Thriller कांटा

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Re: Thriller कांटा

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“अरे...।" उसके पीछे पहुंच चुका अजय उसकी हरकत पर चकित हुए बिना न रह सका था, उसने अनिश्चित भाव से पूछा “तुम ऐसे क्या देख रही हो सुगंधा?"

"कुछ देख रही हूं और...।” सुगंधा बड़े ड्रामेटिक अंदाज में बोली “समझने की भी कोशिश कर रही हूं।"

“म...मगर क्या ?" अजय का आश्चर्य बढ़ गया था। उसका दिल बेसाख्ता धड़क उठा।

“अरे तुम तो परेशान हो गए पार्टनर ।” सुगंधा उसकी तरफ पलटकर बड़े सहज भाव से बोली “मैं तो दरअसल यह जानने की कोशिश कर रही थी कि जब एक नौजवान लड़का घर पर तन्हा होता है तो क्या करता है?"

“ओह।” अजय के होठों से खुद-ब-खुद निकल गया। उसने सहज होकर पूछा “तो तुम किस नतीजे पर पहुंची?"

“वह मैं तुम्हारी बीवी बन जाने के बाद तुम्हें बताऊंगी।"

“अभी क्यों नहीं?"

“यह राज की बात है, जो तुम नहीं समझोगे। अरे...।” सहसा वह उसे देखकर चौंकी।

“अब क्या हुआ?" अजय हड़बड़ाया।

“तुमने पूछा नहीं कि अचानक ऐसा क्या हो गया जो मैं तुम्हारे पास यहां दौड़ी आयी?"

“अच्छा वह । अब वह पूछने की अब कहां जरूरत है। तुम बता चुकी हो कि तुमने मुझे सरप्राइज देने के लिए ऐसा किया

"लेकिन सरप्राइज का मौका भी तो रोज-रोज नहीं आता। उसके भी तो कुछ खास ही मौके आते हैं।"

“ओहो। तो लगता है आज कोई खास ही मौका है। तब तो फिर पूछना ही पड़ेगा। वैसे वह तो तुम्हारे खिले हुए चेहरे पर ही लिखा है कि जरूर कोई खुशखबरी है। बहरहाल वह खुशखबरी क्या है?"

“वह बड़ी खुशखबरी है पार्टनर...।" सुगंधा उल्लास से बोली “जिसे सबसे पहले मैं तुम्हें बताने जा रही हूं।” सुगंधा एक पल के लिए रुकी, फिर वह आगे बोली “यह तो तुम्हें मालूम है पार्टनर कि विदेश जाना मेरा बचपन का सपना था और मैं वहां एक अच्छी नौकरी भी हासिल करना चाहती थी, जिसके लिए विदेशों की कई कंपनियों में अपना सीवी भेज रखा था
और..."

"और क...क्या?" अजय का दिल धड़क रहा था। वह असमंजस भरी निगाहों से सुगंधा को देखने लगा था।

“और मुझे पूरा विश्वास था कि मेरे फील्ड में मेरे टेलेंट के मद्देनजर कोई कंपनी जरूर मेरा नोटिस लेगी और मुझे अपनी नौकरी के लिए ऑफर करेगी। और देख लो, आज मेरा विश्वास जीत गया।"


+
“य...यानि कि विदेश से किसी कंपनी ने तुम्हें नौकरी ऑफर की है?" अजय ने पूछा। उसके हाव-भाव एकदम से चेंज हो गए थे। लहजे में व्यग्रता उभर आयी थी।

“ओह यस पार्टनर ।” सुगंधा पूर्ववत उत्साहित भाव से बोली “अमेरिका की नामी कंपनी ने मुझे नौकरी ऑफर की है और अगले ही हफ्ते उसने मुझे रिक्रूटमेंट के लिए अमेरिका बुलाया है। इंडिया से अमेरिका आने-जाने का खर्च भी वही कंपनी उठाएगी और मेरे टेम्परेरी वीजा का इंतजाम भी वही कम्पनी कर रही है। यह देखो।” उसने एक कागज निकालकर अजय की ओर बढ़ाया।

