joined: 14 Oct 2014 17:28
Re: Adultery शीतल का समर्पण
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- 007
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- 007
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
- 007
- Platinum Member
- Posts: 5355
- Joined: 14 Oct 2014 17:28
Re: Adultery शीतल का समर्पण
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- 007
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- 007
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
- 007
- Platinum Member
- Posts: 5355
- Joined: 14 Oct 2014 17:28
Re: Adultery शीतल का समर्पण
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- 007
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- 007
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
- 007
- Platinum Member
- Posts: 5355
- Joined: 14 Oct 2014 17:28
Re: Adultery शीतल का समर्पण
विकास के रहने के बाद भी उसे शीतल के साथ सुहागरात तो मनाना था ही लेकिन तब उसे थोड़ी आक्टिंग करनी पड़ती। लेकिन अब वा बिंदास होकर अपने अंदाज में शीतल के गोरे मखमली जिश्म को लूटेगा। आह्ह... मेरी जान शीतल, बहुत तरसा हूँ तेरे लिए और मैंने बहुत तड़पाया है तुझे। बहुत बार तेरे जिस्म को प्यासा छोड़ा है मैंने। लेकिन आज वो सारी प्यास मिटाकर रख दंगा। आज बताऊँगा की मैं क्या चीज हैं? आज बताऊँगा की चुदाई क्या होती है? बस मेरी रांड़, दो घंटे और, फिर तेरा सुनहला बदन मैरी गिरफ्त में होगा आह्ह.."
शीतल के पास दो घंटे थे सजने के लिए वो अपनी सजावट में लग गई। चुदवाने की सजावट में। शीतल पूरी तरह नंगी हो गई और आईने में खुद को देखने लगी- चलो शीतल रानी, सुहागरात मानने के लिए तैयार हो जाओ। उसका पूरा जिशम चिकना तो था ही फिर भी वो चूत, गाण्ड और कांखों के बालों पे हेयर रिमूका कीम अप्लाई कर ली। फिर शीतल अपनी कमर के नीचे चूत, गाण्ड और जांघ एरिया और चूची में फेंशियल मसाज की। नहाते वक्त शीतल अपनी चूत में उंगली कर रही थी। वो अपनी चूत से पानी निकालना चाह रही थी। वा चाहती थी की जब वसीम उसके जिस्म से खेलें तो वो वसीम का भरपूर साथ दे। चूत से पानी निकला हुआ रहेगा तो वो देर तक वसीम का साथ दे पाएगी और वसीम से मिलता सूख महसूस कर पाएगी।
शीतल सोचने लगी की कैसे वसीम उसे चोद रहा है। वैसे तो वसीम के बारे में सोचते ही उसकी चूत गीली हो जाती थी, लेकिन अभी कुछ हो ही नहीं रहा था। तभी साचते-सोचते उसका ख्याल बनने लगे की वसीम बेरहमी से उसके साथ पेश आ रहा है। बो बेरहमी से शीतल के जिस्म को नोचता खसोट ताजा रहा है और उसे गालियां देता जा रहा है- रंडी, मादरचोद, कुतिया, हरामजादी, छिनाल और भी बहुत सारी गालियां। ये सब सोचते ही शीतल की चूत गीली हो गई और उंगली करती हुई वो चूत से पानी निकाल ली। पानी निकलने के बाद उसे खुद में बुरा भी लगा की मैं वसीम में किस तरह चुदवाना चाहती हैं और क्या-क्या सुनना चाहती हैं।
