Thriller कांटा

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Re: Thriller कांटा

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लेकिन उस वक्त वह शांत थी और उसके चेहरे के जर्रे-जर्रे पर छाई वह शांति किसी गुजर जाने वाले तूफान के बाद की शांति को ताजा कर रही थी और वह एक जबरदस्त कशमकश के हवाले मालूम पड़ती थी।

जतिन और कोमल ने भले ही सुगंधा को पहली बार देखा
था। लेकिन उसका नाम उनके लिए अजनबी नहीं था और अजय की जिंदगी में उसकी अहमियत से भी वे बखूबी वाकिफ थे।
सुगंधा को उस हाल में देखकर अजय मन ही मन तड़प उठा। क्या हालत बना ली थी उस लड़की ने अपनी।

“सुगंधा।” वह विवशता से अपने होंठ काटता हुआ बोला "तुम यहां?"

“क्यों? क्या मुझे यहां नहीं आना चाहिए था?” सुगंधा के होंठ कंपकंपाये। वह शिकायत भरे स्वर में बोली।

“न...नहीं। यह तो मैंने नहीं कहा।"

"मुझे पहले से ही तुम्हारे पर संदेह था पार्टनर ।” सुगंधा बोली “इसीलिए मैंने तुम्हें टोका भी था। लेकिन तुमने मुझसे झूठ बोला।”

“आ...ऑय एम सॉरी सुगंधा।” अजय का सिर झुक गया "लेकिन मैंने जो किया, उस पर मुझे जरा भी अफसोस नहीं है। मैंने अपना अतीत आज तक तुमसे छुपाकर रखा था। लेकिन मेरे जीने का मकसद केवल बदला था इंतकाम था। जानकी लाल इंसान नहीं शैतान था। जिसने अकेले मेरे परिवार को ही बल्कि ..."

“म...मगर मेरा मकसद तो तुम ही थे पार्टनर ।” सुगंधा ने झटके से सिर उठाया और उसकी बात बीच में ही काटकर बोली “केवल तुम।"

“आ..ऑय एम सॉरी सुगंधा।” अजय के स्वर में अफसोस का पुट आ गया था “कभी-कभी ना चाहते हुए भी इंसान के साथ ज्यादती हो जाती है। लेकिन तुम्हें इरादतन मैंने चोट नहीं पहुंचाई।"

“तुम्हारे ऊपर एक बहुत ही संगीन इल्जाम है पार्टनर, जिसकी तुम्हें बहुत लम्बी सजा मिलेगी।”

“म..मुझे किसी सजा का अफसास नहीं है सुगंधा। आज मैं अपने आपको बहुत हल्का महसूस कर रहा हूं। हां, तुम्हारे साथ जो हुआ उसका मुझे जरूर अफसोस है।"

“तुम्हारे अफसोस करने भर से सब ठीक हो जाएगा पार्टनर? मेरा प्यार मुझे वापस मिल जाएगा।"

“किसी एक इंसान पर जाकर दुनिया खत्म नहीं हो जाती सुगंधा। यह दुनिया बहुत बड़ी है और यह कभी खत्म नहीं होने वाली। अब तुम्हें अपना आइंदा रास्ता खुद तलाश करना होगा। मैं तुम्हें अभी इसी वक्त से आजाद करता हूं, मगर तुम्हें खोने का गम मुझे हमेशा रहेगा।” जतिन और कोमल चौंककर अजय को देखने लगे थे। कितनी आसानी से वह कितनी बड़ी बात कह गया था।
सुगंधा उसे देखती रह गई।

अजय ने उसकी तरफ से चेहरा घुमा लिया और सुगंधा की तरफ सलाखों से पीठ टिकाकर अपने दर्द को पीने की कोशिश करने लगा।

"चलो अच्छा ही हुआ कि तुमने मुझे खुद आजाद कर दिया पार्टनर।” सहसा सुगंधा बोली। उसके लहजे में इस बार एक अजीब सी कठोरता समाई हुई थी “वैसे सच पूछो तो तुम्हारे पास अब और कोई रास्ता भी नहीं था।"

अजय वापस सुगंधा की ओर पलटा। कोमल और जतिन भी आश्चर्य से सुगंधा की तरफ देखने लगे थे।

“मुझे आगे क्या करना है, मैं सोचकर ही यहां आयी हूं पार्टनर।" सुगंधा अपने एक-एक शब्द पर जोर देती हुई बोली “और उसे तुम्हें बताने में मुझे ऐतराज नहीं है। मैं भले ही तुम्हारा पहला प्यार नहीं थी लेकिन तुम मेरा पहला प्यार थे।

और पहला तो पहला प्यार होता है, उसे भुलाना आसान नहीं होता। अगर मैं इस शहर में इस मुल्क में रही तो तुम्हें भुला नहीं पाऊंगी, इसीलिए मैंने यह शहर और यह मुल्क छोड़ने का फैसला कर लिया है।"

"क...क्या मतलब?"

