Fantasy मोहिनी

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Dolly sharma
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Re: Fantasy मोहिनी

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रात हो गयी और जब रात का कुछ हिस्सा गुज़र गया तो एक साया सा अंदर दाख़िल हुआ। गौर से देखने के बाद पता चला कि वह सुनीता थी। वह मेरे क़रीब आकर बैठ गयी। उसके जिस्म के लम्स से मेरे जिस्म में सरसराहट होने लगी।

मैंने जबरन आँखें बंद कर लीं। सुनीता भी मेरे पहलू में लेट गयी और मेरे बालों भरे सीने पर हाथ फेरने लगी। वह अपना चेहरा मेरे चेहरे के क़रीब ले आई। उसकी साँस मेरे साँसों से टकराने लगी। उसके सीने की धड़कनों से जाहिर हो रहा था कि वह जज्बात से मचली हुई थी। वह मेरे जिस्म पर हाथ फेरने लगी। उसकी साँसें निरंतर तेज होती जा रही थी। मेरे सीने में आग लग रही थी। मैं भी उसे अपने आगोश में समेटने के लिए बेताब हो गया।

अचानक एक झटका सा लगा और मुझे उस साधु का चेहरा नज़र आने लगा जिसने अपने प्राणों की आहुति देकर मोहिनी देवी के लिए मुझे जीवन दान दिया था। सारा जीवन तो पाप करता रहा। अब मैं परीक्षा की घड़ियों से गुज़र रहा हूँ। मुझे लगा जैसे मोहिनी मुझे देख रही है, क्रोध भरी दृष्टि से। मैं एकदम से करवट बदलकर उठा और बाहर आ गया। बाहर ठंडी हवाओं ने दिमाग़ को राहत प्रदान की और वह सारी रात मैंने कशमकश में गुजारी।

सुबह गोरखनाथ मुझे लेकर ऐसे स्थान पर पहुँचा जहाँ एक बड़े कढ़ाव के नीचे तेज आग धधक रही थी और कढ़ाव का तेल उबल रहा था। गोरखनाथ ने कढ़ाव के समीप मुझे खड़ा किया और मेरी परीक्षा लेने लगा।

सबसे पहले प्रश्न किया- “क्या तुम मोहिनी देवी के सच्चे पुजारी हो ?”

मैंने सिर हिलाकर जवाब दिया- “जी हाँ!”

“तो तुम मोहिनी देवी के लिए अपने प्राणों की बलि चढ़ा सकोगे ?”

मैंने ख़ुशी से कहा- “मोहिनी देवी के लिए मैं दिलों जान से हाज़िर हूँ।”

गोरखनाथ ने जलते हुए तेल में हाथ डालकर मेरे शरीर पर उछाल दिए। जैसे ही तेल के कतरे मेरे शरीर पर पड़े मैं उछल पड़ा। जिस जगह तेल गिरा था तेज जलन हो रही थी लेकिन मैंने साहस से काम लिया और उफ तक न की।

गोरखनाथ ने मुझे संबोधित करके कहा- “बालक, मोहिनी देवी के लिए तुम्हें इस कढ़ाव में छलांग लगाकर अपने प्राणों की बलि देनी होगी।”

यह सुनते ही दिल धक्क से रह गया। मौत, वह कष्टदायक मौत। मैं सोचने लगा। इनकार की गुंजाइश कहाँ थी और फिर मैं तो यूँ भी मरा हुआ आदमी था।

मेरी नज़रों के सामने मोहिनी का हसीन चेहरा घूमने लगा। उस वक्त वह बहुत दिलकश लग रही थी। मैंने मोहिनी पर कुर्बान होने का साहस पैदा किया।

“बालक, तेरी क्या इच्छा है ?” गोरखनाथ का स्वर सुनाई दिया।

“महाराज, मैं ख़ुशी से तैयार हूँ!”

