Thriller कांटा

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Re: Thriller कांटा

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“आई नो माई चाइल्ड। लेकिन यह बात तब तेरे समझ में कहां आई थी। और अकेले तू ही क्यों...।" उसने एकाएक घूमकर कोमल को देखा “तेरी यह बहन भी तो तेरे ही जैसी नादान और भोली है। इसने भी उस कमीने को कब समझा
था। इसे भी तो उस वक्त खलनायक मैं ही नजर आता था। और म..मैं केवल तड़पकर रह जाता था।"

कुछ कहने के लिए कोमल के लब कांपे, लेकिन उसकी आवाज बाहर न निकल सकी।
"और यह समझती भी क्यों नहीं, मैं तो इसका सौतेला बाप था, एक जलील इंसान था, जिसने अपनी सगी बेटी का घर बसाने के लिए अपनी सौतेली बेटी का सिन्दूर उजाड़ दिया।"
“म...मुझे माफ कर दीजिए।” कोमल का चेहरा पश्चाताप की असंख्य लकीरों से भर गया। वह रुआंसी सी होकर बोली "मुझे सच पता चल गया है। आप संदीप को हम दोनों में से किसी के भी सुहाग के रूप में देखना नहीं चाहते थे, लेकिन
रीनी की ममता ने आपको मजबूर कर रखा था। और वह सब आपका नाटक नहीं था। आ...आप सचमुच संदीप और रीनी का तलाक कराकर रहने वाले थे। आय'म एम वैरी सॉरी पापा।"
“प...पापा।” जानकी लाल ने चौंककर उसे देखा। उसके चेहरे पर आश्चर्य के भाव आ गए थे। वह जरा हंसकर बोला “आज पहली बार मेरी इस बेटी ने मुझे पापा कहा है। म...मैं निहाल हो गया। काशः तुझे अहसास होता तेरे होंठों से अपने लिए यह सम्बोधन सुनने को मैं कितना तरसा हूं। एक बार फिर मुझे पापा कहो।”
“ऑय एम रियली सॉरी पापा।"
“यह सच है बेटी कि तेरा यह पापा बहुत खराब इंसान है।"

जानकी लाल एक आह भरकर बोला “जिसके गुनाहों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है और जिसके दामन पर आज भी प्रबीरदास और निमेषदास के बरसों पुराने खून के धब्बे दिखाई देते हैं, और खुद तू भी मेरी एक नाइंसाफी की निशानी है। हालात भले ही कुछ भी रहे हों पगली, लेकिन सच हर हालात में सच ही रहता है और तेरा सच यह था कि तू मेरा खून थी। जिस पर ज्यादती का हौसला तो शैतान भी नहीं जुटा सकता, फिर मैं तो एक इंसान हूं, तेरा अपना खून हूं।"
कोमल की आंखें नम हो गईं। वातावरण में खामोशी छा गई। फिर मदारी ने धीरे से खंखारकर अपना गला साफ किया।
"चलो, एक गुत्थी तो हल हुई।” फिर वह खामोशी को भंग करता हुआ बोला “अब दूसरी पर आइए जजमान और यहां मौजूद बाकी किरदारों की धुंध से भी चादर हटाइए।"
“उसमें कोई चादर अब कहां बची है इंस्पेक्टर।" जानकी लाल बारी-बारी से अजय, जतिन नैना और प्राची उर्फ आलोका पर निगाह डालता हुआ बोला “सबको सब कुछ तो मालूम हो
चुका है। इन सभी ने आपस में अपने नोट्स शेयर करके सब जान लिया है। वह सब जो...।” उसने फिर मदारी को देखा “तुम पहले ही जान चुके हो। अगर मैं उस वक्त गोली न चलाता तो वह शातिर लड़की संजना इस जतिन की जान ले लेती। या फिर यह खुद उसके खून से अपने हाथ रंग डालता।"

