Horror अगिया बेताल

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Dolly sharma
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Re: Horror अगिया बेताल

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किसी आदमखोर भेड़िए की तरह मैं एक मासूम बच्चे का अपहरण कर लाया था और अपने क्रूर अपराध की पुनरावृत्ति कर दी। चांद की मुर्दा चांदनी को बलि देकर उसे और भी भयानक बना दिया और बेताल की कामना पूरी कर दी। अब मुझे ऐसा लग रहा था जैसे बेताल मेरा गुलाम नहीं, मैं उसका गुलाम हूं, मैं उसे सर्वशक्तिमान बनाने के लिये कुकृत्य कर रहा हूं।

मैं अपने आप से दूर भागने का प्रयास कर रहा था। निर्दोष बच्चे ने मेरा क्या बिगाड़ा था। उसकी हौलनाक चीख मेरे कलेजे में बैठी हुई थी। अपने झोपड़े तक पहुंचते पहुंचते मैं परेशान हो गया।

मुझे फिर से विनीता याद आ गई।

ना जाने क्यों मैं उसके प्रति अन्याय नहीं करना चाहता था। वह रात की तन्हाई, अगले दिन मैं बेसुध सा अपने झोपड़े में पड़ा रहा। मुझे भूख नहीं लग रही थी। शाम को मुझे कुछ सुध आई और मैं झोपड़े से बाहर निकल गया।आज मैं जंगलों के रास्ते चल पड़ा, सारी रात में पैदल यात्रा करता रहा फिर उस बस्ती में पहुंचा, जहां विनीता मुझे मिली थी। मुझे मालूम था कि वह सेठ निरंजन दास की बेटी है… सेठ निरंजन दास जमींदार थे। यूँ तो निरंजन दास किसी बड़े शहर में रहते थे परंतु यहां उनकी जन्मभूमि थी। मुझे यह नहीं मालूम था कि वह कहां रहते हैं।

मैंने सोचा यदि मैं बस्ती में गया तो बस्ती वाले मुझे पहचान जाएंगे, यूं मैं पिछली रात भी इसी बस्ती में आया था और यहीं से बच्चे का हरण किया था। वह बच्चा लगभग छः वर्ष का था और आंगन में खेल रहा था। मैंने उसे लालच देकर अपने पास बुला लिया। उस वक्त अंधेरा हो चुका था, परंतु रात अधिक नहीं बी ती थी और कुछ समय के लिये बच्चे के पास जो बूढा व्यक्ति बैठा आंगन में हवाखोरी कर रहा था,वह मकान के भीतर चला गया था।

तभी मुझे अवसर मिल गया और उसके बाद मैंने अपना काम कर दिखाया।

मैंने एक राहगीर से सेठ निरंजन दास के बारे में पूछा। वह अनजान था, फिर मैंने दो - चार स्थानीय आदमियों से पूछताछ की। शीघ्र ही मुझे मालूम हो गया कि निरंजन दास कहां ठहरे हुए हैं। उसका यहां पुराना मकान था। मैं अपने आपको लोगों की निगाह से बचाता हुआ उस तरफ चल पड़ा। जब मैं उक्त पते पर पहुंचा, तो बुरी तरह चौक पड़ा। वही मकान था, जिस के आंगन में मैंने बच्चे का अपहरण किया था। मेरे मन में शंका उठी और दिल जोर जोर से धड़कने लगा। मेरे कदम ठिठक गए।

मकान के प्रांगण में मुझे काफी लोग नजर आए, जिसके चेहरे लटके हुए थे और वे विनीता तथा उस बूढ़े व्यक्ति के इर्द-गिर्द जमा थे… विनीता अपना चेहरा हाथों में छिपाए थी।

वहां से निकल रहे एक आदमी से मैंने पूछा -
“क्यों भाई -- यहां क्या हुआ है ?”

