Horror अगिया बेताल
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Re: Horror अगिया बेताल
confuse kar diya hai aapne
- Dolly sharma
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Re: Horror अगिया बेताल
मैं तेजी के साथ उस कमरे से बाहर निकल गया।
मैंने अपना सामान समेटा।
अचानक मुझे ख्याल आया - अगर मैं भाग गया तो लोग इसे सच मान लेंगे - मेरे पास सच्चाई है - और सच्चाई की हमेशा जीत होती है।
“भाग जा बेवकूफ - तेरी सच्चाई कोई नहीं सुनेगा - लोग तुझे जान से मार देंगे - अगर जान बचानी है तो भाग जा।
“नहीं - मुझे सामना करना चाहिए - अगर मरना ही है तो क्यों ना सच्चाई के पथ पर अडिग रहकर मरू।”
मेरे अंतर्मन ने मुझे बुरी तरह झकझोर दिया और मैं समान लेकर पूजागृह में पहुंचा, भगवान के समक्ष खड़े हो कर मैंने कहा - “अगर तू ही मेरी परीक्षा लेना चाहता है तो मैं तैयार हूं। मेरी मृत्यु अब तेरे ही दरबार में होगी।”
कुछ देर बाद यह खबर जंगल की आग के समान सारी बस्ती में फैल गई और लोग एकत्रित होकर मंदिर की तरफ लाठियां, भाले लिये चल पड़े। निरंजन दास को भी पता चल गया और वह भी दौड़ पड़े।
मंदिर के बाहर शोर उमड़ने लगा था। आवाजें उठ रही थी - वे लोग मुझे बाहर बुला रहे थे। सारा वातावरण मेरे विरुद्ध था।
मैं बैसाखियां संभाल कर बाहर निकला और मंदिर की चौखट पर खड़ा हो गया।
“क्या बात है… आप लोग क्यों आए हैं ?”
“जवाब दो विनीता के पेट में किसका बच्चा है ?”
“इसका जवाब आप लोग भैरवी से ही पूछ सकते हैं।”
“उसे बाहर निकालो -।” आवाजें तेज होने लगी।
“मैं अभी लेकर आता हूं।”
मैं भीतर गया। मेरा दिल तेज-तेज धड़क रहा था। न जाने विनीता का क्या हाल होने वाला है। अगर उसने अपनी जान बचाने के लिये मुझे दोषी बता दिया तो - यदि वह बताती है तो कोई बात नहीं। मैं इसके लिये भी तैयार हूं।
एक रोज पहले ही मुझे पता चला था कि बस्ती में प्लेग फैल गया है, कुछ लोग तो बस्ती छोड़कर जाने की तैयारी कर रहे थे।
मैं विनीता के कमरे में पहुंचा। परंतु वह कमरे में नहीं थी। मैंने दूसरे कमरे में देखा। वह कहीं भी नहीं थी। ना जाने कहां गायब हो गई थी। शायद पिछले रास्ते से निकल गई थी। अब मेरे हाथों से तोते उड़ गए। मैं घबराया से बाहर निकला, मैंने भीड़ को संबोधित किया कि विनीता कहीं चली गई है।
इस पर भीड़ उत्तेजित हो गई।
मुझे पाखंडी पापी और ना जाने किन किन अश्लील शब्दों से शोभित करने लगी।
“इसे बाहर खींच लो -।” एक ने कहा।
“भागने ना पाए --।”
पत्थर उड़ते हुए मुझ से टकराए। मैं वहीं खड़ा रहा। उसके बाद सबसे पहले मुझे निरंजन दास ने खींचा। वैसाखी हाथ से निकलते ही मैं सीढ़ियों पर लुढ़कता चला गया और भीड़ मुझ पर टूट पड़ी। मैं अपनी सफाई भी ना दे सका - भीड़ ने मुझे नंगा करके कालिख पोत दी - मेरी जटाएं काट डाली और भीड़ को उत्तेजित करने वाला वही महंत था, जिसे एक बार मैंने हवा में लटका दिया था। उसके साथ में ब्राह्मण भी थे, जिनका मैंने अपमान कर दिया था। अब मैं असहाय था - मेरे पास न तो बेताल था और न मेरी शक्ति –।
वह लोग मेरा जुलूस निकाल रहे थे और मुझे पीट रहे थे। इसी बीच मैं बेहोश हो गया। जब मुझे होश आया तो निपट अंधेरा छा गया था। मेरा सारा शरीर भयानक पीड़ा से गुजर रहा था और मेरे होठों से कराह भी नहीं निकल पा रही थी। एक खड्ड में पड़ा था। मेरे शरीर पर कीचड़ जमी थी। मैं थोड़ी देर तक आंखें खोले उसी स्थिति में पड़ा रहा।
उसके बाद मैं धीरे-धीरे खड्ड से बाहर निकला। मेरी आंखें अब अंधेरे में थोड़ा बहुत देखने योग्य हो गई थी। किसी अधमरे जानवर की तरह मैं आगे रेंग रहा था। बस्ती में विचित्र सी खामोशी छाई थी। ऐसा जान पड़ता जैसे बस्ती भूतों का डेरा बन गई है। खामोशी और गहरी खामोशी।
अचानक टप - टप - बूंदे गिरने लगी, आसमान स्याह हो गया था और अंधेरा और भी जहरीला हो गया था। वर्षा के साथ-साथ हवा भी सांय-सांय कर रही थी।
मैंने अपना सामान समेटा।