“मैं यह मुल्क छोड़कर जा रही हूं पार्टनर । अमेरिका वाली मेरी नौकरी का ऑफर अभी मेरे लिए खुला है, जो मेरे बचपन का सपना था। मेरा पासपोर्ट-वीजा तैयार है। म... आज शाम की फ्लाइट से यूएसए जा रही हूं।" वह एक पल लिए रुकी, फिर उसने आगे जोड़ा “हमेशा-हमेशा के लिए।”
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Re: Thriller कांटा

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अजय के होठों से बोल न फूट सका। वह भौंचक्का सा सुगंधा को देखता रह गया। कितनी जल्दी और कितना माकूल रास्ता खोज लिया था उसने अपने लिए।

“म...मैं तुम्हें भूलने की कोशिश करूंगी।” सुगंधा ही बोली “जो कि मेरे लिए आसान नहीं होगा, लेकिन जो तुम्हारे लिए बहुत आसान होगा। आखिर पहले भी तो तुम किसी को भुला चुके हो आलोका को।”


अजय की जुबान तालू से जा चिपकी। उसके जेहन में एक भयानक हलचल मच गई थी।
.
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“फिर भी अगर मुझसे कोई गलती हुई है तो मुझे म...माफ कर देना।” सुगंधा का स्वर लरज गया था “मैं फिर याद दिलाती हं आलोका तो अपने प्यार का इम्तहान नहीं दे सकी. लेकिन मैंने तुमसे वादा किया था कि मैं इस इम्तहान में पास होकर दिखाऊंगी। देख लो, मैंने अपना वादा निभाया, मैं अपने इम्तहान में पास हो गई। अलविदा पार्टनर।”

वह अंतिम अल्फाज कहते-कहते सुगंधा अपनी फूट पड़ने वाली हिचकी को न रोक सकी। वह मुड़ी और अपनी हिचकी को रोकने की कोशिश करती वहां से भागती चली गई।

सुगंधा तो चली गई लेकिन जाते-जाते भी वह उसके चित्त के ठहरे हुए पानी में आलोका नाम का कंकड़ फेंककर लहरें उठा गई थी। और उस वक्त अजय यह सोचे बिना न रह सका कि आज अगर सुगंधा की जगह आलोका होती तो वह क्या करती? क्या वह भी वही करती, जो सुगंधा ने किया?

क्या वह भी उसे उस भंवर में छोड़कर अपनी राह लग जाती? अजय के दिल से कोई जवाब न आया, लेकिन उसकी सोचों में हठात उस टिटहरी का अक्स उडता नजर आने लगा.. जिसके अंडे एक बार फिसलकर समुद्र में गिर गए थे। मगर हार मानने की जगह वह नन्हीं टिटहरी समुंदर से भिड़ गई थी और फिर अपने उन अंडों को हासिल करने के लिए वह अपनी चोंच से समुद्र खाली करने में जुट गई थी।

टिटहरी का वह अक्स अजय के जेहन में यूं ही नहीं उभरा था। उस अक्स के रूप में शायद वह अजय के सवाल का जवाब उभरा था और क्या जवाब उभरा था।

अजय अपने आंसुओं को बहने से न रोक सका।

प्राची झिझकती हुई नैना के सामने नैना सिर झुकाए मेज पर फैले कागजों में व्यस्त थी।

“अ...आपने मुझे बुलाया मैडम?" प्राची सकुचाती सी बोली। नैना ने तत्क्षण अपना मेज पर झुका चेहरा उठाकर प्राची को देखा। लम्बी, छरहरी काया वाली प्राची ने उस वक्त काली जींस और बिना बांहों वाली काली टॉप पहन रखी थी, जो उसके भरे हुए गोरे बदन पर खूब फब रही थी। प्राची के घने-लम्बे बाल उसकी पीठ पर कमर तक फैले हुए थे और उस वक्त वह रोज की
अपेक्षा कुछ ज्यादा ही हसीन व आकर्षक लग रही थी।

“हां।” नैना सहमति में सिर हिलाती हुई बोली, फिर उसने सामने वाली खाली पड़ी कुर्सी की ओर इशारा किया “बैठो।"