शीतल नहाकर वो अपने रूम में आ गई। नहाने के बाद उसका जिश्म और चमक रहा था। उसे फूल वाले लड़कों की बात याद आने लगी- "जो इस माल का चोदेगा उसे कितना मजा आएगा..." शीतल अपने पूरे जिस्म में चाकलेट फ्लेवर की बाडी लोशन लगाई। फिर नई पैंटी ब्रा निकली, लाल रंग की पैंटी ब्रा डिजाइनर थी और ट्रांसपेरेंट थी। पैंटी ब्रा को पहनने के बाद वो घूम-घूमकर आईने में खुद को देख रही थी। कितनी सेक्सी लग रही हैं मैं। आह्ह... वसीम इस चमकते जिश्म पे आज आपका अधिकार है। इतनी मेहनत तो मैं अपनी ओरिजिनल सुहागरात के लिए भी नहीं की थी, जितनी आपके लिये कर रही हैं। मसल देना मझे, रौंद डालना मेरे जिश्म को, अपने मन में कोई कसर मत छोड़ना मेरे दूल्हे राजा। शीतल चेहरे का मेकप पूरा की और उसके बाद शीतल अपने बालों को सवार ने लगी। आधे घंट लग गये उसे बाल बनाने में।
7:30 बज चुके थे। शीतल लहँगा पहन ली। पहले तो बो नाभि से कुछ नीचे पहनी लहँगा को, जहाँ से नार्मली पहनती थी। लेकिन फिर कुछ सोचकर वो लहँगा को और बहुत नीचे कर ली। उसकी कमर पे बने मेहन्दी का डिजाइन अब साफ-साफ दिख रहा था। फिर वा चोली पहन ली। चोली कंधे के किनारे पे थी और सामने थोड़ा डीप था जिससे क्लीवेज थोड़ा सा दिखाते हुए शीतल को सेक्सी बना रहा था। पीठ पे सिर्फ 2 इंच की पट्टी थी।
शीतल अपनी बा को चोली के अंदर करके हक लगा ली। वा अपने माथे पे चुन्नी रखकर माँग में सिंदूर भरने लगी। फिर उसे लगा की अगर मैं लगाऊँगी तो वो विकास के नाम का होगा। आज ऐसा नहीं होना चाहिए। सोच कर वो सिंदूर नहीं लगाती और मंगलसत्र भी उतारकर रख दी। शीतल परे हाथों में चड़ी पहन ली। अब वो पूरी तैयार थी अपनी सुहागरात के लिए। 8:00 बज चुके थे।
***** *****
शीतल कि दूसरी सुहागरात गैरमर्द वसीम के साथ
शीतल अपनी चुदाई के लिए पूरी तैयार थी। पूरा मेकप और पूरी ज्वेल्लारी में वो बहुत ही हसीन लग रही थी। उसकी धड़कन तेज हो गई थी। वो किचन में जाकर एक उल्लास जूस पी ली थी। अब उसे ठीक लग रहा था। शीतल 8:00 बजने का इंतजार कर रही थी।
ठीक 8:00 बजे वसीम खान ने दरवाजा नाक किया। वो भी नये कुर्ता पायजामा और स्कल कैप में था। आँखों में सरमा और बदन में इत्र लगाया हुआ था वसीम खान। शीतल कौंपते हाथों से दरवाजा खोली। वो अपने घर का नहीं चूत का दरवाजा खोल रही थी वसीम खान के लिए। वसीम शीतल को देखता ही रह गया। शीतल बहुत हसीन थी, लेकिन आज तो वो कयामत टा रही थी। उफफ्फ.. वसीम की आँखें चंधिया गई थी इस बेपनाह हश्न को देखकर।