“य...यह क्या है?" अजय ने उसके हाथ से कागज पकड़ते हुए असमंजस भरे भाव से पूछा।

“मेरा असाइनमेंट लेटर, जो उस फॉरेन कंपनी ने मुझे भेजा है। यह आज ही मुझे मिला है।”

“बहुत खूब।” अजय सरसरी तौर पर लेटर का मुआयना करने के बाद गौर से सुगंधा को देखता हुआ सशंक भाव से बोला "तो अब तुम अमेरिका जा रही हो?"

उसके लहजे में एक अजीब सा दर्द और कसक छिपी थी, जिसे सुगंधा ने फौरन महसूस कर लिया।

“यह तुमसे किसने कहा पार्टनर कि मैं अमेरिका जा रही हूं?" सुगंधा ने उल्टा सवाल किया।

"त...तो फिर?" अजय के चेहरे पर असमंजस के भाव गहरे हो गए।

“अगर मुझे यह ऑफर आज से पहले ऑफर हुआ होता तो मैं जरूर-जरूर अमेरिका चली जाने वाली थी। लेकिन आज...।"

"अ...आज क्या?" अजय ने सशंक भाव से पूछा।

“आज मैं चाहकर भी अमेरिका नहीं जा सकती।"

"म..मगर क्यों?” अजय के चेहरे पर राहत के भाव आए थे। उसने उत्सुक भाव से पूछा, जिसमें कौतूहल भी छिपा था।

“लगता है तुम भूल गए पार्टनर । तुम्हें याद है, पिछली मुलाकात में मैंने तुमसे क्या कहा था?"

"क...क्या कहा था?"

“यही कि कल तक तो मैं तुम्हें केवल प्यार करती थी, अब तुम्हारी पूजा किया करूंगी।"

“ओह।” अजय के होठों से निःश्वास निकल गई “तो अपना वह वादा तुम्हें याद है।"

“वादे भूलने के लिए नहीं किए जाते पार्टनर। मैंने तुमसे यह भी कहा था कि आलोका तो अपने प्यार का इम्तहान नहीं दे सकी, मगर मैं अपने प्यार का इम्तहान देकर दिखाऊंगी, और उसमें पास होकर भी।”

"हूं।” अजय ने संजीदगी से हुंकार भरी।

"मैंने तुमसे यह भी कहा था पार्टनर कि तुम मेरे कॅरियर को लेकर आशंकित न हो। हर लड़की आलोका नहीं होती। अगर कभी मुझे अपने कॅरियर और जीवन साथी में से किसी एक को चुनना पड़ा तो मैं निश्चित रूप से जीवन साथी को ही चुनूंगी। जीवन साथी अगर तुम्हारे जैसा सच्चा और निश्छल हो तो उसके लिए हजार कॅरियर कुर्बान किए जा सकते हैं।"
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Re: Thriller कांटा

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तब अजय के जीवन में जैसे नये प्राणों का संचार हुआ था। उसकी सारी शंकाएं एक झटके में ही मिट गई थीं।

“अ...अगर ऐसा है तो...।” उसने सवाल किया “यह लैटर तुमने मुझे क्यों दिखाया और इस खबर को सरप्राइज क्यों बताया?"