“यह तो खैर आपने ठीक कहा जजमान।" मदारी बोला "तो क्या आपने महज इसी लिए संजना श्रीमती का काम तमाम कर दिया?"
“नहीं इंस्पेक्टर। इसके अलावा भी कई वजह थीं। संजना लड़की नहीं एक जहरीली नागिन थी, ऐसी विषकन्या थी, जो अपने हसीन हुस्न से किसी को भी डस सकती थी। सबसे बड़ी बात, वह मेरे करीबी दुश्मन सुमेश सहगल के पिटारे में थी और जो मेरे और मेरी कंपनी के खिलाफ उसका बहुत खतरनाक इस्तेमाल कर रहा था, और आइंदा उससे ज्यादा भयावह इस्तेमाल का इरादा रखता था।"
“लिहाजा उस श्रीमती की मौत अवश्यम्भावी थी?"
"तुमने ठीक कहा इंस्पेक्टर। इस जतिन ने मेरे साथ जो किया, अगर इसकी जगह मैं होता तो मैं भी यही करता। मेरे लिए इसकी नफरत जायज है, आखिर मैं इसके पिता और अपने जिगरी दोस्त सौगत की मौत का जिम्मेदार हूं, जिसने मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर मेरे हर अच्छे-बुरे काम में जी जान से मेरा साथ दिया और इसके लिए मुझे माफ नहीं किया जा
सकता। मगर इस सारे बखेड़े में एक सच ऐसा भी है जो यह नहीं जानता।"
“और यह सच क्या है श्रीमान?” मदारी ने सस्पेंस भरे स्वर में पूछा। जतिन व अन्य लोगों के चेहरों पर भी कौतूहल के भाव आ गए थे।

“यह सच सौगत से ही ताल्लुक रखता है इंस्पेक्टर।" जानकी लाल ने बताया “और वह ये है कि अंततः सौगत पर भी लालच हावी हो गया था और प्रबीरदास की सारी सम्पत्ति पर वह अकेले काबिज होना चाहता था। इसके लिए उसने मेरे साथ-साथ सरला को ठिकाने लगाने का इंतजाम सोच लिया था। अगर मैं समय रहते उसे ठिकाने नहीं लगता तो उसने अकेले मुझे ही नहीं, मेरी पत्नी और रीनी की मां सरला
को भी ठिकाने लगा दिया होता।"
“न...नहीं...।” जतिन प्रतिरोध भरे स्वर में बोला “यह सच नहीं है। तुम झूठ बोल रहे हो?"
“फिलहाल जिस मुकाम पर मैं खड़ा हूं वहां मुझे झूठ बोलने की कोई जरूरत नहीं है बरखुरदार। जरायम की दुनिया ऐसी ही होती है, जहां कोई दीन-ईमान नहीं होता। जहां केवल हवस और स्वार्थ का ही दखल होता है। मगर...।” उसकी निगाहें अजय की ओर उठीं “असली मुजरिम तो मैं इस लड़के का हूं, जो निमेष का बेटा और प्रबीरदास का पोता है और जो अपने साथ हुई नाइंसाफी को लेकर तिल-तिल सुलग रहा
अजय केवल उसे देखता रहा। उसके चेहरे पर एक ही पल में न जाने कितने रंग आकर चले गए थे।
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Re: Thriller कांटा

Post by 007 »

"और इसीलिए मेरा यह मुमकिन प्रयास था कि इनमें से किसी के साथ भी दोबारा कोई नाइंसाफी न होने पाए।" जानकी लाल कहता गया “इनमें से किसी का भी हाथ खून से न रंगने पाए, फिर चाहे वह कोई संजना हो या जानकी लाल । क्योंकि कत्ल की बहुत भयानक सजा होती है। और अकेले कोमल ही नहीं, यह दोनों भी पहले जिसकी कोशिश कर चुके थे।"
"क...कत्ल की?"