अचानक मुझे ख्याल आया - अगर मैं भाग गया तो लोग इसे सच मान लेंगे - मेरे पास सच्चाई है - और सच्चाई की हमेशा जीत होती है।
“भाग जा बेवकूफ - तेरी सच्चाई कोई नहीं सुनेगा - लोग तुझे जान से मार देंगे - अगर जान बचानी है तो भाग जा।
“नहीं - मुझे सामना करना चाहिए - अगर मरना ही है तो क्यों ना सच्चाई के पथ पर अडिग रहकर मरू।”
मेरे अंतर्मन ने मुझे बुरी तरह झकझोर दिया और मैं समान लेकर पूजागृह में पहुंचा, भगवान के समक्ष खड़े हो कर मैंने कहा - “अगर तू ही मेरी परीक्षा लेना चाहता है तो मैं तैयार हूं। मेरी मृत्यु अब तेरे ही दरबार में होगी।”
कुछ देर बाद यह खबर जंगल की आग के समान सारी बस्ती में फैल गई और लोग एकत्रित होकर मंदिर की तरफ लाठियां, भाले लिये चल पड़े। निरंजन दास को भी पता चल गया और वह भी दौड़ पड़े।
मंदिर के बाहर शोर उमड़ने लगा था। आवाजें उठ रही थी - वे लोग मुझे बाहर बुला रहे थे। सारा वातावरण मेरे विरुद्ध था।
मैं बैसाखियां संभाल कर बाहर निकला और मंदिर की चौखट पर खड़ा हो गया।
“क्या बात है… आप लोग क्यों आए हैं ?”
“जवाब दो विनीता के पेट में किसका बच्चा है ?”
“इसका जवाब आप लोग भैरवी से ही पूछ सकते हैं।”
“उसे बाहर निकालो -।” आवाजें तेज होने लगी।
“मैं अभी लेकर आता हूं।”
मैं भीतर गया। मेरा दिल तेज-तेज धड़क रहा था। न जाने विनीता का क्या हाल होने वाला है। अगर उसने अपनी जान बचाने के लिये मुझे दोषी बता दिया तो - यदि वह बताती है तो कोई बात नहीं। मैं इसके लिये भी तैयार हूं।
एक रोज पहले ही मुझे पता चला था कि बस्ती में प्लेग फैल गया है, कुछ लोग तो बस्ती छोड़कर जाने की तैयारी कर रहे थे।
मैं विनीता के कमरे में पहुंचा। परंतु वह कमरे में नहीं थी। मैंने दूसरे कमरे में देखा। वह कहीं भी नहीं थी। ना जाने कहां गायब हो गई थी। शायद पिछले रास्ते से निकल गई थी। अब मेरे हाथों से तोते उड़ गए। मैं घबराया से बाहर निकला, मैंने भीड़ को संबोधित किया कि विनीता कहीं चली गई है।
इस पर भीड़ उत्तेजित हो गई।
मुझे पाखंडी पापी और ना जाने किन किन अश्लील शब्दों से शोभित करने लगी।
“इसे बाहर खींच लो -।” एक ने कहा।
“भागने ना पाए --।”
पत्थर उड़ते हुए मुझ से टकराए। मैं वहीं खड़ा रहा। उसके बाद सबसे पहले मुझे निरंजन दास ने खींचा। वैसाखी हाथ से निकलते ही मैं सीढ़ियों पर लुढ़कता चला गया और भीड़ मुझ पर टूट पड़ी। मैं अपनी सफाई भी ना दे सका - भीड़ ने मुझे नंगा करके कालिख पोत दी - मेरी जटाएं काट डाली और भीड़ को उत्तेजित करने वाला वही महंत था, जिसे एक बार मैंने हवा में लटका दिया था। उसके साथ में ब्राह्मण भी थे, जिनका मैंने अपमान कर दिया था। अब मैं असहाय था - मेरे पास न तो बेताल था और न मेरी शक्ति –।
वह लोग मेरा जुलूस निकाल रहे थे और मुझे पीट रहे थे। इसी बीच मैं बेहोश हो गया। जब मुझे होश आया तो निपट अंधेरा छा गया था। मेरा सारा शरीर भयानक पीड़ा से गुजर रहा था और मेरे होठों से कराह भी नहीं निकल पा रही थी। एक खड्ड में पड़ा था। मेरे शरीर पर कीचड़ जमी थी। मैं थोड़ी देर तक आंखें खोले उसी स्थिति में पड़ा रहा।
उसके बाद मैं धीरे-धीरे खड्ड से बाहर निकला। मेरी आंखें अब अंधेरे में थोड़ा बहुत देखने योग्य हो गई थी। किसी अधमरे जानवर की तरह मैं आगे रेंग रहा था। बस्ती में विचित्र सी खामोशी छाई थी। ऐसा जान पड़ता जैसे बस्ती भूतों का डेरा बन गई है। खामोशी और गहरी खामोशी।
अचानक टप - टप - बूंदे गिरने लगी, आसमान स्याह हो गया था और अंधेरा और भी जहरीला हो गया था। वर्षा के साथ-साथ हवा भी सांय-सांय कर रही थी।
खूनी रिश्तों में प्यार बेशुमारRunning.....परिवार मे प्यार बेशुमारRunning..... वो लाल बॅग वाली Running.....दहशत complete..... मेरा परिवार और मेरी वासना Running..... मोहिनी Running....सुल्तान और रफीक की अय्याशी .....Horror अगिया बेतालcomplete....डार्क नाइटcomplete .... अनदेखे जीवन का सफ़र complete.....भैया का ख़याल मैं रखूँगी complete.....काला साया complete.....प्यासी आँखों की लोलुपता complete.....मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग complete......मासूम ननद complete
