Thriller कांटा

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Re: Thriller कांटा

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"बहुत खूब।” फिर उस खामोशी को कोमल ने ही तोड़ा। माहौल का खिंचाव उसके चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रहा था। वह बोली “और अगर मैं गलत नहीं तो इंस्पेक्टर मदारी को हमारे बारे में सब कुछ मालूम है। उसने हमारा अतीत ढूढ निकाला है। और..."

“और क्या?” अजय ने उसे सवालिया निगाहों से देखा।

“उसने जानबूझकर हम तीनों को एक ही लॉकअप में बंद किया है।” कोमल ने अपनी बात पूरी की “और जानबूझकर
हमें आपस में बात करने का मौका दिया है।"

"मेरा भी यही ख्याल है।" अजय और जतिन के सिर स्वयमेव सहमति में हिले, फिर अजय बोला “किसी कत्ल के केस में पुलिस मरने वाले का अतीत काफी बारीकी से खंगालती है,
और उस कत्ल के तमाम सस्पेक्ट का भी, जो कि हम लोग यकीनन थे। और इन्वेस्टीगेटर अगर मदारी जैसा हो तो उसके लिए यह सब जान लेना ज्यादा मुश्किल नहीं है।” वह एकाएक कोमल की तरफ घूमा “लेकिन तुम्हारा क्या अतीत है कोमल?"

"मेरा अतीत तो सारे शहर को मालूम है।” कोमल वितृष्णा से बोला। “तुम्हारे बारे में सारा शहर केवल इतना जानता है कि तुम्हारी मां को जानकी लाल ने धोखा दिया था। उनके साथ । पहले उसने पत्नी का रिश्ता बनाया, फिर जब वह गर्भवती हो गई, यानि जब तुम उनके गर्भ में आ गई तो उसने तुम्हें बाप का नाम देने से इंकार कर दिया। लेकिन तुम्हारी मां ने भी ठान लिया था कि वह अपनी बेटी को उसका हक दिलाकर ही रहेंगी। उसके लिए उन्होंने लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी थी और उसमें उनकी जीत भी हुई थी। उन्होंने अदालत में यह साबित किया था कि तुम जानकी लाल की बेटी थी।"

“तुमने ठीक कहा।” कोमल सहमति में सिर हिलाती हुई असहिष्णुता से बोली। उसके चेहरे पर जानकी लाल के लिए हिकारत के भाव आ गए थे “दौलतमंद बन जाने के बाद जानकी लाल एक नम्बर का अय्याश भी बन गया था। उसे सोने के लिए हर रोज एक नई लड़की की ख्वाहिश होती थी। जिस किसी भी नौजवान हसीन लड़की पर उसका दिल आ जाता था, वह उसे हासिल करके रहता था और उसे हासिल करते ही उसकी सूरत भी भूल जाता था उसकी एक रात की कीमत देकर उसे दुत्कार देता था। जो बिकती नहीं थी उसके साथ वह फ्लर्ट करता था, प्यार का नाटक करता था।

आखिरकार उसका भी वही हश्र होता था। मगर मेरी मां...।"

अजय व जतिन उसे ही देख रहे थे।

“मेरी मां इसकी अपवाद साबित हुई थी। उन्होंने जानकी लाल के हाथों बिकने से इंकार कर दिया था और अपने हक से नीचे कोई समझौता नहीं किया था। मजबूरन जानकी लाल को उन्हें उनका हक देना पड़ा था। और क्योंकि उसकी ब्याहता बीवी तो सरला थी लिहाजा मुझे उसकी सौतेली बेटी का दरजा हासिल हुआ।”

कोमल शांत हुई तो लॉकअप में घुप्प सन्नाटा छा गया।

तभी एक पुलिसिया वहां पहुंचा। तीनों की निगाह उसकी ओर उठ गई।

“तुम लोगों में से अजय कौन है?” उसने सवाल किया।

“मैं हूं।” अजय ने सशंक भाव से उसे देखा “मगर बात क्या है?”

“एक लड़की आयी है।” उसने बताया “तुमसे मिलना चाहती है।"

"ल...लड़की...।" अजय के जेहन में सुगंधा का नाम गूंज गया। उसने आशंकित भाव से पूछा “कौन लड़की?"

