Incest माँ का आशिक

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josef
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Re: Incest माँ का आशिक

Post by josef »

रेशमा शहनाज की बात मान गई और उसके साथ ही सो गई, शहनाज़ जान बूझकर उससे देर रात तक बाते करती रही ताकि वो जब सोए तो गहरी नींद में सोए। आखिर कार जान बात करते हुए रेशमा सो गई तो शहनाज ने सुकून की सांस ली और वो भी सो गई। दूसरी तरफ शादाब भी मन बना चुका था कि वो सुबह अपनी बुआ के साथ शहर चल जाएगा।


अगले दिन सुबह उठकर सबने साथ में नाश्ता किया और सब बैठे हुए बाते कर रहे थे। तभी रेशमा ने अपना जाल फेंका।

रेशमा:" अब्बू मैं सोच रही थी कि अगर आप सच इजाज़त दे तो मैं शादाब को अपने साथ शहर के जाऊ कुछ दिन के लिए! इतने दिन बाद मिला हैं बच्चे भ खुश हो जाएंगे इससे मिलकर ।

दादा:" हान बेटी ले जाओ इसमें पूछने वाली क्या बात हैं !

शादाब भी खुश हो गया और बोला :" हां बुआ मेरा भी मन है आपके साथ शहर जाने का! यहां गांव में मेरा कोई दोस्त भी नहीं है

रेशमा:" बस एक बार शहनाज भाभी भी हां कर दे तो अच्छा होगा!!

शहनाज:" मुझे कोई दिक्कत नही है, बस सोच रही थी कि इतने साल बाद मेरा बेटा घर आया है, अभी तो ठीक से देखा भी नहीं है मैंने अपने लाल को, मैं सोच रही थी कि पहले कुछ दिन मेरे साथ ही रह ले तो अच्छा होगा।

रेशमा की झांटे सुलग गई और बोली:" भाभी मैं तो एक हफ्ते बाद ही वापिस भेज दूंगी।

दादी:" देख बेटी रेशमा, तुम्हे शहनाज की बात समझनी चाहिए क्योंकि एक मा होने के नाते बेटे के लिए उसका दर्द मैं समझ सकती हूं और तुम्हे भी समझना चाहिए ये ।

अब किसी के पास कोई जवाब नहीं बचा था इसलिए रेशमा अकेले ही जाने को मजबूर हो गई। लेकिन उसे उम्मीद थी कि एक हफ्ते के बाद वो जरूर शादाब को अपने साथ ले जाएगी।

शहनाज़ की खुशी का आज कोई ठिकाना नहीं था इसलिए रेशमा के जाने के बाद उसने अपनी सास का मुंह चूम लिया। दादा दादी बहुत खुश हुए और शादाब भी ये सब देखकर मुस्कुरा दिया ।

शहनाज थोड़ी देर खाना बनाने के लिए उपर चली गई। वो जानती थी कि अगर उसे अपने बेटे को इन चुड़ैल औरतों से बचाना हैं तो उसे अपने साथ ही रखना होगा और सही गलत का फर्क मैं खुद समझाऊंगी। तभी शहनाज़ के होंठ मुस्करा उठे क्योंकि उस एहसास हुआ कि वो क्या अपने बेटे को सही गलत का पाठ पढ़ाएगी वो तो खुद ही उसे देखते ही सब कुछ भूलकर बहक जाती है। तभी शहनाज़ का दिल तड़प उठा और उसके विचार आया कि ये ही तो हैं वो तेरे सपनो का शहजादा जिसके री दिन रात सपने देखा करती थी। अब जब तेरे सामने हैं तो क्यों खुद को रोक रही हैं, बस तेरा बेटा हैं सिर्फ इसलिए। तुझे याद रखना चाहिए कि वो पहले एक मर्द हैं और जवान हो चुका हैं जिसे देखकर लड़कियां ही नहीं बल्कि औरतें भी तड़प रही है। रेशमा तो उसे अपने साथ ही ले जाना चाहती थी ताकि उसे फसा ले। उफ्फ कल वो दो औरतें कितनी गंदी गंदी बाते कर रही थी मेरे बेटे के बारे में और वो तो उसका नंबर भी लेकर गई है। मुझे ध्यान रखना होगा कि वो रेशमा के साथ उन सब से भी बच सके, इसलिए लिए मुझे क्या करना होगा!!