- Dolly sharma
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Re: Horror अगिया बेताल
क्या हो गया अब बस्ती वालों को। कहीं कोई रोशनी नहीं, कहीं आदमी का चिन्ह भी नहीं। इतना गहरा सन्नाटा क्यों छाया है ? बूंदें और तेज हो गई। बूंदों से बचने के लिये मैं एक मकान की चौखट पर जा पहुंचा। दरवाजा किसी कब्रिस्तान की भांति खुला था, वह चरमरा कर रोया और मैं भीतर रह गया। कहीं कोई आहट नहीं थी - मैं रेंगता रेंगता एक कोने में दुबक गया। जोरों के साथ खिड़की के पट झनझना गए और बिजली चमक उठी, मकान का भीतरी भाग प्रकाश से नहा गया। मुझे एक लैंप और दिया सलाई नजर आई। मकान में कोई नहीं था। सारा सामान इस प्रकार अस्त-व्यस्त पड़ा था, जैसे अभी अभी डाका पड़ा हो।
मैं लैंप के पास पहुंचा - फिर मैंने लैंप जला दिया। अंधेरा भाग गया। हवा के झोंकों से लैंप धप-धप कर रहा था। मैं एक हाथ में लैंप थामें दूसरे कमरों की ओर रेंगा। कहीं कोई नहीं था। मैं उसी कमरे में लौट गया। लैंप यथास्थान रखकर मैं खिड़की की तरफ़ रेंग गया। हवा की तेजी के कारण लैंप बुझ सकता था। ज्यों ही मैं खिड़की के पास पहुंचा बिजली एक बार फिर चमकी और उसी चमक में मैंने एक स्त्री को नग्नावस्था में दौड़ते देखा। निश्चित रूप से वह विनीता थी। वह हंस रही थी. जोर जोर से कहकहे लगा रही थी। फिर एक शोला चला गया। विनीता एक मकान में समा गई। उसकी हंसी अब भी गूंज रही थी।
विनीता इस हाल में –।
वह उस मकान में क्यों गई है… कौन है वहां ?
तरह तरह के प्रश्न मेरे मन में भटकने लगे। मैंने हिम्मत बांधी और दियासलाई जेब में डालकर मकान से बाहर की तरफ रेंग गया। कुछ देर बाद ही मैं वर्षा में भीगता हुआ गली में सरक रहा था। उस मकान के दरवाजे खुले थे। मैं उसी में समा गया।
एक कमरे में रोशनी के साथ ही हंसी की गूंज उत्पन्न हो रही थी। मैं उसी कमरे की तरफ रेंग गया। मैंने धीरे-धीरे से बिना आहट किये भीतर झांक कर देखा। मुझे विनीता एक चादर में लिपटी नजर आई परंतु जो कुछ मैं देख रहा था उससे स्पष्ट लग रहा था कि चादर में कोई मर्द भी उसके साथ गड़मड़ हो रहा है। अब विनीता के कंठ से हंसी की जगह जोर जोर की सांसे और सिसकियां उभर रही थी। उसकी गोरी टांगे चादर से बाहर निकली हुई थी।
कौन है यह कमीना - जिसने मुझे मुसीबत की आग में झोंक दिया।
मैं तेजी के साथ आगे बढ़ा और एकदम चादर खींच दी। बिस्तरे पर विनीता नग्न पड़ी हांफ रही थी। अचानक वह चीख कर उठ खड़ी हुई। मुझे आश्चर्य हुआ कि वह अकेली थी। जबकि मैंने पुरुष का आभास स्पष्ट महसूस किया था। बिस्तरे पर गजरे के फूल बिखरे पड़े थे।
“तू अभी जिंदा है।” अचानक विनीता चीख कर बोली।
मुझे दूसरा झटका लगा। यह आवाज विनीता की नहीं थी, जबकि वह विनीता ही थी। वह बड़ी बेशर्मी के साथ हंसने लगी।
“नहीं पहचाना मुझे…..।” वह गुर्राई।
“विनीता….।”
“विनीता नहीं -- तेरी अम्मा चंद्रावती।”
अब मैंने चंद्रावती की आवाज अस्पष्ट पहचान ली। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। मुझे याद आया कि मैंने चंद्रावती की बलि चढ़ा दी थी।
“चंद्रा…..।”
“हां - तांत्रिक - मैं वही हूं - विनीता के शरीर में मेरा राज है। तूने मेरे बच्चे को मिटा दिया था न - मैं तभी से बच्चा पाने के लिये भटक रही हूं। जब तक तेरे पास बेताल था, मैं कुछ नहीं कर सकती थी। अब बेताल मेरा है - मेरा - तो उसे देख नहीं सकता - वह इसी कमरे में मौजूद है।”
“ले... लेकिन…. तूने विनीता को क्यों भ्रष्ट किया।”
“बच्चा पाने के लिये मुझे किसी औरत का जिस्म चाहिए था और फिर तुझसे इंतकाम भी तो लेना था। बेताल को भी विनीता की सुंदरता पसंद थी इसलिये मैंने विनीता का शरीर पहन लिया। मैं कभी भी विनीता का शरीर पहन सकती थी…. मेरे एक इशारे पर वह नींद में उठकर मंदिर से बाहर आ सकती थी…. मैंने तुझे ऐसी जगह पहुंचा ही दिया जहां से तू उठ नहीं सकता लेकिन तू बच कैसे गया ?”