“अभी मालूम हो जाएगा।"

पुलिसिया पलटकर उल्टे पांव वापस लौट गया।

लॉकअप में तीन-तीन लोगों की मौजूदगी के बावजूद सन्नाटा गहराता चला गया।

“सत्यानाश।” महरौली की उस सुनसान सड़क पर मौजूद लाश को देखता हुआ मदारी अपने जबड़े भींचकर बोला “सुपर सत्यानाश।”

“कि...किसका।” उसके साथ पुलिस टीम में मौजूद सब-इंस्पेक्टर शर्मा हड़बड़ाकर बोला “किसका सत्यानाश हो गया सर?”

“मेरे वीआरएस का।" मदारी ने बताया “यह कमबख्त सारे के सारे कत्ल जैसे मेरे वीआरएस का ही इंतजार कर रहे थे। अब अगर ऐसे में मैंने वीआरएस का ख्याल भी किया तो इंस्पेक्टर मदारी का नाम धूल में मिल जाएगा। सारा महकमा यही कहेगा, कि मदारी कल्लों की यह मिस्ट्री हल नहीं कर पाया, इसीलिए वीआरएस ले लिया।" वह फिर कलपा “डबल सत्यानाश ।"

"लिहाजा अब आप तभी वीआरएस लेंगे सर जबकि आप कातिल को गिरफ्तार कर लेंगे?"

“अबे शर्मा जजमान।” मदारी उसे घूरकर बोला “क्या तू चाहता है कि मैं वीआरएस ले लूं?"

“बि...बिल्कुल नहीं सर।” शर्मा हड़बड़ाकर बोला “सवाल ही नहीं उठता।"

“तो फिर वीआरएस की बात ही क्यों कर रहा है। यह क्यों नहीं कहता कि अब मै अपना वीआरएस लेने का इरादा मुल्तवी कर दूं।”

"त...तो फिर आपकी मैडम फॉरेन टूर पर कैसे जा पाएंगी?" “उसके लिए मैं अपने प्राविडेंट फंड से लोन ले सकता हूं, जिससे बीवी की समस्या हल हो सकती है।"

“इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है सर।” शर्मा ने खुशी जाहिर की “य..यह ख्याल आपको पहले क्यों नहीं
आया?"

"हर काम अपने वक्त पर ही होता है शर्मा श्रीमान। फिलहाल तुम इस लाश पर ध्यान दो।” मदारी की निगाह पुनः लाश पर स्थिर हो गई जो कच्ची सड़क पर औंधे मुंह पड़ी थी। लाश की पीठ पर गोली का सूराख नजर आ रहा था, जहां से बहकर ढेर सारा खून नीचे इकट्ठा था। जख्म से तब भी खून रिस रहा था।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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"बहुत खूब।” फिर उस खामोशी को कोमल ने ही तोड़ा। माहौल का खिंचाव उसके चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रहा था। वह बोली “और अगर मैं गलत नहीं तो इंस्पेक्टर मदारी को हमारे बारे में सब कुछ मालूम है। उसने हमारा अतीत ढूढ निकाला है। और..."

“और क्या?” अजय ने उसे सवालिया निगाहों से देखा।

“उसने जानबूझकर हम तीनों को एक ही लॉकअप में बंद किया है।” कोमल ने अपनी बात पूरी की “और जानबूझकर
हमें आपस में बात करने का मौका दिया है।"

"मेरा भी यही ख्याल है।" अजय और जतिन के सिर स्वयमेव सहमति में हिले, फिर अजय बोला “किसी कत्ल के केस में पुलिस मरने वाले का अतीत काफी बारीकी से खंगालती है,
और उस कत्ल के तमाम सस्पेक्ट का भी, जो कि हम लोग यकीनन थे। और इन्वेस्टीगेटर अगर मदारी जैसा हो तो उसके लिए यह सब जान लेना ज्यादा मुश्किल नहीं है।” वह एकाएक कोमल की तरफ घूमा “लेकिन तुम्हारा क्या अतीत है कोमल?"