क्या मुझे अपने बेटे को अपनी तरफ आकर्षित करना चाहिए, क्या मैं इस उम्र में ऐसा कर पाऊंगी, उफ्फ मै ये क्या सोचने लगी। ये बात सोचते ही उसका चेहरा एक बार फिर से शर्म से लाल हो उठा। उसकी सांसे फिर से तेजी से चलने लगी जिससे उसकी चूचियां अपना आकार दिखाते हुए नजर आने लगी।
शहनाज़ ने गौर से अपनी चूचियों को देखा तो उसे आज पहली बार अपनी चुचियों पर घमंड हुआ। उफ्फ आज भी कैसी तनी हुई और ठोस हैं मेरी चूचियां, रेशमा के मुकाबले तो कहीं ज्यादा अच्छी हैं। वो शीशे के सामने खड़ी खड़ी हो गई और अपने आपको आज पहली बार जी भर कर निहारने लगी तो उसकी खुद की आंखे ही शर्म से झुक गई। उसने एक बार अपने हाथ को अपने सूट के गले में डाल कर हल्का सा चौड़ा किया तो उसकी चूचियों की गोरी खाई साफ नजर आने लगी, चूचियां एक दूसरे से ऐसे मिली हुई थी मानो एक दूसरे को दबाने की कोशिश कर रही हो। शहनाज की आंखे ये सब देखकर लाल सुर्ख हो उठी और उसने एक बार शीशे में अपनी खुद से नजरे मिलाई तो शर्म के मारे घूम गई जिससे उसकी भारी भरकम गांड़ शीशे के सामने अा गई। वैसे तो इसके जिस्म का हर हिस्सा एक से एक खूबसूरती लिए हुआ था लेकिन शहनाज़ की गांड़ उसके शरीर का सबसे खूबसूरत और सेक्सी हिस्सा थी। उसके मन में एक बार शीशे में अपनी गांड़ को देखने की इच्छा जाग उठी तो उसका दिल तेजी से धड़का और शर्म के मारे उसकी आंखे बंद हो गई। उसने बड़ी मुश्किल से बंद आंखो के साथ ही शीशे की तरफ अपना मुंह किया और कांपते हुए अपनी आंखो को हल्का सा खोला तो उसकी नजर अपनी गांड़ पर पड़ी और शर्म और उत्तेजना के मारे उसकी आंखे फिर से बंद हो गई। उसका दिल इतनी तेजी से धड़क रहा था मानो फट ही जाएगा और उसकी चूचियां कपडे फाड़ कर बाहर निकल जाएगी। उसने अपनी उछलती हुई चूचियों को काबू करने के लिए अपने दोनो हाथ अपने सीने पर टिका दिए और हिम्मत करके फिर से अपनी आंखो को खोलते हुए गांड़ को देखा तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। उसे अपनी गांड़ देख कर ऐसा लग रहा था मानो उसकी सलवार में दो गोल गोल फुटबाल जबरदस्ती घुसा दी गई है।उसकी गांड़ रेशमा के मुकाबले कहीं ज्यादा ठोस और बड़ी थी। सच पूछो तो उसने आज तक किसी की भी इतनी तगड़ी गांड़ नहीं देखी थी। शहनाज आज बहुत खुश हुई क्योंकि आज उसे सच में पहली बार पता चल रहा था कि वो एक जीती जागती क़यामत हैं जिसके एक इशारे पर दुनिया का कोई भी मर्द उसके तलवे चाटने पर मजबूर हो जाएगा फिर मेरा बेटा क्या चीज़ है।
शहनाज़ के दिल में एक और सोच उभरी और उसके होंठो पर एक कातिल मुस्कान तैर गई और वो खुद ही अपने आप से शर्मा गई और उसने दोनो हाथो से शर्म के मारे अपने चेहरे को ढक लिया।
और मन ही मन मैं सोचने लगीं

" उफ्फ हाय अल्लाह मैं ये क्या गंदा सोच रही थी, कैसे आखिर कैसे मैं खुद ही अपनी वो वो क्या कहते हैं उसको उफ्फ मुझसे से नाम भी नहीं लिया जाएगा देख पाऊंगी जो मेरी टांगो के बीच में छिपी हुई है। शादाब के अब्बू बोलते थे कि मेरा असली खजाना तो वो ही हैं। लेकिन मैं कभी शर्म के मारे उन्हें नहीं दिखा पाई। खुद कैसे देखू !!

तभी उसे उपर किसी के आने की आहट हुई तो वो अपने ख़यालो से बाहर अाई और उसने देखा कि उसका बेटा शादाब उपर अा गया हैं जो कुछ उदास लग रहा था।

शहनाज़:" बेटा क्या हुआ ? कुछ परेशान लग रहे हो?