“क्योंकि यह हम दोनों के लिए सरप्राइज ही है पार्टनर । मैंने केवल हमारे प्यार की खातिर, महज अपने अजय की खातिर उस नौकरी को ठोकर मार दी, जो मेरे बचपन का ख्वाब थी और मैंने अपने प्यार के इम्तहान में पूरे नम्बरों से पास होकर दिखाया है। मेरे जीवन के इस सबसे अहम दोराहे पर, जहां मुझे अपने कॅरियर और जीवनसाथी में से किसी एक को चुनना था, मैंने अपने जीवन साथी को चुन लिया। यह हम दोनों के लिए ही किसी सरप्राइज से कम नहीं है। फिर यह सरप्राइज मैं तुम्हें कैसे न बताती।"

अजय जज्बाती हुए बिना न रह सका।

“यू आर ग्रेट सुगंधा।" वह भावुक होकर बोला “तुमने निस्संदेह कर दिखाया। अगर आज तुम भी आलोका की राह
पर चल पड़ी होती तो शायद जीवन के इस मोड़ पर मैं दोबारा यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाता और टूटकर बिखर जाता। हो सकता है कि हताशा में मैं खुद को ही खत्म कर डालता।"

“नहीं पार्टनर।” सुगंधा ने जल्दी से उसके मुंह पर हाथ रख दिया, फिर बोली “कभी भूलकर भी यह ख्याल अपने दिमाग में मत लाना।"

“अब नहीं लाऊंगा।" “थैक्स। अच्छा अब मैं चलती हूं।” "अरे इतनी जल्दी।” अजय चौंककर बोला।

“शायद तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो?" सुगंधा ठिठककर रुक गई थी और प्रश्नसूचक नेत्रों से उसे देखने लगी थी।

“ह...हां। कहना तो चाहता हूं।" “तो फिर कहो न। सोच क्या रहे हो?"

“सुगंधा...।” अजय हिचकिचाया, फिर उसने कहा “मैंने अपनी नौकरी से रिजाइन कर दिया है।"

“त...तुम्हारा मतलब है कि तुमने ब्लूलाइन कम्पनी छोड़ दी है?” “हां। मैं यही कहना चाहता हूं।"

"लेकिन क्यों?" सुगंधा के चेहरे पर उलझन के भाव नुमायां हुए थे “क्या तुम्हें कहीं दूसरी जॉब मिल गई है?"

"नहीं।"

"तो फिर?" सुगंधा की उलझन बढ़ गई थी। "अब मुझे किसी नौकरी की जरूरत नहीं।"

“मैं कुछ समझी नहीं पार्टनर। अचानक ही ऐसा क्या हो गया जो अब तुम्हें किसी नौकरी की जरूरत नहीं है?"

"बता दूंगा।"

“कब बता दोगे।”

“जब तुम मेरी दुल्हन बनकर मेरे घर में आ जाओगी।”

“वह तो तुम्हारे अपने हाथ में है। बताओ अपने पापा को कब तुम्हारे पास भेजूं। वैसे यह तो तुम्हें मालूम ही है कि मैंने अपने रिश्ते के बारे में अपने घरवालों को सब कुछ बता दिया है और उन्हें हमारे रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं है।"

“अ...अगले हफ्ते भेज दो।”

“इ...इतनी जल्दी?” सुगंधा चकित होकर बोली।


“अब मैं देर करना नहीं चाहता। एक बार देरी का नतीजा देख चुका हूं।”

“अगर यही तुम्हारी इच्छा है तो मैं तुम्हारी यह इच्छा पापा को बता दूंगी।"

“आलराइट।"

“अच्छा। अब मैं चलती हूं।"

“चलो, मैं तुम्हें नीचे तुम्हारी स्कूटी तक छोड़कर आता हूं।"
.
"ठीक है।"

वह दोनों लिफ्ट से नीचे पहुंचे, जहां सुगंधा की स्कूटी खड़ी थी। सुगंधा को विदा करके अजय लिफ्ट से वापस ऊपर पहुंचा तो अपने फ्लैट के दरवाजे पर उसने इंस्पेक्टर मदारी को मौजूद पाया। वह अभी-अभी लिफ्ट के बजाए सीढ़ियों के रास्ते ऊपर पहुंचा था और गहरी-गहरी सांसें भरता हुआ जैसे अजय के ही वापस आने का इंतजार कर रहा था।

“जय भोलेनाथ की।” अजय को देखते ही उसने नारा सा । लगाया। “अ....अरे इंस्पेक्टर, तुम कब आए?” अजय के मुंह से निकल गया।

