Doston, main Ankur phir se ek Baar ek nayer kahani ke saath jald laut aa raha hoon. Yeh kahani ek tarah se 'Kaamdev ka Aashirwad' ka sequel hain, lekin ek bilkul naye parivar ke saath.
Umeed karta hoon is kahani ko bhi utna hi pyar milega.
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Incest Kaamdev ki Leela
- Rathore
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- Posts: 534
- Joined: 12 Feb 2018 01:27
Re: Incest Kaamdev ki Leela
for new story
- rangila
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Re: Incest Kaamdev ki Leela
waiting dost
plz strat
-
- Novice User
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Re: Incest Kaamdev ki Leela
कहानी के किरदार कुछ इस तरह है :
रामधीर सिंह : ६८ वर्ष का गठीला बदन का मालिक और बेहद सख्त स्वभाव
यासोधा देवी : ६३ साल की बेहद गड्राई और सुडौल जिस्म की मालकिन, अपने पति के बेहद निकट रहती है और अपने बच्चो से बहुत प्यार करती है।
इनके दो बेटे :
महेश सिंह : ४५ साल, बेहद रोमांटिक मिज़ाज के आदमी
उनकी पत्नी आशा सिंह : ४१ साल की बहुत ही कामुक स्वभाव की औरत है और दिल में काफी रहस्य छिपे थे
इन के तीन संतान :
राहुल : २४ साल का नटखट युवक
रिमी : १९ साल की प्यारी से, भोली सी
नमिता : २७ साल की, एमबीबीएस स्टूडेंट और तीनों में सबसे बड़ी और सख़्त स्वभाव की
_______
चलते है दूसरे बेटे पर
गौरव सिंह : ५१ साल का बेहद पहलवान, बिल्कुल अपने पिता रणधीर की तरह
रमोला, उनकी पत्नी : ४० साल की बेहद खूसूरत और सुडौल जिस्म की मालकिन
इनके दो बच्चे :
रेवती : २७ साल की मदमस्त जिस्म की लड़की और बेहद शरारती किस्म की स्वभाव
अजय : बहुत शर्मीला, और खास बात उसका क्रॉसडरेस करने का स्वभाव
___________
चलिए देखते है इन सब को कामदेव क्या सुख दिलाता है।
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अपडेट १
ऊपर स्वर्ग में गजोधरी और कामदेव प्रेमलीला में लगे हुए थे। गाजोधरी की जिस्म फूलों के नदी में निखार के खिल उठी और श्री कामदेव अपनी गीत वाणी से उसकी मनोरंजन करता गया।
सारे अप्सराएं जलन के मारे चुप चाप उन्हें देखता गए। मधुर मधुर गीत पर गजोधारी नदी में डुबकी लगती और उभर आती, और फिर डुबकी लगती।
कामदेव : उफ्फ यह मनमोहक चंचल जिस्म हमें घायल कर देगा!
गाजोधारी : आप तो बस! खैर चलिए ज़रा पृथ्वी लोक पे नजर डालते हैं! क्या कहते है प्रभु?
कामदेव : बिल्कुल! क्या पता और एक कामुक परिवार मिल जाए!
चलिए चलते है नीचे की और जहां इंसान बसेरा करते है। चलते है सिंह परिवर की और!
पंछियों की आवाज़ चेहेक उठा आसमान में। रामधीर सुबह सुबह उठ के अपने आदत से मजबूर, हमेशा की तरह थोड़े व्याम में लग जाता है। गठीला बदन युही दिन या हफ्ते में नहीं बने थे, काफी समय लगा और मेहनल
भी तारीफे काबिल। सांवला जिस्म बेहद ज़ोर का संकल्प कर रहा था और सफेद बान्यान और लंगोट में कैद बरी आकर्षित लग रहा था।
रामधीर अपने समय के एक प्रसिद्ध पहलवान रह चुके थे और इतना ही नहीं, इनका खौफ काफी मशहूर भी था, चाहे अकहरा हो या दोस्तों में मस्ती हो या फिर घर में अपने पत्नी के साथ ठुकाई हो। कसरत के बाद अपने पसीने से भीगे बदन लेके बाथरूम घुस गए और एक टॉवेल लपेट लिए लंगोट निकालकर। बन्यान तो पहले ही त्याग दिया था बाल्टी में और ऐसे ही केवल टॉवेल लपेट के अपना हजाम बनाने लगे के तभी सामने पूजा पाठ की थाली लेके एक बेहद सुडौल और चौड़ी जिस्म की औरत एक सफेद फुलस्लीव ब्लाउस और हल्के पीले रंग की साड़ी पहनी, गायत्री गीत गाती हुई आती है और तभी हुआ युं के उसकी कलाई को जकड़ लेता है रामधीर और बाथरूम के अन्दर खीच लेता है।
वोह औरत और कोई नहीं बल्कि उनकी धर्मपत्नी यशोधा देवी थी। उसकी हाथ में से थाली नीचे गिर जाती हैं और आवाज़ देती है आशा "माजी क्या हुआ??"