“थ..थैक्यू मैम।" प्राची ने सहमति में सिर हिलाया, फिर वह झिझकती हुई कुर्सी पर बैठ गई और ध्यानपूर्वक अपनी बॉस
का चेहरा देखने लगी।


यह पता नहीं प्राची का वहम था या फिर सच, लेकिन पिछले कई रोज से अपनी बॉस का मूड उसे काफी बदला-बदला सा महसूस हो रहा था। खासतौर से प्राची को लेकर उसकी कठोरता काफी बढ़ गई थी। और अकेले प्राची ही क्यों बाकी लोगों के साथ भी वह काफी उखड़े तरीके से पेश आ रही थी।

उसके मिजाज में वह तब्दीली, प्राची को अच्छी तरह से याद था कि जानकी लाल की मौत के बाद से ही आयी थी। पिछले दो-तीन दिनों से तो प्राची के साथ भी अच्छा बर्ताव नहीं कर रही थी। उसके किरदार पर शक तो वह पहले भी जताती रही
थी, खासतौर पर उसके नाम और चेहरे को लेकर।
लेकिन फिर वह सामान्य हो जाती थी और उससे स्वाभाविक तरीके से पेश आने लगती थी।

मगर पिछले दो-तीन रोज से तो उसका संदेह जैसे स्थायी होकर रह गया था। इसी बात ने प्राची को विचलित कर रखा
था।

अलबत्ता उसकी वजह प्राची की समझ में हरगिज भी नहीं आ सकी थी। इसीलिए वह उस वक्त सकुचाती सी नैना के सामने बैठी थी।

“संदीप के बाद सुमेश के कत्ल की खबर तो तुम्हें लग ही गई होगी?” उस खबर ने प्राची को चौंकाया था।

"ओह, तो सुमेश सहगल भी मारा गया?” वह धीरे से बोली।

“यानि कि नहीं लगी?" नैना गौर से उसके चेहरे के भावों को करती हुई बोली “तब तो उस किलर गोपाल के अंजाम से भी तुम अंजान होगी, जिसने जानकी लाल का कत्ल किया था?"

“क..क्या वह भी मारा गया?"

“क्या सचमुच तुम्हें यह नहीं पता प्राची?” नैना ने संदिग्ध भाव से उसे देखते हुए पूछा।

“आ...आप मुझ पर इल्जाम लगा रही हैं मैडम।" प्राची ने शिकायत की “मैंने यह भी महसूस किया है कि पिछले कुछ दिनों से मुझे लेकर आपका मिजाज भी काफी बदला हुआ है। माफ कीजिएगा मैडम, मगर यह ठीक नहीं है।"

"क...क्या ठीक नहीं है?" नैना ने उसे घूरकर देखा।

“मेरा मतलब है कि मैं आपकी सेक्रेटरी हूं, जो कि अपने बॉस की कारोबारी और उससे अलग जिंदगी का भी एक अहम हिस्सा होता है।" प्राची ने जस्टीफाई किया “इसीलिए बॉस और सेक्रेटरी के रिश्तों में यह तल्खी ठीक नहीं है।”

“ओह।” उसकी बेबाकी पर नैना तनिक हड़बड़ाई, लेकिन फौरन ही उसने खुद को संयत कर लिया “मगर इसमें तल्खी वाली क्या बात है और मैंने तुम पर क्या इल्जाम लगाया है?"

“आपने जुबान से नहीं लगाया, मैडम लेकिन आपकी निगाहें और आपका मिजाज मुझ पर साफ-साफ इल्जाम लगा रहे

“ओहो। काफी स्मार्ट हो गई हो और समझदार भी?"

“यह सब तो मैं पहले से ही थी मैडम और इसीलिए आपने मुझे अपनी सेक्रेटरी माना था। वरना किसी बेवकूफ और
खरदिमाग को तो आप अपनी सेक्रेटरी हरगिज भी नहीं बनाने वाली थीं।"

“यह तो खैर तुमने ठीक कहा।” नैना उसकी बेबाकी से प्रभावित हुए बिना न रह सकी थी।

“और आपके साथ पेश आने वाले इस खून-खराबे वाले मसले में भी मैंने केवल आपकी मर्जी और इजाजत से दिलचस्पी लेना शुरू किया था, वरना यह मेरे काम के दायरे में नहीं आता, उस काम के दायरे में जिसके लिए आपने मुझे अपनी सेक्रेटरी रखा है। और जहां तक सुमेश और गोपाल की मौत का सवाल है तो मुझे उनसे कोई हमदर्दी नहीं है। वह दोनों ही बहुत कमीने इंसान थे इस धरती पर बोझ थे और वह संदीप महाजन भी कोई अच्छा आदमी नहीं था।"

