मै थोड़ा बहुत तो जानती ही थी के उस की ज़िंदगी में कई लड़कियाँ आ चुकी थीं और शायद अब भी थीं . फिर मेरी तरफ उस का झूकाओ समझ में ना आने वाली बात थी. ये सोच कर में बहुत हद तक मुतमाइन हो गई और इन अंदेशात को अपने ज़हन से निकाल बाहर किया.
लेकिन अगले दिन कुछ ऐसा हुआ के मेरा शक यक़ीन में बदल गया. दोपहर के वक़्त जब खालिद सोअ हुए थे और में उनके बेड की चादर ठीक कर रही थी अमजद पता नही क्यों मेरे पीछे से गुज़रा और उस ने अपना हाथ मेरे चूतड़ों के साथ रगड़ा. मुझे अपने एक चूतड़ के ऊपर उस के हाथ का बा-क़ायदा दबाव महसूस हुआ. ऐसा लगा जैसे उस ने मेरे चूतड़ों को को टटोला हो. किसी भी औरत के लिये ये मुश्किल नही होता के वो अपने बदन पर मर्द का हाथ महसूस करे और ये ना समझे के वो हाथ किया करना चाहता है. जो कुछ अमजद ने किया था गलती से नही हो सकता था क्योंके वहाँ काफ़ी जगह थी और अगर वो चाहता तो आराम से मुझ से टकराए बगैर गुज़र सकता था.
हैरत की जगह अब गुस्से ने ले ली और मेरा पारा चढ़ने लगा के वो अपनी फूफी के साथ ऐसी गंदी हरकत कर रहा है. पता नही एक अच्छे भले जवान लड़के को किया हो गया है जो अपने से कहीं बड़ी उमर की औरत में इस तरह की दिल-चस्पी ले रहा है? लेकिन में ये सोच कर चुप रही के उस ने ना सिरफ़ खालिद की बीमारी में मेरा बहुत साथ दिया था बल्के इन चंद दिनों में मेरा और उस का रिश्ता बड़ा क़ुरबत वाला हो गया था. अगर में उस से बात करती भी तो हो सकता था के वो साफ़ मुकर जाता और मुझे कहता के आप ये कैसी बात कर रही हैं मैंने ऐसा कुछ नही किया. मै किस तरह साबित करती के जो में कह रही हूँ वो सही है? इस तरह करने से मेरा उस के साथ ताअलूक़ भी खराब होता और अपने भाई के साथ भी.
ये वक़्त भी ऐसा नही था के में कोई हंगामा खड़ा करती और खालिद को परेशां करती. और अगर ये बात बाहर निकलती तो खानदान वालों को भी उल्टी सीधी बातें करने का मोक़ा मिल जाता. ख़ानदानों में ऐसी बातें आनन फानन फैल जाती हैं.
मै ऐसा कुछ नही करना चाहती थी जिस की वजह से कोई भी मुझ पर हंस सके. पता नही ऐसा करना गलत था या सही लेकिन मैंने अमजद की इस हरकत को भी नज़र-अंदाज़ करने की कोशिश की और अपने रवये से ये ज़ाहिर नही होने दिया के में उस के दिल के चोर को जान गई हूँ. मै बिल्कुल पहले ही की तरह बिहेव करती रही.
लेकिन अब में खामोशी से उस की हरकत-ओ-सकनत को ज़रूर बा-गौर देखने लगी. वाक़ई वो नज़र बचा कर बार बार मेरे मम्मों की तरफ देखता था और बहाने बहाने से मेरे क़रीब होने की कोशिश करता था. कमरे में तीन चार नर्सस का आना जाना लगा रहता था और उन में से एक काफ़ी जवान और खुश-शकल भी थी. मै उनके आने पर अमजद के रद-ए-अमल को देखा करती थी लेकिन ये अजीब बात थी के उस ने कभी किसी भी नर्स में बिल्कुल कोई दिल-चस्पी नही ली. एक तरफ तो ये था जबके दूसरी तरफ मेरे साथ उस की मस्तियाँ मुसलसल बढ़ती ही जा रही थीं .
