Adultery शीतल का समर्पण

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Re: Adultery शीतल का समर्पण

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सुबह शीतल चाय लेकर आई और विकास को जगाई। विकास तैयार होकर आफिस चला गया। आफिस जाते ही उसने मकसूद को बुला लिया। मकसद तो विकास का ही इतंजार कर रहा था। मकसद वसीम का सिखाया हुआ बताने लगा की वसीम बहुत शरीफ इमानदार और भावनाओं में बहने वाला आदमी है। अपनी बीवी की मौत के बाद वो बेहद ही चुप हो गया और निजी जिंदगी जीने लगा। शीतल के मन में वसीम के लिए और आदर सम्मान उम्रड़ पड़ा।

विकास के जाने के बाद शीतल वसीम के मोबाइल में फोन लगाने लगी, लेकिन मोबाइल स्विच-आफ आ रहा था। बहुत देर तक वो काल लगाती रही लेकिन फान नहीं लगा। शीतल दोपहर का इंतेजार करने लगी की हमेशा की तरह वसीम घर आएं। एक बज गये लेकिन वसीम आज भी घर नहीं आया। शीतल फिर से काल लगाने लगी, जब वसीम का काल नहीं लगा ता विकास को काल लगाई।

विकास ने भी कहा- "मैं बहुत दँदा लेकिन वसीम नहीं मिले..."

शाम में विकास जब वापस आया तो शीतल और विकास ने कई जगह फोन किया और पता किया। लेकिन वसीम का कोई पता नहीं चला। शीतल विकास से गुस्सा भी हो रही थी क्योंकी में पूरी तरह उसी की गलती थी।

शीतल का बिल्कुल मन नहीं लग रहा था। वसीम यहाँ अकेला रहता था, इसलिए शीतल के अलावा और कोई परेशान नहीं था। लेकिन भला शीतल का दर्द कौन जाने, जो तन और मन से वसीम की रांड बन चुकी थी। उसे पहला तो ये दुख था की वसीम जैसे भले इनसेन के साथ गलत हुआ, और दूसरा में दुख था की अब उसकी चूत हमेशा के लिए प्यासी रह जाएगी। लेकिन उसकी चूत प्यासी रहने के लिए नहीं बनी थी। उसकी चूत में तो लण्डों का मेला लगना था।

वसीम का अगले दिन भी कोई पता नहीं चला। उसकी दुकान भी बंद थी और फोन भी नहीं लग रहा था। शीतल की तो जैसे दुनियां ही उजड़ गईथी। वो ना ता खा पा रही थी, ना ही सो पा रही थी। उसे यही डर सता रहा था

की कहीं वसीम में कुछ कर ना लिया हो। ये सब उसी की गलती थी। उसे यहाँ आना ही नहीं चाहिए था। : इस दनियां में ही नहीं आना चाहिए था। उसकी वजह से एक सीधे साधे इंसान की जिंदगी बर्बाद हो गई। उसका मन हुआ की वो भी खुद को मार लें।

विकास ने उसे बहुत समझाया था की वसीम चाचा को कुछ नहीं हुआ है और वो जरूर आएंगे। शीतल की हालत और वसीम के बारे में जानकार विकास बहुत कुछ सोच चुका था।

विकास का प्रमोशन हो चुका था और उसे सोमवार से दूसरी जगह जाटन भी करना था। ये बड़ी बात थी उसके लिए लेकिन शीतल इतनी परेशान थी की उसने ये बात शीतल को बताया ही नहीं था। विकास ने आफिस से एक हफ्ते की छुट्टी ले लिया था और अगले सोमवार से जोयिन करने वाला था। उसने सोचा था की बीच में मौका पाते ही वो शीतल को बता देगा, और फिर हम लोग इस शहर को छोड़कर चले जाएंगे।

आज सट. था। विकास ने मकसूद को काल लगाया और अपने घर बुला लिया। मकसूद उछलता कूदता हुआ विकास के घर आया की शीतल को देखने का मौका मिलेगा। शीतल बहुत बदहवास सी हालत में थी। विकास मकसूद को लेकर वसीम के गाँव जाने लगा, जो लगभग 200 किलोमीलीटर दूर था।

शीतल जब वो लोग जाने लगे तो मकसूद का बोली- "प्लीज... मकसद जी, उन्हें कहीं से भी टूट लाइए। कहीं से भी उनका पता लगाइए। फिर आप जो माँगेंगें मैं सब दूँगी । जितना पैसा कहेंगे सब दूँगी..."