“मुझे तुमसे इत्तेफाक है प्राची। लेकिन लगता है तुम नाराज हो गई।” “जाने दीजिए मैडम। अब अगर आपको मेरी जरूरत नहीं है तो मैं आपके कहे बिना ही अपना रिजाइन दे रही हूं। यहां से जाने के बाद मेरा रिजाइन आपके पास पहुंच जाएगा।"

“अगर तुम्हारी यही इच्छा है तो तुम बेशक रिजाइन दे सकती हो। लेकिन जाने से पहले मेरे एक सवाल का जवाब जरूर देती जाओ।"
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Re: Thriller कांटा

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Re: Thriller कांटा

Post by 007 »

“अगर तुम्हारी यही इच्छा है तो तुम बेशक रिजाइन दे सकती हो। लेकिन जाने से पहले मेरे एक सवाल का जवाब जरूर देती जाओ।"

“क...कैसा सवाल ?" प्राची के चेहरे पर शंका के भाव आ गए। “वह कौन था जिसने तुम्हें मेरी इस नौकरी के लिए उकसाया था
और उसने तुम्हें मेरी सेक्रेटरी बनवा दिया?"

"व्हाट रबिश!” प्राची उछल पड़ी और तमककर बोली “यह कैसा वाहियात सवाल है।"

“सवाल तो वाहियात नहीं है।” नैना के होठों पर एकाएक मुस्कान आ गई, जैसे कि प्राची की उस हालत पर उसे आनंद
आ रहा था। उसने कहा “और देखो, मुझसे तमीज से बात करो। मैं तुम्हारी बॉस हूं।"

“अब आप मेरी बॉस नहीं हैं। मैं अपना रिजाइन दे रही हूं।"

"तुमने अभी रिजाइन दिया नहीं है। और जब तक ऐसा नहीं होता,
मैं तुम्हारी बॉस हूं और बॉस का हुक्म तुम्हें मानना ही पड़ेगा।"

"लेकिन आपका सवाल वाजिब नहीं है। आपने अपनी सेक्रेटरी के लिए अखबार में विज्ञापन दिया था। जिसे पढ़कर मैं
आपके पास आयी थी और मुझे किसी और ने नहीं खुद आपने अपनी पर्सनल सेक्रेटरी चुना था।"

“मार्वलस। पहले तुम कहां काम करती थीं?"

“प...पहले?"

"किसकी सेक्रेटरी थी? उसका और उसकी फर्म का क्या नाम था?” “म...मैंने इससे पहले कभी नौकरी नहीं की?"

"क...क्यों?"

“तब मेरे हालात ऐसे नहीं थे कि मुझे नौकरी करने की नौबत आती। तब अपने पापा के लिए सेक्रेटरी का चुनाव मैं खुद करती थी। मगर फिर एकाएक सब कुछ बदल गया। मेरे पापा का सारा कारोबार डूब गया और...।"

“और तुम्हारे नौकरी करने की नौबत आ गई।” नैना ने उसकी बात पूरी की “राइट। और तुम्हारी नौकरी की शुरुआत मेरी सेक्रेटरी की इस नौकरी से हुई। यानि कि यह तुम्हारी पहली नौकरी है। लिहाजा आगे के लिए अब कोई सवाल ही नहीं बचता। हैव ए गुड स्टोरी।"

“यह कहानी नहीं सच्चाई है, मैडम मेरी अपनी सच्चाई।"

“सच्चाई मुझे मालूम है।"

“क...क्या?" प्राची चौंकी थी। उसके चेहरे पर आशंका के भाव आ गए "सच्चाई मालूम है आपको?"

“यही कि तुम्हें यहां केवल मेरी जासूसी के लिए ही भेजा गया है, जिसे कि तुम बखूबी अंजाम दे रही हो। मेरी और इस कंपनी से जुड़े तमाम सीक्रेट्स तुम किसी को पास ऑन कर रही हो?"

वह प्राची पर निहायत ही गंभीर आरोप था। लेकिन जिसे सुनकर क्या मजाल जो प्राची जरा सी भी चौंकी हो।

“नानसेंस ।” उसके विपरीत उसने बुरा सा मुंह बनाया, जैसे कि उसने कोई बचकानी बात सुन ली हो। फिर वह बोली “मेरे लिए इससे बड़ा जोक दूसरा नहीं हो सकता मैडम। मेरी सेवाओं का आपने मुझे अच्छा सिला दिया है।"

“अब तुम स्मार्ट बनने की कोशिश कर रही हो?” नैना उसे घूरकर बोली।

“स्मार्ट तो मैं वैसे ही हूं। उसके लिए मुझे बनने की क्या जरूरत है। आपको मुझ पर इतना घटिया इल्जाम लगाते हुए शर्म आनी चाहिए थी।"

"मेरे पास सबूत है।"

“क्या सबूत है?”