मैं लैंप के पास पहुंचा - फिर मैंने लैंप जला दिया। अंधेरा भाग गया। हवा के झोंकों से लैंप धप-धप कर रहा था। मैं एक हाथ में लैंप थामें दूसरे कमरों की ओर रेंगा। कहीं कोई नहीं था। मैं उसी कमरे में लौट गया। लैंप यथास्थान रखकर मैं खिड़की की तरफ़ रेंग गया। हवा की तेजी के कारण लैंप बुझ सकता था। ज्यों ही मैं खिड़की के पास पहुंचा बिजली एक बार फिर चमकी और उसी चमक में मैंने एक स्त्री को नग्नावस्था में दौड़ते देखा। निश्चित रूप से वह विनीता थी। वह हंस रही थी. जोर जोर से कहकहे लगा रही थी। फिर एक शोला चला गया। विनीता एक मकान में समा गई। उसकी हंसी अब भी गूंज रही थी।
विनीता इस हाल में –।
वह उस मकान में क्यों गई है… कौन है वहां ?
तरह तरह के प्रश्न मेरे मन में भटकने लगे। मैंने हिम्मत बांधी और दियासलाई जेब में डालकर मकान से बाहर की तरफ रेंग गया। कुछ देर बाद ही मैं वर्षा में भीगता हुआ गली में सरक रहा था। उस मकान के दरवाजे खुले थे। मैं उसी में समा गया।
एक कमरे में रोशनी के साथ ही हंसी की गूंज उत्पन्न हो रही थी। मैं उसी कमरे की तरफ रेंग गया। मैंने धीरे-धीरे से बिना आहट किये भीतर झांक कर देखा। मुझे विनीता एक चादर में लिपटी नजर आई परंतु जो कुछ मैं देख रहा था उससे स्पष्ट लग रहा था कि चादर में कोई मर्द भी उसके साथ गड़मड़ हो रहा है। अब विनीता के कंठ से हंसी की जगह जोर जोर की सांसे और सिसकियां उभर रही थी। उसकी गोरी टांगे चादर से बाहर निकली हुई थी।
कौन है यह कमीना - जिसने मुझे मुसीबत की आग में झोंक दिया।
मैं तेजी के साथ आगे बढ़ा और एकदम चादर खींच दी। बिस्तरे पर विनीता नग्न पड़ी हांफ रही थी। अचानक वह चीख कर उठ खड़ी हुई। मुझे आश्चर्य हुआ कि वह अकेली थी। जबकि मैंने पुरुष का आभास स्पष्ट महसूस किया था। बिस्तरे पर गजरे के फूल बिखरे पड़े थे।
“तू अभी जिंदा है।” अचानक विनीता चीख कर बोली।
मुझे दूसरा झटका लगा। यह आवाज विनीता की नहीं थी, जबकि वह विनीता ही थी। वह बड़ी बेशर्मी के साथ हंसने लगी।
“नहीं पहचाना मुझे…..।” वह गुर्राई।
“विनीता….।”
“विनीता नहीं -- तेरी अम्मा चंद्रावती।”
अब मैंने चंद्रावती की आवाज अस्पष्ट पहचान ली। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। मुझे याद आया कि मैंने चंद्रावती की बलि चढ़ा दी थी।
“चंद्रा…..।”
“हां - तांत्रिक - मैं वही हूं - विनीता के शरीर में मेरा राज है। तूने मेरे बच्चे को मिटा दिया था न - मैं तभी से बच्चा पाने के लिये भटक रही हूं। जब तक तेरे पास बेताल था, मैं कुछ नहीं कर सकती थी। अब बेताल मेरा है - मेरा - तो उसे देख नहीं सकता - वह इसी कमरे में मौजूद है।”
“ले... लेकिन…. तूने विनीता को क्यों भ्रष्ट किया।”
“बच्चा पाने के लिये मुझे किसी औरत का जिस्म चाहिए था और फिर तुझसे इंतकाम भी तो लेना था। बेताल को भी विनीता की सुंदरता पसंद थी इसलिये मैंने विनीता का शरीर पहन लिया। मैं कभी भी विनीता का शरीर पहन सकती थी…. मेरे एक इशारे पर वह नींद में उठकर मंदिर से बाहर आ सकती थी…. मैंने तुझे ऐसी जगह पहुंचा ही दिया जहां से तू उठ नहीं सकता लेकिन तू बच कैसे गया ?”
