Horror अगिया बेताल

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Dolly sharma
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Re: Horror अगिया बेताल

Post by Dolly sharma »

मैं मंदिर में ही पड़ा रहता, मेरी सेवा भक्तगण किया करते, वे ही मुझे नहलाते, धुलाते और जोगिया वस्त्र पहनाते। मैं जोगी हो गया था, परंतु चल फिर नहीं सकता था। मैं वही गीता और रामायण पढ़ा करता। पूरे एक सप्ताह तक मैंने व्रत रखा… फिर हल्की सब्जियों का सेवन करने लगा। मेरी वह शक्ति नष्ट हो चुकी थी और मैं दिन प्रतिदिन कमजोर पड़ता जा रहा था। विनीता मेरे लिये बैसाखियां ले आई थी, अब उस के सहारे चलने-फिरने का प्रयास करने लगा। धीरे-धीरे मैं बेहद कमजोरी के बाद भी सीढ़ियां उतरने और चढ़ने में सफल होने लगा।

शाकाहारी भोजन मुझे अच्छा नहीं लगता था, बार-बार मांस खाने को मन करता और कभी-कभी मैं भूखा होने के कारण विचलित हो उठता परंतु मैंने अपने आप को संभाले रखा। मंदिर से बाहर निकलने का सौभाग्य मुझे प्राप्त नहीं हो पा रहा था।

एक दिन शाम ढलते वक्त में धूप बत्तियां जलाकर रामायण का पाठ कर रहा था। तभी सेठ निरंजन दास मंदिर में आए और मेरे कदमों में गिर पड़े। उसके चेहरे से हवाइयान उड़ रही थी। आंखों में पानी उमड़ रहा था और हालत अस्त-व्यस्त थी।

“महाराज मुझे बचा लीजिए…. मेरी बेटी को बचा लीजिए…. मुझ पर घोर संकट आ गया है महाराज - मेरी इकलौती बेटी।”

“क्या हुआ आपकी बेटी को….।”

“महाराज क्या बताऊं - तीन रोज से उस पर दौरे पड़ रहे हैं - और न जाने क्या-क्या बकती रहती है - तीन रोज में ही आधी हो गई - रात को घर से निकल भागती है - वह पागल हो जाएगी महाराज -।”

मुझे याद आया कि तीन रोज से विनीता मंदिर नहीं आई।

“लोग तरह तरह की बातें करने लगे हैं महाराज - मगर मैं जानता हूं मेरी बेटी चरित्रहीन नहीं है - किसी ने उस पर जादू-टोना कर दिया है। आप ही कुछ कीजिए महाराज - मेरी बेटी की रक्षा करो स्वामी जी।”

“आप उसे यहां ले आयें।”

“अच्छा महाराज मैं अभी लेकर आता हूं।”

“आधे घंटे बाद ही निरंजन दास विनीता को ले आए। मंदिर की चौखट पर आते ही विनीता बेहोश हो गई। उस वक्त उसे चार आदमी थामे थे और उसकी हालत एक पागल स्त्री के समान थी, परंतु मंदिर में आते ही वह अकड़ सी गई। मैंने उसे पूजाग्रह में लिटाया और चेहरे पर गंगाजल का छिड़काव किया। कुछ समय उपरांत ही उसे होश आ गया। अब वह सामान्य स्थिति में थी। अपने आप को मंदिर के पूजागृह में पाकर उसने बेहद आश्चर्य प्रकट किया। मैंने उससे कुछ प्रश्न पूछे - जिनका जवाब उसने सामान्य रूप से दिया। उसे उस समय की बातें बिल्कुल याद नहीं थी, जब वह पागलपन की स्थिति में होती थी। निरंजन दास ने बताया कि कभी-कभी वह समान नहीं रहती है, फिर दौरा पड़ता है और उसके बाद वह उठ खड़ी होती है, दौरा पड़ने के बाद वह अपनी वास्तविकता भूल जाती है।