शादाब:" अम्मी गांव में मेरा एक भी दोस्त नहीं हैं, मेरा कैसे मन लगेगा यहां अकेले, इससे अच्छा तो आपने बुआ के साथ जाने दिया होता।

शहनाज़ अपने बेटे की पीड़ा समझ गई क्योंकि सचमुच गांव में उसका कोई दोस्त नहीं था। उसने अपने बेटे को समझाते हुए कहा:"

" बेटा दोस्त भी बन जाएंगे तेरे यहां, बस मेरा मन नहीं किया तुझे इतनी जल्दी अपने से जुदा करने का। इसलिए तुझे नहीं जाने दिया। क्या तेरा इतनी बड़ी अपनी अम्मी से मन भर गया क्योंकि ऐसी बाते कर रहा हैं।

इतना बोलकर शहनाज का फूल सा नाजुक चेहरा उदास हो गया तो शादाब को अपनी गलती का एहसास हुआ और बोला:" गलती हो गई अम्मी माफ कर दो,!!

इतना कहकर वो दौड़ता हुआ अपनी अम्मी के गले लग गया और उसे अपनी बांहों में भर लिया, शहनाज ने भी अपनी बांहे अपने बेटे की कमर पर कस दी।
josef
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Re: Incest माँ का आशिक

Post by josef »

(^%$^-1rs((7)
badlraj
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Re: Incest माँ का आशिक

Post by badlraj »

बहुत मस्त कहानी है भाई
josef
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Re: Incest माँ का आशिक

Post by josef »

badlraj wrote: 28 Apr 2020 07:40 बहुत मस्त कहानी है भाई
😪
josef
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Re: Incest माँ का आशिक

Post by josef »

शहनाज़:" बेटा मुझे कभी छोड़ कर मत जाना, मैं तेरे बिना नहीं जी पाऊंगी मेरे लाल क्योंकि अब तेरे सिवा मेरा कोई नहीं है।

शहनाज़ ने ये सब पूरी तरह से भावुक होकर कहा और अपना चेहरा अपने बेटे के सीने में छुपा लिया। शादाब भी अपनी अम्मी के साथ भावनाओ में बहता चला गया और शहनाज़ के बालो में उंगली फिराने लगा। अपने बेटे का इतना प्यार देख कर शहनाज की आंखे छलक उठी और जैसे ही शादाब को उसके आंसुओ का एहसास हुआ तो वो तड़प उठा और अपनी अम्मी के चेहरे को उपर उठा कर उसके आंसू अपनी जीभ से चाटने लगा और उसका चेहरा साफ करने के बाद बोला:"

" बस अम्मी, मत रोओ आप, आपके सिर की कसम मैं सब आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा। अब स्माइल करो जल्दी से प्यारी सी आप।

शहनाज़ ने अपने आंखे खोलकर अपने बेटे को देखा तो खुशी के मारे उसकी आंखो से फिर से एक आशू टपक पड़ा तो शादाब ने उसका चेहरा अपने दोनो हाथों में थाम लिया और बोला:"

" अम्मी आपके इस चांद से खूबसूरत मुखड़े पर आंसू अच्छे नहीं लगते, आपको मेरी कसम अब आप नहीं रोएगी।

शहनाज ने बड़ी मुश्किल से अपने आंसू रोके और बोली:"
" चल झूठा कहीं का, जब देखो मेरी तारीफ़ करता रहता हैं, तुझे तो तेरी बुआ ज्यादा खुबसुरत लगती हैं तभी तो अपनी मा को छोड़कर उसके साथ जा रहा था।।
शादाब:"नहीं अम्मी, ऐसा कुछ भी नहीं हैं, वो तो आपके सामने कुछ भी नहीं हैं, आपसे हसीन से पूरी दुनिया में कोई हो ही नहीं सकती। बस मेरा दोस्त नहीं हैं यहां कोई इसलिए शहर जा रहा था।

शहनाज अपने बेटे की बाते सुनकर खुश हो गई और उसके कंधे को सहलाते हुए बोली:"

" मैं समझती हूं कि तेरा यहां कोई दोस्त नहीं हैं, क्या तू अपनी मा से दोस्ती करेगा बेटा ?

शहनाज़ ये बाते जाने किस आवेश में आकर बोल गई और जब उसने अपने शब्दो पर ध्यान दिया तो लाज शर्म के मारे उसका चेहरा लाल हो गया और वो अपने से पूरी जोर से चिपक गई उसका सीना बहुत तेजी से धड़कने लगा।

शादाब अपनी अम्मी की बात सुनकर खुश हो गया कि जरूर अम्मी भी मुझसे रेशमा बुआ की तरह दोस्ती करना चाहती हैं, लेकिन मेरी सगी मा हैं इसलिए मुझे धैर्य और प्यार से काम लेना होगा।

शादाब:" सच अम्मी क्या आप सचमुच आप अपने बेटे से दोस्ती करेंगी ?
शहनाज़ की तो जैसे बोलती बंद हो गई, उसने अपने बेटे के कंधे पर अपने हाथो का दबाव बढ़ा दिया मानो उसे इशारा कर रही हो कि हा मैं तुझसे दोस्ती करने के लिए तैयार हूं। शादाब समझ तो सब कुछ गया लेकिन फिर वो जानता था कि उसकी अम्मी एक दम फूल की तरह नाजुक और शर्मीली हैं इसलिए वो उसके मुंह से फिर से सुनना चाहता था ताकि उसकी शर्म और घबराहट कुछ कम हो सके।