मकसूद बोला- "घबराइए मत मेडम, उसे कुछ नहीं होगा। मैं जानता हूँ वो बहुत शख्त जान है, उसे कुछ नहीं होगा। कहाँ बैठा होगा, दो-चार दिन होंगे सही सलामत लौट आएगा। जब वो छोटा था तब भी इसी तरह करता था। माँ बाप से झगड़ा किया या भाई से झगड़ा किया और घर से भाग गया और फिर चार-पाँच दिन बाद वापस आ गया। आप बिल्कुल भी मत घबराईए। हम लाग उसे ढूँट लेंगे.."

शीतल मकसूद की बात सुनकर थोड़ी खुश हुई, और बोली- "आपके मुँह में घी शक्कर मकसूद। अगर आपकी बात सच निकली और वो सही सलामत घर आ गये तो आपका मुँह में मिठाई और पैसे से भर दूँगी..."

वसीम को गये तीन दिन बीत गये थे, और उसका कोई पता नहीं था। इन तीन दिनों में विकास बहुत परेशान हो चुका था। वो हर जगह टूट चुका था वसीम को। यहाँ तक की उसके गाँव भी जा चुका था, और उसमें उसका साथ दे रहा था मकसद जो विकास को हर जगह ले जा रहा था लेकिन उस होटेल में नहीं ले जा रहा था। विकास को ये डर भी सता रहा था की अगर वसीम नहीं मिला और उसे कुछ हो गया तो कहीं ऐसा ना हो की लोग उसी में शक करने लगे।
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Re: Adultery शीतल का समर्पण

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Re: Adultery शीतल का समर्पण

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विकास ने अब फैसला ले लिया था की कल तक अगर वसीम का कुछ पता नहीं चला तो वो पोलिस में कंप्लेन करा देगा।

मकसद विकास के साथ की सारी रिपोर्टिंग वसीम को करता था। विकास के ट्रांसफर की बात मकसद को पता नहीं थी। लेकिन उसने पोलिस कंप्लेंट वाली बात वसीम को बता दिया।

वहस्पतिवार को 12:00 बजे से वसीम गायब था। आज सनडे आ गया था। विकास इस हफ्ते बहुत परेशान रहा था। उसने सोचा की इन सब परेशानियों से मुक्ति पाने का सबसे आसान तरीका है यहाँ से चलें जाना। फिर ना वसीम होगा और ना उसका दर्द। शीतल भी नई जगह जाकर फेश हो जाएगी। उसने इसी सोमवार को नये शहर में जोयिन करने का निर्णय किया।

सुबह नाश्ता करने के बाद शीतल मायूस सी बैठी हुई थी।

विकास उसके बगल में गया और उसके कंधे पे हाथ रखता हुआ उसे प्यार से बोला- "तुम्हें एक बड़ी खबर देनी है, लेकिन तुम्हारी उदासी देख कर मैं तुम्हें बता नहीं पा रहा है."

शीतल जबरदस्ती की हँसी हँसते हुए बोली- "बोलो ना.."

विकास ने उसे सब कुछ बताया और समझाया।

शीतल बोली- "ये तो बहुत अच्छी बात है."