खूनी रिश्तों में प्यार बेशुमारRunning.....परिवार मे प्यार बेशुमारRunning..... वो लाल बॅग वाली Running.....दहशत complete..... मेरा परिवार और मेरी वासना Running..... मोहिनी Running....सुल्तान और रफीक की अय्याशी .....Horror अगिया बेतालcomplete....डार्क नाइटcomplete .... अनदेखे जीवन का सफ़र complete.....भैया का ख़याल मैं रखूँगी complete.....काला साया complete.....प्यासी आँखों की लोलुपता complete.....मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग complete......मासूम ननद complete
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Re: Horror अगिया बेताल
“चंद्रा… मुझे चाहे जो सजा दे ले लेकिन विनीता को छोड़ दे।”
“अब तो उसके पेट में मेरा और बेताल का बच्चा पल रहा है…. और अब मैं उसे छोड़ दूं।”
“बेताल का बच्चा।”
“अचरज क्यों हो रहा है, बेताल मुझे प्यार करता है और मैं जिस शरीर में भी जाऊंगी, बेताल उसके संपर्क में आ जाएगा। बेताल का यह बच्चा सर्वशक्तिमान होगा- जा भाग जा…. इस बस्ती में प्लेग फैल गया है। सारी बस्ती खाली हो गई है…. अब तू प्लेग से बच सकता है तो कोशिश कर…. वरना एक दो रोज में तू प्लेग से मर जाएगा।”
मेरे सामने सारी स्थिति खुल गई थी और अब मैं विनीता को चंद्रावती के प्रेत से छुटकारा दिलाने की सोच रहा था। यह स्थिति घोर संकटपूर्ण थी। मैं जानता था बेताल मुझ पर हमला नहीं करेगा और ना मेरे सामने आएगा। अब तो सिर्फ चंद्रावती को काबू करना था।
“तू इसे छोड़ दे - मैं तेरे बच्चे को पाल लूंगा।”
“नहीं - मैं तुझ पर विश्वास नहीं कर सकती - तू विश्वासघाती है।”
“चंद्रा तब मैं हैवान था - अब इंसान हूं। मैं विनीता की सौगंध खाकर यह बात कह सकता हूं।”
“मैं एक बार चोट खा चुकी हूं - मैं अपने बच्चे को नहीं छोडूंगी।”
मैं जानता था जब बेताल किसी स्त्री से संपर्क कर लेता है तो उस स्त्री को दूसरा कोई भी पुरुष नहीं भोग सकता - और यदि ऐसा हो जाता है तो बेताल उस स्त्री के पास फिर कभी नहीं आता। यह सिर्फ बेतालों के साथ होता है। बेताल चंद्रा से प्रेम करता है और चंद्रा ने विनीता का शरीर पहन लिया है। विनीता को मुक्त करने के लिये अब एक ही उपाय है। उसके बाद चंद्रा यदि बेताल से प्रेम करती रही तो वह कभी विनीता के शरीर में नहीं आएगी क्योंकि बेताल इसे पसंद नहीं करेगा।
बेताल के बारे में मुझे सभी जानकारियां थी।
“चंद्रा मैं तुझसे वादा करता हूं।”
“चला जा यहां से।”
अचानक मैं विनीता पर टूट पड़ा क्योंकि विनीता ने एक गुलदस्ता उठाने का प्रयास किया था - शायद वह मुझ पर हमला करना चाहती थी। और मैंने उस पर कब्ज़ा पाने के लिये पंगुल होने के बावजूद भी संपूर्ण शक्ति लगा दी। वह चीख रही थी…. नाखून… मुक्के मार रही थी, किंतु मैंने उसे इस कदर मजबूती के साथ लपेट लिया कि वह बंधन से निकलने न पायी। इस संघर्ष में हम दोनों ऊपर नीचे लुढ़क रहे थे। ना जाने मुझ में कौन सी शक्ति भर आई थी अन्यथा वह मुझ पर बहुत भारी थी। मेरे सामने विनीता के प्राणों का संकट था। और मुझे जबरन वह सब कुछ करना पड़ा जो मैं नहीं करना चाहता था। वह भयानक आवाज में चीखती रही, परंतु इस वीरान बस्ती में उसकी चीत्कार सुनने वाला कौन था।
इस बीच विनीता चेतना शून्य हो गई।
भोर की लालिमा फूटते ही विनीता को होश आ गया। मैं कमरे में बेसुध पड़ा था। उसने चारों तरफ निगाह दौराई फिर अपने अस्त-व्यस्त शरीर को देखा। मुझ पर निगाह पड़ते ही चौंक कर खड़ी हो गई।
“मैं कहां हूं…. और यह सब।”
मैंने कराह कर आंखें खोल दी।
मेरा शरीर जख्मों से भरा पड़ा था। पीड़ा अब और गहरी हो गई थी और मुझसे उठा भी नहीं जा रहा था।
“आप… यह सब क्या है, हम कहां हैं ?”