“हां इंस्पेक्टर। यह दोनों मेरे कत्ल की कोशिश कर चुके थे। जरा मेरे ऊपर सबसे पहले हुए दोनों जानलेवा हमले को याद करो, जिसमें पहली मेरी कार के ब्रेक फेल करके और दूसरी कोशिश मेरी कोल्ड ड्रिंक में जहर मिलाकर हुई थी।"
“आ...आपका मतलब है कि वह दोनों कोशिश...।" मदारी झटका सा खाकर बोला “इन्हीं दोनों महापुरुषों ने की थी?"
"हां इंस्पेक्टर। वह काम इन्हीं दोनों का था। लेकिन मुझसे ज्यादा इन दोनों की खुशकिस्मती कि दोनों ही बार यह दोनों नाकाम हो गए और मैं जिंदा बच गया। यह सच है कि वह गुत्थी बेहद उलझी हुई थी और तुम भी पता नहीं लगा पाए थे कि यह किसका काम है?"
"लेकिन आपने पता लगा लिया था?"
अजय और जतिन हकबकाए से जानकी लाल का एक-एक शब्द सुन रहे थे।
“तुमने ठीक कहा इंस्पेक्टर।” जानकी लाल बोला “मैंने अपने जरिए से यह मालूम कर लिया था कि यह काम इन्हीं दोनों का था। और यह जानने के बाद मैं हैरत में पड़ गया था कि इन दोनों ने आखिर यह हिमाकत क्यों की थी? बहरहाल, यह दोनों मेरी कंपनी के मुलाजिम थे और कंपनी में काफी अच्छे ओहदे पर थे। इसके बावजूद इन लोगों ने यह हरकत क्यों की थी?"
“आपने इन लोगों की खबर नहीं ली थी?"
"हरगिज भी नहीं इंस्पेक्टर। अपने दुश्मन को खबरदार करना मेरी फितरत नहीं है। मैंने तो इन्हें भनक भी नहीं लगने दी कि इनकी वह करतूत मुझ पर फाश हो चुकी थी।"
“तो फिर आपने क्या किया?"
“मैंने मामले की तह तक जाने का फैसला किया। और फिर उसी रोज से मैंने इनकी निगरानी का बंदोबस्त कर दिया।
और..."
“और आपके उसी बंदोबस्त ने आपको अंततः इनके अतीत में पहुंचा दिया।” मदारी ने जानकी लाल की बात पूरी कर दी "जिसके तार आपके अपने अतीत से जुड़े थे बरसों पहले अंजाम दिए गए उन गुनाहों से जुड़े थे, जिन्हें आप भूल चुके थे।"
“यह सच है इंस्पेक्टर।" जानकी लाल ने निःसंकोच कबूल किया “मैं सोच भी नहीं सकता था कि मेरे अतीत के गुनाह अब जवान हो चुके थे और आज मुझे डंसने के लिए मेरे दरवाजे पर पहुंच चुके थे। तुम सोच भी नहीं सकते इंस्पेक्टर कि उस वक्त मेरी क्या हालत हुई होगी।"
सभी की निगाहें जानकी लाल पर ही टिकी थीं। अजय और जतिन अवाक से सुन रहे थे।
“फिर आपने क्या किया भगवान?” मदारी ने अपने अंदाज में पूछा।
“मैं उस वक्त एक जबरदस्त अंतर्द्वद में फंस गया था इंस्पेक्टर
और उन हालात में मुझे क्या करना था, यह फैसला करने में, तुम यकीन नहीं करोगे इंस्पेक्टर, मुझे पूरा एक महीना लग गया।"
“ए...एक महीना। यह सचमुच बहुत ज्यादा वक्त था, लेकिन खैर आपका फैसला क्या था? वैसे आपके लिए इन दोनों को भी ठिकाने लगवा देना कोई ज्यादा मुश्किल तो नहीं था?"
“यह भी सच है इंस्पेक्टर। यह मेरे लिए ज्यादा मुश्किल नहीं था। लेकिन यह भी सच है कि मैं अभी पूरी तरह शैतान नहीं बना था। मेरे अंदर का इंसान अभी जिंदा था, जो मेरे अंदर के शैतान की गिरफ्त में सिसक रहा था और जिसने मुझे पूरा शैतान नहीं बनने दिया।"
“और आपने इन दोनों को ठिकाने लगाने का इरादा मुल्तवी कर दिया?”