“बच्चा खो गया है।” उसने बताया।

“किसका बच्चा।”

“सेठ निरंजन दास की लड़की विनीता का…. बेचारे बड़े धर्मात्मा लोग हैं… ईश्वर करे उनका बच्चा जल्दी मिल जाए… विनीता जी की जिंदगी का एक ही सहारा है। अगर बच्चे को कुछ हो गया तो….।”

“तो….।” मेरा स्वर अटक गया।”

“तो वे अपनी जान दे देगी…।”

“नहीं….।”

परंतु वह व्यक्ति आगे बढ़ चुका था। मेरा सिर चकराने लगा - क्या मैंने क्या कर दिया…. मैंने यह पाप क्यों किया…. कमीने बेताल…. यह सब तेरे कारण हुआ….. क्या मैं इन गुनाहों का प्रायश्चित कर पाऊंगा। जिस विनीता की मन ही मन पूजा की थी, जिसे देवी मान लिया था -- मैंने उसका दामन बीरान कर दिया। अब मेरे अंदर इतना साहस नहीं था कि मैं आगे बढ़ सकूं।

मैं उलटे पैरों वापिस लौट पड़ा। मेरे पांव लड़खड़ा रहे थे और आंखों के आगे अंधेरा छाता जा रहा था। मुझे अपनी दुनिया अंधेरी नजर आ रही थी।

“नहीं चाहिए मुझे यह पांव….।” मैं बड़बड़ा रहा था - ”अब मुझे अपने आप को कानून के हवाले कर देना चाहिए”

ना जाने कब मैं अपने झोपड़े में पहुंचा और बिस्तरे पर गिर पड़ा। फिर मैं तीन दिन तक बेसुध पड़ा रहा, न तो मैंने बेताल को याद किया और ना बाहर निकलने का प्रयास किया।

अचानक तीसरी रात बेताल स्वयं उपस्थित हुआ।

“क्या बात है - तुम क्यों आए… मैंने तुम्हें याद नहीं किया।”

“मैं आपकी भावनाओं को समझता हूं मेरे आका।”

“आका के बच्चे… तूने मुझसे इतना बड़ा पाप करवा दिया।”

“यह कोई पाप नहीं…. इंसान की जिंदगी का मूल्य नहीं आका…।”

“चला जा बेताल… यहां से चला जा….।”

“मैं आपकी रक्षा करने के लिये आया हूं आका - अपने प्राणों की कीमत समझिए…. मैं हरगिज़ ऐसा नहीं होने दूंगा कि कोई आपके प्राण हर ले….।”

“मेरे प्राण… कौन हर रहा है मेरे प्राण।”

“जरा बाहर निकलिये फिर मैं आपको तमाशा दिखाता हूं। आप पर मूठ छोड़ी गई है मेरे आका…।”

“मूठ… किसने छोड़ी मूठ….। “
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Dolly sharma
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“आका - आप बहुत परेशान हैं… जरा धैर्य से काम लीजिए अब आपकी रक्षा करना मेरा ध्येय है। जिस बस्ती से आप बच्चा उठाकर लाए थे, वहां एक बड़ा भारी तांत्रिक भी रहता है… सेठ निरंजन दास ने उसे बुला लिया है ताकि वह बच्चे का पता लगा सके जानते हो आका फिर क्या हुआ…. उसने अपने तंत्र से फौरन पता लगा लिया कि बच्चा अब जीवित नहीं है, किसी ने उसकी हत्या कर दी है। उसने बच्चे की रूह बुलाकर उससे सब पूछ लिया… जब यह बात उसने सेठ और विनीता को बताई तो विनीता पागल हो गई और अपना सर दीवारों पर मारने लगी…. उसका सर लहूलुहान हो गया... उसे एक कमरे में बंद कर दिया गया - कहीं वह कुछ कर ना बैठे… उधर सेठ का भी वही बच्चा आसरा था…. उसने तांत्रिक से पूछा कि कौन है वह जालिम - मैं उसे जिंदा नहीं छोड़ूँगा। फिर तांत्रिक ने बताया कि वह उसका नाम नहीं बता सकता परंतु मूठ छोड़कर उस का सफाया कर सकता है - जो मूठ का शिकार बन जाएगा वही हत्यारा होगा - मूठ उसी रास्ते से चलेगी जिससे बच्चे को ले जाया गया और उसके बाद बच्चे की रूह उसका मार्गदर्शन करेगी।”

“ओह - तो क्या - ?”