मैंने धीमे किंतु स्पष्ट स्वर में उसे सारी बात सुना दी। वह आश्चर्य से सब सुनती रही, फिर फूट फूट कर रोने लगी।
“अब तो उसके पेट में मेरा और बेताल का बच्चा पल रहा है…. और अब मैं उसे छोड़ दूं।”
“बेताल का बच्चा।”
“अचरज क्यों हो रहा है, बेताल मुझे प्यार करता है और मैं जिस शरीर में भी जाऊंगी, बेताल उसके संपर्क में आ जाएगा। बेताल का यह बच्चा सर्वशक्तिमान होगा- जा भाग जा…. इस बस्ती में प्लेग फैल गया है। सारी बस्ती खाली हो गई है…. अब तू प्लेग से बच सकता है तो कोशिश कर…. वरना एक दो रोज में तू प्लेग से मर जाएगा।”
मेरे सामने सारी स्थिति खुल गई थी और अब मैं विनीता को चंद्रावती के प्रेत से छुटकारा दिलाने की सोच रहा था। यह स्थिति घोर संकटपूर्ण थी। मैं जानता था बेताल मुझ पर हमला नहीं करेगा और ना मेरे सामने आएगा। अब तो सिर्फ चंद्रावती को काबू करना था।
“तू इसे छोड़ दे - मैं तेरे बच्चे को पाल लूंगा।”
“नहीं - मैं तुझ पर विश्वास नहीं कर सकती - तू विश्वासघाती है।”
“चंद्रा तब मैं हैवान था - अब इंसान हूं। मैं विनीता की सौगंध खाकर यह बात कह सकता हूं।”
“मैं एक बार चोट खा चुकी हूं - मैं अपने बच्चे को नहीं छोडूंगी।”
मैं जानता था जब बेताल किसी स्त्री से संपर्क कर लेता है तो उस स्त्री को दूसरा कोई भी पुरुष नहीं भोग सकता - और यदि ऐसा हो जाता है तो बेताल उस स्त्री के पास फिर कभी नहीं आता। यह सिर्फ बेतालों के साथ होता है। बेताल चंद्रा से प्रेम करता है और चंद्रा ने विनीता का शरीर पहन लिया है। विनीता को मुक्त करने के लिये अब एक ही उपाय है। उसके बाद चंद्रा यदि बेताल से प्रेम करती रही तो वह कभी विनीता के शरीर में नहीं आएगी क्योंकि बेताल इसे पसंद नहीं करेगा।
बेताल के बारे में मुझे सभी जानकारियां थी।
“चंद्रा मैं तुझसे वादा करता हूं।”
“चला जा यहां से।”
अचानक मैं विनीता पर टूट पड़ा क्योंकि विनीता ने एक गुलदस्ता उठाने का प्रयास किया था - शायद वह मुझ पर हमला करना चाहती थी। और मैंने उस पर कब्ज़ा पाने के लिये पंगुल होने के बावजूद भी संपूर्ण शक्ति लगा दी। वह चीख रही थी…. नाखून… मुक्के मार रही थी, किंतु मैंने उसे इस कदर मजबूती के साथ लपेट लिया कि वह बंधन से निकलने न पायी। इस संघर्ष में हम दोनों ऊपर नीचे लुढ़क रहे थे। ना जाने मुझ में कौन सी शक्ति भर आई थी अन्यथा वह मुझ पर बहुत भारी थी। मेरे सामने विनीता के प्राणों का संकट था। और मुझे जबरन वह सब कुछ करना पड़ा जो मैं नहीं करना चाहता था। वह भयानक आवाज में चीखती रही, परंतु इस वीरान बस्ती में उसकी चीत्कार सुनने वाला कौन था।
इस बीच विनीता चेतना शून्य हो गई।
भोर की लालिमा फूटते ही विनीता को होश आ गया। मैं कमरे में बेसुध पड़ा था। उसने चारों तरफ निगाह दौराई फिर अपने अस्त-व्यस्त शरीर को देखा। मुझ पर निगाह पड़ते ही चौंक कर खड़ी हो गई।
“मैं कहां हूं…. और यह सब।”
मैंने कराह कर आंखें खोल दी।
मेरा शरीर जख्मों से भरा पड़ा था। पीड़ा अब और गहरी हो गई थी और मुझसे उठा भी नहीं जा रहा था।
“आप… यह सब क्या है, हम कहां हैं ?”