गोरखनाथ ने मुझसे कढ़ाव में छलांग लगाने के लिए संकेत किया। उस वक्त तो बस मैंने मरने का फ़ैसला कर लिया। मौत से भला क्या खौफ था। जाने कितनी बार मौत से मुक़ाबला हो चुका था। मौत वह भी मोहिनी के लिए।

मैंने आँखें मूँदकर उबलते हुए कढ़ाव में छलांग लगा दी। दूसरे क्षण मेरा शरीर जल-भूनकर कबाब बन जाता कि कढ़ाव का तेल बिल्कुल ठंडा पड़ चुका था। जैसे मैं पानी में तैर रहा हूँ। मैंने आँखें फाड़कर गोरखनाथ की तरफ़ देखा। गोरखनाथ ने मुझे बाहर आने का संकेत दिया और मुझे सीने से लगा लिया।

“इसका अर्थ यह हुआ कि मुझे विश्वास हो गया कि तुम ही वह सच्चे महापुरुष हो...।”

गोरखनाथ के स्वर में मेरे प्रति बड़ा सम्मान था। “और अब वह समय आ गया है जब काले बादल छँट गए हैं। मोहिनी देवी अपने मंदिर में सशरीर प्रकट हो गयी हैं। हाँ, सचमुच वह दिन आ गया है।”

गोरखनाथ ख़ुशी से गदगद हो रहा था। “कितनी सदियाँ बीत गयी, कुछ याद नहीं। यहाँ इस धरती पर खुद मेरा तीसरा जन्म है। मेरी जाति के लोग यहीं मरते खपते रहे हैं। मोहिनी देवी की राह तकते रहे हैं लेकिन वह समय नहीं आया। मेरा यह जीवन धन्य है जो तुम आ गए।
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Dolly sharma
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“तुम्हीं हो वह महापुरुष जिसने एक सौ एक साधुओं का मान तोड़ा था। वे साधु जो हिमालय की गोद में तप कर रहे थे। मोहिनी देवी से पराजित होकर उन्होंने घोर तपस्या की। और महाकाली का वरदान प्राप्त करके मोहिनी को महारानी से बांदी बना दिया। एक ऐसी बांदी जो कभी अपने मंदिर में नहीं लौट सकती थी। मोहिनी देवी का शरीर उसी मंदिर में क़ैद होकर रह गया और आत्मा भटकती रही। सदियाँ बीत गयी लोग पुजारी मोहिनी को बांदी बनाते रहे। उसे खिलौने की तरह नचाते रहे और वह भटकती रही, इधर से उधर। इंसानी लहू उसका अस्तित्व ज़िंदा रख सकती थी। लेकिन मोहिनी देवी ने कहा था एक दिन वह ज़रूर आएगी। तब तक कोई उसके शरीर के दर्शन नहीं करने पाए। कोई स्पर्श न करने पाए और हम यहाँ तब से अब तक दीवार बनकर खड़े हैं।

“यदि कोई मोहिनी देवी के शरीर का दर्शन कर लेता तो मोहिनी सदैव के लिए उसी की होकर रह जाती। फिर उसे कोई भी दूसरा व्यक्ति जाप करके प्राप्त न कर सकता। और अब जो इंसान सबसे पहले मोहिनी देवी का दर्शन करेगा, वह तुम होगे। यात्रा के लिए तैयार हो जाओ महाराज। मैं तुम्हें वहाँ ले चलूँगा। अब हमारे मार्ग में कोई रुकावट नहीं आएगी।”

मैं खामोशी से यह सब सुन रहा था।

“क्या हमें आगे भी यात्रा करनी होगी ?”

“हाँ महाराज! पहाड़ों के दामन में एक पुरानी कौम की रियासत आबाद है। वे लोग सारे संसार से बिल्कुल अलग-थलग हैं। वे किसी भी अजनबी को अपने रियासत में देखना भी पसंद नहीं करते। और जो अजनबी वहाँ तक पहुँच जाता है, वह आज तक ज़िंदा वापस नहीं लौटा। मुझे उस रियासत में राज-पुरोहित का दर्जा हासिल है। उनकी भाषा भी तुम्हें सीखनी होगी। रियासत में जो जाति आबाद है वह लड़ाकू कौम है। यह कौम सुदूर पश्चिम से यहाँ आई थी। उन्होंने तिब्बत के मार्ग से यहाँ प्रवेश किया। उनके पीछे एक ख़ूनी फ़ौज़ लगी थी। पहाड़ी रास्तों में चलते हुए उनके बहुत से सैनिक मारे गए। उनमें से चंद लोग बचे थे जो हिमालय के पहाड़ों में बरसों तक भटकते रहे। बताते हैं कि उनके सरदार ने मोहिनी देवी के दर्शन किए थे। और मोहिनी देवी ने उन्हें शरण दी थी। इन लोगों ने मार्ग में कई तप करते हुए साधुओं की हत्या की थी। वे इन्हीं पहाड़ियों में भटक-भटक कर मर जाते अगर मोहिनी देवी ने उन्हें शरण न दी होती। तभी से यह कौम वहाँ आबाद हो गयी। और उसी घटना के कारण साधु-संत मोहिनी से रुष्ट हो गए।