“मूठ चल चुकी है… देर सवेर वह यहां तक पहुंच ही जाएगी। मुझे एक बात बताइए आका यदि आपने किसी और की बलि चढ़ाई होती तो क्या आपको इतना दुख होता।”

“नहीं!”

“तो दो मनुष्यों के लिये भेदभाव क्यों - प्राणी तो दोनों ही है।”

“इसका मतलब यह तो नहीं कि मैं अपने लड़के का कत्ल कर दूँ ….।”

“आप ऐसा कर चुके हैं आका…. यह बच्चा आपके बेटे से अधिक प्यारा तो नहीं है।”

“क्या मतलब ?”

“आप यह क्यों भूल गए कि आपने चंद्रावती को बलि चलाया था, जिसके गर्भ में आपका पुत्र था - उस वक्त आप को दया क्यों नहीं आई - जबकि चंद्रावती आपकी सहायक भी थी - और रिश्ते में आपकी मां भी रह चुकी थी - उस स्त्री पर तो आपको दया नहीं आई जबकि इस पराई स्त्री पर जिससे आपका कोई संबंध नहीं, उस पर दया क्यों….।”

“बेताल….।” मैं चीख पड़ा।

“सच्चाई हमेशा कड़वी होती है - अब आप इस फेर में ना पड़ें, आपके लिये हर इंसान एक जैसा होना चाहिए… तांत्रिक का किसी से कोई रिश्ता नहीं होता। आपकी नजर में औरत सिर्फ भोग विलास की वस्तु होनी चाहिए।”

मैं पसीने से नहा गया। कितना कड़ुआ सच था। चंद्रावती की याद आते ही रोम रोम कांप उठा।

जिस समय मैं बेताल के कहने पर बाहर निकला, चांद उदय हो गया था। आसमान पर तारागण चमक रहे थे। कुछ समय हम खामोश रहे, फिर बेताल ने मुझे सतर्क किया।

“वह देखिए चमकता बिंदु… वह आ रहा है।”

मैंने निगाह उठाई - बिल्कुल ऐसा लगता था जैसे एक तारा आसमान में रास्ता खोजता हुआ तेजी के साथ दौड़ रहा हो। कुछ समय बाद ही वह निकट आ गया - और निकट - और फिर तेज गूंज के साथ वह मेरे ऊपर घूमने लगा। यह एक काली हांडिया थी, रोशनी इसी से फूट रही थी।

अचानक मैंने अगिया बेताल के शरीर को आग का गोला बनते देखा और वह ऊपर उठता हुआ जोरदार आवाज के साथ हंडिया से टकराया। बिजली सी चमकी फिर हंडिया काफी दूर चली गई। उसके बाद हंडिया बेताल पर झपटी। इस बार भी तेज आवाज पैदा हुई। वह दोनों मुझे गुंड मुंड होते नजर आए। दोनों के इस युद्ध में भयंकर आवाजें उत्पन्न हो रही थी।

अंत में बेताल ने उसे घेर लिया। वह तेजी के साथ हंडिया के चारों तरफ एक वृत्त में घूम रहा था और बार-बार उस पर टक्करें मार रहा था - फिर आग की तेज लपट उठी और मैंने स्पष्ट रुप से किसी की कराहट सुनी। अगले ही पल यह आसमानी युद्ध समाप्त हो गया और बेताल एक राक्षस को लपेट में लिये आ गिरा।
अब उन दोनों का युद्ध प्रारंभ हो गया।