लज़्ज़त का एहसास (मिसेस नादिरा )complete
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Re: लज़्ज़त का एहसास (मिसेस नादिरा )
उसी रात हम वॉक के लिये लॉन में गए. लॉन के किनारों पर लगे हुए लॅंप पोस्ट्स के ज़र्द ज़र्द बल्ब जल रहे थे मगर कोई बहुत iज़ियादा रोशनी नही थी. अमजद ने बातों के दोरान मेरी कमर में हाथ डाल दिया और मेरे बाज़ू के नीचे से मेरे बांया मम्मे की साइड पर दबाव डाला. मैंने अब भी कोई रिऐक्शन ज़ाहिर नही किया. उस ने काफ़ी देर तक बातें करते करते मेरे मम्मे पर अपना हाथ रखा रहने दिया. मेरे बदन में बिजली सी दौड़ गई. लगता था के उससे मेरे मम्मे कुछ ज़ियादा ही पसंद थे और वो उन्हे हाथ लगाने से अपने आप को रोक नही पा रहा था. मै इस तरह दुपट्टा ओढ़ा तो नही करती थी मगर अब उस से बचने के लिये में अपने दुपट्टे के अंदर जिस हद तक अपने मम्मों को छुपा सकती थी छुपाने लगी.
तीसरे दिन एक और बड़ा अजीब वाक़िया हुआ. अमजद शाम को नहाने धोने के लिये अपने घर चला गया और रात को काफ़ी लेट वापस आया. खालिद उस वक़्त तक सो चुके थे. जब वो कमरे में दाखिल हुआ तो उस ने खालिद की तरफ देखा और मुस्कुराते हुए बड़े नॉर्मल अंदाज़ में मुझ से गले मिला. लेकिन गले मिलते मिलते उस ने अपना एक हाथ मेरे दुपट्टे के नीचे किया और बड़ी बे-खॉफ़ी से मेरा एक मम्मा अपने हाथ में पकड़ लिया. ये महज़ हाथ लगाना नही था बल्के उस ने मेरे पूरे मम्मे को हाथ में ले रखा था.
मुझ से गले मिलने के चंद सेकेंड्स के दोरान उस ने मेरा मम्मा अपने हाथ में ही रखा और फिर मुझ से अलग होते हुए ब्रा के ऊपर ही से उससे हल्का सा दबाया. मै तो उस की दीदा-दलैरी पे हैरत-ज़दा ही रह गई. मै अपने बीमार शौहर के सामने उससे कुछ कह कर कोई तल्खी पैदा नही करना चाहती थी इस लिये खामोश रही. वो कमरे में बैठ गया और ऐसे ज़ाहिर करने लगा जैसे कुछ हुआ ही ना हो.
में सोचने लगी. उस के रवये से ये अंदाज़ा नही लगाया जा सकता था के उस के दिल में कुछ ऐसा है. वो सारा सारा दिन मुझ से बे-तहाशा बातें करता लेकिन अब तक उस के मुँह से कोई क़ाबिल-ए-ऐतराज़ बात नही निकली थी. लेकिन एक औरत होने के नाते मुझे उस की आँखों में सेक्स की नंगी हवस नाचती हुई साफ़ नज़र आ रही थी. मेरे ज़हन में अब कोई शक-ओ-शुबा नही रह गया था के मेरा भतीजा मुझे चोदना चाहता था और इस मक़सद के लिये मुझे राज़ी करने की कोशिश कर रहा था. ज़ियादा परेशां-कन बात ये थी के उस के हाथ दिन-बा-दिन बे-क़ाबू ही होते जा रहे थे. वो दिन में कई कई दफ़ा मुख्तलीफ़ हिले बहानो से मेरे मम्मों और चूतड़ों को हाथ लगाता था. इस में भी कोई शक़ नही था के मेरी खामोशी से भी उस की हिम्मत बढ़ रही थी. मुझे उससे बहुत पहले ही रोक लेना चाहिये था. अब मेरा ज़हन इसी सवाल में उलझा हुआ था के उससे रोकने के लिये किया तरीक़ा इकतियार करूँ के साँप भी मार जाए और लाठी भी ना टूटे.