उस वक्त उसे वहां देखकर अजय के माथे पर अनायास ही बल पड़ गए थे।

"बस अभी-अभी पहुंचा हूं।” मदारी अपनी उखड़ी सांसों पर काबू पाता हुआ बोला “तौबा, कितनी ऊंची चढ़ाई है।" उसने जैसे अजय से शिकायत की थी।

"लेकिन इस इमारत में लिफ्ट भी मौजूद है।" अजय ने उसे याद दिलाया।

“वह तो मुझे दोनों आंखों से दिखाई दे रही है जजमान। लेकिन आप शायद भूल गए कि सामने इंस्पेक्टर मदारी है, जो सरकार से हासिल होने वाली तनख्वाह की पाई-पाई हलाल करने में यकीन रखता है। इसीलिए मैं ड्यूटी के दरम्यान कभी लिफ्ट का इस्तेमाल नहीं करता। शुक्र है कि आप यहां मौजूद हैं, जैसे कि मेरे पिछले फेरे के दरम्यान मौजूद थे, वरना मेरी इतनी भयंकर मेहनत जाया चली गई होती।"

"लेकिन अब तुम्हें क्या काम आ पड़ा? पिछली बार कुछ रह गया था क्या?"

"कुछ क्या सब कुछ रह गया था श्रीमान, और बीच में फच्चर आ गया था।"

"क....क्या फच्चर आ गया था?"
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Re: Thriller कांटा

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“अरे वही श्री-श्री के एक्सीडेंट की मनहूस खबर बीच में आ टपकी थी।" मदारी ने उसे याद दिलाया “ऊपर वाले से दुआ करो कि इस बार बीच में कोई फच्चर न आए और मेरा काम समूचा निबट जाए।”

अजय की पेशानी पर बल पड़ गए थे। उस पुलिसिये का यूं अचानक दोबारा वहां आना उसे बहुत आंदोलित कर रहा था।

"लेकिन आखिर बात क्या है इंस्पेक्टर?" प्रत्यक्षतः उसने सुसंयत स्वर में पूछा लेकिन मन ही मन वह विचलित हो उठा था।

“आज भी यहीं खड़े-खड़े बातों का समापन करेंगे या मुझे अंदर तशरीफ लाने की इजाजत देंगे?"

“तुम्हें जो कुछ भी कहना है ऐसे ही कहो इंस्पेक्टर।"

मदारी के चेहरे पर मायूसी फैल गई।

“लाहौल बिला कूब्बत।” वह मुंह बिगाड़ता हुआ बोला।

"तुमने क्या कहा इंस्पेक्टर?"

“अभी कहां कहा है श्रीमान, अब कहने वाला हूं।" मदारी अपने सदाबहार अंदाज में बोला “वह क्या है कि आपके लिए मेरे पास एक से बढ़कर एक दो बुरी खबर हैं। बराय मेहरबानी आप यह बताने का कष्ट करें कि आप उसमें से कौन सी खबर पहले सुनना पसंद करेंगे? पहली, कम बुरी वाली या दूसरी, ज्यादा बुरी वाली?"

"लेकिन क्या हुआ है इंस्पेक्टर?” अजय का दिल धड़क उठा “आखिर बात क्या है?"

"चलिये मैं आपको पहले कम बुरी खबर सुनाता हूं।" मदारी बड़े इत्मिनान से बोला, जैसे कि उसे पता नहीं कितनी बड़ी
खुशखबरी सुनाने जा रहा हो “आपके भूतपूर्व एम्प्लायर श्री-श्री के इकलौते दामाद मरहूम संदीप महाजन का इंतकाल हो गया है।"

"क्या?” अजय चौंक पड़ा “स...संदीप मर गया?"