"मेरा अतीत तो सारे शहर को मालूम है।” कोमल वितृष्णा से बोला। “तुम्हारे बारे में सारा शहर केवल इतना जानता है कि तुम्हारी मां को जानकी लाल ने धोखा दिया था। उनके साथ । पहले उसने पत्नी का रिश्ता बनाया, फिर जब वह गर्भवती हो गई, यानि जब तुम उनके गर्भ में आ गई तो उसने तुम्हें बाप का नाम देने से इंकार कर दिया। लेकिन तुम्हारी मां ने भी ठान लिया था कि वह अपनी बेटी को उसका हक दिलाकर ही रहेंगी। उसके लिए उन्होंने लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी थी और उसमें उनकी जीत भी हुई थी। उन्होंने अदालत में यह साबित किया था कि तुम जानकी लाल की बेटी थी।"

“तुमने ठीक कहा।” कोमल सहमति में सिर हिलाती हुई असहिष्णुता से बोली। उसके चेहरे पर जानकी लाल के लिए हिकारत के भाव आ गए थे “दौलतमंद बन जाने के बाद जानकी लाल एक नम्बर का अय्याश भी बन गया था। उसे सोने के लिए हर रोज एक नई लड़की की ख्वाहिश होती थी। जिस किसी भी नौजवान हसीन लड़की पर उसका दिल आ जाता था, वह उसे हासिल करके रहता था और उसे हासिल करते ही उसकी सूरत भी भूल जाता था उसकी एक रात की कीमत देकर उसे दुत्कार देता था। जो बिकती नहीं थी उसके साथ वह फ्लर्ट करता था, प्यार का नाटक करता था।

आखिरकार उसका भी वही हश्र होता था। मगर मेरी मां...।"

अजय व जतिन उसे ही देख रहे थे।

“मेरी मां इसकी अपवाद साबित हुई थी। उन्होंने जानकी लाल के हाथों बिकने से इंकार कर दिया था और अपने हक से नीचे कोई समझौता नहीं किया था। मजबूरन जानकी लाल को उन्हें उनका हक देना पड़ा था। और क्योंकि उसकी ब्याहता बीवी तो सरला थी लिहाजा मुझे उसकी सौतेली बेटी का दरजा हासिल हुआ।”

कोमल शांत हुई तो लॉकअप में घुप्प सन्नाटा छा गया।

तभी एक पुलिसिया वहां पहुंचा। तीनों की निगाह उसकी ओर उठ गई।

“तुम लोगों में से अजय कौन है?” उसने सवाल किया।

“मैं हूं।” अजय ने सशंक भाव से उसे देखा “मगर बात क्या है?”

“एक लड़की आयी है।” उसने बताया “तुमसे मिलना चाहती है।"

"ल...लड़की...।" अजय के जेहन में सुगंधा का नाम गूंज गया। उसने आशंकित भाव से पूछा “कौन लड़की?"

“अभी मालूम हो जाएगा।"

पुलिसिया पलटकर उल्टे पांव वापस लौट गया।

लॉकअप में तीन-तीन लोगों की मौजूदगी के बावजूद सन्नाटा गहराता चला गया।

“सत्यानाश।” महरौली की उस सुनसान सड़क पर मौजूद लाश को देखता हुआ मदारी अपने जबड़े भींचकर बोला “सुपर सत्यानाश।”

“कि...किसका।” उसके साथ पुलिस टीम में मौजूद सब-इंस्पेक्टर शर्मा हड़बड़ाकर बोला “किसका सत्यानाश हो गया सर?”

“मेरे वीआरएस का।" मदारी ने बताया “यह कमबख्त सारे के सारे कत्ल जैसे मेरे वीआरएस का ही इंतजार कर रहे थे। अब अगर ऐसे में मैंने वीआरएस का ख्याल भी किया तो इंस्पेक्टर मदारी का नाम धूल में मिल जाएगा। सारा महकमा यही कहेगा, कि मदारी कल्लों की यह मिस्ट्री हल नहीं कर पाया, इसीलिए वीआरएस ले लिया।" वह फिर कलपा “डबल सत्यानाश ।"

"लिहाजा अब आप तभी वीआरएस लेंगे सर जबकि आप कातिल को गिरफ्तार कर लेंगे?"

“अबे शर्मा जजमान।” मदारी उसे घूरकर बोला “क्या तू चाहता है कि मैं वीआरएस ले लूं?"

“बि...बिल्कुल नहीं सर।” शर्मा हड़बड़ाकर बोला “सवाल ही नहीं उठता।"

“तो फिर वीआरएस की बात ही क्यों कर रहा है। यह क्यों नहीं कहता कि अब मै अपना वीआरएस लेने का इरादा मुल्तवी कर दूं।”

"त...तो फिर आपकी मैडम फॉरेन टूर पर कैसे जा पाएंगी?" “उसके लिए मैं अपने प्राविडेंट फंड से लोन ले सकता हूं, जिससे बीवी की समस्या हल हो सकती है।"

“इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है सर।” शर्मा ने खुशी जाहिर की “य..यह ख्याल आपको पहले क्यों नहीं
आया?"