उस दिन वो घर से बर्म्यूडा शॉर्ट्स पहन कर आया था जो घुटनो तक लंबे और बहुत खुले हुए निक्कर्स होते हैं. रात के पिछल पहर जब खालिद गहरी नींद सोये हुए थे में रेफ्रिजरेटर से शायद पानी निकालने के लिये उठी. अमजद भी उसी वक़्त किसी बहाने से उठा और मेरे पीछे आ कर बड़ी बे-शर्मी के साथ मेरे चूतड़ों पर अपना पूरा हाथ फेरा. मै रेफ्रिजरेटर का दरवाज़ा बंद कर के मुड़ी तो मुझे नज़र आया के उस के बर्म्यूडा शॉर्ट्स में उस का लंड खड़ा हुआ है और रानों के बीच वाली जगह काफ़ी उभरी हुई है. उस के लंड का उभार बीच में नही बल्के एक साइड पर था जिसे देख कर में कह सकती थी उस ने अंडरवेर नही पहना हुआ था. उस ने फॉरन सॉरी कहा जैसे ये सब गलती से हुआ था.
अब वो शायद मुझे साफ़ तौर से इशारे करा रहा था के उस का लंड मेरी चूत में जाने के लिये बे-ताब है. बात अब यहाँ तक पुहँच गई थी के हाथों के साथ साथ उस का लंड भी बे-क़ाबू हो रहा था. सोफा-कम-बेड पर बैठते हुए उस ने देख लिया के मैंने उस के खड़े हुए लंड पर नज़र डाली है. वो कुछ बोला नही मगर मुझे ऐसे लगा जैसे उस के होठों पर बिल्कुल खफीफ सी मुस्कुराहट आ गई हो. हाँ उस का चेहरे और बॉडी लॅंग्वेज से पता चल रहा था के वो बहुत गरम हो चुका है. उस ने अपने अकड़े हुए लंड को मुझ से छुपाने की भी कोई कोशिश नही की. वो ये बात मुझ तक साफ़ तौर से पुहँचा देना चाहता था के उस की नज़र मेरी चूत पर है.
तीसरे दिन एक और बड़ा अजीब वाक़िया हुआ. अमजद शाम को नहाने धोने के लिये अपने घर चला गया और रात को काफ़ी लेट वापस आया. खालिद उस वक़्त तक सो चुके थे. जब वो कमरे में दाखिल हुआ तो उस ने खालिद की तरफ देखा और मुस्कुराते हुए बड़े नॉर्मल अंदाज़ में मुझ से गले मिला. लेकिन गले मिलते मिलते उस ने अपना एक हाथ मेरे दुपट्टे के नीचे किया और बड़ी बे-खॉफ़ी से मेरा एक मम्मा अपने हाथ में पकड़ लिया. ये महज़ हाथ लगाना नही था बल्के उस ने मेरे पूरे मम्मे को हाथ में ले रखा था.
मुझ से गले मिलने के चंद सेकेंड्स के दोरान उस ने मेरा मम्मा अपने हाथ में ही रखा और फिर मुझ से अलग होते हुए ब्रा के ऊपर ही से उससे हल्का सा दबाया. मै तो उस की दीदा-दलैरी पे हैरत-ज़दा ही रह गई. मै अपने बीमार शौहर के सामने उससे कुछ कह कर कोई तल्खी पैदा नही करना चाहती थी इस लिये खामोश रही. वो कमरे में बैठ गया और ऐसे ज़ाहिर करने लगा जैसे कुछ हुआ ही ना हो.
में सोचने लगी. उस के रवये से ये अंदाज़ा नही लगाया जा सकता था के उस के दिल में कुछ ऐसा है. वो सारा सारा दिन मुझ से बे-तहाशा बातें करता लेकिन अब तक उस के मुँह से कोई क़ाबिल-ए-ऐतराज़ बात नही निकली थी. लेकिन एक औरत होने के नाते मुझे उस की आँखों में सेक्स की नंगी हवस नाचती हुई साफ़ नज़र आ रही थी. मेरे ज़हन में अब कोई शक-ओ-शुबा नही रह गया था के मेरा भतीजा मुझे चोदना चाहता था और इस मक़सद के लिये मुझे राज़ी करने की कोशिश कर रहा था. ज़ियादा परेशां-कन बात ये थी के उस के हाथ दिन-बा-दिन बे-क़ाबू ही होते जा रहे थे. वो दिन में कई कई दफ़ा मुख्तलीफ़ हिले बहानो से मेरे मम्मों और चूतड़ों को हाथ लगाता था. इस में भी कोई शक़ नही था के मेरी खामोशी से भी उस की हिम्मत बढ़ रही थी. मुझे उससे बहुत पहले ही रोक लेना चाहिये था. अब मेरा ज़हन इसी सवाल में उलझा हुआ था के उससे रोकने के लिये किया तरीक़ा इकतियार करूँ के साँप भी मार जाए और लाठी भी ना टूटे.