शीतल के पास दो घंटे थे सजने के लिए वो अपनी सजावट में लग गई। चुदवाने की सजावट में। शीतल पूरी तरह नंगी हो गई और आईने में खुद को देखने लगी- चलो शीतल रानी, सुहागरात मानने के लिए तैयार हो जाओ। उसका पूरा जिशम चिकना तो था ही फिर भी वो चूत, गाण्ड और कांखों के बालों पे हेयर रिमूका कीम अप्लाई कर ली। फिर शीतल अपनी कमर के नीचे चूत, गाण्ड और जांघ एरिया और चूची में फेंशियल मसाज की। नहाते वक्त शीतल अपनी चूत में उंगली कर रही थी। वो अपनी चूत से पानी निकालना चाह रही थी। वा चाहती थी की जब वसीम उसके जिस्म से खेलें तो वो वसीम का भरपूर साथ दे। चूत से पानी निकला हुआ रहेगा तो वो देर तक वसीम का साथ दे पाएगी और वसीम से मिलता सूख महसूस कर पाएगी।
शीतल सोचने लगी की कैसे वसीम उसे चोद रहा है। वैसे तो वसीम के बारे में सोचते ही उसकी चूत गीली हो जाती थी, लेकिन अभी कुछ हो ही नहीं रहा था। तभी साचते-सोचते उसका ख्याल बनने लगे की वसीम बेरहमी से उसके साथ पेश आ रहा है। बो बेरहमी से शीतल के जिस्म को नोचता खसोट ताजा रहा है और उसे गालियां देता जा रहा है- रंडी, मादरचोद, कुतिया, हरामजादी, छिनाल और भी बहुत सारी गालियां। ये सब सोचते ही शीतल की चूत गीली हो गई और उंगली करती हुई वो चूत से पानी निकाल ली। पानी निकलने के बाद उसे खुद में बुरा भी लगा की मैं वसीम में किस तरह चुदवाना चाहती हैं और क्या-क्या सुनना चाहती हैं।
शीतल नहाकर वो अपने रूम में आ गई। नहाने के बाद उसका जिश्म और चमक रहा था। उसे फूल वाले लड़कों की बात याद आने लगी- "जो इस माल का चोदेगा उसे कितना मजा आएगा..." शीतल अपने पूरे जिस्म में चाकलेट फ्लेवर की बाडी लोशन लगाई। फिर नई पैंटी ब्रा निकली, लाल रंग की पैंटी ब्रा डिजाइनर थी और ट्रांसपेरेंट थी। पैंटी ब्रा को पहनने के बाद वो घूम-घूमकर आईने में खुद को देख रही थी। कितनी सेक्सी लग रही हैं मैं। आह्ह... वसीम इस चमकते जिश्म पे आज आपका अधिकार है। इतनी मेहनत तो मैं अपनी ओरिजिनल सुहागरात के लिए भी नहीं की थी, जितनी आपके लिये कर रही हैं। मसल देना मझे, रौंद डालना मेरे जिश्म को, अपने मन में कोई कसर मत छोड़ना मेरे दूल्हे राजा। शीतल चेहरे का मेकप पूरा की और उसके बाद शीतल अपने बालों को सवार ने लगी। आधे घंट लग गये उसे बाल बनाने में।
7:30 बज चुके थे। शीतल लहँगा पहन ली। पहले तो बो नाभि से कुछ नीचे पहनी लहँगा को, जहाँ से नार्मली पहनती थी। लेकिन फिर कुछ सोचकर वो लहँगा को और बहुत नीचे कर ली। उसकी कमर पे बने मेहन्दी का डिजाइन अब साफ-साफ दिख रहा था। फिर वा चोली पहन ली। चोली कंधे के किनारे पे थी और सामने थोड़ा डीप था जिससे क्लीवेज थोड़ा सा दिखाते हुए शीतल को सेक्सी बना रहा था। पीठ पे सिर्फ 2 इंच की पट्टी थी।
शीतल अपनी बा को चोली के अंदर करके हक लगा ली। वा अपने माथे पे चुन्नी रखकर माँग में सिंदूर भरने लगी। फिर उसे लगा की अगर मैं लगाऊँगी तो वो विकास के नाम का होगा। आज ऐसा नहीं होना चाहिए। सोच कर वो सिंदूर नहीं लगाती और मंगलसत्र भी उतारकर रख दी। शीतल परे हाथों में चड़ी पहन ली। अब वो पूरी तैयार थी अपनी सुहागरात के लिए। 8:00 बज चुके थे।
***** *****
शीतल कि दूसरी सुहागरात गैरमर्द वसीम के साथ