"हां। केवल इतना ही नहीं, मैंने मन ही मन यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि मैं इन दिलजलों पर कोई आंच नहीं आने दूंगा। इनकी तरफ बढ़ने वाली हर मुसीबत के लिए फानूस बन जाऊंगा। मेरे गुनाहों के प्रायश्चित के लिए इससे बेहतर मौका दूसरा नहीं हो सकता था।” ।
“और उस तरह आपने हाथों में बंदूक उठाकर प्रायश्चित शुरू कर दिया। संजना, संदीप, सहगल और गोपाल, सबको...।”
“सहगल नहीं इंस्पेक्टर..." जानकी लाल ने उसे टोक दिया “सहगल का कातिल गोपाल है, और वह दोनों ही पुराने मुजरिम थे। उसका कत्ल मैंने नहीं गोपाल ने किया था। मगर गोपाल का कत्ल मेरे हाथों हुआ है, और सहगल की असलियत अब तुम्हें पता चल चुकी होगी?"
"सत्य वचन भगवान।"
“अगर कोई सवाल बाकी हो तो तुम बेहिचक पूछ सकते हो।” “मदारी के सवालों का पिटारा तो पूरी तरह खाली हो चुका है
श्रीमान। फिर भी एक सवाल खदक रहा है।"
"वह क्या?"
“मर्डर वैपन कहां है?"
जानकी लाल ने एक क्षण सोचा फिर उसने बिना किसी हुज्जत के अपनी जेब से निकालकर एक रिवॉल्वर मदारी की मेज पर रख दिया।
मदारी ने अपनी जेब से रूमाल निकालकर रिवॉल्वर पर डाला, फिर उसने उसे उठाकर उसका मुआयना किया।
वह एक अड़तालीस कैलीबर का रिवॉल्वर था। मदारी का सिर संतुष्टिपूर्ण भाव से हिला।
“बस एक आखिरी सवाल और भगवान।” वह जानकी लाल से बोला।
“वह भी पूछो।”
“आपने इन दोनों श्रीमती को यहां क्यों बुलाया?” मदारी का इशारा नैना और प्राची की तरफ था।
“अभी समझ में आ जाएगा।"
जानकी लाल खामोश हुआ तो हाल में पैना सन्नाटा छा गया।
उस तमाम रहस्योद्घाटन ने हर किसी को हिलाकर रख दिया था और अजय व जतिन की लाइन में अब रीनी भी आ खड़ी हुई थी।

और उस लाइन में उसके किरदार का बहुत गहरा दखल था। जानकी लाल की वह सारी ज्यादती उसकी मां के परिवार के साथ हुई थी। उसका पिता रीनी के माता-पिता और भाई का हत्यारा था और उसने महज दौलतमंद बनने के लिए उनके साथ मौत का वह खेल, खेला था। लेकिन साथ ही एक बड़ा सच यह भी था कि एक पिता के रूप में जानकी लाल का किरदार बहुत बुलंद और यादगार था। जिसने अपना हर फर्ज निभाया था और आज अगर वह जिंदा थी तो उसका श्रेय भी
उसके पिता को ही जाता था।
जानकी लाल की तजुर्बेदार निगाहों से उसकी वह मनः स्थिति छुप न सकी थी।
“मैं तेरा भी उतना ही मुजरिम हूं बेटी जितना अजय और जतिन का।” वह रीनी को देखता हुआ बोला “और उसके लिए मुझे तेरी हर सजा मंजूर है। लेकिन भूलकर भी कभी मेरे
दर के पिता पर संदेह मत करना बेटी। संदीप इसलिए भी सजा का हकदार था क्योंकि वह मेरा इतिहास दोहराने की कोशिश कर रहा था। जैसे कभी मैंने तेरी मां सरला को ढाल बनाकर अपनी कामयाबी का इतिहास रचा था, वैसे ही वह भी तेरा इस्तेमाल करके अपनी कामयाबी का रास्ता बनाना चाहता था।"
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Re: Thriller कांटा