“एक सौ एक साधुओं ने हिमालय में तप किया। मोहिनी देवी के पुजारी भी हिमालय में आबाद थे। परंतु जीत आख़िर एक सौ एक साधुओं की हुई और मोहिनी देवी को श्राप मिल गया। फिर मोहिनी देवी का शरीर मंदिर में ही क़ैद हो गया और उसकी आत्मा भटकती रही। यह मंदिर एक ऐसी जगह है जहाँ आग के पहाड़ हैं। बर्फपोश चोटियों पर मंदिर कहीं छिपा है और पहाड़ों के दामन में एक वहशी कौम आबाद है परंतु तलहटी में बसी रियासत की महारानी पहाड़ों की रानी से खौफ खाती है और पहाड़ों की रानी कौन है, कोई नहीं जानता। बस जैसे-जैसे तुम इस यात्रा पर चलते रहोगे सब ज्ञान तुम्हें प्राप्त होता रहेगा। मुझे मोहिनी ने स्वप्न में दर्शन दिए थे और हुक्म दिया था कि तुम्हें वहाँ पहुँचा दूँ लेकिन मेरे लिए यह भी आवश्यक था कि तुम्हारी परीक्षा लूँ। परीक्षा में तुम संपूर्ण उतरे। तो ऐ महाराज, कल सुबह हम यात्रा पर प्रस्थान करेंगे।”

मैंने आगे कुछ न पूछा। वह सारे रहस्य जो समय के गर्त में दबे थे निकट भविष्य में खुलकर सामने आने वाले थे।

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Dolly sharma
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यात्रा बड़ी विहंगम थी। गोरखनाथ ने यात्रा के लिए जो सवारी चुनी थी वह एक काला सांड था। कद में छोटा परंतु बड़ा ही फुर्तीला और शक्तिशाली था। हम दोनों उसी सांड पर बैठे थे। मुझे हैरत होती थी कि वह सांड इतने ग्रान्डिल व्यक्ति को बर्दाश्त कर रहा है। ऊपर से मेरा बोझ भी लदा था। सामान के नाम पर बस एक पोटली थी। गोरखनाथ के हाथ में एक त्रिशूल था जिस पर एक निशान लहरा रहा था। रास्ते में जितनी भी वहशी कौमें पड़ी सबने गोरखनाथ का स्वागत किया।

उस क्षेत्र में गोरखनाथ का बड़ा सम्मान था। वह एक बड़े जादूगर की हैसियत रखता था। रास्ते में किस-किस तरह की मुसीबतें आई इसका मैं वर्णन करके अपनी आपबीती को लम्बा नहीं करना चाहता क्योंकि यदि उस रहस्यमय प्रदेश के प्रत्येक भू-भाग पर एक पुस्तक लिखी जाए तो वह भी कम होगी। शक्तिशाली सांड हमें पहाड़ी रास्तों पर ढोता रहा। रास्ते में बहुत से लामा मिले, साधु-संत मिले और मेरा ध्यान-ज्ञान बढ़ता रहा। एक मठ में हमने कई दिन विश्राम किया जहाँ मुझे कुछ पुरानी पुस्तकों के अध्ययन का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। मैं यहाँ की भाषाएँ भी सीख रहा था। विशेषकर उस रियासत में बोली जाने वाली भाषा मुझे गोरखनाथ सिखाता रहा। कई एक पहाड़ी दरों में बंद मार्गों को गोरखनाथ ने अपने जादू के तिलिस्म से खोला था। और मेरी समझ में यह बात आती रही कि उस जगह तक किसी इंसान का पहुँचना क्यों असंभव है।