शीतल अपनी चुदाई के लिए पूरी तैयार थी। पूरा मेकप और पूरी ज्वेल्लारी में वो बहुत ही हसीन लग रही थी। उसकी धड़कन तेज हो गई थी। वो किचन में जाकर एक उल्लास जूस पी ली थी। अब उसे ठीक लग रहा था। शीतल 8:00 बजने का इंतजार कर रही थी।
ठीक 8:00 बजे वसीम खान ने दरवाजा नाक किया। वो भी नये कुर्ता पायजामा और स्कल कैप में था। आँखों में सरमा और बदन में इत्र लगाया हुआ था वसीम खान। शीतल कौंपते हाथों से दरवाजा खोली। वो अपने घर का नहीं चूत का दरवाजा खोल रही थी वसीम खान के लिए। वसीम शीतल को देखता ही रह गया। शीतल बहुत हसीन थी, लेकिन आज तो वो कयामत टा रही थी। उफफ्फ.. वसीम की आँखें चंधिया गई थी इस बेपनाह हश्न को देखकर।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- 007
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- 007
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
- 007
- Platinum Member
- Posts: 5355
- Joined: 14 Oct 2014 17:28
Re: Adultery शीतल का समर्पण
शीतल वसीम को में देखती हुई देखी तो शर्मा गई और उसकी नजरें झुक गई। वसीम के लिए ता शीतल का ये अंदाज जानलेवा था। वसीम यूँ ही खड़ा रहा तो शीतल एक कदम आगे बढ़कर उसके गले से लिपट गई, और कहा- "ऐसे क्यों देख रहे हैं, मुझं शर्म आ रही है...
वसीम अपने होश में लौटा, और बोला- "मैंने सुना था हरों के बारे में, आज यकीन हो गया की वो होती होगी, सुभान अल्लाह, तुम्हारा हा न तो बेमिशाल है..."
शीतल अपनी तारीफ सुनकर और शर्मा गई और वसीम को कसकर पकड़ ली। वसीम ने भी प्यार से उसकी पीठ पे हाथ फैरा। शीतल वसीम से अलग हई और थोड़ा पीछे हई दरवाजे से और वसीम अंदर आया। वसीम के हाथ में दो प्लास्टिक का पैकेट था। वसीम साफे के पास प्लास्टिक को रखा और उससे एक कामकाडर और उसका स्टैंड निकालने लगा। शीतल उसे देख रही थी।
वसीम स्टैंड पे कमरा फिक्स करने लगा और बोला- "में आज के हर लम्हे को कैद करना चाहता है.." फिर वा शीतल को देखा और बोला- "तुम्हें इस कैमरे से कोई ऐतराज तो नहीं?"
शीतल ना में सिर हिलाई।
वसीम ने कैमरा सेट किया और शीतल के हरन को उसमें कैद करने लगा। फिर वो खुद शीतल के सामने आया और उसके माथे पे चूमा।
शीतल उसके सीने से लग गई और महसूस करने की कोशिश करने लगी की वसीम ही उसका सब कुछ है। फिर वो वसीम का सीधा खड़ा की और टेबल से आरती की थाली उठा लाई। उसने दिया जला लिया था। वो वसीम की आरती उतारने लगी और फिर उसके माथे पे तिलक लगाई और उसपे फल और चावल फेंकी। फिर वो एक दूसरी थाली ले आई, इसमें दो माला था। शीतल एक माला वसीम को दी और दूसरी अपने हाथ में ले ली।
वसीम समझ गया की शीतल क्या चाहती है? ये तो अच्छी बात थी उसके लिए। कैमरा ऑन था और कैमरे में दोनों की तथाकथित शादी रंकाई हो रही थी। उसे सच में खुशी हुई शीतल का समर्पण देखकर।
शीतल- "आप में माला मेरे गले में डालिए..."