"खुद नहीं मरा जजमान....।” मदारी अपलक उसके चेहरे को देखता हुआ बोला “मार दिया गया उसका कत्ल कर दिया गया। अभी थोड़ी देर पहले ही वह बहादुर इस फानी दुनिया से फना हो गया।"
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Re: Thriller कांटा

Post by 007 »

“म...मगर यह कैसे हुआ इंस्पेक्टर? मेरा मतलब है संदीप को आखिर किसने मारा?"

+
“यह भी उसी बहादुर आदमी का कारनामा लगता है, जिसने बीते रोज श्रीमती का फातिहा पढ़ा था।”

"तुम्हारा मतलब है कि जिसने संजना को मारा था?"

“आपने एकदम सही समझा श्रीमान और मारने का स्टाइल भी तो देखो, एकदम श्रीमती वाला ही है।"

“वह कैसे?”

मदारी ने शराफत से उसे वह भी बता दिया कि कैसे रीनी ने फोन पर संदीप और कोमल की सारी बातें सुन ली थी और फिर कैसे हिंसक होकर उसने संदीप को मारने के लिए उस पर रिवॉल्वर तान दिया था। मगर इससे पहले कि वह संदीप को शूट कर पाती, संदीप ने एकाएक पासा पलट दिया था।
और फिर इसके पहले कि वह रीनी को कोई नुकसान पहुंचा पाता, किसी ने पीछे से उसे शूट कर दिया था।

“एकदम पिछले शूटआउट का रिवीजन है।” फिर मदारी बोला “हूबहू वही किस्सा है। जरा सा भी तो फर्क नहीं है दोनों मामले में।”

“और इसीलिए तुम्हारा अंदाजा है इंस्पेक्टर कि संदीप का कातिल भी वही है जिसने संजना का कत्ल किया है।"

“यह मेरा अंदाजा नहीं भगवान, यह साबित हो चुका है।"

“क...कैसे साबित हो चुका है?"

"जिस रिवॉल्वर से पहले संजना श्रीमती को शूट किया गया था, उसी रिवॉल्वर से संदीप श्रीमान का भी फातिहा पढ़ा गया है। फारेंसिक टीम की फौरी जांच से ही यह स्थापित हो चुका

“महज इसी से तुम्हारा ख्याल है कि दोनों का कातिल एक ही है।" "क्या मेरा ख्याल गलत है भगवान?"
.

"इस कड़ी में तुमने लाल साहब का नाम क्यों नहीं लिया? कत्ल तो उन्हें भी किया गया है?"

“आपने दुरुस्त फरमाया जजमान। लेकिन उसकी दो वजह हैं।”

“वह क्या?”

“पहली बात तो यह है कि श्री-श्री को गोली नहीं मारी गयी थी।”

“और दूसरी वजह?"

“दूसरी वजह यह है कि उनके कातिल का पता चल चुका है। यह उस महान अपराधी गोपालम् का जांबाजी भरा कारनामा है, जो हाल में अपनी उम्रकैद की सजा काट कर बाहर गया था। और इस काम के लिए उसे दूसरे कदरन कम महान अपराधी जनाब सहगल साहब ने सुपारी दी थी।"

“तो फिर यह दोनों कत्ल भी उसी क्रिमिनल गोपाल ने क्यों नहीं किए हो सकते?"

“आपका कहना मुनासिब है जजमान । इसीलिए मैंने भी इस तरफ अपनी तफ्तीश का पूरा जोर लगाया। लेकिन मुझे दूर-दूर तक एक भी ऐसी वजह नजर नहीं आयी जो कि उस गोपालम् को संजना श्रीमती और संदीप श्रीमान का दुश्मन ठहराती हो?"

“लाल साहब भी तो उस शूटर के दुश्मन नहीं थे। बल्कि आप ही कहते हैं कि वह उसके दोस्त थे और उन्होंने गोपाल की बहुत मदद की थी। फिर भी गोपाल ने उन्हें खत्म कर दिया?"

"इसका भी मैंने मुकम्मल संज्ञान लिया है श्रीमान। लेकिन नतीजा खाक भी नहीं निकला।"

"क..क्या मतलब?"