उस दिन वो घर से बर्म्यूडा शॉर्ट्स पहन कर आया था जो घुटनो तक लंबे और बहुत खुले हुए निक्कर्स होते हैं. रात के पिछल पहर जब खालिद गहरी नींद सोये हुए थे में रेफ्रिजरेटर से शायद पानी निकालने के लिये उठी. अमजद भी उसी वक़्त किसी बहाने से उठा और मेरे पीछे आ कर बड़ी बे-शर्मी के साथ मेरे चूतड़ों पर अपना पूरा हाथ फेरा. मै रेफ्रिजरेटर का दरवाज़ा बंद कर के मुड़ी तो मुझे नज़र आया के उस के बर्म्यूडा शॉर्ट्स में उस का लंड खड़ा हुआ है और रानों के बीच वाली जगह काफ़ी उभरी हुई है. उस के लंड का उभार बीच में नही बल्के एक साइड पर था जिसे देख कर में कह सकती थी उस ने अंडरवेर नही पहना हुआ था. उस ने फॉरन सॉरी कहा जैसे ये सब गलती से हुआ था.
अब वो शायद मुझे साफ़ तौर से इशारे करा रहा था के उस का लंड मेरी चूत में जाने के लिये बे-ताब है. बात अब यहाँ तक पुहँच गई थी के हाथों के साथ साथ उस का लंड भी बे-क़ाबू हो रहा था. सोफा-कम-बेड पर बैठते हुए उस ने देख लिया के मैंने उस के खड़े हुए लंड पर नज़र डाली है. वो कुछ बोला नही मगर मुझे ऐसे लगा जैसे उस के होठों पर बिल्कुल खफीफ सी मुस्कुराहट आ गई हो. हाँ उस का चेहरे और बॉडी लॅंग्वेज से पता चल रहा था के वो बहुत गरम हो चुका है. उस ने अपने अकड़े हुए लंड को मुझ से छुपाने की भी कोई कोशिश नही की. वो ये बात मुझ तक साफ़ तौर से पुहँचा देना चाहता था के उस की नज़र मेरी चूत पर है.
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Re: लज़्ज़त का एहसास (मिसेस नादिरा )
में समझ गई के अगर उससे मोक़ा मिलता तो वो मेरी चूत में अपना लंड घुसाने में एक लम्हे की भी देर ना करता. ये सोच कर के ना-जाने उस ने ख़यालों ही ख़यालों में कितनी दफ़ा मेरी चूत मारी होगी में शर्मिंदा सी हो गई. जब रिश्तों के भरम टूटने लगते हैं तो तक़लीफ़ तो होती ही है. ये भी कुछ ऐसी ही बात थी. मैंने बड़ी संजीदगी से सोचा के उस के साथ अलहड़गी में बात करूँ और समझाओं के वो ऐसा ना करे मगर ना-जाने क्यों हिम्मत नही पड़ी.
वैसे अमजद ने अभी तक मेरे साथ कोई ऐसी बात नही की थी जिस से में अंदाज़ा लगा सकती के वो मुझे पटाने की कोशिश कर रहा है. वो ज़बान के बजाईय अपने हाथों से काम ले रहा था. मेरे मम्मों को पकड़ने और चूतड़ों पर बार बार हाथ फेरने के अलावा उस ने अभी तक और कुछ नही किया था. अगर ये सब कुछ वो महज़ तफरीह के लिये कर रहा था और इन मामलात को सिरफ़ यहीं तक रखना चाहता था तो मेरी गांड़ को हाथ लगाते हुए उस का लंड क्यों खड़ा हो गया था? और अगर ऐसा हो ही गया था तो उस ने अपने लंड को मुझ से छुपाने की कोशिश क्यों नही की? किया उस के खड़े हुए लंड को देख कर मुझे अंदाज़ा ना हो जाता के वो मुझे चोदना चाहता है? ऐसी सूरत में बात तफरीह तक तो ना रहती. मै बिल्कुल समझ नही पा रही थी के उस के ज़हन में किया था.