वसीम ने उस फलों के हार को शीतल के गले में डाल दिया। फिर शीतल अपने हार को वसीम के गले में डाल दी। फिर शीतल एक और थाली ले आई। वो जब चल रही थी तो छन-छन की आवाज पूरे घर में गँज रही थी। शीतल वो थाली वसीम के सामने कर दी और शर्माती हुई सिर झुका कर खड़ी हो गई। थाली में सिंदूर और मंगलसूत्र था।
वसीम को पहले तो समझ में नहीं आया की क्या करना है? लेकिन फिर उसकी नजर शीतल के माथे में गई जहाँ सिंदूर नदारद था। वसीम समझ गया की क्या करना है लेकिन वो खड़ा रहा।
शीतल. "मैं चाहती हैं की आप ये सिर मेरी माँग में भरें। अगर मैं खुद से लगाती तो वो विकास के नाम का होता। मैं चाहती हैं की मेरी माँग में आज आपके नाम का सिंदूर हो। मुझे अपने रंग में रंग दीजिए वसीम और अपनी दुल्हन बना लीजिए.."
वसीम बहुत खुश हुआ। उसने थाली से चुटकी में सिंदूर उठाया और शीतल की मांगटीका को किनारे करके उसकी माँग में सिर लगा दिया।
शीतल का रोम-रोम सिहर उठा। अब वो वसीम की दुल्हन है, वसीम की बीवी है। अब अगर मैं वसीम के साथ कुछ भी करती हैं तो कुछ गलत नहीं कर रही हैं मैं। अब वसीम का पूरा हक है मेरे पे। अब मुझे कुछ भी सोचने की जलत नहीं है। वसीम अब गैर-मर्द नहीं मेरे पति हैं।
शीतल मंगलसूत्र उठा ली और थाली को रख दी। बा मंगलसूत्र को फैलाकर वसीम के सामने कर दी। वसीम ने मंगलसूत्र शीतल के हाथ में ले लिया और उसके गले में पहना दिया। शीतल वसीम के सीने में लग गई। अब वो महसूस कर रही थी की वसीम ही उसका सब कुछ है। वसीम ने शीतल के माथे पे चूमा और प्यार से उसकी पीठ और माथे पे हाथ फेरने लगा। इस वक्त दोनों के दिल की भावनाएं सच्ची थी।
शीतल थोड़ी देर बाद वसीम से अलग हुई और उसे साफा पे बिठाकर खुद किचेन में चली गई। बा छन-छन करती हई बापस लौटी तो उसके हाथ में एक और थाली थी जिसमें दो ग्लास थे। शीतल उसमें से एक ग्लास उठाकर वसीम को दी जिसमें दूध भरा हुआ था। वसीम की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उसने खुद इतना उम्मीद नहीं किया था। वो दूध पी लिया तो शीतल दूसरे ग्लास से उसे पानी दी। वसीम ने पानी पी लिया और उलास नीचे रख दिया। उसने एक हाथ से शीतल का एक हाथ पकड़ लिया था।
वसीम ने पाकेट में हाथ डाला और एक पेपर निकाला। उसने एक हाथ में ही पेपर को नीचे गिरा दिया और अब उसके हाथ में सोने का कंगन था। उसने दोनों कलाइयों में कंगन पहना दिया। अब शीतल बहुत खुश थी। उसे भी इसकी उम्मीद नहीं थी। एक औरत को जेवर से बहुत प्यार होता है। एक बार वो सोची की मना कर दें, लेकिन फिर सोची की क्यों मना करे? वसीम उसके पति हैं और उनका पूरा हक है और मेरा भी हक है उनसे तोहफा लेने का।
वसीम आगे बढ़ा और शीतल के कंधे को पकड़कर अपने सीने से लगा लिया और शीतल शर्माकर उसके सीने में लिपट गई। वसीम ने शीतल का चेहरा ऊपर किया और उसके फूल से नाजुक होठों पे एक हल्का सा चुंबन लिया। शीतल शर्मा शर्माकर एई-मुई की तरह सिमट गई और वसीम का लण्ड टाइट हो गया। वसीम ने कैमरे को बेडरूम की तरफ मोड़ दिया और फिर शीतल की चुनरी को नीचे गिरा दिया और उसे गोद में उठा लिया और चलता हुआ बेडरूम में आ गया।
वसीम रूम देखकर झम उठा। इसी बेड पे वो शीतल के बेपनाह हश्न के मजे लेगा। उसने शीतल को दरवाजे में ही नीचे उतार दिया और फिर कमरा स्टैंड को लाकर रूम में बैंड के एक कोने में लगाकर ऑन कर दिया।
वसीम अपने होश में लौटा, और बोला- "मैंने सुना था हरों के बारे में, आज यकीन हो गया की वो होती होगी, सुभान अल्लाह, तुम्हारा हा न तो बेमिशाल है..."