.
“माना कि दोनों ही मरहूम काफी फंदेबाज टाइप के इंसान थे, जिन्होंने अपनी जिंदगी में काफी कर्मकांड किए थे। इसीलिए मैंने उनकी जिंदगी के बीते लम्हों को छलनी लेकर खूब-खूब खंगाला है। लेकिन उनकी जिंदगी में मुझे ऐसा कोई भी खता खाया इंसान नजर नहीं आया, जो उन दोनों से कत्ल की हद तक तक अदावत रखता हो। और जब कोई ऐसी अदावत ही नहीं रखता तो फिर वह उनके कत्ल की सुपारी भला क्या लगाएगा?"

“ओह।"

“ऐसे फड़नवीस तो अकेले अपने श्री-श्री एक हजार पैंसठ ही थे, जिनके दुश्मनों की तादाद चीन की दीवार से भी ज्यादा लम्बी-चौड़ी थी।"

“इसीलिए तुम्हारा ख्याल है कि उन दोनों का कातिल गोपाल नहीं हो सकता?"

"क्या आपको नहीं लगता श्रीमान?"

“यानि कि लाल साहब का कातिल दूसरा है, और संजना और संदीप का कातिल दूसरा है?”

“आप बिल्कुल सही समझे भगवान ।”

“फिर भी कोई तो वजह होगी इंस्पेक्टर संदीप और संजना के कत्ल की?"

“यह भी आपने खूब कहा जजमान। सरासर वजह है। बिना वजह के तो इस धरती पर पत्ता भी नहीं खड़कता।"

"क्या वह वजह मालूम हुई?"

"यकीनन।"

"क...क्या वजह है? आखिर क्यों संदीप और संजना का कत्ल हुआ?"

“वह तो साफ दिखाई दे रही है अंडमान। जिन हालात में वह दोनों कत्ल हुए, अगर न होते तो वह दोनों परलोक सिधार जाते जिन पर उन दोनों महान आत्माओं ने रिवॉल्वर तान रखे थे।”

“म...मैं कुछ समझा नहीं इंस्पेक्टर?"

"इसमें भला न समझने वाला क्या है। एकदम सीधी सी बात है। अगर संदीप और संजना नाम की महान आत्माओं का फातिहा न पढ़ा जाता तो वह दोनों महान आत्माएं अपने जतिन श्रीमान और रीनी श्रीमती का फातिहा पढ देतीं।"

“इ...इसका मतलब कातिल को पहले से मालूम था कि...।" अजय के स्वर में व्यंग उभरा “जतिन और रीनी के साथ क्या होने वाला था। वह न हो पाए इसीलिए वह पहले से मौकाए वारदात पर छुपकर बैठा था और फिर जैसे ही वह मुनासिब मौका आया, उसने गोली चला दी। ठीक ।”

“पुलिस की टांग खींचने का घास खाने वालों को हक होता है श्रीमान।" मदारी गहरी सांस भरता हुआ बोला।

“घ...घास खाने वाले ?” अजय उलझकर बोला “यह कौन हुआ?" “आम आदमी भगवान । लेकिन आप उनसे थोड़ा सा ऊपर हैं।

बहरहाल आप क्या सोचते हैं यह अहमियत नहीं रखता। इसमें केवल सरकार के इस तनख्वाह हलाल इंस्पेक्टर का सोचा अहमियत रखता है। और मेरी सोच यही है कि उन दोनों कत्लों की वजह अपने जतिन श्रीमान और रीनी श्रीमती ही हैं, जिन्हें उसने बचा लिया।"

"तुम्हारा मतलब है कि कातिल ने उन्हें कत्ल होने से बचा लिया?” “आपने बजा फरमाया जजमान।"

“तब तो कातिल उन दोनों का शुभचिंतक हुआ? उनका कोई अपना हुआ?"