उन दोनों के बीच में निर्णय हुआ की विकास कल ही जोयिन कर लेगा और फिर जल्दी से रगम ट्रॅटकर फिर शीतल भी वहीं शिफ्ट हो जाएगी। विकास में उससे कहा भी वो चाहे तो तब तक विकास के घर या अपने मायके जा सकती है। लेकिन शीतल ने मना कर दिया। उसे पूरी उम्मीद थी की वसीम जरूर आएगा और इसलिए वो ना तो किसी को यहाँ बुलाने के लिए राजी हुई और ना ही कहीं जाने के लिए। विकास को कल जोयिन करना था तो उसे आज ही शाम में निकलना पड़ता, क्योंकी वा जगह लगभग 250 किलोमीटर दर थी।

विकास अपनी पैकिंग करने लगा और शीतल उसकी हेल्प करने लगी। वसीम का आज भी कुछ पता नहीं चला। विकास ने एक बार मकसूद का काल किया।
लेकिन मकसूद का वही जवाब था- "सर वो बहुत हरामी है। आप बिल्कुल परेशान मत हो। वो किसी जगह पे छिपा बैठा हुआ होगा और जब उसका मूड ठीक होगा तो वो अपने आप आ जाएगा। आप उसके लिए परेशान मत होइए और पोलिस बालिस के पास जाने की कोई ज़रूरत नहीं है। वो बचपन से इसी तरह करता आ रहा है।

आप लोग बिंदास रहिए."

शाम में शीतल भी विकास को बस स्टैंड पहुँचाने चल दी। सट. तक शीतल को अकेले रहना था। विकास को ऐसी हालत में शीतल को छोड़कर जाने का बिल्कुल मन नहीं था, लेकिन उसका जाना भी बेहद जरूरी था।

वापस लौटते वक्त शीतल वसीम की दुकान की तरफ चली गई। दुकान बंद थी। शीतल ने कार रोक दी और इधर-उधर देखने लगी। वो पहले भी विकास के साथ यहाँ वसीम के बारे में पूछने आ चुकी थी और शीतल जैसी अप्सरा को भला कौन भूल सकता है।

एक 15 साल का लड़का शीतल के पास आया और बोला- "आप वसीम खान को टूट रही हैं ना?"

शीतल खुश हो गई, और बोली- "हाँ, तुम्हें पता है वो कहाँ है? तुमने देखा है उन्हें?"
-
बो लड़का कुछ बोलता उससे पहले ही शीतल बोल पड़ी. "मुझे बताओ उनके बारे में। मैं तुम्हें पैसे दूँगी..." बोलती हुई शीतल अपने पर्स से 500 रूपये का नोट निकाल ली।

वो लड़का ₹500 का नोट देखकर खुश हो गया और शीतल को उस होटेल का नाम और अड्रेस बता दिया।

शीतल उसे 500 का वो नोट दे दी और बोली- "मेरे साथ चलोगे वहाँ तक? मैं और पैसे दूंगी। बहुत पैसे..."

लड़के के मन में लालच आ गया लेकिन फिर भी उसने मना कर दिया। और बोला- "नहीं नहीं, अब बात हो गई है। रात में उधर कोई नहीं जाता। आप कल सुबह आना मैं आपको ले चलेगा..."

शीतल उसे समझाई और लालच भी दी लेकिन उसने मना कर दिया और बताया- "शाम होने के बाद वहाँ जाना ठीक नहीं रहता। अमीर और लड़की लोगों के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। सुबह आना तब मैं आपको ले चलूँगा..."