“जब मैं यहां अपने आफिस में किसी के साथ होती हूं तो तुम छुपकर यहां की जासूसी करती हो यहां होने वाली सारी बातें सुनती हो।”

"ओहो!"

“उसके बाद वह तमाम नोट्स किसी को शेयर करती हो।”
“सबूत क्या है? आपने जो कहा उसका सबूत पेश कीजिए।" क्या मजाल जो प्राची जरा सा भी विचलित हुई हो।
"स..सबूत?"
“जानती तो होंगी ही कि सबूत क्या होता है। ऐसे तो मैं भी आप पर इल्जाम लगा सकती हूं कि जब मैं अपने ब्वाय फ्रैंड के साथ बैडरूम में होती हूं तो आप इधर दरवाजे के की-होल से झांकती हैं और यह जानने की कोशिश करती हैं कि अंदर क्या हो रहा है कैसे हो रहा है?"
"तुम मेरी सोचों से कहीं ज्यादा स्मार्ट और हाजिरजवाब हो प्राची लेकिन मेरे पास सबूत है।"
"क्या सबूत है?"
“यह रहा।” नैना ने मेज की दराज से निकालकर एक लिफाफा उसके सामने मेज पर सरका दिया।
प्राची की आंखें सिकुड़ीं। उसने लिफाफा उठाकर उसका मुआयना किया। यह देखकर उसके माथे पर बल पड़ गए कि वह किसी मोबाइल फोन की बिलिंग थी। उसकी आउटगोइंग, इनकमिंग काल्स और उससे भेजे गए तमाम एसएमएस की डिटेल्स थी।
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Re: Thriller कांटा

Post by 007 »

और वह किसी और की नहीं, खुद उसके अपने मोबाइल फोन की डिटेल्स थी।
“ठीक से देखो।” तभी नैना का व्यंगात्मक स्वर उसके कानों में पड़ा “यही सबूत है।”
“वह तो मैं देख रही हूं।" प्राची पूर्ववत सहज भाव से बोली। उसका चेहरा पहले की तरह ही सामान्य हो गया था “यह मेरे मोबाइल फोन की डिटेल्स है, जो कि आपने मेरी इजाजत के बिना हासिल की है और जो सरासर ऐटीकेट के खिलाफ है। लेकिन यह सबूत कैसे है?"
“इसमें एक खास मोबाइल है, जिसका नम्बर नाइन सेवन सिक्स जीरो टू सेवन नाइन टू नाइन वन है। तुम्हें नजर
आया?"
“जी हां।"
“यही वह मोबाइल नम्बर है, जिस पर तुम यहां की सारी रिपोर्ट दिया करती हो।”
“आ....आपके इस दावे की वजह?” प्राची ने एकटक नैना की
आंखों में देखा था।
“क्योंकि यही वह इकलौता नम्बर है जिस पर लगभग हर रोज तुम बात करती हो।"
“ऐसे तो और भी कई नम्बर हैं जिन पर मैंने हर रोज बात की है और उनमें से ज्यादातर नम्बर आपके क्लाइंट के हैं।"
"हां, सच है। लेकिन उनमें से ऐसा एक भी नम्बर नहीं है जिस पर तुमने दिन में दस बार काल की हो, जिस पर तुमने रात में भी बात की हो और...एमएसएस भी किया हो। माई डियर सेक्रेटरी, ऐसा केवल एक ही नम्बर है, जो मैंने तुम्हें बताया है।"
“और महज इतने से ही आपने यह अंदाजा लगा लिया कि यह वही नम्बर है, जहां मैं आपके सीक्रेट्स बताती हूं?"
“अपनी गलती दुरुस्त करो प्राची, यह मेरा अंदाजा नहीं है। मुझे पूरा विश्वास है कि यह वही नम्बर है?"
“तब तो आपने इस नम्बर के बारे में जरूर पता किया होगा? आपके लिए यह पता करना ज्यादा मुश्किल तो नहीं?"
"तुमने बिल्कुल सही कहा। मैंने इस नम्बर के बारे में दरयाफ्त
की है। वह भला मैं क्यों न करती?"
"तब तो आपको आपके सवाल का जवाब मिल गया होगा।" प्राची के स्वर में व्यंग उभरा “आपको मालूम हो गया होगा कि वह कौन है जिसने मुझे आपकी जासूसी के लिए यहां भेजा है?"
“यही तो समस्या है।" नैना ने गहरी सांस ली।