मैंने धीमे किंतु स्पष्ट स्वर में उसे सारी बात सुना दी। वह आश्चर्य से सब सुनती रही, फिर फूट फूट कर रोने लगी।
खूनी रिश्तों में प्यार बेशुमारRunning.....परिवार मे प्यार बेशुमारRunning..... वो लाल बॅग वाली Running.....दहशत complete..... मेरा परिवार और मेरी वासना Running..... मोहिनी Running....सुल्तान और रफीक की अय्याशी .....Horror अगिया बेतालcomplete....डार्क नाइटcomplete .... अनदेखे जीवन का सफ़र complete.....भैया का ख़याल मैं रखूँगी complete.....काला साया complete.....प्यासी आँखों की लोलुपता complete.....मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग complete......मासूम ननद complete
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Re: Horror अगिया बेताल
“रोने से काम नहीं चलता विनीता … जाओ मेरी बैसाखियां खोज कर ले आओ। हम लोग उसी मंदिर में चलेंगे। और ईश्वर के उसी दरबार में विधिवत रूप से विवाह कर लेंगे। मैं तुम्हारे जीवन को बीच मझधार में नहीं छोड़ूँगा, भले ही मेरी मृत्यु हो जाए। विनीता ! यदि हम प्लेग से बच गए तो हमेशा के लिये यह स्थान छोड़ देंगे। क्या तुम मेरे साथ रहना पसंद करोगी।”
“हां….।” उसने भर्राए कंठ से कहा।
उसके बाद वह मेरे कंधे से लग कर रोने लगी।
हमने भगवान के मंदिर में सच्चाई का सामना किया। पंगुल पति को स्वीकार किया ताकि उसे कोई कलंकिनी भी ना कह सके और मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे जीवन के सारे पाप धुल गए हैं।
एक रात चंद्रावती मेरे स्वप्न में आई।
उसने कहा - “तुमने वादा किया था न रोहतास, तुम भूले तो नहीं।
“नहीं….।” मैंने कहा - “मैं नहीं भूला… इसे मैं अपने बच्चे की तरह पालूंगा….. मुझे मेरे पापों के लिये क्षमा कर देना चंद्रावती और बेताल से कहना, उसके मुझ पर बहुत आसान हैं, तुम दोनों के प्रेम की निशानी ने मनुष्य चोले में कदम रखा है… वह हमेशा मेरे घर का चिराग बनकर रहेगा। जानती हो मैं उसका क्या नाम रखूंगा।”
“बताओ…..।”
“अगर लड़का हुआ तो नाम होगा चंद्र बेताल और लड़की हुई तो चंद्राबेतलाई।”
“उसे कभी तांत्रिक न बनाना रोहतास।”
“जो भूल मैं कर चुका वह मेरे खानदान में कभी नहीं दोहराई जाएगी।”
“अच्छा अलविदा - मैं लंबी यात्रा पर जा रही हूं।”
चंद्रावती की आत्मा को शांति मिल चुकी थी। ईश्वर की माया कुछ ऐसी हुई कि हम पर प्लेग का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और एक दिन हम वह नगरी छोड़कर ही चल पड़े।
जंगलों में वैरागियों की तरह भटकते रहे। मार्ग में एक साधु मिला जो हमें मठ में ले गया। यह बहुत बड़ा मठ था। और यहां साधु के अनेक स्त्री-पुरुष अनुयाई रहते थे। साधु ने मुझे बताया कि मेरे जीवन का उद्धार अब शुरू हो गया है। उसे मेरे जीवन की सभी बातें ज्ञात थी और मुझे ईश्वर भक्ति में विलीन हो जाने का उपदेश दिया, पहिले विनीता के गर्भ में पल रहे शिशु को मृत्यु से बचाया जा सके और उसे इंसानी रूप दिया जा सके। साधु का कथन था कि बेताल का गर्भ किसी इंसान का रुप नहीं ले सकता। परंतु विनीता के गर्भ में पुरुष के हारमोंस का समावेश हो गया था, जिससे वह इंसान का रूप धारण कर सकता था। गर्भ में तीन माह का विलंब होना अनिवार्य था तभी वह इंसान का रूप धारण करेगा।
एक प्रकार से वह बेताल और मेरी समर्थित संतान थी।
साधु के कथनानुसार हम ईश्वर भक्ति में लीन हो गए और इस प्रकार हमारे जीवन का एक नया युग शुरू हो गया। उसी मठ में एक ऐसा भक्त भी था जिसने जड़ी बूटियों के जरिए मेरी टांगे ठीक करने का दावा किया। उसने अपना कार्य शुरू किया। धीरे-धीरे समय बीतता गया…. फिर मुझे लगा जैसे टांगो की शक्ति लौट रही थी।
विनीता का शिशु ठीक चल रहा था। दो स्त्रियां उसकी देखरेख करती थी।
इधर मेरी टांगों की शक्ति लौट रही थी