लेकिन कोई आवाज़ आए तो ना! दोनों पति पत्नी होंठों को आपस में रगड़ के चुम्बन में व्यस्त थे, यशोधा को नीचे गिरे हुए थाली की ज़रा सी भी परवाह नहीं थी। फिर रामधीर अपने होंठों को आज़ाद करता है और कान की लौ को प्यार से चूम लेता है "जन्मदिन मुबारक! भाग्यवान"।
उफ्फ इतना खास दिन तो यादोशा देवि खुद भूल गई थी, लेकिन रामधीर थे आवारा आशिक़ कहिन के! इस उम्र में भी दोनों पति पत्नी एक दूसरे से नाक रिग्रने लगे और यशोधा देवी पल्लू को मूह में लाए हसने लगी।
यशोधा : बारे बेशरम हो आप! धत्त!
रामधीर : (कुछ बोला नाही) "तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है!" ओए होए मेरे धर्मपत्नी जी! आज ना रोको मुझे! मुझे जवानी के दिन याद आ रहे हे! क्या करू! तुम अब इतनी फूल को गई हो के और ज़्यादा प्यार आता है आज कल!
यशोधा : आप भी कहा कम हो! (पल्लू को सीधा करके, नीचे थाली उठिके) आज भी जोग व्यम करते है! थोड़ा उम्र का तो लिहाज कीजिए! बच्चो तो बच्चे! पोते पोतियों भी बड़े हो गए! फिर भी...
ऐसे समय में आशा आजती है और अपने सास और ससुर को देखकर हैरान होजाती है। "इस उम्र में भी ऐसा रोमांस! ऐसा नटखट मिज़ाज! उफ्फ! और एक में! (वहीं के वहीं खड़ी रही और सास ससुर का रोमांस देखने लगी) यह महेश तो अपने बाप के सामने कुछ भी नहीं!
फिर से यशोधा देवी और रामधीर की लप्लापती होंठ मिलने ही वाले थे के आशा झट से "माजी!" बोल परी और यशोधा देवी शरम के मारे बाथरूम में से निकाल जाती है थाली लेकर।
रणधीर भी फ्रेश होकर निकल आता है और अपने बहू को देखकर मुस्कुराता हुआ अपने कमरे में चले जाते हे। ससुर के तीखी नज़रों का अंदाज़ आशा को एक मदहोशी के आलम में रख देती थी हमेशा की तरह।
रामधीर सिंह : ६८ वर्ष का गठीला बदन का मालिक और बेहद सख्त स्वभाव
यासोधा देवी : ६३ साल की बेहद गड्राई और सुडौल जिस्म की मालकिन, अपने पति के बेहद निकट रहती है और अपने बच्चो से बहुत प्यार करती है।
इनके दो बेटे :
महेश सिंह : ४५ साल, बेहद रोमांटिक मिज़ाज के आदमी
उनकी पत्नी आशा सिंह : ४१ साल की बहुत ही कामुक स्वभाव की औरत है और दिल में काफी रहस्य छिपे थे
इन के तीन संतान :
राहुल : २४ साल का नटखट युवक
रिमी : १९ साल की प्यारी से, भोली सी
नमिता : २७ साल की, एमबीबीएस स्टूडेंट और तीनों में सबसे बड़ी और सख़्त स्वभाव की
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चलते है दूसरे बेटे पर
गौरव सिंह : ५१ साल का बेहद पहलवान, बिल्कुल अपने पिता रणधीर की तरह
रमोला, उनकी पत्नी : ४० साल की बेहद खूसूरत और सुडौल जिस्म की मालकिन
इनके दो बच्चे :
रेवती : २७ साल की मदमस्त जिस्म की लड़की और बेहद शरारती किस्म की स्वभाव
अजय : बहुत शर्मीला, और खास बात उसका क्रॉसडरेस करने का स्वभाव
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चलिए देखते है इन सब को कामदेव क्या सुख दिलाता है।
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अपडेट १
ऊपर स्वर्ग में गजोधरी और कामदेव प्रेमलीला में लगे हुए थे। गाजोधरी की जिस्म फूलों के नदी में निखार के खिल उठी और श्री कामदेव अपनी गीत वाणी से उसकी मनोरंजन करता गया।
सारे अप्सराएं जलन के मारे चुप चाप उन्हें देखता गए। मधुर मधुर गीत पर गजोधारी नदी में डुबकी लगती और उभर आती, और फिर डुबकी लगती।
कामदेव : उफ्फ यह मनमोहक चंचल जिस्म हमें घायल कर देगा!