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रीनी कुछ नहीं बोली केवल टकटकी बांधे उसे देखती भर रही। “तू भले ही अपने हाथों से मुझे गोली से उड़ा देना बेटी।"
जानकी लाल उससे बोला “लेकिन मेरे जीते जी मुझे मेरे पिता होने का अधिकार कभी मत छीनना, वरना शायद वह मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा।"
“ए....ऐसा... कभी नहीं होगा पापा।” रीनी अपने जज्बातों को रोक न सकी। वह एक बार फिर अपने पापा से लिपट गई
और फूट-फूटकर रोती हुई बोली “दुनिया की कोई भी ट्रेजडी इस सच को नहीं बदल सकती कि आप मेरे लिए सबसे अच्छे पापा हैं और मुझे लेकर आपके सारे अधिकार आपके पास
"शुक्रिया मेरी बच्ची।” जानकी लाल गदगद होकर बोला फिर उसने रीनी को अपने से अलग किया और वह जतिन के करीब पहुंचा।
“मुझे नहीं पता जतिन, मुझे लेकर इस वक्त तुम्हारे अंदर क्या चल रहा है।” वह पहली बार सीधे उससे ही मुखातिब हुआ था “मझे यह भी नहीं पता कि तमने मझे माफ किया अथवा नहीं, फिर भी इतना जरूर जान लो, गलतियां हर किसी से होती है गुनाह हर कोई करता है, लेकिन अपने गुनाहों के लिए प्रायश्चित कितनों में जागता है। और फिर सौगत भी तो
उतना ही बडा गुनाहगार था जितना कि मैं हं।"

“आ...आपने मेरी सारी शिकायतें दूर कर दी सर।” जतिन कम्पित स्वर में बोला। उसके स्वर में अफसोस स्पष्ट झलक रहा था “अब मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है। मैं शायद भूल गया था कि मैं भी एक मुजरिम का ही बेटा हूं। मगर आपने मुझे मुजरिम बनने से बचा लिया।"
"फिर भी शुरूआत तो मैंने ही की थी, इसलिए अंत भी मुझे ही करना होगा। एक बार मैंने ही तुम्हारी दुनिया उजाड़ी थी,
आज मैं इसे अपने हाथों से बसाना चाहता हूं।"
“म...मैं आपको मतलब नहीं समझा सर।"

“देश की इस राजधानी में रोजी ढूंढना आसान है लेकिन जीवनसाथी ढूंढना बहुत कठिन है।” जानकी लाल ने कहा “यहां कदम-कदम पर संजना जैसी विषकन्याएं भरी पड़ी हैं जो दौलत और हवस के लिए किसी के भी जज्बात का खून कर सकती हैं। मेरी बेटी रीनी भले ही विधवा है, लेकिन इसे पाकर कोई भी गर्व कर सकता है। मेरे बाद मेरा सब कुछ इसी का है और इसे मैं आज तुम्हारे हवाले करता हूं। क्या तुम इसे स्वीकार करोगे?"
जतिन हक्का-बक्का रह गया। अकेले जतिन ही नहीं, उसके इस फैसले ने सभी को चौंकाया था। उनके चेहरों पर आश्चर्य के भाव आ गए।
वह केवल रीनी ही थी जो चुपचाप खड़ी थी। उसका चेहरा पहले की तरह ही एकदम सपाट और भावहीन था।

“म....मगर यह कैसे हो सकता है सर?" जतिन चकित होकर बोला। "क्यों नहीं हो सकता?"