वे दोनों एक दूसरे पर गुप्त शस्त्रों का प्रयोग कर रहे थे परंतु बेताल को पछाड़ पाना उस खौफनाक सूरत वाले राक्षस के बस का रोग नहीं लगता था - बेताल ने उसके मुंह में हाथ डाल दिया और वह भैंसे के समान आवाज निकाल रहा था - बेताल ने उसे अंत में इतनी जोर से झटका दिया कि वह आसमान की तरफ चला गया।

उसका आकार छोटा होता जा रहा था - फिर वह हवा में स्थिर खड़ी हंडिया में घुसता चला गया। बेताल आग बनकर हंडिया के पीछे लपका, हंडिया जिस रास्ते से आई थी, उसी पर दौड़ पड़ी और बेताल बराबर उसका पीछा करता रहा।

अंत में वे मेरी नजरों से ओझल हो गए।

दस मिनट बाद ही बेताल फिर से उपस्थित हुआ।

“आपका शत्रु मर गया…. उसे आपका भेद मालूम हो गया था। उसकी मूठ ने उसी की जान ले ली।”
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दस मिनट बाद ही बेताल फिर से उपस्थित हुआ।

“आपका शत्रु मर गया…. उसे आपका भेद मालूम हो गया था। उसकी मूठ ने उसी की जान ले ली।”

“क्या…?”

“हां आका…. मैं उसका तब तक पीछा करता रहा… तांत्रिक ने मूठ को खून देने का प्रबंध कर रखा था पर बकरे का वह खून मैंने ले लिया और मूठ ने उस तांत्रिक का खून ले लिया मूठ जब चल पड़ती है तो बिना खून लिये शांत नहीं होती, इसलिये तांत्रिक को उसके लिये ताजा रक्त की व्यवस्था किए रहता है और यदि वह बिना शिकार के लौट आती है तो तांत्रिक उसे तुरंत खून देता है। मूठ का प्रेत मुझसे हार चुका था, इसलिये मेरे मार्ग में बाधक नहीं बन सकता था।”

बेताल ने एक बार फिर मेरी प्राण रक्षा की।

उसके बाद वह चला गया।


किंतु पुलिस की गतिविधि बेताल नहीं रोक सकता था। सरकारी तंत्र के साये में उसकी एक भी नहीं चल सकती थी इसलिये मुझे यह ज्ञात नहीं हो पाया कि बहुत दिनों से मुझे तलाश कर रही खुफ़िया पुलिस ने यहां भी अपना जाल फैला लिया है। और कुत्ते अपना काम कर रहे हैं।

सिर्फ दो दिन बीत पाये थे कि एक सुबह….

दरवाजे पर दस्तक हुई।

मैं उस समय जागा भी नहीं था। जब आवाज सुनकर आंख खुली तो कुत्तों के भोंकने का स्वर सुनाई दिया। फिर मैंने कुत्तों के जोर जोर से भौंकने का स्वर सुना। मैं अटपटेपन से उठा हर परिस्थिति से अनजान होने के कारण दरवाजा खोल दिया।

सामने विक्रमगंज का वर्दीधारी पुलिस ऑफिसर खड़ा था।

उसके होठों पर मुस्कान थी।

“मेरे पास तुम्हारी गिरफ्तारी का वारंट है मिस्टर रोहतास।”

उसकी आवाज मुझे जानी पहचानी सी लगी।

“वारंट…. किस बात का वारंट….।”

उसने मेरी बात सुनकर अपने साथियों को आदेश दिया - “गिरफ्तार कर लो इसे…।” कहने के साथ ही उसने रिवाल्वर निकाल कर मेरे सीने पर रख दी।

इससे पहले कि मैं कुछ सोच पाता - मेरे हाथों में हथकड़ी पड़ गई। और उसी पल भयानक परिवर्तन हुआ…. मुझे जोर का झटका लगा और चाह कर भी मैं अपनी टांगों पर खड़ा ना रह सका…. चीखता हुआ जमीन पर गिर पड़ा। पुलिस वाले मुझ पर टूट पड़े।