"हर काम अपने वक्त पर ही होता है शर्मा श्रीमान। फिलहाल तुम इस लाश पर ध्यान दो।” मदारी की निगाह पुनः लाश पर स्थिर हो गई जो कच्ची सड़क पर औंधे मुंह पड़ी थी। लाश की पीठ पर गोली का सूराख नजर आ रहा था, जहां से बहकर ढेर सारा खून नीचे इकट्ठा था। जख्म से तब भी खून रिस रहा था।
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Re: Thriller कांटा

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(^%$^-1rs((7)
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Re: Thriller कांटा

Post by 007 »

लाश के करीब ही सहगल का सूटकेस छिटका पड़ा था। और करीब ही वह इंडिका बेंज की टैक्सी लावारिस सी खड़ी थी, जिसके अंदर गोपाल ने सुमेश सहगल का कत्ल किया था।

“म..मैं इस लाश का काफी बारीकी से मुआयना कर चुका हूं सर ।” शर्मा ने बताया "इसे उस वक्त शूट किया गया है जबकि यह उस कार से अभी बाहर निकला था। कातिल ने इसे पीछे से गोली मारी है, और गोली का जख्म इस बात का स्पष्ट संकेत दे रहा है कि इसे भी भारी कैलीबर के रिवॉल्वर से शूट किया गया है।"

“हूं।” मदारी ने संजीदगी से हुंकार भरी, फिर बोला “यानि कि जिससे पहले संजना श्रीमती और फिर संदीप श्रीमान का शूट
आउट हुआ है?"

"यह मेरा केवल अंदाजा है सर। इसकी तस्दीक तो पोस्टमार्टम के बाद ही होगी कि इसका कत्ल सचमुच उसी भारी कैलीबर की रिवॉल्वर से हुआ है या नहीं।"

"लेकिन यह दिवगंत आत्मा आखिर है कौन?"

“इसका चेहरा नजर नहीं आ रहा सर। इसे सीधा करना पड़ेगा।” “जरूर करो शर्मा भगवान। लेकिन बहुत ही ऐहतियात से, वरन शर्मा ने सहमति में सिर हिलाया, फिर उसने अपने पुलिसिया बूट की नोक से सावधानी पूर्वक लाश
को पलटा तो मरने वाले का चेहरा भी नजर आने लगा।


वह इतना कुख्यात चेहरा था कि अकेले मदारी ने ही नहीं, शर्मा ने भी उसे फौरन पहचान लिया। उसके चेहरे पर विस्मय के भाव आ गए।

“ग...गोपाल।" शर्मा के होठों से वह लफ्ज खुद ही निकल गया था। “जय गोविंदम्, जय गोपालम् ।” मदारी बोला और उसके होंठ सीटी बजाने वाले अंदाज में सिकुड़कर गोल हो गए फिर वह बोला “तो यह भद्रपुरुष भी परलोकवासी हो गए।"

शर्मा ने आहिस्ता से सिर हिलाकर उसकी बात का अनुमोदन किया। फिर वह दोनों इंडिका के करीब पहुंचे और उसके
अंदर मौजूद सहगल की लाश का दोबारा मुआयना किया, जिसकी गरदन में मूठ तक खंजर पैवस्त था।

“कुछ समझे हनुमान।” मदारी अर्थपूर्ण भाव से शर्मा से बोला।

“ज...जी।” शर्मा सहमति में सिर हिलाता हुआ बोला “समझा तो सही।"

"क्या?"

“यह शातिर आदमी सुमेश सहगल अंडरग्राउंड था और बहरूप बनाकर चुपचाप इस शहर से भाग रहा था। वह किलर गोपाल उसे हाईजैक करके यहां ले आया और फिर उसने इसे बेरहमी से कत्ल कर दिया।"

"बहुत खूब।” मदारी ने प्रशंसात्मक भाव से उसे देखा।

“उसके बाद गोपाल यहां से जाने के लिए कार से बाहर निकला, मगर वह नहीं जानता था कि कोई उसके लिए भी घात लगाए बाहर बैठा है। और जैसे ही वह बाहर निकला उसने गोपाल को शूट कर दिया।"

“लेकिन सवाल तो यह है कि श्रीमान कि अपने गोपाल ने सहगल अंडमान का फातिहा क्यों पढ़ा?"

“य...यह तो मेरी समझ से बाहर है सर।"

“और वह फन्ने खां कौन है जिसने गोपालम जैसे पैंतालीस मारखां का बैंड बजाया?"