हाँ अब उस में एक और तब्दीली आ रही थी. पहले उस की आँखों में सिरफ़ और सिरफ़ सेक्स की हवस होती थी लेकिन अब मैंने महसूस किया के वो मेरे चेहरे को बड़े मुहब्बत भरे अंदाज़ में देखता रहता है. देर तक बगैर पलक झपकय जैसे मेरे नाक़ूश को अपने दिल के अंदर उतार लेना चाहता हो. मै खालिस हवस और खालिस मुहब्बत के फ़र्क़ से वाक़िफ़ थी.
खालिस हवस औरत के बदन के गिर्द घूमती है लेकिन खालिस मुहब्बत उस के बदन और शख्सियत दोनो का इहात करती है. मुझे यक़ीन होता जा रहा था के वो मुझ से मुहब्बत करने लगा है और अब बात सिरफ़ सेक्स की खाहिश तक नही रह गई.
इसी दोरान मेरे दिल में दो तरह के एहसासात ने जनम लेना शुरू किया. एक गुस्से का एहसास और दूसरा दबी दबी खुशी का एहसास. मुझे गुस्सा तो इस लिये आ रहा था के मेरा भतीजा होने के बावजूद उस ने ये सोचने की भी जुर्रत कैसे की के वो मुझे चोदना चाहे गा और में उससे ऐसा करने दूँ गी. उस ने किया मुझे इतने ही कमज़ोर किरदार की औरत समझ रखा था? उससे मालूम होना चाहिये था के में ऐसी औरत नही थी. अगर में शादी-शुदा और दो बच्चों की माँ होते हुए अपने भतीजे को चूत देने पर राज़ी हो जाती तो वो किया समझता के उस की फूफी किस क़िसम की औरत है. ये तो इंतिहा बुरी हरकत होती.
वैसे अमजद ने अभी तक मेरे साथ कोई ऐसी बात नही की थी जिस से में अंदाज़ा लगा सकती के वो मुझे पटाने की कोशिश कर रहा है. वो ज़बान के बजाईय अपने हाथों से काम ले रहा था. मेरे मम्मों को पकड़ने और चूतड़ों पर बार बार हाथ फेरने के अलावा उस ने अभी तक और कुछ नही किया था. अगर ये सब कुछ वो महज़ तफरीह के लिये कर रहा था और इन मामलात को सिरफ़ यहीं तक रखना चाहता था तो मेरी गांड़ को हाथ लगाते हुए उस का लंड क्यों खड़ा हो गया था? और अगर ऐसा हो ही गया था तो उस ने अपने लंड को मुझ से छुपाने की कोशिश क्यों नही की? किया उस के खड़े हुए लंड को देख कर मुझे अंदाज़ा ना हो जाता के वो मुझे चोदना चाहता है? ऐसी सूरत में बात तफरीह तक तो ना रहती. मै बिल्कुल समझ नही पा रही थी के उस के ज़हन में किया था.
हाँ अब उस में एक और तब्दीली आ रही थी. पहले उस की आँखों में सिरफ़ और सिरफ़ सेक्स की हवस होती थी लेकिन अब मैंने महसूस किया के वो मेरे चेहरे को बड़े मुहब्बत भरे अंदाज़ में देखता रहता है. देर तक बगैर पलक झपकय जैसे मेरे नाक़ूश को अपने दिल के अंदर उतार लेना चाहता हो. मै खालिस हवस और खालिस मुहब्बत के फ़र्क़ से वाक़िफ़ थी.