“यानि कि नहीं मालूम हो सका?"
"नहीं। यह नम्बर दिल्ली पुलिस के एक डीसीपी के नाम पर रजिस्टर्ड है, जिसका नाम रविन्द्र कुमार है।"
“तो क्या हुआ? दिल्ली पुलिस का डीसीपी भी इंसान ही होता है और उस रविन्द्र कुमार को आपके सीक्रेट्स की जरूरत हो सकती है?"
“तंज मत कसो और मुझे इसका रहस्य बताओ। उस डीसीपी से तुम्हारा क्या संबंध है?"
"क्या यह बताना जरूरी है?"
“बहुत जरूरी है।”
"तो फिर सुनिए मैडम। उस डीसीपी के बेटे का नाम इंद्र है
और वह मेरा ब्वॉय फ्रेंड है।"
"व्हॉट?"
“क्या व्हाट? क्या मेरा कोई ब्वायफ्रेंड नहीं हो सकता? क्या मैं नौजवान नहीं हूं? क्या मैं हसीन नहीं हूं?"
"तुम निस्संदेह गजब की हसीन हो और भरपूर जवान भी।
और तुम्हारे बेशुमार ब्वॉयफ्रेंड भी हो सकते हैं। लेकिन यह बात मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि वह लड़का तुम्हारा
ब्वायफ्रेंड नहीं है। सच तो यह है कि तुम्हारा कोई ब्वायफ्रेंड नहीं है। क्योंकि...।" नैना एकाएक खामोश हो गई और गहरी खोजपूर्ण निगाहों से प्राची को देखने लगी।