शीतल पेपर पे होटेल का नाम, अइंस और लड़के का नाम लिख ली और वहाँ से चल दी। अब भला उसे चैन कहाँ था? वो सुबह तक का इंतेजार कैसे कर सकती थी? उसने मकसूद को काल लगाया लेकिन उसे फोन लगा ही नहीं। शीतल अकेली जाने का फैसला की, लेकिन एक तो उसे इस शहर के बारे में कुछ पता नहीं था और दूसरी बात ये की ऐमें रात में वो कहीं अंजान गास्तों पे इधर-उधर भटकेगी। उसे वसीम में तो गुस्सा भी आ रहा
था और मकसूद पे भी गुस्सा आ रहा था। वो खीझ गई थी और फिर मन मसोस कर घर आ गई।

आज शीतल को अकेली रहना था। खाना बनाकर गई थी वो तो टीवी देखते-देखते खाना खाने लगी। लेकिन जा तो उसे टीवी देखने में मन लग रहा था और ना ही खाने में। वो फिर से मकसद को काल करने के लिए फोन उठाई तो देखी की विकास का मेसेंज़ था। वो मेसेज़ पढ़ने लगी।
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Re: Adultery शीतल का समर्पण

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विकाह- "आई आम मारी शीतल। कोशिश करना की मुझे माफ कर सको। ये मेरी गलती थी। तुमनें वसीम चाचा को अपना सब कुछ दिया, लेकिन मेरी वजह से सब बर्बाद हो गया। तुमने इतनी मेहनत की की उन्हें खुशी मिले, लेकिन मैंने उन्हें और ज्यादा गम में धकेल दिया। उस दिन जो कुछ भी हुआ शीतल मरे बहक जाने की बजह से हुआ। मैं ना जानें क्या-क्या सोच रहा था। लेकिन मैं अब अपने फैसले में कायम हैं। तुम अभी भी वसीम चाचा को अपना जिश्म पेश कर सकती हो, और तुम्हें मेरी तरफ से इसकी इजाजत है। एक बार की नहीं सौ बार की इजाजत है। मैंने तुम्हारे मोबाइल में एक मेसेज़ काई कर दिया है। तुम्हें अपना निर्णय लेने में कोई परेशानी ना हो इसलिए मैंने तुम्हें अपने मन की बात बता दिया। मेरी वजह से वसीम चाचा पता नहीं कहाँ चलें गये हैं। लेकिन यकीन है की वो आएंगे जरूर.."

शीतल कार्डिंग ट्रॅदने लगी और सुनने लगी। शीतल को मन नहीं लग रहा था। बो रूम में सोने आ गई। वो अपने सारे कपड़े उतार दी। शीतल ने आज वही पैटी पहनी हुई थी जिसमें उसने पहली बार वसीम को अपना बीर्य गिराते देखा था। वो उसी पैंटी को पहनें बेड पे लेटी हुई वसीम को याद करती रही। शीतल मायूस सी लेटी हुई थी और वसीम के साथ बिताए पलों को याद कर रही थी। वो बहुत परेशान थी की पता नहीं वसीम उस होटल में हैं या नहीं?

फिर वो अपने मोबाइल में वसीम की पिक देखने लगी और सोचने लगी- "आहह... वसीम आप क्यों चले गये?

अभी आप होते तो आपका ये मोटा लण्ड फिर से मेरी चूत के अंदर होता। आ जाइए ना वसीम प्लीज... अपनी चंडी के लिए आ जाइए। आपको अगर जाना ही था तो मुझे भी साथ ले चलतें। कम से कम रोज चार-पौंच बार आपसे चुदवाती तो। अब ये चूत आपके लण्ड के लिए ही है। अब अगर इसे आपका लण्ड नहीं मिला तो किसी का नहीं मिलेगा। विकास को भी नहीं। उसी की वजह से आप मुझसे दूर हुए हैं, तो उसे भी मुझसे दूर ही रहना होगा..."

शीतल अब अपनी चूत में उंगली करने लगी थी- "आहह... वसीम बस उस लड़के ने सच कहा हो मुझसे। कल सुबह मैं आपके सामने हाऊँगी। आप मुझसे भाग नहीं सकते। फिर आपकी मर्जी हो या ना हो, आपको मुझे चोदना ही होगा। मेरी चूत को अपने बीर्य से भरना ही होगा आहह.." फिर शीतल अपनी चूत में पानी निकालकर नंगी ही सो गई।
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Re: Adultery शीतल का समर्पण

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