“म..मैं इस लायक नहीं हूं सर। म...मेरी हैसियत इतनी बड़ी नहीं है?”
“यह सोचना मेरा काम है।"
“म...मगर...।" जतिन जबरदस्त असमंजस में पड़ गया था। वह रीनी की ओर देखता हुआ बोला “पहले एक बार अपनी बेटी की मर्जी भी तो जान लीजिए सर।"
“इस मामले में मेरी बेटी का तजुर्बा बहुत खराब रहा है बरखुरदार, इसलिए मुझे उसकी मर्जी पूछने की कोई जरूरत नहीं है।"
जतिन की निगाह फिर रीनी से मिली। फिर उसने अपना चेहरा झुका लिया, जो कि उसकी मौन स्वीकृति था।
“शुक्रिया बेटे।” जानकी लाल गदगद होकर बोला “तुमने मेरा दिल का बोझ कम कर दिया।"
फिर वह अजय की ओर पलटा जो स्लेट की तरह सपाट चेहरा लिए उसे ही देख रहा था।
“अब मेरे पास ऐसा कुछ नहीं बचा अजय बेटे, जो तुम्हारे लायक हो।” जानकी लाल खाली-खाली नजरों से उसे देखता हुआ बोला “लेकिन मेरे अलावा भी कोई और है जिसने
तुम्हारे साथ जुल्म किया है, और उसका नाम वक्त है, जिसने पहले ही तुम्हारा आबाद परिवार, उसके बाद तुम्हारी आलोका
और जिंदगी की आखिरी आस को भी छीन लिया।"
उसके शब्दों की अजय पर फौरन प्रतिक्रिया हुई थी। अजय के चेहरे के भाव एकदम से चेंज हुए थे। उस पर एक लहर सी आकर गुजर गई थी।
“तुमने सचमुच वक्त के सितम को बर्दाश्त किया है।" जानकी लाल आगे बोला “लेकिन मत भूलो मेरे बच्चे, वक्त ही जख्म देता है और वक्त ही उन जख्मों का मरहम बनता है। और आज वही वक्त खुद तुम्हारा मरहम लेकर तुम्हारे पास आया है। उस लड़की को देख रहे हो?"
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Re: Thriller कांटा

Post by 007 »

अजय की निगाह तत्काल उसकी बताई हुई दिशा में प्राची की तरफ उठी उस प्राची की तरफ जो असल में आलोका थी और जो इतनी मुद्दत के बाद अजय के सामने आयी थी।
मगर कैसी विडम्बना थी कि अजय ने एक बार नजर उठाकर भी उसे नहीं देखा था। उस लड़की को नहीं देखा था जो उसकी जिंदगी का एक मकसद थी और जो उसके ख्वाबों की रूमानी ताबीर थी। न ही उसने उसे पहचाना था।
पहचानता भी जो कैसे? अब उसके पास आलोका का वह चेहरा था ही कहां जो उसकी रग-रग में समाई थी और जो हमेशा अपने कल्चर में यकीन रखती थी। जो सलवार-सूट
जैसी पारंपरिक पोशाक ही पहनती थी, जिसने जींस-टॉप जैसी पारंपरिक पोशाक का कभी समर्थन नहीं किया, लेकिन जो अब केवल वही वैस्टर्न कल्चर वाली पोशाक ही पहनती थी

और उस वक्त भी उसने जींस ही पहन रखी थी।
उसके मस्तक पर अठखेलियां करने वाली बालों की आवारा लट भी न जाने कहां गायब थी, जिसे वह अक्सर फूंक मारकर यथास्थान पहुंचा देती थी। और फिर खुद वह चंचल तितली आलोका भी अब कहां रही थी। कितना कुछ बदल
गया था उसकी जिंदगी में।
सब कुछ बदल गया था।
जानकी लाल का अनुसरण करती अजय की निगाह उस पर फोकस हुई। आलोका का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
मगर उफ्फ!
अजय के चेहरे पर पहचान के एक भी तो भाव नहीं आए थे। उन्हीं अजनबी निगाहों से उसे एक नजर देखकर वह पुनः जानकी लाल को देखने लगा था।
"लगता है तुम्हें कुछ भी याद नहीं आया बरखुरदार।" उसकी मनोदशा को समझता जानकी लाल बोला ।
अजय ने इंकार में सिर हिलाया।
“अभी याद आ जाएगा।” जानकी लाल इत्मिनान से बोला। फिर उसने आलोका को अपने करीब आने का इशारा किया।

आलोका हिचकिचाई। उसका दिल एक बार फिर जोर से धड़का। वह जानकी लाल के करीब पहुंचकर ठिठक गई।
अब वह और अजय आमने सामने थे।
“वक्त के साथ बहुत कुछ बदल जाता है मेरे बच्चो।" जानकी लाल अजय को देखता हुआ बोला “वक्त की आंधी कभी-कभी इंसान के नाम और उसकी पहचान को ही नहीं, उसके असली चेहरे को भी उड़ा ले जाती है, लेकिन फिर भी कुछ बच जाता है। इसे गौर से देखो, शायद तुम्हें कुछ याद आ जाए।"
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