खालिस हवस औरत के बदन के गिर्द घूमती है लेकिन खालिस मुहब्बत उस के बदन और शख्सियत दोनो का इहात करती है. मुझे यक़ीन होता जा रहा था के वो मुझ से मुहब्बत करने लगा है और अब बात सिरफ़ सेक्स की खाहिश तक नही रह गई.
इसी दोरान मेरे दिल में दो तरह के एहसासात ने जनम लेना शुरू किया. एक गुस्से का एहसास और दूसरा दबी दबी खुशी का एहसास. मुझे गुस्सा तो इस लिये आ रहा था के मेरा भतीजा होने के बावजूद उस ने ये सोचने की भी जुर्रत कैसे की के वो मुझे चोदना चाहे गा और में उससे ऐसा करने दूँ गी. उस ने किया मुझे इतने ही कमज़ोर किरदार की औरत समझ रखा था? उससे मालूम होना चाहिये था के में ऐसी औरत नही थी. अगर में शादी-शुदा और दो बच्चों की माँ होते हुए अपने भतीजे को चूत देने पर राज़ी हो जाती तो वो किया समझता के उस की फूफी किस क़िसम की औरत है. ये तो इंतिहा बुरी हरकत होती.
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Re: लज़्ज़त का एहसास (मिसेस नादिरा )
लेकिन मेरे दिल के किसी हिस्से में ये बात खुशी का बॅयाइस भी बन रही थी के मेरा सागा भतीजा होते हुए भी वो मेरे लिये पागल हो रहा था और अपने हाथों को मेरे बदन से दूर नही रख पा रहा था. मैंने तो 20 साल की उमर भी किसी में अपने लिये ऐसी दीवानगी नही देखी थी. मुझ में कुछ तो ऐसा था जिस ने उससे दीवाना बना दिया था. मेरी उमर की किसी औरत में अगर किसी मर्द के लिये इतनी सेक्स अपील हो तो वो किसी से कुछ कहे या ना कहे मगर अंदर ही अंदर उससे इस बात की खुशी ज़रूर होती है.
मेरे दिमाग में इन दो एहसासात में शायद जंग चल रही थी. फिर देखते ही देखते खुशी ने गुस्से को शिकस्त दे दी और में अमजद की हरकतों को हल्के हल्के खौफ के साथ एंजाय करने लगी. हैरत की बात तो ये थी के अच्छी तरह जान लेने के बाद भी के वो मेरी चूत मारना चाहता है में अपने आप को उससे रोकने पर राज़ी नही कर पा रही थी और एक अजीब ताज़ाबज़ुब का शिकार थी. मुझे उस से कोई ऐसा खौफ भी महसूस नही हो रहा था जो किसी शरीफ औरत को ऐसे मर्द से होना चाहिये जो उस की चूत लेना चाहता हो. मै तो बल्के उल्टा इन सब बातों के बावजूद उस का कुछ ज़ियादा ही ख़याल रखने लगी थी.
चोथे दिन में में कुछ देर के लिये हॉस्पिटल से घर गई तो वापस आने से पहले नहा धो कर मैंने अच्छा ख़ासा मेक-उप कर लिया.
लेकिन फिर अपने आप को आईने में देख कर मुझे ख़याल आया के ये में किया कर रही हूँ? इस तरह मेक उप कर के तो में अमजद को खुला खुला पैगाम दे रही हूँ के मुझे भी उस में दिलचस्पी है. मैंने फॉरन अपना मेक उप काफ़ी कम कर दिया लेकिन फिर भी आम दिनों से कुछ ज़ियादा ही बनाओ सिंघार किया. आएने के सामने बार बार मेरी नज़रें अपने मम्मों पड़ रही थीं और बहुत अरसे के बाद ऐसा हुआ था के उनके मोटे और बड़े बड़े उभार मुझे बहुत अच्छे लग रहे थे. जो कुछ में कर रही थी वो भी बड़ी शर्मनाक और परेशां-कन बात थी जिस ने मुझे अपनी दिमागी हालत के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया.