गाजोधारी : आप तो बस! खैर चलिए ज़रा पृथ्वी लोक पे नजर डालते हैं! क्या कहते है प्रभु?
कामदेव : बिल्कुल! क्या पता और एक कामुक परिवार मिल जाए!
चलिए चलते है नीचे की और जहां इंसान बसेरा करते है। चलते है सिंह परिवर की और!
पंछियों की आवाज़ चेहेक उठा आसमान में। रामधीर सुबह सुबह उठ के अपने आदत से मजबूर, हमेशा की तरह थोड़े व्याम में लग जाता है। गठीला बदन युही दिन या हफ्ते में नहीं बने थे, काफी समय लगा और मेहनल
भी तारीफे काबिल। सांवला जिस्म बेहद ज़ोर का संकल्प कर रहा था और सफेद बान्यान और लंगोट में कैद बरी आकर्षित लग रहा था।
रामधीर अपने समय के एक प्रसिद्ध पहलवान रह चुके थे और इतना ही नहीं, इनका खौफ काफी मशहूर भी था, चाहे अकहरा हो या दोस्तों में मस्ती हो या फिर घर में अपने पत्नी के साथ ठुकाई हो। कसरत के बाद अपने पसीने से भीगे बदन लेके बाथरूम घुस गए और एक टॉवेल लपेट लिए लंगोट निकालकर। बन्यान तो पहले ही त्याग दिया था बाल्टी में और ऐसे ही केवल टॉवेल लपेट के अपना हजाम बनाने लगे के तभी सामने पूजा पाठ की थाली लेके एक बेहद सुडौल और चौड़ी जिस्म की औरत एक सफेद फुलस्लीव ब्लाउस और हल्के पीले रंग की साड़ी पहनी, गायत्री गीत गाती हुई आती है और तभी हुआ युं के उसकी कलाई को जकड़ लेता है रामधीर और बाथरूम के अन्दर खीच लेता है।
वोह औरत और कोई नहीं बल्कि उनकी धर्मपत्नी यशोधा देवी थी। उसकी हाथ में से थाली नीचे गिर जाती हैं और आवाज़ देती है आशा "माजी क्या हुआ??"
लेकिन कोई आवाज़ आए तो ना! दोनों पति पत्नी होंठों को आपस में रगड़ के चुम्बन में व्यस्त थे, यशोधा को नीचे गिरे हुए थाली की ज़रा सी भी परवाह नहीं थी। फिर रामधीर अपने होंठों को आज़ाद करता है और कान की लौ को प्यार से चूम लेता है "जन्मदिन मुबारक! भाग्यवान"।
उफ्फ इतना खास दिन तो यादोशा देवि खुद भूल गई थी, लेकिन रामधीर थे आवारा आशिक़ कहिन के! इस उम्र में भी दोनों पति पत्नी एक दूसरे से नाक रिग्रने लगे और यशोधा देवी पल्लू को मूह में लाए हसने लगी।
यशोधा : बारे बेशरम हो आप! धत्त!
रामधीर : (कुछ बोला नाही) "तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है!" ओए होए मेरे धर्मपत्नी जी! आज ना रोको मुझे! मुझे जवानी के दिन याद आ रहे हे! क्या करू! तुम अब इतनी फूल को गई हो के और ज़्यादा प्यार आता है आज कल!
यशोधा : आप भी कहा कम हो! (पल्लू को सीधा करके, नीचे थाली उठिके) आज भी जोग व्यम करते है! थोड़ा उम्र का तो लिहाज कीजिए! बच्चो तो बच्चे! पोते पोतियों भी बड़े हो गए! फिर भी...
ऐसे समय में आशा आजती है और अपने सास और ससुर को देखकर हैरान होजाती है। "इस उम्र में भी ऐसा रोमांस! ऐसा नटखट मिज़ाज! उफ्फ! और एक में! (वहीं के वहीं खड़ी रही और सास ससुर का रोमांस देखने लगी) यह महेश तो अपने बाप के सामने कुछ भी नहीं!
फिर से यशोधा देवी और रामधीर की लप्लापती होंठ मिलने ही वाले थे के आशा झट से "माजी!" बोल परी और यशोधा देवी शरम के मारे बाथरूम में से निकाल जाती है थाली लेकर।
रणधीर भी फ्रेश होकर निकल आता है और अपने बहू को देखकर मुस्कुराता हुआ अपने कमरे में चले जाते हे। ससुर के तीखी नज़रों का अंदाज़ आशा को एक मदहोशी के आलम में रख देती थी हमेशा की तरह।