हम कभी बर्फपोश पहाड़ों से गुजरते तो कभी पहाड़ों की तलहटी हमारा मार्ग होती। खाने-पीने की कोई विशेष परेशानी हमारे सामने नहीं आई। रास्ते में फल-फूल और जड़ी-बूटियों का सेवन, पहाड़ी स्रोतों का निर्मल जल। इन सबके सेवन से मेरे भीतर एक नई शक्ति का अंकुर फूटता जा रहा था। हम एक मंज़िल से दूसरी मंज़िल तय करते रहे। रात-दिन और समय का तो कोई हिसाब नहीं परंतु एक मोटे हिसाब से हमें वहाँ पहुँचने में छः माह अवश्य लगे होंगे। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि निरंतर पहाड़ों में छः माह तक यात्रा करते-करते किसी आदमी का क्या हाल हो सकता है।

एक जगह मैंने गोरखनाथ से पूछा-
“महाराज, अगर कभी आपको तुरंत ही रियासत में पहुँचना पड़े तो क्या इतना ही समय लगेगा ?”

गोरखनाथ ने भेद भरी मुस्कान से मेरी तरफ़ देखा। “नहीं, ऐसी कोई बात नहीं! हालाँकि मैं अपनी इच्छा से ही साल दो साल में एकाध बार वहाँ पहुँचता हूँ। फिर भी देवी की कृपा हो तो यह फासला मेरे लिए चंद घंटों का हो जाता है लेकिन तुम अभी आम मनुष्य हो। वह शक्तियाँ तुम्हें प्राप्त नहीं है इसलिए तुम्हें उतना ही समय लगेगा जितना कि एक साधारण आदमी को लगना चाहिए।”

फिर हम एक तैराई में पहुँचे जो दूर से एक भरी झील का टुकड़ा मालूम होती थी। कदाचित यह स्थान तिब्बत या चीन का कोई भू-भाग था। हरी-भरी झील का दूर से दिखने वाला यह टुकड़ा बाद में हरियाली में बदल गया। शाम का वक्त था और बस्ती में धुआँ उठ रहा था।

तराई में उस तरह पहाड़ों की ऊँची-ऊँची चोटियाँ थी जिन पर बर्फ़ लदी थीं और एकाध पहाड़ ऐसा भी था जिससे धुआँ निकलता दिखायी पड़ता था। गोरखनाथ ने मुझे बताया कि वहीं आग के पहाड़ हैं और उन्हीं पहाड़ियों में कहीं मोहिनी देवी का मंदिर है लेकिन वहाँ मंदिर का कोई निशान तक नज़र न आता था। बल्कि वे पहाड़ियाँ बड़ी खौफनाक मालूम होती थीं। मेरी समझ में नहीं आता था कि अगर हम वहाँ पहुँच भी गए तो मोहिनी देवी का मंदिर किस तरह तलाश करेंगे। लेकिन इस बारे में मैंने गोरखनाथ से कोई पूछताछ नहीं की।

जब हम रियासत में दाख़िल हुए तो सीमा पर ही हमारा स्वागत किया गया। वे लोग कद-काठी में लम्बे-चौड़े थे, रंगत से एकदम गोरे-चिट्टे और खूबसूरत थे। चीनी या तिब्बती चेहरे नहीं थे बल्कि वह जाति तो पहाड़ों में बसी जातियों से बिल्कुल ही अलग नज़र आती थी।

एक छोटी सी घुड़सवार टुकड़ी थी जिसने गोरखनाथ को बाकायदा अपने परंपरा के अनुसार सलामी दी और एक बूढ़े व्यक्ति ने आगे बढ़कर हमारा स्वागत किया।

“यह राज-ज्योतिषी सरमोन हैं।” गोरखनाथ ने मुझे बताया।

फिर गोरखनाथ उनकी भाषा में बात करने लगा। वह भाषा भी अब मेरे लिए अजनबी न थी।

“कदाचित यह वही अतिथि है।” सरमोन ने मेरी तरफ़ देखते हुए कहा। “जिसके लिए पहाड़ों की रानी ने हमारे पास फरमान भेजा था और हम प्रतीक्षा कर रहे थे। क्या नाम बताया इनका ?”