फिर मैं अचेत हो गया।
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उस वक्त बेताल कहां गया। होश में आने के बाद मैंने अपने को सीखचों वाले कोठरी में पाया … मैंने बेताल को बहुत याद किया पर उसकी उपस्थिति का कोई आभास नहीं मिला। न हीं मैंने उसकी आवाज सुनी।

मैंने महसूस किया कि मेरी टांगों की शक्ति नष्ट हो गई है और मैं फिर से पंगुल हो गया हूं। फिर लोगों की भीड़ मुझे देखने आई…. फिर मेरी शिनाख्त करने वाले आते रहे…. उसके बाद पुलिस के डंडो का सामना करना पड़ा…. मैंने अपने सारे अपराध स्वीकार कर लिये थे।

इस समय मुझे विनीता और सेठ निरंजन दास दिखाई दिये।

इंस्पेक्टर ने जब मुझे उनके सामने पेश किया तो विनीता चीख पड़ी।

“नहीं… यह नहीं हो सकता… यह झूठ है…. तुम लोगों ने एक महात्मा को पकड़ लिया है….. नहीं….. नहीं….. मैं अपने बेटे का खून किसी देवता के सिर नहीं मढ सकती। इंस्पेक्टर इन्हें तुरंत छोड़ दीजिए।”

“क्या आप इसे जानती हैं ?”

“इन्हें कौन नहीं जानता…. देखिए इंस्पेक्टर…. आप इन्हें छोड़ दीजिए… और अगर आप अपने सिर यह आप पाप मढना ही चाहते हैं तो मेरा दामन पाक-साफ रहने दीजिए….।”

मैं खामोश रहा।

इंस्पेक्टर ने तुरंत मुझे हवालात में भेज दिया। उसके बाद एक बार विनीता मुझसे क्षमा मांगने आई। मैं आश्चर्य के भंवर में डूबा था। उसे अब भी मुझ पर विश्वास था कि मैंने खून नहीं किया - और वह मुझसे पूछना चाहती थी कि मैं चुप क्यों हूं - पर उन दिनों मैंने मौन साध लिया था। मैं कुछ भी नहीं बोलता था। अब मैंने अपने आपको ईश्वर के हवाले छोड़ दिया था।

उसके बाद मुझे जेल की हवालात में भेज दिया गया। वहां मैं असहाय कालकोठरी में पड़ा रहा। फिर अचानक मेरी टांगों की डॉक्टरी परीक्षा हुई। डॉक्टरों ने रिपोर्ट दे दी कि यह कब से बेकार है।

अदालत में पहली पेशी हुई और मेरी टांगों की डॉक्टरी ने मुझे बचा लिया। अदालत में विनीता की तरफ से एक याचिका दर्ज थी की पुलिस ने गलत आदमी को गिरफ्तार किया है और उसकी टांगे तोड़ दी है। इस पर पुलिस ने स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी के पहले उसे अचानक लकवा मार गया था। डॉक्टरी रिपोर्ट सबसे निराली थी, उसके अनुसार मेरी टांगे लकवे से नहीं किसी चोट से बेकार हुई है और यह चोट गिरफ्तारी से लगभग एक महीना पूर्व की है। और यह सिद्ध हो गया कि पुलिस के सारे गवाह झूठे हैं - जब मेरी टांगें पहले से इस योग्य नहीं थी कि मैं चल फिर सकूं तो मैं उतनी दूर जाकर बच्चे का अपहरण करके उसे कैसे जंगल में काट सकता था। मेरे बयानों से पहले की अदालत ने मुकदमा झूठा करार दे दिया।