“आप चुप क्यों हो गईं मैडम?” उसे खामोश देख प्राची ने उसे उकसाया “अपनी बात पूरी कीजिए।"
“क्योंकि तुम एक विधवा हो?” नैना ने अपनी बात पूरी कर दी “यू आर ए विडो।”
प्राची के चेहरे पर एकाएक जबरदस्त हलचल नजर आयी। वह हक्की-बक्की सी होकर नैना का मुंह देखने लगी।
"ऑय एम सॉरी प्राची।” नैना इस बार जब बोली, तो उसका लहजा एकदम बदला हुआ था “लेकिन मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाना नहीं है। न ही मैं तुम्हारे दिल के जख्मों को कुरेदना चाहती हूं। क्योंकि मैं खुद एक औरत हूं और मेरी मांग भी तुम्हारी तरह ही सूनी है। फर्क बस इतना है कि तुम्हारी मांग कुदरत ने उजाड़ी है और मेरी किस्मत ने।
और...और दोनों के साथ ही यह नाइंसाफी बहुत कमसिन उम्र में हुई है।"
प्राची ने अपना चेहरा उठाकर नैना को देखा। एक ही पल में कितनी बदल गई थी वह।
"इ...इसका मतलब...।" वह अविश्वास से आंखें फैलाकर बोली “आपको मेरे बारे में सब कुछ मालूम है?"
“हां।” नैना ने आहिस्ता से सहमति में सिर हिलाया “मुझे तो यह भी मालूम है कि प्राची तुम्हारा असली नाम नहीं है। तुम्हारा यह नाम भी तुम्हारे चेहरे की तरह ही नकली है।"
“य..यह आप क्या कह रही हैं मैडम?"
प्राची चिहुंककर नैना को देखने लगी थी। “वही जो सच है। प्राची तुम्हारा असली नाम नहीं है।"
"त...तो फिर मेरा असली नाम क्या है?" “वह मैं तुम्हारे मुंह से ही सुनना चाहती हूं।"
"लेकिन जब मेरा कोई और नाम है ही नहीं तो मैं कैसे बता सकती हूं।"
“तुम्हें शायद मेरी बात का यकीन नहीं आया। तुम्हें लगता है कि मैं झूठ बोल रही हूं तुम्हें ब्लफ देने की कोशिश कर रही हूं। असल में मुझे तुम्हारा असली नाम नहीं मालूम।”
“ए..ऐसी बात नहीं है मैडम ।"
“यही बात है।” नैना ने अपने शब्दों पर जोर दिया था “खैर...अगर यह तुम मेरी जुबान से ही सुनना चाहती हो तो मुझे कोई ऐतराज नहीं है। मैं बताती हूं, तुम्हारा असली नाम आलोका है।"
वह नाम घन की तरह प्राची के जेहन से टकराया था। वह सन्नाटे में आ गई।
एक चमचमाती बीएमडब्ल्यू पुलिस स्टेशन के कम्पाउंड में पहुंचकर रुक गई। फौरन उसका ड्राइविंग डोर खुला और उसके वर्दीधारी शोफर ने लपककर कार का पिछला दरवाजा खोला।
अगले पल बीएमडब्ल्यू से एक बेहद रोबीला पठान नीचे उतरा। पठान ने घुटनों तक लटकता कीमती पठानी सूट पहन रखा था,
जिसका रंग बादामी था। उसी रंग की पाजामी थी। उसका चेहरा घनी दाढ़ी से ढका था, जो उसके सीने तक झूल रही थी। आंखों पर टिंट ग्लास का बेशकीमती चश्मा। दाहिने गाल पर बड़ा सा काला तिल, सिर पर मुसलमानी टोपी।
उसकी मुकम्मल शख्सियत में ऐसा कुछ था कि पुलिस स्टेशन में बाहर पहरे पर मौजूद हथियारबंद पुलिसिये उसकी ओर आकर्षित हुए बिना न रह सके थे।
उसके रौब से थर्राया एक वर्दीधारी पुलिसिया लपककर उसके पास पहुंचा।
“फरमाइए जनाब।” वह पठान की खुशामद सी करता बोला "मैं आपकी क्या खिदमत कर सकता हूं।"
.
“इंस्पेक्टर मदारी से मिलना है।" पठान रौबदार स्वर में बोला “क्या वह पुलिस स्टेशन में है?"
“जी जनाब।” पुलिसिया पूर्ववत अदब से बोला “आप मेरे साथ आइए।” पुलिसिया उसे मदारी के आफिस तक छोड़ गया।
मदारी ने पहले सिर से पांव तक, फिर पांव से सिर तक उसका मुआयना किया। मदारी जैसा पुलिसिया भी उसके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना न रह सका था। उसने बैठने के लिए उसे कुर्सी पेश की।
"शुक्रिया।" पठान उसके सामने कुर्सी पर पसरता हुआ बोला। "सुस्वागत श्रीमान ।” मदारी अपनी तीखी निगाहें पठान के चेहरे पर फोकस करता हुआ बोला “मैं आपकी क्या खिदमत कर सकता हूं।” “हम इसीलिए आए हैं इंस्पेक्टर।” पठान बदस्तूर रौब से
बोला “वैसे भी तुम्हें आवाम की खिदमत के लिए ही तो यहां बैठाया गया है।"
“इसमें क्या शक है जजमान।” मदारी ने फौरन उसके सुर में सुर मिलाया “हम आपके और घास खाने वालों के खिदमतगार ही तो हैं।"
“लाहौल विला कूव्वत।” पठान ने मदारी को घूरकर देखा और अपनी बड़ी-बड़ी आंखें निकालता हुआ बोला “यह घास खाने वाला तुमने किसे फरमाया इंस्पेक्टर?"
"आपको नहीं फरमाया भगवान।” मदारी ने फौरन स्पष्टीकरण पेश किया “वह तो मैंने घास खाने वालों को ही फरमाया है।"
"खुदा खैर करे। मगर वह कौन हुआ?"
मदारी ने वह भी बताया।
"बहुत खूब मियां इंस्पेक्टर।" पठान उसकी व्याख्या से खुश हो गया और अपनी तोंद को खम देकर हो...हो करता हुआ बोला “क्या व्याख्या किया है तुमने आम आदमी की। हम
खुश हुए। हो...हो...हो..हो।”
+
.
.
वह फिर अपनी तोंद उछालता हुआ जोर से हंसा।
“खैर... ।” मदारी विषय पर वापस आता हुआ बोला “आपने अभी तक अपनी तारीफ नहीं बताई ? न ही खिदमत का कोई जिक्र किया? वैसे आप जैसे महापुरुषों की खिदमत करके मुझे बहुत खुशी होगी।"
“मैं वही बताने जा रहा हूं।"
“धन्यवाद भगवान।"
“मुझे खबर मिली है इंस्पेक्टर कि तुमने कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है और वह इस वक्त भी यहां हवालात में
"सत्य वचन श्रीमान।" मदारी ने निःसंकोच स्वीकार किया
“ऐसे महापुरुषों और महास्त्रियों को पकड़कर हवालात की हवा और ‘लात' खिलाना ही तो मेरा पेशा है। इसीलिए
सरकार मुझे अपनी मोटी तनख्वाह देती है, जिसकी कि यह इंस्पेक्टर पाई-पाई हलाल करके दिखाता है। वैसे जिन भद्रपुरुषों का आपने जिक्र किया, उनके नाम क्या हैं?"
“वह तीन लोग हैं।” पठान ने बताया “जिनमें दो लड़के और एक लड़की है। लड़कों के नाम जतिन और अजय हैं जबकि लड़की का कोमल।”
"ओह।" मदारी प्रत्यक्षतः पहले जैसी ही लापरवाही से बोला। लेकिन उन तीनों के जिक्र पर वह मन ही मन चौकन्ना हो गया था “तो आप इन तीनों महानुभावों की बात कर रहे हैं। वैसे गिरफ्तार करने की हिमाकत तो की है मैंने इन भद्रजनों को। और इस वक्त वह तीनों इसी पुलिस स्टेशन के हवालात की हवा खा रहे हैं। अलबत्ता उन्हें 'लात' खिलाने का मैंने सख्त परहेज किया हैं।"
“यह तुमने बहुत अच्छा किया इंस्पेक्टर। वरना अब तक तुम्हारी यह वर्दी उतर गई होती।" पठान का लहजा सर्द हुआ था।
"आं।" मदारी हड़बड़ाया था। आगंतुक से उसे ऐसे सख्त अल्फाजों की अपेक्षा नहीं थी। वह एक बार फिर पठान पर निगाहें गड़ाता हुआ बोला “यह आपने मुझसे कहा है भगवान?"