अब यह ठीक है, आप इसे ले जाइए। यदि दौरा पड़े तो मुझे बताएं।

विनीता प्रसाद ग्रहण करके चली गई, मुझे उसके जाने के बाद ध्यान आया कि बेताल ने मुझे विनीता के बारे में चेतावनी दी थी। तो क्या विनीता का जीवन संकट में पड़ गया है। वह किसी प्रकार का नाटक नहीं कर सकती थी।

आधी रात के वक्त वे लोग पुनः आ गए। मैं तब तक जाग रहा था। निरंजन दास ने बताया कि घर जाते ही उसे फिर से दौरा पड़ गया। मंदिर के पूजा गृह में आने के बाद यह हुआ एक बार फिर बेहोश हुई और जब होश में आई तो सामान्य थी, मेरी समझ में कुछ भी नहीं आया कि उसे हो क्या रहा है।

मुझे एक ही बात सुझाई दी।

“निरंजन दास जी, आप विनीता को यही छोड़ दे - मुझे ऐसा लगता है कोई दुष्ट आत्मा इसका पीछा कर रही है। आप भी यहीं रुक जाइए। विनीता पूजागृह में ही रहेगी। यहां कोई दुष्टात्मा नहीं आएगी।”

“लेकिन कब तक ?”

“जब तक दुष्टात्मा विनीता का पीछा नहीं छोड़ देती।”

“ठीक है महाराज ! जैसा आप हुकुम करें।” निरंजन दास ने मुरझाए स्वर में कहा - “मेरी बेटी को ठीक कर दीजिए, अन्यथा मैं मुंह दिखाने योग्य नहीं रहूंगा। न जाने भगवान मुझसे क्यों रुठ गए हैं ?”

“आप फिक्र न कीजिए।”

विनीता पूजा कक्ष में ही रह गई। निरंजन दास बाहर के कमरे में लेट गए। प्रारंभ में तो मैं विनीता के रुप पर ही गया था परंतु अब मैं अपने को काफी हल्का महसूस करता था और मेरे भीतर किसी नारी के रूप की कशिश समाप्त होती जा रही थी, मेरा मन सांसारिक बातों से दूर भगवान की उपासना में लगा रहता। विनीता के प्रति मेरे मन में जो भावना पहले उत्पन्न हुई थी, वह अब धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही थी, परंतु पूजा कक्ष मैं उसे अपने इतने समीप देख एक बार फिर मन डोल उठा। उसकी मदभरी आंखों में ना जाने कैसा नशा था जो बड़े से बड़े शरीर योगी धर्मात्मा का मन डोल जाए।
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Dolly sharma
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वह पूजा कक्ष में सो गई और मैं पूजा कक्ष से बाहर तख़्त पर लेट गया, भीतर दीपक की लौ चमक रही थी और लेटे-लेटे मुझे विनीता का सौंदर्य एक अलाव की तरह महसूस होता। मैंने अपनी भावनाओं पर काबू पाया और सोने का प्रयास करने लगा।

किसी तरह मैं सो गया। उस रात के बाद विनीता वहीं रहने लगी। वह ईश्वर भक्ति में इतनी लीन होने लगी कि उसने अपने पिता से साफ साफ कह दिया कि अब वह मंदिर में ही रहेगी, एक भैरवी के रूप में। विनीता भैरवी बनती जा रही थी और मैं अपने आप को संभाले हुए था। विनीता को मुझसे अत्यंत लगाव था और मैं कभी-कभी दुविधा में फंस जाता था। मुझे लगता, वह मुझसे प्यार करने लगी है, परंतु यह विचार आते ही मेरी आत्मा मुझे झकझोर देती।

इसी प्रकार चार महीने बीत गए, विनीता पूरी तरह भैरवी बन चुकी थी। वह जोगिया धोती पहना करती थी और माथे पर चंदन का टीका लगाती थी। बालों का श्रृंगार उसने छोड़ दिया था। कभी-कभी उसके पिता निरंजन दास उस का हाल जानने आ जाया करते थे। इस मंदिर में अब दूर दूर के भक्तगण आया करते थे।