शादी के बाद मेरी ज़िंदगी बड़ी पूर-सकूँ और ठहराव वाली रही थी और उस में किसी क़िसम के जोश-ओ-वलवले या सस्पेनस का कोई अंसार नही था. मेरे रोज़-ओ-शब में किसी अंन-होनी की कोई गूंजाइश् नज़र नही आती थी. लेकिन मेरा भतीजा मेरे साथ जो कुछ कर रहा था वो किसी अंन-होनी से कम नही था. मै तो कभी सोच भी नही सकती थी के शादी के 13 बरस बाद मेरे साथ ऐसा भी हो सकता है. शायद इसी लिये में दिल ही दिल में उस की हरकतों से लुत्फ़-अंदोज़ हो रही थी. लेकिन इस का ये मतलब हर गिज़ नही है के में उस से अपनी चूत मरवाना चाहती थी. मेरे लिये ऐसा सोचना भी तक़लीफ़ और कराहट का बॅयाइस था. सिरफ़ इतना था के उस की हरकतें मुझे एक मुआममेय और मिस्टरी की तरह दिल-चस्प लगने लगी थीं और मेरी रुकी हुई ज़िंदगी जैसे सरपट दौड़ने लगी थी.
मेरे दिमाग में इन दो एहसासात में शायद जंग चल रही थी. फिर देखते ही देखते खुशी ने गुस्से को शिकस्त दे दी और में अमजद की हरकतों को हल्के हल्के खौफ के साथ एंजाय करने लगी. हैरत की बात तो ये थी के अच्छी तरह जान लेने के बाद भी के वो मेरी चूत मारना चाहता है में अपने आप को उससे रोकने पर राज़ी नही कर पा रही थी और एक अजीब ताज़ाबज़ुब का शिकार थी. मुझे उस से कोई ऐसा खौफ भी महसूस नही हो रहा था जो किसी शरीफ औरत को ऐसे मर्द से होना चाहिये जो उस की चूत लेना चाहता हो. मै तो बल्के उल्टा इन सब बातों के बावजूद उस का कुछ ज़ियादा ही ख़याल रखने लगी थी.
चोथे दिन में में कुछ देर के लिये हॉस्पिटल से घर गई तो वापस आने से पहले नहा धो कर मैंने अच्छा ख़ासा मेक-उप कर लिया.
लेकिन फिर अपने आप को आईने में देख कर मुझे ख़याल आया के ये में किया कर रही हूँ? इस तरह मेक उप कर के तो में अमजद को खुला खुला पैगाम दे रही हूँ के मुझे भी उस में दिलचस्पी है. मैंने फॉरन अपना मेक उप काफ़ी कम कर दिया लेकिन फिर भी आम दिनों से कुछ ज़ियादा ही बनाओ सिंघार किया. आएने के सामने बार बार मेरी नज़रें अपने मम्मों पड़ रही थीं और बहुत अरसे के बाद ऐसा हुआ था के उनके मोटे और बड़े बड़े उभार मुझे बहुत अच्छे लग रहे थे. जो कुछ में कर रही थी वो भी बड़ी शर्मनाक और परेशां-कन बात थी जिस ने मुझे अपनी दिमागी हालत के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया.
शादी के बाद मेरी ज़िंदगी बड़ी पूर-सकूँ और ठहराव वाली रही थी और उस में किसी क़िसम के जोश-ओ-वलवले या सस्पेनस का कोई अंसार नही था. मेरे रोज़-ओ-शब में किसी अंन-होनी की कोई गूंजाइश् नज़र नही आती थी. लेकिन मेरा भतीजा मेरे साथ जो कुछ कर रहा था वो किसी अंन-होनी से कम नही था. मै तो कभी सोच भी नही सकती थी के शादी के 13 बरस बाद मेरे साथ ऐसा भी हो सकता है. शायद इसी लिये में दिल ही दिल में उस की हरकतों से लुत्फ़-अंदोज़ हो रही थी. लेकिन इस का ये मतलब हर गिज़ नही है के में उस से अपनी चूत मरवाना चाहती थी. मेरे लिये ऐसा सोचना भी तक़लीफ़ और कराहट का बॅयाइस था. सिरफ़ इतना था के उस की हरकतें मुझे एक मुआममेय और मिस्टरी की तरह दिल-चस्प लगने लगी थीं और मेरी रुकी हुई ज़िंदगी जैसे सरपट दौड़ने लगी थी.