शादाब ने अपनी अम्मी के चेहरे को हाथ से पकड़ कर उपर की तरफ उठाया तो उसका चेहरा अपने आप उपर उठता चला गया। शर्म और डर के मारे उसकी आंखे बंद हो गई थी और गाल आज कुछ ज्यादा ही गुलाबी होकर दमक रहे थे। उसके गुलाब की पंखुड़ियों के जैसे नाजुक और रसभरे होंठ अपने आप खुल और बंद हो रहे थे।

शादाब अपनी अम्मी के चांद से सुंदर मुखड़े को जी भर कर देख रहा था और अपने एक हाथ से शहनाज़ के गाल सहलाते हुए बोला:" मेरी चांद सी प्यारी अम्मी प्लीज़ अपनी आंखे खोल दीजिए एक बार बस!!

शहनाज ने बड़ी मुश्किल से अपनी आंखो को खोल दिया तो शादाब उसकी आंखो में झांकने लगा जहां सिर्फ उसे अपने और अपने लिए बेशुमार मोहब्बत नजर आईं। ऐसा पहली बार हुआ था कि शहनाज ऐसे अपने बेटे की आंखो में झांक रही थी जिस असर ये हुआ कि वो उसकी आंखो में पूरी तरह से खोल गई।
शादाब अपने अम्मी के बालो के गाल को हल्का सा सहला कर बोला:"
" अम्मी एक बार मेरी आंखो में देख कर बोलिए ??

शहनाज़ को अपने बेटे की आंखो में अपने लिए सिर्फ प्यार नजर आया और भावनाओ में बहकर उसने हाथ आगे बढ़ा कर अपने बेटे का चेहरा थाम लिया।


शहनाज़ उसकी आंखो में पूरी तरह से खोते हुए बोली:"

" बेटा तेरी ये मा शहनाज़ तुझसे दोस्ती करना चाहती है, क्या तुम मेरे दोस्त बनोगे?

शादाब के हाथ अपने आप अपनी अम्मी की पतली और नाजुक कमर पर पहुंच गए और उसकी कमर को सहलाते हुए बोला:"

" अम्मी मुझसे आपकी दोस्ती कुबूल हैं! आपका ये बेटा आपकी दोस्ती में अपनी जान भी लुटा देगा आपकी कसम!!

अपने बेटे की बात सुनकर शहनाज को यकीन हुआ कि उसका बेटा पूरी तरह से अब सिर्फ उसका हैं इसलिए उसने आगे बढकर अपने बेटे का मुंह चूम लिया। शादाब भी अपनी अम्मी से पूरी तरह से कस कर गया और उनकी कमर को जोर से अपनी तरफ खींच लिया जिससे मा बेटे के बीच की सारी दूरी खत्म हो गई जिससे कपड़ों के ऊपर से ही उनके जिस्म एक दूसरे से मिल गए। जैसे ही शहनाज़ ने अपने बेटे का गाल छोड़ा तो उसका बेटा पूरे जोश के साथ उसके गुलाबी गाल पर टूट पड़ा और मुंह में भर कर जोर जोर से चूसने लगा। अपने बेटे के प्रहार से शहनाज़ बुरी तरह से कसमसाने लगी और उसके हाथ को जोर जोर से दबाने लगी। शादाब ने अपनी अम्मी के गाल पर हल्के से अपनी जीभ को फिराया तो शहनाज़ के मुंह से एक मस्ती भरी सिसकी निकल पड़ी जिसके उसके बेटे ने सुन लिया और उसकी कमर को जोर जोर से सहलाने लगा। उत्तेजना के मारे शहनाज़ की हालत खराब होने लगी और उसकी गर्म गर्म सांसे शादाब की गर्दन पर पड़ने लगी तो शादाब ने पूरी तरह से मदहोश होकर अपनी अम्मी के गाल पर जोर से दांत गड़ा दिए जिसकी उम्मीद को शहनाज़ को बिल्कुल भी नहीं थी जिस करण उसके मुंह से एक हल्की दर्द भरी चींखं निकल पड़ी तो शादाब ने डर के मारे उसका गाल छोड़ दिया। शहनाज़ का गला दांतो के निशान से पूरी तरह से लाल पड़ गया था।

शादाब को अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने अपनी अम्मी को छोड़ते हुए अपने दोनो कान पकड़ लिए और उठक बैठक लगाने लगा। ये सब देखकर शहनाज की हंसी छूट गई और बोली:"
" बस कर मेरे बच्चे, मैं नाराज नहीं हूं तुझसे!
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