शीतल अपनी तारीफ सुनकर और शर्मा गई और वसीम को कसकर पकड़ ली। वसीम ने भी प्यार से उसकी पीठ पे हाथ फैरा। शीतल वसीम से अलग हई और थोड़ा पीछे हई दरवाजे से और वसीम अंदर आया। वसीम के हाथ में दो प्लास्टिक का पैकेट था। वसीम साफे के पास प्लास्टिक को रखा और उससे एक कामकाडर और उसका स्टैंड निकालने लगा। शीतल उसे देख रही थी।
वसीम स्टैंड पे कमरा फिक्स करने लगा और बोला- "में आज के हर लम्हे को कैद करना चाहता है.." फिर वा शीतल को देखा और बोला- "तुम्हें इस कैमरे से कोई ऐतराज तो नहीं?"
शीतल ना में सिर हिलाई।
वसीम ने कैमरा सेट किया और शीतल के हरन को उसमें कैद करने लगा। फिर वो खुद शीतल के सामने आया और उसके माथे पे चूमा।
शीतल उसके सीने से लग गई और महसूस करने की कोशिश करने लगी की वसीम ही उसका सब कुछ है। फिर वो वसीम का सीधा खड़ा की और टेबल से आरती की थाली उठा लाई। उसने दिया जला लिया था। वो वसीम की आरती उतारने लगी और फिर उसके माथे पे तिलक लगाई और उसपे फल और चावल फेंकी। फिर वो एक दूसरी थाली ले आई, इसमें दो माला था। शीतल एक माला वसीम को दी और दूसरी अपने हाथ में ले ली।
वसीम समझ गया की शीतल क्या चाहती है? ये तो अच्छी बात थी उसके लिए। कैमरा ऑन था और कैमरे में दोनों की तथाकथित शादी रंकाई हो रही थी। उसे सच में खुशी हुई शीतल का समर्पण देखकर।
शीतल- "आप में माला मेरे गले में डालिए..."
वसीम ने उस फलों के हार को शीतल के गले में डाल दिया। फिर शीतल अपने हार को वसीम के गले में डाल दी। फिर शीतल एक और थाली ले आई। वो जब चल रही थी तो छन-छन की आवाज पूरे घर में गँज रही थी। शीतल वो थाली वसीम के सामने कर दी और शर्माती हुई सिर झुका कर खड़ी हो गई। थाली में सिंदूर और मंगलसूत्र था।
वसीम को पहले तो समझ में नहीं आया की क्या करना है? लेकिन फिर उसकी नजर शीतल के माथे में गई जहाँ सिंदूर नदारद था। वसीम समझ गया की क्या करना है लेकिन वो खड़ा रहा।
शीतल. "मैं चाहती हैं की आप ये सिर मेरी माँग में भरें। अगर मैं खुद से लगाती तो वो विकास के नाम का होता। मैं चाहती हैं की मेरी माँग में आज आपके नाम का सिंदूर हो। मुझे अपने रंग में रंग दीजिए वसीम और अपनी दुल्हन बना लीजिए.."