अचानक एक दिन विनीता की तबीयत बिगड़ गई और लगातार उल्टियां होने के बाद उसे मूर्छा आ गई। और घबराहट में मुझे यह ध्यान हीनहीं रहा कि मैं स्वयं भी डॉक्टरी जानता हूं। मैंने तुरंत एक भक्त को दौड़ाया और नजदीक से ही एक वैद्य को ले आया, तब तक मैं विनीता के पास बैठा रहा।

वैद्य ने विनीता की जांच की - उसके मुंह में दवा डाली और फिर एकाएक उसके चेहरे पर परेशानी के भाव आ गए। वैद्य हम दोनों को भली प्रकार जानता था।

वह उठ खड़ा हुआ और मुझे अलग ले जाकर गंभीर स्वर में बोला।

“यह भैरवी विधवा है ना।”

“हां…. उसके पति को मरे हुए एक अरसा हो गया।”

“और यह मंदिर में कब से रह रही है।”

“कोई चार महीने से…..।”

वैद्य के चेहरे पर नफरत के भाव आ गए। उसने घूर कर देखते हुए कहा - “भैरवी गर्भवती है।”

इतना कहकर वह चलता बना। मैंने उसे रोकना चाहा परंतु वह नहीं रुका… और मुझे ऐसा लगा जैसे पांवो के नीचे से जमीन सरक गई है। मेरे हाथ पांव कांपने लगे। आखिर विनीता गर्भवती कैसे हो गई है - हे भगवान या वैद्य मुझे इस प्रकार नफरत भरी दृष्टि से देखकर क्यों गया - क्या उसे ठाकुर पर संदेह है। ओह - अगर लोगों को इसका पता चल गया तो क्या होगा। हर कोई मुझ पर संदेह करेगा। परंतु विनीता….. आखिर विनीता का संपर्क किससे है ..।

मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।

मैंने जल्दी से विनीता के पास पहुंचना चाहा परंतु बैसाखियां हाथ से फिसल गई और मैं वहीं गिर पड़ा। किसी प्रकार अपने आप को संभाल कर मैं भीतर पहुंचा। विनीता को होश आ गया था।

“मुझे क्या हो गया है ?”

मैं स्तब्ध खड़ा उसे घूरता रहा।

“आप बोलते क्यों नहीं ?”

“तुम नर्क की भागीदार बन गई हो विनीता…. और मुझे अपना दामन बचाना है।”

“क्या…. आप क्या कह रहे हैं ?”

“सच-सच बताओ विनीता…. तुम्हारा संपर्क किस पुरुष से है?”

“आप… यह सब…।”

“हां…. हां…. मैं यह सब कह रहा हूं। इसलिये कह रहा हूं कि तुम गर्भवती हो… इसलिये कह रहा हूं कि तुम्हारे पेट में किसी का पाप पल रहा है। बोलो कौन है वह….।”

“नहीं….।” वह चौंक पड़ी “आप झूठ बोल रहे हैं। मैं कलंकिनी नहीं हूं - यह कभी नहीं हो सकता।”

“विनीता - यह हो चुका है। अब तुम्हारा भला इसी में है कि सच्चाई उगल दो --।”

“हे भगवान - या आप क्या कह रहे हैं ?” उसकी आंखों में मोटे मोटे आंसू आ गए।

“ठीक है तुम नहीं बताना चाहती तो कोई बात नहीं। लेकिन तुमने इस मंदिर पर कलंक का टीका लगा दिया है - और मेरी तपस्या खत्म कर दी। अब मुझे यहां से जाना ही पड़ेगा - अन्यथा लोग यही समझेंगे कि पापी मैं हूं - मैं पाखंडी हूं - मैं शैतान हूं - हकीकत यह है कि मैं सब कुछ था, परंतु अब नहीं -। अब मैं इंसान हूं इंसान।”
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