आखिर वह दिन भी आ गया जब विनीता ने कष्टप्रद रात्रि गुजारी - बच्चे का जन्म बड़ी कठिनाई से तीन रोज के संघर्ष के बाद हुआ - इस बीच वह मूर्छावस्था में पड़ी रही। पीड़ा के कारण कभी-कभी जोरों से चीख पड़ती।
बच्चे का जन्म हो ही गया।
विनीता को पुत्र लाभ हुआ।
उसका दामन खुशियों से भर गया।
चंद्रताल पैदा हो गया था। और मैं अब अपनी टांगों पर खड़ा होने लगा था।
समाप्त
“हां….।” उसने भर्राए कंठ से कहा।
उसके बाद वह मेरे कंधे से लग कर रोने लगी।
हमने भगवान के मंदिर में सच्चाई का सामना किया। पंगुल पति को स्वीकार किया ताकि उसे कोई कलंकिनी भी ना कह सके और मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे जीवन के सारे पाप धुल गए हैं।
एक रात चंद्रावती मेरे स्वप्न में आई।
उसने कहा - “तुमने वादा किया था न रोहतास, तुम भूले तो नहीं।
“नहीं….।” मैंने कहा - “मैं नहीं भूला… इसे मैं अपने बच्चे की तरह पालूंगा….. मुझे मेरे पापों के लिये क्षमा कर देना चंद्रावती और बेताल से कहना, उसके मुझ पर बहुत आसान हैं, तुम दोनों के प्रेम की निशानी ने मनुष्य चोले में कदम रखा है… वह हमेशा मेरे घर का चिराग बनकर रहेगा। जानती हो मैं उसका क्या नाम रखूंगा।”
“बताओ…..।”
“अगर लड़का हुआ तो नाम होगा चंद्र बेताल और लड़की हुई तो चंद्राबेतलाई।”
“उसे कभी तांत्रिक न बनाना रोहतास।”
“जो भूल मैं कर चुका वह मेरे खानदान में कभी नहीं दोहराई जाएगी।”
“अच्छा अलविदा - मैं लंबी यात्रा पर जा रही हूं।”
चंद्रावती की आत्मा को शांति मिल चुकी थी। ईश्वर की माया कुछ ऐसी हुई कि हम पर प्लेग का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और एक दिन हम वह नगरी छोड़कर ही चल पड़े।
जंगलों में वैरागियों की तरह भटकते रहे। मार्ग में एक साधु मिला जो हमें मठ में ले गया। यह बहुत बड़ा मठ था। और यहां साधु के अनेक स्त्री-पुरुष अनुयाई रहते थे। साधु ने मुझे बताया कि मेरे जीवन का उद्धार अब शुरू हो गया है। उसे मेरे जीवन की सभी बातें ज्ञात थी और मुझे ईश्वर भक्ति में विलीन हो जाने का उपदेश दिया, पहिले विनीता के गर्भ में पल रहे शिशु को मृत्यु से बचाया जा सके और उसे इंसानी रूप दिया जा सके। साधु का कथन था कि बेताल का गर्भ किसी इंसान का रुप नहीं ले सकता। परंतु विनीता के गर्भ में पुरुष के हारमोंस का समावेश हो गया था, जिससे वह इंसान का रूप धारण कर सकता था। गर्भ में तीन माह का विलंब होना अनिवार्य था तभी वह इंसान का रूप धारण करेगा।
एक प्रकार से वह बेताल और मेरी समर्थित संतान थी।
साधु के कथनानुसार हम ईश्वर भक्ति में लीन हो गए और इस प्रकार हमारे जीवन का एक नया युग शुरू हो गया। उसी मठ में एक ऐसा भक्त भी था जिसने जड़ी बूटियों के जरिए मेरी टांगे ठीक करने का दावा किया। उसने अपना कार्य शुरू किया। धीरे-धीरे समय बीतता गया…. फिर मुझे लगा जैसे टांगो की शक्ति लौट रही थी।
विनीता का शिशु ठीक चल रहा था। दो स्त्रियां उसकी देखरेख करती थी।
इधर मेरी टांगों की शक्ति लौट रही थी
आखिर वह दिन भी आ गया जब विनीता ने कष्टप्रद रात्रि गुजारी - बच्चे का जन्म बड़ी कठिनाई से तीन रोज के संघर्ष के बाद हुआ - इस बीच वह मूर्छावस्था में पड़ी रही। पीड़ा के कारण कभी-कभी जोरों से चीख पड़ती।
बच्चे का जन्म हो ही गया।
विनीता को पुत्र लाभ हुआ।
उसका दामन खुशियों से भर गया।
चंद्रताल पैदा हो गया था। और मैं अब अपनी टांगों पर खड़ा होने लगा था।
समाप्त
खूनी रिश्तों में प्यार बेशुमारRunning.....परिवार मे प्यार बेशुमारRunning..... वो लाल बॅग वाली Running.....दहशत complete..... मेरा परिवार और मेरी वासना Running..... मोहिनी Running....सुल्तान और रफीक की अय्याशी .....Horror अगिया बेतालcomplete....डार्क नाइटcomplete .... अनदेखे जीवन का सफ़र complete.....भैया का ख़याल मैं रखूँगी complete.....काला साया complete.....प्यासी आँखों की लोलुपता complete.....मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग complete......मासूम ननद complete