“भयंकर शुभचिंतक बोलो श्रीमान। बहरहाल शुभचिंतक तो आप भी बहुत लोगों के होंगे और बहुत लोग आपके भी होंगे। मगर क्या पहले कभी आपके किसी शुभचिंतक ने आपके लिए किसी का कत्ल किया है या आपने किसी अपने की शुभचिंता में किसी और का कत्ल किया है?"

“न...नहीं।” अजय ने स्वीकार किया और पहलू बदलकर मदारी को देखने लगा।

“सो देयर।” मदारी लापरवाही से बोला।

“तब तो तुम्हारे लिए ऐसे आदमी को तलाश करना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा। ऐसा शख्स तो आसानी से पकड़ में आ जाएगा।"

“यह इतना आसान भी नहीं है भगवान।"
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Re: Thriller कांटा

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"व....वह कैसे?"

“कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली।"

"क...क्या मतलब?"

“समझें श्रीमान। कहां रीनी श्रीमती, जो कि आसमान की सितारा है श्री-श्री जैसी हस्ती की इकलौती लाड़ली है। जबकि
कहां वह जतिन श्रीमान, जो आप ही की तरह श्री-श्री की कंपनी के महज एक मुलाजिम। अब आप ही बताए, किसी फन्ने खां के लिए इन दोनों की अहमियत एक बराबर आखिर कैसे हो सकती है? या फिर...।” उसने जरा ठहरकर तिरछी निगाहों से अजय को देखा, फिर आगे बोला “हो सकती हैं...?"

“न...नहीं हो सकती।” अजय ने हिचकिचाते हुए स्वीकार किया “काफी पेचीदा मामला लगता है।"

“आप खुद ही देख लीजिए श्रीमान। अगर ऐसा न होता तो क्या सरकारी तनख्वाह की पाई-पाई हलाल करने वाले इंस्पेक्टर को यह मिस्ट्री सुलझाने में इतना वक्त लगता?"

“क..क्या तुम यही बताने के लिए यहां मेरे पास आए हो?"

"अजी तौबा कीजिए श्रीमान। सरकार का यह नमक हलाल इंस्पेक्टर आपको इतना गैर-जिम्मेदार लगता है, जो सरकारी पेट्रोल को इतनी बेरहमी से इस्तेमाल करेगा।"

त....तो फिर?” अजय फिर आशंकित हो उठा था।

“वैसे बात बहुत ज्यादा खास नहीं है जजमान, मगर फिर भी बात तो सरासर है।"

"लेकिन बात क्या है इंस्पेक्टर?"

“दरअसल...।” मदारी ने एकात्मक अपनी कमर में खोंसी हड़कड़ी निकालकर अजय के चेहरे के सामने लहराई और फिर वह पहले जैसे ही सहज भाव से बोला “मैं आपको गिरफ्तार करने आया हूं भगवान । यू आर अंडर अरेस्ट।”

“व्हाट!"

अजय एकाएक जैसे आसमान से गिरा था। वह भौंचक्का सा होकर मदारी का मुंह देखने लगा।
कितनी ही देर तक सहगल की वह हालत रही।

बात ही ऐसी थी।

टैक्सी ड्राइवर की नकली पगड़ी और दाढ़ी-मूंछ हटते ही जो चेहरा नजर आया था, वह गोपाल का चेहरा था। जिसकी आंखों में सहगल को साफ-साफ अपनी मौत नजर आयी थी। जबकि गोपाल की जैसे बरसों की मुराद पूरी हो गई थी।

उस शातिर अपराधी के चेहरे पर सुकून के भाव आ गए थे।

"हे...हे. हे..।" वह एक खतरनाक हंसी हंसकर फिर बोला। उसका लहजा सहगल का मजाक उड़ाने वाला था “ड्राइवर भी फर्जी, पैसेंजर भी फर्जी। कैसी रही बाबा।”

"त...त..तुम?" बोलने की कोशिश में सहगल हकलाया और आंखें फाड़-फाड़कर गोपाल को देखता हुआ बोला “तुम?"