परंतु पुलिस के पास मेरे खिलाफ दूसरे केस भी थे, यह मुकदमें सूरजगढ़ से संबंधित थे। इंस्पेक्टर ने वह रिपोर्ट ही दिखाई जिसमें मैंने कभी ठाकुर प्रताप पर आरोप लगाया था। यह वही इंस्पेक्टर था जिसने मुझे ठाकुर से दूर रहने की सलाह दी थी।

इसी रिपोर्ट को उसने दुश्मनी का मुद्दा प्रकट किया।

सूरजगढ़ के मुकदमे भी चले। सारे गवाह भी आते रहे - अपने बयान देते रहे, परंतु किसी ने भी यह बात नहीं कही की उन घटनाओं के पीछे मेरा हाथ था। यहां तक कि कमलाबाई नामक वेश्या ने भी मुझे पहचानने से इंकार कर दिया। पुलिस को आश्चर्य था कि सारे गवाह कैसे टूट गए। और मैं जो फांसी की सजा का इंतजार कर रहा था - मुझे भी कम अचरज ना हुआ।

विनीता ने मेरे लिये बकायदा वकील की व्यवस्था की थी और वह हर पेशी पर अदालत में मौजूद होती। उसे देख देख कर आत्मग्लानि हो उठती। वह मेरे लिये उपहार लाती और उसी आदर स्वर में बात करती। तब तक मैं भी मौन धारण किए था। उसका ख्याल था कि पुलिस ने मुझे पंगु बनाया है।

फिर वह दिन भी आ गया जब मुझे रिहा कर दिया गया।

गांव वासी सामूहिक रुप से मुझे पुष्पमालाएं डालकर जुलुस बना कर ले गए। उन अभागों की नजर में मैं ईश्वर का अवतार था। बिक्रमगंज की सड़कों से गुजरता रहा। मैंने अपना मौन अभी तक नहीं तोड़ा था।

मुझे उसी बस्ती में ले जाया गया।

उन लोगों ने मेरे चरणों को धोकर चरणामृत का पान किया। मुझे उन लोगों के भोलेपन पर तरस आ रहा था, जो मुझ पापी को ईश्वर का अवतार मान बैठे थे। परंतु कभी-कभी ऐसा भी होता है, जब किसी पापी को समाज इतनी प्रतिष्ठा दे देता है तो उसके मन से आप ही पाप की छाया निरंतर दूर हटती चली जाती है और वह ईश्वर से अपने गुनाहों की क्षमा मांग कर ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाता है।

विनीता कितनी भोली थी।

मैं कशमकश के द्वार पर जूझ रहा था। घृणा, पाप और पुण्य का संघर्ष निरंतर जारी था। शाम हो रही थी और धुंधलके में मुझे अंधेरे के अज्ञात भय का आभास हो रहा था। वृक्षों के साये लंबे होकर लालिमा में बदलते जा रहे थे। जुलूस उसी मंदिर में समाप्त हुआ।

सारे गांव वासी वहां एकत्रित हो गए। बच्चे बूढ़े जवान सभी मुझे देख रहे थे। मुझे प्रणाम कर रहे थे, आशीर्वाद ग्रहण कर रहे थे। अचानक मेरी निगाह इन सब के पीछे खड़े भय की प्रतिमा अगिया वेताल पर पड़ी। क्रोधित नजर आता था। मेरा दिल बैठने लगा, क्या मैं उसी जाल में फंसता जा रहा हूं, क्या बेताल मेरा पीछा नहीं छोड़ेगा। मैंने हिम्मत बटोरी और तय किया कि उसके आगे नहीं झुकूंगा।

“विनीता मुझे मंदिर की सीढ़ियों पर ले चलो।” मेरे मुंह से निकला।
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Re: Horror अगिया बेताल

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आज सब कुछ मिट कर रहेगा। आज मैं बेताल से पीछा छुड़ा लूंगा। आज मैं अधर्म त्याग दूंगा और ईश्वर की आराधना में लीन हो जाऊंगा। आज के बाद वैतालिक छाया मेरा पीछा नहीं करेंगी।