वसीम बहुत खुश हुआ। उसने थाली से चुटकी में सिंदूर उठाया और शीतल की मांगटीका को किनारे करके उसकी माँग में सिर लगा दिया।
शीतल का रोम-रोम सिहर उठा। अब वो वसीम की दुल्हन है, वसीम की बीवी है। अब अगर मैं वसीम के साथ कुछ भी करती हैं तो कुछ गलत नहीं कर रही हैं मैं। अब वसीम का पूरा हक है मेरे पे। अब मुझे कुछ भी सोचने की जलत नहीं है। वसीम अब गैर-मर्द नहीं मेरे पति हैं।
शीतल मंगलसूत्र उठा ली और थाली को रख दी। बा मंगलसूत्र को फैलाकर वसीम के सामने कर दी। वसीम ने मंगलसूत्र शीतल के हाथ में ले लिया और उसके गले में पहना दिया। शीतल वसीम के सीने में लग गई। अब वो महसूस कर रही थी की वसीम ही उसका सब कुछ है। वसीम ने शीतल के माथे पे चूमा और प्यार से उसकी पीठ और माथे पे हाथ फेरने लगा। इस वक्त दोनों के दिल की भावनाएं सच्ची थी।
शीतल थोड़ी देर बाद वसीम से अलग हुई और उसे साफा पे बिठाकर खुद किचेन में चली गई। बा छन-छन करती हई बापस लौटी तो उसके हाथ में एक और थाली थी जिसमें दो ग्लास थे। शीतल उसमें से एक ग्लास उठाकर वसीम को दी जिसमें दूध भरा हुआ था। वसीम की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उसने खुद इतना उम्मीद नहीं किया था। वो दूध पी लिया तो शीतल दूसरे ग्लास से उसे पानी दी। वसीम ने पानी पी लिया और उलास नीचे रख दिया। उसने एक हाथ से शीतल का एक हाथ पकड़ लिया था।
वसीम ने पाकेट में हाथ डाला और एक पेपर निकाला। उसने एक हाथ में ही पेपर को नीचे गिरा दिया और अब उसके हाथ में सोने का कंगन था। उसने दोनों कलाइयों में कंगन पहना दिया। अब शीतल बहुत खुश थी। उसे भी इसकी उम्मीद नहीं थी। एक औरत को जेवर से बहुत प्यार होता है। एक बार वो सोची की मना कर दें, लेकिन फिर सोची की क्यों मना करे? वसीम उसके पति हैं और उनका पूरा हक है और मेरा भी हक है उनसे तोहफा लेने का।
वसीम आगे बढ़ा और शीतल के कंधे को पकड़कर अपने सीने से लगा लिया और शीतल शर्माकर उसके सीने में लिपट गई। वसीम ने शीतल का चेहरा ऊपर किया और उसके फूल से नाजुक होठों पे एक हल्का सा चुंबन लिया। शीतल शर्मा शर्माकर एई-मुई की तरह सिमट गई और वसीम का लण्ड टाइट हो गया। वसीम ने कैमरे को बेडरूम की तरफ मोड़ दिया और फिर शीतल की चुनरी को नीचे गिरा दिया और उसे गोद में उठा लिया और चलता हुआ बेडरूम में आ गया।
वसीम रूम देखकर झम उठा। इसी बेड पे वो शीतल के बेपनाह हश्न के मजे लेगा। उसने शीतल को दरवाजे में ही नीचे उतार दिया और फिर कमरा स्टैंड को लाकर रूम में बैंड के एक कोने में लगाकर ऑन कर दिया।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- 007
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- 007
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>