“मैं ही है न बाबा।” गोपाल बड़ी मुहब्बत से बोला। फिर उसने एक फरमाइशी आह भरी “शुक्र है कि अपने बाबा ने मेरे को पहचान लिया। अब...।" उसकी निगाह सहगल की सरदार वाली पगड़ी और दाढ़ी-मूंछ पर घूमी “इस बहरूप की जरूरत नक्को। इसको उतारकर अलग कर ले। या फिर ठहर, यह काम मैं खुद करता हूं।" उसने झपट्टा मारकर एक ही झटके में सहगल की पगड़ी उछाल दी और उसके चेहरे से नकली दाढ़ी-मूंछ खींचकर अलग कर दी। अब सहगल अपने असली चेहरे में उसके सामने था।

“जी आया नूं।" गोपाल से नाटकीय अंदाज में बोला। फिर उसने हाथों से सहगल की बलैया ले डाली “कितना अरसा हो गया इस सूरत को देखे हुए, जरा सी भी तो नहीं बदली। नजर न लग जाए किसी की।"

"क....क्या नहीं बदली?" सहगल हकलाया और अपलक गोपाल को देखने लगा था।

“तेरी सूरत भोलेनाथ, और क्या? बीस साल पहले जब तू मेरे गैंग में काम करता था तो कैसा मरगिल्ला हुआ करता था जवानी की तौहीन उड़ाता था। औरों पे जवानी में शबाब आता है, पर तेरे को तो बुढ़ापे में आया। नहीं? हा...हा...हा.हा।"

गोपाल ने जोर से अट्टहास किया।
.
+
“द...देख गोपाल...।” सहगल एकाएक पुरजोर स्वर में बोला। उसके लहजे में घिघियाहट साफ झलक रही थी “मैं...।"

“अभी सुनेगा न।” गोपाल ने उसे बोलने का मौका नहीं दिया था “खातिर जमा रख बाबा, मैं तेरी बात ठोककर सुनेगा। पण पहले तेरे को मेरी बात सुनना होगा। वैसे...।” सहसा वह ठिठका फिर उसे घूरकर बोला "तेरे को ऐसा तो नहीं लग रहा कि मैं तेरा नाम भूल गया होयेगा।"

“न...नहीं। मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता।”

“बराबर बोला बाबा। मैं साला बादशाह अपने पंटर का नाम कैसे भूल जाएगा। सवाल ही नहीं उठता। हा...हा...हा..।" उसने फिर से जोर का अट्टहास किया। लेकिन फिर एकाएक खामोश हो गया।
सहगल टकटकी लगाकर उसे देखने लगा था।

"मगर तेरे को तो अपना नाम याद है या फिर तू अपना नाम भूल गया?" गोपाल ने पूछा “बोल बाबा। तेरे को अपना नाम याद है न?"

"ह...हां।” सहगल ने कठिनता से सहमति में अपना सिर हिलाया और कसमसाकर बोला “य..याद है।"

“अच्छा।" गोपाल ने हैरान होने का दिखावा किया, जैसे कि उसे सहगल की बात पर विश्वास न हुआ हो, फिर बोला “तो फिर एक बार जरा ऊंचा बोलकर बता ताकि मेरे को यकीन आ जाए।”
सहगल हिचकिचाया।

“तूने सुना नहीं बाबा।” गोपाल का लहजा सर्द हुआ था “लगता है ऊंचा सुनने लगा है कान में कोई नुक्स आ गया है।"

“स...स...साबिर।” सहगल ने कहा।
.
.
“क्या बोला, मैंने सुना नहीं। जरा फिर से बोल।"

“सा...साबिर ।” सहगल ने दोहराया।

"शाबाश।” गोपाल खुश हो गया “यानि कि तेरे को अपना नाम याद है। अब आगे बोल ।”
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

(¨`·.·´¨) Always

`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &

(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !

`·.¸.·´
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