अंधेरा हो गया था - दीपक जला दिये गए थे। मंदिर प्रकाश पुंज में स्नान कर रहा था। उन लोगों ने मुझे उठाया और मंदिर की पैड़ियों की और बढे…. मैं एक डोली में बैठा था। अचानक बेताल लगभग उड़ता हुआ डोली पर झपटा और डोली पर इतनी जोर से झटका लगा कि वह उन लोगों के हाथों से निकल गई। मैं काफी दूर चीखता हुआ गिरा।

मैं एक अंधेरे हिस्से में गिरा था और मेरे चारों तरफ आग का शोला चक्कर काट रहा था। ऐसा लगता था जैसे वह भी मुझ पर गिर पड़ेगा और मैं राख की ढेरी में बदल जाऊंगा।

“मैंने आपको कारागार से छुड़ाया। उन सब गवाहों को परेशान किया और उनकी गलत बयानी के कारण आपको रिहा कर दिया गया।” बेताल का स्वर मेरे कानों में पड़ा - “इसलिये नहीं कि आप मंदिर में शरण ले लें।”

“बेताल तू चाहे तो मुझे जान से मार दे। मुझे अपनी जिंदगी से मोह नहीं लेकिन मेरा पीछा छोड़ दे। मैं इस घृणित जीवन से उकता गया हूं। मैं इस नाटकीय जीवन से मुक्ति चाहता हूं। क्या मैंने तुझे इसलिये साधा था कि तू मुझे ही आतंकित करें।”

“मैं आपको आतंकित करना नहीं चाहता, बल्कि आपके भले की बात कह रहा हूं। क्या आप जिंदगी भर बिना टांगों के रहना चाहते हैं - क्या आप चाहते हैं कि इस मंदिर को अपवित्र कर के अपने सिर पाप लें… याद रखिए एक बार वहां कदम रखने के बाद आपकी सारी शक्ति खत्म हो जाएगी और मैं कभी भी आपकी पुकार पर नहीं आऊंगा। आपको बेहद कष्ट पहुंचेगा, आपको वे प्रेतात्माएं तंग करेंगी , जो आप के कारण भटक रही है और मेरी वजह से आपके पास भी नहीं फटकती।”

“चाहे जो हो - मैं सब सहने के लिये तैयार हूं। मैं इस घिनौने जीवन से मुक्ति पाने के लिये हर संघर्ष करने के लिये तैयार हूं।”

“विनीता को नुकसान पहुंच सकता है आका।”

“मैं ईश्वर भक्ति से उसका जीवन हरा-भरा कर दूंगा।”

“ठीक है आका! यदि आपको दुखों से ही गुजारना है तो शौक से जाइए उन सीढ़ियों पर… बेताल अब कभी आपके पास नहीं आएगा।”

“तुमने मेरा यहां तक साथ दिया है बेताल इसके लिये धन्यवाद।”

बेताल उदासी में डूब गया और उसके बाद जैसे ही लोगों ने मुझे पुनः उठाया, वह ओझल हो गया। अब मुझे मंदिर में ले जाया जा रहा था। मुझ में ईश्वर के प्रति आस्था थी और मैं अपने पाप कर्मों को धोने के लिये बढ़ चुका था। यूं तो ईश्वर कण-कण में समाया है, परंतु जिस स्थान को लोग पवित्र मानकर पूजते हैं। वह ईश्वर का स्थान स्वतः बन जाता है।

मेरे जीवन में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आ चुका था और मुझे उस आसन पर बिठा दिया गया, जो पुजारियों के लिये था। पंडितों ने होम किया, सारा मंदिर खुशबू से महक उठा। ईश्वर की आराधना करने वाले रातभर भक्ति गान और कीर्तन करते रहे - और मैं सारी रात टकटकी लगाए उस त्रिकालदर्शी की प्रतिमा को निहारता रहा।
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