“कुँवर राज ठाकुर ?” गोरखनाथ ने परिचय कराया तो सरमोन मेरे सामने अदब से झुक गया।

“सरमोन, राज ज्योतिषी आपका स्वागत करता है, ऐ कुँवर!”

मैंने भी उसी अंदाज़ में सिर झुकाकर उसका उत्तर दिया।
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मैंने भी उसी अंदाज़ में सिर झुकाकर उसका उत्तर दिया। उसके बाद काफिला हमें लेकर चल दिया। हम रियासत की राजधानी में तीन दिन बाद पहुँचे। बीच में तीन पड़ाव डाले गए। यहाँ हमें बहुत ही अच्छा खाना उपलब्ध हुआ। ऐसे शर्बत पीने को मिले कि सफ़र की सारी थकावट पलों में दूर भाग गयी। फिर हमें राजसी महल में ले जाया गया। दरबार भवन में महारानी ने स्वयं हमारा स्वागत किया। महारानी एक लम्बे कद की बहुत ही खूबसूरत औरत थी और मुझे देखकर उनके होंठों पर खिले फूल की ताजगी सी निखर आई। उस शाम एक बड़ा सा जश्न हुआ और हमारा स्वागत हुआ जैसे किसी राजा-महाराजा का होता है। इन्द्र सभा की तरह सुंदर दासियाँ हमारी सेवा में थीं। नाच-गाने की महफ़िल गयी रात तक सजी रही। एक से एक फंकार अपना फन दिखाते इनाम पाते रहे। फिर दासियों ने हमें विश्राम कक्ष में पहुँचा दिया। यहाँ मैं गोरखनाथ से अलग हो गया। एक खूबसूरत शयनागार में मैंने रात बिताई। एक मुद्दत बाद ऐसा बिस्तर नसीब हुआ था अन्यथा मैं काँटों में सोता रहा था। रात सुंदर सपनों में बीत गयी।

सुबह-सुबह महारानी ने स्वयं दर्शन दिए। वह बहुत ही ख़ुश थीं।

“ऐ हमारे मेहमान, ऐसा जान पड़ता है कि सदियों से हमारी आत्मा यहाँ भटक रही थी और तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही थी। कितने जमाने, कितनी सदियाँ बीतने के बाद तुम यहाँ आए हो। लेकिन हमने सुना है कि तुम उन वीरान पहाड़ों की तरफ़ जाओगे जहाँ एक वहशी कौम आबाद है और उनका शासन एक बूढ़ी जादूगरनी के हाथ में है जो खुद को पहाड़ों की रानी कहलवाती है।”

“आपने ठीक सुना। हमारी मंज़िल वही पहाड़ है।”

परंतु वहाँ जाकर तुम क्या करोगे। वे ख़तरनाक वहशी भक्षी हैं। उनकी कोई देवी है जिस पर वे इंसानों की बलि चढ़ाते हैं। तुम तो सिर्फ़ हमारे लिए यहाँ आए हो और वह सिर्फ़ बहाना है। हम ही तुम्हारी मंज़िल हैं। हम सदियों से तुम्हें जानते हैं। हमारा प्यार तुम्हें सैकड़ों पहाड़ों के उस पार से खींच लाया है। यहाँ हमारे अलावा कोई भी सुंदरता की देवी नहीं।”

मैं पशोपेश में पड़ गया। कुछ जवाब देते नहीं बन पड़ा। वह आगे बढ़ी और उसने मेरे कंधों पर हाथ रख दिया।

“बोलो कौन है वह जिसकी तलाश में तुम यहाँ तक आए हो। नहीं, तुम्हें शायद कुछ याद नहीं। हम ही हैं। हमने तुम्हें बुलाया है। हमें पहचानो, देखो हमारी आँखें, देखो हमारा दिल। क्या हम तुम्हें जाने पहचाने नज़र नहीं आते ?”
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