"तुम्हारे अलावा यहां दूसरा तो कोई मुझे नजर नहीं आ रहा।" “ओह। यह तो खैर आपने बजा फरमाया।"
“किस जुर्म में तुमने उन तीनों को हवालात में डाला है इंस्पेक्टर?" पठान ने अगला सवाल किया “उन लोगों ने क्या किया है?"

"कुछ खास तो नहीं किया जजमान।" मदारी सकुचाता हुआ बोला “उन पर कत्ल से जुड़ा एक छोटा-मोटा इल्जाम है, जिसमें उन तीनों ने शिरकत की थी। और जिसकी सजा भी
कुछ खास नहीं है। उन्हें बड़ी हद आठ-दस साल बामुशक्कत जेल में रहना पड़ सकता है।"
“तुम्हारा मतलब है कि उन तीनों पर कत्ल का इल्जाम है?" पठान मदारी को कठोर निगाहों से देखता हुआ बोला।
“जी नहीं बलवान।" मदारी ने फौरन इंकार में सिर हिलाया “कत्ल तो किसी और ही फरिश्ते ने किया था। लेकिन उसके कत्ल की साजिश में, बता ही चुका हूं कि उन तीनों ने शिरकत की थी। ऐसे कुछ और खुदा के बंदे थे, मगर
बदकिस्मती से वह सारे के सारे वक्त से पहले ही फना हो गए। लेकिन अब बड़ा सवाल यह उठता है भगवान कि आप कौन है और किस हैसियत से यह पूछताछ कर रहे हैं?"
“उन तीनों ने किसके कत्ल का षड्यंत्र रचा था?" पठान ने मदारी का सवाल जैसे सुना ही नहीं था।
"था एक भद्रपुरुष। जिसने अपनी मुकम्मल जिंदगी में कर्मकांडों के अलावा और कुछ नहीं किया था। और जिसके दुश्मनों की तादाद हनुमान की पूंछ से कहीं ज्यादा लम्बी थी।"
“मैं तुमसे उसका नाम पूछ रहा हूं इंस्पेक्टर?"
“वैसे तो मैं सरकार के अलावा और किसी की पूछताछ में विश्वास नहीं रखता श्रीमान, जिसकी कि मैं तनख्वाह पाता हूं। लेकिन क्योंकि आप घास खाने वाले नहीं हैं इसलिए बताए देता हूं। उसका नाम श्री-श्री एक हजार पिच्चासी जानकी लाल मरहूम था।”
“व...वह जो ब्लूलाइन कंस्ट्रक्शन का मालिक था।"
“आपने एकदम सही समझा जजमान। मैं उन्हीं ब्लू लाइन वाले लौहपुरुष की बात कर रहा हूं। लेकिन भगवान, आपने अभी तक अपना नाम नहीं बताया काम धाम भी नहीं बताया।"
“वह तीनों निर्दोष हैं इंस्पेक्टर।" पठान ने इस बार भी उसका सवाल अनदेखा कर दिया था। उसने अधिकारपूर्ण स्वर में कहा “इसलिए उन्हें लॉकअप में रखने का तुम्हें कोई हक नहीं है। उन्हें फौरन रिहा कर दो।"
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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