“आई डोंट नो सर।"

“और अगर यह मान लें कि...।" मदारी ने फिर अगला सवाल किया “श्री-श्री का बैंड बजाने वाला गोपालम् था तो बाकी
इतने सारे लोगों का बैंड आखिर किसने बजाया? उन बाकी सारे लोगों में अपना गोपालम् भी शामिल है।"
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Re: Thriller कांटा

Post by 007 »

“ऑय एम सॉरी सर।” शर्मा खेद भरे स्वर में बोला “इन सवालों का जवाब मेरे लिए किसी रहस्य से कम नहीं है।" सहसा वह रुक गया, फिर वह सवालिया निगाहों से मदारी को देखता हुआ बोला “क...कहीं यह काम अजय, जतिन और कोमल में से तो किसी का नहीं है?"


"लेकिन वह तीनों मासूम तो इस वक्त हमारे हवालात की हवा खा रहे हैं। और वहां बैठकर वे बेचारे यह कारनामा कैसे दिखा सकते हैं?"

“ओह। मगर नैना तो आजाद है सर और उसके तारे भी इस मामले में गहराई तक जुड़े हुए हैं। क्या वह कातिल नहीं हो सकती है?"

“होने को तो इस दुनिया में क्या नहीं हो सकता भगवान। लेकिन उस नैना कजरारे में कोई भेद है।"

“क...कैसा भेद सर?"

“मैंने इस तरफ काफी ठोक-बजाकर देखा है और इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि ऊपर से चट्टान जैसी सख्त दिखने वाली
नैना कजरारे असल में वैसी है नहीं जैसी कि वह दुनिया को नजर आती है।”

"त...तो फिर?"

“ऊपर से सख्त, कठोर वह श्रीमती असल में अंदर से मोम की तरह मुलायम और पिलपिली है और वह खुद को हमेशा श्री-श्री की सुहागिन मानती आयी है और श्री-श्री की मौत के बाद अब वह खुद को उनकी विधवा मानती है।"

“य...यह आप क्या कह रहे हैं सर।" शर्मा चकित होकर बोला। “वही जो सच है।"

“लेकिन जानकी लाल से उसकी वह प्रतिद्वंदिता...?"

"वह सब कारोबारी खेल थे वह उसकी कारोबारी दुनिया की प्रतिद्वंदिता थी। प्रतिद्वंदी होना और रकीब होना, दोनों बहुत
अलग चीजें हैं। और..."

“और क्या सर?”

“श्री-श्री की मौत वाले मामले में उनकी कार से नैना कजरारे की कार का टकराना महज इत्तेफाक था। वह इत्तेफाक के अलावा और कुछ नहीं था। श्री-श्री की कार को ठोककर उनका क्रियाकर्म करने वाला दुष्ट पापी उधर मरा पड़ा है।"

“य...यह आपके मुंह से मैं एकदम नई बात सुन रहा हूं सर।"

"इसमें मेरा क्या कसूर ।”

“अ..और वह तीनों, जिन्हें आज आपने गिरफ्तार किया है?"

“उन पर कातिल नहीं, बल्कि केवल कत्ल के षड्यंत्र में शामिल होने का इल्जाम है श्री-श्री के कत्ल की साजिश में शरीक होने का इल्जाम है।"

“लेकिन कातिल फिर भी एक रहस्य बना हुआ है।"

"बजा फरमाया श्रीमान।" मदारी ठंडी सांस भरता हुआ बोला "फिलहाल तुम ऐसा कह सकते हो। वैसे इस मामले में जहां तक मेरी बात है तो मुझे पूरा यकीन है कोई भी रहस्य अब ज्यादा देर तक रहस्य नहीं रहने वाला। रहस्यों से परदा खिसकने का वक्त शायद अब आ पहुंचा है, बस भोलेनाथ के इशारे का इंतजार है। जय भोलेनाथ।"

सलाखों के पार सुगंधा को देखते ही अजय का दिल जोर जोर से धड़क उठा। वह शांत और स्निग्ध भाव से अपलक अजय को ही देख रही थी। उसका हमेशा खिला-खिला सा रहने वाला खूबसूरत चेहरा उस वक्त मुरझाया सा प्रतीत हो रहा था। आंखों के पपोटे सूज गए थे। ऐसा लगता था कि जैसे कि वहां आने से पहले वह जी भरकर रोई थी।
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